Friday, November 29, 2024
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मुंबई के पादरी का व्यभिचारी चेहरा सामने आया

मुंबई में एक पादरी के हाथों यौन शोषण की शिकार हुई चौदह वर्ष की लड़की की दास्तान सुनकर हर कोई हैरान रह जाएगा। बेसहारा लड़कियों को सहारा देने के नाम पर इस लड़की का शोषण महज चार वर्ष की उम्र से ही शुरू हो गया था। यह सब करने वाला और कोई नहीं बल्कि वह शख्स था जिसपर उसके लालन पालन की जिम्मेदारी थी।

शराबी पिता ने उसको चार वर्ष की उम्र में ही एक पादरी को बेच दिया था। इसके बाद उसकी जिंदगी में जो कुछ घटित हुआ उसकी कल्पना करने से भी शरीर में सिहरन पैदा कर देता है। पादरी ने लगातार कई वर्षो तक उसका यौन शोषण किया। जब वह शारीरिक तौर पर भी बड़ी हुई तो पादरी ने उसपर शादी का दवाब तक बनाया। वह इतने पर ही नहीं रुका। शारीरिक संबंध न बनाने पर उसको यातनाएं तक दी जाने लगी। यहां तक की उसको रोज गर्भनिरोधक गोलियां खाने के लिए बाध्य किया गया।

विरोध करने के बाद पादरी ने उसको एक दूसरे शेल्टर होम के मालिक को बेच दिया। लेकिन उसकी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं हुआ। वहां पर भी उसके साथ वही सब करने के लिए दवाब बनाया गया। लेकिन वह अड़ गई। नतीजतन उसको वापस नैरोल में ही पुरानी जगह पर भेज दिया गया। तंग आकर एक बार वह अपनी मां के पास जाने के लिए पादरी के पास से भाग खड़ी हुई। लेकिन उसकी मां ने अपने पति की मौत के बाद दोबारा शादी कर ली थी। इसके बाद उसने अपनी बेटी को साथ रखने से साफ मना कर दिया।

कम उम्र में जिंदगी का सबसे बदनुमा चेहरा देखने वाली इस लड़की पर एक मानसिक रोगी से शादी करने तक का दवाब बनाया गया। अंत में इस लड़की ने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी का दरवाजा खटखटाया। इसमें पादरी पीटी बाबू पर उसका यौन शोषण करने का आरोप लगाया गया है। शिकायत के साथ उसने एक सीडी भी पेश की है जिसमें उसके दर्द की दास्तां को खुद उसने बयां किया है।

यह लड़की फिलहाल सायन के बाइबल कॉलेज में है। लेकिन शिकायत करने के बाद से ही उसकी मुश्किलें और बढ़ गई हैं। एक ओर जहां पादरी उसपर शिकायत वापस लेने का दवाब बनाए हुए है, वहीं दूसरी और उसकी मां ने भी शिकायत वापस लेने को दवाब बना रखा है। लड़की को शक है कि बाबू पादरी ने उसकी मां को यह मामला रफा-दफा करने के लिए पैसे दिए हैं। हालांकि इस शिकायत के बाद सीडब्ल्यूसी ने आगे आकर उसकी मदद की और एक नर्सिग स्कूल में उसका दाखिला भी करवा दिया है, जिससे वह अपना अतीत भूला सके।

 

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केजरीवाल की शीला दीक्षित को खुली चुनौती

आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को औपचारिक� रूप से सार्वजनिक बहस के लिए आमंत्रित किया है। केजरीवाल ने इस बहस में लोगों को भी हिस्सा लेने को कहा है और सीएम एवं उनसे सीधे प्रश्न पूछने को कहा है। �

केजरीवाल ने कहा, मुख्यमंत्री ने हालांकि पूर्व में सार्वजनिक� बहस की उनकी पेशकश को ठुकरा दिया था, इसलिए कुछ संपादकों की सलाह पर उन्होंने शीला दीक्षित को औपचारिक� रूप से आमंत्रित करने का निर्णय लिया। शीला दीक्षित को लिखे पत्र में केजरीवाल ने कहा, मैं आपको यह पत्र लिख रहा हूं क्‍योंकि कुछ संपादकों ने मुझे सुझाव दिया है कि मैं आपको औपचारिक� रूप से आमंत्रित कर सकूं। मैं आपको औपचारिक� रूप से आमंत्रित कर रहा हूं और अगर आपको सही लगता है कि तब हम भाजपा की ओर से डा. हर्षवर्धन को भी हिस्सा लेने के लिए बुला सकते हैं।

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दो मुख्य मंत्री और एक केंद्रीय मंत्री आएंगे नय पद्मसागरजी के ‘जीओ’ कार्यक्रम में

मुंबई। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण, गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर, केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन एवं फिल्म अभिनेता विवेक ओबरॉय 27 अक्टूबर (रविवार) को मुंबई में जैन इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन (जीओ) द्वारा आयोजित ग्लोबल कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेंगे। इस कॉन्फ्रेंस में विख्यात जैन संत परम पूज्य नयपद्म सागर महाराज के सामाजिक एकता और विकास के सपने को साकार करने के लिए चार विशेष कार्यक्रमों की शुरूआत होगी। इस आयोजन में इंटरनेशनल सेटलमेंट फोरम, पॉलिटिकल फोरम फॉर गुड गवर्नेस सहित मुंबई में एक इंटरनेशनल स्कूल की स्थापना की शुरूआत की जाएगी। ‘जीओ’ की ग्लोबल लॉचिंग इस आयोजन का सबसे प्रमुख कार्यक्रम होगा।

‘जीओ’ का यह मेगा आयोजन वरली स्थित एनएससीआई के सरदार वल्लभभाई पटेल स्टेड़ियम में 27 अक्टूबर (रविवार) को सुबह 9 बजे से शुरू होगा। इस अतर्राष्ट्रीय आयोजन में देश विदेश के विभिन्न स्थानों से विशेष रूप से मुंबई आ रहे हैं। राजनेता, न्यायविद. उद्योगपति, डॉक्टर, सीए, एडवोकेट, इंजीनियर, वैज्ञानिक, पत्रकार, लेखक, साहित्यकार, प्रसासनिक अधिकारी, बैंकर्स, सामाजिक कार्यकर्ता एवं कॉर्पोरेट जगत आदि विभिन्न क्षेत्रों के करीब 6 हजार से भी ज्यादा निष्णात लोग इस ग्लोबल कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेंगे। नयपद्म सागर महाराज के अनुसार परोपकार, विश्वमैत्री एवं प्राणी कल्याण को समर्पित जैन समाज के लिए एक संगठित प्लेटफॉर्म के रूप में आयोजित यह ग्लोबल कॉन्फ्रेंस सामाजिक रूप से एक पॉवर सेंटर साबित होगी। सामाजिक विकास एवं विश्व की बदली हुई परिस्थितियों में ‘जीओ’ के द्वारा एक कार्यक्षम संगठन के रूप में नए इतिहास के निर्माण होगा।

जैन इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन की इस ग्लोबल कॉन्फ्रेंस में शिक्षा, चिकित्सा, उद्योग, व्यवसाय, प्रशासन एवं राजनीतिक क्षेत्र में जैन समाज की सक्षम भूमिका के निर्माण की दिशा भी तय की जाएगी। नयपद्म सागर महाराज ने बताया कि इस ग्लोबल आयोजन की सारी महत्वपूर्ण तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।

संपर्कः 9967060060

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अपने भक्तों ही के साथ इतना बड़ा विश्वासघात?

पाखंडी संत आसाराम व उनके परिवार पर नित्य नए आरोप लगते जा रहे हैं। कानून का शिकंजा भी इस परिवार के सदस्यों विशेषकर आसाराम व उसके पुत्र नारायण साईं पर और अधिक कसता जा रहा है। आसाराम जेल की रोटी खा रहा है तो पुत्र नारायण साईं को अपना काला मुंह छुपाकर इधर-उधर पनाह लेनी पड़ रही है। जिस प्रकार आसाराम व उसके पुत्र पर अपने ही भक्तों की बहन-बेटियों के साथ यौन दुराचार करने के मामले दिन-प्रतिदिन खुलते जा रहे हैं उसे देखकर निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि इस परिवार के पाप का घड़ा लबरेज़ हो चुका था। हालांकि हमारे देश में विभिन्न धर्मों के कई धर्मगुरुओं पर इस प्रकार के आरोप पहले भी लग चुके हैं तथा इनमें कई कानून के हत्थे ाी चढ़ चुके हैं। परंतु आसाराम व उनके पूरे परिवार की मिलीभगत से जिस प्रकार दशकों से अध्यात्म के नाम पर अपने ही भक्तजनों के परिवार की कन्याओं का यौन शोषण किया जा रहा था वह अपने-आप में देश का एक पहला उदाहरण है।

                

जिस समय जोधपुर यौन शोषण प्रकरण में आसाराम के विरुद्ध सबसे पहले मामला दर्ज हुआ था उस समय आसाराम, उनके समर्थक व कुछ राजनैतिक दलों ने इस पूरे घटनाक्रम को एक साजि़श यहां तक कि कांग्रेस,सोनिया गांधी व राहुल गांधी के इशारे पर की जाने वाली कार्रवाई बताया था। कुछ हिंदुत्ववादियों ने भी इस मुद्दे पर राजनीति करनी चाही थी। वे यह कहते सुनाई देने लगे थे कि हिंदू धर्म व संत समाज को बदनाम करने की एक सोची-समझी साजि़श के तहत आसाराम को बदनाम किया जा रहा है। परंतु जोधपुर यौन शोषण प्रकरण के बाद अब तो और भी कई मामले सामने आ चुके हैं।

 

इन्हीं में एक मामला गुजरात के सूरत की पुलिस ने दो सगी बहनों की शिकायत के आधार पर दर्ज किया है। इसमें एक बहन ने आसाराम पर 1997 से लेकर 2006 तक उसका शारीरिक शोषण किए जाने का आरोप लगाया है तो दूसरी बहन ने आसाराम के पुत्र नारायण साईं पर यही इल्ज़ाम लगाया है। इन बहनों के अनुसार आसाराम व उनके पुत्र ने उस दौरान उन बहनों के साथ शारीरिक शोषण किया जबकि वे अहमदाबाद के बाहरी क्षेत्र के आश्रम में उनकी शिष्या के रूप में रहा करती थीं। इस मामले की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज होने के बाद ही नारायण साईं को गिर तारी से बचने के लिए भूमिगत होना पड़ा। इन दोनों पिता-पुत्र के दशकों से चले आ रहे इन पापपूर्ण कारनामों से इनका परिवार भी अलग नहीं कहा जा सकता। स्वयं आसाराम की पुत्री ने यह बयान दिया है कि वह दीक्षा के नाम पर कन्याओं को अपने पिता के पास भेजा करती थी।      

आसाराम की व्याभिचार के प्रति दीवानगी का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 80 की उम्र पार करने के बावजूद यह श स शक्तिवर्धक दवाईयां तथा अफीम जैसे नशीले पदार्थों का सेवन करता था। तो दूसरी ओर अपने पुरुष चेलों को जोकि उसके आसपास रहा करते थे उन्हें नपुंसक बनाने जैसी दवाईयां देता था। और तो और इसके आश्रम में कन्याओं का अवैध रूप से गर्भपात कराए जाने का भी पु ता प्रबंध था। अब आसाराम की काली करतूतों के उजागर होने के बाद उससे अपना मोह भंग कर चुके पूर्व भक्तों की ज़ुबानी सुनें तो ऐसा लगता है कि उसका धर्म व अध्यात्म के नाम पर चलने वाला पूरा का पूरा प्रपंच इन दोनों पिता-पुत्र की वासना की हवस पूरी करने का एक माध्यम मात्र था। और यह पाखंडी परिवार अपने उन भक्तों की बहन-बेटियों पर बुरी नज़र डालकर उन्हें अपनी हवस का शिकार बनाता था जोकि इन पाखंडियों को केवल गुरु ही नहीं बल्कि देवता व भगवान तुल्य समझा करते थे और जो भक्त अपने मंदिरों में,अपने घरों में, अपने आिफस व ड्राईंग रूम की दीवारों पर यहां तक कि अपने गले के लॉकेट व अपनी अंगूठियों तक में इस महापापी के चित्र लगाए रखते थे।

इसके किसी भक्त ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि रंगीला,रसीला,छबीला व सफेदपोश दिखाई देने वाला उनका यह गुरु, गुरु नहीं बल्कि उनके परिवार की इज़्ज़त पर हमला बोलने वाला एक राक्षसरूपी मानव है। आसाराम पर अपनी गहन व अंधश्रद्धा रखने वाले हज़ारों भक्तों ने उसे धन-दौलत के अलावा तमाम जगहों पर ज़मीन-जायदादें भी दान की है। देश में ज़्यादातर स्थानों पर बने उसके आश्रम या तो दान में मिली हुई ज़मीन पर बने हैं या फिर उसके स्थानीय भक्तों द्वारा स्वयं पैसे जुटाकर ज़मीन खरीदकर बनाए गए हैं।

इन भक्तों की श्रद्धा का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज के दौर में जबकि ज़मीनों की कीमतें आसमान छू रही हैं ऐसे में अधिकांशत: मु य मार्गों के किनारे स्थित अपनी मंहगी ज़मीनें इस पाखंडी को दान करने वालों की इसके प्रति कितनी गहन आस्था रही होगी। इन भक्तों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि जिस सफेदपोश ढोंगी व बनावटी लहजे में बोलने वाले आसाराम को यह भक्तजन परमेश्वर तुल्य समझ रहे हैं वह व्यक्ति गुरु के नाम पर इनकी बहन-बेटियों की इज़्ज़त के साथ खिलवाड़ करेगा तथा गुरु दक्षिणा के नाम पर इनकी ज़मीन-जायदाद हड़पकर उन्हीें दान में प्राप्त की गई ज़मीनों पर अपने ऐशगाह नुमा कमरे व गुफा आदि बनवाकर उनमें इन्हीं भक्तों की ही बेटियों का शारीरिक शोषण करेगा।           

परंतु आसाराम व उसके पुत्र ने अपने भक्तों के साथ इतना बड़ा विश्वासघात व अपराध किया जिसकी पूरे देश में अब तक कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। ज़ाहिर है इन पिता-पुत्र के पाप का घड़ा फूटने के बाद अब स्वाभाविक रूप से इनके भक्तों में गुस्सा फूटना शुरु हो चुका है। पिछले दिनों इसकी शुरुआत आसाराम के गृहराज्य गुजरात के बलसाड़ में पर्दी तालुका के पारिया गांव में स्थित इसके आश्रम से हुई। इस पर लगातार लग रहे यौन उत्पीडऩ के आरोपों से क्षुब्ध व अपमानित महसूस करने वाले इसके सैकड़ों भक्तों ने उक्त आश्रम में आग लगा दी। इन भक्तों में वे लोग भी शामिल थे जिन्होंने आसाराम के इस आश्रम के लिए ज़मीन दान में दी थी। आसाराम के इन पूर्व भक्तों का साफतौर पर यह कहना था कि वे अब अपने किए पर पछता रहे हैं तथा आसाराम व उनके परिवार के प्रति उनकी आस्था उनके काले कारनामों को सुनने के बाद अब समाप्त हो चुकी है। यह लोग अब आश्रम को दान में दी गई अपनी ज़मीनें भी वापस लेना चाहते हैं।      

आसाराम के पूर्व भक्तों के दिलों में फूटने वाली इस प्रकार की ज्वाला को बेमानी नहीं कहा जा सकता। मनोवैज्ञानिक रूप से यदि सामाजिक स्तर पर इस बात का जायज़ा लिया जाए तो हम यह देखेंगे कि पिता-पुत्र, पति-पत्नी जैसे रिश्तों में कड़वाहट पैदा होने के बाद प्राय: इन रिश्तों के संबंध व इन रिश्तों के बीच के श्रद्धाभाव तो कभी समाप्त भी हो जाते हैं। परंतु गुरु-शिष्य के रिश्तों में कड़वाहट आती बहुत कम सुनाई देती है। बजाए इसके गुरु-शिष्य संबंध नस्ल दर नस्ल चले आ रहे हों, ऐसा ज़रूर देखा जा सकता है। परंतु किसी कथित गुरु के अपराध का यह चरमोत्कर्ष ही है कि आज उसके वही भक्त उस पाखंडी से अपनी ज़मीनें वापस मांग रहे हैं जिन्होंने उसे अपनी ज़मीन दान दी थी। जो भक्त कल तक उसके जिस आश्रम में बैठकर उसकी डीगें सुना करते थे वही आज उसी आश्रम में तोड़-फोड़ करने व उसमें आग लगाने पर उतारू हो गए हैं। और अपनी इसी पोल पट्टी का ढिंढोरा और न पिटने की गरज़ से ही इस व्याभिचारी कथित संत ने अदालत से मीडिया ट्रायल बंद कराए जाने की गुहार लगाई थी जिसे संभवत: अदालत ने भी इसी कारण खारिज कर दिया ताकि इसकी करतूतों का पूरी तरह कदम ब कदम खुलासा होता रहे और अंध आस्था व अंधविश्वास के मारे इसके भोले-भाले भक्तजनों का इससे पूरी तरह से मोह भंग हो सके।             

नि:संदेह आसाराम के भक्तों के साथ बहुत बड़ा छल,धोखा व विश्वासघात इन पिता-पुत्र द्वारा किया गया है। अब भी इसके जो भी अंधभक्त इसके प्रति आस्था रख रहे हों उन्हें भी अपनी आंखें खोल लेनी चाहिए और जिन भक्तों ने इसे अपनी भू संपत्ति दान में दी है उन्हें अपनी संपत्ति वापस ले लेना चाहिए। भविष्य में भी भक्तजनों को अपना कोई गुरु बहुत ही सोच-समझ कर व पूरी सूझ-बूझ के साथ धारण करना चाहिए। अन्यथा सभी धर्मों के धर्मग्रंथ ही अपने अनुयाईयों का मार्गदर्शन करने के लिए पर्याप्त हैं। यदि आसाराम व उसके पुत्र की काली करतूतों से पर्दे हटने के बाद भी सीधे-सादे भक्तों ने अपनी आंखें नहीं खोलीं तो भविष्य में भी ऐसे पापी व पाखंडी कथित संतों को समाज में अपने पैर पसारने के मौके मिलते रहेंगे।

 

 निर्मल रानी

1618, महावीर नगर

अंबाला शहर,हरियाणा।

फोन-0171-2535628

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शाहिद [ हिंदी ड्रामा ]

दो टूक : कहते हैं जरुरी नहीं कि हमारे साथ ना इंसाफी हो तो हम भी दूसरों के साथ वही करें . लेकिन इस बात के लिए भी तैयार रहे कि इसका करना और इसका परिणाम सबको रास नहीं आता. हंसला मेहता के निर्देशंन में बनी राजकुमार यादव  ,प्रब्लीन संधू, मोहम्मद जीशान अयूब, बलजिंदर कौर ,  विनोद रावत , विपिन शर्मा , शालनी वत्स , पारितोष सैंड , मुकेश छाबरा , पवन कुमार और विवेक घामंडे के अभिनय वाली फिल्म शाहिद.

कहानी : फिल्म की कहानी वकालत पढने पड़ने वाले शाहिद [ राजकुमार यादव ] की है . साम्प्रदायिक दंगो से टूटा शाहिद शक के बाद जेल में डाल दिया जाता है . पुलिस को लगता है वो आंतकवादियों से मिला हुआ था . जेल से छूटकर वो ऐसे लोगों के केस लड़ने लगता है जिन्हें संदेह के कारण बिना वजह बरसों जेल में रहना पड़ा है . पर उसका यही कदम उसे कुछ लोगों का दुश्मन बना देता है . फिल्म में प्रब्लीन संधू, मोहम्मद जीशान अयूब , बल्जिन्दर्कौर , विनोद रावत . विपिन शर्मा , शालनी वत्स, पारितोष सैंड , मुकेश छाबरा , पवन कुमार और विवेक घामंडे के पात्र और चरित्र भी आते जाते रहते हैं. 

गीत संगीत : फिल्म में करन कुलकर्णी के गीत और संगीत है लेकिन ऐसी फिल्म में गीतों की गुंजायश नहीं होती फिर भी कुछ गीत हैं जो फिल्म के पाश्र्व में चलते रहते हैं जिनमे मेरी पसंद का गीत है बेपरवा हवा जैसे बोलों वाला गीत . 

अभिनय : फिल्म की मुख्य पात्र शाहिद बने राजकुमार यादव  है और उन्होंने शाहिद की भूमिका को संवेदनशीलता से अभिनीत किया है . उनका पात्र कुछ कुछ आत्मकेंद्रित किस्म का है लेकिन मध्यांतर  के बाद वो उभरकर अपना अर्थ बुन देता है .बधाई उन्हें . प्रभ लीन ठीक है लेकिन उन्हें ज्यादा समय नहीं मिला. जीशान निराश नहीं करते और विपिन शर्मा के साथ शालनी वत्स, बलजिंदर कौर , विनीत रावत ठीक हैंलेकिन कुछ और पात्रों को उन्हें विस्तार देना चाहिए था . 

निर्देशन : हंसल मेहता ने इस बार एक ज्वलंत विषय को छुआ है और उसे संवेदनशीलता से संप्रेषित भी किया है . ये पहली फिल्म है जो इस्लाम से अलग हटकर सिर्फ इंसानियत की बात करती है . फिल्म मुस्लिम सम्प्रदाय के बारे में बात करती है लेकिन उसे हिन्दू वर्ग के नहीं बल्कि सिस्टम के खिलाफ खड़ा करती है . फिल्म के कुछ संवाद मार्मिकता भरे हैं और फिल्म का अंत भी लेकिन वो अपने विषय और उसके विस्तार के साथ हमें उद्वेलित भी करती है और सोचने को मजबूर भी ..फिल्म एक बार जरुर देखिएगा. 

फिल्म क्यों देखें : एक जरुरी फिल्म है.
फिल्म क्यों ना देखें : ऐसा मैं नहीं कहूँगा. 

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अब अश्लील गानों पर भी चलेगी सरकारी कैंची

हाल फ़िलहाल में आए कई गानों में इस्तेमाल हुए कथित आपत्तिजनक शब्दों के बाद मंत्रालय ने इस कमेटी का गठन करके सुझाव मांगे थे.  सूचना-प्रसारण मंत्रालय की बनाई कमेटी ने गानों के अलावा फ़िल्मों के पोस्टर और ट्रेलर पर भी नज़र रखने की सिफ़ारिश की. कमेटी ने अपने विश्लेषण में गानों पर निगरानी रखने की ज़रूरत पर ये कहते हुए बल दिया कि फ़िल्मों को तो सेंसर सर्टिफ़िकेट देकर एक ख़ास उम्र तक के लोगों को फ़िल्म देखने से रोका जा सकता है. लेकिन गाने यूट्यूब पर, टीवी पर और रेडियो में हर उम्र का दर्शक वर्ग और श्रोतावर्ग सुन और देख सकता है. इस वजह से गानों के सर्टिफ़िकेशन की भी ज़रूरत है.

 

इसके अलावा कमेटी ने ये सुझाव भी दिया कि गानों के अलावा फ़िल्म के पोस्टर, प्रोमो, ट्रेलर वगैरह पर भी सेंसर बोर्ड को पैनी नज़र रखनी चाहिए.  हाल ही में रिलीज़ हुई अक्षय कुमार की फ़िल्म 'बॉस' के एक गाने 'पार्टी ऑल नाइट' के कुछ शब्दों पर भी कोर्ट ने आपत्ति जताते हुए उन्हें हटाने के निर्देश दिए थे.  इसके अलावा भी कई फ़िल्मों के प्रोमो और ट्रेलर पर आपत्तियां जताई जा चुकी हैं.

 

इस बीच ख़बरें हैं कि रामगोपाल वर्मा की आगामी फ़िल्म 'सत्या-2' को कई गालियां और आपत्तिजनक शब्द होने के बावजूद सेंसर बोर्ड ने हरी झंडी दे दी. हालांकि फ़िल्म को 'ए' सर्टिफ़िकेट दिया गया है.  इससे पहले 'ग्रैंड मस्ती' और 'क्या सुपर कूल हैं' जैसी फ़िल्मों के निर्माताओं ने अपनी फ़िल्मों के लिए दो तरह के ट्रेलर लॉन्च किए थे.  यूट्यूब पर फ़िल्म के अनसेंसर्ड प्रोमो दिखाए गए थे जबकि टीवी पर सेंसरबोर्ड प्रमाणित ट्रेलर ही दिखाए गए. यूट्यूब पर फ़िल्मों के ट्रेलर या प्रोमो को कैसे नियंत्रित किया जाए इस पर अब भी सवाल बरक़रार है.

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ललित गर्ग को अणुव्रत लेखक पुरस्कार

अणुव्रत महासमिति द्वारा प्रतिवर्ष उत्कृष्ट नैतिक एवं आदर्श लेखन के लिए प्रदत्त किया जाने वाला ‘अणुव्रत लेखक पुरस्कार’ वर्ष-2012 के लिए सूर्यनगर एजूकेशनल सोसायटी द्वारा संचालित विद्या भारती स्कूल के स्कूल विकास एवं मैनेजमेंट कमिटी के चैयरमन श्री ललित गर्ग को देने की घोषणा की गयी है।  

लेखक, पत्राकार एवं समाजसेवी श्री गर्ग को अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में जैन विश्व भारती, लाडनूं (राजस्थान) में आयोजित भव्य समारोह में दिनांक 26 अक्टूबर 2013 को यह पुरस्कार प्रदत्त किया जायेगा। इस आशय की जानकारी अणुव्रत महासमिति के अध्यक्ष श्री बाबूलाल गोलछा ने दी। पुरस्कार का चयन तीन सदस्यीय चयन समिति द्वारा दिये गये सुझावों पर किया गया है। पुरस्कार के रूप में 51,000/- (इक्यावन हजार रुपए) की नकद राशि, प्रशस्ति पत्र एवं शॉल प्रदत्त की जाती है।

श्री गर्ग के चयन की जानकारी देते हुए श्री गोलछा ने बताया कि अणुव्रत पाक्षिक के लगभग डेढ़ दशक तक संपादक रह चुके श्री गर्ग अणुव्रत लेखक मंच की स्थापना के समय से सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं। अणुव्रत आंदोलन की गतिविधियों में उनका विगत तीन दशकों से निरन्तर सहयोग प्राप्त हो रहा है। नई सोच एवं नए चिंतन के साथ उन्होंने अणुव्रत के विचार-दर्शन को एक नया परिवेश दिया है। समस्याओं को देखने और उनके समाधान प्रस्तुत करने में उन्होंने अणुव्रत के दर्शन को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है। आचार्य श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञ एवं वर्तमान में आचार्य श्री महाश्रमण के कार्यक्रमों को जन-जन तक पहुंचाने में उनका विशिष्ट योगदान है।

विदित हो इससे पूर्व श्री गर्ग को पहला आचार्य श्री महाप्रज्ञ प्रतिभा पुरस्कार प्रदत्त किया गया जिसके अंतर्गत एक लाख रुपये की नगद राशि व प्रशस्ति पत्र दिया गया। इसके अलावा भी श्री गर्ग को अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हुए हैं। राजस्थान के प्रख्यात पत्रकार एवं स्वतंत्रता सेनानी स्व॰ श्री रामस्वरूप गर्ग के कनिष्ठ पुत्र श्री गर्ग वर्तमान में ‘समृद्ध सुखी परिवार’ मासिक पत्रिका के संपादक हैं एवं अनेक रचनात्मक एवं सृजनात्मक गतिविधियों के साथ जुड़कर समाजसेवा के क्षेत्रा में उल्लेखनीय योगदान प्रदत्त कर रहे हैं।

 स्वर्गीय ‘शासनभक्त’ हुकुमचंद सेठिया, जलगाँव (महाराष्ट्र) की पुण्य स्मृति में प्रतिवर्ष दिये जाने वाले अणुव्रत लेखक पुरस्कार से अब तक स्व॰ श्री धरमचंद चोपड़ा, डॉ. निजामुद्दीन, श्री राजेन्द्र अवस्थी, श्री राजेन्द्र शंकर भट्ट, डॉ. मूलचंद सेठिया, डॉ. के. के. रत्तू, डॉ. छगनलाल शास्त्री, श्री विश्वनाथ सचदेव, डॉ. नरेन्द्र शर्मा कुसुम, डॉ. आनंद प्रकाश त्रिपाठी, श्रीमती सुषमा जैन एवं प्रो. उदयभानू हंस सम्मानित हो चुके हैं।

प्रेषकः
(कुलदीप रावत)
विद्या भारती स्कूल,
सी- ब्लाक,सूर्यनगर, गाजियाबाद मो. 9968126797

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अमरीकी राष्ट्रपति को नहीं भाया भारत भक्त राजदूत

<p><span style="line-height:1.6em">1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल याह्या खान के खिलाफ कुछ न सुनने वाले तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने उस दौरान भारत में मौजूद अपने ही राजदूत को &#39;देशद्रोही&#39; और &#39;भारतीय भोंपू&#39; करार दिया था। &nbsp;यह बातें गोपनीय दस्तावेज पर आधारित नई किताब में कही गई हैं। &#39;द ब्लड टेलिग्राम: निक्सन, किसिंगर ऐंड अ फॉरन जेनोसाइड&#39; नामक इस किताब में कहा गया है कि निक्सन भारत में अमेरिकी राजदूत केनेथ बी. केटिंग को पद से हटा देना चाहते थे। वजह यह थी कि केटिंग ने न सिर्फ झुकने से इनकार कर दिया था, बल्कि उन्होंने राष्ट्रपति से यह सच कहने का साहस भी जुटाया था कि उनका करीबी सहयोगी पाकिस्तान नरसंहार में लिप्त है।&nbsp;</span><br />
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<p>प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में पॉलिटिक्स और इंटरनैशनल मामलों के प्रोफेसर ग्रेस बैस इस किताब के लेखक हैं। किताब के अनुसार, &#39;निक्सन ने कहा- केटिंग देशद्रोही हैं। तत्कालीन विदेश मंत्री हेनरी किसिंगर से कहा कि केटिंग को राजदूत के पद से हटा देना चाहिए। निक्सन ने कहा कि भारतीय बेरहम हैं और उन्हें केटिंग से कुछ सहायता मिल रही है।&#39;&nbsp;<br />
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किताब के मुताबिक, &#39;किसिंगर ने कहा- केटिंग वास्तव में भारत का भोंपू बन गए हैं। वहीं, निक्सन ने कहा- केटिंग भारत का निवासी बन गए हैं। जैसा कि मैंने आपको बताया, मैं भारतीयों से मिला और उनकी शिकायतें सुनीं। केटिंग लगातार बीच में बोलते रहे और याद दिलाता रहे कि आपने यह नहीं कहा। दिल्ली में हुई बैठक में केटिंग सिर्फ एक बार बोले थे और वह भी इंदिरा गांधी के साथ बातचीत के दौरान पैदा हुई असहज चुप्पी को तोड़ने के लिए।&#39; &nbsp; किताब में लिखा गया है, &#39;निक्सन ने कहा- मुझे लगता है कि हमें उन्हें हटा देना चाहिए। वह 71 साल के हो गए हैं। किसिंगर का जवाब था- हां, लेकिन वह अब हमें बहुत नुकसान पहुंचाएंगे। निक्सन ने कहा, &#39;हमें मामले के ठंडा पड़ने तक इंतजार करना चाहिए। दो-तीन महीने बाद हमें उन्हें हटाना चाहिए।&#39;<br />
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… और सीपी जोशी का समय शुरू होता है अब !

<p><span style="line-height:1.6em">सीपी जोशी को गुस्सा बहुत जल्दी आता है। छोटी सी बात पर भी भड़क जाते हैं और किसी को भी खूब सुना भी देते हैं। कार्यकर्ताओं को कभी कभी तो ऐसी झाड़ पिला देते हैं कि कच्चा &ndash; पोचा तो उनके सामने खड़ा भी नहीं रह सकता। फिर भले ही उसे पुचकार भी देते हैं। अपने मन में उनके लिए सम्मान हैं, फिर भी अपने जैसे आदमी को भी वे कभी कभार परशुराम के अवतार में नजर आते रहे हैं। इसके पीछे वजह सिर्फ एक ही है कि उनको किसी का डर नहीं है।&nbsp;</span></p>

<p>राजनीति में तो खैर, वैसे भी उनको एक निडर नेता के तौर पर देखा जाता है। सचमुच कोई डर नहीं। कोई उनका कुछ बिगाड़ लेगा, यह वे सोचते ही नहीं। और ऐसा इसलिए नहीं है कि वे कांग्रेस के बहुत बड़े आदमी राहुल गांधी के नजदीकी हैं, और सोनिया गांधी उनको जानती हैं। बल्कि इसलिए है क्योंकि राजनीति में चोर लोग डरते हैं। भ्रष्ट लोग किसी को भी कुछ कहने से बचते हैं। और, बेईमान लोग अपने कारनामों के खुल जाने की वजह से कहीं भी टांग अड़ाने से दूर रहते हैं।&nbsp;</p>

<p>लेकिन सीपी जोशी को किसका डर। दाग उन पर कोई है नहीं। नाम भी उनका चमकदार है और बदनाम उनको अब तक तो कोई कर नहीं सका। लेकिन फिर भी वे जल्दी चिढ़ते हैं और गुस्सा भी करने लग जाते हैं। पता नहीं क्यू। इसे उनकी व्यक्तिगत कमजोरी माना जा सकता है और यह वे समझदार हैं इसलिए खुद भी जानते ही हैं। पर, अब उनको थोड़ा संभलकर चलना होगा, क्योंकि उनकी असली अग्नि परीक्षा की शुरूआत होनेवाली है। कुछ ही दिनों में राजस्थान विधानसभा के चुनाव हैं और पीछे के पीछे फट से लोकसभा के चुनाव भी आनेवाले हैं। लोकसभा तो फिर भी दूर की बात है, पर विधानसभा के चुनाव उनके लिए एक बहुत बड़ा चैलेंज है। दिलीप कुमार की बहुत पुरानी फिल्म &lsquo;गोपी&rsquo; का एक गीत हैं – &lsquo;काजल की कोठरी में कैसो भी जतन करो, काजल का दाग भाई लागे ही लागे रे…. भाई काजल का दाग भाई लागे ही लागे&rsquo;… हमारे कांग्रेस महासचिव सीपी जोशी के लिए भी विधानसभा के चुनाव काजल की कोठरी साबित हो सकते हैं। जोशी के लिए यही सबसे बड़ा चैलेंज है।&nbsp;<br />
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वैसे, सीपी जोशी को अपन बीते 25 साल से जानते हैं। मगर, उनकी निजी जिंदगी के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते। कभी इसकी जरूरत भी नहीं पड़ी। सो, ज्यादा कुछ कह नहीं सकते। पर, लगता है कि वे अच्छे आदमी हैं और व्यवहार कुशल भी लगते रहते हैं। पढ़े लिखे तो हैं ही और बात भी तथ्यों के साथ करते हैं। लेकिन, जो लोग उनको भोला और भला आदमी मानते हैं, उनको अपनी सलाह है कि राजनीति में कोई भी भोला और भला नहीं होता। वहां तो सीधे सादे लोगों के लिए कोई जगह ही नहीं होती। सो, बात अगर राजनीति की करें, तो सीपी की राजनीतिक जिंदगी मैं चैलेंज शुरू से ही कभी कम नहीं रहे।&nbsp;</p>

<p>नाथद्वारा से लेकर उदयपुर और जयपुर से लेकर दिल्ली और अब बिहार तक हर जगह चैसेंज ही चैलेंज। और जो आदमी हर बार हर चैलेंज को फतह करके आगे बढ़ता रहा हो, वह कहां से भला और भोला आदमी हो सकता है। उस पर भी, जो आदमी हर पल अशोक गहलोत जैसे धुरंधर राजनेता की टंगड़ी में लंगड़ी लगाकर खुद के सीएम बनने के सपने देखता रहा हो, वह तो किसी भी नजरिये से भोला और भला नहीं हो सकता। लेकिन हां, अपन इतना जरूर जानते हैं कि जोशी बदमाश और बहुत तेजतर्रार किस्म के राजनेता नहीं हैं। अगर देश चलानेवाले हमारे बाकी बहुत सारे राजनेताओं की तरह जोशी भी चालाक और धूर्त होते, तो जो रेल मंत्रालय उनको मिला था, वह उनके राजनीतिक कद और छवि के हिसाब से भले ही बहुत बड़ा चैलेंज था, फिर भी वे सारी तिकड़म लगाकर उसी में जमे रहते। कोई कुछ भी कर लेता, जोशी वहां से हिलते नहीं। रेल मंत्रालय में मलाई और माल दोनों खूब थे। पर, जोशी ठहरे कांग्रेस के सिपाही। सो, जो पार्टी के महासचिव का काम मिला तो आदेश मानकर रेल मंत्रालय से सरक लिए।&nbsp;</p>

<p>अब वे कायदे से उस बिहार के प्रभारी हैं, जहां कांग्रेस पिछले कई चुनावों में धूल चाटती नजर आती रही है और आगे भी लगता है कई सालों तक ऐसा ही होता रहेगा। राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी भी इतने सालों से बिहार में जब कुछ भी नहीं कर पाए, तो सीपी जोशी के पास को कोई जादू की छड़ी तो नहीं है कि वे… जय काली कलकत्ते वाली, तेरा वचन न जाए खाली… कहते हुए उसे हिला देंगे और बिहार में कांग्रेस का कल्याण कर देंगे। &nbsp; &nbsp;&nbsp;</p>

<p>सीपी जोशी राजस्थान के ताकतवर नेता कहे जाते हैं। सो, बात कुछ महीनों पहले की भी कर ली जाए। जोशी अगर रेल मंत्री रहे होते, तो कम से कम मेवाड़ का तो कल्याण हो जाता और इस पहाड़ी इलाके के लोगों की रेल विकास की अपेक्षाओं पर रेल मंत्री के रूप में जोशी जरूर खरे उतरते, ऐसा लगभग सभी मानते हैं। पर शायद ठीक ही हुआ, कि अभी तो वे रेल मंत्रालय के सुर, ताल और लय को समझने की कोशिश कर ही रहे थे, कि पार्टी में महासचिव बना दिए गए। अपना मानना है यह बहुत अच्छा हुआ। खासकर, सीपी जोशी जैसे कड़क आदमी के लिए तो रेल मत्रालय और भी मुश्किल होता। क्योंकि खाऊ आदमी के लिए तो हर जगह, हर तरह के हजार रास्ते खुल जाते हैं, लेकिन बहुत सारे बेईमान लोगों के कुनबे के बीच किसी ठीकठाक आदमी के लिए अपना आशियाना बनाना कांटों भरे रास्ते से कम नहीं होता। रेल मंत्रालय हमारे देश में भ्रष्टाचार, बेईमानी और दलाली के सबसे बड़े गढ़ के रूप में कुख्यात रहा है।&nbsp;</p>

<p>विकास के नाम पर रोज अनेक ठेके निकलते हैं और सुबह से शाम तक कई करोड़ के वारे न्यारे भी होते रहते हैं। और ऐसी जगहों का रिवाज रहा है कि आप किसी का कोई काम नहीं भी करें, तो भी बहुत सारी मलाई खुद चलकर आपके होठों तक पहुंच ही जाती है। ऐसे में जोशी के लिए अपनी ईमानदार छवि को बनाए रहना बहुत मुश्किल होता। वैसे, सीपी जोशी किसी पर भी आसानी से मेहरबानियां न करने के लिए काफी कुख्यात रहे हैं। लेकिन रेल मंत्रालय का इतिहास है कि हर मंत्री की मातृभूमि अपने सपूत से विकास की गंगा को थोड़ा सा अपनी तरफ भी मोड़ने की आस करती रही है। सो, भले ही बहुत कम दिन के लिए रेल मंत्री रहे, पर भीलवाड़ा में रेल कारखाना तो खोल ही दिया। शायद इसलिए, क्योंकि सीपी जोशी भी आखिर मेवाड़ी इतिहास की उस परंपरा के प्राणी हैं, जिसमें, मायड़ थारो वो पूत कठै… के गीत गीए जाते हैं।</p>

<p>&nbsp;पर, अब राजस्थान में चुनाव हैं। पता नहीं नतीजा क्या होगा। पर, पिछली बार से लेकर इस बार तक पांच सालों से सीएम बनने का सपना सीपी की आंखों में टंगा हुआ है। अखिल भारतीय कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने भले ही अशोक गहलोत को पूरी छूट दे दी हो और पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी भले ही सभी को अनुशासन में रहने की हिदायत दी हो, पर, राजनीति की महत्वाकांक्षाओं में ऐसा होता कहां है हुजूर… कि लोग अपनी हदों में रहें।&nbsp;</p>

<p>राजनीति में अपनी ताकत का दूसरे के लिए इस्तेमाल होते देखने से बड़ा दुख और कोई नहीं होता। इसलिए पार्टी के आदेश मानकर एक अनुशासित सिपाही की तरह काम करके कांग्रेस को भारी बहुतमत से जिताकर अशोक गहलोत को फिर से राजस्थान का सीएम बनते चुपचाप देखना सीपी जोशी के लिए कोई कम तकलीफदेह नहीं है। पर, जो कुछ भी करना है, तत्काल ही करना होगा। क्योंकि चुनाव शुरू हो गया है। अगर यह मान भी लें कि सीपी जोशी वास्तव में बहुत भले और भोले आदमी हैं, फिर भी राजनीति की राह में रोड़े बहुत हैं और फिसलन भी कोई कम नहीं। इसलिए, अब तक सारी भवबाधाओं को सहज तरीके से पार कर लेनेवाले सीपी जोशी चुनाव के इस आखरी वक्त में क्या कर गुजरते हैं, यह आप और हम सब मिलकर देखेंगे। क्योंकि सीपी जोशी का असली समय शुरू होता है अब… सही है ना ?&nbsp;<br />
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं) &nbsp; &nbsp;<br />
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लापरवाह डॉक्टरों पर 6 करोड़ का जुर्माना

सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के एक अस्पताल और तीन डॉक्टरों को लापरवाही बरतने के आरोप में 6 करोड़ रुपए हर्जाना देने का आदेश द‌िया है। एसजे मुखोपाध्याय और वी गोपाला की बेंच ने कोलकाता स्थि‌त एएमआरआई अस्पताल और उसके तीन डॉक्टरों को आठ सप्ताह में ये हर्जाना देने का आदेश दिया है।

दरअसल अस्पताल और उसके तीन डॉक्टरों पर आरोप है कि उन्होंने भारतीय मूल की यूएस बेस्ड महिला रिसर्चर अनुराधा साहा के इलाज में लापरवाही बरती थी। इस लापरवाही के चलते महिला की मौत हो गई।

अस्पताल की इस लापरवाही पर महिला के पति ने न्यायालय में अर्जी दायर की और सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए पीड़ित परिवार को 6 करोड़ रुपए का मुआवजे का आदेश दिया।

क्या था पूरा मामला

ये मामला मार्च 1998 का जब एएमआरआई रिसर्चर और डॉ अनुराधा साहा गर्म‌ियों की छुट्टी में अपने घर कोलकाता आई हुई थी।
इसी दौरान उन्हें अप्रैल में स्किन रैशिस की शिकायत हुई। अनुराधा इसके ‌इलाज के लिए डॉ सुकुमार मुखर्जी से मिली। डॉ मुखर्जी ने अनुराधा को आराम की सलाह दी।

इसके बाद शिकायत बढ़ने पर डॉ सुकुमार ने 80 एमजी के दो डेपोमेड्रोल इंजेक्शन दिए। जिसे कोर्ट सुनवाई के दौरान बाद में विशेषज्ञों ने गलत कदम बताया। इंजेक्शन के बाद अनुराधा की हालत ज्यादा बिगड़ गई और उसे मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल भर्ती कराया गया जहां अनुराधा साहा की मौत हो गई।

अनुराधा की मौत के बाद उनके पति कुनाल ने अस्पताल की लापरवाही के खिलाफ लड़ाई लड़ी। 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने अस्पताल की गलती मानते हुए केस को राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण आयोग में भेज ‌द‌िया जहां मुआवजे की राश‌ि 1.7 करोड़ तय की। इस राश‌ि को नकारते हुए कुनाल ने 1998 से मुआवजे की रकम ब्याज के साथ 200 करोड़ करने की मांग की और सुप्रीम कोर्ट से फ‌िर गुहार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने इस राश‌ि को बढ़ा कर 5.96 करोड़ कर द‌िया।

 

कोर्ट ने डॉ बलराम प्रसाद और डॉ सुकुमार मुखर्जी को 10-10 लाख जुर्माना और डॉ वैद्यनाथ हल्दर को आठ सप्ताह में 5 लाख रुपए देने का आदेश द‌िया।

 

बाकी बची राश‌ि को कोर्ट द्वारा ब्याज के साथ देने का आदेश द‌िया। पीड़‌ित मह‌िला के प‌त‌ि ने अस्पताल और डॉक्टर की लापरवाही के ख‌िलाफ 13 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी। लापरवाही के चलते मरने वाली मह‌िला रिसर्चर अनुराधा खुद मनोवैज्ञ‌ान‌िक थी।

 

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