Friday, March 7, 2025
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कुंभ स्नान के आकर्षण नागा साधुओं का गौरवशाली इतिहास

कुंभ स्नान आरम्भ होने वाला है कुंभ की महत्ता तो लगभग सभी सनातनियों को पता है इस कुंभ में संत महंत साधु साध्वी अखाड़े राजनेता समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति से लकर सामान्य व्यक्ति तक सभी शाही स्नान करने आते हैं ओर इनही में से एक है नागा साधु आज  नागा साधुओ  के बारे में जानना बेहद जरूरी है।सनातन धर्म हजारों साल से भारत भूमि पर ऐसे ही अक्षुण्ण नहीं है. इसके लिए बड़े बलिदान दिए गए हैं. जिसमें सबसे आगे रहे हैं नागा साधु और संन्यासी. जिनके योगदान के बारे में हम जानते ही नहीं. क्योंकि वामपंथी और विदेशी मानसिकता के इतिहासकारों ने उनकी गौरव गाथा को छिपा दिया.

8 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य जी ने हिंदू सेना के रूप में नागाओं का गठन किया, तो एक नई सैन्य परंपरा का जन्म हुआ। जो शक्ति और भक्ति के पर्याय है  सभी हिंदू अखाड़ों में से ऐसे नागा सबसे अधिक सैन्य रूप से सुसज्जित और उग्र थे, और उनके आश्रय स्थलों को आज भी ‘छावनी’ कहा जाता है। उन्हें सभी वैदिक विरोधी आक्रमणकारियों से लड़ने के लिए भी प्रशिक्षित किया गया था। वे तलवार, भाला त्रिशूल  धनुष और कृपाण के साथ शरीर पर एक लंगोटी के साथ भस्म और चंदन का लेप लाये रहते थे।

शंकराचार्य जी का जन्म केरल के कलाडी में हुआ था और कहा जाता है कि उन्होंने पाँच वर्ष की आयु में ही घर छोड़ दिया था। उन्होंने ज्ञान और शस्त्र दोनों की आवश्यकता को समझते हुए शास्त्र को आचार्यों का क्षेत्र और अस्त्र को नागाओं का ‘आभूषण’ बनाया।  धर्म विरोधीयो से हिंदू धर्म को ‘वापस जीतना’ काफी हद तक इन आक्रामक नागाओं द्वारा ही संभव हुआ था। दशनाम संन्यास आश्रम गिरी (पहाड़ी संप्रदाय), पुरी (कस्बों से), सरस्वती (पुजारी), वन-आरण्यक (जंगल के साधु) और सागर (समुद्र तटीय संप्रदाय) से बने हैं।

वैसे तो आरम्भ से लेकर वर्तमान तक इनका इतिहास बहुत से धर्म युद्धो से भरा है पर आज हम विशेष राजस्थान और इसके आस पास के क्षैत्रो से संबंधित इनके योगदान को जानने का प्रयास करेगे ।

संत दादूदयाल के शिष्यों की नागा सेना ने ढूंढाड़ को बचाने के लिए लगातार दो सौ साल तक 33 युद्धों में भाग लेकर त्यागमयी सेवा और कुर्बानी दी। वर्ष 1779 में बादशाह शाह आलम द्वितीय के सूबेदार मुर्तजा अली खां भड़ेच करीब पचास हजार सैनिकों के साथ शेखावाटी होते हुए जयपुर पर हमला करने आया था। श्रीमाधोपुर को लूटने के बाद वह खाटू श्यामजी मंदिर को तोडऩे के लिए बढऩे लगा। तब दादू संत मंगलदास के नेतृत्व में नागा साधुओं ने शुरू में नाथावत व शेखावतों के साथ मिलकर मुगल सेना से मोर्चा लिया।

जयपुर से कछवाहा सेना के पहुंच जाने पर सभी ने मिलकर मुगलों से घोर संग्राम किया। युद्ध में दादू संत मंगलदास महाराज तो सिर कटने के बाद भी झुंझार बन लड़ते रहे।  इन शूरवीरो के लिए ही कहा गया है “सर कर रीया ओर धड़ लड़ रीया आ शान है राजस्थान री सगली दुनिया बोल रही आ धरती है बलिदान री “ डूंगरी के चूहड़ सिंह नाथावत भी अपने दो पुत्रों के साथ युद्ध में शहीद हुए। सेवा के दलेल सिंह, दूजोद के सलेदी सिंह शेखावत, बलारा के हनुवंत सिंह, बखतसिंह खूड़ व सूरजमल ने सेना के हरावल में रह लड़ते हुए कुर्बानी दी।

युद्ध में कायमखानी मिश्री खां, कायस्थ अर्जुन व भीम के अलावा स्वरुप बड़वा, महादान चारण, मौजी राणा ने भी श्याम मंदिर को बचाने के लिए प्राण न्योछावर किए। इन सब वीरों ने मुर्तजा खां भड़ेच को उसके हाथी सहित मार दिया और मुगल सेना को भगा दिया। कुर्बानी देने वाले संत मंगलदास की आज भी पूजा होती है। इस युद्ध में देवी सिंह सीकर, सूरजमल बिसाऊ, नृसिंहदास नवलगढ़ और अमर सिंह दांता ने भी सेना सहित हिस्सा लिया। दादू पंथियों की सात बटालियनें थी।

एक वस्त्र में लंगोट व पांच शस्त्रों में तलवार, ढाल, तीर, भाला और कटार जैसे पौराणिक हथियारों से युद्ध करते थे। सबसे पहले कामां की तरफ से जयपुर पर होने वाले हमले में नागा संतों ने बहादुरी दिखाई। लुहारु की तरफ से जयपुर पर हमला रोकने के लिए दांतारामगढ़ व उदयपुर वाटी में नागा सेना भेजी गई। टोंक नवाब से अनबन हुई तब निवाई में नागा सेना भेजी गई। वर्तमान सचिवालय की बैरक्स में नागा पलटनें रहती थी।

नागा सेना ने खाटूश्यामजी के अलावा जोधपुर,खंडेला,फतेहपुर,करौली, ग्वालियर, मंडावा, नवलगढ़ सहित करीब 33 युद्धों में वीरता दिखाई। जयपुर के घाट दरवाजे की सुरक्षा का भार नागा सेना के पास रहा। और इनकी विशेषता के कारण ही जयपुर दरबार मे इनका विशेष स्थान रहा है।

कुंभ मेलों व संतों की सुरक्षा के लिए नागा संत हथियारों के साथ जाते रहे।  क्योकि दादूपंथी शूरवीर व विद्वान महात्मा हुए, इनको शुरू से ही शास्त्र व शस्त्रों का अभ्यास कराया जाता रहा।

नागा साधुओं ने भारत की गुलामी के दिनों में भारी संघर्ष किया है और अपने प्राणों का बलिदान दिया है. लेकिन आजादी प्राप्त होने के बाद देश को सुरक्षित हाथों में जानकर उन्होंने अपनी सैन्य क्षमता को समेट लिया है. अब नागा साधु आध्यात्मिक उन्नति की साधना में ही लीन होते हैं. इन संन्यासियों को संसार से कुछ भी नहीं चाहिए.

लेकिन धर्म को  बचाए रखने के लिए इन नागा साधुओं के संघर्ष को जानना सभी भारतीयों के लिए बेहद आवश्यक है. क्योंकि उनकी बलिदान का गाथाएं हमें  धर्म संरक्षण हेतु संघर्ष के लिए प्रेरित करती हैं।

शिखा अग्रवाल का सम्मान और “फैशन एन इंस्टिंक्ट ” पुस्तक विमोचन

हिंदी साहित्य में अपनी मातृभाषा के उपयोग से परहेज़ नहीं हो – किशन प्रणय
कोटा / साहित्यकार को हिंदी साहित्य में अपनी मातृभाषा के उपयोग से परहेज़ नहीं करना चाहिए। फणीश्वर नाथ रेणु की पहचान उनकी मातृ बोली के साहित्य के कारण ही हुई है। यह विचार व्यक्त करते हुए मुख्य अतिथि युवा साहित्यकार किशन प्रणय ने कहा है कि अंग्रेजी भाषा में श्रृंगार जैसे विषय को समेटना आसान नहीं है ,लेखिका शिखा अग्रवाल ने यह कर दिखाया है। वे बुधवार को  समरस संस्थान साहित्य सृजन भारत , गांधीनगर, गुजरात की कोटा इकाई द्वारा दादाबाड़ी कोटा में भीलवाड़ा की लेखिका शिखा अग्रवाल की आंग्ल भाषा में सृजित कृति ” फैशन एन इंस्टिंक्ट” के लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे।
  उन्होंने कहा कि फैशन इंसान की उस मूल प्रवृत्ति का परिणाम है, जिसमें वह सुंदरता, रचनात्मकता, और आत्म-अभिव्यक्ति के लिए निरंतर प्रयास करता है। दस अध्यायों में विभाजित यह पुस्तक बताती है कि फैशन वैश्विक या किसी भी आंचलिक स्तर पर केवल कपड़ों या बाहरी दिखावे तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इंसानी व्यक्तित्व, भावनाओं, और समाज में अपने स्थान को अभिव्यक्त करती है।
समारोह के मुख्य वक्ता कथाकार और समीक्षक विजय जोशी ने कहा कि यह कृति प्राचीन, आधुनिक और पाश्चात्य श्रंगार पक्ष का सार है। लेखिका ने अधिक से अधिक जानकारी  समेटने की कोशिश करते हुए इसे उपादेय बनाया है। उन्होंने कहां रचनाकार ने शृंगार की प्राचीन परंपरा से वर्तमान आधुनिक परंपरा को जोड़ते हुए युवाओं के लिए बॉलीवुड फैशन पर भी लिख कर कृति को युवाओं से जोड़ने का अनुपम प्रयास किया है।
आशीर्वचन में वरिष्ठ साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही ने कहा कि आदिकाल से ढोला मारू, क्रिसन रुक्मिणी वेली,हंसाऊली, आदि में श्रृंगार सामग्री अद्भुत है। खासतौर पर आजादी के बाद श्रृंगार साहित्य में गीतों ने विशेष स्थान पाया है। श्रृंगार के क्रम में मेरी कृति ” राजस्थानी काव्य में सिणगार”में आदिकाल से लेकर आज़ तक का श्रृंगार समकालीन काव्य और रचनाकारों को समेटने की कोशिश रही है। यह कृति श्रृंगार को लेकर विशेष सामग्री समेटे हुए है। युवाओं में शिखा अग्रवाल और किशन प्रणय प्रेरक का कार्य कर रहे हैं। एक दिन इनका देश में बड़ा नाम होगा।
आशीर्वचन में वरिष्ठ साहित्यकार रामेश्वर शर्मा रामू भैया ने कहा कि लेखिका ने आंग्ल साहित्य में शृंगार जैसे सरस विषय को जिस प्रकार क्रमबद्ध तरीके से रोचकता के साथ लिपिबद्ध किया है वह इनके साहित्यिक कौशल को बताता है। उन्होंने इसका अनुवाद हिंदी में करने का सुझाव दिया।
समरस संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष और समारोह अध्यक्ष डॉ. शशि जैन ने कहा कि संस्थान ऐसे उभरते रचनाकारों को निरंतर प्रोत्साहन देता है। गांधीनगर गुजरात में कतिपय साहित्यकारों से शुरू किया गया यह संस्थान आज वट वृक्ष बन गया है और देश के विभिन्न राज्यों में इसके 80 हज़ार सदस्य हैं। संस्थान की कोटा इकाई के अध्यक्ष राजेंद्र कुमार जैन ने सभी का स्वागत किया।
लेखिका शिखा अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि यह  पुस्तक फैशन का इतिहास, प्राचीन भारत में फैशन, आभूषणों, सोलह सिंगार, आंचलिक और जनजातीय लोकाचार के साथ – साथ बॉलीवुड में किए गए फैशन के प्रयोगात्मक तथ्यों को पाठक के सामने लाती हैं। पुस्तक की सामग्री उपलब्ध कराने में दिए गए सहयोग के लिए कोटा कथाकार और समीक्षक विजय जोशी तथा झालावाड़ के इतिहासकार ललित शर्मा  का आभार जताया।
उन्होंने किए गए सम्मान के प्रति सभीसंस्थाओं और साहित्यकारों का आभार व्यक्त करते हुए बताया कि इस कृति का शृंगार पर अन्य विविध जानकारियां सम्मिलित करते हुए हिंदी में संपादित संस्करण निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इस वर्ष में हिंदी की पुस्तक सामने लाने का प्रयास है।
लेखिका का सम्मान :
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समरस संस्थान गांधी नगर की ओर से लेखिका शिखा अग्रवाल का सम्मान पत्र भेंट कर ,शाल ओढ़ा कर एवं प्रतीक चिन्ह से सम्मानित किया गया। आर्यन लेखिका मंच से रेखा पंचोली, डॉ अपर्णा पाण्डेय, श्यामा शर्मा,  रंगितीका साहित्य संस्था कोटा से स्नेहलता शर्मा, रीता गुप्ता, डॉ वैदेही गौतम, रेणु सिंह राधे और केसर काव्य मंच की अध्यक्ष डा. प्रीति मीणा सहित विजय शर्मा एवं विजय महेश्वरी ने लेखिका शिखा अग्रवाल का माल्यार्पण और शाल ओढ़ा कर, प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मान किया।
समारोह का प्रारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन किया गया और डॉ. वैदेही गौतम और शशि जैन ने संयुक्त रूप से सरस्वती वंदना से हुआ। कार्यक्रम का संचालन समरस संस्थान के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने किया।

आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर भारत की अंतरिक्ष में लंबी छलांग

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नेतृत्व में अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत लगातार प्रगति के पथ पर बढ़ते हुए आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)  की ऐतिहासिक यात्रा 1962 में  डा.विक्रम साराभाई  के नेतृत्व में गठित भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति की स्थापना के साथ आरम्भ हुई। भारत के पहले साउंडिंग रॉकेट का प्रक्षेपण 1963 में केरल के थुंबा से हुआ था। इसरो के वर्तमान स्वरूप  की स्थापना 15 अगस्त 1969 को हुई और इसरो का प्रथम उपग्रह आर्यभट्ट 1975 में यूएसएसआर से प्रक्षेपित किया गया। इसरो का प्रथम स्वदेशी उपग्रह एसएलवी -3 था जिसने 1980 में रोहिणी उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया। इसरो अपनी सफलता की यात्रा में अब तक 99 लांचिंग कर चुका है और कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं। योजनानुसार आगे बढ़ते हुए इसरो वर्ष 2025 तथा आगे आने वाले वर्ष में वह करिश्मा करने जा रहा है  जिससे पूरा भारत एक बार फिर गर्व का अनुभव करेगा।

आरंभिक दिनों में धनी तथा वैज्ञानिक दृष्टि से आगे माने जाने वाले देशों द्वारा उपहास बनाए जाने, साईकिल व बैल गाड़ी पर लादकर रॉकेट के पुर्जे ले जाने, गरीबी के कारण अंतरिक्ष अनुसंधान पर खर्च को लेकर सवाल उठने के बाद भी भारतीय वैज्ञानिक कभी निराश नहीं हुए वह कठिन दौर अब बहुत पीछे छूट चुका है, आज चन्द्रमा पर शिव शक्ति बिंदु के रूप में तिरंगा फहरा रहा है । इसरो के वैज्ञानिकों की अडिग प्रतिबद्धता और दृढ़ता कभी डिगी नहीं, नवाचार, परिश्रम और राष्ट्र सेवा के प्रति समर्पण से उन्होंने संघर्षों को सफलता की गाथा में बदल दिया।

भारत के वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि संकल्प और दृष्टि के, साहसिक सपने साकार किए जा सकते हैं।  इसरो ने वर्ष 2014 में प्रथम प्रयास में, सबसे कम लागत में मंगलयान मिशन को सफलतापूर्वक लांच किया। चंद्रयान -1 ने चन्द्रमा पर जल अणुओं की खोज की और वर्ष 2023 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की जिसे पूरे विश्व ने टीवी पर लाइव देखा, आज लैंडिंग का यह बिंदु शिव शक्ति बिंदु के नाम से जाना जाता है ।

इसरो ने 2024 के आरम्भ में सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य एल- 1 का  सफलतातपूर्वक प्रक्षेपण किया तथा अंत में स्पैडैक्स मिशन के साथ श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 44.5 मीटर लंबे ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएल वी – सी 60) रॉकेट ने दो छोटे अंतरिक्ष यानों चेजर और टारगेट के साथ सफलतापूर्वक छोड़ा है। अब चेजर और टारगेट को 475 किमीटर की वृत्ताकार कक्षा में स्थापित कर दिया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार आगामी 7 जनवरी तक डॉकिंग प्रक्रिया पूर्ण हो जायेगी।  स्पैडेक्स मिशन के साथ ही अब भारत डॉकिंग और अनडॉकिंग क्षमता प्रदर्शित करने वाला चौथा देश बनेगा। इस समय दुनिया के मात्र तीन देश अमेरिका , चीन और रूस के पास अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में डॉक करने की क्षमता है।अंतरिक्ष यान से दूसरे अंतरिक्ष यान के जुड़ने को डॉकिंग और अंतरिक्ष यानों के अलग होने को अनडॉकिंग कहते हैं।

स्पैडेक्स मिशन भारत के लिए कई दृष्टियों से बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भविष्य के मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए महत्वपूर्ण तकनीक है।यह अतंरिक्ष में डॉकिंग के लिए बहुत ही किफायती प्रौद्योगिकी मिशन है। इसकी सफलता चंद्रमा पर मानव को भेजने व नमूने लाने के लिए जरूरी है।इसकी सफलता से भविष्य में भारत के वैज्ञानिक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण और संचालन में भी आत्मनिर्भर होंगे क्योकि इसरो की 2035 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना है। वही एक से अधिक रॉकेट लांच करने के लिए भी  इस तकनीक की जरूरत है।

 

यह अंतरिक्षयान दो वर्षों  तक पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे।दोनों अंतरिक्ष यानों का वजन 220 किग्रा है।इस मिशन की सफलता से अंतरिक्ष कचरे की समस्या से निपटने में भी सफलता मिलेगी। पीओईएम इसरो का प्रायोगिक मिशन है इसके तहत कक्षीय प्लेटफार्म के रूप में  पीएस 4 चरण का उपयोग करके कक्षा में वैज्ञानिक प्रयोग किया जाता है।पीएसलवी -चार चरणों वाला रॉकेट है इसके पहले तीन चरण प्रयोग होने के बाद समुद्र में गिर जाते हैं  और अंतिम चरण उपग्रह को कक्षा में प्रक्षेपित करने के बाद अतंरिक्ष में कबाड़ बन जाता है। पीओईएम के तहत रॉकेट के इसी चौथे चरण का इस्तेमाल वैज्ञानिक प्रयोग करने में किया जायेगा।

वर्ष 2025 में और कमाल करेगा इसरो – अंतरिक्ष क्षेत्र के विशेषज्ञों का मत है कि अभी तक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने जो कुछ किया है वह तो ट्रेलर मात्र है आगामी कुछ वर्षों में इसरो के वैज्ञानिक और भी कमाल करने की तैयारी कर रहे हैं और जिसके बाद भारत का अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जायेगा। इस वर्ष इसरो की 36 से उपग्रहों का प्रक्षेपण करने की योजना तो है ही साथ ही रूस और अमेरिका के साथ मिलकर अंतरिक्ष यात्री भेजने की तैयारी भी है। लो अर्थ ऑर्बिट में कुल 36 सेटेलाइट लांच होने जा रहे हैं। जो देश के कई सेक्टरों को लाभान्वित करेंगे।इससे कृषि, संचार और परिवहन जैसे क्षेत्रों का सुविधा मिलेगी और आम जनजीवन में सुधार होगा।

नये वर्ष में अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की तैयारियों में प्रमुख है कि इसरो ने निजी कंपनियों को प्रक्षेपण यान के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने का निर्णय लिया है। इससे भारत में प्रक्षेपण यान का एक बड़ा बाजार तैयार होने जा रहा है। इसमें एएसएलवी एक नई शक्ति के रूप में स्थापित होगा। चंद्रयान-3  और आदित्य एल -1 के बाद स्पैडेक्स मिशन की सफलता पर केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत अब स्वदेशी डॉकिंग सिस्टम विकसित करने वाला विश्व का चौथा देश बन गया है। इसरो का यह मिशन अंतरिक्ष के क्षेत्र में  एक नये युग का आरम्भ है। स्पैंडेक्स मिशन छोटे अंतरिक्ष यानों के साथ पहला ऐसा मिशन है। हम इसे बड़े अंतरिक्ष यानों के साथ आगे बढ़ायेंगे। मंत्री का कहना है कि  नये साल में इसरो नासा सिथेंटिक एपर्चर रडार उपग्रह लांच करने के लिए तैयार है। भारत के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान के तहत व्योममित्र रोबोट को भी इस वर्ष लांच करने की तैयारी की है। मार्च से पहले गगनयान मिशन के लिए क्रू एस्केप सिस्टम के परीक्षण की भी योजना है। 2025 के मध्य या 2026 के प्रारम्भ में ही हमारी मानव अंतरिक्ष उड़ान -गगनयान को लांच किया जायेगा। गगनयान मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्रियों को 400 किमी कक्षा में भेजा जायेगा और उन्हें भारतीय समुद्री क्षेत्र में उतारा जायेगा। जनवरी 2025 में ही पीएसएलवी मिशन के साथ 100वीं लांचिंग भी होने जा रही है।

कुल मिला कर आने वाला समय भारत के सूर्य के अंतरिक्ष में उदय होने का है।

मृत्युंजय दीक्षित
प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित

फोन नं- 9198571540

साँची का स्तूप: एक रोमांचक गाथा

साँची का स्तूप भारत के सबसे अच्छी तरह से संरक्षित और अध्ययनित बौद्ध स्थलों में से एक है। यह मध्य प्रदेश के साँची नामक शहर में एक पहाड़ी पर स्थित है। पूर्व से पश्चिम में यह सत्रह मील के क्षेत्र में और उत्तर से दक्षिण में लगभग दस मील में फैला हुआ है। इस स्थल पर कई स्तूप हैं, जिनमें से साँची के स्तूप को सबसे प्रमुख माना जाता है। इस महान स्तूप का निर्माण अशोक ने ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में करवाया था। यहाँ बुद्ध और उनके सबसे श्रद्धेय शिष्यों के धार्मिक अवशेष या निशानियाँ प्रतिष्ठापित हैं।

स्तूप का टीला अशोक के समय में बनाया गया। अगली तेरह शताब्दियों तक, स्तूप का विस्तार होता रहा। दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य में, शुंग काल के दौरान, मूल ईंट संरचना को उसके आकार से दोगुना बड़ा किया गया और टीले को बलुआ पत्थर की सिल्लियों से ढक दिया गया।

स्तूप के चारों ओर एक परिधि-पथ का निर्माण किया गया जो एक पत्थर के रेलिंग से घिरा था जिसे वेदिका भी कहा जाता है। परिक्रमा या प्रदक्षिणा बौद्ध धर्म में अनुष्ठानों और भक्ति प्रथाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके अतिरिक्त, स्तूप में एक हर्मिका (एक चौकोर संरचना) भी जोड़ी गई थी। हर्मिका को स्तूप के शीर्ष पर रखा गया है और इसमें त्रि-स्तरीय छतरी या छत्रावली है जो बौद्ध धर्म के तीन रत्नों – बुद्ध, धर्म (बुद्ध की शिक्षाएँ) और संघ (बौद्ध धर्म वर्ग) का प्रतिनिधित्व करती है।

स्तूप में सबसे विस्तृत परिवर्धन सातवाहन काल के दौरान ईसा पूर्व पहली शताब्दी से दूसरी शताब्दी ईस्वी तक हुए थे। स्तूप में चार प्रस्तर-द्वार (तोरण) चार प्रमुख दिशाओं में जोड़े गए। इन तोरणो में दो प्रस्तर स्तंभ शामिल हैं जिनके ऊपर स्तंभ शिखर (खंभे का सबसे ऊपरी हिस्सा) बने हुए हैं । स्तंभ स्वयं, शिखर कुंडलित छोरों (आयनिक स्तंभ में पाया जाने वाला घूँघर जैसा अलंकरण) वाले तीन प्रस्तरपादों (सरदल या शहतीर जो एक स्तंभ से दूसरे स्तंभ तक फैली हुई है और उनके स्तंभ शिखरों पर टिकी हुई है) को सहारा देते हैं। इन प्रस्तरपादों में बुद्ध के जीवन की घटनाएँ और जातक (बुद्ध के जीवन से जुड़ी कहानियाँ) बड़े पैमाने पर उकेरे गए हैं।

चार द्वारों के कालानुक्रमिक क्रम निम्नानुसार हैं: दक्षिणी, उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी। ये सभी प्रवेश द्वार धर्मनिष्ठ लोगों द्वारा दान किए गए थे और उनके नाम इनके स्तंभों पर अंकित थे। ये समृद्ध नक्काशीदार स्तंभ उन पर बनी उद्भृत आकृतियों के कारण महत्वपूर्ण माने जाते हैं जो पहली शताब्दी ईसा पूर्व की तीसरी तिमाही में लोगों के जीवन की एक झलक पेश करते हैं।

गुप्त काल के दौरान साँची में और परिवर्धन किए गए। इनमें एक बौद्ध मंदिर और एक सिंह स्तंभ शामिल हैं। इस महान स्तूप के कटघरे पर चौथी शताब्दी ईस्वी का चंद्रगुप्त द्वितीय का विजय शिलालेख उत्कीर्णित है। कहा जाता है कि यह स्थल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से तेरहवीं शताब्दी ईस्वी तक एक संपन्न धार्मिक केंद्र रहा है। एक प्रमुख धार्मिक स्थल के रूप में भारतीय उपमहाद्वीप में इसका पतन बौद्ध धर्म के पतन के साथ ही हुआ।

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१८८० में अंग्रेज़ों ने साँची स्थल की पुनर्खोज की। इस पुनर्खोज का श्रेय बंगाल कैवेलरी के जनरल हेनरी टेलर को दिया जाता है। साँची में महान स्तूप की लगभग अक्षुण्ण स्थिति ने ऐसे खोजकर्ताओं और शौकिया पुरातत्वविदों की बढ़ती नस्ल के बीच दिल्चस्पी पैदा की, जो अधिकतर सेना के अधिकारी और यात्रा करने वाले पुरावशेष विशेषज्ञ थे।

स्तूप की पहली वैज्ञानिक खुदाई १८५१ में मेजर अलेक्ज़ेंडर कनिंघम की देखरेख में हुई। उन्होंने अपने सहयोगी लेफ्टिनेंट-कर्नल एफ.सी. मेसी के साथ स्थल के चित्र बनाए। बुद्ध के दो प्रमुख शिष्यों के अवशेष सतधारा (साँची के साढ़े छह मील पश्चिम) में स्तूप नंबर ३ के खंडहर में पाए गए, जिसका व्यास लगभग चालीस फ़ीट मापा गया और जो महान स्तूप से छोटा था।

साँची स्थल के अलावा, उन्होंने साँची से छः और बारह मील की दूरी पर स्थित सोनारी, सतधारा, भोजपुर और अंधेर के आसपास के स्तूपों में भी खुदाई की। यहाँ अनेक अनमोल खोजें की गई। अन्वेषण में प्राप्त प्राचीन वस्तुएँ कनिंघम और मेसी ने आपस में बाँट लीं और लगभग सभी पुरावशेष इंग्लैंड भेज दिए गए।

२३ नवंबर १८५३ को इंदौर में ब्रिटिश रेज़िडेंट, सर रॉबर्ट नॉर्थ कोली हैमिल्टन ने भारत के गवर्नर जनरल (परिषद् सहित) को भोपाल की बेगम, सिकंदर बेगम द्वारा साँची काना खेड़ी के टोप के दो प्रवेश-द्वारों (उत्तरी और पूर्वी) के नक्काशीदार पत्थरों को महारानी विक्टोरिया को भेंट करने के प्रस्ताव के बारे में सूचना भेजी।

लंदन भेजे जाने के लिए दोनों प्रवेश-द्वारों के समृद्ध रूप से नक्काशीदार पत्थरों को हटाने के लिए तैयारियाँ कर ली गई थीं। फिर भी, जटिल नक्काशियों को नुकसान पहुँचाए बिना संरचना को विघटित करने में लगने वाले खर्च और देखभाल के कारण उन्हें हटाने की योजनाओं में विलंब हुआ। बंबई में परिवहन के उचित साधनों की कमी के कारण इनके स्थानांतरण को रोक दिया गया। इन प्रवेश-द्वारों को हटाने और स्थानांतरित करने की भव्य व्यवस्था को भी एक झटका लगा क्योंकि १८५७ के विद्रोह ने ब्रिटिश सरकार और भोपाल दरबार को अत्यधिक तनावपूर्ण राजनीतिक स्थिति में पहुंचा दिया था।

१८६८ में, भोपाल की बेगम ने ब्रिटिश संग्रहालय में प्रवेश द्वार भेजने के अपने प्रस्ताव को नवीनीकृत किया। हालाँकि इस बार औपनिवेशिक प्राधिकरण द्वारा बेगम की पेशकश को अस्वीकार कर दिया गया क्योंकि वे यथास्थिति परिरक्षण और स्मारकों के संरक्षण की रणनीति के पालन के लिए प्रतिबद्ध थे। इसके बजाय, १८६९ में रॉयल इंजीनियर्स के लेफ्टिनेंट हेनरी एच. कोल की देखरेख में पूर्वी गेटवे का प्लास्टर कास्ट लंदन के साउथ केंसिंग्टन संग्रहालय में भेजे जाने के लिए तैयार किया गया। यह एक विस्तृत कवायद थी जिसमें रॉयल इंजीनियर्स में कर्मियों की भर्ती और जिलेटिन, पृथक ढाँचों से सांचे बनाने, और मिट्टी को दबा कर साँचे बनाने का प्रशिक्षण शामिल थे।

साँची में परिरक्षण और संरक्षण के प्रयासों के लिए १८६९ में वहाँ एच.एच. कोल का आगमन एक महत्वपूर्ण अग्रदूत था। यह वही समय था जब संरचना की पुनर्स्थापना के साथ-साथ साँची स्मारकों की नकल, तस्वीरें खींचने और उनकी प्रतिकृति बनाने की एक बड़ी परियोजना कार्यान्वयित हुई। साँची के प्राचीन स्थल को संरक्षित करने के लिए १८८० के दशक से भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा संगठित प्रयास किए गए।

स्थल पर संरक्षण का यह पहला चरण ब्रिटिश अधिकारियों की ओर से एक स्वागत योग्य कदम था। हालांकि, यह प्रयास मुख्य स्तूप के आसपास के कई ऐसे छोटे स्तूपों के लिए विनाशकारी साबित हुआ, जो मुख्य स्मारक तक जाने वाली सड़क के निर्माण को समायोजित करने के लिए विस्थापित किए गए थे। पुनर्स्थापित दक्षिणी प्रवेश द्वार के सरदलों को आगे से पीछे की ओर रखा गया था। इन संरचनाओं को और नुकसान नहीं पहुँचाने के डर से इन ग़लतियों को कभी भी प्रतिवर्तित नहीं किया गया।

१९०४ में भोपाल में राज्य अभियंता श्री कुक की देखरेख में इस तरह के सदाशयी लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण संरक्षण का दूसरा चरण शुरू किया गया। पुनरुद्धार कार्य के दौरान महान साँची स्तूप के चारों ओर मुख्य कटघरे के खंभों और मुंडेर के पत्थरों को तोड़कर नष्ट कर दिया गया या उन्हें दानदाताओं के नाम के शिलालेख सहित हटा दिया गया। संरचनाओं को पहुंची इस तरह की अपूरणीय क्षति के कारण पुरातात्विक और प्रशासनिक हलकों में तीव्र रोष पैदा हुआ। भारत के वायसराय लॉर्ड कर्ज़न ने सुविदित रूप से इन उपायों को “अपवित्रता के अभिषेक” के रूप में वर्णित किया।

साँची स्तूपों का संरक्षण और देखभाल ब्रिटिश सरकार के लिए एक विशेष चिंता का विषय बन गया था। लॉर्ड कर्ज़न ने जब से १८९९ में उस जगह का दौरा किया था, तभी से वे विशेष रूप से साँची के संरक्षण में लगे हुए थे। नवंबर १९०५ में भोपाल से गुज़रते समय उन्होंने यह सुझाव दिया कि स्तूपों को भारत सरकार को सौंप दिया जाए। हालाँकि, भोपाल की बेगम सुल्तान जहाँ ने पुरातात्विक अभिरुचि के स्मारक के रूप में बौद्ध व्यवस्था के संरक्षण के लिए भोपाल राज्य की मंशा बताते हुए इस प्रस्ताव से इनकार कर दिया। उन्होंने साँची के संरक्षण और पुनरुद्धार की व्यवस्था की।

भोपाल राज्य ने १९१२ और १९१९ के बीच भारत में पुरातत्व के महानिदेशक जॉन मार्शल द्वारा शुरू की गई साँची स्थल की पुनरुद्धार परियोजना के अगले चरण में धन निवेशित किया। उन्होंने यह समय उन भयानक नुकसानों को मिटाने में बिताया जिनके कारण उस स्थान पर अधिकांश स्तूप गिर कर बस मलबा बन कर रह गये थे। पहाड़ी के तल पर मार्शल द्वारा एक छोटा सा संग्रहालय स्थापित किया गया । यह स्थल के चारों ओर बिखरी हुई प्राचीन वस्तुओं की देखभाल और संरक्षण के लिए समर्पित किया गया। भोपाल दरबार ने इस मामले में पूर्ण समर्थन दिया क्योंकि इस संग्रहालय के निर्माण को भोपाल की बेगम ने को पूरी तरह से वित्तपोषित किया ।

१९२० में भोपाल के राजनैतिक अभिकर्ता, लेफ्टिनेंट कर्नल सी.ई. लुआर्ड को भोपाल के दरबार के वारिस नवाबज़ादा हमीदुल्ला खान का एक पत्र मिला जिसमें उन्होंने कुछ अवशेष मंजूषाओं और अन्य वस्तुओं के बारे में बताया, जिन्हें अलेक्ज़ेंडर कनिंघम द्वारा साँची से ब्रिटिश संग्रहालय में ले जाया गया था। उन्होंने इस तथ्य के मद्देनज़र उनकी वापसी के लिए अनुरोध किया कि चूंकि अब कि साँची का अपना संग्रहालय है, तो इन मूल्यवान वस्तुओं पर उनके दावे की प्रधानता होनी चाहिये। पत्र के साथ उन्होंने जॉन मार्शल द्वारा १९१९ में तैयार की गई साँची की सत्रह वस्तुओं की एक सूची संलग्न की थी जो वर्तमान में ब्रिटिश संग्रहालय में रखी गई है।

जब साँची पुरावशेषों के पुनरुद्धार का यह मामला लुआर्ड द्वारा मार्शल को भेजा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि ब्रिटिश संग्रहालय साँची की मूल पुरावशेषों को वापस करने के लिए एक क्षण के लिए भी विचार नहीं करेगा, और उन्होंने राजनैतिक अभिकर्ता को उक्त बात छोड़ देने का आग्रह करते हुये चेतावनी दी कि, “अगर ऐसी मिसाल कायम की जाती है तो ब्रिटिश संग्रहालय जल्द ही अपने आधे खज़ाने से हाथ धो बैठेगा, जिसकी ग्रीस, मिस्र और इटली और दूसरे दर्जनों देश वापस माँग करने लगेंगे।”

यह मामला तब तक थमा रहा जब तक कि १९४० में साँची के पुरावशेषों की वापसी की माँग नहीं की गई। प्रेस में यह बताया गया कि सारिपुत्र और मोगलाना (बुद्ध के प्रमुख शिष्यों) के अवशेषों को विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय द्वारा महाबोधि सोसाइटी को नई दिल्ली में बौद्ध मंदिर में स्थापित करने के लिये सौंप दिया जाएगा। १९३८ में महाबोधि सोसाइटी ऑफ बॉम्बे ने भारत सरकार से विक्टोरिया और अल्बर्ट म्यूज़ियम, लंदन से सारिपुत्र और मोगलगाना के अवशेष वापस लाने के लिए अनुरोध किया । १९३९ में संग्रहालय ने भारत के राज्य सचिव के हस्तक्षेप के माध्यम से महाबोधि सोसायटी को अवशेष लौटाने का फैसला किया। हालाँकि, द्वितीय विश्व युद्ध के छिड़ जाने के कारण अवशेषों का स्थानांतरण स्थगित करना पड़ा।

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युद्ध का हस्तक्षेप भोपाल दरबार के लिए समयानुकूल साबित हुआ। पुरावशेषों के लिए भोपाल दरबार की मांग को बहाल करने वाला एक पत्र भोपाल में राजनैतिक अभिकर्ता एल.जी. वालिस को भेजा गया, जिसमें यह कहा गया था कि भोपाल सरकार अवशेषों की मालिक थी और उन्हें साँची संग्रहालय में बहाल किया जाना था जो उनके लिए सबसे उपयुक्त स्थान माना जाता था। उन्होंने साँची के अवशेषों की वापसी के लिए अथक प्रयास किया। वे बौद्ध तीर्थयात्रियों की धार्मिक आवश्यकताओं के अनुसार अवशेषों के लिए उपयुक्त व्यवस्था करने के लिए तैयार थे। भोपाल सरकार से अनुरोध किया गया कि वह भारत सरकार द्वारा साँची में अवशेषों को प्रतिष्ठापित करने के लिए महाबोधि सोसाइटी को राज़ी करे।

तदनुसार, १९४६ में भोपाल सरकार और महाबोधि सोसायटी के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि अवशेषों को अंततः साँची में एक नव-निर्मित विहार में प्रतिष्ठापित किया जाएगा। अंत में, ३० नवंबर १९५२ को साँची में नई चेतियागिरि विहार में उनकी मूल मंजूषाओं में अवशेषों को प्रतिष्ठापित किया गया। एक भव्य और उपयुक्त समारोह में जिसमें बर्मा, कंबोडिया और श्रीलंका के विश्व और बौद्ध नेताओं और स्वतंत्र भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भाग लिया, राष्ट्रीय स्मारक के रूप में साँची के आधुनिक जीवन का उद्घाटन किया गया।

मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम 2017: एक अनछुए विषय पर सरकार की गंभीर सोच

3 दिसंबर 2024 को, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने मानसिक स्वास्थ्य हेतु मोदी सरकार के महत्वपूर्ण प्रयासों के बारे में राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया। एक ऐसा विषय जिसने मोदी सरकार के इस उत्कृष्ट प्रयास के बारे में बहुत जरूरी चर्चा को जन्म दिया है। मोदी युग ने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति भारत के दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण मोड़ को चिह्नित किया, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों को संबोधित करने और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को मुख्यधारा की स्वास्थ्य देखभाल नीतियों में एकीकृत करने पर अधिक ध्यान दिया गया। मोदी सरकार से पहले, भारत में मानसिक स्वास्थ्य को काफी हद तक नजरअंदाज किया गया था, और मानसिक बीमारियों को लेकर लोगों में एक शर्म और भ्रान्ति व्यापक था। हालाँकि, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साशन में, मानसिक स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में मान्यता देने की दिशा में बदलाव हुआ।

मानसिक स्वास्थ्य ऐतिहासिक रूप से भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य का सबसे उपेक्षित पहलू रहा है, जो संक्रामक रोगों और बुनियादी ढाँचे की कमियों की वजह से दबा हुआ था। आज़ादी के बाद से दशकों तक, नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक, कांग्रेस के नेतृत्व वाली लगातार सरकारें राष्ट्र निर्माण के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने में विफल रहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में, स्वास्थ्य सेवा ने आखिरकार केंद्र में जगह बना ली है, जिसमें क्रांतिकारी सुधारों का उद्देश्य इसे प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में एकीकृत करना और सभी के लिए सेवाओं को सुलभ, किफ़ायती और न्यायसंगत बनाना है। आइए इस पर अधिक विस्तार से चर्चा करें।

मानसिक स्वास्थ्य और इसका महत्व
भारत में मानसिक स्वास्थ्य एक बहुत ही गलत समझा जाने वाला और कलंकित विषय बना हुआ था। लगभग 14% भारतीयों को सक्रिय मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप की आवश्यकता होने के बावजूद, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-16) में पाया गया कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं वाले लगभग 80% लोग सामाजिक कलंक, जागरूकता की कमी या देखभाल तक सीमित पहुँच के कारण मदद नहीं लेते हैं। यह कलंक सांस्कृतिक धारणाओं से उपजा है जो अक्सर मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों को उपचार योग्य चिकित्सा समस्याओं के बजाय व्यक्तिगत कमज़ोरी या धार्मिक दोष के संकेत के रूप में देखते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य का मतलब सिर्फ़ मानसिक बीमारी का न होना नहीं है; इसमें भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कल्याण शामिल है, जो व्यक्ति के सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के तरीके को प्रभावित करता है। एक स्वस्थ दिमाग उत्पादक जीवन, सामंजस्यपूर्ण समाज और संपन्न अर्थव्यवस्था का आधार है। मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को अगर अनदेखा किया जाए, तो अपराध, बेरोज़गारी, मादक द्रव्यों के सेवन और कमज़ोर पारिवारिक व्यवस्था जैसी सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। भारत जैसे देश के लिए, जो 2047 तक विकसित राष्ट्र का दर्जा हासिल करने की आकांक्षा रखता है, मानसिक स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों से त्रस्त आबादी के लिए नवाचार करना, प्रतिस्पर्धा करना और अपनी आर्थिक गति को बनाए रखना मुश्किल होगा। मानसिक स्वास्थ्य को राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे में एकीकृत करना अनिवार्य है।

भारत का मानसिक स्वास्थ्य परिदृश्य:
भारत एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत की लगभग 7.5% आबादी मानसिक विकारों से पीड़ित है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-16) से पता चला है कि लगभग 15% भारतीय वयस्कों को सक्रिय मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप की आवश्यकता है, मानसिक स्वास्थ्य ख़राब है और इसके लिए पर्याप्त धन नहीं है। चौंकाने वाली बात यह है कि देश में प्रति 100,000 लोगों पर एक से भी कम मनोचिकित्सक हैं, जबकि WHO ने प्रति 100,000 पर तीन मनोचिकित्सक होने की सिफारिश की है। भारत में मानसिक विकारों के लिए उपचार का अंतर 70-92% के बीच है, और मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान का अनुमान 2012 और 2030 के बीच 1.03 ट्रिलियन डॉलर है (World Economic Forum)। ऐसे चौंकाने वाले आँकड़े मानसिक स्वास्थ्य को संबोधित करने के लिए मजबूत नीतियों और बुनियादी ढाँचे की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

अमेरिका मानसिक स्वास्थ्य पर सालाना 238 बिलियन डॉलर से ज़्यादा खर्च करता है, जहाँ हर 100,000 लोगों पर लगभग 12 मनोचिकित्सक हैं। इसी तरह, यूरोप में मानसिक स्वास्थ्य प्रणाली अच्छी तरह से विकसित है, जहाँ जर्मनी जैसे देश हर 10,000 लोगों पर 18 से ज़्यादा मनोरोग विशेषज्ञ उपलब्ध कराते हैं। इस बीच, चीन में 2013 में अपने पहले मानसिक स्वास्थ्य कानून के बाद से मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ी है। हालाँकि, अनुमान है कि 160 मिलियन लोगों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की ज़रूरत है, चीन में हर 10,000 लोगों पर लगभग 1.7 मनोरोग विशेषज्ञ उपलब्ध हैं।

मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम 2017: एक महत्वपूर्ण मोड़
मोदी के नेतृत्व में, सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों को संबोधित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम, 2017, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान पेश किया गया था, जिसमें केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने इसके निर्माण और परिचय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह अधिनियम भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था और मई 2018 में लागू हुआ था।

अधिनियम का सबसे सकारात्मक पहलू यह है कि यह मानसिक बीमारी को मानवाधिकार के मुद्दे के रूप में मान्यता देता है, यह सुनिश्चित करता है कि मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति वाले व्यक्तियों के साथ बहिष्कृत जैसा व्यवहार न किया जाए, बल्कि वे कानून के तहत देखभाल, उपचार और सुरक्षा के हकदार हों। अधिनियम में यह अनिवार्य किया गया है कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ सभी के लिए उपलब्ध होनी चाहिए, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो, मानसिक स्वास्थ्य को सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में एकीकृत करके और यह सुनिश्चित करके कि सेवाएँ सभी स्तरों पर उपलब्ध हों। यह आत्महत्या के अपराधीकरण पर भी जोर देता है और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति एक दयालु, पुनर्वास दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है। यह अधिनियम मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच के अधिकार को सुनिश्चित करता है, मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्डों की स्थापना को अनिवार्य बनाता है, तथा उपचार से पहले सूचित सहमति की गारंटी देता है, जिससे रोगियों को सशक्त बनाया जाता है। इसके अलावा, यह अधिनियम मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा और पेशेवरों के प्रशिक्षण को बढ़ावा देने का आह्वान करता है, जिससे अधिक सूचित और सहायक स्वास्थ्य सेवा वातावरण में योगदान मिलता है।

आयुष्मान भारत के तहत व्यापक मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ
आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों के माध्यम से व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के अंतर्गत मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को शामिल करना, जिन्हें अब आयुष्मान आरोग्य मंदिर के रूप में जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार ने 1.73 लाख से अधिक उप-स्वास्थ्य केंद्रों (एसएचसी) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) को आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में सफलतापूर्वक अपग्रेड किया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ जमीनी स्तर पर उपलब्ध हों।

ये केंद्र अब मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की एक श्रृंखला प्रदान करते हैं, जिसमें आउटपेशेंट परामर्श, मनो-सामाजिक हस्तक्षेप, मूल्यांकन, परामर्श, निरंतर देखभाल और आवश्यक दवाओं तक पहुँच शामिल है। यह दृष्टिकोण मानसिक बीमारियों का शीघ्र पता लगाना और उनका प्रबंधन सुनिश्चित करता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य सेवा से जुड़े कलंक और बाधाओं को कम किया जा सकता है।

जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (DMHP): स्थानीय स्तर पर कमियों को दूर करना
767 जिलों में लागू जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (DMHP) ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) तक सेवाओं का विस्तार करके भारत के मानसिक स्वास्थ्य ढांचे को काफी मजबूत किया है। यह देखभाल का एक मजबूत नेटवर्क प्रदान करता है, जिसमें आउट पेशेंट देखभाल, मनो-सामाजिक परामर्श, आउटरीच कार्यक्रम और एम्बुलेंस सेवाओं जैसी आवश्यक सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। यह व्यापक दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप वंचित और कमज़ोर आबादी तक पहुँचे, जिससे कल्याण के समग्र मॉडल को बढ़ावा मिले।

राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NTMHP): एक डिजिटल क्रांति
10 अक्टूबर, 2022 को लॉन्च किया गया, राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NTMHP) मानसिक स्वास्थ्य सेवा में एक डिजिटल छलांग का प्रतिनिधित्व करता है। सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23, 2023-24 और 2024-25 में NTMHP के लिए क्रमशः 120.98 करोड़, 133.73 करोड़ और 90 करोड़ आवंटित किए हैं। देश भर में संचालित एक टोल-फ्री हेल्पलाइन (14416) के साथ, यह कार्यक्रम 20 भाषाओं में 24×7 टेली-परामर्श सेवाएँ प्रदान करता है, जिससे सभी के लिए पहुँच सुनिश्चित होती है। नवंबर 2024 तक, 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 53 टेली-मानस सेल स्थापित किए गए हैं, जो 15.95 लाख से अधिक कॉल संभालते हैं। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2024 पर लॉन्च किया गया टेली-मानस मोबाइल एप्लिकेशन मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए एक मंच प्रदान करता है, जिसमें स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

तृतीयक देखभाल और मानव संसाधन को मजबूत बनाना
तृतीयक मानसिक स्वास्थ्य सेवा को मजबूत करने के लिए, सरकार ने 25 उत्कृष्टता केंद्रों को मंजूरी दी है और 19 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य विशेषताओं में 47 स्नातकोत्तर (पीजी) विभागों की स्थापना या वृद्धि का समर्थन किया है। प्रशिक्षित पेशेवरों की तीव्र आवश्यकता को पहचानते हुए, इसने एमडी (मनोचिकित्सा) पाठ्यक्रमों में प्रवेश को आसान बनाने के लिए स्नातकोत्तर आवश्यकताओं को संशोधित किया है, ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में अभ्यास करने के लिए मनोचिकित्सकों और विशेषज्ञों के लिए प्रोत्साहन पेश किए हैं, और प्रमुख मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में डिजिटल अकादमियों की स्थापना की है। इन अकादमियों ने 2018 से 42,488 से अधिक पेशेवरों को प्रशिक्षित किया है, मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी को दूर किया है और यह सुनिश्चित किया है कि गुणवत्तापूर्ण देखभाल कम सेवा वाले क्षेत्रों में भी सुलभ हो।

मानसिक स्वास्थ्य कार्यबल का विस्तार करने के प्रयासों में ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने के लिए विशेषज्ञों को प्रोत्साहित करना और NIMHANS, बेंगलुरु; लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई क्षेत्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान, असम; और केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान, रांची जैसे प्रमुख संस्थानों में डिजिटल अकादमियों के माध्यम से ऑनलाइन प्रशिक्षण प्रदान करना शामिल है। 2018 में अपनी स्थापना के बाद से, इन अकादमियों ने 42,488 पेशेवरों को प्रशिक्षित किया है।

कुशल कार्यबल के लिए मानसिक स्वास्थ्य:
ग्लोबल इंश्योरेंस ब्रोकर्स द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि 46% भारतीय फर्मों का मानना है कि उन्हें अपने कर्मचारियों के लिए बेहतर मानसिक स्वास्थ्य सहायता की आवश्यकता है। यह मान्यता बढ़ते अस्पताल बिलों को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच आई है, जो राजस्व वृद्धि और वेतन वृद्धि से कहीं ज़्यादा है, जिससे व्यवसायों के लिए वित्तीय चुनौतियाँ बढ़ गई हैं। आगे के शोध से पता चलता है कि भारत में कार्यस्थल पर तनाव अक्सर लंबे समय तक काम करने, खराब कार्य-जीवन संतुलन और सामाजिक और पेशेवर अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए अत्यधिक आत्म-लगाए गए दबाव से प्रेरित होता है।

मोदी सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाली नीतियों के माध्यम से कार्यस्थलों में मानसिक स्वास्थ्य को संबोधित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। उदाहरण के लिए, 2017 का मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम कर्मचारियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा को अनिवार्य बनाता है, जिससे नियोक्ताओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति वाले व्यक्तियों के साथ भेदभाव करना अवैध हो जाता है। इसके अलावा, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम जैसी पहलों की शुरूआत और सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों में मानसिक स्वास्थ्य को एकीकृत करना विभिन्न क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सहायता में सुधार के लिए व्यापक प्रतिबद्धता का संकेत देता है।

मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देकर, ये प्रयास नौकरी की संतुष्टि, उत्पादकता और समग्र कार्य कुशलता में सुधार कर सकते हैं। एक स्वस्थ कार्यबल न केवल अधिक व्यस्त रहता है, बल्कि अनुपस्थिति और टर्नओवर की संभावना भी कम होती है, जिससे अंततः संगठन के प्रदर्शन को लाभ होता है। मानसिक स्वास्थ्य में कॉर्पोरेट जिम्मेदारी के लिए सरकार का जोर और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को पहचानने और संबोधित करने के लिए कार्यस्थल संस्कृति में क्रमिक बदलाव एक अधिक लचीला और प्रभावी कार्यबल को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है।

मानसिक स्वास्थ्य के प्रति मोदी सरकार का बहुआयामी दृष्टिकोण एक स्वस्थ और अधिक उत्पादक भारत के लिए मजबूत नींव रख रहा है। प्रमुख परिणामों में आयुष्मान आरोग्य मंदिरों और टेली-मानस के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक बेहतर पहुंच, कलंक को कम करने और प्रारंभिक हस्तक्षेप को बढ़ाने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में मानसिक स्वास्थ्य को एकीकृत करना और उपचार की कमी को पाटने के लिए कुशल मानसिक स्वास्थ्य कार्यबल का विकास शामिल है। हालांकि, मानसिक बीमारियों के लिए महत्वपूर्ण उपचार अंतर और सामाजिक कलंक जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं, जो कई लोगों को मदद लेने से रोकती हैं। इनसे निपटने के लिए, सरकार को पहल का विस्तार करना, जागरूकता अभियान बढ़ाना और अधिक समावेशी मानसिक स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना जारी रखना चाहिए।

जैसा कि भारत 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करता है मोदी सरकार ने एक मजबूत मानसिक स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए अभूतपूर्व कदम उठाए हैं, लेकिन आगे की राह में एक व्यापक मानसिक स्वास्थ्य रणनीति स्थापित करने के लिए निजी क्षेत्र, गैर सरकारी संगठनों और शिक्षाविदों के साथ सहयोग के साथ-साथ अधिक पेशेवरों, निरंतर जागरूकता प्रयासों और बढ़े हुए निवेश की आवश्यकता है। मानसिक स्वास्थ्य में मोदी सरकार के प्रयास भारत की स्वास्थ्य सेवा नीति में एक आदर्श बदलाव को दर्शाते हैं। जमीनी स्तर पर हस्तक्षेप से लेकर डिजिटल प्लेटफॉर्म का लाभ उठाने और तृतीयक देखभाल को बढ़ावा देने तक, ये सुधार समग्र कल्याण के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं। जैसे-जैसे भारत एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर होता है, मानसिक स्वास्थ्य एक प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए।

इस महत्वपूर्ण मुद्दे को संबोधित करके, मोदी सरकार न केवल व्यक्तिगत जीवन में सुधार कर रही है, बल्कि देश के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने को भी मजबूत कर रही है। यह एक स्वस्थ, अधिक लचीले भारत की सुबह है, जहाँ प्रत्येक नागरिक के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा की जाती है। भारत सही रास्ते पर है, और निरंतर ध्यान के साथ, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य एक विकसित राष्ट्र बनने की हमारी यात्रा का आधार बने। दशकों की उपेक्षा के बाद, मोदी सरकार ने अंततः मानसिक स्वास्थ्य को वह प्राथमिकता दी है जिसका वह हकदार है, जिससे एक बार फिर साबित हो गया है कि भारत प्रगति के एक नए युग की ओर अग्रसर है।

Shivesh Pratap
Management Consultant, Author, Public Policy Analyst
Six Sigma BlackBelt & IIM Calcutta Alumnus
Mob: 8750091725
Email: shiveshemail@gmail.com

नव वर्ष के उपलक्ष्य में‌ सत्संग ज्ञान यज्ञ आयोजित

भुवनेश्वर। प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष 2025 में‌ उत्तराखण्ड ऋषिकेश से पधारे सद्गुरु व्यासानंद जी महाराज जी ने व्यासपीठ से सद्गुरु, सद्ग्रंथ और सत्संग के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए नव वर्ष में इन्हें अपनाने का संदेश दिया। व्यासानंद का स्वागत अशोक पाण्डेय ने किया और स्पष्ट किया कि हमें अपने क्रोध रुपी दुश्मन का त्याग कर अपने विवेक रुपी सच्चे मित्र को अपनाना चाहिए। आयोजन पक्ष की ओर से सीए अनिल अग्रवाल तथा गिरधारी हलान ने व्यासपीठ पर स्वामी व्यासानंद जी का स्वागत किया।
व्यासानंद जी ने जीवन में आनंद को अपनाने का संदेश कुछ मिनट मौन रहकर दिया। उन्होंने यह भी बताया कि पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से आज बचने की आवश्यकता है। उन्होंने शाकाहारी भोजन के साथ अपने अपने विचारों को और सोच को सकारात्मक बनाने की आवश्यकता है। भगवान उन्हीं की प्रार्थना सुनते हैं जो सद्गुणी होते हैं। उनके अनुसार कर्म हमारा जबतक मंगलमय नहीं होगा तब तक नव वर्ष मंगलमय हो कहना सार्थक नहीं होगा।आगत सभी ने प्रवचन का लाभ उठाया।

बस्ती के ब्रजबिहारी चतुर्वेदी ‘ब्रजेश’

ब्रजबिहारी चतुर्वेदी ‘ब्रजेश’ संवत् 1974 विक्रमी और मृत्यु संवत् 1947 विक्रमी को उत्तर प्रदेश के सन्त कबीर नगर के मलौली गांव में हुआ था। जो अब हैसर बाजार धनघटा नगर पंचायत मे वार्ड नंबर 6 में रखा गया है। यह पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचोबीच स्थित है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर स्थित है । ये इस परम्परा के कवि पंडित श्रीराम नारायण चतर्वेदी के पुत्र थे। उन्होंने अपने बारे में खुद लिखा है –

सम्बत सन् उन्नीस सौ अरु चौहत्तर मान।

ज्येष्ठ त्रयोदस कृष्ण शनि जन्म ब्रजेश सुजान।

चौबे वुल सुपुनीत भू ग्राम मलौली खास।

रामनरायण सुकवि के पूर्व किए अभिनाश।।

ये बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि वाले थे। ये रंगपाल जी के घर हरिहरपुर बराबर आया जाया करते थे। मैथिलीशरण गुप्त तुलसी बिहारी और देव,कलाधर, द्विजेश बद्री प्रसाद पाल, गया प्रसाद शुक्ल सनेही, जगदम्बा प्रसाद हितैषी तथा रीवा के बृजेश कवि से प्रभावित रहें हैं। जमींदारी टूटने से परेशान होते हुए भी वे साहित्य के लिए समय निकल लेते थे। अंधे होते हुए भी वह लिखने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे। वे 40 वर्षों तक जिले के छंद परम्परा के विकास में जुड़े रहे।

रचनाएं :-

इन्होंने तीन रचनाएं लिखी थीं।

कवित्त मंजूषा

इसमें 1000 छंद होना कहा जाता है। दोहा, सवैया, मनहरन, कुण्डली, रोला तथा मधुरा आदि में रचनाएं लिखी गई हैं।

प्राकृतिक वर्णन, सरयू वर्णन,केवट प्रसंग, व्यंग्य रमोमा, लंका दहन, बबुआ अष्टक आदि प्रसंगों का मनोहारी निरूपण किया गया है।

ब्रजेश सतसई दो भाग में ( भाग 1)

सतसई के प्रथम भाग में श्रृंगार परक, भक्ति परक और नीति परक दोहों की रचना की गई है। श्रृंगार में वियोग परक दोहे मिलते हैं। पौराणिक प्रसंग के दोहे मन को आह्लादित करती हैं।

ब्रजेश सतसई भाग 2

इसमें नीति , वैराग्य और गंगा जी पर भक्ति परक दोहे आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।

राम चरितावली :-

इसमें राम चरित मानस की तरह वृहद रूप राम कथा लिखने का प्रयास किया गया है। विविध छंदों में नैनी जेल में बन्द स्वतंत्रता सेनानियों को लक्ष्य करके पण्डित मदन मोहन मालवीय जी के मुख से राम कथा कहलवाई गई है। कालिदास से प्रेरित रघुवंश के इच्छाकु से लेकर राम जी सम्पूर्ण चरित्र को उजागर किया गया है।भारत महिमा से ग्रन्थ का श्री गणेश किया गया है।

श्रृंगार और नीति के कवि :-

ब्रजेश जी मूलतः श्रृंगार और नीति के कवि थे। ब्रज भाषा के पक्षधर थे। संस्कृत के ज्ञान के शब्दों में लालित्य अपने आप आता गया है। अलंकारों में उत्प्रेक्षा उपमा रूपक संदेह भ्रतिमान अनन्वय तदगुण श्लेष आदि का प्रयोग इनके दोहों में बड़ी उत्कृष्टता के साथ हुआ है। शब्दों की सफाई के साथ भावों का अभिव्यक्ति करण बड़ा ही प्रवाहमय है। शब्दों में विषयबोध के प्रति पर्याप्त शालीनता है। बस्ती के छंदकार शोध प्रबंध के शोधकर्ता स्मृतिशेष डा.मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ जी ने पृष्ठ 170 पर ब्रजेश जी का मूल्यांकन इन शब्दों में किया है –

“ब्रजेश जी का बस्ती मंडल के छंदकारों में अपना एक विशिष्ट स्थान है। विद्वानों के बीच में ब्रजेश जी अपने पांडित्य के लिए सदैव सम्मादृत रहे हैं। —– उनकी ब्रजेश मंजूषा और ब्रजेश सतसई हिन्दी की अनूठी निधि है। यह प्रकशित होते ही मंडल की छंद परम्परा को ये गौरव शाली कृतियां महत्व ही नहीं प्रदान करेगी अपितु इस चरण के साहित्यिक गौरव को बढ़ाने में सक्षम होगी।छंद परम्परा के विकास में ब्रजेश जी के कई पीढ़ी की कवियों ने जो गौरव दिया है उसके स्थाई स्तम्भ के रूप में ब्रजेश जी सदैव सम्मादृत रहेंगे।”

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)

अनुवाद: स्वरूप,संवेदना और सन्देश

कुछेक दशकों से ‘अनुवाद’ का एक विषय के रूप में महत्व बढ़ गया है।कई विश्वविद्यालयों और संस्थाओं में अनुवाद वहां के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है और स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर की परीक्षाएं भी होने लगी हैं।  मीडिया,अनुवाद-ब्यूरो,संवाद-लेखन, सरकारी-कार्यालयों  आदि में कुशल अनुवादकों की ज़रूरत बढ़ने लगी है।इसके अलावा वर्तमान समय में, जब वैश्वीकरण के चलते विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के बीच संवाद का महत्व बढ़ गया है, अनुवाद का उपयोग न केवल शैक्षणिक, बल्कि व्यावसायिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी अपरिहार्य बन गया है। छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए, अनुवाद अध्ययन का एक अनिवार्य अंग बन गया है, क्योंकि यह उन्हें विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध साहित्य, शोध-पत्रों और अन्य शैक्षणिक सामग्रियों तक पहुँचने की सुविधा प्रदान करता है।
यह परीक्षा की तैयारी में मददगार होता है और ज्ञान के विविध पहलुओं को समझने में सहायता करता है।इसके अलावा अनुवाद का महत्व केवल शिक्षा तक सीमित नहीं है। यह साहित्य, व्यापार, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अन्य कई क्षेत्रों में भी समान रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अनुवाद के बिना, विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के बीच संपर्क स्थापित करना लगभग असंभव हो जाता। इसलिए, यह कहना गलत नहीं होगा कि अनुवाद, भाषा और संस्कृति के बीच सेतु का कार्य करता है।

मैं ने अनुवाद के क्षेत्र में बहुत काम किया है।देश की अनेक साहित्यिक संस्थाओं ने इस कार्य के लिए मुझे सम्मानित-पुरस्कृत भी किया है। अपने दीर्घकालीन अनुभवों को साक्षी बनाकर अनुवादकला पर एक समीक्षत्मक/विवेचनात्मक पुस्तक लिखने का मन बहुत दिनों से था। 2024 में काम शुरू किया और आज 2025 के पहले ही दिन इस श्रमसाध्य पुस्तक के आवरण-पृष्ठ को देख अपार आनंद की अनुभूति हो रही है। प्रकाशक महोदय ने दो-तीन डिज़ाइन भेजे जिनमें से मुझे यह नयनाभिराम डिज़ाइन अच्छा लगा।प्रस्तुत पुस्तक अनुवाद की परिभाषा से लेकर उसके व्यावहारिक उपयोग और अनुवाद करने के नियमों तक के सभी ज़रूरी पहलुओं पर प्रकाश डालती है।अनुवाद-प्रेमियों,विद्यार्थियों,शोध-छात्रों,अध्यापकों आदि के लिए प्रस्तुत पुस्तक समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी। पुस्तक शीघ्र छपकर आ रही है और अमेज़न, फ्लिपकार्ट आदि से उपलब्ध होगी।

डारियो बने विष्णु आनंद और मार्टिना बनी मंगलानंद, 3 विदेशी जोड़ों ने हिंदू रीति-रिवाज से विवाह किया

मध्य प्रदेश के उज्जैन में 3 विदेशी जोड़ों की शादी चर्चा का विषय बना हुआ है। अमेरिका, इटली और पेरू से योग सीखने आए विदेशियों को भारत की संस्कृति ऐसी रास आई कि उन्होंने सनातन धर्म को अपना लिया।

मध्य प्रदेश के उज्जैन में 3 विदेशी जोड़ों की शादी चर्चा का विषय बना हुआ है। अमेरिका, इटली और पेरू से योग सीखने आए विदेशियों को भारत की संस्कृति ऐसी रास आई कि उन्होंने सनातन धर्म को अपना लिया। साथ ही तीनों विदेशी कपल ने हिन्दू रीती रिवाज से विवाह भी रचाया।

मध्य प्रदेश के उज्जैन में 3 विदेशी जोड़ों ने हिन्दू रीती रिवाज से शादी की। उन्होंने निमंत्रण कार्ड भी छपवाए और परिचितों को देकर आमंत्रित भी किया। इस विवाह में मेहंदी और हल्दी इंदौर में हुई और विवाह उज्जैन के एक आश्रम में हुआ। बताया जाता है कि तीनों कपल इंदौर के परमानंद इंस्टीट्यूट ऑफ योगा साइंस एंड रिसर्च इंडिया में योग प्रशिक्षण लेने इटली, अमेरिका और पेरू से आए थे। योग के प्रशिक्षण लेने के दौरान इन्होंने एक-दूसरे को ठीक से जाना और जिंदगी भर साथ रहने के लिए दाम्पत्य जीवन में बंधने का निर्णय लिया।

उज्जैन के निनोरा स्थित परमानंद योग आश्रम में भारतीय वैदिक परंपरा से तीन विदेशी कपल का रविवार विवाह कराया गया। इससे पहले शनिवार को विवाह की आधी रस्में इंदौर में निभाई गई जहां मेहंदी, हल्दी और महिला संगीत हुआ। इस दौरान तीनों कपल ने जमकर डांस किया। विवाह के दौरान तीनों कपल ने एक-दूसरे को वरमाला पहनाई और फेरे लेकर जीवन भर साथ रहने का वादा किया। तीनों कपल 3 जनवरी को अपने-अपने देश लौट जाएंगे।

जानकारी के अनुसार, तीनों कपल ने योग सीखते समय भारतीय परंपरा, सनातन धर्म, पूजा-पाठ, त्यौहार, वैदिक पद्धति, विवाह पद्धति का गहनता से अध्ययन किया। यहां आने के बाद सभी ने वैदिक पद्धति से हिंदू नाम भी अपनाए हैं। डारियो बने विष्णु आनंद, मार्टिना बनी मां मंगलानंद, इवान बने आचार्य रामदास आनद तो ग्रेबिला मां समानंद, वहीं मारजियो प्रकाश आनद और नेलमास बनी मां नित्यानंद। उज्जैन में डारियो संग मार्टिना, इअन संग गेब्रियला और मॉरजिओ संग नेल्मास के फेरे हुए।

वेदों और उपनिषदों में नए वर्ष की बधाई के श्लोक

वेदों और उपनिषदों में सीधे “नए वर्ष” की बधाई के लिए श्लोक नहीं मिलते, क्योंकि वैदिक और उपनिषदिक काल में ऐसा आधुनिक “नए वर्ष” का संकल्प नहीं था। लेकिन इन ग्रंथों में जीवन, समृद्धि, आरोग्य, और शुभता के लिए कई श्लोक मिलते हैं, जिन्हें नए वर्ष की शुभकामनाओं के संदर्भ में उपयोग किया जा सकता है।

इन श्लोकों में जीवन के हर पहलू के लिए प्रार्थना है—दीर्घायु, समृद्धि, शांति, और मंगलमय जीवन। इन्हें नए वर्ष की शुभकामनाओं के लिए उपयोग करना वैदिक परंपरा के साथ जुड़ने का एक सुंदर और आध्यात्मिक तरीका है।

हालांकि ये कैलेंडर वर्ष है जिसमें अंग्रेजी तारीख के हिसाब से वर्ष बदल रहा है। लेकिन हम अपने विक्रम संवत् के हिसाब से तो वर्ष 2081 में प्रवेश कर चुके है।

इसी भावना को व्यक्त करता ये श्लोक है-

अयं नूतन आंग्लवर्ष: भवत्कृते

भवत्परिवारकृते च मंगलमयः ।

क्षेमस्थैर्यारोग्यैश्वर्याभिर्वृद्धिकारकः

भवतु इति प्रार्थना एवं शुभेच्छाः ।।

न भारतीयो नववत्सरोSयं

तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् ।

यतो धरित्री निखिलैव माता

तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।।

पाश्चातनववर्षस्यहार्दिकाःशुभाशयाः समेषां कृते ।।

यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो ; क्योंकि सम्पूर्ण पृथ्वी हमारी माता ही है और विश्व का हर व्यक्ति हमारा बंधु-बांधव है।

सर्वजन सुख और समृद्धि के लिए (यजुर्वेद)

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।।”

(अर्थ: सभी सुखी हों, सभी निरोगी रहें, सभी मंगलमय घटनाएँ देखें और कोई भी दुःख का भागी न हो।)

आशा और प्रेरणा के लिए श्लोक

आयु: शुभं यशः शक्ति:
बुद्धिः श्रीर्बलं सुखम्।
देहि मे जगतां नाथ
नववर्षे नवीनताम्।”

यह श्लोक विशेष रूप से नववर्ष की नई शुरुआत के लिए उपयुक्त है, जिसमें जीवन की ऊर्जा और नवीनता की कामना की गई है।

वर्षं नवं हि मंगलमयम्,
आनन्ददं सुखप्रदम्।
नूतनं वर्षमायातु,
सर्वत्र विजयप्रदम्।”

यह श्लोक एक सुंदर तरीके से नववर्ष के स्वागत और शुभता की अभिव्यक्ति करता है।

संपन्नता और उन्नति के लिए (यजुर्वेद)

पयोऽस्मासु धेयम्
श्रीश्च देव्यधिवसो दधातु।”

(अर्थ: हमें जीवन में समृद्धि प्राप्त हो और देवी लक्ष्मी हमें आशीर्वाद दें।)

जीवन की सकारात्मकता और शुभता के लिए (ऋग्वेद)

आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः।”
(अर्थ: चारों दिशाओं से हमारे जीवन में केवल शुभ विचार और ऊर्जा आएँ।)

 संसार की मंगलकामना के लिए (उपनिषद)

ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।।”

(अर्थ: हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो और मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।)

 ऋतु परिवर्तन और नवीन ऊर्जा के लिए (ऋग्वेद)

सम्राज्यं भोज्यं स्वाराज्यं
वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं
महाराज्यमधिपत्यमैष्याम्।”

(अर्थ: यह वर्ष सभी के लिए सर्वोत्तम शासन, समृद्धि और आनंद का प्रतीक बने।)

मंगलकारी वर्ष के लिए प्रार्थना (ऋग्वेद)

इदं वर्षं मधुमयं भवतु।
सर्वे जनाः सुखिनो भवन्तु।”

(अर्थ: यह वर्ष सभी के लिए मधुर और मंगलमय हो, और सभी लोग सुखी हों।)

दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए

शतमानं भवति शतायु: पुरुष: शतम्।
शतं चन्द्रा अंकमाना: शतम्।”

(अर्थ: आप सौ वर्षों तक जीएँ, दीर्घायु और सुखद जीवन प्राप्त करें। आपका जीवन चंद्रमा के समान शीतल और शांत हो।)

सुख-शांति और आरोग्य के लिए

आरोग्यम् भास्करादिच्छेत्
श्रीं इच्छेत् विष्णुमालयात्।
सम्पतिं शंकरादिच्छेत्
मोक्षं इच्छेत् जनार्दनात्।।”

(अर्थ: स्वास्थ्य के लिए सूर्य की पूजा करें, लक्ष्मी और समृद्धि के लिए विष्णु की प्रार्थना करें। धन और सुख के लिए शिव की आराधना करें और मोक्ष के लिए भगवान नारायण का ध्यान करें।)

सर्व मंगल और कल्याण के लिए

मांगल्यं तनुतां तेषां
श्रीरामाय नमोऽस्तु ते।
सर्वेषां मंगलं भूयात्
सर्वेषां शुभमस्तु नित्यम्।”

(अर्थ: भगवान राम सभी को मंगल प्रदान करें। सभी का जीवन हमेशा शुभ और मंगलमय हो।)

नववर्ष की नई ऊर्जा और सफलता के लिए

सुखार्थिन: कुतो धर्म:
धर्मार्थिन: कुतो सुखम्।
जहीहि तृष्णां यो भद्रं
तस्मिन् स्थिरो भवे।”

(अर्थ: जो धर्म चाहता है, उसे सच्चा सुख मिलता है। लालसा को त्यागकर जीवन में स्थिर और शुभ रहो।)

शांति और समृद्धि का आशीर्वाद

शान्तिः शान्तिः शान्तिः,
सर्वत्र शुभमस्तु।
नूतनं वर्षं जयमयम्,
सर्वे भवन्तु सुखिनः।”

(अर्थ: सब ओर शांति हो, सभी के जीवन में शुभता हो। नया वर्ष सभी के लिए विजयी और आनंदमय हो।)

सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु।
सर्वः कामानवाप्नोतु सर्वः सर्वत्र नन्दतु।।

सब लोग कठिनाइयों को पार करें, सभी का कल्याण हो,  सभी की मनोकामनाएँ पूर्ण हो, सभी हर परिस्थिति में आनंदित हों।

नववर्ष में उन्नति और विजय के लिए

जयन्ति ते सुकृतिनः
रससिद्धाः कृतश्चिता।
नूतन वर्षे सदा हि
सिद्धिं कुरु कृपानिधे।”

(अर्थ: अच्छे कर्म करने वालों को विजय और सिद्धि प्राप्त होती है। हे कृपा के सागर, इस नए वर्ष में सभी को सिद्धि और सफलता प्रदान करें।)

सकारात्मकता और अच्छे जीवन के लिए

दुर्गाणि दुर्गतोऽत्यन्तं
सर्वेषां मंगलं सदा।
नूतनं वर्षं भद्रं अस्तु,
जीवनं सफलं भवेत्।”

(अर्थ: नए वर्ष में सभी बाधाएँ दूर हों, हर किसी के लिए मंगलमय जीवन हो और सफलता प्राप्त हो।)

आशासे त्वज्जीवने नवं वर्षम् अत्युत्तमं शुभप्रदं स्वप्नसाकारकृत् कामधुग्भवतु।
मुझे उम्मीद है कि नया साल आपके जीवन का सबसे अच्छा साल होगा। आपके सभी सपने सच हों और आपकी सभी आशाएँ पूरी हों।

अवतु प्रीणातु च त्वां भक्तवत्सलः ईश्वरः।
भगवान आपकी सुरक्षा करें और आप पर कृपा बनाएं रखे। नववर्ष की शुभकामना!

सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु । सर्वः कामानवाप्नोतु सर्वः सर्वत्र नन्दतु ॥

अर्थ: सब लोग कठिनाइयों को पार करें, कल्याण ही कल्याण देखें, सभी की मनोकामना पूर्ण हो, सभी हर परिस्थिति में आनंदित हो।

  आशासे त्वज्जीवने नवं वर्षम् अत्युत्तमं शुभप्रदं स्वप्नसाकारकृत् कामधुग्भवतु।

मैं आशा करता हूँ कि नया वर्ष आपके जीवन में बहुत अच्छा, शुभ और सपनों को पूरा करने वाला हो।

  ब्रह्मध्वज नमस्तेऽस्तु सर्वाभीष्टफलप्रद । प्राप्तेऽस्मिन् वत्सरे नित्यं मद्गृहे मङ्गलं कुरु ॥

 हे ब्रह्मध्वज, जो सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाले हो, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। इस नए वर्ष में हमेशा मेरे घर में मंगलमय वातावरण बनाए रखें।

आपृच्छस्व पुराणम् आमन्त्रयस्व च नवम् आशा-सुस्वप्न-जिगीषाभिः।नववर्षशुभाशयाः

 पुराने वर्ष  को अलविदा कहकर आशा, सपने और महत्वाकांक्षा से भरे नए वर्ष को गले लगाओ। आपको नए वर्ष की हार्दिक बधाई!

अन्य कुछ छोटे और मंगलमय वाक्य:

  नववर्षस्य शुभाशयाः। (नए वर्ष की शुभकामनाएं।)

  नववर्ष नवोत्साहं ददातु। (नया वर्ष नया उत्साह प्रदान करे।)

  नववर्ष नवहर्षम् आनयतु। (नया वर्ष नया हर्ष लाए।)

अत्यद्भुतं ते भवतु अग्रिमं वर्षम्।

आने वाला साल आपके लिए अच्छा हो! नववर्ष की शुभकामनाएं।

इन श्लोकों का उपयोग करके आप अपने प्रियजनों को नए साल की शुभकामनाएं दे सकते हैं।