Sunday, November 24, 2024
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वास्तु सम्मत लक्ष्मी पूजन

कमलासना की पूजा से वैभव:

गृहस्थ को हमेशा कमलासन पर विराजित लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। देवीभागवत में कहा गया है कि कमलासना लक्ष्मी की आराधना से इंद्र ने देवाधिराज होने का गौरव प्राप्त किया था। इंद्र ने लक्ष्मी की आराधना ‘ú कमलवासिन्यै नम:’ मंत्र से की थी। यह मंत्र आज भी अचूक है।

दीपावली को अपने घर के ईशानकोण में कमलासन पर मिट्टी या चांदी की लक्ष्मी की प्रतिमा को विराजित कर, श्रीयंत्र के साथ यदि उक्त मंत्र से पूजन किया जाए और निरंतर जाप किया जाए तो चंचला लक्ष्मी स्थिर होती है। बचत आरंभ होती है और पदोन्नति मिलती है। साधक को अपने सिर पर बिल्व पत्र रखकर पंद्रह श्लोकों वाले श्रीसूक्त का जाप भी करना चाहिए।

लक्ष्मी पूजन

लक्ष्मी का लघु पूजन (सही उच्चारण हो सके, इस हेतु संधि-विच्छेद किया है।) महालक्ष्मी पूजनकर्ता स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएँ और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें। इस हेतु शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके पूजन करें। अपनी जानकारी हेतु पूजन शुरू करने के पूर्व प्रस्तुत पद्धति एक बार जरूर पढ़ लें।

पूजा सामग्री का शुध्दिकरण :
बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-

ॐ अ-पवित्र-ह पवित्रो वा सर्व-अवस्थाम्‌ गतोअपि वा ।
य-ह स्मरेत्‌ पुण्डरी-काक्षम्‌ स बाह्य-अभ्यंतरह शुचि-हि ॥
पुन-ह पुण्डरी-काक्षम्‌ पुन-ह पुण्डरी-काक्षम्‌, पुन-ह पुण्डरी-काक्षम्‌ ।

आसन का शु्ध्दिकरण :
निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-
ॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वम्‌ विष्णु-ना घृता ।
त्वम्‌ च धारय माम्‌ देवि पवित्रम्‌ कुरु च-आसनम्‌ ॥

आचमन कैसे करें:
दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें-

ॐ केशवाय नम-ह स्वाहा,
ॐ नारायणाय नम-ह स्वाहा,
ॐ माधवाय नम-ह स्वाहा ।

अंत में इस मंत्र का उच्चारण कर हाथ धो लें-
ॐ गोविन्दाय नम-ह हस्तम्‌ प्रक्षाल-यामि ।

दीपक :
दीपक प्रज्वलित करें (एवं हाथ धोकर) दीपक पर पुष्प एवं कुंकु से पूजन करें-
दीप देवि महादेवि शुभम्‌ भवतु मे सदा ।
यावत्‌-पूजा-समाप्ति-हि स्याता-वत्‌ प्रज्वल सु-स्थिरा-हा ॥
(पूजन कर प्रणाम करें)

स्वस्ति-वाचन :
निम्न मंगल मंत्र बोलें-
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्ध-श्रवा-हा स्वस्ति न-ह पूषा विश्व-वेदा-हा ।
स्वस्ति न-ह ताक्षर्‌यो अरिष्ट-नेमि-हि स्वस्ति नो बृहस्पति-हि-दधातु ॥

द्-यौ-हौ शांति-हि अन्‌-तरिक्ष-गुम्‌ शान्‌-ति-हि पृथिवी शान्‌-ति-हि-आप-ह ।
शान्‌-ति-हि ओष-धय-ह शान्‌-ति-हि वनस्‌-पतय-ह शान्‌-ति-हि-विश्वे-देवा-हा

शान्‌-ति-हि  ब्रह्म शान्‌-ति-हि सर्व(गुम्‌) शान्‌-ति-हि शान्‌-ति-हि एव शान्‌-ति-हि सा
मा शान्‌-ति-हि। यतो यत-ह समिहसे ततो नो अभयम्‌ कुरु ।
शम्‌-न्न-ह कुरु प्रजाभ्यो अभयम्‌ न-ह पशुभ्य-ह। सु-शान्‌-ति-हि-भवतु॥
ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्‌-महा-गण-अधिपतये नम-ह ॥

(नोट : पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन की समस्त सामग्री व्यवस्थित रूप से पूजा-स्थल पर रख लें। श्री महालक्ष्मी की मूर्ति एवं श्री गणेशजी की मूर्ति एक लकड़ी के पाटे पर कोरा लाल वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें। गणेश एवं अंबिका की मूर्ति के अभाव में दो सुपारियों को धोकर, पृथक-पृथक नाड़ा बाँधकर कुंकु लगाकर गणेशजी के भाव से पाटे पर रखें व उसके दाहिनी ओर अंबिका के भाव से दूसरी सुपारी स्थापना हेतु रखें।)

संकल्प :
अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत, द्रव्य आदि लेकर श्री महालक्ष्मीजी अन्य ज्ञात-अज्ञात देवीदेवताओं के पूजन का संकल्प करें-

हरिॐ तत्सत्‌ अद्यैत अस्य शुभ दीपावली बेलायाम्‌ मम महालक्ष्मी-प्रीत्यर्थम्‌ यथासंभव द्रव्यै-है यथाशक्ति उपचार द्वारा मम्‌ अस्मिन प्रचलित व्यापरे उत्तरोत्तर लाभार्थम्‌ च दीपावली महोत्सवे गणेश, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली, लेखनी कुबेरादि देवानाम्‌ पूजनम्‌ च करिष्ये।
( अब जल छोड़ दें।)

श्रीगणेश-अंबिका पूजन
हाथ में अक्षत व पुष्प लेकर श्रीगणेश एवं श्रीअंबिका का ध्यान करें।

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आई.आई.टी. कानपुर में आयोजित कल्चरल फेस्ट में पत्रकारिता विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने जीते अनेक पुरस्कार

भोपाल] 31 अक्टूबर / आई.आई.टी. कानपुर द्वारा 24 से 27 अक्टूबर 2013 तक प्रतिष्ठित कल्चरल फेस्ट अन्तराग्नि-13 का आयोजन किया गया। जिसमें विश्वविद्यालय के वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक डा. संजीव गुप्ता के मार्गदर्शन में 20 विद्यार्थियों का दल विभिन्न इवेन्ट्स में सम्मिलित हुआ। प्रमुख प्रतियोगिताओं में फोटोग्राफी] कविता] संसदीय वाद-विवाद] नुक्कड़ नाटक] समूह गान] जुगलबंदी] आमने-सामने] बालीवुड क्विज़] अंतराग्नि आइडोल संगम] वेस्टर्न सोलो] गुप-चुप] एड्मेड] कहानी में ट्विस्ट] पेयर आन स्टेज] लेक्ज़ीकान माफिया] तर्क] सप्तरंग] इम्पीट्स] पल्प फिक्शन] फ्लेम क्विज़ स्टुडियो फोटोग्राफी में सहभागिता की।

कार्यक्रम के अंतिम दिन परिणाम एवं सोनू निगम नाइट प्रमुख आकर्षण रहे। विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रानिक मीडिया विभाग के एम.एससी. तृतीय सेमेस्टर के छात्र ठाकुर हर्षित गौतम आमने-सामने प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर रहे। जनसंचार विभाग की छात्रा आस्था पुरी ने काव्यांजलि] प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। इसी प्रकार स्पाट फोटोग्राफी प्रतियोगिता के विषय वन्स अपोन ए टाईम इन अंतराग्नि] में बी.ए.(जनसंचार) के छात्र नूह अली आफरीदी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। जिसमें सवा लाख रुपये की छात्रवृत्ति दिल्ली के प्रसिद्ध फोटोग्राफर मुनीष खन्ना] द्वारा प्रायोजित की जावेगी एवं विशेष पुरस्कार बी.ए. (जनसंचार) के छात्र चयन सोनाने को प्राप्त हुआ। इसके तहत् उन्हें पच्चीस हजार की स्कालरशिप एवं दिल्ली में मुनीष खन्ना] के संस्थान में फोटोग्राफी करने का अवसर दिया जावेगा।

आई.आई.टी.] कानपुर के शानदार कल्चरल फेस्ट अंतराग्नि-13 में देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग] मैनेजमेंट एवं कला क्षेत्र के 100 से भी अधिक टीमों ने ि‍शरकत की। जिसमें प्रमुख है दिल्ली से गार्गी कालेज] हिन्दू कालेज] सेठ करोड़ीमल कालेज] शहीद सुखदेव कालेज] मानव रचना] चन्डीगढ़] जयपुर] लखनऊ] मेरठ एवं एम.सी.यू. भोपाल की टीमों ने जलवा बिखेरा। पाँच दिवसीय फेस्ट में युवाओं ने खूब मौज-मस्ती की] जिसमें देश-विदेश्‍ के राक बैन्ड की टीमों ने हिस्सा लिया। एक्टर नावजुद्दीन सिद्दीकी] एक्ट्रेस एलिना कजान] डायरेक्टर एवं एक्टर त्रिगमांशु धुलिया सहित कई नामी हस्ती भी फेस्ट में पहुँचे। इंडिया इंस्पायर्ड में भारत के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस.वाई.कुरैशी] माकपा नेता वृंदा करात] बी.बी.सी. के पूर्व ब्यूरो चीफ मार्क टुली इत्यादि ने सामाजिक] आर्थिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की और सुधार] बदलाव की नसीहत युवाओं को दी।

विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक समन्वयक डा. राखी तिवारी ने बताया कि विश्वविद्यालय के विद्यार्थी आगामी युवा उत्सवों में भागीदारी के लिए तैयारी कर रहे हैं। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला सहित विश्वविद्यालय के िशक्षकों] अधिकारियों ने विद्यार्थियों को बधाईयाँ दी हैं।

(डा. पवित्र श्रीवास्तव)

विभागाध्यक्ष-जनसंपर्क विभाग

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और अब नमो को हुई मुस्लिमों की बदनामी की चिंता

भारतीय जनता पार्टी 2004 में इंडिया शाईनिंग, 2009 में प्राईम मिनिस्टर इन वेटिंग जैसे राजनैतिक ड्रामे रचने के बाद अब गुजरात के विवादित मु यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उ मीदवार बनाकर एक बार फिर उसी प्रकार के राजनैतिक ड्रामे खेलने की कोशिश कर रही है। नरेंद्र मोदी को केवल 2002 के गुजरात दंगों के लिए हीज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा रहा बल्कि भारतीय जनता पार्टी के भीतर रहे हरेन पंडया परिवार से लेकर संजय जोशी, केशूभाई पटेल और अब लाल कृष्ण अडवाणी जैसे प्रभावित व आहत नेता तक नरेंद्र मोदी के राजनैतिक शैली,उनके स्वभाव, उनकी मंशा व हकीकत से भलीभांति वाकि़फ हो चुके हैं।

 

पंरतु जैसाकि दशकों से विश£ेषक यह कहते आ रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी दरअसल राष्ट्रीय स्वयं संघ का एक मुखौटा राजनैतिक दल मात्र है वही बात आज अक्षरश: सामने आती दिखाई दे रही है। यानी नरेंद्र मोदी किसी को पसंद हो या न हो, उनपर कितने ही आरोप क्यों न लग रहे हों, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी छवि कितनी ही दागदार क्यों न हो यहां तक कि पार्टी में पूर्ण रूप से उनकी स्वीकार्यता हो या न हो पंरतु यदि संघ नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद का दावेदार पेश किए जाने का निर्देश जारी करता है तो पार्टी के किसी नेता की जुरअत नहीं कि वह संघ के फरमान की अनदेखी कर सके। बहरहाल, संघ की पहली पसंद के रूप में नरेंद्र मोदी पार्र्टी के प्रधानमंत्री पर के दावेदार तो घोषित कर दिए गए हैं पंरतु इस घोषणा ने नरेंद्र मोदी के समक्ष राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के लिए वोट बटोरने तथा पार्टी के अधिक से अधिक प्रत्याशियों को जिताने की चुनौती भी खड़ी कर दी है।

               

गुजरात में हुए गोधरा कांड तथा उसके पश्चात पूरे राज्य में फैले अनियंत्रित अल्पसं यक विरोधी दंगों ने तथा इन दंगों में नरेंद्र मोदी की भूमिका ने उनकी पहचान देश के कट्टर हिंदुत्ववादी तथा अल्पसं यक विरोधी व राजधर्म का पालन न करने वाले राजनेता के रूप में स्थापित कर दी है। उनकी तजऱ्-ए-सियासत से देश का अल्पसंख्यक समुदाय ही मतभेद नहीं रखा बल्कि देश के बहुसं यक हिंदू समाज का भी एक बड़ा शिक्षित व बुद्धिजीवी,धर्मनिरपेक्ष समुदाय भी उनकी राजनैतिक शैली को स्वीकार नहीं करता। कई बुद्धिजीवियों ने तो मोदी के बारे में यहां तका कहा है कि यदि उन्हें धरती पर उपलब्ध समुद्र के समूचे पानी से भी नहला दिया जाए तो भी 2002 में उनपर पड़े पक्षपात व भेदभाव के धब्बे कभी समाप्त नहीं हो सकते। कई बुद्धिजीवी यहां तक कहते सुने जा रहे हैं कि यदि मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो वे देश छोड़कर चले जाएंगे। परंतु इस प्रकार की आलोचना की परवाह किए बिना तथा कई बार मीडिया के सवालों का जवाब देने में स्वयं को असमर्थ महसूस करने के बावजूद मोदी प्रधानमंत्री बनने के अपने मिशन पर डटे हुए हैं। इस 'परियोजनाÓ पर काम करने के लिए उनके तरकश में जो प्रमुख तीर हैं उनमें सबसे मु य 'रामबाणÓ है कांग्रेस,यूपीए,सोनिया गांधी व राहुल गांधी पर हर वक्त निशाना साधना, दूसरा गुजरात के अपने स्वयंभू विकास मॉडल का कुछ ऐसा बखान करना गोया गुजरात देश के ही नहीं बल्कि विश्व के सबसे अग्रणी राज्यों में शामिल हो गया हो। और इन सबकी पृष्ठभूमि में इनकी सधी-सधाई टीम जिसमें संघ परिवार से जुड़े कई संगठन शामिल हैं वह कभी परिक्रमा यात्रा के नाम पर तो कभी मंदिर के निर्माण का हवाला देकर तो कभी सांप्रदायिक दंगों व तनाव की आड़ में मोदी के मिशन को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। यदि राजनैतिक विश£ेषकों की मानें तो 2014 का आम चुनाव आते-आते देश का वातावरण और ाी सांप्रदायिक व तनावपूर्ण होने की संभावना है।

               

पिछले दिनों राहुल गांधी ने यह बयान दिया कि पाकिस्तान की खुिफया एजेंसी आईएसआई मुज़ फरनगर के दंगा प्रभावित युवकों से संपर्क बनाने में लगी हुई है। मुझे नहीं मालूम कि राहुल ने यह बयान किस सूचना के आधार पर दिया। परंतु 1984 के सिख विरोधी दंगों से लेकर देश में होने वाले दूसरे बड़े दंगों तक में यह ज़रूर देखा जा सकता है कि दंगा प्रभावित परिवार के सदस्यों पर देश के दुश्मनों की निश्चित रूप से नज़र रहती है और ऐसी शक्तियां प्रभावित परिवार के युवकों को अपने हथियार के तौर पर प्रयोग करना चाहती हैं।

 

स्वयं इंदिरा गांधी व राजीव गांधी भी ऐसी ही मनोभावना का शिकार हुए। लिहाज़ा मुज़फ्फरनगर में ऐसा है या नहीं यह तो नहीं मालूम परंतु यदि आईएसआई द्वारा ऐसा प्रयास किया जा रहा हो तो इसमें कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है। परंतु नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी के इस बयान को लेकर उनपर जिन शब्दों में निशाना साधा है उससे नरेंद्र मोदी का दोहरा चरित्र व चेहरा अवश्य दिखाई देता है। मोदी ने फरमाया कि या तो राहुल गांधी उन युवकों के नाम बताएं जो आईएसआई के संपर्क में हैं अन्यथा ऐसा कहकर राहुल गांधी एक समुदाय विशेष (मुसलमानों) को बदनाम कर रहे हैं। गोया नरेंद्र मोदी को राहुल गांधी के द्वारा मुसलमानों की की जा रही बदनामी से तकलीफ होती नज़र आ रही है। ज़ाहिर है ऐसा कहकर वे अल्पसंख्यकों के शुभचिंतक व हिमायती बनने का संदेश देना चाह रहे हैें। उनका अल्पसं यकों के प्रति इस प्रकार का हमदर्दी भरा बयान उनके स्वभाव तथा उनकी राजनैतिक सोच के अनुरूप तो नहीं है परंतु उनका यह बयान उनके लिए वक्त की ज़रूरत अवश्य है।

               

कितना अच्छा होता यदि मुसलमानों की फ़िक्र उन्हें उस समय भी हुई होती जबकि सच्चर आयोग  उनसे गुजरात के अल्पसं यकों के विकास के बारे में बात करने गया था और उन्होंने उसे बेरंग लौटा दिया था? मोदी जी की अल्पसं यकों के प्रति हमदर्दी उस समय कहां चली गई थी जबकि अदालत के निर्देश के बावजूद उन्होंने 2002 में गुजरात में बरबाद किए गए सैकड़ों अल्पसं यक धर्मस्थलों की मुर मत व पुनर्निमाण करने से इंकार कर दिया था? बड़ा आश्चर्य होता है जब नरेंद्र मोदी जैसा वह नेता अल्पसं यकों के प्रति हमदर्दी जताता है जोकि गुजरात दंगों में मरने वालों की तुलना कार के नीचे आकर मरने वाले किसी कुत्ते से करता है? अपने सिर पर अन्य समुदायों की पगड़ी सहर्ष धारण करने वाले व किसी मुस्लिम मौलवी द्वारा भेंट की गई टोपी को सिर पर रखने से मना करने वाले देश के पहले राजनेता आज केवल प्रधानमंत्री बनने की खातिर अल्पसं यकों के हमदर्द होने का स्वांग रचने चले हैं?

               

पिछले दिनों देश के एक प्रमुख धर्मगुरु मौलाना कल्बे सादिक साहब ने बिल्कुल सही फरमाया कि चूंकि इस्लाम धर्म माफ किए जाने की सीख देता है और किसी इंसान से हमेशा नफरत या बैर रखना मुनासिब नहीं होता। लिहाज़ा उस नज़रिए से नरेंद्र मोदी को भी मुसलमान माफ कर सकते हैं। परंतु ऐसा भी तभी हो सकता है जबकि मोदी को अपने किए पर पछतावा हो। वे गुजरात में 2002 में अपनी भूमिका के लिए देश से माफी मांगें? भविष्य में ऐसी पुनरावृति न होने देने का विश्वास दिलाएं। केवल अपने भाषणों के द्वारा ही नहीं बल्कि अपनी राजनैतिक गतिविधियों व शासकीय कारगुज़ारियों से भी यह साबित करें कि वे किसी एक धर्म व संप्रदाय के नहीं बल्कि पूरे देश के सभी धर्मों के समस्त भारतवासियों के रहनुमा हैं। परंतु वे ऐसा कतई नहीं कर सकते।

 

संभव है 2014 के चुनाव आने के कुछ ही दिन पूर्व वे देश के अल्पसं सकों को लुभाने के लिए गुजरात दंगों से संबंधित कोई चौंकाने वाला बयान जारी करें। परंतु िफलहाल वे संघ की एक सधी-सधाई रणनीति पर अलपसं यकों को अलग रखकर हिंदू मतों को संगठित करने का किसी भी प्रकार से प्रयास कर रहे हैं। ज़ाहिर है संघ की इस रणनीति में अल्पसं यकों को लुभाने या उनसे क्षमा याचना करने की कोई गुंजाईश कतई नहीं है। ऐसे में मोदी में भी यह साहस नहीं कि उन्हें प्रधानमंत्री पद का पार्टी का दावेदार बनाने में अपनी सर्वप्रमुख भूमिका निभाने वाले संघ की दूरगामी रणनीति की वे अनदेखी करें।

               

बहरहाल, नमो की सियासत को परवान चढ़ाने के लिए उनके साथ कई रणनीतिकार अलग-अलग मोर्चों पर सक्रिय हैं। सार्वजनिक मंच से लेकर समाचार पत्रों तक स्तंभ तथा इंटरनेट व सोशल मीडिया के माध्यम से, कहीं जेहाद व आतंकवाद का नाम लेकर बहुसं यक मतों को अपने पक्ष में जुटाने की कोशिश की जा रही है तो कहीं कुछ गिने-चुने मुस्लिम चेहरों को आगे रखकर अल्पसं यक मतों को आकर्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। कभी राहुल के बयान पर ही अपनी राजनीति केंद्रित की जा रही है तो कहीं सत्तारुढ़ यूपीए सरकार की मंहगाई व भ्रष्टाचार जैसी नाकामियों को ही सफलता के हथियार के रूप में पेश करने की कोशिश की जा रही है।

 

बुंदेलखंड में मोदी साहब ने फरमाया कि वे लोगों के आंसू पोंछने आए हैं आंसू बहाने नहीं। परंतु मोदी जी यदि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार न बनते और पार्टी को बहुमत दिलाने की ज़िम्मेदारी उन पर न होती तो उन्हें बुंदेलखंड के लोगों के आंसू पोंछने की शायद अब भी ज़रूरत महसूस न होती। तीन वर्ष पूर्व जब बुंदेलखंड के लोग सूखे के कारण भूख व प्यास से तड़प रहे थे और जिस समय वास्तव में बुंदेलखंडवासियों को अपने हमदर्द राजनेता की तलाश थी उस समय मोदी ने वहां पहुंच कर लोगों के आंसू पोंछने की तकलीफ नहीं की। लोकसभा 2014 के प्रस्तावित चुनाव आते-आते राजनेताओं की ऐसी ही तमाम ल फाजि़यां व उनके घडिय़ाली आंसू और भी देखने को मिलेंगे। देश के मतदाताओं को इनपर नज़र रखने व इनसे सचेत रहने की ज़रूरत है।

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भाई-दूजः बहन के निश्छल प्यार का प्रतीक

भाई दूज का पर्व दीवाली के दो दिन बाद यानि कार्तिक शुक्ल की द्वितीया को मनाया जाता है। इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। आज के दिन भाई खुद अपनी बहन के घर जाता है, बहन उसकी पूजा करती है और उसकी आरती उतारकर उसे तिलक लगाती है।

भाई दूज को लेकर भी कई रोचक और प्रेरणादायक पौराणिक और लोक कथाएँ हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार यमराज, यमुना, तापी, शनि – इन चारों को भगवान सूर्य की संतान माना गया है। यमराज अपनी बहन यमुना से बहुत स्नेह करते थे। एक बार भाई दूज के दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर आये तो अचानक अपने भाई को अपने घर देख यमुना ने बड़े प्यार और जतन से से उनका स्वागत किया और कई तरह व्यंजन बना कर उन्हें भोजन करवाया और खुद ने उपवास रखा, अपनी बहन की इस श्रध्दा से यमराज प्रसन्न हुए और उसे वचन दिया कि आज के दिन जो भाई अपनी बहन को स्नेह से मिलेगा उसके घर भोजन करेगा उसको यम का भय नहीं रहेगा।  इस दिन बहन अपने भाई की दीर्घायु एवं स्वस्थ जीवन के लिए मृत्यु के देवता यमराज की पूजा करती है। अपने भाई को विजय तिलक लगाती है ताकि वह किसी भी तरह के संकटों का सामना कर सके।

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दीवाली की पौराणिक कथा

एक बार भगवान विष्णु माता लक्ष्मीजी सहित पृथ्वी पर घूमने आए। कुछ देर बाद भगवान विष्णु लक्ष्मीजी से बोले- मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूँ । तुम यहीं ठहरो, परंतु लक्ष्मीजी भी विष्णुजी के पीछे चल दीं। कुछ दूर चलने पर ईख (गन्ने) का खेत मिला। लक्ष्मीजी एक गन्ना तोड़कर चूसने लगीं। भगवान लौटे और जब उन्होंने लक्ष्मीजी को गन्ना चूसते हुए देखा तो क्रोधित होकर श्राप दे दिया कि यह खेत जिस किसान का है तुम उसके यहाँ पर १२ वर्ष तक रहकर उसकी सेवा करो।

विष्णु भगवान क्षीर सागर लौट गए तथा लक्ष्मीजी ने किसान के यहाँ रहकर उसे धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। उस किसान को पता ही नहीं था कि उसके घर में एक साधारण स्त्री के रूप में रहने के लिए स्वयं लक्ष्मीजी आई है। १२ वर्ष के बाद लक्ष्मीजी भगवान विष्णु के पास जाने के लिए तैयार हो गईं परंतु किसान ने उन्हें जाने नहीं दिया। श्राप की अवधि पूर्ण होने पर भगवान विष्णु स्वयं लक्ष्मीजी को वापस लेने आए परंतु किसान ने लक्ष्मीजी को रोक लिया।  इस पर विष्णु भगवान ने उस किसान से कहा कि  तुम परिवार सहित गंगा स्नान करने जाओ और इन कौड़ियों को भी गंगाजल में छोड़ देना तुम्हारे आने तक मैं यहीं रहूँगा।

किसान गंगा नदी में स्नान करने पहुँचा और गंगाजी में कौड़ियां डालते ही चार भुजाएँ निकली जिन्होंने वे कौड़ियाँ अपने पास ले ली।  यह देखकर देखकर किसान ने गंगाजी से पूछा कि ये चार हाथ किसके हैं। गंगाजी ने किसान को बताया कि ये चारों हाथ मेरे ही थे। तुमने जो मुझे कौड़ियाँ भेंट की हैं, वे तुम्हें किसने दी हैं? किसान बोला कि मेरे घर पर एक स्त्री और पुरुष आए हैं। तभी गंगाजी बोलीं- वे लक्ष्मीजी और भगवान विष्णु हैं। तुम लक्ष्मीजी को मत जाने देना, नहीं तो पुन: निर्धन हो जाओगे।

किसान ने घर लौटने पर लक्ष्मीजी को नहीं जाने दिया। तब भगवान ने किसान को समझाया कि मेरे श्राप के कारण लक्ष्मीजी तुम्हारे यहाँ  १२ वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही हैं। फिर लक्ष्मीजी चंचल हैं, इन्हें बड़े-बड़े नहीं रोक सके, तुम हठ मत करो। फिर लक्ष्मीजी बोलीं- हे किसान यदि तुम मुझे रोकना चाहते हो तो कल धनतेरस है। तुम अपना घर स्वच्छ रखना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना। मैं तुम्हारे घर आउंगी। तुम उस समय  जब मेरी पूजा करोगे तो मैं अदृश्य रहूँ गी। किसान ने लक्ष्मीजी की बात मान ली और लक्ष्मीजी द्वारा बताई विधि से पूजा की। उसका घर धन-धान्य से भर गया। इस प्रकार किसान प्रति वर्ष लक्ष्मीजी को पूजने लगा तथा अन्य लोग भी लक्ष्मीजी का पूजन करने लगे।

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राम की शक्ति पूजा

दिवाली का मतलब है अंधकार को दूर करना लेकिन इसके शाब्दिक अर्थ को ग्रहण करने की बजाय आप अपने आस-पास के अंधियारे को देखें और अनाथ आश्रमों में रहने वाले बच्चों के बीच जाकर, अपने घर के पास की झुग्गी झोपडियों में रहने वाले गरीबों के बीच जाकर या फिर अपने घर में काम करने वाले नौकरों, ड्रायवरों और महरियों के बच्चों को अपने घर बुलाकर उनके साथ दिवाली मनाएं तो तो दीपावली का पर्व मनाना ज्यादा सार्थक होगा।

महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने राम की शक्ति पूजा पर एक कालजयी रचना लिखी थी हमें उम्मीद है हमारे हिन्दी प्रेमी सुधी पाठकजनों को जरुर पसंद आएगी।

राम की शक्ति पूजा

फिर देखी भीमा-मूर्ति आज रण देवी जो
आच्छादित किए हुए सम्मुख समग्र नभ को,
ज्योतिर्मय अस्त्र सकल बुझ-बुझकर हुए क्षीण,
पा महानिलय उस तन में क्षण में हुए लीन,
लख शंकाकुल हो गए अतुल-बल शेष-शयन;
खिंच गए दृगों में सीता के राममय नयन;
फिर सुना-हँस रहा अट्टाहास रावण खलखल,
भावित नयनों से सजल गिरे दो मुक्ता-दल।

बैठे मारुति देखते राम-चरणारविन्द-
युग 'अस्ति-नास्ति' के एक गुण-गण-अनिन्द्य,
साधना-मध्य भी साम्य-वामा-कर दक्षिण-पद,
दक्षिण करतल पर वाम चरण, कपिवर, गद्गद्
पा सत्य, सच्चिदानन्द रूप, विश्राम धाम,
जपते सभक्ति अजपा विभक्ति हो राम-नाम।
युग चरणों पर आ पड़े अस्तु वे अश्रु-युगल,
देखा कवि ने, चमके नभ में ज्यों तारादल।
ये नहीं चरण राम के, बने श्यामा के शुभ, –
सोहते मध्य में हीरक युग या दो कौस्तुभ;
टूटा वह तार ध्यान का, स्थिर मन हुआ विकल
सन्दिग्ध भाव की उठी दृष्टि, देखा अविकल

बैठे वे वहीं कमल लोचन, पर सजल नयन,
व्याकुल-व्याकुल कुछ चिर प्रफुल्ल मुख निश्चेतन।
"ये अश्रु राम के" आते ही मन में विचार,
उद्वेग हो उठा शक्ति-खोल सागर अपार,
हो श्वसित पवन उच्छवास पिता पक्ष से तुमुल
एकत्र वक्ष पर बहा वाष्प को उड़ा अतुल,
शत पूर्णावर्त, तरंग-भंग, उठते पहाड़,
जल-राशि राशि-जल पर चढ़ता खाता पछाह,
तोड़ता बन्ध-प्रतिसन्ध धरा हो स्फीत -वक्ष
दिग्विजय-अर्थ प्रतिपल समर्थ बढ़ता समक्ष,
शत-वायु-वेग-बल, डूबा अतल में देश-भाव,
जल-राशि विपुल मध मिला अनिल में महाराव

वज्रांग तेजघन बना पवन को, महाकाश
पहुँचा, एकादश रूद्र क्षुब्ध कर अट्टहास।
रावण-महिमा श्यामा विभावरी, अन्धकार,
यह रूद्र राम-पूजन-प्रताप तेज:प्रसार;
इस ओर शक्ति शिव की जो दशस्कन्ध-पूजित,
उस ओर रूद्रवंदन जो रघुनन्दन-कूजित;
करने को ग्रस्त समस्त व्योम कपि बढ़ा अटल,
लख महानाश शिव अचल, हुए क्षण भर चंचल;
श्यामा के पद तल भार धरण हर मन्द्रस्वर
बोले – "सम्वरो, देवि, निज तेज, नहीं वानर
यह, नहीं हुआ शृंगार-युग्म-गत, महावीर
अर्चना राम की मूर्तिमान अक्षय-शरीर,
चिर ब्रह्मचर्य-रत ये एकादश रूद्र, धन्य,
मर्यादा-पुरुषोत्तम के सर्वोत्तम, अनन्य

लीला-सहचर, दिव्यभावधर, इन पर प्रहार
करने पर होगी देवि, तुम्हारी विषम हार;
विद्या का ले आश्रय इस मन को दो प्रबोध,
झुक जाएगा कपि, निश्चय होगा दूर रोध।"
कह हुए मौन शिव; पतन-तनय में भर विस्मय
सहसा नभ से अंजना-रूप का हुआ उदय
बोली माता – "तुमने रवि को जब लिया निगल
तब नहीं बोध था तुम्हें; रहे बालक केवल,
यह वही भाव कर रहा तुम्हें व्याकुल रह-रह
यह लज्जा की है बात कि माँ रहती सह-सह;
यह महाकाश, है जहाँ वास शिव का निर्मल-
पूजते जिन्हें श्रीराम उसे ग्रसने को चल
क्या नहीं कर रहे तुम अनर्थ? सोचो मन में;
क्या दी आज्ञा ऐसी कुछ श्री रघुनन्दन ने?
तुम सेवक हो, छोड़कर धर्म कर रहे कार्य –
क्या असम्भाव्य हो यह राघव के लिए धार्य?"
कपि हुए नम्र, क्षण में माता-छवि हुई लीन,
उतरे धीरे-धीरे गह प्रभुपद हुए दीन।

राम का विषण्णानन देखते हुए कुछ क्षण;
"हे सखा" विभीषण बोले "आज प्रसन्न-वदन
वह नहीं देखकर जिसे समग्र वीर-वानर-
भल्लूक विगत-श्रम हो पाते जीवन निर्जर;
रघुवीर, तीर सब वही तूण में हैं रक्षित,
है वही पक्ष, रण-कुशल-हस्त, बल वही अमित;
हैं वही सुमित्रानन्दन मेघनाद-जित् रण,
हैं वही भल्लपति, वानरेन्द्र सुग्रीव प्रमन,
ताराकुमार भी वही महाबल श्वेत धीर,
अप्रतिभट वही एक अर्बुद-सम महावीर
हैं वही दक्ष सेनानायक है वही समर,
फिर कैसे असमय हुआ उदय भाव-प्रहर!
रघुकुल-गौरव लघु हुए जा रहे तुम इस क्षण,
तुम फेर रहे हो पीठ, हो रहा हो जब जय रण

कितना श्रम हुआ व्यर्थ, आया जब मिलन-समय,
तुम खींच रहे हो हस्त जानकी से निर्दय!
रावण? रावण – लम्पट, खाल कल्मय-गताचार,
जिसने हित कहते किया मुझे पाद-प्रहार,
बैठा उपवन में देगा दुख सीता को फिर,
कहता रण की जय-कथा पारिषद-दल से घिर,
सुनता वसन्त में उपवन में कल-कूजित-पिक
मैं बना किन्तु लंकापति, धिक्, राघव, धिक्-धिक्?'
सब सभा रही निस्तब्ध; राम के स्मित नयन
छोड़ते हुए शीतल प्रकाश देखते विमन,
जैसे ओजस्वी शब्दों का जो था प्रभाव
उससे न इन्हें कुछ चाव, न हो कोई दुराव,
ज्यों ही वे शब्दमात्र – मैत्री की समानुरक्ति,
पर जहाँ गहन भाव के ग्रहण की नहीं शक्ति।

कुछ क्षण तक रहकर मौन सहज निज कोमल स्वर,
बोले रघुमणि – "मित्रवर, विजया होगी न, समर
यह नहीं रहा नर-वानर का राक्षस से रण,
उतरी पा महाशक्ति रावण से आमन्त्रण;
अन्याय जिधर, हैं उधर शक्ति।" कहते छल-छल
हो गये नयन, कुछ बूँद पुन: ढलके दृगजल,
रुक गया कण्ठ, चमक लक्ष्मण तेज: प्रचण्ड
धँस गया धरा में कपि गह-युग-पद, मसक दण्ड
स्थिर जाम्बवान, – समझते हुए ज्यों सकल भाव,
व्याकुल सुग्रीव, – हुआ उर में ज्यों विषम घाव,
निश्चित-सा करते हुए विभीषण कार्यक्रम
मौन में रहा यों स्पन्दित वातावरण विषम।

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झूम पर देखिये सड़कछाप रोमियो आदित्य रॉय कपूर को एक नए अंदाज़ में!

ज़ूम टीवी पर आदित्य रॉय कपूर ने अपनी जिंदगी के कई खुलासे किए, जवानी के दिनों से लेकर बॉलीवुड के रोमांटिक हीरो बनने तक-सिद्धार्थ रॉय कपूर और कुणाल रॉय कपूर जैसे बड़े भाईयों के साथ रहना मुश्किल हो सकता है! इस शांत सुभाव लेकिन गहरी सोच रखने वाले स्टार आदित्य रॉय कपूर के बारे में जानिए इस सप्ताह जूम के जेनेक्सट-द फ्यूचर ऑफ बॉलीवुड में, जिनमें उनके कई रहस्याओं और कई अपेक्षाओं से पर्दा उठेगा।

सलमान खान, ऋतिक रौशन और अक्षय कुमार जैसे स्थापित सितारों के साथ स्क्रीन शेयर करने वाले इस युवा हीरो को ना सिर्फ नोटिस किया गया था बल्कि उसे अपनी हिट फिल्म में एकल भूमिका निभाने के लिए भी अनुभव भी मिला। आशिकी 2, चाहे उनकी पहली फिल्म ना हो पर इस फिल्म ने ही उन्हें बॉलीवुड में स्थापित किया है। 100 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर इस ब्लॉकबस्टर ने उन्हें शानदार सफलता दी है और ये फिल्म उनके सबसे करीब भी है। देखिए उसको बॉलीवुड में सबसे चहेते और बेहतरीन हीरो होने पर अपनी भाभी विद्या बालन, इंडस्ट्री के महेश भट्ट, मोहित सूरी, शक्ति कपूर, रणबीर कपूर को अपनी राय देते हुए।

आशिकी 2, ने उन्हें पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनाया है पर ये जवानी है दिवानी में रणबीर कपूर के दोस्त के रूप में उनकी भूमिका से स्पष्ट है कि वे यहां पर लंबे समय तक टिकने वाले हैं। ये प्राकृतिक ही है कि एक स्टार अपने प्रशंसकों के प्यार का आनंद उठाएंगे पर ये रूमानी लड़का काफी शर्मीला है और ये भी नहीं जानता कि प्रशंसकों के साथ कैसे बर्ताव करना चाहिए! उसका कहना है कि जब दर्शक  उसके काम की तारीफ कर रहे होते हैं तो वह चुपचाप ही रहता है।

अपनी फिल्मों में अपनी भूमिकाओं के अनुरूप ही ये हीरो असल जिंदगी में भी एक कूल राउडी की रह चुका है। अपनी जवानी के दिनों में दो लड़कियों से आकर्षित ये ‘आशिक’ उनके हर कदम पर नजर रखता था! उनसे अपने कॉलेज के रॉक बैंड और संगीत के प्रति अपने प्रेम के किस्से भी सुनिए। अपने क्रांतिकारी कदमों के साथ आगे रहने वाला ये स्टार पाठशाला में हमेशा बैकबेंचर ही होता था! परीक्षाओं में फेल होना और स्कूल से बंक मारने के नए नए अंदाज के साथ वह कॉलेज से सस्पेंडड  भी  हो गया था। अब इन सब के बारे में वे खुद ही बात करेंगे जूम पर !

 

इस मिश्रण में कुछ और मसाले डालते हुए उनके भाई भी बचपन के कुछ किस्सों और शरारतों का खुलासा करेंगे। अपने भाई, दोस्त और राजदार के साथ बिताए पलों के बारे में सिद्धार्थ रॉय कपूर और कुणाल रॉय कपूर भी काफी कुछ मजेदार बताएंगे।

 

देखिए, जेनेक्सट, फ्यूचर ऑफ बॉलीवुड, सोमवार 4 नवंबर, 2013, रात 8 बजे, सिर्फ जूम पर-भारत का नंबर 1 बॉलीवुड चैनल!

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पूजन के लिए आवश्यक पूजा सामग्री

धूप बत्ती (अगरबत्ती),  चंदन ,  कपूर,  केसर ,  यज्ञोपवीत 5 ,  कुंकु ,  चावल,  अबीर,  गुलाल,  अभ्रक,  हल्दी ,  सौभाग्य द्रव्य-मेहंदी,  चूड़ी, काजल, पायजेब,   बिछुड़ी आदि आभूषण। नाड़ा (लच्छा),  रुई,  रोली, सिंदूर,  सुपारी, पान के पत्त ,  पुष्पमाला,  कमलगट्टे,  निया खड़ा (बगैर पिसा हुआ) ,  सप्तमृत्तिका,  सप्तधान्य,  कुशा व दूर्वा (कुश की घांस) ,  पंच मेवा ,  गंगाजल ,  शहद (मधु),  शकर ,  घृत (शुद्ध घी) ,  दही,  दूध,  ऋतुफल,  (गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े और मौसम के फल जो भी उपलब्ध हो),  नैवेद्य या मिष्ठान्न (घर की बनी मिठाई),  इलायची (छोटी) ,  लौंग,  मौली,  इत्र की शीशी ,  तुलसी पत्र,  सिंहासन (चौकी, आसन) ,  पंच-पल्लव (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते),  औषधि (जटामॉसी, शिलाजीत आदि) ,  लक्ष्मीजी का पाना (अथवा मूर्ति),  गणेशजी की मूर्ति ,  सरस्वती का चित्र,  चाँदी का सिक्का ,  लक्ष्मीजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र,  गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र,  अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र,  सफेद कपड़ा (कम से कम आधा मीटर),  लाल कपड़ा (आधा मीटर),  पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार),  दीपक,  बड़े दीपक के लिए तेल,  ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा) ,  धान्य (चावल, गेहूँ) ,  लेखनी  (कलम, पेन),  बही-खाता, स्याही की दवात,  तुला (तराजू) ,  पुष्प (लाल गुलाब एवं कमल) ,  एक नई थैली में हल्दी की गाँठ,  खड़ा धनिया व दूर्वा,  खील-बताशे,  तांबे या मिट्टी का कलश और श्रीफल।

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खगोलीय दृष्टि से दिवाली का महत्व

मेष एवं तुला की संक्रांति में सूर्य विषुवत रेखा (नाड़ीवृत्त) पर रहता है, जिसे देवता 6 माह तक उत्तर की ओर तथा राक्षस 6 माह तक दक्षिण की ओर खींचते हैं। मंदराचल पर्वत ही नाड़ीवृत्त है, जिसके एक भाग में मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशि हैं जिन्हें देवता खींचते हैं। दूसरे भाग में तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन राशि हैं जिन्हें राक्षस खींचते हैं। मंथन से चौदह रत्न निकलते हैं, जिनमें महालक्ष्मी कार्तिक की अमावस्या को प्रकट होती हैं।

कार्तिक कृष्ण अमावस्या को समुद्र मंथन के परिणामस्वरूप महालक्ष्मी का जन्म हुआ था। हम जिस लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं वह अब भी प्रतिवर्ष समुद्रमंथन से निकलती हैं। ज्योतिषशास्त्र, भूगोल या खगोल की दृष्टि से देखें तो सूर्य को सभी ग्रहों का केंद्र एवं राजा माना गया है। सूर्य की बारह संक्रांतियां हैं। नाड़ीवृत्त मध्य में होता है, तीन क्रांतिवृत्त उत्तर को और तीन दक्षिण को होते हैं।

समुद्र मंथन में भगवान विष्णु की ही बड़ी भूमिका रही है और सूर्य ही भगवान विष्णु स्वरूप हैं। सूर्य क्रांतिवृत्त पर विचरण करता है। यह 6 माह उत्तर गोल में एवं 6 माह दक्षिण गोल में विचरण करता है, जिन्हें देवभाग एवं राक्षस भाग भी कहते हैं। मेष एवं तुला की संक्रांति में सूर्य विषुवत रेखा (नाड़ीवृत्त) पर रहता है, जिसे देवता 6 माह तक उत्तर की ओर तथा राक्षस 6 माह तक दक्षिण की ओर खींचते हैं।
मंदराचल पर्वत ही नाड़ीवृत्त है, जिसके एक भाग में मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह व कन्या राशि हैं जिन्हें देवता खींचते हैं। दूसरे भाग में तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ व मीन राशि हैं जिन्हें राक्षस खींचते हैं। मंथन से चौदह रत्न निकलते हैं, जिनमें महालक्ष्मी कार्तिक की अमावस्या को प्रकट होती हैं।

लक्ष्मी, महालक्ष्मी, राजलक्ष्मी, गृहलक्ष्मी आदि लक्ष्मी के अनेक रूप हैं। लक्ष्मी विहीन होने पर लोग ज्योतिष की शरण में भी जाते हैं। दीपावली के लिए पुराणों में अनेक कथाएं हैं। वास्तव में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को पृथ्वी का जन्म हुआ था और पृथ्वी ही महालक्ष्मी के रूप में विष्णु की पत्नी मानी गई है। दीपावली पृथ्वी का जन्मदिन है, इसलिए इस दिन सफाई करके धूमावती नामक दरिद्रा को कूड़े-करकट के रूप में घर से बाहर निकालकर सब ओर ज्योति जलाते हैं तथा श्री कमला लक्ष्मी का आह्वान करते हैं।

दीपावली से पूर्व अच्छी वर्षा से धनधान्य की समृद्धि रूपी लक्ष्मी का आगमन भी होता है। संवत्सर के उत्तरभाग में ऋत सोम तत्व रहता है जो लगातार दक्षिण की ओर बहता रहता है। दक्षिण भाग में ऋत अग्नि रहती है जो हमेशा उत्तर की ओर बहती है। लक्ष्मी का आगमन ऋताग्नि का आगमन ही होता है।

यह दक्षिण से होता है, इसीलिए आज भी भारतीय किसान फसल की पहली कटाई दक्षिण दिशा से ही करता है। ऋताग्नि एक ऐसी ज्योति है जो पूरी प्रजा को सुख-शांति एवं समृद्धि प्रदान करती है और वही महालक्ष्मी है। ज्योतिषशास्त्र में भी जन्मकालीन ग्रहयोगों के आधार पर महालक्ष्मी योग देखा जाता है।

शास्त्रों में कहा गया है-

लक्ष्मीस्थानं त्रिकोणं स्यात् विष्णुस्थानं तु केंद्रकम्।
तयो: संबंधमात्रेण राज्यश्रीलगते नर: ।।

यह योग श्री लक्ष्मी प्राप्ति का संकेत देता है। केंद्रस्थान में लग्न, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव गिने जाते हैं तथा त्रिकोण स्थान में पंचम एवं नवम भाव को माना गया है। जिस व्यक्ति का शरीर स्वस्थ हो, स्थायी संपत्ति, सुख-सुविधा के साधन हों, जीवनसाथी मनोनुकूल हो तो वह विष्णुस्वरूप बन जाता है।
इन सब गुणों का उपयोग सद्बुद्धि एवं धर्मपरायणता के साथ हो तो व्यक्ति महालक्ष्मी एवं राज्यश्री को प्राप्त करने वाला होता है। व्यक्ति यदि कर्मशील होगा, सदाचारी होगा, गुरुनिंदा, चोरी, हिंसा आदि दुराचारों से दूर रहेगा तो लक्ष्मी स्वत: उसके यहां स्थान बना लेगी।

पौराणिक प्रसंगों में स्वयं लक्ष्मी कहती हैं-

नाकर्मशीले पुरुषे वरामि, न नास्तिके, सांकरिके कृतघ्ने।
न भिन्नवृत्ते, न नृशंरावण्रे, न चापि चौरे, न गुरुष्वसूये।।

अत: कर्मशील एवं सदाचारी व्यक्ति को ही राज्यश्री एवं महालक्ष्मी योग बन पाता है। जबकि लोगों की ऐसी धारणा है कि खूब पैसा, धन दौलत हो तो आनंद की प्राप्ति हो सकती है, पर यह धारणा गलत है। ज्योतिषशास्त्र एवं पौराणिक ग्रंथों में महालक्ष्मी का स्वरूप दन-दौलत या संपत्ति के रूप में नहीं बताया गया है।

लक्ष्मीवान उस व्यक्ति को माना गया है जिसका शरीर सही रहे और जिसे जीवन के हर मोड़ पर प्रसन्नता के भाव मिलते रहें। मुद्रा के स्थान एवं खर्च के स्थान को महालक्ष्मीयोग का कारक नहीं माना गया है बल्कि प्राप्त मुद्रा रूपी लक्ष्मी को सद्बुद्धि के साथ कैसे खर्च करके आनंद लिया जाए, इसे माना गया है। इसीलिए महालक्ष्मी पूजन में महालक्ष्मी, महासरस्वती एवं गणोश जी का पूजन एक साथ किया जाता है।

गणोश बुद्धि के देवता हैं तथा सरस्वती ज्ञान की देवी हैं, इसीलिए लक्ष्मी के पहले श्री शब्द लगाया जाता है। यह श्री सरस्वती का बोधक होता है। इसका भाव यह निकलता है कि मुद्रारूपी लक्ष्मी को भी यदि कोई प्राप्त करता है तो श्रेष्ठ गति के साथ जो उसका उपयोग एवं उपभोग करता है, वह आनंद की अनुभूति करता है।

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ज्योति पर्व दिवाली का महत्व, पूजा विधि और मुहुर्त

कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या को दीपावली पर्व मनाया जाता है। उस दिन धन प्रदात्री 'महालक्ष्मी' एवं धन के अधिपति 'कुबेर' का पूजन किया जाता है। हमारे पौराणिक आख्यानों में इस पर्व को लेकर कई तरह की कथाएँ हैं। भारतीय परंपरा में हर पर्व और त्यौहार का संबंध प्रकृति की पूजा,� हमारे सुखद जीवन, आयु, स्वास्थ्य, धन, ज्ञान, वैभव व समृद्धि की उत्तरोत्तर प्राप्ति से है। साथ ही मानव जीवन के दो प्रभाग धर्म और मोक्ष की भी प्राप्ति हेतु विभिन्न देवताओं के पूजन का उल्लेख है। आयु के बिना धन, यश, वैभव का कोई उपयोग ही नहीं है। अतः सर्वप्रथम आयु वृद्धि एवं आरोग्य प्राप्ति की कामना की जाती है। इसके पश्चात तेज, बल और पुष्टि की कामना की जाती है। तत्पश्चात धन, ज्ञान व वैभव प्राप्ति की कामना की जाती है।� विशेषकर आयु व आरोग्य की वृद्धि के साथ ही अन्य प्रभागों की प्राप्ति हेतु क्रमिक रूप से यह पर्व धन-त्रयोदशी (धन-तेरस), रूप चतुर्दशी (नरक-चौदस), कार्तिक अमावस्या (दीपावली- महालक्ष्मी, कुबेर पूजन), अन्नकूट (गो-पूजन), भाईदूज (यम द्वितीया) के रूप में पाँच दिन तक मनाया जाता है। धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, नया साल और भैयादूज या भाईदूज ये पाँच उत्सव पाँच विभिन्न सांस्कृतिक विचारधाराओं प्रतिनिधित्व करते हैं।

लक्ष्मी जी का स्थायी निवास अपने यहाँ� बनाये रखने के लिये दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा के लिये दिन के सबसे शुभ मुहूर्त समय को लिया जाता है।

इस वर्ष 3 नवम्बर, 2013 को� रविवार के दिन दिवाली मनाई जाएगी।� स्वाती नक्षत्र का काल रहेगा, इस दिन प्रीति योग तथा चन्दमा तुला राशि में संचार करेगा। दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ लग्न व चौघाडिया मुहूर्त विशेष महत्व रखते है।

3 नवम्बर 2013, रविवार के दिन 17:33 से लेकर 02 घण्टे 24 मिनट तक प्रदोष काल रहेगा। इसे दिपावली पूजन के लिये शुभ मुहूर्त के रुप में उपयोग करते हैं। इस दिन पूजा स्थिर लग्न में करनी चाहिए क्योंकि शास्त्रों के अनुसार स्थिर लग्न दिवाली पूजा में उतम माना जाता है। इस दिन प्रदोष काल व स्थिर लग्न का समय सांय 18:15 से 20:09 तक रहेगा।� इसके पश्चात 18:00 से 21:00 तक शुभ चौघडिया भी रहने से मुहुर्त की शुभता बनी रहेगी।

इस बार दीपावली पर 149 वर्ष पुराना संयोग

दीपावली पर इस बार १४९ साल बाद धन लक्ष्मी योग बन रहा है। इस योग में धन की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी के पूजन का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस संयोग में लक्ष्मी को प्रसन्न करने से निरंतर धन-धान्य की प्राप्ति होती है। पंचग्रही योग सिद्घांत के अनुसार ऐसा योग ५०० साल में केवल तीन बार ही बनता है। इससे पहले २९ अक्टूबर १८६४ में ऐसा संयोग बना था। अगला योग १६ नवंबर २१६१ में बनेगा।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला का कहना है कि� स्थिर लग्न में की गई महालक्ष्मी की पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस लग्न में पूजन से माता की कृपा हमेशा बनी रहती है। अर्थात निरंतर धन आगमन का योग बना रहता है। नक्षत्र मेखला की गणना के अनुसार इस बार प्रदोष काल में वृषभ लग्न आ रहा है। लग्न के द्वितीय स्थान में बृहस्पति एकादश अधिपति होकर अपने कारक स्थान यानी धन स्थान पर बैठे हैं। मिथुन राशि में पदस्थ बृहस्पति व्यावसायिक लाभ की दृष्टि से श्रेष्ठ माने जाते हैं। यह योग धन लक्ष्मी योग कहलाता है।

वृषभ लग्न में करें पूजन

ज्योतिष के अनुसार दीपावली पर प्रदोषकाल के दौरान वृषभ लग्न में शाम ६.२३ बजे से ७.५८ बजे तक महालक्ष्मी का पूजन करना अतिशुभ होगा। हालांकि प्रदोष काल के बाद भी अर्धरात्रि तक माता लक्ष्मी का पूजन किया जा सकता है।

शाम तक अमावस्या

इस बार अमावस्या शनिवार रात ८.१२ बजे से शुरू होकर रविवार को दीपावली की शाम ६.२३ बजे तक रहेगी। शास्त्रों में कहा गया है कि किसी भी पर्व पर अमावस्या का स्पर्श काल मुहूर्त के अंदर ३५ मिनट भी रहता है तो उसे अर्धरात्रि तक मान्य किया जा सकता है।


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मध्य युग से लेकर आज तक कई मुस्लिम कवियों ने भी दिवाली के इस रंगारंग त्यौहार परअपनी कलम चलाई है और अपनी बेहतरीन शायरी से इस त्यौहार की महिमा का बखान किया है। हिन्दुओं के त्यौहारों पर नजीर अकबराबादी ने जिस मस्ती से कलम चलाई है उसका कोई सानी नहीं है। प्रस्तुत है कुछ शायरों द्वारा दीपावली को लेकर लिखी गई कुछ यादगार शायरी।

नजीर अकबराबादी

हर एक मकां में जला फिर दीया दिवाली का
हर इक तरफ़ को उजाला हुआ दिवाली का
सभी के दिल में समां भा गया दिवाली का
किसी के दिल को मज़ा खुश लगा दिवाली का
अजब बहार का दिन है बना दिवाली का
मिठाइयों की दुकानें लगा के हलवाई
पुकारते हैं कि लाला दिवाली है आई
बताशे ले कोई, बर्फी किसी ने तुलवाई
खिलौनेवालों की उनसे ज़्यादा बन आई
गोया उन्हीं के वां राज आ गया दिवाली का।

हर एक मौकों में जला फिर दिया दीवाली का।
हर एक तरफ को उजाला हुआ दीवाली का ।
सभी के दिल में समां भा गया दीवाली का ।
किसी के दिल में मजा खुश लगा दीवाली का।
अजब बहार का है दिन बना दीवाली का ।

दिवाली के मौके पर खील बताशे और खिलौनों के महत्व को नजीर ने कुछ इस तरह बयाँ किया है।

जहाँ� में यारों अजब तरह का है यह त्योहार ।
किसी ने नकद लिया और कोई करे है उधार ।
खिलौने खीलों बताशों का गर्म है बाजार ।
हर एक दुकां में चिरागों की होरही है बहार ।
सभी को फिक्र अब जा बजा दीवाली का ।

कोई कहे है इस हाथी का बोलो क्या लोगे ।
ये दो जो घोड़े हैं इनका भी क्या भला लोगे ।
यह कहता है कि मियाँ जाओ बैठो क्या लोगे ।
टके को ले लो कोई चौधड़ा दीवाली का ।

दिवाली के मौके पर जुआ खेलने की आदत पर अफ़सोस जताते हुए नज़ीर लिखते हैं

मकान लीप के ठिलिया जो कोरी रखवाई।
जला चिराग को कोड़ी यह जल्द झंकाई।
असल जुंआरी थे उनमें तो जान सी आई।
खुशी से कूद उछलकर पुकारे और भाई
शगुन पहले करो तुम जरा दीवाली का।

किसी ने घर की हवेली गिरो रखा हारी ।
जो कुछ था जिन्स मयस्सर बना बना हारी
किसी ने चीज किसी की चुरा छुपा हारी
किसी ने गठरी पड़ोसिन की अपनी ला हारी
यह हार जीत का चर्चा पड़ा दीवाली�

सियाह रात में शम्मे जला तो सकते हैं
अल अहमद सुरूर

यह बामोदर', यह चिरागां
यह कुमकुमों की कतार
सिपाहे-नूर सियाही से बरसरे पैकार।'
यह जर्द चेहरों पर सुर्खी फसुदा नज़रों में रंग
बुझे-बुझे-से दिलों को उजालती-सी उमंग।
यह इंबिसात का गाजा परी जमालों पर
सुनहरे ख्वाबों का साया हँसी ख़यालों पर।
यह लहर-लहर, यह रौनक,
यह हमहमा यह हयात
जगाए जैसे चमन को नसीमे-सुबह की बात।
गजब है लैलीए-शब का सिंगार आज की रात
निखर रही है उरुसे-बहार आज की रात।
हज़ारों साल के दुख-दर्द में नहाए हुए
हज़ारों आर्जुओं की चिता जलाए हुए।
खिज़ाँ नसीब बहारों के नाज उठाए हुए
शिकस्तों फतह के कितने फरेब खाए हुए।
इन आँधियों में बशर मुस्करा तो सकते हैं
सियाह रात में शम्मे जला तो सकते हैं।

रात आई है यों दिवाली की
उमर अंसारी

रात आई है यों दिवाली की
जाग उट्ठी हो ज़िंदगी जैसे।
जगमगाता हुआ हर एक आँगन
मुस्कराती हुई कली जैसे।
यह दुकानें यह कूच-ओ-बाज़ार
दुलहनों-सी बनी-सजीं जैसे।
मन-ही-मन में यह मन की हर आशा
अपने मंदिर में मूर्ति जैसे।

बरस-बरस पे जो दीपावली मनाते हैं
नाजिश प्रतापगढ़ी

बरस-बरस पे जो दीपावली मनाते हैं
कदम-कदम पर हज़ारों दीये जलाते हैं।
हमारे उजड़े दरोबाम जगमगाते हैं
हमारे देश के इंसान जाग जाते हैं।
बरस-बरस पे सफीराने नूर आते हैं
बरस-बरस पे हम अपना सुराग पाते हैं।
बरस-बरस पे दुआ माँगते हैं तमसो मा
बरस-बरस पे उभरती है साजे-जीस्त की लय।
बस एक रोज़ ही कहते हैं ज्योतिर्गमय
बस एक रात हर एक सिम्त नूर रहता है।
सहर हुई तो हर इक बात भूल जाते हैं
फिर इसके बाद अँधेरों में झूल जाते हैं।

दिवाली लिए आई उजालों की बहारें
महबूब राही

दिवाली लिए आई उजालों की बहारें
हर सिम्त है पुरनूर चिरागों की कतारें।
सच्चाई हुई झूठ से जब बरसरे पैकार
अब जुल्म की गर्दन पे पड़ी अदल की तलवार।
नेकी की हुई जीत बुराई की हुई हार
उस जीत का यह जश्न है उस फतह का त्योहार।
हर कूचा व बाज़ार चिराग़ों से निखारे
दिवाली लिए आई उजालों की बहारें।

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