प्रायः हमारी मानसिकता में ये बात बैठी होती है कि हमारे देश के संत-महात्मा कथा प्रवचनों से ही अपने भक्तों से जुड़े रहते हैं, सामाजिक कार्यों में उनकी कोई रुचि नहीं होती। लेकिन अगर कोई व्यक्ति मुंबई से किलोमीटर दूर डांग जिले के सापुतारा जैसे आदिवासी बहुल गाँव में जाकर वहाँ बना महर्षि सांदिपनी विद्या संकुल देखेगा तो उसकी ये धारणा छिन्न भिन्न हो जाएगी और वह भाईश्री रमेश जी ओझा द्वारा से आदिवासी बच्चों के लिए शुरु किए गए इस स्कूल को देखकर हैरान रह जाएगा। यह स्कूल जब सरकारी था तो इसमे हर साल बच्चे कम होते जा रहे थे और 2013 तक तो ये नौबत आ गई कि स्कूल में मात्र 14 बच्चे रह गए थे। इस स्कूल में डांग जिले के आदिवासी बच्चे दूर-दूर से पढ़ने आते थे। गुजरात की तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान में मध्य प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदी बेन पटेल को जब इस स्कूल की इस दयनीय दशा के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने भाईश्री से निवेदन किया कि आप अपने भक्तों का सहयोग लेकर इस स्कूल का उध्दार करें ताकि गरीब आदिवासी बच्चे पढ़ाई से वंचित न हों।
भाईश्री ने यह बात सहज रुप से अपने प्रिय भक्त दुर्लभ जी गोयानी से कही। गोयानी जी गुजरात के एक प्रमुख हीरा कारोबारी होने के साथ ही अपने पैतृक गाँव परवड़ी को मॉडल गाँव के रुप में विकसित कर चुके थे और उन्होंने उस गाँव में भाईश्री की भागवत कथा का भी आयोजन करवाया था। भाईश्री की प्रेरणा से ही दुर्लभजी गोयानी ने वर्ष 2011 में गुजरात के अमरेली जिले के राजुला तालुका में भाईश्री के जन्मस्थान अमरेली में श्री ब्रज भागीरथी चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से दुर्लभजी गौहानी ने अपने पुरुषार्थ, परिश्रम, श्रध्दा, लगन और संकल्प की शक्ति से 25 एकड़ क्षेत्र में 35 करोड़ की लागत से देवका विद्यापीठ के नाम से शानदार विद्यालय बनाकर भाईश्री के प्रति अपना अहोभाव व्यक्त किया था।
भाईश्री ने सापुतारा के इस स्कूल के उध्दार की जिम्मेदारी श्री दुर्लभजी गोयानी को दे दी। गोयानी जी ने अपने पुरुषार्थ, लगन और रात-दिन मेहनत करके मात्र 80 दिन में इस स्कूल के सभागार, प्रार्थना हाल और शानदार रसोईघर का निर्माण बीएसएसटी के ट्रस्टी ब्लू डार्ट के श्री तुषार भाई जानी व सुप्रीम इंडस्ट्रीज़ के श्री बजरंगलाल जी तापड़िया ने दिल खोलकर आर्थिक सहयोग दिया। श्री दुर्लभ गोहानी अपने आप में एक ऐसी दुर्लभ शख्सियत हैं जो भवन निर्माण, टेक्स्टाईल से लेकर बड़े संयंत्रों के निर्माण कार्य से जुड़े हैं। उनकी खासियत ये है कि उन्होंने इसके शिलान्यास के दिन ही इसके पूर्ण होने यानी उद्घाटन की तिथि तय कर दी थी, और अपने कहे अनुसार 80 दिन में ये भवन बनकर तैयार हो गया। अभी सापुतारा के इस विद्यालय में 48 कमरे हैं। 12 जून को इसके उद्घाटन समारोह में भाग लेने गुजरात के मुख्यमंत्री श्री विजय रुपाणी और मध्य प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल आई थी। बच्चों के लिए भोजन, कंप्यूटर लैब, प्रार्थना हाल के निर्माण के बाद गोयानी जी ने अब स्कूल के 500 बच्चों के छात्रावास के लिए 32 हजार वर्गफीट क्षेत्र में 48 कमरों के निर्माण का संकल्प ले लिया है और इसके उद्घाटन के लिए ठीक 184 दिन बाद की तारीख घोषित भी कर दी है।
जो स्कूल बंद होने के कगार पर था और जहाँ एक-दो शिक्षक और 14 बच्चे ही बचे थे, वो स्कूल अब किसी नंदन वन की तरह खिल उठा है। आज यहाँ 400 बच्चे जब प्रार्थना करते, पढ़ाई करते और स्कूल के प्रांगण में धमा-चौकड़ी मचाते दिखते हैं तो ऐसा लगता है मानो किसी देवदूत ने अभावों, गरीबी और विवशता के मारे इन आदिवासी बच्चों को अपना आश्रय दे दिया है। इन बच्चों का अनुशासन और संस्कार देखकर सुखद आश्चर्य होता है। 5 से 15 साल के ये बच्चे जिस अनुशासन और संजीदगी से रहते हैं, ऐसा लगता है कि अपने जीवन के एक एक क्षण के प्रति अहोभाव व्यक्त कर रहे हों।
गरीब, साधनहीन आदिवीसी माता-पिताओं के ये बच्चे जिस प्रफुल्लता, उत्साह और मस्ती के साथ यहाँ पढ़ाई करते हैं और जो शैक्षणिक, पारिवारिक व आत्मीय माहौल इन्हें यहाँ मिलता है ऐसा माहौल और ऐसी शिक्षा शहरों में लाखो रुपये फीस देकर पढ़ने वाले बच्चों को भी नसीब नहीं है। इसके साथ ही आसपास का शानदार प्राकृतिक सौंदर्य तो ऐसा पसरा है जैसे प्रकृति ने इस पूरे क्षेत्र को अपनी तमाम श्रेष्ठता लुटा दी है। चारों ओर खूबसूरत पहाड़ियाँ, बगल में ही शानदार सरोवर अपने आप में एक वरदान की तरह है।
इस विद्यालय को सफलतापूर्वक चलाने का श्रेय इसके प्राचार्य श्री धर्मेश जी को भी जाता है। ये स्कूल जब सरकारी था तब वे इसके प्राचार्य थे। गोयानी जी ने उन्हें इस बात के लिये प्रेरित किया कि वे इसी स्कूल से जुड़े रहें और यहाँ आने वाले बच्चों को प्रोत्साहित करें। विगत 4 वर्षों से वे अपनी जिम्मेदारी किस सहजता और समर्पण से निभा रहे हैं, इस स्कूल की सफलता और बच्चों का आत्मविश्वास सका जीवंत उदाहरण है।
इस स्कूल की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि बच्चों के पास न तो मोबाईल है न टीवी। स्कूल की कक्षाओं में पढ़ने के बाद उनका पूरा समय स्कूल के खुले आंगन में खेलने, पढ़ने और इनके लिए बने शानदार रसोई घर में बने स्वादिष्ट खाने का आनंद लेने में जाता है। विद्यालय में कंप्यूटर लैब तो ऐसी गज़ब की है कि इसे देखकर लाखों की फीस देने वाले बच्चे और उनके माँ-बाप भी ईर्ष्या से भर जाएँ। हर कक्षा में डिजिटल पढ़ाई की सुविधा उपलब्ध है। बच्चों को पढ़ाई गुजराती में करवाई जाती है, ताकि वो अपनी मातृभाषा में ज्यादा सहजता से शिक्षा ग्रहण कर सकें। कंप्यूटर और डिजिटल लैब में अंग्रेजी, हिंदी और गुजराती में पढ़ने, सुनने की सुविधा उपलब्ध है।
इस स्कूल के बच्चों ने भी स्कूल के संस्थापकों को निराश नहीं किया। सरकारी होने पर जहाँ इस स्कूल में मात्र 25 प्रतिशत परिणाम आता था, अब यहाँ बोर्ड की परीक्षाओं का परिणाम 85 प्रतिशत तक पहुँच गया है।
सूरत के श्री दुर्लभ गोयानी जी, श्री दीपक जी और डॉ. संजय मेहता यहाँ नियमित रूप से आते हैं और साथ ही अपने साथ किसी विशिष्ट व्यक्ति को लेकर आते हैं। जो इनके साथ आता है वह इसके लिए योगदान देने के लिए उतावला हो जाता है। दीपक जी जो खुद सूरत में अपना स्कूल चलाते हैं, वे अपने साथ स्कूल के गणित और अंग्रेजी के शिक्षकों को लेकर भी आते हैं।
सूरत के जाने माने हीरा व्यापारी श्री सावजी भाई ढोलकिया, जो अपने कर्मचारियों को कार व फ्लैट उपहार में देने के लिए दुनिया भर में चर्चित हुए हैं, उन्होंने इन 415 बच्चों के भोजन की जिम्मेदारी ली है। जाहिर है जब ऐसे व्यक्ति ने भोजन की जिम्मेदारी ली है तो भोजन की गुणवत्ता और स्वाद कैसा होता होगा।
मुंबई के श्री भागवत परिवार के 15 सदस्य पूज्य श्री वीरेन्द्र याज्ञिकजी के मार्गदर्शन में तीन दिन की सापुतारा यात्रा पर गए और इस पूरे प्रकल्प को देखकर हैरान रह गए। श्री भागवत परिवार के अध्यक्ष एवँ देश की तीसरी सबसे बड़ी इन्वेस्टमेंट कंपनी बोनांझा के श्री एसपी गोयल ने कहा कि मुंबई में जो लोग लाखों रुपये देकर अपने बच्चों को महंगे स्कूलों में पढ़ा रहे हैं उन बच्चों को भी ऐसी सुविधा, ऐसा वातावरण और इतना शानदार परिसर पलब्ध नहीं है।
और सबसे बड़ी बात ये है कि पूज्य भाईश्री के सांदिपनी ट्रस्ट द्वारा गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों में संचालित किए जा रहे इन शिक्षा संस्थानों की के सुव्यवस्थित संचालन की जिम्मेदारी अहमदाबाद में रह रहे उनके उनके भाई श्री गौतम जी और मुंबई में रह रहे श्री करुणा शंकर जी पूरी निष्ठा, सेवा और समर्पण की भावना के साथ निभा रहे हैं। गौतम भाई बताते हैं कि सांदिपनी ट्रस्ट द्वारा जो अन्य संस्थान चलाए जा रहे हैं वो भी अपने आप में अद्भुत हैं।