विश्व वन्यजीव कोष गठन पर विशेष
प्रकृति-पर्यावरण-वन्यजीव खासकर लुप्त होती वन्यजीवों की प्रजातियों के संरक्षण की दिशा में अनेक स्तरों पर प्रयास किये जारहे हैं, कदम उठाए जा रहे हैं। कई नीतियां और नियम बनाये जा चुके हैं। इस दिशा में जागरूकता बढ़ी हैं और कई सार्थक परिणाम भी सामने आए हैं। हर वर्ष विश्व वन्यजीव दिवस एवं विश्व पर्यावरण दिवस के आयोजन विविध कार्यकर्मो के साथ बड़े पैमाने पर किये जाते हैं।
सरकार के साथ-साथ गैर सरकारी संगठन इस दिशा में सक्रिय हैं। अपने-अपने स्तर पर अच्छे प्रयास किये जा रहे हैं। ऐसे ही विश्व में प्रकृति-पर्यावरण संरक्षण, अनुसंधान और रखरखाव के उद्देश्यों के आधार पर विश्वव्यापी वन्यजीव कोष ( Worldwide Fund for Nature-WWF ) की स्थापना 11 सितंबर 16961 को की गई। यह विश्व व्यापी गैर सरकारी परोपकारी संगठन है ,जिसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड में स्थापित है। इस संगठन के प्रमुख उद्देश्य हैं आनुवंशिक जीवों और पारिस्थितिक विभिन्नताओं का संरक्षण करना, यह सुनिश्चित करना कि नवीकरण योग्य प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग पृथ्वी के सभी जीवों के वर्तमान और भावी हितों के अनुरूप हो , प्रदूषण, संसाधनों और उर्जा के अपव्ययीय दोहन और खपत को न्यूनतम स्तर पर लाना, हमारे ग्रह के प्राकृतिक पर्यावरण के बढ़ते अवक्रमण को रोकना तथा अंततोगत्वा इस प्रक्रिया को पलट देना तथा एक ऐसे भविष्य के निर्माण में सहायता करना है जिसमें मानव प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके रहता है।
कार्यक्रम
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ विश्व का सबसे बड़ा और अनुभवी स्वतंत्र पर्यावरण संरक्षण संगठन है। जिसके राष्ट्रीय संगठनों और कार्यक्रम कार्यालयों के वैश्विक नेटवर्क के साथ पांच मिलियन से अधिक समर्थक हैं। राष्ट्रीय संगठन पर्यावरण कार्यक्रमों को संचालित करते हैं तथा डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण कार्यक्रम को वित्ती तथा तकनीकी सहायता प्रदान करते हैं। कार्यक्रम कार्यालय डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के क्षेत्रीय कार्यों को प्रभावित करते हैं तथा राष्ट्रीय एवं स्थानीय सरकारों को परामर्श देते हैं ताकि भावी पीढ़ी प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके रह सके। इसका कार्य विश्व के सर्वाधिक विविधता संपन्न क्षेत्र वन, ताजा जल ,पारिस्थितिकी तंत्र, महासागर एवं तट तथा अन्य मामलों में संकटापन्न प्रजातियों, प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन पर भी चिंता करना है।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ जूलोजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन के साथ मिलकर लिविंग प्लेनेट इंडेक्स का प्रकाशन भी करता है। अपनी पारितंत्रीय पदचिन्हों के आकलनों के साथ, इंडेक्स का इस्तेमाल द्विवार्षिक लिविंग प्लेनेट प्रतिवेदन को तैयार करने में किया जाता है जो मानवीय गतिविधियों के विश्व पर पड़ने वाले प्रभाव का अवलोकन प्रस्तुत करता है। वर्ष 2008 में ग्लोबल प्रोग्राम फ्रेमवर्क (जीपीएफ) के माध्यम से डब्ल्यूडब्ल्यूएफ अब तक अपने प्रयासों को 13 वैश्विक पहलुओं अमेजन, आर्कटिक, चीन, जलवायु एवं ऊर्जा, तटीय पूर्वी अफ्रीका, प्रवाल त्रिभुज, वन और जलवायु, अफ्रीका का हरित प्रदेश, बोर्नियो, हिमालय, बाज़ार रूपांतरण, स्मार्ट मत्स्ययन और टाइगर- पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। डेपथ नेचर कार्यक्रम के अंतर्गत विकासशील देश के विदेशी ऋणभार का एक अंश इस शर्त पर माफ़ कर दिया जाता है कि वह देश पर्यावरण के संरक्षण पर स्थानीय स्तर पर निवेश करेगा। मरीन स्टेवार्डर्शिप कौंसिल, यह परिषद् एक स्वायत्त लाभरहित संस्था है जो मछली मारने के टिकाऊ उपायों के लिए मानदंड निर्धारित करती है।
अगस्त, 2019 में विश्व वन्यजीव कोष, भारत (WWF, India) एवं डिस्कवरी ने वन निदेशालय, पश्चिम बंगाल एवं सुंदरवन के स्थानीय समुदायों के साथ एक कार्यक्रम संचालन के लिए भागीदारी की है। इसके तहत विश्व के इकलौते मैंग्रोव बाघ पर्यावास सुंदरवन का संरक्षण किया जाएगा। पर्यावास प्रबंधन को प्राथमिकता, मानव-वन्यजीव संघर्ष में कमी और भारतीय सुंदरवन में लोचशील समुदायों के प्रति एकीकृत दृष्टिकोण अपनाया जाना तय किया गया। जिसका लक्ष्य बाघों की आबादी, उनके शिकार एवं उनके पर्यावास का प्रभावी प्रबंधन और मानव-बाघ संघर्ष कम करने के लिए वन निदेशालय की सहायता करना है। इस कार्यक्रम की क्रियान्विति पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील और जलवायु रूप से सुभेद्य सुंदरवन क्षेत्र में लोचशील समुदायों के निर्माण हेतु पंचायतों की सहायता से की जाएगी। यह परियोजना वैश्विक आंदोलन ‘‘प्रोजेक्ट सी.ए.टी.-कंजर्विंग एंकर्स फॉर टाइगर्स’’ के ही एक भाग के रूप में है।
विश्व वन्यजीव कोष का प्रतीक विलुप्तप्राय एवं दुर्लभ जानवर विशाल पांडा (giant panda) है जो एक खूबसूरत जानवर है। इसका मुख्य आहार बांस के पत्ते हैं। दुर्भाग्य से इस प्रजाति का अस्तित्व खतरे में है और अब इसकी संख्या बहुत कम ही बची हुई है। पांडा चीन का मुख्य वन्यजीव है। चीन विश्व वन्यजीव कोष के साथ मिलकर इसके संरक्षण हेतु प्रयास कर रहा है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार रूस की छह स्तनपायी, पक्षी और मछली की प्रजातियाँ विलोप के कगार पर पहुँच गई हैं। ये प्रजातियाँ हैं – शैगा हरिन, जिरफाल्कन बाज, पारसी तेंदुआ, चम्मच जैसी चोंच वाला सैंड पाइपर, सखालीन स्टर्जन समुद्री मछली और कलुगा स्टर्जन समुद्री मछली।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कोर्स डायरेक्टर, जैव संरक्षण और प्रबंधन में एमएससी के पाठ्यक्रम निदेशक पॉल जैक्सन के मुताबिक कुछ तरीकों से हम ऐसे परिस्थितियों को बेहतर ढंग से समायोजित कर सकते हैं । यह सुनिश्चित करने का प्रयास है कि प्रकृति संरक्षण एक संयुक्त राष्ट्र के नीति क्षेत्र बन गया जिससे मजबूत अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण व्यवस्था विकसित हो गई। यह हमें अच्छी सेवा प्रदान करता है, लेकिन दुनिया बदल गई है: केंद्रीय प्राधिकरण ने कई स्तरों पर व्यवस्थित गड़बड़ी, नेटवर्क प्रशासन को रास्ता दिया है। क्या मायने रखता है कि वन्यजीवों की आबादी बढ़ती है, यह नहीं कि “जंगली प्रजातियों” के कुछ संस्थागत विचारों ने वैश्विक आम सहमति का लाभ उठाया। यह संरक्षण प्रथा में विविधता को पोषण करने का समय है।
उनका सुझाव है कि पर्यावरण नीति को व्यवस्थित करने का एक बेहतर तरीका प्राकृतिक संपत्ति – स्थानों, विशेषताओं और प्रक्रियाओं के संदर्भ में है, जिसमें निवेश के मूल्यों के रूपों का प्रतिनिधित्व करते हुए भी कम होने का खतरा होता है और उन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए। हमने पहले यह किया है – वन्यजीव संरक्षण, प्राकृतिक सुदृढीकरण और आउटडोर मनोरंजन वन्यजीवों के लाभ के लिए गठबंधन करते हुए महान राष्ट्रीय पार्कों का विचार करते हैं, जबकि क्षेत्रीय या राष्ट्रीय पहचान, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक और आर्थिक मूल्यों पर बल देते हैं। उनके विचार में हम बड़े पैमाने पर सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित फिर से Wilding प्रयोगों की जरूरत का पता लगाने और समाज के लिए एक परिसंपत्ति के रूप में वन्यजीव आबादी के पुनर्निर्माण के नए तरीके विकसित करना होगा। वन्यजीव संरक्षण में एक सुसंगत दृष्टिकोण और प्रभावी रणनीति की जरूरत है। दिलचस्प तकनीकी नवाचारों के बहुत सारे हैं, लेकिन वे विखंडित और स्वभाव में व्यक्तिपरक हैं। हमें बेहतर और दोहन के लिए नेतृत्व और निवेश की आवश्यकता हैं।
पिछले 40 वर्षों में संरक्षण संगठन अधिक पेशेवर बन गए हैं, नौकरशाहों के साथ घनिष्ठ कामकाजी संबंधों का निर्माण कर रहे हैं। संरक्षण के स्रोतों, धन और प्रचार के स्रोतों के रूप में जन समुदाय से जुड़ना होगा। बहस के लिए नए विचारों को आगे बढ़ाने और वन्यजीव को बचाने के लिए नए तरीकों का सुझाव देने के लिए चर्चा करने का समय आ गया है।
भारत में भी अनेक वन्यजीव लुप्त होने के कगार पर हैं, जिनके लिए विशेष प्रोजेक्ट चलाये जा रहे हैं।अनेक राष्ट्रीय अभयारण्य इन प्रोजेक्ट्स से जुड़े हैं। प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी बड़े स्तर पर काम हो रहे हैं। नदियों को प्रदूषण से बचाने की योजनाएं चल रही हैं।अभी तक जो कुछ भी प्राप्त हुआ बहुत कम है। आवश्यकता हैं इन सभी प्रयासों में तेजी से कार्य हो, अपेक्षित परिणाम नज़र आये।
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार
पूर्व संयुक्रत संचालक
सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग,राजस्थान
1-F-18, आवासन मंडल कॉलोनी, कुन्हाड़ी
कोटा, राजस्थान
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मो.9413350242