Thursday, January 30, 2025
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लो भाई प्रधान मंत्री भी जवाव के लिए 6 महीने से इंतजार कर रहे हैं

नई दिल्ली ।

आम आदमी को भूल जाइए, कई बार इस देश के पीएम को ही कुछ सवालों के जवाब के लिए 6 महीने से ज्यादा का इंतजार करना पड़ता है । 11 अगस्त 2014 को पीएम नरेंद्र मोदी ने कानून और न्याय मंत्रालय से एक सवाल पूछा था, जिसका जवाब उन्हें अब तक नहीं मिला है। 

लोकसभा में पूछे गए पीएम के इस सवाल को 6 महीने और 13 दिन हो गए हैं और उन्हें अभी तक इसका उत्तर नहीं मिला है। लोकसभा की वेबसाइट के मुताबिक सवाल नंबर- 4604, सरकारी कागजात में परिजनों का नाम लिखने को लेकर था। यह सवाल छह हिस्सों में पूछा गया था। 

उस समय, रविशंकर प्रसाद के पास सूचना और संचार मंत्रालय के साथ ही कानून और न्याय मंत्रालय भी था। प्रसाद ने प्रोटोकॉल के तहत इसका जवाब दिया था, 'इस बारे में जानकारी एकत्रित की जा रही है और जल्द ही सदन के पटल पर रखी जाएगी।' इसके बाद से अब तक पीएम के सवाल का जवाब नहीं मिला है। 

संयोग से पीएम नरेंद्र मोदी के अलावा यही प्रश्न टीएमसी के सांसद सौमित्र खान ने भी पूछा था। 

पीएम मोदी का सवाल- 

1- क्या सरकारी कागजात में पूरा नाम लिखने के दौरान किसी के लिए उसके पिता के नाम का उल्लेख जरूरी है? 2- अगर हां तो, इसकी जानकारी और संबंधित कानून के प्रावधान बताए जाएं। 3- क्या सरकारी कागजात में कोई पिता के नाम की जगह मां के नाम का उल्लेख कर सकता/सकती है? 4- अगर हां तो, इसकी जानकारी और अगर ऐसा नहीं है तो कानूनी प्रावधान के साथ इसका कारण बताया जाए। 5- क्या सरकार मौजूदा कानून में ऐसा कोई प्रावधान/संशोधन करने जा रही है, जिसके तहत सरकारी कागजात में कोई नागरिक अपनी मर्जी से अपने मां या बाप का नाम दे सके? 6- अगर हां तो, इसकी जानकारी और इसके होने की संभावित समयसीमा की जानकारी। 

साभार-टाईम्स ऑफ इंडिया से 

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विहिप को मंजूर नहीं मंदिर फार्मूला

अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवादास्पद मामले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब ‘अपनों’ के ही निशाने पर आ खड़े हुए हैं। विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने पीएम को आयोध्‍या में राममंदिर निर्माण पर फैसले के लिए इस वर्ष मई माह तक की 'डेडलाइन' दे डाली है। संगठन ने साफ कह दिया है कि अगर मई तक यह मामला नहीं सुलझा, तो अयोध्या में रामलला के मंदिर निर्माण को लेकर देश भर में बड़ा आंदोलन किया जाएगा।
 
इसके साथ ही हिंदू संगठन ने कहा है कि सभी संत मई 2015 में पीएम के साथ मिलकर एक बैठक करेंगे और मांग करेंगे कि उक्त स्थान पर ही राम मंदिर का निर्माण करने को लेकर वे संसद में कानून प‍ारित करें।
 
वीएचपी के अयोध्या मामले के प्रवक्ता शरद शर्मा ने एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में कहा है कि वीएचपी इस मुद्दे को महत्वहीन नहीं मानता। हम 70 एकड़ की पूरी भूमि चाहते हैं, जिसे मुस्लिम समुदाय द्वारा वाद दायर कर विवादित बना दिया गया है।
 
शर्मा ने आगे कहा, भाजपा ने राष्ट्रीय विकास के एजेंडे के चलते मोदी सत्ता में आए। हम शुरुआत में सरकार को परेशान नहीं करना चाहते थे। यह वीएचपी नेताओं और महत्वपूर्ण संतों की बैठक में ही तय किया गया था कि देश को विकास के रास्ते पर ले जाने के लिए केंद्र को एक साल का वक्त दिया जाए, क्योंकि चुनावों में उन्होंने जनता से यह वादा किया था।
 
वीएचपी नेता ने आरोप लगाया कि 'कुछ लोग जो कोई भूमिका नहीं रखते, वह इस इस मामले में रूचि दिखा रहे हैं। हम बाबरी मस्जिद की ओर से सबसे पुराने वादी हाशिम अंसारी की उत्सुकता को समझते हैं। वह हताशा बाहर लाने के लिए तुच्छ मुद्दों को उठाते रहते हैं। अब वह अखाड़ा परिषद् के प्रमुख महंत ज्ञानदास की मदद लेकर समझौते की एक अनोखी योजना बना रहे हैं। अकसर समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव और उनके प्रतिनिधि हाशिम अंसारी से मिलते रहते हैं, लेकिन हम उनकी चालबाजियों की परवाह नहीं करते।'

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बैंक अधिकारी से गीतकार बन गए समीर

बैंक अधिकारी के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत करने के बाद बालीवुड में अपने गीतों से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध करने वाले गीतकार समीर लगभग चार दशक से सिनेप्रेमियों के दिलों पर राज कर रहे हैं। मशहूर शायर और गीतकार शीतला पांडेय उर्फ समीर का जन्म 24 फरवरी 1958 को बनारस में हुआ। उनके पिता अंजान फिल्म जगत के मशहूर गीतकार थे। बचपन से ही समीर का रूझान अपने पिता के पेशे की ओर था। वे भी फिल्म इंडस्ट्री में गीतकार बनना चाहते थे लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वे अलग क्षेत्र में अपना भविष्य बनाएं। समीर ने बनारस हिंदु विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढाई पूरी की। इसके बाद परिवार के जोर देने पर उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत बतौर बैंक ऑफिसर शुरू की। बैंक की नौकरी उनके स्वभाव के अनुकूल नहीं थी। कुछ दिनों के बाद उनका मन इस काम से उचट गया और उन्होंने नौकरी छोड दी। अस्सी के दशक में गीतकार बनने का सपना लिये समीर ने मुंबई की ओर रूख कर लिया। लगभग तीन वर्ष तक मुंबई में रहने के बाद वे गीतकार बनने के लिये संघर्ष करने लगे। आश्वासन तो सभी देते रहे लेकिन उन्हें काम करने का अवसर कोई नहीं देता था।
 
अथक परिश्रम करने के बाद 1983 में उन्हें बेखबर फिल्म के लिये गीत लिखने का मौका मिला। इस बीच समीर को इंसाफ कौन करेगा, जवाब हम देगें, दो कैदी, रखवाला,महासंग्राम,बीबी हो तो ऐसी,बाप नंबरी बेटा दस नंबरी जैसी कई बड़े बजट की फिल्मों में काम करने का अवसर मिला लेकिन इन फिल्मों की असफलता के कारण वे फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में नाकामयाब रहे। लगभग दस वर्ष तक मुंबई में संघर्ष करने के बाद 1990 में आमिर खान-माधुरी दीक्षित अभिनीत फिल्म दिल में अपने गीत मुझे नींद ना आये..की सफलता के बाद समीर गीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये।
 
1990 में ही उन्हें महेश भट्ट की फिल्म आशिकी में भी गीत लिखने का अवसर मिला। फिल्म आशिकी ने साँसों की जरूरत है जैसे.. मैं दुनिया भूला दूंगा..और नजर के सामने जिगर के पास. गीतों की सफलता के बाद समीर को कई अच्छी फिल्माें के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गये जिनमें बेटा, बोल राधा बोल, साथी और फूल और कांटे जैसी बडे बजट की फिल्में शामिल थीं। इन फिल्मों की सफलता के बाद उन्होंने सफलता की नयी बुलंदि को छुआ और एक से बढकर एक गीत लिखकर श्रोताओं को मंत्रमुंग्ध कर 1997 में अपने पिता अंजान की मौत और अपने मार्गदर्शक गुलशन कुमार की हत्या के बाद समीर को गहरा सदमा पहुंचा। उन्होंने कुछ समय तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया और वापस बनारस चले गए, लेकिन उनका मन वहां भी नहीं लगा और एक बार फिर नये जोश के साथ वह मुंबई आ गये और 1999 में प्रदर्शित फिल्म हसीना मान जायेगी से अपने सिने कैरियर की दूसरी पारी की शुरुआत कर दी।

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बजट में राहत बरसाएँगे रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभु

रेल बजट इस बार यात्रियों के लिए राहत की खबर ला सकता है। रेल मंत्री सुरेश प्रभु इस बार रेल बजट में यात्री किराए न बढ़ाने की घोषणा कर सकते हैं। गुरूवार 26 फरवरी को संसद में रेल बजट पेश किया जाना है।, प्रभु यात्री रेल किराया बढ़ाने की बजाए 28 फरवरी को पेश होने वाले आम बजट में निजी क्षेत्र के साथ जॉइंट वेंचर और विदेशों से आर्थिक मदद जैसी घोषणाओं पर निर्भर रह सकते हैं।
 
ऎसा माना जा रहा है कि रेल मंत्री ने यात्री किराए पर सोचने के लिए अच्छा खासा समय लिया है। उन्होंने सोमवार को रेल बजट को फाइनल टच दिया था। पहचान छुपाने की शर्त पर बजट तैयार करने की प्रक्रिया में शामिल एक अधिकारी ने बताया, "पैसेंजर ग्रोथ नकारात्मक होने और फ्रेट में भी उम्मीद से कम ग्रोथ होने के कारण इस बार रेल किराए में बढ़ोतरी नहीं की जाएगी, हालांकि तत्काल और प्रीमियम स्पेशल ट्रेन के किराए में कुछ छुट-पुट एडजस्टमेंट किए जा सकेत हैं।"
 
ऎसा भी माना जा रहा है कि रेलवे के भविष्य के लिए बेहद जरूरी रिसोर्सिस जुटाने के लिए प्रभु खुद रेल किराया बढ़ाने के हक में थे, लेकिन रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें यह कह कर मना लिया कि किराया बढ़ाने के बाद उनके इस कदम पर स्पष्टीकरण देना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि डीजल के दाम में भी गिरावट आई है और पिछले साल ही रेल किराए बढ़ाए गए हैं। गौरतलब है कि पिछले साल जून में यात्री रेल किराए 14.2 फीसदी और फ्रेट 6.5 प्रतिशत बढ़ाया गया था। 

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अंग्रेज चले गए कानून और गुलामी मानसिकता छोड़ गए

वरिष्ठ चिन्तक व विचारक राकेश कुमार आर्य ने अपने विभिन्न लेखों मे आजादी पूर्व अंग्रेजो के कुकृत्यों की चर्चा की है उन लेखों के अंश यहाँ प्रस्तुत है।
 
1857 की क्रांति के पश्चात अंग्रेजों ने भारत के लिए 1858 का भारत शासन अधिनियम लागू किया। इसके बाद 1861 में भारत परिषद् अधिनियम, 1892 में भारत परिषद् अधिनियम, 1909 में मार्लेमिंटो सुधार और भारतीय परिषद् अधिनियम, 1919 में भारत सरकार अधिनियम, और 1935 में पुनः भारत शासन अधिनियम, कुल छह अधिनियम लागू किये। दूसरे शब्दों में 1858 से 1935 तक के 77 वर्षों में लगभग हर साढ़े 12 वर्षों के अंतराल पर अंग्रेजों को भारत में नया अधिनियम लागू करना पड़ा।
 
इसके अतिरिक्त भारत में अपने शासन की नींव को मजबूत करने के लिए उन्हें इस देश में भारतीय दण्ड संहिता सहित कितने ही अन्य कानून भी लागू करने पड़े। ये वही अंग्रेज थे जिनके विशय में यहां कुछ लोग कहते नहीं अघाते कि उन्होंने ही हमें सभ्यता सिखाई और उनका दिमाग कानून का पुतला होता था। यदि ऐसा था तो उन्हें देश में लगभग हर साढ़े 12 वर्ष बाद नया संविधान क्यों लागू करना पड़ा? वस्तुतः अंग्रेज अपनी सुविधा के लिए देश में नया कानून लाते थे। उन्होंने इस देश की सुविधा के लिए तथा शासन को जनोन्मुखी बनाने के लिए कभी कोई कानून नहीं बनाया।
 
1860 की भारतीय दण्ड संहिता को ही आप लें, जिसे हम आज तक लागू किये हुए हैं, और हम इस संहिता को अंग्रेजों के उपकार के रूप में देखते हैं। परंतु कभी यह नहीं सोचा कि ये संहिता देश में लागू क्यों की गयी? 1857 की क्रांति में जिन असंख्य लोगों ने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए संघर्ष किया था, उन्हें भारत की तत्कालीन न्याय प्रणाली और न्यायाधीश देशभक्त मान रहे थे। इसलिए वो लोग तत्कालीन न्याय प्रणाली की सजा के नहीं, अपितु पुरस्कार के पात्र थे। तब अंग्रेजों ने अपना कानून, अपनी न्याय व्यवस्था और अपने न्यायाधीश बैठाकर इन देश भक्तों को फांसी तक पहुँचाने के लिए भारतीय दण्ड संहिता लागू की। अंग्रेजों ने कानून भारत पर शासन करने के लिये बनाये थे ना कि भारत के उद्धार के लिये। लेकिन उन अंग्रेजी कानूनों को हम आज भी लादे फिर रहे है।
 
जरा ध्यान करें 15 अगस्त 1947 की उस रात को, देश गोरे अंग्रेजों की साजिश के अनुसार तीन हिस्सों मे बँट गया था। यह बँटवारा हिन्दु और मुसलमान के नाम पर हुआ था। पष्चिमी तथा पूर्वी पाकिस्तान मुसलमानों के लिये और शेश भारत हिन्दू के लिये। लगभग ऐसा सोचना हर भारतीय का था। जनसंख्या स्थान्तरण दंगे का रूप लेता जा रहा था। पाकिस्तान से हिन्दु लगभग खदेड़ दिये गये थे। वहीं भारत से मुसलमानों के स्थानांतरण को गांधी बाबा ने रोक दिया था। नेहरू जी लाल किले पर झण्ड़ा फहराने में लगे थे। इस धमाचैकड़ी में पाकिस्तान मुसलमानों का खैर ख्वाह बनकर उभरा और भारत ‘सैक्युलर’ हो गया।
 
नेहरू जी और गांधी बाबा के कारण आजादी से पहले पूरे देश के चाहने के बावजूद वन्दे मातरम् को खण्ड़ित कर दिया गया, फिर ‘भगवा’ को ‘तिरंगा’ बना दिया गया। आजादी से पहले इन लोगों ने जिस तरह से हिन्दु को दोयम दर्जे का नागरिक बनाया था उससे ज्यादा बदतर हालत आजादी के बाद हिन्दू की हो गयी। जैसे यह देश हिन्दु का न होकर एक धर्मशाला जैसा हो गया। कोई भी आये, रहे और बर्बाद करके चला जाये। आज हिन्दू की बात करने वाला साम्प्रदायिक कहलाता है और मुसलमानो की बात करने वाला धर्मनिरपेक्ष। इसलिये जो आरक्षण जातियों के उत्थान के लिये निष्चित किया गया था आज उस आरक्षण के दायरे में मुसलमान भी आ रहा हैं यह हिन्दु अधिकारों पर कुठाराघात है ऐसा कोई नहीं मानता।
 
‘‘मुसलमान आतंकवादी नहीं है लेकिन हर आतंकवाद की घटना में मुसलमान पकड़ा जाता है’’ यह सर्वप्रचलित कथन था इससे छुटकारा पाने के लिये नेहरू-गांधी बाबा के अनुयायियों ने हिन्दुओं को भी साजिशन आतंकवादी बना दिया है। कुछ तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों ने तो इससे आगे बढ़कर आतंकवादियों की पैरवी भी करनी शुरू कर दी है। तो कुछ सरकारों ने उन्हे जेल से छुड़वाने के तंत्र पर भी काम करना शुरू कर दिया है। आजादी से पहले यह काम इसलिये हो रहा था कि मुसलमान आजादी की लड़ाई छोड़ कर अंग्रेजों के हाथ का खिलौना न बन जायें, जो वे बने रहे।
 
अब यह इसलिये हो रहा है कि कहीं हम चुनाव न हार जायें। इस सारी धमा चैकड़ी में नुकसान तो उस हिन्दु का हो रहा है जो आजादी की लड़ाई में ईमानदारी से इसलिये अपनी कुर्बानी दे रहा था कि चलो आजादी के बाद उसके साथ अच्छा सलूक होगा। लेकिन आजादी के बाद आज वह पुनः वहीं खड़ा है जहाँ वह 7वीं सदी में मोहम्मद बिन कासिम के साथ लड़ाई के मैदान मे खड़ा था। मित्रों कही यह धर्मनिरपेक्षता पुनः एक और पाकिस्तान को जन्म न दे दे। इतना ही नहीं हुआ अंगे्रजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति को भी हमारे नियंताओं ने वैसे ही अपना लिया। राज्यों का विभाजन भाषा के आधार पर किया और देश को जोड़ने के नाम पर अंग्रेजी को राज भाषा बना दिया जबकि कहने को हिन्दी राजभाषा है। उद्देष्य साफ-साफ गोरे अंग्रेजों के उत्तराधिकारी काले अंग्रेजों की सत्ता बरकरार रखना था। आज न चाहते हुये भी न्यायालय से लेकर आधुनिक षिक्षा तक में अंग्रेजी का प्रभुत्व है।
 
अंग्रेजी बोलने वाला आज समझदार माना जाता है और भारतीय भाषाओं में बात करने वाला गँवार। क्या इसे स्वतंत्रता कहेंगें जिसमें ‘स्व’ का अभिमान ही नहीं। 

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डॉ. विनय कुमार शर्मा को हिन्दी में शोधकार्य के लिए डीलिट्

हिन्दी के प्रचार प्रसार में निरन्तर रत एवं सम्प्रति एक अंतर्राष्ट्रीय शोध जर्नल के प्रधान संपादक डॉ. विनय कुमार शर्मा को गत दिनों लखनऊ विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में विश्वविद्यालय की सर्वोच्च उपाधि डी.लिट्. में उनके सर्वोत्कृष्ट शोध कार्य के लिए ‘‘स्वर्ण पदक’’ से सम्मानित किया गया। डॉ. शर्मा को उक्त सम्मान भारत सरकार के मा0 गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह एवं महामहिम राज्यपाल, उ0प्र0 श्री राम नाईक जी के द्वारा प्रदान किया गया।

डॉ. शर्मा के डी.लिट्. के शोध कार्य का विषय ‘‘हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य और पाश्चात्य हिन्दी सेवी संस्थाओं का योगदान’’ विषय पर था। आपने अपना शोध कार्य हिन्दी के प्रतिष्ठित विद्वान प्रोफेसर प्रताप नारायण टण्डन के निर्देशन में पूर्ण किया। विश्व मंच पर हिन्दी की स्थिति पर आपके द्वारा किये गये शोध कार्य से प्रभावित होकर लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 एस0बी0 निमसे ने आपके शोध कार्य की कुछ महत्वपूर्ण प्रस्तुतियों को विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में देश में हिन्दी की प्रख्यात कथाकार मैत्रेयी पुष्पा द्वारा विभिन्न पट्टिकाओं के साथ उनका अनावरण कराया।

राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी साहित्यिक रचना धर्मिता एवं हिन्दी पत्रकारिता को नये आयाम देने वाले डॉ0 विनय कुमार शर्मा को इससे पूर्व भी कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। डॉ0 शर्मा को वर्ष 2012 में हिन्दी के प्रचार प्रसार में उल्लेखनीय योगदान के लिए  उ0प्र0 के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव द्वारा हिन्दी साहित्य सम्मेलन में ‘हिन्दी प्रतिभा’ सम्मान प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्त तमिलनाडु हिन्दी साहित्य अकादमी, चेन्नई, भारतीय हिन्दी परिषद इलाहाबाद एवं अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य कलामंच द्वारा काठमाण्डू में भी आपको सम्मानित किया जा चुका है।

गौरतलब है कि डॉ. विनय कुमार शर्मा व्यक्तिशः नहीं बल्कि सपरिवार हिन्दी पत्रकारिता में सशक्त दखल रखते हैं। इनकी पत्नी डॉ0 नीलम शर्मा भी अग्रणी महिला रचनाकार हैं तथा सम्प्रति आप आकाशवाणी लखनऊ में सीनियर एनाउन्सर के पद पर कार्यरत हैं। आपने भी अपना शोध कार्य बीबीसी लंदन का हिन्दी के प्रसार में योगदान विषय पर पूर्ण किया है।

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घोटाले के साथ ही बैंक के कर्मचारी भी बढ़ते गए

स्विस बैंकों में भारतीयों के कथित रूप से जमा काले धन की जांच के घेरे में आए वैश्विक बैंक एचएसबीसी ने भारत में पिछले साल अपने कर्मचारियों की संख्या 1,000 बढ़ाकर 32,000 कर दी और इस लिहाज से यह ब्रिटेन के बाद दूसरे नंबर पर है। एचएसबीसी की ताजा सालाना रिपोर्ट के मुताबिक 2014 के अंत तक विश्व भर में बैंक के 2,66,000 पूर्णकालिक और अंशकालिक कर्मचारी थे।
 
बैंक ने कहा कि 2013 के अंत में कर्मचारियों की संख्या 2,63,000 और 2012 के अंत में 2,70,000 से थोड़ी कम थी। भारत एचएसबीसी केे कर्मचारियों की संख्या के लिहाज से ब्रिटेन के बाद दूसरे नंबर पर है। ब्रिटेन में 48,000 कर्मचारी हैं। उल्लेखनीय है कि 2013 के अंत तक कर्मचारियों की संख्या 31,000 थी। बैंक ने सालाना रिपोर्ट में कहा कि समीक्षाधीन अवधि में अमेरिका में कर्मचारियों की संख्या 16,000 से घटकर 15,000 रह गई। बैंक ने भारत को एशिया के शीर्ष प्राथमिकता वाले सात बाजारों में शामिल किया है।

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राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली ट्रस्ट की नई वेबसाइट शुरु की गई

      पेंशन कोष नियामक विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) द्वारा राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली ट्रस्ट की स्थापना की गई है। लाभार्थियों (सदस्य) के हित में राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) के तहत परिसंपत्तियों एवं कोष का समुचित रूप से ध्यान रखने के लिए ही इस ट्रस्ट की स्थापना की गई है।

राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली ट्रस्ट ने आज यहां अपनी नई वेबसाइट www.npstrust.org.in लांच की। एनपीएस ट्रस्ट के बोर्ड के अध्यक्ष एवं न्यासी श्री जी.एन.बाजपेयी ने यह वेबसाइट लांच की।एनपीएस के तहत विभिन्न लाभार्थियों को आसान पहुंच सुलभ कराने और हितधारकों को कारगर ढंग से समुचित सूचनाएं मुहैया करने के लिए ही यह वेबसाइट लांच की गई है।

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पुलिस के व्यवहार कौशल से अपराधी भी बन सकते हैं नेक इंसान

पीटीएस में डॉ.जैन का प्रेरक और प्रभावी व्याख्यान
राजनांदगांव। छत्तीसगढ़ राज्य शिखर सम्मान से अलंकृत शासकीय दिग्विजय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफ़ेसर डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने कहा है कि व्यवहार कौशल के विकास से पुलिस और जनता के बीच सहयोग की नई इबारत लिखी जा सकती है। सामाजिक नियंत्रण और व्यवस्था के मद्देनज़र पुलिस की अहम भूमिका से सब परिचित हैं, लेकिन आत्म नियंत्रण और आत्म अनुशासन से व्यवस्था कैसे संवारी जा सकती इसकी कला सीखकर पुलिस अपने काम को बेहतर ढंग से अंजाम दे सकती है। जनता के जागरूक सहयोग से समाज और परिवेश की तरक्की के नए द्वार खुल सकते हैं।

डॉ.जैन ने उक्त उदगार शहर के पुलिस प्रशिक्षण विद्यालय में आयोजित अतिथि व्याख्यान में व्यक्त किया। उन्हें पीटीएस के पुलिस अधीक्षक श्री टी.एक्का ने संस्थान में पुलिस और मानव व्यवहार विषय पर अपना विशेष मार्गदर्शन देने के लिए आमंत्रित किया था। प्रारभ में संस्थान द्वारा स्वागत के उपरान्त डॉ.जैन का परिचय देते हुए उनकी बहुआयामी सहभागिता,सफलता और उपलब्धियों को गौरवशाली निरूपित किया गया। बाद में सभागार में बड़ी संख्या में उपस्थित पुलिस अधिकारियों और प्रशिक्षणार्थियों की सतत हर्षध्वनि के बीच डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने पुलिस के बेहतर कर्तव्य निर्वहन की दृष्टि से मानव व्यवहार के विविध पहलुओं पर रोचक ढंग से प्रकाश डाला।

डॉ.जैन ने कहा कि आत्मकेंद्रित रहकर या टालमटोल के रवैये की जगह पर जब समाज केंद्रित और काम को काबिलियत से अंजाम देने का रास्ता अपनाया जाता है तो तय है कि बेहतर नतीजे मिलते हैं। पुलिस की ड्यूटी कठिन और चुनौती भरी होती है। इसमें कड़ी मेहनत, सही जानकारी और समझदार पहल का योग हो जाए तो पुलिस के काम को सम्मान और नाम दोनों मिलते हैं। ऐसा नहीं होने पर,कोई आश्चर्य नहीं कि अक्सर उसकी छवि पर सवालिया निशान लगाए जाते हैं। वास्तव में समाज की व्यवस्था और क़ानून के बीच संवाद स्थापित करने में पुलिस एक अनिवार्य कड़ी है। उसे लोगों के बीच रहकर, उनकी आम आदतों को समझकर, हालात की नज़ाकत को बूझकर काम करना होगा, तभी वह जनता का विश्वास जीतकर स्वयं विश्वसनीय बन सकेगी।

डॉ.जैन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, भारत के संविधान और भारतीय संस्कृति के गौरवशाली पक्षों की चर्चा कर पुलिस की यादगार भूमिका पर प्रकाश डाला। देश भक्ति की पंक्तियों सुनकर उनमें जोश भर दिया। साथ ही दिल्ली पुलिस की ख़ास पहल से अपराध छोड़कर नेकी के रास्ते पर आगे बढ़ने वाले दो युवाओं की सच्ची कहानियां सुनाते हुए समझाया कि संतुलित मानवीय व्यवहार और सक्रिय जन सहयोग से पुलिस की सेवा के साथ-साथ जनता के अमन चैन के स्वप्न को नई मंज़िलें मिल सकती हैं। पुलिस के सजग सामाजिक सरोकार और समाज के पुलिस के प्रति सकारात्मक व्यवहार से संवाद की नई दास्तान लिखी जा सकती है।
 

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ज़ी के रेडिओ की आवाज़ गूँजेगी अमरीकी घरों मेंः पुनीत गोयनका

ज़ी एंटरटेनमेंट लि. के मुख्य कार्यकारी अधिकारी  एवँ  प्रबंध निदेशक श्री पुनीत गोयनका ने कहा कि उनके मीडिया समूह ने रेडियो बिजनेस के जरिए अमेरिकी बाजार में उतरने की योजना बना  रखी है। 19वें व्हार्टन इंडिया इकनॉमिक फोरम में गोयनका ने कहा, ‘उपभोक्ताओं के साथ जुड़ाव बढ़ाने के लिए हमारी योजना अमेरिकी बाजार में रेडियो उद्यम लेकर पहुंचने की है।’

श्री गोयनका ने कहा कि एक अग्रणी मीडिया कंपनी होने के नाते ज़ी  एंटरटेमेंट का लक्ष्य अमेरिका में उपभोक्ता के साथ संपूर्ण जुड़ाव का परिवेश बनाना है ताकि उसे बेहतर मनोरंजन कंटेंट दिया जा सके। उन्होंने कहा, ‘जहां भारत एक राष्ट्र के रूप में सपने पूरा करने की पूरी तैयारी में है, वहीं ज़ी  ने हर उस चीज को लेकर कमर कस ली है जो उसे उभरते बाजारों के अग्रणी वैश्विक मीडिया ब्रांड बना दे।’  उन्होंने उल्लेख किया कि ज़ी  एंटरटेनमेंट ने एक कंपनी के बतौर अमेरिका के मीडिया व मनोरंजन उद्योग में आय व रोजगार दोनों ही लिहाज से काफी योगदान किया है। उन्होंने दावा किया, ‘इंटरनेट के संदर्भ में, डिजिटल दायरे में हमारी पहल india.com अमेरिका में रह रहे भारतीय समुदाय के बीच दूसरे नंबर का पोर्टल बन गया है।’

श्री पुनीत  गोयनका का कहना था कि अन्य वैश्विक मीडिया कंपनियां अपना कामकाज जमाने के लिए भारत पहुंची हैं। उनकी तुलना में ज़ी समूह धारा के खिलाफ चला और उसने सफलतापूर्वक दुनिया के 169 देशों में अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी,  जहां वो 80 करोड़ से ज्यादा दर्शकों का मनोरंजन कर रहा है। उन्होंने कहा कि केंद्र में नई सरकार के गठन के पश्‍चात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सेट किए गए अर्थव्‍यवस्‍था के लक्ष्‍य को भारत अपने युवाओं की शक्ति और उद्यमशीलता के स्पिरिट से प्राप्‍त कर लेगा।

गोयनका ने आगे कहा, ‘समृद्ध कंटेंट की विशेषज्ञता और अग्रणी दृष्टि के साथ ज़ी में हम लोगों ने वैश्विक रुझानों को महसूस करके और कस्टमाइज्ड कंटेंट समाधान पेश करके तमाम अंतरराष्ट्रीय इलाकों में कुछ सफल रणनीतिक कदमों को लागू किया है।’  गोयनका का कहना था कि ज़ी का अंतिम उद्देश्य एक वैश्विक ब्रांड बनना है। उन्होंने कहा, ‘ भविष्य के लिए हम वैश्विक कंटेंट प्रॉपर्टीज पर काम कर रहे हैं जो विशेष रूप से वैश्विक दर्शकों की जरूरत पूरा करेगी। साल 2020 तक हमारा लक्ष्य दुनिया के शीर्ष मीडिया समूहों में जगह बनाने और दुनिया भर में एक अरब से ज्यादा लोगों का मनोरंजन करना है।’

भारतीय मीडिया व मनोरंजन उद्योग की बात करते हुए गोयनका ने कहा कि इसके विकास की अनुमानित सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) 15 प्रतिशत है,  जबकि दुनिया के मीडिया व मनोरंजन उद्योग की विकास दर मात्र 4 प्रतिशत है। उन्होंने कहा, ‘भारतीय उद्योग का आकार साल 2018 तक 29 अरब डॉलर से ज्यादा हो जाने की उम्मीद है।’ उनका कहना था, ‘यह उद्योग निश्चित रूप से देश की अर्थव्यवस्था के लिए तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है। दुनिया में अपना लचीलापन साबित करते हुए भारतीय मीडिया व मनोरंजन क्षेत्र विकास के एक मजबूत चरण पर पहुंच चुका है। आज के समय में इंटरनेट अधिकांश लोगों के लिए मनोरंजन का प्रमुख माध्यम बन गया है। औद्योगिक नीति व संवर्धन विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले चार सालों के दौरान सूचना व प्रसारण के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) 4 अरब डॉलर के आसपास रहा है।’ 

मनोरंजन की खपत के क्षेत्र में उन्नत टेक्नोलॉजी की बात करते हुए गोयनका ने 4के और 4जी के उदाहरण दिए। उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के लिए 4के टेक्नोलॉजी देखने के अनुभव को समृद्ध बनाने और प्रीमियम कंटेंट की खपत का एक नया क्षेत्र खोलेगी। 4जी समृद्ध कंटेंट देने के लिए उपभोक्ता को सशक्त बनाएगा और इसने समग्र पारिस्थितिकी तंत्र को एक नया आयाम दिया है।’  उन्होंने यह भी कहा कि भारत के अनुकूल विनियामक वातावरण और हाल के सुधारों से मीडिया व मनोरंजन क्षेत्रों में निवेश के कई अवसर पैदा हो रहे हैं।

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