साहित्यकार रामेश्वर शर्मा “रामू भैया” सदैव हंसते-हंसाते रहते हैं। ये ऐसे साहित्यकार हैं जो सभी को बिना तेल में तले साहित्य में माघ के मंगोड़े और पौष के पकोड़े परोसने में सिद्धहस्त हैं। इनके ये मंगोडे आलू, प्याज और दाल के नहीं होते वरन आध्यात्म और साम्यिकता की चासनी में लिपटे होते हैं। जीवन के 74 बसंत देख चुके कोटा के ही नहीं राजस्थान के विख्यात साहित्यकार रामेश्वर शर्मा ‘रामू भैया’ पिछले चार साल प्रतिदिन साहित्य के इन मगोड़ों को पाठकों को परोस रहे हैं। हाल ही में पिछले कुछ दिनों से मैं इनसे जुड़ा और मेरे व्हाट्सअप पर इनके लिखे “माघ के मंगोडे” पढ़ कर इनकी सृजनशीलता से प्रभावित हुआ।
** माघकृष्ण, तिथि सप्तमी, भई भोर गुरुवारी
धन्य धन्य छविकार धन्य है, उनकी छविकारी
उनकी छविकारी को रामू, पहुंचे नमन हमारी
इक लीला के भाव बनाते, नानाभांति प्रकारी
** ऊखललीला करते प्रायः, दिखे रूँआसा नटखट
किन्तु आज तो झलक रही, प्रतिरोधिया भड़भट
प्रतिरोधिया भड़भट देखो, मुख पर नहीं
रुलाई
माँ के प्रति भी सहजविरोधी, देता भाव दिखाई
रामूभैया “बालक मन” का, यह भी है इक पक्ष
जिसको प्रस्तुति देने मे यहाँ, छविकार यहदक्ष
इनसे चर्चा का सिलसिला उक्त “माघ के मंगोडे” को ले कर हुआ। ये बताते हैं की दैनिक लिखना इनकी आदत बन चुकी है। इससे इनकी लेखन की क्षुधा शांत होती है। यूं इन्होंने कक्षा 9 से स्कूल की बाल सभाओं में लिख कर सुनना शुरू किया। जैसे-जैसे लिखते रहे लेखन में परिपक्वता आती गई। समय के साथ-साथ बड़े साहित्यकारों के सानिध्य में लेखन में निखार आया। कुछ और बानगी देखिए…
** माघकृष्ण की शनि अष्टमी,कोटिन जन ने जाना
तीस बरस के बाद खुला है, पुनः व्यास तहखाना
पुनः व्यास तहखाना खुलगया, शिवपूजन के संग
शिव भक्तों में हर्ष लहर है, और हर्षित लहरेँ गंग।
इनके सृजन का भी अनूठा अंदाज है। कहते हैं कि हर दिन समकालीन अथवा आध्यात्मिक विषय संबंधी अनेक चित्र सामने आते हैं, जो भी मन को भा जाता है उसी चित्र के आधार पर कलम चलने लगती है। चित्रों को आधार बना कर लिखे गए मंगोड़े….
**माघ शुक्ल तिथि पंचमी, बुध की भोरसुहानी
मिस्टर नटखटलाल कुए पर, आया भरने पानी
आया भरने पानी, लेकर, रज्जु-डोलची संगा
उसके चरन-परस से पनघट,व्हेरहा तट श्रीगंगा
देखा जाये तो लगती यह, कान्हा की नादानी
बिना बड़े के साथ, आगया, भरने को यूँ पानी
भरने को यूँ पानी औचक, आजाये यदि तंगा
पग फिसले और हो जाये, पनघट पर ही पंगा
रामूभैया! जिसके पद से, प्रकटी गंगा महारानी
आज उसी को, यहाँ खींचना, पड़ा कुएँ से पानी
माघ के मगोड़े की तरह पौष के पकोड़े और हिंदी महीनों के नाम पर अन्य नाम रख कर कुंडलियां लिखते हैं। गज़ल, छंद, काव्य आदि विधाओं के साथ-साथ सामयिक विषयों पर लिखने में पारंगत हैं। आपने राजस्थानी भाषा में भी गजलें लिखी हैं। किसी व्यक्तित्व पर चालीसा लिखने में भी महारत हांसिल है। राजस्थान के विद्वान साहित्यकार भगवती प्रसाद देवपुरा पर लिखी इनकी चालीसा पिछले माह नाथद्वारा के एक समारोह में देखने और सुनने को मिली, जो अद्भुत थी।
राजस्थानी भाषा में गज़ल लिखने भी आपकी सानी नहीं है। इस पर कथाकार और समीक्षक विजय जोशी का अभिमत है “ऐसी अड़सठ ग़ज़लों के संग्रह में अपने समय के सच के कितने ही आयाम हैं जो रचनाकार की अनुभूति के वे प्रमाण हैं जो उन्होंने देखे और महसूस करे। फिर चाहे वह सामाजिक सरोकार हो या पारिवारिक सन्दर्भ, मानवीय संवेदना के प्रसंग हो या आध्यात्मिक संचेतना के भाव सभी में ‘रामू भय्या’ ने अपनी दृष्टि और समझ से आस-पास के परिवेश को सहजता से उकेरा है।”
साहित्य के क्षेत्र में आपने राजस्थानी भाषा में चार, हिंदी भाषा में 10 कृतियां और लगभग 50 कीर्ति कुसमावली चालीसा का लेखन और प्रकाशन कराया है। हिंदी साहित्य में आपने सबसे प्रथम कृति तेरे दुखड़े मेरे दुखड़े (काव्य संग्रह) लिखी। इसके पश्चात समय-समय पर आपकी रोकड खाते सावन के (मुक्तक), भादो के भगवान (मुक्तक), पद्य कथा संग्रह,ज्योतिष के वातायान से, हरिद्वार से द्वार द्वार तक,कमसिन के मयखाने में,हम आबू की और चले,सतयुग की तैयारी कर और तेरा एक भरोसा राम की कृतियों का प्रकाशन हुआ है।
राजस्थानी साहित्य में आपकी कृतियां म्हाँ सूँ असी बणी, चालाँ सूरज ले’र हाथ में, लाताँ लाताँ पींदा गळ ग्या और उल्टी बाताँ करै गोखड़ा लोकप्रिय हुई हैं। ज्योतिष साहित्य में भी आपकी असीम रुचि है।
आपको देश की विभिन्न संस्थाओं द्वारा शताधिक सारस्वत सम्मान यथा ज्योतिष काव्य गज़ल के लिए स्वर्ण पदक,रजत पदक और समाज रत्न जैसे महत्वपूर्ण अलंकरणों से नवाजा जा चुका है, जो किसी भी साहित्यकार के लिए उसके जीवन की अमिट पूंजी हैं।
प्रोत्साहन:
आपने स्वयं तो साहित्य जगत में नाम कमाया ही सही साथ ही कई नवोदित साहित्यकारों की प्रेरणा का स्रोत भी बने। आपके मार्ग और प्रोत्साहन से आज अनेक अनेक साहित्यकार पुष्पित और पल्लवित हैं। आप हर संभव साहित्यकारों को प्रोत्साहन के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
रामू भैया के नाम से विख्यात रामेश्वर शर्मा का जन्म 1 अक्टूबर 1950 को बूंदी जिले के लाखेरी में पिता प.भंवर लाल शर्मा और माता भूलीबाई के परिवार में हुआ। आपने विज्ञान विषय में स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की। आपका देश की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से गहरा जुड़ाव है। चलते-चलते राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत एक मंगोडे की बानगी भी देखते हैं…
लगने लगती स्वतः फड़कने, राष्ट्रभुजाएँ प्यारी
देख-देख कर, राष्ट्र-सेविकाओं की यूँ तैयारी
आर्यपुत्रियों के पौरुष की,पग-पग मिले निशानी
चित्र आज का याद कराता,उनकी अमर कहानी
रामूभैया! शैशव से ही, राष्ट्रप्रेम की लेकर आग
घर घर राष्ट्रसेविका दीखे,गाती नूतन राघव राग।
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