भारत के मशहूर तबला वादक पंडित रामदास पालसुले जी इन दिनों अमेरिका के दौरे पर हैं l २ मई को उन्होंने साऊथ एशियन परफॉर्मिंग आर्ट फाउंडेशन के बैनर तले पंडित रामदास जी ,पंडित मिलिंद तुलंकर,उस्ताद तौफीक कुरैशी जी टलसा में शो किया। lइसी दौरान पंडित रामदास जी से बात करने का मौका मिला l प्रस्तुत हैं, बातचीत:-
आपने इंजीनियरिंग की पढाई की फिर आपका रुझान तबले की ओर कैसे हुआ?
मै बचपन में तबला सीखता था ,फिर पढ़ाई के कारण करीब १० साल तक मै तबला नहीं सीख सका l इसी बीच मेरे तबला शिक्षक मेरे गुरु श्री जी एल सामंत का निधन हो गया l
उनके बेटे ने एक साल बाद श्री जी एल सामंत जी की याद मेँ तबला वादक पंडित सुरेश तळवलकर जी को बुलाया l मै भी उस शो में था l मुझे बहुत अच्छा लगा,मैने पंडित सुरेश जी से कहा की मुझे तबला सीखना है, उन्होंने कहा कि यदि तुम शौक के लिए सीखना चाहते हो तो मै नहीं सिखाऊंगा l मैने घर आकर आपने माता-पिता से बात की उन्होंने अनुमति दे दी l पंडितजी ने कहा कि तुमको मेरे साथ मुम्बई आना होगा और मेरे घर पर रह कर तबला सीखना होगाl मैने पांच साल उनके पास रह कर तबला सीखा l
तबले में आप किस घराने से ताल्लुक रखते हैं ?
अल्ला रक्खा खान साहब से मुम्बई में आने से पहले महाराष्ट्र में दिल्ली, फर्रुखाबाद, लखनऊ, अजरारा इन चार घरानो का संगम बजाया जाता था, जिसकी शुरुआत उस्ताद थिरकवा खान साहब ने की थी l मेरे गुरु जी उन्ही से सीखा तो हम सभी मिक्स ही बजाते हैं पेशकार और कायदे हम दिल्ली और अजरारा के बजाते हैं ,रेला और गत टुकड़े लखनऊ और फर्रुखाबाद घराना के बजाते हैं l
प्रत्येक घरानो में बाजने का तरीका अलग होता है, उसके बारे में कुछ बताइयेl
तबला बाजने के दो मुख्य तरीके होते हैं एक अंगुली से और दूसरा हथेली से लखनऊ ,बनारस ,फर्रुखाबाद में पूरे हाथ से तबला बजाया जाता हैं, दिल्ली में अंगुली से बजाया जाता है ,पेशकार और कायदे को बजाने में अंगुली का प्रयोग ज्यादा होता है और रेला और गत टुकड़े को बजाने के लिए पूरे हाथ का प्रयोग होता है l मुख्यतः ऐसा होता है कि कोई भी तबलावादक किसी एक घराने का नही बजाता क्यों कि फिर बजाने में विविधता नहीं रहती।
आपकी पसंदीदा ताल कौन सी है?
जब आप तबला बजाना सीखते हैं तो आपके गुरु आपको तीन ताल सिखाते हैं, एकल शो में सभी तीन ताल बजाना ज्यादा पसंद करते हैंl कहरवा और दादरा सांगत के ताल है, खास कर के उप शास्त्रीय संगत के लिए जैसे ठुमरी, दादरा, कजरी या ग़ज़ल l
आपने अपना पहला स्टेज शो कब किया था?
सन १९८६ -८७ में मैने अपना पहला शो किया था l मेरे एक दोस्त थे जो अभी इस दुनिया में नहीं है ,वो अन्नपूर्णा देवी जी के शिष्य थे ,बहुत अच्छा सितार बजाते थे ,उन्ही के साथ मैने अपना पहला शो किया था l मै बहुत खुश था l उसके बाद एक बड़ा शो मैने दिल्ली में किया था जो स्वर्गीय पंडित जितेन्द्र अभिषेक और ज़ाकिर जी के साथ था l पंडित जीतेन्द्र जी और ज़ाकिर जी को पद्मश्री देने की घोषणा हुई थी, तो इसीलिए इनका सत्कार करने के लिए गन्धर्व विद्यालय ने ये कार्यक्रम आयोजित किया था l
क्या आपके शो देखने आपके माता-पिता आये थे?
जी हाँ आये थे, पर मेरी माँ जल्दी ही इस दुनिया से चलीं गयीं थी तो उन्हीने उतना नहीं देखा पर मेरे पिता जी ने मेरी उन्नति देखीl
आप अपने एल्बम के बारे में कुछ बताइये?
मेरे बहुत से एल्बम आये हैं आज कल भारत में भगवान और मेरे गुरु की कृपा से मेरे एकल शो होते हैं बहुत कम तबला वादक ऐसे हैं जिनके एकल शो होते हैंl उस्ताद ज़ाकिर हुसैन, पंडित सपन चौधरी, मेरे गुरु पंडित सुरेश तळवलकर जी, अनिंदो चटर्जी, कुमार बोसी ये तबले के पांच पांडव हैं ,इनकी बात अलग है l मेरे एकल शो की बहुत सीडी निकल चुकी है l अभी जो सीडी मेरी आ रही है उसका नाम 'आवर्तन' है l आवर्तन एक संस्था भी है उन्होंने मेरा कॉन्सर्ट किया था ये उसीकी रिकॉर्डिंग हैं l
तबला खरीदते समय आप किस चीज का ध्यान रखते हैं?
पुणे में बहुत अच्छे तबला बनाने वाले हैं l तबला खरीदने में मुख्यतः दो चीजों का ध्यान रखा जाता है l एक तो यदि सोलो या किसी और वाद्य यंत्र के साथ बजाना है तो तबले में यदि स्याही थोड़ी कम हो तो ठीक रहता है ,बजाने में आसान होता है ,पर यदि किसी गायक या गायिका का साथ देने के लिए तबला बजाना होतो उसके लिए अधिक स्याही वाला तबला होना चाहिए l तबले के आकार का भी ध्यान देना होता है l पिच ज्यादा चाहिए तो तबले का आकर होता है ६ से ६.५ इंच, काली चार और काली पांच का ६ इंच ,काली १ का ५.५ इंच ,काली २ और काली ३ का ५.२५ इंच होता है l
टलसा (अमेरिका का एक शहर ) के सुनने वालों को आप क्या कहना चाहेंगे?
मै २० सालों से अमेरिका आ रहा हूँ ,पर ये पहली बार है की मै टलसा के शो कर रहा हूँ lमै बहुत खुश हूँ ,और हम तीनो का जो कॉम्बिनेशन है वो पहले कभी नहीं हुआ है भारत में हमने जहाँ भी शो किया लोगों को बहुत पसंद आया l