Monday, November 25, 2024
spot_img
Home Blog Page 1802

मूवीज नाउ पर देखें मेडागास्कर एस्केप 2 अफ्रीका

सुपर मूवी ऑफ द मंथ के रूप में फिल्म के प्रसारण का मजा लें, 21 दिसंबर 2013 को रात 9 बजे

 

मुंबई।  एलेक्स, मार्टी, ग्लोरिया, मेलमैन और चुलबुल पेंग्यूइन्स ने अपनी फिल्म मेडागास्कर से पूरी दुनिया को दीवाना बना दिया था और वे एक बार फिर आपको बहलाने आ रहे हैं। सुपर मूवी ऑफ द मंथ के रूप में 21 दिसंबर 2013 को रात 9 बजे फिल्म के दूसरे भाग मेडागास्कर एस्केप 2 अफ्रीका का प्रसारण देखें।

देखिये कैसे छुट्टियों के मजे लूटकर, ये कुशल जानवर घर लौटने की कोशिश करते हैं। एक दुघर्टनाग्रस्त हवाईजहाज के अवशेषों पर लुढ़कते हुये पेंग्युइंस इसे काम करने की स्थिति में वापस लाते हुये घर के लिए निकल पड़ते हैं। हालांकि, हवाईजहाज अफ्रीका में दुघर्टनाग्रस्त होता है और सभी वहां फस जाते हैं। क्या ये जानवर जंगल का सामना कर पायेंगे या फिर वे सही सलामत न्यू यॉर्क पहुंच पायेंगे?  जानने के लिये मेडागास्कर एस्केप 2 अफ्रीका देखना न भूलें।

इस फिल्म के डायलॉग्स और कॉमिक टाइमिंग आपको हंसने पर मजबूर कर देंगे। इस ब्लॉकबस्टर फिल्म के प्यारे और हास्यजनक किरदार घर-घर में लोकप्रिय तो हो गये हैं, इतना ही नहीं, इन किरदारों को किताबों, खेल, मर्चेंडाइज, थीम पार्क्स और टीवी सिरीज में भी अपनाया गया है। बेन्न स्टिलर, क्रिस रॉक, डेविड श्विममर, जैडा पिन्केट स्मिथ, सशा बैरोन कोहेन को ऐसी भूमिकाओं में देखें, जो आपको अधिक मनोरंजन की मांग करने पर मजबूर कर देंगे।

मूवीज नाउ पर इस सप्ताहांत में यह ब्लॉकबस्टर फिल्म देखें,  जिसने 600 मिलियन डॉलर से अधिक कमाई की थी। 

.

पानी की उपलब्धता अल्प जहां, उद्यमिता, समरसता व जीवन्तता अधिक वहां – मेहता

उदयपुर। जिन क्षेत्रों में बरसात की कमी से पानी की उपलब्धता अल्प रही है, वहां के समाज में उद्यमिता, समरसता व जीवन्तता अधिक है। राजस्थान के शेखावटी व मारवाड़ सहित पूरा पश्चिमी राजस्थान इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। इस क्षैत्र ने उच्च कोटि के साहित्यकार, उद्योगपति, रंगकर्मी दिये है। वहीं जहां पानी की बहुतायतता है, वहां आपसी मनमुटाव, झगड़े ज्यादा है। इस दृष्टि से यह अनुमान कि पानी की कमी युद्व का कारण बनेगी, नकारा जा सकता हैं।

ये विचार विद्या भवन पॉलीटेक्निक के प्राचार्य अनिल मेहता ने भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय द्वारा संचालित भोपाल स्थित फोरेस्ट मैनेजमेन्ट संस्थान के प्रबन्धन विद्यार्थियों की क्षैत्रिय अनुभव सेमिनार में व्यक्त किये। मेहता ने कहा कि जल का बेहतर प्रबन्धन समृद्धि सुनिश्चित करता है, वहीं बैतरतीब दुरपयोग, अतिउपयोग, विनाश का सूचक है।

उदयपुर एवं भोपाल की झीलों की स्थिति का  तुलनात्मक विवेचन करते हुए मेहता ने कहा कि भोपाल का झील संरक्षण मोडल ज्यों का त्यों उदयपुर के लिये लागू नहीं किया जा सकता है। झीलों की सही व वैज्ञानिक परिभाषा व समझ के अभाव में झीलें सिकुढ़ रही है। फोरेस्ट मैनेजमेंट संस्था के भास्कर सिन्हा ने कहा कि पर्यावरण व जल संरक्षण में संस्थाओं के निरन्तर प्रयास निःसन्देह प्रंशसनीय है तथापि सरकार व संस्थाओं में अधिक गतिशील समन्वय स्थापित करना होगा।

इस अवसर पर पॉलीटेक्निक द्वारा संचालित रोजगारोन्मूखी कार्यक्रमों का प्रस्तुतिकरण देते हुए सीडीटीपी के सलाहकार सुधीर कुमावत ने कहा कि तकनीकी व्यवसायों में गांव स्तर पर स्वरोजगार स्थापित होने से पहाड़, पानी सहित समस्त प्रकृति संसाधन बच सकेंगे। विद्या भवन प्रकृति साधना केन्द्र के समन्वयक आर. एल. श्रीमाल ने युवाओं, पहाड़, पानी के संरक्षण के लिये विद्या भवन द्वारा किये जा रहे जमीनी प्रयासों के बारे में जानकारी दी।

चांदपोल नागरिक समिति के तेजशंकर पालीवाल ने युवा समूह को झीलों की पर्यावरणीय स्थिति के बारे में मौके पर ले जा कर अवगत कराया।युवाओं को वन विभाग के अधिकारी डी. के तिवारी ने भी संबोधित किया।

.

बैंकों का करोड़ों का कर्ज़ नहीं चुकाया शादी में खर्चे 500 करोड़

जाने-माने धनकुबेर और दुनिया भर में फेमस स्टील टाइकून प्रवासी भारतीय लक्ष्मीनिवास मित्तल के छोटे भाई प्रमोद मित्तल की बेटी की शादी में करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा दिए गए। प्रमोद मित्तल इन पर कई भारतीय बैंकों के करोड़ों रुपए कर्ज हैं। प्रमोद और इनके भाई विनोद मित्तल कॉर्पोरेट कर्ज रीस्ट्रक्चरिंग के सहारे खुद को बैंकों के लोन से बचाते रहे हैं। मित्तल बंधुओं के डिफॉल्टर होने के बावजूद बर्सिलोना में अपनी बेटी सृष्टि की शादी में 60 मिलियन यूरो (करीब 505 करोड़ रुपए) पानी की तरह बहाए।

एक स्पैनिश न्यूज पोर्टल http://www.vanitatis.com/  का दावा है कि इन्वेस्टमेंट बैंकर गुलराज बहल और प्रमोद मित्तल की 26 साल की बेटी सृष्टि मित्तल की शादी दुनिया की पांच महंगी शादियों में से एक है। इस हाई प्रोफाइल शादी में शामिल एक व्यक्ति ने दावा किया कि  शादी के दौरान हुए सभी खर्चों को मिला दिया जाए तो करीब 60 यूरो मिलियन खर्च हुए होंगे। फोर्ब्स पत्रिका का कहना है किइससे पहले अरब के शहजादे मोहम्मद बिन जाएद अल नाहयान और राजकुमारी सलमा ने 1981 में अपनी शादी पर 604 करोड़ खर्च किए थे। 2004 में लक्ष्मी मित्तल ने भी अपनी बेटी की शादी जब भारतीय अरबपति अमित भाटिया से की थी तो 46 मिलियन यूरो चंद दिनों में खर्च किए थे।

2010 के अंत में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने प्रमोद मित्तल को इस्पात इंडस्ट्रीज के लिए 130 करोड़ का लोन दिया था। इस लोन का समायोजन 30 करोड़ में हुआ और मित्तल ने बैंक को 100 करोड़ का चूना लगा दिया।

प्रमोद पर कई और बैंकों को करोड़ों बकाए हैं। इसमें आईसीआईसीआई से लेकर कई छोटे बैंक भी हैं। आईसीआईसीआई ने प्रमोद की कंपनी इस्पात इंडस्ट्रीज को जिंदल स्टील में मर्ज कराने की भी कोशिश की ताकि लोन की रकम निकाली जा सके।

 

.

मुस्लिमों ने भाजपा और ‘आप’ को नहीं दिए वोट

हाल ही में आए चार राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों में कांग्रेस को भले मात मिली हो, लेकिन दिल्लील, मध्य‍प्रदेश, छत्तींसगढ़ और राजस्थान में मुस्लिमों ने सबसे ज्यादा वोट कांग्रेस को दिया है। इसका सीधा अर्थ हुआ कि मुस्लिम वोट बैंक आज भी कांग्रेस के साथ जुड़ा हुआ है। चुनाव में लोक लुभावन वादे करने वाली भाजपा, आप और अन्यथ पार्टियां मुस्लिमों के वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करने में असफल साबित हुई हैं।

चुनाव विश्लेषक एवँ सी वोटर के संपादक यशवंत देशमुख ने एक लेख में चार राज्‍यों में मुस्लिमों के वोट प्रतिशत का ब्‍योरा देते हुए बताया है कि इन राज्‍यों में कहीं भी मुसलमान मतदाताओं ने कांग्रेस को धोखा नहीं दिया।

इस बार चारों विधानसभाओं की कुल 589 सीटों में से सिर्फ आठ मुस्लिम प्रत्‍याशी ही चुनाव जीत पाए हैं जबकि पिछली बार यह संख्‍या 20 थी। इन चुनावों में जीते आठ में से सात ऐसे प्रत्‍याशी हैं, जिन्‍होंने फिर से चुनाव जीता है। सिर्फ दिल्‍ली से एक प्रत्‍याशी ही ऐसा है, जिसने पहली बार चुनाव जीता है। इन चार राज्‍यों में मुस्लिमों की आबादी 7.03 प्रतिशत है। चारों राज्‍यों में भाजपा ने छह, तो कांग्रेस ने 29 मुस्लिम प्रत्‍याशियों को चुनाव में उतारा था। इनमें से भाजपा को दो और कांग्रेस को पांच सीटों पर सफलता मिली।

मध्‍यप्रदेश में मुस्लिमों ने कांग्रेस को सबसे ज्‍यादा वोट दिए हैं। यहां कांग्रेस के खाते में मुस्लिमों के 69.2 प्रतिशत वोट आए हैं। वहीं भाजपा को सिर्फ 18.6 प्रतिशत ही मुस्लिम वोट मिले। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) को सिर्फ 2.4 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय का वोट मिला।

मध्‍यप्रदेश की 230 सीटों पर छह मुस्लिम प्रत्‍याशी ही मैदान में थे। इनमें से कांग्रेस ने पांच सीटों पर, तो भाजपा ने सिर्फ एक सीट पर अपना उम्‍मीदवार उतारा था। इनमें से सिर्फ एक प्रत्‍याशी को जीत मिली। यह सीट भोपाल (उत्‍तर) से कांग्रेस प्रत्‍याशी आरिफ अकील ने जीती। आरिफ यहां से पांचवी बार चुनाव जीते हैं।

छत्‍तीसगढ़ :

छत्‍तीसगढ़ में भी कांग्रेस को मुस्लिम समुदाय के 42.4 प्रतिशत वोट मिले, जबकि भाजपा को सिर्फ 18.6 प्रतिशत मुस्लिमों ने वोट डाले। वहीं बीएसपी को 6.8 फीसदी वोटों से संतुष्‍ट होना पड़ा।

यहां से कोई भी मुस्लिम प्रत्‍याशी चुनाव नहीं जीत पाया है। जबकि पिछली बार दो विधायकों ने जीत हासिल की थी। ये दोनों विधायक इस बार फिर से मैदान में थे, लेकिन हार गए।

राजस्‍थान :

राजस्‍थान में भी मुस्लिमों के लिए कांग्रेस पहली पसंद रही। यहां 55.6 प्रतिशत मुस्लिमों ने कांग्रेस को वोट दिया। भाजपा को 15.5 और बीएसपी को सिर्फ 4.3 प्रतिशत ही वोट मिले।

प्रत्‍याशी जीतने के हिसाब से कांग्रेस के लिए सबसे अजीब स्थिति राजस्‍थान में रही। मुस्लिमों का 50 प्रतिशत से ज्‍यादा वोट हासिल करने वाली कांग्रेस का कोई भी मुस्लिम प्रत्‍याशी यहां से चुनाव नहीं जीत पाया, जबकि कांग्रेस ने 16 प्रत्‍याशी मैदान में उतरे थे। वहीं भाजपा ने चार प्रत्‍याशियों को मैदान में उतारा था, जिनसे से दो ने चुनाव जीता।

दिल्‍ली :

दिल्‍ली में शानदार प्रदर्शन करने वाली� आम आदमी पार्टी� (आप) भी मुस्लिम वोटों को अपनी ओर नहीं खींच पाई। जबकि दिल्‍ली में मात्र आठ सीटों पर जीत पाई कांग्रेस को 45.2 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले। यहां नंबर एक पर रही भाजपा को मुस्लिमों के मात्र 15.5 प्रतिशत वोट ही मिले। बीएसपी के खाते में भी 4.3 प्रतिशत वोट आए।

दिल्‍ली चुनाव में कुल 108 मुस्लिम प्रत्‍याशी मैदान में थे। इनमें से कांग्रेस के 6, भाजपा का 1, आप के 6, बीएसपी के 11 और शेष अन्‍य पार्टियों और निर्दलीय प्रत्‍याशी शामिल थे। इन प्रत्‍याशियों में से सिर्फ पांच ही चुनाव जीते हैं। इनमें से चार सीटें कांग्रेस और एक सीट जनता दल के खाते में आई।

.

टीवी पर ‘24’ एक ताज़ा हवा का झोंका

टीवी पर सालों चलने वाले उबाऊ सीरियलों के बीच एक ताजी हवा का झोंका-सा आया दिखता है। पिछले कुछ हफ्तों से एक एंटरटेनमेंट चैनल पर प्रसारित हो रहे अनिल कपूर के सीरियल "२४" को देखकर लगता है, जैसे किसी ने उनींदेपन में झकझोर दिया हो। अनिल कपूर बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने इस बात का अहसास कराया कि आज भी छोटी अवधि के सीरियल ज्यादा असरदार या प्रासंगिक हैं, बजाय सालों चलने वाली उन कहानियों के, जिन्हें दर्शक ऊबकर देखना बंद कर देते हैं, लेकिन कहानी बासी होकर सड़ने की सीमा तक चलती ही रहती है।

"२४" सीरियल आंधी की रफ्तार से आगे बढ़ता है। पूरी कहानी २४ घंटे की। एक शाम को सिंघानिया परिवार हवाई जहाज से दिल्ली से मुंबई जाता है, जहां अगली रात एक बड़ी रैली में सिंघानिया परिवार का बेटा आदित्य देश के प्रधानमंत्री पद के लिए दावा पेश करेगा। एक तरफ परिवार की रैली की तैयारियां, दूसरी ओर पड़ोसी देश से आए एक संघर्षरत उग्रवादी समूह के सदस्यों की आदित्य को जान से मारने की योजना। घटनाक्रम रेस की तरह दौड़ता है। सीरियल में एक अन्य बात जिसने चौंकाया, वह है कहानी की प्रासंगिकता।

�कहानी उस सिंघानिया परिवार की है, जो देश पर शासन करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है। वह यह मान ही नहीं सकता कि देश उनके बिना भी चल सकता है। उस परिवार के एक सदस्य की, जो देश का प्रधानमंत्री था, हत्या कर दी गई थी। हत्या भी पड़ोसी देश में सक्रिय उस लड़ाकू गुट ने की, जिसका मानना था कि भारतीय प्रधानमंत्री ने उनके मुल्क की सरकार को उन्हें हराने में मदद की थी। यह गुट अपने समुदाय के नागरिकों के हक के लिए हिंसक संघर्ष में लिप्त है। जब सिंघानिया परिवार के उस सदस्य की एक चुनावी रैली के दौरान हत्या हुई थी, तब उसका बेटा आदित्य व बेटी दिव्या बहुत छोटे थे। उस समय परिवार की कमान संभाली प्रधानमंत्री की विधवा श्रीमती नैना ने।

उन्होंने अपने जीवन का एक ही मिशन बनाया कि समय आने पर बेटा आदित्य देश का प्रधानमंत्री बने। पार्टी की चेयरपर्सन बनने के बाद श्रीमती नैना के प्रयास और तेज हो गए। उनकी एक दुविधा थी कि बेटा लगातार देश की कमान संभालने के प्रति अनिच्छुक होने के संकेत देता रहता है, लेकिन वे हार मानने वालों में से नही हैं। सीरियल में यह भी दिखाया गया है कि इस योजना में उनकी पूरी मदद उनकी बेटी दिव्या (जिसकी शादी विक्रांत नामक एक भ्रष्ट व्यक्ति से हुई है) करती है।

नैना को शक है कि उनका दामाद सिंघानिया परिवार से निकटता का गैरवाजिब फायदा उठा रहा है। एंटी टेररिस्ट यूनिट का मानना है कि कोई अंदर का आदमी आदित्य के मूवमेंट की खबरें उस उग्रवादी गुट को देता है। गुट के उग्रवादियों ने तय कर रखा है कि जिस रैली में आदित्य अपने प्रधानमंत्री बनने का दावा पेश करने वाला है, उसमें उसकी हत्या कर दी जाएगी। नैना सोच भी नही सकतीं कि आदित्य के हर मूवमेंट की खबर उनका दामाद ही उग्रवादियों तक पहुंचा रहा है। आदित्य सिंघानिया रैली में पहुंच तो जाता है, लेकिन वहां पर हरेक को यह कहकर चौंका देता है कि दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज के अपने विद्यार्थीकाल में घटे एक हादसे के लिए शायद वह जिम्मेदार था। जनता आदित्य की इस स्वीकारोक्ति को सुनकर भौचक है और परिवार स्तब्ध। कुल मिलाकर पूरा घटनाक्रम दर्शक को बांधता है।

इसमें दर्शकों को सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात है, इसकी कुछ घटनाओं का वर्तमान राजनीतिक संदर्भों से सटीक जुड़ाव। मसलन, तत्कालीन प्रधानमंत्री की पड़ोसी देश के उग्रवादी गुट द्वारा हत्या, परिवार की कमान प्रधानमंत्री की विधवा द्वारा संभालना और बेटे को प्रधानमंत्री बनाने का मिशन लेकर चलना, बेटे द्वारा इसमें कोई रुचि न दिखाना और बेटी की शादी ऐसे व्यक्ति से होना, जो परिवार की बदनामी का सबब बन जाता है। इन तमाम प्रसंगों का बेबाक और ईमानदार प्रदर्शन काबिले-तारीफ है। स्पष्ट है कि हमारे पॉलिटिकल "सेंसर" को देखते हुए ऐसा प्रस्तुतीकरण हिम्मत का काम है और इसका निरंतर अबाध चलते रहना भी अनूठी घटना है। पाश्चात्य मानकों के अनुसार भारतीय टीवी और रेडियो पर भी आजादी से विचार व चित्र प्रस्तुत किए जा सकते हैं, यह सीरियल इस बात का केवल संकेत मात्र है, तो भी "२४" साधुवाद का पात्र है।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

mathur _mohini@yahoo.com

साभार-दैनिक नईदुनिया से

.

हे बेशर्मी तेरा आसरा!

दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 2009 में जिस समय समलैंगिक संबंधों को वैध कऱार देने संबंधी एक याचिका पर निर्णय सुनाते हुए इसे वैध ठहराया था उस समय भी देश में यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना था। गौरतलब है कि 2001 में समलैंगिक संबंधों को वैध ठहराने हेतु ऐसे संबंधों की पैरवी व समर्थन करने वाले कुछ संगठनों ने एक याचिका दायर की थी। इस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना निर्णय इनके पक्ष में सुनाया था। उस समय अदालत ने कहा था कि 'अधिकार दिए नहीं जाते बल्कि मात्र इनकी पुष्टि की जाती है अर्थात् मान-स मान का अधिकार,हमारा हिस्सा है और इस दुनिया की किसी अदालत के पास हमारा हक छीनने का अधिकार नहीं हैं।‘ और अपने इसी आदेश के साथ दिल्ली उच्च न्यायालय ने ऐसे संबंधों को कानूनी मान्यता दे दी थी। परंतु कई धार्मिक संगठनों व अन्य सामाजिक संगठनों ने हाईकोर्ट के इस फैसले का विरोध करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी। परणिामस्वरूप पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 2009 के निर्णय को रद्द करते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को पुन: वैध ठहराते हुए यह आदेश जारी किया कि व्यस्क समलैंगिकों के मध्य सहमति से बनाए गए यौन संबंध गैरकानूनी हैं।              

दरअसल, अप्राकृतिक रूप से किन्हीं दो समलैंगिकों के मध्य बनाए जाने वाले यौन संबंध के विरुद्ध बनाया गया यह कानून 153 वर्ष पुराना हैं। इस कानून के तहत यदि कोई भी दो समलैंगिक व्यक्ति सहमति से तथा स्वेच्छा से किसी भी स्थान पर अप्राकृतिक तरीके से यौन संबंध स्थापित करते हैं तो कानून की नज़र में यह एक अपराध होगा। और ऐसा अपराध करने वालों को उम्र कैद की सज़ा तक हो सकती है। वास्तव में यह कानून छोटे बच्चों को अप्राकृतिक यौन हिंसा से बचाने हेतु बनाया गया था। परंतु बाद में किन्हीं दो समलैंगिकों के मध्य सहमति से स्थापित किया गया यौन संबंध भी इसी कानून की परिधि में आ गया।

एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा धारा 377 को बरकरार रखने व इसे उचित ठहराने के फैसले के बाद मानवाधिकार के तथाकथित पैरोकार सड़कों पर उतरते दिखाई दे रहे हैं तथा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की अत्यंत घटिया व निम्र स्तर के शब्दों में आलोचना कर रहे हैं। सर्वोच्च न्यायलय के इस फैसले की निंदा ऐसे शब्दों में की जा रही है जिसे अदालत की मानहानि तक कहा जा सकता है।             

इस प्रकार के अप्राकृतिक संबंधों को वैध ठहराने की पैरवी करने वालों का मत है कि चंूकि दुनिया के अधिकांश देशों में मानवाधिकारों को संरक्षण दिए जाने के तहत ऐसे संबंधों को कानूनी वैधता प्रदान की जा रही है। लिहाज़ा भारत में भी ऐसे संबंधों को कानूनी दर्जा प्राप्त होना चाहिए। इस तर्क के पक्ष में तमाम तथाकथित बुद्धिजीवी व मानवाधिकार कार्यकर्ता खड़े दिखाई दे रहे हैं। इस प्रकरण में सबसे मज़ेदार व दिलचस्प बात यह है कि भारत के जिन प्रमुख धर्मों के धर्मगुरू आपस में धार्मिक मुद्दों को लेकर लड़ते दिखाई देते थे वे सभी समलैंगिकता के विरोध में एक-दूसरे से गलबहियां करते दिखाई दे रहे हैं। और एक स्वर में समलैंगिक संबंध बनाने जैसी व्यवस्था का प्रबल विरोध करते नज़र आ रहे हैं।

ऐसे में इस विषय पर बहस होना लाज़मी है कि आख़िर मानावाधिकार की सीमाएं क्या हों? इन सीमाओं को कोई व्यक्ति अपने लिए स्वयं निर्धारित करेगा या समाज अथवा कानून को किसी दूसरे व्यक्ति के अधिकारों की सीमाएं निर्धारित करने का अधिकार है? मानवाधिकार के जो पैरोकार आज समलैंगिक संबंध स्वेच्छा से बनाए जाने को अपने अधिकारों के दायरे में शामिल कर रहे हैं आख़िर इस बात की क्या गारंटी है कि भविष्य में मानवाधिकार के कोई दूसरे पैरोकार मनुष्य व पशुओं के मध्य यौन संबंध स्थापित करने को भी अपने अधिकार क्षेत्र की बात नहीं कहेंगे? अथवा मानवाधिकार के नाम पर पवित्र पारिवारिक रिश्तों को भी कलंकित करने की मांग नहीं खड़ी करेंगे?              

आख़िरकार प्रकृति जोकि सृष्टि की रचनाकार है उसके द्वारा भी कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं। पुरुष-स्त्री संबंध के माध्यम से सृष्टि की रचना होते रहना इस नियम की एक सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। यदि अप्राकृतिक यौन संबंध की प्रकृति पर नज़र में कोई ज़रा सी गुंजाईश होती तो पशु भी इस प्रकार के समलैंगिक संबंध स्थापित करते देखे जा सकते थे। पंरतु बड़े ही आश्चर्य एवं ग्लानि की बात है स्वयं को सबसे बुद्धिमान समझने वाला तथा अपने अधिकारों व कर्तव्यों की बात पूरी सजगता के साथ करने वाला मनुष्य ही समलैंगिक संबंधों जैसे अप्राकृतिक व अनैतिक रिश्तों की पैरवी करने लगा है। यदि यह कहा जाए कि मानवाधिकारों की आड़ लेकर यह वर्ग केवल अपनी वासनापूर्ति को कानूनी शक्ल देना चाहता है तो यह कहना कतई गलत नहीं होगा। ऐसे अप्राकृतिक यौन संबंधों के पक्ष में दिए जााने वाले सारे तर्क भी फुज़ूल के तर्क दिखाई देते हैं। उदाहरण के तौर पर ऐसे संबंधों के पक्षधर यह कह रहे हैं कि ऐसे संबंध सदियों से बनते चले आ रहे हैं लिहाज़ा आगे भी इन्हें वैधता मिलनी चाहिए। आख़िर यह कैसा तर्क है? कोई बुराई यदि सदियों से चली भी आ रही है तो उसे रोका जाना चाहिए अथवा उस बुराई निरंतरता प्रदान की जानी चाहिए? एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि दुनिया के कई देशों में ऐसे संबंधों को मान्यता प्राप्त है। यह तर्क भी इसलिए गलत है कि दुनिया के लगभग सभी देशों की अपनी अलग संस्कृति,स यता तथा सामाजिक व धार्मिक सीमाएं व मान्यताएं हैं। हम जिस देश में रहते हैं वहां ऐसे संबंधों को न तो समाज मान्यता देता है न ही कानून। ऐसे संबंध रखने वालों को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता।               

दूसरे देशों की भारत से तुलना कहां की जा सकती है? कई देशों में पूर्णरूप से नग्र होकर परेड व जुलूस निकाले जाते हैं कई देशों में पोर्नग्राफी आम बात है। पोर्न िफल्मों में समलैंगिक संबंध बनाने वाले कलाकारों को विशिष्ट लोगों की श्रेणी में गिना जाता है। पूर्ण नग्र अवस्था में इक_े होकर पुरुष व महिलाएं सामूहिक चित्र खिंचवाते हैं। हम यह नहीं कहते कि वे लोग कुछ गलत,बुरा अथवा अनैतिक कार्य करते हैं।

यह सब बातें उनकी स यता,संस्कृति तथा समाज का हिस्सा हो सकती हैं परंतु भारतीय उपमहाद्वीप में ऐसी बातों की कोई गुंजाईश नहीं है। पिछले दिनों पश्चिमी देशों में नंगे रहने न रहने को लेकर महिलाओं द्वारा नग्र अवस्था में एक प्रदर्शन पादरियों के सामने जाकर किया गया। जिसमें नग्र लड़कियों द्वारा यह नारे लगाए गए कि 'मेरा शरीर मेरा कानूनÓ। ज़रा सोचिए भारत वर्ष जैसे देश में जहां लड़कियों को अब भी उच्च शिक्षा हेतु कॉलेज भेजने से अभिभावक कतराते हों, लड़कियों को सूरज डूबने के बाद घर में रहने की हिदायत दी जाती हो, लड़कियों के अकेले कहीं आने-जाने पर पाबंदी लगाई जाती हो क्या ऐसे देश में लड़कियां अपने अधिकारों के नाम पर नग्र अवस्था में घूमने की मांग कर सकती हैं? और क्या मानवाधिकार के पैरोकारों को भी उनके सुर में अपना सुर मिलाना चाहिए?

इस विषय पर विभिन्न धर्मों के धर्मगुरु अथवा धार्मिक संगठनों द्वारा समलैंगिक संबंधों का विरोध  करने से मुद्दा और अधिक पेचीदा क्यों न बन गया हो परंतु वास्तव में यह विषय धर्म व अधर्म से जुड़ा होने के बजाए मानवीय मर्यादाओं तथा सामाजिक नैतिकता के साथ-साथ प्रकृति द्वारा निर्धारित संबंधों से जुड़ा मामला है। इसमें न तो किसी धर्मगुरु द्वारा धार्मिक दृष्टिकोण से दखलअंदाज़ी करने की ज़रूरत है न ही इस विषय को रूढ़ीवाद या उदारवाद से जोडऩे की कोई आवश्यकता है। यह विषय पूरी तरह से प्रकृति,मर्यादा व नैतिकता से जुड़ा विषय है। इसकी रक्षा करना सबसे बड़ा मानवाधिकार होना चाहिए न कि अपनी तुच्छ अप्राकृतिक वासनापूर्ति को ही मानवाधिकार के तथाकथित पैरोकार सर्वोच्च समझें। इन्हें केवल अपनी अप्राकृतिक वासनापूर्ति के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए बल्कि यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारे देश के किशोरों पर आख़िर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?

इस विषय पर एक बात और भी काबिल-ए-गौर है कि टेलीविज़न के अधिकांश खबरिया चैनल इस विषय को और अधिक मसालेदार बना कर तथा दोनों पक्षों में चोंचें लड़वाकर समाज में गलत विषय पर हो रही गलत बहस को प्रोत्साहित कर रहे हैं। अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में ऐसी बहसों को अपने मु य कार्यक्रमों का हिस्सा बनाना मीडिया नीति के भी विरुद्ध है तथा सामाजिक दृष्टिकोण से ाी गलत है। क्या मीडिया तो क्या समलैंगिक संबंधों के पैरोकार व मानवाधिकारों की बातें करने वाले लोग तथा मानवाधिकार संगठन सभी को मानवीय अधिकारों के साथ-साथ इस विषय को प्रकृति द्वारा निर्धारित नियम,मर्यादा तथा नैतिकता के आईने में भी देखना चाहिए।

 

निर्मल रानी                                                        

1618, महावीर नगर
अंबाला शहर,हरियाणा।

 फोन-0171-2535628

.

बाबा रामदेव ने कहा इस बेशर्मी का इलाज है योग

योगगुरु बाबा राम देव ने कहा है कि समलैंगिकता अप्राकृतिक है। उन्होंने कहा कि 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट का दुर्भाग्यपूर्ण फैसला आया था, जिसका विरोध करते हुए सभी संगठनों ने कोर्ट में याचिका डाली थी। बाबा रामदेव ने एलजीबीटी (लेजबियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर) कम्युनिटी को अपने पतंजलि योगपीठ में आने का निमंत्रण देते हुए कहा कि वे आकर वहां कुछ दिन रहें, उन्हें इस आदत से मुक्त किया जाएगा। सत्संग और योग के माध्यम से उन्हें इस लत से दूर करने में मदद करेंगे।

दिल्ली के� कॉन्सटिट्यूशन क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में बाबा रामदेव ने कहा कि मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करता हूं। कोर्ट ने सत्य का समर्थन करते हुए अनीति का महिमामंडन होने से रोका है। संसद के लोग नैतिक आचरण करते हुए अमानवीय, अधार्मिक और अप्राकृतिक कार्य को प्रोत्साहन नहीं देंगे और देश के करोड़ों लोगों की भावना का आदर करते हुए धारा-377 को बरकरार रखेंगे। समलैंगिक लोग समाज को पीछे लेकर गए हैं। समलैंगिक लोगों ने शिक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य, राजनीति के क्षेत्र में ऐसा कौन-सा इतिहास रचा है कि पुरी दुनिया के सामने वे आदर्श बनकर सामने आए हैं।

योगगुरु ने कहा, किसी भी धर्मग्रंथ में समलैंगिकता को नैतिक नहीं कहा गया है। ग्रंथों में 99 फीसदी पॉजिटिव आसपेक्ट है, समलैंगिकता लाइफ का नेगेटिव आसपेक्ट है। अनैतिक आचरण सभी क्षेत्रों में है, हमें उसका पोषण नहीं करना चाहिए। रामदेव ने महात्मा गांधी की बात का भी हवाला देते हुए कहा- गांधीजी ने कहा था कि हम किसी अनीति का समर्थन न करें। सत्ता का काम अनीति का समर्थन करना नहीं है। पिछली बार हाई कोर्ट के निर्णय से समलैंगिता जैसे अनैतिक कार्यों को प्रोत्साहन मिला था। आंतरिक रूप से दो व्यक्ति पर्दे के पीछे अनैतिक आचरण कर रहे हैं, उनको कौन रोक सकता है। लेकिन समाज में किसे प्रोत्साहन देना है और किसे नहीं, इसके बारे में सोचना जरूरी है।

नैतिकता की परिभाषा पर रामदेव ने कहा कि अगर हमारे माता-पिता समलैंगिक होते तो हम पैदा होकर नहीं आते। हम माता-पिता जैसे शब्दों का इस्तेमाल ही न कर पाते। यह अप्राकृतिक है। कोई भी मां ये नहीं चाहेगी कि उसका बेटा किसी पुरुष को बहू बनाकर घर में ले आए या उसकी बेटी पति के रूप में किसी लड़की को घर ले आए। मैं करोड़ों माताओं का प्रतिनिधित्व भी कर रहा हूं।

.

धमाकों के आरोपी को किस पुलिस वाले ने भगाया?

अहमदाबाद के बम धमाकों के आरोपी कैनेथ हेवुड के मुंबई में भागने की मदद किसने की थी? बीजेपी ने गृहमंत्री आर.आर. पाटील से इस सवाल का जवाब मांगा है। अहमदाबाद में जुलाई व सितंबर 2008 को हुए धमाकों में इंडियन मुजाहिदीन के 23 लोगों के खिलाफ आरोपपत्र विशेष न्यायालय में रखा गया, जिसमें नवी मुंबई में मिशनरी बनकर घूम रहे कैनेथ का नाम शामिल है। बम की धमकी वाले ई-मेल भेजने वाले कैनेथ को एटीएस ने पकड़ा था। बीजेपी प्रवक्ता माधव भंडारी ने कहा है कि गृहमंत्री बताएं कि उसे किसके दबाव में रिहा कर दिया गया। कैनेथ को बचाने वाले वरिष्ठ पुलिस कर्मचारियों के नाम घोषित किए जाएं।

 

.

निर्मल बाबा के खिलाफ जमानती वारंट

उत्तर प्रदेश के मेरठ की एक अदालत ने धोखाधड़ी के एक मामले में निर्बल बाबा के खिलाफ जमानती वॉरंट जारी किया है। ओरंगाशाहपुर डिग्गी निवासी हरीशवीर ने पिछले साल अक्टूबर में जुडिशल मैजिस्ट्रेट (फर्स्ट क्लास) विनीता के कोर्ट में केस दायर कर आरोप लगाया था कि शुगर की बीमारी से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने अप्रैल 2012 में निर्मल बाबा से संपर्क किया था। निर्मल बाबा ने उनसे काफी पैसा लेकर खीर खाने और गरीबों को खिलाने की सलाह दी थी। जनपद बागपत जनता वैदिक कॉलेज में प्राध्यापक हरीशवीर ने बाबा की सलाह पर खीर खानी शुरू कर दी। जिससे उनका स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया और बड़ी मुश्किल से जान बची।

हरीशवार ने निर्मल बाबा के खिलाफ पुलिस में शिकायत की, लेकिन केस दर्ज नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने कोर्ट की शरण लेते हुए निर्मल बाबा के खिलाफ केस दर्ज कराया। इस मामले में पिछले साल 31 अक्टूबर को अदालत ने निर्मल बाबा को तलब किया लेकिन समन जारी होने के बाद भी वह अदालत में हाजिर नहीं हुए। इस दौरान उनकी तरफ से अदालत में हाजरी माफ की अर्जी दी गई।

अदालत ने इस अर्जी को खारिज करते हुए निर्मल बाबा के खिलाफ वॉरंट जारी करते हुए 6 जनवरी को अदालत में तलब किया है।

.

राजपाल यादव जेल से घर पहुँचे

फिल्म अभिनेता राजपाल यादव जेल की सज़ा काटने के बाद अपने घर कुंडरा पहुंचे।पांच करोड़ रुपयों की देनदारी के मामले में जेल जाने के बारे में राजपाल ने कहा कि उन्हीं को धोखा दिया गया और सजा भी उन्हें ही भुगतनी पड़ी। उनके साथ जो कुछ हुआ वह समय का खेल था, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।

राजपालयादव ने कहा कि जिस मामले में उन्होंने कोर्ट के चक्कर लगाए और सजा पाई, उस मामले की असलियत कुछ और ही है। चूंकि मामला कोर्ट में चल रहा है, इसलिए जैसा कोर्ट का आदेश होगा, उसका पालन किया जाएगा। बोले: इतना जरूर कहना चाहूंगा कि राजपाल किसी को धोखा नहीं दे सकता। यह समय का फेर ही है, जो बुरा वक्त देखना पड़ा। आगे सब ठीक हो जाएगा।

 

.