Tuesday, April 22, 2025
spot_img
Home Blog Page 15

मन बदलती कठपुतली को याद करने का समय

21 मार्च विश्व कठपुलती दिवस पर विशेष

डोर में बंधी कठपुतली इशारों पर कभी नाचती, कभी गुस्सा करती और कभी खिलखिलाकर हमें सम्मोहित करती..यह यादें आज भी अनेक लोगों के जेहन में तरोताजा होंगी. कुछ यादें ऐसी होती है जो बचपन से लेकर उम्रदराज होने तक जिंदा रहती हैं और इसमें कठपुतली को दर्ज कर सकते हैं. कठपुतली उस समय हमारे साथ होती थी जब हमारे पास मनोरंजन का कोई साधन नहीं होता था. जेब में इतने पैसे भी नहीं होते थे कि शहरी बाबूओं की तरह थियेटर में जाकर मजे ले सकें. तब आप और हम मां और बापू के साथ कठपुतली नाच देखने चले जाते थे. समय बदला और कल तक मनोरंजन करती कठपुतली अब जनजागरूकता का अलख जगाने निकल पड़ी. सामाजिक रूढिय़ों के खिलाफ लोगों को चेताती तो समाज को संदेश देती कि अब हमें बदलना है.

बदलाव की इस बयार में कठपुतली ने समाज को तो बदला और खुद भी बदल गई. नयी पीढ़ी को कठपुतली कला के बारे में बहुत कुछ नहीं मालूम होगा क्योंकि मोबाइल फोन पर थिरकती अंगुलियां नयी पीढ़ी को कठपुतली से दूर कर दिया है. हालांकि अभी भी कठपुतली का प्रभाव है लेकिन उसकी सिसकी साफ सुनाई देती है. आज 21 मार्च को अन्य दिवसों की तरह कठपुतली दिवस मनाते हैं. हालांकि साल 2003 में कठपुतली दिवस मनाने की शुरूआत हुई लेकिन संचार के सबसे पुरातन माध्यम होने के बाद भी आधुनिक संचार माध्यमों में कठपुतली के लिए कोई खास जगह बनती दिखाई नहीं देती है.
कठपुतली कला का इतिहास रोचक है. कठपुतली कला का इतिहास 3000 साल से भी पुराना है. सबसे पहले कठपुतलियों की शुरुआत संभवत: मिस्र में हुई थी। यूनियन इंटरनेशनेल डे ला मैरिओनेट या इंटरनेशनल पपेट्री एसोसिएशन की स्थापना 1929 में प्राग में हुई थी। यह यूनेस्को से संबद्ध है और अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान का सदस्य है. आधुनिक कठपुतली एक आभासी वातावरण में डिजिटल रूप से एनिमेटेड 2डी या 3डी आकृतियों और वस्तुओं का हेरफेर और प्रदर्शन है जो कंप्यूटर द्वारा वास्तविक समय में प्रस्तुत किया जाता है. इसका सबसे अधिक उपयोग फिल्म निर्माण और टेलीविजन निर्माण में किया जाता है. इसका उपयोग इंटरैक्टिव थीम पार्क आकर्षण और लाइव थिएटर में भी किया गया है.
आधुनिक कठपुतली क्या है और क्या नहीं, इसकी सटीक परिभाषा कठपुतली कलाकारों और कंप्यूटर ग्राफिक्स डिजाइनरों के बीच बहस का विषय है. हालाँकि, आमतौर पर इस बात पर सहमति है कि डिजिटल कठपुतली पारम्परिक कंप्यूटर एनीमेशन से अलग है क्योंकि इसमें पात्रों को फ्रेम दर फ्रेम एनिमेट करने के बजाय वास्तविक समय में प्रदर्शन करना शामिल है. विश्व कठपुतली दिवस की शुरुआत 2003 में यूनेस्को से संबद्ध एक गैर-सरकारी संगठन हृढ्ढरू्र द्वारा की गई थी. 21 मार्च 2003 को पहला विश्व कठपुतली दिवस मनाया गया। मनोरंजन का सशक्त माध्यम रहीं कठपुतलियां जागरूकता का काम भी कर रही हैं। कठपुतली कला मंच, टेलीविजन और फिल्म पर नाट्य प्रदर्शनों के लिए कठपुतलियों को बनाने और उनका उपयोग करने की कला है। कठपुतली एक मानव, पशु या अमूर्त आकृति है जिसे मानव प्रयास द्वारा चलाया जाता है। ऐतिहासिक उदाहरणों और समकालीन उपयोग के आधार पर, अध्ययन में छाया रंगमंच, मुखौटा रंगमंच, हाथ की कठपुतली, छड़ी कठपुतली और कठपुतलियों को शामिल किया जा सकता है। कठपुतली चलाने वाले हाथों और भुजाओं की हरकतों का उपयोग करके छड़ या डोरियों जैसे उपकरणों को नियंत्रित करते हैं ताकि कठपुतली के शरीर, सिर, अंगों और कुछ मामलों में मुँह और आँखों को हिलाया जा सके। कठपुतली चलाने वाला कभी-कभी कठपुतली के पात्र की आवाज़ में बोलता है, जबकि अन्य समय में वे रिकॉर्ड किए गए साउंडट्रैक पर प्रदर्शन करते हैं.
भारतीय संस्कृति में कठपुतली कला का दार्शनिक महत्व है. भगवद् गीता में, भगवान को एक कठपुतली के रूप में दर्शाया गया है, जो ब्रह्मांड को तीन तारों से नियंत्रित करता है : सत्व, रज और तम. भारतीय रंगमंच में कहानीकार को सूत्रधार कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘तार धारण करने वाला.’ ेेभारत में कठपुतली परम्पराओं का एक विविध स्पेक्ट्रम उभरा है, प्रत्येक कठपुतली की अपनी विशिष्ट शैली के साथ. प्रेरणा पौराणिक कथाओं, लोककथाओं और स्थानीय किंवदंतियों से ली गई थी. कठपुतली को चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, नृत्य और रंगमंच के साथ जोड़ा गया है, जिसके परिणामस्वरूप एक अद्वितीय कलात्मक अभिव्यक्ति हुई है हालाँकि समर्पित प्रशंसकों की आवश्यकता और वित्तीय अनिश्चितताओं के कारण हाल के वर्षों में यह रचनात्मक रूप लगातार कम हो गया है.
भारत के विभिन्न राज्यों में कठपुतली कला अलग-अलग नाम से प्रचलन में है. राजस्थान में इन्हें कठपुतली के नाम से जाना जाता है। इसे लकड़ी के एक ही टुकड़े से बनाया गया है और ये कठपुतलियाँ बड़ी गुडिय़ा की तरह हैं जिन्हें राजस्थानी शैली में रंग-बिरंगे कपड़े पहनाए गए हैं। कठपुतली कलाकार उन्हें दो से पाँच तारों से संचालित करते हैं जो आम तौर पर उनकी अँगुलियों से बंधे होते हैं। ओडिशा में इन्हें कुंधेई के नाम से जाना जाता है। यह हल्की लकड़ी से बना है जिसमें पैर नहीं हैं लेकिन लंबी बहने वाली स्कर्ट पहनते हैं । यह कभी-कभी ओडिसी नृत्य के संगीत से प्रभावित भी देखा जाता है। कर्नाटक में इन्हें गोम्बेयट्टा कहा जाता है। इन्हें क्षेत्र के पारम्परिक थिएटर रूप यक्षगान के पात्रों की तरह स्टाइल और डिज़ाइन किया गया है। गोम्बेयट्टा में अभिनीत एपिसोड आमतौर पर यक्षगान नाटकों के प्रसंगों पर आधारित होते हैं। तमिलनाडु में इन्हें बोम्मालट्टम के नाम से जाना जाता है। यह छड़ी और डोरी दोनों कठपुतलियों की तकनीकों को जोड़ती है। वे लकड़ी के बने होते हैं और हेरफेर के लिए तार एक लोहे की अंगूठी से बँधे होते हैं जिसे कठपुतली अपने सिर पर मुकुट की तरह पहनता है। कुछ कठपुतलियों के हाथ और जोड़ जुड़े हुए होते हैं, जिन्हें छड़ों से संचालित किया जाता है।
पश्चिम बंगाल में इसे पुतुल नाच के नाम से जाना जाता है। वे लकड़ी से बनाए गए हैं और एक विशेष क्षेत्र की विभिन्न कलात्मक शैलियों का पालन करते हैं। पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में छड़ी-कठपुतलियाँ जापान की बूनराकू कठपुतलियों की तरह मानव आकार की हुआ करती थीं।
ओडिशा में पारम्परिक छड़ी कठपुतली दूसरों से कुछ अलग है। यहाँ रॉड कठपुतलियाँ आकार में बहुत छोटी होती हैं, आमतौर पर लगभग बारह से अठारह इंच। इनमें भी अधिकतर तीन जोड़ होते हैं लेकिन हाथ छड़ों के बजाय तारों से बंधे होते हैं। इस प्रकार कठपुतली के इस रूप में छड़ और डोरी कठपुतलियों के तत्वों को संयोजित किया जाता है। बिहार में पारम्परिक छड़ी कठपुतली को यमपुरी के नाम से जाना जाता है। इसमें अनूठी विशेषताएं हैं जो इसे एक दिलचस्प घड़ी बनाती हैं। ये कठपुतलियाँ लकड़ी की बनी होती हैं।
कठपुतली कला महज़ मनोरंजन का साधन नहीं है बल्कि सूचना और शिक्षा का बुनियादी तत्व भी समाहित हैं. कठपुतलियों के साथ जुडक़र, बच्चे विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने और दूसरों के प्रति सहानुभूति विकसित करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं. कठपुतलियाँ बच्चों को अपने विचारों, भावनाओं और कथाओं को अधिक स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने में मदद करती हैं. कठपुतलियाँ सामाजिक संपर्क और सहयोग को प्रोत्साहित करती हैं. आइए एक बार फिर हम सब अपनी प्यारी कठपुतलियों पर चर्चा करें क्योंकि कठपुतली समाज का मन बदलती है.
(लेखक संवतंत्र पत्रकार हैं और समसामयिक विषयों पर लिखते हैं)

महिन्द्रा थार नई तकनीक के साथ मैदान में

नॉर्थविले, मिशिगन, संयुक्त राज्य अमेरिका। 15 अगस्त 2024 को कोच्चि में लॉन्च की गई नई थार ROXX, परफोर्मेंस, प्रदर्शन, सुरक्षा और टेक्नोलॉजी का एक बेजोड़ मिश्रण है। ” दी एसयूवी” के रूप में पोज़ीशन किया गया पांच दरवाजों वाला मॉडल पूरी तरह से ऑन-रोड और ऑफ-रोड सवारी के लिए सक्षम एसयूवी है जो आरामदायक पांच लोगों की सीट देता है। अपने नए M_GLYDE प्लेटफॉर्म के साथ इसे एक मजेदार सवारी और सटीक हैंडलिंग के लिए इंजीनियर किया गया है, जो ऑन रोज व ऑफ रोड पर बेहतरीन डायनामिक्स सुनिश्चित करता है। सभी ड्राइविंग स्थितियों में असाधारण राइड और हैंडलिंग प्रदर्शन सुनिश्चित करने के लिए महिंद्रा एंड महिंद्रा ने नेक्सट जेनरेशन के राइड रिफाइन एएचआरएस की विशेषता वाले Monroe OE Solutions के डबल-ट्यूब डैम्पर्स का चयन किया है जो एक अत्यधिक ट्यून करने योग्य सेकेंडरी वाल्व है जो प्रत्येक स्पंज के मुख्य वाल्व के साथ मेलजोल से काम करता है ताकि गहरे गड्ढों के दौरान ज्यादा ऊर्जा लेने वाले धक्कों के पीक लोड को अवशोषित किया जा सके। यह अद्वितीय क्षमता यात्रियों के आराम से समझौता किए बिना शरीर पर नियंत्रण कम करने के लिए इष्टतम ऊर्जा अवशोषण सुनिश्चित करती है।

मोनरो राइड सॉल्यूशंस के वाइस प्रेज़ीडेंट व महाप्रबंधक Hal Zimmermann ने कहा, “राइड रिफाइन एएचआरएस तकनीक प्रीमियम डेम्पिंग प्रदर्शन और असाधारण रूप से व्यापक ट्यूनिंग रेंज प्रदान करती है। राइड रिफाइन सेकेंडरी वाल्व सिस्टम का हमारा बढ़ता पोर्टफोलियो पारंपरिक पैसिव डैम्पर्स के माध्यम से उपलब्ध राइड ट्यूनिंग और प्रदर्शन क्षमताओं की एक विशाल नई रेंज के लिए द्वार खोलता है।

नई राइड रिफाइन एएचआरएस में एक इनोवेटिव प्रेशर ट्यूब और एक प्रोपराइटरी उच्च शक्ति सीलिंग रिंग है जो हाइड्रोलिक रिबाउंड स्टॉप एक्टिवेशन के लिए एक सुलभ व प्रगतिशील ट्रांसिशन प्रदान करती है। यह प्रणाली ओईएम को सभी वाहनों में, विशेषकर एसयूवी में, आरामदायक यात्रा प्रदान करने में सक्षम बनाती है।

2024 महिंद्रा थार ROXX महिंद्रा थार ROXX, परिष्कार, प्रदर्शन, उपस्थिति, सुरक्षा और प्रौद्योगिकी का एक बेजोड़ मिश्रण प्रदान करता है

थार ROXX पर प्रत्येक OE सॉल्यूशन डैम्पर में मोनरो MTV CL पिस्टन वाल्व भी शामिल है, जो बेहतर हैंडलिंग प्रदर्शन के लिए डिग्रेसिव डैम्पिंग विशेषताएं प्रदान करता है। राइड रिफाइन RC1 वाल्व, उच्च आवृत्ति पहिए की गति को सुचारू करने के लिए फ्रीक्वेंसी पर निर्भर डैम्पिंग लागू करता है।

मोनरो राइड सॉल्यूशंस प्रौद्योगिकियों के बारे में अधिक जानकारी के लिए विज़िट करें: MonroeRidesolutions.com.

टेनेको के बारे में

टेनेको मूल उपकरण और आफ्टरमार्केट ग्राहकों के लिए ऑटोमोटिव उत्पादों के अग्रणी डिजाइनरों, निर्माताओं और विपणक में से एक है। हमारे डीआरआईवी, प्रदर्शन समाधान, स्वच्छ हवा व पावरट्रेन व्यापार समूहों के माध्यम से, टेनेको हल्के वाहन, वाणिज्यिक ट्रक, ऑफ-हाईवे, औद्योगिक, मोटरस्पोर्ट और आफ्टरमार्केट के लिए प्रौद्योगिकी समाधान प्रदान कर वैश्विक मोबिलिटी में प्रगति कर रहा है।

अधिक जानकारी के लिए www.tenneco.com पर जाएँ।

महिंद्रा के बारे में
1945 में स्थापित, महिंद्रा समूह 100 से अधिक देशों में 260000 कर्मचारियों के साथ कंपनियों के सबसे बड़े और सबसे प्रशंसित बहुराष्ट्रीय संघों में से एक है। यह भारत में कृषि उपकरण, उपयोगिता वाहनों, सूचना प्रौद्योगिकी और वित्तीय सेवाओं में नेतृत्व की स्थिति में है और मात्रा के हिसाब से दुनिया की सबसे बड़ी ट्रैक्टर कंपनी है। अक्षय ऊर्जा, कृषि, रसद, आतिथ्य और रियल एस्टेट में इसकी मजबूत उपस्थिति है। महिंद्रा समूह का स्पष्ट ध्यान विश्व स्तर पर अग्रणी ईएसजी पर है, ग्रामीण समृद्धि को सक्षम करना और शहरी जीवन को बेहतर बनाना है, जिसका लक्ष्य समुदायों और हितधारकों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना है ताकि उन्हें ऊपर उठने में सक्षम बनाया जा सके। महिंद्रा के बारे में www.mahindra.com ट्विटर और फेसबुक पर अधिक जानें: @MahindraRise अपडेट के लिए www.mahindra.com/news-room को सब्सक्राइब करें।

Media Contact Details
Simonetta Esposito
Global Communications
Tenneco
Sesposito@driv.com

Deepika Guleria
Senior Executive – Media Relations
deepika.guleria@newsvoir.com
www.newsvoir.com

ज्योतिष के चमत्कार से जुड़ी घटनाएँ

ज्योतिष से जुड़ी कई चमत्कारी घटनाएँ इतिहास और वर्तमान में देखने को मिली हैं। ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि ग्रहों और नक्षत्रों का प्रभाव हमारे जीवन पर कितना गहरा हो सकता है। यहाँ कुछ प्रमुख घटनाएँ दी जा रही हैं:


1. श्रीराम जन्म का ज्योतिषीय संकेत

रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम का जन्म तब हुआ जब सभी ग्रह अपने उच्च स्थान पर थे। यह संयोग दुर्लभ माना जाता है। वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि श्रीराम के जन्म के समय—

  • चंद्रमा – कर्क राशि में
  • सूर्य – मेष राशि में
  • गुरु (बृहस्पति) – कर्क राशि में उच्चस्थ
  • शनि – तुला राशि में उच्चस्थ
  • मंगल – मकर में उच्च
  • राहु और केतु – शुभ स्थान पर

यह योग एक दिव्य आत्मा के जन्म का संकेत था, जिसे विष्णु का अवतार माना गया।


2. महाभारत में ज्योतिष का प्रभाव

महाभारत में कई ज्योतिषीय भविष्यवाणियाँ सच हुईं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध घटना थी—कुरुक्षेत्र युद्ध का समय निर्धारण।

  • जब श्रीकृष्ण पांडवों के दूत बनकर हस्तिनापुर गए थे, तब उन्होंने ग्रहों की स्थिति देखकर दुर्योधन को चेतावनी दी थी कि “यदि अमावस्या के दिन ग्रहण हुआ तो कौरवों का नाश निश्चित है।”
  • आश्चर्यजनक रूप से, उसी समय सूर्य ग्रहण हुआ और कुछ ही दिनों बाद महायुद्ध हुआ, जिसमें कौरवों का अंत हो गया।

3. ज्योतिषीय गणना से अकाल की भविष्यवाणी

19वीं शताब्दी में भारतीय ज्योतिषियों ने ग्रहों की दशाओं को देखकर बंगाल में भयंकर अकाल की भविष्यवाणी की थी। 1876-78 के दौरान जब शनि और राहु की युति बनी, तब सचमुच बंगाल में विनाशकारी अकाल पड़ा, जिससे लाखों लोग प्रभावित हुए।


4. हिटलर और ज्योतिषीय संकेत

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, हिटलर के निजी ज्योतिषी ने उसे चेतावनी दी थी कि यदि वह रूस पर आक्रमण करता है, तो उसका पतन तय है। लेकिन हिटलर ने ज्योतिषीय चेतावनी को अनदेखा किया और 1941 में रूस पर हमला कर दिया। इसके बाद जर्मनी को भयंकर नुकसान हुआ और अंततः हिटलर का पतन हो गया।


5. इंदिरा गांधी की मृत्यु की भविष्यवाणी

भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के ज्योतिषीय पत्र में “मारक दशा” (घातक समय) का संकेत था। कई ज्योतिषियों ने कहा था कि 1984 उनके लिए संकटकारी होगा।

  • 31 अक्टूबर 1984 को राहु-शनि की अशुभ दशा चल रही थी और उसी दिन उनकी हत्या कर दी गई।

6. सचिन तेंदुलकर का भाग्यशाली परिवर्तन

क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर को करियर की शुरुआत में कुछ कठिनाइयाँ हुईं। उनके गुरु ने उन्हें नीला नीलम (ब्लू सफायर) पहनने की सलाह दी, जो शनि का रत्न है।

  • रत्न पहनने के बाद उनका खेल और करियर ऊँचाइयों तक पहुँच गया।
  • यह घटना ज्योतिष के प्रभाव को दर्शाती है।

7. भारत की स्वतंत्रता और ग्रह योग

15 अगस्त 1947 को जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तब ग्रहों की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण थी—

  • राहु और चंद्रमा का संयोग हुआ था, जो संकेत देता है कि भारत को आजादी मिलेगी, लेकिन संघर्ष बना रहेगा।
  • यह योग भविष्यवाणी करता था कि भारत को स्वतंत्रता मिलेगी, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता और चुनौतियाँ बनी रहेंगी, जो सही साबित हुई।

8. जयललिता की कुंडली और उनका उत्थान-पतन

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के जीवन में ज्योतिष का गहरा प्रभाव देखा गया।

  • 1991 में जब उनकी कुंडली में गुरु और शनि की शुभ दशा आई, तब वे पहली बार मुख्यमंत्री बनीं।
  • लेकिन 2014 में जब शनि की अशुभ दशा आई, तब उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाना पड़ा।
  • 2016 में फिर शुभ दशा आई, लेकिन अंततः मृत्यु के समय अशुभ ग्रहों का प्रभाव था।

9. नरेंद्र मोदी और 2014 का चुनाव

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 के चुनाव से पहले कई ज्योतिषियों ने कहा था कि—

  • “शनि और गुरु की विशेष दशा उनके पक्ष में है, जिससे वे बड़े पद पर पहुँच सकते हैं।”
  • 2014 में जब चुनाव हुए, तब शनि की शुभ दशा चल रही थी, और वे प्रधानमंत्री बने।

10. केदारनाथ आपदा की भविष्यवाणी

2013 में उत्तराखंड में केदारनाथ की भयानक आपदा आई। कुछ ज्योतिषियों ने पहले ही भविष्यवाणी की थी कि—

  • राहु, शनि और मंगल का संयोग किसी प्राकृतिक आपदा का संकेत दे रहा है।
  • 16-17 जून को जब ये संयोग चरम पर पहुँचा, तभी भयंकर बाढ़ आई और हजारों लोग हताहत हुए।

बस्ती मण्डल के उदीयमान कवि

बस्ती के छंदकार शोध प्रबंध के चतुर्थ चरण में नामोल्लेखित कवि :

इस शीर्षक के अन्तर्गत ऐसे छन्दकारो और कवियों को प्रस्तुत किया जा रहा है जो उस समय अपनी काव्यसेवा के द्वारा जनपद को अत्यन्त साहित्यिक सहयोग देने में लगे हुए हैं। इस सूची में तत्कालीन वरिष्ठ छंदकार भी हो सकते हैं और वे भी हो सकते हैं जो कम प्रचार प्रसार में रहे हों। चूंकि ये सूची लगभग 41 साल बाद प्रकाश में आ पा रही है इसलिए अनेक सुधी छंदकारों का वर्तमान परिवेश के मुताबिक सम्यक मूल्यांकन नहीं कहा जा सकता है। चूंकि मैं स्मृति शेष डा. मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ के पुराने कार्य को प्रकाश में लाने की कोशिश कर रहा हूं इसलिए सभी सुधी साहित्यकारों और उनके उत्तरजीवियों से क्षमा याचना के साथ ही ये पुरातन विवरण देने का प्रयास कर रहा हूं। कोई साहित्य प्रेमी अध्येता इस सूची को और अद्यतन बना कर संशोधित और परिमार्जित भी कर सकता है। यदि समय परिस्थितियां और स्वास्थ्य अनुकूल रहा तो मैं भी इस सूची को परिपूर्ण करने का प्रयास करूंगा।

1.धर्मेन्द्र त्रिपाठी (जन्म 1981 विo)

यह ग्राम गजाधरपुर के निवासी हैं। यह बहुत अच्छे छन्दकार और प्रत्तिभाशाली व्यक्ति है। यह मुण्डेरवा इण्टर कालेज के भूतपूर्व प्राचार्य भी रहे हैं। इन्होंने सवैया और धनाक्षरी में बहुत काम किया है। इन्होंने बस्ती शहर के महरीखांवा मोहल्ले में अपना अंतिम समय गुजारा था ।

2. पं० सुरेशधर “भ्रमर” (जन्म स० 1978 वि०)

भ्रमर जी जनपद के बड़े ही अच्छे कवि और छन्दकार है। ये सर्वत्र सम्मादृत होते रहे है। ये कविताएँ खड़ी बोली में अधिक लिखे हैं। अपने समय यह वकालत भी करते रहे हैं। नवोदित कवियों के लिए अपना स्नेह देते हुए समादर के पात्र हैं। अच्छी कविताओं के बड़े पक्षधर हैं।

3. पं० हरिशंकर मिश्र (जन्म सन 1928 ई०)

इनका मूल निवास ग्राम रिउना है । ये जनपद के एक वर्चस्वी हिन्दी सेवी है। इनकी कविताओं में राष्ट्रीयता का स्वर अधिक तथा प्राकृतिक सौन्दर्य की प्रधानता है। अपने कोकिल कंठ से ये काव्य मंचों पर सदैव समाद्रित होते रहे हैं। ये इण्टर कालेज में संस्कृत के प्रवक्ता रहे हैं।

4.हरिनाथ उपाध्याय “अटल”

जनपद के बहुचर्चित छन्दकार है। इनके छन्दो और गीतों में श्रृंगार की प्रधानता है। राष्ट्रीयता के पक्षधर हैं। ये सक्सेरिया इण्टर कालेज में अध्यापक रहे हैं।

5 . रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी

यह मधुर कठ के कवि और छन्दकार हैं। यह सकोरिया इण्टर कालेज के अवकाश प्राप्त अध्यापक है। इन्होंने ब्रजभाषा में घनाक्षरी और सवैया के दर्जनों छन्द लिखा है।

6. लम्बोदर पाण्डेय “अरुण” ( जन्म सन 1929 ई )

यह जनपद के अच्छे छन्दकार हैं। इन्हें कवि सम्मेलनों में अच्छी ख्याति मिलती रही है।

7. जगई भइया (जन्म 1929 ई )

यह दोहा, घनाक्षरी, सवेया छन्दों के मजे मंजाये कवि होने के साथ लोकगीतों के अच्छे गायक हैं।

8. परमानन्द आनन्द (जन्म सन 1930 ई)

ये संस्कृत के अच्छे विद्वान होने के साथ ब्रज भाषा और  खड़ी  बोली के अच्छे कवि है। सभी छन्दों में प्राकृतिक सौन्दर्य अधिक है।

9. पंडित चन्द्रशेखर पाण्डेय “शास्त्री”

पाण्डेय जी गीतों के साथ सवैया और घनाक्षरी के बहुत अच्छे छन्दकार हैं। इनके गीतों में राष्ट्रीयता के साथ-साथ श्रृंगार रस की प्रधानता है। छन्दों में सस्कृत का पुट दिखता है।

10. रामरक्षा भारती “विकल”

यह संत कबीर नगर के हरिहरपुर इण्टर कालेज में भाषाध्यापक रहे है। इन्होंने बड़ा सुन्दर दोहा और  सवैया छन्द लिखा है। इनकी कुछ पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं। यह तामेश्वरनाथ मन्दिर के जीर्णोद्वार में सदैव लगे रहते हैं तथा यहाँ प्रति वर्ष कवि सम्मेलन कराते रहे हैं।

11. सरस्वती प्रसाद शुक्ल “चंचल”

चंचल जी जनता इण्टर कालेज, लालगंज, मे सहायक अध्यापक रहे है। इनके भोजपुरी के छन्द बड़े ही मधुर और श्रृंगारपूर्ण होते हैं। मंचों पर सवैया और घनाक्षरी छन्द यह बड़े मजेदारी के साथ पढ़ते हैं। इनके दर्जनो छन्द इनकी डायरियों में हैं, जिनके प्रकाशन के लिए प्रयासरत रहे है।

12. रामनरेश सिंह “मंजुल”

यह नेशनल इण्टर कालेज हर्रैया में प्रधानाचार्य पद पर रहे है। यह गीतो के साथ खड़ी बोली और व्रजभाषा में सवैया और धनाक्षरी छन्दों को लिखने और पढ़ने में बड़ी पटुता रखते हैं। रेडियो स्टेशन से इनकी कविताएँ प्राय: प्रसारित होती रहीं है।

13. रामदास पाण्डेय “गम्भीर”

यह देशराज नारंग इण्टर कालेज गोविन्द नगर वाल्टरगंज  में प्रवक्ता रहे है। बाद में इनकी नियुक्ति बाहर के किसी विद्यालय के प्रधानाचार्य के पद पर हुआ था। यह अपने दार्शनिक कविताओं के लिए बहुचर्चित हैं। इनके द्वारा लिखा गया “झंपा शतक” बड़ी उत्कृष्ट रचना है। इनका “प्रसून” नामक काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुका है। इनकी कविताओं में दानवता के कारण दुरूहता है। “अनेक किन्तु एक” नामक पत्रिका का सम्पादन भी किया है।

14. प० केशरीधर द्विवेदी

यह काव्य मंच के मंजे मंजाये कवि एवं गीतकार हैं। तमाम कवि सम्मेलनों का आयोजन करकै बस्ती काव्यधारा के विकास में लगे हुए हैं। ये पेशे से वकील है और द्विजेश परिषद के मंत्री भी है।

15.उमाकान्त मिश्र “कुन्दन”

यह सुप्रसिद्ध छन्दकार नन्दन जी के पुत्र हैं। दोहा, घनाक्षरी, सवैया के साथ-साथ भोजपुरी के लोकगीत सुन्दर लिखते हैं।

16. श्याम लाल यादव

यह जनपद के बड़े ही वर्चस्वी  गीतकार हैं। इनके गीतों में ग्राम्य जीवन को चित्रण अधिक पाया जाता है। यह कम्युनिस्ट विचारधारा के कवि है। पेशे से ये वकील थे।

17.ठाकुर जगदम्बिका प्रसाद सिंह उर्फ लल्लू बाबू

यह रईसी घराना के गीतकार रहे हैं। इनके गीतों में शृंगार की प्रधानता तथा संवेदना की गहराई है।

18. रामेश्वर वर्मा

यह अच्छे छन्दकार है। ये डाक -तार विभाग में कार्यरत रहे हैं। यह अधिकतर नयी कविता लिखने के पक्षधर है।

19 डा. माहेश्वर तिवारी शलभ

(जन्म 1938 ई )

ये राष्ट्रीय स्तर के गीतकार के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके हैं। इनके बारे में बहुत लोग जानते हैं।

20. डॉ० श्याम तिवारी

काशी विद्यापीठ, वाराणसी में हिन्दी के उपाचार्य पद पर कार्यरत है। डॉ० तिवारी हिन्दी के उच्च कोटि के छन्दकार व्यंग्यकार के रूप मे बहुश्रुत हैं।

21. दिवंगत सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

बस्ती की माटी से ही उगकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करने में सफल हुए।

22. माधव सिंह गौतम

यह जनपद के अच्छे छन्दकार और कवि हैं। इनके छन्दो मे श्रृंगार की प्रधानता रहती है।

23. श्री (डा.)राधेश्याम द्विवेदी “नवीन

नवोदित गीतकारों में श्री राधेयाम द्विवेदी “नवीन” अच्छी ख्याति प्राप्त कर चुके है। उनके छन्दों में राष्ट्रीयता के स्वर के साथ-साथ युगबोध की भाव धारा दिखाई पड़ती है।

24. भद्रलेन सिंह “भ्रान्त”

भद्रसेन सिंह “भ्रान्त” जनपद के अच्छे कवियों में से हैं। उनके गीतो और छन्दों को रेडियो पर अच्छा स्थान मिलता है।

25. गोपाल जी शुक्ल

ये हास्य और व्यंग के अच्छे छन्दकार हैं। इनके छन्दों में लोक जीवन का  व्यंग्यात्मक संस्पर्श दिखायी पढ़ता है। कवि सम्मेलनों में इन्हें अच्छा स्थान मिलता है।

26. कृष्णदत्त तिवारी “प्रेम”

गीतों के सर्जनाकारों में प्रेम जी का अच्छा स्थान है। ये अपने सुरीले कण्ठों से श्रोताओं को मंत्रमुध कर लेते हैं।

27. शिवपूजन राय

श्री राय राजकीय इण्टर काकेर बस्ती में स्काउट मास्टर रहे हैं। ये अच्छे गीतों के साथ-साथ छन्द भी लिखते हैं। राष्ट्रीयता प्रधान इनकी कवितायें बड़ी ही गेय होती हैं।

28. सतीश श्रीवास्तव

नयी विधा के अच्छे छन्दकार है। ये शायरे आजम “नाशाद” जी के पुत्र हैं।

29. पं० विद्याधर द्विवेदी प्रधानाचार्य

30. श्री रामशरण जायसवाल

रामशरण जायसवाल  गीतों के लिए अच्छी ख्याति पा चुके हैं।

31.श्री चन्द्र पटवा

32.नरेन्द्र कुपार पाण्डेय

33. डॉ० सत्यदेव द्विवेदी सत्य”

34.रामदेव मिश्र “पिंगल”

35.सत्यप्रकाश शास्त्री

36.अतुल द्विवेदी

37.कैलाश नाथ ओझा

ये सभी  नवोदित छन्दकार जनपद की काव्यधारा के विकास में अपना अच्छा योगदान दे रहे हैं।

चतुर्थ अथवा आधुनिक चरण के छन्दकारों का सामान्य सर्वेक्षण करने से जो सामग्री यहा प्रस्तुत की गई है, उसके आधार पर यदि देखा जाय तो इस चरण में छन्दकारो की सख्या बहुत अधिक हो गई है। इसका कारण यह हो सकता है कि पिछले 25 वर्षों से बस्ती मण्डल के छन्दकारों को बस्ती की धरती पर राष्ट्रीय स्तर के कवि सम्मेलन देखने को मिलते रहे हैं। इस चतुर्थ चरण में राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के छन्दकार और गीतकारों ने मण्डल के गौरव को आगे बढ़ाया है। गीतों के साथ नवगीत और नवगीतों के साथ आधुनिक तथा प्राचीन छन्दो की वह धारा जो पीताम्बर और लछिराम के समय से धरती पर प्रवाहित हुई है, आज भी अपने अजस्र प्रवाह से बस्ती की काव्यधारा कोअभिसिंचित

कर रही है।

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।

(मोबाइल नंबर +91 8630778321;

वॉट्सप नम्बर+919412300183)

गौरवशाली राजस्थान क्विज प्रतियोगिता में 450 ने लिया भाग

कोटा 19 मार्च / विद्यार्थियों को सामान्य जान की दृष्टि से राजस्थान के बारे में अच्छी जानकारी है जब की हाड़ोती के बारे में उनकी जानकारी औसत है। हाल ही में राजस्थान दिवस के संदर्भ में  कोटा संभाग स्तर पर आयोजित ” गौरवशाली राजस्थान क्विज प्रतियोगिता में यह बात सामने आई। चरणबद्ध आयोजित इस प्रतियोगिता साहित्यकारों सहित 5 विद्यालयों और 3 महाविद्यालयों के करीब 450 प्रतियोगियों ने भाग लिया।
प्रतियोगिता में  राजस्थान के एकीकरण, इतिहास,भूगोल, अर्थव्यवस्था, आगामी वित्तीय वर्ष का बजट, विकास, कला – संस्कृति, पर्यटन साहित्य और सामान्य जानकारी से संबंधित प्रश्न पूछे गए थे। प्रतियोगिता का आयोजन संस्कृति, साहित्य,मीडिया फोरम कोटा और समरस संस्थान साहित्य सृजन भारत गांधीनगर की कोटा इकाई के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। आयोजन में कोटा की रंगीतिका साहित्य , कला संगीत, रंगकर्म को समर्पित संस्था, आर्यन लेखिका मंच और केसर काव्य मंच  की भागीदारी भी रही। विजेताओं को पुरस्कार वितरण शीघ्र किया जाएगा।
मदर टेरेसा स्कूल में आयोजित प्रतियोगिता में साहित्यकार एवं अन्य वर्ग में डॉ. युगल सिंह, प्रथम,  विजय प्रकाश माहेश्वरी, पूर्व मुख्य प्रबन्धक स्टेट बैंक द्वितीय,  स्मृति शर्मा, शिक्षिका, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय संतोषी नगर और साहित्यकार सरताज अली रिज़वी संयुक्त रूप से तृतीय रहे। विद्यार्थी वर्ग  में राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय में क्योपिटीशन की तैयारी कर रहे नितिन प्रजापति प्रथम, विशाल प्रजापति द्वितीय और आशा मेघवाल, बीएड प्रथम वर्ष अकलंक शिक्षा महाविद्यालय तृतीय रहे।
डॉ. प्रीति मीणा द्वारा जेडीबी गर्ल्स आर्ट्स कॉलेज में  आयोजित प्रतियोगिता में विभिन्न सेमेस्टर की 115 छात्राओं भाग लिया।संस्कृति माली , प्रथम सेमिस्टर श्रेया कुमावत , प्रथम सेमिस्टर संयुक्त रूप से प्रथम रहे। प्रीति मीणा , तृतीय वर्ष और आकांशा पांचाल , प्रथम सेमिस्टर संयुक्त रूप से द्वितीय और  नीतिका जैन , प्रथम सेमिस्टर एवं पायल कश्यप , द्वितीय सेमिस्टर संयुक्त रूप से तृतीय रही।
मां भारती पीजी कॉलेज, कोटा में प्रिंसिपल श्वेता सक्सेना और साहित्यकार डॉ. सुशीला जोशी के सहयोग से आयोजित प्रतियोगिता में 71 विद्यार्थियों ने भाग लिया।  महेश कुमार मालव बीएससी तृतीय सेमेस्टर प्रथम, साहिल बीएससी बी एड प्रथम सेमेस्टर द्वितीय तथा हरीश मालव  बीएससी बी एड  तृतीय सेमेस्टर और आदित्य शर्मा बी ए प्रथम सेमेस्टर संयुक्त रूप से तृतीय रहे।
डॉ. वैदेही गौतम द्वारा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय केशवपुरा सेक्टर 6 में आयोजित प्रतियोगिता में 41 छात्र-छात्राओं में भाग लिया। हिमांशी सुमन कक्षा 11 प्रथम,
 नंदिनी पोरवाल कक्षा 8 द्वितीय और निकिता कक्षा 9 तृतीय रही। डॉ. इंदु बाला शर्मा के सहयोग से आर. के. शर्मा और श्रीमती बीना शर्मा  द्वारा न्यू पब्लिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल,जवाहर नगर की प्रतियोगिता में  25 छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। पूजा पटेल कक्षा 11 वीं  की प्रथम, कृष्णा वर्मा कक्षा 9 वीं की द्वितीय और ज्योति तंवर कक्षा 8 वीं की तृतीय रही।
डॉ. अपर्णा पाण्डेय द्वारा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, मोरपा, सुल्तानपुर की प्रतियोगिता में  70 प्रतियोगी बच्चों ने भाग लिया। कक्षा 11 वीं के  कौशल सेन प्रथम,
कक्षा 8 वीं की अल्शिफा  और कक्षा 9 के बुद्धि प्रकाश मेघवाल संयुक्त रूप से द्वितीय और कक्षा 11 के हर्षित यादव  तृतीय रहे।
 स्नेहलता शर्मा द्वारा उच्च माध्यमिक विद्यालय बोरदा इटावा में  आयोजित प्रतियोगिता  में 64 विद्यार्थियो ने भाग लिया। आरती कुमारी कक्षा 11 प्रथम, चेतन कुमार बैरवा कक्षा 11 द्वितीय और  प्रिंस  कक्षा 11  तृतीय रहे।
रेखा  सक्सेना द्वारा पल्लवन उच्चतर प्राथमिक विद्यालय, मुण्डेरी झालावाड़  की  प्रतियोगिता में 103 छात्र – छात्राओं ने लिया। दीपेश और अनुष्का शर्मा कुमार कक्षा 8 संयुक्त रूप से प्रथम, कक्षा 9 की जाह्नवी खण्डेलवाल और चंद्रिका राजावत संयुक्त रूप से द्वितीय तथा कक्षा 11 वीं की अंजली जाट और पीयूष राठौर  संयुक्त रूप से तृतीय रहे।
—————-
प्रेषक
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
संयोजक
संस्कृति, साहित्य, मीडिया फोरम कोटा

हिन्दू कालेज में राष्ट्रीय सेवा योजना के सात दिवसीय शिविर का शुभारम्भ

दिल्ली। सेवा और संस्कारों का आपसे में गहरा सम्बन्ध है। हमारे देश में सेवा कार्यों की महान परम्परा रही है जो समाज सेवा और राष्ट्र सेवा के विभिन्न रूपों में दिखाई देती रही है। राष्ट्रीय सेवा योजना अपने सेवा कार्यों से इसी महान परम्परा को सुरक्षित रखने तथा उसे आगे बढ़ाने का काम करती है जिससे युवा पीढ़ी प्रेरणा ग्रहण कर सके। हिन्दू कालेज में राष्ट्रीय सेवा योजना के सात दिवसीय विशेष शिविर का उद्घाटन करते हुए प्राचार्य प्रो अंजू श्रीवास्तव ने कहा कि हिन्दू कालेज में राष्ट्रीय सेवा योजना की विभिन्न गतिविधियों और सेवा कार्यों से निश्चय ही समाज को लाभ मिलेगा।

प्रो श्रीवास्तव ने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन तथा बाद के दौर में भी हिन्दू कालेज अपनी राष्ट्रीय चेतना और सेवा कार्यों के लिए सदैव जाना जाता रहा है। उन्होंने शिविर के दौरान स्वच्छता अभियान के अंतर्गत महाविद्यालय के बाहरी हिस्से में सफाई कार्यों में भी भागीदारी की और स्वच्छता अभियान को सेवा भाव का सबसे आवश्यक तत्त्व बताया। उद्घाटन सत्र में कार्यक्रम अधिकारी डॉ पल्लव ने शिविर की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए बताया कि हिन्दू कालेज की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई द्वारा विभिन्न सेवा कार्यों, साक्षरता तथा स्वास्थ्य चेतना के सम्बन्ध में अनेक नियमित गतिविधियों का आयोजन हो रहा है। डॉ पल्लव ने कहा कि सात दिवसीय शिविर से स्वयं सेवकों को इन सेवा कार्यों को और अधिक बेहतर ढंग से सम्पादित करने की प्रेरणा मिलेगी।

इससे पहले शिविर में सुबह योगाभ्यास तथा ध्यान सत्र का आयोजन हुआ जिसमें प्रतिभागी स्वयं सेवकों ने सूर्य नमस्कार और कुछ अन्य आसन भी किए। ख़ुशी शाह, रौनक ने प्रथम दिवस के स्वच्छता अभियान का नेतृत्व किया तथा जीतिशा इस अभियान की पार्टीवेक्षक थी।

उद्घाटन सत्र में डॉ सोनिया, डॉ नौशाद अली सहित अन्य अध्यापक और योजना के पूर्व स्वयं सेवक भी उपस्थित थे। अंत में राष्ट्रीय सेवा योजना की छात्रा अध्यक्ष नेहा यादव ने सभी का आभार प्रदर्शित किया।

निशांत

कोषाध्यक्ष

राष्ट्रीय सेवा योजना

हिन्दू महाविद्यालय

दिल्ली

आखिर मोदीजी को समंदर में डुबकी लगाकर द्वारका जी के दर्शन करने क्यों जाना पड़ा?

गुजरात हाई कोर्ट ने बेट  द्वारका के   2 द्वीपों पर कब्जा जमाने के सुन्नी वक्फ बोर्ड के सपने को चकनाचूर कर दिया है।लैंड जिहाद क्या होता है वह समझने के लिए _आप बस बेट द्वारिका टापू का अध्ययन करलें तो सब प्रक्रिया समझ आ जायेगी। कुछ साल पहले तक यहाँ कि लगभग पूरी आबादी हिन्दू थी।  यह ओखा नगरपालिका के अन्तर्गत आने वाला क्षेत्र है जहाँ जाने का एकमात्र रास्ता पानी से होकर जाता है। इसलिए बेट द्वारिका से बाहर जाने के लिए लोग नाव का प्रयोग करते हैं।।
यहाँ द्वारिकाधीश का प्राचीन मंदिर स्थित है। कहते हैं कि 5 हजार साल पहले यहाँ रुक्मिणी ने मूर्ति स्थापना की थी। समुद्र से घिरा यह टापू बड़ा शांत रहता था। लोगो का मुख्य पेशा मछली पकड़ना था।धीरे धीरे यहाँ बाहर से मछली पकड़ने वाले मुस्लिम आने लगे।दयालु हिन्दू आबादी ने इन्हें वहाँ रहकर मछली पकड़ने की अनुमति दे दी।_धीरे धीरे मछली पकडने के पूरे कारोबार पर मुस्लिमों का कब्जा हो गया।बाहर से फंडिंग के चलते इन्होंने बाजार में सस्ती मछली बेची जिससे सब हिन्दू मछुआरे बेरोजगार हो गये*।
अब हिन्दू आबादी ने रोजगार के लिए टापू से बाहर जाना शुरू किया।
लेकिन यहां एक और चमत्कार / प्रयोग हुआ ।  बेट द्वारिका से ओखा तक जाने के लिए नाव में 8 रुपये किराया लगता था। अब क्योंकि सब नावों पर मुस्लिमों का कब्जा हो गया था तो उन्होंने किराये का नया नियम बनाया। जो हिन्दू नाव से ओखा जायेगा वह किराये के 100 रुपये देगा और मुस्लिम वही 8 रुपये देगा। अब कोई दिहाड़ी हिन्दू केवल आवाजाही के 200 रुपये देगा तो वह बचायेगा क्या ?इसलिए रोजगार के लिए हिन्दुओ ने वहाँ से पलायन शुरू कर दिया।अब वहाँ केवल 15 प्रतिशत हिन्दू आबादी रहती है।*
रोजगार के 2 मुख्य साधन मछली पकड़ने का काम और ट्रांसपोर्ट दोनो हिन्दुओ से छीन लिया गया।_जैसे बाकी सब जगह राज मिस्त्री,कारपेंटर, इलेक्ट्रॉनिक मिस्त्री , ड्राइवर ,नाई व अन्य हाथ के काम 90% तक हिन्दुओ ने उनके हवाले कर दिये हैं।
अब बेट द्वारिका में तो 5 हजार साल पुराना मंदिर है जिसके दर्शन के लिए हिन्दू जाते थे तो इसमें वहां के जिहादियों ने नया तरीका निकाला। क्योंकि *आवाजाही के साधनों पर उनका कब्जा हो चुका था* तो उन्होंने आने वाले श्रद्धालुओं से केवल 20-30 मिनट की जल यात्रा के 4 हजार से 5 हजार रुपये मांगने शुरू कर दिये।_इतना महंगा किराया आम व्यक्ति कैसे चुका पायेगा इसलिए लोगो ने वहां जाना बंद कर दिया। अब जब वहाँ पूर्ण रूप से जिहादियों की पकड़ हो गई  तो उन्होंने जगह जगह मकान बनाने शुरू किये, देखते ही देखते प्राचीन मंदिर चारों तरफ से  *मजारों* से घेर दिया गया।
वहाँ की बची खुची हिन्दू आबादी सरकार को अपनी बात कहते कहते हार चुकी थी, फिर कुछ हिन्दू समाजसेवियों ने इसका संज्ञान लिया और सरकार को चेताया। सरकार ने ओखा से बेट द्वारिका तक सिग्नेचर ब्रिज बनाने का काम शुरू करवाया। बाकी विषयो की जांच शुरू हुई तो जांच एजेंसी चौंक गई। गुजरात में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका स्थित बेट द्वारिका के दो टापू पर अपना दावा ठोका है।वक्फ बोर्ड ने अपने आवेदन में दावा किया है कि बेट द्वारका टापू पर दो द्वीपों का स्वामित्व वक्फ बोर्ड का है।
 गुजरात उच्च न्यायालय ने इस पर आश्चर्य जताते हुए पूछा कि कृष्ण नगरी पर आप कैसे दावा कर सकते हैं और इसके बाद गुजरात उच्च न्यायालय ने इस याचिका को भी खारिज कर दिया। बेट द्वारका में करीब आठ टापू है, जिनमें से दो पर भगवान कृष्ण के मंदिर बने हुए हैं।
प्राचीन कहानियां बताती हैं कि भगवान कृष्ण की आराधना करते हुए मीरा यहीं पर उनकी मूर्ति में समा गई थी।
*बेट द्वारका के इन दो टापू पर करीब 7000 परिवार रहते हैं, इनमें से करीब 6000 परिवार मुस्लिम हैं।  यह द्वारका के तट पर एक छोटा सा द्वीप है और ओखा से कुछ ही दूरी पर स्थित है।
 वक्फ बोर्ड इसी के आधार पर इन दो टापू पर अपना दावा जताता है।यहां अभी इस साजिश का शुरुआती चरण ही है कि इसका खुलासा हो गया.
 सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक इस चरण में कुछ लोग, ऐसी जमीनों पर कब्जा करके अवैध निर्माण बना रहे थे, जो रणनीतिक रूप से, भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता था। अब जाकर सब अवैध कब्जे व मजारें तोड़ी जा रही हैं।  माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी की कृपा से अब सी लिंक का उद्घाटन होने वाला है, मुसलमानों के नौका/छोटे पानी के जहाज से यात्रा करवाने का धंधा भी चौपट होने जा रहा है,
बेट द्वारिका में आने वाला कोई भी मुसलमान वहाँ का स्थानीय नहीं है सब बाहर के हैं।*
फिर भी उन्होंने धीरे धीरे कुछ ही वर्षों में वहां के हिन्दुओ से सब कुछ छीन लिया और भारत के गुजरात जैसे एक राज्य का टापू *सीरिया* बन गया।

संघ विरोधियों को नरेंद्र मोदी का उत्तर

अपने जन्म काल से ही अविचलित रूप से राष्ट्र सेवा करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब अपनी शताब्दी तक पहुंच गया है। माँ भारती और हिन्दू समाज की इस अहर्निश सेवा यात्रा में संघ पर नियमित रूप से राजनैतिक हमले भी होते रहे किन्तु संघ न डरा न डिगा वरन सतत संकल्पवान होकर भारत माँ की सेवा में तत्पर रहा। संभवतः संघ का यह निष्कंप समर्पण ही उसके विरोधियों को भयग्रस्त करता है और उन्हें तर्कहीन बातें कहने को बाध्य करता है।

संघ पर हमले का एक उदहारण महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी के बयान के रूप में सामने आया है। 12 मार्च 2025 को केरल के तिरुअनंतपुरम में गांधीवादी नेता पी गोपीनाथन नायर की प्रतिमा का अनावरण करते हुए तुषार गांधी ने कहा, “राष्ट्र की आत्मा कैंसर से पीड़ित है और संघ  परिवार इसे फैला रहा है” । यही नहीं  उन्होंने भाजपा और संघ को केरल में प्रवेश करने वाला एक कपटी शत्रु  बताया। तुषार ने संघ को जहर भी कहा। इस वक्तव्य के बाद से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के कार्यकर्ता  केरल में तुषार गांधी से माफी मांगने व उनकी गिरफ्तारी की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। इसके प्रति उत्तर में तुषार  गांधी ने कहा कि वह अपनी बातों से पीछे हटने या उनके लिए माफी मांगने में विश्वास नहीं करते। वह संघ के प्रति नफरत से इस सीमा तक भरे हुए हैं कि कहते हैं कि अब हमारा एक साझा दुश्मन है और वह है संघ। भाजपा ने तुषार गांधी पर पलटवार करते हुए कहा कि तुषार गांधी कई वर्षां से  महात्मा गांधी के नाम को आर्थिक लाभ के लिए भुनाने का प्रयास कर रहे हैं।

आज महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी संघ को कैंसर बता रहे जबकि स्वयं महात्मा गांधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविर में गये थे और अपने अनुभव साझा करते हुए लिखा था कि,“ कुछ वर्ष पहले जब संघ के संस्थापक जीवित थे आपके शिविर में गया था। वहां पर आपके अनुशासन, अस्पृश्यता का पूर्ण रूप से अभाव और कठोर सादगीपूर्ण जीवन देखकर काफी प्रभावित हुआ। सेवा और स्वार्थ त्याग के उच्च आदर्श से प्रेरित कोई भी संगठन दिन प्रतिदिन अधिक शक्तिवान हुए बिना नही रहेगा।“

किन्तु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर केवल तुषार गांधी ही हमला नहीं कर रहे हैं, कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में पूरे इंडी गठबंधन के नेता किसी न किसी बहाने संघ पर हमलवार रहे है क्योंकि संघ निरंतर हिंदू समाज को एकरस करने के लिए कार्य कर रहा है जिससे इनकी जातिवादी- क्षेत्रवादी- भाषावादी और परिवारवादी राजनीति का भविष्य दांव पर लग गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष के पूरे प्रपंच को एक बार में ही ध्वस्त कर दिया है और पूरे विश्व को संघ शक्ति का परिचय दे दिया है। अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन को दिये एक लंबे साक्षात्कार में संघ के समर्पित स्वयंसेवक नरेन्द्र मोदी ने संघ के विरोधियों का मुंह बंद करते हुए संघ के विरुद्ध जो नफरत भरा वातावरण तैयार किया जा रहा था उसे ध्वस्त करने का सार्थक प्रयास किया है। प्रधानमंत्री मोदी का यह पॉडकास्ट पूरी दुनिया में चर्चा का केंद्र बिंदु बन चुका है। इस पॉडकास्ट को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने निजी सोशल मीडिया अकाउंट पर भी साझा किया है जिसे करोड़ों लोग देख रहे हैं। पॉडकास्ट हिंदी तथा अंग्रेजी सहित कई प्रमुख भाषाओं  में सुना जा सकता है।

पॉडकास्ट में संघ से उनके संबंधों को लेकर पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में प्रधानमंत्री जी ने अपने बचपन को स्मरण करते हुए संघ के विषय में बात की। वो कैसे शाखा में गए, उन्होंने क्या देखा, किस बात ने उनको प्रभावित किया इत्यादि। इसके बाद उन्होंने कहा कि संघ एक बहुत बड़ा संगठन है। अब संघ 100 वर्ष का है। दुनिया में इतना बड़ा कोई और ,संगठन होगा मैंने नहीं सुना है। करोड़ों लोग उसके साथ जुड़े हैं। संघ को समझना इतना सरल नहीं हैं। संघ के काम को समझने का प्रयास करना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि संघ व्यक्ति को “पर्पस आफ लाइफ” देता है, जीवन में एक दिशा देता है। देश ही  सबकुछ है और जनसेवा ही प्रभु सेवा है, जो हमारे ग्रंथों में कहा गया है, जो स्वामी विवेकानंद ने कहा, वही संघ कहता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पॉडकास्ट के उस मंच से संघ के आलोचकों को स्पष्ट संदेश देते हुए कहा कि संघ के स्वयंसेवक जीवन के हर क्षेत्र में  सेवा करते है और कर रहे हैं। कुछ स्वयंसेवकों  ने  सेवाभारती नामक  संगठन खड़ा किया है। यह सेवा भारती नामक संगठनके लोग गरीब बस्तिययों में जाकर सेवा करते हैं। सेवा भारती के लगभग सवा लाख सेवा प्रकल्प चल रहे हैं वह भी बिना किसी सरकारी सहायता के। उन्होंने बताया कि संघ वनवासी कल्याण आश्रम चलाता है जिसमें स्वयंसेवक जंगलों में रहकर आदिवासियों की  सेवा करते हैं । 70 हजार से भी अधिक एकल विद्यालय चल रहे हैं। अमेरिका में भी कुछ लोग हैं जो 10 से 15 डॉलर तक का दान देते हैं। एक कोकाकोला नहीं पियो और उतना पैसा एकल विद्यालय को दो। कुछ स्वयंसेवकों ने शिक्षा में क्रांति लाने के लिए विद्या भारती संगठन बनाया। जिसमें लाखों की संख्या में बालक -बालिकाएं अध्ययनरत हैं वह भी बहुत ही कम कीमत पर पढ़ाई हो रही है।विद्या भारती के विद्यालयों  में विद्यार्थी जीवन के हर क्षेत्र से जुड़े हुनर भी सीख रहे हैं ।

भारतीय मजदूर संघ भी एक बड़ा संगठन है जिसकी 55 हजार से अधिक यूनियन व करोड़ों सदस्य हैं। मजदूर संघ की बात करते हुए प्रधानमंत्री ने वामपंथ और संघ के विचारों का अंतर भी स्पष्ट किया, उन्होंने कहा जहाँ अन्य संगठन कहते हैं, दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ वहीँ भारतीय मजदूर संघ कहता है मजदूर दुनिया को एक करते हैं, ये सोच का अंतर है। संघ 100 वर्षों से सभी प्रकार के चकाचौंध से दूर रहकर एकसाधक की तरह समर्पित भाव से कार्य कर रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मात्र कुछ उदाहरणों से ही संघ विरोधियों को बेनकाब कर दिया और अब यह पूरे विश्व में चर्चा में है। तुषार गांधी जैसे लोगों को भी शायद यह समझ में आ गया होगा कि संघ क्या है। संघ सदैव समाज सेवा में तत्पर संगठन है फिर वह चाहे किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा का समय हो जिसमें बाढ़, सूखा, भूकम्प, तूफान से लेकर अग्निकांड, रेल दुर्घटनाओं तक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक  बिना किसी प्रचार के सेवा में संलग्न हो जाते हैं। कोविड काल में जब पूरे  भारत में लॉकडाउन था उस समय संघ भी के स्वयंसेवक आमजन को दवा और भोजन आदि उपलब्ध करा रहे थे जबकि तुषार गांधी जैसे आलोचक केवल सरकार की निंदा और अफवाहें फैलाने का ही कार्य कर रहे थे।

यह संघ की सेवाओं ही प्रयास व परिणाम रहा है कि करोड़ों  की संख्या में आदिवासी व गरीब हिन्दू मतांतरित होने से बच सका है तथा लाखों की संख्या में मतांतरित हिंदुओं की घर वापसी हो रही है। जो लोग हिंदू सनातन धर्म का उन्मूलन करना चाहते हैं उनके सपने को कोई ध्वस्त कर रहा है तो वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का सपना जो पूरा हुआ है उसके पीछे भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व उसके समवैचारिक तथा आनुषांगिक संगठनों की तपस्या ही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सामाजिक समरसता के कारण ही आज “एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे“ तथा “बटेंगे तो कटेंगे“ जैसे नारे  लोकप्रिय हो रहे हैं।वर्तमान समय में महाकुंभ जैसे अत्यंत विशाल समागम जो सफल हो रहे हैं उनके पीछे भी संघ के छिपे हुए लाखों स्वयंसेवकों की सेवा ही रही है।

आज भारत का हिंदू अपने आप को गर्व से हिंदू कह रहा है तो यह संघ की अनथक तपस्या का ही परिणाम है और यही संघ विरोधियों की चिंता का सबसे बड़ा कारण भी  है।

प्रेषक- मृत्युंजय दीक्षित

फोन नं. – 9198571540

राजस्थान के साहित्य साधक – प्रोफेसर अज़हर हाशमी

  कोटा के साहित्यिक क्षेत्र में विगत तीन वर्षों से यकायक उभर कर सामने आए लेखक और पत्रकार डॉ. प्रभात कुमार सिंघल की प्रकाशित पुस्तक ” राजस्थान के साहित्य के साधक” में  उन्होंने राजस्थान के विख्यात साहित्यकारों की रचनाओं और  उनके बारे में परिचय को लेकर गागर में सागर भरा है।
 पुस्तक में विख्यात साहित्यकार प्रोफेसर अज़हर हाशमी की रचना ‘ कितने असली चेहरे नक़ली चेहरे धर  रहे / छल से या पाखंड से तिजोरी भर रहे / दिन में उजले बनते है रातों की सियाही में / मीरा मरयम के सोदा कर रहे हैं/  बहुत हुए हैं पतित हमे उत्थान चाहिए/ सत्यम  शिवम सुंदरम का मान चाहिए / गांधी  जी के सपनों का जहाँन चाहिए / मुझको राम वाला हिंदुस्तान चाहिए ।
 शोषण है पूंजी का अत्याचार फैला है / सेवाओं में रिश्वत का व्यापार फैला है / हर फ़ाइल के बीच में  चांदी  की दीवारें / नौकर से अफसर तक भ्रष्टाचार  फैला है / भ्रष्टाचारी तम को अब दिनमान चाहिए / तमसो माँ ज्योतिर्गमय का ध्यान चाहिए / गांधी के सपनों का जहांन  चाहिए / मुझको राम वाला हिंदुस्तान चाहिए ।
अपनों से अपनों के वारे न्यारे हैं यहां / आश्वासनों के चाँद तारे हैं यहां / हर गली चौराहे पर भाषण की दुकाने / रोटियों के नाम पर बस नारे हैं यहां / ना भाषण ना नारों के  उद्यान चाहियें / भूखी आँतों को दो मुट्ठी धान चाहिए / गांधी के सपनों का जहान चाहिए / मुझको राम वाला हिंदुस्तान चाहिए /
 यही इस पुस्तक की सुपर स्टोरी है , सुपर रचना है । देश के वर्तमान हालातों का दर्पण  और खुशहाल राष्ट्र के लिए एक चाहत है। प्रोफेसर हाशमी की साहित्यकारों , लेखकों को सीख इस तरह से है, जब कभी अन्याय की हों सख्तियां , बोलकर , लिखकर करो अभिव्यक्तियाँ , आप सचमुच सत्य है तो झूंठ की , ध्वस्त हो जाएंगी सारी शक्तियां ।
डॉक्टर अखिलेश पालरिया लिखते हैं  कि मेरे पास शब्द हैं और है एक संवेदनशील ह्रदय जो दूसरों के लिए रोता भी है और धड़कता भी हैं। उनके पास गालियां हैं ,वे ह्रदयहीन हैं और दूसरों के दुःख पर उन्हें रोना नहीं होता ।  डॉक्टर  पालरिया कहते हैं , वे अट्ठाहस करते हैं ,पापी भी हैं , मैं अपने शब्दों से उन्हें बदलना चाहता हूँ ताकि वे कलंक ना बनें क्योंकि  मानवता बचेगी तो मैं और वे दोनों जीवित रहेंगे।  वह पिता की ज़रूरत , चाहत पर भी लिखते हैं , यदि पिता ना होते , तो मैं मैं ना होता ।
डॉक्टर मधु खंडेलवाल ‘ मधुर’ लिखती हैं , मैं सम्मान  ही देना चाहती हूँ उन्हें  जो करते रहे नफरत मुझसे सदा ताकि प्रेम ज़िंदा रहे मुझ में । शिखा अग्रवाल लिखती हैं  ज़िंदगी तुझ से कहाँ जी भरता है , ज्यों ज्यों तेरी साँसे सरकती हैं , त्यों – त्यों साँसें लेने का मन करता है । इकराम राजस्थानी की  इंजन की सीटी  म्हारे मन डोले  तो सभी जानते है , गीत बहुत मक़बूल है । नंदू राजस्थानी लिखते हैं हर सच का तू सत्कार कर और झूंठ से इंकार कर , खुशियों का तू बाज़ार कर और खुद को भी खुद्दार कर ।
 वेदव्यास के चिंतन लेखन तो सर्वविदित है ही सही । डॉक्टर मधु अग्रवाल लिखती हैं  एक नन्हा सा पौधा समझकर मुझे , कभी इधर तो कभी उधर रोपा गया ,कभी मेरे बदन पर आई कली को ,अपने नाखूनों से नोचा गया । रागिनी प्रसाद लिखती हैं  मैं आज भी आहत हूँ , यह सोचकर देवी के पूजन का , यह विधान केसा , जहाँ गार्लिक भी कोख की , और पूजा भी कोख की , कहती हुई खुद से बात करती हूँ । डॉक्टर अतुल चतुर्वेदी लिखते हैं डरो मज़लूमों की बद्दुआओं से , जाने अनजाने की गई गलतियों से, अहंकार से उछाले गए शब्दों से , धरती का हरापन  हड़पने से, भरपूर डरो , सपनों की तिजारत करने से पूर्व , विज्ञापन में झूंठ बेचते हुए शब्दों की बाज़ीगरी से ,आत्मा को चुपचाप दफन करने से पहले बार बार डरो        विख्यात कवि अतुल कनक लिखते हैं   शांत थी झील , गहरी भी , मैं खड़ा रहा किनारे बहुत देर तक , फिर ओक में भरकर पी लिया जल ,तुम्हारी आँखों को चूमने की इच्छा लिए।  जितेंद्र कुमार शर्मा ‘ निर्मोही’  लिखते हैं  मोत से जब भी जूझता हूँ में ,,ज़िंदगी पास खड़ी रहती है । भारत सुंदरी रहीं  डॉक्टर प्रीती मीणा लिखती हैं , दर्पण ,दर्पण तू बतला , मुझ से सुंदर कौन ।  रश्मि गर्ग लिखती हैं , संवाद समझाना है , मौन समझना है , एक समुन्द्र में डूबना है , दूसरा समुन्द्र बन जाना है ।
समाज की सच्चाई उजागर कर आँखें खोलने वाले साहित्य के सृजनकर्ता विजय जोशी के संदेश को भुलाया नहीं जा सकता ।
देश भर के साहित्यकारों के साहित्यिक सृजन को चाहे न्यूज़ चेनल्स , कुछ तथाकथित प्रिंट मीडिया  के मुखियाओं ने  चाहे तुच्छ समझकर नज़र अंदाज़ कर रखा हो , लेकिन फिर भी  साहित्यिक प्रतिभाएं , साहित्यिक सृजनकर्ता और समन्वयकर्ता  देश भर में इसके लिए लगातार प्रयासरत है और देश के हालातों का दर्पण बनकर मीडिया की जो देश में फसादात पैदा करने की कोशिशें हैं , उसे नाकाम करने  के प्रयासों में यह साहित्यकार जुटे हैं ।  जी हाँ !  दोस्तों देश भर में तो यह अभियान अपने अपने सलीक़े से चल रहा है लेकिन कोटा में  पिछले कुछ दिनों से विख्यात साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही  की प्रेरणा से  कोटा के विख्यात लेखक डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल इसे हर रोज, दिन प्रतिदिन , किसी ना किसी रूप में कर रहे हैं । वह  अब पृथक – पृथक  आयु वर्ग , पुरुष , नारी , बच्चे , लेखन की विधा ,सृजन , व्यवस्थाओं को लेकर ,प्रतियोगिताएं भी करवा रहे हैं  तो पुस्तकों का प्रकाशन भी कर रहे हैं । हाल ही में डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल ने राजस्थान के साहित्य साधक ,, शीर्षक से  राजस्थान के प्रवासी  और अप्रवासी विख्यात लेखकों की रचनाओं का सारांश , उनके बारे में , आम लोगों को बताने के लिए एक पुस्तक प्रकाशित की है । 383 पृष्ठ की इस पुस्तक में  62 साहित्यकारों और उनकी रचनाओं के बारे में संक्षिप्त प्रकाशन है । उक्त पुस्तक की भूमिका प्रख्यात कथाकार और समीक्षक विजय जोशी ने सारगर्भित तरीके से लिखी है । पुस्तक में 11 प्रवासी राजस्थानी विख्यात लेखकों की रचनाएँ है ,जबकि अजमेर , जयपुर , जोधपुर ,बीकानेर, उदयपुर , कोटा , भरतपुर , सीकर के लेखकों की रचनाएँ  और उनका परिचय शामिल है ।
          प्रवासी राजस्थानी लेखकों में   प्रोफेसर अज़हर हाशमी , दिनेश कुमार माली , किरण खेरुका ,,lडॉक्टर ओम नागर ,राजेंद्र केडिया ,राजेंद्र राव , रमाकांत शर्मा उद्भ्रांत ,डॉक्टर रति  सक्सेना , ऋतु भटनागर , डॉक्टर विकास दवे की रचनाएं और संक्षिप्त परिचय शामिल है। जबकि डॉक्टर अखिलेश पालरिया , डॉक्टर मधु खंडेलवाल मधुर , डॉक्टर संदीप अवस्थी , शिखा अग्रवाल , डॉक्टर देवदत्त शर्मा , इकराम राजस्थानी , डॉक्टर मंजुला सक्सेना , नंद भारद्वाज , नंदू राजस्थानी , वेदव्यास , फ़ारुख आफरीदी , डॉक्टर गजसिंह राजपुरोहित ,, जयप्रकाश पांड्या ज्योतिपुंज , डॉक्टर नीरज दइया , प्रभात गोस्वामी , राजेंद्र पी जोशी , बी. एल आच्छा , डॉक्टर चंद्रकांता बंसल , डॉक्टर इंद्र प्रकाश श्रीमाली , डॉक्टर मधु अग्रवाल , मधु माहेश्वरी , प्रोफेसर डॉक्टर मंजू चतुर्वेदी , मीनाक्षी पंवार मिशान्त , डॉक्टर महेंद्र भाणावत , रागिनी प्रसाद , डॉक्टर विमला भंडारी , डॉक्टर अर्पणा पांडेय , डॉक्टर अतुल चतुर्वेदी , अतुल कनक , भगवत सिंह जादोन मयंक , सी एल सांखला , हेमराज सिंह हेम , जितेंद्र कुमार शर्मा निर्मोही , कालीचरण राजपूत , किशन प्रणय , डॉक्टर कृष्णा कुमारी , मोहन वर्मा , डॉक्टर प्रीति मीणा , रघुनंदन हठीला रघु , रामेश्वर शर्मा रामु भय्या , रामस्वरूप मूंदड़ा , रश्मि गर्ग , श्यामा शर्मा , डॉक्टर वैदेही गौतम , विजय जोशी , कवि विश्वामित्र दाधीच ,डॉक्टर इंदुशेखर तत्पुरुष , डॉक्टर पुरुषोत्तम यक़ीन , बालमुकंद ओझा , श्याम महर्षि , दीनदयाल शर्मा जैसे विख्यात साहित्यकारों की रचनाएँ शामिल है ।
      आम जनता के लिए नीरस सा हो गया साहित्यिक गतिविधियों का विषय वर्तमान में कुछ लोगों द्वारा कर दिए जाने से , इसे प्रचारित करना , प्रसारित करना , समाज में इसके उद्देश्य पहुंचाना , और कार्यक्रमों के आयोजन , पुस्तकों के विमोचन कार्यक्रमों में , अतिथियों का चयन भी कड़ी चुनौती बना हुआ है । लेकिन डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल तो एक समन्वयक है , लेखक है , जनसम्पर्क विशेषज्ञ हैं , लेखन में माहिर हैं। ऐसे में डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल जो मंझे हुए खिलाड़ी हैं।
उन्हें फ़र्क़ नहीं पढ़ता के दूध फट गया है , दूध अगर फट जाए तो वह घबराते नहीं है , तुरंत उसी फ़टे हुए दूध से पनीर बनाने की विधा , मावा हलवा बनाने की विधा के साथ उसी फ़टे हुए दूध से बहतरीन से भी बहतरीन कर लेते हैं । अभी हाल ही में  क़ानून व्यवस्था से जुड़े एक पुलिस अधीक्षक महोदय को  पूर्व स्वीकृति के अनुरूप  राजस्थान के साहित्य साधक पुस्तक के विमोचन में शामिल होना था।  कार्यक्रम की तैयारियां पूर्ण हो चुकी थी , कार्यक्रम की शुरुआत हो गई थी , लेकिन इसी बीच  पुलिस अधीक्षक महोदय का अचानक घरेलू काम आने की मजबूरी का संदेश आता है । डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल उस संदेश को देखते हैं , विचलित नहीं होते और ठीक एक मिनट के दायरे में मंच संचालन के साथ , पुस्तक राजस्थान के साहित्य साधक के विमोचन कार्यक्रम  बाल साहित्यकारों , महिला साहित्यकारों के लेखन पर आयोजित पुरस्कार सम्मान समारोह को हिट से भी सुपर हिट कर देते हैं। यही तो लेखन विधा है ,यही तो समन्वय है , यही तो साधना है , साहित्य साधक का कार्य है ।
पुस्तक : राजस्थान के साहित्य साधक
लेखक : डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर
मूल्य : 750₹
उपलब्ध : अमेज़ॉन/ फ्लिपकार्ट
समीक्षक :
अख्तर खान ‘ अकेला ‘
एडवोकेट एवं पत्रकार
कोटा ( राजस्थान )
मोबाइल :  98290 86339

शगुन की मिठाई बताशा की कहानी

बताशा, देसी हस्तनिर्मित चीनी से बनी मिठाई, भारत में त्योहारों के व्यंजनों का एक अभिन्न अंग है।
बताशे या पारंपरिक वातित चीनी कैंडी न केवल सुविधाजनक हैं बल्कि इन्हें अनिश्चित काल तक संग्रहीत किया जा सकता है। लोग इस मीठे व्यंजन को धार्मिक स्थानों पर चढ़ाए जाने वाले प्रसाद के रूप में मानते हैं। आमतौर पर, खील बताशे (ज्यादातर दिवाली में इस्तेमाल किए जाते हैं) मुरमुरे के साथ भारत में धार्मिक स्थानों पर किए जाने वाले अनुष्ठानिक प्रसाद का अभिन्न अंग हैं।
बताशा बनाने की विशिष्ट कला पूरी तरह से भारतीय आविष्कार थी और इसे उसी समय लोकप्रिय बनाया गया था जब रेशम और मसाला मार्ग पर चीनी लाभदायक निर्यातों में से एक थी। व्यापारियों और गन्ना किसानों ने मीठे गन्ने के रस को सफेद सोने में बदलने के लिए मूल भारभुंज (उत्तर में पाई जाने वाली हिंदू जाति) को काम पर रखा।
यह एक सरल प्रक्रिया है जिसमें चीनी को पहले पानी में उबाला जाता है जब तक कि चाशनी सख्त न हो जाए। उस चाशनी में, क्रिस्टलीकरण की प्रक्रिया में मदद करने के लिए सोडा बाइकार्बोनेट मिलाया जाता है। फिर इसे छोटे सिक्के के आकार की चादरों पर गिराया जाता है। ठंडा होने पर बताशों को एयर-टाइट कंटेनर में स्टोर किया जाता है।
इस मिठाई के बारे में कई कहानियाँ हैं। इस देसी मिठाई ने जहाँगीर और नूरजहाँ की मुलाकात में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लोकप्रिय लोककथाओं के अनुसार, जब जहाँगीर ने अपनी भावी नूरजहाँ (मेहर-उन-निसा) से मीना बाज़ार में मुलाकात की, जो मुगल काल में वार्षिक नवरोज़ समारोह के हिस्से के रूप में एक अस्थायी बाज़ार था, तो उसने अपने मुँह में स्वादिष्ट मेरिंग्यू जैसे बताशे भरवाए थे ।
ये मीठे व्यंजन शरद ऋतु में बनाए जाते हैं जब देश के बड़े हिस्से में गन्ने की कटाई होती है। नवरात्रि के दौरान नौ दिनों तक बताशों को घी में डुबोया जाता है और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए देवताओं को चढ़ाया जाता है। खील बताशा , दिवाली की एक आम परंपरा है जो अपनेपन और साझा करने की भावना को दर्शाती है, इसे चावल की पहली खेप से ताजा बनाया जाता है और देवी लक्ष्मी को चढ़ाया जाता है।
पश्चिम बंगाल में, हर घर में पूजा के लिए बताशा एक नियमित सामग्री है। प्रसिद्ध लेखिका और खाद्य लेखिका चित्रिता बनर्जी ने अपनी पुस्तक ‘द ऑवर ऑफ द गॉडेस’ में इस मिठाई के बारे में अपने निजी किस्से साझा किए हैं। बनर्जी ने बताया कि बंगाल में बताशा हरीर लूट (जन्माष्टमी उत्सव के दौरान आयोजित) में एक अनिवार्य खाद्य पदार्थ था । पहले जब घरों में कीर्तन आयोजित किए जाते थे, तो श्रोताओं (दोस्तों, रिश्तेदारों और परिवार) के लिए फर्श पर बिखरे बताशों से मिठाइयों को इकट्ठा करने के लिए चंचल मूड में मुट्ठी भर बताशों को हवा में उछाला जाता था।
उत्तर भारत में होली में बताशे एक अनिवार्य पूजा सामग्री बने हुए हैं। रंग-बिरंगे बताशे की माला उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली और छत्तीसगढ़ में काफी लोकप्रिय है। ऐसा कहा जाता है कि बताशे की माला परिवारों के बीच के रिश्ते को मधुर बनाती है। वहीं, महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के दिन कलश के ऊपरी सिरे पर नीम के पत्तों के साथ बताशा हार बांधा जाता है । इस गुड़ी को सूर्योदय के समय उठाया जाता है और सूर्यास्त से पहले उतार लिया जाता है।
दक्षिण में, पंचदरा चिलकालू , एक पारंपरिक तेलुगु मिठाई है जिसकी मांग मकर संक्रांति के दौरान होती है, जो जनवरी में मनाया जाने वाला वार्षिक फसल उत्सव है। घरेलू कार्यों में इस्तेमाल की जाने वाली यह विशेष मिठाई तोते के आकार में आती है, जिस पर मंदिरों की दीवारों पर या कलमकारी साड़ियों में ब्लॉक प्रिंट के रूप में पारंपरिक तोते की आकृति दिखाई देती है।
गर्मी के महीनों में पानी में भिगोए हुए बताशे पीने से शरीर को आराम मिलता है। बंगाल में, कोडमा बताशा , इस मिठाई का एक और अनोखा प्रकार है, जिसे विशेष रूप से पोइला बैसाख (बंगाली नव वर्ष) पर प्रसाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। ये चीनी की मिठाइयाँ हंस, तोते, मुर्गी, घोड़े, मंदिर और कई अन्य दिलचस्प आकृतियों में उपलब्ध हैं, जो गुलाबी, सफेद और पीले रंग में उपलब्ध हैं।
चाहे इसे ऐसे ही खाया जाए या मंदिरों में चढ़ाया जाए, बताशा भारतीय घरों में एक अनिवार्य वस्तु बना हुआ है।