Monday, November 25, 2024
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समाज को आईना दिखाता उद्भ्रांत शर्मा का सृजन

राजस्थान के नवलगढ़ में जन्म ले कर कवि के रूप में देशव्यापी पहचान बनाने वाले रचनाकार रमाकांत शर्मा जो उदभ्रांत नाम से प्रसिद्ध हैं । आज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो ऐसे बहुत कम साहित्यकार हैं जो जनता की भावनाओं को समझ कर लिखते हैं। इनके रचनाकर्म पर लेनिन की कही बात सटीक बैठती है जब उन्होंने कहा था कि सच्चा साहित्य वह है जो जनता की भाषा बोले। ये एक ऐसे संवेदनशील रचनाकार हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा समाज को आइना दिखाया है। सीधे सरल शब्दों में कविता के माध्यम से लोगों तक अपना मंतव्य पहुंचाने में इनका कोई सानी नहीं है। करीब 11 वर्ष की आयु में लिखना शुरू कर दिया और लेखन के क्षेत्र में  वर्ष 1959 से कदम रख कर परिस्थितियों से कभी हार नही मानने वाले
रचनाकार  जीवन के 75 बसंत देखने के बाद भी जिंदादिली के साथ पूर्ण रूप से सृजन में सक्रिय हैं। सृजन की विशेषता है कि विरोध से कभी डरे नहीं और भ्रष्टाचार का खंडन एवं उसका घोर विरोध किया है। समाज में होने वाली घटनाओं पर वे बिना किसी पक्षपात के तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं फिर चाहे वह सरकार के पक्ष में हो या विरोध में । इनकी एक कविता “
स्पंद ” के भाव देखिए….
कहीं कुछ
अघटित हुआ घटित
शक्तिशाली
सूक्ष्मदर्शी की पकड़ से भी अदृश्य रहने वाले
लघुतम परमाणु के भीतर
हुआ कोई
भूतो न भविष्यत्
ऐसा विस्फोट
आवाज़ तो सुनाई नहीं दी
पर अध्ययन-कक्ष में
प्रकृति के स्टैंड पर घूमता पृथ्वी का ग्लोब
अचानक हिल गया
अपने केंद्र से
अनादि-क्षेत्रीय ब्रह्मांड के
अनंत-खंडीय भवन में
पैदा करते हुए
एक सार्थक स्पंद!
 वे ‘ हिंदी के उन श्रेष्ठ कवियों मे से एक हैं जिनकी कविताएं अपने समय और समाज के सारे सवालो से हमे रू-ब-रू कराती हैं । जीवन का कोई ऐसा पक्ष नही है जो इनकी कविताओं में चित्रित न हुआ हो। कह सकते हैं  कि कविताएं बहुआयामी है , जिसमें मानववादी दृष्टिकोण समाहित है। इनकी कविता कल्पना से लेकर यथार्थ की और असाधारण से लेकर साधारण तक विकसित हुई है । हालांकि ये हिंदी साहित्य में कवि के रूप में विख्यात हैं परंतु इन्होंने कविताओं के साथ – साथ गद्य विधा में नाटक कहानी ,उपन्यास,निबंध आलोचना ,संस्मरण ,आत्मकथा जीवनी यात्रावृत्तांत, रेखाचित्र, को पढ़ा और लिखा है।  देखा जाए तो इनका गद्य साहित्य मानव जीवन के विशाल पक्षों को भी स्पर्श करता है ।
ये  हरिवंश राय बच्चन को अपना काव्य गुरु मानते हैं  और उन्होंने ही इन्हें ” उदभ्रांत” नाम दिया।         भारतीय संस्कृति,साहित्य और दर्शन में इनकी  गहरी रुचि हैं । वे त्रेता युग के रामराज्य की सारी नारियों को एक धरातल पर खड़ा कर उनके वैचारिक दृष्टिकोण की समरूपता की तुलना करते हैं तथा ‘गीता’ जैसे संस्कृतनिष्ठ महाकाव्य का हिन्दी  रूपान्तरण ‘प्रज्ञावेणु’  के नाम से गीत के रूप में जन-साधारण को सुलभ कराकर अपने आप में हिन्दी साहित्य की बहुत बड़ी सेवा की हैं ।
प्रसिद्ध आलोचक और अनुवादक दिनेश कुमार माली कहते हैं, “उनका मानना यह था ,कोई भी ब्लॉगर अपने ब्लाग मेँ जो चाहे,वह लिख सकता हैं । न व्याकरण का ध्यान ,न भाषा-शैली, न वाक्य-विन्यास का ख्याल,  अधकचरी भाषा का प्रयोग, हिन्दी-अंग्रेजी मिश्रित  क्या साहित्य की भाषा यही होती हैं ? साहित्य मेँ भाषा के प्रयोग का खास ध्यान रखा जाता हैं , यह भाषा मार्जित होनी चाहिए पूरी तरह से । एक प्रवाह होता हैं, जो पाठक को खींचते ले जाता हैं । केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह तो नहीं हैं, कि जो मन मेँ आए कह दो ,ब्लॉग और अपने आपको श्रेष्ठ लेखक मानकर स्थापित कर लो, उंचें दर्जे के लेखकों मेँ “।
इनकी पुस्तक ” मुठभेड़ ” एक रियल साहित्यिक इनकाउंटर का दस्तावेज़ हैं। साहित्य और असाहित्य ,प्रेम-नफरत और खरी-खोटी की सीमा पर होने वाली लड़ाई का। जिसमें एक सैनिक अपने चारों तरफ चक्रव्यूह में फँसकर लगातार साहित्य-अकादमियों  ,संपादकों ,लेखकों  के  साथ लगभग पांच दशकों से अभिमन्यु की तरह लड़ रहा हो, कलम के  रथ का पहिया निकाल कर और लड़ते-लड़ते क्लांत हो गया हो, बचा रह गया तो केवल क्रोध में भरकर जवाबी हमले के लिए। जब एक महान लेखक अपने ईद-गिर्द होने वाली अव्यवस्थाओं व अलोकतंत्र से जूझता हैं, तो उसका अंतस प्रतिक्रियास्वरूप तीखे हमले की तैयारी कर रहा होता हैं । लेखक का उद्देश्य दुर्भावना फैलाना नहीं होता हैं , वरन साहित्यिक खेमों में फैल रही गंदगी, भ्रष्टाचार,स्वेच्छाचार व स्वतंत्र मनोवृति पर कुछ हद तक अंकुश लगाना होता हैं कि किसी की नजर तो हैं उनके दुराचरण पर ।
इनका ‘स्वयंप्रभा ‘  खंडकाव्य 9 सर्ग में लिखी गई  रचना है जिसमे कवि ने रामायण की स्वयंप्रभा जैसी पात्र जिस पर आज तक किसी का ध्यान नहीं गया है पर अपनी रचना करते हुए पर्यावरण प्रदूषण और आसुरी प्रवृत्तियां दोनों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है । इसे मुंबई विश्वविद्यालय के स्नातक के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। इसके एक गीत ‘ कांटों का प्रतिवेदन ‘ को महाराष्ट्र शिक्षा बोर्ड द्वारा प्रकाशित महाराष्ट्र के 12 वीं कक्षा के पाठ्यक्रम में रखा गया है । “रुद्रावतार ”  इनकी  बहुचर्चित कविताओं में से एक है ।  यह कविता अपने प्रकाशन के समय से ही चर्चा में रही है । मुंबई विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय के निर्देशन मे रुद्रावतार पर एक लघु शोध भी लिखा गया है। इनके एक लघु उपन्यास ‘ नक्सल में उन्होंने नक्सली और उनकी जीवन शैली का सटीक चित्रण किया है। उपन्यास में ये दिखाने की  कोशिश की है कि अगर कोई इस तंत्र  के चक्कर में फंस जाता है तो वह चाहकर भी इससे नहीं निकल पाता है।
 प्रकाशन 
आपकी अब तक प्रकाशित 145 पुस्तकों में कुछ की विशेषताओं को ऊपर बताया गया है। प्रकाशित पुस्तकों पर एक नजर डालें तो इनकी प्रमुख पुस्तकों में त्रेता – ’अभिनव पांडव’, ’राधामाधव’ एवं ’वक्रतुण्ड’ (महाकाव्य) के क्रमशः 3,4,2 एवं 2 संस्करण प्रकाशित (पाठकों की भारी माँग के बाद आया ’त्रेता’ का पेंगुइन संस्करण जबर्दस्त चर्चा में), ’अनाद्यसूक्त’ (आर्ष काव्य), ’ब्लैकहोल’ (काव्यनाटक), ’प्रज्ञावेणु’ (मुक्तछन्द में गीता), ’अस्ति’, ’इस्तरी’, ’हँसो बतर्ज रघुवीर सहाय’, ’शब्दकमल खिला है’, ’नाटकतन्त्र तथा अन्य कविताएँ’ (सभी समकालीन कविताएं), ’लेकिन यह गीत नहीं’ (नवगीत), ’मैंने यह सोचा न था’ ( ग़ज़ल) इसका उर्दू संस्करण भी प्रकाशित, ’सदी का महाराग’ (सं. रेवतीरमण) और ’शेष समर’ (सं. बली सिंह) काव्य संचयन, ’नक्सल’ (लघु उपन्यास), ’  उदभ्रांत: श्रेष्ठ कहानियाँ’ (कहानी), ’कहानी का सातवां दशक’ (संस्मरणात्मक समीक्षा), ’आलोचना का वाचिक’ (वाचिक आलोचना), ’आलोचक के भेस में’ एवं ’मुठभेड़’ (आलोचना), ’शहर-दर-शहर उमड़ती है नदी’ और ’स्मृतियों के मील-पत्थर’ (संस्मरण), ’चंद तारीखें’ (डायरी), ’मेरे साक्षात्कार’ (इंटरव्यूज)। ’ब्लैकहोल’, ’ अनाद्यसूक्त’, ’अभिनव पाण्डव’ और ’राधामाधव’ के अंग्रेजी अनुवाद तथा ’राधामाधव’ के ओड़िया, उर्दू, छत्तीसगढ़ी, मैथिली एवं डोगरी भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित । ’मैंने जो जिया’ (आत्मकथा)- दो खण्ड शामिल हैं।
 संपादनः 
लेखन के साथ – साथ इन्होंने संपादक के रूप में भी कार्य किया। इन्होंने लघु पत्रिका आंदोलन और युवा की भूमिका, पत्र ही नहीं बच्चन मित्र हैं, पत्र भी इतिहास भी, हम गवाह चिड्डियों के उस सुनहरे दौर के, ’क्षणों के आख्यान’ (फेसबुक डायरी) दो खण्ड, युवा तथा युग प्रतिमान (पाक्षिक) एवं पोइट्री टुडे का संपादन भी किया है। आप कानपुर के दैनिक पत्र ” आज ” में तीन वर्षों तक वरिष्ठ संपादक रहे।
विद्वान कवि और  गद्यकार उदभ्रांत की रचनाओं पर मूल्यांकन कार्य भी बड़े परिमाण में किया गया है जो इनके सृजन कौशल और लेखन शैली की गुणवत्ता का प्रतीक कह सकते हैं। डॉ. आनंदप्रकाश दीक्षित, नित्यानंद तिवारी, कर्णसिंह चौहान, सेवाराम त्रिपाठी, करुणाशंकर उपाध्याय, कँवल भारती, लक्ष्मीकांत पांडेय, द्वारिकाप्रसाद चारुमित्र, बली सिंह, महेन्द्र प्रसाद कुशवाहा, दिनेश कुमार माली आदि विद्वानों द्वारा लिखित और संपादित लगभग दो दर्जन से अधिक पुस्तकें इनके साहित्य के मूल्यांकन को ले कर प्रकाशित हुई हैं।
उदभ्रांत जी को मिले मान – सम्मान की कथा भी इनके सृजन साहित्य के समान व्यापक है।  महत्वपूर्ण सम्मानों में प्रियदर्शनी अकादमी का ’प्रियदर्शनी’ सम्मान (त्रेता), मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी का भवानीप्रसाद मिश्र पुरस्कार (अनाद्यसूक्त), हिंदी अकादमी का ’साहित्यिक कृति पुरस्कार’ (लेकिन यह गीत नहीं), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के ’जयशंकर प्रसाद पुरस्कार’ (स्वयंप्रभा) और ’निराला पुरस्कार’ (देह चांदनी) उल्लेखनीय हैं। रूस की राजधानी मास्को में ’राधामाधव’ (महाकाव्य) पर ’प्रथम गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सम्मान’ से सम्मानित हुए।
 परिचय : वर्तमान दौर के सशक्त साहित्यिक हस्ताक्षर । देश में हिंदी के प्रसिद्ध कवि ,लेखक,समीक्षक एवं आलोचक उदभ्रांत शर्मा का जन्म 4 सितम्बर, 1948 को  राजस्थान के नवलगढ़ में पिता पंडित उमा शंकर शर्मा एवं माता  गंगा देवी रावत के आंगन में हुआ। उस समय  पिता पोद्दार कॉलेज में अर्थशास्त्र और कॉमर्स के प्रोफेसर थे। दो वर्ष बाद वे उत्तर प्रदेश सूचना आयोग द्वारा सहायक श्रम अधिकारी/श्रम निरीक्षक के पद पर चयनित हुए।
श्रम विभाग का मुख्यालय कानपुर में था। कानपुर, आगरा रहे। कानपुर में अपना मकान बनाया। उदभ्रांत ने कानपुर में ही कक्षा 8 से एम. ए. तक शिक्षा प्राप्त की। आप 1975 से 1978 तक कानपुर में दैनिक आज में पत्रकार तथा श्रम विभाग में वरिष्ठ पत्रकार / प्रभारी प्रचार अधिकारी के रूप में काम करने के बाद 1979 से 1981 के मध्य तक ई. एस. आई. के पटना कार्यालय में हिंदी अधिकारी और 1981 से 1987 के अंत तक एलिम्को कानपुर में हिंदी – सह – प्रचार अधिकारी रहे। इसके बाद मार्च 1991 तक अपना प्रकाशन कार्य किया। अप्रैल 1992 से लोक संघ सेवा आयोग द्वारा भारतीय प्रसारण सेवा के सहायक केंद्र निरीक्षक के रूप में दूरदर्शन के पटना कार्यालय में नियुक्त हो कर इंफाल, पुणे, मुंबई और गोरखपुर होते हुए 1995 में उप निदेशक के रूप में पदोन्नत होते हुए 2010 में सेवा निवृत हुए। वर्ष 1999 से नोएडा में रहते हुए साहित्य सृजन में लगे हैं।
 
 
संपर्क :
’अनहद’, बी – 463, केन्द्रीय विहार, 
सेक्टर-51, नोएडा -201303, 
मोबाइल :  09818854678/ 8178910658
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(लेखक , स्तंभकार, संपादक और पत्रकार हैं)
फोटो –  उदभ्रांत

लंदन में हिन्दी युवा संगम का आयोजन

लंदन ।यहाँ की सामाजिक संस्था “संगम” द्वारा आज “हिन्दी युवा संगम” का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में ब्रिटेन के युवाओं ने बढ़-चढ़ कर भागीदारी की, किसी ने कविता सुनाई, किसी ने छोटी कहानी, किसी ने गीत सुनाए तो किसी ने अनोखे विषयों पर भाषण दिया.

कार्यक्रम का संचालन आशीष मिश्रा और इशिका पांडेय ने संयुक्त रूप से किया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ ज्ञान शर्मा ने बताया कि  कार्यक्रम की दो श्रेणियाँ थीं –  कनिष्ठ वर्ग और वरिष्ठ वर्ग । कनिष्ठ वर्ग की टीमों के नाम थे गंगा, यमुना और गोदावरी। वहीं वरिष्ठ वर्ग  के समूहों के नाम प्राचीन शिक्षण संस्थानों पर नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला पर थे । हर टीम में दो-दो युवाओं को रखा गया।

निर्णायक मंडल में तेजिंदर शर्मा, अरुणा अजितसारिया, शिखा वार्ष्णेय और परवीन रानी शामिल थे मण्डल ने बहुत ही बारीक़ी से विभिन्न कारकों के आधार पर प्रस्तुतियों का मूल्यांकन किया। निर्णायक मंडल ने कनिष्ठ वर्ग के प्रतियोगियों में से प्रथम स्थान वेदिका गुप्ता को और द्वितीय स्थान मान्या मिश्रा को घोषित किया।  वरिष्ठ वर्ग के प्रतियोगियों में से प्रथम स्थान हैदी पाठक को और द्वितीय स्थान मोहित शर्मा को प्राप्त हुआ।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व सांसद श्री वीरेन्द्र शर्मा जी एवं श्री तेजेंद्र शर्मा जी ने संगम संस्था द्वारा आयोजित युवा केंद्रित कार्यक्रम की भरपूर सराहना की।

कार्यक्रम में भारतीय उच्च आयोग  से मिनिस्टर इकोनॉमिक्स निधिमणि त्रिपाठी जी एवं पूर्व कमिश्नर व जानी मानी साहित्यकार संगीता गुप्ता जी की गरिमामयी उपस्थिति रही।

कार्यक्रम में  कथा यूके, IDUK, UPCA , मध्यप्रदेश एसोसिएशन यूके , अंतरराष्ट्रीय कवि संगम, बिहारी कनेक्ट, गुरुकुल यूके ने भी भागीदारी की.

कार्यक्रम में धन्यवाद प्रस्ताव डिप्टी मेयर परवीन रानी ने प्रस्तुत  किया।

कृष्ण अतीत के नहीं भविष्य के देवता हैं

ओशो की पुस्तक  “कृष्ण स्मृति’   में ओशो ने विचार-शृंखला में कृष्ण का मात्र फोटो नहीं खींचा है बल्कि एक सधे हुए चिंतक-कलाकार की तरह अपने विचार-रंगों से कृष्ण के जीवन के उन पहलुओं को छुआ है, आकार दिया है, जो कैमरे की आंख से नहीं देखे जा सकते। सिर्फ कूची के स्पर्श से उभारे जा सकते हैं। कैमरा सिर्फ मूर्त आकृतियों की प्रतिकृति देता है पर कलाकार की कूची अमूर्तता को रेखांकित करती है। “कृष्ण स्मृति’ ऐसी ही अनदेखी, अनजानी अमूर्त छटाओं का एक संपूर्ण संकलन है, जो ओशो की एक लंबी-प्रवचन-शृंखला से उभरा है। श्रोताओं की जिज्ञासाओं, कुतूहलों और कृष्ण व्यक्तित्व से उठनेवाले उन तमाम प्रश्नों के उत्तर में, झरने-सा कल-कल बहता हुआ, कांच की तरह पारदर्शी विचार-चिंतन इस पुस्तक में प्रवाहित हुआ है।

जीवन एक विशाल कैनवास है, जिसमें क्षण-क्षण भावों की कूची से अनेकानेक रंग मिल-जुल कर सुख-दुख के चित्र उभारते हैं। मनुष्य सदियों से चिर आनंद की खोज में अपने पल-पल उन चित्रों की बेहतरी के लिए जुटाता है। ये चित्र हजारों वर्षों से मानव-संस्कृति के अंग बन चुके हैं। किसी एक के नाम का उच्चारण करते ही प्रतिकृति हंसती-मुस्काती उदित हो उठती है।

आदिकाल से मनुष्य किसी चित्र को अपने मन में बसाकर कभी पूजा, तो कभी आराधना, तो कभी चिंतन-मनन से गुजरता हुआ ध्यान की अवस्था तक पहुंचता रहा है। इतिहास में, पुराणों में ऐसे कई चित्र हैं, जो सदियों से मानव संस्कृति को प्रभावित करते रहे हैं। महावीर, क्राइस्ट, बुद्ध, राम ने मानव-जाति को गहरे छुआ है। इन सबकी बातें अलग-अलग हैं। कृष्ण ने इन सबके रूपों-गुणों को अपने आपमें समाहित किया है। कृष्ण एक ऐसा नाम है, जिसने जीवन को पूर्णता दी। एक ओर नाचना-गाना, रास-लीला तो दूसरी ओर युद्ध और राजनीति, सामान्यतः परस्पर विरोधी बातों को अपने में समेटकर आनंदित हो मुरली बजाने जैसी सहज क्रियाओं से जुड़े कृष्ण सचमुच चौंकानेवाले चरित्र हैं। ऐसे चरित्र को रेखांकित करना कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। व्याख्याएं कभी-कभी दिशाएं मोड़ देती हैं, कभी-कभी भटका भी देती है।

ओशो ने कृष्ण को अपनी दृष्टि से हमारे सामने रखा है, अपनी दार्शनिक और चिंतनशील पारदर्शी दृष्टि से हम तक इस पुस्तक के माध्यम से पहुंचाया है। व्यक्तित्व जब बड़ा हो, विशाल हो तब मूर्ति बनाना आसान नहीं। सिर्फ बाहरी छबि उभारना पर्याप्त नहीं होता। व्यक्तित्व के सभी पहलू भी उभरने चाहिए। श्रेष्ठ कलाकार वही है जो मूर्ति में ऐसी बातों को भी उभार सके जो सामान्य आंखें देख नहीं पातीं।

कृष्ण भारतीय जन-मानस के लिए नए नहीं हैं। कृष्ण की छबि, मुद्रा परिचित है। चाहे यह बाल्यकाल की छबि सूरदास की हो  या महाभारत की विभिन्न मुद्राएं हों या विभिन्न कवियों के कृष्ण हों, लोककथाओं या आख्यायिकाओं के कृष्ण हों–चिर-परिचित हैं। कृष्ण का चित्र स्टील फोटोग्राफी की तरह हमारे मन में रच-बस गया है।

कृष्ण यथार्थवादी हैं। वे राग, प्रेम, भोग, काम, योग, ध्यान और आत्मा-परमात्मा जैसे विषयों को उनके यथार्थ रूप में ही स्वीकार करते हैं। दूसरी ओर युद्ध और राजनीति को भी उन्होंने वास्तविक अर्थों में स्वीकार किया है। ओशो कहते हैं कृष्ण युद्धवादी नहीं हैं। कृष्ण का व्यक्तित्व पूर्वाग्रही नहीं है। यदि युद्ध होना ही हो तो भागना ठीक नहीं है। यदि युद्ध होना ही है और मनुष्य के हित में अनिवार्य हो जाए तो युद्ध को आनंद से स्वीकार करना चाहिए। उसे बोझ की तरह ढोना उचित नहीं। क्योंकि बोझ समझकर लड़ने में हार निश्चित है।

ओशो युद्ध और शांति के द्वंद्व को समझाते हुए कृष्ण के व्यक्तित्व को अधिक सरलता से प्रस्तुत करते हैं। क्योंकि कृष्ण जीवन को युद्ध और शांति दोनों द्वारों से गुजरने देना चाहते हैं। शांति के लिए युद्ध की सामर्थ्य हो।

मनुष्य की युद्ध की मानसिकता को ओशो ने बड़ी सहजता से उजागर किया है। वे कहते हैं सतगुणों और दुर्गुणों से ही मनुष्य आकार लेता है। अनुपात कम-अधिक हो सकते हैं। ऐसा अच्छे से अच्छा आदमी नहीं है पृथ्वी पर, जिसमें बुरा थोड़ा-सा न हो। और ऐसा बुरा आदमी भी नहीं खोजा जा सकता, जिसमें थोड़ा-सा अच्छा न हो। इसलिए सवाल सदा अनुपात और प्रबलता का है। स्वतंत्रता, व्यक्ति, आत्मा, धर्म, ये मूल्य हैं जिनकी तरफ शुभ की चेतना साथ होगी। कृष्ण इसी चेतना के प्रतीक हैं।

ओशो ने कृष्ण पर बोलने का बड़ा सुंदर आधार दिया है–कृष्ण का महत्व अतीत के लिए कम और भविष्य के लिए ज्यादा है। सच ऐसा है कि कृष्ण अपने समय से कम पांच हजार वर्ष पहले पैदा हुए। सभी महत्वपूर्ण व्यक्ति अपने समय से पहले पैदा होते हैं और सभी गैर-महत्वपूर्ण व्यक्ति अपने समय के बाद पैदा होते हैं। बस महत्वपूर्ण और गैर-महत्वपूर्ण व्यक्त्ति में इतना ही फर्क है। और सभी साधारण व्यक्ति अपने समय के साथ पैदा होते हैं। ऐसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को समझना आसान नहीं होता। उसका वर्तमान और अतीत उसे समझने में असमर्थता अनुभव करता है। ओशो ने कितना सुंदर कहा है कि जब हम समझने योग्य नहीं हो पाते, तब हम उसकी पूजा करना शुरू कर देते हैं। या तो हम उसका विरोध करते हैं। या तो हम गाली देते हैं या हम प्रशंसा करते हैं। दोनों पूजाएं हैं–एक शत्रु की है, एक मित्र की है।

ओशो की एक प्रखर आंखों ने कृष्ण को अपने वर्तमान के लिए देखा। दुख, निराशा, उदासी, वैराग्य, जैसी बातें कृष्ण ने पृथ्वी पर नहीं कीं। पृथ्वी पर जीनेवाले, उल्लास, उत्सव, आनंद, गीत, नृत्य, संगीत को कृष्ण ने विस्तार दिया। कृष्ण ने इस संसार की सारी चीजों को उनके वास्तविक अर्थों में ही स्वीकार किया।

कृष्ण के बहुआयामी व्यक्तित्व और रहस्यपूर्ण कृतित्व की व्याख्या ओशो ने सहजता और सरलता से की है। कृष्ण को देखने की उनकी दृष्टि सचमुच ऐसा विस्तार देती है, जो मात्र तुलना नहीं है। कृष्ण कुशलता से चोरी कर सकते हैं, महावीर एकदम बेकाम चोर साबित होंगे। कृष्ण कुशलता से युद्ध कर सकते हैं, बुद्ध न लड़ सकेंगे। जीसस की हम कल्पना ही नहीं कर सकते कि वे बांसुरी बजा सकते हैं, लेकिन कृष्ण सूली पर चढ़ सकते हैं। कृष्ण को क्राइस्ट के व्यक्तित्व में सोचा ही नहीं जा सकता।

यह पूरा सिलसिला लंबे प्रवचनों के माध्यम से प्रश्नों के उत्तरों के रूप में है। इसमें मानव मन से उठनेवाली तमाम जिज्ञासाओं और कुतूहलों की आतुरता शांत की गई है। प्रेम, नैतिकता, पत्नी, प्रेमिका, स्त्री-पुरुष, विवाह, आध्यात्मिक संभोग, राधा-कृष्ण संबंधों और हजार-हजार प्रश्नों के रेशों को इसमें कुशलता से सहेजा गया है, समाधान किया गया है। प्रतीकों और यथार्थ की तराजू पर तौलते हुए मानवीय संवेदनाओं और शरीर की जैविक आवश्यकताओं तथा मन, बुद्धि और शरीर की यात्राओं में स्त्री-पुरुष की पूर्णता का युक्तिसंगत ऊहापोह ठोस मनोवैज्ञानिक धरातल पर किया गया है। राधा और कृष्ण, कृष्ण और सोलह हजार गोपिकाएं, इनके बीच नैतिक-अनैतिक की परिभाषाएं उदाहरणों से इतनी पारदर्शी हो उठी हैं कि तर्कों की डोर बहुत शिथिल पड़ जाती है। कृष्ण की पृष्ठभूमि में विवाह, स्त्री-पुरुष संबंध, प्रेम और सामाजिक पृष्ठभूमि में ये विचार देशकाल की सीमाओं को तोड़कर व्यक्ति को एक नया अर्थ देते हैं। इन सारे संबंधों में निकटता, आकर्षण, ऊर्जा, बहाव, तृप्ति, हल्कापन और सृजन को बड़ी सुंदरता से प्रस्तुत किया है।

इन विस्तृत चर्चाओं में कृष्ण के इर्द-गिर्द जुड़े समस्त पात्रों के अलावा कृष्ण से फ्रॉयड तक की मनोवैज्ञानिक बातें और गांधी तक का दर्शन समाहित किया गया है।

कृष्ण को एक विस्तृत “कैनवास’ के रूप में उपयोग कर हमारे वर्तमान जीवन के रंग और भविष्य के चित्र बड़ी खूबसूरती से उभरे हैं। कोई भी बात बाहर से थोपी नहीं गई है। अपनी विशिष्ट शैली में ओशो ने मन तक पहुंचाई हैं। कृष्ण के पक्ष या विपक्ष में ले जाने का कोई आग्रह नहीं है। पर ओशो की दृष्टि में आए कृष्ण को जानने, देखने, समझने और अनुभव करने की जिज्ञासा इस पुस्तक से जहां एक ओर शांत होती है, वहीं उस अनंत व्यक्तित्व के बारे में मौलिक चिंतन की शुरुआत का एक छोर भी अनायास ही हाथ लग जाता है।

ओशो ने अपनी इस पुस्तक में कहीं भी पुजारी की भूमिका नहीं की। सिर्फ विविध छटाओं को विस्तार दिया है। जिसको जो छटा भाती है, वह उसको सोचकर आनंद को प्राप्त होता है। कृष्ण का जीवन अन्य आराध्यों-सा सपाट और आदर्श के शिखर पर विराजमान नहीं है। बल्कि अत्यंत अकल्पनीय ढंग से उतार-चढ़ाव और रहस्यों से भरपूर होते हुए भी हमारी आपकी पृथ्वी पर खड़ा है। इसकी सिर्फ पूजा नहीं इसे जीया भी जा सकता है। संसार के बंधन और मन की गांठ खुल सकती है।

यह सब बताते हुए ओशो यह भी आगाह करते हैं कि अनुकरण से सावधान रहना चाहिए। क्योंकि प्रत्येक का जीवन मौलिक होता है और अनुकरण से उसका पतन हो सकता है।

कृष्ण संपूर्णता के प्रतीक हैं। मानव-समाज के आनंद के लिए सुंदर आविष्कार के रूप में उभरते हैं, जहां किसी भी बात को पूर्वाग्रह से नकारा नहीं गया है। एक सहज, सकारात्मक, रागात्मक, प्रेमपूर्ण जीवन को उत्सव की तरह संपन्न करने वाले कृष्ण इस पुस्तक में जो चित्र उभरकर निखरता है, वह सर्वथा नया और आनंददायी है।

कृष्ण का व्यक्तित्व बहुत अनूठा है। अनूठेपन की पहली बात तो यह है कि कृष्ण हुए तो अतीत में, लेकिन हैं भविष्य के। मनुष्य अभी भी इस योग्य नहीं हो पाया कि कृष्ण का समसामयिक बन सके। अभी भी कृष्ण मनुष्य की समझ से बाहर हैं। भविष्य में ही यह संभव हो पाएगा कि कृष्ण को हम समझ पाएं।

इसके कुछ कारण हैं।

सबसे बड़ा कारण तो यह है कि कृष्ण अकेले ही ऐसे व्यक्ति हैं जो धर्म की परम गहराइयों और ऊंचाइयों पर होकर भी गंभीर नहीं हैं, उदास नहीं हैं, रोते हुए नहीं हैं। साधारणतः संत का लक्षण ही रोता हुआ होना है। जिंदगी से उदास, हारा हुआ, भागा हुआ। कृष्ण अकेले ही नाचते हुए वयक्ति हैं। हंसते हुए, गीत गाते हुए। अतीत का सारा धर्म दुखवादी था। कृष्ण को छोड़ दें तो अतीत का सारा धर्म उदास, आंसुओं से भरा हुआ था। हंसता हुआ धर्म मर गया है और पुराना ईश्वर, जिसे हम अब तक ईश्वर समझते थे, जो हमारी धारणा थी ईश्वर की, वह भी मर गई है।

जीसस के संबंध में कहा जाता है कि वह कभी हंसे नहीं। शायद जीसस का यह उदास व्यक्तित्व और सूली पर लटका हुआ उनका शरीर ही हम दुखी-चित्त लोगों को बहुत आकर्षण का कारण बन गया। महावीर या बुद्ध बहुत गहरे अर्थों में इस जीवन के विरोधी हैं। कोई और जीवन है परलोक में, कोई मोक्ष है, उसके पक्षपाती हैं। समस्त धर्मों ने दो हिस्से कर रखे हैं जीवन के–एक वह जो स्वीकार योग्य है और एक वह जो इनकार के योग्य है।

कृष्ण अकेले ही इस समग्र जीवन को पूरा ही स्वीकार कर लेते हैं। जीवन की समग्रता की स्वीकृति उनके व्यक्तित्व में फलित हुई है। इसलिए, इस देश ने और सभी अवतारों को आंशिक अवतार कहा है, कृष्ण को पूर्ण अवतार कहा है। राम भी अंश ही हैं परमात्मा के, लेकिन कृष्ण पूरे ही परमात्मा हैं। और यह कहने का, यह सोचने का, ऐसा समझने का कारण है। और वह कारण यह है कि कृष्ण ने सभी कुछ आत्मसात कर लिया है।

अल्बर्ट श्वीत्ज़र ने भारतीय धर्म की आलोचना में एक बड़ी कीमत की बात कही है, और वह यह कि भारत का धर्म जीवन-निषेधक, “लाइफ निगेटिव’ है। यह बात बहुत दूर तक सच है, यदि कृष्ण को भुला दिया जाए। और यदि कृष्ण को भी विचार में लिया जाए तो यह बात एकदम ही गलत हो जाती है। और श्वीत्ज़र यदि कृष्ण को समझते तो ऐसी बात न कह पाते। लेकिन कृष्ण की कोई व्यापक छाया भी हमारे चित्त पर नहीं पड़ी है। वे अकेले दुख के एक महासागर में नाचते हुए एक छोटे-से द्वीप हैं। या ऐसा हम समझें कि उदास और निषेध और दमन और निंदा के बड़े मरुस्थल में एक बहुत छोटे-से नाचते हुए मरूद्यान हैं। वह हमारे पूरे जीवन की धारा को नहीं प्रभावित कर पाए। हम ही इस योग्य न थे, हम उन्हें आत्मसात न कर पाए।

मनुष्य ाका मन अब तक तोड़कर सोचता रहा, द्वंद्व करके सोचता रहा। शरीर को इनकार करना है, आत्मा को स्वीकार करना है। तो आत्मा और शरीर को लड़ा देना है। परलोक को स्वीकार करना है, इहलोक को इनकार करना है। तो इहलोक और परलोक को लड़ा देना है। स्वभावतः, यदि हम शरीर का इनकार करेंगे, तो जीवन उदास हो जाएगा। क्योंकि जीवन के सारे रस-स्रोत और सारा स्वास्थ्य और जीवन का सारा संगीत और सारी संवेदनाएं शरीर से आ रही हैं। शरीर को जो धर्म इनकार कर देगा, वह पीतवर्ण हो जाएगा, रक्तशून्य हो जाएगा। उस पर से लाली खो जाएगी। वह पीले पत्ते की तरह सूखा हुआ धर्म होगा। उस धर्म की मान्यता भी जिनके मन में गहरी बैठेगी, वे भी पीले पत्ते की तरह गिरने की तैयारी में संलग्न, मरने के लिए उत्सुक और तैयार हो जाएंगे।

कृष्ण अकेले हैं जो शरीर को उसकी समस्तता में स्वीकार कर लेते हैं, उसकी “टोटलिटी’ में। यह एक आयाम में नहीं, सभी आयाम में सच है। शायद कृष्ण को छोड़कर…कृष्ण को छोड़कर, और पूरे मनुष्यता के इतिहास में जरथुस्त्र एक दूसरा आदमी है, जिसके बाबत यह कहा जाता है कि वह जन्म लेते से हंसा। सभी बच्चे रोते हैं। एक बच्चा सिर्फ मनुष्य-जाति के इतिहास में जन्म लेकर हंसा। यह सूचक है। यह सूचक है इस बात का कि अभी हंसती हुई मनुष्यता पैदा नहीं हो पाई। और कृष्ण तो हंसती हुई मनुष्यता को ही स्वीकार हो सकते हैं। इसलिए कृष्ण का बहुत भविष्य है। फ्रायड-पूर्व धर्म की जो दुनिया थी, वह फ्रायड-पश्चात नहीं हो सकती है। एक बड़ी क्रांति घटित हो गई है, और एक बड़ी दरार पड़ गई है मनुष्य की चेतना में। हम जहां थे फ्रायड के पहले, अब हम वहीं कभी भी नहीं हो सकेंगे। एक नया शिखर छू लिया गया है और एक नई समझ पैदा हो गई है। वह समझ समझ लेनी चाहिए।

पुराना धर्म सिखाता था आदमी को दमन और “सप्रेशन’। काम है, क्रोध है, लोभ है, मोह है, सभी को दबाना है और नष्ट कर देना है। और तभी आत्मा उपलब्ध होगी और तभी परमात्मा उपलब्ध होगा। यह लड़ाई बहुत लंबी चली। इस लड़ाई के हजारों साल के इतिहास में भी मुश्किल से दस-पांच लोग हैं जिनको हम कह पाए कि उन्होंने परमात्मा को पा लिया। एक अर्थ में यह लड़ाई सफल नहीं हुई। क्योंकि अरबों-खरबों लोग बिना परमात्मा को पाए मरे हैं। जरूर कहीं कोई बुनियादी भूल थी। यह ऐसा ही है जैसे कि कोई माली करोड़ हजार पौधे लगाए और एक पौधे में फूल आ जाएं, और फिर भी हम उस माली के शास्त्र को मानते चले जाएं, और हम कहें कि देखो एक पौधे में फूल आए! और हम इस बात का खयाल ही भूल जाएं कि पचास करोड़ पौधे में अगर एक पौधे में फूल आते हैं, तो यह माली की वजह से न आए होंगे, यह माली से किसी तरह बच गया होगा पौधा, इसलिए आ गए हैं। क्योंकि माली का प्रमाण तो बाकी पचास करोड़ पौधे हैं जिनमें फूल नहीं आते, पत्ते नहीं लगते, सूखे ठूंठ रह जाते हैं।

एक बुद्ध, एक महावीर, एक क्राइस्ट अगर परमात्मा को उपलब्ध हो जाते हैं, द्वंद्वग्रस्त धर्मों के बावजूद भी, तो यह कोई धर्मों की सफलता का प्रमाण नहीं हैं। धर्मों की सफलता का प्रमाण तो तब होगा, माली तो तब सफल समझा जाएगा, जब पचास करोड़ पौधों में फूल लगें और एक में न लग पाएं, तो क्षमा योग्य है। कहा जा सकेगा कि यह पौधे की गलती हो गई। इसमें माली की गलती नहीं हो सकती। पौधा बच गया होगा माली से, इसलिए सूख गया है, इसलिए फूल नहीं आते हैं।

भविष्य के लिए कृष्ण की बड़ी सार्थकता है। और भविष्य में कृष्ण का मूल्य निरंतर बढ़ता ही जाने को है। जब कि सबके मूल्य फीके पड़ जाएंगे और द्वंद्व-भरे धर्म जब कि पीछे अंधेरे में डूब जाएंगे और इतिहास की राख उन्हें दबा देगी, तब भी कृष्ण का अंगार चमकता हुआ रहेगा। और भी निखरेगा क्योंकि पहली दफे मनुष्य इस योग्य होगा कि कृष्ण को समझ पाए। कृष्ण को समझना बड़ा कठिन है। कठिन है इस बात को समझना कि एक आदमी संसार को छोड़कर चला जाए और शांत हो जाए। कठिन है इस बात को समझना कि संसार के संघर्ष में, बीच में खड़ा होकर और शांत हो। आसान है यह बात समझनी कि एक आदमी विरक्त हो जाए, आसक्ति से संबंध तोड़कर भाग जाए और उसमें एक पवित्रता का जन्म हो। कठिन है यह बात समझनी कि जीवन के सारे उपद्रव के बीच, जीवन के सारे उपद्रव में अलिप्त, जीवन के सारे धूल-धवांस के कोहरे और आंधियों में खड़ा हुआ दिया हिलता न हो, उसकी लौ कंपती न हो–कठिन है यह समझना। इसलिए कृष्ण को समझना बहुत कठिन था। निकटतम जो कृष्ण के थे वे भी नहीं समझ सकते हैं। लेकिन पहली दफा एक महान प्रयोग हुआ है। पहली दफा आदमी ने अपनी शक्ति का पूरा परीक्षण कृष्ण में किया है। ऐसा परीक्षण कि संबंधों में रहते हुए असंग रहा जा सके, और युद्ध के क्षण पर भी करुणा न मिटे। और हिंसा की तलवार हाथ में हो, तो भी प्रेम का दिया मन से न बुझे।

इसलिए कृष्ण को जिन्होंने पूजा भी है, जिन्होंने कृष्ण की आराधना भी की है उन्होंने भी कृष्ण के टुकड़े-टुकड़े करके किया है। सूरदास के कृष्ण कभी बच्चे से बड़े नहीं हो पाते। बड़े कृष्ण के साथ खतरा है। सूरदास बर्दाश्त न कर सकेंगे। वह बाल कृष्ण को ही…। क्योंकि बाल कृष्ण अगर गांव की स्त्रियों को छेड़ देता है तो हमें बहुत कठिनाई नहीं है। लेकिन युवा-कृष्ण जब गांव की स्त्रियों को छेड़ देगा तो फिर बहुत मुश्किल हो जाएगा। फिर हमें समझना बहुत मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि हम अपने ही तल पर तो समझ सकते हैं। हमारे अपने तल के अतिरिक्त समझने का हमारे पास कोई उपाय भी नहीं है। तो कोई है जो कृष्ण के एक रूप को चुन लेगा, कोई है जो दूसरे रूप को चुन लेगा। गीता को प्रेम करने वाले गीता की चर्चा में न पड़ेंगे, क्योंकि कहां राग-रंग और कहां रास और कहां युद्ध का मैदान! उनके बीच कोई तालमेल नहीं है। शायद कृष्ण से बड़े विरोधों को एक-साथ पी लेने वाला कोई व्यक्तित्व ही नहीं है। इसलिए कृष्ण की एक-एक शकल लोगों ने पकड़ लिया। है। जो जिसे प्रीतिकर लगी है, उसने छांट लिया है, बाकी शकल को उसने इनकार कर दिया है।

ओशो

फिल्मी दुनिया की पोल खोलने वाले स्टार डस्ट के संपादक नारी हीरा नहीं रहे

चर्चित फिल्म ‘स्कैंडल’ समेत कई फीचर फिल्मों के निर्माता और प्रसिद्ध फिल्म पत्रिका ‘स्टारडस्ट’ के प्रकाशक नारी हीरा का मुंबई में निधन हो गया। 26 जनवरी 1938 को जन्मे नारी हीरा ने 86 साल की उम्र में शुक्रवार को अंतिम सांस ली।

नारी हीरा को सीधे डीवीडी पर फिल्में रिलीज करने के चलन को प्रचलित करने के लिए भी फिल्म इंडस्ट्री में खास पहचान मिली थी। उन्होंने अपने बैनर ‘हिबा फिल्म्स’ के तहत एक दर्जन से अधिक फिल्मों का निर्माण किया, जिन्हें सीधे वीडियो पर रिलीज किया गया।

उनका अंतिम संस्कार शनिवार को दोपहर में वर्ली के बाणगंगा श्मशान घाट पर किया  गया।

1938 में कराची में जन्मे नारी हीरा का परिवार 1947 में विभाजन के बाद मुंबई आ गया। उन्होंने 1960 के दशक में पत्रकार के रूप में अपना करियर शुरू किया, लेकिन बाद में प्रकाशन में कदम रखा। उनकी पत्रिका ‘स्टारडस्ट’ बॉलीवुड के विवादों, सनसनीखेज कहानियों और गॉसिप के लिए जानी जाती थी, जिससे उन्हें बड़ी सफलता मिली।

‘स्टारडस्ट’ पत्रिका की विवादित सामग्री के कारण नारी हीरा को कानूनी मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा। पत्रिका पर कई मशहूर हस्तियों जैसे अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान और सलमान खान ने मानहानि के मुकदमे दर्ज किए। पत्रिका पर मशहूर हस्तियों की निजता का उल्लंघन करने के आरोप भी लगे, जिसके चलते उसे कई बार आलोचना का सामना करना पड़ा।

बांग्लादेश की उथल-पुथल और सैंट मार्टिन द्वीप पर गिध्दों की निगाहें

बांग्लादेश में शेख़ हसीना सरकार के पतन के बाद सेंट मार्टिन द्वीप को लेकर नई चिंताएं उत्पन्न हुई हैं. कहा जा रहा है कि इस द्वीप पर अमेरिका की रुचि है. अमेरिका की संभावित भागीदारी की अटकलों ने नए क्षेत्रीय संघर्ष की आशंकाओं को जन्म दिया है .

बांग्लादेश में पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की सरकार के पतन के बाद आ रही ख़बरों में कहा गया कि उन्हें सत्ता से हटाने के पीछे विदेशी हाथ है. हालांकि शेख़ हसीना ने ये बात आधिकारिक तौर पर यानी ऑन रिकॉर्ड नहीं कही है, लेकिन माना जा रहा है कि ये उनका ही बयान है. हो सकता है शायद ये गलत हो. चूंकि शेख़ हसीना को 5 अगस्त को अपने देश से भागने पर मज़बूर होना पड़ा, इसलिए उनके इस कथित बयान की अहमियत और ज़्यादा बढ़ गई है. इसमें पूर्व प्रधानमंत्री को स्पष्ट रूप से ये स्वीकार करते हुए दिखाया गया है कि “वो सत्ता में बनी रह सकतीं थीं अगर उन्होंने बांग्लादेश के सेंट मार्टिन द्वीप पर नियंत्रण सौंपने की अमेरिका की मांगों को स्वीकार कर लिया होता”. हालांकि शेख़ हसीना के बेटे सजीब वाज़िद जॉय ने अपनी मां द्वारा दिए गए ऐसे किसी भी बयान की संभावना को खारिज़ किया है, लेकिन सजीब खुद पहले इशारों-इशारों में इस तरह के आरोप लगा चुके हैं.

शेख़ हसीना ने मई 2024 में दावा किया कि “एक श्वेत व्यक्ति ने उन्हें ये पेशकश दी थी कि अगर वो बांग्लादेश के क्षेत्र में सैनिक हवाई अड्डा बनाने की मंजूरी देती हैं तो 7 जनवरी हो होने वाले आम चुनाव में वो बिना किसी परेशानी को दोबारा उनकी सरकार बनवा देंगे”.

शेख़ हसीना ने मई 2024 में दावा किया कि “एक श्वेत व्यक्ति ने उन्हें ये पेशकश दी थी कि अगर वो बांग्लादेश के क्षेत्र में सैनिक हवाई अड्डा बनाने की मंजूरी देती हैं तो 7 जनवरी हो होने वाले आम चुनाव में वो बिना किसी परेशानी को दोबारा उनकी सरकार बनवा देंगे”. शेख़ हसीना ने आगे कहा कि “यहां कोई विवाद नहीं है, कोई संघर्ष नहीं है लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. ये भी शायद मेरा एक अपराध है”. हालांकि, शेख़ हसीना ने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन ये स्पष्ट है कि सेंट मार्टिन द्वीप में अमेरिका की रुचि थी. 2023 में भी ये अफ़वाह सामने आई थी कि अमेरिका ने अवामी लीग सरकार का समर्थन करने के बदले इस द्वीप की मांग की थी.

सेंट मार्टिन द्वीप का सामरिक महत्व
सेंट मार्टिन द्वीप खाड़ी के उत्तरपूर्वी भाग में स्थित है. ये द्वीप बांग्लादेश में कॉक्स बाजार के टेकनाफ़ तट से करीब 9 किमी दक्षिण में और उत्तर-पश्चिमी म्यांमार से 8 किमी पश्चिम में है. (चित्र 1). ये द्वीप बंगाल की खाड़ी में निगरानी की दृष्टि से आदर्श जगह पर है. बंगाल की खाड़ी में निगरानी रखना अमेरिका के लिए इसलिए भी ज़रूरी हो गया है क्योंकि हाल के वर्षों में चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र में आक्रामक नीति अपनाते हुए महत्वपूर्ण बढ़त हासिल की है.

चीन खाड़ी के तटीय देशों में अपना निवेश लगातार बढ़ा रहा है. चीन का मक़सद ये है कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत वो खाड़ी के इन तटीय देशों में अपनी स्थिति मज़बूत करे. हाल ही में इसे लेकर एक अहम घटनाक्रम हुआ था. चीन ने बांग्लादेश में पहला पनडुब्बी बेस बनाने में मदद की थी. बीएनएस शेख़ हसीना नाम का ये पनडुब्बी बेस कॉक्स बाजार के तट पर बन रहा है. 2023 में इसका उद्घाटन हुआ और इसने बंगाल की खाड़ी में चीन की पनडुब्बियों के संचालन की संभावना को खोल दिया.
 2023 में ही इस तरह की रिपोर्ट्स सामने आईं थीं कि चीन ने म्यांमार के कोको द्वीप पर मलक्का जलसंधि के पास ख़ुफिया सुविधाएं बनाने की मंजूरी हासिल की है. चीन के लिए ये एक महत्वपूर्ण चोकपॉइंट है क्योंकि उसके ऊर्जा आयात का लगभग 80 प्रतिशत यहीं से होकर गुज़रता है. खाड़ी में चीन की बढ़ती उपस्थिति व्यापक हिंद महासागर क्षेत्र और भारत-प्रशांत में उसकी विस्तारित समुद्री भूमिका के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. एक तरह से ये आधार रेखा है. इस क्षेत्र में चीन का मज़बूत होना भारत-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी हितों के ख़िलाफ है. अमेरिका इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव को सीमित करना चाहता है.

चीन जिस तरह हिंद महासागर क्षेत्र में अपना विस्तार कर रहे है, उसे देखते हुए लगता है कि अगले दशक में चीन इस क्षेत्र में महान शक्ति बन सकता है. संख्या के लिहाज़ से देखें तो समुद्री जहाज बनाने के मामले में चीन पहले ही अमेरिका से आगे निकल गया है. यानी समुद्री शक्ति के मामलों में अमेरिका और चीन में जो अंतर था, वो कम होता जा रहा है. अमेरिका और चीन के बीच प्रभुत्व की इस होड़ में जैसे-जैसे प्रशांत क्षेत्र में शक्ति केंद्रित हो रही है, वैसे-वैसे इसके हिंद महासागर क्षेत्र में फैलने की भी संभावना है. म्यांमार और बांग्लादेश में अपनी रणनीतिक उपस्थिति को मज़बूत करने के साथ ही चीन को मलक्का जलसंधि और बंगाल की खाड़ी के आसपास भी बढ़त मिली हुई है.

जापान के योकोसुका में अमेरिकी नौसेना के सेवेंथ फ्लीट की मौजूदगी की वजह से तुलनात्मक रूप से अमेरिका की स्थिति भी इस क्षेत्र में मज़बूत है लेकिन अमेरिका चाहता है कि बंगाल की खाड़ी के आसपास भी उसका एक सैनिक अड्डा हो, जहां वो आपातकालीन परिस्थिति उत्पन्न होने पर तुरंत प्रतिक्रिया दे सके और ख़ुफिया जानकारी इकट्ठा करने में भी सुविधा हो. हिंद महासागर से अमेरिका की भौगोलिक दूरी बहुत ज़्यादा है. यहां से अमेरिका का सबसे करीबी सैनिक अड्डा डिएगो गार्सिया में है, जो बहुत दूर है.
ऐसे में हिंद महासागर के पास एक मिलिट्री बेस अमेरिका के लिए रणनीतिक रूप से बहुत ज़रूरी है. इस हिसाब से देखें तो सेंट मार्टिन द्वीप इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में अमेरिका की सामरिक स्थिति मज़बूत करने के लिए आदर्श जगह है. इसके अलावा अमेरिका की भारत-प्रशांत रणनीति, विशेष रूप से हिंद महासागर में, व्यापार-तकनीक-सुरक्षा दृष्टिकोण की प्रमुखता दी गई है. वरीयता के इस क्रम में अमेरिका ने प्रशांत क्षेत्र के लिए क्लासिक भू-राजनीति को छोड़ दिया है.
अगर अमेरिका वास्तव में बंगाल की खाड़ी में अपनी उपस्थिति मज़बूत करना चाहता है तो वो ऊपर बताए गए तीन घटकों में से सुरक्षा घटक को संतुलित कर सकता है. हालांकि, शीत युद्ध के बाद से हिंद महासागर क्षेत्र ने पारंपरिक रूप से एक अलग तरह से महान शक्ति की भूमिका निभाई है. 1970 के दशक में क्षेत्रीय धारणा के मंथन के बाद ‘शांति क्षेत्र’ का संकल्प सामने आने के बाद ऐसा संभव हुआ.

अमेरिका और चीन के बीच प्रभुत्व की इस होड़ में जैसे-जैसे प्रशांत क्षेत्र में शक्ति केंद्रित हो रही है, वैसे-वैसे इसके हिंद महासागर क्षेत्र में फैलने की भी संभावना है.

शीत युद्ध के बाद जैसे-जैसे बहुपक्षवाद का युग शुरू हुआ, अमेरिका ने हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा का बोझ साझा करने का दृष्टिकोण अपनाया. इससे सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानांतरित हो गई और क्षेत्रीय भागीदार इसका नेतृत्व करने लगे. भारत ने इस क्षेत्रीय रणनीति में एक नई भूमिका ग्रहण की, जो अमेरिका के साथ मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों की वज़ह से और सशक्त हुई. हालांकि सार्क (साउथ एशियन एसोसिएशन ऑफ रीज़नल कोऑपपेशन) के नेतृत्व में क्षेत्रवाद की विफलता ने द्विपक्षीय और लघुपक्षीय तंत्र को मज़बूत करने के दरवाज़े खोल दिए. भारत-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए क्वाड का दृष्टिकोण इस विकास का हिस्सा है.

इसका नतीजा ये हुआ कि अमेरिका समेत दूसरी बड़ी शक्तियों ने हिंद महासागर क्षेत्र में दादागीरी वाली भूमिका निभाने से परहेज किया क्योंकि इस क्षेत्र के देशों में अस्थिरता और आम सहमति की कमी है. ऐसे में सेंट मार्टिन द्वीप अमेरिका को एक रणनीतिक निरंतरता-पांचवें फ्लीट-डिएगो गार्सिया-सेंट बनाने के लिए एक आदर्श स्थान प्रदान करेगा. हालांकि इस बात की संभावना कम है कि अमेरिका बंगाल की खाड़ी में एक नई सुविधा स्थापित करने में निवेश करेगा. अगर नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी यानी डोनाल्ड ट्रंप जीतते हैं तो इसकी संभावना और भी कम हो जाएगी. ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि वो अमेरिकी सेना को बाहरी देशों में उलझाने और उस पर खर्च करने के इच्छुक नहीं हैं.

 राजनीतिक मंथन के बीच सुरक्षा सुनिश्चित करना
अगर सेंट मार्टिन द्वीप पर अमेरिकी की रूचि की कथित आरोपों से परे जाकर देखें तो ये द्वीप हमेशा विवाद का केंद्र रहा है. ऐतिहासिक रूप से बांग्लादेशी मछुआरों पर म्यांमार की नौसेना द्वारा अक्सर समुद्री सीमा के उल्लंघन का आरोप लगाया जाता था. ये एक ऐसा मुद्दा था जिसका समाधान 2012 में समुद्र के कानून के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण (आईटीएलओएस) द्वारा निकाला गया.

हाल ही में म्यांमार में एक विद्रोही समूह अराकान सेना ने इस द्वीप पर अपना दावा किया. अराकन सेना के लोग म्यांमार की जुंटा सरकार  द्वारा की गई कार्रवाई के बाद भागकर सेंट मार्टिन द्वीप में जाना चाहते थे. हालांकि बांग्लादेश ने आधिकारिक तौर पर उसके दावे को खारिज़ कर दिया, फिर भी उसने अपने युद्धपोतों को इस द्वीप के आसपास तैनात किया. एक रणनीतिक संपत्ति के रूप में सेंट मार्टिन द्वीप बांग्लादेश को मूल्यवान संसाधन, व्यापार के अवसर और महत्वपूर्ण पर्यटन क्षमता प्रदान करता है. इसलिये, सेंट मार्टिन क्षेत्र में उथल-पुथल की मौजूदा स्थिति, शक्ति संतुलन में बदलाव और जटिल भू-राजनीति परिस्थितियों को देखते हुए सेंट मार्टिन द्वीप की सुरक्षा करना बांग्लादेश सरकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा, फिर चाहे सरकार किसी की भी हो.

सेंट मार्टिन क्षेत्र में उथल-पुथल की मौजूदा स्थिति, शक्ति संतुलन में बदलाव और जटिल भू-राजनीति परिस्थितियों को देखते हुए सेंट मार्टिन द्वीप की सुरक्षा करना बांग्लादेश सरकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा, फिर चाहे सरकार किसी की भी हो.

घरेलू राजनीतिक समस्याओं के लिए ‘विदेशी हाथ’ को ज़िम्मेदार ठहराना राजनीतिक कूटनीति का पुराना तरीका है. खासकर शीत युद्ध के समय ‘विदेशी हाथ’ के बहाने का काफी इस्तेमाल किया जाता था. फिलहाल बांग्लादेश की अंतरिम सरकार देश में सामान्य स्थिति बहाल करने की कोशिश कर रही है. ऐसे में उसे आर्थिक और शासन के असली मुद्दों का समाधान करने की ज़रूरत है, जिन्होंने छात्रों के आंदोलन को एक जन आंदोलन में बदल दिया और जिसकी वजह से पंद्रह साल पुरानी शेख़ हसीना सरकार का पतन हुआ.

साभार- https://www.orfonline.org/hindi/ से

सोहिनी बोस और विवेक मिश्रा

गणित का 161 साल पुराना रहस्य जिसे सुलझाने का दावा किया है एक भारतीय डॉ कुमार ईश्वरन ने

डॉ कुमार ईश्वरन ने पहली बार 2016 में रीमन हाइपोथिसिस के बारे में अपना समाधान प्रकाशित किया था. लेकिन उन्हें इस लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं ही मिली. दूसरी ओर इस गणितीय पहेली का अंतिम समाधान निकालने वाले व्यक्ति को एक मिलियन अमेरीकी डॉलर का इनाम मिलेगा.

हैदराबाद: प्रसिद्ध अमेरिकी गणितज्ञ जॉन नैश के जीवन पर आधारित एक बायोपिक ‘ए ब्यूटीफुल माइंड ‘ में नायक यह कहता दिखता है कि वह गणित के सबसे बड़े रहस्य: द रीमन हाइपोथिसिस को सुलझाने की दिशा में वो आगे बढ़ रहा है.

इस अमेरिकी दिग्गज गणितज्ञ की तरह, कई अन्य महान गणितीय दिमागों ने भी इस ‘बड़ी पहेली’ को हल करने के लिए एक शताब्दी से भी अधिक समय तक अनेकों प्रयास किये हैं और हाल के वर्षों में इसका अंतिम समाधान निकालने वाले के लिए एक मिलियन अमेरिकी डॉलर के पुरस्कार की घोषणा के बाद इन प्रयासों को और बल मिला है.

अब, हाइपोथिसिस को पेश किये जाने के 161 साल बाद, हैदराबाद के सैद्धांतिक (थ्योरीटिकल फिजिसिस्ट) भौतिक विज्ञानी डॉ कुमार ईश्वरन का कहना है कि उनके पास इस अनसुलझी समस्या को हल करने का महत्वपूर्ण सबूत है और इस दावे ने दुनिया भर के गणितज्ञों और भौतिकविदों को चकित कर दिया है.

यह हाइपोथिसिस इस बारे में भविष्यवाणी करती है कि एक संख्यात्मक स्पेक्ट्रम के साथ अभाज्य संख्याओं (प्राइम नंबर्स) को कैसे खोजा जाये. लेकिन अभी तक यह सिर्फ एक कयास ही बना हुआ है.

साल 2000 में इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड स्थित क्ले मैथमैटिक्स इंस्टीट्यूट (सीएमआई) ने इसे एक ‘मिलेनियम प्रॉब्लम‘ (सहस्त्राब्दी की समस्या) के रूप में नामित किया और इस हाइपोथिसिस को साबित करने वाले किसी भी व्यक्ति को $1 मिलियन का इनाम देने की घोषणा की.

हैदराबाद के श्रीनिधि इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के 74 वर्षीय प्रोफेसर ईश्वरन कहते हैं कि उन्होंने इस समस्या पर कड़ी मेहनत की है जो अक्सर दिन में 18 घंटे से भी अधिक हो जाती थी. इस भौतिक विज्ञानी ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने पिछले 50 वर्षों में इस क्षेत्र में जो बहुत सी चीजें सीखी हैं वो भी काम में आयी.’

ईश्वरन कहते हैं कि उन्होंने इसे पहली बार 2016 में ही हल कर लिया था और अपना काम ऑनलाइन प्रकाशित भी किया. उनके काम का अंतिम संस्करण तीन साल बाद पोस्ट किया गया था.

हालांकि, प्रोफेसर के ‘समाधान’ के बारे में पीर रिव्यू कुछ अस्पष्ट रही है- कुछ ने इसे ‘ह्युरिस्टिक’ (अनुमान आधारित) कहा है, जबकि अन्य ने कहा कि यह ‘काफी विस्तृत’ था.

आखिर क्यों सुर्खियों में हैं डॉ ईश्वरन?
डॉ ईश्वरन के निर्णायक अथवा अंतिम कार्य को 2019 में रिसर्चगेट पर प्रकाशित हुए दो साल बीत चुके हैं.

सीएमआई के नियमों के अनुसार, ‘प्रस्तावित समाधान’ एक ‘क्वालिफाइंग आउटलेट’ (यहां इसका अर्थ मान्यता प्राप्त प्रकाशन से है) में प्रकाशित होना चाहिए और इसके ‘प्रकाशन के बाद से कम से कम दो साल का समय बीत जाना चाहिए..’

नियम यह भी कहते हैं कि प्रस्तावित समाधान को वैश्विक गणित समुदाय में सामान्य रूप से स्वीकृति प्राप्त होनी चाहिए.

ईश्वरन के फॉर्मूले को मान्यता दिलवाने के प्रयासों के एक हिस्से के रूप में एक विशेषज्ञ समिति ने लगभग 1,200 वैश्विक गणितज्ञों को ईश्वरन के काम की ‘खुली समीक्षा’ करने के लिए आमंत्रित किया. भौतिक विज्ञानी ईश्वरन ने दिप्रिंट को बताया कि उनमें से सिर्फ चार के जवाब मिले.

उनमें से 85 वर्षीय पोलिश गणितज्ञ व्लादिस्लाव नारकिविज़ भी थे, जिन्होंने ईश्वरन के साथ मेल पर एक संक्षिप्त चर्चा के बाद कहा कि उनके तर्क की प्रकृति ‘अनुमान आधारित’ (‘ह्युरिस्टिक’) थी, ईश्वरन ने बताया कि नारकिविज़ उनके काम से न तो पूरी तरह सहमत थे और न ही पूरी तरह असहमत.

उन्होंने आगे कहा, ‘फिर भी, मैं वास्तव में उनका इस बात के लिए आभारी हूं कि उन्होंने मेरे काम की समीक्षा करने की जहमत उठाई. यह गणित के प्रति उनके अपार प्रेम को प्रदर्शित करता है.’

हालांकि मद्रास विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एम. सीतारमन, ईश्वरन के काम की काफी प्रशंसा करते हैं. उन्होंने कहा कि अब इस समाधान को सिद्ध माना जाना चाहिए क्योंकि यह ‘विस्तृत, स्पष्ट और विश्लेषणात्मक रूप से समझाया गया’ है.

ईश्वरन इस बात से भी खुश हैं कि जुलाई के पहले सप्ताह में उनके काम के प्रति दिलचस्पी बढ़ी है और यह लेख रिसर्चगेट पर 22,000 बार पढ़ा गया है.

हालांकि, सीएमआई ने दावा किया है कि यह हाइपोथिसिस ‘अभी भी अप्रमाणित है और यह अभी भी सबके लिए खुली हुई है’.

सीएमआई के अध्यक्ष मार्टिन ब्रिडसन ने दिप्रिंट को बताया कि भौतिक विज्ञानी ईश्वरन का पेपर कई गंभीर जर्नल्स (पत्रिकाओं) द्वारा खारिज कर दिया गया था.

इस पर ईश्वरन ने जवाब दिया, ‘मैं चर्चा के लिए बिल्कुल तैयार हूं और मैं आपको बता सकता हूं कि मुझे वास्तव में पूरा विश्वास है कि मेरा काम रीमन हाइपोथिसिस को साबित करता है.’

ईश्वरन अपने प्रमाण को ‘सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी का प्रमाण’ मानते हैं. वे कहते हैं, ‘यह विशुद्ध रूप से संख्या सिद्धांत (नंबर थ्योरी) पर ही आधारित नहीं है. इसमें सांख्यिकी, यादृच्छिक चाल (रैंडम वाक), संभाव्यता (प्रोबेबिलिटी) और जटिल चर (काम्प्लेक्स वेरिएबल्स) भी शामिल हैं.’

उन्होंने कहा, ‘वास्तव में, नंबर थ्योरी मेरे प्रमाण में केवल एक छोटी सी भूमिका- 20 प्रतिशत निभाता है और वह भी केवल प्राथमिक स्तर पर ही. अन्य विषय, जो प्रमाण का शेष 80 प्रतिशत बनाते हैं, पूरी तरह से एक सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी के ज्ञान के दायरे में आते हैं.’

रीमन हाइपोथिसिस- होली ग्रेल या दोधारी तलवार?
यह हाइपोथिसिस प्रसिद्ध जर्मन गणितज्ञ जॉर्ज फ्रेडरिक बर्नहार्ड रीमन द्वारा 1859 में एक पेपर में पेश किया गया एक अनुमान है. यह अभाज्य संख्याओं (प्राइम नंबर्स) के ड्रिस्टिब्यूशन से संबंधित है, जो ऐसे पूर्णांक होते हैं जो केवल अपने आप से और 1 से विभाज्य होते हैं.

रीमन हाइपोथिसिस एक अन्य प्रसिद्ध गणितज्ञ (जो रीमन के शिक्षक भी थे) कार्ल फ्रेडरिक गॉस के काम को आगे बढ़ाती है. गॉस ने शून्य और किसी दी गई संख्या के बीच की अभाज्य संख्याओं का अनुमान लगाने पर काम किया था.

उन्होंने अभाज्य संख्याओं की संख्या का अनुमान लगाने का एक तरीका खोजा और उनकी गणना 30,00,000 तक की. लेकिन कोई नहीं जानता था कि अगला अभाज्य अंक कहां आएगा. यह माना जाता है कि अभाज्य संख्याओं की गिनती अनंत (इनफिनाइट) हैं.

प्राइम नंबर थ्योरम के सिद्धांत पर आगे काम करते हुए रीमन हाइपोथिसिस अभाज्य संख्याओं के वितरण के स्वरूप (पैटर्न) पर सटीक भविष्यवाणियां करती है. लेकिन अभी के लिए यह केवल एक अटकल मात्र है.

यह हाइपोथिसिस ‘जेटा फंक्शन’ और शून्य से संबंधित है. एक जेटा फंक्शन काम्प्लेक्स वेरिएबल्स (वास्तविक और काल्पनिक (इमेजनरी) वेरिएबल्स का संयोजन) का एक फंक्शन होता है.

यह फंक्शन सभी ऋणात्मक सम पूर्णांकों (निगेटिव इवन इंटीजर्स), जिन्हें ट्रीवीअल जीरो कहा जाता है- पर शून्य अथवा जीरो हो जाता है लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह अन्य बिंदुओं पर भी शून्य हो जाता है (जिन्हें नॉन- ट्रीवीअल जीरो कहा जाता है).

इस अनुमान में कहा गया है कि जेटा फ़ंक्शन के सभी नॉन-ट्रीवीअल जीरो, काम्प्लेक्स प्लेन की एक सीधी रेखा- क्रिटिकल लाइन पर होते हैं.

इस समस्या की जटिलता इतनी अधिक है कि इसे ‘गणित की होली ग्रेल’ माना जाता है.

हालांकि, अगर रीमन हाइपोथिसिस साबित हो जाती है तो यह आधुनिक बैंकिंग प्रणाली के लिए गंभीर खतरा हो सकती है.

बड़ी अभाज्य संख्याएं, जिन्हें अंकगणित का एटम माना जाता है, आधुनिक क्रिप्टोग्राफी और ई-कॉमर्स में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.

ई-बैंकिंग और क्रेडिट कार्ड के लेन-देन में कोड बड़ी अभाज्य संख्याओं (प्राइम नंबर्स) को गुणा करने की यांत्रिक प्रक्रिया पर आधारित होते हैं.

यदि रीमन हाइपोथिसिस सिद्ध हो जाती है, तो अभाज्य संख्याओं (प्राइम नंबर्स) का पता लगाने के लिए और भी तेज़ तरीके खोजे जा सकते हैं. यह क्रिप्टोग्राफिक सिस्टम और उनके कोड के लिए एक संकट के जैसा होगा जिससे वे असुरक्षित हो जाएंगे.

साभार- https://hindi.theprint.in/ से 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व का मुहुर्त

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, मध्य रात्रि, रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। 26 अगस्त 2024 सोमवार को सप्तमी तिथि दिन में प्रातः 8 बजकर 20 मिनट पर समाप्त हो रही है, अर्थात् इसके बाद अष्टमी तिथि प्रारम्भ हो जायेगी। इसके साथ ही सोमवार की रात्रि 9 बजकर 10 मिनट पर कृतिका नक्षत्र समाप्त होकर रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ हो जायेगा। इस प्रकार अष्टमी तिथि- रोहिणी नक्षत्र मिलकर *जयंती योग* बना रहे हैं, जोकि बहुत ही शुभ है। मुहूर्त चिंतामणि ग्रन्थ के अनुसार आज *सर्वार्थसिद्धियोग* भी रहेगा। शास्त्रों में बुधवार तथा सोमवार को भी पुण्यफलकारक माना गया है>

कि पुनर्बुधवारेण सोमे नापि विशेषत: इसलिए  इस जन्माष्टमी पर्व पर पूर्ण श्रद्धा व उल्लास के साथ भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाकर पुण्यफल प्राप्त करें।
इसके अलावा जो स्वयं को वैष्णव मानते हैं वो औदायिक अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र में 27 अगस्त मंगलवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाएंगे। पंचांगों में स्मार्तों और वैष्णवों के लिए अलग अलग तिथियों में व्रत त्योहार दर्शाया रहता है। कुछ लोगों को संदेह होने लगता है कि हम किसी दिन व्रत या त्योहार मनायें। आइए स्मार्त व वैष्णव का संक्षिप्त अन्तर समझने की कोशिश करते हैं। जिन लोगों को स्वयं का सम्प्रदाय नहीं मालूम वे अपने को स्मार्त मानते हैं।‌सामान्य रूप से स्मार्त शिव के उपासक होते हैं। वे श्रुति स्मृति को मानते हैं और वेद पुराण, धर्म शास्त्र, गायत्री, पंचदेव के उपासक होते हैं।
ठीक इसी प्रकार सामान्य रूप से वैष्णव भगवान विष्णु के उपासक होते हैं और उनके अवतारों को मानते हैं। वैष्णव सम्प्रदाय वाले मस्तक पर तिलक धारण करते हैं और विधि पूर्वक दीक्षा लेकर कण्ठी, तुलसी की माला धारण करते हैं। लक्ष्मी नारायण मंदिर, कृष्ण मंदिर, श्रीनाथ मन्दिर या भगवान विष्णु के अवतारों वाले जो भी मन्दिर हैं, वे सभी वैष्णव सम्प्रदाय के अन्तर्गत ही आते हैं।

सौरभ दुबे( Astrological Consultant)*
काशी/बनारस/वाराणसी*
*Watsaap-9198818164*

कोटा के जितेंद्र निर्मोही को बैजनाथ पंवार कथा साहित्य पुरस्कार

कोटा / स्थानीय चुरू प्रयास संस्थान की ओर से प्रतिवर्ष राजस्थानी भाषा के ख्यातनाम कथाकार बैजनाथ पंवार की स्मृति में दिया जा रहा बैजनाथ पंवार कथा साहित्य पुरस्कार वर्ष 2024 के लिए झालावाड़ में जन्मे एवं कोटा निवासी प्रख्यात लेखक जितेंद्र निर्मोही को दिया जाएगा। निर्मोही के राजस्थानी उपन्यास ‘रामजस की आतमकथा’ के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।
प्रयास संस्थान के सचिव कमल शर्मा ने बताया कि चूरू में पंद्रह सितंबर को प्रस्तावित समारोह में जितेंद्र निर्मोही को पुरस्कार स्वरूप ग्यारह हजार रुपए, शाॅल व सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व यह पुरस्कार रामस्वरूप किसान, नंद भारद्वाज, मेहरचंद धामू, अतुल कनक, अरविंद आशिया जैसे नामचीन लेखकों के नाम हो चुका है।
7 अप्रेल 1953 को झालावाड़ में मां कमला देवी एवं पिता रमेशचंद्र शर्मा के यहां जन्मे जितेंद्र निर्मोही राजस्थानी एवं हिंदी के उल्लेखनीय हस्ताक्षर हैं। राजस्थानी में काव्यकृति ‘ईं बगत को मिजाज’,  ‘गाधि-सुत’, संस्मरण कृति ‘या बणजारी जूण’, निबंध संग्रह ‘बांदरवाळ की लङ्यां’, ‘हाड़ौती अंचल को राजस्थानी काव्य’, कथाकृति ‘कफन को पजामो अर दूजी कथावां’ तथा उपन्यास ‘नुगरी’ एवं ‘रामजस की आतमकथा’ चर्चित-प्रशंसित कृतियां हैं।
हिंदी में भी आपकी अनेक कृतियां हैं। निर्मोही को इससे पूर्व राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर का ‘कन्हैयालाल सहल पुरस्कार’, सृजन सेवा संस्थान श्रीगंगानगर का ‘सूरजाराम जालीवाल राजस्थानी भाषा पुरस्कार’, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर का ‘आगीवाण सम्मान’, नेम प्रकाशन डेह का ‘अमरादेवी पहाड़िया राजस्थानी गद्य पुरस्कार’, लायन्स क्लब बीकानेर का ‘खींवराज मुन्नीलाल सोनी राजस्थानी गद्य पुरस्कार’ सहित कई पुरस्कार मिल चुके हैं। अनेक संस्थाओं से जुड़ाव रखने वाले निर्मोही राजस्थानी भाषा मान्यता आंदोलन के एक सजग प्रहरी हैं।

पश्चिम रेलवे गोरेगांव और कांदिवली के बीच शुरू करेगी छठी लाइन का कार्य

मुंबई। पश्चिम रेलवे गोरेगांव-कांदिवली सेक्शन के बीच छठी लाइन का कार्य शुरू करने की तैयारी कर रही है। लगभग 4.5 किलोमीटर लंबे इस सेक्‍शन पर कार्य 27/28 अगस्त, 2024 की रात से शुरू होगा और 05/06 अक्टूबर, 2024 तक चलेगा। उल्लेखनीय है कि यात्रियों को कम से कम असुविधा हो, इसलिए पांच प्रमुख ब्लॉक केवल सप्ताहांत के दौरान ही लिए जा रहे हैं।

पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी श्री विनीत अभिषेक द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, गोरेगांव और कांदिवली स्टेशनों के बीच लगभग 4.5 किलोमीटर लंबी छठी लाइन का कार्य शुरू होने वाला है। सप्ताहांत यानी शनिवार/रविवार को रात में 10 घंटे का ब्लॉक लेकर कार्य शुरू किया जाएगा। यह कार्य 35 दिनों में पूरा करने का लक्ष्य है। उल्लेखनीय है कि गणपति महोत्सव के दौरान 11 से 17 सितंबर, 2024 तक कोई कार्य नहीं किया जाएगा।

श्री विनीत ने बताया कि चूंकि मालाड स्टेशन के पूर्व की ओर 6वीं लाइन बिछाने के लिए जगह नहीं है, इसलिए पश्चिम की ओर एक नई लाइन बिछाई जाएगी और सभी मौजूदा 5 लाइनों को कट और कनेक्शन के माध्यम से पश्चिम की ओर स्थानांतरित किया जाएगा। इस  कार्य के प्रगति पर होने के कारण लंबी दूरी की कुछ ट्रेनों को 15 से 20 मिनट रेगुलेट किया जाएगा, जबकि उपनगरीय सेवाएं भी प्रभावित होंगी, जिसमें औसतन लगभग 100-140 सेवाएं निरस्‍त की जाएंगी और सप्ताहांत में लगभग 40 सेवाओं को शॉर्ट टर्मिनेट किया जाएगा। उल्‍लेखनीय है कि पश्चिम रेलवे द्वारा रात में कार्य करने का कार्यक्रम बनाया है ताकि सप्ताह के दिनों में कम से कम व्यवधान हो। 28/29 सितंबर और 05/06 अक्टूबर, 2024 को गोरेगांव और कांदिवली के बीच 5वीं लाइन पर नॉन-इंटरलॉकिंग कार्य किया जाएगा। इसके कारण बांद्रा टर्मिनस से चलने वाली ट्रेनों को 40 से 45 मिनट रेगुलेट किया जाएगा।

श्री विनीत ने आगे बताया कि गोरेगांव-कांदिवली सेक्‍शन बांद्रा टर्मिनस और बोरीवली के बीच 5वीं / छठी लाइन का हिस्सा है। 5वीं लाइन बांद्रा टर्मिनस और बोरीवली के बीच पहले ही शुरू हो चुकी है, जबकि छठी लाइन खार रोड और गोरेगांव के बीच शुरू हो चुकी है। गोरेगांव-कांदिवली सेक्‍शन का कार्य पूर्ण होने के बाद कांदिवली-बोरीवली खंड पर छठी लाइन का कार्य शुरू होगा। इस परियोजना के पूर्ण होने से यातायात की आवाजाही को निम्नलिखित तरीकों से लाभ मिलेगा:

लाभ:

•        मुंबई उपनगरीय खंड की लाइन क्षमता में वृद्धि होगी।

•        व्यस्त उपनगरीय और मेन लाइन की पटरियों पर यातायात सघनता कम होगी।

•        ट्रेनों की समयपालनता में सुधार होगा।

•        बांद्रा टर्मिनस से आने- जाने वाली ट्रेनों के लिए इस खंड पर दो समर्पित लाइनें होंगी।

•        मेन लाइन की ट्रेनों और उपनगरीय ट्रेनों का पृथक्करण होगा।

•        अधिक ट्रेनें चलाने के लिए अतिरिक्त मार्ग उपलब्ध हो सकेगा।

•        अंधेरी – बोरीवली – विरार सेक्‍शन के यात्रियों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।

भोपाल के पत्रकारिता विवि में पाँच नए विषयों में पीएचडी की उपाधि दी जाएगी

भोपाल। भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (एमसीयू) ने आठ साल के लंबे इंतजार के बाद पीएचडी की सीटों की घोषणा करने का फैसला किया है। यह घोषणा अगले सप्ताह की जाएगी।

एमसीयू के कुलगुरु, प्रोफेसर (डॉ.) के.जी. सुरेश ने बताया कि पहले विश्वविद्यालय केवल दो विषयों- मीडिया अध्ययन और कंप्यूटर अनुप्रयोग में पीएचडी उपाधि प्रदान करता था, लेकिन इस बार, विश्वविद्यालय ने पांच विषयों में पीएचडी की उपाधि देने का निर्णय लिया है। ये नए विषय जनसंचार, नवीन मीडिया प्रौद्योगिकी, मीडिया प्रबंधन, कंप्यूटर अनुप्रयोग और पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान हैं।

पीएचडी में प्रवेश के लिए पात्रता के तहत राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत चार वर्षीय शोध स्नातक पाठ्यक्रम भी शामिल किया जाएगा। इसके अलावा, जो उम्मीदवार नेट परीक्षा में उत्तीर्ण होंगे, वे भी पीएचडी के लिए पात्र होंगे। पीएचडी को पूरा करने की समय सीमा न्यूनतम तीन वर्ष और अधिकतम छह वर्ष निर्धारित की गई है।

आवेदकों को प्रवेश परीक्षा और साक्षात्कार दोनों से गुजरना होगा, जबकि नेट की योग्यता वाले उम्मीदवारों को केवल साक्षात्कार देना होगा। प्रो. सुरेश ने यह भी बताया कि पिछले चार वर्षों में विश्वविद्यालय ने लगभग 3 दर्जन पीएचडी उपाधियां प्रदान की हैं।