बचपन में बुजुर्ग बताते थे कि पहले कोई चाय नहीं पीता था। करीब 60-70 साल पहले चाय का चलन बढ़ाने के लिए इसकी उत्पादक कंपनियों ने ठेलों पर तैयार चाय, डब्बों में भर कर लोगों को मुफ्त में पिलानी शुरु की। इसके लिए बाकायदा प्रचार अभियान शुरु किया गया। इसमें वे सफल भी हुए। आज देश का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा होगा जहां चाय न पी जाती हो। शहर से गांव तक पढें-लिखे, अनपढ़, अमीर-गरीब सब इसके आदी बन चुके हैं। दिन की शुरुआत ही सुबह चाय पीने से होती है और हर मेहमान का इससे स्वागत किया जाता है।
सो अब जब अचानक टेलीविजन पर खाने से संबंधित चैनलों पर पिछले कुछ समय से आलिव आयल के इस्तेमाल का प्रचार देखा तो वह घटना याद हो आई। कार्यक्रम अमेरिका, योरोप में तैयार किया जा रहा हो या हिंदुस्तान में। हर शैफ यह बताना नहीं भूल रहा है कि वह अपना व्यजंन आलिव आयल में इस्तेमाल कर रहा है। खाना-खजाना के संजीव कपूर से लेकर आस्ट्रेलियाई शैफ तक यह साबित करने पर तुले हुए है कि इससे अच्छा खाना पकाने का माध्यम कुछ और हो ही नहीं सकता है।
कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि जैसे अजीनोमोटो के बिना चाइनीज व्यंजन नहीं बन सकते, उसी तरह आलिव आयल के बिना कोई भी व्यंजन अधूरा है। आलिव आयल मतलब जैतून का तेल जिसका घरों में सदियों से इस्तेमाल होता आया है पर खाने के लिए नहीं। हर मध्यमवर्गीय परिवार में बच्चों के लिए तीन चीजें बहुत जरुरी मानी जाती थी। वुडवर्ड का ग्राइप वाटर, सर्दियों में ब्रांडी की कुछ बूंदे व शरीर की मालिश करने के लिए जैतून का तेल। तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि इससे खाना भी पकाया जा सकता है।
कुछ महीनों से पत्नी भी घर में आलिव आयल लाने लगी हैं। प्रगति मैदान में हर साल लगने वाले व्यापार मेले में इसके आयातक अपना स्टाल लगाकर तेल के गुणों का बखान करते नजर आते हैं। अचानक आलिव आयल के छा जाने की वजह इसके यूरोपीय निर्माताओं द्वारा भारत में इसका बाजार तलाशना है। ध्यान रहे कि भारत में आलिव आयल की एक बूंद का भी उत्पादन नहीं होता है क्योंकि यहां इसकी खेती, पेड़ नहीं होते हैं।
यह सारा प्रचार फ्रांस, स्पेन, इटली, पुर्तगाल, ग्रीस सरीखे तेल के उत्पादक देशों व योरोपियन कमीशन की मदद से किया जा रहा है। योरोपीय कमीशन ने इसके प्रचार के लिए 50 करोड़ रुपए उपलब्ध करवाए हैं ताकि हर चैनल, अखबार पर इसके विज्ञापन छा जाएं। इसके साथ ही व्यंजन दिखाने वाले चैनलों में भी इसका जमकर प्रचार किया जा रहा है।
हाल ही में जब इसके आयातकों के संगठन की बैठक हुई तो उसमें संजीव कपूर को विशेष रुप से आमंत्रित किया गया था ताकि वे अपने दर्शकों को यह समझा सके कि आलिव आयल के बिना खाना वैसा ही अधूरा है जैसे कि पानी बिना जीवन। देश में इसकी खपत बहुत तेजी से बढ़ रही है। इसकी खपत दर 25 फीसदी सालाना है जो बढ़कर 50 फीसदी तक पहुंचने की संभावना है। भारत के अलावा चीन और जापान में भी इसकी ब्रिकी बढ़ाने के लिए कोशिशें जारी हैं। इस समय लगभग 10 हजार टन आलिव आयल का आयात किया जा रहा है। हालांकि भारत के लिए यह एक हथियार भी साबित हुआ है। जब पिछले साल योरोपियन यूनियन ने भारतीय आमों के आयात पर अपने यहां रोक लगाई थी तो भारत ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए आलिव आयल के आयात पर रोक लगा दी थी।
आलिव आयल कई तरह का होता है। सबसे महंगा व अच्छा एक्स्ट्रा वर्जिन आयल माना जाता है। यह तेल आलिव फलों के गूदे से निकाला जाता है जो कि जामुन जैसे होते हैं। इन्हें तोड़ने के बाद 24 घंटे के अंदर हाथों से चलने वाली घानी में कुचल कर उससे तेल प्राप्त किया जाता है जबकि इनकी गुठली या गिरी से प्राप्त तेल को प्योर, रिफांइड, लाइट, पोमेस सरीखी श्रेणियों में रखा जाता है। इसके निर्माताओं का दावा है कि इस तेल में ओमेगा सरीखे ऐसे विटामिन होते हैं जो कि दिल के रोगों को दूर रखते हैं।
इसमें सेहत के लिए अच्छा माना जाने वाला एलडीएल कोलेस्ट्राल होता है। वे दावा करते है। कि सबसे ज्यादा ग्रीस में इसका इस्तेमाल किया जाता है, जहां हृदय रोग के सबसे कम मामले देखने को मिलते हैं। उनका तो दावा है कि यह भारत में धान की भूसी से तैयार होने वाले खाद्य तेलों जैसे सफोला आदि से भी कहीं बेहतर हैं। उन देशों में इसका इस्तेमाल सलाद, पास्ता, मीट, मछली आदि पर इसे ठंडा ही डाल कर खाने के लिए किया जाता है जबकि हमारे देश में सिर्फ देसी घी को रोटी पर चुपड़ कर या दाल में डालकर बिना गरम किए खाते हैं। हमारा अधिकांश खाना बिना तेल को गरम किए या तले नहीं बनाया जा सकता है। वैसे भी आलिव आयल अन्य खाद्य तेलों की तुलना में काफी गाढ़ा होता है व इसके निर्माता भी मानते हैं कि इसे ज्यादा गरम करने या इसमें कोई चीज़ तलने पर इसके गुण समाप्त हो जाते हैं। इसे गरम करने से उसके तमाम अच्छे विटामिन नष्ट हो जाते है।
हाल ही में अमेरिकी विशेषज्ञों ने अपनी जो रिपोर्ट जारी की है उसके मुताबिक इसके इस्तेमाल से खराब एलडीएल कोलेस्ट्राल कम नहीं होता। सभी तेलों में मोनोपाली सेचुरेटेड फैटस होते हैं। यह धारणा गलत है कि आलिव आयल नुकसान नहीं करता इसलिए इसका व्यंजन तैयार करने वाले कार्यक्रमों में इसकी काफी मात्रा इस्तेमाल की जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि तेल तेल होता है। सामान्य स्वस्थ आदमी के लिए एक चम्मच से ज्यादा किसी भी तेल या घी का इस्तेमाल हानिकारक होता है। इसलिए इसके प्रचार में फंसकर इसका इस्तेमाल करना ठीक नहीं होगा।
आलिव आयल के गुणों का बखान करना तो वैसा ही है जैसे की हलवाई का यह दावा करना कि उसकी बर्फी देसी घी में बनी है। जो चीज़ खोए से तैयार की गई हो उसमें घी का क्या काम। इसके बावजूद सेहत पर ध्यान दे रहे मध्यम वर्ग परिवारों के रसोईघरो में आलिव आयल ने कब्जा जमाना शुरु कर दिया है। शादियों में भी बिट्टू टिक्की वाले का स्टाल लगवाना गौरव की बात मानी जाती है जिसका दावा है कि वह अपनी टिक्की आलिव आयल में तलता है। आखिर प्रचार अपना असर तो दिखाता ही है। लगता है कि आलिव आयल भारतीय खाद्य तेलों का तेल निकालने तुल गया है।
–(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विनम्र उनका लेखन नाम है।)