Tuesday, November 26, 2024
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रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून

जल का व्यर्थ बहाव  यह संकेत करता है कि समाज जल के वास्तविक महत्व को समझ नहीं पाया है। जल जागरुकता का योगदान मनुष्य और नागरिक समाज के लिए संचेतना जारी करना है। भारत में भूमंडलीय तापन के कारण  वर्षा के प्रतिरूप में नाटकीय   बदलाव हुआ है। मानसूनी औसत वर्षा का समय अंतराल 45 दोनों का होता था जो यह संख्या घटकर 22 दिन का हो गया है।
 प्रत्येक मानसून के दौरान वर्ष की तीव्रता कम होती जा रही है ।बांधो ,जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण और सिंचाई के लिए पानी के मोड़ ने बड़ी नदी पारिस्थितिकी तंत्र को अव्यवस्थित  रूप से  विक्षोभित किया है। भारत वैश्विक स्तर पर अन्य देशों की तुलना में ज्यादा भू- जल का उपयोग करता है और अत्यधिक भू- जल दोहन के कारण जल स्रोत तेजी से सुख रहे है । एक अद्यतन शोध से पता चलता है कि सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाला कुल  भू- जल 1980 के दशक के तुलना में वर्तमान में 60% हो चुका है। सिंचाई के अतिरिक्त तेजी से शहरीकरण,  शीतल पेय  कंपनियों के कारण और अन्य औद्योगिक उपयोग के लिए भू – जल का दोहन हो रहा है।

पिछले दिनों और असामयिक  वारिस और अत्यधिक ओलावृष्टि ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा सहित कई राज्यों में फसलों को विनष्ट कर दिया है। गेहूं और सरसों की फसल का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है । वर्तमान में रवि की फसल और सरसों की फसल की कटाई के लिए तैयार है। ऐसे समय में ओलावृष्टि किसानों के मेहनत पर ब्रजपात है। जल संकट का प्रभाव भारत की आईटी सिटी बेंगलुरु में दिखाई दे रहा है ,जहां गर्मी बढ़ने के साथ पानी की अत्यधिक मांग बढ़ रही है, वैसे-वैसे जल संकट विकराल रूप ले रहा है। जल संकट के नकारात्मक प्रभाव के कारण आईटी सिटी की कई कोचिंग और शैक्षिक संस्थाएं बंद कर दिए गए हैं।
पेयजल का संकट इतनी विकराल स्थिति में है कि 1000 लीटर के पानी टैंकर की कीमत 600 से ₹800 थे ,वह अब 1800 से ₹2000 देने पर भी पानी की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इन क्षेत्रों की समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार ‘ मिल्क टैंकर’ के उपयोग पर विचार कर रही है।एक  अद्यतन प्रतिवेदन से पता चलता है कि न्यूयार्क, बोस्टन मियामी और बोस्टन सहित संयुक्त राज्य अमेरिका के 32 शहर  समुद्र में डूब रहे हैं। ये  शहर 2050 तक बार-बार आने वाली बाढ़ के खतरे का सामना भी कर रहे हैं, जिससे इन शहरों की 5000 लाख आबादी प्रभावित हो रही है। संयुक्त राज्य अमेरिका की लगभग 30 प्रतिशत आबादी नदियों के तटों के किनारो पर रहते हैं, जहां समुद्र का स्तर 0.3 मीटर तक बढ़ सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका का तटीय शहर प्रति वर्ष  5 मिलीमीटर तक डूबने लगे हैं ,जिससे प्रभावित क्षेत्र के आसपास समुद्र के स्तर में परिवर्तन तीन गुना हो चुका है ।अनियंत्रित भू- जल दोहन से 2040 तक वैश्विक स्तर की 19 ,% आबादी के प्रभावित होने की आशंका है।

वैश्विक भूतापन ने भारत में वर्षा के प्रतिदर्श को नाटकीय रूप से बदल दिया है। विगत औसत वर्षों में वर्षा का औसत मानसूनी वर्षा 45 दिनों तक होती थी ,अब वर्तमान में यह  संख्या 22 दिन की हो चुकी है। प्रत्येक मानसून में बारिश की तीव्रता न्यून होती जा रही है।

जल और मृदा के संरक्षण की दिशा में कारगर तरीके से नहीं पहल करने के कारण नदी घाटियों के जल विज्ञान पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है ,जिसमें अधिकांश क्षेत्रों में सुखा  और जल की कमी होती है। जल कुप्रबंधन  और जल जागरूकता कार्यक्रमों में कमी के कारण जल संकट का सामना करना पड़ा  रहा हैं।जल कुप्रबंधन  के कारण बुंदेलखंड ,राजस्थान और मध्य प्रदेश में सुखा का सामना करना पड़ता है। जल प्रबंधन और  नदियों की  अविरलता पर “गंगा समग्र “संपूर्ण मनोयोग  से काम  कर रहा है । गंगा समग्र के राष्ट्रीय संगठन मंत्री आदरणीय रामाशीष जी के संतत्व और ऊर्जावान नेतृत्व में अखिल भारतीय और क्षेत्रीय स्तर पर काम हो रहा है ।इस पर नागरिक समाज का भी उद्देश्य हो कि समाज में जल की आवश्यकता ,जल के महत्व और जल के संरक्षण के प्रति सजग और ऊर्जावान रुख अपनाए ।संपूर्ण मानव समाज को जल को बचाने के लिए प्रतिबद्ध एवं समर्पित होना चाहिए।

(लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  के गंगा समग्र के प्रचार प्रमुख हैं) 

एक निवेदन

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