Wednesday, May 22, 2024
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अभूतपूर्व अच्युत सामंत

अच्युत सामंत एक जाना-पहचाना नाम है। घर-घर में लोग उन्हें प्यार करते हैं क्योंकि जिस इंसान ने मात्र 4 साल की शैशव उम्र में अपने पिता को खो दिया, विधवा मां और 7 भाई-बहनों के साथ पूरी गरीबी में अपना जीवन बिताया, फिर उसने 25 साल की उम्र में कीट एंड कीस जैसी अनोखी शैक्षिक संस्था शुरू की और उसकी गुणवत्ता को दुनिया तक पहुंचने में कामयाब हुआ । अच्युत सामंत की समर्पित जनसेवा की चर्चा कंधमाल लोकसभा संसदीय क्षेत्र के आसपास के लोगों के बीच हो रही है।

प्रख्यात शिक्षाविद्, सामाजिक कार्यकर्ता और सांसद अच्युत सामंत शिक्षा के माध्यम से गरीबी उन्मूलन के लिए काम कर रहे हैं। अपने काम के कारण, अच्युत सामंत ओडिशा में एक घरेलू प्रियदर्शी नाम है। लगभग 31 वर्षों से वे अपनी निस्वार्थ समाज सेवा के बदौलत देश-विदेश के विभिन्न स्थानों पर सबके चहेते बन गये हैं। वे लगभग एक वर्ष के लिए बीजू जनता दल के राज्यसभा सांसद और 5 वर्ष के लिए कंधमाल संसदीय लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए हैं। वर्तमान लोकसभा आम चुनाव में वे कंधमाल लोकसभा संसदीय क्षेत्र से बीजद सांसद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। आइये जानते हैं उनके बारे में विस्तार से …

प्रश्न: आपने हाल ही में दूसरी बार लोकसभा उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है। शपथ पत्र में आपने बताया है कि आपके पास कोई विशेष संपत्ति नहीं है। 2019 में भी आपने जो हलफनामा दिया था उसमें कोई खास संपत्ति नहीं थी। क्या आपकी संपत्ति  बढ़ नहीं रही है?
उत्तर: वास्तव में, मैंने शपथ पत्र में जो बताया है वह बिल्कुल सच है। दो वैश्विक संस्थानों,कीट-कीस के अलावा और भी कई संस्थान मेरे द्वारा स्थापित किये गये हैं, लेकिन आज तक मेरे नाम पर कोई जमीन, घर, सोना या एक भी कार आदि नहीं है। मेरी मृत्यु तक कोई भी उपरोक्त संपत्ति मेरे नाम नहीं कर सकेगा।

प्रश्न: आपने घर, जमीन, सोना या कोई संपत्ति अपने नाम क्यों नहीं किया?
उत्तर: शुरू से ही मैंने खुद को सरल, शुद्ध, ईमानदार , सत्यनिष्ठ और पूरी तरह से निष्ठावान बनाया है। ये भगवान जगन्नाथ के आशीर्वाद से ही संभव हो पाया है। भौतिकवादी संसार का लोभ, वासना, माया और मोह मुझे छू नहीं सकती। इसलिए मैं जगन्नाथ का आभारी हूँ। मैं किराये के मकान में अकेला रहता हूँ। मेरी ज़रूरतें काफी कम हैं।

प्रश्न: फिर आप कैसे सब-कुछ करते हैं?
उत्तर: मेरी दिनचर्या बहुत सरल है। आपको शायद यकीन न हो। पिछले 31 वर्षों से मैं एक किराये के घर में रह रहा हूँ जिसमें कभी रसोई नहीं हुई है। 1992 से 2008 तक मैं हमेशा स्वर्गीय प्रद्युम बल के घर पर दोपहर का भोजन करता था। मैं इतने सालों से अपनी मामी शाश्वती बाल के हाथ का बना खाना खा रहा हूँ। 2009 से, मेरी छोटी बहन इति के घर पर मां स्थायी रूप से रह रही थी, इसलिए मैं हर दिन इति के घर पर दोपहर का भोजन और रात का खाना खाता हूं। अधिकांश दिन मैं मठ, मंदिर जाता हूँ जहाँ मुझे कुछ धार्मिक भोजन मिलता है और मैं अपना काम-काज चलाता हूँ। इस प्रकार मेरा जीवन जीने का तरीका बहुत सरल है। आरामदायक जीवन क्या होता है, यह मैंने नहीं जाना या अनुभव नहीं किया।

प्रश्न: आपने अपने लिए कुछ नहीं किया, क्या अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर कुछ नहीं किया?
उत्तर: मेरे छह और भाई-बहन हैं। सचमुच वे सब इतने अच्छे हैं कि उन्होंने मुझसे कभी कोई आशा नहीं की; न ही मैंने उन्हें कुछ दिया है। यदि आप दूसरों से पूछें तो आप समझ सकते हैं कि मेरी तीन बहनें जो मलकानगिरी, बालेश्वर और केंदुझर में रहती हैं, बहुत निम्न मध्यम वर्ग से भी नीचे की स्थिति में जी रही हैं। मेरे दो भाई भी नौकरी करते हैं। बड़ी बात यह है कि मेरे द्वारा स्थापित इन दोनों संस्थानों में मेरे परिवार का कोई भी सदस्य कार्यरत नहीं है। यहां तक कि मेरे दो भाइयों के दो बेटे और बेटियां भी अन्य कंपनियों में छोटे कर्मचारी के रूप में काम कर रहे हैं।

प्रश्न: आप जो चाहते थे वह कर सकते थे। कुछ भी नहीं किया गया है।
उत्तर: मेरे पिता बहुत गरीब थे। मैं बहुत गरीब पृष्ठभूमि से आता हूं। अगर मैंने अपने द्वारा स्थापित संस्था से पैसा लेकर राज्य में और राज्य के बाहर संपत्ति बनाई होती तो मेरी अंतरात्मा को यह मंजूर नहीं होता। लेकिन आज मैंने उस पैसे से 80 हजार आदिवासी बच्चों को नेक, जिम्मेदार और चरित्रवान इंसान बनाया है। यह मेरी संपत्ति है। लोगों का प्यार ही मेरा खजाना है। मुझे और क्या संपत्ति चाहिए?

प्रश्न: क्या कोई अन्य संपत्ति है जिसके बारे में आप उत्साहित हैं?
उत्तर: मेरी सबसे बड़ी संपत्ति पूरे देश के लोगों का प्यार है, आत्मीयता है। मेरी सबसे बड़ी संपत्ति सरल, शुद्ध, परोपकारी और परोपकारी मेरी संवेदनशील भावना है, जो जगन्नाथ ने मुझे प्रदान की है। यह मुझे और अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है।

प्रश्न: कार्तिक पांडियन ने हाल ही में एक बैठक में आपकी सेवा भावना की काफी सराहना की।
उत्तर: हाँ। दरअसल कार्तिक पांडियन ने मेरे दिल की बात कही। मैं 31 साल से समाज सेवा कर रहा हूं। अब जब मैं सांसद बन गया हूं तो मैंने समाज सेवा को और व्यापक बना दिया है। भले ही मैं पिछले 6 साल तक राज्यसभा और लोकसभा में सांसद रहा, लेकिन कोई यह नहीं कह सकता कि मैंने किसी से कोई एक चॉकलेट या पैसा लिया हो। मैंने आज तक किसी से कोई अनैतिक सामग्री स्वीकार नहीं की है और जीवनभर जानबूझ कर किसी से स्वीकार नहीं करूंगा।

प्रश्न: आपने अपने जीवन में कौन -सी संपत्ति अर्जित की है?
उत्तर: मैं केवल गरीबों, लाचारों, उपेक्षित मरहूम और भूखे लोगों को खुले हृदय और मन से निस्वार्थ दान देता हूं और अपने संस्थान की भलाई और आध्यात्मिक तरीके से लोगों की भलाई के लिए भगवत कर्म करता हूं। मैं पिछले 31 वर्षों से समाज और लोगों के लिए प्रतिदिन 18-18 घंटे काम कर रहा हूं। मेरे मन में उस काम के प्रति बहुत सम्मान है। सिर्फ मुझे ही नहीं, बल्कि जो भी इस तरह काम करेगा, उसे भी आदर और सम्मान दिया जाएगा।

जाने माने शायर राजेश रेड्डी का ये शेर अच्युत सामंत पर एकदम सटीक बैठता है….
आप इन हाथों की चाहें तो तलाशी ले लें
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं

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नोबेल पुरस्कार विजेता ब्राजीली कवयित्री मार्था मेरिडोस की अमर कविता

कुछ रचनाएँ लेखकों और कवियों को अमर कर देती है। बहुत कम शब्दों में कई बार कवि ऐसी बात कह जाते हैं जो हजारों शब्दों से भी नहीं समझाई जा सकती। नोबेल पुरस्कार विजेता ब्राजीली कवियत्री मार्था मेरिडोस ने अपनी कविता “You Start Dying Slowly” – अप धीरे धीरे मरने लगते हैं में मनुष्य के व्यक्तित्व के शुष्क पहलुओं को बहुत ही कल्पनाशीलता के साथ प्रस्तुत किया है।

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:…
– करते नहीं कोई यात्रा,
– पढ़ते नहीं कोई किताब,
– सुनते नहीं जीवन की ध्वनियाँ,
– करते नहीं किसी की तारीफ़।

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, जब आप:…
– मार डालते हैं अपना स्वाभिमान,
– नहीं करने देते मदद अपनी और न ही करते हैं मदद दूसरों की।

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:…
– बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के,
– चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे,
– नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार,
– नहीं पहनते हैं अलग-अलग रंग, या
– आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान।

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप…
– नहीं महसूस करना चाहते आवेगों को, और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को,
-वे जिनसे नम होती हों आपकी आँखें, और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को।

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:…
-नहीं बदल सकते हों अपनी ज़िन्दगी को,
-जब हों आप असंतुष्ट अपने काम और परिणाम से,
– अग़र आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को,
– अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का,
– अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को,
-अपने जीवन में कम से कम एक बार,
-किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की..
तब आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं..

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साहित्य के गलियारों में बदले हुए नाम / उपनाम

याद आता है कि अपने साहित्य के क्षेत्र में भी ऐसा बहुत बार हुआ है कि साहित्यकार छद्म नाम से लिखा करते थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र को पुनर्जागरण का अग्रदूत कहा जाता है। उन्होंने ‘रसा’ नाम से गजलें लिखीं। कुछ ने तो दो-तीन नामों का भी प्रयोग किया। जयशंकर प्रसाद भी पहले ‘झारखंडी’ और ‘कलाधर’ के नाम से लिखते थे। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ‘सुकवि किंकर’ और ‘कल्लू अल्हैत’ नाम से लिखा। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘व्योमकेश शास्त्री’ और ‘बैजनाथ द्विवेदी’ नामों का प्रयोग किया। मैथिलीशरण गुप्त ने ‘रसिकेंद्र’ और ‘मधुप’ उपनाम से सृजन किया। इसी तरह, गया प्रसाद शुक्ल ‘सनेही’, ‘त्रिशूल’, ‘तरंगी’ उपनाम से प्रतिष्ठित हुए। जगन्नाथ दास आज भी ‘रत्नाकर’ और ‘जकी’ नाम से जाने जाते हैं। शरद जोशी शुरूआत में छद्म नामों से अखबारों और पत्रिकाओं में लिखते थे

नागार्जुन ने ‘यात्री’ के नाम से बहुत कविताएं लिखीं। अज्ञेय ने भी ‘कुट्टीचातन’ नाम से निबंध लिखे तो पाण्डेय बैचेन शर्मा उग्र ने अष्टावक्र नाम से कहानियां लिखी डॉ रामविलास शर्मा का अगिया बैताल आज भी चर्चा में बना हुआ है |अमृतलाल नागर ने तस्लीम लखनवी छद्मनाम से पत्र -पत्रिकाओं ,में लेखन किया | आश्चर्य की बात यह है कि उन्हें असली नाम के मुकाबले इस नाम से लिखने पर अधिक पारिश्रमिक मिलता था। लेकिन इन उपनामों और छद्म नामों में लेखन के बाद भी आज इन साहित्यकारों की पहचान उनके मुख्य नाम से ही होती है।

कहने का मतलब यह कि इनके नाम बदलने के पीछे कोई स्वार्थ नहीं था। दूसरी ओर, यह जगजाहिर तथ्य है कि प्रख्यात लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि ने बार-बार कहे जाने पर भी अपना सरनेम ‘वाल्मीकि’ नहीं बदला और एक अदद घर के लिए दर-दर भटकते रहे।नाम परिवर्तन किसी भी व्यक्ति का निजी मामला हो सकता है और किसी भी दूसरे व्यक्ति को इस बात पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

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13 साल की मासूम उम्र में मात्र 13 रुपये लेकर मुंबई आए थे प्रकाश मेहरा

मात्र 13 साल की उमर में तब 13 रुपये लेकर वो अभिनेता बनने के लिए घर से मुंबई भाग आये। लेकिन गुजारा करना आसान नहीं था, भूखे पेट स्टेशन पर सोये, छोटे-मोटे काम कर गुजारा किया। फिर जैसे-तैसे सिनेमा में आये और सितारों को चाय-पानी परोसने जैसे छोटे-मोटे काम किये। वह काबिलियत और किस्मत के धनी थे, तभी तो सितारों को चाय परोसते-परोसते वह पहले प्रोडक्शन कंट्रोलर बने और फिर डायरेक्टर को असिस्ट करने लगे। उनकी झोली में पहली मूवी आई, जिसका नाम ‘हसीना मान जाएगी’ (1968) है। शशि कपूर और बबीता की फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट हो गई और बतौर निर्देशक प्रकाश मेहरा छा गये। फिर उन्होंने 1971 में फिल्म ‘मेला’ और 1972 में ‘समधी’ बनाई। ये फिल्में भी जबरदस्त तरीके से सफल रहीं। मात्र पांच सालों में प्रकाश मेहरा सिनेमा के बेहतरीन निर्देशकों में शुमार हो गये।

फिर आई ‘जंजीर’ की बारी, हालांकि, शायद ही आपको पता हो कि पहले प्रकाश मेहरा ‘जंजीर’ में धर्मेंद्र को कास्ट करना चाहते थे। लिकन फिर एक्टर प्राण ने उन्हें अमिताभ को लेने की सलाह दी। प्रकाश अपना घर और बीवी के गहने गिरवी रखकर यह फिल्म बना रहे थे। उस वक्त अमिताभ बच्चन पर फ्लॉप का टैग लग चुका था। फिर भी उन्होंने रिस्क लेकर अमिताभ को इस फिल्म में कास्ट किया। सिनेमा से जुड़े कई हस्तियों ने प्रकाश मेहरा को बिग बी को न कास्ट करने की सलाह दी। मगर वह पीछे नहीं हटे और कैसे भी करके फिल्म की शूटिंग स्टार्ट की। शुरू में लगा कि मूवी नहीं चलेगी, लेकिन जब आई तब इतिहास रच दिया। फिर ‘लावारिस’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘नमक हलाल’, ‘हेरा फेरी’ जैसी फिल्मों का निर्देशन करने वाले प्रकाश मेहरा का 17 मई 2009 को निमोनिया और मल्टीपल ऑर्गन फेलर की वजह से निधन हो गया था।

साभार- https://www.facebook.com/share/p/JdvZigY5BcDYenTq/?mibextid=xfxF2i  से 

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कोटा लाइब्रेरी ने अस्थायी असमर्थ के लिए घर पहुँट सेवा शुरू की

कोटा। राष्ट्रीय सार्वजनिक पुस्तकालय दिवस के अवसर पर, राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय कोटा ने अपनी आउटरीच सेवाओं की श्रेणी में एक और नवीन सेवा – “लाईब्रेरी सर्विसेज फॉर टेम्पोरेरी डीसएब्लड” का शुभारंभ किया है। यह सेवा, राजस्थान में अपनी तरह की पहली सेवा है, जो उन लोगों के दरवाजे तक किताबें पहुंचाने का लक्ष्य रखती है जो किसी बीमारी, दुर्घटनाजन्य फ्रैक्चर और इसी तरह की स्थितियों से गुजर रहे हैं। अर्थात अस्थायी असमर्थता के कारण पुस्तकालय का उपयोग नही कर पा रहे हैं |

इस सेवा के अंतर्गत बीमारी से ग्रस्त या किसी दुर्घटना से पीडीत व्यक्ति पुस्तकालय के ओपक से पुस्तक सर्च करके पुस्तकालय के वोलीएंटीयर पुस्तकाय सेवी नरेंद्र शर्मा (9414674746)एवं बिगुल कुमार जैन (7877977363)सेवानिवृत उप मुख्य अभियंता तापीय परियोजना के मोबाईल पर आग्रह कर पुस्तके प्राप्त कर सकते है |

संभागीय पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव ने इस सेवा की घोषणा करते हुए इसके उद्देश्य पर जोर दिया, जिसमें पुस्तकों के चिकित्सीय उपयोग—बिब्लियोथेरेपी—के माध्यम से तनाव को कम करना और स्वास्थ्य लाभ को बढ़ावा देना शामिल है। उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी व्यक्ति पढ़ने के आनंद और आराम से वंचित न हो, खासकर जब वे कठिन समय से गुजर रहे हों।”

नरेंद्र शर्मा एवं बिगुल कुमार जैन जैसे स्वयंसेवक इस नेक कार्य का समर्थन करने के लिए आगे आए हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि अस्थायी विकलांग पाठकों को उनकी किताबें समय पर और देखभाल के साथ मिलें। शर्मा ने व्यक्त किया, “यह देखकर दिल को सुकून मिलता है कि हमारा समुदाय जरूरत के समय एक-दूसरे का समर्थन करने के लिए एकजुट हो रहा है।”

डॉ शशि जैन सहायक पुस्तकालय अध्यक्ष ने बताया कि यह अभिनव सेवा चंडीगढ़ के टीएस स्टेट सेंट्रल लाइब्रेरी के सफल मॉडल से प्रेरित है, जो कोटा के लोगों पर समान सकारात्मक प्रभाव डालने का वादा करती है। जरूरतमंदों के घरों तक पुस्तकालय सेवाओं का विस्तार करके, यह पहल न केवल साक्षरता को बढ़ावा देती है बल्कि सामुदायिक समर्थन और सहयोग की भावना को भी प्रोत्साहित करती है।

राजस्थान में अपनी तरह की पहली सेवा के रूप में, कोटा सार्वजनिक पुस्तकालय की नई पहल उम्मीद की किरण और कठिनाइयों के समय में समुदाय द्वारा संचालित समर्थन की शक्ति का प्रतीक बनने के लिए तैयार है।

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वास्को डिगामा लुटेरा था, भारत को खोजने वाला नहीं

भारतीय इतिहास में वास्कोडिगामा के चरित्र के बारे में ये बातें हमें नहीं बताई गई हैं… 500 साल पुरानी बात है, भारत के दक्षिणी तट पर एक राजा के दरबार में एक यूरोपियन आया था। मई का महीना था, मौसम गर्म था पर उस व्यक्ति ने एक बड़ा सा कोट-पतलून और सिर पर बड़ी सी टोपी डाल रखी थी। उस व्यक्ति को देखकर जहाँ राजा और दरबारी हँस रहे थे, वहीं वह आगन्तुक व्यक्ति भी दरबारियों की वेशभूषा को देखकर हैरान हो रहा था। स्वर्ण सिंहासन पर बैठे जैमोरीन राजा के समक्ष हाथ जोड़े खड़ा वह व्यक्ति वास्कोडिगामा था जिसे हम भारत के खोजकर्ता के नाम से जानते हैं।

यह बात उस समय की है जब यूरोप वालों ने भारत का सिर्फ नाम भर सुन रखा था , पर हाँ… इतना जरूर जानते थे कि पूर्व दिशा में भारत एक ऐसा उन्नत देश है जहाँ से अरबी व्यापारी सामान खरीदते हैं और यूरोपियन्स को महँगे दामों पर बेचकर बड़ा मुनाफा कमाते हैं। भारत के बारे में यूरोप के लोगों को बहुत कम जानकारी थी लेकिन यह “बहुत कम” जानकारी उन्हें चैन से सोने नहीं देती थी… और उसकी वजह ये थी कि वास्कोडिगामा के आने के दो सौ वर्ष पहले (तेरहवीं सदी) पहला यूरोपियन यहाँ आया था जिसका नाम मार्कोपोलो (इटली) था ।

यह व्यापारी शेष विश्व को जानने के लिए निकलने वाला पहला यूरोपियन था जो कुस्तुनतुनिया के जमीनी रास्ते से चलकर पहले मंगोलिया फिर चीन तक गया था। ऐसा नहीं था कि मार्कोपोलो ने कोई नया रास्ता ढूँढा था बल्कि वह प्राचीन शिल्क रूट होकर ही चीन गया था जिस रूट से चीनी लोगों का व्यापार भारत सहित अरब एवं यूरोप तक फैला हुआ था। जैसा कि नाम से ज्ञात हो रहा है चीन के व्यापारी ने जिस मार्ग से होकर अपना अनोखा उत्पाद “रेशम” तमाम देशों तक पहुँचाया था उन मार्गों को “रेशम मार्ग” या सिल्क रूट कहते हैं । (आज की तारीख में यह मार्ग विश्व की अमूल्य धरोहरों में शामिल है)

मार्कोपोलो भारत में कई राज्यों का भ्रमण करते हुए केरल भी गया था। यहाँ के राजाओं की शानो शौकत, सोना-चाँदी जड़ित सिंहासन, हीरों के आभूषण सहित, खुशहाल प्रजा, उन्नत व्यापार आदि देखकर वापस अपने देश लौटा था। भारत के बारे में यूरोप को यह पहली पुख्ता जानकारी मिली थी।
इस बीच एक गड़बड़ हो गई, अरब देशों में पैदा हुआ इस्ला म तब तक इतना ताकतवर हो चुका था कि वह आसपास के देशों में अपना प्रभुत्व जमाता हुआ पूर्व में भारत तक पहुँच रहा था तो वहीं पश्चिम में यूरोप तक।

कुस्तुनतुनीया (Constantinople, वर्तमान टर्की) जो कभी ईसाई रोमन साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी, उसके पतन के बाद वहाँ ऊस्लिमों का शासन हो गया…. और इसी के साथ यूरोप के लोगों के लिए एशिया का प्रवेश का मार्ग बंद हो गया। क्योंकि ऊस्लिमों ने ईसाइयों को एशिया में प्रवेश की इजाजत नहीं दी।
अब यूरोप के व्यापारियों में बेचैनी शुरू हुई। उनका लक्ष्य बन गया कि किसी तरह भारत तक पहुँचने का मार्ग ढूँढा जाए। बात पुर्तगाल पहुँची।

एक नौजवान और हिम्मती नाविक वास्कोडिगामा ने अब भारत को खोजने का बीड़ा उठाया। अपने बेड़े और कुछ साथियों को लेकर निकल पड़ा समुद्र में और आखिरकार कुछ महीनों बाद भारत के दक्षिणी तट कालीकट पर उसने कदम रखा। खैर, अब यूरोप के व्यापारियों के लिए भारत का दरवाजा खुल चुका था। नये समुद्री मार्ग की खोज हो चुकी थी जो यूरोप और भारत को जोड़ सकता था। ।

सिंहासन पर बैठे जैमोरिन राजा से वास्कोडिगामा ने हाथ जोड़कर व्यापार की अनुमति माँगी, अनुमति मिली भी… पर कुछ सालों बाद हालात बदल गए। बहुत सारे पुर्तगाली व्यापारी आने लगे, इन्होंने अपनी ताकत बढ़ाई , साम दाम दंड की नीति अपनाते हुए राजा को कमजोर कर दिया गया और अन्ततः राजा का कत्ल भी इन्हीं पुर्तगालियों के द्वारा करवा दिया गया।

70-80 वर्षों तक पुर्तगालियों द्वारा लूटे जाने के बाद फ्रांसीसी आए। इन्होंने भी लगभग 80 वर्षों तक भारत को लूटा ।

इसके बाद डच (हालैंड वाले) आए, उन्होंने भी खूब लूटा और सबसे अंत में अँगरेज आए पर ये लूटकर भागने के लिए नहीं बल्कि इन्होंने तो लूट का तरीका ही बदल डाला। इन्होंने पहले तो भारत को गुलाम बनाया फिर तसल्ली से लूटते रहे। 20 मई 1498 को वास्कोडिगामा भारत की धरती पर पहला कदम रखा था, और आज के दिन वो राजा के समक्ष अनुमति लेने के लिए हाथ जोड़े खड़ा था। उसके बाद उस लुटेरे और उनके साथियों ने भारत को जितना बर्बाद किया वो इतिहास बन गया।

आज जिसे हम भारत का खोजकर्ता कहते नहीं अघाते हैं, दरअसल वह एक लूटेरा था जो सिर्फ भारत को लूटा ही नहीं था बल्कि यहाँ रक्तपात भी बहुत किया था ,,,, भारतीय इतिहास में वास्कोडिगामा के चरित्र के बारे में ये बातें हमें नहीं बताई गई।

साभार https://www.facebook.com/abhimanyusinghlodhi से

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निदा फ़ाज़ली के 20 लोकप्रिय शेर

निदा फ़ाज़ली (12 अक्टूबर 1938 – 8 फरवरी 2016 )

1.अब किसी से भी शिकायत न रही
जाने किस किस से गिला था पहले

2.अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

3.एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा

4.ग़म है आवारा अकेले में भटक जाता है
जिस जगह रहिए वहाँ मिलते-मिलाते रहिए

5.इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
रात जंगल में कोई शम्अ जलाने से रही

6.कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता

7.कहता है कोई कुछ तो समझता है कोई कुछ
लफ़्ज़ों से जुदा हो गए लफ़्ज़ों के मआनी

8.ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख

9.किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो

10.कुछ लोग यूँही शहर में हम से भी ख़फ़ा हैं
हर एक से अपनी भी तबीअ’त नहीं मिलती

11.कुछ तबीअत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत न हुई
जिस को चाहा उसे अपना न सके जो मिला उस से मोहब्बत न हुई

12.बड़े बड़े ग़म खड़े हुए थे रस्ता रोके राहों में
छोटी छोटी ख़ुशियों से ही हम ने दिल को शाद किया

13.बदला न अपने-आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे

14.बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता

15.दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है

16.नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए
इस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई

17.हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए
कभी तो हौसला कर के नहीं कहा जाए

18.यक़ीन चाँद पे सूरज में ए’तिबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख

19.ये काटे से नहीं कटते ये बाँटे से नहीं बँटते
नदी के पानियों के सामने आरी कटारी क्या

20.ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई
जो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला

(निदा फ़ाज़ली का असल नाम मुक़तिदा हसन था। )

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यूएस सोयाबीन एक्सपोर्ट काउंसिल द्वारा संचालित राइट टू प्रोटीन के बढ़ते कदम

दुबई, संयुक्त अरब अमीरात।

यूएस सोयाबीन एक्सपोर्ट काउंसिल (USSEC) द्वारा संचालित राइट टू प्रोटीन (Right To Protein) ने दुबई, यू.ए.ई में अपने दूसरे पिच2फोर्क (Pitch2Fork) कार्यक्रम की मेजबानी की। प्रोटीन उद्योग में इनोवेशन पर ध्यान देते हुए इस मंच ने बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान के उद्यमियों को निवेशकों के एक पैनल के सामने अपने बढ़ते व्यवसायों को पिच करने का एक अनूठा अवसर प्रदान किया। इस अवसर का लाभ उठाने वाली शॉर्टलिस्ट की गई कंपनियों में ग्लैडफुल (Gladful), हैलो टेम्पे (Hello Tempayy), पोल्टा (Poulta) और वी ग्रो (WeGro) शामिल थे।

पिच2फोर्क 2024 विजेता, हैलो टेम्पेह जजों के साथ और USSEC के जना फ्रिट्ज, उपध्याक्षिका और केविन रोपकी क्षेत्रीय निदेशक – दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ्रीका (SAASSA)

दक्षिण एशिया दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते क्षेत्र के रूप में रैंक करता है, लेकिन प्रोटीन की तेजी से बढ़ती मांग की आपूर्ति अभी भी चुनौतीपूर्ण है। पिच2फोर्क के संभावित प्रभाव पर विचार करते हुए केविन रोपकी, दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ्रीका (SAASSA), USSEC के क्षेत्रीय निदेशक ने बताया कि, “पिच2फोर्क को रणनीतिक रूप से स्टार्टअपस और निवेशकों के बीच आवश्यक नेटवर्किंग को सुविधाजनक बनाने के लिए तैयार किया गया है जो इनोवेशन में तेजी ला रहा है। रुकावटों को देखते हुए भविष्य में लगातार निवेश करके बेहतर पोषण युक्त सुरक्षित कल की ओर प्रोटीन चुनौतियों के समाधान के लिए एक रास्ता तैयार करते हैं।

हेलो टेम्पे, टेम्पेह प्रोडक्शन में उभरता हुआ एक इनोवेटिव भारतीय स्टार्टअप जो ‘प्रोटीन स्टार्टअप ऑफ द ईयर’ के लिए पिच2फोर्क २०२४ ट्रॉफी से सम्मानित किया गया है। अपने उपयोगकर्ता के अनुकूल और स्वादिष्ट पेशकशों के साथ, हैलो टेम्पे भारत में उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध सोया-आधारित प्रोटीन विकल्पों की सरणी का विस्तार कर रहा है। खिताब जीतने के मूल्य को देखते हुए, भारत से हैलो टेम्पे की सह-संस्थापिका और पोषण विशेषज्ञ, मालविका सिद्धार्थ ने कहा, “एक न्यूट्रिशनिस्ट के रूप में, मैं नियमित रूप से किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रोटीन की कमी के प्रभावों को देखती हूं। यही कारण है कि हमने इस अंतर को समाप्त करने के लिए हैलो टेम्पे की स्थापना की। पिच2फोर्क जैसे प्लेटफॉर्म जागरूकता बढ़ाने और पौष्टिक और स्वादिष्ट उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन विकल्प प्रदान करने के लिए हमारे मिशन को बढ़ाने का एक अमूल्य अवसर प्रस्तुत करते हैं।

पाकिस्तान के मुर्गी पालन क्षेत्र से पिच2फोर्क में नामांकित सदस्य के रूप में अपना अनुभव बताते हुए, पोल्टा में ग्लोबल सेल्स एंड मार्केटिंग के जीएम, खुशबख्त अशरफ ने कहा, “ट्रेसबिलिटी, वर्टिकल इंटीग्रेशन और डेटा-संचालित निर्णय लेने के लिए इस तरह के दर्शकों के सामने पोल्टा के इनोवेटिव समाधान पेश करना एक बेहद खास अनुभव था। हम प्रोटीन के उत्पादन को बढ़ाते हुए फार्म-टू-फोर्क ट्रेसेबिलिटी के लिए प्रतिबद्ध हैं और यह पूरी तरह से USSEC और उसके मिशन के अनुकूल है। प्रोटीन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए सभी के सहयोग और साझेदारी पर चर्चा करना खुशी की बात है।

WeGro, बांग्लादेश से एक नॉमिनी अपने स्टार्टअप को पेश करते हुए

मोहम्मद महमुदुर रहमान, वी ग्रो के सह-संस्थापक एवं बांग्लादेश के कृषि-तकनीक क्षेत्र से एक और नामांकित शख्सियत ने बताया कि वी ग्रो में हम किसानों को सशक्त बनाने के लिए वित्तीय, सलाह और बाजार तक पहुंच की सुगमता प्रदान करते हैं। हम मानते हैं कि पिच2फोर्क एक उत्कृष्ट मंच है जो इनोवेटिव समाधानों का स्वागत करता है और बेहतर भविष्य के लिए प्रोटीन अंतर को कम करने का प्रयास करता है।

इस दौरान उपस्थित दर्शक एग्रोशिफ्ट (Agroshift) की जीत से प्रेरित हुए, जो बांग्लादेश का एक कृषि तकनीक स्टार्टअप और पिच2फोर्क २०२२ का विजेता था। एग्रोशिफ्ट एक सर्वव्यापी कृषि-आपूर्ति श्रृंखला मंच के रूप में काम करता है जो किसानों को अपने सूक्ष्म-पूर्ति वितरण नेटवर्क के माध्यम से खरीदारों को उचित मूल्य निर्धारण और बेहतर बाजार पहुंच को सक्षम करने में मदद करता है।

पिच2फोर्क के विख्यात स्पीकर लाइनअप में जाना फ्रिट्ज़, उपध्याक्षिका , USSEC; हेनरी गॉर्डन-स्मिथ, एग्रीटेक्चर (Agritecture) के संस्थापक और सी.ई.ओ; रोमा रॉय चौधरी, इवॉल्व्ड फूड्स (Evolved Foods) की संस्थापिका और सी.ओ.ओ; डीबा गिआनोलिस, USSEC-SAASSA में यूएस सोया सस्टेनेबिलिटी एंड मार्केटिंग की क्षेत्र प्रमुख; और रॉबर्टो विटोन, वेलोरल एडवाइजर्स (Valoral Advisors) के संस्थापक और प्रबंध निदेशक शामिल थे|

यूएस सोय आविष्कार और स्थायी पोषण के मामले में सबसे आगे रहा है – दुनिया भर में अपने ग्राहकों को सुविधा प्रदान करने के लिए लगातार सुधार कर रहा है। दुनिया को स्थायी पोषण देने की प्रतिबद्धता के साथ,अमेरिकी सोयाबीन किसान पिच2फोर्क जैसे प्लेटफार्मंं का समर्थन करते हैं और सोया वैल्यू ऑयल कैलकुलेटर (Soya Value Oil Calculator), स्पेशलिटी यूएस सोया डेटाबेस (Specialty U.S. Soy Database), इन-पॉन्ड रेसवे सिस्टम (IPRS In-Pond Raceway Systems), इंटरनेशनल एक्वाकल्चर फीड फॉर्मूलेशन डेटाबेस (IAFDD International Aquaculture Feed Formulation) और सोया उत्कृष्टता केंद्रों (Soy Excellence Centers) जैसे समाधान प्रदान करते हैं।

राइट टू प्रोटीन (Right To Protein) के बारे में
राइट टू प्रोटीन (Right To Protein) यूएस सोयाबीन एक्सपोर्ट काउंसिल (USSEC) द्वारा संचालित एक जागरूकता अभियान है जो लोगों को बेहतर पोषण, स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पर्याप्त प्रोटीन खपत के महत्व के बारे में शिक्षित करता है। यह बड़े पोषण सुरक्षा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रोटीन स्रोतों के सार्वजनिक ज्ञान उपलब्ध करवाने का लक्ष्य रखता है। प्रोटीन जागरूकता अभियान के रूप में, ‘राइट टू प्रोटीन'(Right To Protein) अच्छे स्वास्थ्य का समर्थन करने, कुपोषण को कम करने और सतत विकास को बढ़ावा देने में प्रोटीन की भूमिका पर जोर देता है। अभियान प्रोटीन की कमी के वैश्विक बोझ के बारे में एवं विशेष रूप से विकासशील देशों में एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति जागरूकता बढ़ाता है । यह पहल उन लोगों के लिए है जो ज्ञान, तकनीकी सहायता या प्रचार भागीदारों को प्रदान करने सहित किसी भी क्षमता में शामिल होना या योगदान करना चाहते हैं।यदि आप हमारे उद्देश्य में समर्थन करते हैं, तो हमारे साथ जुड़ें – righttoprotein.com.

यूएस सोयाबीन एक्सपोर्ट काउंसिल (USSEC) के बारे में
यूएस सोयाबीन एक्सपोर्ट काउंसिल (USSEC) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 80+ देशों में मानव उपभोग, जलीय कृषि और पशुधन फ़ीड के लिए अमेरिकी सोया (U.S. Soy) के उपयोग के लिए बाजार पहुंच को अलग करने, वरीयता बनाने और बढ़ाने पर केंद्रित है। USSEC सदस्य अमेरिकी सोया किसानों, प्रोसेसर, कमोडिटी शिपर्स, व्यापारियों, संबद्ध कृषि व्यवसायों और कृषि संगठनों सहित सोया आपूर्ति श्रृंखला का प्रतिनिधित्व करते हैं। USSEC को यूएस सोयाबीन चेकऑफ, यूएसडीए (USDA), फॉरेन एग्रीकल्चर सर्विस (FAS Foreign Agricultural Services), मैचिंग फंड और उद्योग द्वारा वित्त पोषित किया जाता है।

कृपया www.ussec.org पर विज़िट कर या लिंक्डइन पर नवीनतम जानकारी, संसाधन, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर USSEC और यूएस सोया के बारे में समाचार प्राप्त करें।

मीडिया प्रश्नों के लिए, कृपया संपर्क करें: हिबाह अमीर (ई: [email protected] | फोन नंबर: +92 305 777 9621)

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गलत तथ्यों के आधार पर पटना उच्च न्यायालय में ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ का आवेदन खारिज़

‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई’ द्वारा दाखिल आई ए संख्या -1/2024 माननीय मुख्य न्यायमूर्ति श्री के विनोद चंद्रन वाली न्याय खंड पीठ पटना उच्च न्यायालय का आदेश दिनांक -29 /4./2024 द्वारा बिल्कुल ही झूठे तथ्यों के आधार पर खारिज हो गया है। सीडब्लूजेसी संख्या 17542 /2018 के याचिकाकर्ता इंद्रदेव प्रसाद बताते हैं कि उस पारित आदेश के अनुसार वैश्विक हिंदी सम्मेलन उस रिट याचिका में हस्तक्षेप करना चाह रहा है, जो सरकारी अधिवक्ता का पदमुक्ति आदेश के विरुद्ध दाखिल हुआ है ,जो विद्वान महाधिवक्ता बिहार श्री पी के शाही के झूठे तर्कों पर आधारित है ,जिसके लिए उनके विरुद्ध माननीय उच्च न्यायालय पटना में ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस संख्या -1/2024 दर्ज हो गया है ,जिसके न्यायिक कार्यवाहियों में उनको पद पर रहते हुए डांडिक अवमान का दंड मिल सकता है।

जबकि जिस मामले में ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ इंटरवीन यानी हस्तक्षेप करना चाह रहा था, वह मामला सरकारी अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद का पद मुक्ति आदेश के विरुद्ध था ही नहीं। वह तो उनकी उस याचिका के लिए था जिसमें हिंदी की याचिकाओं का अंग्रेजी अनुवाद दिए जाने का नियम है। गलत तथ्य कैसे पहुंचे और किसने रखे यह भी विचारणीय है।

अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद बताते हैं कि वे तो पदमुक्त हुए ही नहीं हैं। वे हिंदी में वकालत करते हैं इसलिए उनको सरकारी मुकदमों का संचालन करने नहीं दिया जा रहा है, पटना उच्च न्यायालय नियमावली 1916 का भाग दो अध्याय तीन नियम एक के संदर्भ में, जो प्रावधानित करता है कि पटना उच्च न्यायालय में सब आवेदन अंग्रेजी भाषा में दाखिल होगा, उसी हिंदी विरोधी कानून के विरुद्ध उक्त रिट याचिका भारत संघ की राजभाषा हिंदी में दाखिल हुई है, जिसके अंग्रेजी अनुवाद की उनसे मांगी की गई है, इसलिए वैश्विक हिंदी सम्मेलन अपने निदेशक डॉ. एम एल गुप्ता के माध्यम से इंटरवेन यानी हस्तक्षेप करना चाह रहा था।

एक महत्वपूर्ण घटना यह भी हुई कि महाधिवक्ता बिहार श्री पी के शाही के विरुद्ध भारत संघ की राजभाषा हिंदी में ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस संख्या- 1 /2024 दर्ज हुआ है , जिसके संबंध में प्रेस विज्ञप्ति जारी करने पर रोक लगाने की मौखिक प्रार्थना बिहार राज्य की ओर से दिनांक 17/ 5/2024 को की गई, जो माननीय मुख्य न्यायमूर्ति श्री के. विनोद चंद्रन वाली न्याय खानपीठ के मौखिक आदेश से अस्वीकृत हो गया ।

इसलिए उस मुकदमे के संबंध में यह प्रेस विज्ञप्ति जारी हो रही है जिसकी उत्पत्ति निष्पादित मुकदमा सीडब्लूजेसी संख्या 17542/ 2018 से हुई है, जो भारत संघ की राजभाषा हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए है। उसमें पटना उच्च न्यायालय नियमावली 1916 का भाग दोअध्याय तीन नियम एक चुनौती के अधीन है ,जो प्रावधानित करता है कि पटना उच्च न्यायालय में सब आवेदन अंग्रेजी भाषा में दाखिल होगा ।उस मुकदमे में महाधिवक्ता कार्यालय बिहार का वह आदेश भी चुनौती के अधीन है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पटना उच्च न्यायालय नियमावली 1916 के भाग दो अध्याय तीन नियम एक पर आधारित है।

महाधिवक्ता बिहार श्री पी के शाही के अधीनस्थ विधि पदाधिकारी श्री इंद्रदेव प्रसाद हिंदी में वकालत करते हैं, इसलिए उनको सरकारी मुकदमों का संचालन पटना उच्च न्यायालय नियमावली 1916 का भाग 2 अध्याय तीन नियम एक को ढाल बनाकर करने नहीं दिया जा रहा है । इसलिए, वैश्विक वैश्विक हिंदी सम्मेलन मुंबई उस मुकदमा का पक्षकार बनाकर उसका समर्थन करना चाहता था और उसके लिए उन्होंने उस मुकदमे में आई. ए. संख्या -1/2024 दाखिल किया था , जो बिल्कुल ही झूठे तथ्यों के आधार पर खारिज हो गया है कि -“वैश्विक हिंदी सम्मेलन” वैसे मुकदमे में इंटरवेन करना चाह रहा है ,जो सरकारी अधिवक्ता की पदमुक्ति के विरुद्ध दाखिल हुआ है ,जो विद्वान महाधिवक्ता बिहार श्री पी के शाही के झूठे तर्कों पर आधारित है।

उपरोक्त ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस -1/2024 में विद्वान महाधिवक्ता बिहार श्री पीके शाही पर आरोप है कि वे सीडब्लूजेसी संख्या- 17542 /2024 के न्यायिक कार्यवाहियों में बाधा पहुंचाने के लिए कानून को हाथ में ले चुके हैं और कानून को हाथ में लेकर अपने अधीनस्थ विधि पदाधिकारी इंद्रदेव प्रसाद के नाम से आवंटित कुर्सी टेबल को हटवा दिए हैं और हटवाने के पूर्व उनको कोई नोटिस नहीं दिए है ।सुनवाई का कोई मौका नहीं दिए है ! आदेश का कोई कॉपी नहीं दिए है । जब उनके अधीनस्थ विधि पदाधिकारी उनसे आदेश का कॉपी मांगने गए, तो वे बोले कि मैं आपके निष्पादित मामले में मुख्य न्यायमूर्ति का चैंबर गया था -हमको जो कहना था- उनको कह दिया- आपका केसे पुनः सुनवाई पर आ गया-आपके केस में दिनांक -18/ 4 /2024 को पुन: सुनवाई होगी ,आपको जो कुछ भी कहना है ,उसी मुकदमे में कहिएगा ।मैं भी वही रहूंँगा ।

सुनवाई तिथि- 18/ 4/ 2024 को उनके अधीनस्थ विधि पदाधिकारी उनके सामने ही उक्त सारी बातों के अतिरिक्त यह भी बोले कि – “विद्वान महाधिवक्ता बिहार श्री पीके शाही पद से हमसे ऊंचे हैं, किंतु कानून से ऊंचे नहीं है। इनके हाथ भी कानून से बंधे हुए हैं ।इन्होंने कानून तोड़ दिया है। इन्होंने डांडिक अवमान का अपराध किया है। पहले इनको डांडिक अवमान का दंड दिया जाए, जिसके आलोक में पारित माननीय उच्च न्यायालय पटना का आदेश दिनांक- 18/ 4 /2024 के आलोक में उनके विरुद्ध उक्त ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस संख्या -1/ 2024 दर्ज हुआ है ,जो न्यायालय अवमान अधिनियम 1971 की धारा 15 (1) की दृष्टि में पटना उच्च न्यायालय का प्रस्ताव है, जिसके न्यायिक कार्यवाहियों में उनको डांडिक अवमान का दंड मिल सकता है, जिसके पक्षकारों के जमात में पटना उच्च न्यायालय पटना, एडवोकेटस एसोसिएशन पटना उच्च न्यायालय पटना ,भारत संघ, बिहार राज्य ,बार काउंसिल आफ इंडिया ,बिहार बर काउंसिल अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन, दिल्ली, वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई ,भारतीय भाषा अभियान , बिहार प्रदेश का भी नाम समाहित है।

आगे की सुनवाई तिथि 26 जून 2024 निर्धारित है। इस मामले पर केंद्रीय सरकार एवं राज्य सरकारों के जवाबदेह पदाधिकारी के साथ-साथ विद्वान अधिवक्ताओं एवं आम जनों का ध्यान केंद्रित है।

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आम चुनावों में राष्ट्रीय विमर्श अब बहस का विषय ही नहीं

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। आम चुनाव के चार चरण समाप्त हो चुके हैं। आज पांचवे चरण का मतदान जारी है। लोकतंत्र में मतदान मौलिक अधिकार है। यह नागरिकों को चुनाव का अवसर देता है कि कौन सरकार में आए? सरकार कैसी हो? और उन पर कौन शासन करे? यह सत्ता के दावेदारों की विचारधारा, रीति, नीति और दृष्टिकोण को भी जांचने और इच्छानुसार मतदान करने का अवसर होता है। मतदान केवल अधिकार नहीं, उत्तरदायित्व भी है। मतदान से नागरिकों की राजनैतिक इच्छा प्रकट होती है। मतदाताओं के पक्ष को समझा जाता है। चुनाव में मतदाता के सामने भिन्न-भिन्न विचार वाले दल आश्वासन देते हैं। मतदाता उपलब्ध विचारों और वायदों में अपने सपनों वाली सरकार बनाने के लिए वोट देते हैं। मताधिकार मूल्यवान है। मताधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय उद्घोषणा (1948) के द्वारा इसे संरक्षण दिया गया है।

सभी लोकतांत्रिक देशों में चुनाव के समय मुद्दा और विचार आधारित विमर्श चलते हैं। इसीलिए चुनाव महत्वपूर्ण लोकतंत्री उत्सव हैं। अमेरिकी संविधान में चुनाव तंत्र का उल्लेख नहीं है। अमेरिका में संघीय चुनाव कराने के लिए चुनाव नियम हैं। वे अमेरिकी कांग्रेस को चुनाव कराने की शक्ति देते हैं। अमेरिका में स्त्रियों को 1920 तक मताधिकार नहीं था। प्राचीन ग्रीक में मताधिकार केवल पुरुषों तक सीमित रहा है। ब्रिटेन में इसका धीरे-धीरे विकास हुआ। 1918 में महिलाओं को मताधिकार प्राप्त हुआ। भारत में 1950 के पहले से ही 21 वर्ष के ऊपर के सभी नागरिकों को मताधिकार था। बाद में मतदान की पात्रता की आयु 18 वर्ष की गई।

चुनाव राष्ट्रीय विमर्श के खूबसूरत अवसर होते हैं। बहस और विमर्श, वाद-विवाद और संवाद भारत की प्राचीन परम्परा है। प्राचीन काल में भी सभा और समितियां विमर्श का केन्द्र थीं। सम्प्रति पूरा देश सभा या संसद जैसा है। यहां प्रत्येक मतदाता अपनी इच्छा वाले देश और समाज के लिए सजग है।

राष्ट्रीय चिन्ता के सभी विषयों पर राष्ट्रीय विमर्श की आवश्यकता है। लेकिन वर्तमान चुनाव में बुनियादी सवालों पर राष्ट्रीय विमर्श का अभाव है। राष्ट्र सर्वोपरिता, राष्ट्रीय एकता और अखंडता, संविधान के प्रति निष्ठा व भारत की विश्व प्रतिष्ठा जैसे विषय आधारभूत हैं। यह विषय किसी न किसी रूप में हमेशा राष्ट्रीय विमर्श में रहते हैं। लेकिन वर्तमान चुनाव में पृष्ठभूमि में चले गए हैं। हम भारत के लोग संस्कृति के कारण दुनिया के प्राचीनतम राष्ट्र हैं। यहाँ विविधता और बहुलता सतह पर है। लेकिन इन सबको एक सूत्र में बांधे रखने वाली सांस्कृतिक एकता चुनावी विमर्श में नहीं है। राष्ट्र से भिन्न कोई भी अस्मिता अलगाववाद की प्रेरक होती है। साम्प्रदायिकता की चर्चा बहुधा होती रहती है। दल समूह एक दूसरे पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाया करते हैं। लेकिन साम्प्रदायिकता की परिभाषा नदारद है। चुनावी विमर्श में साम्प्रदायिकता के निराकार और साकार खतरे पर विमर्श होना चाहिए था।

सेकुलर विदेशी विचार है। राजनीति में बहुधा इसका दुरुपयोग होता है। व्यावहारिक अर्थ में यह अल्पसंख्यकवाद का पर्याय है। छद्म सेकुलरवाद भी विमर्श में नहीं है। राष्ट्र के समग्र विकास में प्रशासनिक सेवाओं की मुख्य भूमिका है। वे सरकारी नीतियों का क्रियान्वयन करते हैं। प्रशासनिक सुधारों पर अनेक आयोग बन चुके हैं। लेकिन प्रशासन की गुणवत्ता प्रश्नवाचक रहती है। इसी तरह अर्थनीति सबसे महत्वपूर्ण विषय है। यह राष्ट्रीय समृद्धि की संवाहक होती है। महाभारत में नारद ने युधिष्ठिर से पूछा, ”क्या आप अर्थ चिन्तन करते हैं-चिन्तयसि अर्थम्?” अर्थनीति पर सतत् राष्ट्रीय विमर्श अनिवार्य है।

राष्ट्र का आत्मविश्वास होता है राष्ट्रीय विमर्श। भूमण्डलीय ताप में वृद्धि अंतर्राष्ट्रीय समस्या है लेकिन उसका सम्बंध भारत से भी है। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना दायित्व निभाया है। लेकिन भूमण्डलीय ताप चुनाव विमर्श से बाहर है। जल और जीवन पर्यायवाची हैं। जल प्रदूषण राष्ट्रीय स्वास्थ्य का सबसे बड़ा शत्रु है। एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 400 से अधिक जिलों का जल गंभीर रूप से प्रदूषित हो चुका है। भूजल में शीशा, आर्सेनिक, फ्लोराइड और क्रोमियम जैसे जानलेवा रसायन पाए गए हैं। हर साल लगभग ढाई करोड़ लोग जल प्रदूषण की बीमारियों का शिकार होते हैं। बच्चे विकलांग होते हैं। औद्योगिक इकाइयों का विषैला पानी और कचरे भूगर्भ जल में मिलते हैं। बोतल बंद ब्रांडेड पानी और भी खतरनाक है। जल में उपस्थित रसायन बोतल की प्लास्टिक से रासायनिक क्रिया करते हैं और जल जानलेवा हो जाता है। वायु प्रदूषण से भारत भी पीड़ित है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी धूल भरी वायु लोगों के श्वसन तंत्र पर आक्रामक रहती है। ऐसे चिन्ताजनक मुद्दे भी चुनावी विमर्श में नहीं हैं।

कृषि भारत की आजीविका है और किसानों के लिए व्यवसाय भी है। ऋषि और कृषि भारतीय श्रम साधना के शीर्ष पर रहे हैं। चिकित्सा महत्वपूर्ण विषय है। जन स्वास्थ्य और आनंद साथ-साथ रहते हैं। राष्ट्रीय पौरुष का सम्बंध जन स्वास्थ्य से है। स्वस्थ जीवन के लिए उत्तम परिस्थितियां पाना मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21) है। रूग्ण लोग राष्ट्रीय उत्पादन में भागीदार नहीं हो सकते। उत्पादन की दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति राष्ट्र का सक्रिय मानव संसाधन है। अन्य योजनाएं टाली जा सकती हैं। लेकिन चिकित्सा और स्वास्थ्य नहीं। निजी अस्पताल महंगे हैं। राष्ट्रीय संवेदना का अभाव है। गरीबों को 5 लाख तक की चिकित्सा उपलब्ध कराने में ‘आयुष्मान भारत‘ योजना की प्रशंसा होती है। इस दिशा में काफी काम हुआ है। लेकिन जन स्वास्थ्य और कृषि भी राष्ट्रीय विमर्श में नहीं हैं।

नवयुवकों में इंजीनियरिंग सहित अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल होने पर आत्महत्या की प्रवृत्ति दिखाई पड़ रही है। यह राष्ट्रीय चिन्ता का विषय है। ऐसे विषय सरकार के अलावा सामाजिक उत्तरदायित्व से सम्बंधित हैं। भारतीय इतिहास का विरुपण पिछले 10-15 वर्षों से चर्चा का विषय है। इस इतिहास में वास्तविक तथ्य नहीं हैं। आर्य आक्रमण का सिद्धांत झूठा है। दुर्भाग्य से यह चुनाव में कोई मुद्दा नहीं है। समान नागरिक संहिता संविधान का नीति निदेशक तत्व है। पीछे कई बरस से यह राष्ट्रीय चर्चा का विषय है। लेकिन चुनावी विमर्श का मुद्दा नहीं है।

सारा काम सरकारें ही नहीं कर सकती। सामाजिक दायित्व बोध भी जरूरी है। सड़क, पानी, बिजली आदि के सवालों पर अनेक गाँवों में मतदान के बहिष्कार की घटनाएं हुई हैं। इसलिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर विमर्श जरूरी है। संवैधानिक लोकतंत्र में अनेक संस्थाएं हैं। भारतीय लोकतंत्र अति प्राचीन है। जब भारत में लोकतंत्र फल-फूल रहा था तब प्लेटो जैसे विद्वान लोकतंत्री मूल्यों पर चिन्तन कर रहे थे।

प्लेटो ने लिखा है कि, ‘‘जनतंत्र का अविर्भाव तब होता है जब गरीब विरोधियों से शक्तिशाली हो जाते हैं। जनतंत्र शासन का आकर्षक रूप है। उसमें विविधता और अव्यवस्था होती है। यह समान और असमान को समान भाव से एक तरह की समानता प्रदान करता है।‘‘ (दि डायलॉग्स ऑफ प्लेटो, खण्ड 2-रिपब्लिक) प्लेटो के अनुसार जनतंत्र में अव्यवस्था है। भारतीय लोकतंत्र के लिए भी अव्यवस्था की बात कही जा सकती है। इसके लिए भी महत्वपूर्ण मुद्दों पर राष्ट्रीय विमर्श जरूरी है। संविधान निर्माताओं ने उद्देशिका में ही सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय के साथ प्रतिबद्धता व्यक्त की है। व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता अखण्डता सुनिश्चित करने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प व्यक्त किया है। चुनाव इन सब पर चर्चा और विमर्श का महत्वपूर्ण अवसर है।

(लेखक भाजपा के वरिष्ठ नेता एवँ उत्तर प्रदेश विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष हैं)

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