कोटा। मकर संक्रान्ति के अवसर पर ‘विकल्प’ जन सांस्कृतिक मंच द्वारा नगर के सुप्रसिद्ध शायर शकूर अनवर के शिवपुरा स्थित आवास के प्रांगण में सृजन-सद्भावना समारोह-2024 आयोजित किया गया। समारोह में निकटवर्ती अंचलों के रचनाकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं बुद्धिजीवियों ने उल्लेखनीय भागीदारी करके इसे एक यादगार समारोह बनाया।
सृजन-सद्भावना समारोह में रचनाकारों ने आकाश में उड़ाई पतंगें और शांति के कपोत
सन् 2006 से मकर-संक्रान्ति के दिन प्रति-वर्ष होने वाले इस समारोह के प्रारम्भ में उपस्थित लेखकों, संस्कृतिकर्मियों और श्रोताओं ने खुले आकाश में स्वतंत्रता की प्रतीक पतंगें और शांति के प्रतीक कपोतों को उड़ाकर सद्भावना का संदेश दिया।
शायर शकूर अनवर ने चार लाईनों से सभी का स्वागत करते हुए कहा कि – ‘नई मंजिलों को है पाना चलो / खफा हो तो हो ये जमाना चलो / हिमालय से आकाश भी पास है / वहीं से पतंगें उड़ाना चलो।’’
वरिष्ठ कवि-कथाकार व पत्रकार पुरुषोत्तम पंचोली को वर्ष 2024 के सृजन सद्भावना सम्मान से विभूषित किया गया। इसके अलावा सुप्रसिद्ध साहित्यकार डाॅ. नरेन्द्र नाथ चतुर्वेदी, कथाकार लता शर्मा, शायर अहतेशाम अख्तर, हाड़ौती के ख्यातिनाम कवि दुर्गादान सिंह गोड़, लेखिका डाॅ. अनिता वर्मा, डाॅ. अतुल चतुर्वेदी, ग़ज़लकार पुरुषोत्तम यकीन एवं शायद चाँद शेरी को भी शाॅल एवं सम्मान-पत्र देकर साहित्य में उनके अतुलनीय योगदान के लिए ‘विकल्प’ सृजन- सम्मान से अलंकृत किया गया। सम्मानित कवि डाॅ. अतुल चतुर्वेदी ने अपनी दो पंक्तियों के माध्यम से अपने उद्गार व्यक्त किये – *‘‘जीवन की यह गिड़गिड़ी, थामों कस कर यार / द्वेष और अलगाव में मत बांटों दिन चार।’’
समारोह में पुस्तकालय संवर्द्धन में उल्लेखनीय भूमिका निभाने के लिए डाॅ. दीपक कुमार श्रीवास्तव एवं चिकित्सा के क्षेत्र में मानवीय कीर्तिमान स्थापित करने के लिए डाॅ. मोहम्मद यूनुस खान को भी विशेष सम्मान प्रदान किया गया।
सवाई माधोपुर से पधारे मुख्य-अतिथि राजस्थान हिन्दी साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक डाॅ. रमेश वर्मा ने कहा कि *भारतीय समाज की संस्कृति बहु-रंगीय रही है और इन रंगों में कोई विरोध नहीं रहा। सब मिल कर एक उजली भारतीयता का निर्माण करते हैं, जैसे सूरज में सात रंग होते हैं। हमें सावचेत रहना होगा कि हमारी यह भारतीयता कहीं खो न जाये।* इससे पूर्व अपने सद्भावना-संदेश में प्रो. संजय चावला ने कहा कि *पाश्चात्य और अरब जगत सिन्धु पार के लोगों को हिन्दू मानता और कहता रहा है और यदा-कदा हमें हिन्दी भी कहता रहा है। ऐसी हिन्दीयत जिसमें विभिन्न समाजों, धर्मावलम्बियों और संस्कृतियों में बैर भाव नहीं रहा। इस प्रेम और सद्भावना को हमें कायम रखना है।
समारोह सद्भावना सत्र की अध्यक्षता दिनेश राय द्विवेदी, विजय सिंह पालीवाल एवं डाॅ. जेबा फिज़ा ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद गौतम, फानी जोधपुरी, शून्य आकांक्षी एवं इंजीनियर सिराज अहमद अंसारी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह समारोह ‘‘गंगा-यमुना-चम्बल’’ की मिलीजुली संस्कृति और ‘‘हिन्दी उर्दू हाड़ौती’’ की भाषाई एकता का सुदृढ़ उदाहरण बन गया है।
दूसरे सत्र में अंचल के कवियों और शायरों ने अपनी जनपक्षधर रचनाओं से समारोह को एक नई गरिमा प्रदान की। काव्य-पाठ करने वाले प्रमुख कवियों में अहमद सिराज फारुकी, हंसराज चैधरी, रतनलाल वर्मा, गयास फाइज, आनन्द हजारी, किशन वर्मा, शबाना सहर, नारायण शर्मा, राजेन्द्र पंवार, सलीम आफरीदी, आदि थे। काव्य-गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि बृजेन्द्र कौशिक ने तथा संचालन हलीम आईना ने किया। समारोह में रवि जैन, विजय राघव, मीर सिंह, देवराज सिंह, शब्बीर अहमद, दुलीचंद बोरदा आदि विशेष रूप से उपस्थित रहे।
(लेखक विकल्प जन सांस्कृतिक मंच, कोटा के महासचिव हैं)
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