सच सच बताएगा कि कब आपने किसी अपने चिट्ठी नहीं लिखी है या कब से आपके किसी अपने की चिट्ठी आप को नहीं मिली है. अधिकांश का उत्तर न में होगा. पोस्टमैन एक जमाने में हम सभी का रोलमॉडल होता था, उसे देख कर लोगों की बाँछें खिल जाती थीं, उसे अपनी गली में आए हुए कई कई दिन गुज़र जाते हैं. पोस्टबॉक्स शायद ही कहीं दिखें,जो बच भी गए हैं उनका हाल बेहाल है, कहीं उनका ताला ही टूटा मिलेगा, ऐसा लगता है जैसे चिट्ठी अब अतीत का स्वप्न हो. पूरा डाकख़ाना ईमेल में सिमट कर रह गया है मगर ईमेल ने हमने बहुत कुछ छीना है.
पुराने जमाने में चिट्ठी लिखने में काफ़ी श्रम लगता था, शब्दकोष का सहारा लिया जाता था. और प्यार की चिट्ठी पत्री की बात ही अलग थी, एक एक शब्द चुन कर लिखा जाता था , कई शायरी की पुस्तकों, दोस्तों की मदद भी ली जाती थी , आख़िर में इस पत्र पर एक दो चुंबन भी अंकित कर दिए जाते थे. अब बारी आती थी लिफाफे को बन्द करने की, फ़्रेंच परफ्यूम तो आसानी से मिलते नहीं थे अच्छे इतर की फुरेरी लगा कर ही यह कार्यवाई सम्पन्न हो पाती थी. डाक, डाकिया, प्यार का पहला ख़त विषयों पर हिट फ़िल्मी गाने भी बन चुके हैं.
लन्दन में आ कर ऐसा लगता है कि कुछ भी नहीं बदला है , पोस्ट ऑफिस गली मुहल्ले में हैं, पोस्ट ऑफिस की सेवाएँ सरकारी हैं लेकिन डिपार्टमेंटल स्टोर भी अपने यहाँ पूरी सेवाएँ फ़्रेंचाइज़ी के रूप में प्रदान करते हैं इसलिए इन सेवाओं के लिए कहीं दूर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है. डाक व्यवस्था बदस्तूर जारी है. प्रमोशन फ्लायर, बैंक स्टेटमेंट , कौंसिल , सरकारी डाक पोस्टमैन लगभग रोज़ ही दे कर जाता है.
पोस्टबॉक्स हर गली में हैं, जो दिन में दो बार खोले जाते हैं. मोहल्ले की महिलायें इन्हें खूबसूरती से सजा देती हैं जो डाक व्यवस्था के प्रति रोमांस को दर्शित करता है .
(प्रदीप गुप्ता दुनिया भर में घूमते हैं और जहाँ भी जाते हैं वहाँ की संस्कृति व जीवनशैली पर रोचक लेख लिखते हैं)