नई दिल्ली। गुरमीत राम रहीम और तीन अन्य दोषियों को पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्या मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। उनको 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी सुनाया है। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम और तीन अन्य को पंचकूला की विशेष CBI कोर्ट ने सजा सुनाई। छत्रपति ने जीते जी एक कविता लिखी थी, जो उनकी मृत्यु के बाद उनकी बेटी श्रेयसी ने पूरी की। पढि़ये श्रेयसी ने अपनी भावनाओं को किस तरह बयां किया है।
ढूंढिए उनको, वक्त के रुख को जो बदलते हैं
ढोंग शूरों का कर निकलते हैं
लोग तो सहमे-सहमे चलते हैं।
है अंधेरा उजाले पर हावी,
जलने को तो चिराग जलते हैं।
हाथ को ही हाथ खाने लगा,
किसी के पेट कटें, उनके पेट पलते हैं।
मुंह में है राम, बगल में तेज छुरी,
दोस्तों को ही दोस्त छलते हैं।
शेर भी गीदड़ों से डरने लगे,
अपनी मांदों से कम निकलते हैं।
चमन में नागफनी उग आई,
फूल खिलने को बस मचलते हैं।
ढूंढिए उनको, वो लोग कहां, वक्त के रूख को जो बदलते हैं
-रामचंद्र छत्रपति (हमले से पूर्व लिखी कविता)
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अब कातिल कभी सो नहीं पाएगा
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उस रात कोई नहीं सोया था
न घर में बैठे हम, न आइसीयू के बाहर चिंतित खड़ी मां
उस रात के बाद हम कई दिन नहीं सोए,
पापा के घर लौटने के इंतजार में।
और फिर पापा लौट आए
उसी कफन में लिपटे हुए
जो बड़े जुनून के साथ उन्होंने रखा था हमेशा
और उस कफन पर लिपटे फूलों ने कभी सोने नहीं दिया हमें
उन रातों में हम ही नहीं जगे थे अकेले
छत्रपति भी जगे थे हमारे साथ और कहते रहे
सो मत जाना
मेरे चैन से सो जाने तक
सो मत जाना
कातिल के सलाखों में जाने तक
अब पापा चैन से सो रहे हैं
और जेल के अंधेरे में जग रहा है कातिल
आज रात कातिल सो नहीं पाएगा।
छत्रपति का कफन उसके गले का फंदा बन
हर झपकी से उसे अचानक जगाएगा, डराएगा, रुलायेगा
हां, कातिल अब कभी सो नहीं पाएगा।
-(गुरमीत को सजा सुनाए जाने के बाद बेटी श्रेयसी की लिखी कविता)