10 दिसंबर 2005 की घटना है। उन दिनों मैं स्टार न्यूज में कार्यरत था। मुंबई के जुहू तारा रोड स्थित रोटरी सेंटर में एक कार्यक्रम की तैयारियां जोर-शोर से चल रही थीं। इस कार्यक्रम के दो हीरो थे। एक निदा फाजली, जिनकी किताब का विमोचन था और दूसरा मैं,जिसे अखिल भारतीय अमृत लाल नागर पुरस्कार का प्रथम पुरस्कार मिलना था। पूरा कार्यक्रम तय करने के अलावा सभी मेहमनों के आदर सत्कार की जिम्मेदारी भी मेरी थी। खास बात ये है कि जिस कार्यक्रम में मेरे जैसे युवा साहित्यकार को मेरी कहानी “यही मुंबई है” के लिए पुरस्कृत किया जाना हो, वहां जो भी मंच पर आया… वो निदा साहब की जगह मेरी ही तारीफ करता नजर आया। यहां तक कि निदा फाजली की किताब से ज्यादा मेरी कहानी पर चर्चा हुई। खुद निदा ने भी मेरी जमकर तारीफ की। तो इस तरह से मेरी निदा फाजली के साथ पहली मुलाकात हुई।
कार्यक्रम के बाद लंच की बारी आई। इस दौरान निदा साहब चाहते थे कि कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दादा यानी हिन्दी साहित्य के शलाका पुरुष राजेंद्र यादव जी के साथ उनकी एक शाम बैठक हो। निदा जी ने खुद राजेंद्र यादव से इसका जिक्र किया तो दादा ने तुरंत उन्हें मेरी तरफ मुखातिब कर दिया और कहा कि मेरा सारा कार्यक्रम हरीश जी ही तय करेंगे। इसके बाद निदा फाजली जी के साथ काफी बातचीत हुई और चर्चा हुई। निदा साहब की शायरी का तो मैं पहले से ही कायल था, उन्हें करीब पाया तो उन्हें और जानने की इच्छा जाग उठी।
अगले ही शाम हमलोग मुंबई में स्टार न्यूज के गेस्ट हाउस में मिले। यहीं पर राजेंद्र यादव ठहरे हुए थे। जमकर बैठकी चली। इसमें राजेंद्र यादव और निदा फाजली के अलावा धीरेंद्र अस्थाना भी मौजूद थे। फिर तो निदा जी के साथ मुलाकात का जो सिलसिला शुरू हुआ, वो कभी उनके घर पर, कभी किसी आयोजन में तो कभी दिल्ली में चलता रहा। एक बार स्वर्गीय पत्रकार शैलेंद्र जी की किताब के विमोचन के सिलसिले में हम साथ दिल्ली आए और मुंबई वापसी भी साथ हुई। मैंने बड़े करीब से देखा कि उनके अंदर हर वक्त एक बच्चे की चहक मौजूद रहती थी। एयरपोर्ट हो या फ्लाइट के अंदर, मैंने देखा कि उनके चाहने वाले हर मोड़ पर मौजूद थे। फ्लाइट के अंदर जब एयर होस्टेस चॉकलेट लेकर आई तो उन्होंने पूरी मुट्ठी भर के उठा लिया, एयर होस्टेस भी उन्हें पहचान गई, उसने जब कहा कि आप निदा साहब हैं न, तो उनका जवाब और भी मासूम था। निदा साहब ने कहा पहले मुझे चॉकलेट लेने दो।
खास बात ये है कि निदा फाजली से जब भी बात होती थी, तो वो बात-बात पर रामचरित मानस और गीता जैसे धर्मग्रंथों से उदाहरण निकालकर सुनाते थे। कई बारगी ऐसा लगता था कि बड़े-बड़े हिन्दू विद्वानों को भी शायद गीता, वेद, पुराण या फिर कबीर की जानकारी उतनी नहीं होगी, जितना निदा साहब को थी। निदा जी का जाना एक युग के जाने जैसा है।
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