Saturday, April 27, 2024
spot_img
Homeकवितामहाजागरण का शंखनाद

महाजागरण का शंखनाद

देखो ! नूतन-वर्ष का नूतन दिनकर,
खिल-खिल रश्मियां बिखेर रहा है।
अखिल विश्व की सुप्त निद्रा तोड़,
महाजागरण का शंखनाद कर रहा है।
शोक, व्याकुल, संतृप्त थे जो क्षण,
समय की रेत से यूं ही फिसल गये।
कुछ अनसुलझी पहेलियों के हल,
हम ढूंढते ही रह गये।
उल्लास-उन्माद के पल भी चंद‌ निशां छोड़ गए,
क्या खोया-क्या पाया सोचते ही रह गये।
कुछ रिश्तों‌ की गांठें शायद खुल जाए,
उम्मीदों के पत्तों से शायद शाख कोई मुस्का जाये।
उर का कालकूट अमृत मोती बन जाये,
स्वर्णिम भारत का निर्माण हो जाये।
सत्ता के गलियारों में मद का चिर-अवसान हो जाये,
देखो !नूतन-बेला में महाजागरण का शंखनाद हो जाए ।
संपर्क
1 – एफ -6, ओल्ड हाउसिंग बोर्ड
शास्त्री नगर, भीलवाड़ा
image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार