Tuesday, April 30, 2024
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सूखती नदियों की समस्या

भारत ऐसे उष्ण और मौसमी वर्षा वाले राष्ट्र-राज्य (देश) है जिसमें नदियों की महान उपादेयता है। इन्हीं नदियों के किनारे भारतीय सभ्यता का विकास हुआ है और समकालीन में देश की विकास में नदियों का योगदान बहुत है। इन नदियों के जल संरक्षण एवं सदुपयोग से बाड़ और सुखा का स्थाई समाधान निकाला जा सकता है, बरन संभावित जल संकट से निवारण किया जा सकता है।

जल- संपदा की दृष्टि से भारत की गणना वैश्विक स्तर के ऐसे देश में होती है जहां पर बृहद आबादी होने के बावजूद उसी अनुपात में विपुल जल के भंडार अमूल्य धरोहर के रूप में उपलब्ध है। गंगा की पवित्रता और व्यक्तित्व के पूजनीय स्वरूप का गणना हमारे मनीषी, साधु संत और समाज वैज्ञानिकों ने किया था, उसी पूजनीय और पवित्र स्वरूप को अवैज्ञानिक दृष्टिकोण, अतार्किक उपादेयता,आर्थिक दोहन प्रशासनिक भ्रष्टाचार, बड़बोले राजनीतिक माफियाओं के कार्य व्यवहार और राजनीतिक अदूरदर्शिता के कारण नदियों के समक्ष संकट और समस्या आ रही है।

गंगा नदी तंत्र का विस्तार देश के एक चौथाई भूभाग पर पाया जाता है।इससे उपजाऊ मैदान का निर्माण होता है जो भारत के अन्न भंडार और सर्वाधिक जनसंकुल क्षेत्र है। गंगा नदी के तट के सहारे महत्वपूर्ण नगर स्थित है एवं नदी जल का उपयोग सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन,औद्योगिक उपयोग और पेयजल के लिए किया जाता है ।

अद्यतन केंद्रीय जल आयोग के प्रतिवेदन में कहा गया है कि देश की 13 नदियों में जल- संकट आ चुका है। इन नदियों में गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, नर्मदा, तापी, साबरमती, गोदावरी, महानदी और कावेरी जैसी नदियां हैं।इन नदियों के अतिरिक्त प्रादेशिक स्तर की भी अधिकांश क्षेत्रीय नदियां सूख रही हैं या फिर गंदे नालों में तब्दील हो रहे हैं। उपर्युक्त 13 नदियां 11 राज्यों के लगभग 2.86 लाख गांवों को पीने का पानी और सिंचाई के लिए जल देती हैं।

स्टील प्लांटों से निकला तेजाब के द्वारा मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र की नदियों के जल को प्रदूषित करके अम्लीय बना दिया है। उत्तर प्रदेश की गोमती नदी एवं अनेक तालाबों का जल प्रदूषण हो करके जहरीला एवं विषाक्त होता जा रहा है जिससे इनमें मछलियों की संख्या निरंतर घटती जा रही है। केंद्रीय जल आयोग के हालिया प्रतिवेदन के अनुसार, भारत के 150 प्रमुख जलाशयों में जल संग्रहण क्षमता से 36% कम जल है, वही 86 जलाशयों में पानी 40% या उससे कम है।

सांस्कृतिक उपादेयता की दृष्टि से गंगा भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी है। गंगा का उद्गम उत्तरकाशी जनपद के 3900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गोमुख के निकट गंगोत्री हिमानी से होता है। इसे इन जगहों पर भागीरथी के नाम से जाना जाता है। गंगा की सांस्कृतिक उपादेयता के साथ धार्मिक आस्था का भी विषय है। यह 2525 किलोमीटर (उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में 1450 किलोमीटर, बिहार में 445 किलोमीटर एवं पश्चिम बंगाल में 520 किलोमीटर है)। यह देश की सबसे पवित्र नदी है। इसको गंगोत्री हिमनद से जल मिलता है, परंतु 87 साल में 30 किलोमीटर लंबे हिमखंड से लगभग पौने दो किलोमीटर हिस्सा पिघल चुका है।

पंडित गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान अल्मोड़ा के वैज्ञानिकों का मानना है कि गंगोत्री हिमनद का अगला हिस्सा टूटकर गिरा है, उसमें 2014 से बदलाव नजर आ रहा था। वैज्ञानिक इसका प्रमुख कारण चतुरंगी और रक्तबर्ण हिमखंड का गोमुख हिमखंड पर बढ़ता दबाव मान रहे है। गंगा के उद्गम स्रोतों के हिमखंड के टूटने का सिलसिला बना रहता है तो गंगा की अविरलता प्रभावित होने के साथी गंगा के विलुप्त होने का खतरा भी बढ़ता चला जाएगा।

इस समस्या पर केंद्रीय जल आयोग ने घटते पानी की जानकारी दी है। गंगा की कुल लंबाई 2525 किलोमीटर है, अपवाह क्षेत्र 951600 वर्ग किलोमीटर और औसत प्रवाह 45904 करोड़ घन मीटर है। भूमंडलीय तापन और नैनो पार्टिकल के कारण इसके अपवाह क्षेत्र और औसत प्रवाह पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।

गंगा के जल भराव क्षेत्र में खेतों के बीच-बीच कई निजी कंपनियों ने बोतल बंद पानी के लिए बड़े-बड़े नलकूपों से पानी खींचकर मोटा मुनाफा कमा रही है, वहीं खेतों में खड़ी फसल सूखने का काम कर रही है। जल भराव क्षेत्र का सिकुड़ना नदियों के अस्तित्व को कायम रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण चुनौती है। जल भराव क्षेत्र सिकुड़ने से अतिक्रमण की संभावनाएं बढ़ जाती है, जिससे नागरिक समाज विक्षोभीत हो जाता है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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