Tuesday, April 22, 2025
spot_img
Home Blog Page 16

औरंगजेब की कब्र के स्थान पर बने पूज्य धना जी, संता जी, छत्रपति राजाराम महाराज जी का स्मारक

नई दिल्ली। मार्च 18, 2025। विश्व हिंदू परिषद ने मांग की है कि नागपुर में अफवाह फैलाकर, हिंसा व आगजनी करने वाले जिहादियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही हो तथा औरंगजेब की कब्र के स्थान पर पूज्य धनाजी जाधव, संताजी घोरपडे , छत्रपति राजाराम महाराज जी का स्मारक बने। विहिप के केंद्रीय संगठन महामंत्री श्री मिलिंद परांडे ने घटना की तीव्र भर्त्सना करते हुए कहा है कि महाराष्ट्र के नागपुर में कल रात्रि को जो आगजनी और हमले की घटनाएं मुस्लिम समाज के एक वर्ग द्वारा जो की गईं वे पूर्णतः निंदनीय है। उन्होंने कहा कि हमारे युवा विभाग बजरंगदल के कार्यकर्ताओं के घरों पर हमले किए गए , उन्होंने हिंदू समाज के अनेक घरों को निशाना बनाया और महिलाओं को भी नहीं छोड़ा गया। विश्व हिंदू परिषद इस सब की घोर शब्दों में निंदा करता है। यह बेहद शर्मनाक है कि एक तो यह झूठ फैलाया गया कि हिंदू समाज ने आयतें जलाई हैं और दूसरी ओर हिंसा भड़काने का कुत्सित प्रयास हुआ। ऐसे सभी समाज कंटक जिहादी उत्पतियों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए।

विहिप महामंत्री ने यह भी कहा कि छत्रपति संभाजी महाराज नगर में जो औरंगजेब की कब्र है उसका महिमा मंडन बंद कर उसमें कोई सुधार करने का विषय भी नहीं सोचना चाहिए। अपितु उसकी जगह पर वहां औरंगजेब को जिन्होंने पराजित किया, ऐसे श्री धनाजी जाधव और श्री संताजी घोरपडे तथा साथ में ही छत्रपति श्री राजारामजी महाराज का एक विजय स्मारक बनाना चाहिए। जहां मराठों के साम्राज्य में औरंगजेब को पराजित करने का एक विजय स्तंभ बने, वही मांग विश्व हिंदू परिषद कर रही है और इसलिए ऐसे हिंसा में लगे हुए लोगों के विरुद्ध तुरंत कार्यवाही करके कठोर से कठोर रीति से इनका दमन करना चाहिए।

जारी कर्ता
विनोद बंसल
राष्ट्रीय प्रवक्ता – विहिप

अर्थशास्त्री कवि राम लखन मौर्य ‘मयूर’

रामलखन मौर्य ‘मयूर’ जी का जन्म 19-07-1948 को बस्ती जिले के सदर तहसील के बहादुरपुर ब्लॉक के नगर खास गांव (जो अब नगर बाजार और नगर पंचायत है) में हुआ। उनके पिता का नाम श्री नवीन मौर्य है। उन्होंने हिन्दी और अर्थशास्त्र से एम.ए., बी.एड., साहित्यरत्न और शास्त्री की उपाधि प्राप्त की है। वे लिखने-पढ़ने के अत्यधिक शौकीन रहे हैं और जनता इंटर कॉलेज नगर बाजार में अर्थशास्त्र के प्रवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं।

प्रकाशित कृतियाँ:

उद्गार

शृंगार शतक

1. ‘उद्गार’ काव्य संग्रह का संक्षिप्त परिचय:

‘उद्गार’ में लगभग 60 पृष्ठ हैं। यह विभिन्न प्रसंगों पर लिखी गई कविताओं का संग्रह है। गिरिराज के प्रति लिखा गया उनका एक दृष्टव्य निम्नलिखित है:

गिरिराज

उत्तुंग शिखर दुर्लघ्य सदा तब विजय गीत को गाते हैं। तेरे असीम अंचल में जन सौन्दर्य निरखने जाते हैं।

निर्भर झर झर करते हैं कहीं सरिता कल कल करती बहती। है कहाँ मनोहर दृश्य विस्तृत शुभ छटा जहां नर्तन करती।

है शुभ निसर्ग शाश्वत स्वरूप छवि धाम तुम्हें मेरा वंदन।।

(‘उद्गार’ संग्रह का “गिरिराज” शीर्षक)

अन्य कविताओं में मेरा गाँव, वीरो बढ़े चलो, बसंत, वर्षा की बूंद, सुमन, राष्ट्र शक्ति, बढ़े चलो, कदम-कदम, जलते दीप, बदलो समाज, सहकारिता, नव वर्ष, उषा, सरिता, क्यों पीते हो, सीमा का प्रहरी, प्यारा हिन्दुस्तान, तरु आदि सम्मिलित हैं। इन कविताओं में प्राकृतिक चित्रण उत्कृष्ट रूप से उभरकर आया है। कविताएँ खड़ी बोली में रची गई हैं और उनमें प्रवाह तथा लालित्य का समावेश है।

2. ‘शृंगार शतक’ काव्य संग्रह का संक्षिप्त परिचय:

मयूर जी का दूसरा काव्य-संग्रह “शृंगार शतक” सवैया और मनहरण छंदों में रचा गया है। कहीं-कहीं पर भोजपुरी क्रियाएँ भी मिलती हैं, जिससे भावों में और अधिक सौंदर्य आ गया है।

(छंद संख्या 32)

हम गांव के लोग गरीब हई चली आवे महाजन द्वार हगारे। बड़ी भाग्य हमरो है जागलि बा कइली हम राउर के सत्कारे।

संवरी सजि सारी दशा हमरी मुस्काई जो आप सनेह पधारे। हम धन्य हुए हैं प्रमोद भरे करुणा से भरे प्रभु आप निहारे।।

(छंद संख्या 15 – बसंत पर आधारित)

आयो बना दिगंत सज्यो चहु ओर छटा छटकी छविकारी। शीतल मंद समीर चल्यो मदमाती बनाती लगी मनुहारी।

वनवीरच फुल्यो शीत पुरयो अरुणाई पुपल्लव है दुतिकारी मदमाली नटी सगरी धरती मधुमास प्रमत्त हुए नर नारी।।

मयूर जी आधुनिक युग के उत्कृष्ट सवैया और घनाक्षरी छंदकारों में से एक हैं। उनके छंदों में प्राकृतिक सौंदर्य के साथ मानवीय संवेदनाएँ झलकती हैं। कवि का अंतर्मन जीवन की गहराइयों में डूबकर छंदों के पुष्प गुच्छ सजाने का निरंतर प्रयास करता है। मंचों पर उन्हें आदर व सम्मान प्राप्त होता है, और आधुनिक छंद परंपरा के विकास में उनका योगदान भविष्य में महत्वपूर्ण रहेगा।

लेखक परिचय:

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में सहायक पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं।)

ट्रम्प प्रशासन द्वारा टैरिफ सम्बंधी लिए जा रहे निर्णयों का भारत पर प्रभाव

अमेरिका में दिनांक 20 जनवरी 2025 को नव निर्वाचित राष्ट्रपति श्री डॉनल्ड ट्रम्प द्वारा ली गई शपथ के उपरांत ट्रम्प प्रशासन आर्थिक एवं अन्य क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण फैसले बहुत तेज गति से ले रहा है। इससे विश्व के कई देश प्रभावित हो रहे हैं एवं कई देशों को तो यह भी समझ में नहीं आ रहा है कि अंततः आगे आने वाले समय में इन फैसलों का प्रभाव इन देशों पर किस प्रकार होगा।

ट्रम्प प्रशासन अमेरिका में विभिन्न उत्पादों के हो रहे आयात पर टैरिफ की दरों को बढ़ा रहा है क्योंकि इन देशों द्वारा अमेरिका से आयात पर ये देश अधिक मात्रा में टैरिफ लगाते हैं। चीन, कनाडा एवं मेक्सिको से अमेरिका में होने वाले विभिन्न उत्पादों के आयात पर तो टैरिफ को बढ़ा भी दिया गया है। इसी प्रकार भारत के मामले में भी ट्रम्प प्रशासन का मानना है कि भारत, अमेरिका से आयातित कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाता है अतः अमेरिका भी भारत से आयात किए जा रहे कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत का टैरिफ लगाएगा। इस संदर्भ में हालांकि केवल भारत का नाम नहीं लिया गया है बल्कि “टिट फोर टेट” एवं “रेसिप्रोकल” आधार पर कर लगाने की बात की जा रही है और यह समस्त देशों से अमेरिका में हो रहे आयात पर लागू किया जा सकता है एवं इसके लागू होने की दिनांक भी 2 अप्रेल 2025 तय कर दी गई है। इस प्रकार की नित नई घोषणाओं का असर अमेरिका सहित विभिन्न देशों के पूंजी (शेयर) बाजार पर स्पष्टतः दिखाई दे रहा है एवं शेयर बाजारों में डर का माहौल बन गया है।

अमेरिका में उपभोक्ता आधारित उत्पादों का आयात अधिक मात्रा में होता है और अब अमेरिका चाहता है कि इन उत्पादों का उत्पादन अमेरिका में ही प्रारम्भ हो ताकि इन उत्पादों का अमेरिका में आयात कम हो सके। दक्षिण कोरीया, जापान, कनाडा, मेक्सिको आदि जैसे देशों की अर्थव्यवस्था केवल कुछ क्षेत्रों पर ही टिकी हुई है अतः इन देशों पर अमेरिका में बदल रही नीतियों का अधिक विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। जबकि भारत एक विविध प्रकार की बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था है, अतः भारत को कुछ क्षेत्रों में यदि नुक्सान होगा तो कुछ क्षेत्रों में लाभ भी होने की प्रबल सम्भावना है। संभवत: अमेरिका ने भी अब यह एक तरह से स्वीकार कर लिया है कि भारत के कृषि क्षेत्र को टैरिफ युद्ध से बाहर रखा जा सकता है, क्योंकि भारत के किसानों पर इसका प्रभाव विपरीत रूप से पड़ता है। और, भारत यह किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगा कि भारत के किसानों को नुक्सान हो। डेरी उत्पाद एवं समुद्रीय उत्पादों में भी आवश्यक खाने पीने की वस्तुएं शामिल हैं।

भारत अपने देश में इन उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उद्देश्य से इन उत्पादों के आयात पर टैरिफ लगाता है, ताकि अन्य देश सस्ते दामों पर इन उत्पादों को भारत के बाजार में डम्प नहीं कर सकें। साथ ही, भारत में मिडल क्लास की मात्रा में वृद्धि अभी हाल के कुछ वर्षों में प्रारम्भ हुई है अतः यह वर्ग देश में उत्पादित सस्ती वस्तुओं पर अधिक निर्भर है, यदि इन्हें आयातित महंगी वस्तुएं उपलब्ध कराई जाती हैं तो वह इन्हें सहन नहीं कर सकता है। अतः यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों को सस्ते उत्पाद उपलब्ध करवाए। अन्यथा, यह वर्ग एक बार पुनः गरीबी रेखा के नीचे आ जाएगा। भारत ने मुद्रा स्फीति को भी कूटनीति के आधार पर नियंत्रण में रखने में सफलता प्राप्त की है। रूस, ईरान, अमेरिका, इजराईल, चीन, अरब समूह आदि देशों के साथ अच्छे सम्बंध रखकर विदेशी व्यापार करने में सफलता प्राप्त की है। जहां से भी जो वस्तु सस्ती मिलती है भारत उस देश से उस वस्तु का आयात करता है। इसी नीति पर चलते हुए, कच्चे तेल के आयात के मामले में भी भारत ने विभिन्न देशों से भारी मात्रा में छूट प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है और ईंधन के दाम भारत में पिछले लम्बे समय से स्थिर बनाए रखने में सफलता मिली है।

अमेरिका द्वारा चीन, कनाडा एवं मेक्सिको पर लगाए गए टैरिफ के बढ़ाने के पश्चात इन देशों द्वारा भी अमेरिका से आयातित कुछ उत्पादों पर टैरिफ लगा दिए जाने के उपरांत अब विभिन्न देशों के बीच व्यापार युद्ध एक सच्चाई बनता जा रहा है। परंतु, क्या इसका असर भारत के विदेशी व्यापार पर भी पड़ने जा रहा है अथवा  क्या कुछ ऐसे क्षेत्र भी ढूढे जा सकते हैं जिनमें भारत लाभप्रद स्थिति में आ सकता है। जैसे, अपैरल (सिले हुए कपड़े) एवं नान अपैरल टेक्सटायल का मेक्सिको से अमेरिका को निर्यात प्रतिवर्ष लगभग 450 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहता है और मेक्सिको का अमेरिका को निर्यात के मामले में 8वां स्थान है। अमेरिका द्वारा मेक्सिको से आयात पर टैरिफ लगाए जाने के बाद टेक्सटायल से सम्बंधित उत्पाद अमेरिका में महंगे होने लगेंगे अतः इन उत्पादों का आयात अब अन्य देशों से किया जाएगा। मेक्सिको अमेरिका को 250 करोड़ अमेरिकी डॉलर के कॉटन अपैरल का निर्यात करता है एवं 150 करोड़ अमेरिकी डॉलर के नान कॉटन अपैरल का निर्यात करता है। कॉटन अपैरल के आयात के लिए अब अमेरिकी व्यापारी भारत की ओर देखने लगे हैं एवं इस संदर्भ में भारत के निर्यातकों के पास पूछताछ की मात्रा में वृद्धि देखी जा रही है। इन परिस्थितियों के बीच, टेक्स्टायल उद्योग के साथ ही, फार्मा क्षेत्र, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र, इंजीयरिंग क्षेत्र एवं श्रम आधारित उद्योग जैसे क्षेत्रों में भी भारत को लाभ हो सकता है।

यदि अमेरिका अपने देश में हो रहे उत्पादों के आयात पर टैरिफ में लगातार वृद्धि करता है तो यह उत्पाद अमेरिका में बहुत महंगे हो जाएंगे और इससे अमेरिकी नागरिकों पर मुद्रा स्फीति का दबाव बढ़ेगा। क्या अमेरिकी नागरिक इस व्यवस्था को लम्बे समय तक सहन कर पाएंगे। उदाहरण के तौर पर फार्मा क्षेत्र में भारत से जेनेरिक्स दवाईयों का निर्यात भारी मात्रा में होता है। यदि अमेरिका भारत के उत्पादों पर टैरिफ लगाता है तो इससे अधिक नुक्सान तो अमेरिकी नागरिकों को ही होने जा रहा है। भारत से आयात की जा रही सस्ती दवाएं अमेरिका में बहुत महंगी हो जाएंगी। इससे अंततः अमेरिकी नागरिकों के बीच असंतोष फैल सकता है। अतः अमेरिका के ट्रम्प प्रशासन के लिए टैरिफ को लम्बे समय तक बढ़ाते जाने की अपनी सीमाएं हैं।

अमेरिका विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र एवं सबसे बड़ा विकसित देश है और इस नाते अन्य देशों के प्रति अमेरिका की जवाबदारी भी है। टैरिफ बढ़ाए जाने के सम्बंध में इक तरफा कार्यवाही अमेरिका की अन्य देशों के साथ सौदेबाजी की क्षमता तो बढ़ा सकती है परंतु यह कूटनीति लम्बे समय तक काम नहीं आ सकती है। अमेरिकी नागरिकों के साथ साथ अन्य देशों में भी असंतोष फैलेगा। कोई भी व्यापारी नहीं चाहता कि नीतियों में अस्थिरता बनी रहे। इसका सीधा सीधा असर विश्व के समस्त स्टॉक मार्केट पर विपरीत रूप से पड़ता हुआ दिखाई भी दे रहा है। यदि यह स्टॉक मार्केट के अतिरिक्त अन्य बाजारों एवं नागरिकों के बीच में भी फैला तो मंदी की सम्भावनाओं को भी नकारा नहीं जा सकता है। अमेरिका के साथ साथ अन्य कई देश भी मंदी की चपेट में आए बिना नहीं रह पाएंगे। अर्थात, इस प्रकार की नीतियों से विश्व के कई देश विपरीत रूप में प्रभावित होंगे।

अमेरिका को भी टैरिफ के संदर्भ में इस बात पर एक बार पुनः विचार करना होगा कि विकसित देशों पर तो टैरिफ लगाया जा सकता है क्योंकि अमेरिका एवं इन विकसित देशों में परिस्थितियां लगभग समान है। परंतु विकासशील देशों जैसे भारत आदि में भिन्न परिस्थितियों के बीच तुलनात्मक रूप से अधिक परेशानियों का सामना करते हुए विनिर्माण क्षेत्र में कार्य हो रहा है, अतः विकसित देशों एवं विकासशील देशों को एक ही तराजू में कैसे तौला जा सकता है। विकासशील देशों ने तो अभी हाल ही में विकास की राह पर चलना शुरू किया है और इन देशों को अपने करोड़ों नागरिकों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाना है। इनके लिए विकसित देश बनने में अभी लम्बा समय लगना है। अतः विकसित देशों को इन देशों को विशेष दर्जा देकर इनकी आर्थिक मदद करने के लिए आगे आना चाहिए। अमेरिका को विकसित देश बनने में 100 वर्ष से अधिक का समय लग गया है और फिर विकासशील देशों के साथ इनकी प्रतिस्पर्धा कैसे हो सकती है। विकासशील देशों को अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने का अधिकार है, अतः विकासशील देश तो टैरिफ लगा सकते हैं परंतु विकसित देशों को इस संदर्भ में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

प्रहलाद सबनानी

सादगी और संस्कारों की धरोहर छोड़ गए अरविंद सिंह

  • कई महलों को मालिक थे, मगर 3 साल रहे 1 कमरे के छोटे से घर में
  • महाराणा प्रताप के वंशज ने कपड़ा कंपनी में जूनियर पद पर नौकरी भी की
  • खुद ही सब्जियां खरीदते और खुद ही खाना बनाते, कहीं भी पैदल ही जाते
  • पहली बार विमान में अकेले सफर किया तो थे बहुत सहमे सहमे से थे
  • मेवाड़ की विरासत पर सदा विवाद के केंद्र में रहे महाराणा, जंग आगे भी जारी

मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य अरविंद सिंह मेवाड़ का निधन हो गया है। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उन्होंने मेवाड़ राजघराने के मुख्यालय उदयपुर स्थित अपने राजमहल शंभू निवास में आज तड़के अंतिम सांस ली। ने 80 साल के थे और 16 मार्च 2025 को निधन होने के दूसरे दिन 17 मार्च को उनका अंतिम संस्कार किया जाना है। उदयपुर को पर्यटन के वैश्विक मानचित्र पर पहुंचाने में भी अरविंद सिंह मेवाड़ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। राजपरिवार के होने के बावजूद आम आदमी की जिंदगी में उनकी बड़ी रुचि रही। महाराणा अरविन्द सिंह मेवाड़ ने आम आदमी का जीवन जानने और उसका अनुभव लेने के लिए अपनी जिंदगी के लगभग लिए 3 साल एक कमरे के छोटे से घर में बिताकर आम आदमी के जीवन की मुश्किलों को नजदीक से जाना। वे भारत में ऐसा नहीं कर सकते थे, इसलिए यूके चले गए। जहां, यूके में कपड़े की कंपनी में नौकरी भी की, तो क्रिकेट भी गजब खेला। अकेले ही घूमे, अकेले ही सब्जियां खरीदी और अकेले ने ही खाना भी बनाया। पूरा मेवाड़ अपने श्रीजी के निधन से शोकमय है।


अरविंद सिंह को मेवाड़ की जनता श्रीजी कह कर सम्मान देती थी। वे मेवाड़ राजघराने के कानूनी वारिस थे, और मेवाड़ उदयपुर स्थित सिटी पैलेस राजमहल के शंभू निवास में रहते थे। यहीं पर उनका इलाज चल रहा था। महाराणा प्रताप के वंशज अरविंद सिंह ने अजमेर के मेयो कॉलेज से अपनी स्कूली पढ़ाई की, बाद में उदयपुर में महाराणा भूपाल कॉलेज से आर्ट्स में ग्रेजुएशन किया। फिर ब्रिटेन पढ़ने  गए, जहां सेंट एल्बंस मेट्रोपॉलिटन कॉलेज से होटल मैनेजमेंट की डिग्री भी ली थी।

मैनचेस्टर नौकरी करने जाना उनकी लाइफ का टर्निंग प्वाइंट रहा, जहां उन्हें कपड़े की फैक्ट्री में जूनियर एग्जिक्यूटिव की नौकरी भी मिल गई। क्रिकेट के गजब शौकीन रहे अरविंद सिंह मेवाड़ मैनचेस्टर में जमकर क्रिकेट खेले, जो एक राजपरिवार के सदस्य होते हुए भारत में वे शायद ही खेल सकते थे। वे महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन ट्रस्ट, महाराणा मेवाड़ ऐतिहासिक प्रकाश ट्रस्ट, राजमाता गुलाब कुंवर चेरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष थे। अरविंद सिंह का संसार से चले जाना मेवाड़ राजवंश के लिए एक बड़ी क्षति है। अपने जीवनकाल में उदयपुर और मेवाड़ के विकास में अरविंद सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

बरसों पहले की बात है, अरविंद सिंह मेवाड़ एक दिन सुबह पिछोला झील के किनारे टहल रहे थे, तो उन्हें वे शाही ठाट – बाट वाला जीवन जो जी रहे थे, उस जीवन से हल्की सी ऊब हुई, और मन में उन्हें कुछ खालीपन महसूस हुआ, तो उदयपुर के अपने शाही राजमहल के भव्य जीवन को छोड़कर ब्रिटेन चले जाने का निर्णय कर लिया, और वे निकल भी गए। लगभग दो दशक पहले अपने समान्य जीवन के अनुभवों को साझा करते हुए  महाराणा अरविंद सिंह मेवाड़ ने प्रख्यात पत्रकार निरंजन परिहार से एक बातचीत में कहा था कि मैनचेस्टर के हेल में वे जब नौकरी करने गए, तो एक कमरे के छोटे से घर में रहे, वे अपने खाने का सामान खुद खरीदते थे, और सब्जियां खरीदने से लेकर रसोई में भोजन भी खुद ही बनाते थे। राजपरिवार के होने के बावजूद वहां पर अपनी कमाई से ही जिंदगी बिताई। परिहार बताते हैं कि मेवाड़ के महाराणा होने के बावजूद बातचीत करने में अरविंद सिंह बेहद सरल थे। न उनमें कोई राजपरिवार का रौब और न ही किसी तरह के राजवंश वाला दर्प।

अपनी यूके यात्रा के बारे में उन्होंने खुद ही बताया था कि भारत में तो वे हर पल कई लोगों से घिरे रहने वाले राजकुमार थे, लेकिन ब्रिटेन जाते वक्त अरविंद सिंह अकेले थे, क्योंकि वे पहली बार अकेले सफर करने वाले थे, सो कुछ सहमे सहमे से थे। उन्होंने अपने रेल के सफर का पहला दिन याद करते हुए बताया था –  मैंने खुद ही अपना रेल टिकट खरीदा था। ये आप लोगों के लिए एक सामान्य बात हो सकती है, लेकिन ये मेरी जिंदगी के लिए बिल्कुल नई चीज थी, क्योंकि हमने कभी ऐसा किया भी नहीं था। परिहार बताते हैं कि उदयपुर में लहलहाती झील के किनारे बसे कई एकड़ में फैले विशाल राजमहल के विराट राजसी ठाट-बाट को छोड़कर अनजाने देश में एक कमरे के घर में रहना उनके लिए अपने आप में एक खास अनुभव था, जिसे अरविंद सिंह मेवाड़ जब बता रहे थे, तो उनके चेहरे पर कुछ खास जीने के अनुभव की छाप को साफ देखा जा सकता था। उन्होंने बताया कि वे जब यूके में थे, तो ज्यादातर काम के लिए कहीं भी पैदल ही जाते थे। उस दौर में उन्होंने खुद के भीतर सामान्य व्यक्ति के होने के अनुभव किया।

मेवाड़ राजवंश के 76वीं पीढ़ी के अरविंद सिंह मेवाड़ इस विरासत के संरक्षण के रूप में परिवार के प्रमुख थे। उनके बड़े भाई महेन्द्र सिंह मेवाड़ का निधन पिछले साल 10 नवंबर 2024 को हुआ था। मेवाड़ राजवंश में राणा सांगा, महाराणा कुंभा और महाराणा प्रताप जैसे पराक्रमी राजा हुए, जिनकी ख्याति देश दुनिया के इतिहास में दर्ज है। पहले चित्तौड़, फिर कुंभलगढ़ और बाद में उदयपुर मेवाड़ राजघराने की राजधानी रहा। इस राजघराने के पास अकूत संपत्ति भी है। यह परिवार भारत के सबसे ऊंचे शिखर के 10 अमीर राजघरानों में से एक है। मेवाड़ राजपरिवार के पास लाखों करोड़ रुपए की संपत्ति है। अरविंद सिंह मेवाड़ ने छोटे बेटे होने के बावजूद अपने पिता महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ की एक वसियत के जरिए मेवाड़ राजघराने के कानूनी वारिस के रूप में खुद को स्थापित कर दिया था, इसी कारण वे जब तक जीवित रहे, मेवाड़ राजघराने की संपत्ति के लिए अपने बड़े भाई महेन्द्र सिंह मेवाड़ से विवाद जारी रहा। महेन्द्र सिंह मेवाड़ के बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ नाथद्वारा से विधायक हैं और उनकी पत्नी महिमा कुमारी राजसमंद की सांसद।

अरविंद सिंह मेवाड़ एचआरएच ग्रुप ऑफ होटल्स के अध्यक्ष थे। यह ग्रुप हैरिटेज महलों को होटल और रिसॉर्ट में तब्दील करने का काम करता है। राजशाही समाप्त होने के बाद से वर्तमान में मेवाड़ राजवंश के होटल बिजनेस में भी है।  महाराणा प्रताप के वंशज अरविंद सिंह ने यूके के सेंट एल्बंस मेट्रोपॉलिटन कॉलेज से होटल मैनेजमेंट की डिग्री भी ली थी। मेवाड़ राजघराना संसार के सबसे बेहतरीन, सर्वाधिक आलीशान और भव्यतम महंगे होटलों का मालिक हैं। मेवाड़ राजघराने की कुल संपत्ति कितनी है, इसका सही आंकड़ा किसी को नहीं पता। लेकिन उनकी कमाई का सबसे बड़ा जरिया होटलों से मिलने वाली कमाई है। अरविंद सिंह के निधन के बाद उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह राजगद्दी के परंपरागत रूप से कानूनी वारिस होंगे।

मेवाड़ राज परिवार बीते कुछ दशकों से लगातार चर्चा में है। कभी अपने शानदार होटलों की वजह से, तो कभी इस राजवंश की राजगद्दी और विरासत उसे चर्चा में लाती रही है। उत्तराधिकार का विवाद नाथद्वारा के वर्तमान विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ और उनके चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ के बीच था, जो अब अरविंद सिंह के निधन उनके चचेरे भाई लक्ष्यराज सिंह के साथ चलेगा, यह लगभग सुनिश्चित है। सन 1984 में महाराणा भगवत सिंह के निधन के बाद इस विवाद की शुरुआत हुई थी। एक तरफ जहां भगवत सिंह के बड़े बेटे महेंद्र सिंह का मेवाड़ के ठाकुरों और ठिकानेदारों ने राजतिलक करके उन्हें सांकेतिक तौर पर नया ‘महाराणा’ घोषित किया था, तो दूसरी ओर से भगवत सिंह के छोटे बेटे अरविंद सिंह ने न्यायालय में अपने पिता की एक वसीयत के जरिए सारी संपत्ति का वारिस खुद को बताया था। हाल ही में इस विवाद ने फिर जोर पकड़ा था, जब मेवाड़ राजवंश में महेंद्र सिंह के निधन के बाद उनके बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ का राजतिलक किया गया था। आने वाले दिनों में लक्ष्यराज सिंह वर्तमान में सारी संपत्ति के संरक्षक के रूप में अपने पिता अरविंद सिंह मेवाड़ की विरासत को सम्म्हालेंगे। इसी कारण मेवाड़ राजघराने के इस विवाद के आगे भी लगातार चलते रहने की संभावना है। अरविंद सिंह चो चले गए, लेकिन संसार को रह रह कर विभिन्न कारणों से याद आते रहेंगे।

भारी पड़ते भजनलाल और रफ्तार पकड़ता राजस्थान

भजनलाल शर्मा ने सियासत के शिखर की राह पकड़ ली हैं। ताकत के तेवर तीखे कर लिए हैं और अफसरशाही के करतबों पर कसावट की कला भी जान गए हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर सवा साल पूरा कर लेने के साथ ही भजनलाल शर्मा ने विधायकों को अपना बनाने के गुर भी उन्होंने सीख लिए और संगठन को साधने की कला भी अपना ली है। बीजेपी के अपने पूर्वज मुख्यमंत्रियों, भैरोंसिंह शेखावत और वसुंधरा राजे के राज करने की राह पर भजनलाल भी चल पड़े हैं। आजकल कुछ अलग लग रहे हैं और उनकी पैनी नजरों में सत्ताधीश होने के तेवर तैरने लगे हैं। सवा साल पहले जब राजस्थान की कमान सम्हाली थी, तो उनकी अपनी बीजेपी में ही उनके मुख्यमंत्री बनने को, कोई अनुभवहीन को सत्ता सौंपना बता रहा था, तो किसी को वे कमजोर होने की वजह से ज्यादा लंबे न चलने वाले मुख्यमंत्री लग रहे थे। लेकिन तस्वीर बदल गई है।

पार्टी पर उन्होंने पकड़ बना ली है, केंद्र का विश्वास भी जीत लिया है और राजनीति के दांव पेंच में भी भजनलाल भारी पड़ने लगे हैं। बड़े और बड़बोले मंत्रियों की बोलती बंद करना सीख लिया है, और मजबूत विधायकों के जरिए सरकार की ताकत बढ़ाने करने के रहस्य भी उन्होंने जान लिए हैं। सत्ता के शक्ति संचार से शर्मा उस समय सर्वाधिक समर्थ हो गए, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘राइजिंग राजस्थान ग्लोबल इन्वेस्टमेंट समिट’ के उद्घाटन समारोह में भजनलाल की पीठ थपथपा कर सीधा संदेश दे दिया था कि ‘पंडितजी’ कहीं जाने वाले नहीं हैं। तभी से राजनीति की फसलों, सत्ता से विवादों के फासलों और सरकार के फैसलों और में भी भजनलाल शर्मा की छाप मजबूत दिखने लगी है।

पहली बार विधायक और पहली ही बार मुख्यमंत्री भी बन गए भजनलाल शर्मा। इसीलिए विरोधी उनको अनुभवहीन और कमजोर बताकर निशाने पर लेते रहे। हालांकि, एक व्यक्ति के तौर पर शर्मा भले ही सीधे हैं, सरल स्वभावी भी हैं और सादगी पसंद भी। लेकिन सरकार के मुखिया के तौर पर अब वे अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरह ही, अप्रत्याशित तो हैं ही, असरकारक भी हैं और असाधारण भी। राजस्थान में वे अपनी ही पार्टी में, भले ही बहुत बड़े नेता कभी नहीं रहे, लेकिन 6 प्रदेश अध्यक्षों के साथ संगठन की सियासत सम्हालने के अनुभव ने उनको इतना धारदार तो बना ही दिया था कि किसको, कब, कहां, कितना और किसके जरिए कैसे साधना है, यह वे मुख्यमंत्री बनने से पहले ही अच्छी तरह जान गए थे।

इसीलिए, मुख्यमंत्री पद पर काम करते हुए भजनलाल शर्मा, सवा साल पहले जैसे थे, वैसे तो अब कतई नहीं है। शासनकर्ता के सर्वोच्च शिखर पर स्थापित होने के संदेश देने उन्होंने सीख लिए हैं और अपने स्वभाव की सियासी तासीर भी बदल डाली है। वे शेखावत और राजे की राह पर चल रहे हैं, तो किसी की भी ना सुनने वाले मनमौजी अफसर भी अब उनका कहना मानने लगे हैं, और वरिष्ठ होने के दम भरने वाले अफसर भी उनसे दबने लगे हैं। सियासत के समीकरण शर्मा ने ऐसे साध रखे हैं कि विधायकों की एक बड़ी संख्या उनकी व्यक्तिगत टीम का हिस्सा बनने को बेताब है और मंत्रिमंडल में तो सरताज वे हैं ही।

राजस्थान में बहुत ही कम समय में वे प्रदेश के निर्विवाद नेता के रूप में उभरे हैं, और बीजेपी में किसी अन्य शक्ति केंद्र की धारणा को वे पूरी तरह से समाप्त करने में भी कामयाब रहे है, यही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की खास बात है। एक और खास बात यह भी है कि उनमें न तो मुख्यमंत्री पद का कभी घमंड दिखा है और न ही किसी तरह का अहंकार। अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ के साथ उनका बेहतर तालमेल है और प्रभारी डॉ राधामोहन दास अग्रवाल के विवादित बयानों के संभावित नुकसान पर भी रोक लगाने में वे सफल रहे हैं।

 अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए 9 जिलों को उनके द्वारा भंग करने से उपजे विवाद को शांत करने में भी मुख्यमंत्री पूरी तरह से सफल रहे हैं, तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के विधानसभा अध्यक्ष पर स्तरहीन बयान पर विपक्ष के नेता से माफी मंगवाने का जो रणनीतिक दांव भजनलाल शर्मा ने खेला, उसको भी उनकी बढ़ती राजनीतिक ताकत का संकेत माना जा रहा है। बीजेपी की राजनीति में ही नहीं, बल्कि समूचे प्रदेश भर में शर्मा की छवि नेक इरादों वाले एक ईमानदार मेहनती नेता की रही है, लांछन अब तक कोई लगा नहीं सका और पेपर लीक जैसी घटना भी उनके कार्यकाल में अब तक तो नहीं हुई।

राजस्थान की राजनीति में तेजी से मजबूती पाने की सफलता में भजनलाल शर्मा का व्यक्तित्व और स्वभाव सबसे बड़ा सहायक रहा है। मुख्यमंत्री के तौर पर भजनलाल शर्मा की ताकत को राजस्थान में केवल इसी से समझा जा सकता है कि देश भर में योगी आदित्यनाथ सबसे लोकप्रिय और ताकतवर मुख्यमंत्री गिने जाते हैं। मगर, योगी को तो फिर भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में ही उनके साथी नेताओं द्वारा ही चुनौती मिलती रही हैं, मगर भजनलाल शर्मा के लिए कोई नेता राजस्थान में चुनौती नहीं बन पा रहा है। शर्मा ने सरलता से सबको अपना बनाने की कोशिश की है और वरिष्ठों के प्रति आदर व अवमानना का तो सवाल ही नहीं है।

वसुंधरा राजे से पहली बार मिलने वाले लोग, पहली नजर में तो उनके व्यक्तित्व में राजवंश का रौबदाब ही देख पाते थे, उसके अलावा उनके व्यक्तित्व में और कुछ और भी देखे, तब तक तो मुलाकात का वक्त भी खत्म भी हो जाता। जबकि भजनलाल शर्मा से मिलने वाले कहते हैं कि मुख्यमंत्री अपने सदभावनापूर्ण व्यवहार के जरिए पहली ही मुलाकात में हर किस का दिल जीत लेते हैं। राजस्थान और देश भर में, मुख्यमंत्री शर्मा के बेहद सहज व सरल राजनीतिक आचरण ने विरोधियों के अपने बारे में इस प्रचार को लगभग खारिज कर दिया है, जिसमें उनके नए होने को राजनीतिक रूप से कमजोरी बताया जा रहा था।

वैसे तो, मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद से ही भजनलाल शर्मा ने स्वयं को राजस्थान में सत्ता के एकमात्र केंद्र के रूप में स्थापित कर लिया था, लेकिन प्रशासनिक निर्णयों के अधिकार की अपनी ताकत को भी अब प्रभावी ढंग से स्थापित कर दिया है। हालांकि फिर भी, राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा अक्सर यह कहते रहे हैं कि मुख्यमंत्री नहीं, असल में सरकार तो अफसर चला रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री ने कांग्रेस का यह नरेटिव ही फेल कर दिया है। सरकार में फैसले वे खुद लेते हैं और उन पर अफसरों से अमल भी वे अपनी तरह से करवाते हैं।

हाल ही में मुख्यमंत्री ने राज्य में औद्योगिक विकास और निवेश बढ़ाने के लिए मजबूत कदम उठाते हुए प्रदेश में हर महीने 1000 करोड़ से अधिक के निवेश प्रस्तावों पर अमल के लिए अफसरों पर लगाम कसी है। ‘राइजिंग राजस्थान समिट’ में राजस्थान में लगभग 20 लाख करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव आए थे, उनको साकार करने को प्राथमिकता पर रखते हुए वरिष्ठ अफसरों को उन्होंने सख्त निर्देश दिए हैं कि सभी एमओयू को प्रैक्टिकल स्टेज तक पहुंचाया जाए, जिसके परिणाम भी आने शुरू हो गए हैं। मुख्य सचिव सुधांश पंत और मुख्य सलाहकार शिखर अग्रवाल जैसे ताकतवर अफसरों का निश्चित रूप से महत्वपूर्ण प्रशासनिक मामलों के परामर्श लाजमी है, मगर अंतिम निर्णय तो पूरी तरह से मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के पास ही सुरक्षित है। भजनलाल शर्मा की इस कार्यप्रणाली ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि प्रशासनिक कार्यक्रम तो मुख्यमंत्री कार्यालय के एजेंडे के अनुरूप ही चलेंगे।

राजस्थान में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने अपने विधायकों की भावनाओं को समायोजित करने और उनके जरिए प्रदेश के विकास को अंजाम देने के लिए भी कुछ खास कदम उठाए हैं, जिससे जमीनी स्तर की राजनीतिक गतिशीलता के प्रति उनका प्रभाव और जवाबदेही दोनों मजबूत हुई है। विरोधी विधायकों के शमन के इंतजाम भी उनके पास हैं। माना जा रहा है कि सत्ता और संगठन में शर्मा का यह सर्वसमावेशी दृष्टिकोण प्रदेश के कई चुनाव क्षेत्रों में बीजेपी का समर्थन पहले से ज्यादा मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण नतीजे देगा। निष्कर्ष यही है कि राजस्थान में सरकार के निर्णय लेने की प्रक्रिया को शेखावत, वसुंधरा और गहलोत की तरह ही अपने अधिकारों को केंद्रीकृत करते हुए प्रशासनिक मामलों पर पकड़ बनाने के भजनलाल शर्मा के कदम उनकी मजबूत पकड़ को दिखा रहे हैं।

वक्त जैसे – जैसे बीत रहा है, राजस्थान में बीजेपी मजबूत हो रही है और यह भी स्पष्ट होता जा रहा है कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा राजस्थान के राजनीतिक और प्रशासनिक परिदृश्य को आकार देने वाले शिल्पकार साबित हो रहे हैं। अब, विरोधी चाहे उनको पर्ची सीएम कहें या कमजोर, और या फिर अनुभवहीन, लेकिन राजस्थान रफ्तार पकड़ रहा है और मुख्यमंत्री के तौर पर भजनलाल शर्मा भारी पड़ रहे है, जो सभी को साफ दिख भी रहा है। हां, यह सब उनके विरोधियों को अगर नहीं दिख रहा हो, तो वे अपनी दृष्टि की शल्य क्रिया करवाने को स्वतंत्र हैं!

 

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

हम लहरें ही देख पाते हैं, सागर नहीं

अल्बर्ट आइंस्टीन बड़ा गणितज्ञ था, लेकिन उसने विवाह जिससे किया, फ्रा आइंस्टीन से, वह एक कवि स्त्री थी। यह बड़ा कठिन जोड़ है। ऐसे तो पति—पत्नी के सभी जोड़ बड़े कठिन होते हैं! लेकिन यह और भी कठिन जोड़ था। दुर्घटना से ही कभी ऐसा होता है कि पति—पत्नी का जोड़ कठिन न हो, सामान्यतया तो कठिन होता ही है। लेकिन यह आइंस्टीन का जोड़ तो और मुश्किल था। आइंस्टीन तो सिर्फ गणित की भाषा ही समझता था। और कविता और गणित की भाषा में जितना फासला हो सकता है, उतना किस भाषा में होगा?
फ्रा ने, उसकी पत्नी ने, शादी के बाद जो पहला काम चाहा, वह यह कि आइंस्टीन को कुछ अपनी कविता सुनाए। उसने एक गीत लिखा था, उसने उसे सुनाया। आइंस्टीन आंख बंद करके बैठ गया। फ्रा ने समझा कि वह बहुत चिंतन कर रहा है उसके गीत पर। आखिर उसने आंख खोली और उसने कहा कि यह पागलपन है, दुबारा मुझे मत इस तरह की बात बताना। उसकी पत्नी ने कहा, पागलपन! आइंस्टीन ने कहा, मैंने बहुत सोचा..।
क्योंकि फ्रा ने एक प्रेम का गीत लिखा था, जिसमें उसने अपने प्रेमी को, अपने प्रेमी या प्रेयसी के भाव को, चेहरे को, चांद से तुलना की थी। आइंस्टीन ने कहा, मैंने बहुत सोचा। चांद और आदमी के चेहरे में कोई भी संबंध नहीं है। कहां चांद, पागल! अगर आदमी के ऊपर रख दो, तो आदमी का पता ही न चले, अगर उसका सिर बना दो तो। और चांद के सौंदर्य का मैं सोचता हूं तो वहां तो सिवाय खाई—खड्ड के और कुछ है नहीं। आदमी के चेहरे से चांद का क्या संबंध है?
फ्रा ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि मैंने समझ लिया कि हम दो अलग जातियों के प्राणी हैं और यह बातचीत आगे चलानी उचित नहीं है। यह बंद ही कर देनी चाहिए। यह विषय ही उठाना ठीक नहीं है। क्योंकि अगर सिद्ध करने जाओ, तो आदमी के चेहरे और चांद में कोई संबंध नहीं सिद्ध हो सकता। लेकिन फिर भी कभी कोई चेहरा चांद की याद दिलाता है। और कभी चांद किसी चेहरे की भी याद दिलाता है। लेकिन वह कोई और ही बात है सौंदर्य की। उसका गणित से कोई संबंध नहीं है, माप से कोई संबंध नहीं है।
ईश्वर को जब भी हम मापने चलते हैं, तभी हम आकार देते हैं। और जब भी हम पूछते हैं, कहां है ईश्वर? कैसा है ईश्वर? क्या है उसका रूप? क्या है उसका रंग? क्या है उसकी आकृति? तब हम गलत सवाल पूछ रहे हैं। सब आकृतियां जिसकी हैं, और सब रूप जिसके हैं, वही है ईश्वर।
इसे हम ऐसा समझें कि आप सागर के किनारे खड़े हो जाएं। आपने सागर कभी देखा न होगा। आप कहेंगे, बिलकुल कैसी पागलपन की आप बात कर रहे हैं! हम सब सागर के किनारे ही रहने वाले लोग, सागर हम रोज देखते हैं। लेकिन मैं आपसे कहता हूं, सागर आपने कभी नहीं देखा। सिर्फ आपने सागर के ऊपर की उठती हुई लहरें देखी हैं। लहरें सागर नहीं हैं। लहरों में सागर है, लहरें सागर नहीं हैं। क्योंकि सागर बिना लहरों के भी हो सकता है, लहरें बिना सागर के नहीं हो सकतीं।
लेकिन आप लहरों को देखकर लौट आते हैं और सोचते हैं, सागर को देखकर लौट आए। हर लहर में सागर है, सब लहरों में सागर है। लेकिन सागर लहरों के पार भी है, लहरों से गहरा भी है। लहरें सागर के ऊपर ही डोलती रहती हैं। सागर बहुत बड़ा है। हमने लहरें ही देखी हैं। इसलिए कोई यह भी पूछ सकता है कि किस लहर को आप सागर कहते हैं?
हमने आदमी देखे हैं। पौधे देखे हैं। पशु देखे हैं। पक्षी देखे हैं। हम पूछते हैं कि किसको आप भगवान कहते हैं? कौन है ईश्वर? ये सब लहरें हैं उसी एक सागर की। इन सबके भीतर जो है, इन सबके नीचे जो है, जिस पर ये लहरें उठती हैं और जिसमें ये लहरें विलीन हो जाती हैं, वह सागर परमात्मा है। वह हमने नहीं देखा, हम लहरें ही देख पाते हैं।
मैं आपको देखता हूं लेकिन उसको नहीं देखता, जो आपके पहले भी था, आपके भीतर भी है अभी; और कल आप गिर जाएंगे, तब भी होगा। आप तो सिर्फ एक लहर हैं, जो उठी जन्म के दिन और गिरी मृत्यु के दिन, और कभी जवान थी और आकाश को छूने का सपना देखा। आप सिर्फ एक लहर हैं। लेकिन जब आप नहीं थे, आपकी आकृति नहीं थी, तब भी आप सागर में थे। और कल आपकी आकृति गिरकर लीन हो जाएगी, तब भी आप सागर में होंगे। सागर सदा होगा।
ओशो
गीता दर्शन

स्कूलों में कौशल शिक्षा: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लागू होने से बनते रास्ते

राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने भारत में 100 प्रतिशत स्कूलों में कौशल शिक्षा को जोड़ने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है जिनमें से कम-से-कम 50 प्रतिशत छात्रों का नामांकन 2030 तक होगा.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 तीन आवश्यक वैश्विक चुनौतियों को स्वीकार करती है जिनके लिए शैक्षिक प्रतिक्रिया ज़रूरी है. सबसे पहले उभरती तकनीकें जैसे कि मशीन लर्निंग, बिग डेटा और जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) कल के काम करने वालों (वर्कफोर्स) में अनुकूलनशीलता (सीखने का तरीका सीखना) और बड़े स्तर के कौशल की मांग करती है. दूसरी बात ये है कि जलवायु परिवर्तन, घटते प्राकृतिक संसाधन और प्रदूषण की वजह से पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियां दुनिया में खाद्य, पानी, ऊर्जा और स्वच्छता की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इनोवेटिव और टिकाऊ समाधानों की मांग करती हैं. तीसरा, नई तरह की बीमारियों, महामारियों और संक्रामक रोगों के बढ़ते ख़तरे के कारण बेहतर चिकित्सकीय अनुसंधान और आर्थिक सामर्थ्य की आवश्यकता उत्पन्न होती है. इन चुनौतियों के लिए तैयारी के उद्देश्य से NEP शुरुआती कक्षाओं से ही नए युग की कौशल केंद्रित शिक्षा को प्राथमिकता देती है जो अलग-अलग विषयों के दृष्टिकोण का लाभ उठाती है और सैद्धांतिक क्लासरूम के ज्ञान को व्यावहारिक प्रयोग के साथ जोड़ती है.

मिडिल ग्रेड्स यानी कक्षा छह से लेकर आठ के बीच CBSE ने 33 विषयों जैसे कि कोडिंग, डेटा साइंस, डिज़ाइन थिंकिंग और मास मीडिया पर 12-15 घंटे के स्किल मॉड्यूल की शुरुआत की है

शुरुआती उम्र से कौशल शिक्षा को लागू करने के लिए भारत के सबसे बड़े राष्ट्रीय बोर्ड यानी केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE), जिसके साथ 30,634 स्कूल जुड़े हुए हैं, ने महत्वपूर्ण पहल की है. मिडिल ग्रेड्स यानी कक्षा छह से लेकर आठ के बीच CBSE ने 33 विषयों जैसे कि कोडिंग, डेटा साइंस, डिज़ाइन थिंकिंग और मास मीडिया पर 12-15 घंटे के स्किल मॉड्यूल की शुरुआत की है. माध्यमिक और उच्च माध्यमिक कक्षाओं (IX-XII) में छठे वैकल्पिक (इलेक्टिव) विषय के रूप में 42 विषयों की सूची में से किसी एक कौशल वाले विषय को चुना जा सकता है. इन विषयों को भविष्य में करियर लाभ और छात्रों को रोज़गार के लिए तैयार करने के उद्देश्य से विशिष्ट राष्ट्रीय कौशल योग्यता रूपरेखा (NSQF) के अनुरूप तैयार किया गया है. 10 जनवरी 2025 के एक नीतिगत अपडेट के अनुसार अगर छात्र किसी वैकल्पिक विषय में फेल होते हैं तो शैक्षिक विषय के अंक को कौशल विषय के मार्क्स से बदल सकते हैं. इससे छात्रों को अपनी शैक्षिक यात्रा में अधिक लचीलापन मिलता है.

स्कूलों में कौशल शिक्षा को जोड़ने के CBSE के दृष्टिकोण में तीन पहलू उभर कर सामने आते हैं. पहला, ये अत्याधुनिक तकनीकों जैसे कि 3D (थ्री-डाइमेंशनल) प्रिंटिंग, ड्रोन टेक्नोलॉजी, AI के साथ-साथ पारंपरिक विषयों जैसे कि कश्मीरी कढ़ाई, पॉटरी (मिट्टी के बर्तन बनाना) और हर्बल विरासत पर कोर्स की पेशकश करता है. दूसरा, ये आस-पास के संदर्भ में काम-काज की संभावना के हिसाब से स्कूलों को एक लचीला पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए प्रोत्साहित करके छात्रों के कौशल विकास की मांगों को स्थानीय उद्योगों की ज़रूरतों के साथ संतुलित करने का प्रयास करता है. तीसरा, उद्योग जगत की हस्तियों के साथ मिलकर CBSE इन विषयों को प्रभावी ढंग से लागू करने के उद्देश्य से  स्कूलों के लिए पाठ्यक्रम का डिज़ाइन, पढ़ाई का संसाधन और मार्गदर्शन (हैंडहोल्डिंग) एवं परामर्श (मेंटॉरशिप) कार्यक्रम सक्रिय रूप से मुहैया कराता है.

अगस्त 2024 में CBSE ने ख़ुद से जुड़े स्कूलों को ज़रूरी औज़ार और तकनीक के साथ कंपोज़िट स्किल लैब (समग्र कौशल प्रयोगशाला) स्थापित करने का निर्देश दिया. तीन साल के भीतर स्थापित होने वाली इन प्रयोगशालओं का उद्देश्य छात्रों को लगातार व्यावहारिक अनुभव और उद्योग से जुड़ी ट्रेनिंग प्रदान करना है.

दूसरे बोर्ड जैसे कि काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्ज़ामिनेशन (CISCE) भी नए युग के विषयों की शुरुआत करके और उद्योगों के उभरते रुझानों के अनुसार पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) दिल्ली जैसे संस्थानों से साझेदारी करके कौशल शिक्षा को बढ़ावा दे रहे हैं.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान इस तरह के मिले-जुले प्रयासों ने भविष्य की बदलती मांगों को पूरा करने के लिए भारत की तैयारी को बेहतर बनाया है. इस तरह QS वर्ल्ड फ्यूचर स्किल इंडेक्स में भारत दुनिया में 25वें पायदान पर आ गया है जबकि “फ्यूचर ऑफ वर्क” सूचकांक में भारत उल्लेखनीय रूप से दूसरे स्थान पर है.

हर साल 97 लाख संभावित कामगारों को श्रम बल (लेबर फोर्स) में जोड़ने वाले भारत को शुरुआती स्तर पर कामगारों को हुनरमंद बनाने की पहल से बहुत अधिक सामाजिक-आर्थिक लाभ हासिल होगा. एक शुरुआती लाभ पढ़ाई के दौरान सीख और उसके व्यावहारिक, वास्तविक दुनिया में प्रयोग के बीच अंतर को पाटना है जिससे भविष्य के कामगार अधिक तैयार और रोज़गार के योग्य बन सकें. बढ़ईगीरी (कारपेंटरी), खेती, मार्केटिंग और सेल्स जैसे कौशल के विषय छात्रों को कक्षा में मिली जानकारी को ठोस तरीके से व्यवहार में लाने की अनुमति देते हैं. इस तरह एक समग्र और आकर्षक सीखने का अनुभव मिलता है.

एक शुरुआती लाभ पढ़ाई के दौरान सीख और उसके व्यावहारिक, वास्तविक दुनिया में प्रयोग के बीच अंतर को पाटना है जिससे भविष्य के कामगार अधिक तैयार और रोज़गार के योग्य बन सकें.

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT 2017) के द्वारा कराए गए एक प्रभाव अध्ययन (इंपैक्ट स्टडी) में पता चला कि रोज़गार के लायक हुनर हासिल करने के अलावा कौशल शिक्षा ने छात्रों को रोज़गार में बने रहने, पढ़ाई-लिखाई में दिलचस्पी, परीक्षण के परिणामों और आत्मविश्वास के स्तर को बेहतर बनाने में मदद की. अलग-अलग करियर के रास्तों की तरफ शुरुआती जानकारी से छात्रों को अपनी दिलचस्पी और प्रतिभा का पता लगाने में मदद मिलती है. इससे उन्हें उद्योगों की आवश्यकताओं के साथ अपने हुनर को जोड़ने का अवसर मिलता है.

वर्ल्ड फ्यूचर स्किल इंडेक्स से पता चलता है कि भारत छात्रों को AI, ग्रीन (हरित) और डिजिटल स्किल में तैयार करने में पिछड़ रहा है. भारत में शुरुआती कौशल शिक्षा के स्तर में सुधार होने के साथ ही इस कमी का जल्द ही समाधान हो सकता है. उदाहरण के लिए, वर्तमान शैक्षणिक सत्र (2024-25) में CBSE से जुड़े 4,538 स्कूलों के 8,00,000 से ज़्यादा छात्रों ने माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर AI कोर्स की पढ़ाई करने को चुना है जो भविष्य के हिसाब से तैयार हुनर के लिए मांग में बढ़ोतरी को दिखाता है.

तकनीकी क्षमताओं के अलावा कौशल शिक्षा संचार, रचनात्मकता, तालमेल और समस्याओं को सुलझाने जैसे जीवन से जुड़े ज़रूरी हुनर को भी बढ़ावा देती है. ये विकास की सोच को आगे ले जाती है, साथ ही अनुकूलनशीलता, सामर्थ्य और सामाजिक उत्तरदायित्व जैसे मूल्यों को बढ़ावा देती है जो बदलते पारंपरिक नौकरी के बाज़ार और नए उद्योगों के उभरने के साथ तेज़ी से महत्वपूर्ण बनते जा रहे हैं. उदाहरण के तौर पर, कई छात्र पारंपरिक शैक्षणिक विषयों को भविष्य में अपने रोज़गार के लिए महत्वपूर्ण नहीं मान सकते हैं लेकिन वो ऑनलाइन आवेदन जमा करने, प्रोफेशनल ई-मेल लिखने, बुनियादी हिसाब-किताब और ई-बिल तैयार करने जैसे रोज़गार के लिए आवश्यक हुनर सीखने की इच्छा रख सकते हैं.

बाज़ार के हिसाब से तैयार कामगार घरेलू रोज़गार की ज़रूरतों को पूरा करने के साथ-साथ दुनिया में हुनरमंद श्रमिकों की कमी, विशेष रूप से बुजुर्ग होती आबादी से जूझ रहे विकसित देशों में, दोनों का बेहतर ढंग से समाधान करने के लिए भारत को तैयार करेंगे. ग्लोबल नॉर्थ (विकसित देश) तेज़ी से हुनरमंद पेशेवरों की सप्लाई के लिए भारत जैसे आबादी के मामले में युवा देशों पर निर्भर होता जा रहा है. अगर भारत अपने कौशल पाठ्यक्रम में वैश्विक मानकों को जोड़ता है और अपनी कौशल शिक्षा प्रणाली को अंतर्राष्ट्रीय श्रम बाज़ार की ज़रूरतों के अनुसार रणनीतिक रूप से बनाता है तो वो उद्योग 4.0 के युग में वैश्विक वर्कफोर्स के एक प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में अपनी भूमिका को मज़बूत कर सकता है.

समर्थ बनाने वाली नीतिगत स्थितियों के बावजूद भारत को कौशल शिक्षा के मामले में कम-से-कम तीन व्यापक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है. सबसे पहले भारत में बुनियादी ढांचा और संसाधनों की कमी है. शिक्षा के लिए एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली (UDISE+) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार देश भर में केवल 57.2 प्रतिशत स्कूलों में काम करने वाले कंप्यूटर हैं, 53.9 प्रतिशत स्कूलों में ही इंटरनेट कनेक्टिविटी है, 55.9 प्रतिशत माध्यमिक स्कूलों में एकीकृत विज्ञान प्रयोगशाला की सुविधा है और मात्र 17.5 प्रतिशत स्कूलों में कला और शिल्प की सुविधाएं हैं. ये कमियां कौशल शिक्षा को छात्रों तक पहुंचाने में बाधा बन सकती हैं.

दूसरा, ज़्यादातर स्कूलों में कौशल का पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए शिक्षक पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं हैं. CBSE के द्वारा क्षमता निर्माण के कार्यक्रमों और संसाधन विकास के बावजूद स्कूल अपने पाठ्यक्रम में रोबोटिक्स या AI जैसे नए युग के कोर्स को जोड़ने में जूझ रहे हैं. उदाहरणों से पता चलता है कि छात्रों तक ये कोर्स पहुंचाने के लिए स्कूलों ने निजी वेंडर से तालमेल की तरफ रुख़ किया है. लेकिन ये वंचित क्षेत्रों के छात्रों के लिए सामर्थ्य और पहुंच का सवाल खड़ा करता है.

ज़्यादातर स्कूलों में कौशल का पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए शिक्षक पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं हैं. CBSE के द्वारा क्षमता निर्माण के कार्यक्रमों और संसाधन विकास के बावजूद स्कूल अपने पाठ्यक्रम में रोबोटिक्स या AI जैसे नए युग के कोर्स को जोड़ने में जूझ रहे हैं.

इसके अलावा तीसरी बाधा भारत की सख्त स्कूल प्रणाली है जो शैक्षणिक विषयों पर बहुत ज़्यादा ध्यान देती है. हो सकता है कि अभिभावक और शिक्षक कौशल शिक्षा के महत्व को पूरी तरह से नहीं समझ पाएं. इसके अलावा ये भी हो सकता है कि स्कूल इस तरह की पहल के लिए पर्याप्त समय नहीं दें क्योंकि वो माध्यमिक कक्षाओं में बोर्ड परीक्षा के प्रतिस्पर्धी दबाव के आगे झुकने के लिए तैयार नहीं हैं. पारंपरिक रास्तों के विपरीत कौशल शिक्षा को अक्सर उन छात्रों के लिए बाद के एक विकल्प के रूप में देखा जाता है जो मुख्यधारा की पढ़ाई-लिखाई में जूझते रहते हैं.

आगे का रास्ता
भारत के स्कूलों में कौशल की शिक्षा लेने वाले सिर्फ 4 प्रतिशत छात्र हैं जबकि पश्चिमी देशों के साथ-साथ दूसरे एशियाई देशों में ये अनुपात बहुत ज़्यादा है (रेखाचित्र देखें).

कौशल शिक्षा की इस स्पष्ट आवश्यकता और NEP के द्वारा निर्धारित मानदंडों को देखते हुए कई सरकारी और बहुपक्षीय एजेंसियों को भारत में कौशल शिक्षा के प्रभावी एकीकरण के उद्देश्य से सिफारिश पेश करने के लिए प्रेरित किया गया है. इनमें बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने और कौशल केंद्रों के रूप में विशाल, बुनियादी ढांचे के मामले में सक्षम स्कूलों की स्थापना करके कौशल शिक्षा की पेशकश का विस्तार करने की ज़रूरत शामिल है. बाद में ये अपने आस-पास के छोटे स्कूलों के साथ हब एंड स्पोक मॉडल (एक मुख्य केंद्र और उससे जुड़े दूसरे संगठन) का पालन करते हुए जुड़ सकते हैं और सभी स्कूलों तक कौशल शिक्षा का विस्तार कर सकते हैं.

इसके अलावा पाठ्यक्रम तैयार करने के उद्देश्य से उपकरण, संसाधन और तकनीकी मार्गदर्शन मुहैया कराने में मदद के लिए निजी-सार्वजनिक साझेदारी (PPP) पर भी विचार किया गया है. तेज़ी से पहुंच और गुणवत्ता के भरोसे के लिए अलग-अलग हितधारकों यानी शैक्षणिक और सरकारी संस्थानों, उद्योग, सिविल सोसायटी समूहों, CSR (कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) एवं बहुपक्षीय संस्थानों के बीच समन्वित कार्रवाई की भी सिफारिश की गई है.

इस परिदृश्य में एक संतुलित दृष्टिकोण बरकरार रखने के लिए सतर्कता बरतना महत्वपूर्ण है. सबसे पहले, कौशल शिक्षा कार्यक्रम का विस्तार करने और नीतिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने के अभियान में कभी-कभी क्वालिटी से जुड़े मानकों की अनदेखी हो सकती है. शिक्षकों की अपर्याप्त तैयारी, ज़रूरत से कम निगरानी और कमज़ोर मान्यता प्रणाली कार्यक्रम को प्रभावहीन कर सकती है जिसका नतीजा रोज़गार के लिए छात्रों के तैयार नहीं होने और कौशल एवं उद्योग की मांग के बीच अंतर बरकरार रहने के रूप में निकल सकता है.

एक और मुश्किल पाठ्यक्रम को गतिशील बनाए रखना और उसे उद्योग की बदलती आवश्यकता के अनुसार लगातार ढालना है. तेज़ी से बदलते दुनिया के श्रम बाज़ार और तकनीकी प्रगति के कारण ये ज़रूरी हो गया है कि कौशल शिक्षा को प्रासंगिक बने रहने के लिए एक गतिशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और उद्योग के हितधारकों एवं श्रम बाज़ार के विश्लेषण से मिले रियल-टाइम फीडबैक को शामिल करना चाहिए. इसके तहत पाठ्यक्रम में लगातार अपडेट के साथ लचीली कोर्स संरचना और शैक्षिक संस्थानों एवं उद्योग जगत की हस्तियों के बीच मज़बूत साझेदारी शामिल है. इस तरह के उपाय सुनिश्चित करते हैं कि छात्र नौकरी के बाज़ार की बदलती मांगों को पूरा करने के लिए ज़रूरी योग्यता रखते हैं.

एक महत्वपूर्ण ख़तरा गुणवत्तापूर्ण कौशल शिक्षा तक असमान पहुंच है जहां वंचित छात्र को बुनियादी ढांचे की कमी, डिजिटल बंटवारे और ख़राब बुनियादी साक्षरता एवं अंकगणित (FLN) से जुड़े परिणामों का सामना करना पड़ता है.

अंत में, एक महत्वपूर्ण ख़तरा गुणवत्तापूर्ण कौशल शिक्षा तक असमान पहुंच है जहां वंचित छात्र को बुनियादी ढांचे की कमी, डिजिटल बंटवारे और ख़राब बुनियादी साक्षरता एवं अंकगणित (FLN) से जुड़े परिणामों का सामना करना पड़ता है. इसलिए मोबाइल ट्रेनिंग यूनिट, स्कॉलरशिप या स्टाइपेंड और समुदाय आधारित कार्यक्रमों जैसे लक्षित हस्तक्षेप के बिना कौशल शिक्षा स्कूल की पढ़ाई-लिखाई में मौजूदा असमानताओं को दूर करने की जगह उन्हें और गहरा कर सकती है.

________________________________

अर्पण तुलस्यान ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में सीनियर फेलो हैं.


(साभार- https://www.orfonline.org/hindi/e से )

डॉ. मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’ की समग्र रचना

डॉ. सरस जी: जीवन परिचय और योगदान

जन्म:
शैक्षिक प्रमाणपत्र के आधार पर डॉ. सरस जी का जन्म 10 अप्रैल 1942 ई. (सन् 1999 विक्रमी) को हुआ। वे उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के बस्ती सदर तहसील के बहादुर ब्लॉक के खड़ौवा खुर्द गांव के निवासी थे। उनके पूर्वज नगर क्षेत्र में गौतम क्षत्रियों के पुरोहित के रूप में भारद्वाज गोत्रीय थे। नगर के राजा उदय प्रताप सिंह के समकालीन, उनके पूर्वज लक्ष्मण दत्त एक फौजी अफसर थे।

पारिवारिक पृष्ठभूमि:
उनके पिता, पं. केदारनाथ उपाध्याय का जन्म ग्राम सीतारामपुर, पत्रालय नगर बाजार, जिला बस्ती में हुआ था। उनकी मां ने कठिनाइयों के बावजूद डॉ. सरस जी की शिक्षा पूरी कराई।

शिक्षा यात्रा:
डॉ. सरस जी की शिक्षा 1947 में नगर के प्राइमरी विद्यालय से शुरू हुई। उन्होंने 1955 में कक्षा 5 पास करने के बाद खैर इंटर कॉलेज, बस्ती में प्रवेश लिया। 12 अक्टूबर 1957 को उनके पिता का असमय निधन हो गया। उस समय वे 16 वर्ष के थे और कक्षा 11 के छात्र थे। घर की सारी जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गई। इसके बावजूद उनकी मां ने बहुत संघर्ष करके उनकी शिक्षा पूरी करवाई। उन्होंने 1958 में श्री गोविंद राम सक्सेरिया इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट, 1962 में किसान डिग्री कॉलेज बस्ती से बी.ए., और 1963 में साकेत डिग्री कॉलेज फैजाबाद से बी.एड. की डिग्री प्राप्त की।

अध्यक्षता और शिक्षा क्षेत्र में योगदान:
डा. सरस जी ने हिन्दी, संस्कृत, मध्यकालीन इतिहास, प्राचीन इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विषय में एम.ए. किया था। इसके बाद उन्हें साहित्यरत्न (हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग) और साहित्याचार्य (सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी) की उपाधियाँ प्राप्त हुईं।

उनकी पहली नियुक्ति 1 जुलाई 1963 को किसान इंटर कॉलेज, मरहा, कटया बस्ती में सहायक अध्यापक के रूप में हुई। वे 1965 से नगर बाजार विद्यालय के संस्थापक प्रधान अध्यापक बने। 1965 से 2006 तक जनता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नगर बाजार बस्ती में प्रधानाचार्य रहे। उन्हें 5 सितंबर 2002 को राष्ट्रपति द्वारा शिक्षक सम्मान से नवाजा गया था।

सेवानिवृत्ति और जीवन के अंतिम दिन:
सेवानिवृत्ति के बाद, डॉ. सरस जी ने अयोध्या के नए घाट स्थित परिक्रमा मार्ग पर केदार आश्रम बनवाकर वहां जीवन बिताया। वे भगवत नाम जाप और चर्चा में संलग्न रहे। उनका निधन 30 मार्च 2012 को लखनऊ के बलरामपुर जिला चिकित्सालय में हुआ।

साहित्यिक योगदान:
डॉ. सरस जी ने बाल साहित्य कला विकास संस्थान की स्थापना की और अखिल भारतीय बाल साहित्यकार सम्मेलन का आयोजन किया। उन्होंने ‘‘बालसेतु’’ नामक त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन भी किया। उनकी लगभग 4 दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें काव्य, नाटक, कथा, उपन्यास, और यात्रा वृत्तांत शामिल हैं। उनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियों में शामिल हैं:

  1. गूंज
  2. नैसर्गिकी
  3. विजयश्री
  4. मधुरिमा
  5. बलिदान खण्ड काव्य
  6. बासन्ती
  7. वृत्तान्त
  8. अंतर्ध्वनि
  9. संकुल
  10. सौरभ

अप्रकाशित कृतियाँ:

  1. जयभरतखंड काव्य
  2. चन्द्रगुप्त प्रवन्ध काव्य
  3. क्षमा प्रतिशोध
  4. नगर से नागपुर
  5. बस्ती जनपद के साहित्यकार भाग 3
  6. विषपान
  7. छन्द बावनी आदि

कुछ प्रमुख रचनाओं का संक्षिप्त परिचय:

  1. गूंज (1972): इस काव्यसंग्रह में 82 पृष्ठों पर ग्यारह कविताएँ हैं, जिनमें प्रमुख कविताएँ ‘भारती स्तवन’, ‘नववर्ष’, ‘नव ज्योति जगाओ’, ‘प्रयाणगीत’, ‘वृक्षों के प्रति’ आदि शामिल हैं।
  2. नैसर्गिकी (1972): इस पुस्तक में ऋतुओं पर आधारित 12 कविताएँ हैं, जैसे ‘वसंत’, ‘ग्रीष्म’, ‘पावस’, ‘शरद’, ‘हेमंत’, ‘शिशिर’ आदि।
  3. विजयश्री (1972): यह एक लघुनाट्य है जिसमें कविताएँ भी शामिल हैं।
  4. मधुरिमा (1972): यह गीत और कविताओं का संग्रह है।
  5. बलिदान (1973): यह एक ऐतिहासिक खण्ड काव्य है, जिसमें सात सर्गों और 81 पृष्ठों में 400 से अधिक छन्द हैं।

साहित्यिक योगदान और यात्रा:
डॉ. सरस जी ने भारतीय साहित्य की विविधता को अनुभव करने के लिए भारत के विभिन्न हिस्सों में यात्रा की। उन्होंने नागपुर में हुए प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन में बस्ती जनपद का प्रतिनिधित्व किया था। इसके बाद वे भारत के अनेक स्थानों जैसे कामरूप, गोहाटी, शिलांग, जयपुर, कोलकाता, हरिद्वार, ऋषिकेश, काठमांडू, रामेश्वरम, कन्याकुमारी, गोवा, मुम्बई, और दिल्ली आदि का भ्रमण कर चुके थे। इन यात्राओं का विवरण उन्होंने अपनी पुस्तक “नगर से नागपुर” में प्रकाशित किया।

बाल साहित्य और अन्य योगदान:
उन्होंने बाल साहित्य के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किए। ‘बाल त्रिशूल’, ‘बालसेतु’, ‘विवेकानंद बाल खण्डकाव्य’, ‘बस्ती जनपद के साहित्यकार भाग 1, 2, 3’ जैसी कृतियाँ उनकी प्रमुख बाल साहित्य से जुड़ी रचनाएँ हैं।

उपसंहार:
डा. सरस जी शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में एक महान व्यक्तित्व थे। उनकी रचनाएँ और योगदान शिक्षा, साहित्य, संस्कृति और समाज के क्षेत्र में हमेशा याद रखे जाएंगे।

ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ सम्बंधी निर्णयों से कैसे निपटे भारत

ट्रम्प प्रशासन अमेरिका में विभिन्न उत्पादों के हो रहे आयात पर टैरिफ की दरों को लगातार बढ़ाते जाने की घोषणा कर रहा है क्योंकि ट्रम्प प्रशासन के अनुसार इन देशों द्वारा अमेरिका से किए जा रहे विभिन्न उत्पादों के आयात पर ये देश अधिक मात्रा में टैरिफ लगाते हैं। चीन, कनाडा एवं मेक्सिको से अमेरिका में होने वाले विभिन्न उत्पादों के आयात पर तो टैरिफ को बढ़ा भी दिया गया है। इसी प्रकार भारत के मामले में भी ट्रम्प प्रशासन का मानना है कि भारत, अमेरिका से आयातित कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाता है अतः अमेरिका भी भारत से आयात किए जा रहे कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत का टैरिफ लगाएगा। इस संदर्भ में हालांकि केवल भारत का नाम नहीं लिया गया है बल्कि “टिट फोर टेट” एवं “रेसिप्रोकल” आधार पर कर लगाने की बात की जा रही है और यह समस्त देशों से अमेरिका में हो रहे आयात पर लागू किया जा सकता है एवं इसके लागू होने की दिनांक भी 2 अप्रेल 2025 तय कर दी गई है। इस प्रकार की नित नई घोषणाओं का असर अमेरिका सहित विभिन्न देशों के पूंजी (शेयर) बाजार पर स्पष्टतः दिखाई दे रहा है एवं शेयर बाजारों में डर का माहौल बन गया है।

भारत ने वर्ष 2024 में अमेरिका को लगभग 74,000 करोड़ रुपए की दवाईयों का निर्यात किया है। 62,000 करोड़ रुपए के टेलिकॉम उपकरणों का निर्यात क्या है, 48,000 करोड़ रुपए के पर्ल एवं प्रेशस स्टोन का निर्यात किया है, 37,000 करोड़ रुपए के पेट्रोलीयम उत्पादों का निर्यात किया है, 30,000 करोड़ रुपए के स्वर्ण एवं प्रेशस मेटल का निर्यात किया है, 26,000 करोड़ रुपए की कपास का निर्यात किया है, 25,000 करोड़ रुपए के इस्पात एवं अल्यूमिनियम उत्पादों का निर्यात किया है, 23,000 करोड़ रुपए सूती कपड़े का निर्यात का किया है, 23,000 करोड़ रुपए की इलेक्ट्रिकल मशीनरी का निर्यात किया है एवं 22,000 करोड़ रुपए के समुद्रीय उत्पादों का निर्यात किया है। इस प्रकार, विदेशी व्यापार के मामले में अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा साझीदार है।

अमेरिका अपने देश में विभिन्न वस्तुओं के आयात पर टैरिफ लगा रहा है क्योंकि अमेरिका को ट्रम्प प्रशासन एक बार पुनः वैभवशाली बनाना चाहते हैं परंतु इसका अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर ही विपरीत प्रभाव होता हुआ दिखाई दे रहा है। अमेरिकी बैंकों के बीच किए गए एक सर्वे में यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि यदि अमेरिका में विभिन्न उत्पादों के आयात पर टैरिफ इसी प्रकार बढ़ाते जाते रहे तो अमेरिका में आर्थिक मंदी की सम्भावना बढ़कर 40 प्रतिशत के ऊपर पहुंच सकती है, जो हाल ही में जे पी मोर्गन द्वारा 31 प्रतिशत एवं गोल्डमैन सैचस 24 प्रतिशत बताई गई थी। इसके साथ ही, ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ सम्बंधी निर्णयों की घोषणा में भी एकरूपता नहीं है। कभी किसी देश पर टैरिफ बढ़ाने के घोषणा की जा रही है तो कभी इसे वापिस ले लिया जा रहा है, तो कभी इसके लागू किए जाने के समय में परिवर्तन किया जा रहा है, तो कभी इसे लागू करने की अवधि बढ़ा दी जाती है। कुल मिलाकर, अमेरिकी पूंजी बाजार में सधे हुए निर्णय होते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं इससे पूंजी बाजार में निवेश करने वाले निवेशकों का आत्मविश्वास टूट रहा है। और, अंततः इस सबका असर भारत सहित अन्य देशों के पूंजी (शेयर) बाजार पर पड़ता हुआ भी दिखाई दे रहा है।

हालांकि, ट्रम्प प्रशासन द्वारा टैरिफ को बढ़ाए जाने सम्बंधी लिए जा रहे निर्णयों का भारत के लिए स्वर्णिम अवसर भी बन सकता है। क्योंकि, भारतीय जब भी दबाव में आते हैं तब तब वे अपने लिए बेहतर उपलब्धियां हासिल कर लेते हैं। इतिहास इसका गवाह है, कोविड महामारी के खंडकाल में भी भारत ने दबाव में कई उपलब्धयां हासिल की थीं। भारत ने कोविड के खंडकाल में 100 से अधिक देशों को कोविड बीमारी से सम्बंधित दवाईयां एवं टीके निर्यात करने में सफलता हासिल की थी।

विदेशी व्यापार के मामले में चीन, कनाडा एवं मेक्सिको अमेरिका के बहुत महत्वपूर्ण भागीदार हैं। वर्ष 2021-22 के आंकड़ों के अनुसार, उक्त तीनों देश लगभग 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का व्यापार प्रतिवर्ष अमेरिका के साथ करते हैं। इसके बावजूद अमेरिका ने उक्त तीनों के साथ व्यापार युद्ध प्रारम्भ कर दिया है। भारत के साथ अमेरिका का केवल 11,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ही व्यापार था। अब ट्रम्प प्रशासन की अन्य देशों से यह अपेक्षा है कि वे अमेरिकी उत्पादों के आयात पर टैरिफ कम करे अथवा अमेरिका भी इन देशों से हो रहे विभिन्न उत्पादों पर उसी दर से टैरिफ वसूल करेगा, जिस दर पर ये देश अमेरिका से आयातित उत्पादों पर वसूलते हैं। यह सही है कि भारत अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर अधिक टैरिफ लगाता है क्योंकि भारत अपने किसानों और व्यापारियों को बचाना चाहता है। भारत में कृषि क्षेत्र के उत्पादों पर 25 से 100 प्रतिशत तक आयात कर लगाया जाता है जबकि कृषि क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य उत्पादों पर कर की मात्रा बहुत कम हैं। भारत ने विनिर्माण एवं अन्य क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ा ली है परंतु कृषि क्षेत्र में अभी भी अपनी उत्पादकता बढ़ाना है। हाल ही के समय में भारत ने कई उत्पादों के आयात पर टैरिफ की दर घटाई भी है।

भारत के साथ दूसरी समस्या यह भी है कि यदि भारत आयातित उत्पादों पर टैरिफ कम करता है तो भारत में इन उत्पादों के आयात बढ़ेंगे और भारत को अधिक अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता पड़ेगी इससे भारतीय रुपये का और अधिक अवमूल्यन होगा तथा भारत में मुद्रा स्फीति का दबाव बढ़ेगा। विदेशी निवेश भी कम होने लगेगा और अंततः भारत में बेरोजगारी बढ़ेगी। भारत में सप्लाई चैन पर दबाव भी बढ़ेगा। इन समस्त समस्याओं का हल है कि भारत अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते करे। परंतु, अन्य देश चाहते हैं कि द्विपक्षीय समझौतों में कृषि क्षेत्र को भी शामिल किया जाय, इसका रास्ता आपसी चर्चा में निकाला जा सकता है। अमेरिका एवं ब्रिटेन के साथ भी द्विपक्षीय व्यापार समझौते सम्पन्न करने की चर्चा तेज गति से चल रही है। हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान यह घोषणा की गई थी कि भारत और अमेरिका के बीच विदेशी व्यापार को 50,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष के स्तर पर लाए जाने के प्रयास किए जाएंगे। इस सम्बंध में भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर तेजी से काम चल रहा है।

दूसरे, अब भारत को उद्योग एवं कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ानी होगी। हर क्षेत्र में लागत कम करनी होगी ताकि भारत में उत्पादित वस्तुएं विश्व के अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा में खाड़ी हो सकें। भारत में रिश्वतखोरी की लागत को भी समाप्त करना होगा। भारत में निचले स्तर पर घूसखोरी की लागत बहुत अधिक है। भूमि, पूंजी, श्रम, संगठन एवं तकनीकि की लागत कम करनी होगी। कुल मिलाकर व्यवहार की लागत को भी कम करना होगा। भारतीय उद्योगों को अन्य देशों के उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धी बनाना ही इस समस्या का हल है ताकि भारतीय उद्योगों द्वारा निर्मित उत्पाद अन्य देशों के साथ विशेष रूप से गुणवत्ता एवं लागत के मामले में प्रतिस्पर्धा कर सकें। निजी क्षेत्र को लगातार प्रोत्साहन देना होगा ताकि निजी क्षेत्र का निवेश उद्योग के क्षेत्र में बढ़ सके। आज भारत में पूंजीगत खर्चे केवल केंद्र सरकार द्वारा ही बहुत अधिक मात्रा में किए जा रहे हैं। आज देश में हजारों टाटा, बिरला, अडानी एवं अम्बानी चाहिए। केवल कुछ भारतीय बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से अब काम चलने वाला नहीं हैं। भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था बनाने का समय अब आ गया है।

तीसरे, मेक इन इंडिया ट्रम्प के टैरिफ युद्ध का सही जवाब है। आज भारत को सही अर्थों में “आत्मनिर्भर भारत” बनाए जाने की सबसे अधिक आवश्यकता है। भारत के लिए केवल अमेरिका ही विदेशी व्यापार के मामले में सब कुछ नहीं होना चाहिए, भारत को अपने लिए नित नए बाजारों की तलाश भी करनी होगी। एक ही देश पर अत्यधिक निर्भरता उचित नहीं है। स्वदेशी उद्योगों को भी बढ़ावा देना ही होगा।

प्रहलाद सबनानी
सेवानिवृत्त उपमहाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

मारवाड़ी सोसायटी भुवनेश्वर का होली मिलन

भुवनेश्वर। स्थानीय जनता मैदान,जयदेवविहार में मारवाड़ी सोसायटी भुवनेश्वर ने अलग-अलग दो सत्रों में क्रमशः सुबह में होली खेली तथा शाम को होलीबंधु मिलन आयोजित किया जो हरप्रकार से  यादगार रहा।आयोजन के आकर्षण का मुख्य केन्द्र मशहूर गायक आदित्य नारायण की सुमधुर गायकी रही। वहीं सम्मानित अतिथि के रुप में बीजेपी,ओड़िशा प्रदेश के प्रांतीय कोषाध्यक्ष सुदर्शन गोयल तथा राज्यसभा सांसद सुजीत कुमार थे जिनका राजस्थानी परम्परानुसार स्वागत अध्यक्ष संजय लाठ,होली आयोजन कमेटी के चेयरमैन सुभाष अग्रवाल, संरक्षकः सुरेश अग्रवाल,संरक्षकः सुरेन्द्र कुमार डालमिया,संरक्षकः चेतन टेकरीवाल,उपाध्यक्ष पवन गुप्ता,प्रकाश बेताला आदि द्वारा किया गया।

आयोजन समिति की ओर से सुभाष अग्रवाल ने  सभी अतिथियों  का स्वागत  किया। हीं संजय लाठ ने कहा कि कि मौसम के बदलते मजाज के अनुसार मारवाड़ी सोसायटी ने भी अपना मिजाज बदला और प्रदेश में बीजेपी सरकार के गठन में अपना बहुमूल्य मत दिया। यह समाज हमेशा सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने हेतु संकल्पित है।
सम्मानित अतिथि सुदर्शन गोयल ने बताया कि वे भुवनेश्वर मारवाड़ी सोसायटी के सामाजिक,धार्मिक तथा राज्य सरकार के सभी कार्यों से परिचित हैं और आश्वस्त करते हैं कि समाज को आगे भी राज्य सरकार से पूरा सहयोग मिलता रहेगा। वहीं सांसद राज्यसभा सुजीत कुमार ने बताया कि यह मारवाड़ी समाज अपने निःस्वार्थ सेवाभाव के लिए जाना जाता है जिसका प्रत्यक्ष रुप मारवाड़ी सोसायटी भुवनेश्वर है। लगभग साढ़े दस बजे रात तक चलनेवाले बंधुमिलन में लगभग दस हजार लोगों ने गायक आदित्य नारायण का सुमधुर गायन सुना तथा प्रीतिभोज में राजस्थानी अल्पाहार तथा रात्रि प्रीति भोजन किया।सोसायटी के सचिव जितेन्द्र मोहन गुप्ता ने मारवाड़ी सोसायटी भुवनेश्वर के समाजहित तथा प्रदेश हित से संबंधित योगदानों की जानकारी दी। अंत में आभार प्रदर्शन किया संस्था के कोषाध्यक्ष सीए सुरेन्द्र अग्रवाल ने ।