गायन और वाद्य स्वरों से मिल कर संगीत निकलता है तो मन को असीम शांति की अनुभूति कराता है। देश में कई नामी गायकों, विभिन्न वाद्यों के कलाकारों और संगीतकारों ने मिल कर अनेक कालज्यी गीतों की रचना की है। पुराने जमाने का कर्णप्रीय संगीत नई पीढ़ी के लिए भी आकर्षण का प्रबल माध्यम है। इन गीतों की रचना में गायक के साथ – साथ वादकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। ताल वाद्यों में दो छोटे ड्रमों से मिलकर बना तबला अपना खास महत्व रखता है। देश के नामी तबला वादकों के बीच कोटा के देवेंद्र कुमार सक्सेना ने भी तबला वादन में हाड़ोती में अपनी पहचान बनाई है। संगीत प्रेमियों के बीच तबला वादक के रूप में लोकप्रिय यह कलाकार संगीत संस्कृति के साधक के साथ – साथ समाज और साहित्य के आराधक भी हैं।
तबला वाद्य पर जानकारी देते हुए देवेंद्र बताते हैं तबला के दो अंग अर्थात इसमें दो ड्रम होते हैं जिनका आकार और आकृति एक दूसरे से कुछ भिन्नता लिए होती है। एक सीधे हाथ वाले वादक द्वारा, दाहिने हाथ से बजाया जाने वाला अंग ही तबला कहलाता है। आम भाषा में इसे दाहिना कहते हैं। यह अमूमन 15 सेंटीमीटर व्यास वाला और 25 सेंटीमीटर ऊँचाई वाला होता है। इन दोनों अंगों के आकार में विषमता के कारण तीखे और चंचल बोल – ता, तिन, ना इत्यादि दाहिने पर बजाये जाते हैं और बायें का बायें को बेस ड्रम की तरह प्रयोग में लाया जाता है जो आकार बड़ा होने के कारण गंभीर आवाज वाले नाद धे, धिग इत्यादि बायें पर बजते हैं।
तबला वादन शुरू से ही इनकी रुचि रही है और इस विधा में ज्ञान प्राप्त कर नियमित अभ्यास आज तक करते हैं। बताते हैं की इनको वेदमूर्ति तपोनिष्ठ आचार्य श्रीराम शर्मा, माता भगवती देवी ,डॉ. प्रणव पण्डया ,शैल बाला जी पण्ड्या ,योग ऋषि स्वामी रामदेव के सानिध्य में अध्यात्म ,योग ,शिक्षा तथा मृदंग महर्षि डॉ रामशंकर दास उर्फ पागलदास जी, पंडित गणेश प्रसाद भारद्वाज ,पंडित बालकृष्ण महंत ,श्री एन पी श्रीवास्तव ,श्री अरुण कुमार अम्बेडकर आदि के सानिध्य में संगीत सीखने का सौभाग्य मिला है।
आपने अनेक बड़े संगीत कार्यक्रमों में तबला वादन कर अपनी दक्षता की छाप छोड़ी है। आपने संसद एनेक्सी नई दिल्ली ,भारत भवन भोपाल ,देव संस्कृति विश्व विद्यालय शांतिकुंज हरिद्वार ,पतंजलि योग पीठ हरिद्वार के साथ – साथ विगत दस साल से अधिक समय से भारतेंदु हरिश्चन्द्र जयंती महोत्सव समारोह में तबला वादन कर सहयोग कर रहे हैं। इन्होंने इस वाद्य विद्या में हजारों जिज्ञासुओं को प्रशिक्षण भी प्रदान किया है। आपको लंबे समय तक शांतिकुंज हरिद्वार में रहते का अवसर मिला जहां इन्होंने हजारों शिविरार्थियो को संगीत प्रशिक्षण प्रदान किया। बांसवाड़ा, उदयपुर और कोटा आकाशवाणी केंद्रों से संगीत पर इनके साक्षात्कारों का प्रसारण भी समय-समय पर हुआ है । इन्होंने प्रज्ञा अभियान पाक्षिक समाचार पत्र , कोटा में संगीत संकल्प के राष्ट्रीय अधिवेशन एवं संगीतिका संगीत संकल्प की स्मारिकाओं का सह-सम्पादन भी किया ।
इन्होंने भारतीय देव संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिये यात्रा अश्वमेध यज्ञ से जुड़ कर भारत ,अमेरिका, कनाडा इंग्लैंड, नेपाल आदि देशों की यात्राएं की और इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा स्मारिका के सम्पादन में सहयोग किया।
साहित्य संगीत अनुरागी देवेंद्र के सामाजिक सांस्कृतिक विषयों पर 1980 से समय-समय पर सकारात्मक ऊर्जा से ओतप्रोत लेख, रिपोर्ट, समीक्षा, संस्मरण , धर्मयुग ,साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादम्बिनी ,सरिता ,कला वार्ता ,कला समय ,संगीत एवं संगीत कला विहार रश्मि ,चिदंबरा ,वाग्धारा संगीत वंदन ,नवल टाइम्स न्यूज कोटा ब्यूरो सहित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं, साहित्य लेखन का क्रम निर्बाध जारी है। बताते हैं कि साहित्य के क्षेत्र में वेदमूर्ति तपोनिष्ठ आचार्य श्रीराम शर्मा ,डॉ. प्रणव पण्डया, डॉ. श्रीकृष्ण सरल, डॉ. शिव मंगल सुमन, डॉ. विष्णु प्रभाकर, डॉ. ,नरेश मेहता ,डॉ. इशाक अश्क,डॉ.ज्योति पुंज, डॉ. विजय शंकर मिश्र ,पंडित सुरेश तातेड ,डॉ. श्रीकृष्ण जूगनू,श्री रामेश्वर शर्मा रामू भैया ,डॉ. रमाकांत शर्मा ,डॉ, डी. पी. अग्रवाल ,डॉ. माधव हाडा,डॉ.अरविंद सोरल ,श्री नंदन चतुर्वेदी एवं जितेंद्र निर्मोही जैसे प्रसिद्ध सामाजिक सांस्कृतिक विचारकों साहित्यकारों का सानिध्य और मार्गदर्शनभी प्राप्त हुआ। गुरु की महिमा पर लिखी इनकी एक कविता इस प्रकार है…
जगत गुरु भारत जग बगिया का माली…..
सद्गुरु मिलते हैं
तब धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का सूत्र सहज मिलता है..
शिष्य के भ्रमित – मन, अंतःकरण में ज्ञान का दीप जलता है।
गुरु पारस से दीक्षित होकर
शिष्य अनमोल स्वर्ण- कमल सा खिलता है….
सद्गुरु तपोनिष्ठ हैं….. चरण वंदन से पाप ताप मिटतें हैं।
गुरु अमृत कलश…शिष्य के प्राण में प्रेरणा बन मचलते हैं ।
गुरु प्रखर प्रज्ञा.. शिष्य में
सद्ज्ञान बन चहकतें हैं।
गुरु सजल श्रध्दा… शिष्य में भाव संवेदना बन झलकते हैं ।
गुरुदेव ऋषि युग्म का पाकर सूक्ष्म सानिध्य
शिष्य भव सागर तर जाता है।
पल भर में ईर्ष्या अहंकार आलस्य
जल जाता है।
हम जगत गुरु भारत की संतानें…
आओ गुरु पूर्णिमा पर्व पर
जगत गुरु का करें
वंदन अभिनंदन….
गुरुदेव की पूजा की थाली
बने जगत की खुश- हाली…
जगत गुरु भारत ही है जग बगिया का माली..
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय नई दिल्ली द्वारा प्रांतीय स्तर पर प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त हुआ। संस्कृति साधक ,मालवा गौरव ,दो बार जिला प्रशासन द्वारा राजकीय सम्मान, श्री भारतेंदु समिति कोटा ,अखिल भारतीय साहित्य परिषद कोटा ,साहित्य चेतना परिषद शुजालपुर , संस्कार भारती भोपाल कोटा , भारत विकास परिषद कोटा सहित अनेक संस्थाओं द्वारा देश – विदेश में सम्मानित हुए। राष्ट्रीय आपदा और राष्ट्रीय मिशन के तहत और व्यक्तिगत तौर पर अपनी पुत्री राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित गायिका सुश्री आस्था सक्सेना ब्रांड एम्बेसेडर चिकित्सा विभाग कोटा राजस्थान सरकार के साथ सिंहस्थ महाकुंभ उज्जैन सहित भारत के कई शहरों में यात्रा की और कोटा राजस्थान का मान बढ़ाया व सम्मान प्राप्त किए ।
परिचय : संगीत, साहित्य और संस्कृति के पुजारी देवेंद्र कुमार सक्सेना का जन्म 5 जून 1964 को मध्य भारत की सांस्कृतिक नगरी वर्तमान उज्जैन मंडल के जिला शाजापुर गांव ढाबला धीर में श्री हरिनारायण सक्सेना एवं माता श्रीमती मगन देवी के आंगन में हुआ। आपने हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त की। आपकी पत्नी संगीता सक्सेना भी संगीत विधा में पारंगत हैं।
इन्होंने पर्यावरण ,व्यसन- मुक्ति, कौमी एकता, विश्व एकता आदि क्षेत्रों में भी निःस्वार्थ भाव से कार्य किया। प्रतिदिन किसी न किसी प्रकार की 25 जरूरतमंदो की मदद कर मानवता की सेवा करते हैं। आप पिछले 25 वर्षों से राजकीय कला कन्या महाविद्यालय कोटा के संगीत विभाग में तबला वादक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहे हैं और विद्यार्थियों को साहित्य ,लेखन ,संगीत एवं राष्ट्रीय एकता के लिए प्रेरित करते हैं।
संपर्क मोबाइल : 94142 91112
(लेखक कोटा में रहते हैं व कला,साहित्य, पुरातत्व से लेकर ऐतिहासिक विषयों पर लिखते हैं)