<p><span style="line-height:1.6em">यह शर्मिला शर्मा के बच्चों का दुर्भाग्य था या पंचकुला पुलिस की घोर लापरवाही कि अक्टूबर 2012 में एक सडक दुर्घटना में शर्मिला के पति की मृत्यु हो गयी थी| हरियाणा सरकार ने कहने को तो ऐसे मामलों में मुआवजा देने की घोषणा कर रखी है किन्तु पीड़ितों को अभी तक कोई मुआवजा नहीं दिया गया| शर्मिला अपने बच्चों का येन केन प्रकारेण पालन पोषण कर रही थी और अपने पति की मृत्यु के लिए मुआवजे हेतु संघर्ष कर रही थी कि 6 माह बाद दिनांक 07.05.13 को उसके परिवार पर दुखों का एक और पहाड़ टूट पडा| चंडीगढ़ के सेक्टर 10 में चंडीगढ़ परिवहन उपक्रम की एक बस उसे कुचलते हुए निकल गयी| शर्मिला के सिर में गहरी चोट आयी थी| जिस स्थान पर यह दुर्घटना हुई वहां से मल्टी स्पेसीलिटी अस्पताल मात्र 100 मीटर की दूरी पर ही है| किन्तु लापरवाह और अमानवीय पुलिस अधिकारी वहां 2 घंटे बाद पहुंचे जिससे शर्मिला को बचाया नहीं जा सका| सेक्टर 3 पुलिस थाने के प्रभारी श्री प्रकाश जब 2 घंटे बाद घटना स्थल पर पहुंचे तो शर्मिला सडक पर खून के तालाब के बीच पड़ी थी यद्यपि अधीनस्थ पुलिस उस स्थान पर पहले से ही उसकी प्रतीक्षा करते रहे| इस घटना से शर्मिला के दो किशोर वय बच्चे पूरी तरह से अनाथ हो गये| यह भी ध्यान देने योग्य है कि शहरी क्षेत्र में परिवहन के लिए अधिकतम 10 मीटर तक लम्बाई की बसें ही उपयुक्त हैं जबकि 13.5 मीटर तक लम्बी असुरक्षित बसों को प्रयोग किया जा रहा है| </span></p>
<p><span style="line-height:1.6em">उक्त तथ्य पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय के ध्यान में आने पर दिनांक 10.05.13 को स्व-प्रेरणा से संज्ञान लिया गया और अग्रिम कार्यवाही की गयी| उच्च न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 25.09.13 में कहा और आदेश दिया है कि पुलिस के संवेदनहीन आचरण से दो बच्चे अनाथ हो गये| किसी सामाजिक सुरक्षा की योजना के अभाव में इन दुखान्तिकाओं से नाबालिग बच्चे और अधिक पीड़ित हैं| न्यायालय ने मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए आदेश दिया कि हरियाणा सरकार की योजनानुसार 15 दिन के भीतर एक लाख रुपये की राशि भुगतान की जाए| न्यायालय की टिप्पणी थी कि संघ राज्य क्षेत्र चंडीगढ़ की संवेदनहीन पुलिस पीड़ित को मदद करने की बजाय क्षेत्राधिकार के मुद्दे को उलझाने में अधिक रुचिबद्ध रही है| न्यायालय के हस्तक्षेप से पहले दोषी अधिकारियों का अनुचित बचाव किया जाता रहा| सुनवाई के दौरान यह बताया गया है कि अब कई अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही प्रारंभ की गयी है जिसका अभी तक निष्कर्ष नहीं निकला है किन्तु इससे अवयस्क अनाथ बच्चों को कोई सांत्वना प्राप्त नहीं होती है| कम से कम, बच्चों को आर्थिक मदद तो दी ही जा सकती है| अत: चंडीगढ़ प्रशासन को आदिष्ट किया जाता है कि दोनों बच्चों के नाम से 1- 1 लाख रूपये की राशि अंतरिम राहत के तौर पर 15 दिन के भीतर जमा करवाए| सत्यापन के बाद बच्चों को प्रतिमाह शिक्षा व पालन पोषण खर्चे के लिए 14200 रूपये भुगतान किये जाएँ| यह राशि सितम्बर माह से प्रारंभ होगी जोकि 7 अक्तूबर या इससे पूर्व देय होगी| न्यायमित्र की सहायता से तदनुसार आवेदन का निपटान किया गया|</span></p>
<p>फिर भी चंडीगढ़ प्रशासन और पंजाब सरकार से हरियाणा की तर्ज पर ऐसे मामलों में एक सम्यक नीति बनाने की अपेक्षा की गयी| इस प्रकार की घटनाओं को टालने के उपाय करने और दोषी पुलिस अधिकारियों पर अधिकतम एक माह की अवधि में कार्यवाही करने की रिपोर्ट के लिए मामले को पुन: दिनांक 19.11.13 को सूचीबद्ध करने के आदेश दिए गए और आदेश की दस्ती प्रति पक्षकारों को दी गयी| </p>
<p>( लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और जन समान्य से जुड़े न्यायालयीन विषयों पर प्रमुखता से लिखते हैं) </p>
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