महाभारत : विदेशों में प्रचार प्रसार ..
गौहत्या ही राष्ट्र हत्या है
महान् देशभक्त , महान् गोभक्त , महर्षि दयानन्द सरस्वती भारत के उन सन्तों एवं महर्षियों में अग्रगण्य थे जिन्होंने वैदिक धर्म के प्रचार एवं गोरक्षा के प्रचार – प्रसार में ही अपना महान् बलिदान दे दिया था। भारत का यह महर्षि उस समय सामाजिक सुधार के कार्यक्षेत्र में अवतीर्ण हुआ था जब १८५७ में राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के स्फुलिंग फूट – फूटकर देश के चारों कोनों में व्याप्त हो रहे थे। सबसे पहले स्वराज्य के मन्त्रदाता इस महर्षि ने संगठित रूप से गोहत्या बंदी की आवाज उठाई थी ।
“ यदि नो गां हंसि यद्यश्वं यदि पूरुषम्।
तं त्वा सीसेन विध्यामो यथा नोऽसीऽचीरहा।। ”
अर्थात् जो हमारे गाय , घोड़े और मनुष्यों का विनाश करता है , उसे हमें सीसे की गोली से मार देना चाहिए। गोहत्यारों के लिए जन तक भारत में यह गोली से उड़ा देने की व्यवस्था रही , तब तक गोडल्या नहीं होती थी। बस , अन्न तो सरकार के एक नियम बना देना चाहिए कि यदि कोई हत्या करता है तो उसे मृत्युदण्ड होना चाहिए। ऋग्वेद १०-८७-१६ में लिखा है योऽघ्न्याया भरति क्षीरमग्ने तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्च। इसमें गोहत्यारों के सिरों को कुल्हाड़े से काटने का आदेश दिया गया है।
चाहते हो भव – व्याधियों से निज मानस का कल – कंज हरा हो ,
संस्कृति,साहित्य एवं मीडिया फोरम का गठन
हैहय राजा ने राजा बाहु को भगाया, ऋषि और्व ने राजा सगर को जन्माया
इच्छाकू राजाओं मे वंशानुक्रम :-
श्री विष्णु पुराण चौथा स्कंद अध्याय 3 का भाग दो के अनुसार अयोध्या के राजा त्रिशंकु के पुत्र हरिश्चंद्र थे। उनके पुत्र थे रोहिताश्व , उनके पुत्र हरित ; उनके पुत्र कुञ्कु थे, जिसके विजय और सुदेव नाम के दो पुत्र थे । विजय का पुत्र रुरुक था, और रुरुक का पुत्र वृक था , वृक का पुत्र सुबाहु बाहु या बाहुक था।
श्रीमद् भागवत पुराण से इस क्रम से वंशावली मिलती है — “हरिश्चंद्र → रोहित → हरित → चंपा → सुदेवा → विजया → भरुका → वृक → बाहुक आदि आदि।”
हैहय वंश के राजाओ पर एक दृष्टि :-
हैहय वंश में बुध, पुरूरवा, नहुष, ययाति, यदु, हैहय, कृतवीर्य, सहस्रार्जुन, कृष्ण और पाण्डव जैसे धर्मवीर, शक्तिशाली, प्रतापी और दानी राजा हुए हैं| हरिवंश पुराण के अनुसार हैहय, सहस्राजित का पौत्र तथा यदु का प्रपौत्र था। पुराणों में हैहय वंश का इतिहास चंद्रदेव की तेईसवी पीढ़ी में उत्पन्न वीतिहोत्र के समय तक पाया जाता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार ब्रह्मा की बारहवी पीढ़ी में हैहय का जन्म हुआ। हरिवंश पुराण के अनुसार ग्यारहवी पीढ़ी में हैहय तीन भाई थे जिनमें हैहय सबसे छोटे भाई थे।
पुराणों में इस वंश की पाँच शाखाएँ कही गई हैं —ताल- जंघ, वीतिहोत्र, आवंत्य, तुंडिकेर और जात ।
हैहयों ने शकों के साथ साथ भारत के अनेक देशों के जीता था ।विक्रम संवत् ५५० और ७९० के बीच हैहयों का राज्य चेदि देश और गुजरात में रहा। इस वंश का कार्तवीर्य अर्जुन प्रसिद्ध राजा था , जिसने रावण को हराया था। इसकी राजधानी वर्तमान मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर महिष्मती थी। त्रिपुरी के कलचुरी वंश को हैहय वंश भी कहा जाता है। बाहु नामक सूर्यवंश के राजा और सगर के पिता को हैहयों और तालजंधों ने परास्त कर देश से निष्कासित कर दिया था।
(महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय 57.)
अयोध्या के राजा थे बाहु/असित :-
राजा बाहु नाम से मिलती जुलती थोड़ा इतर असित की वंशावली भी मिलती है। असित सूर्यवंश के राजा थे, भरत के पुत्र और राम के पूर्वज थे। सगर के पिता का नाम असित था। वे अत्यंत पराक्रमी थे। हैहय, तालजंघ, शूर और शशबिन्दु नामक राजा उनके शत्रु थे। बाहु इक्ष्वाकु वंश के एक राजा वृक (भरत) से पैदा हुए थे। सुबाहु ( जैन नाम जीतशत्रु) नामक यही इक्ष्वाकु राजा और उसकी रानी यादवी ( जैन नाम विजया देवी) ने अयोध्या से भागकर और्व ऋषि के आश्रम में शरण ली , जब अयोध्या पर हैहय राजा ने कब्ज़ा कर लिया था।
पिता वृक (भरत) के समय से ही युवराज बाहु (असित) का दबदबा:-
वृक एक चक्रवर्ती सम्राट थे । उसने अपने पुरोहितों की मदद से अश्वमेध यज्ञ कराया। अश्व की रक्षा की जिम्मेदारी युवराज बाहु निभा रहे थे। उस समय अयोध्या के पड़ोस में मगध में शक्तिसेन का राज्य था। वह अयोध्या नरेश वृक की अधीनता स्वीकार नही करना चाहता था। उनकी ही प्रेरणा या आदेश से शक्तिसेन की बीरांगना पुत्री युवरानी सुशीला ने यज्ञ का अश्व पकड़ लिया था। युवराज बाहु ने पहले अश्वसेन से अश्व लौटाने के लिए सन्देश वाहक के माध्यम से सन्देश भिजवाया । इसे शक्तिसेन अस्वीकार कर दिया। युवराज बाहु और शक्तिसेन के मध्य भीषण युद्ध हुआ जिसमे अयोध्या का युवराज विजई हुआ। शक्तिसेन शरणागत हुआ।उसे अभय दान मिला।उसने अपनी पुत्री का विवाह युवराज बाहु से करके राजा वृक का अश्व लौटा दिया और यज्ञ पूर्ण हुआ। बाहु की प्रथम पत्नी नंदनी निसंतान थी। उसने भी युवराज बाहु को युवरानी सुशीला से विवाह करने की अनुमति प्रदान किया था।
(ये कथानक रामानंद सागर के “जय गंगा मैया” धारावाहिक के दृश्यों पर आधारित है।)
धर्म परायण राजा बाहु :-
प्रारम्भ में राजा बाहु धर्म परायण था। वह प्रजा का हित और परोपकार के धर्म को निभाता भी था, परन्तु समय के साथ साथ उसमे भोग विलास की प्रवृत्ति बलवती होती गई। वह अधर्म में लिप्त रहने लगा , इसलिए उसे हैहय , तालजंघ , शक , यवन , कंबोज , पारद और पहलवों ने गद्दी से उतार दिया था । उसी समय में भृगुवंशी ब्राह्मण ने भी क्षत्रिय राजाओं का नाश किया था ।
हैहय राजा ने अयोध्या के इच्छाकु राजा बाहु को भगाया :-
राजा बाहु के शत्रुओं ने उनका राज्य और उनकी सारी संपत्ति छीन ली। परेशान होकर वह अपनी पत्नियों के साथ घर छोड़कर हिमालय के जंगल में चला गया।
नंदनी और सुशीला दोनों पत्नियां इस समय गर्भवती थीं। राजकीय और धार्मिक कार्यों में नंदनी को प्रथम पत्नी होने के कारण प्रमुखता दी जाती थी। इसे छोटी रानी सहन नही कर पाती थी। छोटी रानी कालिंदी(सुशीला) एक दासी के बहकावे में आकर पटरानी के गर्भ रोकने की इच्छा जब यादवी अपनी गर्भावस्था के सातवें महीने में थीं, तब
उन्हें जहर दे दिया, जिसके कारण वह सात साल तक गर्भवती रहीं। जिसके प्रभाव से उसका गर्भ सात वर्ष तक गर्भाशय ही में रहा । इस दीर्घ अवधि में राजा बाहु और नंदनी बहुत ही परेशान रहने लगे थे। अन्त में, बाहु वृद्धवस्था के कारण और्व मुनि के आश्रम के समीप अपना शरीर त्याग स्वर्ग सिधार गए।
आत्मदाह ( सती ) की तैयारी को ऋषि और्व ने रोका :-
बाहु की मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी ने परंपरा के अनुसार उनकी चिता पर आत्मदाह करने का फैसला किया , लेकिन भार्गव वंश के ऋषि और्व को जब यह पता चला तो उन्होंने उन्हें यह बताकर सती होने से रोक दिया कि वह रानी गर्भवती हैं। कुछ महीनों के बाद, उनको एक बेटे का जन्म हुआ, जिसका नाम और्व ने सगर रखा , जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘जहर वाला’,।
(www.wisdomlib.org (2019-01-28). “ऑर्वा की कहानी” . www.wisdomlib.org . 2022-11-02 को लिया गया .)
उस समय पटरानी ने चिता बनाकर उस पर पति का शव स्थापित कर उसके साथ सती होने का निश्चय किया था। ऋषि और्व, जो भूत, वर्तमान और भविष्य की सभी चीजों को जानते थे। वे अपने आश्रम से बाहर आए और उसे आत्महत्या करने से मना करते हुए कहा, “अयि साध्वि ! रुको! रुको! तू ऐसे दुस्साहस का उद्योग न कर । इस व्यर्थ दुराग्रह को छोड़ ! यह अधर्म है।तेरे उदर में सम्पूर्ण भूमण्डल का स्वामी, अत्यन्त बली पराक्रमशील, अनेक यज्ञों का अनुष्ठान करने वाला और एक बहादुर राजकुमार, अपने शत्रुओं का नाश करने वाला,कई राज्यों और विश्व का चक्रवती राजा हैं। वह अनेक यज्ञों की हवन करने वाला होगा, ऐसा दुस्साहस पूर्ण कार्य करने की मत सोचो!”
च्यवन आश्रम पर अदभुत बालक का जन्म :-
ऐसा कहे जाने पर वह अनुमरण ( सति होने ) के आग्रह से विरत हो गयी । ऋषि के आदेशों का पालन करते हुए, उसने अपना इरादा त्याग दिया। अपना आशीर्वाद देते हुए भगवान् और्व रानी को अपने आश्रम पर ले आये । कुछ समय बाद वहाँ एक बहुत तेजस्वी बालक का जन्म हुआ। वह अपने शरीर में विष के साथ पैदा हुआ । ऋषि द्वारा भविष्यवाणी के अनुसार, सागर का जन्म उसके शरीर में जहर के साथ हुआ। उसके साथ ही उसकी माँ को दिया गया विष भी बाहर निकाल दिया गया; और और्व ने जन्म के समय आवश्यक समारोह करने के बाद, उसे इस कारण से सगर (सा, ‘साथ’ और गर , ‘विष’ से) नामकरण दिया गया।
संस्कार और शिक्षा:-
भगवान् और्व ने उसके जातकर्म आदि संस्कार कर उसका नाम ‘ सगर’ रखा तथा उसका उपनयन संस्कार कराया।
उस पवित्र ऋषि ने अपने वर्ग की रीति के साथ उसका अभिषेक मनाया। और्व ने ही उसे वेद, शस्त्रों का उपयोग सिखाया एवं उसे भार्गव नामक आग्नेय शस्त्रों विशेष रूप से अग्नि के जिन्हें भार्गव के नाम के पर रखा गया ।
ऋषि और्व ने उसे तालजंघा , यवन , शक , हैहय और बर्बरों के जीवन लेने से रोका । लेकिन उसने उन्हें अपना बाह्य रूप बदलने पर मजबूर कर दिया। उन्हें विकृत कर दिया – उनमें से कुछ को सिर मुंडाने को कहा, कुछ को मूंछ और दाढ़ी बढ़ाने को कहा, कुछ को अपने बाल खुले रखने को कहा, कुछ को अपना सिर आधा मुंडाने को कहा। बाद में तालजंघों का वध परशुराम जी ने किया था। सगर ने और्व की सलाह के अनुसार अश्वमेध यज्ञ किया।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)
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कश्मीरी रामायण रामावतारचरित
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रजोत्सव के उपलक्ष्य में हिन्दी कविता पाठ आयोजित
कोई मत जाना कुफरी!
रायपुर में हुई डीकार्बनाइजेशन इंडिया अलायंस की शुरुआत, वर्ष 2070 तक नेट-जीरो प्राप्ति का लक्ष्य निर्धारित
रायपुर, 14 जून 2024
डीकार्बनाइजेशन इंडिया अलायंस (डीआईए) एक कार्योन्मुख और महत्वाकांक्षी परियोजना है। इसका लक्ष्य भारत को कम कार्बन उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ाना है। डीआईए की शुरुआत 14 जून को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में की गयी। आने वाले महीनों में डीआईए को भारत के 10 शहरों में स्थापित किया जाएगा। इसके माध्यम से वर्ष 2070 तक भारत को ‘नेट-जीरो’ अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य के प्रति समर्पित उद्योग जगत के अग्रणी लोगों को एकजुट करने पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।
डीआईए दरअसल सोसाइटी ऑफ इंजीनियर्स एण्ड मैनेजर्स (एसईईएम) की एक पहल है। सोशल इम्पैक्ट एडवाइजर्स (असर) और इंडिया ब्लॉकचेन अलायंस (आईबीए) की मदद से उठाये गये इस कदम के माध्यम से निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों, एमएसएमई, सेवा प्रदाताओं, शैक्षणिक एवं वित्तीय संस्थानों, सिविल सोसाइटी संगठनों और सरकारी विभागों सहित विभिन्न हितधारकों को एक मंच पर लाने की कोशिश की जाएगी ताकि भारत के डीकार्बनाइजेशन के प्रयासों को गति मिले। एक स्वैच्छिक नेटवर्क के नेतृत्व वाली यह पहल एक मंच की तरह काम करेगी। इससे उन इंजीनियरों को मदद मिलेगी जो उद्योगों में बदलाव को लागू करने के मोर्चे पर सबसे आगे खड़े होकर काम कर रहे हैं। साथ ही इससे उन लोगों को भी सहायता मिलेगी जो ऐसे उत्पाद और सेवाएं तैयार कर सकते हैं जिनसे डीकार्बनाईजेशन को बढ़ावा मिलता हो।
रायपुर में आयोजित उद्घाटन कार्यक्रम में राज्य के वाणिज्य एवं उद्योग विभाग के सचिव आईएएस श्री अंकित आनंद, छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (क्रेडा) के मुख्य अधिशासी अधिकारी (सीईओ) श्री राजेश सिंह राणा, ग्लोबल ग्रीन ग्रोथ इनीशियेटिव के क्षेत्रीय प्रमुख श्री सौम्य गरनाइक और क्रेडा के अधीक्षण अभियंता श्री राजीव ज्ञानी सहित अनेक गणमान्य अतिथियों ने भाग लिया।
डीआईए का संचालन शुरू होने के बाद ऊर्जा सम्बन्धी समाधानों को आकार देने और उन्हें लागू करने के काम से जुड़े हितधारकों के साथ तालमेल करके उन्हें अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिये काम किया जाएगा। डीआईए का उद्देश्य नवाचार को बढ़ावा देना, सर्वोत्तम पद्धतियों को साझा करना और अपने कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के लिये तत्पर प्रतिष्ठानों की जरूरतों को पूरा करने के लिये प्रयासों को व्यवस्थित करना है। इसके माध्यम से उन समाधानों को बल मिलेगा जो भारत को वर्ष 2070 तक अपने नेट-जीरो के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेंगे।
रायपुर-धनबाद और रायपुर- विशाखापट्टनम आर्थिक गलियारों को जोड़ने वाले राज्य छत्तीसगढ़ में औद्योगिकीकरण बहुत तेज गति से हो रहा है। राज्य में आकांक्षात्मक जिलों को जोड़ा जा रहा है जो पिछले कई दशकों से आर्थिक रूप से पिछड़े और कमजोर हैं। रायपुर में डीआईए की सफलतापूर्वक स्थापना से 80 हजार से ज्यादा कुटीर, लघु एवं मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) को मदद मिलेगी। डीआईए के माध्यम से-
● एमएसएमई को अपने कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में मदद की जाएगी। उन्हें ऐसी सेवाओं को चुनने में सहायता की जाएगी जिनसे ऊर्जा ऑडिट, प्रणालियों और प्रक्रियाओं में सुधार के साथ-साथ अक्षय ऊर्जा उपायों से मिलने वाले परिणामों को अधिकतम किया जा सकता है। इसके अलावा एमएसएमई को औद्योगिक उत्सर्जन की तीव्रता से जुड़े लक्ष्यों को लेकर सार्थक विचार-विमर्श से जोड़ा जाएगा।
● प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण : ऑडिटर्स, सम्बन्धित क्षेत्रों के विशेषज्ञों, उद्योगों, उद्यमियों तथा अन्य लोगों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किये जाएंगे। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी व्यक्तियों की पहचान करना और उन्हें बढ़ावा देना तथा कौशल विकास और रोजगार के अवसर प्रदान करना होगा।
● प्रमाणन एवं पुरस्कार : कम कार्बन उत्सर्जन वाले विकास के लिये ऊर्जा दक्षता और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विनिर्माणकर्ताओं, वेंडर्स, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों, अभियंताओं और ऊर्जा ऑडिटर्स के लिये डीआईए प्रमाणपत्र उपलब्ध कराये जाएंगे।
● डीआईए नयी प्रौद्योगिकी विकसित करने वालों और उसके उपयोगकर्ताओं के बीच एक सेतु और एक नेटवर्किंग प्लेटफार्म की तरह काम करेगा। यह प्रौद्योगिकी प्रदाताओं और उद्योगों के बीच विचारों, नवाचारों और सबसे अच्छी पद्धतियों के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करता है, जिससे डीकार्बनाइजेशन के लिए अत्याधुनिक समाधानों को अपनाना संभव होगा।
● अनुसंधान एवं पक्षसमर्थन (एडवोकेसी) : डीआईए का उद्देश्य ऊर्जा दक्षता की पैठ जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान को बढ़ावा देकर, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तरों पर योजनाओं को लागू करके, अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों, स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और रीसाइक्लिंग प्रौद्योगिकियों को अपनाकर और ग्रीनहाउस गैसों में कमी के अनुमान और लेखे-जोखे के माध्यम से नीति सम्बन्धी प्रभावी ढांचे तैयार करने और व्यापक प्रणालीगत बदलावों के लिए पक्षसमर्थन करने के उद्देश्य से नीति निर्धारकों को सार्थक सूचनाएं देने का है।
● सफल व्यक्तियों और संस्थाओं का विवरण तैयार करना (प्रोफाइलिंग) : नेटवर्क के अंदर सफलता की कहानियों के रणनीतिक संचार में मदद करना और इस मुद्दे पर जागरूकता पैदा करना।
बायोफ्यूल्स अथॉरिटी ऑफ छत्तीसगढ़ के सीईओ सुमित सरकार ने डीआईए की वेबसाइट का लोकार्पण और 10 नगरों में डीकार्बनाइजेशन के अभियान की शुरूआत करने के बाद कहा, ‘‘छत्तीसगढ़ एक व्यापक औद्योगिक नीति बनाने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। इस नीति में ग्रीन हाइड्रोजन और विभिन्न प्रकार के बायोफ्यूल्स के प्रयोग पर जोर दिया गया है ताकि डीकार्बनाइजेशन के प्रयासों को मजबूती दी जा सके। 10 शहरों में आयोजित होने वाले डीआईए कार्यक्रम की शुरुआत जलवायु परिवर्तन से निपटने के हमारे सामूहिक प्रयास में एक महत्वपूर्ण क्षण का प्रतिनिधित्व करता है।’’
एसईईएम के महासचिव जी. कृष्णकुमार ने डीआईए के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, रायपुर में आयोजित कार्यक्रम में लोगों की भागीदारी और उत्साह छत्तीसगढ़ के उन उद्यमियों की पर्यावरण के प्रति चेतना का प्रमाण है, जो नेट-जीरो परिदृश्य को व्यापक रूप से अपना रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार के साथ मिलकर काम करते हुए उद्योगों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों की मदद करने के डीआईए के विजन से नेट-जीरो की दिशा में राज्य की प्रगति में तेजी आएगी।
असर सोशल इम्पैक्ट एडवाइजर्स की सीईओ विनुता गोपाल ने कहा, ‘‘प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कमी लाने और उसे टालने के लिये जरूरी कदम उठाना इस दशक में बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। असल काम तब शुरू होता है जब ऊर्जा दक्षता, बिजली सम्बन्धी सुरक्षा और उद्योगों में साफ ऊर्जा में रूपांतरण के तंत्र को जमीन पर उतारने के लिये वास्तविक कदम उठाये जाते हैं। डीआईए एक ऐसी पहल है जिसका उद्देश्य इस रूपांतरण के उत्प्रेरक की भूमिका निभाना है। यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हम सिर्फ बातें करने के बजाय सार्थक काम भी करें। इन दिनों पड़ रही भीषण गर्मी हमें एहसास करा रही है कि हमारे के लिये एकजुट होकर जलवायु परिवर्तन के इस गम्भीर संकट से निपटना कितना जरूरी है।’’
रायपुर में समन्वय और नवाचार का मंच तैयार करने के बाद डीआईए को बेंगलूरू, कोच्चि, कोलकाता, चेन्नई, संगरूर, हैदराबाद, अहमदाबाद और इंदौर में भी शुरू किया जाएगा।