Tuesday, May 7, 2024
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लोकसभा चुनावों में धराशायी विपक्ष के टूलकिट आधारित मुद्दे!

स्वतंत्रता के बाद भारत में अभी तक जितने भी लोकसभा या विधानसभा चुनाव संपन्न हुए हैं उनमें पहली बार कांग्रेस के नेतृत्व में बना गठबंधन हर दृष्टि से कमजोर नजर आ रहा है । जब से लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस व इंडी गठबंधन के नेताओं ने प्रचार आरम्भ किया है तभी से कांग्रेस नेता राहुल गांधी व उनके प्रवक्ता मीडिया एजेंसियों व टीवी चैनलो पर बैठकर केवल एक ही बहस कर रहे हैं कि अगर मोदी जी तीसरी बार 400 सीटों के साथ प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो फिर भाजपा संविधान को फाड़ कर फेंक देगी, दोबारा चुनाव नहीं होंगे क्योंकि इनके पास कोई मुद्दा नहीं है मोदी जी को घेरने का। इसके अतिरिक्त मोदी जी और अमित शाह के ए.आई. द्वारा बनाए गए डीप फेक वीडियो या फिर सम्पादित/ डॉक्टर वीडियो को आधार बनाकर झूठ फैला रहे हैं ।

पिछले दिनों अमित शाह के ऐसे ही एक वीडिओ के साथ आरक्षण के सम्बन्ध में दुष्प्रचार किया गया हालांकि अब इस पर दिल्ली पुलिस ने कार्यवही आरम्भ कर दी है और कई लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं । उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस फर्जी वीडियो प्रकरण को कोअपने पक्ष में मोड़कर मुद्दा बनाने मे कुछ हद तक सफलता प्राप्त कर ली है साथ ही वे संविधान और आरक्षण के नाम पर विगत 70 साल में पिछली सरकारों ने जो किया उसे भी बेनकाब कर रहे हैं।

वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार आने के बाद से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ आरक्षण विरोधी होने का दावा कर अभियान चलाया जा रहा है। बिहार में 2015 के विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच गठबंधन हुआ था तब इन दलों ने पांचजन्य साप्ताहिक में प्रकाशित एक साक्षात्कार के आधार पर संघ के खिलाफ विषवमन किया था। बसपा नेत्री मायावती ने एक पुस्तक प्रकाशित करवा के घर घर तक बनवाई थी और बताया गया था कि संघ किस प्रकार से आरक्षण विरोधी है।

अब समय बदल चुका है यह 2024 की बदली हुई भाजपा और संघ है जो दुष्प्रचार के प्रति पूरी तरह सतर्क और सशक्त है। इस बार कांग्रेस नेताओं का यह दांव जमीनी धरातल पर नहीं उतर पा रहा है क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ.मोहन भागवत ने कहा कि संघ हमेशा संविधान सम्मत आरक्षण का पक्षधर रहा है।संघ का मानना है कि जब तक सामाजिक भेदभाव रहेगा या आरक्षण देने के कारण बने रहेंगे तब तक आरक्षण जारी रहे।संघ प्रमुख ने कहा कि उन्होंने एक वीडियो के बारे में सुना है जिसमें कहा गया है कि संघ आरक्षण के खिलाफ है। संघ आरक्षण का कभी विरोधी नहीं रहा है किंतु यह उसके खिलाफ विमर्श स्थापित किया जा रहा है क्योंकि कांग्रेस को लगता है कि संघ व भाजपा को आरक्षण व संविधान विरोधी साबित कर वह चुनावी किला फतह कर सकती है।

राहुल गांधी आजकल भाजपा को संविधान विरोधी साबित करने में दिन-रात एक किये हुए है जबकि वास्तविकता यह है कि अगर आज आम नागरिक अपने संविधान को जान रहा है, पढ़ राहा है और उसके अनुरूप आचरण करना चाह रहा है और उसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास ही हैं क्योंक अब हर वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जा रहा है। भारतीय संविधान को अब वेबसाइट पर आसानी से पढ़ा जा सकता है। नए संसद भवन के उद्घाटन और सेंगोल स्थापना के अवसर पर सदन के सदस्यों को भी संविधान की मूल प्रति दी गई ।

कांग्रेस जो आज संविधान – संविधान का राग अलाप रही है संविधान का सत्यानाश कांग्रेस ने ही किया था। श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता बचाने के लिए संविधान में मूल भूत परिवर्तन करके उसमें धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी जैसे शब्द जोड़कर उसकी आत्मा ही नष्ट कर दी, आपातकाल लगाकर अपनी विकृत तानाशाही मानसिकता का परिचय दिया और मनमर्जी से विपक्षी दलों की प्रदेश सरकारों को गिराया । कांग्रेस के कार्यकाल में संविधान एक परिवार का बंधक हो गया था व एक धर्म विशेष का तुष्टीकरण कर रहा था।

इसी प्रकार कांग्रेस अयोध्या में प्रभु राम की जन्मभूमि और उस पर बन रहे भव्य मंदिर के प्रति भी नकारात्मक रही है।जन जन के आराध्य प्रभु राम को काल्पनिक कहने वाली कांग्रेस ने पहले तो मुद्दे को लटकाने, लटकाने, भटकाने के लिए जी जान लगा दी फिर भी असफल रहने पर अपने मुस्लिम तुष्टीकरण को मजबूती प्रदान कनने के लिए प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार किया। उसके बाद राहुल गांधी व विपक्ष के नेता जनसभाओं में बयान देने लगे कि राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में दलित आदिवासी होने के कारण राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नहीं बुलाया गया। यह भी बयान दिए जाने लग गये कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह में केवल और केवल बड़े उद्योगपति और बड़े घरानो के लोग ही उपस्थित रहे आम जनता को कोई भाव नहीं दिया गया। पिछले दिनों राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अयोध्या में रामलला के दर्शन करके ने राहुल गांधी के इस झूठ का करारा उत्तर दे दिया। राम मंदिर के गर्भगृह में राष्ट्रपति की उपस्थिति ने कांग्रेस नेता के आरोप को बुरी तरह से धो डाला।राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गर्भगृह में पहुंचकर रामलला का विधिवत पूजन किया। आराध्य को निकट से देखकर राष्ट्रपति बहुत भावुक दिखीं और उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने अनुभव भी साझा किए।

इस बीच श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बयान जारी कर राहुल गांधी के सभी आरोपों को मिथ्या बताया। महासचिव चंपत राय ने बताया कि राहुल गांधी को स्मरण कराना चाहूंगा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू एवं पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वय को रामलला के मूल विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर आमंत्रित किया गया था। उन्होंने बताया कि इस अवसर पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग समाज से जुड़े हुए संत, महापुरुष गृहस्थजन औेर जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में यश प्राप्त करने वाले भारत का गौरव बढ़ाने वाले लोगों को भी आमंत्रित किया गया था। मंदिर में सेवारत श्रमिक और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे।

राहुल गांधी अपनी जनसभाओं मे यह आरोप भी लगा रहे हैं कि वहां कोई गरीब, महिला, किसान युवा दर्षन नहीं करने गया अब यह भी झूठ हो गया है क्योकि अब तक दो करेड़ से अधि्े लोग राम मंदिर के दर्षन कर चुके हैं और इसमें समाज के सभी वर्गो की आम जनता ही षामिल है।किंतु कांग्रेस के प्रवक्ता अभी भी बाज नहीं आ रहे हैं और अयोध्या मंदिर व दर्षन कार्यक्रम को इवेंट बताकर उसका अपमान कर रहे है।

इसके अलावा हताश कांग्रेस और विपक्ष बार -बार अपनी पराजय का बहाना खोजने के लिए ईवीएम मशीनों पर ही संदेह पैदा कर रही है किंतु ईवीएम का उसका दांव सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो चुका है अभी जब दो चरणों का मतदान संपन्न हुआ और मत प्रतिशत कम निकलता तब उसके बाद विरोधी दलों ने सोशल मीडिया पर हल्ला मचाना प्रारम्भ कर दिया कि कम मतदान का मतलब होता है मोदी जी हार गये, हार गये। किन्तु जब चार दिन बाद चुनाव आयोग ने मतदान प्रतिशत के सही आंकड़े सार्वजनिक किये तो यही विपक्ष एक बार फिर ईवीएम और चुनाव आयोग पर संदेह करने लग गया। विपक्षी दलों के नेता सोशल मीडिया पर आकर ईवीएम -ईवीएम करने लग गये और एक बार फिर फर्जी वीडियो बनाकर कहने लग गए कि चुनाव आयोग ने खेल कर दिया- खेल कर दिया।

वहीं इतनी राजनैतिक गहमागहमी के बीच एस्ट्राजेनेका ऑक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन कोविषील्ड को लेकर आ रही कुछ खबरों को आधार मानकर विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को खराब करने का अभियान प्रारम्भ कर दिया है और एक टूलकिट की तरह इन आभासी मुददों को बार- बार सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर उठाया जा रहा है । कोल्ड के प्रकरण में जनहित याचिका दायर करने वाले दलाल भी सक्रिय हो गये हैं और सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये हैं जबकि वास्तविकता यह भी है कि कोविषील्ड से नुकसान बहुत ही कम हुआ है जबकि लाभ अधिक हुआ है। कोविषील्ड को लेकर उठ रहे सभी विवाद पूरी तरह से भ्रामक खबरों पर आधारित हैं। विषेषज्ञों का मत है कि हर वैक्सीन के साइड इफेक्ट होते ही हैं। वह वैक्सीन लगाने के 21 दिन या एक महीने के भीतर ही हो सकता था। कोविड काल में दो वर्ष पूर्व लगे इस वैक्सीन से कोई नुकसान नहीं अपितु लाभ ही हुआ है।

आज का विपक्ष पूरी तरह से हताश और निराष हो चुका है और यही कारण है कि वह किसी न किसी प्रकार से अपने झूठे नैरेटिव की नई -नई टूलकिट बनाकर उसे जनता के समक्ष परोस रहा है जिसमें वह खुद एक गहरे दलदल में फंसता जा रहा है।

अभी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लातूर की जनसभा में कहा कि 2014 के पहले एक समय था जब खबर आती थी कि, “सडक पर पड़ी कोई भी लावारिस वस्तु को आप लोग न छुएं यह बम हो सकता है किंतु अब एक ऐसी खबरें आनी बंद हो गयी है” ठीक उसके अगले ही दिन सुबह -सुबह दिल्ली के स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी आती है और तब यही विरोध्ी दल उस पर भी अपनी विकृत राजनीति प्रारम्भ कर देता है किंतु बाद वह फर्जी अफवाह निकलती है हालांकि अभी जांच चल रही है। कुछ ऐसी ही विकृत राजनीति कर्नाटक के एक सैक्स स्कैंडल को लेकर देखने को मिल रही है विरोधी दल उसमें भी प्रधानमंत्री मोदी की छवि को खराब करने की कोषिष कर रहे थे।कर्नाटक के सैक्स स्कैंडल की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उसका ख्ुलासा भाजपा के एक स्थानीय नेता ने ही किया है। इसमें यह भी महत्वपूर्ण है कि कर्नाटक में लव जिहाद की बर्बर घटना होने जाने के बाद जब भाजपा नेहा हत्याकांड को लेकर आगे बढ़ रही थी उसके बाद ही रेंवन्ना प्रकरण का लासा हुआ, आखिर क्यों।

आज की भाजपा अब 2014 के पहले वाली भाजपा नहीं रही कि उसे झूठे नैरेटिव अभियानसे डराया और धमकाया जा सकता है। अब भजपा नेता व कायकता्र बहुत ही सषक्त व हर प्रकार से सतर्क रह रहे हैं । अभी गुजरात के एक सांसद रूपाला के बयान के कारण नैरेटिव चलाया गया कि राजपूत और क्षत्रिय भाजपा से नाराज हो गये हैं किंतु गुजरात में मेदी व भाजपा नेताओं की की जनसभाओं में जिस प्रकार से भीड़ आ रही है उससे लग रहा है कि अब राजपूत व क्षत्रियों की भाजपा से नाराजगी का नैरेटिव भी कुछ हद तक नियंत्रित हो चुका है।

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लोक संस्कृति ने हमारी सभ्यता और परंपराओं को जीवित रखा है

लोक संस्कृति अत्यंत ही व्यापक अवधारणा है! अनेक तत्वों का बोध कराने वाली, जीवन की विविध प्रवृत्तियों से संबंधित है! अतः विविध अर्थो व भावों में उसका प्रयोग होता है! वास्तव में संस्कृति ब्रह्म की भांति अवर्णनीय है! मानव मन की बाह्य प्रवृत्ति मूलक प्रेरणा से जो कुछ विकास हुआ है उसे सभ्यता कहेंगे,और उनकी अंतर्मुखी प्रवृत्तियों से जो कुछ बना है उसे संस्कृति कहेंगे!

लोक संस्कृति दो शब्दों के योग से जानी जाती है “लोक” और “संस्कृति ” यानी लोक की संस्कृति! लोक संस्कृति, लोकगीतों लोक कथाओं तथा लोक साहित्य का वह संचित कोष है जिसमें ग्रामीण अंचल के हर उस चरित्र की आवाज है, जो दैनिक दिनचर्या में भूमिका निभाता है! पितृसत्तात्मक सत्ता से लेकर महिलाओं की स्थिति तक, राजा- महाराजाओं के शौर्य के यशोगान और चरित्र की प्रेरणाओं से लेकर भीरु, कायरों की निंदा तक, विषयों को बेबाक एवं बेधड़क भाव से गीतों में सहेजे हुए है!

कहना गलत ना होगा कि’ लोकगीतों का इतिहास यदि विशाल है, तो इसका श्रेय भी ग्रामीण अंचल की महिलाओं को जाता है जिन्होंने गीतों की रचना की, विभिन्न अवसरों पर उन्हें गाए और अपने आने वाली पीढियां को हस्तांतरित कर दिए!’ इन लोकगीतों में से ज्यादातर गीतों के वास्तविक रचनाकार किसी को पता नहीं है लेकिन उनके भाव बताते हैं कि उनमें महिलाओं ने अपना कलेजा निकाल कर रख दिया है! भाव की जो अभिव्यक्ति उन गीतों में है जो बड़े-बड़े संगीतज्ञों के नहीं होते! गीतों के लिखने से लेकर गाए जाने तक, भावों की अभिव्यक्ति इतनी मनोरम और वास्तविक होती है की सुनते ही रोम- रोम पुलकित हो उठते हैं! इतना ही नहीं, इन गीतों में समाज, धर्म, राष्ट्र, पितरों, पूर्वजों, तथा देवताओं के प्रति कर्तव्य-बोध भी प्रचुर मात्रा में भरा हुआ दिखाई पड़ता है! यही कारण है कि हमारी संस्कृतियों कभी गुलाम नहीं हुईं! भारत के एकता तथा अखंडता की जब भी बात की जाए, सांस्कृतिक चेतना मेरुदंड की भांति दिखाई देती है!

लोक संस्कृति कभी भी शिष्ट समाज की आश्रित नहीं रही है उल्टे शिष्ट समाज लोकसंस्कृति से प्रेरणा अवश्य ही प्राप्त करता रहा है! लोक संस्कृति की एक रूपरेखा हमें भावाभिव्यक्ति की शैलियों में भी मिलती है, जिसके द्वारा लोक मानस की मंगल भावना से ओत -प्रोत होना सिद्ध होता है! लोक में व्यक्तिवादी कथनों से अभिव्यक्ति नहीं होती बल्कि सदैव समूह की बात की जाती है! वहां कोई अपरिचित नहीं होता! सभी समुदाय वाले एक रिश्ते या संबंधों में अभिव्यक्त होते हैं इसीलिए समूह के कल्याण की बातें करते हैं!

लोक से अभिप्राय, उस सर्वसाधारण जनता से है,जिसकी व्यक्तिगत पहचान न होकर सामूहिक पहचान है! दिन-हीन, दलित, शोषित ,वंचित, पिछड़ी, जंगली जातियां, कोल -भील, गोंड, संथाल, नाग ,कीरात, हुड, शक, यवन, खस ,पुक्कस आदि समस्त समुदाय का मिला-जुला रूप “लोक ” कहलाता है और इन सभी समुदायों की मिली- जुली संस्कृति “लोक संस्कृति “कहलाती है ! यद्यपि देखने में सबके रहन-सहन, वेशभूषा, बोलचाल, खानपान, कला-कौशल आदि सब कुछ अलग-अलग दिखाई देते हैं किंतु एक ऐसा सूत्र है जिससे यह सभी एक माला में पिरोई हुई मणियों की भांति दिखाई देते हैं ! जो सभी एकजुट है,इन्हें अलग करना संभव नहीं है! इनकी पहचान भी संयुक्त रूप से होती है! इन सभी समुदायों की मिली-जुली संस्कृति लोक संस्कृति है!

लोक संस्कृति, लोक कल्याण की बात करती है,मानव कल्याण की नहीं !लोक उत्थान की बात करती है, व्यक्ति के विकास की नहीं! यही कारण है की लोकमानस मांगलिक भावना की बात करता है! वह दीपक के बुझने की कल्पना से ही सिहर उठता है इसीलिए वह दीपक बुझाने की बात नहीं करता बल्कि “दीपक बढ़ाने” को कहता है! इसी प्रकार वह दुकान बंद करने की कल्पना से सहम जाता है इसीलिए “दुकान बढ़ाने” को कहता है!

लोक जीवन की जैसी नैसर्गिक सरलतम अनुभूतिमई, अभिव्यंजना का चित्र लोकगीतों व लोक कथाओं में मिलता है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है! विडंबना यह है कि लोक संस्कृति का बहुतायत पक्ष आज भी अलिखित( मौखिक) ही है! यद्यपि की विभिन्न लोकगीतों, लोक कथाओं, लोक श्रुतियों को संचित करने का प्रयास आज किया जा रहा है, फिर भी ‘लोक साहित्य’ अभी भी न के बराबर या अल्प मात्रा में ही प्राप्त होता है!लोक साहित्य में लोक मानव का हृदय बोलता है! प्रकृति स्वयं गाती है! भंवरे गुनगुनाते हैं! चिड़ियां चहचहाती हैं! गायें रम्भाती हैं ! इस प्रकार लोक जीवन के पग- पग पर लोक संस्कृति के दर्शन होते हैं! इसीलिए लोक साहित्य भी उतना ही पुराना है, जितना मानव का इतिहास!

जन जीवन की प्रत्येक अवस्था ,हर वर्ग ,हर समय और संपूर्ण प्रकृति , लोक साहित्य में सब कुछ समाहित है ! अतः आज लोक संस्कृतियों का चित्रण, श्रुतियों और कथाओं को, परंपराओं और रीति रिवाज को लिपिबद्ध करने की परम आवश्यकता है ! आने वाली पीढ़ी के लिए वास्तविक भारतीयता का बोध कराने के लिए लोक में व्याप्त त्याग की भावना और सामूहिक उत्थान की संस्कृतियों का प्रतिदर्श दिखाने की आवश्यकता है!लोक कथाओं में वर्णित एकजुटता,मानवप्रेम, त्याग और बंधुत्व का रूप प्रदान करने की अति आवश्यकता है जो राष्ट्रीय एकीकरण के प्राण तत्व है!लोक संस्कृतियों का वास्तविक दर्शन लोक में जाकर ही संभव है! उन्हें देखकर, सुनकर, समझकर सीखने की आवश्यकता है जो किताबों में नहीं देखी जा सकती है!

डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी एवं डॉक्टर सत्येंद्र ने लोक संस्कृतियों पर अपने-अपने विचार प्रदान किए हैं जिसका सर यह है कि-“” लोक संस्कृति, वह संस्कृति है जो अनुभवों, श्रुतियों ,परंपराओं तथा रीति-रिवाजों से चलती है! इसके ज्ञान का आधार पोथी नहीं होती! भारतीय लोक संस्कृति की आत्मा भारतीय साधारण जनता है ,जो नगरों से दूर गांवों तथा वन- प्रांतों में निवास करती है! ”

(लेखिका अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ, नई दिल्ली से जुड़ी हैं।)

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हमारे इतिहास से ये पुस्तकें कहाँ गायब हो गई 

भारत में कई सदियों पहले एक किताब (मेरुतुंगाचार्य रचित प्रबन्ध चिन्तामणि) आई थी जिसमें महान लोगों के बारे में कई हस्तलिखित कहानियाँ थी। कोई कहता है किताब १३१० के दशक में आई तो कोई उसे १३६० के दशक का मानता है, १३१० वाले ज़्यादा लोग हैं। खैर मुद्दा वो नहीं है, किताब का १४ वीं सदी का होना ही काफी है। उसमें राजा भोज पर भी कई कहानियाँ है जिसमें से एक ये है, जिसे थोड़ा ध्यान से पढ़ा जाना चाहिए।

एक रात अचानक आँख खुल जाने से राजा भोज ने देखा कि चाँदनी के छिटकने से बड़ा ही सुहावना समय हो रहा है, और सामने ही आकाश में स्थित चन्द्रमा देखने वाले के मन मे आल्हाद उत्पन्न कर रहा है। यह देख राजा की आँखें उस तरफ अटक गई और थोड़ी देर में उन्होने यह श्लोकार्ध पढ़ा –
यदेतइन्द्रान्तर्जलदलवलीलां प्रकुरुते।
तदाचष्टे लेाकः शशक इति नो सां प्रति यथा॥

अर्थात् – “चाँद के भीतर जो यह बादल का टुकड़ा सा दिखाई देता है लोग उसे शशक (खरगोश) कहते हैं। परन्तु मैं ऐसा नहीं समझता।”
संयोग से इसके पहले ही एक विद्वान् चोर राज महल मे घुस आया था और राजा के जाग जाने के कारण एक तरफ छिपा बैठा था। जब भोज ने दो तीन बार इसी श्लोकार्ध को पढ़ा और अगला श्लोकार्ध उनके मुँह से न निकला तब उस चोर से चुप न रहा गया और उसने आगे का श्लोकार्ध कह कर उस श्लोक की पूर्ति इस प्रकार कर दी-
अहं त्विन्दु मन्ये त्वरिविरहाक्रान्ततरुणो।
कटाक्षोल्कापातव्रणशतकलङ्काङ्किततनुम्॥
अर्थात् – “मै तो समझता हूं कि तुम्हारे शत्रुओ़ की विरहिणी स्त्रियो के कटाक्ष रूपी उल्काओं के पड़ने से चन्द्रमा के शरीर में सैकड़ों घाव हो गए हैं और ये उसी के दाग़ हैं।”

अपने पकड़े जाने की परवाह न करने वाले उस चोर के चमत्कार पूर्ण कथन को सुनकर भोज बहुत खुश हुये और सावधानी के तौर पर उस चोर को प्रातःकाल तक के लिये एक कोठरी मे बंद करवा दिया। परंतु उस समय विद्वता की पूछ परख ज्यादा थी सो अगले दिन प्रातः उसे भारी पुरस्कार देकर विदा किया गया।

लगभग 250 साल के लंबे अंतराल के बाद, गेलेलियों ने ३० नवंबर सन १६०९ को पहली बार टेलिस्कोप से चंद्रमा देखा और अपनी डायरी में नोट किया कि, “चंद्रमा की सतह चिकनी नहीं है जैसी कि मानी जाती थी (क्योंकि केवल आंखो से वह ऐसी ही दिखती है), बल्कि असमतल और ऊबड़-खाबड़ है।” वहाँ उन्हे पहाड़ियाँ और गढ्ढों जैसी रचनाएँ नज़र आई थी। उन्होने टेलिस्कोप से खुद के देखे चंद्रमा एक स्केच भी अपनी डायरी में बनाया।

कहानी का सार बस इतना है कि जिस समय चर्च यह मानता था कि रात का आसमान एक काली चादर है, जिसमें छेद हो गए और उसमे से स्वर्ग का प्रकाश तारों के रूप में दिख रहा है, उस समय भारत के एक चोर को भी ये पता था कि चंद्रमा की सतह समतल नहीं है और उस पर जो दाग हैं वो उल्काओं के गिरने से बने हैं। बात खतम।

अब ये अलग बात है कि स्वयंभू वामपंथी इतिहासकारों, सेक्युलरता के घातक रोग से पीड़ित लिबरलों, और खुद पर ही शर्मिंदा कुछ भारतीय गोरों को यह बात आज भी नहीं पता, क्योंकि ना तो उन्हे इतिहास का अध्ययन करना आता है और ना ही उनमें इतनी क्षमता ही है।

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इतिहास की किताबों को स्वाहा करो… सब मनगढ़ंत पढ़ा रहे हैं

विश्वनाथ सिंह सिकरवार

इतिहासकारों ने हमारे इतिहास को केवल 200 वर्षों में ही समेट कर रख दिया है जबकि उन्होंने हमें कभी नहीं बताया कि एक राजा ऐसा भी था जिसकी सेना में महिलाएं कमांडर थी और जिसने अपनी विशाल नौकाओं वाली शक्तिशाली नौसेना की मदद से पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया पर कब्जा कर लिया था

राजेन्द्र चोल प्रथम (1012-1044) — वामपंथी इतिहासकारों के साजिशों की भेंट चढ़ने वाला हमारे इतिहास का एक महान शासक

राजेन्द्र चोल, चोल राजवंश के सबसे महान शासक थे उन्होंने अपनी विजयों द्वारा चोल सम्राज्य का विस्तार कर उसे दक्षिण भारत का सर्व शक्तिशाली साम्राज्य बना दिया था । राजेंद्र चोल एकमात्र राजा थे जिन्होंने न केवल अन्य स्थानों पर अपनी विजय का पताका लहराया बल्कि उन स्थानों पर वास्तुकला और प्रशासन की अद्भुत प्रणाली का प्रसार किया जहां उन्होंने शासन किया।

सन 1017 ईसवी में हमारे इस शक्तिशाली नायक ने सिंहल (श्रीलंका) के प्रतापी राजा महेंद्र पंचम को बुरी तरह परास्त करके सम्पूर्ण सिंहल(श्रीलंका) पर कब्जा कर लिया था ।

जहाँ कई महान राजा नदियों के मुहाने पर पहुँचकर अपनी सेना के साथ आगे बढ़ पाने का हिम्मत नहीं कर पाते थे वहीं राजेन्द्र चोल ने एक शक्तिशाली नेवी का गठन किया था जिसकी सहायता से वह अपने मार्ग में आने वाली हर विशाल नदी को आसानी से पार कर लेते थे ।

अपनी इसी नौसेना की बदौलत राजेन्द्र चोल ने अरब सागर स्थित सदिमन्तीक नामक द्वीप पर भी अपना अधिकार स्थापित किया यहाँ तक कि अपने घातक युद्धपोतों की सहायता से कई राजाओं की सेना को तबाह करते हुए राजेन्द्र प्रथम ने जावा, सुमात्रा एवं मालदीव पर अधिकार कर लिया था ।

एक विशाल भूभाग पर अपना साम्राज्य स्थापित करने के बाद उन्होंने (गंगई कोड़ा) चोलपुरम नामक एक नई राजधानी का निर्माण किया था, वहाँ उन्होंने एक विशाल कृत्रिम झील का निर्माण कराया जो सोलह मील लंबी तथा तीन मील चौड़ी थी। यह झील भारत के इतिहास में मानव निर्मित सबसे बड़ी झीलों में से एक मानी जाती है। उस झील में बंगाल से गंगा का जल लाकर डाला गया।

एक तरफ आगरा मे शांहजहाँ के शासन के दौरान भीषण अकाल के बावजूद इतिहासकार उसकी प्रशंसा में इतिहास के पन्नों को भरने में लगे रहे दूसरी तरफ जिस राजेन्द्र चोल के अधीन दक्षिण भारत एशिया में समृद्धि और वैभव का प्रतिनिधित्व कर रहा था उसके बारे में हमारे इतिहास की किताबें एक साजिश के तहत खामोश रहीं ।

यहाँ तक कि बंगाल की खाड़ी जो कि दुनिया की सबसे बड़ी खाड़ी है इसका प्राचीन नाम चोला झील था, यह सदियों तक अपने नाम से चोल की महानता को बयाँ करती रही, बाद में यह कलिंग सागर में बदल दिया गया गया और फिर ब्रिटिशर्स द्वारा बंगाल की खाड़ी में परिवर्तित कर दिया गया, वाम इतिहासकारों ने हमेशा हमारे नायकों के इतिहास को नष्ट करने की साजिश रची और हमारे मंदिरों और संस्कृति को नष्ट करने वाले मुगल आक्रांताओं के बारे में पढ़ाया, राजेन्द्र चोल की सेना में कमांडर के पद पर कुछ महिलाएं भी थी, सदियों बाद मुगलों का एक ऐसा वक्त आया जब महिलाएं पर्दे के पीछे चली गईं ।

हममें से बहुत से लोगों को चोल राजवंश और मातृभूमि के लिए उनके योगदान के बारे में नहीं पता है। मैंने इतिहास के अलग-अलग स्रोतों से अपने इस महान नायक के बारे में जाने की कोशिश की और मुझे महसूस हुआ कि अपने इस स्वर्णिम इतिहास के बारे में आपको भी जानने का हक है।

साभार – https://www.facebook.com/share/p/oiZkDpdpnFx8tjq3/?mibextid=xfxF2i

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रज़ाकार क्यों देखनी चाहिए

पवन तिवारी

रज़ाकार! गजवा ए हिन्द की परिभाषा पढ़नी है तो इस फ़िल्म को देखें। इसे कई टुकड़ियों में शुरू किया गया था। निजाम हैदराबाद को तुर्किस्तान बनाने निकला था और इसके लिए अपनी सेना रज़ाकार से जेहाद शुरू करवाया और इसके मोटो में ‘क्रूरता तरीक़ा, राक्षसत्व आनंद और निजाम हथियार था.

लेखक-निर्देशक वाई सत्यनारायण ने हिम्मत करके इतिहास को चीर कर, उसमें दफ़्न हैदराबाद के दर्द को दर्शकों के सामने रखा है। ऐसे कंटेंट को सिनेमाई स्वरूप देने के लिए बहुत धैर्य चाहिए। बाकी इतिहास कतई सच बताने की स्थिति में नहीं रहा है, हैदराबाद ने हिंदुओं पर कितनी निर्ममता देखी। लेकिन बतलाने की हालत में न था, इसलिए फ़िल्म में खुलकर बताया गया है स्क्रीन प्ले में कई दृश्य इतने भयावक है कि आँखें बंद हो चली और रूह काँपने की स्थिति में थी। फिर भी सच से मुँह मोड़ना या कहे आँखें मुदना भागना कहलाता है।

छोटी बच्ची रोये नहीं, इसलिए माँ उसे देसी दारू पिला देती है तो बुजुर्ग को भूख लगी, नाले की मिट्टी खा लिया।

निजाम ने पूरा सिस्टम बैठा रखा था।

बग़ावत करने वालों के गाँव के गाँव जला दिये जाते और माँ-बहनें, बेटियों के साथ बलात्कार, हत्या की जाती। भय और ख़ौफ था कि आपने धर्म परिवर्तन कर लिया है तो सुरक्षित हो और किसी भी काफिर को मार-पीट, लूट, बलात्कार कर सकते है। कोई दखल दें तो सज़ा में सिर्फ मौत थी।

मैं कहता हूँ सत्यनारायण की फ़िल्म को द कश्मीर फ़ाइल्स प्रीक्वल के तौर पर लें। बड़े स्केल पर नरसंहार हुआ था। संयोग कहे या प्रयोग कश्मीर और हैदराबाद के मुद्दें कमोबेश एक ही टाइम लाइन पर थे, फर्क है कि घाटी में जेहाद की आग लोकतांत्रिक व्यवस्था के बाद पहुँची थी और हैदराबाद में राजशाही में निजाम खुलेआम कर रहा था।

कोमाराम भीम ने निज़ाम की खिलाफत में जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ी और नारा ए तकबीर के सामने अपना उद्घोष दिया था। इन्होंने दोहरे मोर्चे पर ब्रितानी और निजाम से लड़ाई लड़ी।

अभिनेता राज अर्जुन के साथ रिजवी को देखेंगे तो नफरत करने लगेंगे, कलाकार ने अपने किरदार को इतनी गहराई से उतरने दिया है और फिर बाहर निकाला है। हाव-भाव एकदम घिनौने है। बाकी सब ठीक है।

बहुतेरे आयेंगे और कहेंगे कि नैरेटिव और प्रॉपगैंडा दिखलाती फ़िल्म है, क्योंकि उन्हें कश्मीर में भी ऐसा ही दिखा था।

स्वतंत्र भारत में घटनाक्रम को समझें।

धर्म के नाम पर देश विभाजित कर दिया गया तिस पर दूसरी रियासतों में आग लगाई गई और भारत में साजिशन ऐसा नेतृत्व चुना, जिसे खोखली नैतिकता की ढपली बजाने की ट्रेनिंग दी। विश्वास न है तो कश्मीर का मुद्दा आजतक विवादित है, जबकि सरदार ने 562 रियासतों से भारत बनाया और हैदराबाद को भी सेना के दम पर भारत में रखा। निजाम की हेकड़ी और औक़ात भी बतलाई। फिल्म के बिनाह पर समझे तो इसमें भी नैतिकता की आड़ लगाई गई लेकिन सरदार न माने और परिणाम में सफलता लेने की ठान चुके थे।

ब्रितानियों ने ऐसा षड्यंत्र रचा कि भारत को शक्तिविहीन नेतृत्व मिले, सख्त फैसले लेने वाला मिल जाता तो उनका काम खराब हो जाता। खैर

सभी ने रज़ाकार देखनी चाहिए।

इतिहास तो कभी न बताएगा, फ़िल्म बता रही है तो देखिए और सोचिए ऐसी कितनी घटनाएँ दबाई गई है।

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जीवन के हर रंग में रंगी डॉ. रौनक राशिद खान की सदाबहार रचनाएं….

मैं बहू मंजिल परिसर से लगी झोपड़ी हूं
कालांतर से इसी हालत में खड़ी हूं
यह परिसर की धरा धनु के पुरखों का जर था
किंतु जमीदार का पुरखो पर आंशिक कर था
चक्रवृद्धि ब्याज में धरा बिक गई थी सारी
बची विरासत में यही एक झोपड़ी बेचारी
यह बहू मंजिल परिसर शहर की शान है

इस रचना में एक झोपड़ी की आवाज़ को कथात्मक काव्य शैली में लिखा गया है। बहू मंजिली इमारतों के बीच खड़ी झोपड़ी पीढ़ी दर पीढ़ी धनु की निशानी के रूप में अपनी कहानी कहती है। झोपड़ी को लेकर संवेदनशीलता के साथ सृजित रचना में कई मानवीय पहलु एक साथ उजागर होना रचनाकार के काव्य शिल्प कौशल का ही कमाल है। “झोपड़ी की अस्मिता” कविता को आगे बढ़ाती हुई लिखती हैं…

यहां प्रवेश पाता वही जो महा धनवान है
अमीरी गरीबी की संयुक्त यह कहानी है
महलों से सटके खड़ी झोपड़ी पुरानी है
मखमल में टाटा के पेबंद सी यह दिखती है
यह राहगीरों की दृष्टि मैं बड़ी खलती है
इसे हटाने के मंसूबे रोज बनते हैं
गरीब धनु के सीने को रोज छलते हैं
मंत्री नेता सभी धनु को समझाते हैं
पांच पांच प्लॉट के नक्शे इसे थमाते हैं
गरीब रो रो के सबसे बया यह करता है
यह तो अस्मिता है इसे कौन बचा करता है

सामाजिक सरोकार के साथ-साथ जीवन के हर रंग में लिखने वाली डॉ. रौनक राशिद खान एक ऐसी कवियित्री हैं जिनकी रचनाओं में मानव जीवन से जुड़े कई प्रसंगों की सहज, सरल परंतु प्रभावी अभिव्यक्ति दिखाई देती है।इनकी रचनाएं कोई कहानी भी कहती है, आनंदित भी करती हैं और संदेश भी देती हैं। रचनाएं किसी रस विशेष के बंधन में न बंध कर समरस भाव लिए है।

इन्होंने गद्य और पद्य विधाओं स्वतंत्र हो कर मुक्त भाव से लेखन किया है। लेखन ऐसा की पढ़ने और सुनने वाले के दिल सीधा छू लेता है और आनंदित करने के साथ – साथ उद्वेलित भी करता है। दशा भी है और दिशा भी । कविताएं राज,समाज और शिक्षा से जुड़ी हुई है तो गजलें जीवन के हर पहलू को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं। ये अरबी-फारसी के नामचीन साहित्यकार शेख सादी से प्रभावित हैं। उनकी दुर्लभ पुस्तकें हैदराबाद से खरीद कर लाई। इनमें एक नसीहत, एक सामाजिक और राज दरबारों के बीच होने वाली गुफ्तगू के बारे में तफसील से जानकारी मिलती है । नसीहत और उनका अनुवाद ये अभी भी कर रही हैं। आप ग़ज़ल में रासमुल खत लिखने में सिद्धहस्त हैं। प्रभावी और भावपूर्ण लेखन की बानगी इश्क मोहब्बत में कुछ इस तरह झलकती है….
हमारी तरफ जब वह कम देखते हैं
तब आईने में खुद को हम देखते हैं ।
हिंदी में कुछ इस तरह……..
ओ मन में तेरी प्रीत जब से मन में समाई है
खुशियों से मन झूम रहा है जब से तेरी याद आई है
तेरे दरस के प्यासे नैना नींद इन्हें कब आई है
सपने लिए खड़ी रैना है पर आंखें पथराई है
कंचन कंचन काया मेरी श्याम दे है तूने पाई है
मैं बन राधा डोल रही जैसे तू किशन कन्हाई है।
राज और सियासत पर इनका कटाक्ष
सियासत पर कटाक्ष का यह शेर देखिए……….
यह जो फुटपाथ पर सोए हैं ओढ़ कर बैनर
चुनावी दौर में इनका भी जमाना होगा ।

उम्र के पड़ाव को इनकी दृष्टि और कल्पना में देखिए , क्या खूब लिखती हैं…
उम्र की दहलीज पर लुढ़कने लगती है आशाएं
बढ़ने लगता है अवमाननाओं का भंडार
हृदय से निकलती है एक चिंघाड़
शायद मैं निगोड़ा हो गया हूं
यकीनन अब मैं बूढ़ा हो गया हूं ।
हिंदी की इस छोटी सी अभिव्यक्ति को ये गजल में कुछ इस तरह बयां करती हैं………
सूने घर के यही रखवाले हैं
कहीं मिट्टी कहीं पर जाले हैं
खुदा भी मेहरबान है उन पर
जिसने घर में बुजुर्ग पाले हैं।
हिंदी, उर्दू के साथ राजस्थानी भाषा में भी कलम चलाई है। देवर के नेह को लेकर लिखती हैं……………
म्हारा देवरिया की करे मसू लाड़
मू काई करूं सांवरिया
छोटे-छोटे दिन और बड़ी-बड़ी रतिया बीत न जाए री
सखी री मारा मन घबराए री।

दिल के सवाल पर लिखी इनकी एक ग़ज़ल की ह्रदय स्पर्शी बानगी देखिए….
दिल ने ऐसा सवाल रखा है
उनको उलझन में डाल रखा है
इस जमाने में यह तो बतलाओ
किसने किसका ख्याल रखा है
उलझनो के नए मसाइल ने
वक्त ने सबको डाल रखा है
दिल है जख्मी मगर खुशी की नकाब
सबने चेहरों पर डाल रखा है
भूल कर दर्द अपने माजी के
हाल अपना खुशहाल रखा है
यह अमानत है आपकी रौनक
इसलिए दिल संभाल रखा है
तुम मिलोगे दुआ एक ही रौनक
हमने सिक्का उछाल रखा है.

दिल की बात के साथ अनेक सवाल लिए एक और ग़ज़ल का अंदाजे बयां दृष्टवय है….
हकीकत है झूठी कहानी नहीं है
समंदर में पीने का पानी नहीं है
हसीनों की दुनिया में लाखों हंसी है
मगर उसका अब तक तो सानी नहीं है
हवाओं का रुख तो पलट देंगे हम तो
अभी काम करने की ठानी नहीं है
बैठे हैं शाखों पर गुमसुम परिंदे
गर्मी में पीने का पानी नहीं है
उसे ढूंढ कर कोई लाएं भी कैसे
की जिसकी भी कोई निशानी नहीं है
मोहब्बत में बेताबियों का है आलम
कभी रात भर नींद आनी नहीं है
तेरी साफ गोई है पहचान रौनक
तभी तो तू महफिल की रानी नहीं है.

रंगों में प्यार के रंग, मिलने की अकुलाहट, मिलने का वादा पूरा करने का इजहार, रंगों से नफरत को दूर कर, उल्फत के फूल खिलाने, हजारों रंग की जगह दुनिया में मोहब्बत का एक रंग हो के गहरे भावों को पिरोया है ” होली मिलन के रंग” कविता में कुछ इस तरह……….
करो वादा कोई पूरा किया जो यार होली में
जहां भी हो चले आओ सनम इस बार होली में
मिलन के रंग में रंग जाए दुनिया दूर हो नफरत
खिला दो फूल उल्फत के बस अबकी बार होली में
जमाने में बहुत कुछ अदला बदली होती रहती है
बदल दो अपना तुम व्यवहार अबकी बार होली में
मोहब्बत ही मोहब्बत हो शिकायत दूर हो सब की
सभी रंग जाए एक रंग में ना हो तकरार होली
हजारों रंग का एक रंग हो दुनिया में अब रौनक
करें हम हम प्यार की बौछार मिलकर यार होली में।
कवियित्री के वृहत सृजन संसार के ये कतिपय रंगबिरंगे सुगंधित पुष्प तो बानगी मात्र हैं।

नि:संदेह इनकी रचनाएं मनभावन हैं, अर्थपूर्ण है और संदेश परक हैं। यात्रा विवरण पर प्रकाशित पुस्तक “खाब अपने-अपने”, “क्या कहूं अपनी ड्रेस कर लूं प्रेस” बाल कविता संग्रह, “चकमक चांदनी” बाल कविता संग्रह, “देखा जो कनखियों से” इनकी यादगार कृतियां हैं। बाल कहानी बुकलेट में “कुएं का मेंढक” राजस्थान साहित्य अकादमी में चयनित है। इनके लिखे राजस्थानी भाषा के गीतों का चित्रांकन भी किया गया है।

परिचय
डॉक्टर रौनक राशिद खान vs गद्य-पद्य में कविता, गज़ल और नाटकों में अपनी पहचान बनाई है। देश की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में आपकी रचनाओं का नियमित प्रकाशन होता है। आकाशवाणी केंद्र से कहानी एवं गजलों कविताओं का प्रसारण किया जाता है। दूरदर्शन और रेडियो प्रोग्राम साहित्यिक प्रोग्राम कोटा का राष्ट्रीय दशहरा मेला, मुशायरा का संचालन, साहित्यिक वार्ताएं, काव्य गोष्ठियों में संचालन और नाटकों में लेखन तथा निर्देशन किया है। इनके सृजन और शैक्षिक उत्कृष्ट सेवाओं के लिए प्रशासन, शिक्षा विभाग और कई संस्थाओं द्वारा समय-समय पर पुरस्कृत और सम्मानित किया गया है।

चलते – चलते……………
शहर ही से नहीं दुनिया से चले जाएंगे
आप अगर हमसे न मिलने की कसम खाएंगे
तुम जो आहिस्ता चल गर्द में खो जाओगे
काफिले वाले बहुत दूर निकल जाएंगे
यह सियासत का जमाना है जरा बचके चलो
तुमको अपने यहां बेगाने नजर आएंगे
उनकी महफिल से चले आए मगर सोचते हैं
दिले बेताब आपको अब किस तरह समझाएंगे

संपर्क :
18,वैभव नगर,कोयल बाग,
पुलिस लाइन रोड, बजरंग नगर,
कोटा (राजस्थान)

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हिंदुत्व के स्टार प्रचारक बने योगी आदित्यनाथ

लोकसभा चुनाव के दो चरण का मतदान पूरा हो चुका है और उनकी रिपोर्ट के आधार पर सभी राजनैतिक दलों ने अगले चरण के मतदान के लिए अपनी सारी ताकत झोंक दी है। वर्तमान राजनैतिक परिदृष्य में सभी दलों के स्टार प्रचारक अपनी विचारधारा के प्रचार में जुटे हैं। 2024 लोकसभा चुनावों में सबसे अधिक स्टार प्रचारक भारतीय जनता पार्टी के पास हैं जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं, “अबकी बार 400 पार के नारे” के साथ संपूर्ण भारत में आक्रामक प्रचार में जुटे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बाद जो स्टार प्रचारक सबसे अधिक चर्चा में है वह हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ न केवल उत्तर प्रदेश में ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं अपितु दूसरे राज्यों में भी उसी तरह प्रचार कर रहे हैं। अब तक 24 दिनों में वो सात राज्यो में 25 रैलियां व दो रोड शो कर चुके हैं। योगी जी की मांग सबसे अधिक उन सीटों व क्षेत्रों में है जहां राजपूत व क्षत्रिय मतदाता अधिक हैं तथा जहां ध्रुवीकरण की संभावना अधिक है वह उन स्थानों पर भी रैलियां कर रहे हे जो हिंसा से प्रभावित रहे हैं। दूसरे राज्यों में योगी जी की लोकप्रियता बुलडोजर बाबा के रूप में भी हो रही है।

योगी जी अब तक पश्चिम बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ जम्मू-कश्मीर और बिहार में रैलियां कर चुके हैं। बंगाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चार रैलियां की हैं जो मुस्लिम बहुल और हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में हुई है।

योगी जी ने आसनसोल ल में भी रैली की जहां भाजपा दो बार जीत चुकी है। बंगाल एक ऐसा राज्य है जहां के कटटरपंथी मौलाना मुख्मयंत्री योगी जी को देख लेने की धमकी तक दे चुके हैं किंतु वह बंगाल जाकर और अधिक आक्रामक होकर हिंदुत्व का प्रचार प्रसार कर रहे हैं। वह अपनी जनसभा में बंगाल में रामनवमी पर हुई हिंसा की याद दिलाते हुए कहते है कि “अगर कोई यूपी में रामनवमी के अवसर पर दंगा करता है तो उसे उल्टा लटकाकर ठीक कर दिया जाता है”। उन्होंने बंगाल में योगी जी ने साफ सन्देश दिया कि मोदी जी की तीसरी बार सरकार आने पर रामनवमी और वैषाखी के दंगाईयों और सन्देशखाली के जिम्मेदार गुंडों को सजा दिलाने का काम करेंगे।

छत्तीसगढ़ में योगी जी ने तीन रैलियां की हैं जिसमें दो सीटें कांग्रेस व एक भाजपा की रही है। नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र में योगी जी का 21 बुलडोजर से बेहद भव्य स्वागत किया गया था जो बहुत चर्चित रहा था। यहां पर उन्होंने लव जिहाद व नक्सलवाद के साथ कांग्रेस के आंतरिक समझौते का मुद्दा मुखरता के साथ उठाया।

मुख्यमंत्री योगी ने उत्तराखंड की 5 लोकसभा सीटों के लिए 4 रैलियां की और उसमें उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश हो या उत्तराखंड या देश को कोई भी कोना जो कानून नहीं मानेगा उसका राम नाम सत्य ही होगा। कुछ लोगों को लगता था कि अपराध करेंगे तो जेल चले जाएंगे लेकिन जेल जाने से पहले ही हम जहन्नुम में पहुंचा देते हैं।

राजस्थान में भी उन्होंने चार रैलियां व 2 रोड शो किये जिनमें भारी भीड़ आयी। राजस्थान में उन्होंने देश की सुरक्षा का मुददा जोर शोर से उठाया और कहा कि कांग्रेस देश की सुरक्षा व आस्था के साथ खिलवाड़ कर रही है। योगी का कहना है कि आज देश में कहीं पर पटाखा भी फटता है तो सबसे पहले पाकिस्तान सफाई देता है कि हमारा उसमें कोई हाथ नहीं है क्योंकि उसे पता है कि उसका क्या परिणाम होगा क्योकि यह बदला हुआ भारत है। राजस्थान में योगी ने राजपूत, जाट व मीणा समाज के बाहुल्य क्षेत्रों तथा जहां पर हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण भी आसानी से हो जाता है वहां पर रैलियां कर समां बांधा है। इसी प्रकार महाराष्ट्र में भी वह 6 रैलियां कर चुके हैं। अभी तक बिहार में केवल दो रैलियां ही हो पाई है किंतु वहां पर अभी उनकी और रैलियां प्रस्तावित हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 400 पार के नारे के साथ अबकी बार यूपी में 80 की 80 सीटों पर कमल खिलाने के संकल्पवान हैं और वह इसके लिए काफी कड़ी महनत भी कर रहे हैं अब उस मेहनत का उन्हें कितना प्रतिफल मिलता है यह तो 4 जून 2024 की मतगणना के दिन ही तय हो सकेगा। यूपी में भी योगी 75 से अधिक रैलियां व रोड षो कर चुके है।

उत्तर प्रदेश की रैलियों में योगी जी आक्रामकता के साथ सपा, बसपा व कांग्रेस पर हमलावर हो रहे है। वह कांग्रेस को उसके घोषणापत्र के छिपे हुए हिंदू विरोधी एजेंडे के आधार पर बेनकाब कर रहे हैं। योगी जी स्पष्ट रूप से हमला करते हुए कह रहे हैं कि अगर कांग्रेस व इंडी गठबंधन के लोग सत्ता में वापस आये तो यह लोग देश में शरिया लागू कर देंगे और हमारे गोवंश को कसाईयो के हाथों में दे देंगे। योगी जी अपनी हर जनसभा में जनता को याद दिला रहे हैं कि कांग्रेस के कारण ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण लटका रहा। कांग्रेस ने ही भगवान राम को कोर्ट में काल्पनिक बताया था। संपत्ति के विभाजन, मंगल सूत्र और विरासत टैक्स का मुद्दा भी वे अपनी रैलियों में उठा रहे हैं। योगी जी बेटियों की सुरक्षा व कानून व्यवस्था पर कोई समझौता नहीं करने वाले हैं और वह बार-बार कहते हैं कि अगर कोई बहिन- बेटियो की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करेगा तो उसका राम नाम सत्य ही होगा। योगी जी कह रहे हैं कि अयोध्या में प्रभु श्रीराम का काम हो गया अब मथुरा की गलियां भी श्रीकृष्ण की बांसुरी सुनने के लिए बैचेन हो रही हैं। अब वह काम भी जल्द ही पूरा हो जाएगा। योगी जी का कहना है कि कांग्रेस पहले तो केवल दिशाहीन थी किंतु अब तो नेतृत्वविहीन भी हो चुकी है। योगी जी कहते हैं कि कांग्रेस को वोट देने से कोई बड़ा पाप नहीं हो सकता।

दूसरे राज्यों में जाने पर योगी जी का भव्य स्वागत किया जाता है। इसमें कोई दो राय नही कि उत्तर प्रदेश में अयोध्या में दिव्य, भव्य एवं नव्य राम मंदिर बन जाने के बाद उनकी लोकपियता में भारी वृद्धि हुई है तथा उत्तर प्रदेश में धार्मिक पर्यटन का व्यापक विस्तार व विकास हो रहा है। अभी लखनऊ में आयोजित आईपीएल टूर्नामेट के मुकाबले के लिए पधारे क्रिकेट खिलाड़ी पीटरसन से लखनऊ एयरपोर्ट की तारीफ करते हुए योगी जी की प्रशंसा की और उसे सोशल मीडिया पर साझा करते हुए लिखा कि उत्तर प्रदेश में अविश्वसनीय विकास व अच्छा काम हो रहा है।

योगी जी के नेतृत्व में कानून का राज है, अपराधियों का मनोबल गिरा हुआ है और विकास के लिए निवेश का मार्ग प्रशस्त हो रहा है। भगवा वस्त्र, वाणी में ओज, ह्रदय में सनातन, आचरण में संत योगी जी इस चुनाव में हिंदुत्व का प्रमुख स्वर हैं।

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आर्थिक क्षेत्र में नित नए विश्व रिकार्ड बनाता भारत

दिनांक 1 मई 2024 को अप्रेल 2024 माह में वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण से सम्बंधित जानकारी जारी की गई है। हम सभी के लिए यह हर्ष का विषय है कि माह अप्रेल 2024 के दौरान वस्तु एवं सेवा कर का संग्रहण पिछले सारे रिकार्ड तोड़ते हुए 2.10 लाख करोड़ रुपए के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है, जो निश्चित ही, भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शा रहा है। वित्तीय वर्ष 2022 में वस्तु एवं सेवा कर का औसत कुल मासिक संग्रहण 1.20 लाख करोड़ रुपए रहा था, जो वित्तीय वर्ष 2023 में बढ़कर 1.50 लाख करोड़ रुपए हो गया एवं वित्तीय वर्ष 2024 में 1.70 लाख करोड़ रुपए के स्तर को पार कर गया। अब तो अप्रेल 2024 में 2.10 लाख करोड़ रुपए के स्तर से भी आगे निकल गया है।

इससे यह आभास हो रहा है कि देश के नागरिकों में आर्थिक नियमों के अनुपालन के प्रति रुचि बढ़ी है, देश में अर्थव्यवस्था का तेजी से औपचारीकरण हो रहा है एवं भारत में आर्थिक विकास की दर तेज गति से आगे बढ़ रही है। कुल मिलाकर अब यह कहा जा सकता है कि भारत आगे आने वाले 2/3 वर्षों में 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर मजबूती से आगे बढ़ रहा है। भारत में वर्ष 2014 के पूर्व एक ऐसा समय था जब केंद्रीय नेतृत्व में नीतिगत फैसले लेने में भारी हिचकिचाहट रहती थी और भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की हिचकोले खाने वाली 5 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल थी। परंतु, केवल 10 वर्ष पश्चात केंद्र में मजबूत नेतृत्व एवं मजबूत लोकतंत्र के चलते आज वर्ष 2024 में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है और विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से आगे बढ़ रही है।

आज भारत आर्थिक क्षेत्र में वैश्विक मंच पर नित नए रिकार्ड बना रहा है। वैश्विक स्तर पर विदेशी प्रेषण के मामले में आज भारत प्रेषण प्राप्तकर्ता के रूप में प्रथम स्थान पर पहुंच गया है। भारत में आज सबसे बड़ा सिंक्रोनाईजड बिजली ग्रिड है। बैकिंग क्षेत्र में वास्तविक समय लेनदेन की सबसे बड़ी संख्या आज भारत में ही सम्पन्न हो रही है। भारत आज विश्व में दूसरा सबसे बड़ा स्टील उत्पादक देश है एवं भारत आज पूरे विश्व में मोबाइल फोन का निर्माण करने वाला दूसरा सबसे बड़ा निर्माता बन गया है। भारत में आज विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सड़क नेट्वर्क है। मात्रा की दृष्टि से भारत में आज विश्व का तीसरा सबसे बड़ा फार्मासीयूटिकल उद्योग है। भारत में आज पूरे विश्व में तीसरा सबसे बड़ा मेट्रो नेट्वर्क है। भारत ने स्टार्टअप को विकसित करने के उद्देश्य से विश्व का तीसरा सबसे बड़ा पारिस्थितिकी तंत्र खड़ा कर लिया है। भारत का स्टॉक बाजार, पूंजीकरण के मामले में, विश्व में चौथे स्थान पर आ गया है। भारत में आज विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेल नेट्वर्क है। विश्व में पैटेंट हेतु आवेदन किए जाने वाले देशों में भारत आज छठे स्थान पर आ गया है। आर्थिक क्षेत्र में भारत को यह सभी उपलब्धियां पिछले 10 वर्षों के दौरान प्राप्त हुई हैं।

पिछले केवल 10 वर्षों के दौरान शेयर बाजार में निवेशकों को अपार सफलता हासिल हुई है और सेन्सेक्स ने 200 प्रतिशत की रिकार्ड वृद्धि दर्ज की है, इसी प्रकार निफ्टी भी इसी अवधि में 206 प्रतिशत की रिकार्ड वृद्धि दर्ज करने में सफल रहा है। यह स्थानीय एवं विदेशी निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपना विश्वास जता रहा है। भारत में शेयर बाजार में व्यवहार करने के उद्देश्य से खोले जाने वाले डीमेट खातों की संख्या वर्ष 2014 में 2.2 करोड़ थी जो वर्ष 2024 में बढ़कर 15.13 करोड़ हो गई है अर्थात इन 10 वर्षों में 7 गुणा से अधिक की वृद्धि दर अर्जित की गई है। देश का प्रत्येक उद्यमी/उपक्रमी/व्यवसायी बहुत उत्साह में है कि देश में व्यापार करने हेतु वातावरण में बहुत सुधार हुआ है एवं ईज आफ डूइंग बिजनेस में काफी सुधार हुआ है। आज भारत ही नहीं बल्कि भारतीय कम्पनियों द्वारा विदेश में भी पूंजी उगाहना बहुत आसान हो गया है। अतः एक प्रकार से उद्यमियों के लिए पूंजी की समस्या तो नहीं के बराबर रह गई है।

भारतीय नागरिकों में आज स्व का भाव जगाने में भी कामयाबी मिली है, जिसके चलते स्वदेश में निर्मित वस्तुओं का उपयोग बढ़ रहा है एवं अन्य देशों से विभिन्न उत्पादों के आयात कम हो रहे हैं। इसके चलते भारत के विदेशी व्यापार घाटे में सुधार दृष्टिगोचर है। आज भारत से विभिन्न उत्पादों के निर्यात में मामूली वृद्धि दर्ज हो रही है तो कई उत्पादों के आयात में कमी दिखाई देने लगी है। इसे भारतीय नागरिकों के आत्म निर्भर भारत की ओर बढ़ते कदम के रूप में देखा जा सकता है। फरवरी 2024 माह में भारत का व्यापारिक निर्यात 11.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 4140 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया, जो पिछले 20 महीनों में उच्चतम स्तर पर है। इसके अतिरिक्त, सेवा निर्यात 3210 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रिकार्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है। फरवरी 2024 माह में माल एवं सेवाओं को मिलाकर कुल निर्यात 7355 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जो फरवर 2023 की तुलना में 14.2 प्रतिशत अधिक है। इसी कारण से, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी आज 64,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है।

आज भारतीय नागरिकों ने सनातन संस्कृति का अनुपालन करते हुए भारत को विकसित एवं मजबूत बनाने के लिए अपने कदम आगे बढ़ा लिए हैं। आज भारत में प्रत्येक नागरिक का औसत जीवन वर्ष 2022 के 62.7 वर्ष से बढ़कर 67.7 वर्ष हो गया है। यह भारत में लगातार हो रही स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के चलते ही सम्भव हो सका है। संयुक्त राष्ट्र के एक प्रतिवेदन के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय में पिछले 12 महीनों के दौरान 6.3 प्रतिशत की वृद्ध दर्ज हुई है। इसी प्रकार, एक सर्वे के अनुसार, आज भारत में 36 प्रतिशत कम्पनियां आगामी 3 माह में नई भर्तियां करने पर गम्भीरता से विचार कर रही हैं, इससे भारत में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होते दिखाई दे रहे हैं।

गरीब वर्ग को भी केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ पहुंचाये जाने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। जल जीवन मिशन ने पूरे भारत में 75 प्रतिशत से अधिक घरों में नल के पानी का कनेक्शन प्रदान करके एक बढ़ा मील का पत्थर हासिल कर लिया है। लगभग 4 वर्षों के भीतर मिशन ने 2019 में ग्रामीण नल कनेक्शन कवरेज को 3.23 करोड़ घरों से बढ़ाकर 14.50 करोड़ से अधिक घरों तक पहुंचा दिया गया है। इसी प्रकार, पीएम आवास योजना के अंतर्गत, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में 4 करोड़ से अधिक पक्के मकान बनाए गए हैं एवं सौभाग्य योजना के अंतर्गत देश भर में 2.8 करोड़ घरों का विद्युतीकरण कर लिया गया है।

विश्व भर के सबसे बड़े सरकारी वित्तपोषित स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम – प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना – के अंतर्गत 55 करोड़ लाभार्थियों को माध्यमिक एवं तृतीयक देखभाल एवं अस्पताल में भर्ती के लिए प्रति परिवार 5 लाख रुपए का बीमा कवर प्रदान किया जा रहा है। साथ ही, पीएम गरीब कल्याण योजना के माध्यम से मुफ्त अनाज के मासिक वितरण से 80 करोड़ से अधिक परिवारों को लाभ प्राप्त हो रहा है। पीएम उज्जवल योजना के अंतर्गत 10 करोड़ से अधिक महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन प्रदान किये गए हैं। इन महिलाओं के जीवन में इससे क्रांतिकारी परिवर्तन आया है क्योंकि ये महिलाएं इसके पूर्व लकड़ी जलाकर अपने घरों में भोजन सामग्री का निर्माण कर पाती थीं और अपनी आंखों को खराब होते हुए देखती थीं। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत भी 12 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण कर महिलाओं की सुरक्षा एवं गरिमा को कायम रखा जा सका है। जन धन खाता योजना के अंतर्गत 52 करोड़ से अधिक खाते खोलकर नागरिकों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में लाया गया है। इससे गरीब वर्ग के नागरिकों के लिए वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिला है। पूरे भारत में 11,000 से अधिक जनऔषधि केंद्र स्थापित किए गए हैं, जो 50-90 प्रतिशत रियायती दरों पर आवश्यक दवाएं प्रदान कर रहे हैं।

अंत में यह कहा जा सकता है कि भारत आर्थिक क्षेत्र में आज पूरे विश्व में एक चमकते सितारे के रूप में दिखाई दे रहा है एवं अपनी विकास दर को 10 प्रतिशत के ऊपर ले जाने के भरसक प्रयास कर रहा है। इससे निश्चित ही भारत शीघ्र ही पहिले विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं इसके बाद वर्ष 2027 तक भारत एक विकसित राष्ट्र भी बन जाएगा।

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वोट जरूर डालें, घर-घर दस्तक देकर मतदाताओं को जागरूक करेगा डाक विभाग

वाराणसी। डाकिया डाक लाया, डाकिया बैंक लाया और अब डाकिया देश में लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने के लिए लोगों को मतदान के लिए भी प्रेरित करेगा। भारतीय चुनाव आयोग के ‘स्वीप कार्यक्रम’ के अंतर्गत चल रहे मतदाता जागरूकता अभियान के अन्तर्गत लोकसभा चुनाव में मतदान के लिए मतदाताओं को जागरूक करने का बीड़ा अब डाक विभाग ने भी उठाया है। वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कैंट प्रधान डाकघर में इसका शुभारंभ किया। वाराणसी परिक्षेत्र के अधीन कुल 1729 डाकघरों के माध्यम से यह वृहद् अभियान चलेगा।

इस अवसर पर पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने लोगों से लोकतंत्र के महापर्व में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने की अपील की। एक तरफ डाकघरों के माध्यम से बँटने वाली डाक पर ‘चुनाव का पर्व, देश का गर्व’ और वाराणसी लोक सभा निर्वाचन मतदान दिनांक 1 जून, 2024 की मुहर लगाकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है, वहीं डाकिया भी डाक वितरण के दौरान लोगों से अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने की अपील करेंगे। इसके साथ ही डाकघरों में स्पीड पोस्ट व रजिस्ट्री बुकिंग, आईपीपीबी और बचत खाता खुलवाने, आधार नामांकन व अपडेशन इत्यादि तमाम कार्यों के लिए आने वाले लोगों को भी डाककर्मी अपना वोट देने के लिए प्रेरित करेंगे। श्री यादव ने कहा कि लाखों लोगों के घरों तक पहुंचने वाली चिट्ठियों के माध्यम से मतदाताओं को मतदान करने के लिए प्रेरित करना है। खास कर बुजुर्ग, युवा, महिला और फर्स्ट वोटर्स के साथ-साथ दिव्यांग मतदाताओं तक हर हालत में जागरूकता संदेश पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने मौजूद समस्त डाककर्मियों को मतदाता शपथ दिलाई।

वाराणसी पश्चिम मंडल के अधीक्षक डाकघर श्री विनय कुमार ने कहा कि पोस्ट ऑफिस में दैनिक रूप से बड़ी संख्या में आम जनता अपने कार्यों के लिए पहुंचती है। इस लिहाज से पोस्ट ऑफिस मतदाता जागरूकता के लिए भी उचित स्थान है। उन्होंने डाक विभाग के समस्त कर्मियों को डोर-टू-डोर मतदाता जागरूकता अभियान में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने का अनुरोध किया।

इस अवसर पर अधीक्षक डाकघर श्री विनय कुमार, सहायक निदेशक बृजेश शर्मा, सहायक अधीक्षक आरके चौहान, इंद्रजीत, निरीक्षक दिलीप कुमार, अनिकेत रंजन, लेखाधिकारी संतोषी राय, कैण्ट पोस्टमास्टर गोपाल दुबे, अजिता, राहुल वर्मा, श्रीप्रकाश गुप्ता, मनीष कुमार, आनंद प्रधान सहित तमाम डाककर्मी शामिल हुए।

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अक्षय तृतीया से पूर्व बाल विवाह के खिलाफ राजस्थान हाई कोर्ट का अहम फैसला

जयपुर। प्रदेश में बाल विवाह की मौजूदा स्थिति को ‘चिंताजनक’ बताते हुए राजस्थान हाई कोर्ट ने तत्काल सुनवाई के बाद अंतरिम आदेश जारी कर राज्य सरकार से कहा है कि वह अक्षय तृतीया के मद्देनजर यह सुनिश्चित करे कि कहीं भी बाल विवाह नहीं होने पाए। साथ ही, आदेश में कहा गया है कि बाल विवाह को रोकने में विफलता पर पंचों-सरपंचों को जवाबदेह ठहराया जाएगा। हाई कोर्ट का यह फौरी आदेश ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस’ की जनहित याचिका पर आया है। इन संगठनों ने अपनी याचिका में इस वर्ष 10 मई को अक्षय तृतीया के मौके पर बड़े पैमाने पर होने वाले बाल विवाहों को रोकने के लिए तत्काल हस्तक्षेप की मांग की थी।
न्यायमूर्ति शुभा मेहता और पंकज भंडारी की खंडपीठ ने याचियों द्वारा बंद लिफाफे में सौंपी गई अक्षय तृतीया के मौके पर होने वाले 54 बाल विवाहों की सूची पर गौर करने के बाद राज्य सरकार को इन विवाहों पर रोक लगाने के लिए ‘बेहद कड़ी नजर’ रखने को कहा है। यद्यपि इस सूची में शामिल नामों में कुछ विवाह पहले ही संपन्न हो चुके हैं लेकिन 46 विवाह अभी होने बाकी हैं।
खंडपीठ ने कहा, “सभी बाल विवाह निषेध अफसरों से इस बात की रिपोर्ट मंगाई जानी चाहिए कि उनके अधिकार क्षेत्र में कितने बाल विवाह हुए और इनकी रोकथाम के लिए क्या प्रयास किए गए।” आदेश में यह भी कहा गया कि राज्य सरकार सुनिश्चित करे कि सूची में शामिल जिन 46 बच्चों के विवाह होने हैं, वे नहीं होने पाएं।”
खंडपीठ ने यद्यपि इस बात का संज्ञान लिया कि राज्य सरकार के प्रयासों से बाल विवाहों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है, फिर भी काफी कुछ किया जाना बाकी है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (2019-21) के आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में 20-24 आयु वर्ग की 25.4 प्रतिशत लड़कियों का विवाह उनके 18 साल की होने से पहले ही हो गया था जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 23.3 प्रतिशत है।
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा, “बाल विवाह वह घृणित अपराध है जो सर्वत्र व्याप्त है और जिसकी हमारे समाज में स्वीकार्यता है। बाल विवाह के मामलों की जानकारी देने के लिए पंचों व सरपंचों की जवाबदेही तय करने का राजस्थान हाई कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक है। पंच व सरपंच जब बाल विवाह के दुष्परिणामों के बारे में जागरूक होंगे तो इस अपराध के खिलाफ अभियान में उनकी भागीदारी और कार्रवाइयां बच्चों की सुरक्षा के लिए लोगों के नजरिए और बर्ताव में बदलाव का वाहक बनेंगी। बाल विवाह के खात्मे के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम पूरी दुनिया के लिए एक सबक हैं और राजस्थान हाई कोर्ट का यह फैसला इस दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है।”
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस पांच गैरसरकारी संगठनों का एक गठबंधन है जिसके साथ 120 से भी ज्यादा गैरसरकारी संगठन सहयोगी के तौर पर जुड़े हुए हैं जो पूरे देश में बाल विवाह, बाल यौन शोषण और बाल दुर्व्यापार जैसे बच्चों की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर काम कर रहे हैं।
हाई कोर्ट का यह आदेश ऐसे समय आया है जब अक्षय तृतीया के मौके पर बाल विवाह के मामलों में खासी बढ़ोतरी देखने को मिलती है और जिसे रोकने के लिए सरकार के साथ जमीनी स्तर पर काम कर रहे तमाम गैरसरकारी संगठन हरसंभव प्रयास कर रहे हैं।
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