दिल्ली. “केन्द्रीय राजधानी दिल्ली के बाराखंबा रोड इलाके से चौंकानेवाली खबर आई है, 30 वर्ष पूर्व अपनी कानपुरी रचना “मैँ तेरो कटप्पो” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित मशहूर कवि/लेखक श्री “जलील कमीनपुरी” ने अपना पुरस्कार लौटा देने की खुली धमकी दी। वारदात कुछ ऐसी रही कि लेखक “जलील कमीनपुरी” एक ढ़ाबे पर बैठे चाय और बड़ी गोल्डफ्लेक का अवशोषण कर रहे थे, तभी उनकी नजर पास की बेंच पर बैठे दो लड़कों पर गई, जो समोसा कचौड़ी खा रहे थे। कमीनपुरी साहब ने जब गौर फरमाया तब उन्हें यह इल्म हुआ कि समोसे की प्लेट में तेल सोखने के लिए जो पन्ना रखा था, वो इनकी पुरस्कृत रचना “मैँ तेरो कटप्पो” से फाड़ा हुआ था। लेखक महोदय आगबबूला हो उठे, लड़के का कालर पकड़ लिए, कहे, “ससुरो अनपढ़, ऐसी ऐतिहासिक किताब पर तू कचौड़ी समोसा खा रौ है, दुई अच्छर की सरम ना है ससुरौ, इत्ते महान लेखक को ऐसो अपमान करेगो?”
कम्यूनल समोसा जो की सिर्फ़ मुस्लिम लेखकों की किताबों पर ही ओइल छोड़ता है!
कम्यूनल समोसा जो की सिर्फ़ मुस्लिम लेखकों की किताबों पर ही ओइल छोड़ता है!
लड़का था गबरु जवान। सो उसने एक बार में चर्रर्र की ध्वनि के साथ लेखक जी का कुरता पोंछे में बदल दिया, कहा, “ससुरौ तुमरी किताब है तो एहकी बत्ती बनाए? अपने पास रक्खो, ऐसे काहे छोड़ रखी है? अभी हम खाते खाते दुई लाइन पढ़ गए, ततैया नाच गई आंखन के आगे, कूढ़ मगज। ना सिर ना पैर, तोसे अच्छी कविता तो अंगूरी भाभी करती हैँ (“सही पकड़े हैं” वाली)। और का कहे इ पुरस्कृत कविता है, दुबारा बोल दिए अबकी चप्पल उतार के चटचटा देँगे।”
चश्मदीद गवाहों के मुताबिक इसके बाद लेखक महोदय बिल्कुल “डोंट नो वाट टू डू” वाली मुद्रा में आ गए। उन्हें तत्काल इंटॉलरेंस का दौरा पड़ गया और फिर वे दो चार तरह की अलग अलग आवाजों में रोना शुरु हो गए। बोले कि ये वो देश नहीं है जहां मैं बड़ा हुआ था। पहले भी लोगों की घटिया रचनाओं को अवार्ड मिले हैं लेकिन कभी उनपर समोसा रखकर नहीं खाया गया। ये बहुत ही अपमानजनक है। अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रहार है। एक तो ये सांप्रदायिक हिन्दु सरकार हमारी घटिया रचनाएं पुरस्कृत नहीं कर सकती और दूसरी ओर उन पर लोगों को समोसा कचौड़ी बंटवा रही है। अगर ये लोग ऐसा सोचते हैं कि हम इस भय से घटिया किताबें लिखना बंद कर देंगें कि बाद में उनका प्रयोग नाश्ता परोसने के लिए होगा तो वे गलत हैं। लिबरल समाज उन्हें कभी माफ नहीं करेगा। तौबा तौबा कितनी इंटॉलरेंस बढ़ गई है इस देश में। अगर दुबारा मैंने अपनी किताब का ऐसा अपमान देखा तो मैँ अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दूंगा”।
तमाम घटना का वर्णन मशहूर न्यूज चैनल एनडीटीवी ने कुछ इस तरह किया, “Two Hindu goons caught eating communal Samosa on the pages of an eminent Muslim writer’s book. Is intolerance rising under Modi? Is secular fabric being destroyed? Will the PM now take responsibility and give a detailed statement on the whole issue and seek an unconditional apology”
प्रधानमंत्री ने अभी तक कोई रिप्लाई नहीं दिया है ना ही उनके कार्यालय से लेखक जलील कमीनपुरी और एनडीटीवी को कोई आश्वासन मिला है कि आरोपी पर कार्रवाई होगी।
@TheHelicoptor
आप चाहें तो इसे व्यंग्य समझ सकते हैं या गंभीर खबर भी, ये आपके ऊपर है…कि आप इसे क्या समझना चाहते हैं
साभार-http://my.fakingnews.firstpost.com/ से