घर से खाली हाथ निकलने की आदत ने
कपडे या कागज़ के थैलों को
कुछ इस कदर कहा अलविदा
कि हम पॉलीथीन पर हो गए फ़िदा !
प्लास्टिक और पॉलीथीन के थैले
अब हमें बहुत सुहाते हैं
ये जुदा बात है कि
पॉलीथीन ज़िंदा रहती है
हम और आप मारे जाते हैं !
पॉलिथीन छत्तीसगढ़ की ही नहीं, पूरे देश की एक गंभीर समस्या है। इसके खिलाफ अब छत्तीसगढ़ में भी मुहिम छिड़ चुकी है। इन दिनों इसके विरोध के स्वर और समझाइश के साथ दबिश की आवाज़ें सुनाई दे रही हैं। महिलाएं कागज के बैग और लिफाफे बनाकर मुफ्त में बांट रही हैं ताकि लोगों में जागृति आए और वे पॉलिथीन के मोह को छोड़ें। जैसे-जैसे अभियान जोर पकड़ता जा रहा है, व्यापारी और अन्य कारोबारी भी इससे जुड़ते जा रहे हैं। लोग घरों में ही पेपर बैग बनाने लगे हैं। लेकिन, सहूलियत के लिए या फिर फटाफट लेन-देन की गरज से कहें, पॉलिथीन का इस्तेमाल बंद नहीं हो सका है। यह एक चुनौती है।
पहले हम-आप जब खरीदारी के लिए झोला लेकर जाते थे, तब दुकानदार के पास कागज के लिफाफे या अखबार के टुकड़े होते थे जिनमें वह सामान डाल देता था। लेकिन अब हम पॉलिथीन मांगते हैं। घर जाकर यह पॉलिथीन चली जाती है कूड़ेदान में, पॉलिथीन मवेशी के पेट में जमा होने लगती है और इससे वे कुछ ही दिनों में मर जाती हैं। मंदिरों, ऐतिहासिक धरोहरों, पार्क, अभयारण्य, रैलियों, जुलूसों, शोभा यात्राओं आदि में धड़ल्ले से इसका उपयोग हो रहा है। शहरों की सुंदरता पर इससे ग्रहण लग रहा है। पॉलिथीन न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य को भी नष्ट करने पर आमादा है। पॉलिथीन का उपयोग मनुष्य की आदत में शुमार हो गया है। लगातार इस्तेमाल के कारण आज हर व्यक्ति इसी पर निर्भर दिखाई दे रहा है।
स्मरण रहे कि पृथ्वीतल पर जमा पॉलिथीन जमीन की जल सोखने की क्षमता खत्म कर रही है। इससे भूजल स्तर गिरा। सुविधा के लिए बनाई की गई पॉलिथीन आज सबसे बड़ा दुविधा का कारण बन गई है। प्राकृतिक तरीके से नष्ट न होने के कारण यह धरती की उर्वरक क्षमता को भी धीरे-धीरे समाप्त करने पर तुली है। पॉलिथीन से निकलने वाला धुआं ओजोन परत के साथ लोगों को भी नुकसान पहुंचा रहा है। इसको जलाने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड एवं डाईऑक्सींस जैसी विषैली गैस निकल रही हैं। लोग इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि विकास के नाम पर शहरों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हुई है। तरह-तरह के निर्माण के दौरान भी कई पेड़ काटे गए। रोड चौड़ीकरण दौरान भी सैकड़ों पेड़ कुर्बान हो गए। पर उतने या उससे ज्यादा पेड़ वापस नहीं लगाए गए।
अब एक अच्छी खबर है कि शहरों को सुंदर, स्वच्छ एवं प्रदूषण मुक्त बनाने का बीड़ा महिलाओं ने उठाया है। पेपर बैग बनाकर अभियान चलाया जा रहा है। आस-पास के दुकानदारों को मुफ्त में पेपर बैग भी दे रही हैं। उधर प्रदेश के स्कूलों में पॉलिथीन से पॉल्यूशन को सिलेबस में शामिल कर पढ़ाई का फैसला हाल ही में हुआ है। अब बिलासपुर यूनिवर्सिटी ने भी कॉलेजों के सिलेबस में इसे शामिल करने का निर्णय लिया है। पर्यावरण विषय में पॉलिथीन के दुष्प्रभाव और इससे दैनिक जीवन में क्या-क्या नुकसान होते हैं, यह पढ़ाया जाएगा। बोर्ड ऑफ स्टडीज से मंजूरी मिलते ही यह चैप्टर अगले सत्र से कॉलेजों में पढ़ाया जाने लगेगा। यह अच्छी बात है लेकिन पढ़े हुए को जीने की आदत बनाने की ज़रुरत बनी रहेगी। सुविधा की आदी लोगों को पटरी पर लाना मुश्किल काम है।
बिलासपुर यूनिवर्सिटी ने भी कॉलेजों में इसका कोर्स पढ़ाने का निर्णय लिया है। कॉलेजों में भी इसके इसके बारे में बताने के लिए कोर्स बेहतर जरिया हो सकता है। इसे जागरूकता बढ़ेगी। एनएसएस,एनसीसी,रेडक्रॉस के स्वयं सेवक और छात्र संघ के सदस्य इसमें बड़ा सहयोग कर सकते हैं। इससे आने वाली पीढ़ियां पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझेंगी। इसके बाद ही वे दैनिक जीवन में पॉलिथीन से परहेज करेंगे। चेंबर ऑफ कामर्स को भी आगे बढ़कर सहयोग देना चाहिए। सामाजिक संगठनों को अपने वार्षिक कार्यक्रम में पॉलीथीन के विरुद्ध मुहिम को शामिल करना चाहिए।
गौरतलब है कि हाल ही में राज्य शासन ने पॉलिथीन के दुष्प्रभावों के बारे में स्कूलों में पढ़ाई कराने का निर्णय लिया है। बताया जा रहा है कि अगले सत्र से इसे स्कूली कोर्स में शामिल कर लिया जाएगा। यह एक माकूल कदम होगा। वास्तव में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहे प्लास्टिक और पॉलिथीन ने इंसान की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। कभी न सड़ने वाली प्लास्टिक की पन्नियों से शहर के नाले, नालियां जाम हो जाती हैं। वहीं इसका बेधड़क प्रयोग लोगों को बीमार बना रहा है। पशुओं की मौत का कारण भी बनता जा रहा है। ऐसे में इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की जरूरत है। पॉलीथिन का उपयोग पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है।
प्लास्टिक का प्रयोग हमारे जीवन में सर्वाधिक होने लगा है। इसका प्रयोग नुकसान दायक है यह जानते हुए भी हम धड़ल्ले से इनका इस्तेमाल कर रहे हैं। यह इसके प्रयोग पर रोक लगे तो बात बने। जो भी व्यक्ति प्लास्टिक का प्रयोग सर्वाधिक करता है वह अपने जीवन से खेलने का काम करता है। इतना ही नहीं वह पर्यावरण को प्रदूषित भी करता है। प्लास्टिक को जलाने से भी नुकसान होगा। इसका जहरीला धुआं स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।
पॉलिथीन की पन्नियों में लोग कूड़ा भरकर फेंकते हैं। कूड़े के ढेर में खाद्य पदार्थ खोजते हुए पशु पन्नी निगल जाते हैं। ऐसे में पन्नी उनके पेट में चली जाती है।बाद में ये पशु बीमार होकर दम तोड़ देते हैं। प्लास्टिक और पॉलिथीन का प्रयोग रोकने के लिए हमें लोगों को जागरूक करना होगा। तभी लोगों को इसके दुष्प्रभाव से बचाया जा सकता है। लोगों को पॉलिथीन की पन्नियों की जगह सामान लाने और रखने में कपड़े के थैले का प्रयोग करना होगा।
पॉलिथीन और प्लास्टिक गांव से लेकर शहर तक लोगों की सेहत बिगाड़ रहे हैं। शहर का ड्रेनेज सिस्टम अक्सर पॉलिथीन से भरा मिलता है। इसके चलते नालियां और नाले जाम हो जाते हैं। इसका प्रयोग तेजी से बढ़ा है। प्लास्टिक के गिलासों में चाय या फिर गर्म दूध का सेवन करने से उसका केमिकल लोगों के पेट में चला जाता है। इससे डायरिया के साथ ही अन्य गंभीर बीमारियां होती हैं। ऐसे में प्लास्टिक के गिलासों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। रही बात पॉलिथीन के प्रयोग की तो वह भी खतरनाक है।
प्लास्टिक और पॉलिथीन का प्रयोग पर्यावरण और मानव सेहत दोनों के लिए खतरनाक है। कभी न नष्ट होने वाली पॉलिथीन भूतल जल स्तर को प्रभावित कर रही है। देखा जा रहा है कि कुछ लोग अपनी दुकानों पर चाय प्लास्टिक की पन्नियों में मंगा रहे हैं। गर्म चाय पन्नी में डालने से पन्नी का केमिकल चाय में चला जाता है। जो बाद में लोगों के शरीर में प्रवेश कर जाता है। चिकित्सकों ने प्लास्टिक के गिलासों और पॉलिथीन में गरम पेय पदार्थों का सेवन न करने की सलाह दी है।
याद रहे कि पॉलीथीन पर प्रतिबंध है, बावजूद इसके दुकानदार चोरी-छिपे पालीथीन का प्रयोग करते पाए जाते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों नहीं सफल होता है पॉलीथीन पर प्रतिबंध? पर्यावरण एवं स्वास्थ्य दोनों के लिए नुकसानदायक 40 माइक्रॉन से कम पतली पॉलीथीन पर्यावरण की दृष्टि से बेहद नुकसानदायक होती है। चूंकि ये पॉलीथीन उपयोग में काफी सस्ती पड़ती हैं, इसलिए इनका उपयोग धड़ल्ले से किया जाता है। लेकिन इन्हें एक बार उपयोग करने के बाद कूड़े में फेंक दिया जाता है, जो प्रदूषण का कारण बनती हैं। इसके साथ ही साथ कुछ कंपनियां ज्यादा लाभ के चक्कर में प्लास्टिक को लचीला और टिकाऊ बनाने के लिए घटिया एडिटिव (योगात्मक पदार्थ) मिलाती हैं, जो प्लास्टिक में रखे खाद्य पदार्थों के संपर्क में आकर घुलने भी लगते हैं। इससे प्रदूषण के साथ-साथ ये पन्नियां तरह-तरह की बीमारियों का भी सबब बनती हैं।
अगर सरकारें चाहें तो प्लास्टिक कचरे को अनेक क्षेत्रों में इस्तेमाल किया जा सकता है। उदाहरण स्वरूप हम बंगलुरू को ले सकते हैं, जहां पर कूड़े कचरे में फेंकी जाने वाली पन्नियों अन्य कचरे के साथ ट्रीटमेंट करके खाद बनाई जा रही है। इसी तरह हम हिमाचल प्रदेश का भी उदाहरण हमारे सामने है, जहां केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मदद से पन्नियों को चक्रित करके सड़क निर्माण में उपयोग में लाया जा रहा है। जर्मनी में प्लास्टिक के कचरे से बिजली का निर्माण भी किया जा रहा है। इसके अलावा पन्नियों को चक्रित करके खाद भी बनाया जा सकता है। इसलिए यदि सरकारें इस दिश में गम्भीर हों, तो नुकसानदायक प्लास्टिक के कचरे से लाभ भी कमाया जा सकता है। ऐसे प्रयोगों को व्यापक बनाया जा सकता है।
कैसे कारगर हो सकते हैं प्रतिबंध ?
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पर्यावरण की रक्षा के लिए प्लास्टिक पर लगाए जाने वाले प्रतिबंध तभी कारगर हो सकते हैं,जब उनके लिए कुछ इस तरह कदम उठाए जाएं –
1. प्लास्टिक निर्माण करने वाली फैक्ट्रियों पर कड़ी नजर रखी जाए, जिससे वे मानक के विपरीत प्लास्टिक का निर्माण न कर सकें।
2. दुकानदारों को प्लास्टिक के विकल्प के रूप में जूट एवं कागज के बने थैले सस्ते दामों में और पर्याप्त मात्रा में नियमित रूप से उपलब्ध कराए जाएं।
3. जूट एवं कागज से बने थैलों के निर्माण के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं को प्रोत्साहन दिया जाए।
4. प्लास्टिक के प्रयोग को निरूत्साहित करने के लिए स्कूल और कॉलेज स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं।
5. मानक के विपरीत पालीथिन का उत्पादन/व्यापार करने वालों के विरूद्ध सख्त कार्यवाही की जाए। लगातार मॉनीटरिंग और कारर्वाई की जाये।
अंत में बस इतना ही कि अगर हम हमारी ही ज़िंदगी को तबाह करने वाली पॉलीथीन जैसी के इस्तेमाल से बाज़ नहीं तो एक दिन यही कहना बाक़ी रह जाएगा कि –
क्या बचाते किसी सफ़ीने को
अपनी किश्ती ही खुद डुबो बैठे !
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लेखक ख्याति प्राप्त प्रखर वक्ता और शासकीय
दिग्विजय पीजी ऑटोनॉमस कालेज में प्रोफ़ेसर हैं।
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