(जन्म 23 मार्च 1910 – निधन 12 अक्टूबर 1967)
उन दिनों, जब विश्व के बौद्धिक जगत में मार्क्स और एंगेल्स के चिंतन से प्रभावित द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का एक प्रबल दौर चल रहा था और जवाहरलाल नेहरू स्टालिन के चेले बनकर सोवियत ब्लॉक के सेवक बन गए थे, भारत में जयप्रकाश नारायण और आचार्य नरेंद्र देव जैसे दिग्गज बौध्दिक भी कम्युनिस्ट मतबाद की छाया में थे ,ऐसे में डॉक्टर राम मनोहर लोहिया द्वारा समाजवाद प्रत्यय का प्रयोग करते हुए भी भारतीय दर्शन को इतिहास ,संस्कृति और राजनीति तीनों ही क्षेत्र में बहुत ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करना एक अद्भुत पुरुषार्थ था।
वह पुरुषार्थ इतना विराट ओर विशिष्ट था और इतना विरल था कि उनके जाते ही राजनीति में उनके द्वारा प्रवाहित विचारो को प्रसारित करने की सारी चेष्टाएं उनके शिष्यों ने नष्ट कर दी और स्वयं द्वंद्वात्मक जातिवादी बन गए ।
इतिहास का तो ज्ञान ही किसी भी लोहिया के वर्तमान में अनुयाई को नहीं है और संस्कृति जो कि वस्तुत: धर्म का ही एक यूरोपीय अनुवाद है, उससे तो स्वयं को , लोहिया वादी कहने वाले लोगों का कोई लेना देना है नहीं।
इससे यह तो कह सकते हैं कि राजनीतिक संगठक के रूप में लोहिया कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाए ।
लेकिन एक बड़े राजनेता के रूप में उनके व्यक्तित्व का बल और प्रभाव इससे पता चलता है कि उस दौर में उन्होंने समाजवाद जैसे विजातीय प्रत्यय का प्रयोग करते हुए भी भारतीय दर्शन और भारतीय इतिहास के सभी प्रत्ययों को बहुत ही शक्ति तथा युक्ति के साथ तथ्यों सहित और ज्ञानपूर्वक स्थापित किया ।
उनका ज्ञान की दृष्टि से एक भी शिष्य नहीं हुआ और केवल उनकी बात को नारों की तरह कुछ दिन तक दोहरा कर फिर सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के द्वारा फुसलाए बहलाये जाकर सब के सब द्वंद्वात्मक टकराववादी हो गए परंतु वे नारे भी और वह रूपक भी कितने शक्तिशाली थे!
उन्होंने कहा :
धर्म दीर्घ कालीन राजनीति है
और राजनीति अल्पकालिक धर्म।
देह की सीमा है उसकी चमड़ी
और देश की चमड़ी है उसकी सीमा।।
डॉक्टर लोहिया की अभिलाषा। रहे देश में देसी भाषा।।
राजा जुलहा मंत्री पूत ।साथ पड़े सब होंय सपूत।।
डॉक्टर लोहिया का अरमान ।रेल के डिब्बे एक समान।।
अन्न दाम का घटना बढ़ना, आना. सेर के भीतर हो ।
कारखानिया माल और खेतिहर माल के दामों में संतुलन रहे ।
लोहिया जी ने बांधी गांठ । पिछडे पावें सौ में साठ।।
(डॉक्टर लोहिया ने बहुत विस्तार से और स्पष्ट कहा था, बारंबार कहा था कि पिछड़े का अर्थ है अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, बेहद गरीब मुसलमान और भारत की सभी , स्त्रियां।
यही उनकी दृष्टि में भारत के पिछडे हैं और इनको ही 100 में साठ मिलना था ।
जो लोग अभी अन्य पिछड़ा बन गए हैं वे डॉक्टर लोहिया के समय तक मझौली जातियां कहे जाते थे और इनको बलिदान देने कहा जाता था अनुसूचित जाति, जनजातियों और सभी स्त्रियों के पक्ष मे।।
इसलिए अभी स्वयं को पिछड़ा कहने वाला कोई भी नेता डॉक्टर लोहिया के अनुसार पिछडे समुदाय की श्रेणी में नहीं आता ।वह मझौली जाति का व्यक्ति है जो शक्तिशाली जाति है और जिसे कुछ समय तक सत्ता से दूर रहकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को और स्त्रियों को बढ़ाना चाहिए।
मंडल आयोग वाला मंडल एक धूर्त कम्युनिस्ट था और सरकारी अफसर रहा था और उसने इंदिरा गांधी की सहमति लेकर जानबूझकर हिंदू समाज को तोड़ने के लिए काम किया और ईसाई मिशनरी लोगों तथा बहुत ही धूर्त किस्म के मुस्लिम नेताओं का वह सेवक था और जालसाजी में अत्यंत निर्लज्ज था।
जिन लोगों ने भी मंडल आयोग का और उसके द्वारा हिंदू समाज के विषय में पूरी तरह झूठ का और जालसाजी का समर्थन किया , उनका डॉक्टर लोहिया के विचारों और राजनीति से कोई भी संबंध नहीं है और ऐसा संबंध बताना और झूठ बोलना धूर्तता है।)
जैसे मनुष्य की सीमा उसका शरीर है उसकी चमड़ी है उसी प्रकार देश की सीमाएं देश की चमड़ी।
जो भी उनकी खरोंच सहता है वह देशभक्त नहीं .। जवाहरलाल नेहरू देशभक्त नहीं है क्योंकि भारत की सीमाओ को क्षत विक्षत करने दे रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि राम,कृष्ण और शिव : यह तीनों भारत की आत्मा है ,मनीषा है, चेतना है।
राम मर्यादा के पर्याय हैं और मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।
पुरुषोत्तम कृष्ण योगेश्वर हैं और वह पूर्ण पुरुष हैं ।
शिव असीमित अनंत चेतना और सत्ता हैं।
सत्ता, भाषा,संस्कृति व कला आदि के क्षेत्र में विगत 77 वर्षों में डॉक्टर लोहिया के बराबर गहरी और सूक्ष्म दृष्टि रखकर उसे सौंदर्य के साथ प्रस्तुत करने वाला और कोई भी राजनेता नहीं हुआ । यह तो प्रमाणित तथ्य है।