Monday, November 25, 2024
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नारायण सिंह के खिलाफ बयान दिया तो रात हवालात में गुज़री

इन्दौर से पत्रिका ने खबर दी है कि इन्दौर में �नारायण सांई की पत्नी जानकी उर्फ शिल्पी और गार्ड सतीश वाधवानी के बयान लेकर गुजरात पुलिस शुक्रवार रात इंदौर से रवाना हो गई है। बयान देने के बाद जब गार्ड अपने त्रिवेणी नगर स्थित घर पर पहुंचा ही था कि जूनी इंदौर पुलिस पहुंच गई। दरअसल, एक गुंडे ने गार्ड के खिलाफ पत्नी के साथ छेड़छाड़ का मामला दर्ज करवा दिया था। मामले में सतीश का कहना है, नारायण सांई और उसके सेवादारों ने ही यह षड़यंत्र रचा है।

सतीश को पुलिस ने रातभर लॉकअप में रखा। सुबह जमानत पर बाहर निकला। सतीश ने बताया, वह नारायण सांई और आसाराम के गार्ड था। 2011 तक उनके साथ था। विरोध करने पर छेड़छाड़ की झूठी रिपोर्ट दर्ज करवाकर मुझे डरा रहे हैं।�

सतीश ने बताया कि गुजरात पुलिस कल दोपहर मेरे बयान के बाद टीम ने शिल्पी का घर पूछा। मैं उन्हें लेकर शिल्पी के घर गया। रात सवा 9 बज चुकी थी। मैं वहां से टीम के साथ अपने घर आ गया। घर पहुंचा तो गुंडा और उसकी पत्नी खड़े थे। उन्होने मुझसे बात करना चाही। डर के कारण 100 नंबर पर कंट्रोल रूम फोन लगाया। फिर जूनी इंदौर थाने से दो पुलिसकर्मी आए। उन्होने मुझसे कहा, तुम्हारे खिलाफ छेड़छाड़ का मामला दर्ज हुआ है। थाने पहुंचा तो पता चला, उस गुंडे ने ही केस दर्ज कराया है। पुलिस का कहना है कि फरियादी क्षेत्र का नामी बदमाश है। उस पर 10 से अधिक अपराध दर्ज है। सतीश का कहना है, नारायण सांई मुझे धमकियां दे रहा है। मेरे पास उसकी कॉल रिकार्डिग है। गवली पलासिया आश्रम के सेवादार चिंटू ने एक सप्ताह पहले मुझे धमकाया था जिसकी रिपोर्ट दर्ज कराई है।

पीए पकड़ाई तो सांई भी आ जाएगा गिरफ्त में

सतीश ने बताया, 1994 में उन्होंने आसाराम से दीक्षा ली थी। उसके बाद से वह 2011 तक आसाराम व नारायण सांई के साथ रहे। उसके बाद आसाराम और सतीश के बीच अनबन हो गई। सतीश को आसाराम ने पिटवाया था। आसाराम का अहमदाबाद में महिला आश्रम था। वहीं, नारायण सांई ने हिम्मतनगर के गामदोई के आश्रम में महिला आश्रम बनाया। इनमें वे काले कारनामों को अंजाम देते थे। साढ़े 3 बजे रात को नारायण सांई के रूम से लड़कियां बाहर आती थी। नारायण सांई की पीए मोनिका अग्रवाल निवासी दिल्ली भी गायब है। मोनिका की उसके पिता पुरूषोत्तम से फेसबुक पर बात होती रहती है। यदि पुलिस उसे पकड़ लेगी तो नारायण सांई भी पकड़ा जाएगा। बयान में शिल्पी ने पुलिस को बताया, वह नारायण की करतूतों से बहुत दु:खी है। शिल्पी नारायण सांई से तलाक लेने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी।

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तरुण तेजपाल घाटे के बाद भी कैसे चलाते रहे तहलका?

तरुण तेजपाल पर अपनी साथी पत्रकार के कथित यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद तहलका के असली मालिकों और राजनीतिक संबंधों को लेकर सवाल उठने लगे हैं। तहलका पत्रिका को चलाने वाली कंपनी अनंत मीडिया प्राइवेट लिमिटेड वर्ष 2010-12 के दौरान करीब 26 करोड़ का घाटा उठा चुकी है। हाल के वर्षों में उद्योगपति और तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद केडी सिंह से जुड़ी कंपनियों की अनंत मीडिया में हिस्सेदारी बढ़ी है।

केडी सिंह के अलावा अनंत मीडिया में वर्ष 2012 तक कपिल सिब्बल और राम जेठमलानी की हिस्सेदारी भी रही है। तहलका की प्रबंध संपादक शोमा चौधरी के पास भी कंपनी के 1000 शेयर हैं। केडी सिंह के अलकैमिस्ट समूह की तीन कंपनियों पर गैर-कानूनी तरीके से पूंजी जुटाने के आरोप लग चुके हैं। सरकार इस मामले की स्पेशल फ्रॉड इंवेस्टीगेशन ऑर्गेनाइजेशन (एसएफआईपी) से जांच के आदेश दे चुकी है।

कंपनी रजिस्ट्रार की फाइलिंग के अनुसार, वर्ष 2011 और 2012 के बीच अनंत मीडिया में केडी सिंह से जुड़ी कंपनियों की हिस्सेदारी बढ़कर दोगुनी से ज्यादा हो गई। सितंबर, 2011 में रॉयल बिल्डिंग एंड इंफ्रा. लिमिटेड की हिस्सेदारी 30 फीसदी से बढ़कर सितंबर, 2012 में 65.75 फीसदी तक पहुंच गई, जबकि तरुण तेजपाल की हिस्सेदारी 39.34 फीसदी से घटकर 19.25 फीसदी रह गई।

रॉयल बिल्डिंग एंड इंफ्रा में केडीएस कॉरपोरेशन की 85 फीसदी हिस्सेदारी है। इस तरह केडी सिंह ने केडीएस कॉरपोरेशन व अन्य कंपनियों के जरिए परोक्ष रूप से अनंत मीडिया में बड़ी हिस्सेदारी खरीदी है। सितंबर, 2012 में अनंत मीडिया में छोटे-बड़े कुल 29 हिस्सेदार थे, जिसमें कांग्रेस के कपिल सिब्बल और नामी वकील राम जेठमलानी भी शामिल हैं। सिब्बल, जेठमलानी और शोमा चौधरी की हिस्सेदारी एक फीसदी से कम थी।

तहलका पत्रिका का प्रकाशन करने वाली कंपनी अनंत मीडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का गठन अगस्त 2003 में हुआ था। तब कई नामी हस्तियां इससे जुड़ी थीं। लेकिन अब सिर्फ 5 लोग तरुण तेजपाल (टीटी), उनकी बहन नीना तेजपाल शर्मा, अनिल ओबरॉय कुमार, सतीश मेहता और प्रवीण कुमार राठी अनंत मीडिया के निदेशक के तौर पर काम कर रहे हैं। सतीश मेहता केडी सिंह के अलकैमिस्ट ग्रुप की कई कंपनियों में भी निदेशक हैं। माना जाता है कि अलकैमिस्ट की ओर से वही तहलका का कामकाज देखते हैं।

साभार- अमर उजाला से

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बीए बीएससी की पढ़ाई अब इतिहास रह जाएगी

देश में छात्रों की आने वाली नई पीढ़ी बीए और बीएससी जैसी पढ़ाई की पारंपरिक कोर्सो से महरूम रहेगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने बीए और बीएससी की पढ़ाई को आउट ऑफ डेटेड बताते हुए इसे बंद करने का प्रस्ताव पास किया है। यूजीसी के मुताबिक बीए, बीएससी की पढ़ाई अब रोजगार परक नहीं है। इसलिए इसमें बदलाव जरूरी है। इसकी जगह नया कोर्स लांच करने की तैयारी है। इसका नाम बैचलर ऑफ वोकेशनल एजूकेशन (बीवोक) रहेगा जो पूरी तरह से रोजगार परक होगा। इंडस्ट्री की मांग के मुताबिक कोर्स करिकुलम तैयार किया जाएगा। यूजीसी ने बीए, बीएससी की पढ़ाई को रिप्लेस करने का मसौदा तैयार कर लिया है। इसका सकरुलर भी राज्य विश्वविद्यालय और संबद्ध महाविद्यालयों की वेबसाइट, लॉगिन पर उपलब्ध है।

200 कालेजों में कोर्स शुरू होगा
27 नवंबर को यूजीसी के वाइस चेयरमैन एस. देवराज की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि प्रयोग के तौर पर बीवोक का नया कोर्स सत्र 2015-16 से शुरू किया जाएगा। पहले फेज के दौरान देश के 200 कालेजों में यह कोर्स शुरू होगा। अगले 10 सालों में संशोधित कोर्स देश के सभी राजकीय, अनुदानित और सेल्फ फाइनेंस कालेजों में पढ़ाने की योजना है। यह व्यवस्था कई फेज में लागू जाएगी।

कालेजों को मिलेगा अनुदान
 
वाइस चेयरमैन ने कहा कि यूजीसी का अनुदान अब परफारमेंस पर आधारित कर दिया गया है। जिस कालेज के पास अच्छी फैकल्टी, रिसर्च, इंफ्रास्ट्रBर और एजूकेशन क्वॉलिटी बढ़िया होगी, उसे अच्छा अनुदान दिया जाएगा।

निजी संस्थानों को 25 हजार करोड़ की मदद
यूजीसी के वाइस चेयरमैन के मुताबिक राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के तहत देश के निजी शैक्षिक संस्थानों को 25 हजार करोड़ रुपये का अनुदान दिया जाना है। इससे शैक्षिक गुणवत्ता में जबरदस्त सुधार की उम्मीद है। देवराज ने कहा है कि उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में इंग्लैंड और अमेरिका की तरह सुधार की जरूरत है। यूजीसी ने एजूकेशनल इंस्टीट्यूट को और जवाबदेह बनाने की कवायद की है।

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मूवीज नाउ के साथ दिसंबर में मनाइए जश्न

महीने भर ऐक्शन, रोमांच और जोश से भरपूर मनोरंजन का उत्सव

मूवीज नाउ इस वर्ष दिसंबर माह में अपने दर्शकों के लिये शानदार लाइन-अप के साथ उनका मनोरंजन करने के लिए तैयार है! अपनी तीसरी वर्षगांठ का उत्सव मना रहा मूवीज नाउ वाकई में अविस्मरणीय जश्न मनाने के मूड में है! मूवीज नाउ हॉलीवुड शौकीनों के लिये दिसंबर महीने में एक के बाद एक हिट फिल्में प्रस्तुत करके उन्हें जीवनकालिक अनुभव करायेगा। इसमें ऐक्शन से लेकर सस्पेंस और एनिमेशन से भरपूर ब्लॉकबस्टर फिल्में शामिल हैं।

माह की शुरूआत ही धमाके के साथ होगी! मूवीज नाउ पर 1 दिसंबर 2013 को ब्लॉकबस्टर नाइट्स से महीने की शुरूआत होने वाली है। चैनल के पोर्टफोलियो में 25 मिलियन डॉलर से 481 मिलियन डॉलर तक कमाने वाली फिल्मों की आकर्षक श्रृंखला उपलब्ध है। इनमें से सर्वश्रेष्ठ फिल्में ब्लॉकबस्टर नाइट्स के अंतर्गत प्रसारित की जायेंगी, जैसे कि सॉल्ट, राइज ऑफ द प्लैनेट ऑफ द ऐप्स, कुंग फू पांडा सहित कई अन्य फिल्में प्रत्येक रविवार रात 11 बजे प्रसारित की जाएंगी।

जबकि ब्लॉकबस्टर नाइट्स दर्शकों का मूड बनायेगा, हैरी पॉटर- द कम्प्लीट एडवेंचर से शाम की शुरूआत और भी बेहतरीन बनेगी। मूवीज नाउ ना सिर्फ आपको आपके पसंदीदा जादूगर के युद्ध, लड़ाई और जीत के किस्से दिखायेगा, बल्कि इस रोमांचक जादूगर की पूरी श्रृंखला को प्रस्तुत करेगा। 6 दिसंबर से प्रत्येक शुक्रवार 9 बजे देखिय हैरी पॉटर- द कम्प्लीट ऐडवेंचर में स अनोखी फ्रैंचाइज के 7 ब्लॉकबस्टर्स को।

मूवीज नाउ जोश और ऐक्शन का समावेश करते हुये, भारतीय टेलीविजन पर 21 दिसंबर रात 9 बजे सबसे बड़े और अद्भुत मार्शल आर्ट ब्लॉकबस्टर ताइ ची जीरो का प्रसारण करेगा। यही नहीं, एनिमेटेड, प्यारी और मजेदार हिट मैडागास्कर एस्केप 2 अफ्रीका दर्शकों का मनोरंजन करेगी। 28 दिसंबर रात 9 बजे महीने की सुपर मूवी के रूप में बेन स्टिलर, क्रिस रॉक, डेविड श्विमर, जैडा पिंकेट स्मिथ और साशा बैरान कोहेन को मैडागास्कर फ्रैंचाइजी की दूसरी किश्त में एलेक्स, मार्टी, मेलमैन, ग्लोरिया और किंग जूलियन की भूमिका में देखने का अवसर मिलेगा।

त्यौहार का मौसम समाप्त करते हुये मूवीज नाउ जिंगल ऑल द डे और हाइ ऑन 2013 के साथ वर्ष के अंतिम सप्ताह का उत्सव मनायेगा। क्रिसमस और नये वर्ष के जोश का आनंद उठाने के लिये, चैनल हॉलीवुड की फिल्मों के शौकीनों और संपूर्ण परिवार के लिये सर्वश्रेष्ठ हिट फिल्में प्रसारित करेगा। जिंगल ऑल द डे के साथ 24 और 25 दिसंबर को सुबह 9 बजे से बेबीज डे आउट, जिंगल ऑल द वे, आइस एज: डान ऑफ द डायनासोर्स, जुमांजी आदि कई फिल्मों के साथ क्रिसमस का त्योहार मनाएं। हैंगओवर, फाइनल डेस्टिनेशनल, फैंटास्टिक फोर-राइज ऑफ द सिल्वर सर्फर, कराटे किड एव अन्य ऐक्शन ब्लॉकबस्टर फिल्मों के साथ नये साल की मस्ती का जश्न मनाइये।

इस दिसंबर, मूवीज नाउ- हॉलीवुड इन एचडी पर सर्वश्रेष्ठ हॉलीवुड फिल्मों के साथ ऐक्शन और पार्टी का आनंद उठाएं!

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वंदे मातरम राष्ट्र की अस्मिता का गीत

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है. फिर अपनी मातृभूमि से प्रेम क्यों नहीं ? अपनी मातृभूमि की अस्मिता से संबद्ध प्रतीक चिन्हों से घृणा क्यों? प्रश्न अनेक हैं, परंतु उत्तर कोई नहीं. प्रश्न है राष्ट्रगीत वंदे मातरम का. क्यों कुछ लोग इसका इतना विरोध करते हैं कि वे यह भी भूल जाते हैं कि वे जिस भूमि पर रहते हैं, जिस राष्ट्र में निवास करते हैं, यह उसी राष्ट्र का गीत है, उस राष्ट्र की महिमा का गीत है?�

वंदे मातरम को लेकर प्रारंभ से ही विवाद होते रहे हैं, परंतु इसकी लोकप्रियता में दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती चली गई. �2003 में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार वंदे मातरम विश्व का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय गीत है. इस सर्वेक्षण विश्व के लगभग सात हज़ार गीतों को चुना गया था. बीबीसी के अनुसार 155 देशों और द्वीप के लोगों ने इसमें मतदान किया था. �उल्लेखनीय है कि विगत दिनों कर्नाटक विधानसभा के इतिहास में पहली बार शीतकालीन सत्र की कार्यवाही राष्ट्रगीत वंदे मातरम के साथ शुरू हुई. अधिकारियों के अनुसार कई विधानसभा सदस्यों के सुझावों के बाद यह निर्णय लिया गया था. विधानसभा अध्यक्ष कागोदू थिमप्पा ने कहा था कि लोकसभा और राज्यसभा में वंदे मातरम गाया जाता है और सदस्य बसवराज रायारेड्डी ने इस मुद्दे पर एक प्रस्ताव दिया था, जिसे आम-सहमति से स्वीकार कर लिया गया.

वंदे मातरम भारत का राष्ट्रीय गीत है. वंदे मातरम बहुत लंबी रचना है, जिसमें मां दुर्गा की शक्ति की महिमा का वर्णन किया गया है. भारत में पहले अंतरे के साथ इसे सरकारी गीत के रूप में मान्यता मिली है. इसे राष्ट्रीय गीत का दर्जा कर इसकी धुन और गीत की अवधि तक संविधान सभा द्वारा तय की गई है, जो 52 सेकेंड है. उल्लेखनीय है कि 1870 के दौरान ब्रिटिश शासन ने 'गॉड सेव द क्वीन' गीत गाया जाना अनिवार्य कर दिया था. बंकिमचंद्र चटर्जी को इससे बहुत दुख पहुंचा. उस समय वह एक सरकारी अधिकारी थे. उन्होंने इसके विकल्प के तौर पर 7 नवंबर, 1876 को बंगाल के कांतल पाडा नामक गांव में वंदे मातरम की रचना की. गीत के प्रथम दो पद संस्कृत में तथा शेष पद बांग्ला में हैं. राष्ट्रकवि रबींद्रनाथ ठाकुर ने इस गीत को स्वरबद्ध किया और पहली बार 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में यह गीत गाया गया. 1880 के दशक के मध्य में गीत को नया आयाम मिलना शुरू हो गया. वास्तव में बंकिमचंद्र ने 1881 में अपने उपन्यास 'आनंदमठ' में इस गीत को सम्मिलित कर लिया. उसके बाद कहानी की मांग को देखते हुए उन्होंने इस गीत को और लंबा किया, अर्थात बाद में जोड़े गए भाग में ही दशप्रहरणधारिणी, कमला और वाणी के उद्धरण दिए गए हैं. बाद में इस गीत को लेकर विवाद पैदा हो गया.�

वंदे मातरम स्‍वतंत्रता संग्राम में लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था. इसके बावजूद इसे राष्ट्रगान के रूप में नहीं चुना गया. वंदे मातरम के स्थान पर वर्ष 1911 में इंग्लैंड से भारत आए जॊर्ज पंचम के सम्मान में रबींद्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखे और गाये गए गीत जन गण मन को वरीयता दी गई. इसका सबसे बड़ा कारण यही था कि कुछ मुसलमानों को वंदे मातरम गाने पर आपत्ति थी. उनका कहना था कि वंदे मातरम में मूर्ति पूजा का उल्लेख है, इसलिए इसे गाना उनके धर्म के विरुद्ध है. इसके अतिरिक्त यह गीत जिस आनंद मठ से लिया गया है, वह मुसलमानों के विरुद्ध लिखा गया है. इसमें मुसलमानों को विदेशी और देशद्रोही बताया गया है. �

1923 में कांग्रेस अधिवेशन में वंदे मातरम के विरोध में स्वर उठे. कुछ मुसलमानों की आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने इस पर विचार-विमर्श किया. पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में समिति गठित की गई है, जिसमें मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सुभाष चंद्र बोस और आचार्य नरेन्द्र देव भी शामिल थे. समिति का मानना था कि इस गीत के प्रथम दो पदों में मातृभूमि की प्रशंसा की गई है, जबकि बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का उल्लेख किया गया है. समिति ने 28 अक्टूबर, 1937 को कलकत्ता अधिवेशन में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस गीत के प्रारंभिक दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप में प्रयुक्त किया जाएगा. इस समिति का मार्गदर्शन रबींद्रनाथ ठाकुर ने किया था.�

मोहम्मद अल्लामा इक़बाल के क़ौमी तराने ’सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ के साथ बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा रचित प्रारंभिक दो पदों का गीत वंदे मातरम राष्ट्रगीत स्वीकृत हुआ. 14 अगस्त, 1947 की रात्रि में संविधान सभा की पहली बैठक का प्रारंभ वंदे मातरम के साथ हुआ. फिर 15 अगस्त, 1947 को प्रातः 6:30 बजे आकाशवाणी से पंडित ओंकारनाथ ठाकुर का राग-देश में निबद्ध वंदे मातरम के गायन का सजीव प्रसारण हुआ था. डॊ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा में 24 जनवरी, 1950 को �वंदे मातरम को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने संबंधी वक्तव्य पढ़ा, जिसे स्वीकार कर लिया गया. �वंदे मातरम को राष्ट्रगान के समकक्ष मान्यता मिल जाने पर अनेक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय अवसरों पर यह �गीत गाया जाता है.�

आज भी आकाशवाणी के सभी केंद्रों का प्रसारण वंदे मातरम से ही होता है. वर्ष 1882 में प्रकाशित इस गीत को सर्वप्रथम 7 सितंबर, 1905 के कांग्रेस अधिवेशन में राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया था. इसलिए वर्ष 2005 में इसके सौ वर्ष पूरे होने पर साल भर समारोह का आयोजन किया गया. 7 सितंबर, 2006 को इस समारोह के समापन के अवसर पर मानव संसाधन मंत्रालय ने इस गीत को स्कूलों में गाये जाने पर विशेष बल दिया था. �इसके बाद देशभर में वंदे मातरम का विरोध प्रारंभ हो गया. परिणामस्वरूप तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह को संसद में यह वक्तव्य देना पड़ा कि वंदे मातरम गाना अनिवार्य नहीं है. यह व्यक्ति की स्वेच्छा पर निर्भर करता है कि वह वंदे मातरम गाये अथवा न गाये. इस तरह कुछ दिन के लिए यह मामला थमा अवश्य, परंतु वंदे मातरम के गायन को लेकर उठा विवाद अब तक समाप्त नहीं हुआ है।�

�जब भी वंदे मातरम के गायन की बात आती है, तभी इसके विरोध में स्वर सुनाई देने लगते हैं. इस गीत के पहले दो पदों में कोई भी मुस्लिम विरोधी बात नहीं है और न ही किसी देवी या दुर्गा की आराधना है. इसके बाद भी कुछ मुसलमानों का कहना है कि इस गीत में दुर्गा की वंदना की गई है, जबकि इस्लाम में किसी व्यक्ति या वस्तु की पूजा करने की मनाही है. इसके अतिरिक्त यह गीत ऐसे उपन्यास से लिया गया है, जो मुस्लिम विरोधी है. गीत के पहले दो पदों में मातृभूमि की सुंदरता का वर्णन किया गया है. इसके बाद के दो पदों में मां दुर्गा की अराधना है, लेकिन इसे कोई महत्व नहीं दिया गया है. ऐसा भी नहीं है कि भारत के सभी मुसलमानों को वंदे मातरम के गायन पर आपत्ति है या सब हिन्दू इसे गाने पर विशेष बल देते हैं. कुछ वर्ष पूर्व विख्यात संगीतकार एआर रहमान ने वंदे मातरम को लेकर एक संगीत एलबम तैयार किया था, जो बहुत लोकप्रिय हुआ. उल्लेखनीय बात यह भी है कि ईसाई समुदाय के लोग भी मूर्ति-पूजा नहीं करते, इसके बावजूद उन्होंने कभी वंदे मातरम के गायन का विरोध नहीं किया. �वरिष्ठ साहित्यकार मदनलाल वर्मा क्रांत ने वंदे मातरम का हिन्दी में अनुवाद किया था. अरबिंदो घोष ने इस गीत का अंग्रेज़ी में और आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने उर्दू में अनुवाद किया. �उर्दू में ’वंदे मातरम’ का अर्थ है ’मां तुझे सलाम’. ऐसे में किसी को भी अपनी मां को सलाम करने में आपत्ति नहीं होनी चाहिए ।�

संपर्क�
डॉ. सौरभ मालवीय
प्रकाशन अधिकारी
माखनलाल चतुर्वेदी�
राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्‍वविद्यालय, भोपाल �
मो. +919907890614�

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युवा एवम् दिग्गजों संग दिल्ली में सजी शास्त्रीय संगीत की महफिल..

तीन दिवसीय 9वां स.म.प. संगीत सम्मेलन सम्पन्न! श्रोता हुए भाव-विभोर!

नई दिल्ली।सोपोरी अकादमी ऑफ म्यूजि़क एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स द्वारा आयोजित 3 दिवसीय स.म.प. संगीत सम्मेलन रविवार की रात सम्पन्न हुआ। कमानी सभागार में आयोजित किये गये इस सम्मेलन में देश के लीजेण्ड्री कलाकारों सहित प्रतिष्ठित एवम् युवा कलाकारों ने अपने शानदार प्रस्तुतिकरण से दिल्ली के वीकेण्ड को खुशनुमा बनाया। संगीत कार्यक्रम के अतिरिक्त स.म.प. पुरस्कार भी प्रदान किये गये।

स.म.प. संगीत सम्मेलन शुक्रवार को रघुवीर सिंह जू. माॅडल स्कूल व सलवाल स्कूल, गुड़गांव द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना के साथ हुआ। जिसके बाद नृत्य व संगीत क्षेत्र में आजीवन योगदान हेतु पंडित बिरजू महाराज एवम् पंडित अनूप जलोटा को वर्ष 2013 के स.म.प. वितस्ता अवार्ड से सम्मानित किया गया।

संगीतमय संध्या की शुरूआत सूफी गायिका रागिणी रेणु के सूफी गायन से हुई। रागिणी ने बाबा बुल्ले शाह के कलाम ‘घंूघट चक हुन सजना..’ से शुरूआत करते हुए हज़रत आमिर खुसरो का कलाम ‘जिहाले मिस्की..’ प्रस्तुत किया और बाबा बुल्ले शाह के कलाम ‘रांझणा..’ से अपनी प्रस्तुति को विराम दिया। रागिणी के बाद संतूर वादन व संगीतकार अभय रूस्तुम सोपोरी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में संतूर वादन प्रस्तुत किया। अभय ने राग चम्पाकली में आलाप – जोड़, विलम्बित झपताल में गत, मध्यलय एकताल में सूफीयाना तराना, दु्रत लय में एक बंदिश और अतिदु्रत तीन ताल में एक गत प्रस्तुत करते हुए सभी को मंत्र-मुग्ध किया। अभय के उपरान्त लीजेण्ड्री भजन गायक पंडित अनूप जलोटा जी ने मंच संभाला और ‘ऐसी लागी लगन…’, ‘राम नाम की धुन है…’, ‘रंग दे चुनरिया श्याम पिया…’ और ‘जग में सुन्दर हैं दो नाम..’ आदि सहित विभिन्न भजन से शास्त्रीय संगीत की इस संध्या के पहले दिन को विराम दिया। एक तरफ जहां जलोटा जी भजन प्रस्तुत कर रहे थे वहीं श्रोता इनमे लीन व मग्न दिखाई दिये, तालियों की गड़गड़ाहट से श्रोताओं ने पंडित जी का अभिवादन किया।

दूसरी संध्या की शुरूआत स.म.प. सम्मान से हुई जहां जम्मू-कशमीर के वयोवृद्ध कलाकार श्री अब्दुल गनी राथर ‘त्राली’ को ‘स.म.प. शेर-ए-कश्मीर शेख मौहम्मद अब्दुल्ला अवार्ड’, श्री अरूण चटर्जी को ‘स.म.प. आचार्य अभिनवगुप्त सम्मान’  और युवा हिन्दुस्तानी सूफी गायिका रागिणी रेणु एवम् मोहनवीणा वादक श्री सलिल भट्ट को ‘स.म.प. युवा रत्न सम्मान’ प्रदान किये गये। इसके बाद सलिल भट्ट की सात्विक वीणा ने उपस्थित श्रोताओं का मन-मोहा। उन्होंने राग जोगेश्वरी प्रस्तुत किया। दूसरा प्रस्तुतिकरण गुंदेचा बंधुओ के धु्रपद गायन था जिन्होंने राग बिहाग का खूबसूरत प्रस्तुतिकरण दिया। दूसरे दिन का आकर्षण पंडित रोनू मजूमदार की बांसुरी और उस्ताद रफीक खान के सितार की जुगलबन्दी रही, जहां तबले पर उस्ताद अकरम खान ने उन्हें संगत दी। रोनू दा ने राग बागेश्री प्रस्तुत किया।

तृतीय एवम् अन्तिम संध्या का गुंजायेमान पंडित विजय शंकर मिश्रा ने के संचालन में स्वर-लय-सम्वाद से हुआ जहां युवा कलाकारों अभिषेक मिश्रा, सचिन शर्मा व जुहैब खान (सभी तबला) और ऋषि शंकर उपाध्याय (पखावज) ने वरिष्ठ कलाकारों घनश्याम सिसोदिया (सारंगी) व दामोदर लाल घोष (हारमोनियम) के साथ दो दर्जन से अधिक दुर्लभ परन प्रस्तुत की। इसके बाद विदूषी कला रामनाथ के वाॅयलिन का जादू भी श्रोताओं द्वारा सराहा गया। उन्होंने राग शुद्ध कल्याण में विलम्बित में बंदिश ‘बोलन लागी..’, तीन ताल में मध्य लय, दुु्रत लय एक ताल में बंदिश और एक तराना प्रस्तुत किया।

समारोह का अंतिम दिन और बीतता समय श्रोताओं व दर्शकों की उत्सुकता बढ़ाये जा रहा था क्योंकि उन्हें इंतजार था स्वयं श्याम को मंच पर देखने का। दर्शकों के इंतजार और उत्सुकता को लीजेण्ड्री कत्थक सम्राट पंडित बिरजू महाराज ने बखूबी चरम पर पहुंचाया और मंच पर जो रूपान्तरण उन्होंने उजागर किया वह देखते ही बनता था। पंडित जी ने अपने भाव-विभोर नृत्य से मंच पर प्रभु श्री श्याम को मंच पर जीवंत करते हुए भरपूर वाह-वाही लूटी। साथी कलाकारों ओनिर्बन भट्टाचार्य (गायन), राजेश प्रसन्ना (सरोद), गुलाम वारिस (सारंगी), अकरम खान (तबला) और दीपक महा (पढंत) के साथ उनका तालमेल जबरदस्त था। कभी तबले की थाप नायक तो पंडित जी के घुंघरू नायिका का किरदार निभा रहे थे। नृत्य के माध्यम से राधा जी के प्रति श्याम का असीम प्रेम बखूबी देखने को मिला कि किस तरह से वे कभी उन्हें रोकते हैं तो कभी पकड़ लेते हैं तो कभी सताते हैं तो कभी उनका पीछा करते हैं। सभागार में मौजूद श्रोताओं ने खड़े होकर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ पंडित जी का अभिवादन किया।

मौके पर मेहमानों व कलाकारों ने पंडित भजन सोपोरी एवम् स.म.प. द्वारा संगीत क्षेत्र में किये जा रहे उनके प्रयासों की भूरि-भूरि प्रसंशा की। पं. बिरजू महाराज ने संगीत विरासत को संजोय रखने के उनके प्रयास को सराहा। उन्होंने कहा कि एक कलाकार वह व्यक्तित्व है जो कला को संजोने में अपना पूरी जीवन समर्पित कर देता है और दर्शक दीर्घा में विभिन्न उम्र के दर्शकों को देखकर मुझे बेहद खुशी है कि आपने काफी समय तक रूककर संगीत का लुत्फ उठाया। मैं उम्मीद करना हूं कि युवा पीढ़ी के कलाकार भी उसी तरह से आने वाली पीढि़यों के लिए इस कला को संजोयेंगे जिस तरह से हमने अपने पूर्वजों की विरासत को संजोया है।

पंडित अनूप जलोटा ने इस मंच पर मौका देने हेतु स.म.प. का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि शास्त्रीय संगीत के इस मंच पर अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करना गौरवपूर्ण है और मैं बहुत गौरवशाली महसूस कर रहा हूं।

सलिल भट्ट ने पंडित भजन सोपोरी, अभय सोपोरी व स.म.प. के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि जहां आज के समय में लोग सिर्फ अपने लिये सोचते हैं, अपना भविष्य उज्जवल करने हेतु प्रयासरत हैं वहीं पंडित भजन सोपोरी की सोच जन-जन तक संगीत पहुंचाने की रही है जो कि बेहद मुश्किल है और स.म.प. संगीत सम्मेलन जैसे श्रेष्ठ कार्यक्रम में इतने प्यारे श्रोताओं के समक्ष संगीत प्रस्तुत करना शानदार अनुभव है।

पंडित भजन सोपोरी ने गीत-संगीत को बढ़ावा देने हेतु युवाओं के आगे आकर निरंतर प्रयास करने की बात पर जोर देते हुए कहा कि युवा ही भविष्य के लीजेण्ड हैं, हमने परम्परा और विरासत को संजोये रखने का प्रयास करते हुए इस समारोह के माध्यम से मंच प्रदान किया है जिससे कि वे अपने कला-कौशल को निखारते हुए आगे बढ़ें और दूर-दूर तक इसे जींवत रखें।

तीन दिवसीय संगीत समारोह का संचालन श्रीमति साधना श्रीवास्तव ने किया। तीनों ही दिन विभिन्न अतिथिगण कार्यक्रमों का लुत्फ उठाने कमानी सभागार पहुंचे जिनमें पंडित भजन सोपोरी, प्रो. अपर्णा सोपोरी, श्रीमति शमीम आज़ाद, त्रिनिदाद एंड टोबागो के राजदूत माननीय श्री चन्द्रदत्त सिंह, राज्यसभा सांसद गुलाम नबी रत्नपुरी, टाटा के रेजीडेंट डायरेक्टर भरत वख्लू, वीपी संजय सेठी, डी.डी.जी – दूरदर्शन डा. रफीक मसूदी, श्री शिव नारायण सिंह अनिवेद, पंडित विजय शंकर मिश्रा, रितेश मिश्रा, अविनाश पसरीचा आदि प्रमुख थे।

संगीत सम्मेलन के दौरान कमानी सभागार के प्रांगण में फोटोग्राफी इन्नी सिंह की फोटो प्रदर्शनी एवम् दिल्ली व जम्मू-कश्मीर के कलाकारों की कला-प्रदर्शनी भी आयोजित की गयी थी।

सम्पर्क करें-शैलेष नेवटिया -9716549754

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तरूण तेजपाल का घिनौना कृत्य व राजनीति

तरूण तेजपाल ने स्टिंग ऑपरेशन (खेजी पत्रिका) के जरिये क्रिकेट के सट्टेबाजी का और उसके बाद भाजपा अध्यक्ष सहित कई नेताओं को रक्षा खरीद में दलाली लेते हुए पत्रकारिता जगत में तहलका मचाया और मीडिया जगत के नामी हस्ती के रूप में पहचान बनाई। तरूण तेजपाल ने इंटरनेट पर पोर्टवेबल (इलेक्ट्रनिक मीडिया) से शुरूआत की उसके बाद टैबलेट साइज का पेपर शुरू किया और तहलका का अंग्रेजी संस्करण में साप्ताहिक पत्रिका निकालना शुरू किया। तहलका सिढ़िया चढ़ता गया और 2008 से हिन्दी में तहलका पत्रिका भी आने लगी। 

समय के साथ-साथ तेजपाल दौलत और शोहरत दोनों कमाई। तहलका के इस कामयाबी के पीछे केवल तेजपाल ही नहीं थे इसके पीछे कई लोगों की मेहनत थी। खासकर वे युवा पत्रकार जिन्होंने और जगहों से कम पैसों पर यहां दिन-रात मेहनत की तथा जोखिम उठाया। तेजपाल के पास दलील थी कि तहलका के पास कारपोरेट जैसा पैसा नही है, तहलका एक जनपक्षधर पत्रिका है। लेकिन जैसा कि हर संस्था में होता है कि जिसने पूंजी लगाई वही मलाई खायेगा (पैसा हो या नाम हो)। तहलका के साथ भी ऐसा ही हुआ उसमें कई बड़े-बड़े लोगों के शेयर लगे हर तरह के विज्ञापन छापे जाते रहे और उसका मुनाफा कुछ लोगों और खासकर तरूण तेजपाल की जेबों को गर्म करता रहा। जो युवा पत्रकार जुड़े वे थोड़े पैसे में भी इसलिए खुश थे कि वे तहलका कोे प्रगतिशील पत्रिका मानते रहे बस इतना ही सुकुन था उनके मन में।
 
फोटोग्राफर तरूण सहरावत छत्तीसगढ़ के माओवादी इलाके में रिर्पोटिंग करने के लिए गए थे और वे साइबरल मलेरिया के शिकार होकर असमय काल के ग्रास बन गये। तहलका पत्रिका ने निश्चित ही ऐसे विषयों को उठाया है जो कि मुख्यधारा की मीडिया नहीं उठाती है, इसलिए तहलका का पाठक भी एक खास तरह का रहा है लेकिन इन सबका लाभ अकेले तरूण तेजपाल ले रहे थे। तहलका जो कि सोनी सोडी से लेकर निर्भया कांड व महिलाओं के प्रति पुलिस की नजरिया तक की स्टोरी अपनी पत्रिका में छापती रही है। लेकिन अपनी ऑफिस में काम करने वाली महिला कर्मचारियों/पत्रकारों के लिए 1997 के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन नहीं करती। जिसमें काम के जगह पर महिला कर्मचारियों के लिए विशाखा गाइड लाईन (दिशा निर्देश) के तहत कमिटी बनाने की बात कही गई है। पीड़िता की शिकायत के बाद कमेटी का गठन किया गया जो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लंघन है।

तहलका से कमाये हुए दौलत और शोहरत ने तरूण तेजपाल को वहां लाकर खड़ा कर दिया जहां हर ताकतवर आदमी अपने को कुछ भी करने का हकदार समझने लगता है। गोवा जैसे आलीशन जगह में जाकर करोड़ों रु. खर्च कर थिंकफेस्ट का आयोजन करते हैं। गोव के इस रेस्टोरेट का एक रात का किराया 55 हजार रु. है। यह थिंकफेस्ट खनन कॉरपोरेशनों (माफिया) द्वारा स्पॉनसरशिप किया गया था। यह तहलका पत्रिका द्वारा दावा किया जाने वाले बातों का ठीक उल्टा है। एक दो अपवाद को अगर छोड़ दिया जाए तो तरूण तेजपाल का वर्ग (क्लास) दोहरे चरित्र में ही जीता हैं। एक तो वह लोग हैं जो सीधे-सीधे जनता के शोषण में लगे होते हैं और खाओ-पीओ, मौज-मस्ती करो खुल कर बोलते हैं।
 
दूसरे वे लोग है जो सीधा-सीधा तो नहीं बोलते हैं लेकिन वही काम वह दूसरे तरह से करते हैं। तरूण तेजपाल भी उसी बीमारी के शिकार थे खाओ-पीओ, मौज-मस्ती करो इसी मस्ती में उनको यह लगने लगा था कि उनके अधीनस्थ काम करने वाली महिला के मर्जी के मालिक वो हैं। जब पीड़िता बलात्कार की स्टोरी पर बात करने के लिए उनके पास जाती है तो वे सोफे पर लेटे रहे और लाइट ऑन नहीं करने दी और लेटे हुए ही लड़की से बात करते हैं और वह यह समझ बैठते हैं कि लड़की उनके इस आचरण को पसन्द करती है। बात करते समय वे पीड़िता के शरीर को छूने की कोशिश करते हैं जिसे पीड़िता मना करती है फिर भी वे ऐसा करना अपना अधिकार समझते हैं। 7 नवम्बर के रात पीड़िता के साथ लिफ्ट में वे यौनिक हिंसा करते हैं और पीड़िता उनको सब कुछ याद दिलाती है जिससे कि वे उनके इस यौनिक हिंसा से बच जाये।

तेजपाल अपने रूतबे के बल पर बचते रहे हैं। गोवा पुलिस दिल्ली आकर न तो उनको गिरफ्तार कर पाई और न ही उनसे पूछ-ताछ कर सकी। 29 नवम्बर को गोवा जाते हुए चलने और बैठने के अंदाज से उनका गरूड़ साफ दिख रहा था उनके चेहरे पर किसी तरह का शिकन नहीं था। जब कि खुद पहले ईमेल में वे अपने घिनौने कृत को स्वीकार कर चुके हैं। मीडिया में मामला आने से पहले उनकी बेटी जो पीड़िता (दोस्त) के साथ थी वो अब अपने पिता के साथ दिख रही थी और पूरा मीडिया से तेजपाल को बचाती रही। अब जब वे गिरफ्तार हो चुके हैं यानी तरूण तेजपाल का तेज खत्म हो चुका है। क्या तेजपाल का हश्र भी बंगारू लक्षमण जैसा ही हाने वाला है?

तरूण तेजपाल पहले अपने मैनेजिंग डायरेक्टर शोमा चौधरी को ईमेल भेजकर कहते हैं कि ‘‘बीते कुछ दिन बेहद मुश्किल रहे हैं। मैं इसका पूरा दोष खुद पर लेता हूं। गलत निर्णय और स्थिति को गलत तरीके से समझने की वजह से यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई। यह उसके खिलाफ है जिसके लिए हम लड़ते रहे हैं। मैं संबंधित पत्रकार से दुर्व्यवहार के लिए बिना शर्त माफी मांगता हूं। मैं इसका प्रायश्चित भी करना चाहता हूं। मैं छः माह तक तहलका ऑफिस नहीं आंऊगा मैं सभी पदों से मुक्त होता हूं।’’ यहां भी उनका वही मालिकाना गरूड़ दिखता है मुजरिम भी और वही और जज भी वही बन गये। जब इस माफी से वे अपने कुकृत्य को नहीं छिपा सके तो उसे एक दिल्लगी की घटना बताने लगे और यौनिक हिंसा को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं।  दक्षिण पंथी पर्टियां खासकर भाजपा इस प्रकरण का लाभ लेना चाहती है। गोवा भाजपा शासित राज्य होने के कारण वहां की पुलिस ने तुंरत कदम उठा लिया और तरूण तेजपाल से पूछ-ताछ करने दिल्ली आ गई। भाजपा अपने को लिंग (जेण्डर) के मुद्दे पर संवेदनशील दिखाने की कोशिश कर रही है।
 
भाजपा भूल जाती है कि अभी दो माह पहले ही किस तरह से उनके पार्टी के कार्यकताओं, नेताओं ने आशा राम को बचाने की कोशिश की। यहां तक म.प्र. के भाजपा नेता ने तो पीड़िता और उसके परिवार पर ही केस करने तक की बात कह डाली।  भाजपा के नेता विजय जौली ने कार्यकर्ताओं के साथ शोमा के घर पर जाकर जिस तरह से हुड़दंग मचाया क्या वह किसी भी संवेदनशील इन्सान का काम हो सकता है? 

चुनाव व अपनी छीछालेदर को देखते हुए भाजपा के शीर्ष नेतृृत्व ने अपने को किनारा कर लिया। लेकिन इससे यह सही नहीं हो जाता कि भाजपा महिलाओं के मुद्दे पर संवेदनशील है। तरूण तेजपाल प्रकरण आने के बाद गुजरात सरकार की लड़की का जासूसी का मामला ठंडे बस्ते में चला गया और मीडिया में उस पर चर्चा ही बंद हो गई। मुज्फरनगर में जिस तरह दंगे किये गए, महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और उस दंगे को भड़काने वालों को आगरा में सम्मानित किया गया इससे यह साफ है कि भाजपा जैसी पार्टियों महिला मुद्दों पर कैसे सोचती है और उनकी नीयती क्या है।

पीड़िता का वह बात बिल्कुल सही है कि रेप सिर्फ सेक्स के लिए नहीं होता बल्कि इसका रिश्ता ताकत, सहूलियत और अधिकार से भी है। उसने यह भी अंशका जताई है कि कुछ लोग उसके ऊपर व्यक्तिगत और भद्दे हमले भी कर सकते हैं। जैसा कि समाज में यह होता है जब कोई ताकतवर (शोहरत और पैसे वाले) पर उससे कमजोर लड़की ऊंगली उठाती है तो उसके चरित्र पर ही सवाल उठाये जाते हैं।
 
महिला जब यह सवाल उठाती है तो अपने स्वाभिमान और सम्मान के लिए लड़ाई लड़ती है जैसा कि यह महिला ने भी जिक्र किया है कि ‘‘तरूण तेजपाल धन, संपत्ति, रूतबे को बचाने के लिए लड़ रहे हैं और वह अपने सम्मान की खातिर लड़ रही है। मेरा जिस्म केवल मेरा है, यह किसी नौकरी देने वाले के लिए खेलने की कोई चीज नहीं है।’’ पीड़िता इस बात से परेशान है जिसमें कि तरूण तेजपाल ने कहा कि राजनीतिक साजिश है। उसने कहा है कि ‘‘अपनी जिन्दगी और अपने शरीर पर नियंत्रण के लिए महिलाओं का संघर्ष राजनीतिक है, लेकिन नारीवादी राजनीति और उसकी चिंताएं राजनीतिक पार्टियों की संकीर्ण दुनिया से बहुत ज्यादा बड़े हैं।’’

दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ही नारीवादी राजनीति को लड़ा जा सकता है। आज महिलाएं घर, कॉलेज, ऑफिस, सड़कों, बसों, ट्रेनों में कहीं सुरक्षित नहीं है। जहां भारत जैसे पिछड़े देश में सेक्स पर बात करना गलत माना जाता है वहीं सेक्स सभी पुरुषों के अन्दर घर कर बैठा है। चाहे वाह बाप, भाई हो या रिश्तेदार, चाहे रजनीतिक, डॉक्टर, धर्मगुरू, अफसरशाह, न्यायपालिका सभी जगह महिलाओं को उपभोग के रूप में देखने की आदत सी पड़ गई है। यहां तक कि इन सब पर उपदेश देने वाली महिलाएं भी पुरुषों को बचाने में जाने-अनजाने रूप में लग जाती है।

 जैसा कि तेजपाल के केस में उनकी बेटी हो या शोमा सेन जाने-अनजाने वे पुरुष को संरक्षण ही दे रही थी। आज जरूरी है कि इस तरह के विचारों पर खुल कर बातें हों इससे कैसे छुटाकारा पाये जा सके उस पर बाते हों। एक तरफ भारत का पिछड़ा संस्कृति तो दूसरी तरफ पूंजीवाद-साम्राज्यवाद पोषित संस्कृति लोगों के भवनाओ में कुंठा का संचार करती है। जरूरत है इस तरह की संस्कृति को समूल नाश करने की जिससे महिलाएं सड़क, घर, ऑफिस, बस, ट्रेन सभी जगह बेखौफ सुरक्षित रह सकें।
 
स्रोत: http://hindi.newsyaps.com/

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ड्रोन हमले: पाकिस्तान के लिए ज़हमत या रहमत?

अफगानिस्तान-पाकिस्तान के क़बाइली इलाकों विशेषकर पाक-अफगान सीमांत क्षेत्र के उत्तरी वज़ीरिस्तान में आए दिन होने वाले ड्रोन हमले पाकिस्तान में चर्चा का विषय बने हुए हैं। ड्रोन हमलों की मुखालिफत करने वाला वर्ग इन हमलों को पाकिस्तान की संप्रभुता पर अमेरिकी हमला बता रहा है। जबकि पाकिस्तान का एक बड़ा अमनपसंद वर्ग इन हमलों को लेकर भीतर ही भीतर काफी खुश भी है। ऐसे लोगों की खुशी का सीधा सा कारण यह है कि स्वचालित ड्रोन विमान प्रणाली से छोड़ी जाने वाली मिसाईल प्राय: ऐसे शीर्ष आतंकवादियों विशेषकर तालिबान व तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान तथा हक्कानी गुट से जुड़े सरगनाओं को निशाना बना रही है जिनके पास पाकिस्तानी सेना का हाथ पहुंच पाना आसान नहीं है।

यहां यह बताना भी ज़रूरी है कि ड्रोन हमलों को अमल में लाने के लिए अमेरिका को स्थानीय लोगों की ही सहायता लेनी पड़ती है। और प्राय: यह लोग पश्तो भाषी स्थानीय निवासी ही होते हैं जो सीआईए के एजेंट के रूप में काम करते हैं। इन्हें अमेरिका द्वारा ड्रोन हमले की सफलता तथा मारे गए आतंकवादी की खबर की पुष्टि के पश्चात भारी भरकम रकम से तो नवाज़ा ही जाता है साथ-साथ यदि सूचना देने वाला चाहे तो उसकी सुरक्षा के दृष्टिगत उसे अमेरिकी राष्ट्रीयता भी प्रदान की जाती है। इन हमलों में सूचना देने वालो द्वारा सिम कार्ड,जीएसएम तथा जीपीआरएस प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता है। स्थानीय मुखबिर द्वारा जैसे ही किसी सटीक निशाने की सूचना निर्धारित यूएस अधिकारियों को गुप्त स्थान से दी जाती है शीघ्र ही अमेरिकी सेना ड्रोन कंट्रोल रूम नेवादा (अमेरिका) को इसकी सूचना स्थानांतरित कर देता है। और पलक झपकते ही नेवादा से ड्रोन विमान को उड़ान भरने का आदेश कंप्यूटरीकृत प्रणाली द्वारा दे दिया जाता है। इसके पश्चात अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस में भारी अमेरिका बंदोबस्त में मिसाईल से लैस होकर रखे गए चालक रहित ड्रोन विमान आसमान में उड़ान भरने लगते हैं और कुछ ही क्षणों में अपने अचूक निशाने से अपने लक्ष्य को भेद डालते हैं।

गौरतलब है कि पाकिस्तानी सेना व पाक सरकार अफगान तालिबान तथा स्थानीय तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान से दो-दो हाथ करने के बाद पस्त होकर अब इस नतीजे पर पहुंच चुकी है कि तालिबानों को लड़कर परास्त नहीं किया जा सकता। इसका कारण यह हरगिज़ नहीं है कि पाकिस्तानी सेना तालिबानों से कमज़ोर है बल्कि इसका मु य कारण यह है कि तालिबानी विचारधारा ने पाक सरकार से लेकर पाक सेना तथा आईएसआई जैसे संस्थानों तक में अपनी पैठ मज़बूत कर ली है। यही वजह है कि तालिबान कई बार पाक सैनिक ठिकानों पर बड़े हमले कर चुके हैं।

इसी कारण पाक सरकार ने अब तालिबानों के साथ बातचीत करने की पेशकश की है। उधर अफगानिस्तान में भी अमेरिकी सेना अफगान सरकार के माध्यम से अच्छे व बुरे तालिबानों के मध्य अंतर करने एवं तथाकथित अच्छे तालिबानों को विश्वास में लेने जैसी मुहिम को प्रोत्साहन दे रही है। परंतु तालिबानों से वार्ता के प्रस्ताव के दौरान ही बीच में जब अमेरिकी ड्रोन हमले में किसी बड़े आतंकवादी की मौत हो जाती है तो पाक सरकार व तालिबानों के मध्य होने वाली बातचीत को गहरा झटका लगता है। उदाहरण के तौर पर गत् एक नवंबर को तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का प्रमुख तथा बेनज़ीर भुट्टो की हत्या का मु य अभियुक्त हकीमुल्ला महसूद उत्तरी वज़ीरीस्तान में एक सफल ड्रोन हमले में मारा गया। जिस दिन हकीमुल्ला की मौत हुई उसी दिन पाकिस्तान सरकार का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधि मंडल इस आतंकी से वार्ता के लिए उत्तरी वज़ीरीस्तान भी जाने वाला था। परंतु इस प्रस्तावित वार्ता से मात्र चंद घंटे पूर्व हकीमुल्ला महसूद की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए।

एक ओर तो तालिबान ने महसूद की मौत के बाद पाकिस्तान सरकार से किसी भी प्रकार की वार्ता भविष्य में न करने का एलान किया है। दूसरे यह कि पाक तालिबान की ओर से हकीमुल्ला महसूद की मौत का ऐतिहासिक बदला लिए जाने की धमकी दी गई। उधर पाकिस्तान के गृहमंत्री चौधरी निसार अली खां ने भी यह बयान दिया कि जब तक अमेरिका ड्रोन हमलों को नहीं रोकता तब तक तालिबान के साथ बातचीत का सिलसिला आगे नहीं बढ़ सकता। पिछले दिनों खैबर प तून  वाह के शहरी क्षेत्र में भी हक्कानी नेटवर्क द्वारा संचालित आतंकवादियों के एक तथाकथित मदरसे के बाहर हक्कानी नेटवर्क के तीन आतंकवादियों को ड्रोन हमले में निशाना बनाया गया। इस हमले पर भी पाकिस्तान के गृहमंत्री ने यही बयान दिया कि यह हमला किसी व्यक्ति के विरुद्ध नहीं बल्कि पाक तालिबान वार्ता को धक्का पहुंचाने के मकसद से किया गया हमला है। हालांकि इसी के साथ-साथ चौधरी निसार को यह सफाई भी देनी पड़ी कि इन ड्रोन हमलों में पाक हुकूमत व पाकिस्तानी सेना का कोई हाथ नहीं है।

पाकिस्तान हुकूमत के किसी न किसी ज़िम्मेदार मंत्री को समय-समय पर ड्रोन हमलों में पाक सरकार अथवा पाक सेना की संलिप्तता को लेकर ऐसी सफाई देनी पड़ती है। इस का कारण यही है कि तालिबानों को इस बात को लेकर संदेह है कि पाकिस्तान सीमा क्षेत्र में अमेरिकी ड्रोन विमान बिना पाकिस्तानी सेना व सरकार की सहमति के कैसे उड़ान भर सकते हैं? पाकिस्तानी वायु सीमा क्षेत्र का अमेरिकी ड्रोन द्वारा उल्लंघन किए जाने के पीछे केवल दो ही कारण हो सकते हैं।

एक तो यह कि पाकिस्तानी सेना व सरकार गुप्त रूप से अमेरिका के साथ मिलीभगत रखती है। और दूसरा यह कि अमेरिका अपने लक्ष्यों को साधने के आगे पाकिस्तानी वायु सीमा व संप्रभुता जैसी बातों की कोई परवाह नहीं करता। इसका जीता-जागता उदाहरण एबटाबाद में अमेरिकी सील कमांडो द्वारा ओसामा बिन लाडेन को मार गिराया जाना तथा उसके मृत शरीर को अपने साथ उठा ले जाना शामिल है। ड्रोन हमलों के परिपेक्ष्य में यहां एक बात और याद दिलाना ज़रूरी है कि पाकिस्तान आतंकवाद विरोधी युद्ध में अमेरिका का विशेष सहयोगी भी है। इसलिए इस बात पर पूरी तरह विश्वास नहीं किया जा सकता कि पाक सेना व सरकार की अमेरिकी ड्रोन हमलों के लिए रज़ामंदी नहीं है।

बहरहाल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के कार्यालय में विदेशी मामलों के प्रमुख सरताज अज़ीज़ ने पिछले दिनों खैबर प तून  वाह प्रांत में हुए ड्रोन हमले के बाद यह कहा है कि पाकिस्तान व तालिबानों के मध्य होने वाली वार्ता के दौरान अमेरिका अब कोई ड्रोन हमला नहीं करेगा। परंतु अभी तक इस बात का खुलासा नहीं हो सका है कि सरताज अज़ीज़ से किस अमेरिकी अधिकारी ने कब और किस स्थान पर इस प्रकार का कोई वादा किया है। अज़ीज़ ने यह भी स्वीकार किया है कि तहरीक-ए-तालिबान प्रमुख हकीमुल्ला महसूद की ड्रोन हमलों में हुई मौत के बाद तालिबानों से होने वाली बातचीत प्रभावित हुई है। वैसे भी ड्रोन हमलों में जब कभी कोई निर्दोष नागरिक, स्कूल के बच्चे,औरतें अथवा बुज़ुर्ग निशाना बनते हैं तो निश्चित रूप से अमेरिका के विरुद्ध एक जनाक्रोश पैदा हो जाता है और इस जनाक्रोश को यही आतंकी तालिबान और अधिक हवा देते हैं।

नतीजतन ड्रोन हमलों के विरोध में पाकिस्तान में कई बार बड़े से बड़े विरोध प्रदर्शन आयोजित होते रहे हैं। परंतु अमेरिका इन विरोध प्रदर्शनों तथा तालिबानों की घुड़कियों के बावजूद यहां तक कि पाकिस्तान सरकार व तालिबान के मध्य प्रस्तावित शांति वार्ता की परवाह किए बिना अपने आतंकी लक्ष्यों को भेदने से नहीं चूकता।

 

उपरोक्त परिस्थितियों में यह सोचने का विषय है कि अमेरिका द्वारा किए जा रहे ड्रोन हमले पाकिस्तान के लिए ज़हमत अथवा परेशानियों का कारण है या इसे रहमत समझा जाना चाहिए। क्योंकि आिखरकार अमेरिकी ड्रोन बड़ी ही खामोशी से किसी बड़े आतंकी सरगना को मार कर उस काम को अंजाम दे डालते हैं जो काम पाकिस्तानी सेना आसानी से नहीं कर पाती। पाकिस्तानी सेना में तथा आईएसआई में घुसपैठ कर चुका तालिबानी तंत्र आतंकवादियों को पाक सेना की प्रस्तावित कार्रवाई व इरादों से पहले से ही अवगत करा देता है।

परिणामस्वरूप या तो आतंकवादी अपने ठिकाने छोड़कर अन्यत्र चले जाते हैं या फिर सेना की टुकड़ी से बड़ी तादाद में इक_ा होकर मोर्चा संभालते हैं तथा पाकिस्तानी सेना को जान व माल की भारी क्षति पहुंचाते हैं। ऐसे में यदि यह कहा जाए कि अमेरिकी ड्रोन हमले आतंकियों को निशाना बनाकर पाकिस्तानी सेना का ही हाथ बंटा रहे हैं तो यह कहना भी कतई गलत नहीं होगा। ऐसे में भले ही तालिबान समर्थकों व कट्टरपंथियों को तथा इन हमलों में मारे जाने वाले कुछ बेगुनाह नागरिकों को यह हमले ज़हमत अथवा दु:खदायी प्रतीत होते हों परंतु पाकिस्तान व दुनिया के शांति पसंद लोगों को यहां तक पाकिस्तान सेना के ईमानदार अधिकारियों व आतंकवाद का विरोध करने वाले मानवताप्रिय लोगों के लिए यह हमले खुदा की रहमत से कम नहीं हैं।          

 

 

तनवीर ज़ाफरी

1618, महावीर नगर,अंबाला शहर। हरियाणा

फोन : 0171-253562

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तनीषा की बेशर्मी से घर वाले परेशान!

टीवी रियलिटी शो बिग बॉस के प्रतियोगी तनीषा मुखर्जी और अरमान कोहली की बेशर्मी ने तनीषा के घर के लोगों की नींद उड़ा दी है। हाल ही में बिग बॉस के 84 कैमरों से एक कैमरे ने दोनों को आपत्तिजनक हालत में कैद कर लिया।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब दोनों को इतने करीब देखा गया है। इससे पहले भी कई बार दोनों को आधी रात में जब कमरे में सब सोए हुए थे, उस दौरान किस करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था। बताया जाता है कि बिग बॉस के घर में एक स्मोकिंग रुम है जहां कोई भी प्रतियोगी कुछ समय अकेले अपने आपके साथ बिता सकता है, वहां कोई कैमरा नहीं है। घर की कैप्टन काम्या पंजाबी ने दोनों को उस कमरे में भी साथ देखे जाने के बाद उन्हें चेतावनी दी थी,लेकिन दोनों सारी चेतावनी और इशारों के बाद भी बाज नहीं आए। सलमान खान ने भी दोनों को कई बार इशारों में ये कहा है कि घर में हर जगह कैमरे लगे हैं। प्रतियोगी अपनी हरकतों से बाज आएं।

गौरतलब है कि तनीषा की बहन काजोल और अजय देवगन के लाख मना करने के बाद भी तनीषा इस शो में आईं। उस दौरान खबर आ रही थी कि अरमान और तनीषा की बढ़ती नजदीकियों को देखते हुए काजोल ने सलमान से तनीषा को जल्दी ही घर से बाहर निकालने की गुजारिश भी की थी। इसके बाद अजय ने शो के होस्ट सलमान खान को इस संबंध में फोन भी किया।

शो में तनिषा के रवैये से वैसे भी उनकी मां तनुजा और बहन काजोल नाराज बताई जा रही थीं। बताया जा रहा है कि इस बीते हफ्ते तनिषा और अरमान एक ही बिस्तर में अंतरंग होते पाए गए थे। हालांकि ये फुटेज कार्यक्रम में बिल्कुल नहीं दिखाई गई लेकिन शो के 100 से ज्यादा लोगों के स्टाफ ने इसे देखा है।

खैर, माना जा रहा है कि दो हफ्ते में तनिषा घर से बाहर आ सकती हैं। वैसे तनिषा घर के अंदर 70 से ज्यादा दिन बिता चुकी हैं और कहा जा सकता है कि वो जितना पब्लिसिटी हासिल कर सकती थीं, उन्होंने की।

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पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शर्मा के भाई को धोखाधड़ी में जेल

पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के भाई शंभूदयाल शर्मा को धोखाधड़ी के एक मामले में भोपाल के न्यायालय ने तीन साल कैद की सजा सुनाई गई है। शुक्रवार को न्यायिक मजिस्ट्रेट वर्षा शर्मा ने यह फैसला सुनाते हुए उन पर एक हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।

मामला वर्ष 1995 में सतपुड़ा भवन स्थित जिला कुष्ठ विभाग से संबंधित है। फरियादी रामसनेही ने 27 अगस्त, 1999 को कलेक्टर और विभाग में लिखित शिकायत की थी कि जिला कुष्ठ विभाग प्रभारी शंभूदयाल शर्मा ने नौकरी के नाम पर उससे धोखाधड़ी की है। शिकायत में कहा कि उसने विभाग में एनएमए पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन दिया था किंतु इसके लिए उसकी शैक्षणिक योग्यता पूर्ण नहीं थी। उसे शंभूदयाल ने आश्वासन दिया था कि वह इसके बावजूद उसकी नौकरी लगवा देगा।

आरोपी ने उसकी नौकरी तो लगवा दी लेकिन अपने घर के काम करवाने लगा। इसके अलावा उससे दो हजार रुपये की वेतन पर्ची पर हस्ताक्षर करवाता था और उसे मात्र 500 रुपये का भुगतान करता था। फरियादी ने तंग आकर नौकरी छोड़ दी थी। बाद में पुलिस में मामला दर्ज करवाया गया था।

 

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