भारत सरकार ने’ नेहरु स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय सोसाइटी ‘ का नाम’ प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय सोसाइटी ‘ में परिवर्तित कर दिया है ।इस शब्द से लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का भाव उजागर हो रहा है ।देश का प्रधानमंत्री 140 करोड़ भारतीयों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, लोकतंत्र में सरकार जनता की होती है। लोकतंत्र में संवैधानिक सरकार होती है ना की किसी खास व्यक्ति का सरकार। शब्द मूलतः वंशवाद, परिवारवाद और जातिवाद के वाहक होते हैं, जबकि सार्वजनिक पद संवैधानिक सरकार व संविधानवाद का सार्थक अभिव्यक्त होता है।
भारत लोकतंत्र की जननी व लोक संप्रभुता का प्रशिक्षण पाठशाला है ,इसलिए इसके प्रत्येक पहल का वैश्विक राजनीतिक माहौल पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। बदलते परिवेश में भारत का कद कई क्षेत्रों में महानतम उपलब्धियों के आंकड़ों को प्राप्त किया है, इसलिए भी भारत को प्रत्येक सार्वजनिक स्थान व न्यास को सार्वजनिक अभिव्यक्ति का संकेतक होना चाहिए। लोकतंत्र का अभिव्यक्ति परिवारवाद, वंशवाद, घरेलू राजनीति एवं जातीय संस्कार को निषिद्ध करता है ,इसलिए भी इस नाम परिवर्तन की लोकतांत्रिक उपादेयता व प्रासंगिकता है। 21 अप्रैल, 2022 को नेहरू मेमोरियल पुस्तकालय को आम जनता के लिए खोल दिया गया था।
नए भवन में स्थित संग्रहालय भारत वासियों को यह संकेत देता है कि हमारे प्रधानमंत्रियों ने विभिन्न चुनौतियों के साथ भी देश की सर्वागीण प्रगति को बढ़ाया है। यह सभी प्रधानमंत्रियों की उपादेयता को इंगित करता है, इसलिए इस संग्रहालय का लोकतांत्रिक संगम हुआ है। प्रधानमंत्रियों के व्यक्तित्व व कृतित्व के बारे में यह संग्रहालय व पुस्तकालय जानकारी उपलब्ध करा रहा है। इसमें देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपादेयता शामिल है। प्रधानमंत्री संग्रहालय स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र की सामूहिक यात्रा की अभिव्यक्ति है, जिसमें भारत के प्रत्येक प्रधानमंत्री के राष्ट्र निर्माण में उपादेयता को प्रदर्शित किया गया है। प्रधानमंत्री का पद एक संस्था है, जिसमें विभिन्न प्रधानमंत्रियों की यात्रा इंद्रधनुष के विभिन्न रंगों की तरह हैं।इंद्रधनुष को आकर्षक बनाने के लिए सभी रंगों का आनुपातिक प्रतिनिधित्व आवश्यक है, उसी प्रकार सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के लिए संग्रहालय और पुस्तकालय का नाम परिवर्तित करके प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय सोसाइटी रखा गया है, जिससे भारत की जनता अपने प्रधानमंत्रियों का राष्ट्र के प्रति उपादेयता को समझ सके।
किसी राष्ट्रीय संग्रहालय व पुस्तकालय का नाम ‘ संस्था के प्रमुख ‘ पर होने से राष्ट्रीय एकीकरण का प्रत्यय विकसित होता है, जो राष्ट्रीय संपत्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। संस्था जनता का प्रतिनिधित्व करती है और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देती है। प्रधानमंत्री लोकतंत्र का पर्याय है, और लोकतांत्रिक संस्कृति का पालक है ।प्रधानमंत्री का संग्रहालय और पुस्तकालय का संबंध राष्ट्रीयता के मूल्य को दर्शाता है। किसी राष्ट्र का समृद्धि उस राष्ट्र के सुशासन और जनतांत्रिक मूल्यों से प्रदर्शित होता है। भारत सरकार का यह सकारात्मक कदम स्वागत योग्य हैं।प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय आत्मनिर्भर और विकसित भारत के संकल्पों का प्रतिनिधित्व करेगा ।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)