Thursday, April 10, 2025
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भाई चारा वालों ने ईरान से पारसियों को कैसे भगाया ?

पारसियों का इतिहास प्राचीन फारस (आधुनिक ईरान) से शुरू होता है, जहाँ वे जोरोस्ट्रियन धर्म के अनुयायी थे। यह धर्म, जिसकी स्थापना पैगंबर जरथुस्त्र (ज़ोरोस्टर) ने लगभग 1500-1200 ईसा पूर्व की थी, एक समय फारस का प्रमुख धर्म था, खासकर अकेमेनिद और सासानी साम्राज्यों के दौरान। जोरोस्ट्रियन धर्म एकेश्वरवाद पर आधारित था, जिसमें अहुरा मज़्दा को सर्वोच्च ईश्वर माना जाता था और अग्नि पूजा इसका महत्वपूर्ण हिस्सा थी।

7वीं शताब्दी में अरबों के इस्लामी आक्रमण ने फारस के इतिहास को बदल दिया। 636 ईस्वी में कादिसिया के युद्ध और 642 ईस्वी में नहावंद के युद्ध में सासानी साम्राज्य की हार के बाद, इस्लाम ने फारस पर अपना प्रभुत्व जमा लिया। नए मुस्लिम शासकों ने जोरोस्ट्रियनों पर कठोर नीतियाँ लागू कीं। इनमें शामिल था:
जजिया कर: गैर-मुस्लिमों पर लगाया जाने वाला विशेष कर, जो उनकी आर्थिक स्थिति को कमजोर करता था।
धर्मांतरण का दबाव: जोरोस्ट्रियनों को इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर किया गया। मना करने वालों को उत्पीड़न, संपत्ति जब्ती, या मृत्युदंड का सामना करना पड़ा।
सांस्कृतिक दमन: जोरोस्ट्रियन मंदिरों और अग्नि स्थलों को नष्ट किया गया, और उनकी धार्मिक प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाया गया।

इस उत्पीड़न के कारण कई जोरोस्ट्रियन अपने धर्म और जान बचाने के लिए फारस छोड़कर भाग गए। “किस्सा-ए-संजान” नामक पारसी ग्रंथ में वर्णित है कि कैसे एक समूह ने अपनी मातृभूमि छोड़ी। यह ग्रंथ, जो 16वीं शताब्दी में पारसी पुजारी बहमन के कोबाद संजाना द्वारा लिखा गया, इस ऐतिहासिक पलायन का प्राथमिक स्रोत है। इसमें बताया गया है कि इस्लामी शासन के तहत पारसियों को अपनी पहचान और आस्था को बनाए रखना असंभव हो गया था।

पारसियों का इतिहास क्या है?
पारसी समुदाय जोरोस्ट्रियन धर्म से जुड़ा है, जिसे विश्व के सबसे पुराने एकेश्वरवादी धर्मों में से एक माना जाता है। इसकी उत्पत्ति प्राचीन आर्य (ईरानी) संस्कृति से हुई, जो वैदिक धर्म से भी कुछ समानताएँ रखती है। जोरोस्ट्रियन धर्म में अच्छाई (अहुरा मज़्दा) और बुराई (अंग्रा मैन्यू) के बीच संघर्ष पर जोर दिया जाता है। यह धर्म सासानी काल (224-651 ईस्वी) तक फारस में फला-फूला, लेकिन इस्लामी विजय के बाद इसका पतन शुरू हुआ।

फारस में इस्लामी शासन के बाद, जोरोस्ट्रियनों की संख्या तेजी से घटी। जो इस्लाम में परिवर्तित नहीं हुए, वे या तो मारे गए या देश छोड़कर भाग गए। आज ईरान में उनकी आबादी बेहद कम (लगभग 25,000) रह गई है, जबकि एक समय यह वहाँ का राज्य धर्म था। भागने वालों में से एक समूह भारत की ओर बढ़ा, जो आगे के इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

पारसी भारत कैसे आए?
पारसियों का भारत आगमन 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच माना जाता है, हालाँकि सटीक तारीख पर विद्वानों में मतभेद है। “किस्सा-ए-संजान” के अनुसार, इस्लामी आक्रमण के बाद एक छोटा समूह जहाजों में सवार होकर फारस से भागा। लगभग 19 वर्षों तक समुद्र में भटकने के बाद, वे भारत के पश्चिमी तट पर गुजरात के संजन (संजान) नामक स्थान पर पहुँचे। यह घटना संभवतः 716 ईस्वी या उसके आसपास की है।

हिंदू राजा द्वारा शरण: संजन पहुँचने पर, स्थानीय हिंदू राजा जादी राणा ने उन्हें शरण देने का फैसला किया। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, पारसी नेताओं ने राजा को दूध से भरा गिलास दिखाकर समझाया कि वे “दूध में शक्कर” की तरह घुल जाएँगे—अर्थात् वे स्थानीय संस्कृति में समाहित हो जाएँगे, बिना बोझ बने। राजा ने उन्हें पाँच शर्तों (जैसे स्थानीय भाषा सीखना, हथियार न रखना) के साथ रहने की अनुमति दी।

संजन में बसने के बाद, पारसियों ने अपनी अग्नि मंदिर (आतश बहराम) स्थापित की, जिसे बाद में ईरानशाह के नाम से जाना गया। यह अग्नि आज भी उदवाड़ा (गुजरात) में जल रही है। धीरे-धीरे वे गुजरात के अन्य हिस्सों जैसे सूरत, नवसारी और दीव में फैले।
16वीं शताब्दी में जब अंग्रेजों ने सूरत में व्यापार शुरू किया, पारसियों ने कारीगरों और व्यापारियों के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में, वे बॉम्बे (मुंबई) में बस गए और वहाँ उद्योग, शिक्षा और व्यापार में योगदान दिया। टाटा, गोदरेज और वाडिया जैसे परिवार इसका उदाहरण हैं।

ईरान से पारसियों को इस्लामी आक्रमण और उत्पीड़न ने भगाया। उनका इतिहास जोरोस्ट्रियन धर्म के गौरव और पतन की कहानी है। भारत में, हिंदू शासकों की उदारता और बाद में ब्रिटिश अवसरों ने उन्हें नया जीवन दिया। आज भारत में उनकी आबादी लगभग 60,000 है, जिनमें से अधिकांश मुंबई में रहते हैं, और वे अपनी सांस्कृतिक पहचान को संजोए हुए हैं।

9चित्र  गुजरात में संजान के पास नारगोल में समुद्र तट पर स्थापित स्तंभ जो पारसियों ने भारत में शरण मिलने की स्मृति में स्थापित किया था 0

टाईम्स म्यूज़िक के मंदार ठाकुर को मिला अंतर्राष्ट्रीय सम्मान

टाईम्स म्यूज़िक के मंदार ठाकुर को  MUSEXPO 2025 से सम्मानित किया गया । ये  सम्मान समारोह कैलिफोर्निया के बरबैंक शहर में आयोजित हुआ (जो मीडिया की दुनिया की राजधानी के रूप में जाना जाता है)। इस आयोजन को और खास बनाने के लिए बर्बैंक के मेयर, लॉस एंजेलिस काउंटी और कैलिफोर्निया राज्य के प्रतिनिधियों ने आधिकारिक घोषणाएं भी कीं।
MUSEXPO 2025 ने अपने 25वें ग्लोबल एडिशन के अवसर पर टाइम्स म्यूजिक (Times Music) को सम्मानित करते हुए CEO मंदार ठाकुर को कंपनी की ओर से ‘इंटरनेशनल म्यूजिक पर्सन ऑफ द ईयर (International Music Person of the Year)’ के पुरस्कार से सम्मानित किया। यह ऐतिहासिक सम्मान किसी भी भारतीय या एशियाई कंपनी और कार्यकारी को पहली बार प्रदान किया गया है। यह पुरस्कार उन व्यक्तियों और कंपनियों को दिया जाता है जिन्होंने ग्लोबल म्यूजिक इंडस्ट्री में उल्लेखनीय योगदान दिया है।

यह पुरस्कार समारोह कैलिफोर्निया के बरबैंक शहर में आयोजित हुआ (जो मीडिया की दुनिया की राजधानी के रूप में जाना जाता है)। इस आयोजन को और खास बनाने के लिए बर्बैंक के मेयर, लॉस एंजेलिस काउंटी और कैलिफोर्निया राज्य के प्रतिनिधियों ने आधिकारिक घोषणाएं भी कीं।

टाइम्स म्यूजिक जो द टाइम्स ग्रुप और प्राइमरी वेव का एक संयुक्त वेंचर है, अब रिकॉर्डेड म्यूजिक, पब्लिशिंग और आर्टिस्ट मैनेजमेंट के क्षेत्र में एक बड़ी नाम बन गया है। इस कंपनी के पास एक विविधतापूर्ण म्यूजिक पोर्टफोलियो है, जिसमें Junglee Music शामिल है जो बॉलीवुड के गानों पर केंद्रित है, और एफएफएस नाम का एक इंडी म्यूजिक सब-लेबल भी है जो भारत के समृद्ध संगीत को आगे बढ़ाता है।

द टाइम्स ग्रुप के मैनेजिंग एडिटर विनीत जैन ने कहा, “यह पुरस्कार टाइम्स म्यूजिक और उसकी टीम की मेहनत और समर्पण का परिणाम है, जो उन्होंने एक ग्लोबल बिजनेस खड़ा करने में लगाया। मैं मंदार और उनकी टीम को निरंतर सफलता की शुभकामनाएं देता हूं।”

इस सम्मान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए टाइम्स म्यूजिक के सीईओ मंदार ठाकुर ने कहा,”यह सम्मान दिखाता है कि भारत की पकड़ अब ग्लोबल म्यूजिक इंडस्ट्री में मजबूत होती जा रही है और Times Music अब एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में दुनिया के स्टेज पर एक अहम भूमिका निभा रहा है।”

पिछले “इंटरनेशनल म्यूजिक पर्सन ऑफ द ईयर” पुरस्कार विजेताओं में ग्रैमी और एमी पुरस्कार विजेता और ऑस्कर के लिए नामांकित वैश्विक हिट गीतकार डायने वॉरेन; मोंटे लिपमैन और एवरी लिपमैन, को-फाउंडर, रिपब्लिक रिकॉर्ड्स; हार्वे गोल्डस्मिथ (प्रसिद्ध कॉन्सर्ट प्रमोटर – लाइव एड, लाइव अर्थ, प्रिंस ट्रस्ट); स्टीव श्नुर, वर्ल्डवाइड एग्जीक्यूटिव और प्रेसिडेंट म्यूजिक, ईए गेम्स; जॉर्ज एर्गाटुडिस, हेड ऑफ म्यूजिक, यूके और आयरलैंड एप्पल; पीट गंबर्ग, प्रेसिडेंट, ए एंड आर अटलांटिक रिकॉर्ड्स; डेनियल ग्लास, संस्थापक एवं प्रेसिडेंट,, ग्लासनोट एंटरटेनमेंट ग्रुप आदि शामिल हैं।

समरस संस्थान साहित्य सृजन भारत का राष्ट्रीय अधिवेशन एवं दशाब्दी समारोह भीलवाड़ा में 12 अप्रैल को

कोटा / समरस संस्थान साहित्य सृजन भारत गांधीनगर गुजरात के संस्थापक एवं संचालक डॉ मुकेश कुमार व्यास ‘स्नेहिल’ ने बताया कि संस्थान के राष्ट्रीय अधिवेशन एवं दशाब्दी समारोह का आयोजन 12 अप्रैल को भीलवाड़ा के महर्षि गौतम भवन में आयोजित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि समारोह के प्रति सदस्यों में अच्छी रुचि देखी जा रही है और वे समरोह के लिए ऑन लाइन पंजीयन करवा रहे हैं। अधिवेशन में अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, प्रांतीय, संभागीय,जिला स्तरीय पदाधिकारी, कार्यकारिणी सदस्य एवं  समरस सदस्य साहित्यकार भाग लेंगे।
    मुकेश व्यास ने बताया कि समारोह का प्रथम सत्र प्रातः 10:00 :दीप प्रज्वलन, सरस्वती पूजन एवं वंदन के साथ प्रारंभ होगा। इस से पूर्व 9 बजे से कार्यक्रम स्थल पर रजिस्ट्रेशन किया जाएगा। इस सत्र में अतिथियों का स्वागत एवं 51 साहित्यकारों का सम्मान समारोह आयोजित किया जाएगा। अधिवेशन में नई इकाइयों का गठन, पदाधिकारियों का मनोनयन, संस्था की उन्नति के लिए चर्चा की जाएगी। द्वितीय सत्र में 3:00 से कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा।
        राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शशि जैन और राष्ट्रीय महामंत्री कवि आनंद जैन ‘अकेला’ ने बताया कि अधिवेशन में 51 साहित्यकारों को स्मृति शेष श्रीमती पुष्पा देवी व्यास साहित्य सम्मान “समरस प्रेम पुष्प 2025” से सम्मानित किया जाएगा। राष्ट्रीय अध्यक्ष और कोटा इकाई के अध्यक्ष राजेंद्र कुमार जैन के साथ अधिवेशन की विविध तैयारियों में दिन रात कार्य कर रहे हैं।
         संस्थान की भीलवाड़ा जिला इकाई के अध्यक्ष बृज सुंदर सोनी ने बताया कि इकाई के सभी सदस्य समारोह को सफल बनाने में दिन रात लगे हुए हैं। कार्यक्रम में अभी तक डॉ. शशि जैन चन्द्रिका जी कोटा, आर.के. जैन कोटा श्रीमती सन्ध्या रानी (झारखंड), सुरेंद्र शर्मा जी ‘बशर’ अहमदाबाद, श्रीमती संतोष शर्मा जी अहमदाबा,.डॉ.श्यामसिंह जी राजपुरोहित जयपुर गोविन्द गुरु जी पटवारी धौलपुर, श्रीमती मीना शर्मा जी धौलपुर, श्रीमती सविता धर झारखण्ड,  दसरथ सिंह दबंग भीलवाड़ा राकेश आनन्दकर जी अजमेर,डॉ.विजयप्रताप सिंह जी अहमदाबाद, राजेश मित्तल जी भीलवाड़ा, गौरव भारद्वाज धौलपुर,ओम उज्ज्वल जी भीलवाड़ा,श्रीमती साधना शर्मा कोटा, रुद्र प्रताप धौलपुर, डॉ.उमासिंह जी किसलय अहमदाबाद, डॉ. वैदेही गौतम कोटा ,विजय जोशी, कोटा, सुनील चौरे उपमन्यु  खण्डवा, तारकेश्वर चौरे जी खण्डवा, मनोहर लाल कुमावत भीलवाड़ा, डॉ. विभा प्रकाश जी लखनऊ,श्रीमती प्रेम सोनी भीलवाड़ा, श्याम सुन्दर तिवारी मधुप भीलवाड़ा,  मधुसिंह महक भीलवाड़ा, श्रीमती शशि ओझा भीलवाड़ा, श्रीमती कृष्णा माहेश्वरी भीलवाड़ा एवं नरेंद्र कुमार वर्मा ‘नरेन’ भीलवाड़ा , रजनी शर्मा धौलपुर,  कवि आनन्द जैन अकेला कटनी, श्री अरुण ठाकर जी जयपुर, श्री राजेन्द्र कुमार पुरोहित जयपुर, गायत्री सरगम भीलवाड़ा  के आने की सहमति प्रात हो चुकी है। I इन सभी के ऑन लाइन रजिस्ट्रेशन किए जा चुके हैं।
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी, कोटा

महान गणितज्ञ रामानुजम एक अद्भुत वसीयत छोड़ गए

स्ट्रिंग सिद्धांत, ब्लैक होल और चंद्रमा पर रामानुजन के प्रभाव से संबंधित एक शोधपत्र रॉयल सोसायटी ने छापा है जिसने विज्ञान की दुनिया में हलचल मचा दी है। अभी तक रामानुजन को महान गणितज्ञ के रूप में जाना जाता था पर अब भौतिकी खासकर अंतरिक्ष भौतिकी के क्षेत्र में रामानुजन द्वारा खोजे गए सूत्र अध्ययन के नए द्वार खोल रहे हैं।
महान रामानुजन ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष में जब उनकी शारीरिक शक्तियां क्षीण हो गईं थी, कुछ खोजों पर काम कर रहे थे। लगभग डेढ़ सौ पेज में आड़े तिरछे लिख कर उन्होंने अपनी जीवन लीला समाप्त की, उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने वे पेज मद्रास विश्वविद्यालय को दे दिए जहां से वे ट्रिनिटी कॉलेज की व्रेन लाइब्रेरी में रख दिए गए। यह समय 1922 के आस पास का था। 1976 में जॉर्ज एंड्रयूज को लाइब्रेरी में एक बक्सा दिखा, उसे जब उन्होंने खोला और पढ़ा तो वह नाचने लगे। सौ से अधिक पृष्ठों में छह सौ से अधिक गणितीय सूत्र बिना किसी प्रमाण के एक के बाद एक लिखे गए थे।
रामानुजन के नोट्स पर किताब लिखने वाले गणितज्ञ बर्नड्ट नोटबुक की खोज के बारे में कहते हैं कि इस ‘लॉस्ट नोटबुक’ की खोज ने गणितीय दुनिया में लगभग उतनी ही हलचल पैदा कर दी जितनी बीथोवेन की दसवीं सिम्फनी की खोज ने संगीत की दुनिया में पैदा की होगी।
मैंने इस संदर्भ में अपने एक वैज्ञानिक मित्र से बात की, उन्होंने बताया कि बाहर की यूनिवर्सिटीज में रामानुजन के प्रमेय सिद्ध करने वाले छात्र को सीधे पीएचडी की डिग्री अवार्ड होगी।
महान रामानुजन के लिए गणित के सूत्र बनाना भगवती की अर्चना में फूल अर्पित करने जैसा था। वह गणित के पर्याय थे, बचपन में अपने मित्र द्वारा गणित के बारे में पूछने पर उन्होंने अपनी कोहनी दिखाई। कोहनी की त्वचा एकदम काली और मोटी हो गई थी जो उनके द्वारा स्लेट पर लिखी गणनाओं को लिखने मिटाने से हुआ।
महान रामानुजन घोर आर्थिक संकट में रहे, स्वास्थ्य बिगड़ता गया मात्र 32 वर्ष की उम्र में मां भारती का लाल अनंत की खोज में अनंत में विलीन हो गया।
साभार- https://www.facebook.com/pkmkit से

माखनलाल चतुर्वेदी: पत्रकारिता और साहित्य के दीपस्तंभ

 राष्ट्रीय भावना और ओज के महान सम्राट, कवि ,लेखक और पत्रकार के रूप में विख्यात माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म 4 अप्रैल 1889 ई. को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई ग्राम में हुआ था ! आरंभिक शिक्षा- दीक्षा घर पर ही हुई ! जिसके उपरांत अध्यापन और साहित्य सृजन में संलग्न हुए !

“मुझे तोड़ लेना बनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जाएं वीर अनेक!”
स्वतंत्रता संग्राम के कवि, पत्रकार और राष्ट्रभक्त के उक्त पंक्ति में वह समर्पण,  त्याग और वह देशभक्ति समाहित है, जो माखनलाल चतुर्वेदी के सम्पूर्ण जीवन का सार है। इस महान राष्ट्रवादी साहित्यकार की जीवन लीला 30 जनवरी 1968 में भोपाल, मध्य प्रदेश में समाप्त हो गई!

पत्रकारिता से लेकर जन जागरण तक- वे कवि ही नहीं, बल्कि जुझारू पत्रकार भी थे। ‘प्रताप’, ‘कर्मवीर’ और ‘प्रभा’ जैसे समाचार-पत्रों के माध्यम से उन्होंने अपनी कलम से ब्रिटिश शासन के विरुद्ध मोर्चा खोला। इन्होंने “1913 में प्रभा “पत्रिका का संपादन शुरू किया और इसी क्रम में गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आए ! जिनके देश- प्रेम और सेवा व्रत का इन पर गहरा प्रभाव पड़ा ! उनकी पत्रकारिता में साहस, बेबाकी और जन-सरोकार की गूंज थी। कई बार उन्हें अपनी लेखनी के कारण जेल भी जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी कलम को कभी झुकने नहीं दिया। 1924 में  गणेश शंकर विद्यार्थी की गिरफ्तारी के बाद इन्होंने प्रताप का संपादन संभाला ! कालांतर में “संपादक सम्मेलन” और “हिंदी साहित्य सम्मेलन” के अध्यक्ष भी रहे!

स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय योगदान- गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर माखनलाल चतुर्वेदी ने असहयोग आंदोलन, खिलाफत आंदोलन और नमक सत्याग्रह जैसे आंदोलनों में भाग लिया। 1921 के “असहयोग आंदोलन” के दौरान राजद्रोह के आरोप में एक वर्ष के लिए इन्हें जेल भेजा गया ! उन्होंने न केवल खुद संघर्ष किया, बल्कि युवाओं को आंदोलन से जोड़ने का भी काम किया।

साहित्यिक योगदान- इनकी सृजन यात्रा के तीन आयाम रहे-

1- पत्रकारिता और संपादन, जहां इन्होंने राष्ट्रीय -चेतना का जागरण किया!

2- -काव्य, निबंध, नाटक, कहानी के माध्यम से सर्जनात्मक विस्तार को प्राप्त किया! “पुष्प की अभिलाषा” कविता से भारतीय जन मानस में हमेशा के लिए बस गए और इन्हें “एक भारतीय आत्मा” उपनाम से  सम्मानित किया गया।

3- उनके व्याख्यान, जहां सामाजिक राजनीतिक एवं साहित्यिक प्रश्नों से दो- चार हुए!

पुरस्कार एव सम्मान-  सागर विश्वविद्यालय ने डी. लिट.की मानद उपाधि से सम्मानित किया! 1943 ईस्वी में ,हिमकिरीटनि’ कविता के लिए ‘देव पुरस्कार ‘ से सम्मानित किया गया जो उस समय सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार था! उनकी कृति ‘हिमतरंगिणी’ के लिए 1955 में उन्हें हिंदी में प्रथम ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार ‘ प्रदान किया गया! 1963 में भारत सरकार द्वारा उन्हें ‘पद्मभूषण’ पुरस्कार से अलंकृत कर डाक टिकट जारी किया गया ! उनके नाम पर भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना की गई, जो आज पूरे देश में पत्रकारिता का अग्रणी संस्थान है। आज उनकी जयंती पर हम न केवल उन्हें याद करें, बल्कि उनके विचारों को अपने जीवन और कार्य में शामिल भी करें क्योंकि माखनलाल चतुर्वेदी सिर्फ कवि नहीं थे, वे विचारों की मशाल थे और एक दूरदर्शी व्यक्ति जिसकी रोशनी आज भी दिशा दिखा रही है।

– डॉ सुनीता त्रिपाठी ‘जागृति’,                  सांची बौद्ध- भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय रायसेन, मध्य प्रदेश

टैरिफ युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं होगा

दिनांक 2 अप्रेल 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति श्री डॉनल्ड ट्रम्प द्वारा, विभिन्न देशों से अमेरिका में होने वाले  आयातित उत्पादों पर की गई टैरिफ सम्बंधी घोषणा के साथ ही अंततः अमेरिका द्वारा पूरे विश्व में टैरिफ के माध्यम से व्यापार युद्ध छेड़ दिया गया है। अभी, अमेरिका ने विभिन्न देशों से अमेरिका में होने वाले आयात पर विभिन्न दरों पर टैरिफ लगाया है। अब इनमें से कई देश अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ लगाने की घोषणा कर रहे हैं, जैसे चीन ने अमेरिका से चीन में आयात होने वाले उत्पादों पर दिनांक 10 अप्रैल 2025 से 34 प्रतिशत की दर से टैरिफ लगाने की घोषणा की है। टैरिफ के माध्यम से छेड़े गए व्यापार युद्ध का भारत पर कोई बहुत अधिक विपरीत प्रभाव पड़ने की सम्भावना कम ही है। दरअसल, अमेरिका ने विभिन्न देशों से आयातित उत्पादों पर अलग अलग दर से टैरिफ लगाने की घोषणा की है और साथ ही कुछ उत्पादों के आयात पर फिलहाल टैरिफ की नई दरें लागू नहीं की गई हैं। टैरिफ की यह दरें 9 अप्रैल 2025 से लागू होंगी।

विभिन्न देशों से अमेरिका में आयात होने वाले उत्पादों पर 10 प्रतिशत की दर से न्यूनतम टैरिफ लगाया गया हैसाथ ही, कुछ अन्य देशों यथा चीन से आयातित उत्पादों पर 34 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति ने की है इसी प्रकार, वियतनाम से आयातित उत्पादों पर 46 प्रतिशत, ताईवान पर 32 प्रतिशत, थाईलैंड पर 36 प्रतिशत, भारत पर 26 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया पर 25 प्रतिशत, इंडोनेशिया पर 32 प्रतिशत, स्विट्जरलैंड पर 31 प्रतिशत, मलेशिया पर 24 प्रतिशत, कम्बोडिया पर 49 प्रतिशत, दक्षिणी अफ्रीका पर 30 प्रतिशत, बांग्लादेश पर 37 प्रतिशत, पाकिस्तान पर 29 प्रतिशत, श्रीलंका पर 44 प्रतिशत और इसी प्रकार अन्य देशों से आयातित वस्तुओं पर भी अलग अलग दरों से टैरिफ लगाने की घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति ने की हैकुछ उत्पादों जैसे, स्टील, एल्यूमिनियम, ऑटो, ताम्बा, फार्मा उत्पाद, सेमीकंडक्टर, एनर्जी, बुलीयन एवं अन्य महत्वपूर्ण मिनरल्स को अमेरिका में आयात पर टैरिफ के दायरे से बाहर रखा गया है।

अमेरिका का मानना है कि वैश्विक स्तर पर अन्य देश अमेरिका में उत्पादित वस्तुओं के आयात पर भारी मात्रा में टैरिफ लगाते हैं, जबकि अमेरिका में इन देशों से आयात किए जाने वाले उत्पादों पर अमेरिका द्वारा बहुत कम दर पर टैरिफ लगाया जाता है अथवा बिलकुल नहीं लगाया जाता है। जिससे, अमेरिका से इन देशों को निर्यात कम हो रहे हैं एवं इन देशों से अमेरिका में आयात लगातार बढ़ते जा रहे है।

इस प्रकार, अमेरिका का व्यापार घाटा असहनीय स्तर पर पहुंच गया हैइसके साथ साथ, अमेरिका में विनिर्माण इकाईयां बंद होकर अन्य देशों में स्थापित हो गई हैं और इससे अमेरिका में रोजगार के नए अवसर भी निर्मित नहीं हो पा रहे हैंअब ट्रम्प प्रशासन ने अमेरिका को पुनः विनिर्माण इकाईयों का हब बनाने के उद्देश्य से अमेरिका को पुनः महान बनाने का आह्वान किया है और इसी संदर्भ में विभिन्न देशों से आयातित उत्पादों पर भारी मात्रा में टैरिफ लगाने का निर्णय लिया गया है ताकि अमेरिका में आयातित उत्पाद महंगे हों और अमेरिकी नागरिक अमेरिका में ही निर्मित वस्तुओं का उपयोग करने की ओर प्रेरित हों।

वर्तमान में बढ़े हुए टैरिफ का बोझ अमेरिकी नागरिकों को उठाना पड़ेगा और उन्हें अमेरिका में महंगे उत्पाद खरीदने होंगे, क्योंकि नई विनिर्माण इकाईयों की स्थापना में तो वक्त लग सकता है, विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन तुरंत तो बढ़ाया नहीं जा सकता अतः जब तक नई विनिर्माण इकाईयों की अमेरिका में स्थापना हो एवं इन विनिर्माण इकाईयों में उत्पादन शुरू हो तब तक अमेरिकी नागरिकों को महंगे उत्पाद खरीदने तु बाध्य होना पड़ेगाइससे अमेरिका में एक बार पुनः मुद्रा स्फीति की समस्या उत्पन्न हो सकती है एवं ब्याज दरों के कम होने के चक्र में भी देरी होगी, बहुत सम्भव है कि मुद्रा स्फीति को कम करने की दृष्टि से एक बर पुनः कहीं ब्याज दरों के बढ़ने का चक्र प्रारम्भ न हो जाएलम्बे समय में जब अमेरिका में विनिर्माण इकाईयों की स्थापना हो जाएगी एवं इन इकाईयों में उत्पादन प्रारम्भ हो जाएगा तब जाकर कहीं मुद्रा स्फीति पर अंकुश लगाया जा सकेगाविभिन्न देशों से आयातित उत्पादों पर टैरिफ सम्बंधी घोषणा के साथ ही, डॉलर पर दबाव पड़ना शुरू भी हो चुका है एवं अमेरिकी डॉलर इंडेक्स घटकर 102 के स्तर पर नीचे आ गया है जो कुछ समय पूर्व तक लगभग 106 के स्तर पर आ गया थाइसी प्रकार अमेरिका में सरकारी प्रतिभूतियों की 10 वर्ष की बांड यील्ड पर भी दबाव दिखाई दे रही है और यह घटकर 4.08 के स्तर पर नीचे आ गई है,

यह कुछ समय पूर्व तक 4.70 के स्तर से भी ऊपर निकल गई थीअमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़नी प्रारम्भ हो गई है एवं यह पिछले चार माह के उच्चतम स्तर, लगभग 85 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर, पर आ गई हैट्रम्प प्रशासन के टैरिफ सम्बंधी लिए गए निर्णयों का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर लम्बी अवधि में तो हो सकता है परंतु छोटी अवधि में तो निश्चित ही यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था को विपरीत रूप से प्रभावित करते हुए दिखाई दे रहा हैअमेरिकी पूंजी बाजार (शेयर बाजार) केवल दो दिनों में ही लगभग 10 प्रतिशत तक नीचे गिर गया है और अमेरिकी निवेशकों को लगभग 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक्सान हुआ हैइतनी भारी गिरावट तो वर्ष 2020 में कोविड महामारी के दौरान ही देखने को मिली थीयदि यही स्थिति बनी रही तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था कहीं मंदी की चपेट में न आ जाय। यदि ऐसा होता है तो पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था भी विपरीत रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी। अतः ट्रम्प प्रशासन का टैरिफ सम्बंधी उक्त निर्णय अति जोखिम भरा ही कहा जाएगा।

जब पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था विपरीत रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी तो भारत की अर्थव्यवस्था पर भी कुछ तो विपरीत असर होगा हीइस संदर्भ में किए गए विश्लेषण से यह तथ्य उभरकर सामने आ रहा है कि बहुत सम्भव है कि ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत से आयातित वस्तुओं पर लगाए गए 26 प्रतिशत के टैरिफ का भारतीय अर्थव्यवस्था पर त अधिक विपरीत प्रभाव नहीं होक्योंकि, एक तो भारत से अमेरिका को निर्त बहुत अधिक नहीं है। यह भारतीय सकल घरेलू उत्पाद का मात्र लगभग 3-4 प्रतिशत ही हवैसे भी भारतीय अर्थव्यवस्था निर्यात पर निर्भर नहीं है एवं यह विभिन्न उत्पादों की आंतिरक मांग पर अधिक निर्भर ह

भारत से सकल घरेलू उत्पाद का केवल लगभग 16 प्रतिशत (वस्तुएं एवं सेवा क्षेत्र मिलाकर) ही निर्यात किया जाता हैदूसरे, भारत से अमेरिका को निर्यात किए जाने कुछ उत्पादों को उक्त टैरिफ व्यवस्था से फिलहाल मुक्त रखा गया है, जैसे फार्मा उत्पाद, सेमीकंडक्टर, स्टील, अल्यूमिनियम, ऑटो, ताम्बा, बुलीयन, एनर्जी आदिसंभवत: इन उत्पादों के भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर कुछ भी असर नहीं होने जा रहा हैतीसरे, भारतीय कम्पनियों (26 प्रतिशत टैरिफ) को रेडीमेड गर्मेंट्स के अमेरिका को निर्यात में पड़ौसी देशों, यथा, बांग्लादेश (37 प्रतिशत टैरिफ), पाकिस्तान (29 प्रतिशत टैरिफ), श्रीलंका (44 प्रतिशत टैरि), वियतनाम (46 प्रतिशत टैरिफ), चीन (34 प्रतिशत टैरिफ), इंडोनेशिया (32 प्रतिशत टैरिफ), आदि के साथ अत्यधिक स्पर्धा का सामना करना पड़ता हैपरंतु, उक्त समस्त देशों से अमेरिका को होने वाले रेडीमेड गार्मेंट्स के निर्यात पर भारत की तुलना में अधिक टैरिफ लगाए जाने की घोषणा की गई हैअत: इन देशों से रेडीमेड गार्मेंट्स के अमेरिका को निर्यात भारत की तुलना में महंगे हो जाएंगे, इससे रेडीमेड गार्मेंट्स के क्षेत्र में भारत के लिए लाभ की स्थिति निर्मित होती हुई दिखाई दे रही है।

इसी प्रकार, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कृषि उत्पादों के निर्यात भी भारत से अमेरिका को बढ़ सकते हैंयदि किन्ही क्षेत्रों में भारत को नुक्सान होता हुआ दिखाई भी देता है तो भारत के विश्व के अन्य देशों के साथ बहुत अच्राजनीतिक संबंधो के चलते भारत को अपने उत्पादों के लिए नए बाजार तलाशने में किसी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। वैसे भी, अमेरिका सहित भारत के यूरोपीयन देशों, ब्रिटेन एवं खाड़ी के देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को सम्पन्न करने हेतु वार्ताएं लगभग अंतिम दौर में पहुंच गईं हैं, इसका लाभ भी भारत को होने जा रहा है।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा शीघ्र ही मोनेटरी पॉलिसी के माध्यम से रेपो दरों में परिवर्तन की घोषणा की जाने वाली हैभारत में चूंकि मुद्रा स्फीति की दर लगातार गिरती हुई दिखाई दे रही है अतः भारत में रेपो दर में 75 से 100 आधार बिंदुओं की कमी की घोषणा की जा सकती हैयदि ऐसा होता है तो विभिन्न उत्पादों की उत्पादन लागत में कुछ कमी सम्भव होगी, जिसके चलते भारत में निर्मित उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकते हैंहालांकि, केवल ब्याज दरों के कमी करके पूंजी की लागत को कम करने से काम चलने वाला नहीं है, भारत को भूमि एवं श्रम की लागतों को भी कम करने की आवश्यकता है तथा उत्पादकता में सुधार करने की भी आवश्यकता है ताकि भारत में निर्मित होने वाले उत्पादों की कुल लागत में कमी हो एवं यह उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा में अन्य देशों के मुक़ाबले में टिक सकें। वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक, सामरिक, रणनीतिक, राजनैतिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों में आमूल चूल परिवर्तन होता हुआ दिखाई दे रहा है, परिवर्तन के इस दौर में भारतीय कम्पनियां कितना लाभ उठा सकती हैं

यह भारतीय कम्पनियों के कौशल पर निर्भर करेगासाथ ही, केंद्र सरकार द्वारा शीघ्रता से अपने आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को गति देकर भी वैश्विक स्तर पर निर्मित हुई उक्त परिस्थितियों का लाभ उठाया जा सकता है।

प्रहलाद सबनानी
सेवानिवृत्त उपमहाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

भारत कोई धर्मशाला नहीं: बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ ऐतिहासिक कदम

संसद के बजट सत्र- 2025 में बजट के अतिरिक्त भी कई ऐतिहासिक विधेयक पारित हुए हें जिनमें से एक है आव्रजन और विदेशियों विषयक विधेयक -2025 । यह विधेयक भारत को वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में अग्रणी भूमिका निभाने वाला तो है ही साथ ही भारत की आंतरिक व वाह्य सुरक्षा तंत्र और आर्थिक तंत्र को भी मजबूत बनाने वाला भी है। जब यह विधेयक अधिसूचित होकर पूरे भारत में लागू हो जायेगा तब बांग्लादेशी व रोहिंग्याओं की अवैध घुसपैठ सहित अनेक प्रकार के अपराधों पर भी लगाम लग सकेगी।

इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद कोई भी विदेशी नागरिक पहले की तरह भारत में घुस कर, भारत के किसी भी हिस्से में जाकर निवास करते हुए  भारत विरोधी गतिविधियों में संलिप्त नहीं हो पाएगा। अब सीमा पार करने वाले हर व्यक्ति का पूरा डाटा एकत्र किया जाएगा । अभी भारत आने वाले विदेशी नागरिकों का कोई डाटा उपलब्ध नहीं है। यह विधेयक भारत की एकता, अखंडता तथा सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण  है । इस बिल के लागू हो जाने के बाद अवैध रोहिंग्या/बांग्लादेशी घुसपैठ पर रोकथाम ही नहीं लगेगी अपितु ऐसे अराजक तत्व जो समाज में घुल मिलकर  छोटे मोटे अपराधों में संलिप्त हो रहे हैं तथा समाज का वातावरण प्रदूषित करते हुए लव जिहाद व धर्मांतरण जैसी गतिविधियों में संलिप्त हो जाते हैं उनसे भी निपटा जा सकेगा।

इस विधेयक पर संसद के दोनों  सदनों में चर्चा के दौरान स्पष्ट हुआ कि भारत में अवैध घुसपैठ की समस्या कितना विकराल रूप ले चुकी है। भारत के सभी मेट्रो शहर अवैध अराजक तत्वों के निशाने पर हैं। भारत के अधिकांश सीमावर्ती क्षेत्रों तथा समस्त पूर्वी राज्यों जिनमें असम और पश्चिम बंगाल प्रमुख हैं में यह समस्या नासूर बन चुकी है। पश्चिम बंगाल के तीन सीमावर्ती जिलों की डेमेग्राफी अवैध घुसपैठ के कारण बदल चुकी है । गृह राज्यमंत्री नित्यांद राय ने जब सदन में बताया कि बांग्लादेशी घुसपैठ  की सबसे अधिक समस्या कांग्रेस शासित राज्यों कर्नाटक, झारखंड, तेलंगना तथा  तृणमूल कांग्रेस शासित राज्य पश्चिम बंगाल में है क्योंकि यहां की राज्य सरकारें सहयोग नहीं कर रही हैं  तब विपक्षी दलो ने हंगामा करते हुए सदन का बहिष्कार कर दिया। गृहराज्य मंत्री ने अवगत कराया कि बंगाल सरकार सीमा पर बाड़ नहीं लगाने दे रही है साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया  कि सीमा पर टीएमसी के कार्यकर्ता ही बीएसएफ के कार्यों में बाधा डालने का काम कर रहे हैं जिसके कारण बांग्लादेशी घुसपैठ पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। लोकसभा में बहस के दौरान ही गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया कि भारत कोई “धर्मशाला“ नहीं हैं।

विधेयक पर बहस के दौरान घुसपैठ व शरणार्थी शब्द को स्पष्ट किया गया क्योंकि विपक्षी दलों के सांसद  तुष्टिकरण की विकृत राजनीति के कारण इन दोनों शब्दों का घालमेल कर रहे थे। ये विपक्षी सांसद इस विधेयक को वसुधैव कुटुंबकम की भावना से परे बताकर भ्रम व अराजकता की राजनीति करने का प्रयास कर रहे थे  किंतु सरकार ने  अपने तर्कों से विपक्ष को बेनकाब कर दिया जिसके परिणामस्वरूप वे राज्यसभा में हंगामा करते हुए सदन से बाहर चले गये।

इस नये कानून में विदेशी अधिनियम 1946, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम 1920 तथा विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम 1939 और आव्रजन (वाहक दायित्व ) अधिनियम 2000 को निरस्त करते हुए एक नया व्यापक कानून बनाने की आवश्यकता की पहचान करते हुए नया आव्रजन और विदेशी विधेयक 2025 लाया गया है। नये कानून का एक उद्देश्य यह भी है कि कानूनों की बहुलता और अतिव्यापन से बचा जाए तथा विदेशियों से संबंधित मामलों को नियमित किया जाए,  जिसमें वीजा की आवश्यकता, पंजीकरण और अन्य यात्रा संबंधी दस्तावेज (पासपोर्ट) आदि शामिल है । इस नये कानून के माध्यम से भारत में प्रवेश करने और बाहर जाने वाले सभी लोगों के लिए सभी प्रक्रियाओं को व्यवस्थित  किया जा सकेगा।

नये कानून के अनुसार किसी भी विदेशी को  बिना वैध पासपोर्ट या दस्तावेजों के भारत आने पर 7 साल की जेल और 10 लाख रुपये का जुर्माना देना होगा। गलत जानकारी देने या दस्तावेजों में गड़बड़ी करने पर 3 साल की जेल  और 3 लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है। भारत में बिना वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेजों के माध्यम से प्रवेश करने पर तुरंत हिरासत में लिया जायेगा। अब इस विधेयक के नये नियमों के अनुरूप अगर कोई मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है तो अधिक कड़ी कार्यवाही की जायेगी। यह विधेयक केंद्र सरकार को उन स्थानों का नियंत्रण करने का अधिकार भी देता है जहां विदेशियो काआना जाना लगा रहता है । इसके तहत मालिक को परिसर को बंद करने,  निर्दिष्ट शर्तों के साथ इसके उपयोग की अनुमति देने या सभी या निर्दिष्ट वर्ग के विदेशियों को प्रवेश देने से मना करने का अधिकार का दिया गया है।

निरस्त किये गए कानून की कमियों का लाभ उठाकर ही बड़ी संख्या में विदेशी नागरिक भारत आ रहे थे क्योंकि उस क़ानून में उनकी जांच करने तथा व्यापक पूछताछ की कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं थी। इसी कारण से आज  लाखों की संख्या में अवैध नागरिक भारत में रह रहे हैं और अब वह राष्ट्रीय समाजिक  सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं।

गृहमंत्री अमित शाह ने सदन में अपने भाषण के दौरान कहा कि हम नियम बनाकर अवैध घुसपैठ को रोक रहे हैं। हमारी सीमा पर कुछ संवदेनशील स्थान हैं, सेना के अड्डे हैं, उनको दुनियाभर के लिए खुला नहीं छोड़ सकते। पहले भी घुसपैठियो को रोका जा सकता था किंतु कोई नियम  नहीं था अतः हमने नियम बनाने का साहस किया है । इस नये कानून से भारत आने वाले विदेशी नागरिकों की जानकारी पुख्ता होगी । सुरक्षा की दृष्टि से ड्रग्स कार्टल, घुसपैठियों की कार्टल, हवाला व्यापारियों को समाप्त करने की व्यवस्था  इस विधेयक में की गई है।

गृहमंत्री अमित शाह ने सदन को बताया कि सबसे अधिक बांग्लादेशी व रोहिंग्याओं की घुसपैठ बंगाल से हो रही है। अब तक जितने घुसपैठिये पकड़े गये हैं, उनके आधार कार्ड बंगाल के 24 परगना क्षेत्र के है। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता ही इन लोगों के अवैध कागज बनवा रहे हैं। नये कानून में अवैध कागज बनवाने वाले भी सजा के दायरे में आ गये हैं। नया कानून 36 धाराओं में निहित है । सभी को कानूनी रूप दिया गया है । सदन में गृहमंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि अब जो भारत में केवल भारत के हित के लिए आयेगा वहीं यहां पर रह सकेगा। अब भारत धर्मशाला नहीं है । सरकार उन लोगों का स्वागत करने के लिए तैयार है जो पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य, सेवा  या व्यापार के लिए भारत आना चाहते हैं सरकार केवल उन लोगों को भारत आने से रोकेगी जिनके इरादे गलत हैं और जो हमारे लिए खतरा पैदा करेंगे उनसे गंभीरता से निपटा जायेगा।

इस कानून के माध्यम से भारत में गैरकानूनी तरीके से घुसना और यहां बसना मुश्किल हो जायेगा। रोहिंग्या/ बांग्लादेशी घुसपैठ अब चुनाव में भी एक बड़ा मुददा बन गई है । दिल्ली में तो आम आदमी पार्टी  कई विधायक बांग्लादेशी व रोहिंग्याओं  का फर्जी पासपोर्ट, आधार कार्ड व राशन कार्ड आदि बनवा रहे थे जिनकी जांच चल रही है । केंद्र की सरकार को पूर्ण विश्वास है कि नक्सलवाद, आतंकवाद की तरह आने वाले समय में रोहिंग्या/ बांग्लादेशी घुसपैठ का भी समाधान हो जायेगा और भारत तीव्रता के साथ विकास के पथपर अग्रसर हो सकेगा।

प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित
फोन नं.- 9198571540

मृत्युंजय दीक्षित

एलबर्टल संग्रहालय,जयपुर मिश्र की प्राचीन ममी आकर्षण का केंद्र

जयपुर में रामनिवास उद्यान के मध्य स्थित एलबर्टल संग्रहालय बहुत ही समृद्ध , प्राचीन और रोचक संग्रहालय है। संग्रहालय की विशेषता है कि इसमें राजस्थान की संस्कृति तो देखने को मिलती है है ,साथ ही भारत देश के साथ – साथ यूरोपीय, मिस्र, चीनी, ग्रीक और बेबीलोन की सभ्यताओं  के साथ – साथ राजा महाराजाओं , राजचिन्हों आदि  के बड़े – बड़े चित्र संग्रहालय भवन की  बाहर की गैलरियों और हॉल की दीवारों पर बहुत ही आकर्षक रूप से बनाए गए हैं। पहले संग्रहालय में मुख्य प्रवेश का रास्ता इन्हीं गैलरियों से ही कर जाता था, जिसे अब प्रवेश पीछे से पृथक कर दिया गया है।
यह राज्य का सबसे पुराना संग्रहालय है और वर्तमान ने राज्य के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के अधीन राज्य का सबसे बड़ा संग्रहालय है। संग्रहालय में विभिन्न सभ्यताओं, संस्कृतियों और भारतीय इतिहास के विभिन्न काल-खंडों की बहुत ही रोचक जानकारी का प्रदर्शन चित्रों, मॉडल, झांकियों, मूर्तिकला, चित्रकला आदि विभिन्न प्रकार की सामग्री से मिलती है।  संग्रहालय में टूटू नाम की करीब ढाई हजार साल पुरानी मादा ममी प्रदर्शित है। टूटू मिस्र के देवता खेम की पूजा करने वाले पुजारियों के परिवार से थी। टूटू के बारे में अनुमान है कि वह 20 साल की लड़की थी, जो मिस्र के एक शाही परिवार से संबंधित थी। इस महत्वपूर्ण संग्रह के साथ संग्रहालय में करीब 19 हजार से अधिक वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया है । संग्रहालय में इतिहास भूगर्भशास्त्र, अर्थशास्त्र, विज्ञान और कला कौशल विषयों पर आधारित सामग्री ब्रिटेन, ईरान, बर्मा, लंका, जापान, तिब्बत, नेपाल आदि स्थानों से एकत्रित कर यहां प्रदर्शित की गई है।
संग्रहालय में विभिन्न मनोरंजक गैलरियों में उन्नीसवीं शताब्दी से प्राचीन काल तक की वस्तुओं का आश्चर्यजनक खजाना देखने को मिलता है। मिस्र की कलात्मक वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। 17 वीं शताब्दी का फारसी उद्यान कालीन और कई प्राचीन मूर्तियां संग्रहालय के महत्वपूर्ण प्रदर्शन हैं। यहां  गुप्त , कुषाण , दिल्ली सल्तनत , मुगल और ब्रिटिश काल के सिक्के भी देखने को मिलते हैं।
संग्रहालय में प्रवेश करते ही भूतल पर राजस्थान के भील, गाडोलिया लुहार, भोपा , आदि जनजातियों के मॉडल्स की झांकियाँ, संगीत वाद्य यंत्र, राजस्थानी नृत्यों के  मॉडल्स,  पत्थर की कुराई, सोने के गहनों पर मीनाकारी का काम, हाथी दांत की कुराई, बीकानेरी सुनहरी बर्तन, ऊंट के चमड़े के बर्तनों पर सुनहरी काम, लकड़ी की कुराई, पीतल की कारीगरी का काम, प्राचीन प्रतिमाओं, हथियार व प्राचीन चित्रों का क्रमिक विकास मंत्रमुग्ध कर देते हैं। जापान, श्रीलंका, म्यांमार, हंगरी, जर्मनी, ऑस्ट्रिया आदि से अंतर्राष्ट्रीय कला, मिट्टी के बर्तन, कालीन, आभूषण, संगीत वाद्ययंत्र, हाथी दांत, लकड़ी का काम और पत्थर के काम के नमूने भी देखते ही बनते हैं।
संग्रहालय की ऊपरी दीर्घा में  देश के विभिन्न प्रान्तों का कला-कौशल नमूने, प्राचीन लघु चित्र, भू-गर्भ शास्त्र, प्राणि शास्त्र विज्ञान एवं शरीर विज्ञान सम्बन्धी वस्तुएं आकर्षित करती हैं। यहां अद्भुत कारीगरी युक्त फारसी और मुगल कालीन, विभिन्न काल के सिक्के ,ज्वेलरी, क्ले आर्ट, वस्त्र, संगमरमर कला, मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां, धातु कला, हथियार और कवच जैसी अन्य रोमांचक सामग्री भी दर्शनीय हैं।
 संग्रहालय के बारे में बता दें इस इमारत का निर्माण  कार्य महाराजा रामसिंह ने  प्रारंभ करवाया था और निमार्ण के दौरान ही उनका का निधन हो गया। उनके बाद महाराजा माधो सिंह ने चीफ इंजीनियर सैमुअल स्विंटन जैकब की  अगुवाई में अल्बर्ट हॉल का काम पूरा कराया। संग्रहालय भवन की स्थापत्य कला शिल्प भी दर्शनीय है जो इंडो-सरसेनिक ( कई देशों की स्थापत्य कला का मिश्रण) वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है । इस इमारत का उद्घाटन एडवर्ड बेडफोर्ड ने  21 फरवरी 1887 को किया। संग्रहालय को 1887 में जनता के लिए देखने के लिए खोला गया था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद 1959 में डॉ. सत्यप्रकाश श्रीवास्तव के निर्देशन में इस संग्रहालय को नया रूप दिया गया था। आज यह संग्रहालय राजस्थान आने वाले सैलानियों को और खास कर बच्चों को खूब लुभाता है। रात्रि में रंगबिरंगी रोशनी में जगमगाते भवन का सम्मोहन जादुई लगता है। संग्रहालय दर्शकों के लिए प्रातः 9.30 से सांय 5.00 बजे तक खुला रहता है।
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

डाक टिकटों के माध्यम से भगवान श्री राम की महिमा और रामायण गाथा का देश-विदेश में प्रसार

भगवान श्री राम की महिमा डाक टिकटों के माध्यम से भी देश-दुनिया में प्रसारित हो रही है। भारत के साथ-साथ विश्व के 20 से ज्यादा देशों ने रामायण से जुड़े चरित्रों और कथानकों पर समय-समय पर डाक टिकट जारी किये हैं। यानी की डाक टिकटों पर भी राम राज्य छाया हुआ है।

उत्तर गुजरात परिक्षेत्र, अहमदाबाद  के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने रामनवमी पर्व पर बताया कि अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 18 जनवरी, 2024 को ‘श्रीराम जन्मभूमि मंदिर’ को समर्पित 6 विशेष स्मारक डाक टिकट जारी किए थे। इनमें श्री राम जन्मभूमि मंदिर के साथ भगवान गणेश, भगवन हनुमान, जटायु, केवटराज और माता शबरी पर जारी डाक टिकट शामिल हैं। सोने का वर्क से सुसज्जित और चंदन की खुशबू से सुवासित इन डाक टिकटों में सूर्यवंशी राम के प्रतीक सूर्य की छवि के साथ पुण्य नदी सरयू का चित्र भी है और ‘मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी’ चौपाई के माध्यम से राष्ट्र के मंगल की कामना है। इन डाक टिकटों के मुद्रण में अयोध्या की पवित्र मिट्टी और सरयू के पवित्र जल का इस्तेमाल करते हुए इसे पंच महाभूतों के दर्शन से भी जोड़ा गया है। ये डाक टिकट अहमदाबाद जीपीओ स्थित फिलेटली ब्यूरो में बिक्री के लिए उपलब्ध हैं।

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि इससे पूर्व भी डाक विभाग ने रामायण के सभी महत्वपूर्ण प्रसंगों को दर्शाते 11 स्मारक डाक टिकटों का सेट 22 सितंबर, 2017 को जारी किया। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने इसे तुलसी मानस मंदिर, वाराणसी में जारी किया था। इन डाक टिकटों में सीता स्वयंवर, राम वनवास, भरत मिलाप, केवट प्रसंग, जटायु संवाद, शबरी संवाद, अशोक वाटिका में हनुमान-सीता संवाद, राम सेतु निर्माण, संजीवनी ले जाते हनुमान, रावण वध व भगवान राम के राजगद्दी पर बैठने के आकर्षक दृश्य समाहित हैं। इन डाक टिकटों पर देखकर ऐसा एहसास होता है मानो पूरा रामराज ही डाक टिकटों पर उतर आया हो। श्री राम जन्मभूमि मंदिर, अयोध्या के भूमि पूजन एवं शिलान्यास कार्यक्रम को अविस्मरणीय बनाने के लिए भी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने  5 अगस्त, 2020 को अयोध्या में ‘श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रतिरूप’ पर आधारित कस्टमाइज्ड डाक टिकट जारी किया था ।

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि डाक विभाग लोगों को अपनी विरासत और संस्कृति से जोड़ने के लिए तमाम डाक टिकटें जारी करता है।  इसी क्रम में ‘श्रीराम जन्मभूमि मंदिर’ से लेकर रामायण के विभिन्न प्रसंगों से जुड़े तमाम डाक टिकटों को भी समाहित किया गया है, ताकि युवा पीढ़ी डाक टिकटों के माध्यम से अपनी संस्कृति से अवगत हो सके। ये डाक टिकट पत्रों पर लगकर विदेशों में भी जायेंगे, जहाँ रामायण की गाथा को लोगों तक फैलाएँगे।

भगवान परशुराम से बड़ा न कोई शिक्षक है, न ही कोई योद्धा

माननीय श्रम कल्याण राज्य मंत्री,
उत्तरप्रदेश सरकार.

भगवान श्री परशुराम का व्यक्तित्व आज भी त्याग, तपस्या, शौर्य, और धर्म के प्रति निष्ठा का प्रतीक है। वे न्याय, संतुलन और शक्ति के आदर्श हैं। वे ब्रह्मा के मानस पुत्र भृगु के वंशज, भगवान श्री विष्णु के छठवें अवतार हैं। वे कैलास लोक में तपस्या कर शस्त्रों का ज्ञान और विद्युद्भि परशु को प्राप्त किया था।भगवान परशुराम से बड़ा न कोई शिक्षक है, न ही कोई योद्धा ही।उनकी जन्मस्थली जानापांव,मध्यप्रदेश है।

भगवान परशुराम के शाश्वत अमर संदेश हैं –

राष्ट्रधर्म तथा न्याय की रक्षा के लिए शस्त्र का प्रयोग शास्त्र सम्मत है।  वेदशास्रानुमोदित यथार्थ जीवनचर्या है। अहंकार का परित्याग व मानवता का परिपालन है।

आसुरी प्रवृत्ति का परित्याग और जीवों पर दया है। आत्मसम्मान की रक्षा, सुरक्षा व सजगता है। धार्मिक प्रवृत्ति का प्रचार व संरक्षण है।परमात्मा व प्रकृति में आस्था और विश्वास है। औरसमस्त विश्व के मंगल की कामना है।

भगवान परशुराम के उपर्युक्त संदेशों के प्रचार-प्रसार के लिए राष्ट्रीय परशुराम परिषद का गठन किया गया। साथ ही साथ भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों में विद्यमान समस्त परशुराम-स्थलों की जानकारी उपलब्ध कराना,उन स्थलों का जीर्णोद्धार करवाना जिससे  श्रद्धालुओं को भगवान श्री परशुराम के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो सके,यह भी राष्ट्रीय परिषद का उद्देश्य है। सच कहा जाय तो अन्याय का विरोधकर और न्याय का संरक्षण करना ही भगवान परशुराम का वास्तविक सन्देश है।

उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु राष्ट्रीय परशुराम परिषद का गठन किया गया जिसकी दो शाखाएं हैं-परशुराम शक्तिवाहिनी तथा परशुराम स्वाभिमान सेना। गौरतलब है कि राष्ट्रीय परशुराम परिषद के संस्थापक संरक्षक एवं मुख्य ट्रस्टी उत्तरप्रदेश सरकार के माननीय श्रम राज्य मंत्री श्री सुनील भराला जी ही हैं।

सनातनी देवी-देवताओं,ऋषियों और धर्मावलंबियों के लिए भारत ही एकमात्र ऐसा देश है  जहां पर मानवता की रक्षा के लिए समय-समय पर विश्व को जीवन जीने की प्रेरणा मिली है और आसुरी शक्तियों को परास्त किया गया है। धर्म की रक्षा के लिए सर्वशक्तिमान ईश्वर जिस भारत की धरती पर अवतार लेते हैं। दुष्ट राक्षसों का नाश करने के लिए भगवान देश, काल और परिस्थिति के अनुसार जन्म लेते हैं, अपनी लीलाएं करते हैं और माया के माध्यम से ही इस मायावी संसार का उद्धार करते हैं।यहां पर उल्लेखनीय बात यह है कि एक ओर भगवान श्री परशुराम ने सभी दुष्टों का नाश किया तो दूसरी ओर भगवान शिव की अनन्य भक्ति, प्रेरणा और शिक्षाओं के माध्यम से उन्होंने संपूर्ण मानव जाति का कल्याण भी किया।

इसीलिए यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी भगवान परशुराम से बड़ा न कोई शिक्षक हुआ न ही कोई योद्धा ही। भगवान परशुराम एकतरफ जहां उच्चतम आदर्शों और जीवन-मूल्यों के संस्थापक थे ,वहीं वे शस्त्र उठाकर अपनी प्रजा की रक्षा के लिए भी तत्पर रहते थे।श्री परशुराम भगवान धाम एक बार फिर समाज के लिए प्रेरणा का केंद्र बने  जहां परशुराम स्वाभिमान सेना के माध्यम से देश की युवा शक्ति को संगठित कर समाज में फैल रहे आतंकवाद को जड़ से खत्म करने का सशक्त प्रयास किया जा रहा है वहीं परशुराम शक्ति वाहिनी के माध्यम से नारी शक्ति को जागृत कर राष्ट्र को नई ऊर्जा, नई शक्ति और नई दृष्टि प्रदान की जा रही है।

राष्ट्रीय परशुराम परिषद का मुख्यालय नई दिल्ली में है जबकि राष्ट्रीय परशुराम परिषद शोध पीठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य श्री कृष्णन जी, चेन्नई के हैं। भगवान परशुराम की जन्मस्थली,कर्मस्थली,ज्ञानस्थली और युद्ध स्थली सम्पूर्ण भारत में कहां- कहां पर है,इसकी भी सही जानकारी भगवान परशुराम के भक्तों तक पहुंचान राष्ट्रीय परशुराम परिषद का मूल उद्देश्य है। गौरतलब है कि पूरे भारत में कुल 56 ऐसी स्थली हैं जहां से भगवान परशुराम का  प्रत्यक्ष तथा परोक्ष संबंध रहा। उनमें से एक स्थली महेंद्रगिरि पर्वत ओड़िशा में भी है जहां पर भगवान परशुराम जी कभी तपस्या किया करते थे और वहां पर आज भी भगवान परशुराम की विधिवत पूजा होती है।

बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि जिस प्रकार  भगवान श्री रामचंद्र जी की जन्म भूमि अयोध्या है, भगवान श्री कृष्ण की जन्म भूमि मथुरा है तो फिर श्री भगवान परशुराम जी की जन्म भूमि कहां पर है-इसे कोई भी बता नहीं पाता है।

यह है भगवान परशुराम की जन्मस्थली जन्मस्थली जानापांव,मध्यप्रदेश जो लोग उज्जैन महाकाल के दर्शन करते हैं, ओंकारेश्वर भगवान के दर्शन करते हैं वे अब मध्यप्रदेश की जानापांव पहाड़ी पर भी पहुंचकर भगवान श्री परशुराम जी के दर्शन कर रहे हैं।

प्रस्तुति -अशोक पाण्डेय , भुवनेश्वर से