Tuesday, November 26, 2024
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स्वयं में सृष्टि के आदि, मध्य और अंत भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्राःएक विहगावलोकन

ओडिशा प्रदेश की आध्यात्मिक नगरी श्री जगन्नाथ पुरी धाम  में अपने श्रीमंदिर के रत्नसिंहासन पर विराजमान हैं भगवान जगन्नाथ जो कलियुग के एकमात्र पूर्ण दारुब्रह्म हैं।जगन्नाथ धाम का सबसे बडा सत्य यह भी है कि श्रीमंदिर के रत्नसिंहासन पर चतुर्धा देवविग्रहों में जगन्नाथ जी साक्षात ऋग्वेद स्वरुप हैं, बलभद्रजी सामवेद,सुभद्राजी अथर्वेद तथा सुदर्शनजी यजुर्वेद के जीवंत स्वरुप हैं। वे ही स्वयं में सृष्टि के आदि भी हैं, मध्य भी हैं तथा अंत भी हैं।16 कलाओं से सुसज्जित वे अवतारी हैं। वे अनंत हैं, असीम हैं, अव्यक्त हैं, गति-मुक्तिदाता हैं। वे ही साक्षात  जगदीश्वर हैं। वे अनाथों के नाथ हैं। वे सर्वव्यापी हैं। वे सर्वशक्तिमान हैं। वे सर्वज्ञ हैं। वे अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड के सृष्टिकर्ता और नियामक हैं।

वे अपने विग्रह रुप में  वैष्णव, शैव, शाक्त, सौर, गाणपत्य, बौद्ध,जैन और नीलमाधव हैं। वे ही असंख्य सूर्यों के समाहार हैं। उनके दो अपलक नेत्र स्वयं में सूर्य-चन्द्र हैं।वे अपने सच्चे भक्तों की आशा और विश्वास के आधार हैं। वे लीलामय महाप्रभु हैं। वे अपनी विविध मानवीय लीलाओं के माध्यम से विश्व मानव- समाज का प्रतिपल तथा प्रतिदिन मार्गदर्शन करते हैं।वे ही विश्व के समस्त देवों के समाहार विग्रहस्वरुप हैं।उन्हीं के आशीर्वाद से यह सृष्टि चलती है।
भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा इस महीने की 20 जून को अर्थात् आषाढ शुक्ल द्वितीया को पुरी धाम के बडदाण्ड(चौडी और बडी सडक) पर विशालतम आकार में अनुष्ठित हो रही है उनकी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा जो भगवान जगन्नाथ के प्रति समस्त भक्तों,सेवायतों की सच्ची श्रद्धा, भक्ति, प्रेम,  विश्वास,आत्मनिवेदन तथा आत्मअहंकार के त्याग का एक अनूठा सांस्कृतिक महोत्सव है। यह शाश्वत तथा दिव्य जीवन मूल्यों की रक्षा पर आधारित है। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा भारतीय आत्मचेतना का शाश्वत प्रतीक है ।यह रथयात्रा आगामी 20 जून को अर्थात् आषाढ शुक्ल द्वितीया को है। पद्मपुराण के अनुसार आषाढ माह के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि सभी कार्यों के लिए सिद्धियात्री होती है।भगवान जगन्नाथ शबर जनजातीय समुदाय से जुडे हैं और शबर समुदाय में यह प्रथा है कि उनके देवता काठ के होते हैं। शबर समुदाय उनकी पूजा गोपनीय रुप में करते हैं।
भगवान जगन्नाथ स्वयं कहते हैं कि जहां सभी लोग मेरे नाम से प्रेरित हो जहां पर एकत्रित होते हैं,मैं वहां पर अवश्य विद्यमान रहता हूं। रथयात्रा तो कहने के लिए मात्र एक दिन की होती है लेकिन सच तो यह है कि यह सांस्कृतिक महोत्सव वैशाख मास की अक्षय तृतीया से आरंभ होकर आषाढ माह की त्रयोदशी तक चलता है। रथयात्रा भक्त के शरीर तथा आत्मा का मेल है।रथयात्रा आत्मावलोकन की प्रेरणा देती है।स्कन्द पुराण,ब्रह्मपुराण,पद्मपुराण तथा नारद पुराण आदि में भगवान जगन्नाथ तथा उनकी नगरी श्रीजगन्नाथपुरी का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। यहां के श्रीमंदिर में चतुर्धा देवविग्रह रुप में विराजमान जगन्नाथजी वास्तव में सगुण-निर्गुण,साकार-निराकार,व्यक्त-अव्यक्त और लौकिक-अलौकिक के समाहार स्वरुप हैं।भगवान जगन्नाथ आनन्दमय चेतना के प्रतीक हैं जिनकी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा धर्म,भक्ति और दर्शन की त्रिवेणी है जिसमें भक्त उनके दर्शन के गोते लगाकर भक्ति,शांति,एकता,मैत्री,सद्भाव,प्रेम और करुणा का महाप्रसाद प्राप्त करते हैं।
रथयात्रा के दिन नारायण जगन्नाथ अपने वैसे नर भक्त से मिलने के लिए अपनी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा करते हैं जिनको श्रीमंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं होती है। भगवान जगन्नाथ की  रथयात्रा को घोषयात्रा,गुण्डीचा यात्रा,पतितपावन यात्रा,जनकपुरी यात्रा,नवदिवसीय यात्रा तथा दशावतार यात्रा भी कहते हैं।यह रथयात्रा वास्तव में एक सांस्कृतिक महोत्सव होती है क्योंकि भगवान जगन्नाथ स्वयं में विश्व मानवता के केन्द्र विंदु हैं, विश्व मानवता के स्वामी हैं,विश्व मानवता के प्राण हैं।वे सभी धर्मों के साथ-साथ सभी सम्प्रदायों के जीवंत समाहार विग्रह स्वरुप हैं।
 भगवान जगन्नाथ भक्तों की अटूट आस्था एवं विश्वास के देवता हैं जिनके रथयात्रा के दिन रथारुढ रुप को देखकर शांति,एकता तथा मैत्री का पावन संदेश मिलता है।पुरी एक धर्मकानन है जहां पर विद्यापति,आदिशंकराचार्य, चैतन्य महाप्रभु, रामानुजाचार्य, जयदेव,नानक,कबीर और तुलसी जैसे अनेक संत पधारे और भगवान जगन्नाथ की अलौकिक महिमा को स्वीकार कर उनके आजीवन भक्त बन गये। रथयात्रा के दिन श्रीमंदिर में सबसे पहले मंगल आरती होती है।मयलम, तडपलागी, रोसडा भोग, अवकाश, सूर्यपूजा, द्वारपाल पूजा, शेष वेश, गोपालवल्लव भोग(खिचडी भोग) ,सकल धूप, सेनापटा लागी, पहण्डी, छेरापहंरा, घोडालागी रीति-नीति होती है और उसके उपरांत आरंभ होती हरि बोल तथा जय जगन्नाथ के गगनभेदी जयकारे के साथ भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा में भक्तों द्वारा तीनों रथों को अपने-अपने हाथों से खींचने का सिलसिला ।
प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया के दिन से तीन नये रथों का निर्माण आरंभ होता है।रथ निर्माण की अत्यंत गौरवशाली परम्परा रही है जिसके तहत वंशानुक्रम से रथ निर्माण का कार्य सुनिश्चित बढईगण ही करते हैं।नंदिघोष रथ(जगन्नाथ जी के रथ),तालध्वज रथ(बलभद्र जी के रथ) तथा देवी सुभद्रा जी के रथ देवदलन के निर्माण में कुल लगभग 205 प्रकार के सेवायतगण सहयोग देते हैं। रथ-निर्माण कार्य में लगभग दो महीने लग जाते हैं। कहने के लिए तो रथयात्रा मात्र एक दिन की होती है लेकिन यह अक्षय तृतीया से आरंभ होकर आषाढ मास की त्रयोदशी तिथि तक चलती है।रथयात्रा का पहला चरण होता है रथ निर्माण के लिए काष्ठसंग्रह का पवित्र कार्य जो प्रतिवर्ष वसंतपंचमी से आरंभ होता है।
अक्षय तृतीया के दिन से पुरी के गजपति महाराजा के राजमहल श्रीनाहर के सामने रथखल्ला में रथ-निर्माण का पवित्र कार्य और भगवान जगन्नाथ की विजय प्रतिमा मदनमोहन आदि का पुरी के चंदन तालाब में उनकी 21 दिवसीय बाहरी  चंदनयात्रा। दूसरा चरण होता है- देवस्नान पूर्णिमा का जिसमें चतुर्धा देवविग्रहों को 108 कलश जल से महास्नान कराया जाता है उसके उपरांत उन्हें गजानन वेष में शोभायमान कराया जाता है।तीसरा चरण होता है- अणासरा जिस दौरान उन्हें उनके बीमारकक्ष में 15 दिनों तक एकांतवास कराकर उनका आयुर्वेदसम्मत उपचार होता है।चौथा चरण होता है-उस दौरान 15 दिनों तक पुरी से करीब 23 किलोमीटर की दूरी पर ब्रह्मगिरि में भगवान अलारनाथ के दर्शन का । पांचवां चरण होता है-नवयौवन दर्शन का तथा छठा चरण होता है-रथयात्रा।उसके उपरांत आयोजित होती है देवविग्रहों की बाहुडा यात्रा(वापसी श्रीमंदिर यात्रा)।चतुर्धा देवविग्रहों का अधरपडा,सोनावेष और नीलाद्रिविजय।

जिसप्रकार मानव शरीर का निर्माण पंच तत्वों से हुआ है ठीक उसी प्रकार रथ-निर्माण में पांच तत्व के रुप में काष्ठ(दारु),धातु,रंग,परिधान तथा श्रृंगार हेतु सजावट की सामग्रियों का प्रयोग होता है।पौराणिरक मान्यता के अनुसार मानव-शरीर ही रथ होता है।रथी आत्मा होती है।सारथि बुद्धि होती है,लगाम मन होता है और रथ में जुडे सभी अश्व मानव इंद्रियगण के प्रतीक होते हैं। रथों का विवरणः

तालध्वज रथः
यह रथ  बलभद्रजी का रथ है जिसे बहलध्वज भी कहते हैं। यह 44फीट ऊंचा होता है। इसमें 14चक्के लगे होते हैं। इसके निर्माण में कुल 763 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है। इस रथ पर लगे पताकों को नाम उन्नानी है। इस रथ पर लगे नये परिधान के रुप में लाल-हरा होता है। इसके घोडों का नामःतीव्र,घोर,दीर्घाश्रम और स्वर्णनाभ हैं। घोडों का रंग काला होता है। रथ के रस्से का नाम बासुकी होता है।रथ के पार्श्व देव-देवतागण के रुप में गणेश, कार्तिकेय, सर्वमंगला, प्रलंबरी,हलयुध,मृत्युंजय,नतंभरा, मुक्तेश्वर तथा शेषदेव हैं। रथ के सारथि हैं मातली तथा रक्षक हैं-वासुदेव।

देवदलन रथ
यह रथ सुभद्राजी का है जो 43फीट ऊंचा होता है। इसे देवदलन तथा दर्पदलन भी कहा जाता है। इसमें कुल 593 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है। इसपर लगे नये परिधान का रंग लाल-काला होता है। इसमें 12 चक्के होते हैं। रथ के सारथि का नाम अर्जुन है। रक्षक जयदुर्गा हैं। रथ पर लगे पताके का नाम नदंबिका है। रथ के चार घोडे हैं –रुचिका,मोचिका,जीत तथा अपराजिता हैं। घोडों का रंग भूरा है। रथ में उपयोग में आनेवाले रस्से का नाम स्वर्णचूड है। रथ के पार्श्व देव-देवियां हैःचण्डी, चमुण्डी, उग्रतारा, शुलीदुर्गा, वराही, श्यामकाली,मंगला और विमला हैं।

नन्दिघोष रथ
यह रथ भगवान जगन्नाथजी का रथ है जिसकी ऊंचाई 45फीट होता है। इसमें 16चक्के होते हैं। इसके निर्माण में कुल 832 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है। रथ पर लगे नये परिधानों का रंग लाल-पीला होता है। इसपर लगे पताके का नाम त्रैलोक्यमोहिनी है। इसके सारथि दारुक तथा रक्षक हैं –गरुण। इसके चार घोडे हैःशंख,बलाहक,सुश्वेत तथा हरिदाश्व।इस रथ में लगे रस्से का नामः शंखचूड है। रथ के पार्श्व देव-देवियां हैःवराह, गोवर्धन, कृष्ण,गोपीकृष्ण,नरसिंह, राम, नारायण,त्रिविक्रम,हनुमान तथा रुद्र हैं।

रथयात्रा के दिन चतुर्धा देवविग्रहों को पहण्डी विजय कराकर उन्हें रथारुढ किया जाएगा।चतुर्धा देवविग्रहों के रथारुढ कराने के उपरांत पुरी गोवर्धन पीठ के 145वें पीठाधीश्वर तथा पुरी के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाभाग अपने परिकरों के साथ पधारकर तीनों रथों का अवलोकन करते हैं तथा चतुर्धा देवविग्रहों को अपना आत्मनिवेदन प्रस्तुत करते हैं।उसके उपरांत पुरी के गजपति तथा भगवान जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक श्री श्री दिव्य सिंहदेव महाराजा पालकी में पधारकर तीनों रथों पर छेरापहंरा करते हैं।जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक के रुप में अपना आत्मनिवेदन प्रस्तुत करते हैं।रथों के साथ घोडों को जोडा जाता है तथा हरिबोल तथा जय जगन्नाथ के गगनभेदी जयकारे के साथ भक्तों द्वारा तीनों रथों को बारी-बारी से खिंचने का सिलसिला आरंभ हो जाता है। सबसे पहले बलभद्र जी का रथ तालध्वज रहता है,उसके साथ देवी सुभद्रा जी का रथ देवदलन चलता है,उसके उपरांत भगवान जगन्नाथ का रथ नंदिघोष चलता है।

 भक्तगण पूरी सुरक्षा के बीच रथों को खींचकर गुण्डीचा मंदिर लाते हैं। गुण्डीचा मंदिर श्रीमंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है लेकिन तीनों रथों को गुण्डीचा मंदिर पहुंचने में लगभग 6घण्टे से 24 घण्टे भी लग जाते हैं।रथ खीचने के लिए नारियल की जटा से निर्मित मोटे-मोटे रस्से व्यवहार में लाए जाते हैं। भक्तों की भीड जब जोश में रथ खीचती है तो गति को काबू में करने के लिए  विशालकाय काष्ठखण्ड को ब्रेक के रुप में प्रयोग किया जाता है।ऐसा कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ अपने भक्त सालबेग की मनोकामना को पूर्ण करने हेतु भी अपनी रथयात्रा करते हैं।रथयात्रा के दौरान जगन्नाथ जी अपनी मौसी मां के हाथों से तैयार पूडा-पीठा ग्रहण करते हैं।वे गुण्डीचा मंदिर में सात दिनों तक विश्राम करते हैं।
रथयात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ को रथारुढ दर्शनकर भक्त मोक्ष को प्राप्त करते हैं।  गौरतलब है कि रथयात्रा के दिन पहण्डी के आगे-आगे ओडिशा की परम्परागात बनाटी प्रदर्शन,गोटपुअ नृत्य,ओडिशी नृत्य प्रदर्शन,अल्पना तथा रंगोली आदि की सजावट देखते ही बनती है।उस दिन हनुमान का रुप धारण कर भक्त की कला भी देखने योग्य होती है। यही नहीं रथयात्रा के दिन बडदाण्ड पर सभी संस्कृतियों तथा सम्प्रदायों का भजन-कीर्तन आदि भी देखते ही बनता है।
गौरतलब है कि इस वर्षः2023 की भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के सफल आयोजन के लिए समय-समय पर रथयात्रा समन्वय समिति की बैठकों का आयोजन हुआ जिसमें अंतिम बैठक में ओडिशा के मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक ने अध्यक्षता की और सभी से शांति और अनुशासन के साथ रथयात्रा के हर चरण को संपन्न करने की अपील की। उन्होंने  सुनिश्चित और निर्धारित समय पर रथ यात्रा के हर रीति-रिवाजों के पालन के लिए आयोजित तैयारियों की उन्होंने समीक्षा की।भारत के विभिन्न स्थानों से लाखों भक्तों के एकत्रित होने की स्थिति को ध्यान में रखते हुए रेल विभाग की ओर से जगन्नाथ पुरी के लिए विशेष ट्रेनों का इंतजाम किया गया है। इनमें यात्रियों की सुरक्षा पर विशेष जोर दिया गया है। इसके अलावा सड़क मार्ग पर तीर्थ यात्रियों के आवागमन के लिए राज्य सड़क परिवहन विभाग की ओर से अलग-अलग मार्गों पर कई बसों के चलने की व्यवस्था की है।भक्तों और श्रद्धालुओं को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की व्यवस्था सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी ली है, ओडिशा सरकार के जल आपूर्ति विभाग ने।यही नहीं रथयात्रा के दिन कुल मिलाकर लगभग 500 स्वैच्छिक संस्थाओं की ओर से भी भक्तों के लिए खाने-पीने तथा अल्पाहार आदि का इंतजाम किया गया है।
रेडक्रॉस, एनसीसी, एनएसएस और कई सरकारी तथा गैरसरकारी  संगठनों ने भी रथयात्रा के दिन जगन्नाथ भक्तों के लिए हरप्रकार के सहयोग का भरोसा जताया है।ओडिशा  अग्निशमन सेवा विभाग की ओर से महत्त्वपूर्ण स्थानों पर आग बुझाने के आवश्यक उपकरण आदि स्थापित किए जा चुके हैं।सबसे बडी बात इस वर्ष की रथयात्रा की तैयारी की यह है कि भगवान की सेवा में स्वयं को समर्पित करनेवाले श्रीमंदिर के सेवायतों के परिवारों की बुजुर्ग महिलाओं की रथयात्रा के दिन असुविधा को ध्यान में रखकर उन्हें श्रीमंदिर के समीप ही उनके ठहरे आदि की व्यवस्था की गई है। इस पावनतम रथयात्रा महोत्सव में शामिल होने के लिए पुरी के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्य सिंहदेवजी ने भी सभी से आग्रह किया है।पुरी जिला प्रशासन की ओर से इस वर्ष पहली बार एक ऐप आरंभ किया गया है जिसके द्वारा पुरी आनेवाले यात्री और पर्यटक आसानी से पुरी धाम के विभिन्न दर्शनीय स्थलों की जानकारी प्राप्तकर वहां जाकर देख सकते हैं।वे इस वर्ष की रथयात्रा के संबंध में ताजी जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं।पुरी के जिलाधीश श्री समर्थ वर्मा के अनुसार जिला प्रशासन और पुलिस विभाग की तरफ से सभी ऐतिहाती कदम उठाए गए हैं।
रैपिड एक्शन फोर्स के 180 जवान और अधिकारियों को हरेक रथों के चारों और कॉर्डन बनाने के लिए नियुक्त किया गया है। मॉक-ड्रिल के माध्यम से उन्हें रथ यात्रा की विभिन्न दिशाओं के बारे में अवगत कराया गया है। राज्य पुलिस के साथ मिलकर वे कानून और व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे। रथ यात्रा के समय सभी संवेदनशील खबर एकत्रित कर देश के खुफिया संगठनों को सलाह देने के उद्देश्य से वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को लेकर एक अनुभवी, कुशल तथा समर्पित दल तैयार किया गया है।श्री सुनील कुमार बंसल, राज्य पुलिस महानिदेशक के अनुसार रथयात्रा के दौरान पूरी सुरक्षा तथा शांति का इतजाम किया गया है।वहीं श्री कुंवर विशाल सिंह, एस पी, पुरी ने भी यह जानकारी दी है कि रथ यात्रा के दौरान पुरी में ड्रोन उड़ाने पर संपूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया जा चुका है।रथयात्रा के पावन अवसर पर सभी को शुभकामना देते हुए श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन की ओर से श्रीमंदिर के मुख्य प्रशासक श्री रंजन कुमार दास ने भी सभी के सहयोग की कामना की है।

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