Saturday, November 16, 2024
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अपने गुणों को देखना जरूरी है

आधुनिक जीवन की बड़ी विडम्बना है कि हर व्यक्ति परेशान है, कुछ तो वास्तव में अपने अभावों और परेशानियों से सदा संत्रस्त और व्यथित रहते हैं और कुछ सबकुछ होते हुए भी पीडित और व्यथित रहते हैं। दोनों ही स्थितियों में इस मानसिक दुख का कारण है अपने दोषों को बड़ा करके देखना। उन्हें अपने गुण दिखाई ही नहीं देते। ऊपर-ऊपर हंसी का खोल ओढ़े ये व्यक्ति न केवल स्वयं के लिये बल्कि दूसरों के लिये भी अत्यंत घातक है।

केवल दोष देखकर, अपनी कमियां देखकर, अपने को कुरूप मानकर, अपनी मंदबुद्धि पर मन ही मन व्यथित रहना अनेक प्रकार के मानसिक रोगों को आमंत्रित करना है। ऐसा व्यक्ति कभी प्रसन्न नहीं रहता। उसे सब व्यर्थ-सा जान पड़ता हैं। जीवन निराशापूर्ण एवं अंधकारमय लगने लगता है। उनकी दोषदृष्टि उनकी खुशियों को घुन के समान भीतर ही भीतर खोखला कर देती है। अतः हमें चाहिए अपने गुणों को भी देखें। कोई ऐसी कमी नहीं जिसे सुधारा नहीं जा सकता। अगर आप कुरूपता से व्यग्र हैं तो स्मरण रखें कि किसी का सौन्दर्य उसके चेहरे या त्वचा अथवा रूप की बनावट में न होकर उसके पूरे व्यक्तित्व में है। सौन्दर्य सदा आंतरिक गुणों का ही स्थायी रहता है। अतः अपने गुणों को निहारिये। यदि आप पुरुष हैं तो आपका पुरुषत्व, साहस, ओज और वीरता आदि आपके गुण ही आपकी सुंदरता के परिचायक हैं और अगर आप स्त्री हैं तो लज्जा, कमनीयता श्रद्धा, विश्वास, ममता आदि गुण आपका सौन्दर्य बनकर आपके व्यक्तित्व को निखार देंगे। जरूरत है जीवन में गुणों को विकसित करने की और इसके लिये एक सुनिश्चित दिशा का निर्धारण करने की। सेनेका का इस सन्दर्भ कहा कथन उपयोगी है कि अगर एक व्यक्ति को मालूम ही नहीं कि उसे किस बंदरगाह की ओर जाना है, तो हवा की हर दिशा उसे अपने विरुद्ध ही प्रतीत होगी। भौतिक चकाचैंध में गुणों की सुवास को फैलाना और नैतिक जीवन जीना भी जटिल होता जा रहा है। महान् वैज्ञानिक आइंस्टीन का कथन नयी दिशा देता है कि सफल मनुष्य बनने के प्रयास से बेहतर है गुणी मनुष्य बनने का प्रयास।

एक बार का प्रसंग है। गौतम बुद्ध अपने काफिले के साथ एक जंगल से गुजर रहे थे। दोपहर बाद सबको भूख लगने लगी तो खाना बनाने की तैयारी शुरू हुई। पर खाना पकाने के लिए आसपास लकडि़यां नहीं थीं। कुछ सोच विचार कर बुद्ध ने सभी साथियों को आदेश दिया- इधर-उधर जाकर लकडि़यों के छोटे-छोटे टुकड़े एकत्र कर लाओ। काफी देर तक घूमने के बाद सभी सदस्यों ने अपनी-अपनी इकट्ठा की लकडि़यां लाकर बुद्ध के सामने रख दीं। लकडि़यों का ढेर लग गया। बुद्ध बोले- देखो, ध्यानपूर्वक खोजने से लकडि़यों का ढेर लग गया है। इसी प्रकार यदि इंसान अपने छोटे-छोटे अवगुणों पर ध्यान दे तो वे भी ढेर से नजर आयेंगे। इन लकडि़यों के ढेर को जलाकर हम भोजन तैयार कर सकते हैं, उसी प्रकार अपने अवगुणों को दूर कर हम एक पवित्र जीवन जी सकते हैं। स्वामी विवेकानंद का मार्मिक कथन है कि हम जैसा बोते हैं, वैसा काटते हैं। हम अपने भाग्य के निर्माता स्वयं है। हम अपने भाग्य का निर्माण स्वयं करते हैं।

सफल एवं सार्थक जीवन निर्माण के लिये गुणों की जरूरत होती है। सभी में कुछ गुण अवश्य होते हैं। स्वयं खोजिए और उन्हें विकसित कीजिए। हो सकता है आपने अपनी प्रतिभा को सही न पहचाना हो, क्या हुआ अगर आप डाॅक्टर, इंजीनियर नहीं बन पाए। हो सकता है प्रकृति आपको कुशल वक्ता, प्रोफेसर बनाना चाहती हो। अपनी आंतरिक शक्तियों को पहचानिए। अपनी योग्यता पर विश्वास कीजिए। हो सकता है आप संगीत, साहित्य, कला आदि में प्रसिद्धि प्राप्त करें। कुशल नेतृत्व के गुण आपमें हों और आप एक सफल राजनीतिज्ञ बन जाएं। अतः निराश मत होइए, हजारों महत्वपूर्ण कार्य आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। कुदरत सर्वत्र न्याय करती है। यदि वह एक स्थान पर कमी रखती है तो दूसरी ओर उससे भी अधिक महत्वपूर्ण गुणों को भर देती है।

एक बार रूसी लेखक टाॅलस्टाय से उनके एक मित्र ने कहा, मैंने तुम्हारे पास एक व्यक्ति को भेजा था। उसके पास उसकी प्रतिभा के काफी प्रमाणपत्र थे। लेकिन तुमने उसे चुना नहीं। मैंने सुना है कि तुम ने उस पद के लिए जिस व्यक्ति को चुना है, उसके पास ऐसा कोई प्रमाणपत्र नहीं था। आखिर उसमें कौन सा ऐसा गुण था कि तुम ने मेरी बात की उपेक्षा कर दी? लिओ टाॅलस्टाय ने कहा, मैंने जिसे चुना है उसके पास अमूल्य प्रमाणपत्र हैं। उसके जीवन में गुणों की सुवास है। उसने मेरे कमरे में आने से पहले इजाजत मांगी थी। अंदर आने से पहले पैरों को दरवाजे पर रखा, ताकि बंद होने पर आवाज न हो। उसके कपड़े साधारण, परन्तु साफ सुथरे थे। उसने बैठने से पूर्व कुर्सी साफ कर ली थी, उसमें आत्मविश्वास था। वह मेरे प्रश्न का ठीक और संतुलित जवाब दे रहा था। मेरे प्रश्न समाप्त होने पर वह इजाजत लेकर चुपचाप उठा और चुपचाप चला गया। उसने किसी तरह की चापलूसी या चयन के लिए सिफारिश की कोशिश भी नहीं की। ये ऐसे प्रमाणपत्र थे, जो बहुत कम व्यक्तियों के पास होते हैं। ऐसे गुण संपन्न व्यक्ति के पास यदि लिखित प्रमाणपत्र न भी हों, तो कोई बात नहीं। आप ही बताइए, मैंने ठीक चयन किया या नहीं? आज जरूरत डिग्री और प्रमाण-पत्र से ज्यादा नैतिक एवं गुण सम्पन्न व्यक्तियों की है। आज जरूरत इस बात की भी है कि गुणों को प्रतिष्ठा दें। अरस्तू का छोटा-सा वाक्य पूरा दर्शन है कि अच्छी शुरुआत से आधा काम हो जाता है। हेनरी वार्ड बीचर ने भी गुणों की महत्ता को उजागर करते हुए कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह याद रखना बेहतर होगा कि सभी सफल व्यवसाय नैतिकता और गुणों की नींव पर आधारित होते हैं।

हर व्यक्ति के लिये जरूरी है कि वह अपने गुणों का विकास कर अपने क्षेत्र में महान बने। विश्वास रखिए आपके लिए भी कोई महत्वपूर्ण स्थान इंतजार कर रहा है। शर्त केवल यह है कि अपने बारे में अपनी राय सही रखें और अपने को महान् बनाने के लिये प्रयत्नशील रहे। अमेरीकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने अपने गुणों से हर किसी को प्रेरणा दी है। उन्हीं का वाक्य है कि चरित्र वृक्ष के समान है तो प्रतिष्ठा, उसकी छाया है। हम अक्सर छाया के बारे में सोचते हैं, जबकि असल चीज तो वृक्ष ही है। प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति का अच्छा दृष्टिकोण जीवन की कठोरता एवं संघर्ष को कम कर देगा। आपका मन मधुर कल्पनाओं, शुभ भावनाओं से भर उठेगा और आप मानसिक स्वास्थ्य से दमक उठेंगे। प्रसन्नता स्थायी रूप से आपके चेहरे और हृदय का शृंगार बन जाएगी। जेम्स एलबर्ट के अनुसार अगर तुम्हें दो बादल दिखाई पड़े-एक काला और एक उजला तो काले से निगाह हटाकर उजले को देखते रहो और सदा मुस्कराते रहो। अर्थात् अपने उजले-उजले गुणों को देखिए और प्रसन्न रहिए। गुणग्राहकता स्वास्थ्य प्रदान करने वाली महौषधि है, जो आपके रोम-रोम को नवस्फूर्ति से भर देती है। अतः यदि आप परेशानी, व्यथा, दुःख एवं संत्रास से मुक्त रहना चाहते हैं तो अपने गुणों को पहचानिए, उन्हें विकसित कीजिए। एक आनन्दमय मुस्कराता भविष्य आपकी इंतजार कर रहा है। बौद्ध धर्मगुरू दलाई लामा का एक नया जीवन-दर्शन देते हुए कहा है कि मैं इस आसान धर्म में विश्वास रखता हूं। मन्दिरों की कोई आवश्यकता नहीं, जटिल दर्शनशास्त्र की भी कोई आवश्यकता नहीं। हमारा मस्तिष्क, हमारा हृदय ही हमारा मन्दिर है और दयालुता जीवन-दर्शन है।

मनुष्य धार्मिक कहलाए या नहीं, आत्म-परमात्मा में विश्वास करे या नहीं, पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को माने या नहीं, अपनी किसी भी समस्या के समाधान में जहाँ तक संभव हो, नैतिकता एवं गुणों का सहारा ले- यही सफल जीवन का मंत्र है।

वर्तमान जीवन की शुद्धि बिना परलोक सुधार की कल्पना एक प्रकार की विडंबना है। उसी व्यक्ति का जीवन सार्थक हो सकता है, जो नैतिक है, जो गुण सम्पन्न है। परलोक सुधारने की भूलभुलैया में प्रवेश करने से पहले इस जीवन की शुद्धि पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए, तभी जीवन की परेशानियों से निजात मिलेंगी।

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(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
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