Thursday, January 16, 2025
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चंबल घाटी बन सकती है अमरीका की ग्रांड कैनीयर: तिग्मांशु धूलिया

तिग्मांशु धूलिया ! एक ऐसा नाम है बॉलीवुड का जो किसी भी परिचय का मोहताज आज नही है। बालीवुड के ज्यादातर डायरेक्टर विदेशी लोकेशन को पंसद करते है वही धूलिया का लगाव अपने देश की कुख्यात चंबल घाटी से है। चंबल घाटी के प्रति उनकी दीवानगी का आलम यह देखा जा रहा है कि चंबल घाटी की तुलना वे अमरीका के ग्रांड कैनीयर से करने से भी पीछे नही है लेकिन चंबल के बदलते मिजाज से परेशान घूलिया यह कहने से भी नही चूकते कि अगर समय रहते चंबल के लिये कुछ किया नही गया तो देश के बेहतरीन पर्यटन केंद्र  को हम लोग खो देगे। मशहूर महिला डकैत फूलन देवी की जिंदगी पर बनी ख्यातिलब्ध फिल्म बैंडिट क्वीन की शूटिंग के दौरान चंबल से शुरू हुआ प्यार पानसिंह तोमर से होता हुआ बुलेट राजा के बाद रिवाल्वर रानी तक लगातार जारी है। तिग्मांशु की माने चंबल का प्रेम यही बताता है कि वो पिछले जन्म मे यहा पर पैदा हुए हो लेकिन उसका असर इस जन्म मे भी नजर आता है। इटावा हिंदी सेवा निधि के सालाना 21 वे समारोह मे भाग लेने आने आये मशहूर फिल्मकार तिग्मांशु धूलिया से मौजूदा सिनेमाई परिवेश के अलावा कई अन्य मुददो पर वरिष्ठ पत्रकार दिनेश शाक्य से लंबी बातचीत हुई उसी बातचीत के खास अन्य अंश। 

सवाल: हिन्दी सेवानिधि की ओर से हिन्दी सेवी के तौर पर आपको सम्मानित किये जाने पर कैसा महसूस कर रहे है ?
जबाब:
देखिये जाहिर सी बात है खुशी तो होगी किसी को होगी सम्मान मिलता है तो खुशी होती ही है और हम जैसे लोगो को जो पर्दे के पीछे रहते है उनको जब जनता के सामने आने का मौका मिलता है तो हम लोग मौके को छोडते नही है क्यो कि हम लोग एक्टर है नही एक्टर को तो सब लोग देखते है हम को तो कोई देखता नही इसलिये हम कोई भी मौका छोडते नही है और बडा अच्छा लगता है अपने ही प्रदेश उत्तर प्रदेश आने का जब भी मौका लगता है तो जरूर आता हू। 1986 मे मैने इलाहबाद छोड दिया था उसके बाद फिर मुंबई या दिल्ली ही रहा लेकिन जब भी मौका मिलता है तो मै वो मौका नही छोडता हू जब भी यहा आता हू अपनी भाषा सुनने को मिलती है और अपने लोगो से मिलने का मौका मिलता है अपना खाना खाने को मिलता है नया एक्सपीरियंस होता है।

सवाल: आज आपको हिन्दी सेवा निधि की ओर से सम्मानित किया है हिन्दी की जो दशा इस वक्त देखी जा रही है इस पर आप क्या कह सकते है ?
जबाब:
मेरा तो देखिये यही मानना है कि हिन्दी को जो लोग लिखते है खास आप पत्रकार लोग,आप तो विजुयल मीडिया से है,जो लोग लिखते है हिन्दी वो या तो रचनात्मक हिन्दी,कविता,कहानिया,नावेल उन्होने इतनी जटिल बना दिया है भाषा को कि मै तो मेरी पैदाइश पढाई लिखाई सब कुछ इलाहबाद की है मेरी मां संस्कृत की प्रोफेसर है,हिन्दी मे ही बोलते थे सब कुछ,पर मुझे भी कभी कभी काफी दिक्कत आ जाती है वो पढकर हिन्दी,जब मुझे आ रही है दिक्कत तो बाकी लोगो को तो जरूरी आती होगी। जितना हिन्दी को सरल बनाया जायेगा उतना ही बेहतर रहेगा,प्रेमचंद्र जी,अमत लाल नागर या दुष्यंत कुमार जिन्होने (साये मे घूप खिली) इतनी पापूलर क्यो है इनको सब पढते है क्यो कि वो पठनीय है आप पढते है तो मजा आता है,समझ आता है बाकी हिन्दी को जो लोग लिखते है ऐसा लगता है कि पुलिस का सम्मन है। डर लगता है कि उसको पढते ही जो जब तक उसको सरल नही बनाया जायेगा हिन्दी को,हिन्दी जन जन तक पहुचेगी नही। रही बात हिन्दी सिनेमा की तो जितना हिन्दी सिनेमा हिन्दी को बढाने और लोकप्रिय बनाने मे सहयोग कर रही है उनका तो किसी का भी नही है सौ सालो से हिन्दी की फिल्मे बन रही है और साउथ मे भी रिलीज हो रही है नार्थ ईस्ट मे भी रिलीज होती है जहा पर लोग हिन्दी नही बोलते लेकिन कम से कम वो लोग हिन्दी बोल नही पाते हिन्दी को समझ पाते है। 

सवाल: अमूमन इस तरह की बाते उठती रहती है कि चंबल का जो ग्लैमर है वो केवल डाकुओ तक ही सीमित रहता है इसी वजह से फिल्मकार चंबल आते है,इसके अलावा चंबल मे किस तरह की संभावनाए आपको लगती है ?
जबाब:
देखिये सरकार को कुछ करना चाहिए,जो चंबल घाटी है,मुझे लगता है,मैने बहुत पिक्चरे बनाई है चंबल मे,तीन पिक्चरो मे है चंबल की हालिया तस्वीर,मेरा सहायक उसने बनाई है फिल्म धौलपुर मे शूटिंग की है। मेरा दोस्त है जिसकी पिक्चर मे प्रोडयूस कर रहा हू रिवाल्वर रानी वो तो ग्वालियर का ही है उसने तो मुरैना और भिंड मे ही शूटिंग की है कुछ है चंबल मे,चंबल मुझे अपनी ओर खींचता है लेकिन अगले पांच सालो मे चंबल हो जायेगा खत्म,जो चंबल की घाटिंया है जिनको हम लोग रिवाइन्स बोलते है वो खत्म हो जायेगी अगर यही चीज किसी विदेश मे होता ना तो बहुत बडा टूरिस्ट स्पाट बन जाता अमेरिका मे जैसे ग्रांड कैनीयर है जहा पर दुनिया भर के लोग जाते है ग्रांड कैनीयर को देखने के लिये। 

चंबल भी किसी ग्रांड कैनीयर से कम नही है और चंबल नदी हिन्दुस्तान की सबसे अच्छी सबसे साफ नदी है इतनी प्यारी इतनी खूबसूरत नदी चंबल। इसकी कोई दूसरी मिसाल नही है। क्यो कि इसमे घडियाल है उसमे मगर है घडियाल और मगर जो पानी क्लीन होगा उसमे ही सरवाइव  कर पायेगे। नही तो नही कर सकते। हम तो पीते थे चंबल का पानी। बिसलरी थी पूरी यूनिट भी थी हमको जब गांव वाले  मठठा बना कर ,लस्सी बना कर चंबल नदी का पानी पीते थे आज तक कोई दिक्कत नही आई है ना ही कोई बीमार पडा इतनी सुंदर नदी जो है चंबल,इतनी खूबसूरत जगह है, चंबल सरकार जो भी तीन राज्य मिलते है मध्यप्रदेश,उत्तर प्रदेश और राजस्थान का बार्डर ऐरिया सभी राज्यो की सरकारो को कुछ करना चाहिए उसी घाटी पापुलरायिज करने के लिए टूरिस्ट स्पाट बनाने के लिए। बहुत सुंदर जगह है चंबल तो। 
सवाल: आजकल तमाम फिल्म आ रही है उनमे हम इस तरह का देख रहे है कि एक केवल आइटम डांस के जरिये फिल्म चलाना चाहते है कितना सही मानते है आप ?
जबाब:
नही,सिर्फ आइटम डांस से पिक्चर नही चलती है,देखिये क्या हो गया है जो व्यवसाय है फिल्म मेकिंग का वो बहुत ही अजीब सा हो गया है अच्छा भी है बुरा भी है पहले पिक्चरे 25,25 हफते चला करती थी 50,50 हफते चला करती थी अब पूरा बिजनस फिल्म का एक हफते का हो गया वो पहले तीन दिन,पहले तीन दिन मे आप दर्शको को जितना भी आकर्षित करके थियेटर मे ले आये तो उसमे आयटम डांस भी एक तरह का धी का इस्तेमाल करता है तो तीन दिन मे जितना कलेक्शन हो गया,हो गया एक हफते मे रिकवरी हो गया,पैसा बना लिया,तो सब चीजे है लेकिन फिल्म बनाने हम लोग तो छोटे शहर से गये हुए है बोम्बे मे,हम लोग पैसा कमाने के लिए नही आये है फिल्मो मे,हम लोग नाम कमाने के लिए फिल्मो मे आए है ताकि हमारे जाने के बाद हमारी फिल्मे जो यंग जैनरेशन बाद की जैनरेशन देखे,हम लोग इतिहास मे दर्ज होना चाहते है इस तरह की इसलिए ऐसी पिक्चरे बनाते है पैसा कमाने की फिल्मे तो नही तो कुछ और ही घंघा करता,मै तौ वकालत किये हुआ हू मेरा पूरा परिवार ही वकालत किए है फिल्मो मे आने का ग्लैमर भी नही था सिर्फ यही था कि किसी भी तरह से इतिहास मे दर्ज होना चाहते है, इतिहास मे अगर आपको दर्ज होना है तो अच्छा काम करना पडेगा आइटम सांग से नही होगा। 

सवाल: आप कभी कभी पर्दे पर भी आते है गैंग्स आफ वासेपुर मे देखा गया ,बहुत अच्छी आपने एक्टिंग की है जिसमे काफी अहम किरदार आपने अदा किया,मूल आधार से जुडी हुई फिल्मो का चलन बढा है ऐसी फिल्मो का लोग बखूवी देख रहे है ऐसी फिल्मो की जरूरत कितनी सही लग रही है ?
जबाब:
फिल्मे जरूरत क्यो कि देखिये सिनेमा बदल रहा है वो लोग आकर फिल्मे बना रहे है मुंबई मे जो कि बोम्बे के नही है। अभी तक वो थर्ड जेनरेशन वाली,कुछ लोग बंगाल से आये,लाहौर से आये वहा भी फिल्म इंडस्टी थी सब लोग मुंबई आये बहुत अच्छी फिल्मे बनी उस समय पूरे राइटर हमारे यूपी से ही चाहे हजरत जयपुरी,मजरूह सुल्तानपुरी हो कैफी आमजी,सलीम जावेद हो सब के रूट मध्यप्रदेश यूपी सब यही के है अब उनके बच्चे बच्चो के बच्चे हो गये जो कि उन्होने सिर्फ मुंबई देखा है तो फिल्मो मे एक घटियापन आ गया है एक स्टैलमेंट आ गया है अब जाकर वो फिल्म मेकर वहा फिल्म बना रहे है जो मुंबई के नही है बाहर से आये है कोई दिल्ली से आया है कोई मुजफफरनगर से आया है, मै खुद इलाहबाद से हूँ,कोई बनारस से आया है तो हम लोगो के पास अपना एक्सपीरियंस है लाइफ का,अपनी भाषा है,जो हमने एक्सपीरियंस किया है वो बहुत ही अलग है,छोटे शहरो मे जो एक्सपीरियंस होता है वो तो मुंबई मे थोडे ही है यहा तो जाति से लेकर मेरा सरनेम है क्या वो भी एक पहचान बन जाता है कि तुम ब्राहम्ण हो,ठाकुर हो कि क्या हो प्यार करने मे पचास दिक्कते आ रही है हमारे पास वो एक्सपीरियंस है चाहे एक लव स्टोरी का एक्सपीरियंस हो,चाहे अपनी जाति को लेकर प्राउड फील करे या फिर दिक्कत हो सारी दिक्कतो से जूझ करके वो लडका आया है मुंबई तो हमारे पास एक्सपीरियंस ज्यादा है उस लडके के जो वनस्पति मुंबई मे पढा लिखा है। 

सवाल: फिल्मो मे जो गाने आते है वो अल्पकाल के लिए सामने आते है लेकिन पुराने गाने लंबे समय तक काबिज रहते है ऐसा क्यो ?
जबाब:
राइटिंग (हाथ से लिख कर बताते हुए) वो गाने लिखे बहुत अच्छे और सरल है जुबान पर चढते है आजकल गाने क्या वर्ल्डस है बता पायेगे गाने के नाम पर ढक चिक ढक चिक सुनाई देती है बस,शब्द कहा पर सुनाई देती है बस,शब्द कहा पर सुनाई देत है इसलिए। 

सवाल: नया क्या आप देने वाले है अभी हाल मे ?
जबाब:
अभी इसी महीने 29 नंबवर को मेरी फिल्म आ रही है बुलेट राजा वो देखिये आप। 

सवाल: उसमे बुलेट राजा मे चंबल को लेकर नया क्या रखा हुआ आपने ?
जबाब:
चंबल सेकेंड हाफ मे आता है बुलेट राजा मे,सैफ अली खान,जिमी शेर गिल,सोनाक्षी सिन्हा,विधुत जामवाल है तो विधुत जामवाल एक पुलिस आफीसर है जो इटावा मे तैनात है और बहुत तेज तर्रार और बहुत ही साहसी है तो उनका इंड्रोडक्शन मैने चंबल मे किया है,जो कुछ डाकुओ के सरेंडर कराने के लिए आते है वहा पर कुछ हो जाता है तो मैने बहुत लंबा चौडा स्वीकिंस रखा गया है जो इटावा मे शूट किया है।

सवाल: बुलेट राजा क्या 200 करोड के क्लब मे शामिल हो पायेगी ?
जबाब:
अब मै यह कैसे कह सकता हू कि शामिल हो पायेगी या फिर नही या तो मै नही कह सकता हू,अभी फिल्म कंपलीट करके ही मै आया हू,फिल्म की मिक्सिंग पूरी कर चुका हू, मै तो बहुत भरोसे से हू, मुझे लगता है कि जैसी कि मै हमेशा बोलता हू कि मुझे गाली नही पडेगी।

सवाल: कुछ बल्गर फिल्मे आ रही है जो समाज की दिशा मोड रही है ऐसी फिल्मो पर क्या आपकी राय है ? 
जबाब:
अब आप कह रहे है कि बल्गैरिटी आ गई है आइम श्योर आप ग्रैंड मस्ती फिल्म की बात कर रहे होगे अगर यह दिक्कत है आप लोगो को देखने ही नही जाना चाहिए ऐसी फिल्मे,आप लोगो की ही बदौलत उसने सौ करोड का बिजनेस किया है फिर आप लोग बोलते भी है कि बल्गर है और फिर देखते भी हो उसी बल्गर को जाकर उसमे दिक्कत क्या है जो बना रहा है वो सिर्फ पैसे के लिए बना रहा है उसने तो इतनी सस्ती पिक्चर बनाई आज सौ करोड का बिजनेस कर लिया है इसमे उनकी कोई गलती नही है गलती आप की है जो आपने ऐसी फिल्म देखी है।

सवाल: केरल के राज्यपाल निखिल कुमार ने आप से हिन्दी उपन्यास गुनाह का देवता पर फिल्म बनाने का मशविरा आपको दिया गया है क्या राज्यपाल की पहल पर अमल करेगे ? 
जबाब:
राज्यपाल महोदय के मसविरे को ना केवल सार्वजनिक तौर पर सुना गया है बल्कि व्यक्तिगत तौर पर भी उनसे अलग बात चीत हुई है जाहिर है राज्यपाल महोदय की ओर से रखी गई पहल पर अमल करने की कोशिश जरूरी ही करूंगा।

संपर्क
दिनेश शाक्य 
रिपोर्टर 
155.पक्का तालाब इटावा 206001(उ.प्र.)
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dineshshakyaetawah@gmail.com

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मध्य प्रदेश में दागी भी मैदान में

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कुल 230 सीटों पर 1024 उम्मीदवार ख़ड़े हुए हैं। उनमें से 243 उम्मीदवारों ने अपने शपथ पत्रों में आपराधिक प्रकरणों की घोषणा की है।  एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआऱ) ने अपने अध्ययन में खुलासा किया है कि बसपा के भी 3 उम्मीदवारों के खिलाफ हत्या के प्रयास के प्रकरण दर्ज हैं।

इसमें से भी 143 सदस्य ऐसे हैं, जिन पर हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध दर्ज हैं। यहां कांग्रेस आगे है। कांग्रेस के 228 में से 91 (40 फीसदी) और भाजपा में 229 में से 61 (27 फीसदी) उम्मादवारों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं।

भाजपा और कांग्रेस के जिन नेताओं ने हलफनामे में अपराधों का खुलासा किया है, उनमें कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह (पृथ्वीपुर), अश्विन जोशी (इंदौर-3), आरिफ मसूद (भोपाल मध्य) के खिलाफ धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास के प्रकरण दर्ज हैं।

महिलाओं के खिलाफ अपराध 
महिलाओं पर अत्याचार करने के मामले में मुरैना से भाजपा के उम्मीदवार रुस्तम सिंह के खिलाफ धारा 498ए और 406 के तहत प्रकरण दर्ज हैं। उज्जैन जिले की महिदपुर सीट से चुनाव मैदान में उतरे बहादुर सिंह के खिलाफ धारा 506 के तहत प्रकरण दर्ज हैं। कांग्रेस के चौधरी गंभीर सिंह के खिलाफ भी महिलाओं पर अत्याचार का प्रकरण दर्ज है।

महिदपुर से कांग्रेस की फायरब्रांड नेत्री डॉ. कल्पना परुलेकर मैदान में हैं और उनके खिलाफ धारा 506 और 468 के तहत प्रकरण दर्ज हैं। धोखाध़ड़ी व जालसाजी का प्रकरण दर्ज है। कल्पना परुलेकर के खिलाफ कुल 13 प्रकरण दर्ज हैं, उसमें से 5 आईपीसी की गंभीर धाराओं के तहत हैं।

उल्लेखनीय है कि कल्पना परुलेकर को लोकायुक्त के मार्फिंग किए चित्र इंटरनेट पर डालने के मामले में प्रकरण दर्ज हुआ था और उन्हें गिरफ्तार होना पड़ा था।

अमरपाटन से राजेंद्र सिंह दादाभाई कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। उनके खिलाफ दो प्रकरण दर्ज हैं, उसमें आईपीसी की 5 गंभीर धाराएं लागू हैं।

महू (इंदौर) से कांग्रेस के अंतरसिंह दरबार चुनाव मैदान में हैं। उनके खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी, आदि के कुल दो प्रकरण दर्ज हैं, उनमें से 5 आईपीसी की गंभीर धाराओं के तहत दर्ज हैं।

बदनावर से भंवरसिंह शेखावत के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी, गलत जानकारी देना आदि का प्रकरण दर्ज है, जिसमें आईपीसी की 4 गंभीर धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज है। इंदौर से कांग्रेस के उम्मीदवार छोटू शुक्ला के खिलाफ भी दो प्रकरण में आईपीसी की 2 गंभीर धाराओ के तहत प्रकरण दर्ज हैं। भाजपा के रमेश मेंदोला के विरुद्ध भी एक प्रकरण में दो गंभीर धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं।

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1 दिसंबर को केबीसी की अंतिम कड़ी

लोकप्रिय टीवी रिएलिटी शो कौन बनेगा करोड़पति (केबीसी) एक दिसंबर को समाप्त होने जा रहा है। बुधवार को यहां इसकी अंतिम कड़ी की शूटिंग करने वाले मेजबान महानायक अमिताभ बच्चन ने कहा कि यह एक रोमांचक और आनंदपूर्ण अनुभव था। एक सूत्र के अनुसार शो की आखिरी कड़ी एक दिसंबर को सोनी एंटरटेंमेंट चैनल पर प्रसारित होगी।
 
समापन का यह क्षण बिग बी के लिए भावुक किंतु खुशीभरा था। 71 वर्षीय बिग बी ने गुरुवार सुबह ट्विटर पर लिखा, केबीसी का एक और दिन और इस सीजन का अंतिम दिन, लेकिन आशा करते हैं कि यह अगले साल फिर आनंद से भरेगा। आपका शुक्रिया। गुरुवार सुबह विदेश के लिए निकले इस महानायक का मानना है कि काम आपको थकाता नहीं है। वह कहते हैं कि दर्शकों द्वारा बरसाए गए प्यार को पाकर जगमगा उठते हैं। उन्होंने लिखा, तो केबीसी की अंतिम कड़ी खत्म हुई। आनंद, रोमांच और विजेताओं की खुशियों से परिपूर्ण यह क्या शानदार कड़ी थी। कौन बनेगा करोड़पति पहली बार वर्ष 2000 में प्रसारित हुआ था। इसके जरिए छोटे पर्दे पर बतौर मेजबान कदम रखकर अमिताभ बच्चन ने भारतीय टेलीविजन का चेहरा ही बदल दिया।

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कलियुग के पाखंडी चेहरे!

भारतवर्ष को दुनिया में अध्यात्मवाद का दर्शन देने वाले एक देश के रूप में पहचाना जाता है। और एक अध्यात्मवादी देश के रूप में  भारत का डंका सदियों से बजता आ रहा है। निश्चित रूप से यही वजह रही होगी कि लगभग सभी धर्मों के संतों, फकीरों, ऋषियों-मुनियों व अध्यात्मवाद का पाठ पढ़ाने वाले स्वदेशी तथा विदेशी महापुरुषों ने भारतवर्ष को ही अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना। भले ही आज वह महापुरुष हमारे बीच न हों पंरतु उनके द्वारा दिखाए गए अध्यात्म के मार्ग का आज भी देश में विभिन्न वर्गों के लोग अनुसरण करते हैं तथा उससे लाभ उठाने व शांति प्राप्त करने का उपाय करते हैं। पंरतु अब ऐसा प्रतीत  होने लगा है कि भारतवर्ष से अध्यात्म के रिश्ते की बात गोया सतयुग काल की बातें बनकर रह गई हों।
 
कलयुग के वर्तमान दौर के तथाकथित अध्यात्मवादियों ने अध्यात्म की परिभाषा ही वर्तमान समय की नब्ज़ एवं ज़रूरतों के मुताबिक गढऩी शुरु कर दी हो। अन्यथा क्या वजह हो सकती है कि जिस भारतवर्ष को कभी संसार में विश्वगुरू का दर्जा प्राप्त रहा हो वही महान देश आज पाखंडी अध्यात्मवादियों,बलात्कारियों,छलात्कारियों,भ्रष्टाचारियों एवं देश को बेचकर खाने वाले लोगों के देश के रूप में अपनी पहचान छोड़ रहा है।                 
 
अभी कुछ ही समय पूर्व की बात है जबकि जम्मू-कश्मीर राज्य में एक ढोंगी व दुष्चरित्र मौलवी द्वारा अपनी शिष्याओं को बहला-फुसला कर उनके साथ कई वर्षों तक बलात्कार किए जाने का मामला सामने आया। मौलवी का भेष बनाए बैठा यह राक्षसरूपी व्यक्ति उन मासूम बच्चियों व धर्म  की शिक्षा ग्रहण करने वाली कुंआरी लड़कियों को अपने दुष्कर्मों के संबंध में यही समझाता था कि ऐसा करने से उन्हें जन्नत मिलेगी। ज़रा  कल्पना कीजिए कि जहन्नुम में जाने के उपाय व वैसे कर्म करने वाला ढोंगी अध्यात्मवादी मौलवी अपने दुष्कर्मों को जन्नत का मार्ग कऱार दे रहा था। इसी को कहते हैं उल्टी गंगा बहाना। गोया कर्म नरक भोगने वाले और उस पर तुर्रा यह कि वह स्वर्ग में जाने वाले कर्म हैं।
 
अब ज़रा तुलना कीजिए उन वास्तविक अध्यात्मवादी फकीरों से इस खबीस मौलवी की जिनके दर पर आज भी हर धर्म व जाति के लोग अपनी हाज़री लगाने मात्र से ही शांति प्राप्त करने तथा अपनी मुंह मांगी मन्नतों को पूरा करने का विश्वास लेकर जाते हैं। क्या ऐसे ढोंगी व बदचलन तथाकथित अध्यात्मवादी व्यक्ति को ढोंगी फकीर कहना गलत है?                 
 
गत् एक दशक में देश में ऐसी दर्जनों घटनाएं सामने आईं जिन से यह पता चला कि अध्यात्म के नाम पर अपनी दुकान तथा व्यापार चलाने वाले दुष्कर्मी संतों ने किस प्रकार अपनी ही पुत्री व पौत्री समान शिष्याओं के साथ रासलीला रचाई। इनमें सबसे ताज़ा प्रकरण आसाराम  नामक उस ढोंगी व्यक्ति से जुड़ा है जो अपने कुकर्मों में अपने साथ अपने बेटे को भी शामिल रखता था। ज़रा सोचिए कि जिस भारतवर्ष के प्राचीन संस्कार ऐसे रहे हों जहां पिता के समक्ष पुत्र बैठने से, बोलने से परहेज़ करता हो,जहां पुत्र अपने पिता को ईश्वर व गुरु तुल्य समझता  हो, अपने पिता के सामने बुलंद आवाज़ से बात न करता हो उस देश का  यह तथाकथित महान संत व उसका बेटा नारायण साईं सामूहिक रूप से यौनाचार का मिशन चला रहा हो। और वह भी अध्यात्मवाद की आड़ में?  इससे बड़ा दुर्भाग्य हमारे देश का आखिर और क्या हो सकता है? आज  यही पाखंडी संत रूपी पिता-पुत्र न केवल अपने अनुयाईयों से बल्कि पूरे  देश,दुनिया और खासतौर पर मीडिया से अपना मुंह छिपाने के लिए मजबूर हैं। ज मु-कश्मीर के दुष्कर्मी मौलवी की ही तरह यह पिता-पुत्र भी अपने बलात्कार की शिकार अपनी शिष्या से भोग-विलास करते समय उससे भी यही कहा करते थे कि 'वह यही समझे कि उसके साथ प्रभु संभोग कर रहे हैं। और पुत्र के साथ रासलीला करने वाली कन्या स्वर्ग की भागीदार होती है।                 
 
आखिर ऐसे पापियों व अपराधियों को अपने दुष्कर्मों  में अध्यात्म को खींचने की ज़रूरत क्या है? यह ढोंगी व पापी मौलवी व संतरूपी लोग अपने दुष्कर्मों को अंजाम देने के लिए अध्यात्म के नकली चोलेे से आखिर बाहर क्यों नहीं निकल आते। इन पापियों की वजह से धर्म व देश तो बदनाम हो ही रहा है साथ-साथ अध्यात्मवाद की शिक्षा भी  इनकी वजह से बदनाम व संदिग्ध होती जा रही है। अध्यात्मवाद को संदिग्ध करने की रही-सही कसर पिछले दिनों उस समय पूरी होती हुई देखी गई जबकि एक कथित संत के सपने के आधार पर केंद्र सरकार के जि़योलोजिकल सर्वे आफ इंडिया विभाग (जीएसआई) ने उत्तर प्रदेश के उन्नाव जि़ले में गंगा नदी के किनारे पडऩे वाले एक गांव डोडिया खेड़ा में स्थित एक मंदिर के आसपास की खुदाई करनी शुरु कर दी। उस कथित संत का दावा था कि उसने सपने में इस मंदिर के नीचे सोने का विशाल भंडार दबा देखा है।
 
जीएसआई ने भी उस साधू के सपने पर यह कहकर मोहर लगा दी कि वैज्ञानिक जांच-पड़ताल से भी ऐसा प्रतीत होता है कि  इस भूमि के तले बड़ी मात्रा में धातु रूपी भंडार मौजूद हैं। बस फिर  क्या था। बाबा के सपने और जीएसआई की रिपोर्ट को संयुक्त रूप से आधार बनाकर सरकारी विभाग के लोग मज़दूरों की सेना लेकर मंदिर के आसपास की ज़मीन की खुदाई में जुट गए। उधर खुदाई के दौरान  सपने देखने वाला बाबा भी यह कहता रहा कि मैं अपने अध्यात्म के बल पर धरती के तले स्वर्ण भंडार होने की बात कह रहा हूं।
 
मेरी  यह वाणी सत्य होकर ही रहेगी अन्यथा मैं अपनी गर्दन कटवा दूंगा। परंतु खोदा पहाड़ निकली चूहिया जैसी कहावत उस गांव में चरितार्थ हुई। कई दिन तक की गई मेहनत-मशक्कत के बाद जीएसआई के अधिकारियों ने खुदाई का काम बंद कर दिया और सपने में देखा गया  स्वर्ण भंडार सपना ही बनकर रह गया।                  इस घटना ने भी साधु-संतों व फकीरों के प्रति अपनी गहन श्रद्धा रखने वाले भक्तों का विश्वास कम कर दिया है। निम्र स्तर पर तो अध्यात्म की खिल्ली उड़ाने वाली ऐसी सैकड़ों घटनाएं तो हमारे देश में आए दिन होती ही रहती है जबकि किसी तांत्रिक,ज्योतिषी अथवा मौलवी व  पंडित के कहने मात्र से दौलत की लालच में कोई अपने मकान की फ़र्श खुदवा डालता है तो कभी कोई अपने बच्चे या किसी दूसरे के बच्चे की  बलि तक चढ़ा देता है।
 
 पंरतु ऐसा तो शायद पहली बार सुना जा रहा है जबकि किसी अशिक्षित साधू के स्वप्र के आधार पर सरकार ने अपनी कार्रवाई करनी शुरु कर दी हो। इस घटना से भारत में अध्यात्मवाद  की वर्तमान दयनीय स्थिति का तो बोध होता ही है साथ-साथ हमें यह भी  देखने को मिलता है कि लालची केवल कोई व्यक्ति या परिवार ही नहीं  बल्कि स्वयं सरकार भी हो सकती है। अन्यथा देश के लोगों को अंधविश्वास से दूर रहने की शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने वाली केंद्र  सरकार को किसी बाबा के कहने पर धरती के नीचे कथित रूप से दबे  हुए सोने की तलाश में हरगिज़ नहीं जुटना चाहिए था। परंतु सरकार ने एक ढोंगी साधू की बात मानकर यह साबित कर दिया कि सरकार भी  अंधविश्वास तथा ढोंगी अध्यातमवाद के झांसे में आ सकती है तथा यह भी साबित होता है कि किसी निक मे व लालची व्यक्ति की ही तरह सरकार भी बिना किसी कर्म के धनवान होने की िफराक में रहती है।                 
 
ढोंगी अध्यात्मवाद तथा अंधविश्वास की गिर त में हमारे देश के नेताओं व अधिकारियों का रहना कोई नई बात नहीं है। नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री नरसि हाराव तथा इनके अतिरिक्त भी देश के सैकड़ों प्रमुख व्यक्ति ढोंगी बाबाओं,ज्योतिषियों तथा झाडफ़ूंक करने वाले मौलवियों व पंडितों  की गिर त में फंसे देखे जाते रहे हैं। आज जेल की हवा खा रहा बलात्कारी आसाराम तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को अपने  मंच पर बुलाकर दुनिया को अपनी ढोंगी अध्यात्मवादी शक्ति का परिचय करा चुका है। प्राय: मंत्रिमंडल के शपथग्रहण समारोह भी इन्हीं तथाकथित  अध्यातमवादियों व पंडितों द्वारा सुझाए गए दिन व समय (मुहूर्त)के अनुसार आयोजित किए जाते हैं। जबकि विज्ञान ऐसी बातों की इजाज़त कतई नहीं देता।                 
 
हमारे देश में अध्यात्मवाद की दुकानदारी का तो अब यह आलम हो गया है कि जिसे देखो वही गेरुआ वस्त्र पहन कर लाटरी व सट्टे का नंबर बताता फिरता है। और ऐसे ढोंगियों के लालची भक्तों की  भी कोई कमी नहीं है। कई पाखंडी लोगों की दुकानें इसी सट्टा व लाटरी के व्यापार से ही चल रही हैं। लाखों ढोंगी अध्यात्मवादी केवल अपने नशे की लत को पूरी करने की खातिर अध्यात्म का चोला धारण किए बैठे हैं। तमाम ऐसे भी है जो अपने जीवन के सभी क्षेत्रों में असफल होने के बाद अध्यात्मिक गुरु ही बन कर बैठ गए हैं। और सीधे-सादे  लोगों को मार्गदर्शन व अध्यात्मवाद का ज्ञान बेचने लगे हैं। इन्हीं तथाकथित अध्यात्मवादियों में कई ऐसे भी मिल जाएंगे जो अपने-अपने इलाकों में जघन्य अपराधों को अंजाम देने के बाद अध्यात्म के चोले  में खुद को छुपाए बैठे हैं तथा कानून की नज़रों से स्वयं को बचाए हुए हैं। अत: देश के धर्मभीरू लोगों को ऐसे कलयुगी अध्यात्मवादियों से स्वयं को न केवल बचाने की ज़रूरत है बल्कि इन्हें बेनकाब करना  भी बेहद ज़रूरी है। ऐसे लोग धर्म व अध्यात्म के साथ-साथ हमारी प्राचीन अध्यात्मवादी पहचान पर भी एक बड़ा कलंक हैं।   
                       
तनवीर जाफरी
1618,  महावीर नगर, 
अंबाला शहर, हरियाणा 
फोन : 0171-2535628   
 

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संस्कृति संगम के नए संस्करण का लोकार्पण

मुम्बई की सांस्कृतिक निर्देशिका  ‘संस्कृति संगम’ में हिन्दी रचनाकारों, पत्रकारों, रंगकर्मियों, फ़िल्म लेखकों, गायक कलाकारों, गीतकारों-शायरों, समाचारपत्र-पत्रिकाओं, के साथ ही  अखिल भारतीय प्रमुख साहित्यकारों, मंच पर सक्रिय अखिल भारतीय कवियों एवं विदेशों में बसे प्रमुख हिन्दी रचनाकारों के नाम, पते, दूरभाष नं. एवं ईमेल शामिल हैं। संस्कृति संगम ने साहित्य, संगीत, पत्रकारिता, रंगमंच, आदि क्षेत्रों में सक्रिय रचनाकर्मियों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मुम्बई की सांस्कृतिक सक्रियता को बढ़ावा देने में 'संस्कृति संगम' का उल्लेखनीय योगदान है।

 
‘संस्कृति संगम’ के पाँचवें संस्करण की तैयारी चल रही है। संलग्न सूची के अनुसार इस निर्देशिका में आपको शामिल करके हमें बहुत ख़ुशी होगी। कृपया अपना पता, फोन नं. और ईमेल उपलब्ध कराएं। संस्कृति संगम’ को और अधिक समृद्ध, सुरुचिपूर्ण और उपयोगी बनाने के लिए आपके सुझावों का स्वागत है।
 
 
मुम्बई खंड

1.      हिंदी की प्रमुख महिला रचनाकार 

2.      हिंदी के प्रमुख रचनाकार

3.      प्रमुख हास्यकवि, मंच संचालक एवं लाफ्टर कलाकार

4.      प्रमुख फ़िल्म लेखक एवं गीतकार

5.      अन्य भाषाओं के प्रमुख रचनाकार  

6.      प्रमुख उर्दू शायर-शायरा

7.      प्रमुख हिंदी पत्रकार

8.      प्रमुख टीवी पत्रकार

9.      दैनिक समाचार पत्र (हिंदी,अंग्रेज़ी,गुजराती,मराठी)

10.  प्रमुख राष्ट्रीय हिंदी दैनिक : मुम्बई ब्यूरो

11.  प्रमुख टीवी न्यूज़ चैनल

12.  संगीत जगत के प्रमुख कलाकार

13.  प्रमुख रंगकर्मी

14.  प्रमुख संस्थाएं एवं संस्थाध्यक्ष
15.  प्रमुख हिंदी प्रॉध्यापक

16.  प्रमुख हिंदी पुस्तक केंद्र

17.  प्रमुख सभागार

18.  प्रमुख सरकारी कार्यालय एवं बैंक
राष्ट्रीय खंड

19.  हिंदी राष्ट्रीय काव्य मंच
20.  देश के प्रमुख रचनाकार

21.  देश की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाएं
प्रवासी खंड

22.  हिंदी के प्रमुख प्रवासी रचनाकार
23.  हिंदी की प्रमुख प्रवासी पत्रिकाएं

24.  प्रमुख इंटरनेट पत्रिकाएं
हेल्प लाइन

25.मुम्बई की महत्वपूर्ण सेवाएं 

चित्र : संस्कृति संगम के चौथे संस्करण के लोकार्पण समारोह में (बायें से दायें)– शचीन्द्र त्रिपाठी (संपादक, नवभारत टाइम्स), सामाजिक कार्यकर्ता रानी पोद्दार, गायक पंकज उधास, संगीत-निर्देशक आनंदजी शाह (कल्याण जी आनंद जी), संपादक देवमणि पाण्डेय, सुरेन्द्र गाडिया और नवभारत टाइम्स के पत्रकार भुवेन्द्र त्यागी .

Editor : Sanskriti Sangam
A-2, Hyderabad Estate, Malabar Hill
Nepean Sea Road, Mumbai-400 036
Email : sanskritisangam4@gmail.com

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रवीश कुमार की बात पर, मोहर नहीं हैं हाथ पर !

रवीश कुमार बिहार में अपने गांव जाकर आए हैं। गांव में जो उन्होंने देखा, जाना, समझा, महसूस किया और पाया, वह पूरी बेबाक किस्म की ईमानदारी से अपनी कलम से निचोड़कर उन्होंने जस का तस पेश कर दिया। रवीश की बातों के सार को अपने शब्दों में पेश करते हुए एक लाइन में तो सिर्फ यही लिखा जा सकता है कि कांग्रेस नरेंद्र मोदी को अगर कमजोर मान रही है तो यह उसकी बहुत बड़ी भूल होगी, क्योंकि मोदी सिर्फ सोश्यल मीडिया में ही समाहित नहीं है, देश के गरीब प्रदेशों के गांवों तक में मोदी इस कदर पसर चुके हैं कि कांग्रेस के लिए अब मामला आसान नहीं है। रवीश कुमार अच्छा सोचते हैं, इसीलिए अच्छा बोलते भी हैं और अच्छा लिखते भी हैं। लेकिन यही अच्छा कांग्रेस को शायद पसंद नहीं आएगा। सच सुनना बहुत खराब लगता है। पर, सच यही है कि अगली बार देश में फिर सरकार बनाने के मामले में कांग्रेस को बहुत चिंता करनी होगी। उसे समझना चाहिए कि कोई चाहे कुछ भी कहे, लेकिन नरेंद्र मोदी का असर बहुत बढ़ गया है। यह असर देश के गांवों तक घुस गया है।

कांग्रेस के लिए जो टीम देश भर में सोश्यल इंजीनियरिंग के असर का अध्ययन करती हैं, उसने पता नहीं पार्टी के नेताओं को अब तक यह समझाया है या नहीं कि इतने दिन तक तो, जो हुआ सो हुआ, पर मोदी को अब हल्के से लेना खतरे से खाली नहीं है। मोदी का असर हिंदी बेल्ट के गांवों में गहरे तक समा गया है। बिहार हो या बंगाल, यूपी हो या झारखंड, या फिर हो कोई और प्रदेश। हर प्रदेश के हर गांव पर गुजरात का असर है। मोदी ने गांवों के इन लोगों को अपने समर्थन में सारे तर्क और तेवर दोनों थमा दिए हैं। इन प्रदेशों के गांवों और घरों में पैसा गुजरात से ही आ रहा है। और घर में रहनेवालों के चेहरों की खुशहाली का रास्ता गुजरात से ही शुरू होता है। जाकर देख लीजिए, इन प्रदेशों के किसी भी गांव पंचायत में अब साठ से सत्तर फ़ीसदी घर पक्के बन गए हैं। यह बदलाव बीते कुछेक सालों में ही हुआ है। गांवों में बने इन पक्के मकानों में आधे से ज़्यादा अभी अभी बने हए से लगते हैं। किसी की दीवारों पर सीमेंट नहीं लगा है, तो किसी पर प्लास्टर बाकी है। ज्यादातर पर रंग रोगन नहीं हुआ है। ऐसे घर पिछड़ी और दलित जातियों के लोगों के ज़्यादा हैं। ये वे जातियां हैं, जो परंपरागत रूप से कांग्रेस का वोट बैंक रही हैं। पर अब मोदी की महारत को मानती हैं। कांग्रेस मोदी के बारे में चाहे कुछ भी कहती रहें, कोई भरोसा नहीं करता, क्योंकि इन घरों की दीवारें अपने विकास में गुजरात के सहयोग की कहानी कह रही हैं।

रवीश कुमार अपने गांव गए तो उन्होंने देखा कि अब उनके वहां के लोग लोग पंजाब और दिल्ली नहीं गुजरात कमाने जाते हैं। अपन भी गुजरात आते जाते रहते हैं। मुंबई से राजस्थान जाने के लिए आधे गुजरात की छाती पर से ही गुजरना होता है। वापी – वलसाड़ से लेकर राजकोट और भावनगर से लेकर जामनगर ही नहीं सूरत – बड़ौदा से लेकर पालनपुर तक में ज्यादातर मजदूर बिहार, बंगाल, झारखंड और यूपी का है। सूरत और राजकोट तो पूरे के पूरे उन्हीं से भरे पड़े हैं। मोदी का मुखर विरोध करनेवाले नीतीश कुमार वाले बिहार के मजदूर सबसे ज्यादा गुजरात में है। अपने अशोक गहलोत के राजस्थान के लाखों घरों की अर्थव्यवस्था का भी बहुत बड़ा हिस्सा गुजरात ही संभालता है। राजकोट, सूरत और जानमगर ही नहीं पूरा गुजरात भरा पड़ा है देश के बाकी हिस्सों के मजदूरों से।�

अपन मुंबई में रहते हैं, और इसीलिए जानते हैं कि काम की आस में अब मुंबई के मुकाबले लोग गुजरात ज्यादा जाते हैं। संजय निरुपम अपने दोस्त हैं। जनसत्ता में हर तरह से अपन उनके साथ थे। टीवी कैंमरों के सामने चीख चीख कर मोदी को कोसना उनकी कांग्रेसी होने की मजबूरी हैं, लेकिन अंदर की बात उनका दिल भी जानता है। रवीश कुमार लिखते हैं कि गुजरात में राज मिस्त्री को सात सौ रुपये दिन के मिलते हैं। गुजरात से ही गाँवों में पैसा आ रहा हैं। जो पैसे गुजरात में बैठे लोग अपने गांव भेजते हैं, वे घर खर्चे के होते हैं। लेकिन उसमें से भी बहुत सारा बचता है, तो लोग घर बना रहे हैं। इसीलिए, यह अब मान लेने में कोई गलती नहीं है कि गुजरात से कमाकर आने वाला मालामाल मज़दूर देश के अन्य प्रदेशों के गांवों में नरेंद्र मोदी का ब्रांड एंबेसडर हैं।

राजस्थान में चुनाव चल रहा है। वहां के नेता मुंबई आ रहे हैं। लोगों से कह रहे हैं कि आप अपने गांव चिट्ठी लिखो कि वे हमको वोट दें। कमानेवाले की बात में वजन होता है। कमानेवाला जब घर वालों को कुछ कहता है तो वे उसकी बात मानते हैं। सही भी है। मुंबई के बहुत सारे लोग इसी रास्ते से राजस्थान जाकर भी चुनाव जीतते रहे हैं, विधायक और सांसद बनते रहे हैं। कमाई वाकई में बहुत अहमियत रखती है। रही बात राजस्थान के मुसलमानों की, तो वहां का तो आधे से भी ज्यादा मुसलमान न केवल शुद्ध रूप से भाजपाई है, बल्कि मोदी में बहुत भरोसा भी करता है। रही बात घरेलू विकास की, तो रवीश ने तो सिर्फ बिहार के गांवों की बात की, मगर राजस्थान ही नहीं बिहार, बंगाल, यूपी और झारखंड सहित देश के कई प्रदेशों के गांव गुजरात की कमाई से विकसित हो रहे है। मोदी के गुजरात ने इन गांवों के लोगों को अपनी तारीफ़ के तर्क और तेवर दोनों उपलब्ध करा दिये है।

�रवीश कुमार जब गांव गए तो उनके गाँव से लेकर मोतिहारी और ट्रेन में जिससे भी मिला सबने नरेंद्र मोदी की बात की। खूब बात की। जो मोदी के बारे में बतिया रहे थे, उनमें हर जाति और वर्ग के लोग थे। रवीश कुछ कांग्रेसी परिवारों में भी गए तो वहाँ भी लोगों ने नरेंद्र मोदी के बारे में ही चर्चा की। रवीश दिल्ली लौटते वक्त लिखने के लिए ट्रेन में जब इन बातों की सूची बना रहे थे तो उनको खयाल आया कि किसी ने भी उनसे राहुल गांधी के बारे में तो एक लाइन नहीं पूछी। एक आदमी ने भी नहीं पूछा कि सोनिया क्या करेंगी या राहुल क्या कर रहे हैं। गाँव गाँव में मोदी के पोस्टर हैं। नीतीश कुमार के नहीं। राहुल गांधी के भी पोस्टर नहीं दिखे। मगर मोदी हर जगह बिहार में दिख रहे हैं। झारखंड में ङी, छत्तीसगढ़ में, एमपी, यूपी, राजस्थान और बंगाल में भी दिख रहे हैं। अपन अभी महाराष्ट्र और एमपी और राजस्थान के गांवों में जाकर आए हैं। मोदी का डंका वहां भी बज रहा है।

अपना मानना है कि देश के गांवों का गरीब तक अब यह मानने लग गया है कि भारत के प्रधानमंत्री के रूप में किसी मोहरे, मुखौटे या कमजोर कठपुतली जैसे आदमी की जरूरत नहीं है। देश को एक मजबूत प्रधानमंत्री चाहिए। बीते एक दशक से देश पर राज करनेवालों की आंतरिक कमजोरियों की वजह से हमारे देश की राजनीतिक जमीन की उर्वरा की तासीर में तरह तरह की तब्दीलियां आ गई हैं। जिनको राहुल गांधी और समूची कांग्रेस को समझने में शायद अभी कुछ साल और लगेंगे। नरेंद्र मोदी शहर तक सीमित नहीं हैं। गांवों की तह तक उनका फैलाव साफ दिख रहा है। रवीश कुमार सही कहते हैं कि कांग्रेस में वो नज़रिया ही नहीं है कि महँगाई के इस दौर में गाँवों की इन तस्वीरों को कैसे पेश किया जाए, इस, पर चिंतन करे। कांग्रेस सन्न है, क्योंकि मोदी ने खाली नेम प्लेट पर अपना नाम सबसे ऊपर और सबसे पहले लिख दिया है। जो लोग यह मान कर दिल बहला रहे हैं कि मोदी सिर्फ फेसबुक, ट्वीटर, वॉट्सएप्प पर ही बड़े हो रहे हैं, सोश्यल मीडिया में ही पसर रहे हैं और टीवी पर ही दिख रहे हैं। वे अपने दिलों को बहलाए रखने के लिए चाहे कुछ भी माने, लेकिन सच्चाई यही है कि मोदी कांग्रेस के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बनकर उभर चुके हैं और उनकी ताकत के तेवर कांग्रेस की सीमाओं के पार जाकर बोल रहे हैं। �

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं, उनसे 9821226894 पर संपर्क किया जा सकता है।)

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राम लीला [ हिंदी एक्शन प्रेम कथा ]

दो टूक : प्रेम के लिए दोस्ती और दुशमनी कोई मायने नहीं रखती।  वो बस हो जाता है. अब ये अलग बात है कि उसके बाद उसके लिए मौत और जिंदगी का मायने भी ख़त्म हो जाता है . बस इतनी सी बात करती है संजय लीला भंसाली की रणवीर सिंह , दीपिका पादुकोण , गुलशन देवयाह , ऋचा चड्ढा , श्वेता साल्वे, सुप्रिया पाठक , गिरीश सहदेव, बरखा बिष्ट,  अभिमन्यु सिंह , विवान बाटना , शरद केलकर और प्रियंका चोपड़ा के अभिनय वाली नयी फ़िल्म राम लीला . 

कहानी:  फ़िल्म की कहानी है राम (रणवीर सिंह)  और लीला (दीपिका पादुकोण) की  है जो गुजरात में सनेड़ा और रजाड़ी खानदानों के बीच पांच सौ सालों से चली  आ रही दुश्मनी के बीच भी प्रेम कर बैठते हैं . दोनों शादी करना चाहते हैं और इस से पहले कि उनकी दुश्मनी और प्रेम को एक नया चेहरा मिले  राम के भाई [अभिमन्यु सिंह ] की हत्या सनेड़ा खानदान के लोगों के हाथ हो जाती है और गुस्से में आकर राम, लीला के भाई की हत्या कर देता है. लेकिन लीला, अपने प्यार के आगे भाई की हत्या को भूलकर राम के साथ भाग जाती है. समय उनका साथ दे इस से पहले ही उनके बीच सलीला [ऋचा चड्ढा] और  लीला का भाई [गुलशन देवयाह] जैसे लोग आ खड़े होते हैं . इसके बाद शुरू होती है दोनों समूहों के बीच नए सिरे से दुश्मनी की भी एक नयी शुरुआत .फ़िल्म की कहानी शेक्सपियर के रोमियो और जूलियट नाटक पर आधारित है.

गीत संगीत : फ़िल्म का  संगीत निर्देशक संजय लीला भंसाली ने दिया हैं और गीत सिद्धार्थ और गरिमा ने लिखे हैं . संजय की फिल्मों की एक ख़ास बात है कि उनकी फ़िल्म के रंगों और बोलों में उनका परिदृश्य भी मिल जाता है और साथ ही उनका  प्रस्तुतीकरण भी अद्भुत किस्म को होता है . फ़िल्म का शीर्षक गीत राम लीला , नगाड़ा संग ढोल बाजे , अंग लगा दे जैसे गीत बेशक लम्बे समय न सुने जाएं पर वो याद तो  रखे जा  सकते हैं .

अभिनय :  राम और लीला की भूमिका में में रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण की अपने अपने अपने पात्रों के साथ गम्भीरता दिखती देती है . ये अलग बात है कि पिछली कुछ फिल्मों में दीपिका कुछ अधिक बोल्ड और खुलकर सामने आती हैं पर वो जमती हैं और  रणवीर सिंह के साथ उन्होंने पूरी ऊर्जा के साथ खुद को प्रस्तुत  किया है . रही रणवीर सिंह की  बात तो उनके संवाद आदायगी के मामले को छोड़ दें तो उनकी शारीरिक भाषा और अपने पात्र के प्रति आत्मविश्वास गजब का है . 
सुप्रिया पाठक अपनी प्रतिभा से प्रभावित करती है और  गुलशन देवैया के साथ  रिचा चढ्डा और अभिमन्यु सिंह एक नए परवेश के साथ खुद को साबित करते हैं पर इन सब पर भारी तो दीपिका ही हैं . फ़िल्म में उनके गहने और कपड़े नए फ़ैशन शैली के परिचायक   हैं. रजा मुराद लम्बे समय दिखे हैं और शरद केलकर , होमी वाडिया के साथ बरखा बिष्ट के लिए इस से बड़ा मौका नहीं हो सकता हथा . रही प्रियंका चोपड़ा कि बात तो उनके तो कहें ही क्या .

निर्देशन : संजय लीला भंसाली की फिल्मों में भव्यता होती है और रंगों के साथ उनके पात्र भी सजे धजे रहते हैं . हर फ़्रेम में  उनके शानदार सेट, गांव की गलियों की खूबसूरती, तकनीक और कलात्मकता दिखती है लेकिन इस बार उनकी फ़िल्म उनकी  फिल्मों से अलग है . कई मायनो में . फ़िल्म  विलियम शेक्सपियर के मशहूर नाटक 'रोमियो-जूलियट' पर आधारित है लेकिन उसे उसमे लीला ने इस बार प्रेम रिश्तों,कहानी, चरित्र, कथानक और घटनाओं का जो मेलोड्रामा गढ़ा है वो सेक्स , चुम्बन , हिंसा को मिलाकर  बुना गया है . फ़िल्म एक सुन्दर कैनवास है पर उसे उसके चमकीले गाढ़े  रंगों के साथ देखना भी एक अलग अनुभव है जिसमे राकेश पांडे और भंसाली का सम्पादन , एस  रवि वर्मन का कैमरा , शाम कौशल का एक्शन  और सिद्धार्थ गरिमा के संवाद उसे एक बार तो देखने लायक बना ही देते हैं . 

फ़िल्म क्यों देखें : संजय लीला भंसाली की एक नए किस्म की प्रेम कहानी है . 
फ़िल्म क्यों न देखें : ये अलग बात है कि लीला की इस फ़िल्म में कहानी के नाम पर कोई नया करिशमा नहीं है .

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रज्जो [हिंदी अपराध कथा ]

फिल्म समीक्षा 
रामकिशोर पारचा 
रज्जो [हिंदी अपराध कथा ] 
दो टूक : कौन कहता है कि तवायफों के लिए जिंदगी बस कोठा होती है . पर ये  भी सच है कि उस कोठे से उतरकर किसी तवायफ के लिए सीधी जिंदगी का रात आसान नहीं है । निर्देशक विश्वास पाटिल की कंगना राणावत ,  अरोरा महेश ,  प्रकाश राज ,जया  प्रदा , तनुश्री चक्रवर्ती  , दिलीप ताहिल  और स्वाति चिटनिस के साथ कृतिका चौधरी के अभिनय वाली रज्जो भी बस एक ऐसी ही कहानी  कहती है.

कहानी : फ़िल्म की कहानी है रज्जो(कंगना रांवत ) की है जो  नागपाड़ा के एक कोठे की तवायफ हैं। रज्जो अपने इलाके की सबसे मशहूर तवायफ हैं। एक दिन रज्जो के कोठे पर चंदू (पारस अरोड़ा) आता है तो  वह रज्जो की गायिकी का दीवाना हो जाता है और उसे दिल दे बैठता है। पर  उनके रास्ते में हांडे भाऊ [प्रकाश राज ] आ जाता है तो उनका प्रेम भी जिंदगी और मौत के बीच फंस जाता है . उनकी मदद को अति है बेगम [महेश मांजरेका ] और फिर शुरू होती है उनके प्रेम और जिंदगी के एक कड़वे सच को जीने की  शुरुआत .

गीत संगीत : फ़िल्म में उत्तम सिंह का संगीत है और  गीत देव कोहली के साथ समीर और विश्वास पाटिल के हैं लेकिन फ़िल्म के गीत अच्छे होने के बाद भी राम लीला के द्वन्द में फंस कर बस याद रहते हैं लेकिन हाल से बाहर  नहीं आते . 

अभिनय : फ़िल्म में  कंगना केंद्र में हैं और पारस उनके सामने बहुत कुछ नहीं कर पाते . कृष के बाद कंगना को एक नयी भूमिका में देखना सुखद है पर पारस को अभी और मेहनत करनी होगी . महेश किन्नर की भूमिका में जमते हैं लेकिन प्रकाश राज खुद को दोहराते हैं .. दिलीप ताहिल और जया प्रदा के साथ किशोर कदम और उपेन्द्र लिमय ठीक है पर बहुत नया नहीं करते . 
निर्देशन: फ़िल्म की कहानी में कोई नयापन नहीं लेकिन विश्वास पाटिल की ये फ़िल्म बुरी नहीं है और बिनोद प्रधान के कैमरे से निकली ये फ़िल्म कुछ चमकीले और कुछ घहरे रंगों के साथ देख सकते हैं आप .

फ़िल्म क्यों देखें : कंगना के लिए .
फ़िल्म क्यों न देखें : एक पुरानी कहानी पर नयी फ़िल्म है . 
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रामकिशोर पारचा

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पहले रामलीला नाम हटाओ तभी फिल्म दिखाओ, उच्च न्यायालय का आदेश

मप्र हाईकोर्ट ने गोलियों की रासलीला रामलीला शीर्षक से प्रदर्शित हो रही फिल्म को चुनौती देने वाले मामले को गंभीरता से लिया। एक्टिंग चीफ जस्टिस केके लाहोटी और जस्टिस सुभाष काकड़े की युगलपीठ ने अपने अंतरिम आदेश में कहा है कि आगामी आदेश तक फिल्म रिलीज न करें यदि शुक्रवार 15 नवंबर को निर्धारित तिथि पर फिल्म रिलीज करना है तो रामलीला शब्द हटाना होगा। युगलपीठ ने मामले में फिल्म के निर्माता व निर्देशक संजय लीला भंसाली, इरोज प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ किशोर कुमार व अभिनेता रणवीर सिंह व अभिनेत्री दीपिका पादुकोण को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिये है। युगलपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 22 नवंबर को नियत की है।

 

इस मामले अधिवक्ता अमित कुमार साहू व अधिवक्ता आनंद चावला की ओर से दायर किया गया है। जिसमें कहा गया है कि संजय लीला भंसाली ने गोलियों की रासलीली-रामलीला नामक फिल्म बनाई है जो कि भारत के सांस्कारिक मूल्यों व हिंदू भावना को ठेस पहुंचाने वाली है। याचिका में यह भी कहा गया है कि रामलीला देश से लेकर विदेशो तक में लोकप्रिय है, यूनेस्को ने जिसे विश्व की सांस्कृतिक धरोहरो में शामिल किया है। केन्द्र सरकार के सांस्कृतिक विभाग ने रामलीला के दो भागो में वृत्तचित्र तैयार किये है।

मामले की सुनवाई दौरान युगलपीठ को सेंसर बोर्ड की ओर से बताया गया कि उन्होंने आवेदक के अभ्यावेदन 8 नवंबर को कर दिया है। फिल्म से रामलीला का कोई सारोकार नही है, फिल्म रोमियो व जूलियट की कहानी पर आधारित है। सुनवाई पश्चात् न्यायालय ने उक्त निर्देश दिये है।

 

सुनवाई के दौरान आवेदकों ने अपना पक्ष खुद रखा, जबकि अनावेदक राज्य सरकार की ओर से उप शासकीय अधिवक्ता स्वप्निल गांगुली और भारत सरकार की ओर से अधिवक्ता अभय पाण्डेय हाजिर हुए। उभय पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद युगलपीठ ने अपने अंतरिम आदेश में कहा-'भले ही सेन्सर बोर्ड की परीक्षण समिति ने फिल्म देखकर अपनी रिपोर्ट दी, लेकिन फिल्म का नाम रामलीला रखने से यही लगता है कि वह भगवान राम के जीवन से जुड़ी हुई है, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है।'

फिल्म के बारे में अपनी राय देते हुए युगलपीठ ने कहा-'फिल्म के नाम में रामलीला शब्द का इस्तेमाल करने से उन लोगों की भावनाएं बुरी तरह प्रभावित होंगी, जिनकी आस्था भगवान राम से जुड़ी हुई है। इस नाम से दर्शकों के मन में संशय पैदा होगा और वे फिल्म देखने जरूर जाएंगे।

इतना ही नहीं, रामलीला एक धार्मिक व महत्वपूर्ण शब्द है और उसके नाम का उपयोग रोमियो और जूलिएट की कहानी पर आधारित फिल्म के लिए नहीं किया जा सकता। अब सेन्सर बोर्ड ने फिल्म को रिलीज करने की इजाजत दे दी है। ऐसे में यही उचित होगा कि फिल्म का प्रदर्शन नाम बदल कर किया जाए। इस मत के साथ युगलपीठ ने कहा कि यदि अनावेदक फिल्म का नाम बदल रहे तो वे नवंबर को फिल्म रिलीज कर सकते हैं और यदि ऐसा नहीं होता तो अगली सुनवाई तक रामलीला के नाम पर फिल्म का प्रदर्शन न किया जाए।

फिल्म रामलीला पर आज युगलपीठ में विशेष सुनवाई होगी। जिसमें भारत के पूर्व एडिशनल सॉलीसीटर जनरल विवेक तन्खा एवं केन्द्रीय संचार मंत्री कपिल सिब्बल के बेटे अमित सिब्बल पैरवी करेंगे।

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आरएसएस लाएगा इस्लामिक चैनल

हिंदुत्व विचारधारा की कसमें खाने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ऐसी योजना पर काम कर रहा है, जिसे सुनकर उसके समर्थकों का एक बार कश्मकश में पड़ना स्वभाविक है।

इकॉनामिक्स टाईम्स ने खबर दी है किआरएसएस से जुड़े लोग भारतीय मुस्लिमों को इस्लाम के बारे में सूचित करने के लिए एक नया टेलीविजन चैनल शुरू करने की योजना पर काम कर रहे हैं। अगले साल होने वाले आम चुनावों से पहले पैगाम टीवी लॉन्च करने की योजना पर काम हो रहा है। हाल में संघ ने एक उर्दू अखबार शुरू किया है,‌ जिसका नाम 'पैगाम मादरे वतन' है। इसके अलावा रणनीति में एफएम चैनल शुरू करना भी शामिल है।

अखबार के प्रमुख संपादक और पूर्व आरएसएस प्रचारक गिरीश जुयाल इन तमाम पहलों के पीछे बताए जाते हैं। हालांकि, उनका कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़ी पहल का संघ से कोई लेना-देना नहीं है। जुयाल ने कहा, "यह व्यक्तिगत मोर्चे पर होने वाली कोशिश है और इसका आरएसएस और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच से कोई वास्ता नहीं।"

जुयाल ‌मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के नेशनल ऑर्गेनाइजिंग संयोजक हैं और इसकी अगुवाई इंद्रेश कुमार करते हैं। इंद्रेश आरएसएस से गहरे जुड़े हैं और मुस्लिमों के बीच संगठन के प्रचार के लिए काम करते हैं।

नरेंद्र मोदी को भाजपा का पीएम बनाने के लिए कड़ी मेहनत करने वाला आरएसएस और उन्हें 2014 के आम चुनावों में जीत तक पहुंचाने की जद्दोजहद में जुटे उसके कैडर साफ कर रहे हैं इन प्रस्तावित चैनलों से संघ का कोई वास्ता नहीं है।

आरएसएस प्रवक्ता राम माधव ने कहा, "आरएसएस किसी चैनल की फंडिंग नहीं करती। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच एक स्वतंत्र संगठन है, जिसके आरएसएस से बढ़िया संबंध हैं। उसकी गतिविधियां भी स्वतंत्र होती हैं।"

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