राजनांदगांव। उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की जयन्ती, शासकीय दिग्विजय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा उत्साह पूर्वक मनाई गई। इस अवसर पर विद्यार्थियों की लगनशील उपस्थिति को संबोधित करते हुए प्राचार्य डॉ.आर.एन.सिंह ने कहा कि वस्तुनिष्ठ ज्ञान अब समय की सबसे बड़ी मांग है। इस दृष्टि से प्रेमचंद जयन्ती पर सफल व सरस प्रश्नोत्तरी एक मील के पत्थर के समान है। उन्होंने अच्छे आयोजन के लिए हिंदी विभाग की अध्यक्ष श्रीमती चंद्रज्योति श्रीवास्तव सहित सभी प्राध्यापकों और प्रश्न मंच के प्रभावी संयोजन के लिए डॉ.चंद्रकुमार जैन को मुक्त कंठ से बधाई दी। प्रारम्भ के प्रेमचंद के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई।
आयोजन में हिंदी के प्राध्यापक गण डॉ.शंकर मुनि राय,डॉ.बी.एन.जागृत, डॉ.नीलम तिवारी, डॉ.स्वाति दुबे ने प्रेमचंद साहित्य पर अलग-अलग कोण से सार्थक चर्चा की, जिससे विद्यार्थी लाभान्वित। संस्कृत विभाग की डॉ.दिव्या देशपांडे उपास्थित थीं। लगभग दर्जन भर छात्र-छत्राओं ने उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की अपनी-अपनी पसंद की रचना पर मुक्त उदगार व्यक्त किया। सहभागी विद्यार्थियों में लोकेश वर्मा, जितेन्द्र कुमार,बालमुकुंद, साहू आदि शामिल थे। अपने विचार व्यक्त कर इन होनहारों और प्रश्न मंच से सभी विजेताओं ने सराहना के साथ पुरस्कार भी अर्जित किये। विभगाध्यक्ष श्रीमती चंद्रज्योति श्रीवास्तव ने सहभागी विद्यार्थियों को पुरस्कृत करते हुए कहा कि विद्यार्थियों के ज्ञान वर्धन के साथ-साथ उनकी अभिव्यक्ति क्षमता को निखारना भी मुख्य ध्येय है। प्रश्न मंच इसी श्रृंखला की एक अहम कड़ी है।
कार्यक्रम में डॉ.शंकर मुनि राय ने कहा गोदान प्रेमचंद की कालजयी रचना है, किन्तु उनकी असंख्य रचनाओं को समान सम्मान प्राप्त हुआ। उन्होंने हिंदी और उर्दू में पूरे अधिकार से लिखा। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प्रेमचंद ने अनेक विधाओं में साहित्य रचा। भारत की सांस्कृतिक विराटता के दर्शन उनकी कृतियों में सहज किये जा सकते हैं। प्रेमचंद अपने जीवन काल में ही वे ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित हुए। डॉ.बी.एन.जागृत ने अपने संबोधन में बताया कि प्रेमचंद का जीवन अत्यंत संघर्ष पूर्ण रहा। उन्होंने बाल्यकाल में ही अपनी लेखकीय प्रतिभा का परिचय दे दिया था। पढ़ना उनकी सहज प्रकृति थी। यही कारण है कि आने वाले वक्त ने दुनिया को प्रेमचंद जैसा महान लेखक दिया।
डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने कहा कि प्रेमचंद की पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका के 1915 के दिसंबर अंक में सौत नाम से प्रकाशित हुई और 1936 में अंतिम कहानी कफन नाम से।प्रेमचंद ने कुल मिलाकर करीब तीन सौ कहानियां, लगभग एक दर्जन उपन्यास और कई लेख लिखे। कुछ नाटक भी लिखे और कुछ अनुवाद कार्य भी किए। डॉ.जैन ने कहा प्रेमचंद धरती को धन्य करने वाले महानतम साहिय सृजेता हैं। उनके अक्षर संसार के हम सब ऋणी रहेंगे। जयन्ती कार्यक्रम के दौरान विद्यार्थियों की जिज्ञासा बढ़ती गई।सबने एक मत से स्वीकार किया कि ज्ञानवर्धक सम्बोधन और प्रेरणास्पद प्रश्नोत्तरी से उन्हें प्रेमचंद और हिन्दी सहित्य में उनके योगदान का अविस्मरणीय परिचय मिला। स्नातकोत्तर हिन्दी के विद्यार्थी अगेश्वर वर्मा, गायत्री साहू, गूंजा साहू, ज्योति साहू, दीप्ति साहू, पिम्लेश्वरी वर्मा, बाल मुकुंद गुप्ता सहित बड़ी संख्या में छात्र छात्राओं ने सार्थक सहयोग दिया।