Sunday, November 24, 2024
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पं. दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद – एक दिव्य सिद्धांत

(25 सितंबर, दीनदयाल जी की जयंती पर विशेष )
महान दार्शनिक प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु अरस्तु ने कहा था – “विषमता का सबसे बुरा रूप है विषम चीजों को एक समान बनाने का प्रयत्न करना।” The worst form of inequality is to try to make unequal things equal. एकात्म मानववाद, विषमता को इससे बहुत आगे के स्तर पर जाकर हमें समझाता है।
भारत को एक स्टेट या कंट्री से बढ़कर एक राष्ट्र के रूप में और इसके निवासियों को नागरिक नहीं अपितु परिवार सदस्य के रूप में माननें के विस्तृत दृष्टिकोण का ही अर्थ है एकात्म मानववाद। मानवीयता के उत्कर्ष की स्थापना यदि किसी राजनैतिक सिद्धांत में हो पाई है तो वह है पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय का एकात्म मानववाद का सिद्धांत! एकात्म मानववाद को दीनदयालजी सैद्धांतिक स्वरूप में नहीं बल्कि आस्था के स्वरूप में लेते थे, यह  कोई राजनैतिक सिद्धांत नहीं अपितु एक आत्मिक भाव है।
अपनें एकात्म मानववाद के अर्थों को विस्तारित करते हुए ही उन्होंने कहा था कि – “हमारी आत्मा ने अंग्रेजी राज्य के प्रति विद्रोह केवल इसलिए नहीं किया कि दिल्ली में बैठकर राज करने वाले विदेशी थे, अपितु इसलिए भी कि हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन में, हमारे जीवन की गति में विदेशी पद्धतियां और रीति-रिवाज, विदेशी दृष्टिकोण और आदर्श अड़ंगा लगा रहे थे, हमारे संपूर्ण वातावरण को दूषित कर रहे थे, हमारे लिए सांस लेना भी दूभर हो गया था।
आज यदि दिल्ली का शासनकर्ता अंग्रेज के स्थान पर हममें से ही एक, हमारे ही रक्त और डीएनए वाला हो गया है तो हमको इसका हर्ष है, संतोष है, किन्तु हम चाहते हैं कि उसकी भावनाएं और कामनाएं भी हमारी ही भावनाएं और कामनाएं हों। जिस राष्ट्र की मिट्टी से उसका शरीर बना है, उसके प्रत्येक रजकण का इतिहास उस राष्ट्र के प्रमुख के प्रत्येक शब्द से प्रतिध्वनित होना चाहिए।
ॐ के पश्चात ब्रह्माण्ड के सर्वाधिक सूक्ष्म बोधवाक्य “जियो और जीनें दो” को “जीने दो और जियो” के क्रम में रखनें के देवत्व धारी आचरण का आग्रह लिए वे भारतीय राजनीति विज्ञान के उत्कर्ष का एक नया क्रम स्थापित कर गए। व्यक्ति की आत्मा को सर्वोपरि स्थान पर रखनें वाले उनकें सिद्धांत में आत्मबोध करनें वाले व्यक्ति को समाज का शीर्ष माना गया। आत्म बोध के भाव से उत्कर्ष करता हुआ व्यक्ति, सर्वे भवन्तु सुखिनः के भाव से जब अपनी रचना धर्मिता और उत्पादन क्षमता का पूर्ण उपयोग करे, तब एकात्म मानववाद का उदय होता है, ऐसा वे मानतें थे।
देश और नागरिकता या नेशन और नेशनलिटी जैसे शब्दों के सन्दर्भ में यहाँ यह तथ्य पुनः मुखरित होता है कि उपरोक्त वर्णित व्यक्ति देश का नागरिक नहीं बल्कि राष्ट्रपुत्र होता है। पाश्चात्य के भौतिकता वादी विचार जब अपनें चरम की ओर बढ़नें की दिशा में था तब पंडित जी नें इस प्रकार के विचार को सामनें रखकर वस्तुतः पश्चिम से वैचारिक युद्ध का शंखनाद किया था। उस दौर में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वैश्विक स्तर पर विचारों और अभिव्यंजनाओं की स्थापना, मंडन-खंडन और भंजन की परस्पर होड़ चल रही थी। विश्व मार्क्सवाद, फासीवाद, अति उत्पादकता का दौर देख चुका था और मंदी के ग्रहण को भी भोग चूका था।
वैश्विक सिद्धांतों और विचारों में अभिजात्य और नव अभिजात्य की सीमा रेखा आकार ले चुकी थी तब सम्पूर्ण विश्व में भारत की ओर से किसी राजनैतिक सिद्धांत के जन्म की बात को भी किंचित असंभव और इससे भी बढ़कर हास्यास्पद ही माना जाता था। अंग्रेज शासन काल और अंग्रेजोत्तर काल में भी हम वैश्विक मंचों पर हेय दृष्टि से और विचारहीन दृष्टि से देखे और मानें जाते थे। निश्चित तौर पर हमारा स्वातंत्र्योत्तर शासक वर्ग या राजनैतिक नेतृत्व जिस प्रकार पाश्चात्य शैलियों, पद्धतियों, नीतियों में जिस प्रकार डूबा-फंसा-मोहित रहा उससे यह हास्य और हेय भाव बड़ा आकार लेता चला गया था। तब उस दौर में दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानव वाद के सिद्धांत की गौरवपूर्ण रचना और उद्घोषणा की थी।
1940 और 1950 के दशकों में विश्व में मार्क्सवाद से प्रभावित और लेनिन के साम्राज्यवाद से जनित “निर्भरता का सिद्धांत” एक राजनैतिक शैली हो चला था। निर्भरता का सिद्धांत Dependency Theory यह है कि संसाधन, निर्धन या अविकसित देशों से विकसित देशों की ओर प्रवाहित होतें हैं और यह प्रवाह निर्धन देशों को और अधिक निर्धन करते हुए धनवान देशों को और अधिक धनवान बनाता है। इस सिद्धांत से यह तथ्य जन्म ले चुका था कि राजनीति में अर्थनीति का व्यापक समावेश होना ही चाहिए।
 संभवतः पंडित दीनदयाल जी नें इस सिद्धांत के उस मर्म को समझा जिसे पश्चिमी जगत कभी समझ नहीं पाया। पंडित जी ने निर्भरता के इस कोरे शब्दों वाले सिद्धांत में मानववाद नामक आत्मा की स्थापना की और इसमें से भौतिकतावाद के जिन्न को बाहर ला फेंका !! राजनीति को अर्थनीति के साथ वैदिकता का पुट देकर गूंथ देना और इसके समन्वय से एक नवसमाज के नवांकुर को रोपना और सींचना यही उनका एकात्म मानववाद था। भौतिकता से दूर किन्तु मानव के श्रेष्ठतम का उपयोग और उससे सर्वाधिक उत्पादन, फिर उत्पादन का राष्ट्रहित में उपयोग और राष्ट्रहित से अन्त्योदय का ईश्वरीय कार्य यही एकात्म मानववाद का चरम हितकारी रूप है।
इस परिप्रेक्ष्य का अग्रिम रूप देखें तो स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है कि “अर्थ का अभाव और अर्थ का प्रभाव” के माध्यम से वे विश्व की राजनीति में वैदिकता के तत्व का प्रवेश करा देना चाहते थे। यद्यपि उनकें असमय निधन से हमारे देश की व विश्व की राजनीति उस समय उनकें इस प्रयोग के कार्यरूप को देखनें से वंचित रह गई तथापि सिद्धांत रूप में तो वे उसे स्थापित कर ही गए थे। उस दौर में विश्व की सभी सभ्यताएं और राजनैतिक प्रतिष्ठान धन की अधिकता और धन की कमी से उत्पन्न होनें वाली समस्याओं से संघर्ष करती जूझ रही थी।
 तब उन्होंने भारतीय दर्शन आधारित व्यवस्थाओं के आधार पर धन के अर्जन और उसके वितरण की व्यवस्थाओं का परिचय शेष विश्व के सम्मुख रखा। उस दौर में पूर्वाग्रही और दुराग्रही राजनीति के कारण उनकी इस आर्थिक स्वातंत्र्य की अवधारणा को देखा पढ़ा नहीं गया किन्तु (विवश होकर ही सही) आर्थिक विवेक के उनकें सिद्धांत को भारतीय अर्थतंत्र में यदा कदा पढ़नें सुननें और व्यवहार में लानें के प्रयास भी होते रहे। यह अलग बात है कि इन प्रयासों में पंडितजी के नाम से परहेज करनें का पूर्वाग्रह यथावत चलता रहा।
नागरिकता से परे होकर “राष्ट्र एक परिवार” के भाव को आत्मासात करना और तब परमात्मा की ओर आशा से देखना यह उनकी एकात्मता का शब्दार्थ है। इस रूप में हम राष्ट्र का निर्माण ही नहीं करें अपितु उसे परम वैभव की ओर ले जाएँ यह भाव उनके सिद्धांत के एक शब्द “एकात्मता” में प्राण स्थापित करता है। हम इस चराचर पृथ्वी पर आधारित रहें, इसका शोषण नहीं बल्कि पुत्रभाव से उपयोग करें। इससे प्राप्त संसाधनों को मानवीय आधार पर वितरण की व्यवस्थाओं को समर्पित करते चलें यह अन्त्योदय का प्रारम्भ है। अन्त्योदय का चरम वह है जिसमें व्यक्ति व्यक्ति से परस्पर जुड़ा हो, निर्भर भी हो तो उसमें निर्भरता का भाव न तो कभी हेय दृष्टि से देखा जाए, और न ही कभी देव दृष्टि से!! इस प्रकार के अन्त्योदय का भाव प. दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के सह उत्पाद के रूप में जन्मा जिसे सह उत्पाद के स्थान पर पुण्य प्रसाद कहना अधिक उपयुक्त होगा।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय संस्कृति के समग्र रूप को मानव और राज्य में स्थापित देखना चाहते थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति की समग्रता और सार्वभौमिकता के तत्वों को पहचान कर आधुनिक सन्दर्भों में इसके नूतन रूपकों, प्रतीकों, शिल्पों की कल्पना की थी। उनकें विषय में पढ़ते अध्ययन करते समय मेरी अंतर्दृष्टि में वंचित भाव जागृत होता है और ऐसा लगता है कि कुछ था जो हमें पंडित दीनदयाल जी से और मिलना था किंतु मिल न पाया। मेरे मानस में आता है कि उनकें तत्व ज्ञान में कुछ ऐसा अभिनव प्रयोग आ चुका था जिसे वे शब्द रूप में या कृति रूप में प्रस्तुत नहीं कर पाए और काल के शिकार हो गए। उनकें मष्तिष्क में या वैचारिक गर्भ में कोई अभिनव और नूतन सिद्धांत रुपी शिशु था जो उनकें असमय निधन से अजन्मा और अव्यक्त ही रह गया है। पुण्य स्मरण !!!
(लेखक प्रवीण गुगनानी, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में राजभाषा सलाहकार हैं)
संपर्क  9425002270

अब्दुल नाम बदलकर आपकी बेटियों की जिंदगी बर्बाद कर रहा है

गुजरात के अहमदाबाद में वंदे भारत ट्रैन में एक लैपटॉप चोरी होता है। जब रेलवे पुलिस जांच करती है तब CCTV में उन्हें एक व्यक्ति लैपटॉप का बैग ले जाता हुआ दिखता है। पुलिस ने जिस मोबाइल नंबर से सीट बुक हुई थी उस नंबर को सर्विलेंस पर डाल दिया। इसके बाद चोर की लोकेशन दिल्ली की आती है, फौरन पुलिस की एक टीम दिल्ली के लिए निकलती है और जब ये टीम वहां की लोकल पुलिस के साथ उस होटल में पहुंचती है तब हर्षित चौधरी बना हुआ ये व्यक्ति शराब पी रहा था पुलिस जैसे ही इसे पकड़ती है तो यह कहता है कि मैं सेना में मेजर हूँ और यह बैग गलती से मेरे पास आ गया था।सेना का नाम सुनकर पुलिस थोड़ा झिझकती है पर CCTV में यह व्यक्ति साफ साफ चोरी करता दिख रहा था तो पुलिस इसकी पूछताछ करना शुरू करती है तब यह सेना का एक फर्जी ID कार्ड पुलिस को देता है और बार बार अपना नाम हर्षित चौधरी बताता है इसके बाद पुलिस इसकी ड्यूटी की जगह पूछती है और इसके बताये पोस्टिंग की जगह पर जब सेना से पता करती है तब असली खुलासा होता है।वास्तव मे इस व्यक्ति का असली नाम मोहम्मद शाहबाज खान था जो फर्जी तौर पर सेना का मेजर हर्षित चौधरी बना हुआ था, इसकी पहचान नकली होने के साथ साथ काफी डॉक्युमेंट भी नकली थे मोहम्मद शाहबाज खान अलीगढ़ का रहने वाला एक शादी शुदा व्यक्ति है जिसके 2 बच्चे भी थे, यह 2015 में सेना का सिपाही था मगर अनुशासन हीनता के चलते इसे फौज से निकाल दिया गया था और फिर ये चोरी चकारी करने लगा। अभी यह सब जांच चल ही रही थी कि पुलिस के पास इसके जब्त मोबाइल में एक महिला का फ़ोन आता है और उसके बाद एक हैरान करने वाला कांड और सामने आता है इस आदमी ने अपनी इस हिन्दू पहचान और मेजर की फर्जी पहचान के सहारे 100 से अधिक हिन्दू महिलाओं के साथ शादी डॉट कॉम के जरिये संपर्क किया जिसमें से 40 से 50 को ये आमने सामने मिल चुका था इसी नकली पहचान के साथ और उनमें से कई के लाखो रुपये लूट चुका था। पुलिस ने खुलासा किया है कि बड़े घरों की नौकरीपेशा अब तक कम से कम 24 लड़कियों के साथ यह शारीरिक संबंध बना चुका है जबकि एक लड़की के साथ लव जिहाद करके इसने मंदिर में शादी कर ली और उसे अलीगढ़ के ही एक मकान में किराए पर रखा हुआ था। ये उसी लड़कीं का फ़ोन था जो खुद को इसकी पत्नी बता रही थी। अब ये अहमदाबाद जेल में है और इससे कड़ी पूछताछ की जा रही है साथ मे यह भी जांच की जा रही है कि इसने और क्या क्या किया है इसने जिस लड़की से पहचान छुपा कर शादी की उसने भी इसके खिलाफ अलीगढ़ के ही एक थाने में FIR करवा दी है, उसने अपनी FIR में मारपीट और लव जिहाद सहित धर्मांतरण के दबाव का मामला दर्ज करवाया है इसके अलावा जो नकली पहचान इसने बनाई थी वह भरतपुर, राजस्थान के किसी हर्षित जादौन नाम के व्यक्ति की थी जिससे पुलिस ने संपर्क किया जिसके बाद अब उसने भी मोहम्मद शाहबाज खान पर FIR दर्ज करवा दी है इसके द्वारा कितनी महिलाओं का शोषण और किया गया है इसकी जांच अभी जारी है और यह संख्या बढ़ भी सकती है। न जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी इसने बर्बाद कर दी।
साभार- https://x.com/parigupta1606/status/ से

अजरबेजान में भी फली फूली है सनातन संस्कृति

हम प्राचीन और मध्य काल में भारत के विस्तार के बारे में चर्चा तो करते हैं लेकिन शायद हम उतनी गहराई से उस विस्तार के बारे में सोच नही पाते। हमारी भौगालिक सीमाएं चाहे जो भी रही हों लेकिन वाणिज्यिक और सांस्कृतिक विस्तार बहुत व्यापक था इसके प्रमाण हमें निरंतर मिलते रहते हैं। दक्षिण एशिया तथा दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में तो ऐसे अनेकों प्रमाण हमें देखने को मिलते हैं जो उन देशों में भारतीय प्रभाव को दर्शाते हैं। लेकिन पश्चिम एशिया के देश जो यूरोप के प्रभाव में ज्यादा हैं वहां ऐसा कुछ देखने को मिले तो वो विशेष कौतूहल जगाता है।
अज़रबैजान की राजधानी बाकू के निकट सुराखानी कस्बा है जहां स्थित है आतेशगाह फायर टेंपल। यहां जाने पर आपको भारतीय वाणिज्य और संस्कृति के विस्तार का प्रत्यक्ष अनुभव होता है। एक बहुत सुंदर पंच कोणीय किले नुमा परिसर में प्रवेश करते ही आप एक अलग अनुभूति करते हैं। कहा जाता है कि 1745 ईस्वी में यहां भारतीय व्यापारियों द्वारा इसकी स्थापना की गई थी। यह मंदिर हमारे पारंपरिक मंदिरों जैसा नहीं है। इसके मध्य में अग्नि प्रज्वलित रहती है और उसी की उपासना यहां की जाती है।
अज़रबैजान अपने तेल के कुओं के कारण प्रसिद्ध है। कहा जाता हैं कि भूमि से निकलने वाली ज्वलनशील गैस के कारण यहां स्वतः ही अग्नि प्रज्वलित रहती है। यह पूरा परिसर सौ वर्ष पहले तक नियमित उपासना का केंद्र था । बाद में ये एक पर्यटक केंद्र के रूप में विकसित हुआ।
यहां मुख्य मंदिर के ऊपर ही आपको ” श्री गणेशाय नमः” और उसके साथ ज्वाला देवी और शंकर भगवान की स्तुति देवनागरी में उत्कीर्ण दिख जाएगी। साथ ही स्वास्तिक और त्रिशूल जैसे चिन्ह भी। माना जाता है कि सिल्क रूट के माध्यम से अपना व्यापार करने जाने वाले भारतीय व्यापारियों ने इसकी स्थापना की थी। उस काल में कहा जाता है कि एक बड़ी संख्या में भारतीय यहां रहते भी थे। आज भी अज़रबैजान में लगभग डेढ़ हजार भारतीय है। यहां इंडियन एसोसिएशन तो है ही साथ ही मलयाली एसोसिएशन भी है। इसी परिसर में अलग अलग कक्षों में आपको नटराज, गणेश की प्रतिमाएं भी दिख जाएंगी। साथ ही ध्यान और उपचार के भी कक्ष हैं। हम जानते हैं कि ऋग्वेद की पहली ऋचा अग्नि का ही स्तवन है।
लेकिन यह सिर्फ सनातन संस्कृति की ही उपासना का केंद्र नही रहा। पारसी संस्कृति के भी चिन्ह यहां प्रमुखता से हैं। ये जोरास्ट्रियन आराधना स्थल भी हैं। पारसी संस्कृति में अग्नि की ही उपासना होती है । अज़रबैजान में पारसी आबादी भी काफी रही है। आज भी दो हजार पारसी समुदाय के लोग वहां हैं। यहां देवनागरी के साथ कुछ शिलालेख पर्शियन में भी देखने को मिलते हैं। उनमें भी ईश्वर से प्रार्थना का ही भाव है। जोरास्ट्रियन आस्था का प्रमुख केंद्र होने के कारण यहां पहले पारसी लोग बड़ी संख्या में अपनी धार्मिक आस्था के कारण आते थे।
एक और रोचक बात ये है कि इसका संबंध गुरु नानक देव जी और उदासीन साधुओं से भी है। आप यहां गुरुमुखी में लिखा शिलालेख भी पढ़ सकते हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार के टी एस सराव ने दो वर्ष पहले इस पर एक पुस्तक भी लिखी है जिसमे गुरु नानक देव जी और उदासीन साधुओं के इस स्थान के साथ संबंधों का शोध परक विवरण है।
कालांतर में इसे यहां की सरकार द्वारा अधिगृहीत कर लिया गया और इसे एक ऐतिहासिक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया गया। यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज होने के कारण यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। आज यहां प्राकृतिक रूप से अग्नि नहीं प्रज्वलित रहती। गैस के प्रवाह से अग्नि जलाए रख कर आपको उस काल का आभास दिया जाता है। साथ ही परिसर में कुछ चबूतरों पर भी आपको अग्नि प्रज्वलित दिख जाएगी जो आपको उस समय का आभास देने के लिए कृत्रिम रूप से जलाई गई है।
बाकू के चारों ओर आपको तेल के कुएं देखने को मिल जाएंगे। शहर के दूसरी ओर कुछ दूरी पर ही एक टीला है जहां भूमिगत हाइड्रो कार्बन के निरंतर रिसने के कारण अग्नि प्रज्वलित रहती है। यानार दाग नामक इस जगह पर जगह जगह से आग निकलते देखना एक अनोखा अनुभव है। वहां तेज हवा चलती है इसलिए आग की भी दिशा और जगह बदलती है। उस टीले को एक बहुत अच्छे पर्यटक स्थान के रूप में विकसित किया गया है। आपको ये टीला देखने के भी टिकट के रूप में अच्छी खासी राशि देनी पड़ती है। यहां शाम के समय कुछ मनोरंजन के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
आतेशगाह का अवलोकन करते हुए हम आश्चर्य में थे कि हमारे पूर्वजों ने कहां कहां तक और कैसे कैसे अपनी संस्कृति और सभ्यता का विस्तार किया। सुबह सुबह जब हम वहां पहुंचे तो अकेले ही थे , इसलिए बहुत सुकून से एक एक चीज देख भी पा रहे थे और समझ भी पा रहे थे। मालविका जी ने तो वहां अपना ” जरा सोचिए” भी रिकॉर्ड किया। लेकिन उसके कुछ समय बाद लगा एक आंधी सी आ गई और एक के बाद एक कई सारे पर्यटक आ गए और परिसर में इधर से उधर धमा चौकड़ी मचाने लगे। कुछ तो उस स्थान पर पहुंच गए जहां मुख्य अग्नि प्रज्वलित हो रही थी और उससे छेड़ खानी करने लगे। कुछ लोगों की इच्छा उस चबूतरे के ऊपर चढ़ कर फोटो खिंचवाने की थी जहां अग्नि प्रज्वलित थी और जिस पर चढ़ना मना था। कुछ परिसर में निर्मित गुफाओं के अंदर बने पुतलों को स्पर्श कर इस बात की पड़ताल करने में लग गए कि कहीं ये सचमुच उसी काल से खड़े मनुष्य तो नही हैं। उनके उत्साह का अतिरेक उस परिसर की शांति और अनुशासन दोनो को भंग करने के लिए पर्याप्त था। परिसर के प्रबंधक बार बार सीटियां बजा कर उन अति उत्साही पर्यटकों को वहां निर्धारित अनुशासन का पालन करने के लिए कह रहे थे।
हमारा काम हो गया था इसलिए हम बाहर निकल आए। आपको शायद अलग से बताने की जरूरत नहीं है कि पर्यटकों की ये आंधी भारत से आई थी। पूर्वजों ने जैसे भी निशान छोड़े थे , आज हम कैसे निशां छोड़ रहे हैं इस पर भी हमें सोचना चाहिए।

हिंदी को लेकर गैर हिंदीभाषियों के विचार

हिंदी भारतीयों के मन में बसी भाषा है, हिंदी की वजह से ही गैरहिंदी भाषी वक्ताओं ने हिंदी जगत में अपनी पहचान बनाई और उन्हें राष्ट्रव्यापी लोकप्रियता मिली।  हिंदी को लेकर गैरहिंदी भाषी नेताओँ, मनीषियों और विद्वानों ने समय समय पर अपने विचार व्यक्त कर हिंदी के महत्त्व को प्रमाणित किया है।  प्रस्तुत है ऐसे ही विद्वानों द्वारा व्यक्त विचारों का संकलन। 
गुजराती
 स्वामी दयानंद सरस्वतीः-हिंदी के द्वारा ही सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।

मोहनदास कर्मचंद गांधीः-अंग्रेजी में स्वतंत्र भारत की गाड़ी चले, इससे बड़ा दुर्भाग्य भारत का और नहीं हो सकता।
-हिंदी अब सारे देश की भाषा हो गयी है। उस भाषा का अध्ययन कपने और उसकी उन्नति करने में गर्व का अनुभव होना चाहिए।
-मैं अपनी बात अपनी भाषा में कहूंगा, जिसको गरज होगी वह सुनेगा। आप इस प्रतिज्ञा के साथ काम करेंगे, तो हिंदी का दर्जा बढ़ेगा।
-राष्ट्रभाषा की जगह एक हिंदी ही ले सकती है, कोई दूसरी भाषा नहीं।
-अगर स्वराज्य अंग्रेजी बोलने वाले भारतीयों का और उन्हीं के लिए होने वाला हो, तो नि:संदेह अंग्रेजी राष्ट्रभाषा होगी। लेकिन अगर स्वराज्य करोड़ों भखों मरने वालों का, करोड़ों निरक्षरों का, दलितों और अन्य लोगों हो और इन सबके लिये हो, तो हिंदी ही एकमात्र राष्ट्रभाषा हो सकती है।
-विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा की हिमायत करने वाले जनता के दुशमन हैं। राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। राष्ट्रीय व्यवहार में हिदी को काम में लाना देश की एकता और उन्नति के लिये आवश्यक है।
-यदि हिंदी बोलने में भूलें हो, तो भी उनकी कतई चिंता नहीं करनी चाहिए। भूलें करते-करते भूलों को सुधारने का अभ्यास हो जायगा, पर भूलों की चिंता न करने की सलाह आलसी लोगों के लिए नहीं, वरन मुझ जैसे भाषा सीखने के इच्छुक अव्यवसायी सेवकों के लिए है।
-अपनी संस्कृति की विरासत हमें संस्कृत, गुजराती इत्यादि देशी भाषाओं के द्वारा ही मिल सकती है। अंग्रेजी से अपनाने से आत्मनाश होगा, सांस्कृतिक आत्महत्या होगी।
-विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा की हिमायत करने वाले देश के दुश्मन हैं।
-भारतीय भाषाओं में प्रतिष्ठापन में एक-एक दिन का विलंब देश के लिए सांस्कृतिक हानि है।
-भाषाओं के क्षेत्र में हमारी जो स्थिति है, उसे मैंने समझा है और उसके आधार पर मैं कहता हूं कि यदि हमें अस्पर्श्यता निवारण जैसे सुधार के लिए काम करना है तो हिंदी का ज्ञान सर्वत्र आवश्यक है, क्योंकि वह एक ऐसी भाषा है जिसे हमारे देश के तीस करोड़ लोगों में से २० करोड़ लोग बोलते हैं और चूंकि हम सब अपने को भारतीय कहते हैं इसलिये हमें यह कहने का अधिकार है कि ३० करोड़ लोग २० करोड़ लोगों की भाषा सीखने का यत्न करें।
-हिंदी भाषा के शब्दों को अपना लेने में शर्म की कोई बात नहीं है। शर्म तो तब है, जब हम अपनी भाषा के प्रचलित शब्दों को न जानने के कारण दूसरी भाषा के शब्दों का प्रयोग करें। जैसे घर को ‘हॉउस’ माता को ‘मदर’ पिता को ‘फादर’ पति को ‘हसबैंड’ और पत्नि को ‘वाइफ’ कहें।
सरदार वल्लभभाई पटेलः-राष्ट्रभाषा हिंदी किसी व्यक्ति या प्रांत की सम्पत्ति नहीं है। उस पर सारे देश का अधिकार है।
भाई योगेन्द्र जीतः-हिंदी में भारत की आत्मा है। हिंदी की वाणी में भारत बोलता है, भारतीय संस्कृति बोलती है।
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशीः-हिंदी ही हमारे राष्ट्रीय एकीकरण का सबसे शक्तिशाली और प्रधान माध्यम है।

तमिल
वेंकट रम्मैया-सबको हिंदी सीखनी चाहिए। इसके द्वारा भाव-विनिमय से सारे भारत को सुविधा होगी।
-हिंदी का श्रंगार, राष्ट्र के सभी भागों के लोगों ने किया है, वह हमारी राष्ट्रभाषा है।
-यदि भारतीय लोग कला, संस्कृति और राजनीति में एक रहना चाहते हैं तो इसका माध्यम हिंदी ही हो सकती है।
के. कामराज -मैं हिंदी में भाषण देना अपनी भाषा का गौरव बढ़ाना मानता हूं।
अनंत शयनम अयंगार -अंग्रेजी के समर्थकों ने देश के राष्ट्रीय जीवन में एक अभेद्य दीवार खड़ी कर दी है और वे अन्य भाषाओं की चाहें वह तमिल, तेलुगु अथवा हिंदी, उसमें घुसने नहीं दे रहे।
विश्वनाथन् सत्यनारायण -हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में प्रांतीय भाषाओं की हानि नहीं, लाभ है।
-एक राष्ट्रभाषा से हमारी संस्कृति एक होगी और हमारा राष्ट्र दढ़ होगा।
-किसी देश में विदेशी भाषा को राजभाषा के रूप में काम में नहीं लिया जाता है। अंग्रेजी को सम्मान तथा राजभाषा बनाना थोथा सपना है।
एन. ई. मुत्तूस्वामी–राष्ट्रीय एकता के लिए देश की सर्वमान्य भाषा के रूप में हिंदी का पठन अनिवाय है।
सुब्रह्मण्यम भारती–तमिलनाडु में हिंदी विरोध कुछ लोगों का फैशन है।
के. एन. सुब्रह्मण्यम- -राष्ट्र की एकता को यदि बनाकर रखा जा सकता है, तो उसका माध्यम हिंदी हो सकती है।
डॉ. जी. रामचन्द्रन: -भाषा के क्षेत्र में घृणा का नहीं, प्रेम और सौहार्द का सथान होना चाहिए।
श्रीमती कमला रत्नम: -यह यथार्थता है कि हिंदी के अलावा और कोई भाषा भारत की सम्पर्क भाषा नहीं हो सकेगी। यह यथार्थता इस मिट्टी में समाई हुई है। इसमें संदेह नहीं। कि यह यथार्थता अंकुरित होगी और एक बड़ा वृक्ष बनकर पल्लवित-पुष्पित होगा…यदि हिंदी को हमें जोड़ने वाली भाषा बनाना है, तो सरकारों को बहुत बड़ा दायित्व निभाना होगा…विविध भाषा-भाषी भारतीयों का आपसी सम्पर्क हिंदी के माध्यम से ही हो सकता है। हिंदी समझने वालों की संख्या बहुत अधिक है।
श्रीमती कमला रत्नम: -हमें मालुम हो गया है कि राष्ट्रीय धारा में मिलकर चलने के लिये हिंदी सीखे बिना काम नहीं चलेगा।
मराठी
विनोबा भावे: -मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूं, मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। देवनागरी भारत के लिए वरदान है।
-यदि मैंने हिंदी का सहारा न लिया होता तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक और असम से केरल तक के गांव-गांव में भूदान का क्रांति संदेश जनता तक कदापि न पहुंच पाता। इसलिए मैं यह कहता हूं कि हिंदी भाषा का मुझ पर बड़ा उपकार है, इसने मेरी बहुत बड़ी सेवा की है।
-केवल अंग्रेजी सीखने में जितना श्रम करना पड़ता है, उतने श्रम में हिंदुस्तान की सभी भाषाएं सीखी जा सकती है।
-हर एक भारतीय अपनी दो आंखों से देखेगा-एक होगी मातृभाषा, दूसरी होगी राष्ट्रभाषा हिंदी।
डॉ़. अम्बेडकर:-हम सभी भारतवासियों का यह अनिवार्य कर्त्तव्य है कि हम हिंदी को अपनी भाषा के रूप में अपनाएं।
डॉ़ जयंत विष्णु नार्लीकर (वैज्ञानिक): -थोड़े से अभ्यास से विज्ञान पर एक सीमा तक हिंदी में अच्छी तरह लिखा और बोला जा सकता है, क्योंकि जनता से सम्पर्क स्थापित करने के लिये जनभाषा का सहारा बहुत जरूरी है।
लोकमान्य टिळक: -अगर भारत की सोई हुई वैज्ञानिक प्रतिभाओं को जगाना है, तो विज्ञान की शिक्षा का माध्यम हिंदी को बनाना होगा। इसके बिना भारतीय जनता और वैज्ञानिक विचारों के बीच विद्यमान दूरी को खत्म नहीं किया
जा सकता और ऐसी दशा में जनता से सम्पर्क स्थापित करने के लिए जनभाषा का सहारा लेना बहुत जरूरी है।
मधु दण्डवते:–राष्ट्र के एकीकरण के लिए सर्वमान्य भाषा से अधिक बलशाली कोई तत्व नहीं है। मेरे विचार में हिंदी ऐसी ही भाषा है। सरलता और शीघ्रता से सीखी जाने योग्य भाषाओं में हिंदी सर्वोपरि है।.
.जब एक प्रांत के लोग दूसरे प्रांत के लोगों से मिले तो परस्पर वार्तालाप हिंदी में ही होना चाहिए।.
.यदि भारत में सभी भाषाओं के लिए एक देवनागरी लिपि हो, तो भारतीय जनता की एकता और ज्ञान का अंतर प्रांतीय आदान-प्रदान सुगम हो जायगा।
काका कालेलकर:
-भाषा जनजीवन की चेतना का स्पदंन होती है। इसके लिए समुचित विचारों का भरपूर प्रचार आवश्यक है। हिंदी इसका एक उत्तम माध्यम सिद्ध हो सकती है।
विष्णु वामन शिरवाड़कर ‘कुसुमाग्रज’:-हिंदी एक संगठित करने वाली शक्ति है। हिंदी का प्रचार कार्य एक वाग्यज्ञ है।
श्री गोपाल राव एकबोटे:-स्वभाषा और राष्ट्रभाषा के द्वारा ही समाज में परिवर्तन और सामाजिक क्रांति संभव है।
डॉ. पाण्डुरंग राव: -भाषा सक्षम होती जाती है, उसे उपयोग में लाने से। संसार में एक भी उदाहरण ऐसा नहीं है, जहां भाषा को पहले सब कामें के लिए पूर्णत: तैयार कर लिया गया हो और उसके बाद उसका शासन कार्य में उपयोग किया गया हो।
डॉ. रंगराव दिवाकर: -आजकल सरल हिंदी के संबंध में काफी चर्चा हो रही है और इस संबंध में जनसाधारण में और शिक्षित समाज में भी काफी मतभेद है। उत्तर में जिस भाषा को सरल या आसान समझा जाता है, वह दक्षिण में पढ़े-लिखे आदमी के लिए दुर्बोध बन जाती है। संस्कृत निष्ठ भाषा समझने में किसी को भी सुविधा होती है, तो किसी को उर्दू के रोजमर्रे की ताजगी मेॉ अधिक आनंद आता है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना पर्यावरण होता है। भाषा भी पर्यावरण का एक अंग है। अपनी मातृभाषा के जिस पर्यावरण में एक व्यक्ति
पलता है, उसी को लेकर वह दूसरी भाषा के क्षेत्र में भी प्रवेश करता है।
रमेश भावसार ‘ऋषि’:-मैं राष्ट्र प्रेमी हूं, इसलिये सब राष्ट्रीय चीजों का, सब राष्ट्रवासियों का प्रेमी हूं तथा राष्ट्रभाषा का भी। राष्ट्रभाषा का प्रेम, राष्ट्र के अंतर्गत भिन्न-भिन्न लोगों का प्रेम और राष्ट्रभाषा का प्रेम, इसमें कुछ फर्क नहीं देखता हूं। जो राष्ट्रप्रेमी हैं, उसे राष्ट्रभाषा प्रेमी होना ही चाहिए। नहीं तो कुछ हद तक राष्ट्रप्रेम अधूरा ही रहेगा। -हिंदी बोलो, हिंदी लिखो, हिंदी पढ़ो-पढ़ाओ रे,राष्ट्रभाषा हिंदी के गौरव, गीत सदा ही गाओ रे।
कन्नड़
वी. वी. गिरी,पूर्व राष्ट्रपति: -हिंदी के बिना भारत की राष्ट्रीयता की बात करना व्यर्थ है।
के. हनुमंथैया -मैसूर, केरल तथा आंध्रप्रदेश ने हिंदी को संपर्क भाषा स्वीकार कर लिया है।
एस. निजलिंगप्पा :-इसमें संदेह नहीं कि राष्ट्रीय एकता में हिंदी का महत्तवपूर्ण स्थान है।
डॉ. सरगु कृष्णमूर्ति:-भारत विभिन्न धर्मों एवं भाषाओ का अखाड़ा है। किसी भी समय यहां मजहब, भाषा या किसी अन्य भेद के कारण ज्वालाएं फूट सकती है। इन सबको यदि हम राष्ट्रीय भावात्मक एकता के सूत्र से बांधकर भारत रूपी माला में नहीं गूथेंगे तो ये धर्म, ये भाषाएं और ये लोग बिखर-बिखर जायेंगे। इन सबको हम आज किसी एक मजहब के नीचे नहीं ला सकते, किसी एक दल का नहीं बना सकते। इन सबको अस्सी करोड़ मणियों की माला के रूप में हम सम्पर्क भाषा हिंदी के सूत्र के द्वारा ही स्थापित कर सकते हैं, वरना तलुगुभाषी, कन्नड़ भाषियों से संपर्क स्थापित नहीं कर सकता। बंगाली-पंजाबियों से हटकर रहेगा यह राष्ट्र , राष्ट्र नहीं रह कर प्रांतों की एकता विहीन एक भूखण्ड मात्र रहेगा। राष्ट्र की आत्मा व्यथित, राष्ट्र मन दु:खित एवं राष्ट्र की एकता लुप्त प्राय: हो जायगी।
प्रोफेसर चन्द्रहासन:- -उत्तर और दक्षिण भारत का सेतु हिंदी ही हो सकती है।
बांग्ला:
सुभाषचन्द्र बोस: -देश के सबसे बड़े भू-भाग में बोली जाने वाली हिंदी ही राष्ट्रभाषा की अधिकारिणी है।
-प्रांतीय ईर्ष्या, द्वेष दूर करने में जितनी सहायता हिंदी प्रचार से मिलेगी, उतनी किसी दूसरी चीज से नहीं।
रविन्द्रनाथ ठाकुर: -आधुनिक भारत की संस्कृति एक विकसित शतदल कमल के समान है, जिसका एक-एक दल प्रांतीय भाषा और उसकी साहित्य-संस्कृति है। किसी एक को मिटा देने से उस कमल की शोभा ही नष्ट हो जायगी। हम चाहते हैं कि भारत की सब प्रांतीय बोलियां जिनमें सुंदर साहित्य सृष्टि हुई है, अपने-अपने घर (प्रांत में) रानी बनकर रहे, प्रांत के जन-गण को हार्दिक चिंतन की प्रकाश भूमि-स्वरूप कविता की भाषा होकर रहे और आधुनिक भाषाओं के हार की मध्यमणि ‘हिंदी’भारत-भारती होकर विराजती रहे।
-उस भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए जो देश के सबसे बड़े हिस्से में बोली जाती हो, अर्थात् हिंदी।
-राष्ट्रीय कार्य के लिए हिंदी आवश्यक है। इस भाषा से देश की उन्नति होगी।
-भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी।
क्षितिज मोहन सेन:-हिंदी विश्व की सरलतम भाषाओं में से एक है।
-हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिएअनेक अनुष्ठान हुए । उनको मैं राजसूर्य यज्ञ मानता हूं।
महर्षि अरविंद घोष:-भारत के विभिन्न प्रदेशों के बीच हिंदी प्रचार के द्वारा एकता स्थापित करने वाले लोग सच्चे भारत बंधु हैं।
-सब लोग अपनी-अपनी मातृभाषा की रक्षा करते हुए हिंदी को साधारण भाषा के रूप में पढ़ें।
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (चटर्जी):
-हिंदी भाषा के द्वारा भारत के अधिकांश स्थानों का मंगल साधन करें।
-अंग्रेजी के विषय में लोगों की जो कुछ भी भावना हो, पर मैं दावे के साथ कह सकता हीं कि हिंदी के बिना हमारा कार्य नहीं चल सकता। हिंदी की पुस्तकें लिखकर और हिंदी बोलकर भारत के अधिकांश भाग को निश्चय ही लाभ हो सकता है। यहि हम देश में बंगला और अंग्रेजी जानने वालों की संख्या का पता चलाएं, तो हमें साफ प्रकट हो जायेगा कि वह कितनी न्यून है ? जो सज्जन हिंदी भाषा द्वारा भारत में एकता पैदा करना चाहते हैं, वे निश्चय ही भारत बंधु हैं।
-विमल मित्र:-हिंदी समस्त देश को एक सूत्र में बांधने वाली भाषा है, इसलिए इसको राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित होना उचित है।
डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी: -मैं हिंदी प्रेमी हूं, सांस्कृतिक जीवन में हिंदी के महत्त्व को भली-भांति समझता हूं। भारती एकता का मुख्य साधन हिंदी ही बन चुकी है। इसलिए हिंदी का विरोध करना भारती राष्ट्र का विरोध करना है।
न्यायमूर्ति शारदाचरण मित्र:अब भारत में एक लिपि के व्यवहारएवं उसके आसेतु हिमालय प्रसार का समय आ गया है और वह लिपि देवनागरी के अतिरिक्त दूसरी कोई नहीं हो सकती।

तेलुगु:
पी. वी. नरसिंहराव:-हिंदी को हम सब एक भाषा के रूप में नहीं, अपितु एक सेतु के रूप में देखते हैं।
डॉ. मोटूरी सत्यनारायण:-किसी प्रांत विशेष की भाषा होने से हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं मान ली गयी, बल्कि इसलिए मानी गई है कि वह अपनी सरलता, काव्यमयता और क्षमता के कारण सारे देश की भाषा हो सकती है।
-हिंदी के विकास में दो क्षेत्रों से मदद प्राप्त होना अनिवार्य है-हिंदी क्षेत्र तथा अहिंदी क्षेत्र। राष्ट्रभाषा के आंदोलन में सबसे बड़ी और विकट समस्या क्षेत्रीय हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं का समन्वय है। पारस्परिक सहानुभूमि सहानुभूति और सहनशीलता के बिना यह समन्वय प्राप्त नहीं हो सकता। अत: हिंदी तथा प्रादेशिक भाषाओं की वृद्धि तथा समृद्धि एक साथ होने में ही राष्ट्रीय हिंदी का विकास निहित है।
-भाषा समन्वय राष्ट्रीय एकता के लिए जितना आवश्यक है, उतना लिपि समन्वय भी, इसमें सबसे अधिक सहायक वर्तमान नागरी लिपि की लेखन प्रक्रिया है जिसे सुलभ बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर काम होना चाहिए, जबकि हिंदी संघ राज्य की प्रशासनिक भाषा और नागरी संघ राज्य की लिपि मान ली गयी है।
नीलम संजीव रेड्डी:जो हिंदी अपनायेगा वही आगे चलकर अखिल भारतीय सेवा में जा सकेगा और देश का नेतृत्व भी वहीं कर सकेगा, जो हिंदी जानता होगा।
डॉ. वी.के.आर.वी.राव:
-यदि सभी भारतीय भाषाओं के लिये नागरी लिपि का उपयोग हो, तो देश की विभिन्न भाषाएं सीखने में आसानी हो।
डॉ. वी.राघवन:-अखिल भारतीय कार्यों के लिये एक समान लिपि के रूप में देवनागरी का ही समर्थन किया जा सकता है।
डॉ. बी. गोपाल रेड्डी: -क्षेत्रीय भाषाओं को अपनाने के जोश में संपर्क भाषा हिंदी के विकास की उपेक्षा नहीं की जाना चाहिए।
विश्वनाथ सत्यनारायण: -राष्ट्रीय एकता के लिये देश की सर्वमान्य भाषा के रूप में हिंदी का पठन अनिवार्य है।
उड़िया-
कालीचरण पाणिग्रही:-मैं शुद्ध अंग्रेजी बोलने के बजाय अशुद्ध हिंदी बोलना पसंद करता हूं, क्योंकि वह मेरी राष्ट्रभाषा है। -राष्ट्रभाषा हिंदी की अभिवृद्धि से ही अन्य भारतीय भआषाओं की अभिवृद्धि संभव है।
-सरोजिनी नायडू:अगर हम साधारण बुद्ध से काम लें, तब हमें पता चलेगा कि हमारी कौमी जबान हिंदी हो सकती है।
डॉ. भुवनेश्वर तिवारी:-आओ भारत-भारती की हम उतारे आरती, पूज्य है पूजब बने हम, मातृ-भूमि की भारती,संस्कृति संवाहिका श्री श्रेष्ठ भारत-भारती, अर्चना है, वंदना है, जय-जय भारत-भारती।चेतना में, चिंता में, कर्मणा में भारती,व्याप्त सारे देश में, उदात्त भारत-भारती,विपुल भावों से भरा, यह लो समर्पण भारती,
विश्व आसन पर विराजो, दिव्य भारत-भारती।

मलयालम-

कामरेड इ.एम.एस. नम्बुदरीपाद:-विदेशों से सम्पर्क के लिये हिंदी माध्यम हो। अंग्रेजी के कारण विदेशों में हमें लज्जित होना पड़ता है।
-बी.के.बालकृष्णन:-हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और नागरी हमारी राष्ट्र लिपि है।
-महाकवि कुरुप: -भारत की अखण्डता और व्यक्तित्व बनाये रखने के लिये हिंदी प्रचार अत्यंत आवश्यक है।

पंजाबी-
लाला लाजपतराय:-आरंभिक जीवन से ही मुझे यह निश्चय हो गया था कि राष्ट्रीय मेल और राजनैतिक एकता के लिये सारे देश में हिंदी और नागरी का प्रचार आवश्यक है। तब मैंने। अपने लाभ-हानि के विचारों को एक ओर रख कर हिंदी का प्रचार प्रारंभ किया।
डॉ. राजाराम महरोत्रा:-राष्ट्रभाषा को अपने ही घर में दासी मत बनाइये।
ज्ञानी जैल सिंह: -लोकमान्य तिलक और महात्मा गांधी जैसे महानुभाव हिंदी भाषी प्रांतों में पैदा नहीं हुए थे, पर उन सब ने आजादी की लड़ाई हिंदी के द्वारा ही लड़ी थी। यह हिंदी इतनी प्रचलित है कि प्रांतीय भाषाओं के शब्दों को भी हजम करती है। भारत के निवासियों को यह समझ लेना चाहिए कि हिंदी के बिना हमारी आजादी अधूरी है, हिंदी भाषा न तो पंजाबी को मारना चाहती है, न गुजराती को, न मराठी, न तमिल, तेलुगु और बंगला को ही, यह तो सबको जिंदा रखने के लिये तैयार है। इसी भाषा से हम आगे बढ़े हैं और यही भाषा हमको आगे बढ़ा सकती है।
-हिंदी ही एकमात्र भाषा है, जे समूचे देश को एक कढ़ी में पिरोती है। अगर हिंदी कमजोर होती है, तो देश कमजोर होगा, अगर हिंदी मजबूत हुई तो देश की एकता, अखण्डता मजबूत होगी।
-भारत यदि हिंदी को भूल गया तो अपनी संस्कृति को भी भूल जायगा।
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संग्राहक:-निर्मलकुमार पाटोदी, इंदौर,
 संपर्क: 78699 17070, nirmal.patodi@gmail.com

साभार
वैश्विक हिंदी सम्मेलन
संपर्क – vaishwikhindisammelan@gmail.com

वक्फ बोर्ड के माध्यम से भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का षड़यंत्र

गजवा-ए-हिंद की योजना भारत में सक्रिय

भारत को मुस्लिम बहुल राष्ट्र बनाने की योजना साजिसन बहुत दिनों से लगातार चल रही है. मोटे तौर पर गजवा-ए- हिंद के मायने भारत में जंग के जरिये इस्लाम की स्थापना करने से है. इसका मतलब भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले काफिरों को जीतकर उन्‍हें मुस्लिम बनाने और जंग में भारत को जीतकर इसका इस्लामी करण करने से है. इस्‍लाम के कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत में पहले किए गए हमलों से गजवा-ए-हिंद पूरा हो चुका है. वहीं, कुछ मुस्लिम विद्वानों का मत है कि ये अभी 50 फीसदी ही पूरा हुआ है. 50 प्रतिशत पूरा करने के लिए कांग्रेस और अन्य कुछ दल अभी भी जुटे हुए हैं.

गांधी जी को गलत सोच

गांधीजी की सोच थी कि मुस्लिम हिंदुस्तान छोड़कर न जाएं ,पाकिस्तान से आए हिंदू सिख वापस चले जाएं, पहले विभाजन धार्मिक आधार पर होने दिया और जब हिंदू सिखों को पाकिस्तान में मारा जाने लगा , तभी वे हिंदुस्तान भागकर आए अपनी जान बचाकर आए.उन्हें पागलपन सवार नहीं था अपनी जायदाद रोजगार छोड़कर आने का. एक तरह से गांधी ढोंगी था. तभी आंबेडकर ने गांधी को दूरदर्शिता से शून्य बताया था. भारत में मुसलमानों को एक साजिश के तहत रोका गया था नहीं तो जब धर्म के आधार पर देश का बंटवारा हुआ तो उन्हें पूरे मुसलमान को पाकिस्तान भेज देना चाहिए था. यह सोची समझी साजिश के तहत जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी के पूर्वाग्रह के साथ किया था जो सर्वथा गलत एवं निंदनीय है और उसका खामियाजा आगे आने वाली पीढ़ियां को भुगतना पड़ेगा.

जवाहर लाल नेहरू का उल्टा रोल

जवाहर लाल नेहरू को गयासुद्दीन भी कहा जाता है.वे अपने को कश्मीरी पंडित कहते थे. उनके पूर्वज कश्मीर से थे. विदेशी शिक्षा के प्रभाव में वह खुद को एक्सीडेंटल हिन्दू कहते थे और पश्चिमी सभ्यता से अत्यधिक प्रभावित थे . वे इस्लामी संस्कृति और मुगलिया सल्तनत के शाशन काल कों पसन्द करते थे.उन्होने देश आजादी के बाद जो कानून सबसे पहले बनाएं वे हिन्दुओं की संख्या कम करने वाले थे. जैसे परिवार नियोजन कार्यक्रम सन् 1952 में , हिन्दू विवाह अधिनियम सन् 1955 में बना .

सन् 1974 में संविधान में 42वां संशोधन किया गया जिससे देश को तथाकथित सेकुलर बना दिया गया.बाबा साहेब ने जो संविधान बनाया था, उसकी हत्या कर दी गई. इंदिरा जी भी पारसी धर्म की अनुवाई होने के कारण उनका झुकाव गैर हिंदू ही रहा. राजीव गांधी, श्रीमती सोनिया गांधी, श्री राहुल गांधी और श्रीमती प्रियंका गांधी बढ़ोरा सब के सब ईसाई ही हैं. श्रीमती सोनिया गांधी, देश को ईसाई बनाने के लिए How to convert India into Christianity जैसे पुस्तकें पसन्द करती देखी गई है.

भारत में एक बहुत ताकत वाला है वक्फ बोर्ड कुव्यवस्था का शिकार

भारत के वक्फ बोर्ड के पास दुनिया के और तमाम देशों के वक्फ बोर्ड से कई गुना ज्यादा संपत्ति है. हमारा वक्फ बोर्ड काफी ताकतवर है. मौजूदा वक्फ बोर्ड एक्ट के मुताबिक, एक बार जब कोई जमीन वक्फ के पास चली जाती है तो उसे वापस नहीं किया जा सकता. इसी वजह से देश में मौजूद सुन्नी वक्फ बोर्ड और शिया वक्फ बोर्ड दोनों की कुल संपत्ति लगातार बढ़ रही है.  वक्फ बोर्ड के पास देश में रेलवे, डिफेंस और कैथोलिक चर्च के बाद सबसे ज्यादा जमीन है.

इसकी संपत्तियां आठ लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर फैली हैं. पिछले 13 साल में वक्फ की संपत्ति करीब दोगुनी हो गई है.आज यह पूरी तरह से कब्जे और वसूली का माध्यम बनता दिख रहा है. ऐसे में वर्तमान देश-काल और परिस्थिति में वक्फ कानून और उसके अधिकारों की सामयिकता और संवैधानिकता की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है. वक्फ बोर्ड्स की कुल संपत्तियों की कीमत 1 लाख 20 हजार करोड़ से ज्यादा है. मनमोहन सिंह की सरकार ने मार्च 2014 में दिल्ली में सरकारी संपत्तियों को वक्फ को ट्रांसफर किया है.

45 देशों के क्षेत्रफल से भी ज्यादा भारत के वक्फ बोर्ड की जमीन

हमारे देश में वक्फ बोर्ड के पास करीब 3804 वर्ग किलोमीटर संपत्ति जमीन है. यह दुनिया के लगभग 45 देशों के क्षेत्रफल से भी ज्यादा है. यह क्षेत्रफल समोआ, मॉरीशस, हांगकांग, बहरीन और सिंगापुर जैसे देशों से भी ज्यादा है. वर्तमान समय में वक्फ बोर्ड देश भर में

9.4 लाख एकड़ में फैली 8 लाख 72, 328 अचल संपत्तियां पंजीकृत हैं.जिसका अनुमानित मूल्य 1 लाख बीस हज़ार करोड़ रुपये है.भारत में दुनिया की सबसे बड़ी वक्फ संपत्ति है.इनमें सबसे ज्यादा संपत्ति उत्तर प्रदेश में हैं. यूपी में वक्फ बोर्ड के पास कुल 2 लाख 14 हजार 707 संपत्तियां हैं. इसमें से 1 लाख 99 हजार 701 सुन्नी और 15006 शिया वक्फ की हैं. इसके बाद पश्चिम बंगाल का नंबर है, जहां वक्फ के पास 80 हजार 480 संपत्तियां है. इसी तरह तमिलनाडु में वक्फ की 60 हजार 223 संपत्तियां हैं.

वक्फ संपत्ति का इस्तेमाल किस रूप में

कोई भी ऐसी चल या अचल संपत्ति वक्फ की हो सकती है, जिसे इस्लाम को मानने वाला कोई भी व्यक्ति धार्मिक कार्यों के लिए दान कर दे. वक्फ संपत्ति का इस्तेमाल कब्रिस्तान, सामाजिक कल्याण, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, डिस्पेंसरी और मुसाफिर खानों के लिए होता है. देशभर में बने सभी कब्रिस्तान वक्फ भूमि का हिस्सा हैं. देश के सभी कब्रिस्तान का रखरखाव वक्फ बोर्ड ही करता है.देशभर में वक्फ की संपत्तियों को संभालने के लिए एक केंद्रीय और 32 स्टेट वक्फ बोर्ड कार्यरत हैं. पर इनमे पारदर्शिता का अभाव है.

1995 में मिले असीमित अधिकार

देश में वक्फ की संपत्तियों के लिए कानून बनाने की शुरुआत 1913और 1954में हुई थी. इसके बाद से समय-समय पर कई संशोधन हो चुके हैं. साल 1995 में केंद्र की पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने वक्फ बोर्ड की शक्तियां बढ़ाकर उसे यह कानूनी अधिकार दिए कि वह मुस्लिम द्वारा दिए गए दान के नाम पर संपत्तियों पर दावा कर सकता है. 1995 का वक्फ कानून कहता है कि यदि वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर अपना दावा कर दे, तो उसे उसकी संपत्ति माना जाएगा.यदि दावा गलत है तो संपत्ति के मालिक को इसे सिद्ध करना होगा.

वक्फ एक्ट 1995 की प्रमुख धाराएं

वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 3(आर) के मुताबिक, अगर कोई संपत्ति, किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिम कानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चेरिटेबल) परोपकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी। वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा.बाद में वर्ष 2013 में संशोधन पेश किए गए, जिससे वक्फ को इससे संबंधित मामलों में असीमित और पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त हुई.

वक्फ बोर्ड को मिली हैं ये शक्तियां

अगर आपकी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता दी गई तो आप उसके खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकते.आपको वक्फ बोर्ड से ही गुहार लगानी होगी. वक्फ बोर्ड का फैसला आपके खिलाफ आया, तब भी आप कोर्ट नहीं जा सकते. तब आप वक्फ ट्राइब्यूनल में जा सकते हैं. इस ट्राइब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं.वक्फ एक्ट का सेक्शन 85 कहता है कि ट्राइब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है .

पंथनिरपेक्षता, एकता और अखंडता की भावना के विपरीत है वक्फ बोर्ड

यह अधिनियम धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है. वक्फ संपत्तियों के रखरखाव के लिए जिस तरह की कानूनी व्यवस्था की गई, वैसी व्यवस्था हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई या अन्य किसी पंथ के अनुयायियों के लिए नहीं है. यह पंथ निरपेक्षता, एकता एवं अखंडता की भावना के विपरीत है.

धार्मिक स्वतंत्रता के विपरीत

यह 1995 का अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के अनुरूप धार्मिक स्वतंत्रता के संरक्षण की बात करता है, इसमें अनुच्छेद 14 और 15 के अनुरूप सभी धर्मों एवं संप्रदायों के लोगों के लिए समानता होनी चाहिए, किंतु यह केवल मुस्लिम समुदाय के लिए है.यह अधिनियम अनुच्छेद 29 व 30 के तहत अल्प संख्यकों के हित की रक्षा की बात करता है, इसमें जैन, बौद्ध, ईसाई व अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को भी शामिल किया जाना चाहिए था, किंतु ऐसा नहीं है.

संविधान द्वारा प्रदत्त न्याय की व्यवस्था के विरुद्ध

संविधान ने तीन तरह के न्यायालयों की व्यवस्था की है-

1. अनुच्छेद 124-146 के तहत संघीय न्यायपालिका,

2.अनुच्छेद 214-231 के तहत हाई कोर्ट और

3.अनुच्छेद 233-237 के तहत अधीनस्थ न्यायालय.

संविधान निर्माताओं की मंशा थी कि सभी तरह के नागरिक विवाद संविधान के तहत बनी न्यायपालिकाओं में ही सुलझाए जाएं. ऐसे में वक्फ ट्रिब्यूनल को लेकर इस अधिनियम में की गई व्यवस्था संविधान द्वारा प्रदत्त न्याय व्यवस्था के विरुद्ध है.यह भारतीय संविधान के धार्मिकऔर आर्थिक प्रावधानों का खुलम खुला उलंघन है.

अनुच्छेद 27 का स्पष्ट उल्लंघन

वक्फ बोर्ड में मुस्लिम विधायक, मुस्लिम सांसद, मुस्लिम आइएएस अधिकारी, मुस्लिम टाउन प्लानर, मुस्लिम अधिवक्ता, मुस्लिम बुद्धिजीवी और मुतावल्ली होते हैं. इन सभी को सरकारी कोष से भुगतान किया जाता है, जबकि केंद्र या राज्य सरकारें किसी मस्जिद, मजार या दरगाह की आय से एक भी रुपया नहीं लेती हैं.

दूसरी ओर, केंद्र व राज्य सरकारें देश के चार लाख मंदिरों से करीब एक लाख करोड़ रुपये लेती हैं, लेकिन उनके संरक्षण के लिए ऐसा कोई अधिनियम नहीं बना है.

यह अनुच्छेद 27 का स्पष्ट रूप से उल्लंघन है, जिसमें व्यवस्था दी गई है कि किसी व्यक्ति को ऐसा कोई कर चुकाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, जिसका प्रयोग किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि के लिए हो.

वक्फ बोर्ड के मिले हैं असीमित अधिकार

वक्फ अधिनियम, 1955 की धाराओं 4, 5, 6, 7, 8, 9 और14 में वक्फ संपत्तियों को विशेष दर्जा दिया गया है, जो किसी ट्रस्ट आदि से ऊपर है. हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई व अन्य समुदायों के पास सुरक्षा का कोई विकल्प नहीं है, जिससे वे अपनी संपत्तियों को वक्फ बोर्ड की संपत्ति में शामिल होने से बचा सकें, जो एक बार फिर समानता को लेकर संविधान के अनुच्छेद 14, 15 का उल्लंघन है.

संपत्ति के अधिकार भी सुरक्षित नहीं

अधिनियम की धारा 40 में वक्फ बोर्ड को अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी संपत्ति के बारे में यह जांच कर सकता है कि वह वक्फ की संपत्ति है या नही. यदि बोर्ड को लगता है कि किसी ट्रस्ट, मुत्त, अखरा या सोसायटी की कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है, तो वह संबंधित ट्रस्ट या सोसायटी को नोटिस जारी कर पूछताछ

कर सकता है कि क्यों न उस संपत्ति को वक्फ संपत्ति में शामिल कर लिया जाए? यानी संपत्ति का भाग्य वक्फ बोर्ड या उसके अधीनस्थों पर निर्भर करता है. यह अनुच्छेद 14, 15, 26, 27, 300-ए का उल्लंघन है.

लिमिटेशन एक्ट से भी छूट

वक्फ के रूप में दर्ज संपत्ति को रिकवर करने के लिए लिमिटेशन एक्ट के तहत भी कार्रवाई नहीं की जा सकती है.धारा 107 में वक्फ की संपत्तियों को इससे छूट दी गई है.इस तरह की छूट हिंदू या अन्य किसी भी संप्रदाय से जुड़े ट्रस्ट की संपत्तियों के मामले में नहीं है.

दीवानी अदालतों की सीमा से भी बाहर

धारा 83 के तहत ट्रिब्यूनल का गठन करते हुए विवादों की सुनवाई के मामले में दीवानी अदालतों का अधिकार छीन लिया गया है. संसद के पास ऐसा अधिकार नहीं है जिसके तहत वह ऐसा ट्रिब्यूनल गठित कर दे, जिससे न्याय व्यवस्था को लेकर संविधान के अनुच्छेद 323-ए का उल्लंघन होता हो. वक्फ बोर्ड को कई ऐसे अधिकार दिए गए हैं, जो इसी तरह के अन्य ट्रस्ट या सोसायटी के पास नहीं है.

भारत भी एक मुस्लिम राष्ट्र की तरफ़ अग्रसर

इस एक्ट से बहुत ही दूरगामी दुष्परिणाम पड़ेगा.भारत की अखंडता अक्षुण्य नही रह सकती है. पूरे देश में वक्फ प्रापर्टी का बोलबाला हो जाएगा. यहां के मूल निवासियों की स्थिति दोयम नंबर की हो जायेगी और की पारसी देश ईरान की भांति भारत भी एक मुस्लिम राष्ट्र बन जायेगा.

 

वक्फ बोर्ड के विशेषाधिकार

वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 40

अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई संपत्ति उसकी है तो वो उसकी जांच कर सकता है और अगर बोर्ड ये मान ले कि ये संपत्ति उसकी है तो वो उस संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित कर सकता है .

वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 54

वक्फ बोर्ड सिर्फ किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति ही नहीं घोषित कर सकता बल्कि वो उस संपत्ति पर कब्जे को हटाने के लिए डीएम को भी कह सकता है.डीएम को ऐसी संपत्ति को खाली करवाना होगा.

वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 85

इसके तहत अगर कोई मामला वक्फ से जुड़ा हुआ है तो उसे किसी सिविल, राजस्व कोर्ट या किसी अन्य प्राधिकरण में चैलेंज नहीं कर सकते.

वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 83

इस सेक्शन में साफ लिखा है कि वक्फ ट्रिब्यूनल के पास वैसे ही पावर होंगी जैसे सिविल कोर्ट के पास होती है. ट्रिब्यूनल का फैसला फाइनल होगा.उसे सभी पक्षों को मानना होगा. ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती. सिर्फ हाईकोर्ट के पास ये पावर होगी कि अगर कोई अपील करे या खुद से वो ट्रिब्यूनल के फैसले की वैधानिकता की जांच (Legality check)कर सकता है.

दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती

बीजेपी नेता एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है, जिसमें वक्फ कानून के प्रावधानों को चुनौती दी गई है. इस मामले में अब जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से अदालत में अर्जी दायर की गई है, जिसमें मांग की गई है कि याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाते हुए याचिका को खारिज कर दिया जाए.

न्यायालय से मात खाने के

बावजूद हठधर्मिता जारी है

ताज महल के मामले में मात खाया है वक्फ बोर्ड

1998 में, यूपी के फिरोजाबाद के एक व्यापारी इरफ़ान बेदार ने यूपी सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड से गुजारिश की थी कि ताज महल को वक्फ की संपत्ति घोषित कर बोर्ड उन्हें वहां का मुतवल्ली या केयर टेकर बना दे.इलाहबाद हाई कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही इस अपील पर विचार करने को कहा. जिसके बाद 2005 में यूपी सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड ने ताज को वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत करने का निर्णय ले लिया.

इसे एएसआई ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.जिसे माननीय न्यायालय स्वीकार कर वक्फ बोर्ड के दावे को खारिज कर दिया था.बादशाह शाहजहां के द्वारा वक्फ के सबूत ना दे पाने के कारण बाद में यूपी वक्फ बोर्ड ने खुद ही ताज महल से अपना दावा वापस लेना पड़ा था. ताज महल पर एएसआई का दावा पक्का माना गया था.

आगरा की जामा मस्जिद अपना अलग ही अलाप

आगरा की जामा मस्जिद की अगर बात करें, जिसका निर्माण मुग़ल बादशाह शाहजहां ने करवाया था. उन्होंने इस मस्जिद को अपनी बेटी जहां आरा बेगम को समर्पित किया था. उत्तर प्रदेश केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड को इस मस्जिद का नियंत्रण मिला था. इसके परिसर में 82 दुकानें हैं, जहां से बोर्ड हर महीने 17,000 रुपये का किराया वसूलता था. मनमानी खर्च करता है. लेकिन यह एएसआई ही है जो अपने संसाधनों से इस इमारत का रखरखाव कर रहा है .

दिल्ली की जामा मस्जिद के लिए एक बड़ा खेल रचा गया

जामा मस्जिद को वर्ष 1656 में शाहजहां ने बनवाया था. ये मस्जिद करीब 368 वर्ष पुरानी है. ऐसे में ASI को उसे अपने संरक्षण में लेना चाहिए था. लेकिन जामा मस्जिद को ऐतिहासिक धरोहर बनने से रोकने के लिए एक बड़ी साजिश की गई थी.  इस इमारत को देश की सबसे बड़ी मस्जिद का तमगा हासिल है. जब इसको राष्ट्रीय धरोहर बनाने का वक्त आया, तो एक बड़ा खेल रचा गया. इस खेल में मौलाना, पूर्व प्रधानमंत्री और एएसआई तीनों शामिल थे.ये मुगलकालीन इमारत शाही इमामों की प्राइवेट प्रॉपर्टी बन गई है. इसीलिए जामा मस्जिद को ऐतिहासिक धरोहर घोषित करने की कवायद, कई वर्षो से चल रही है. पत्रों के माध्यम से मौलाना सैयद अहमद शाह बुखारी और पीएम मनमोहन सिंह की बातचीत हुई है. जामा मस्जिद को एएसआई संरक्षण से दूर रखने की साजिश की पहल मौलाना बुखारी ने ही की थी.

10 अगस्त 2004 को ये पत्र सैयद अहमद बुखारी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखा था. इसमें उन्होंने जामा मस्जिद के रखरखाव के लिए एएसआई को निर्देश देने की अपील की थी. इसके अलावा उन्होंने लगभग चेतावनी भरे लहजे में कहा था, कि अगर जामा मस्जिद को एएसआई के संरक्षण में दिया गया, तो देश में बवाल खड़ा हो जाएगा. इस पत्र के जरिए मौलाना बुखारी, देश के पूर्व प्रधान मंत्री को धमकी देते हुए नजर आए.

बुखारी साहब ने, इस पत्र के जरिए ये भी कहा,कि जामा मस्जिद के रख    रखाव का खर्चा वो सरकार से ही लेंगे, लेकिन जामा मस्जिद को राष्ट्रीय धरोहर नहीं बनने देंगे. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसको लेकर एएसआई को एक पत्र लिखा. जिसके बाद, उन्होंने बुखारी को उनके पत्र का जवाब दिया.

20 अक्टूबर 2004 को लिखे गए इस पत्र में मनमोहन सिंह ने बुखारी से कहा, कि उन्होंने एएसआई को जामा मस्जिद के रिपेयर वर्क के लिए कह दिया है. और ये भी तय कर दिया गया है कि जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित नहीं किया जाएगा.

यदि जामा मस्जिद संरक्षित इमारत घोषित कर दी गई, तो यही नहीं जामा मस्जिद को निजी संपत्ति समझने वाले शाही इमामों की दुकानें भी बंद हो जाएंगी. एएसआई के संरक्षण के बाद जामा मस्जिद एक धार्मिक इमारत बनकर रहेगी जहां प्राइवेट और राजनीति तकरीरें बंद हो जाएंगी.

2018 में दायर की गई थी याचिका

दिल्ली हाईकोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही जिसमें मांग की गई है कि जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित किया जाए और उसके आसपास अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया जाए. याचिका मार्च 2018 में सुहैल अहमद खान ने दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि जामा मस्जिद के आसपास के पार्कों पर अवैध कब्जा है और अतिक्रमण किया गया है. एएसआई ने कहा था हमारे दायरे में नहीं है. सुनवाई के दौरान एएसआई की ओर से कहा गया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शाही इमाम को ये आश्वस्त किया था कि जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित नहीं किया जाएगा. एएसआई ने कहा था कि जामा मस्जिद केंद्र सरकार की ओर से संरक्षित इमारत नहीं है.

2004 में भी उठा था संरक्षित घोषित करने का मामला

एएसआई ने हाईकोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि 2004 में जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित करने का मामला उठा था. हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 20 अक्टूबर 2004 को शाही इमाम को लिखे अपने पत्र में कहा था कि जामा मस्जिद को केंद्र सरकार संरक्षित इमारत घोषित नहीं करेगी.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अभी हाल ही में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को ऐतिहासिक जामा मस्जिद के संबंध में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा लिए गए निर्णय से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। इस निर्णय में कहा गया है कि मुगलकालीन मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया जाना चाहिए.न्यायालय की ओर से यह निर्देश बुधवार, 28 अगस्त 2024 को जारी किया गया, जब ऐसी खबरें आईं कि यह महत्वपूर्ण दस्तावेज अब गायब है.

भाजपा सरकार ने जामा मस्जिद के संरक्षण पर खर्च किए ₹52 लाख

भारत सरकार बिना संरक्षित इस स्मारक पर नियम विरुद्ध पहले भी पैसा खर्च करता आया है और आज भी कर रहा है. भारत सरकार जामा मस्जिद के संरक्षण का काम की है, जिसमें मस्जिद के कुछ हिस्सों में 52 लाख रुपये से अधिक खर्च किए गए हैं. लोकसभा सदस्य साजदा अहमद ने  संस्कृति, पर्यटन और पर्यटन  विकास

मंत्री जी से एक प्रश्न के उत्तर में पूछा था। किशन रेड्डी ने कहा कि भारतीय पुरातत्ववेत्ता ने जामा मस्जिद का प्रालेखी करण और शास्त्र चित्रण का काम शुरू कर दिया है. आवश्यक है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित कार्य नियमित रूप से किया जाना.मंत्री ने कहा कि जब भी जरूरत पड़ी, जामा मस्जिद के संरक्षण के लिए धनराशि उपलब्ध करायी गयी.

पिछले तीन प्रचलित सत्रों में जामा मस्जिद की सुरक्षा पर कुल 52.80 लाख रुपये खर्च हुए हैं. खर्च के हिसाब से साल 2018-19 में 13.90 लाख रुपये, 2019-20 में 13.92 लाख रुपये और 2020-21 में 25.00 लाख रुपये खर्च किए गए हैं.

2024 में भाजपा सरकार द्वारा दो विधेयक पेश

लोकसभा में 8 अगस्त 2024 को दो विधेयक वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 और मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक 2024 पेश किए गए, जिनका उद्देश्य वक्फ बोर्ड के कामकाज को सुव्यवस्थित करना और वक्फ संपत्तियों का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करना है. 1995 में संशोधन के लिए जो नया विधेयक प्रस्तुत किया है, जिसका नाम है-‘यूनाइटेड वक्फ मैनेजमेंट एंपावरमेंट एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट एक्ट’ (उम्मीदा). परंतु इस विधेयक का विपक्ष और तथाकथित मजहबी नेताओं द्वारा विरोध किया जा रहा है और मुसलमानों के बीच तरह-तरह की भ्रातियां फैलाई जा रही हैं कि यह विधेयक वक्फ बोर्ड को खत्म कर देगा और मस्जिदों, दरगाहों पर सरकार का अतिक्रमण हो जाएगा.

विपक्ष और तथाकथित मजहबी नेता यह नहीं बता रहे कि मोदी सरकार द्वारा प्रस्तुत किए गए संशोधन विधेयक में ऐसे कौन-से नियम हैं जो मुसलमानों के हित के विरोध में है या इस विधेयक के पारित हो जाने से मस्जिदों और दरगाहों को कैसे नुकसान होगा?

तार्किक दृष्टिकोण से देखें तो यहां प्रश्न उठता है कि क्या वक्फ बोर्ड की स्थापना से लेकर अब तक इस कानून की समीक्षा नहीं होनी चाहिए? यदि वक्फ बोर्ड मुस्लिम समाज के हित के लिए है तो यह विश्लेषण नहीं किया जाना चाहिए कि अब तक कितने मुसलमानों को इसका लाभ मिला है? अब तक कितने प्रतिशत मुसलमानों का विकास हुआ है? या मुस्लिम महिलाओं का कितना सशक्ति करण हुआ है?

यह संशोधन विधेयक मोदी सरकार द्वारा पसमांदा मुस्लिमों के विकास और उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की दिशा में एक उपक्रम है.भारतीय मुसलमानों में सबसे ज्यादा जनसंख्या पसमांदा मुसलमानों की है.तो क्या यह जांच नहीं की जानी चाहिए कि पसमांदा मुसलमानों के लिए वक्फ बोर्ड लाभप्रद साबित हुआ है या नहीं? उन्हें उनका उचित हक मिला या नहीं? क्या वक्फ जमीन पर पर्याप्त मात्रा में अस्पताल, स्कूल या कॉलेज बने हैं? वक्फ बोर्ड ने मुसलमानों में शिक्षा के उद्देश्य से क्या प्रयास किए हैं? यदि ये सब लाभ प्राप्त हुए हैं तो अभी तक इनसे जुड़े आंकड़े क्यों नहीं सामने आए? क्या इन सब तथ्यों का विश्लेषण नहीं किया जाना चाहिए.

जनहित का प्रश्न अंतर्निहित

1. क्या वक्फ एक्ट 1995, देश के सेकुलर ढांचे के खिलाफ है?

2. क्या सरकारी संपत्तियों को वक्फ को देने का मनमोहन सरकार का फैसला खतरनाक था?

3. हिंदुस्तान में जो अधिकार किसी दूसरे धर्म के पास नहीं, वो वक्फ के पास क्यों?

अभिजात्य वर्ग और उच्च जाति के लोगों को खतरा

वास्तव में इस संशोधन विधेयक का विरोध मुसलमानों को यथार्थवादी तथ्यों से भटकाने की साजिश का हिस्सा है. दरअसल, इस संशोधन विधेयक के विरोध के अन्य कारण हैं. इससे इस्लाम खतरे में नहीं है, बल्कि उन मुस्लिम अभिजात्य वर्ग और उच्च जाति के हित खतरे में है, जिन्होंने कई वर्षों से वक्फ की जमीन से करोड़ों-अरबों रुपए का गबन किया है.यह संशोधन विधेयक का विरोध नहीं है, यह भय है वक्फ से भ्रष्टाचार खत्म होने का. यह भय है अनुचित कमाई का धंधा चौपट होने का. यह भय है मुस्लिम अभिजात्य वर्ग का वर्चस्व खत्म होने का.यह संशोधन विधेयक प्रहार है उन चुनिंदा लोगों पर जिनका वक्फ की संपत्ति पर अवैध कब्जा है.वक्फ बोर्ड का उचित प्रबंधन होता तो मुस्लिम समाज आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा नहीं होता.

वोट बैंक की राजनीति के कारण मुस्लिम समाज के विकास के लिए बनाई गई इस संस्था पर मुट्ठीभर, भ्रष्ट और ताकतवर लोगों का प्रभुत्व है. क्या लगभग नौ लाख एकड़ जमीन की निगरानी के लिए उचित नियम-कानून नहीं होना चाहिए? सरकार ने संसद में बताया कि विधेयक लाने का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन और संचालन करना है. यही कारण है कि सरकार ने विधेयक के नाम में संशोधन का प्रस्ताव भी रखा है.

अगर वक्फ बोर्ड सही मायने में अपना काम करते तब पूरे देश के मुसलमान मुख्यधारा से वंचित न रहते. बुजुर्गो ने अपनी संपत्तियां इसलिए वक्फ कर दी थीं कि इसकी आमदनी से मुसलमानों के गरीब और कमजोर बच्चों और बच्चियों की तालीम का अच्छा इंतजाम किया जा सकेगा लेकिन इसके सुखद परिणाम नहीं मिल सके. वास्तव में यह विधेयक लागू होगा तो पारदर्शिता आएगी, साथ ही पिछड़े और पसमांदा मुसलमानों के लिए यह विधेयक रामबाण साबित होगा.

पुरातत्त्व अधिनियम से टकराव

वक्फ अधिनियम 1995 वक्फ बोर्ड को दान के नाम पर किसी भी संपत्ति या इमारत को वक्फ संपत्ति घोषित करने का अधिकार देता है .इस अधिकार का उपयोग करते हुए वक्फ बोर्ड ने संरक्षित स्मारकों को वक्फ संपत्ति घोषित करने के लिए अधिसूचनाएँ जारी की हैं, जिसके परिणाम स्वरूप प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत दिए गए अधिकारों के साथ टकराव हो जाता है.

जेपीसी की बैठकों में मुद्दे बढ़ रहे हैं

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने जेपीसी की बैठक में संरक्षित स्मारकों और स्थलों में वक्फ से जुड़े मुद्दों पर विस्तृत प्रस्तुति दी और बताया कि इतने सारे ऐतिहासिक स्मारकों के साथ उन्हें क्या- क्या समस्याएं आ रही हैं.उन्होंने इस बात पर भी चर्चा की है कि वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक क्यों जरूरी है?

आधी- अधूरी सूची ही पेश कर पाया एएसआई

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने वक्फ़ संशोधन विधेयक-2024 के समर्थन में वक्फ़ बोर्ड से जुड़ी कुछ बातें बताई हैं. एएसआई ने अभी तक अपने 24 जोन में से सिर्फ 9 जोन की जानकारी ही सौंपी है. दिल्ली जोन की सूची, जो कि काफी महत्वपूर्ण है, अभी तक नहीं सौंपी गई है. उम्मीद है कि एएसआई जल्द ही बाकी जोन की जानकारी उपलब्ध करा देगा, ताकि वक्फ संपत्तियों को लेकर स्थिति और स्पष्ट हो सके. एएसआई के अधिकारियों ने बैठक में बताया कि वक्फ बोर्ड के साथ देश भर में अद्यतन कथित 132 या 120 संपत्तियों को लेकर उनका विवाद है.इन स्मारकों पर वक्फ़ बोर्ड दावा कर रहा है.

एएसआई संस्कृति मंत्रालय के अधीन काम करता है. एएसआई ने अपनी प्रस्तुति में 53 स्मारकों की सूची दी, जिन पर वक्फ अपना दावा करता है. इनमें से कुछ को देश की आजादी से पहले का इतिहास रखने वाले एएसआई द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किए जाने के लगभग एक सदी बाद वक्फ की संपत्ति घोषित किया गया.एएसआई अधिकारियों ने कहा कि इस तरह के “दोहरे अधिकार” टकराव पैदा करते हैं.उन्होंने रेखांकित किया कि इनमें से कई संपत्तियों को वक्फ के रूप में तभी वर्गीकृत किया गया है, जब उन्हें संरक्षित स्थल घोषित किया गया था.

जेपीसी की बैठकों में विपक्ष का अपना निजी स्वार्थ

जेपीसी की बैठकों में विपक्ष की ओर से एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने केवल दिल्ली की ही 172 वक्फ संपत्तियों की सूची सौंपी जो उनके अनुसार एएसआइ के अनधिकृत कब्जे में हैं. सूत्रों के अनुसार ओवैसी खुद 3000 करोड की वक्फ की जमीन कब्जा किए बैठे हैं. कांग्रेस के समय की कर्नाटक मैनार्टी कमेटी को रिपोर्ट के अनुसार 120 एकड़ जमीन को कमर्शियल कनवरजन करा लिया है. ये 8 रुपए की किरायेदारी पर है। इसे 30 साल से ज्यादा कोई नहीं रख सकता फिर भी ओवैसी इस पर कुण्डली मार कर बैठे हैं.

संरक्षण में बाधा

इन स्मारकों पर वक्फ़ बोर्ड का दावा करने की वजह से संरक्षण और देखरेख प्रभावित होता रहता है. संरक्षण कार्य में बाधा उत्पन्न हुई है और वक्फ संपत्तियों में अनधिकृत परिवर्तन कर लिए जाते हैं. इनके मुतलवी एएसआई के अधिकारी वा कर्मचारी को स्मारक में प्रवेश, निरीक्षण, रेखाचित्र और छायाचित्र करने नही देते हैं. अनेक बार तो हाई लेवल अधिकारी को लिखकर पुलिस संरक्षण में स्मारक में प्रवेश करने दिया जाता है. ये राजनीतिक बल का प्रयोग कर सरकारी विभाग पर दबाव डलवाते हैं.बिना किसी देरी के आनन फानन में स्मारक का मनमानी संरक्षण अनुरक्षण और छोटा मोटा निर्माण भी करवा लेते हैं.

संरक्षण प्रतिबंधित

सूत्रों के अनुसार, एएसआई ने शिकायत की है कि उसके कर्मचारियों को ऐसे स्मारकों में “संरक्षण” कार्य करने से प्रतिबंधित किया गया है। एएसआई अधिकारियों ने बोर्ड पर इन संरक्षित स्मारकों की मूल संरचना में “कई जोड़ और परिवर्तन” करने का भी आरोप लगाया, जिससे ऐसी संरचनाओं की “प्रामाणिकता और अखंडता” बाधित हो रही है.

वक्फ बोर्ड और एएसआई के मध्य कुछ विवाद वाले मामले

एएसआई द्धारा प्रदत्त सूची में महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित निजाम शासक अहमद शाह की कब्र को शामिल किया गया.इसे एएसआई ने 1909 में संरक्षित स्मारक घोषित किया था, जबकि 2006 में इसे वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया.

इसी प्रकार, बेलगाम की सफा मस्जिद, जिसे 1909 में संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था, को 2005 में वक्फ के रूप में वर्गीकृत किया गया.महाराष्ट्र के संभाजीनगर (औरंगाबाद) में औरंगजेब का मकबरा, पर विवाद होता रहता है.

आगरा की जामा मस्जिद, पर विवाद होता रहता है.कर्नाटक का बीदर किला पर विवाद होता रहता है.और औरंगाबाद के पास प्रसिद्ध दौलताबाद किला पर भी विवाद होता रहता है.आगरा में फतेहपुर सीकरी और जौनपुर में अटाला मस्जिद का उदाहरण देते हुए एएसआई ने बताया कि संरक्षित स्मारकों को वक्फ संपत्ति के रूप में अधिसूचित किए जाने से टकराव की स्थिति पैदा होती है.

उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड

उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास संपत्तियों की संख्या 1,17,161 है। प्रमुख निम्न लिखित हैं ,जिन पर एएसआई से विवाद होता रहता है-

टीले वाली मस्जिद, लखनऊ

जामा मस्जिद, लखनऊ

नादान महल मकबरा, लखनऊ

शाही अटाला मस्जिद जौनपुर

दरगाह सैयद सालार मसूद गाजी, बहराइच

सलीम चिश्ती का मकबरा, फतेहपुर सीकरी, आगरा

धरहरा मस्जिद, वाराणसी

उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड

उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के पास संपत्तियों की संख्या 15,386 है.प्रमुख निम्न लिखित हैं ,जिन पर एएसआई से विवाद होता रहता है-

बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ

छोटा इमामबाड़ा लखनऊ

इमामबाड़ा किला-ए-मुअल्ला, रामपुर

मकबरा जनाब-ए-आलिया, रामपुर

इमामबाड़ा खासबाग, रामपुर

बहू बेगम का मकबरा, फैजाबाद

दरगाहे आलिया नजफ-ए-हिंद, बिजनौर

मजार शहीद-ए-सालिस, आगरा.

वक्फ संशोधन विधेयक पर घमासान

वक्फ संपत्ति के मुद्दे को लेकर देशभर में तनाव बढ़ता जा रहा है. सरकार द्वारा संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया गया.जेपीसी ने अब तक चार बैठकें आयोजित की हैं और वक्फ संशोधन विधेयक, 2024 पर जनता से सुझाव मांगे हैं. समिति के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार वक्फ संशोधन बिल को लेकर संयुक्त संसदीय समिति को 22 तारीख 2024 तक करीब 96 लाख से ज्यादा ईमेल मिले हैं. इस बीच एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाले रिएक्शन का हिस्सा काफी बड़ा है.वक्फ संशोधन बिल पर टिप्पणियां दर्ज करने की समय सीमा बीती15सितंबर को खत्म हो चुकी है. अब संयुक्त संसदीय समिति का पैनल अलग-अलग राज्यों का दौरा करेगा. इसके साथ ही स्टेट वक्फ बोर्ड और राज्य अल्पसंख्यक आयोगों से मुलाकात करेगा.

बिहार के गोविंदपुर हिन्दू गांव पर वक्फ बोर्ड का दावा

हाल ही में बिहार के गोविंदपुर गांव में भी वक्फ बोर्ड ने पूरा गांव अपना बताकर वहां के निवासियों को नोटिस जारी किया था.गोविंदपुर, जो पटना से 30 किलोमीटर

दूर स्थित है और जिसकी जनसंख्या लगभग 5,000 है, 90% हिंदू आबादी वाला गांव है. वक्फ बोर्ड ने गांव के सात लोगों को नोटिस जारी करते हुए जमीन खाली करने की चेतावनी दी है.

दिल्ली के छह प्रमुख मंदिरों पर वक्फ बोर्ड का दावा

वक्फ बोर्ड द्वारा दिल्ली के छह प्रमुख मंदिरों पर दावा ठोकने की खबर ने सनसनी फैला दी है. यह खुलासा 2019 की एक रिपोर्ट के आधार पर हुआ, जिसमें बताया गया कि इन मंदिरों की जमीन वक्फ बोर्ड की संपत्ति है. हैरानी की बात यह है कि कुछ मंदिर वक्फ बोर्ड के अस्तित्व में आने से पहले से मौजूद हैं.  यह दावा अल्पसंख्यक आयोग की 2019 की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट से सामने आया, जिसमें दिल्ली के कई मंदिरों को वक्फ बोर्ड की जमीन पर स्थित बताया गया है।

गरीब मुसलमानों के कल्याण के लिए धन नहीं

चौकाने वाला तथ्य यह है कि इतने शक्तिशाली बोर्ड के पास गरीब मुसलमानों के कल्याण के लिए धन ही नहीं है, क्योंकि ताकतवर मुसलमानों ने बोर्ड पर अवैध कब्जा किया हुआ है.मुस्लिम समाज में ऐसे ताकतवर लोग हैं, जो वक्फ की संपत्तियों को पट्टे पर लेकर वर्षों से कब्जा जमाए हुए हैं. दिल्ली में जमीयत- ए- उलेमा हिंद के पास वक्फ की काफी संपत्ति है. लेकिन इसका कोई फायदा न बोर्ड को हो रहा है, न ही वंचित मुसलमानों को. इस विधेयक के माध्यम से केंद्र सरकार वक़्फ बोर्ड की संपत्ति के मामले में होने वाली मनमानी को रोकेगी.इससे भू-माफिया की मिलीभगत से होने वाली वक्फ संपत्ति को बेचने या पट्टे पर देने के अनुचित धंधे पर रोक लगेगी. वक़्फ बोर्ड की जमीन का अभी तक दुरुपयोग होता आया है.

वक्फ अधिनियम में बदलाव की तैयारी

केंद्र सरकार जल्द ही वक्फ अधिनियम में बदलाव करने की तैयारी में है.सरकार बोर्ड की शक्तियों पर अंकुश लगाएगी और महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाएगी. इस विधेयक के तहत किसी भी संपत्ति को अपनी संपत्ति कहने की इसकी अनियंत्रित शक्तियों में कटौती हो सकती है.विधेयक में वक्फ अधिनियम में करीब 40 संशोधन प्रस्तावित किए जाने की संभावना है. केंद्र सरकार जल्द ही वक्फ अधिनियम में कई बड़े बदलाव कर सकती है.जिसमें कई संशोधन हो सकते हैं। इसके तहत वक्फ बोर्ड की शक्तियों को कम किया जा सकता है.समाचार एजेंसी आईएएनएस के अनुसार, इस विधेयक के तहत किसी भी संपत्ति को अपनी संपत्ति कहने की इसकी ‘अनियंत्रित’ शक्तियों में कटौती हो सकती है और महिलाओं का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित हो सकता है.

धारा 40 का हटना सम्भव

अब नए कानून में वक्फ कानून की धारा 40 को हटाया जा रहा है. इस कानून के तहत वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित करने का अधिकार था, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा. ध्यान देने योग्य बिंदु यह है कि क्या यह तरीका लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ नहीं है? आखिर देश में कोई भी कानून लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ नहीं हो सकता. आज मुस्लिम देशों में भी महिलाएं संवैधानिक और उच्च पदों पर आसीन हैं. यहां तक कि भारत में भी मुस्लिम महिलाएं सांसद, विधायक, मंत्री और उपराष्ट्रपति तक बन चुकी हैं.पर वक्फ बोर्ड की सदस्य नहीं बन सकतीं. क्या यह बराबरी के सिद्धांत के खिलाफ नहीं है? क्या यह भारतीय संविधान का उल्लंघन नहीं है?

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं.मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)

चित्रनगरी संवाद मंच में रामचरितमानस पर चर्चा

मुंबई। चित्रनगरी संवाद मंच मुंबई की ओर से मृणालताई हाल, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट, गोरेगांव में रविवार 22 सितंबर 2024 को आयोजित सृजन संवाद में कवि अनिल गौड़ का वक्तव्य काफ़ी पसंद किया गया। विषय था-” आज के दौर में रामचरित मानस”। अनिल गौड़ ने रामचरितमानस की भाषाई ख़ूबियों और काव्य सौंदर्य पर चर्चा करने के साथ ही जनमानस की आस्था के साथ रामचरितमानस के रिश्ते को असरदार तरीके से रेखांकित किया। उनके अनुसार देश की सांस्कृतिक यात्रा में रामचरित मानस का विशेष योगदान है। रामचरित मानस के ज़रिए लोगों के मन में धार्मिक विश्वास और उदात्त मूल्यों को स्थापित करने में तुलसीदास का अप्रतिम योगदान है। कुछ और रचनाकारों ने भी इस चर्चा में महत्वपूर्ण भागीदारी की। ख़ास तौर से व्यंग्यकार के पी सक्सेना ‘दूसरे’ ने रामचरितमानस के प्रमुख चरित्रों से जुड़े कुछ बहुत अच्छे दोहे सुनाए।
‘धरोहर’ के अंतर्गत विवेक अग्रवाल ने कवि, कथाकार, पत्रकार और राजनीतिज्ञ श्रीकांत वर्मा की मशहूर कहानी ‘शव यात्रा’ का पाठ किया। उनकी प्रस्तुति असरदार थी। ‘शवयात्रा’ कहानी 1963 में लिखी गयी थी। प्रेम का रूहानी रंग इस कहानी को विशिष्ट बनाता है। समाज की मुख्यधारा से दूर खड़े दो वंचितों के रिश्ते का ताना बाना इस कहानी को अद्भुत छवि देता है। कुल मिलाकर इस मार्मिक कहानी ने लोगों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ी।
कविता पाठ के सत्र में सुनने सुनाने का बड़ा ख़ूबसूरत सिलसिला रहा। प्रज्ञा मिश्रा, अनामिका शर्मा, राजीव रोहित और अनुज वर्मा ने पहली बार चित्रनगरी संवाद में काव्य पाठ किया। शिरकत करने वाले बाक़ी कवियों के नाम हैं – प्रदीप मिश्र, हीरालाल यादव, ताज मोहम्मद सिद्दीक़ी, प्रदीप गुप्ता, राजेश ऋतुपर्ण, पीयूष पराग, क़मर हाजीपुरी, जवाहरलाल निर्झर, महेश साहू, आरिफ़ महमूदाबादी, पूनम विश्वकर्मा, सविता दत्त, दमयंती शर्मा और डॉ आर एस रावत।
इन रचनाकारों ने ऐसी विविधरंगी कविताएं सुनाईं कि सब श्रोताओं के चेहरे तृप्ति से चमक रहे थे। कुल मिला कहानी, कविता और सम्वाद की यह एक यादगार शाम रही।
#चित्रनगरी_संवाद_मंच_में_रामचरित_मानस_पर_चर्चा

छत्तीसगढ़ संस्कृति विभाग द्वारा राज्य और राष्ट्रीय सम्मान 2024 के लिए आवेदन आंमत्रित

रायपुर,/ संस्कृति विभाग द्वारा राज्य और राष्ट्रीय सम्मान 2024 के लिए आवेदन आंमत्रित किए गए है। इच्छुक आवेदक निर्धारित प्रारूप में अपना आवेदन सीधे पंजीकृत डाक के माध्यम से 5 अक्टूकर तक संचालनालय संस्कृति एवं राजभाषा द्वितीय तल, व्यावसायिक परिसर, सेक्टर-27, नवा रायपुर अटल नगर छत्तीसगढ़ को अपना आवेदन प्रेषित कर सकते है। आवेदक विस्तृत जानकारी विभाग के वेबसाईट www.cgculture.in पर प्राप्त कर सकते है। चयनित पात्र को राज्य अलंकरण समारोह के अवसर पर राज्य अलंकरण सम्मान से विभूषित किया जाएगा। गौरतलब है कि संस्कृति विभाग द्वारा 11 राज्य स्तरीय सम्मान और 01 राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया जाता है।

संस्कृति विभाग के अधिकारियों ने बताया कि संस्कृति विभाग द्वारा स्थापित सम्मान में हिन्दी साहित्य के लिए पं. सुन्दरलाल शर्मा सम्मान, लोक नाट्य एवं लोक शिल्प के क्षेत्र में दाऊ मंदराजी सम्मान, शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य के लिए चक्रधर सम्मान, देश के बाहर अप्रवासी भारतीय द्वारा सामाजिक कल्याण, साहित्य, मानव संसाधन, निकाय अथवा आर्थिक के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ अप्रवासी भारतीय सम्मान, हिन्दी/छत्तीसगढ़ी सिनेमा में रचनात्मक लेखन, निर्देशन, अभिनय, पटकथा लेखन हेतु किशोर साहू सम्मान और हिन्दी/छत्तीसगढ़ी सिनेमा में सर्वश्रेष्ठ फिल्म निर्देशन हेतु किशोर साहू राष्ट्रीय सम्मान शामिल है।

इसी प्रकार लोक नृत्य और पंथी नृत्य हेतु क्रमशः देवदास बंजारे स्मृति सम्मान और देवदास बंजारे स्मृति पंथी नृत्य सम्मान, आंचलिक साहित्य/लोक कविता के लिए लाला जगदलपुरी साहित्य सम्मान, छत्तीसगढ़ी लोकगीत के लिए लक्ष्मण मस्तुरिया सम्मान, छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के क्षेत्र खुमान साव सम्मान, समकालीन रंगकर्म के क्षेत्र हबीब तनवीर सम्मान शामिल है।

मंदिरों का सरकारीकरण नहीं, सामाजीकरण हो: डॉ. सुरेंद्र जैन

नई दिल्ली। तिरुपति मंदिर में प्रसादम् को गम्भीर रूप से अपवित्र करने से आहत विश्व हिंदू परिषद ने आज कहा है कि अब मंदिरों का सरकारीकरण नहीं, समाजीकरण होना चाहिए।

विहिप के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेंद्र जैन ने यह भी कहा कि इस दुर्भाग्यजनक महापाप की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच कर दोषियों को कठोरतम सजा होनी चाहिए। साथ ही भगवान के भक्तों को समाविष्ट कर ऐसी व्यवस्था भी सुनिश्चित करनी चाहिए जिसमें इस तरह के षड्यंत्र का कोई संभावना न रह सके।
उन्होंने कहा कि तिरुपति बालाजी मंदिर से मिलने वाले महाप्रसाद की पवित्रता के संबंध में आस्थावान हिंदुओं की अगाध श्रद्धा होती है। दुर्भाग्य से इस महाप्रसाद को निर्माण करने वाले घी में गाय व सूअर की चर्बी तथा मछली के तेल की मिलावट के अत्यंत दुखद और हृदय विदारक समाचार आ रहे हैं। पूरे देश का हिंदू समाज आक्रोशित है और हिंदुओं का क्रोध अलग-अलग रूप में प्रकट हो रहा है। इस दुर्भाग्य-जनक महापाप की एक उच्च स्तरीय न्यायिक जांच तो होनी ही चाहिए साथ ही दोषियों को कठोरतम सजा भी शीघ्रातिशीघ्र होनी चाहिए।

डॉ जैन ने आज एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि तिरुपति बालाजी मन्दिर का संचालन आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित बोर्ड करता है। वहां केवल महाप्रसाद निर्माण के मामले में ही हिंदू आस्थाओं के साथ खिलवाड़ नहीं किया गया अपितु, हिंदुओं के द्वारा अत्यंत श्रद्धा भाव से अर्पित की गई देव राशि (चढ़ावा) के सरकारी अधिकारियों व राजनेताओं द्वारा दुरुपयोग के भी कष्टकारी समाचार मिलते रहते हैं। कई बार तो हिंदुओं के धर्म पर आघात कर हिंदुओं का धर्मांतरण करने वाली संस्थाओं को इस पवित्र राशि से अनुदान देने के समाचार भी मिलते रहे हैं। इस प्रकार के समाचार तमिलनाडू, केरल व कर्नाटक से भी मिल रहे हैं।
कुछ दिन पूर्व ही समाचार आया था कि राजस्थान की गत कांग्रेस सरकार ने जयपुर के प्रसिद्ध श्री गोविंद देव जी मन्दिर से 9 करोड़ 82 लाख रुपए ईदगाह को दिए थे। ये राज्य सरकारें मंदिरों की संपत्ति व आय का निरंतर दुरुपयोग करती रहती हैं तथा उनका उपयोग गैर हिंदू या यों कहें कि हिंदू विरोधी कार्यों में करती रही है।

विहिप नेता ने कहा कि हमारे देश में संविधान के सर्वोपरि होने की दुहाई तो बार-बार दी जाती है परंतु दुर्भाग्य से हिंदुओं की आस्थाओं के केंद्र मंदिरों पर विभिन्न सरकारें अपना नियंत्रण स्थापित कर हिंदुओं की भावनाओं के साथ सबसे घृणित धोखाधड़ी संविधान की आड़ में ही कर रही हैं। जो सरकारें संविधान की रक्षा के लिए निर्माण की जाती हैं वे ही संविधान की आत्मा की धज्जियां उड़ा रही है। अपने निहित स्वार्थ के कारण मंदिरों का अधिग्रहण कर वे संविधान की धारा 12, 25 व 26 का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन कर रही हैं। जबकि मा. न्यायपालिका ने कई मामलों में स्पष्ट किया है कि सरकारों को मंदिरों के संचालन और उनकी सम्पत्ति की व्यवस्था से अलग रहना चाहिए।

क्या स्वतंत्रता प्राप्ति के 77 वर्ष बाद भी हिंदुओं को अपने मंदिरों का संचालन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती? अल्पसंख्यकों को तो अपने धार्मिक संस्थान चलाने की अनुमति है परंतु हिंदू को यह संविधान सम्मत अधिकार क्यों नहीं दिया जा रहा? यह सर्व विदित है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिरों को लूटा और नष्ट किया था। अंग्रेजों ने चतुराई पूर्वक उन पर नियंत्रण स्थापित करके उन्हें निरंतर लूटने की प्रक्रिया स्थापित कर दी।

कैसा दुर्भाग्य है कि स्वतंत्रता के 77 वर्ष बाद भी भारत की सरकारें इस औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त है और हिंदुओं के मंदिरों पर नियंत्रण स्थापित कर उन्हें लूट रही हैं। तमिलनाडू में 400 से अधिक मंदिरों पर कब्जा करके वहां की हिंदू विरोधी सरकार मनमानी लूट कर रही है और न्यायपालिका के कहने के बावजूद खुलेआम हिंदुओ की आस्था और सम्पत्ति पर डाका डाल रही है। वहां के कई बड़े मन्दिर विशाल चढ़ावे के बावजूद इतने घाटे में दिखाए जाते हैं कि उनकी पूजा सामग्री तक की उचित व्यवस्था नहीं हो पाती। केरल के कई मंदिरों में इफ्तार पार्टी दी जा सकती है लेकिन हिंदुओं के धार्मिक कार्यक्रमों के लिए भारी शुल्क देना पड़ता है।
डॉ जैन ने कहा कि तिरुपति बालाजी व अन्य स्थानों पर की जा रही अनियमितताओं के कारण अब हिंदू समाज का यह विश्वास और दृढ़ हो गया है कि अपने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराए बिना उनकी पवित्रता को पुनर्स्थापित नहीं किया जा सकता।

यह स्थापित मान्यता है कि हिंदू मंदिरों की संपत्ति व आय का उपयोग मंदिरों के विकास व हिंदुओं के धार्मिक कार्यों के लिए ही होना चाहिए। “हिंदू आस्था की सम्पत्ति हिंदू कार्यों के लिए।” यह सर्वमान्य सिद्धांत है। वास्तविकता यह है कि हिंदू मंदिरों की आय व संपत्ति की खुली लूट अधिकारियों व राजनेताओं के द्वारा तो की ही जाती है कई बार उनके चहेते हिंदू विरोधियों द्वारा भी की जाती है।

विश्व हिंदू परिषद सभी सरकारों से आग्रह करती है कि उनके द्वारा अवैधानिक और अनैतिक कब्जों में लिए गए सभी मंदिरों को अविलंब मुक्त करके हिंदू संतो व भक्तों को एक निश्चित व्यवस्था के अन्तर्गत सौंप दें। इस व्यवस्था का प्रारूप पूज्य संतों ने कई वर्षों के चिंतन मनन व चर्चा के बाद निर्धारित किया है। इस प्रारूप का सफलतापूर्वक उपयोग कई जगह किया जा रहा है।

हमें विश्वास है कि परस्पर विमर्श से ही हमारे मंदिर हमको वापस मिल जाएंगे और हमें व्यापक आंदोलन के लिए विवश नहीं होना पड़ेगा।
उन्होंने घोषणा की कि अभी हम सभी राज्यों के राज्यपालों के माध्यम से सरकारों को धरने प्रदर्शन करके ज्ञापन देंगे। यदि ये सरकारें हिंदू मंदिरों को समाज को वापस नहीं करेंगी तो हम व्यापक आन्दोलन करने को विवश होंगे। हम मंदिरों का “सरकारीकरण नहीं समाजीकरण” चाहते हैं, तभी हिंदुओ की आस्था का सम्मान होगा।

विनोद बंसल
(राष्ट्रीय प्रवक्ता)
विश्व हिन्दू परिषद

पश्चिम रेलवे ने 10 कर्मचारी महाप्रबंधक संरक्षा पुरस्कार से सम्मानित

मुंबई। पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक श्री अशोक कुमार मिश्र ने पश्चिम रेलवे के 10 कर्मचारियों को सुरक्षित ट्रेन परिचालन में उत्कृष्ट कार्य निष्‍पादन के लिए प्रधान कार्यालय, चर्चगेट में सम्मानित किया। इन कर्मचारियों को अगस्‍त, 2024 के दौरान ड्यूटी में उनकी सतर्कता तथा अप्रिय घटनाओं को रोकने में उनके योगदान और इसके परिणामस्‍वरूप सुरक्षित ट्रेन परिचालन सुनिश्चित करने के लिए सम्मानित किया गया। इन 10 कर्मचारियों में अहमदाबाद मंडल से 04, मुंबई सेंट्रल एवं भावनगर मंडल प्रत्येक से 02 जबकि वडोदरा एवं रतलाम मंडल प्रत्येक से 01 शामिल हैं।

पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी श्री विनीत अभिषेक द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार श्री मिश्र ने सम्मानित किए गए कर्मचारियों की सतर्कता की प्रशंसा करते हुए कहा कि वे सभी कर्मचारियों के लिए अनुकरणीय आदर्श हैं। सम्मानित किए गए कर्मचारियों ने संरक्षा के विभिन्न क्षेत्रों जैसे रेल एवं ट्रैक फ्रैक्चर का पता लगाना, अप्रिय घटनाओं को रोकने के लिए आपातकालीन ब्रेक लगाना, मानव जीवन को बचाना, कोचों में पाए जाने वाले धुएं को बुझाना, ब्रेक बाइंडिंग, लटकती वस्तुओं का पता लगाना आदि जैसे संरक्षा से संबंधित कार्यों को करते हुए ट्रेनों का सुरक्षित परिचालन सुनिश्चित करने में उत्साह और प्रतिबद्धता दिखाई।

पश्चिम रेलवे को इन सभी पुरस्कृत कर्मचारियों पर गर्व है जिन्होंने अपनी त्वरित कार्रवाई और सतर्कता से किसी भी अप्रिय घटना की संभावना को रोकने में मदद की।

  (फोटो कैप्शन: पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक श्री अशोक कुमार मिश्र, अपर महाप्रबंधक एवं विभिन्‍न विभागों के प्रमुख विभागाध्‍यक्ष महाप्रबंधक संरक्षा पुरस्कार विजेताओं के साथ दिखाई दे रहे हैं।)

बहुत प्यार करते हैं शब्दःजैसे बादलों की ओट से झांकता इंद्रधनुष

कोटा की साहित्यकार डॉ.कृष्णा कुमारी हाल ही में अपनी काव्य संग्रह कृति ” बहुत प्यार करते हैं शब्द ” भेंट की। हरे रंग में आवरण पृष्ठ एक दृष्टि में मन को छू गया। कृति के शीर्षक से अनुभूति हुई कि यह प्रेम आधारित कविताओं का संग्रह है। शीर्षक के अनुरूप अनेक कविताओं से प्रेम धारा प्रस्फुटित होती है। लगता है शब्द स्वयं महक कर प्रेम का संदेश दे रहे हैं। प्रेम की परिभाषा गढ़ते शब्दों की बीच समसामयिक संदर्भ प्रकृति, पर्यावरण, महिलाओं और बदलाव अनेक विषय सृजन का केंद्र बिंदु  हैं। कुछ कविताएं गुलाब, चमेली, गेंदा के फूलों जैसे छोटी हैं जब की कुछ कविताएं रजनीगंधा के फूलों की डाली जैसी लंबी हैं। कुछ फूलों की माला में कई रंगबिरंगे फूलों से गुथी हुई कविताएं सीरीज में लिखी गई हैं। इंद्रधनुषी रचनाओं में प्रेम की अनुभूति का अहसास कराती हैं गीत की ये पंक्तियां……
इन अधरों पर जब तुम ने धर अधर दिए
लगा सुरा के मैंने सौ – सौ  चषक पिए ।
बाहों में भर लिया तुमने बदन मेरा
सुध – बुध खो कर हमने अगणित सपन जिए ।
श्वसित – गंध से प्राण वाटिका महक उठी
निशा मध्य जेसे निशि – गंधा लहक उठी ।
प्रेम – पाश में ऐसे अंतस पुलक उठा
जैसे चंदन वन में मैना चहक उठी ।
इंतजार में प्रेम और विरह की पीड़ा को अत्यंत भावपूर्ण रूप से अभिव्यक्त किया है ” तुमको आना था, न आए” कविता में………..
रात भर पथ में तुम्हारे
दीप नयनों के जलाए
तुमको आना था, न आए
वेदना सह कर विरह की पड गया है, व्योम काला
याद के असफुट सितारे किन्तु रह – रह झिलमिलाए
तुमको आना था, न आए
चाँद भी सोने चला अब भोर की  रक्तिम गुहा में
आस की मद्धम – सी लौ पर ओस सी पड़ती ही जाए
तुमको आना था, न आए
प्रेम भावों को अभिव्यक्त करती कविताओं के बीच ” सरहदें ” सवाल करती हैं कहां से आई इस पृथ्वी पर सरहदें……..…
बारूद के ढेर
सेनाओं का अंबार
लगे हुए हैं
मासूम सी धरती पर
क्योंकि
उस पर सरहदें हैं, सरहदें हैं
इस लिए नफरतें हैं, नफरतें हैं
इस लिए दहश्तें है
दहशतें हैं…..इसलिए…!
कोई तो बताये
चांद सी/ गोल मटोल/पृथ्वी पर
ये सरहदें
आई कहाँ से???
प्रकृति प्रेम और पर्यावरण को लेकर लिखी कविता ” पेड़ और तस्वीरें ” कटाक्ष करती हैं उन लोगों की मनोवृति पर जो दिखावे के लिए पेड़ लगा कर तस्वीरें खिंचवाते हैं, फिर भूल जाते हैं उनकी देखभाल करना और रोपित पौधे पशुओं का ग्रास बन जाते हैं ,रह जाती हैं तस्वीरें…………
तमाम चैनलों पर
दिखाई जा रही थी
गुणगान किया जा रहा था
तस्वीरें खिंचवाने वालों के
प्रकृति प्रेम का
संरक्षित हो चुकी थी तस्वीरें
हमेशा हमेशा के लिए
जो रखेंगी संरक्षित सदियों तक
उनके प्रकृति प्रेम को
उनका ये पेड़ प्रेम बन चुका है
एक इतिहास
और वो हो गए अमर
पेड़ का क्या…?….?….?
पनपे न पनपे !!!
” शब्द – चोर ” ऐसी कविता है जिसके माध्यम से  पुलिस व्यवस्था पर करारा व्यंग्य नज़र आता है। एक पुस्तैनी संदूक  में शब्दों को कविता में आबद्ध कर सुरक्षित रखा जाता है और कुछ समय पश्चात देखने पर ज्ञात होता है वे तो चोरी हो गए। पड़ोसियों पर नज़र रखी, ज्योतिषों के चक्कर लगाते, पुलिस में रिपोर्ट कराई ,कोई सुराग नहीं मिला तो बात आई गई हो गई। अकस्मात ही एक दिन समाचार पत्र में देखा लिखा था ” शहर में शब्द चोरों का गिरोह सक्रिय ” । विदेशी हाथ तो है ही इसमें , बड़े खतरनाक लोग है ये। शब्दों के माध्यम से हमें अपना ही आइना दिखाती पृष्ट भूमि पर लिखी कविता की पंच लाइनें देखिए……..
मैंने पूछा
एक सजग नागरिक से
आखिर पुलिस कहां है
क्या घोड़े बेच कर सो गई?
बड़ी मासूमियत से जवाब मिला कि
उसकी मिली भगत और शह से ही तो
शब्द – चोरों के  हैं हौंसले बुलंद
माना की विदेशों का हाथ
यहां है
लेकिन हमारा हाथ कहां है
किसी को पता नहीं
संग्रह की कविता ” एक और महिला दिवस”
नारी अत्याचार पर सटीक अभिव्यक्ति है । जोर शोर से महिला दिवस मनाया, मीडिया ने भी बहती गंगा में मल मल कर हाथ धोए। चंद चर्चित नारियों को हाइलाइट कर समाचार पत्रों ने भी पृष्ट भर कर वाही वाही बटोरी । उन महिलाओं का क्या जिनके लिए 8 मार्च काली लकीरें हैं ? इन्हीं भावनाओं के साथ महिला अपराध, अपहरण, बलात्कार, दहेज की आग में जलती नारी, छेड़छाड़, घरेलू हिंसा पर लिखते हुए कविता के अंत में लिखी पंक्तियां महिला दिवस की पोल खोलती दिखाई देती हैं………….
लेकिन ( निर्ममता की सारी हदें पार कर )
धारदार कैंची से
वात्सल्य – रस में / सरोबार
असंख्य मासूम/ मादा – भ्रूणों के
छोटे …..छोटे…….छोटे
टुकड़े करते / खूनी हाथ
बना देते हैं / जिसकी कोख को
कतलगाह …….!
वह
बेचारी औरत ???
संग्रह में संकलित 56 कविता और गीतों का इंद्रधनुषी गुलदस्ता नाना प्रकार के पुष्पों से सुगंधित है। संग्रह की कविताएं प्रेम पत्र, जीने दो पर्वतों को, चांदनी रात में डल झील पर सेर,सृजन के द्वार, तुम सागर हो, बहुत दिनों बाद, प्यार तुम्हें कितना करती हूं, प्रीत बड़ी दुखदाई, पेड़ और चिड़िया, मत करियों प्रित, अरे ओ फागुन , विवशता तथा खुशी इन चिड़ियों का नाम बड़ी ही भावपूर्ण हैं, जो दिल की गहराइयों तक उतारवजाति हैं। कविता रूपी इन काव्य पुष्पों की महक को पढ़ने वाला ही महसूस कर सकता है। डॉ.कृष्णा जी को भावपूर्ण काव्य सृजन के लिए कोटि – बधाई और भावी सृजन के लिए शुभकामनाएं।
लेखिका : डॉ. कृष्णा कुमारी
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर
मूल्य : 150 ₹
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
समीक्षक : डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम् पत्रकार, कोटा