Tuesday, November 26, 2024
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लोकपाल बनाम जन लोकपाल किसमें क्या है?

लोकपाल बिल बुधवार को लोकसभा में पारित हो गया। बिल राज्यसभा में मंगलवार को ही पास हो गया था। अब बिल राष्ट्रपति के पास जाएगा। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद बिल कानून का रूप ले लेगा।

1.लोकायुक्त

बिल में प्रावधान है कि 365 दिन के भीतर राज्यों में लोकायुक्तों का गठन करना होगा। राज्यों को लोकायुक्तों की प्रकृति और प्रकार की स्वतंत्रता दी गई है।

क्या था पुराने बिल में

राज्यों की सहमति के बाद ही कानून लागू होगा। केन्द्र सरकार को राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति का अधिकार दिया गया था जबकि नए बिल में यह अधिकार राज्यों को दिया गया है।

2.लोकपाल का संविधान

लोकपाल में एक चेयरमैन और अधिकतम आठ सदस्य होंगे। इनमें से चार न्यायिक सदस्य होंगे। चार अन्य सदस्य एससी,एसटी,ओबीसी,अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होने चाहिए।

यह था पुराने बिल में

चेयरमैन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश,सर्वोच्च न्यायालय के मौजूदा या पूर्व न्यायाधीश या गैर न्यायिक सदस्य को बनाने की बात कही गई थी।

3.लोकपाल का चयन

लोकपाल का चयन करने वाली समिति में प्रधानमंत्री,विपक्ष का नेता,लोकसभा अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शामिल होंगे। समिति का पांचवा सदस्य एमिनेंट जूरी श्रेणी से होगा। पांचवे सदस्य को राष्ट्रपति या चयन समिति के पहले चार सदस्यों की सिफारिश पर नामित किया जा सकता है।

यह था पुराने बिल में

पुराने बिल में पांचवे सदस्य का चयन पूरी तरह राष्ट्रपति पर छोड़ दिया गया था।

4.धार्मिक संगठन और ट्रस्ट

नए बिल में उन सोसायटियों और ट्रस्ट को शामिल किया गया है जो जनता से पैसा लेते हैं,विदेशी स्त्रोतों से फंडिंग लेते हैं या जिनकी आय का स्तर एक निश्चित सीमा से ज्यादा होगा।

यह था पुराने बिल में

इसमें पब्लिक सर्वेट की परिभाषा का विस्तार किया गया था। लोकपाल के दायरे में उन सोसायटियों और ट्रस्ट को लाया गया था जो जनता से दान लेते हैं। उन संगठनों को भी लोकपाल के दायरे में लाया गया था जिनको विदेशी चंदा (10 लाख से ऊपर)प्राप्त होता है।

5.अभियोजन

जांच रिपोर्ट पर विचार के बाद ही किसी मामले में चार्जशीट दाखिल की जा सकेगी। लोकपाल की अभियोजन शाखा होगी या लोकपाल संबंधित जांच एजेंसी को विशेष अदालतों में अभियोजन चलाने के लिए कह सकता है।

पुराने बिल में यह था

इसमें लोकपाल की अभियोजन शाखा को ही किसी मामले में अभियोजन चलाने का अधिकार दिया गया था।

6.सीबीआई

अभियोजन के लिए निदेशालय स्थापित होगा। निदेशक की नियुक्ति के लिए सीवीसी की सिफारिश के आधार पर होगी। लोकपाल जिन मामलों की जांच के लिए सीबीआई को कहेगा,उस जांच में शामिल अधिकारियों का ट्रांसफर लोकपाल की मंजूरी के बाद ही होगा। जिन मामलों की जांच सीबीआई को दी जाएगी उनकी लोकपाल निगरानी करेगा।

7.प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री भी लोकपाल के दायरे में होंगे।

8.सुनवाई

नए बिल में प्रावधान है कि लोकपाल के फैसले से पहले सरकारी कर्मचारी की भी बात सुनी जाएगी।

9.जांच

इनक्वायरी 60 दिन में और जांच 6 महीने में पूरी होनी चाहिए। सरकारी कर्मचारी का पक्ष सुनने के बाद ही लोकपाल जांच का आदेश देगा। प्रधानमंत्री के खिलाफ जांच कैमरे के सामने होगी। पीएम के खिलाफ जांच तभी होगी जब लोकपाल की बैंच के दो तिहाई सदस्य मंजूरी देंगे।

10.पैनल्टी

बिल में झूठी और फर्जी शिकायतें करने वालों को एक साल की सजा और एक लाख रूपए के जुर्माने का प्रावधान है। सरकारी कर्मचारियों के लिए सात साल की सजा का प्रावधान है। आपराधिक कदाचार और आदतन भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले को दस साल की सजा होगी।

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मतदाता सूची में अब दो जगह नाम नहीं रहेगा

लोकसभा चुनाव के पहले भारतीय चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में गड़बड़ दूर करने के लिए कमर कस ली है। मुख्य रूप से डुप्लीकेट नाम हटाने, हटाए गए नामों और जोड़े गए नए नामों का परीक्षण किया जाएगा। आयोग ने दो सॉफ्टवेयर बनाए हैं, जो मुख्य निर्वाचन अधिकारी को दिए गए। इनके जरिए हर जिले की वोटर लिस्ट का परीक्षण किया जाएगा।

चुनाव आयोग ने पहला सॉफ्टवेयर एसक्यूएल के आधार पर विकसित किया है जो सभी राज्यों के सीईओ को दिया गया है। इससे सभी तरह के संभावित डुप्लीकेट नामों को पकड़ा जाएगा। दूसरा सॉफ्टवेयर पायथॉन के आधार पर बनाया गया है। यह आयोग की वेबसाइट पर ही रहेगा। इसके इस्तेमाल के लिए निर्वाचन कार्य से जुड़े सभी अफसरों को लॉगिन और पासवर्ड दिया जाएगा। इससे वोटर लिस्ट का ऑनलाइन परीक्षण कर डुप्लीकेट नामों को पकड़ा जाएगा।

देना होगा पार्ट-4

वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने के लिए फार्म 6 तो भर दिया जाता, लेकिन पुराने स्थान पर नाम नहीं हटवाया जाता। इसके चलते डुप्लीकेट नाम आ जाते हैं। आयोग ने व्यवस्था कर दी है कि फार्म 6 भरते समय उसके साथ पार्ट-4 भी देना होगा। पार्ट-4 किसी अन्य स्थान पर नाम होने पर उसे हटाने का आवेदन है।

ऑनलाइन फॉर्म भरते समय भी पार्ट-4 देना होगा। बीएलओ बिना पार्ट-4 के फार्म 6 नहीं लेगा और यदि लिया भी तो वह आगे रिजेक्ट हो जाएगा। ऎसा इसलिए किया जा रहा है कि यदि किसी का नाम किसी अन्य स्थान पर हो तो उसे हटाया जा सके।

इस तरह खोजे जाएंगे नाम

  • सॉफ्टवेयर वोटर लिस्ट को क्रॉस चेक कर नाम, उम्र, पिता का नाम, पता आदि के आधार पर डुप्लीकेट नामों की खोज करेगा। इन नामों की अलग लिस्ट बनेगी।
  • डुप्लीकेट नाम मिलने पर, दोनों इंट्री को एक के नीचे एक प्रिंट कर लिया जाएगा। ईआरओ दोनों नामों के फोटो के आधार पर जांच करेगा कि ये एक हैं या अलग-अलग।
  • यदि फोटो मैच हो जाते हैं तो बीएलओ सत्यापन करेगा। दोनों नामों से उस नाम को हटा दिया जाएगा, संबंधित व्यक्ति जिस पते पर नहीं रहता है।
  • राज्यों की सीमाओं पर डुप्लीकेट नामों पर विशेष परीक्षण होगा क्योंकि सीमा के जिलों और गांवों में डुप्लीकेट इंट्री की संभावना ज्यादा हो सकती है।

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अमरीका ने तो हर बार भारतीयों को अपमानित किया है

सुरक्षा में सख्ती अथवा नियमों के उल्लंघन पर उचित कार्रवाई के बहाने अमेरिका में भारतीय राजनयिकों से बुरा बर्ताव का यह पहला मामला नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के दूत हरदीप पुरी को एक अमेरिकी हवाई अड्‌डे पर हिरासत में लेकर उनसे पगड़ी उतारने को कहा गया था।

इसी वर्ष अमेरिका में भारत की राजदूत मीरा शंकर की मिसीसिपी हवाई अड्‌डे पर सघन तलाशी ली गई। उन्हें इसलिए संदिग्ध माना गया, क्योंकि उन्होंने साड़ी पहन रखी थी।

२००९ में अमेरिकी एयरलाइंस कांटीनेंटल ने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की दिल्ली हवाई अड्‌डे पर तलाशी ली थी। वह अमेरिका जा रहे थे। इस मामले का खुलासा होने पर अमेरिकी एयरलाइंस ने कलाम से माफी मांग ली थी।

 

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प्रेम दीवानी बेटी को न्यायमूर्ति ने घर में कैद किया

राजस्‍थान हाई कोर्ट के जज राघवेंद्र सिंह राठौड़ पर अपनी 30 वर्षीय बेटी को घर में नजरबंद करने का आरोप लगा है। उनकी बेटी सिद्घार्थ मुखर्जी नाम के एक युवक से प्रेम करती है। सिद्घार्थ मुखर्जी ने सुप्रीम कोर्ट में जज राघवेंद्र सिंह राठौड़ के खिलाफ इस संबंध में याचिका दी है, जिसमें बताया गया है कि उनकी बेटी उससे प्रेम विवाह न कर ले, इस डर से उसे घर में ही नजरबंद कर दिया गया। उसने यह भी कहा है कि जज राघवेंद्र सिंह राठौड़ अपनी बेटी की शादी अपनी ही बिरादरी में करना चाहते हैं।

पिछले महीने युवती ने राजस्‍थान हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को एक मेल लिखा था, जिसमें उनसे मदद करने की अपील की थीं। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह सिद्घार्थ मुखर्जी की याचिका पर सुनवाई करते हुए जयपुर पुलिस को सोमवार को युवती को कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया।

मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जयपुर पुलिस को युवती को उसके प्रेमी सिद्घार्थ मुखर्जी को सौंपने का निर्देश दिया।

 

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देवयानी से ज्यादा तनख्वाह तो नौकरानी की थी!

पांच सौ डॉलर (करीब तीस हजार रुपए) वेतन, स्वास्थ्य बीमा, आवास एवं मुफ्त भोजन, सरकारी पासपोर्ट और हवाई यात्रा के लिए आने-जाने का किराया। यह वेतन-भत्ते किसी बड़ी कंपनी के कर्मचारी के नहीं बल्कि संगीता रिचर्ड को मई, २०१३ तक मिल रहे थे जब तक वह न्यूयॉर्क में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागडे की घरेलू नौकरानी के तौर पर काम कर रही थी। संगीता अब अमेरिका में कहीं लापता है और भारतीय राजनयिक कम वेतन देने के जुर्म में अमेरिकी कानून के कठघरे में।

मामले की विडंबना ही कहिए कि ४५०० डॉलर प्रतिमाह का वेतन न दे पाने के लिए १९९९ बैच की विदेश सेवा अधिकारी खोबरागडे को गिरफ्तार किया गया। इतनी तनख्वाह भारत की उप महावाणिज्य दूत के तौर पर खुद देवयानी को भी नहीं मिल रही। अंदरखाने भारतीय कूटनीतिक खेमा मानता है कि अगर केवल कागजी दस्तावेजों के आधार पर तौलें तो देवयानी कठघरे में खड़ी हैं। उन्हें तय ९.५ डॉलर प्रतिघंटा की दर से नौकरानी को वेतन न देने के आरोप लगे हैं।

दरअसल, देवयानी ने नौकरानी के वीजा के लिए आवेदन करते वक्त न्यूनतम वेतन की जानकारी दी थी। वहीं, भारतीय राजनयिकों का कहना है कि वीजा आवेदन की सूचनाएं देखने के बाद ही उसे वीजा दिया गया। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक जून, २०१३ में संगीता के देवयानी का घर छोड़कर जाने के बाद भारत ने २४ जून को उसे ढूंढने में मदद भी मांगी थी। यह बात और है कि इस बारे में आज तक भारतीय दूतावास को अमेरिका में मदद हासिल नहीं हुई।

अमेरिका में तैनात रह चुके एक भारतीय के शब्दों में घरेलू नौकरों को मिलने वाली सुविधाओं को केवल वेतन के आधार पर नहीं तौला जा सकता। स्वास्थ्य बीमा, सरकारी खर्च पर हवाई यात्रा और आवास व भोजन समेत कई सुविधाएं उन्हें वेतन के अतिरिक्त हासिल होती हैं जो अमेरिका में न्यूनतम दर से वेतन प्राप्त करने वालों को हासिल नहीं हैं। सूत्रों के मुताबिक अमेरिका में तैनात करीब सौ भारतीय राजनयिकों में से केवल १५-२० ही हैं जिन्हें घरेलू नौकर रखने की इजाजत है।

 देवयानी के मामले में भारतीय खेमे की सारी प्रतिक्रिया इस प्रकरण में हुई पुलिस कार्रवाई को लेकर है। विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार बीते साठ सालों में कहीं भी किसी भारतीय राजनयिक की कपड़े उतरवाकर तलाशी नहीं ली गई। लिहाजा अभूतपूर्व घटना की प्रतिक्रिया स्वाभाविक है।

साभार- दैनिक नईदुनिया से

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मां के संघर्ष की सीख से मिला मुकाम

देश के सबसे बड़े वाणिज्यिक बैंक की सर्वेसर्वा अरुंधति भट्टाचार्य अपने बैंकिंग के सफर के बारे में कहती हैं कि मैंने ऐसा सोचा नहीं था। बैंकिंग में आना महज इत्तेफाक था। मैंने मेडिकल की परीक्षा पास की थी, लेकिन नक्सल आंदोलन की वजह से उस समय कोलकाता में शैक्षणिक सत्र काफी लेट चल रहे थे। मैंने पीओ की परीक्षा दी, इसे पास करने के बाद एसबीआई से जुड़ गई। बस यहीं से एक नई शुरुआत हुई।

जब मैं एसबीआई में पीओ बनी तब इसे काफी अच्छी नौकरी माना जाता था। शुरुआती प्रशिक्षण के बाद मुझे कई जगह काम करने का मौका मिला। इस दौरान मुझे काफी कुछ सीखने को मिला। मैं देश के तमाम शहरों में रही। बैंकिंग एक ऐसा क्षेत्र है जहां कई तरह के काम होते हैं। इसमें एक अच्छी बात यह है कि नए-नए एसाइनमेंट मिलते हैं जिससे इंसान बोर नहीं होता है। आपके सामने हमेशा चुनौतियां होती हैं। आपको हरहाल में बेहतर करना होता है। मैंने जीवन की इस यात्रा को खूब इंज्वॉय किया। मुझे कुछ साल न्यूयॉर्क में रहने का अवसर मिला। इस दौरान कुछ अच्छे लोग भी मिले। जिनके सहयोग से काफी कुछ सीखने को मिला।

मां से मिली ताकत
मेरा जन्म बंगाल में हुआ। पापा इंजीनियर थे, वे कंस्ट्रक्शन का काम देखते थे। ऐसे में वे काफी देर रात में घर आ पाते थे। मुझे अभी भी याद है कि जब मैं भिलाई और रायपुर में थी तो मां ही घर के सारे काम करती थी। वह बाजार भी जाती थीं। मुझे सबसे ज्यादा प्रेरणा अपनी मां व चाची से मिली। उन्होंने ने अपने जीवन में बहुत मेहनत की। उस समय डॉक्टर आसानी से नहीं मिलते थे। मेरी मां ने होम्योपैथी कुछ किताबें पढ़कर घर और पास के लोगों को दवाएं देना शुरू किया। तीन संतानों की परवरिश के साथ उन्होंने बाद में होम्योपैथी की डिग्री भी हासिल की। मां के जुझारूपन से मैंने काफी कुछ सीखा। जब मां डॉक्टर बनीं तब मैं छठी कक्षा में थी।

जिंदगी की घटनाओं से सीखा
सीखने की प्रक्रिया कभी खत्म नहीं होती। ऐसी कोई खास घटना मुझे एकदम से याद नहीं आ रही है, लेकिन तमाम छोटी-छोटी घटनाएं घटीं, जिनसे काफी कुछ सीखा। उनका असर भी जिंदगी पर पड़ा।

सिखाने वाली हो शिक्षा
शिक्षा के बिना प्रगति मुमकिन नहीं है। इसके लिए जरूरी है कि शिक्षा की नींव अच्छी हो। खासकर प्राथमिक शिक्षा और पढ़ाई ऐसी हो जो याद करने से ज्यादा सिखाने वाली हो। इस समय याद करो और जाकर लिख दो वाली शिक्षा है। इसमें बदलाव जरूरी है। इससे क्रिएटिविटी घट गई है।

आज भी पढ़ती हूं किताबें
पढ़ने में मेरी रुचि पहले भी थी और आज भी उतनी ही है। इसकी बड़ी वजह घर में पढ़ाई का माहौल होना था। हां, इधर अब मैं किताब को एक साथ खत्म नहीं कर पाती हूं, लेकिन जब भी वक्त मिलता है तो जरूर पढ़ती हूं। कई सारे ऐसे लेखक हैं जिनकी किताबें पढ़ती हूं। पहले फिक्शन पढ़ती थी। आजकल नॉन फिक्शन पढ़ रही हूं। सीखने के लिए पढ़ने में रुचि का होना जरूरी है। इसके पीछे व्यस्तता बड़ी वजह है।

लिबरल ऑर्ट्स को मिले तरजीह
मेरा मानना है कि लिबरल आर्ट को तवज्जो मिलनी चाहिए। प्रोफेशनल कोर्स की तरफ झुकाव ज्यादा है। होना भी चाहिए, लेकिन प्योर साइंस और प्योर आर्ट्स को तरजीह मिलनी चाहिए। तरजीह नहीं मिलने से छात्र उस ओर रुख कर पाते। इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ और प्रोफेशनल कोर्स की ओर रुख करते हैं। मुझे उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था में मौजूद तनाव कम होते ही चीजें सामान्य होंगी।

मेहनत पर हो फोकस
मैं युवाओं से यही कहना चाहूंगी कि जो भी करें उसे पूरी ईमानदारी और मेहनत से करें। शॉर्टकट न अपनाएं। आजकल एक नया ट्रेंड है, जहां सबकुछ तेजी से पा लेने की होड़ है। यह शॉर्टकट से मुमकिन नहीं है। अगर महत्वाकांक्षाएं बड़ी हैं तो उसे पाने के लिए उतनी ज्यादा मेहनत चाहिए। इस समय लड़कियां काफी अच्छा कर रही हैं। वे और अच्छा कर सकती हैं। उनसे यही कहना चीती हूं कि वे जो भी करें, दिल से करें। उसमें शत प्रतिशत समर्पण होना चाहिए। कुछ भी असंभव नहीं हैं। सबकुछ हमेशा संभव है। बस उसके लिए ईमानदार कोशिश होनी चाहिए। सफलता निश्चित रूप से मिलती है। नौकरी भी है तो उसे रुटीन जॉब के तौर पर न लें। काम को चुनौती की तरह लें। बेहतर तरीके से पूरा करें।

36 साल लंबा सफर
एसबीआई के पूर्व प्रमुख प्रतीप चौधरी के उत्तराधिकारी की जब तलाश शुरू हुई तो प्रमुख रूप से चार नाम सामने आए थे। इसमें अरुंधति भट्टाचार्य एकमात्र महिला थीं, जबकि उनके मुकाबले में हेमंत कॉन्ट्रैक्टर, ए. कृष्ण कुमार और एस विश्वनाथन थे। अंत में अरुंधति को बैंक का नया प्रमुख घोषित किया गया। 1977 में प्रोबेशनरी ऑफिसर के तौर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की नौकरी ज्वाइन की। 36 साल के कॅरियर में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। इनमें मर्चेट बैंकिंग शाखा (एसबीआई कैपिटल मार्केट) की चीफ एक्जीक्यूटिव, चीफ जनरल मैनेजर न्यू प्रोजेक्ट जैसी जिम्मेदारियां रहीं।

बनाए कीर्तिमान
207 साल के इतिहास में पहली महिला प्रमुख।  
पहली महिला होंगी जो फॉर्चून-500 में शामिल किसी भारतीय कंपनी का नेतृत्व करेंगी।
पहली ऐसी प्रमुख जो तीन साल का निश्चित कार्यकाल पूरा करेंगी।
पहली बार सरकार ने कार्यकाल तय किया।

चुनौतियां
बड़े कजर्दारों से वसूली की चुनौती
नॉन परफॉर्मिग एसेट की मौजूदा 5.5 फीसदी की दर को घटाना

मजबूती
ट्रेड यूनियन की अच्छी समझ
सबको साथ लेकर चलने में माहिर
बैंकिंग का लंबा अनुभव

एसबीआई का सफर
भारत की सबसे बड़ी, सबसे पुरानी वित्तीय संस्था एसबीआई का मुख्यालय मुंबई में है। यह एक अनुसूचित बैंक है। 2 जून, 1906 में कोलकाता में इसकी स्थापना हुई। शुरुआत में इसका नाम अलग था। यह अपने तरह का अनोखा बैंक था। जो साझा स्टॉक पर ब्रिटिश इंडिया और बंगाल सरकार द्वारा चलाया जाता था। 1 जुलाई, 1956 को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का नाम मिला। एसबीआई में अभी करीब तीन लाख के करीब कर्मचारी हैं। एसबीआई की देश भर में 15,000 से ज्यादा शाखाएं हैं। देश के कुल डिपॉजिट में स्टेट बैंक की भागीदारी 22% है।

साभार-दैनिक हिन्दुस्तान से

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गाय का माँस इस्लाम में हराम है

इत्तेहाद ए मिल्लत कौसिंल के अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश के राज्यमंत्री मौलाना तौकीर रजा ने कहा कि इस्लाम में गाय का मीट हराम है।

गाय का दूध स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद है, वहीं मीट मेडिकल साइंस के अनुसार घातक है। इस्लाम ऐसे किसी काम की इजाजत नहीं देता जो दूसरे की भावनाओं को चोट पहुंचाए।

उन्होंने उत्तर प्रदेश के मेरठ में आयोजित सद्भावना महासम्मेलन में कहा कि गोकशी के पीछे भी सांप्रदायिक ताकतें हैं। मुसलमानों को इनसे बचना चाहिए। मौलाना ने कहा कि मुसलमानों को एकजुट होने की जरूरत है। मुसलमानों के शोषण के लिए उनके मतभेद ही जिम्मेदार हैं।

उन्होंने कहा कि एपिडा की रिपोर्ट के अनुसार महज 14 फीसदी मुस्लिम ही मीट कारोबार से जुड़े हैं। मेरठ में केंद्र की सियासत से जुड़े एक व्यक्ति के मीट प्लांट पर प्रशासन की नजर नहीं है, लेकिन मुस्लिम मीट कारोबारियों का व्यापार चौपट किया जा रहा है।

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‘आप’: भारतीय लोकतंत्र का नया राजनैतिक अवतार

मध्यप्रदेश,राजस्थान,छत्तीसगढ़,दिल्ली तथा मिज़ोरम आदि पांच राज्यों मेंं पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों के परिणामों को लेकर अभी से कयास लगाए जाने लगे हैं। इन पांच राज्यों में जहां कांग्रेस पार्टी को राजस्थान की सत्ता गंवानी पड़ी है वहीं मिज़ोरम में कांग्रेस ने सत्ता पर पुन: अपना कब्ज़ा बरकरार रखा है। मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ राज्यों पर भारतीय जनता पार्टी सत्ता पर अपना नियंत्रण पुन: कायम रखने में कामयाब रही है।

हालांकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी ने अपनी स्थिति में काफी सुधार किया है तथा मुख्यमंत्री रमन सिंह को सत्ता में पुन: वापसी के लिए नाकों चने चबाने पड़े हैं। उधर दिल्ली की जनता ने कांग्रेस पार्टी को तो सत्ता से ज़रूर उखाड़ फेंका है पंरतु दिल्ली विधानसभा के चुनाव से पूर्व मुख्य विपक्षी दल के रूप में नज़र आने वाली भारतीय जनता पार्टी को भी दिल्लीवासियों ने पूर्ण बहुमत नहीं दिया। इसके बजाए दिल्ली के मतदाताओं ने देश में पहली बार चुनाव लडऩे वाली आम आदमी पार्टी(आप)को अप्रत्याशित रूप से 28 सीटों पर विजयी बनाकर दिल्ली में इसे दूसरे नंबर की पार्टी बनाकर एक नए राजनैतिक अवतार के रूप में मान्यता प्रदान की है। इन चुनाव परिणामों के बाद राजनैतिक विश£ेषक एवं समीक्षक तथा विभिन्न विचारधाराओं से जुड़े कलमकार इन परिणामों को अपने-अपने नज़रिए से परिभाषित कर रहे हैं।

कांग्रेस का नेतृत्व अपनी हार पर चिंतन-मंथन करने के लिए तैयार है। कांग्रेस आलाकमान की कोशिश है कि हार का ठीकरा राज्य के नेतृत्व की नाकामियों व नीतियों पर फोड़ा जाए जबकि राज्य का नेतृत्व हार का ज़िम्मा गत् पांच वर्षों से कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की भ्रष्टाचार व मंहगाई संबंधी असफलताओं पर डाल रहा है। उधर भारतीय जनता पार्टी के नेता अपनी पार्टी की जीत को मोदी लहर का नाम दे रहे हैं। जबकि इन परिणामों को मोदी लहर बताने वालों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि मोदी लहर छत्तीसगढ़ और दिल्ली में आख़िर क्यों नहीं चली?  और यह भी कि देश को राजनैतिक विकल्प देने का वादा करने वाली भारतीय जनता पार्टी को मिज़ोरम में चुनाव लड़वाने के लिए उम्मीदवार तक क्यों नहीं मिलते?

मध्यप्रदेश में भी भाजपा को विजयश्री मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उदार व साधारण आम आदमी वाली छवि के कारण मिली है न कि मोदी लहर की बदौलत। हां राजस्थान में नरेंद्र मोदी के प्रभाव को ज़रूर स्वीकार किया जा सकता है। उसका कारण भी यही है कि गत् पांच वर्षों में राजस्थान में कई स्थानों पर सांप्रदायिक हिंसा के समाचार आए। राज्य में भाजपा ने सांप्रदायिक तनाव का लाभ उठाया। और गत् दिनों हुए विधान सभा चुनावों से पूर्व वसुंधरा राजे सिंधिया ने पूरे प्रदेश में 22 स्थानों पर नरेंद्र मोदी की जनसभाएं कराईं। इनमें कई जनसभाएं ऐसे स्थानों पर भी हुईं जहां कभी पहले किसी बड़े राजनेता की जनसभा नहीं हुई थी। इस प्रकार वसुंधरा राजे सिंधिया नरेंद्र मोदी को हिंदुत्व के हीरो के रूप में पेश कर राजस्थान के मतदाताओं को धर्म के आधार पर अपने पक्ष में कर पाने में सफल रहीं। अन्यथा दिल्ली हो अथवा राजस्थान इन राज्यों में अशोक गहलोत तथा शीला दीक्षित ने विकास के जो कार्य किए हैं उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती।

बहरहाल कांग्रेस व भाजपा की सांप्रदायिक व धर्मनिरपेक्ष राजनीति के मध्य एक तीसरे राजनैतिक अवतार के रूप में जिस आम आदमी पार्टी ने देश के नागरिकों से 28 विधानसभा सीटों के साथ अपना जो परिचय कराया है उसे लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। 'आप’ के उदय में सबसे महत्वूपर्ण यह है कि कांग्रेस व भाजपा सहित सभी राजनैतिक दल भले ही सार्वजनिक रूप से इन्हें कोई अहमियत देने को तैयार न हों परंतु हकीकत में 'आप’ की सफलता ने इन पारंपरिक राजनैतिक दलों की नींद हराम कर डाली है।

दिल्ली की जागरूक,पढ़ी-लिखी तथा दूरदर्शी समझी जाने वाली जनता ने जहां 'आप’ को 28 सीटों पर विजयश्री दिलाई है वहीं तीन बार लगातार दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद पर बैठने वाली मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 'आप’ के उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल द्वारा 22 हज़ार वोटों से हराकर इस बात का साफ संदेश दिया है कि देश अब सांप्रदायिकता व धर्मनिरपेक्षता,मंदिर-मस्जिद जैसे भावनात्मक, धर्म व जाति आधारित तथा लोक-लुभावन से दिखाई देने वाले खोखले मुद्दों में उलझने अथवा इनकी ओर आकर्षित होने के बजाए भ्रष्टाचार का विरोध करने,राजनीति में पारदर्शिता बरतने, राजनीति को अपना व अपने खानदान के जीविकोपार्जन का साधन न समझने, सत्ता को अय्याशी,स्वार्थपूर्ति तथा धन संग्रह का ज़रिया न समझने,मंहगाई व भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने तथा नेता को सत्ताधीश के बजाए समाज सेवक के रूप में पेश किए जाने जैसी ज़रूरी व बुनियादी बातों को महत्व देना चाहती है।

ज़ाहिर है 'आप’ पार्टी ने राजनीति को कमाने-खाने,ऐशपरस्ती करने,कोटा-परमिट की राजनीति करने का माध्यम समझने वालों की नींदें उड़ा दी हैं। लिहाज़ा अब यह पारंपरिक राजनैतिक दल 'आप’ से निपटने के तरह-तरह के हथकंडे इस्तेमाल कर रहे हैं। कल तक विभिन्न दलों के जो राजनीतिज्ञ अरविंद केजरीवाल व उनके सहयोगियों को इस बात की चुनौती देते थे कि यदि उनमें हि मत है तो वे जनप्रतिनिधि के रूप में हमसे बात करें अन्यथा साधारण नागरिक के रूप में उन्हें बात करने अथवा अपनी आवाज़ बुलंद करने का कोई अधिकार नहीं है।

आज 'आप’पार्टी ने 28 सीटें जीतकर ऐसी बातें करने वालों के मुंह पर ताला लगा दिया है। अब जहां कुछ राजनैतिक दल 'आप’ को पानी का बुलबुला अथवा 'अस्थाई उदय’ बता रहे हैं वहीं भारतीय जनता पार्टी व इसके समर्थित संगठन आम आदमी पार्टी को वामपंथियों द्वारा प्रायोजित व उनके द्वारा पिछले दरवाज़े से समर्थन दिए जाने वाला राजनैतिक संगठन बता रहे हैं। गोया प्रत्येक दल,प्रत्येक नेता, प्रत्येक विश£ेषक व समीक्षक अपनी-अपनी सोच,िफक्र, विचारधारा तथा बुद्धि के एतबार से 'आप’ की सफलता तथा इसके भारतीय लोकतंत्र में शानदार उदय को परिभाषित कर रहा है। उधर 'आप’ पार्टी के नेताओं ने भी दिल्ली में मिली अपनी अप्रत्याशित सफलता के बाद इस बात के संकेत दे दिए हैं कि भविष्य में यह पार्टी देश के प्रमुख महानगरों में संसदीय चुनाव लडऩे के अलावा देश की कुछ चुनिंदा संसदीय सीटों पर भी अपने उम्मीदवार खड़े कर सकती है। इसके अतिरिक्त दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में भी संगठन भविष्य में अपने उम्मीदवार खड़े कर सकता है।

रहा सवाल पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के विश्लेषण का, तो कांग्रेस पार्टी की पराजय निश्चित रूप से प्रत्याशित थी। जिसका कारण दिन दूनी रात चौगुनी की दर से बढ़ती मंहगाई तथा गत् पांच वर्षों में यूपीए सरकार के शासनकाल में हुए कीर्तिमान स्थापित करने वाले बड़े से बड़े घोटाले थे। समाजशास्त्र के लिहाज़ से भी यदि देखा जाए तो भी कांग्रेस पार्टी सभी धर्मों व जातियों को समान रूप से साथ लेकर चलने की अपनी दलीय संवैधानिक बाध्यता के कारण दिनों-दिन कमज़ोर पड़ती जा रही है जबकि भारतीय जनता पार्टी अपने कई सहयोगी संगठनों के साथ मिलकर देश में अपने पक्ष में हिंदू मतों का ध्रुवीकरण करने में काफी हद तक सफल दिखाई दे रही है। उसी प्रकार क्षेत्रीय दल अल्पसं यक मतों को अपने पक्ष में करने में सफल रहे हैं। कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक समझे जाने वाले अल्पसं यक व दलित मत अब कांग्रेस के हाथों से निकल कर अन्य क्षेत्रीय दलों के मध्य विभाजित हो चुके हैं।

इन सब के बीच भ्रष्टाचार व राजनैतिक पारदर्शिता जैसे राष्ट्रहित से जुड़े प्रमुख मुद्दों को लेकर 'आप’ जैसे राजनैतिक संगठन का अवतरित होना भारतीय लोकतंत्र की एक और बहुत बड़ी सफलता मानी जाएगी। यह राजनैतिक सफलता उस लिहाज़ से और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है जबकि हम देख रहे हैं कि दुनिया के कई देशों में गत् दो-तीन वर्षों के दौरान जिस प्रकार खूनी क्रांति अथवा सैन्य विद्रोह जैसी परिस्थितियों में सत्ता परिवर्तन हुए हैं अथवा नई राजनैतिक शक्तियों ने विद्रोह के माध्यम से अपना स्वर बुलंद किया है उसकी तुलना में ाारत जैसे विश्व के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश में भारतीय जागरूक मतदाताओं ने किसी प्रकार की क्रांति अथवा विद्रोह का सहारा लेने के बजाए बड़े ही लोकतंत्रिक तरीके से 'आप’ जैसे राजनैतिक संगठन का भारतीय राजनीति से परिचय कराकर तथा उसे राजधानी दिल्ली में महत्वपूर्ण सफलता दिलाकर यह प्रमाणित कर दिया है कि हमारा देश यदि भविष्य में परंपरागत राजनीति के चेहरे को राष्ट्रीय स्तर पर भी बदलना चाहेगा तो उसका तरीका भी कोई विद्रोह या खूनी क्रांति नहीं बल्कि मतदान जैसा लोकतांत्रिक तरीका ही होगा।                                                                                                                                                                

तनवीर जाफ़री

1618, महावीर नगर,

अंबाला शहर। हरियाणा

फोन : 0171-2535628

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इन्दौर में हत्यारी युवती को मौत की सज़ा

इंदौर में हुए एक तिहरे हत्याकांड में आरोपी नेहा वर्मा और उसके दो सहयोगियों  राहुल और मनोज को फाँसी की सजा सुनाई गई।

तीनों आरोपियों के वकीलों ने लगभग एक जैसी बात दोहराते हुए अदालत से कहा कि आरोपियों का यह पहला अपराध है। तीनों की आर्थिक हालत ठीक नहीं है। इसलिए न्यूनतम सजा दी जाए। 20 मिनट बाद न्यायाधीश डी.एन. मिश्र ने सबसे प्रमुख अंश फैसले में लिखे और कहा- तीनों आरोपियों को मृत्यु दंड की सजा दी जाती है।

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सुदेश बेरी पर इन्दौर में धोखाधड़ी का मुकदमा

फिल्म अभिनेता सुदेश बैरी पर इंदौर के एक कारोबारी ने ठगी का आरोप लगाया है। आरोप है बैरी ने दो साल पहले 20 करोड़ का लोन दिलाने के नाम पर उक्त व्यक्ति से 10 लाख रुपए एडवांस लिए लेकिन लोन नहीं दिलाया। बार-बार फोन लगाने पर भी टालते रहे। पीड़ित ने धोखाधड़ी की शिकायत एमआईजीथाने में की। कोर्ट में भी आवेदन लगाया।

शिकायतकर्ता के वकील एडवोकेट केके गुप्ता का कहना है कि इंदौर निवासी विलास खर्चे को खातेगांव में स्टील फैक्टरी खरीदना थी। इसकी कीमत 20 करोड़ रुपए थी। विलास ने मित्र शैलेंद्रसिंह को वस्तुस्थिति बताई तो उसने मुंबई से फाइनेंस कराने की बात कही। शैलेंद्र ने 30 मई 2011 को विलास को बैरी से मिलवाया। बैरी ने 20 करोड़ का लोन दिलाने की सहमति दी। बदले में 20 लाख रुपए देना तय हुआ। 10 लाख एडवांस और बाकी

फाइनेंस होने के बाद। 20 जून 11 को कॉसमॉस बैंक से आरटीजीएस पद्धति के जरिये पांच लाख रुपए बैरी को पहुंचाए गए। बैरी ने इसकी पुष्टि भी की। शेष पांच लाख रुपए 10 सितंबर 2011 को भारतीय स्टेट बैंक की फड़नीस कॉलोनी शाखा से परख इंटरप्राइजेस के अकाउंट के मार्फत पहुंचाए गए। इसके बाद एमओयू भी साइन हुआ।

बैरी और विलास को जानने वाली एक गवाह के रूप में भोपाल निवासी सीमा सिंह को एमओयू के वक्त साथ रखा गया। आरोप है एमओयू साइन होने के बाद से ही बैरी बहाने बनाते रहे। आखिर में विलास ने डील रद्द करने की बात कर एडवांस वापस मांगा तो बैरी ने इनकार कर दिया। इसके बाद विलास ने थाने में शिकायत कर कोर्ट में आवेदन लगाया।

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