श्रृंगार रस और भक्ति रस में सृजित काव्य से पाठकों को हिन्दी साहित्य के रसस्वादन के आनंद की गंगा में गौते लगवाने वाली कवियित्री दीप्ति राजोरा का लेखन पाठकों को हृदय को बाँध पाने में सक्षम है। कविता, गज़ल,गीत, छंद और दोहे के लेखन से मनोरंजन के साथ – साथ समाज के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण की भावनाएं उत्पन्न करना ही इनके लेखन का मुख्य ध्येय है। लेखन हिंदी और उर्दू भाषा में समान रूप से चलता है। एक कोशिश है साहित्य साधना में रत रहकर बंजर रेतीले ह्रदयो पर कलम की स्याही छिड़क सुकून की केसर उगा सकूँ….स्वयं और समाज से हारी इंसानी जमात को हिम्मत का सहारे देती अतुकान्त रचनाओं से भटकी हुई नई पीढ़ी को कुछ राह दिखा सकूँ।
भाषा, साहित्य और दर्शन तीनों क्षेत्रों में किए गए महत्त्वपूर्ण योगदान से अन्य अनेक लेखकों की भांति आप भी देश की विख्यात साहित्यकार महादेवी वर्मा और उनके साहित्य से प्रभावित है। इनके लेखन में उनकी छाया दिखाई देती हैं और इनका साहित्य भी महादेवी की तरह बृज भाषा का पुट लिए है। “मत्तगयंद सवैया छंद” में वन में कृष्ण सखाओं के गांय चराने, कृष्ण और ग्वालों की प्रसन्नता, राधा का छिप कर कृष्ण को देखने का कितना मनोहर वर्णन किया है..
कानन में धुन आय रही जब,
गाय चराय सखा ब्रज धामा !
गोप चले हथ कामरिया धर,
दीन दयाल चले अभिरामा !
होठ धरे मुरली मन भावन,
राह तके कब आय सुदामा!
द्वार खड़ी वृषभान लली तब,
देख रही छिप के घनश्यामा !
आगे के छंद में गुलेल के निशाने से छाछ मटकी का चटकना,कृष्ण की छवि, उनकी पैजनियाँ की ध्वनि पर झूमे नाचते गोप के दृश्य को माता जमुना पर कपड़े धोते हुए निहार रही हैं का अत्यंत मोहक वर्णन देखिए किस प्रकार शब्द सौंदर्य में पिरोया है ………….
छाछ भरी मटकी चटकी झट ,
खींच गुलेल निशान चलाना l
आवत जावत खावत सोवत
कृष्ण भली छवि नैन समाना l
बाजत हैं पग पैजनियाँ तो
झूमत गोप नचावत आना l
मात निहार रही जमुना पे
पाँव छपाछप धोय ज़माना l
प्रकृति प्रेम से प्रभावित हो कर लिखे दोहों में ऋतु, सुमनों कलियों को देख कर भंवरों की खुशी, आसमान की रंग बिरंगी छटा से हर्षित वसुंधरा का अंग अंग, हिलोरे लेते समुद्र में भास्कर की खुशी और सूर्य देव के उत्तरायण में जाने के भावों को जिस प्रकार अपने शब्द सौंदर्य से रचा है कवियित्री की सृजन परिपक्वता कायल करने को पर्याप्त है…….
चमके ऋतु मन मोहिनी, मन में उठे हिलोर l
महके कलियाँ फूल तो, भँवरे हुए विभोर ll
क्षितिज लालिमा छा रही, नीर केसरी रंग l
देख छटा मन भावनी, पुलकित धरती अंग ll
क्षीर हिलोरे ले रहा, स्वर्णिम आभा साथ l
देखत रवि छवि आप में, कहे धन्य हे नाथ ll
सूर्य देव उत्तर चले, कनक प्रभा सा ताप l
विकल धरा शुभता खिले, मिटे सभी संताप ll
प्राणी या पौधे सभी , तके तुम्हारी ओर l
जीवन दायक तो तुम्ही, ताप देत चहुँ ओर ll
कर्म ज्ञान लेते चलो, देख भानु दिनमान l
जीवों को यह ज्ञान दे, समय करो सम्मान ll
“मनहरण घनाक्षरी विधा” में भगवान “शिव” को आधार बना कर तन पे भस्म, ,तांडव,गले में मुंड माला, रौद्र रूप, जटा से बहती गंगा की धारा, और उनके रूप का मोहक चित्रण कवियित्री की चित्रात्मक काव्य शैली का अद्भुत उद्धारण है और आध्यात्म का एक प्रबल पक्ष भी…….
भस्म तन पे सकल
तांडव करें विकल
गले मुंड माल धर
रौद्र रूप पाए हो
तीव्र है प्रचंड गंग
वास करे जटा संग
भागीरथी शीश धर
तीव्र वेग लाए हो
शीश पे सजाए चंद्र
आनन लगे है मंद्र
बांह लिपटे भुजंग
गौरा को सुहाए हो
वासुकी है कंठ साजे
गोद गणेशा बिराजे
मृदंग पे नंदी झूमें
डमरू बजाए हो
इनके एक लंबे काव्य सृजन का यह अंश भी दृष्टव्य है………….
कभी ऐसे मोड़ भी आएँगे, जब कोई राह न सूझेगी
रातें भी जागते बीतेंगी,दिल भी घबराकर डूबेगा
कोई ठौर नहीं मिल पाएगी,धड़कन भी रेल सी भागेही
हाथों में कम्पन जागेगा,कोई बात नहीं कर पाओगे
नैनों में ज्वार सा उमड़ेगा, खुद को हारा सा पाओगे
सब कुछ बेमानी हो जाएगा,जब चाक जिगर के देखोगे
काँटों से प्रश्न भी गूंजेंगे, उत्तर ना कुछ दे पाओगे
पत्थर से जड़ हो जाओगे, जंज़ीरों सी जकड़न होगी
पर बन्धन खोल न पाओगे, तिमिर में घिर घिर जाओगे
हर लम्हा शोला बन जायेगा, राहें कंटक बन जाएंगी
अश्रु भी बहा न पाओगे
पद्य के साथ साथ – साथ गद्य विधा में इनका अच्छा दखल है। साहित्य पत्रिका नारी शक्ति सागर (महादेवी वर्मा स्मृति ) में, हिन्दी सागर बसंत काव्य महोत्सव विशेषांक,साहित्य रत्न सहित अनेक साझा काव्य संकलन,भारत की आधुनिक हिन्दी कवयित्रियाँ और संस्मरण तथा लेख मॉस्प्रेसो प्लेटफॉर्म में आपके लेख प्रकाशित होते रहते हैं।
परिचय :
महादेवी वर्मा सर प्रभावित श्रृंगार रस और भक्ति रस की काव्य शिल्पी दीप्ति राजोरा का जन्म 23 अक्टूबर 1970 को गंगानगर में पिता
शशि प्रकाश पाराशर एवं माता के आंगन में हुआ। चार वर्ष की आयु में परिवार कोटा आ गया और यहीं के वासी हो गए। संपूर्ण शिक्षा कोटा में हुई और आपने एम कॉम की डिग्री प्राप्त की। परिवार में बचपन से साहित्यिक वातावरण रहा। आपके माता – पिता की साहित्य और कविताओं में गहरी रुची थी और मामा दुबे उमादत्त अनजान जाने माने कवि रहे । घर में कविताओं का अच्छा वातावरण होने से साहित्य की ओर बचपन से ही रूचि रही।
आज भी बचपन की वो रातें सुधियों में स्थाई रूप से अंकित हैं जब आज से करीब चालीस वर्ष पूर्व माता पिता की गोद में रात रात भर दशहरा मैदान में आयोजित कवि सम्मेलन का आनंद लिया करते थे । पढ़ाई पूर्ण होने के पश्चात् लेखन प्रारम्भ किया। काव्य गोष्ठियों में काव्य पाठ करने के साथ – साथ गत दो वर्षों से सोशल मीडिया पर बने साहित्यिक मंचों का प्रभारी के रूप में जुड़ी हैं। कई संस्थाओं द्वारा आपको राजस्थान महिला रत्न, साहित्य साधिका,बसंत काव्य रत्न आदि सम्मान प्राप्त हुए हैं। वर्तमान में आप साहित्य सृजन के साथ – साथ एक निजी कोचिंग संस्थान में अध्यापन कार्य करती हैं।
संपर्क : 567, राजोरा कॉम्प्लेक्स
छावनी में रोड, कोटा (राज.)
मोबाइल : 82332 64360
(लेखक वरिष्ठ एवं मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं कोटा में रहते हैं और साहित्यिक, ऐतिहासिक, पर्यटन से लेकर कला व संस्कृति से जुड़े विषयों पर नियमित लेखन करते हैं)