देखो ! नूतन-वर्ष का नूतन दिनकर,
खिल-खिल रश्मियां बिखेर रहा है।
अखिल विश्व की सुप्त निद्रा तोड़,
महाजागरण का शंखनाद कर रहा है।
शोक, व्याकुल, संतृप्त थे जो क्षण,
समय की रेत से यूं ही फिसल गये।
कुछ अनसुलझी पहेलियों के हल,
हम ढूंढते ही रह गये।
उल्लास-उन्माद के पल भी चंद निशां छोड़ गए,
क्या खोया-क्या पाया सोचते ही रह गये।
कुछ रिश्तों की गांठें शायद खुल जाए,
उम्मीदों के पत्तों से शायद शाख कोई मुस्का जाये।
उर का कालकूट अमृत मोती बन जाये,
स्वर्णिम भारत का निर्माण हो जाये।
सत्ता के गलियारों में मद का चिर-अवसान हो जाये,
देखो !नूतन-बेला में महाजागरण का शंखनाद हो जाए ।
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1 – एफ -6, ओल्ड हाउसिंग बोर्ड
शास्त्री नगर, भीलवाड़ा