Wednesday, April 9, 2025
spot_img
Home Blog Page 14

डॉ. प्रभात कुमार सिंघलः जिनके शब्द चित्र बनकर बोलने लगते हैं

रचनाकार अपने संचित और परिवेश से अर्जित अनुभवों से रचनात्मकता को विकसित ही नहीं करता वरन् उसे संरक्षित भी करता है। इस माने में कि उनका यह भाव और स्वभाव ही उनके सामाजिक सरोकारों को परिलक्षित करता है जो उनके निरन्तर लेखन का द्योतक है।

इन्हीं सन्दर्भों को अपने भीतर जागृत करते हुए अपने रचनाकर्म में सतत् रूप से सक्रिय  “राजस्थान के साहित्य साधक” अक्षरों की आराधना करते हुए जीवन मूल्यों, सांस्कृतिक परिवेश और मानवीय चेतना से संदर्भित सशक्त रचनाओं को रचित कर सामाजिक समरसता और समन्वय को स्थापित, विकसित और पल्लवित करने में सतत् रूप से समर्पित होकर अपनी सृजन यात्रा कर रहे हैं। इस यात्रा में लोक-मंगल की भावना तो अंतर्निहित है ही साथ ही मानवीय संवेदना का उजास एवं गंभीर चिंतन और मनन का अनुनाद भी है।
  इस अनुनाद को आत्मसात् किया लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने जो अपने रचनात्मक  दृष्टिकोण से अपने लेखन कर्म के प्रति सजग और चेतन होकर निरन्तर इस सृजन यात्रा में सहभागी बने हुए है। सृजन सहभागिता का उनका यह पड़ाव ” राजस्थान के साहित्य साधक ” ऐसा पड़ाव है जहाँ सृजनशील व्यक्तित्व के कृतित्व की आभा अपने समय को समझने की अन्तर्दृष्टि प्रदान करती है।
लेखक ने अपनी अन्तर्दृष्टि से इन साहित्यकारों की अभिव्यक्ति के बाह्य और आंतरिक पक्ष को सूक्ष्म रूप से उभारते हुए उनके कृतित्व को अनुसंधनात्मक स्वरूप प्रदान किया है। इस माने में भी कि उल्लेखित साहित्यकारों के लेखन की विविध विधाओं को उन्होंने अपनी मौलिक सोच और गहरी विश्लेषणात्मक दृष्टि से परखा है। यह वह परख है जो सृजन के प्रभाव और स्वभाव को
परिवर्तित होते मूल्यों के साथ समय के सच का खुलासा करती है और रचना में समाहित संवेदना और उभरी शैलीगत विशेषता को  विवेचित करती है।
लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने अपने संचित और अर्जित कौशल से सदैव की भाँति इन आलेखों में साहित्यकारों के प्रारम्भिक लेखन, उसका विकास, विधा, भाषा, शैली, विषयवस्तु , विशेषता तथा सृजन की सामाजिक उपयोगिता को तो उभारा ही है साथ ही साथ उनके लेखन का मर्म और सृजन के सामाजिक सरोकारों का भी विश्लेषण किया है। यही नहीं लेखक ने अपनी
समीक्षात्मक दृष्टि से साहित्यकारों की विविध विधाओं की रचनाओं का समुचित उल्लेख करते हुए रचना के भीतर के तत्वों को विश्लेषित किया है और अन्त में उनके व्यक्तित्व को संक्षेप में उभारा है।
 कृति में उल्लेखित सृजनधर्मियों के सृजित साहित्य के पठन से यह ज्ञात होता है कि – ‘ जीवन की मीठी चुभन जो लिखने की प्रेरणा देती है’ उसी से सृजन का पथ दिग्दर्शित होता चला जाता है। तब कहीं जाकर ‘ बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा’ और वे ही अपने सृजन से ‘ साहित्य पटल पर ध्रुव तारे से अटल’ हो जाते हैं। जिनके ‘ सृजन से गूंजते हैं लोक मंगल के स्वर’…,जिनके ‘ सृजन में मुखर है लोक जीवन’ जो ‘ माटी की सुगंध को महका रहे हैं।’ ऐसे में ‘ इंसानियत और सत्कर्म का संदेश देते रचनाकार’ ही ‘समाज को आइना दिखाता सृजन’ करते हैं और ‘ राष्ट्रवादी सृजन के पैरोकार’ बनते हैं। तभी ‘ भारतीय चिंतन से प्रेरित सृजन’ उभर कर दिशाबोध प्रदान करता है।
  ‘ सकारात्मक सोच को विकसित करता सृजन’  ‘ समाज की सच्चाई उजागर कर आँखें खोलता सृजन’ ही नहीं है वरन् ‘ आध्यात्म और राष्ट्र प्रेम की गंध से महकता सृजन’ तथा ‘ प्रेम और अध्यात्म से महकता सृजन’ भी है तो ‘ मानवीय संवेदनाओं से महकता सृजन’ भी है। इसीलिए तो इनके ‘सृजन के केंद्र में है सामाजिक सरोकार’ जो ‘ मीठी मार कर वर्तमान का आइना दिखाती व्यंग्य रचनाएं ‘ को भी समाहित किये है। इस लिए भी कि ‘ समाज का दर्पण हैं काव्य और व्यंग्य रचनाएँ ‘। यही नहीं ‘ जीवन के दर्द से लय मिलाता सृजन’ भी है तो ‘ प्रकृति से श्रृंगारित रचनाओं में बहती प्रेम की निश्चल धारा’ भी है। साथ ही ‘ प्रेम और सद्भावना के रंग में रंगी रचनाएँ ‘, ‘मानवता और प्रेम का संदेश देती रचनाएँ ‘ भी हैं। ये रचनाएँ ‘विषमता में धैर्य से जीना सिखाती रचनाएँ ‘ तो हैं ही साथ ही ‘ समाज को जाग्रत करती दिल को छू लेने वाली रचनाएं’ भी हैं ।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि ‘ समाज को चेताती रचनाएं ‘ एवं ‘ आशाओं का संचार करती रचनाएं ‘ और अपने भीतर ‘ दर्शन और अध्यात्म के कैनवास पर उभरती रचनाएं ‘ एवं आध्यात्म की धारा से मुखर रचनाएं ‘ भी प्रमुखता से उभर कर सामने आयी है तो वर्तमान समय में अत्यावश्यक ‘ श्रीमद् भागवद् गीता की शिक्षाओं को सहज रूप से पाठक तक पहुंचाता सृजन’ भी सामने आया है। यही कारण है कि इन रचनाओं में ‘ आध्यात्मिक संचेतना के उभरते स्वर’ ध्वनित होते हैं तथा ‘ सृजन गंगा- सी बहती इन्द्रधनुषी काव्य धारा’ दिग्दर्शित होती है और ‘ लोक जीवन की धड़कनों से सुगबुगाती, दिल को छू लेने वाली कहानियाँ संवाद स्थापित करती हैं।
‘ समाज और शासन को आइना दिखाता सृजन’ जब सामने आता है तो ‘ तीखे तेवर अनूठी अभिव्यक्ति कहने का अपना अंदाज़ ‘ लिये इन रचनाकारों में ‘क्षणों से मुस्कान बिखेरते रचनाकार’… ‘ जन सरोकार के रचनाकार’… ‘माँ भारती के लोकमंगल के रचनाकार’ सामने आते हैं तो ‘ प्रेम और प्रकृति चित्रण की रचनाकार ‘ भी हैं, जिनके रचनाकर्म से ‘आधी दुनिया महिलाओं की पीड़ा को उभारता सृजन’ भी सामने आया है। यही नहीं ‘सृजन में उभरती उदात्त प्रेम की परिभाषा ‘ ‘ नारी अस्मिता और स्वतंत्रता को समर्पित सृजन’ का वितान भी खड़ा करती है। जहाँ ‘ बाल मन को आधुनिकता से जोड़ता सृजन’ सहजता से उभर कर सामने आ जाता है।
 ‘ सृजन का मर्म सबसे बढ़ कर इंसानियत’ का संदेश अपने सृजन में उभारते ऐसे ‘ बहुआयामी साहित्य सृजन के शिल्पी’… अपने सृजन से ‘ आलोचना, लघुकथा और व्यंग्य में पहचान के…तथा ‘ अनुवाद और आलोचना के सशक्त हस्ताक्षर’ के रूप में स्थापित हैं। वहीं ‘ राजस्थानी मायड़ भाषा को मान दिलाने के लिए कटिबद्ध’ भी हैं। कदाचित् इसलिए भी कि ‘ मातृ भाषा में लिखने का आनंद ही कुछ और है’।
  इन रचनाकारों ने ‘ देश के आंचलिक रचनाकारों में पहचान बनाई ‘ वहीं बाल साहित्य में नाम तथापि हिंदी साहित्य में पहचान ‘ भी स्थापित की। साथ ही ‘अनुवाद और संपादन में’ प्रसिद्ध ‘ होकर गीतकार के रूप में पहचान बनाई’। इसी के साथ- साथ राजस्थानी लेखन को समर्पित साहित्यकारों के ‘राजस्थानी गीतों ने देशभर में पहचान बनाई ‘। यही नहीं ‘ लोक जीवन की धड़कनों से सुगबुगाती दिल छू लेने वाली कहानियाँ ‘ भी सामने आयीं।
ऐसे बहुआयामी रचनाकारों ने ‘ मानवीयता के स्वप्न की सुलगती धीमी लौ…’ की तपन से ‘नई सोच, नए कलेवर से सृजन को दिए नए आयाम’ तभी तो ‘ आशा की किरणें बिखेरती रचनाएँ ‘ सामने आयी। ऐसी रचनाएँ जब पुस्तकाकार रूप में सामने आती हैं तो प्रेरणात्मक दिशाबोध प्रदान करती है। इस माने में कि ‘ किताबों से मिलता है नया जीवन ‘। ऐसे सशक्त रचनाकारों के कृतित्व और ‘ कृतियों की जितनी आलोचना होगी बात दूर तक जाएगी’ ….।
बात दूर तक ले जाने के लिए विचार अपनी यात्रा करता है। यह वही विचार होता है जो सृजन के साथ उभरता भी है और अभिव्यक्त होकर असर भी डालता है। इस कृति के उल्लेखित साहित्यकारों ने अपने विचारों के माध्यम से सृजन के विभिन्न पक्षों को उभारा है और सृजन संस्कारों की मूल संवेदना को एक दिशा देने के रूप में बेबाकी से अभिव्यक्त किया है।
इस माने में कि “कहीं भी रहो अपनी संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं को कभी नहीं भूलो। महिलाएं खूब पढ़े लिखे पर पर कभी घमंड नहीं करें। इस वजह से बहुत से घर टूट जाते हैं। छोटी – छोटी बातों पर कलह और तलाक जैसी स्थिति नहीं आनी चाहिए। स्त्री को स्वभाव में प्यार, माफी और विनम्रता को नहीं छोड़ना चाहिए। जब ये सब खो बैठती है तो जीवन नष्ट हो जाता है।  मातृ भाषा और देश को नीचा दिखाने के वे सख्त खिलाफ है। हजारों सालों तक हमारे देश ने कई तकलीफें सही है। फिर भी हमारा देश और संस्कृति अजर अमर है। इस बात को युवाओं को समझना होगा और इस संस्कृति को आगे तक ले जाना होगा। बचपन में सुनी हुई लोक कथा और लोक गीतों से उन्हें जीवन में काफी कुछ सीखने को मिला है। इसलिए इनसे ना केवल शिक्षा मिलती है बल्कि समझ में भी बढोतरी होती है।” (किरण खेरुका) क्योंकि “कहानियाँ पढ़कर ही बच्चें और युवा पीढ़ी संस्कारित हो सकती है अत:  आवश्यकता है कि उन तक सत्साहित्य पहुंचे।” (डाॅ. अखिलेश पालरिया) सत्साहित्य में ही संस्कृति और संस्कारों और आध्यात्मिकता से साक्षात्कार होता है। यह हमारे लिए गर्व का विषय है कि “अध्यात्म भारतीय दर्शन का मुख्य केंद्र रहा है और हमारी संस्कृति विश्व में अध्यात्म की कहीं ना कही मुख्य भूमिका रखती है।” (किशन प्रणय)
तथापि “पुस्तकें, पुरस्कार व कुछ साहित्यकारों की मेज तक पहुँचकर रह जाती है, जबकि जिनके लिए साहित्य लिखा जाता है, वहां पहुँचता ही नही है। समाज में व्याप्त बुराइयां व  नियोजित संदेश उनके पास जाना चाहिए, चाहे वो विद्यालयी छात्रों द्वारा ही हो, इसके लिए बच्चों की मानसिकता को देखते हुए बाल साहित्य पर भी काम हो, कवि इसमें रुचि रखता भी है। शिक्षा व स्कूल से जुड़े रहने की वजह से लेखक समाज से दूर नही है, लेखन की ऊर्जा व विषयवस्तु छात्र-छात्राओं सहित आसपास की प्रकृति से मिलती है।” (नंदू राजस्थानी) रचनात्मकता प्रकृति के सान्निध्य में ही समृद्ध होती है। क्योंकि “व्यक्ति कोई भी हो थोड़े या थोड़े से कुछ अधिक एक कवि या लेखक हृदय जरूर रखता है। विचारों का अंतर्द्वंद चलता रहता है। स्मृतियों और वर्तमान का चिंतन और विश्लेषण चलता रहता है। कोई अभिव्यक्ति का माध्यम बना लेता है और भावनाओं को कविता में ढाल देता है।” ( डॉ.प्रीति मीना)
भावनाओं को शब्द प्रदान करना एक लेखक बखूबी जानता है। तथापि ” लेखकों का जीवन विडंबना से मुक्त नहीं होता। यह नितांत एकान्तिक कर्म  किसी भी स्तर पर सामूहिक गतिविधि नहीं है। हर लेखक या लेखिका के लेखन में उसका निजत्व बड़ी मात्रा में होता है। किसी भी लेखक के लिए सुरक्षा या सुरक्षित होने का भाव एक मंद विष है। लेखक में जितनी बेचैनी होगी, जितनी ज्यादा असुरक्षा की भावना होगी, जितना ज्यादा वह हाशिये पर होगा, जितना अधिक वह उपेक्षित होगा उसके लेखन में धार उतनी ही अधिक होगी। आज के युवा लेखक – लेखिकाएं मठाधीशों की बिलकुल परवाह नहीं करते। और, यही व्यवहार इन लोगों के साथ होना भी चाहिए। दुनिया में बदलाव लाने की संभावना हमेशा युवा पीढ़ी से होती है। इनसे उम्मीद होती है कि जो काम पिछली पीढ़ियाँ नहीं कर पाईं उसे ये कर सकेंगे। हमें युवा पीढ़ी को बहुत तेज़ी से आगे लाना होगा।” (राजेंद्र राव)
यह युवा जब साहित्य के पथ पर यात्रा करते हैं तो उन्हें इस पथ पर पड़ने वाले पड़ावों से भी वरिष्ठ साहित्यकार ही परिचित कराते हैं। उनका लेखन और अभिव्यक्त विचार इस पीढ़ी को संस्कारित करने हेतु प्रेरित करते हैं। यही नहीं सचेत करते हुए अपने इस रचनात्मक परिवेश को समझने और परखने का अवसर भी देते हैं कि  “साहित्य में हम जिन्हें उपलब्धियां मानकर चल रहे हैं उसके बहुत सारे कारक  पुरस्कृत होना, सम्मान पाना, सरकारी समितियों में दाख़िल होना, विदेश यात्राएं करना आदि हैं। जो हमारे बड़े-बड़े हस्ताक्षर हैं, जिनके लेखन पर हम गर्व भी करते हैं या उनका उल्लेख बार-बार करते हैं, उन्हें अपना प्रतिमान मान लेते हैं, हम दिल में जान लेते हैं कि वे अपनी निजी जिंदगी और अपने लेखकीय–कर्म में जिस तरह की राजनीतिक जोड़-तोड़ करते हैं उससे हिंदी साहित्य में गिरावट आई है और पाठकों का पलायन हुआ जबकि क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य को लगातार बढ़त मिली है।
उड़िया, असमिया या जो ऐसे छोटे प्रदेशों की भाषाएँ हैं, उनमें पाठकों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी होती आई है। हिंदी का ऐसा दुर्भाग्य है कि हमने पठन-पाठन की संस्कृति को विकसित करने में योगदान नहीं दिया। सौभाग्य से कुछ पाठक बचे हैं। पाठक शून्य तो न कोई भाषा होती है और न ही समाज होता है। पाठकों की जो घटती संख्या की बात थी वह इस लिहाज से कि हिंदी विश्व की दो सबसे बड़ी भाषाओं में से एक है जिसे साठ-पैंसठ करोड़ लोग व्यवहार में लाते हैं, बोलते हैं। इतनी बड़ी भाषा में किताबों का पहला संस्करण ढाई-तीन सौ प्रतियों का छपे और चार साल में बिके तो यह बहुत ही दयनीय स्थिति है।
वह किताब जिसका संस्करण तीन सौ प्रतियों का छपा है उस पर लेखक को ग्यारह लाख का पुरस्कार मिल जाए पर उसे ग्यारह सौ की रायल्टी मिल जाए इसकी संभावना दूर-दूर तक नहीं होती। कौन-सा पुरस्कार है जो हिंदी में बगैर तिकड़म के मिल जाता है। जिनको मिला है या मिलने वाला है या जो समितियों में हैं वे भले ही ऊपरी तौर पर कह दें कि सारे निर्णय मेरिट के आधार पर लिए जाते हैं, मगर क्या यह सच है ? हम अपने दिल से पूछते हैं तो आवाज़ नहीं आती। तो, यह एक अजीबोगरीब स्थिति है कि इतनी बड़ी भाषा का साहित्य ऐसे चक्रव्यूह में फंस गया है जिसमें सबसे ज्यादा दुर्गति और दयनीय दशा लेखक की होती है। उसके दो चेहरे हैं। एक बहुत सम्मानित है जिसे माला पहनाई जाती है, प्रशस्ति-पत्र दिए जाते हैं, पुरस्कार दिए जाते हैं, फ़्लैश बल्ब चमकते हैं, हाइलाइट होता है वह। बड़े सम्मान से उसे टी वी चैनेल्स पर बुलाया जाता है। उसी व्यक्ति का दूसरा चेहरा है जो दयनीय है, जो गिड़गिड़ाता है, पुरस्कार समितियों में जोड़-तोड़ फिट करता है, प्रकाशकों के पीछे पड़ता है कि मुझे पैसा ज़रूरत के लिए नहीं, सम्मान के लिए चाहिए। हम किस दुनिया में जी रहे हैं ? किस आत्मप्रवंचना में जी रहे हैं ?” (राजेंद्र राव)
यह कतिपय ऐसे सन्दर्भ हैं जिनसे लेखकीय दायित्व का बोध होता है और सृजनरत पीढ़ी को रचनात्मक संस्कृति की वास्तविक ध्वनि का नाद सुनाई पड़ता है। वह नाद जो साहित्य और साहित्यकार के भीतर संस्कारित और प्रकृति प्रदत्त रचनाशीलता के सकारात्मक पहलुओं को उजागर कर सदैव सावचेत रखता है।
यह लेखक लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल की कर्मठता और पत्रकारिता के मध्य यात्रा करती उस अनुसंधानात्मक लेखकीय प्रवृत्ति का परिणाम है कि उन्होंने साहित्य साधकों से साहित्यिक परिवेश की पड़ताल करने और उसको अभिव्यक्त कर पाने का अवसर लिया और आलेखों की रचनात्मक ऊर्जा को साधे रखा।
 लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल की यह कृति  उनके कला, संस्कृति और साहित्य की साधना का वह उजास जो उनके भीतर संरक्षित, पल्लवित और विकसित रचनात्मक परिवेश से सृजित हुई है, जिसमें साहित्य कर्म और मर्म से समृद्ध राजस्थान के ऐसे प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार हैं, जिन्होंने अपने रचनाकर्म से राष्ट्रीय ही नहीं वरन् अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाकर साहित्य और सृजन की मूल संवेदना को स्थापित कर महती योगदान दिया है। ऐसे साहित्य साधकों पर सृजित यह ग्रंथ इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि  इन सभी ने लोकमंगल की भावना से अपने सृजन को समृद्ध कर उभरती प्रतिभाओं को भी दिशाबोध प्रदान किया है। इस कृति में राजस्थान वासी और प्रवासी साहित्यकारों के कृतित्व पर शोधात्मक और विवेचनात्मक आलेखन है जो इस कृति को एक सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में सामने लाता है। यह ग्रंथ  समृद्ध सृजन परम्परा को तो उल्लेखित करता ही है साथ ही साथ साहित्यिक क्षेत्र में अध्ययनरत शोधार्थियों के लिए अनुशीलन का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
लेखक की यह कृति “राजस्थान के साहित्य साधक” लेखन परम्परा का वह  पड़ाव है, जो  राजस्थान के साहित्यकारों की गहन संवेदना और उसके रचाव को उद्घाटित करता है। यह वह रचाव है जो इन साहित्यकारों ने राजस्थान की धरा पर ही नहीं उकेरा वरन् अपने प्रवास की धरती के आँगन को भी स्पन्दित किया है। यह स्पन्दन वरिष्ठ लेखकों के साथ- साथ नवोदित सृजनकर्मियों के साथ ध्वनित होता हुआ रचनात्मक संस्कारों को अनुनादित करता है और साहित्य के विविध आयामी सन्दर्भों में सृजनात्मक वैशिष्ट्य को प्रतिपादित तो करता ही है, उल्लेखित साहित्यकारों के सृजनामक योगदान को समझने और परखने का अवसर भी प्रदान करता है।  पुस्तक में राजस्थान के प्रसिद्ध 62 साहित्यकार शामिल हैं जिनमें 11 प्रवासी साहित्यकार हैं। आवरण पृष्ठ बहुत सुंदर है।

पुस्तक : राजस्थान के साहित्य साधक
लेखक :  डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर
मूल्य : 750₹
———–
समीक्षक
विजय जोशी
174 – बी, आरकेपुरम, सेक्टर बी,
कोटा-324010 (राजस्थान)

रामेश्वरम मन्दिर में दुर्लभ है नागमणि का दर्शन

कहा जाता है कि महाकाल की भस्म आरती और रामेश्वरम का मणि दर्शन जिस भक्तों को हो जाते हैं उसका जीवन धन्य हो जाता है । मणि या नाग मणि का खासकर हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। इसे एक चमकदार और दिव्य वस्तु माना जाता है जो सिर्फ नागों के पास पायी जाती है। कुछ लोग इसे पाने के लिए कई तंत्र-मंत्र और टोने-टोटके करते रहते हैं, लेकिन इसे पाना तो दूर, देखना भी बेहद दुर्लभ होता है।  रामेश्वर मंदिर में इसे एक निश्चित समय पर देखा जा सकता है। कहा जाता है कि यह वही मणि है जो भगवान विष्णु के शेषनाग की मणि है।
भारत की  धरती पर कई ऐसे स्थान हैं जो आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व से जुड़े हुए हैं। इन्हीं में से एक है तमिलनाडु का रामेश्वरम मन्दिर भी है , जो भारत के दक्षिणी भाग में स्थित है। यहाँ हिंदू धर्म का प्रभाव बहुत गहरा है। यहाँ की लगभग 88% जनसंख्या हिंदू धर्म को मानती है और यह राज्य भारतीय हिंदू धर्म की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ एक अनोखी घटना घटी थी, जो नाग मणि दर्शन के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर में, हर दिन सुबह-सुबह मणि दर्शन होता है । यह “मणि” “स्पटिक” से बनी होती है, जो “पवित्र शिवलिंग” के रूप में एक कीमती क्रिस्टल है। किंवदंती के अनुसार, यह “शेषनाग” (वह साँप जिस पर भगवान विष्णु विश्राम करते हैं) की “मणि” है। देखने में एक कांच के समान और रंगहीन के साथ पारदर्शी भी होता है इसे देख यह भ्रम भी पड़ सकता हैं कि यह कांच है या फिटकरी का टुकड़ा ? लेकिन यदि इसको तरासकर मोती या अन्य रूप दिया जाय तो यह बेहद मनमोहक हो सकता है। इस स्फटिक लिंगम को प्रकाश में रखने पर प्रकाश समान रूप से बिना किसी धुंधले या अपारदर्शी पैच के गुजरता है।
 रामेश्वरम की नागमणि केवल एक धार्मिक वस्तु नहीं, बल्कि यह एक अद्भुत कहानी और अनुभव का प्रतीक है। यहाँ आने वाले भक्त इस मणि के माध्यम से न केवल अपने आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध करते हैं, बल्कि अपनी इच्छाओं की पूर्ति भी करते हैं।
नागमणि के दर्शन के लिए श्रद्धालु को रामेश्वर मंदिर के भीतर ही जाना होता है । नागमणि दर्शन का समय केवल 1 घंटा सुबह 5 बजे से 6 बजे तक ही होता है। इसलिए, बेहतर यही है कि सुबह 4 बजे पहुंचकर मंदिर में प्रवेश के लिए लगने वाली कतार में खड़े हो जाएं और अपना टिकट ले लें। इसे बुक करने के लिए कोई ऑनलाइन बुकिंग सुविधा उपलब्ध नहीं है, इसलिए किसी भी वेबसाइट या धोखाधड़ी से सावधान रहना चाहिए।
रामेश्वरम मणि दर्शन के टिकट दो प्रकार के हैं। एक टिकट की कीमत 50 रुपये है और दूसरे टिकट की कीमत 200 रुपये है। हालांकि, दोनों ही टिकट से सबको नागमणि के दर्शन आसानी से हो जाते हैं। 200 रुपये वाले टिकट में दर्शन थोड़ा नजदीक से होते हैं। यह सेवा पूर्णतः सशुल्क है, नागमणि दर्शन के लिए कोई भी मुफ्त टिकट उपलब्ध नहीं होता है और ना ही कोई वीवीआईपी लाइन होती है।
रामेश्वरम केवल एक मंदिर ही नहीं बल्कि एक धाम भी है, इसलिए ध्यान रहे कि यहाँ पर प्रवेश करते समय केवल  चित स्वदेशी परंपरागत कपड़े ही पहननें की अनुमति दी गई है। पुरुषों को धोती, साउथ की लुंगी, कुर्ता-पजामा,  यहाँ पर अनुमति है, लेकिन किसी भी प्रकार के शॉर्ट्स, लोवर, कैपरी आदि ना पहनने की हिदायत दी जाती है । व महिलाओं साड़ी या कुर्ता पहन सकती हैं, जींस या शॉर्ट्स प्रवेश हेतु अमान्य है।
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)

सोनू त्यागी चर्चा सत्र में आमंत्रित

नई दिल्ली।  सोनू त्यागी, एक प्रसिद्ध लेखक, निर्देशक, निर्माता और अप्रोच एंटरटेनमेंट तथा गो स्पिरिचुअल के दूरदर्शी संस्थापक, गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय (आईपीयू) के यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मास कम्युनिकेशन (यूएसएमसी) में “मीडिया और उभरते अवसर” शीर्षक से एक ज्ञानवर्धक संवादात्मक सत्र का नेतृत्व करेंगे। यह आयोजन 12 मार्च 2025 को सुबह 11:30 बजे से विश्वविद्यालय के सुरजमल विहार, दिल्ली स्थित परिसर में होगा। दिल्ली एनसीटी सरकार द्वारा स्थापित राज्य विश्वविद्यालय, आईपी विश्वविद्यालय, NAAC A++ ग्रेड प्राप्त है और शैक्षणिक उत्कृष्टता और नवाचार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए प्रसिद्ध है।

सोनू त्यागी एक बहुमुखी व्यक्तित्व हैं जिनका मीडिया, मनोरंजन और आध्यात्मिक क्षेत्रों में गहरा प्रभाव है। मनोविज्ञान में डिग्री और विज्ञापन प्रबंधन, पत्रकारिता, और फिल्म निर्माण में उन्नत योग्यताओं के साथ, सोनू त्यागी ने भारत भर की प्रमुख विज्ञापन एजेंसियों और मीडिया हाउसों के साथ काम किया है, जहां उन्होंने रचनात्मकता और नैतिक कहानी कहने में मानक स्थापित किए। वे आध्यात्मिक वेब सीरीज “टू ग्रेट मास्टर्स” के रचयिता हैं, जो स्वामी विवेकानंद और परमहंस योगानंद की शिक्षाओं को गहन आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और आकर्षक कथाओं के साथ प्रस्तुत करती है।

हाल ही में, सोनू त्यागी को ब्रह्मकुमारीज और निस्कॉर्ट मीडिया कॉलेज द्वारा आयोजित “मीडिया मीट एंड फेलिसिटेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स” में नैतिक पत्रकारिता और आध्यात्मिक सशक्तिकरण में योगदान के लिए सम्मानित किया गया। उन्होंने ताहिरा कश्यप, संजीदा शेख, जूही परमार, और जमील खान जैसे उल्लेखनीय प्रतिभाओं को पुरस्कार प्रदान किए, जो ओटीटी और डिजिटल मनोरंजन क्षेत्र में उत्कृष्टता का उत्सव था।

अप्रोच एंटरटेनमेंट ग्रुप के संस्थापक के रूप में, सोनू त्यागी ने सेलिब्रिटी प्रबंधन, फिल्म निर्माण, विज्ञापन, कॉर्पोरेट फिल्म समाधान, फिल्म मार्केटिंग और आयोजनों तक फैले एक विविध पोर्टफोलियो के साथ एक अग्रणी संगठन बनाया है। यह समूह मुंबई, नई दिल्ली, गुरुग्राम, कोलकाता, गोवा, चंडीगढ़, देहरादून, हैदराबाद और अहमदाबाद जैसे प्रमुख शहरों में कार्यरत है। अप्रोच एंटरटेनमेंट ने बिज इंडिया 2010 अवॉर्ड, सर्विस एक्सीलेंस अवॉर्ड, पीआर एजेंसी ऑफ द ईयर अवॉर्ड और युवा रत्न अवॉर्ड जैसे कई पुरस्कार जीते हैं, जो एकीकृत संचार में इसकी उत्कृष्टता को दर्शाते हैं।

इस समूह में अप्रोच कम्युनिकेशंस, एक पुरस्कार विजेता पीआर, डिजिटल और एकीकृत संचार एजेंसी शामिल है, जिसमें स्वास्थ्य सेवा के लिए एक विशेष वर्टिकल है, और अप्रोच बॉलीवुड, एक समर्पित न्यूजवायर है जो डिजिटल प्लेटफॉर्म, प्रिंट मीडिया, टीवी चैनलों और ऐप्स के लिए मनोरंजन अपडेट प्रदान करता है। भविष्य में, समूह अप्रोच पॉलिटिक्स, जो राजनीतिक संचार पर केंद्रित होगा, और अप्रोच रूरल, जो ग्रामीण विपणन और संचार के लिए समर्पित होगा, शुरू करने की योजना बना रहा है।

सोनू त्यागी की सामाजिक भलाई के प्रति प्रतिबद्धता गो स्पिरिचुअल के माध्यम से स्पष्ट है, जो अप्रोच एंटरटेनमेंट ग्रुप का धर्मार्थ और आध्यात्मिक अंग है। गो स्पिरिचुअल एक परिवर्तनकारी मंच है जो आध्यात्मिकता, मानसिक स्वास्थ्य, कल्याण, आध्यात्मिक पर्यटन, आयुर्वेद, समग्र स्वास्थ्य, जैविक जीवन और सामाजिक कारणों को बढ़ावा देता है। इस पहल ने गो स्पिरिचुअल न्यूज मैगजीन शुरू की है और गो स्पिरिचुअल वेब टीवी और ओटीटी, साथ ही एक न्यूज और मैगजीन ऐप लॉन्च करने की तैयारी कर रही है, ताकि आध्यात्मिक जागरूकता और नैतिक जीवन को बढ़ावा देने में अपनी पहुंच का विस्तार हो सके। त्यागी ने डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर स्पष्ट सामग्री के बढ़ते चलन की निंदा की है और नैतिक मूल्यों और सामाजिक कल्याण के अनुरूप सामग्री की वकालत की है।

यूएसएमसी में यह संवादात्मक सत्र छात्रों और महत्वाकांक्षी मीडिया पेशेवरों को विकसित हो रहे मीडिया परिदृश्य और उद्योग के भीतर उभरते अवसरों में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने का लक्ष्य रखता है। त्यागी अपने व्यापक अनुभव को साझा करेंगे, मीडिया के भविष्य और सकारात्मक सामाजिक प्रभाव को आकार देने में नैतिक कहानी कहने के महत्व पर एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करेंगे। इस आयोजन का समन्वय यूएसएमसी के संकाय सदस्य और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व फिल्म उद्योग में व्यापक अनुभव रखने वाले कुशल निर्माता डॉ. रियाज़ अरशद नाज़िश करेंगे। डॉ. नाज़िश, जिन्होंने आईपी विश्वविद्यालय के लिए “ट्रांसफॉर्मिंग यंग माइंड्स” और “बियॉन्ड माइलस्टोन्स” जैसे उल्लेखनीय कॉर्पोरेट फिल्मों का निर्देशन किया है, टेलीविजन उत्पादन और प्रसारण पत्रकारिता में अपनी विशेषज्ञता के साथ प्रतिभागियों के लिए एक सहज और समृद्ध अनुभव सुनिश्चित करेंगे।

इस सत्र में यूएसएमसी के डीन प्रोफेसर (डॉ.) दुर्गेश त्रिपाठी भी उपस्थित होंगे, जो डिजिटल मीडिया, ऑनलाइन शिक्षा और ओपन एजुकेशनल रिसोर्सेज (OERs) व मासिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेज (MOOCs) की वकालत के लिए जाने जाने वाले एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद हैं।

अपनी उत्सुकता व्यक्त करते हुए सोनू त्यागी ने कहा, “आईपी विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मास कम्युनिकेशन के प्रतिभाशाली छात्रों के साथ जुड़ना मेरे लिए सम्मान की बात है। मीडिया उद्योग तेजी से परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, और मैं उभरते अवसरों और सार्थक सामाजिक प्रभाव पैदा करने में नैतिक कहानी कहने की भूमिका पर चर्चा करने के लिए उत्सुक हूं।”

आईपी विश्वविद्यालय का यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मास कम्युनिकेशन मीडिया शिक्षा में अग्रणी है, जो पत्रकारिता और जनसंचार में बीए, जनसंचार में एमए, और पीएचडी जैसे कार्यक्रम प्रदान करता है। नवाचार, डिजिटल शिक्षा और उद्योग-अकादमिक सहयोग पर मजबूत ध्यान के साथ, यूएसएमसी ऐसे कुशल पेशेवर तैयार करता है जो प्रमुख मीडिया संगठनों में उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं और अकादमिक क्षेत्र में योगदान देते हैं। यह संवादात्मक सत्र यूएसएमसी की शैक्षणिक शिक्षा और उद्योग अंतर्दृष्टि के बीच की खाई को पाटने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, जिससे छात्र मीडिया और संचार क्षेत्र में भविष्य के नेता बनने के लिए सशक्त हों।

अधिक जानकारी के लिए, कृपया संपर्क करें:
अप्रोच एंटरटेनमेंट
फोन: 9820965004 / 9716962242
ईमेल: info@approachentertainment.com
वेबसाइट: www.approachentertainment.com
गो स्पिरिचुअल: www.gospiritualindia.org

विजय से सड़कों तक: 1win ने टॉप खिलाड़ियों को 100 स्कूटर भेंट कि

नई दिल्ली। 1win गेमर्स की दुनिया को नए तरीके से परिभाषित कर रहा है और उन्हें न केवल गेम में, बल्कि असली जिंदगी में भी जीतने के अवसर दे रहा है। ब्रांड की हाल ही में आयोजित प्रतियोगिता इसी सोच का प्रमाण है – 100 नए शानदार स्कूटर देशभर के लोगों को दिए जाएंगे। पहले 25 विजेताओं को उनके स्कूटर मिल चुके हैं, और जल्द ही और भी लोगों को इनाम मिलेगा।

गेमर्स के लिए इनाम देने का नया तरीका
गेमिंग इंडस्ट्री में अग्रणी होने के नाते, 1win ने अपने सबसे समर्पित खिलाड़ियों को शानदार दोपहिया वाहन देने का फैसला किया है। इस नई मुहिम के तहत, पहले चरण के सबसे कुशल विजेताओं को उनकी बड़ी जीत के बारे में सूचित किया जा चुका है।

पहले दौर के 25 सबसे मजबूत खिलाड़ियों के लिए, ये नए स्कूटर सिर्फ एक साधारण परिवहन का साधन नहीं हैं, बल्कि ये उनके लिए रोजमर्रा की सहूलियत का जरिया भी हैं। दक्षिण एशिया की लगभग 50% आबादी के लिए दोपहिया वाहन नए रोजगार के अवसर खोलते हैं, ट्रैफिक से बचने में मदद करते हैं और नागरिकों को अधिक स्वतंत्र बनाते हैं।

समुदाय की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए
1win हमेशा से अपने दर्शकों को सबसे बेहतरीन गेमिंग अनुभव प्रदान करने का प्रयास करता रहा है, जिसमें उनकी सांस्कृतिक विशेषताओं का भी ध्यान रखा गया है। स्थानीय समुदाय की जरूरतों को समझते हुए, ब्रांड ने यह तय किया कि इनाम को वास्तविक जीवन से जोड़ा जाए, जिससे यह उनके जीवनशैली के अनुरूप हो।

18 मार्च 2025 तक इनाम में 100 स्कूटर दिए जाएंगे, और 1win अपने रोमांचक ऑनलाइन गेमिंग अनुभव को और बेहतर बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। जल्द ही और स्कूटर वितरित किए जाएंगे, इसलिए जुड़े रहें क्योंकि हम एक नई सवारी के साथ बदलाव ला रहे हैं!

1win के बारे में
1win iGaming इंडस्ट्री के शीर्ष पर स्थित है, जो अद्वितीय सेवाओं और व्यापक वैश्विक पहुंच प्रदान करता है। सात वर्षों के मजबूत अनुभव के साथ, यह ब्रांड एशिया, यूरोप, CIS, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका में विविध ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करता है। 1win के ब्रांड एंबेसडर क्रिकेट स्टार डेविड वॉर्नर और मॉडल व अभिनेता जॉनी सिंस हैं।

 

संपर्क करें 1win प्रेस कार्यालय: press@1win.pro

Deepika Guleria 

Senior Executive – Media Relations

लखनऊ में गुलनाज और सरफराज ने अपनाया सनातन वैदिक धर्म, बोले- इस्लाम में नहीं लौटेंगे

दो मुस्लिम युवकों ने इस्लाम मत का त्याग कर सनातन वैदिक धर्म अपना लिया है ।

लखनऊ में 22.02.2025 को दो मुस्लिम युवकों ने सनातन धर्म से प्रेरित होकर धर्म में वापसी कर ली । महंत दिव्य गिरि एवं ठाकुर जितेंद्र नारायण सिंह सेंगर उर्फ वसीम रिजवी उपस्थित रहे। ठाकुर जितेंद्र नारायण सिंह सेंगर ने कहा कि मुस्लिम समाज में नफरत और कट्टरता को छोड़कर आज सरफराज अहमद (40) निवासी बिजनौर और गुलनाज (32) निवासी शाहजहांपुर ने सनातन वैदिक धर्म को स्वीकार कर लिया । ठाकुर जितेंद्र नारायण सिंह सेंगर ने कहा कि सरफराज अहमद का नाम अब राजन मिश्रा और गुलनाज का नाम विराट मिश्रा है । समाज उन्हें अब इन्हीं नामों से पहचानेगा । उन्होंने दावा किया कि अभी यह संख्या दो है किंतु शीघ्र ही यह आंकड़ा दो लाख तक पहुंचेगा । उन्होंने बताया कि मुस्लिम धर्म छोड़कर सनातन धर्म अपनाने वालों को आर्थिक सहायता भी दी जा रही है ।

रिजवी ने कहा, हम खुद सामाजिक बहिष्कार झेल चुके हैं, इसलिए जो भी सनातन धर्म अपनाएगा, हम उसे आर्थिक रूप से सहयोग देंगे, ताकि वह परेशान न हो. हमारा ट्रस्ट इस अभियान को आगे बढ़ाएगा और इसके लिए चंदे से धन एकत्र किया जाएगा ।
बिजनौर के रहने वाले सरफराज उर्फ राजन मिश्रा ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान ही इस्लाम छोड़ दिया था । हमने प्रकृति से जुड़े हिंदू धर्म को अपनाने का निर्णय लिया। राजन मिश्रा ने कहा अब हम कभी इस्लाम में नहीं लौटेंगे, सनातन धर्म में ही रहेंगे । शाहजहांपुर के गुलनाज उर्फ विराट मिश्रा का कहना है कि इस्लाम धर्म में महिलाओं को उचित सम्मान नहीं दिया जाता और कट्टरता सिखाई जाती है ।

उन्होंने बताया कि 2010 से ही उन्हें इस्लाम धर्म पसंद नहीं था और लंबे सोच-विचार के बाद उन्होंने सनातन धर्म में वापसी का निर्णय किया ।

(वर्तमान में शुद्धि ही आपकी आने वाली पुश्तों की रक्षा करने में सक्षम हैं। याद रखें आपके धार्मिक अधिकार तभी तक सुरक्षित हैं, जब तक आप बहुसंख्यक हैं। इसलिए अपने भविष्य की रक्षा के लिए शुद्धि कार्य को तन, मन, धन से सहयोग कीजिए। )

#shuddhi_andolan #bhartiya_hindu_shuddhi_sabha #swami_dayanand #swami_shraddhanand

‘शहरी नक्सली’ की परिभाषा

वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर ने सरकार से ‘शहरी नक्सली’ शब्द को परिभाषित करने की मांग की है। कमाल देखिये अपने आपको बुद्धिजीवी कहने वाली और दशकों से सत्ता का समर्थन लेकर भारत के शिक्षा संस्थानों के पाठयक्रम को निर्धारित करने वाली रोमिला थापर ‘शहरी नक्सली’ की परिभाषा तक नहीं जानती। कोई बात नहीं हम उनके
इस अज्ञान की पूर्ति कर देते हैं।

‘शहरी नक्सली’ वो है जो-

1. विश्वविद्यालयों में बीफ फेस्टिवल बनाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते है और अपने आपको अहिंसा महात्मा बुद्ध का शिष्य बताते हैं।
2. कश्मीर के पाक समर्थक आतंकियों को क्रांतिकारी और भारतीय सेना को बलात्कारी बताते हैं।
3. होली, दिवाली को प्रदुषण पर्व और बकरीद को भाईचारे का पर्व बताते हैं।
4. रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को देश बसाने की वकालत और देश के सवर्णों को विदेशी आर्य बताते हैं।
5. कर्नल पुरोहित और असीमानन्द को देशद्रोही और याकूब मेनन को निर्दोष बताते हैं।
6. हिन्दू समाज की सभी मान्यताओं को अन्धविश्वास और इस्लाम/ईसाइयत में विज्ञान खोजते हैं।
7. हिन्दू देवी देवताओं की अश्लील तस्वीरों को अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता और मकबूल फ़िदा हुसैन को महान बताते हैं।
8. विदेशियों के वेदों के अनर्गल अर्थों को सही और स्वामी दयानन्द कृत वेदों के भाष्य को असंगत एवं अपूर्ण बताते हैं।
9. आर्यों को विदेशी और मुसलमान अल्पसंख्यकों का इस देश के संसाधनों पर पहला अधिकार बताते हैं।
10. गौमांस खाना मानवीय अधिकार और गौरक्षकों को गुंडा बोलते हैं।
11. श्री राम और श्री कृष्ण को मिथक और मुग़ल शासकों को महान और न्यायप्रिय बताते हैं।
12. इस्लामक आक्रांताओं को महान और छत्रपति शिवाजी को डरपोक/भगोड़ा बताते हैं।
13. ईसाईयों के छल-कपट से किये गए धर्मान्तरण को उचित और धर्मान्तरित हिन्दुओं की घर वापसी को अत्याचार बताते हैं।
14. लव जिहाद को प्रेम की अभिव्यक्ति और उसके विरोध को अत्याचार बताते हैं।
15. मुसलमानों की दर्जनों औलाद पैदा होने को अधिकार और हिन्दुओं द्वारा जनसँख्या नियंत्रण कानून बनाने को पिछड़ी सोच बताते हैं।
16. मौलवियों के अनाप-शनाप फतवों का समर्थन और तीन-तलाक पर कानून बनाने का विरोध करते हैं।
17. भारत में ब्रिटिश हुकूमत को न्यायप्रिय शासन एवं हिन्दू स्वराज की सोच को काल्पनिक बताते हैं।
18. उत्तर पूर्वी राज्यों से अफ़सा कानून हटाने की और चर्च की मान्यताओं के अनुसार सरकारी नियम बनाने की बात करते हैं।
19. नवरात्र के व्रत को ढोंग और इस्लामिक रोज़े को महान कृत्य बताते हैं।
20. सरकार को अत्याचारी और माओवादी नक्सलियों को संघर्ष करने वाला योद्धा बताते हैं।
21. भारत तेरे टुकड़े होंगे, कश्मीर की आज़ादी ऐसा नारा लगाने वालों का समर्थन और इनका विरोध करने वालों को भक्त कहते हैं।
22. NGO के नाम पर विदेशों से चंदा लेकर भारत में लगने वाली बड़ी परियोजनाओं को प्रदुषण के नाम पर बंद करवाते हैं।
23. वनवासियों को निर्धन रखकर भड़काते हैं और उन्हें नक्सली बनाते हैं।
24. संयम/सदाचार युक्त जीवन को पुरानी सोच एवं शराब पीने, चरित्रहीन और भ्रष्ट बनने को आधुनिक बताते हैं।
25. Voice of dissent के नाम पर देश, संस्कृति और सभ्यता के विरुद्ध जो भी कार्य हो उसका हर संभव समर्थन करते हैं।

यह छोटी से सूची है। आप अपने समाज में रह रहे इन ‘शहरी नक्सलीयों’ को पहचाने। भेड़ की खाल ओढ़े इन भेड़ियों को पिछले 70 वर्षों से पोषित किया जा रहा हैं। इनके अनेक रूप है। मानवाधिकार कार्यकर्ता, विश्वविद्यालय में शिक्षक, NGO धंधे वाले, लेखक, पत्रकार, राजनीतिज्ञ, शोधकर्ता, छात्र नेता, चिंतक, बुद्धिजीवी, शोधकर्ता आदि। इनके समूल को नष्ट करने के लिए हिन्दू समाज को संगठित होकर नीतिपूर्वक संघर्ष करना पड़ेगा। क्यूंकि इनकी जड़े बहुत गहरी हैं। इस लेख को पढ़कर तो बच्चे बच्चे को शहरी नक्सली कौन है। पता चल जायेगा। पर रोमिला थापर जैसी रानी मक्खी को अब भी समझ न आये…..

#UrbanNaxalsExposed

मुस्लिम तुष्टीकरण का विकृत स्वरूप है, औरंगजेब का महिमामंडन

संभा जी महाराज के जीवन पर बनी फिल्म छावा धूम मचाते हुए 500 करोड़ के क्लब में शामिल हो गई है तथा सिनेमा व्यवसाय विशेषज्ञों  का अनुमान है कि यह फिल्म अगर 1000 करोड़ का करोबार कर ले तो कोई आश्चर्य नही होगा। छावा फिल्म की लोकप्रियता को देखते हुए कुछ राज्यों ने इसे टैक्स फ्री भी कर दिया है। छावा के माध्यम से जनता के संभा जी महाराज की वीरता और औरंगजेब की क्रूरता को पहली बार अनुभव किया है । जो फिल्म देखने गया उसका ही सिर संभा जी की वीरता के सामने झुक रहा है और औरंगजेब से घृणा हो रही है, साथ ही सच्चे इतिहास को छुपाए जाने और मुगलों को जबरन महिमामंडित किये जाने से क्रोध में भी है।

छावा के माध्यम से वास्तविक इतिहास सामने आ रहा है तो भारत की राजनीति में कुछ लोग इसे भी अपनी तुष्टीकरण की राजनीति में भुना लेना चाहते हैं और क्रूर औरंगजेब के पक्ष में खड़े होकर अपने वोट बैंक को खुश कर रहे हैं। महाराष्ट्र के सपा विधायक अबू आजमी ने औरंगजेब को महान समाजसेवी बता दिया जिसके बाद महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक राजनीतिक बयानबाजी  गर्म हो उठी। इसके बाद अबू आजमी को महाराष्ट्र विधानसभा के बजट सत्र तक के लिए निलंबित करते  हुए उनके विधानसभा परिसर में प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। महाराष्ट्र में अपने विधायक के निलंबन पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का भड़कना स्वाभविक था, वो भड़के तो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी औरंगजेब फैंस क्लब को एक कड़ा संदेश दिया।

अबू आजमी के बयान से उपजे विवाद के बीच टीवी चैनलों तथा सोशल मीडिया में जिस प्रकार से औरंगजेब के समर्थक निकल रहे हैं वह अत्यंत चिंताजनक है। यह संभवतः वही लोग हैं जिन्होने भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा के खिलाफ  सर तन से जुदा का नफरत भरा अभियान छेड़ दिया था। अब  यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि ,क्या भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्षो के बाद भी औरंगजेब का फैन क्लब जीवित है जिसे सनातन विरोधी कांग्रेस व इंडी गठबंधन के नेताओं  का संरक्षण प्राप्त है। टीवी चैनलों पर  विरोधी दलों के सभी प्रवक्ता सपा नेता अबू आजमी के बयान का समर्थन कर रहे हैं । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बोटी -बोटी काटने जैसे शब्दों का प्रयोग करने वाले कांग्रेस सांसद इमरान मसूद भी इसमें शामिल हैं।

भगवान राम को काल्पनिक बताने वाले आज औरंगजेब को महान बता रहे हैं और अबू आजमी को सही  ठहरा रहे हैं। अयोध्या में निहत्थे हिंदू रामभक्तों पर गोलियां चलाकर उनका नरसंहार करवाने वाले औरंगजेब के साथ हैं तो आश्चर्य कैसा ? अबू आजमी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दौरान भी नफरत भरे भाषण दिये थे। महाराष्ट्र में तो अबू आजमी को सांकेतिक सजा मिल चुकी है तथा उसके खिलाफ  एफआईआर भी दर्ज हो चुकी है किंतु यही सही समय है कि मुगल शासक औरंगजेब की क्रूरता का महिमामंडन करके मुस्लिम तुष्टीकरण में संलिप्त राजनैतिक दलों को भी बेनकाब किया जाये।

यह प्रमाणिक ऐतिहासिक तथ्य है कि मुगल शासक औरंगजेब एक बहुत ही क्रूर शासक था। दिल्ली के तख़्त के लिए उसने अपने पिता शाहजहां को जेल में डाल दिया था और अपने भाई दारा शिकोह का सिर तन से जुदा करके अपने बाप को भेंट में भिजवा  दिया था लेकिन भारत में औरंगजेब के फैन्स की कमी नहीं है। एक अनुमान के अनुसार भारत में मोहम्मद की तरह औरंगजेब नाम भी काफी लोकप्रिय  है और अकेले महाराष्ट्र में ही 2 लाख से अधिक लोगों का नाम औरंगजेब है। इसी तरह पाकिस्तान में भी  17 लाख लोगों का नाम औरंगजेब क नाम पर रखा गया है और पाकिस्तान के वित्त मंत्री का नाम भी मोहम्मद औरंगजेब है  और इसी से समझा जा सकता हे कि औरंगजेब की जबरदस्त फैन फॉलोइंग भारत से लेकर पाकिस्तान तक  है । यही कारण है कि जब भारत के राष्ट्रद्रोही औरंगजेब का महिमामंडन करते है तब पाकिस्तान के लोग भी तालियां पीटते हैं।

भारत के विरोधी दलों  के नता विदेशी समाचार पत्रों व एजेंसियों की झूठी रिर्पोटों पर संसद तक ठप कर देते हैं  किंतु अमेरिका का एक बहुत बड़ा समाचार पत्र न्यूयार्क टाइम्स लिखता है कि,“औरंगजेब के 49 वर्षों के कार्यकाल में 46 लाख और हर वर्ष लगभग एक लाख हिन्दू मारे गये थे” तो उस पर विश्वास नहीं करते। भारत का इतिहास ऐसी हजारों घटनाओं से भरा पड़ा है जो ये बताती हैं कि औरंगजेब सबसे क्रूर मुगल शासक था और वह हिन्दुओं से घोर नफरत करता था। औरंगजेब का शासनकाल भारतीय इतिहस का अभिशप्त काल है। वह पाप द्वेष दुष्टता  क्रूरता आतंक तथा निर्दयता की पराकाष्ठा का द्योतक है। फिल्म  छावा में औरंगजेब के अत्याचार बस एक उदाहरण भर हैं। उसका प्रत्येक कार्य हिन्दुओं को मतांतरित करने के लिए था।

मुस्तकबल लुबाब के लेखक सफी खां औरंगजेब के अत्याचारां के विषय में बिलकुल वैसा ही लिखा है जैसा कि वह अत्याचार करता था। सफी खां लिखते हैं कि औरंगजेब ने अपनी सेना को हिन्दुआें पर अत्याचार  करने की  खुली छूट दे रखी थी। औरंगजेब के शासनकाल में जनता को निर्दयता के साथ लूटा जाता था। उसके शासनकाल में ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं बचा था जहां से कर न लिया जाता हो। एक प्रकार से औरंगजेब  के शासनकाल में ही हिंदुओं पर जजिया कर लगा दिया गया था। औंरंगजेब एक ऐसा मुगल शासक था जिसकी सेनाओं व उसके सेनापतियों ने उत्तर भारत से लेकर दक्षिण और बंगाल तक चारां तरफ कोहराम मचा दिया था। औरंगजेंब फैन क्लब का कहना है कि उसने हिन्दुओं के लिए 80 मिंंदर बनवाये यह सबसे बड़ा महाझूठ बोला जा रहा है जबकि वास्तविकता यह है कि उसकी सेनाओं ने 80 से अधिक मंदिरों का विध्वंस किया। औरंगजेब का शासनकाल एक ऐसा विकृत व सबसे घिनौना शासनकाल था जिसमें हिन्दू महिलाओं और बेटियों के साथ चाहे वह गरीब किसान की ही हो या फिर किसी राजा -महाराज की उसके साथ सरेआम बलात्कार किये जाते थे यहां तक कि उनकी हत्या करके उनके नग्न शवां को पेडा़े पर लटका दिया जाता था। सर्वत्र लूट, हत्या, धर्म परिवर्तन को बोलबाला था तब महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी के नेतृत्व में हिंदू शक्ति का पुनर्जागरण हुआ तथा उन्होंने औरंगजेब जैसे आततायी का मुकाबला किया और उसके दांत खटटे  कर दिये थे। सफी खां लिखता है कि औरंगजेब की सेना के लगातार हमलों के कारण तथा खेतों में खड़ी फसलों में आग लगा देने के कारण कई बार भयंकर सूखा तक पडा किंतु उसे इसकी कोई परवाह नहीं थी।

औरंगजेब हिंदुओं से इतना नफरत करता था कि उसने जयपुर के राजा जय सिंह को जहर पिला दिया था क्योंकि उन्होंने उसकी दासता स्वीकार नहीं की थी।औरंगजेब ने संपूर्ण भारत में इस्लाम के नाम पर जो आतंक मचा रखा था उसका वर्णन पक्षपाती मुस्लिम लेखक साकी मुस्तइद खां के मासिर -ए – आलमगीरी की पत्तियों मे मिलती है वह लिखता है ,“ 18 अप्रैल 1669 को उसने सभी यवन शासकों को हिन्दुओं के मंदिरों तथा स्कूलों के विनाश के आदेश दिये थे।उस आदेश के अनुसार ही बनारस का आज का काशी विश्वनाथ मंदिर विध्वंस किया गया था।“मंदिर को हथियाकर उसे मस्जिद में बदलना  मुसलमानों के  लिए गर्व की बात थी। दिसंबर 1669 में ही मथुरा के भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली को भी औरंगजेब ने ही ध्वस्त करवाया। 1679 में जोधपुर में भी  कई मंदिरों व मूर्तियां का विध्वंस किया गया। औरंगजेब ने स्वयं चित्तौड़ जाकर हिन्दुओं के 63 मंदिरों का विध्वंस किया था और जश्न मनाया था।

औरंगजेब की एक ओर  जहां भयानक क्रूरता का व आतंक का दौर चल रहा था किंतु उसी कारण कहीं कहीं हिंदू चेतना का जागरण भी हो रहा था और वह छत्रपति शिवाजी महाराज सहित कुछ अन्य राजाओं के नेतृत्व में औरंगजेब का डटकर मुकाबला भी कर रहा था।

औरंगजेब की क्रूरता की कहानियां का वर्णन स्वयं उसके उस समय के नाटककार लेखकों तक ने किया हैं किंतु वर्तमान समय में जिस प्रकार से एक क्रूर शासक औरंगजेब का समाजवादी नेता व इंडी गठबंधन के नेता महिमामंडन कर रहे हैं  यह उनकी दूषित व विकृत मानसिकता का दर्शन ही करा रहा है। छत्रपति शिवाजी के पुत्र संभाजी के जीवन पर बनी फिल्म छावा में जो दिखाया गया है वह एक कटु सत्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता और नही दबाया जा सकता हैं।अभी तक यह सब दिखाया नहीं जाता था किंतु अब अब समय बदल चुका है और सत्य सामने  आ रहा है जिसके कारण सेकुलर वामपंथी तथाकथित समाजवादी मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाले सभी दल पूरी ताकत से छटपटाने लग गये हैं और औरंगजेब का महिमामंडन करने लग गये हैं। किंतु अब इनसभी को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि अब समय बदल चुका है और उनकी विचारधारा फिर जीवंत होने वाली नहीं है अपितु उन्हें कड़ी सजा देने का  का समय आ गया है अर्थात औरंगजेबी मानसिकता व उनके समर्थकों पर बुलडोजर चलाने का समय आ गया हैं।

   महाराष्ट्र में जब सपा नेता अबू आजमी ने औरंगजेब को महान बताने वाले बयान पर माफी मांग ली और उन्हें सांकेतिक सजा भी मिल गई तब उसके बाद सपा मुखिया को उनके समर्थन में कतई बयान नहीं देना चाहिए था और ऐसा करके सपा मुखिया ने भाजपा को एक बहुत बड़ा मुददा दे दिया है।अब सपा को आगामी दिनों की राजनीति में बहुत बड़ा नुकसान भी उठाना पड सकता है।

प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित

फोन नं. – 9198571540

ओड़िशा की अमर नारियां मालती देवी,रमा देवी,कुंतला कुमारी साबत और सरला देवी का स्मरण

भुवनेश्वर।  स्थानीय तेरापंथ भवन में 8मार्च को अखिल भारतीय मारवाड़ी महिला सम्मेलन की भुवनेश्वर शाखा की मेजबानी में ओड़िशा प्रांतीय द्वितीय कार्यकारिणी बैठक आयोजित की गई। कार्यक्रम का आरंभ गणेश पूजन और वंदन से हुआ। संग अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस भी यादगार तरीके से मनाया गया। अवसर पर याद कीं गईं ओड़िशा के सामाजिक,आर्थिक और स्वतंत्रता आंदोलन आदि में अहम् भूमिका निभानेवाली ओड़िशा की अमर नारियां मालती देवी,रमा देवी,कुंतला कुमारी साबत और सरला देवी आदि। स्वागतभाषण दिया मामस,भुवनेश्वर शाखा की अध्यक्षा जूही अग्रवाल।

 प्रांतीय अध्यक्षा बबिता अग्रवाल ने अपने संबोधन में प्रांत की सभी सहयोगी महिलाओं के प्रति आभार जताया और मामस ओड़िशा प्रांतीय स्मारिका का भी विमोचन किया।मंतस्थ रहीं प्रांतीय सचिव पिंकी मोदी आदि। नारी सशक्तिकरण पर आधारित एक लघुनाटिका का भी मंचन हुआ।अंत में सभी ने मिलकर फूलों की होली खेली।

” राजस्थान के साहित्य साधक ” पर एक अनौपचारिक चर्चा

( एडवोकेट अख्तर खान  सेलेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल से साक्षात्कार )  
 राजस्थान के और प्रवासी साहित्यकारों के साहित्यिक अवदान को ले कर लिखी है पुस्तक ” राजस्थान के साहित्य साधक ” का लोकार्पण  कोटा जिले के ग्रामीण पुलिस अधीक्षक ( एस पी ) सुजीत शंकर सोमवार 10 मार्च को करेंगे ।  पुस्तक पर चर्चा के दौरान यह जानकारी लेखक ने दी।
उनसे पूछा कि यह पुस्तक आने में इतना विलंब क्यों हुआ  तो उनका उत्तर था कि कुछ आर्थिक परेशानियां थी उन्हें दूर किया गया । कहते है देर आयाद दुरुस्त आयद, पुस्तक आ गई है और अब तुरंत दान महाकल्याण की तर्ज पर लोकार्पण भी सोमवार को होने जा रहा है।
सवाल यह है कि आपने पुलिस  अधीक्षक महोदय को मुख्य अतिथि बनाया कैसे ? उन्होंने जवाब दिया आपको तो ज्ञात है मेरे पिता पुलिस विभाग में उप अधीक्षक  थे और मैंने पुलिस विषय पर ही डॉक्टरेट की है। पहले भी मेरी कई किताबों का विमोचन पुलिस विभाग को कोटा स्थित डीआईंजी और एसपी साहब द्वारा किया जा चुका है। कल रात सपने में पिताजी आए और बोले बेटे तू तो पुलिस को भूल गया। पहले तो पुलिस अधिकारियों के पास जाता था किताब का विमोचन करवाता था, मुझे बड़ी शांति मिलती थी। बस यही मुख्य वजह रही कि इस नई किताब का लोकार्पण पुलिस अधीक्षक महोदय से करवा रहा हूं। सुबह होते ही मैंने मित्र के. डी. अब्बासी से चर्चा की तो हम दोनों एसपी साहब से भेंट करने चले गए।  एसपी सुजीत सहज, सरल, मृदु व्यवहार के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं। उन्हें जब अपना पुलिस परिवार के होने का बैक ग्राउंड बताया तो उन्होंने सहर्ष स्वीकृति प्रदान कर दी।
मेरा अगला प्रश्न था कुछ इस किताब के बारे में बताएं किस प्रकार की किताब है। उत्तर देते हुए उन्होंने बताया कि वैसे तो मूलतः यह पुस्तक राजस्थान के साहित्यकारों के साहित्यिक अवदान पर लिखी गई है , परन्तु जब इसके तथ्यों को देखते हैं तो इसका राष्ट्रीय स्वरूप दिखाई देता है। इस किताब में राजस्थान के प्रवासी साहित्यकार मुंबई की लोकगीतों और लोक साहित्य से जुड़ी किरण खेरुखा हैं तो ओडिशा राज्य में निवास करने वाले प्रसिद्ध समालोचक दिनेश कुमार माली हैं, कोलकाता के ऐसे साहित्यकार जिन्होंने 65 वर्ष में लेखन शुरू कर साहित्य जगत में विशेष स्थान बना लिया राजेंद्र केडिया, कोलकाता की ही नारी विमर्श की प्रसिद्ध साहित्यकार कुसुम खेमानी, रतलाम में अजहर हाशमी, मुंबई में युवा साहित्यकार ओम नागर, कानपुर में राजेंद्र राव , भोपाल में डॉ. विकास दवे, रमाकांत उद्भ्रांत, डॉ. रति सक्सेना, ऋतु भटनागर आदि प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार पुस्तक को राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करती है।
वे बताते हैं कि अजमेर संभाग  से डॉ. संदीप अवस्थी, डॉ.अखिलेश पारलिया, डॉ. मधु खंडेलवाल’ मधुर ‘  शिखा अग्रवाल हैं। जयपुर संभाग से वेद व्यास, नंद भारद्वाज ,इकराम राजस्थानी, डॉ. मंजुला सक्सेना आदि हैं। जोधपुर संभाग से फारुख आफरीदी और डॉ.गजेसिंह राजपुरोहित हैं। बीकानेर संभाग से   जय प्रकाश पांड्या ज्योतिपुंज,  डॉ.नीरज दइया, बीकानेर, प्रभात गोस्वामी और राजेन्द्र पी. जोशी हैं। उदयपुर संभाग  से डॉ. विमला भंडारी,,बी. एल. आच्छा,, डॉ. चंद्रकांता बंसल ,,डॉ. मधु अग्रवाल, मधु माहेश्वरी,प्रो. डाॅ . मंजु चतुर्वेदी, मीनाक्षी पंवार ‘ मीशांत, रागिनी प्रसाद जैसे साहित्यकार है। यह दुख की बात है कि पुस्तक प्रकाशन के दौरान डॉ. महेंद्र भानावत और डॉ. इन्द्र प्रकाश श्रीमाली का निधन हो गया। मैं इन दोनों के पति अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करता हूं। भरतपुर संभाग से डॉ. इन्दु शेखर ‘ तत्पुरुष’डॉ. पुरुषोत्तम ‘यक़ीन “सीकर संभाग से बाल मुकुंद ओझा, श्याम महर्षि, रतनगढ़ और हनुमानगढ़ से दीनदयाल शर्मा हैं।
पुस्तक की इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि कोटा संभाग से भी जितेंद्र निर्मोही, रामेश्वर शर्मा रामू भैया, डॉ.अपर्णा पांडेय, डॉ.अतुल चतुर्वेदी, विजय जोशी, अतुल कनक,भगवत सिंह जादौन ‘ मयंक’, सी.एल.सांखला, हेमराज सिंह ‘हेम ‘, काली चरण राजपूत ,किशन प्रणय,डॉ. कृष्णा कुमारी ,मोहन शर्मा,  डॉ.प्रीति मीना, रघुनंदन हटीला  ”रघु’, राम स्वरूप मूंदड़ा, रश्मि गर्ग, श्यामा शर्मा, डॉ. वैदेही गौतम और  विश्वामित्र दाधीच भी अपने साहित्यिक अवदान के साथ नज़र आएंगे।
 पुस्तक की भूमिका के बारे में कुछ बताएं के मेरे सवाल पर वे कहते हैं मुझे सभी साहित्यकार एक से बढ़ कर एक लगे। अनेक साहित्यकारों ने राष्ट्रीय और यहां तक कि विश्वस्तरीय पहचान बनाई है। साहित्य की कोई विधा ऐसी नहीं है जिस पर राजस्थान के साहित्यकार सक्रिय नहीं हो। इन सब बातों को भूमिका के लेखक कथाकार और समीक्षक विजय जोशी ने शिद्दत से उभरा है। उनकी लिखी भूमिका को मैं पुस्तक की आत्मा कह सकता हूं। बताना चाहूंगा कि पुस्तक के आकृषक आवरण पृष्ठ की परिकल्पना भी विजय जोशी ने की है जो स्वयं चित्रकार भी हैं।
आखिरी सवाल किया आपको इस पुस्तक से क्या आशाएं हैं  पर उन्होंने ने कहा लेखक तो उम्मीद ही कर सकता है अच्छा रेस्पॉन्स मिले पर आपका यह सवाल तो मैं  रचनाकारों और पाठकों पर छोड़ता हूं।

तीन दिवसीय श्रीश्याम फाल्गुनी महोत्सव निशान शोभा यात्रा के साथ आरंभ

स्थानीय झारपाड़ा श्रीश्याम मंदिर की ओर से रविवार को सुबह 9.30 बजे लक्ष्मीसागर मिलन मैदान से एक निशान शोभायात्रा बैण्ड-बाजे और जय श्रीश्याम के जयजयकारे के साथ आरंभ हुई। निशान शोभायात्रा झारपाड़ा श्रीश्याम मंदिर की ओर प्रस्थान की।सभी भक्तों के हाथों में खाटूनरेश के (निशान)झण्डे थे।सच कहा जाय तो मंदिर सेवा समिति के अध्यक्ष पवन गुप्ता तथा सचिव सुरेश अग्रवाल के कुशल नेतृत्व में 2025 की तीन दिवसीय श्रीश्याम फाल्गुनी महोत्सव निशान शोभा यात्रा के साथ पूरे आध्यात्मिक परिवेश में आरंभ हो गई।

निशान शोभायात्रा में लगभग 1,500 भक्तों ने हिस्सा लिया। निशान शोभा यात्रा के आगे-आगे बैण्ड,पीछे-पीछे अपने-अपने हाथों में निशान ध्वज लिए हुए भक्तगण,साथ में आगे-आगे बाबा का विजयरथ पूरी पुलिस सुरक्षा के बीच आगे बढ़ता नजर आया। श्रीश्यामंदिर आकर सभी ने अपने-अपने निशान खाटू नरेश को चढ़ाकर मंदिर के गुंबज पर लगा दिये। बाबा श्रीश्याम का दिव्य दरबार फूलों से सजा हुआ था जहां पर आकर सभी भक्तों ने श्रीश्याम को उनके जन्मोत्सव पर दर्शनकर बाबा का दिव्य आशीर्वाद लिया। जब बाबा भक्तिन मंजु अग्रवाल से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि प्रतिवर्ष मंदिर में आयोजित होनेवाला तीन दिवसीय फाल्गुनी महोत्सव उनके व्यक्तिगत तथा पारिवारिक जीवन में नई आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करती है इसीलिए वे अपने दोनों हाथों में निशान धारणकर खाटू नरेश को याद कर रहीं  हैं।