मेरे दादा जी एवं उन की पीढ़ी के असंख्य हिन्दुओं ने सन १९४७ में भारत विभाजन एवं उसके फलस्वरूप उपजे मज़हबी उन्माद के कारण जो भयंकर कष्ट उठाये , मेरी ये कविता उनको बयान करने की एक छोटी सी कोशिश है
मुझे मालूम है बच्चे तू अब क्या बात पूछेगा
वो ज़ालिम दिन तू पूछेगा वो कातिल रात पूछेगा
कभी उमड़ेंगे आंसू तो कभी खू खौलेगा मेरा
वक़्त ने जो भुलाये हैं तू वो जज़्बात पूछेगा
तू फिर दिल में जगायेगा स्मृतियाँ जन्मभूमि की
झंग, मुल्तान, मियांवाली, अटक, गुजरात पूछेगा
तू पूछेगा कि बचपन में कहाँ पर खेल थे खेले
गाँव का नाम पूछेगा गली गुलज़ार पूछेगा ( गुलज़ार=उपवन)
तू पूछेगा की शामों को कहाँ महफ़िल सजा करती
वो दरिया चिनाब की लहरें वो बिछड़ा साथ पूछेगा
वो कुदरत की करिश्माई वो मेले चिनाब के तट पर
जो दिल को खूब भाती थी तू वो बरसात पूछेगा
तू पूछेगा की आखिर क्यों हुआ था देश बेगाना
हमे बर्बाद करने में था किनका हाथ पूछेगा़
खड़ी फसलें बुलाती थी सदा देता था गाँव अपना
बसी हुई ज़िन्दगी कैसे हुई बर्बाद पूछेगा
निहत्थे भी लडे थे हम धर्म निज पर अड़े थे हम
शहादत जाम पीकर कौन हुए आबाद पूछेगा
मेरे पावन बदन को छू न पाए यवनों की छाया
तू हिन्दू नारियों के श्रेष्ठतम ख्यालात पूछेगा
वो हँसते हँसते जा बैठीं स्वयं जलती चित्ताओं पर
तू जौहर की परिपाटी की फिर शुरुआत पूछेगा
खुद अपने हाथ से गर्दन कलम कर अपनी बेटी की
लड़ा जो फिर दरिंदों से तू ऐसा बाप पूछेगा
छीन कर माँ से शिशुओं को वो भालों पर उठाते थे
खुदा के नाम पर क्या क्या हुई करामात पूछेगा
जो कहते थे कि बंटवारा हमारी लाश पर होगा (महात्मा गाँधी का प्रसिद्ध वाक्य)
जो वादा कर के मुकरे थे तू उनकी ज़ात पूछेगा
हमारे रहम पर जिनकी पली थी पीढियां कब से
बने फिर जान के दुश्मन तू वो बदज़ात पूछेगा
फ़कत स्वधर्म की खातिर मौत से खेल आये हैं ( फ़कत=केवल)
लगी जहाँ जान की बाज़ी तू वो बिसात पूछेगा
तू पूछेगा कि क्योँ दुश्मन बने चिरकाल के साथी
अर्थ ‘काफिर’ का पूछेगा ‘जूनून- ए- जिहाद’ पूछेगा
हाथ में नंगी तलवारें जुबां पर ‘या अली’ नारे
हवाओं में भी दहशत थी तू वो हालात पूछेगा
पुलिस वाले भी उनके थे हुई थी फौज भी उनकी
मुसलमानों ने फिर हमको दी कैसे मात पूछेगा
सिर्फ लाशें ही पहुची थी रेलगाड़ी के डिब्बों में
वो अमृतसर के स्टेशन पर हिली कायनात पूछेगा
कि खंडित हो गया भूगोल गौरवशाली भारत का
तू नक्शा हाथ में लेकर खोई जायदाद पूछेगा
तू पूछेगा कि क्या पाया भला हमने आज़ादी से
तू वीरों की शहादत की सही सौगात पूछेगा।