Wednesday, January 15, 2025
spot_img
Homeकविताऐ चांद ! मेरे महबूब से फ़क़्त इतना कहना...

ऐ चांद ! मेरे महबूब से फ़क़्त इतना कहना…

ऐ चांद !
मेरे महबूब से फ़क़्त इतना कहना…
अब नहीं उठते हाथ
दुआ के लिए
तुम्हें पाने की ख़ातिर…

हमने
दिल की वीरानियों में
दफ़न कर दिया
उन सभी जज़्बात को
जो मचलते थे
तुम्हें पाने के लिए…

तुम्हें बेपनाह चाहने की
अपनी हर ख़्वाहिश को
फ़ना कर डाला…

अब नहीं देखती
सहर के सूरज को
जो तुम्हारा ही अक्स लगता था…

अब नहीं बरसतीं
मेरी आंखें
फुरक़त में तम्हारी
क्योंकि
दर्द की आग ने
अश्कों के समन्दर को
सहरा बना दिया…

अब कोई मंज़िल है
न कोई राह
और
न ही कोई हसरत रही
जीने की
लेकिन
तुमसे कोई शिकवा-शिकायत भी नहीं…

ऐ चांद !
मेरे महबूब से फ़क़्त इतना कहना…

(स्टार न्यूज़ एजेंसी )

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार