Tuesday, April 22, 2025
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डाक विभाग ने माता कर्मा पर स्मारक डाक टिकट जारी किया

नई दिल्ली। डाक विभाग ने प्रख्‍यात संत, समाज सुधारक और भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त माता कर्मा की 1009वीं जयंती के अवसर पर उनके सम्मान में एक स्मारक डाक टिकट जारी करने की घोषणा की है। रायपुर में 25 मार्च, 2025 को आयोजित कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के माननीय मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय, केंद्रीय आवासन और शहरी मामलों के राज्य मंत्री श्री तोखन साहू, छत्तीसगढ़ विधानसभा सदस्यों और अखिल भारतीय तैलिक महासभा के सम्मानित सदस्यों की इस अवसर पर गरिमामयी उपस्थिति रही।

मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साईं की उपस्थिति में अगस्त में रायपुर में माता कर्मा पर स्मारक डाक टिकट जारी किया गया

भगवान कृष्ण की समर्पित अनुयायी माता कर्मा ने अटूट विश्वास, साहस और नि:स्वार्थ सेवा का उदाहरण प्रस्तुत किया था। अपनी गहरी भक्ति से प्रेरित होकर, उन्होंने भगवान कृष्ण का आशीर्वाद लेने के लिए यात्रा शुरू की। पवित्र शहर पुरी पहुंचने पर मंदिर के सेवकों ने उनसे पारंपरिक व्यंजन खिचड़ी बनाने का अनुरोध किया। उनकी खुशी के लिए भगवान कृष्ण ने उनकी भेंट स्वीकार की। माता कर्मा द्वारा शुरू की गई यह महान परंपरा जगन्नाथ मंदिर के अनुष्ठानों का एक स्थायी हिस्सा बन गई। डाक टिकट में माता कर्मा को भगवान कृष्ण को खिचड़ी भेंट करते हुए खूबसूरती से दर्शाया गया है, जिसकी पृष्ठभूमि में प्रतिष्ठित जगन्नाथ मंदिर को दर्शाया गया है।

सामाजिक सद्भाव, महिला सशक्तिकरण और धार्मिक भक्ति में माता कर्मा का योगदान पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। उनका जीवन हमें समाज में एकता और सद्भाव को बढ़ावा देते हुए अस्पृश्यता और रूढ़िवाद जैसी विभिन्न सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करता है। भारतीय डाक द्वारा जारी स्मारक डाक टिकट उनके स्थायी प्रभाव को स्वीकार करता है और भावी पीढ़ियों के लिए उनकी विरासत को संरक्षित करता है।

डाक टिकट और अन्‍य डाक टिकट संबंधी वस्तुएं, जिनमें फर्स्ट डे कवर (एफडीसी) और सूचना विवरणिका शामिल हैं, अब पूरे भारत में फिलेटली ब्यूरो और www.epostoffice.gov.in पर ऑनलाइन उपलब्ध हैं

1 अप्रैल से बैंकों के नए नियम

अगर आपका खाता किसी बैंक में है, तो यह खबर आपके लिए जरूरी है। 1 अप्रैल 2025 से पूरे देश में बैंकिंग से जुड़े कई नियम बदलने जा रहे हैं। इनका असर आपके सेविंग्स अकाउंट, क्रेडिट कार्ड और एटीएम ट्रांजैक्शन पर पड़ेगा। अगर आप इन बदलावों को पहले से जान लेंगे, तो फाइनेंशियल नुकसान से बच सकते हैं और बैंकिंग फायदों का पूरा फायदा उठा सकेंगे।

1 अप्रैल से बैंकिंग नियमों में क्या होंगे बड़े बदलाव:

ATM से निकासी पर नई पॉलिसी लागू

अब एटीएम से फ्री में कितनी बार पैसा निकाल सकेंगे, इसमें बदलाव किया गया है। कई बैंकों ने अपने एटीएम निकासी से जुड़े नियमों को अपडेट किया है। खासकर, दूसरे बैंकों के एटीएम से निकासी पर फ्री लिमिट घटा दी गई है। अब ग्राहक केवल तीन बार ही किसी दूसरे बैंक के एटीएम से बिना चार्ज के पैसे निकाल सकेंगे।
इसके बाद हर ट्रांजैक्शन पर ₹20 से ₹25 तक का चार्ज देना होगा।

डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा देने के लिए बैंक लगातार नई सुविधाएं जोड़ रहे हैं। अब ग्राहक ऑनलाइन बैंकिंग के जरिए पहले से बेहतर सेवाएं ले सकेंगे। इसके लिए बैंक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से चलने वाले चैटबॉट भी ला रहे हैं, जो ग्राहकों की मदद करेंगे। साथ ही, डिजिटल लेन-देन को सुरक्षित बनाने के लिए टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन और बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन जैसी सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत किया जा रहा है।

अब बदल गए हैं मिनिमम बैलेंस के नियम

SBI, पंजाब नेशनल बैंक, केनरा बैंक और कुछ अन्य बैंकों ने मिनिमम बैलेंस से जुड़े नियमों में बदलाव किया है। अब यह बैलेंस इस बात पर निर्भर करेगा कि आपका खाता शहरी, अर्ध-शहरी या ग्रामीण इलाके में है। तय राशि से कम बैलेंस रखने पर जुर्माना देना पड़ सकता है।

पॉजिटिव पे सिस्टम (PPS) लागू

लेनदेन की सुरक्षा बढ़ाने के लिए कई बैंकों ने पॉजिटिव पे सिस्टम (PPS) शुरू किया है। इस सिस्टम के तहत अब ₹5,000 से ज्यादा के चेक के लिए ग्राहक को चेक नंबर, तारीख, प्राप्तकर्ता का नाम और रकम की जानकारी पहले से बैंक को देनी होगी। इससे धोखाधड़ी और गलतियों की संभावना कम होगी।

सेविंग्स अकाउंट और FD पर ब्याज दरों में बदलाव

कई बैंक अब सेविंग्स अकाउंट और फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) पर ब्याज दरों में बदलाव कर रहे हैं। अब सेविंग्स अकाउंट का ब्याज खाता बैलेंस पर निर्भर करेगा—जितना ज्यादा बैलेंस, उतना बेहतर रिटर्न। इन बदलावों का मकसद ग्राहकों को ज्यादा ब्याज देकर बचत को बढ़ावा देना है।

क्रेडिट कार्ड बेनिफिट्स में बदलाव

एसबीआई और आईडीएफसी फर्स्ट बैंक समेत कई बड़े बैंक अपने को-ब्रांडेड विस्तारा क्रेडिट कार्ड्स के फायदे बदल रहे हैं। अब इन कार्ड्स पर मिलने वाले टिकट वाउचर, रिन्यूअल पर मिलने वाले फायदे और माइलस्टोन रिवॉर्ड्स जैसे बेनिफिट्स बंद कर दिए जाएंगे। एक्सिस बैंक भी अपने विस्तारा क्रेडिट कार्ड्स के फायदे 18 अप्रैल से बदलने जा रहा है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बढ़ते कदम

दिनांक 21 से 23 मार्च तक बंगलूरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना वर्ष 1925 में दशहरा के पावन पर्व पर हुई थी, और इस प्रकार संघ अपनी स्थापना के 100वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है एवं इस वर्ष दशहरा के शुभ अवसर पर ही अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण कर लेगा। संघ की स्थापना विशेष रूप से भारतीय हिंदू समाज में राष्ट्रीयत्व का भाव जागृत करने एवं हिंदू समाज के बीच समरसता स्थापित करने के लक्ष्य को लेकर हुई थी। इन 100 वर्षों के अपने कार्यकाल में संघ ने हिंदू समाज को एकजुट करने में सफलता तो हासिल कर ही ली है साथ ही विशेष रूप से समाज की सज्जन शक्ति में राष्ट्रीयत्व का भाव पैदा करने में सफलता अर्जित की है। सज्जन शक्ति समाज की वह शक्ति है कि जिनकी बात समाज में गम्भीरता से सुनी जाती है एवं उस पर अमल करने का प्रयास भी होता है। संघ ने अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु शाखाओं की स्थापना की थी। इन शाखाओं में देश की युवा पीढ़ी में राष्ट्रीयत्व का भाव जगाकर ऐसे स्वयंसेवक तैयार किए जाते हैं जो समाज के बीच जाकर देश के आम नागरिकों में राष्ट्र भावना का संचार करते हैं एवं समाज के बीच समरसता का भाव पैदा करने का प्रयास करते हैं।

संघ द्वारा स्थापित की गई शाखाओं की कार्यपद्धति पर आज विश्व के अन्य कई देशों में शोध कार्य किए जाने के बारे में सोचा जा रहा है कि किस प्रकार संघ द्वारा स्थापित इन शाखाओं से निकला हुआ स्वयंसेवक समाज परिवर्तन में अपनी महती भूमिका निभाने में सफल हो रहा है और पिछले लगातार 100 वर्षों से इस पावन कार्य में संलग्न है। हाल ही में, दिनांक 14 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक (44 दिन) प्रयागराज में लगातार चले एवं सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए महाकुम्भ के मेले में पूरे विश्व से 66 करोड़ से अधिक हिंदू धर्मावलम्बियों ने पवित्र त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाई। इतनी भारी संख्या में हिंदू समाज कभी भी किसी महान धार्मिक आयोजन में शामिल नहीं हुआ होगा और संभवत: पूरे विश्व में कभी भी इस तरह का आयोजन सम्पन्न नहीं हुआ होगा। इस महाकुम्भ में समस्त हिंदू समाज एकजुट दिखाई दिया, न किसी की जाति, न किसी का मत, न किसी के पंथ का पता चला। बस केवल सनातनी हिंदू हैं, यही भावना समस्त श्रद्धालुओं में दिखाई दी। इसी का प्रयास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 100 वर्षों से करता आ रहा है।

संघ द्वारा आज न केवल भारतीय हिंदू समाज को एकता के सूत्र में पिरोए जाने का कार्य किया जा रहा है बल्कि पूरे विश्व में अन्य देशों में निवासरत भारतीय मूल के हिंदू समाज के नागरिकों को भी एक सूत्र में पिरोए जाने का प्रयास किया जा रहा है। यह कार्य संघ के स्वयंसेवकों द्वारा संघ की शाखा में प्राप्त प्रशिक्षण के बाद सम्पन्न किया जाता है। संघ द्वारा संचालित शाखाओं की संख्या 14 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 के 73,117 से बढ़कर वर्ष 2025 में 83,129 हो गई है। इन शाखाओं के लगने वाले स्थानों की संख्या भी वर्ष 2024 में 45,600 से बढ़कर 51,710 हो गई है। विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की भावना जगाने के उद्देश्य से विशेष रूप से विद्यार्थियों के लिए विद्यार्थी संयुक्त शाखाएं भी देश के विभिन्न भागों में लगाई जाती हैं।  विद्यार्थी संयुक्त शाखाओं की संख्या 17 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 20224 में 28,409 से बढ़कर वर्ष 2025 में 33,129 हो गई हैं।

इसी प्रकार महाविद्यालयीन छात्रों के लिए भी विशेष शाखाएं लगाई जाती हैं। महाविद्यालयीन (केवल तरुणों के लिए) शाखाओं की संख्या 10 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 में 5,465 से बढ़कर वर्ष 2025 में 5,991 हो गई है। तरुण व्यवसायी शाखाओं की संख्या भी 14 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 में 21,718 से बढ़कर वर्ष 2025 में 24,748 हो गई है, इस शाखाओं में विशेष रूप से तरुणों को शामिल किया जाता है। प्रौढ़ व्यवसायी शाखाओं की संख्या 14 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ वर्ष 2024 में 8,241 से बढ़कर वर्ष 2025 में 9,397 हो गई है एवं बाल शाखाओं की संख्या भी वर्ष 2024 में 9,284 से बढ़कर वर्ष 2025 में 9,864 हो गई है। बाल शाखाओं में छोटी उम्र के बालकों को शामिल किया जाता है।

उक्त वर्णित शाखाओं के माध्यम से आज संघ का देश के कोने कोने में विस्तार सम्भव हुआ है। संघ की दृष्टि से देश भर में कुल खंडों की संख्या 6,618 है। इनमें से शाखायुक्त खंडों की संख्या वर्ष 2024 में 5,868 थी जो वर्ष 2025 में बढ़कर 6,112 हो गई है। साथ ही, कुल 58,939 मंडलों में से 30,770 मंडलों में संघ की शाखा लगाई जा रही है। देश भर में महानगरों के अतिरिक्त कुल 2,556 नगर हैं। इन नगरों में से 2,476 नगरों में संघ की शाखा पहुंच गई है।

संघ द्वारा विभिन्न श्रेणियों यथा चिकित्सक, अधिवक्ता, शिक्षक, सेवा निवृत अधिकारी एवं कर्मचारी, पत्रकार,  प्रोफेसर, युवा उद्यमी जैसी श्रेणीयों के लिए साप्ताहिक मिलन कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। आज देश भर में 32,147 साप्ताहिक मिलन लगाए जा रहे हैं। साथ ही, संघ मंडलियों का गठन भी किया गया है और आज देश भर में 12,091 संघ मंडलियां भी नियमित रूप से लगाई जा रही हैं। भारत में संघ द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न सेवा कार्यों को सम्पन्न करने की दृष्टि से 37,309 सेवा बस्तियां हैं। इनमें से 9,754 सेवा बस्तियां संघ की शाखा से युक्त हैं।

संघ के स्वयसेवकों को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से देश भर में प्राथमिक शिक्षा वर्ग भी लगाए जाते हैं। वर्ष 2023-24 में कुल 1,364 प्राथमिक शिक्षा वर्ग लगाए गए एवं इन प्राथमिक शिक्षा वर्गों में 31,070 शाखाओं के 106,883  स्वयंसेवकों ने भाग लिया।

वैश्विक पटल पर भी संघ का कार्य द्रुत गति पकड़ता दिखाई दे रहा है। विश्व के अन्य देशों में हिंदू स्वयंसेवक संघ कार्य कर रहा है। आज विश्व के 53 देशों में 1,604 शाखाएं एवं 60 साप्ताहिक मिलन कार्यरत हैं। पिछले वर्ष 19 देशों में 64 संघ शिक्षा वर्ग लगाए गए। विश्व के 62 विभिन्न स्थानों पर संस्कार केंद्र भी कार्यरत हैं। जर्मनी से इस वर्ष 13 विस्तारक भी निकले हैं। हिंदू स्वयंसेवक संघ के माध्यम से भारत से नई उड़ान भर रहे युवाओं को जोड़ा जाता है ताकि एक तो विदेशों में इनकी कठिनाईयों को दूर किया जा सके तथा दूसरे इनमें सनातन संस्कृति के भाव को जागृत किया जा सके। साथ ही, इन युवाओं के भारत में रह रहे बुजुर्ग माता पिता से भी सम्पर्क बनाया जाता है। संघ के स्वयंसेवक भारत में इनकी समस्याओं को हल करने का प्रयास भी करते हैं। भारत में धार्मिक पर्यटन पर आने वाले भारतीय मूल के नागरिकों की सहायता भी संघ के स्वयंसेवकों द्वारा किए जाने का प्रयास किया जाता है तथा भारतीय मूल के नागरिक यदि भारत में वापिस आकर बसने के बारे में विचार करते हैं तो उन्हें भी इस सम्बंध में उचित सहायता उपलब्ध कराए जाने का प्रयास किया जाता है।

कुल मिलाकर आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू सनातन संस्कृति को भारत के जन जन के मानस में प्रवाहित करने का कार्य करने का प्रयास कर रहा है ताकि प्रत्येक भारतीय के मन में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो एवं उनके लिए भारत प्रथम प्राथमिकता बन सके। यह कार्य संघ की शाखाओं में प्रशिक्षित होने वाले स्वयसेवकों द्वारा समाज के बीच में जाकर करने का सफल प्रयास किया जा रहा है। और, यह कार्य आज पूरे विश्व में शांति स्थापित करने के लिए एक आवश्यक आवश्यकता भी बन गया है।

प्रहलाद सबनानी

डॉ. अच्युत सामंता ने ‘कीस’ और ‘कीट’ के माध्यम से ओड़िशा को विश्वस्तरीय पहचान दी

यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा कि 1992-93 ओड़िशा को प्रगतिपथ पर आगे बढ़ाने में सहायक हैं महान् शिक्षाविद् प्रोफेसर अच्युत सामंत और उनकी विश्वस्तरीय संस्थाएं-कीट-कीस और कीम्स। हाल ही में(19मार्च,25 को) प्रोफेसर सामंत के क्षेत्रीय ओड़िया कलिंग टेलीविजन के 11वें स्थापना दिवस पर स्थानीय मेफेयर कंवेंशन में एक कनक्लेव रखा गया था जिसका थीम थाः प्रगति पथ पर ओड़िशा। मंचासीन थे समारोह के मुख्य अतिथि के रुप में ओड़िशा सरकार के राजस्व तथा आपदाप्रबंधन मंत्री सुरेश पुजारी सम्मानित अतिथि के रुप में ओड़िशा सरकार के आबकारी, कानून, निर्माण(नियुक्ति,सिंचाई,तटबंध,जलनिकास और बिजली मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन,भाजपा ओड़िशा के प्रांतीय अध्यक्ष मनमोहन सामल,बीजेडी के पूर्व मंत्री तथा वर्तमान में बीजेडी विधायक अरुण साहू,कलिंग टेलीविजन के संस्थापक प्रोफेसर अच्युत सामंत,कलिंग टेलीविजन के कार्यकारी हेड डॉ हिमाशु शेखर खटुआ तथा सम्पादक सौम्यरंजन पटनायक आदि।
अपने स्वागत संबोधन में प्रोफेसर अच्युत सामंत ने मंचस्थ तथा सभागार में उपस्थित सभी विशिष्ट और आमंत्रित अतिथियों का स्वागत करते हुए यह बताया कि उन्होंने 1992-93 में अपनी कुल जमा पूंजी पांच हजार रुपये से अपनी दो संस्थाएं कीट-कीस खोली। आज वे दोनों संस्थाएं दो डीम्ड विश्वविद्यालय (कीट डीम्ड विश्विद्यालय तथा कीस डीम्ड विश्वविद्यालय)। उन्होंने बताया कि ओड़िशा प्रदेश आदिवासी बाहुल्य प्रदेश है जहां की कुल आबादी का लगभग 24 प्रतिशत आदिवासी हैं और वे उन्हीं आदिवासी समुदाय के बच्चों को आवासीय सह शैक्षिक सुविधाएं फ्री उपलब्ध कराकर उन्हें केजी कक्षा से पीजी कक्षा तक पढ़ाते हैं।
उनकी संस्था कीस मानव निर्माण की विश्व की एकमात्र ऐसी संस्था है जहां पर चरित्रवान,जिम्मेवार तथा सच्चे देशभक्त नागरिक तैयार होते हैं जिसकी आवश्यकता आज ओड़िशा के साथ-साथ भारत को है।ओड़िशा सरकार का संकल्प है कि वर्तमान मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी की प्रदेश सरकार 2036 तक ओड़िशा को एक विकसित प्रदेश बना देगी। प्रोफेसर सामंत ने अपने संबोधन में यह बताया कि पिछले लगभग 30 वर्षों से ओड़िशा को वे कीट-कीस-कीम्स के माध्यम से सतत विकास के प्रगति पथ पर ले जा रहे हैं।गौरतलब है कि कीट-कीस में 40-40 हजार छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं जबकि वहां पर लगभग 25 हजार अधिकारी व कर्मचारीगण कार्यरत हैं। यही नहीं, कीट-कीस-कीम्स के माध्यम से प्रत्यक्ष और परोक्ष रुप से लगभग पांच लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। प्रोफेसर सामंत ने बताया कि विकास एक सतत प्रक्रिया है और उनकी यह कोशिश रहेगी कि ओड़िशा के विकास की यह यात्रा वे स्वयं आगे बढ़ाएंगे। उनकी बातों का समर्थन ओड़िशा सरकार के मंचस्थ सभी मंत्रियों ने किया।
मुख्य अतिथि सुरेश पुजारी ने कहा कि आज ओड़िशा के आदिवासी समुदाय के बच्चों को प्रोफेसर अच्युत सामंत निःशुल्क और उत्कृष्ट शिक्षा प्रदानकर प्रदेश के आदिवासियों का कल्याण कर रहे हैं। प्रोफेसर सामंत के चहुमुखी योगदानों जैसेः शिक्षा,स्वास्थ,खेल आदि के प्रति आभार ओड़िशा सरकार आभारी है। वहीं मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने बताया कि प्रोफेसर अच्युत सामंत का कलिंग टेलीविजन क्षेत्रीय चैनल प्रदेश का एकमात्र सकारात्मक चैनल है जो वर्तमान सरकार की अपलब्धियों की जानकारी देता है।

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल का कहना था कि जिस प्रकार का जनहितकारी कार्य प्रोफेसर अच्युत सामंत पिछले लगभग 30 सालों से करते आ रहे हैं उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ओड़िशा प्रगति के पथ पर सतत अग्रसर है। विधायक अरुण साहू के अनुसार वे और उनका बीजेडी दल वर्तमान सरकार को ओड़िशा को प्रगति के पथ पर सही रुप से आगे बढ़ाने में एक प्रतिपक्षी दल के रुप में कार्य करेगा। गौरतलब है कि कीट के पास आज समस्त और अत्याधुनिक खेल संसाधनों से संपन्न इनडोर और आऊटडोर स्टेडियम हैं।कीट-कीस के पास  लगभग पांच हजार राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय खिलाडी हैं।कीट में खेलों के कई अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त खेल के मैदान तैयार कराये।कीट के पास दुती चांद जैसे अनेक ओलंपियन हैं। स्वयं प्रोफेसर अच्युत सामंत भारतीय बालीवाल परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

मुस्लिम इतिहासकार ने लिखा मुस्लिमों द्वारा शुरु किए गए मेलों का क्रूर इतिहास

संभल ही नहीं… जहाँ-जहाँ डाला डेरा, वहाँ-वहाँ मुस्लिम लगाते हैं ‘मेला’: हिंदू घृणा से सैयद सालार बना ‘गाजी’, जानिए क्यों हो रही बहराइच के ‘जेठा मेला’ को भी बंद करने की माँग

किताब में आगे लिखा है कि एक दिन पृथ्वीराज चौहान के घराने का एक राजकुमार ने उस लड़की को देखा और उसके प्रति आकर्षित हो गया। उसकी बेटी भी राजकुमार से आकर्षित हो गई। इससे सैयद पचासे गुस्सा हो गया और गजनी जाकर महमूद गजनवी से सारी बात बताई। इसके बाद महमूद गजनवी ने अपनी बहन के बेटे सैयद सालार मसूद गाजी के साथ एक विशाल सेना लेकर निकला।

उत्तर प्रदेश के संभल में पिछले 800 सालों से विदेशी आक्रांता सालार मसूद के कब्र पर आयोजित होने वाले ‘नेजा मेले’ की अनुमति नहीं दी गई है। सालार मसूद क्रूर आक्रांता था, जिसने बड़े पैमाने पर हिंदुओं का नरसंहार किया और मंदिरों को ध्वस्त किया। इसी कारण उसे ‘गाजी’ (इस्लाम के लिए काफिरों से लड़ने वाला) की उपाधि मिली थी। संभल के बाद सालार के लिए बहराइच में लगने वाले जेठा मेला और बाराबंकी में उसके बाप की कब्र पर लगने वाले मेले पर रोक की माँग उठने लगी है।

संभल में सालार मसूद गाजी के कब्र पर मेला (उर्स) के इजाजत देने से इनकार करते हुए ASP श्रीश चन्द्र दीक्षित ने कहा कि किसी लुटेरे आक्रान्ता की याद में मेला आयोजित नहीं किया जाएगा। यह अपराध है। उन्होंने कहा कि अगर कोई ऐसा करने का प्रयास करता है तो उस पर कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि वह महमूद गजनवी का सेनापति था, उसने सोमनाथ को लूटा था।

ASP ने कहा, “किसी भी लुटेरे के प्रति आप कहेंगे कि यह बहुत अच्छा है तो यह बिलकुल नहीं माना जाएगा। अगर आप लोग अभी तक कर रहे थे तो यह कुरीति थी और आप अज्ञानता में यह कर रहे थे। अगर जानबूझ कर रहे थे तो आप देशद्रोही थे।” उन्होंने कहा कि उसने इस देश के प्रति अपराध किया था। लुटेरे की याद में कोई नेजा (झंडा-निशान) नहीं गड़ेगा। अगर ये झंडा गड़ गया तो वह देशद्रोह है।

सालार मसूद गाजी भारत में आक्रमण करने के दौरान जहाँ-जहाँ डेरा डाला था, वहाँ-वहाँ आज मुस्लिमों द्वारा उर्स मनाया जाता है। इनमें मेरठ का नौचंदी मेला, पुरनपुर (अमरोहा) का नेजा मेला, थमला और संभल के मेले प्रमुख हैं। इसके अलावा, कई अन्य स्थानों पर आज भी उर्स भी मनाए जाते हैं।

बाराबंकी में सालार मसूद गाजी के अब्बू सैयद सालार साहू गाजी उर्फ बूढ़े बाबा की दरगाह है। यहाँ भी यह सालाना उर्स हर साल के ज्येष्ठ माह (जेठ महीना) के पहले शनिवार को मनाया जाता है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यहाँ रहने वाले मोहम्मद सिद्दीकी और अन्य कार्यकर्ताओं ने बताया कि बूढ़े बाबा अफगानिस्तान का रहने वाले था। वह अफगानिस्तान के गजनी के शासक महमूद गजनवी का बहनोई था।

कहा जाता है कि 1400 साल पहले वह अपनी बीवी और बेटों के साथ अजमेर शरीफ आ गया था। यहीं पर सालार मसूद गाजी का जन्म हुआ। कहा जाता है कि बच्चे के जन्म के बाद उसकी बीवी वापस अफगानिस्तान चली गई। वहीं, अबू सैयद सालार साहू गाजी बूढ़े बाबा अपने बेटे सैयद सालार मसूद गाजी के साथ बाराबंकी के सतरिख आ गया। यहाँ पर अबू सैयद मर गया और दफना दिया गया।

इसे ही आज बूढ़े बाबा की दरगाह कहा जाता है। समय-समय पर बूढ़े बाबा के कब्र को भी मजार का रूप दे दिया गया इसके बाद उसे दरगाह में तब्दील कर दिया गया। उसे गाजी के बाद बूढ़ा बाबा नाम के संत के रूप में प्रचारित किया गया। इसके कारण बड़ी संख्या में हिंदू भी इस मजार पर आते हैं। इन हिंदुओं की इन आक्रांताओं के इतिहास के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

सैयद सालार मसूद गाजी का जन्म 11वीं सदी में सन 1014 ईस्वी में राजस्थान के अजमेर में हुआ था। हालाँकि, सालार के जन्म को लेकर भी संशय है और इतिहासकारों में एकमत नहीं है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सालार का जन्म अफगानिस्तान में हुआ था और वह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। खैर, उसका जन्म जहाँ कहीं भी हुआ हो, लेकिन वह बेहद ही क्रूर और हिंदुओं से नफरत करने वाला था।

यह प्रमाणित सत्य है कि अफगानिस्तान के गजनी के शासक महमूद गजनवी का भाँजा था। इसके साथ ही वह गजनवी के सेना का सेनापति भी था। यह वहीं गजनवी है, जिसने सबसे पहले सन 1001 में भारत पर हमला किया था। इसके बाद उसने एक-के-बाद एक करके लगातार 17 बार हमले किए और भारत के सोमनाथ मंदिर सहित भारत के कई मंदिरों को लूटा और उन्हें ध्वस्त कर दिया था।

सन 1930 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से छपी ‘द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ सुल्तान महमूद ऑफ गाजना’ नाम की पुस्तक में इतिहासकार मोहम्मद नाजिम ने इसके बारे में बताया है। उन्होंने लिखा है कि वह गजनी के नेतृत्व में सन 1026 ईस्वी में सैयद सालार मसूद गाजी ने सबसे बड़ा हमला सोमनाथ मंदिर पर किया था। रास्ते में पड़ने वाले मंदिरों, रियासतों और हिंदुओं का नरसंहार करता आया।

‘अनवार-ए-मसऊदी’ नाम की अपनी किताब में बहराइच के रहने वाले और इतिहासकार मौलाना मोहम्मद अली मसऊदी ने लिखा है कि सोमनाथ और आसपास की रियासतों पर लूटने-पाटने केबाद सैयद सालार गाजी आगे बढ़ा। वह 1030 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के सतरिख पहुँचा। वहाँ से वह श्रावस्ती पहुँचा और वहाँ के राजा सुहेलदेव से उसका मुकाबला हुआ।

सन 1034 ईस्वी में बहराइच जिला मुख्यालय के पास सालार मसूद का मुकाबला महाराजा सुहेलदेव से हुआ। कहा जाता है कि महाराजा सुहेलदेव ने 21 अन्य छोटे-बड़े राजाओं के साथ मिलकर उसका सामना किया और आखिरकार इस गाजी का उपाधि धारण करने वाले इस आक्रांता को मार गिराया। इसके बाद स्थानीय मुस्लिमों ने उसके शव को दफना दिया।

पृथ्वीराज चौहान के साथ संभल में युद्ध

कहा जाता है कि दिल्ली के अंतिम हिंदू शासक पृथ्वीराज चौहान का का भी सालार मसूद गाजी के साथ युद्ध हुआ था। संभल जिला प्रशासन की वेबसाइट के अनुसार, दोनों के बीच दो युद्ध हुए। इसमें पहले युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने सालार गाजी को करारी शिकस्त दी। वहीं, सालार के साथ दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार की बात कही जाती है। हालाँकि, ऐतिहासिक रूप से इसके साक्ष्य नहीं हैं।

इतिहासकार बृजेंद्र मोहन शंखधर की किताब ‘संभल: अ हिस्टोरिकल सर्वे’ नाम की अपनी किताब में इसका जिक्र किया है। इसमें उन्होंने लिखा पृथ्वीराज चौहान के संभल में रहने के दौरान एक वाकया हुआ था। किताब के अनुसार, “यहाँ सैयद पचासे नाम का एक मुस्लिम व्यक्ति रहता था। इसकी कब्र फिलहाल मोहल्ला नाला कुस्साबान में है। वह सँभल के किले में रहता था। उसकी एक अत्यंत सुंदर बेटी थी।”

किताब में आगे लिखा है कि एक दिन पृथ्वीराज चौहान के घराने का एक राजकुमार ने उस लड़की को देखा और उसके प्रति आकर्षित हो गया। उसकी बेटी भी राजकुमार से आकर्षित हो गई। इससे सैयद पचासे गुस्सा हो गया और गजनी जाकर महमूद गजनवी से सारी बात बताई। इसके बाद महमूद गजनवी ने अपनी बहन के बेटे सैयद सालार मसूद गाजी के साथ एक विशाल सेना लेकर निकला।

वह सिंध को पारकर मुल्तान, मेरठ और पुरनपुर (अमरोहा) होते हुए संभल पहुँचा। यहाँ पर युद्ध में दोनों ओर से हजारों सैनिक मारे गए। इसमें पृथ्वीराज चौहान के पुत्र भी मारे गए। बाद में सालार ने संभल के किले पर कब्जा कर लिया गया। यहाँ से वह बहराइच भी गया और वहाँ मारा गया।

हालाँकि, इतिहासकारों से लेकर सत्यापित ग्रंथों में इसे एक लोककथा माना जाता है, क्योंकि पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1166 ईस्वी में माना जाता है, जबकि मृत्यु मोहम्मद गोरी के साथ युद्ध में 1192 में हुई थी। वहीं, सालार मसूद ने सन 1026 में 16 साल की अवस्था में सोमनाथ मंदिर पर हमला किया था। इस तरह, दोनों में 166 साल का अंतर है।

सैयद सालार मसूद गाजी की कब्र

इसके बाद जिला मुख्यालय के पास पहने वाली नदी के पास चित्तौरा झील के किनारे उसे दफना दिया गया। यह भी कहा जाता है कि जिस जगह पर सालार मसूद को दफनाया गया, वहाँ बालार्क ऋषि का आश्रम था। उस आश्रम में सूर्यकुण्ड नाम का एक कुंड भी थी। बहराइच जिला को वेदों में गंधर्व वन बताया गया है।

बीतते के साथ, उस कब्र को मजार का रूप दे दिया गया। सालार गाजी की मौत के 200 वर्षों के बाद सन 1250 में दिल्ली का मुगल शासक नसीरुद्दीन महमूद ने कब्र को मकबरा का रूप दे दिया। आगे चलकर एक और मुगल शासक फिरोजशाह तुगलक ने इस मकबरे के बगल में कई गुंबदों का निर्माण करा दिया।

वहीं पर अब्दी गेट भी लगवाए। यही अब्दी गेट आगे चलकर सालार मसूद गाजी की दरगाह के नाम पर विख्यात हुआ। चूँकि सालार मसूद को मुस्लिम गाजी मानते थे। इसलिए मुस्लिम उसके कब्र पर सालना उर्स का आयोजन करने लगे और उसे संत ‘बाले मियाँ’ और ‘हठीला’ कहकर प्रचारित करने लगे।

संभल और बहराइच की ओर बढ़ते समय मुस्लिम आक्रांता सालार मसूद गाजी और उसके सैनिकों ने जहाँ-जहाँ डेरा डाला था, वहाँ-वहाँ आज भी मेले आयोजित किए जाते हैं। इनमें मेरठ का नौचंदी मेला, अमरोहा का पुरनपुर का नेजा मेला, थमला का मेला, संभल का मेला और बहराइच का मेला प्रमुख है। इन सभी स्थानों पर उर्स मनाए जाते हैं।

गाजी सैयद सालार मसूद का इतिहास: इस्लामी आक्रांता, जिसे दिखाया गया संत

इन आक्रांताओं की मौत के बाद उसे दरगाह का रूप दे दिया गया। इसके बाद इन्हें संत के रूप में नाम बदलकर प्रसारित किया गया। इसके बाद बड़ी संख्या में हिंदू भी इन मजारों पर आने लगे और लाखों-करोड़ों रुपए की कमाई इन दरगाह समितियों को होने लगी। इसके लिए की तरह के अफवाह एवं भ्रांतियाँ फैलाई गईं।

कहा जाता है कि सालार मसूद ने ज़ुहरा बीबी नाम की एक लड़की से शादी की थी। उसने अपने चमत्कार से उस लड़की का अंधापन ठीक कर दिया था। इसके बाद उससे निकाह कर लिया था। इतिहासकार एना सुवोरोवा ने तो गाजी मियाँ कहलाने वाले सालार मसूद गाजी की तुलना भगवान श्रीकृष्ण और भगवान श्रीराम तक से कर दी है। साथ ही यह भी कहा कि हिन्दू उन्हें इसी रूप में देखते थे।

इसी तरह का चमत्कार सैयद सालार मसूद गाजी के अब्बू अबू सैयद सालार साहू गाजी को लेकर प्रसारित किया गया। उन्हें बूढ़े बाबा के नाम से प्रसारित किया गया और उनके चमत्कारिक किस्से की बात कही जाने लगी। हिंदुओं को तो ये भी नहीं पता कि ये भारत में आक्रमण करने वाले थे और मूर्तिपूजा एवं मंदिरों के सख्त विरोधी थे।

आज हालात ऐसे हैं कि उर्स लगने वाले इन सभी जगहों पर भारी संख्या में हिंदू आते हैं। ये राज्य के अलग-अलग इलाकों से आते हैं और मन्नत मानते हैं। मन्नत पूरा होने के बाद ये यहाँ फिर आते हैं। इस तरह आक्रांता को संत के रूप में प्रसारित करके उन्हें अवतार घोषित करने की कोशिश की गई, जो अब तक सफल भी रही।

साभार- https://hindi.opindia.com/ से

आठ साल में ‘बुलडोजर बाबा’ ने बता दिया मुख्यमंत्री क्या होता है

योगी आदित्यनाथ 19 मार्च 2017 को जब राजधानी लखनऊ के कांशीराम स्मृति उपवन स्थल में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि वे उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाएँगे। यह वो दौर था जब इस देश के पॉलिटिकल पंडित कहते थे की योगी आदित्यनाथ के पास कोई प्रशासनिक अनुभव पहले से नहीं है।

इन सब अटकलों के बावजूद सीएम योगी ने 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा किया और साल 2022 के विधानसभा चुनावों में एक बार फिर से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनवाने में मदद की। इसके बाद वे एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश में सरकार बनी और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने।

आज योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में सफलतापूर्वक अपने मुख्यमंत्रित्व काल के 8 वर्ष पूरे कर लिए, जो उत्तर प्रदेश जैसे विशाल प्रदेश के लिए एक रिकॉर्ड है। 25 करोड़ जनता के साथ देश को सर्वाधिक प्रधानमंत्री देने वाले उत्तर प्रदेश में सन 1952 से लेकर अब तक सबसे लंबे कार्यकाल तक मुख्यमंत्री रहने वाले योगी आदित्यनाथ ने रिकॉर्ड ऐसे ही नहीं बनाया है।

इसका कारण उत्तर प्रदेश की जनता के प्रति मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का समर्पण, त्याग, कठिन परिश्रम और निष्ठा है, जिसका परिणाम जनता उनके ऊपर विश्वास जताकर देती रहती है। चाहे कानून व्यवस्था हो, अर्थव्यवस्था हो, सुरक्षा हो या फिर धर्म एवं आस्था का विषय… योगी आदित्यनाथ ने हर दृष्टिकोण से उत्तर प्रदेश को आगे बढ़ाने का काम किया।

किसी भी प्रदेश को आगे बढ़ाने के लिए वहाँ पर कानून व्यवस्था का सुचारू रूप से होना अत्यंत आवश्यक होता है, क्योंकि तभी व्यापारी सुकून महसूस करते हैं, अर्थव्यवस्था मजबूत होती है और लोगों को रोजगार मिलता है। इसके लिए उन्होंने पहले की सरकारों के दौरान चल रहे जिलों में संगठित अपराधों पर लगाम लगाई। तमाम आलोचनाओं के बावजूद भी अपराधियों पर बुलडोजर चलता रहा।

आज उत्तर प्रदेश में किसी भी जिले में कोई बड़ा अपराधी नहीं है। ये अपराधी या तो जेल में हैं या फिर यमलोक में। उत्तर प्रदेश के डीजीपी प्रशांत कुमार के अनुसार, प्रदेश में करीब 222 दुर्दांत अपराधियों का एनकाउंटर किया गया है। 8118 अपराधी घायल हुए हैं और 20,221 इनामी अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है। वहीं, 79,984 के पर गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई हुई है।

इसके अलावा, 930 अपराधियों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत करवाई की गई। 142 अरब से अधिक अपराधियों की संपत्ति जब्त की गई है। ये सब इसलिए किया गया, ताकि उत्तर प्रदेश की जनता सुकून की साँस ले सके, व्यापारी सुरक्षित महसूस कर सके, अर्थव्यवस्था मजबूत हो सके और बहन बेटियाँ सुरक्षित महसूस कर सकें।

आजादी से लेकर साल 2017 तक उत्तर प्रदेश पुलिस में जितनी महिलाओं की भर्ती हुई है, उसका तीन गुना भर्ती केवल योगी आदित्यनाथ ने पिछले 8 वर्षों में की है। इतना ही नहीं, साल 2017 से दिसंबर 2024 तक अदालतों में प्रभावी पैरवी करके 31 माफिया और 74 अपराधियों को आजीवन कारावास और दो अपराधियों को फाँसी की सजा दिलवाई गई है।

इससे पहले की सरकारों की स्थिति यह थी कि इन माफियाओं के खिलाफ गवाही देने वाले गवाह या तो मुकर जाते थे या वे मार दिए जाते थे। अब स्थिति पूरी तरह बदल गई है। आज विश्वास नहीं होता कि ये वही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, जिन्हें सांसद रहने के दौरान सदन में कहा जाता था कि ‘संत हो मंदिर में जाकर घंटा बजाओ… राजनीति तुम्हारे बस की बात नहीं है’।

आज उत्तर प्रदेश 20 एयरपोर्ट के साथ पूरे देश भर में नंबर एक स्थान पर है। यहाँ पाँच अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट हैं। जेवर एयरपोर्ट एशिया का सबसे बड़ा एयरपोर्ट बन चुका है। जब योगी आदित्यनाथ साल 2017 में मुख्यमंत्री बने तब ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ में उत्तर प्रदेश 14वें नंबर पर था। यह योगी आदित्यनाथ के कठिन परिश्रम की बदौलत दुनिया में दूसरे नंबर पर पहुँच चुका है।

साल 2017 में जिस उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था 3.4 लाख करोड़ रुपए की थी, वह बढ़कर आज करीब 8 लाख करोड़ रुपए की हो चुकी है। अर्थव्यवस्था को लेकर योगी आदित्यनाथ की सरकार कितनी प्रतिबद्ध है, वो इससे पता चलता है कि जो प्रदेश पहले ‘वन जिला वन माफिया’ के नाम से जाना जाता था, वह ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ के नाम से जाना जाता है।

आज उत्तर प्रदेश के हर जिले का अपना एक विशेष उत्पाद है, जो उसकी पहचान बनकर उभरी है। इतना ही नहीं, ये योगी आदित्यनाथ की उस आकांक्षा को भी पूरा करने में सहयोगी है, जो उन्होंने यूपी के। लिए सोचा है। योगी आदित्यनाथ ने 2027-28 तक उत्तर प्रदेश को 1 ट्रिलियन डालर की इकनॉमी बनाने का लक्ष्य रखा है। इसकी तरफ वह और उनकी सरकार लगातार प्रयासरत हैं।

साल 2017 में उत्तर प्रदेश छठी-सातवीं अर्थव्यवस्था के रूप में योगी आदित्यनाथ को विरासत के रुप में मिला था। आज वह देश भर में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के बन चुकी है। यहाँ तक पहुँचने के लिए योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार ने कई प्रयास किए हैं। व्यापार एवं आवाजाही को बढ़ाने प्रदेश में 13 एक्सप्रेस-वे का निर्माण किया गया है, जो कुल 55 जिलों को जोड़ते हैं।

आज उत्तर प्रदेश के 75 जनपदों में 77 से अधिक मेडिकल कॉलेज हैं। एक समय था, जब उत्तर प्रदेश का कोई मुख्यमंत्री नोएडा केवल इसलिए नहीं जाता था क्योंकि उसकी कुर्सी ना चली जाए। योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री के रूप में नोएडा का बार-बार दौरा करके इस अंधविश्वास एवं मिथक को तोड़ा और खुद उपस्थित होकर कई परियोजनाओं का शुभारंभ किया।

ना केवल विकास, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था, बल्कि आस्था के मामले पर भी भगवाधारी संत योगी आदित्यनाथ ने खूब काम किया। विश्वास ही नहीं होता कि सिर्फ 45 दिन के महाकुंभ में आस्था की नगरी प्रयागराज में 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने स्नान किया। ये अपने आपमें एक रिकॉर्ड है। कल्पना कीजिए कि यदि महाकुंभ मेला एक देश होता तो विश्व का तीसरा सबसे बड़ा देश होता।

सृष्टि की शुरुआत से अभी तक शायद आस्था का इस तरह का जनसैलाब कभी भी किसी देश या शहर ने नहीं देखा होगा। पूरी दिव्यता एवं आध्यात्मिकता के साथ महाकुंभ सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। सामाजिक समरसता के दृष्टिकोण से भी ये महाकुंभ शानदार रहा, जहाँ लोग जाति और धर्म के बंधन को तोड़कर सिर्फ आस्था के नाम पर एकत्रित हुए और एक-दूसरे की मदद भी की।

यह केवल योगी आदित्यनाथ जैसे भगवाधारी संत के कार्यकाल में ही संभव था, जिन्होंने पूरे प्रदेश एवं देश को अपना परिवार माना है। लोगों ने पर उन पर विश्वास जताया। श्रद्धालुओं के चेहरे पर आस्था की चमक और होठों पर माँ गंगा के जयकारे थे। इस महाकुंभ में ना केवल उत्तर प्रदेश और देश, बल्कि विदेश के भी लाखों लोगों ने अपने-अपने हिस्से का पुण्य कमाया।

प्रयागराज में 45 दिन तक चले धार्मिक संगम में सभी को एक दूसरी सभ्यता और संस्कृति को जानने एवं समझने का मौका मिला। धर्म और आस्था का मजाक उड़ाने वाले लोगों को योगी आदित्यनाथ ने तब जवाब दिया, जब पता चला कि महाकुंभ के आयोजन में शासन द्वारा ₹7,500 करोड़ खर्च करने के बदले में लगभग ₹3 लाख करोड़ तक की आर्थिक गतिविधि उत्पन्न होने का अनुमान है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि दृढ़ इच्छाशक्ति, समर्पण, त्याग एवं कुछ कर गुजरने की चेष्टा हो तो इस धरती पर कुछ भी असंभव नहीं है। ऐसा लगता है कि रामराज्य की परिकल्पना में इससे बेहतर शासन शैली नहीं हो सकती, जहाँ मुख्यमंत्री लगातार यह कहते हों कि प्रदेश की 25 करोड़ जनता ही ‘मेरा परिवार’ है।

विश्वास नहीं होता कि यह वही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, जिसके बारे में मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही मीडिया के एक वर्ग के द्वारा लगातार भ्रामक खबरें चलाई जाती हैं। ऐसी खबरें चलाई जाती रहती हैं कि योगी अब गए कि तब गए। इन्हीं अटकलों के बीच योगी आदित्यनाथ ने देश के सबसे बड़े सूबे में सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड बना दिया।

ये जहाँ भी जाएंगे गंदगी ही फैलाएंगे इनका और कोई धरम नहीं होता

जिस ट्रेन में हाउसकीपिंग का काम करता था जहीउद्दीन शेख, उसके ही टॉयलेट में लगा रखा था स्पाई कैमरा: महिलाओं के बनाता था Video, रेलवे पुलिस ने पकड़ा

अहमदाबाद में ट्रेन के शौचालय में स्पाई कैमरा मिला है। रेलवे पुलिस ने हाउसकीपिंग के एक स्टाफ को गिरफ्तार किया है। आरोपित शौचालय में जासूसी कैमरे लगाकर महिलाओं की वीडियो बनाया करता था। घटना से रेलवे की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।

ये पूरा मामला 16 मार्च 2025 का है, जब मुंबई से भगत की कोठी जाने वाली ट्रेन में सफर कर रहे एक वायुसेना के जवान को शौचालय में कैमरा लगे होने का संदेह हुआ। ढूँढने पर पावर बैंक मिला, जिसके भीतर स्पाई कैमरा छिपाया हुआ था। कैमरे से जुड़े तार डस्टबिन में पड़े हुए थे। पुलिस ने कैमरे की जाँच के बाद आरोपित जहीउद्दीन शेख को गिरफ्तार कर लिया है।

पुलिस के अनुसार, आरोपित मुंबई में रहता है और कई ट्रेनों में हाउसकीपर का काम करता है। रेलवे पुलिस पता लगा रही है कि उसने कितनी ट्रेनों में ऐसे स्पाई कैमरे लगाए हुए हैं ? साथ ही कैमरे में कैद डाटा कहाँ स्टोर करता और किसे बेचता था?

सरकार के छोटे-छोटे कदम टीबी मुक्त भारत की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे

 
(विश्व क्षयरोग दिवस, 24 मार्च पर विशेष आलेख)

हर साल हम 24 मार्च को विश्व क्षयरोग दिवस मनाते हैं। यह कार्यक्रम 24 मार्च 1882 की तारीख को याद करने का दिन है जब जर्मन फिजिशियन  डॉ. रॉबर्ट कोच ने माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु की खोज की थी, यह जीवाणु तपेदिक/क्षय रोग (टीबी) का कारण बनता है। माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस की खोज हो जाने से टीबी के निदान और इलाज में बहुत आसानी हुई। जर्मन फिजिशियन रॉबर्ट कोच की इस खोज के लिए उन्हें 1905 में नोबेल पुरस्कार दिया गया। यही कारण है कि हर वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन टीबी के सामाजिक, आर्थिक और सेहत के लिए हानिकारक नतीजों पर दुनिया में जन-जागरूकता फैलाने और दुनिया से टीबी के खात्मे की कोशिशों में तेजी लाने के लिए विश्व क्षयरोग दिवस मनाता आ रहा है। माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस की खोज के सौ साल बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पहली बार 24 मार्च 1982 को विश्व क्षयरोग दिवस शुरू मनाने की शुरुआत की, तभी से हर साल 24 मार्च को विश्व क्षयरोग दिवस पूरे विश्व में मनाया जाता है।

टीबी (क्षय रोग) एक घातक संक्रामक रोग है जो कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु की वजह से होती है। टीबी (क्षय रोग) आमतौर पर ज्यादातर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं। यह रोग हवा के माध्यम से फैलता है। जब क्षय रोग से ग्रसित व्यक्ति खांसता, छींकता या बोलता है तो उसके साथ संक्रामक ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई उत्पन्न होता है जो कि हवा के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है। ये ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई कई घंटों तक वातावरण में सक्रिय रहते हैं। जब एक स्वस्थ व्यक्ति हवा में घुले हुए इन माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई के संपर्क में आता है तो वह इससे संक्रमित हो सकता है।

आज के समय पर सामान्य टीबी का इलाज कोई चुनौती नहीं है। अगर कोई भी व्यक्ति टीबी का मरीज है तो वह 6-9 महीने टीबी का उपचार लेकर स्वस्थ्य हो सकता है। आज के समय पर सबसे बड़ी चुनौती है ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के इलाज की, जो कि प्रमुख रुप से दो प्रकार की होती है मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी और एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स का टीबी के जीवाणु  (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) पर कोई असर नहीं होता है। अगर टीबी का मरीज नियमित रूप से टीबी की दवाई नहीं लेता है या मरीज द्वारा जब गलत तरीके से टीबी की दवा ली जाती है या मरीज को गलत तरीके से दवा दी जाती है और या फिर टीबी का रोगी बीच में ही टीबी के कोर्स को छोड़ देता है (टीबी के मामले में अगर एक दिन भी दवा खानी छूट जाती है तब भी खतरा होता है) तो रोगी को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी हो सकती है। इसलिए टीबी के रोगी को डॉक्टर के दिशा निर्देश अनुसार नियमित टीबी की दवाओं का सेवन करना चाहिए। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन जैसे दवाओं का मरीज पर कोई असर नहीं होता है क्योंकि आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन ड्रग का टीबी का जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) प्रतिरोध करता है।

एक्सटेंसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी से ज्यादा घातक होती है। एक्सटेंसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के उपचार के लिए प्रयोग होने वाली सेकंड लाइन ड्रग्स का टीबी का जीवाणु प्रतिरोध करता है। एक्सटेंसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन के साथ-साथ टीबी का जीवाणु सेकंड लाइन ड्रग्स में कोई फ्लोरोक्विनोलोन ड्रग (लिवोफ़्लॉक्सासिन और मोक्सीफ्लोक्सासिन) और बेडाक्विलाइन/लिनेजोलिड ड्रग का प्रतिरोध करता है। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी का रोगी द्वारा अगर सेकंड लाइन ड्रग्स को भी ठीक तरह और समय से नहीं खाया जाता या लिया जाता है तो एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी की सम्भावना बढ़ जाती है।

 इस प्रकार की टीबी में एक्सटेंसिव ड्रग्स द्वारा एक साथ कई ड्रग्स का संयोजन बनाकर 2 वर्ष से अधिक तक उपचार किया जाता है। लेकिन एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी का उपचार सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। आज के समय पर ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के उपचार के लिए तीन प्रकार की रेजीमेन- एच मोनो पोली रेजीमेन (6 या 09 माह),  शॉर्टर रेजिमेन (9-11 माह) और ऑल ओरल लोंगर रेजीमेन (18-20 माह) का उपयोग किया जा रहा है। नयी टीबी ड्रग बेडाक्विलाइन का उपयोग भी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी (एमडीआर और एक्सडीआर) के उपचार में किया जा रहा है, बेडाक्विलाइन दवा टीबी की अन्य दवाओं के साथ छः माह तक एक अतिरिक्त दवा के तौर पर दी जाती है।

बीपाल-एम रेजीमेन का देष में अभी विस्तार होना बाकी है, आशा है कि 2025 में भारत के सभी राज्यों में इस नयी ड्रग रेजिस्टेंट रेजीमेन का प्रयोग होने लगेगा। बीपाल-एम रेजीमेन के माध्यम से ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के इलाज में एक क्रांति आयेगी क्योंकि देष में बीपाल-एम रेजीमेन के ट्रायल में इसकी सफलता दर लगभग 93 प्रतिषत रही है। बीपाल-एम रेजीमेन में प्रीटोमैनिड नाम की नयी ड्रग का उपयोग पहली बार किया जा रहा है। इस बीपाल-एम उपचार पद्धति के कई लाभ हैं, जिनमें पारंपरिक एमडीआर-टीबी उपचार की तुलना में कम अवधि, कम लागत, कम गोलियों का बोझ, उच्च प्रभावकारिता, बेहतर अनुपालन और नैदानिक परिणाम शामिल हैं। इस उपचार पद्धति के लिए जरूरी है कि इसके समावेशन और बहिष्करण मानदंड का ध्यान रखा जाए तभी इसका लाभ मरीज को अधिक मिल पायेगा और इसके पार्श्व प्रभाव मरीज में कम होंगे।

टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत सरकार द्वारा तमाम प्रयास किये जा रहे हैं तिसके तहत अब टीबी रोगी के संपर्क में रहने वाले परिवार के लोगों को भी टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी (टीपीटी) दी जाएगी, इससे पहले एचआईवी ग्रस्त मरीजों और टीबी मरीज के परिवार के 6 साल से कम के बच्चों को टीपीटी दी जाती थी। टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी (टीपीटी) एक ऐसी प्रिवेंटिव थेरेपी है जो टीबी होने के जोखिम को कम करने में मदद करती है, खासकर उन लोगों में जो टीबी के संपर्क में आए हैं या जिन्हें टीबी होने का खतरा है। आने वाले समय में देष से टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए टीपीटी एक प्रमुख भूमिका निभायेगी।

यह मील का पत्थर भारत के राष्ट्रीय क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के प्रभाव और कड़ी मेहनत को जाहिर करता है, जो एक व्यापक रणनीति है जो 2025 तक भारत देश के टीबी उन्मूलन के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने के लिए अत्याधुनिक निदान, निवारक देखभाल, रोगी सहायता से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण साझेदारी है। हमारे भारत देश में पूरे विश्व की तुलना में सबसे ज्यादा टीबी मरीजों की संख्या है। भारत देश का लगभग 26 प्रतिशत टीबी बीमारी के मामलों में पूरे विश्व में योगदान है। सबसे ज्यादा दवा प्रतिरोधक टीबी मरीज (एक लाख दस हजार, लगभग 21 प्रतिशत) भी भारत देश में है। भारत देश में ड्रग रेजिस्टेंस टीबी के मरीजों की उपचार सफलता दर जो साल 2020 में 68 प्रतिशत थी वह 2022 में 75 प्रतिशत हो गई है जो कि बहुत महत्वपूर्ण है। अगर टीबी मरीज को सही समय पर इलाज नहीं मिलता है तो एक सक्रिय टीबी मरीज साल में कम से कम 15 नए मरीज पैदा करता है।
यह अपने आप में भारत देश के लिए एक बहुत बड़ा और कठिन लक्ष्य है, इस लक्ष्य को 2025 में प्राप्त करना नो नामुमकिन लग रहा है लेकिन आने वाले सालों में राष्ट्रीय क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम की यह महत्वपूर्ण यात्रा टीबी मुक्त भारत के रूप में मील का पत्थर साबित होगी। 2015 की तुलना में भारत 2025 में टीबी केयर के मामले में एक अच्छी स्थिति में है। टीबी मुक्त भारत के लिए सरकार द्वारा कई महत्वपूर्ण अभियान भी चलाये जा रहे हैं जिसमे 100 दिवयीय सघन अभियान और टीबी मुक्त पंचायत प्रमुख रुप से शामिल है। 100 दिवयीय टीबी सघन अभियान देष के 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 347 जिलों में 7 दिसंबर, 2024 को शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य कमजोर या उच्च जोखिम वाले समूह में आने वाले लोगों में टीबी की जांच और परीक्षण करना था, जिसमें  60 साल से अधिक उम्र के लोग, मधुमेह रोगी, धूम्रपान करने वाले, शराब पीने वाले, एचआईवी से पीड़ित लोग, अतीत में टीबी से पीड़ित लोग, टीबी रोगियों के घरेलू संपर्क इत्यादि षामिल हैं।

इस अभियान के अन्तर्गत टीबी के लक्षणों वाले लोगों की जांच के अलावा, सघन अभियान का मुख्य उद्देश्य लोगों में उप-नैदानिक या बिना लक्षण वाले टीबी रोग की जांच के लिए छाती के एक्स-रे का उपयोग करना है, जिसके बाद नाट (सीबीनाट और ट्रूनाट) परीक्षण का उपयोग करके जीवाणु संबंधी पुष्टि की जाती है। इस अभियान में पहले उत्तर प्रदेश के 15 जिले शामिल किये गए थे लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने अभियान कि महत्वता को देखते हुए उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में इस अभियान को लागू कर दिया, इस तरह की टीबी के प्रति सजगता रखना किसी राज्य के मुखिया के लिए बहुत बड़ी बात है जो कि भारत देश से टीबी के उन्मूलन के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। ऐसे अभियानों कि महत्वता तभी है जब ऐसे अभियानों को वास्तविक रूप से लागू किया जाए और आकड़ों का खेल न खेला जाए क्योंकि जिस जगह आंकड़े आ जाते है उस जगह यथार्थ कम हो जाता है।

इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण अभियान के तहत 24 मार्च 2023 को वाराणसी में आयोजित विश्व क्षयरोग दिवस के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा टीबी मुक्त पंचायत पहल की शुरुआत की गई थी। टीबी मुक्त पंचायत पहल के अंतर्गत हर छोटे भौगोलिक क्षेत्र/पंचायत को टीबी मुक्त बनाने के लिए सरकार द्वारा विशेष प्रयास किये जा रहे हैं, जिससे कि टीबी उन्मूलन के व्यापक लक्ष्य को हासिल किया जा सके। टीबी मुक्त पंचायत पहल के अंतर्गत सेंट्रल टीबी डिवीजन द्वारा कुछ विशेष मानक तय किये गए हैं। इन मानकों पर जो भी ग्राम पंचायत खरी उतरेगी उस ग्राम पंचायत को टीबी मुक्त पंचायत घोषित किया जाएगा। इस अभियान के तहत सैंकडों ग्राम पंचायतें पिछले साल टीबी मुक्त हुई हैं और इस पहल के अंतर्गत इस साल भी देश में सैंकड़ों ग्राम पंचायतें टीबी मुक्त होने वाली हैं।

टीबी मुक्त पंचायत पहल आगे चलकर टीबी मुक्त भारत अभियान के लिए मील का पत्थर साबित होगी। टीबी मुक्त पंचायत के लिए प्रमाण पत्र, एक वर्ष की वैधता के साथ, हर साल विश्व टीबी दिवस यानी 24 मार्च को जिला मजिस्ट्रेट/जिला कलेक्टर द्वारा योग्य ग्राम पंचायतों को जारी किया जाएगा। प्रमाण पत्र के साथ, स्वस्थ गांवों के प्रति उनके दृष्टिकोण के प्रतीक के रूप में टीबी मुक्त ग्राम पंचायत को महात्मा गांधी की एक छोटी प्रतिमा भी प्रदान की जाएगी। टीबी मुक्त पंचायत को प्रथम वर्ष महात्मा गांधी की कांस्य रंग की प्रतिमा, जो पंचायत लगातार दो वर्ष तक टीबी मुक्त रहती है उसे सिल्वर रंग की प्रतिमा और जो पंचायत लगातार तीन वर्ष तक टीबी मुक्त रहती है उसे गोल्डन रंग की प्रतिमा देकर सम्मानित किया जाएगा। टीबी मुक्त पंचायत पुरस्कार को संबंधित ग्राम पंचायत भवन में प्रदर्शित किया जाएगा।

आज सरकार निक्षय पोषण योजना के जरिए टीबी के मरीजों को हर महीने 1000 रुपये पोषण के लिए दे रही है, इसके साथ ही टीबी मरीजों को पहचान करने वालों को भी सरकार इनाम राशि दे रही है यह भी सरकार का टीबी मुक्त भारत कि दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। इसके साथ ही सरकार ने प्राइवेट डॉक्टर्स और मेडिकल स्टोर्स कि लिए टीबी मरीजों से सम्बंधित जो दिशा निर्देश जारी किये है ये कदम भी राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) को मजबूती प्रदान करते हैं, इन दिशा निर्देशों के अंतर्गत हर प्राइवेट डॉक्टर्स को टीबी के मरीजों की जानकारी सरकार को देनी होगी। साथ ही साथ मेडिकल स्टोर वालों को टीबी मरीजों की दवाई से सम्बंधित लेखा-जोखा सरकार को देना होना। अगर इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन होता है तो दोषियों पर जुर्माना और सजा की कार्यवाही हो सकती है। इसके अलावा जरूरी है कि सरकार को टीबी मरीजों के इलाज से सम्बन्धित दवाओं के प्रयोग के सम्बन्ध में प्राइवेट डॉक्टरों के लिये दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए जिससे कि ड्रग रेजिस्टेंस को रोका जा सके। इसके अलावा सरकार प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत लोगों और सामाजिक संस्थाओं को निक्षय मित्र बनाकर टीबी मरीजों को गोद लेने के लिए प्रेरित कर रही है, जिससे कि टीबी के मरीजों को सही से पोषण और उनका सही से ख्याल रखा जा सके।

जो भी मरीज टीबी का पूर्ण इलाज लेकर ठीक हो जाता है, उसे टीबी चैम्पियन कहा जाता है। राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के अंतर्गत इन टीबी चैंपियन की भागीदारी से समाज और देश में टीबी के प्रति जागरूकता पैदा की जा सकती है। भारत देश के हर शहर में जितने भी टीबी चैम्पियन हैं उनमे से जितने भी शिक्षित टीबी चैंपियंस हैं उनकी छंटनी की जानी चाहिए, इसके बाद सभी टीबी चैम्पियन को टीबी से संबंधित प्रशिक्षण जिला टीबी टीम द्वारा जिले में फिजिकल मोड में कराया जाना चाहिए, जिससे कि टीबी चैम्पियन को टीबी से सम्बंधित जानकारी हो सके। अगर टीबी चैम्पियन प्रशिक्षित और पढ़ा-लिखा होगा तो टीबी चैम्पियन घनी आबादी वाले क्षेत्रों, मलिन बस्तियों और अपने आसपास रहने वाले लोगों में जागरूकता अभियान के माध्यम से टीबी के मरीजों को खोजने में तेजी लाने में सरकार की मदद कर सकते हैं।

टीबी चैम्पियन टीबी पर लोगों में समग्र रुप से जागरूकता लाने में मदद कर सकते हैं और बीमारी से जुड़े समाज में टीबी मरीजों के साथ हो रहे भेदभाव को दूर कर सकते हैं। समाज में टीबी रोग को लेकर जो हीन भावना फैली हुयी है और जो लोग इस बीमारी को कलंक के रूप में देखते हैं, उनके अन्दर जनजागरुकता के माध्यम से टीबी चैम्पियन द्वारा इस भावना को खत्म कराया जा सकता है। टीबी चैम्पियन को टीबी मरीजों की कॉउंसलिंग के लिए एनटीईपी से जोड़ा जा सकता है और टीबी चैम्पियन को प्रोग्राम के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराया जाए या आर्थिक रुप से मजबूत किया जाये तो वह निश्चित रूप से टीबी चैम्पियन की टीबी प्रोग्राम के प्रति अधिक रूचि बढ़ेगी। समय-समय पर टीबी चैम्पियन को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, जिससे कि उनका अधिक मनोबल बढ़ेगा और प्रोग्राम के प्रति उसकी रूचि बढ़ेगी और समाज व देष में जागरुकता फैलाने में मदद मिलेगी।

इसके साथ ही टीबी की अत्याधुनिक जांचों का भी विकेन्द्रीकरण किया जाना चाहिए जो टीबी के सही इलाज के आवश्यक होती है। इसके साथ कल्चर और डीएसटी प्रयोगशालाओं का विस्तार भी मंडल स्तर किया जाना चाहिए जिससे कि मरीजों की कल्चर और डीएसटी की जानों अनावश्यक देरी न हो और समय पर मरीजों को उनकी जांचों का परिणाम मिल सके। देश की प्रत्येक स्वास्थ्य सुविधा पर टीबी की दवाइओं की उपलब्द्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए जिससे कि टीबी के मरीजों को भटकना न पड़े और टीबी के मरीजों विशेष देखभाल सुविधा प्रदान की जानी चाहिए जिससे कि टीबी मरीजों का राष्ट्रीय क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम में विश्वास बढे।
 अगर देश का प्रधानमंत्री देश को 2025 तक टीबी मुक्त करने के लिए प्रतिबध्दता व्यक्त करता है तो निश्चित रूप से आने वाले सालों में सरकार टीबी मुक्त भारत बनाने की दिशा में और कड़े कदम उठाएगी और ये कदम आने वाले सालों मे देश को टीबी मुक्त बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे। इसके साथ ही राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए। सरकार को टीबी मुक्त भारत की दिशा में राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम की समय-समय पर कमियों का विश्लेषण और मूल्यांकन करना चाहिए, जिससे कि इन कमियों को मजबूती में बदला जा सके और भारत देश में टीबी के अंतिम मरीज तक पहुंचा जा सके और टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।

– ब्रह्मानंद राजपूत, आगरा
(Brahmanand Rajput) Dehtora, Agra
E-Mail- brhama_rajput@rediffmail.com
Mob/WhatsApp- 08864840607

कविता दिवस पर ऑनलाइन काव्य संगोष्ठीः 20 महिला रचनाकार “समरस महिला गर्विता सम्मान “से सम्मानित

कोटा / कविता दिवस की पूर्व संध्या को समरस संस्थान साहित्य सृजन भारत, गांधीनगर, गुजरात द्वारा संस्थापक मुकेश कुमार व्यास ‘  स्नेहिल ‘  की अध्यक्षता में ऑनलाइन काव्य संध्या का आयोजन किया गया। संस्था की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शशि जैन ने बताया कि काव्य संध्या में काव्य पाठ करने वाली सभी 20 महिला रचनाकारों को संस्थान द्वारा “समरस महिला गर्विता सम्मान 2025” से सम्मानित कर डिजिटल सम्मान पत्र भिजवा कर सम्मानित किया गया हैं। इनमें से जो रचनाकार आगामी माह भीलवाड़ा में आयोजित होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन में भाग लेंगी उन्हें वहां सम्मानित किया जाएगा।  स्वीकृति प्राप्त रचनाओं को संस्थान द्वारा प्रकाशित प्रेम पुष्प – दो में प्रकाशित किया जाएगा।
  काव्यपाठ पर जिन्हें सम्मानित किया गया है उनमें  साधना शर्मा  सपना जैन शाह,  मंजुला वर्मा , प्रिया शुक्ला , विनीता निर्झर ,डॉ. रंजना शर्मा , डॉ. अनिता गोस्वामी  सन्ध्या रानी, कुसुम सिंघल , प्रेम सोनी , पूनम व्यास  नीलम झा, शिवाली ठक्कर , रेणु शर्मा श्रद्धा, डॉ. वैदेही गौतम ,श्रीमती गायत्री सरगम  सविता धर , ज्योति गौतम,  रीता गुप्ता ‘रश्मि’ एवं
.डॉ. शशि जैन शामिल हैं।
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डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
संस्थान मीडिया प्रभारी

राजभवन भुवनेश्वर में पहली बार मनाया गया बिहार दिवस

संस्था के अध्यक्ष राजकुमार के अनुसार आयोजन बिहार-ओड़िशा की सांस्कृतिक और लोक पारंपरिक एकता को बढ़ावा देने की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध हुआ

भुवनेश्वर। बिस्वास,भुवनेश्वर के सौजन्य से राजभवन भुवनेश्वर में पहली बार 22 मार्च को अपराह्न बेला में सांस्कृतिक आदान-प्रदान (नृत्य-गायन ) के द्वारा बिहार दिवस मनाया गया।अवसर पर स्वागत की औपचारिकता वखूबी निभाए बिस्वास भुवनेश्वर के अध्यक्ष राजकुमार ने। उन्होंने अपने संबोधन में बताया कि ओड़िशा के महामहिम राज्यपाल डॉ.हरिबाबू कंभमपति के प्रति वे हृदय से आभारी हैं जिन्होंने भारत के माननीय प्रधानमंत्री के संदेशः एक भारतःश्रेष्ठ भारत के तहत यह आयोजन राजभवन,भुवनेश्वर में आयोजित कराया जिसमें एक तरफ बिहार की लोकसंस्कृति का शानदार प्रदर्शन हुआ वहीं ओड़िशा की लोकसंस्कृति का भी।
ओड़िशा के लोकसम्पर्क विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी संजय सिंह ने बताया कि ओड़िया और बिहारी भाषाओं को बोलने में कोई दिक्कत नहीं है। दोनों में काफी समानता है। साथ ही साथ दोनों प्रदेशों के खान-पान में भी काफी समानता है। गौरतलब है कि ओड़िया और बिहारी हिन्दी अर्द्धमागधी भाषा परिवार की भाषाएं हैं जिनमें मैथिली,भोजपुरी,ओड़िया आदि भाषाएं आतीं हैं। अवसर पर अनेक बिहारी वक्ताओं ने अपनी-अपनी बिहारी-ओड़िया एकता की अनुभूति व्यक्त की। अवसर पर बिहार से पधारे बिहार के आईटी मंत्री ने बिहार की जनता की ओर से ओड़िशा के महाहमिम राज्यपाल के प्रति इस आयोजन के लिए आभार व्यक्त किया।साथ ही साथ बिहार के वर्तमान राज्यपाल का संदेश भी बिहार दिवस के अवसर पर पढ़ा गया।
समारोह के मुख्य अतिथि ओड़िशा के महामहिम राज्यपाल डॉ हरिबाबू कंभमपति ने बताया कि आज सम्पूर्ण भारत को सांस्कृतिक आदान-प्रदान के द्वारा जोड़ने की आवश्यकता है जिसका संदेश भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी अपनी संकल्पनाः एक भारतःश्रेष्ठ भारत के तहत व्यक्त की है।आयोजन के अंत में बिस्वास भुवनेश्वर के अध्यक्ष राजकुमार,उपाध्यक्ष अजय बहादुर सिंह तथा सचिव अशोक भगत ने राज्यपाल आदि को स्मृतिचिह्न,बिहार की मधुबनी शॉल तथा पौधा भेंटकर उन्हें सम्मानित किया।संस्था के अध्यक्ष राजकुमार के अनुसार आयोजन बिहार-ओड़िशा की सांस्कृतिक और पारंपरिक एकता को बढ़ावा देने की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध हुआ।