संडे का दिन सफाई जोरों पर कुर्सी , कुर्सी के ऊपर मोढा , मोढा के ऊपर मै विराजमान पंखे को पतित करती हुई तभी मेरे सफाई का सहयोगी और पीए बने हुये बेटे के मुंह से कुछ गुनागुनाते हुये सुना .. पैग मार बेबी छोटे – छोटे पैग मार ।ये गाना सुन कर आश्चर्यचकित रह गयी लेकिन मां के रुप में बेटे के सौ खून माफ । वाह ! मेरा बेटा कितना अच्छा गा लेता है । अब गाने ही पैग मारने .. सुट्टा मारने .. राजश्री और न जाने क्या -क्या के ऊपर बने तो कोई क्या करे । बचपन में तो बच्चे के मुंह सब सुहाता है लड़का हो तो और भी ..असल दिक्कत तो बहू से होती है । सास का बेटा या घर का बेटा तभी बिगड़ता है जब बहू आ जाती है।
प्राचीन काल में ये बेबी नामक प्रेमिकाएं और पत्नियां पुरुषों के पैग मारने की वजह से परेशान रहा करती थीं । जाने क्या -क्या हथकंडे किये जाते थे पैग छुड़ाने के । ये तो रहा दुखियारी मध्यम वर्गीय महिलाओं को लोचा ..इससे अलग कुछ आधुनिक महिलाओं का जीनत अमान अवतरण भी हुआ ।आखिर दिखाऊ आधुनिक होना मामूली बात नही इसके काफी जुगत करनी पड़ती है । कड़वी लगे या खट्टी पैग लगाने ही होते हैं ।
पैग लगाती बेबियों ने पैग लगाते बाबाओं को धो डाला तू डाल – डाल मै पात – पात ।
अब पीने वालों की किस्मत में लगेंगे चार
चांद जब मिल बैठी इसमें नार ।
कहीं – कहीं तो यह सात्विक पेय प्रोग्राम पारिवारिक होता है ।दारू और दारू के पैग के ऊपर ऐसे गाने और ज्ञान कि बड़के वाले महापुरुष और दार्शनिक भी इसके आगे फेल होते हैं । हालांकि भारतीय फिल्मों में शराब के गानेों का इतिहास है कोई इस इतिहास का शोध करना चाहे तो बढिया विषय है । यह शराब और शराबी गानों का स्वर्णयुग है । शराब के मामले में मेट्रो शहर की बात ही और है मॉर्डन बेबियां मॉर्डन बनने के लिये पैग लेना कतई नही भूलती हैं । संत हनीसिंह और संत बादशाह सिंह के भजनों पर आधी -आधी रात को थिरक – थिरक कर कीर्तन कर ईश्वर को खुश करने का भरपूर प्रयास करती हैं । इस के साथ बेबी पूरा ध्यान रखती है कि पैग अकेला न रहे इसके लिये वह तमाम तरह के नशों का सहयोग लेती है ।धुआं उड़ाती वे बेहद आकर्षक और आधुनिक दिखती हैं ।
इससे अच्छी और बात अब फिल्मों में दिया जाने वाला संदेश खासा उच्चस्तरीय और आधुनिकता से लबरेज होता है । ऐसा ज्ञान दिया जाता है कि ऐब को खुद पर गुमान हो जाता है । फिल्मी गाने में बेबी को बाबा बताता है कि बेबी पैग मारो वो भी छोटे -छोटे । बड़े पैग से दिक्कत हो सकती है । आखिर बेबी को पैग लगाने के बाद घर भी तो जाना होता है । इतने ग्लैमर के आगे शराब सेहत के लिये हानिकारक है इस वाक्य पर कौन आंखे गड़ाये है । आखिर ज़िदगी जोखिम का नाम है । इसी भाव से प्रेरित हो “ खतरों के खिलाड़ी” टाइप्स प्रोग्राम बने हैं वो बात अलग है उनके खतरे बनावटी होते हैं । मेरा तो मानना अब पैग मारने वाली बेबी काफी साहसी और आधुनिक हो चली है वह शादी बाद बच्चे को दूध की बॉटल में पैग बना कर दे तो आश्चर्य कोई नही !
(शशि पाण्डेय विभिन्न विषयों पर लिखती हैं)