Thursday, July 4, 2024
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अमेरिकी विश्वविद्यालय की कक्षाओं में रोमांचक तरीके से होती है पढ़ाई

विद्यार्थियों का कहना है कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में विषयों की गहन पढ़ाई होती है। कक्षाओं में गहन अध्ययन के साथ इसका व्यावहारिक इस्तेमाल शिक्षा को संपूर्ण बनाता है। 

अमेरिकी विश्वविद्यालय कक्षाओं में विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रमों के साथ कक्षाओं के शानदार अनुभव प्रदान करते हैं। कक्षाओं के सुव्यवस्थित सत्र विद्यार्थियों की भागीदारी को प्रोत्साहित करते हैं, व्यावहारिक अनुभव एवं संवादी माहौल कक्षाओं में विद्यार्थियों के  लिए सीख को प्रोत्साहन देते हैं। यह, शैक्षणिक कार्यक्रम तैयार करने की स्वतंत्रता के साथ, अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों के लिए अनूठा अवसर प्रस्तुत करता है। इससे उन्हें अमेरिकी डिग्री हासिल करने के दौरान अपने समय के अधिकतम इस्तेमाल की सुविधा मिलती है।

विकल्प की स्वतंत्रता    

नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी, मैसाच्यूसेट्स में कंप्यूटर साइंस के ग्रेजुएट विद्यार्थी ऋषभ पाटिल के लिए अपनी शैक्षणिक यात्रा को अपने अनुकूल ढालने की स्वतंत्रता अमेरिका में अध्ययन के ‘‘सबसे बड़े लाभों में से एक ’’है। वह कहते हैं,‘‘यह सभी के लिए उपयुक्त निर्धारित विषयों के चुनाव का अनुसरण करने के बजाए उन विषयों के चुनाव की आजादी देता है जो हमारी अभिरुचियों से मेल खाते हैं।’’

विश्वविद्यालयों में कक्षाओं के दायरे बहुत व्यापक होते हैं, फिर भी विश्वविद्यालय के कॅरियर काउंसलर और समर्पित पेशेवर, विद्यार्थियों को निर्णय लेने में मदद करने के लिए हमेशा उपलब्ध रहते हैं।

कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी, लॉस एंजिलीस से कानून में मास्टर्स डिग्री के लिए अध्ययन कर रही दिव्या कौशिक के अनुसार, ‘‘अपनी कक्षाएं खुद चुनना और अपने शेड्यूल को उसी हिसाब से ढालना निसंदेह एक बड़ा फायदा है। एक बारजब आप अपनी प्राथमिकताएं तय कर लेते हैं, तब आप यूनिट डिस्ट्रीब्यूशन और कठिनाई के स्तर के आधार पर योजनाएं बनाते हैं और इससे खुद में मज़बूती का अहसास होता है।’’

सदर्न कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी, लॉस एंजिलीस से कम्युनिकेशन मैनेजमेंट में ग्रेजुएट विद्यार्थी मानसी चंदू विशेष रूप से पेपर प्रस्तुत करने, परीक्षा देने और विषयवस्तु की पड़ताल के मामले में अमेरिकी शैक्षणिक प्रणाली के लचीलेपन की सराहना करती हैं। वह कहती हैं, ‘‘विद्यार्थी अपने निष्कर्ष किस तरह से पेश करना चाहते हैं, इस मामले में उनको खूब आजादी है। मैं इस बात की सराहना करती हूं कि विषयवस्तु के प्रस्तुतिकरण और सार्वजनिक रूप से बोलने पर काफी जोर दिया जाता है, चाहे बात विपरीत ही क्यों न हो। अतिथि वक्ता  भी यहां काफी दिलचस्प थे क्योंकि सैद्धांतिक पढ़ाई के साथ-साथ आपको सीधे उन लोगों से सीखने का मौका मिलता है जो फील्ड में होते हैं। इससे आपको इस बात का आभास हो जाता है कि जब आप नौकरी के लिए जाएंगे, तब आपको किस तरह की उम्मीद रखनी चाहिए।’’

लचीली योजनाएं

अमेरिकी विश्वविद्यालयों में अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी भी क्लास शेड्यूल को तय करने के लचीलेपन का आनंद लेते हैं। चंदू कहती हैं, ‘‘यहां चीजें बहुत ज्यादा औपचारिकताओं में नहीं उलझी हैं, जिसके चलते विद्यार्थियों को यह समझने की बहुत छूट होती है कि वे अपना शेड्यूल कैसे बनाते हैं। यही कारण है कि मैंने अमेरिका में पढ़ाई करनी चाही।’’

विकल्प और अवसर दो ऐसी चीजें हैं जिसके चलते शिक्षक भी अपने पढ़ाने के तरीके में रचनात्मकता लाते हैं और विद्यार्थियों को प्रेरित रखने के लिए उत्साहित करते रहते हैं। कौशिक के अनुसार, ‘‘चूंकि एक ही विषय कई अध्यापक पढ़़ाते हैं, लिहाजा विद्यार्थियों के पास प्रो़फेसरों के बीच चयन का अवसर होता है। इससे न केवल प्रशिक्षकों की विश्वसनीयता सुनिश्चित होती हैं बल्कि उनके बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को भी बढ़ावा मिलता है जो अंत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में योगदान देता  है।’’

कक्षाएं आमतौर पर दिन में विभिन्न समयों पर लगती हैं, जिससे विद्यार्थियों को एक शैक्षणिक शेड्यूल बनाने में मदद मिलती है और साथ ही इससे पढ़ाई के अलावा उन्हें अपनी दूसरी दिलचस्पियों के लिए भी वक्त मिलना आसान हो जाता है।

कौशिक के अनुसार, ‘‘अमेरिकी विश्वविद्यालय पूरे दिन और शाम को भी कक्षाओं का आयोजन करते हैं ताकि शैक्षणिक गतिविधियों के साथ-साथ पार्ट टाइम रोजगार करने वाले विद्यार्थी भी पढ़ाई और काम के बीच संतुलन बना सकें। यह लचीलापनविद्यार्थियों को अपना शेड्यूल प्रबंधित करने और अपनी निजी ज़रूरतों को पूरा करने के लिहाज से काफी ताकत देता है।’’

संतुलित दृष्टिकोण

पाटिल, अमेरिकी विश्वविद्यालयों में संरचित पाठ्यक्रम, व्यावहारिक कक्षाओं और स्व-अध्ययन के लिए खाली समय के बीच संतुलन बनाने के लिए उनकी सराहना करते  हैं। वह कहते हैं, ‘‘कक्षाएं और प्रयोगशालाएं बहुत व्यवस्थित हैं और पाठ्यक्रम अच्छी तरह से तैयार किया गया होता है। कक्षाएं और प्रयोगशालाएं बहुत बार नहीं होतीं, ह़फ्ते में अधिकतम दो बार ही जाना होता है, जिससे खुद पढ़ने के लिए काफी वक्त मिलता है।’’

पर्ड्यू यूनिवर्सिटी, इंडियाना में कंप्यूटर साइंस के अंडरग्रेजुएट विद्यार्थी रुद्रनील सिन्हा के अनुसार, अमेरिकी कक्षाएं सक्रिय शिक्षण पर केंद्रित हैं। वह बताते हैं, ‘‘असाइनमेंट और लैब कार्य केवल शिक्षण सामग्री को व्यवहार में लाना भर नहीं है, बल्कि उससे कहीं ज्यादा है। समस्या पर शिक्षण सामग्री के इस्तेमाल और उसका समाधान करने का तरीका खोजने पर जोर दिया जाता है जो अक्सर आपको उन चीजों का अहसास कराती हैं जिनको लेकर शुरुआती तौर पर आप बहुत सहज नहीं होते।’’

विद्यार्थियों का कहना है कि अमेरिका में विषय का गहराई से अध्ययन किया जाता है और उसका व्यावहारिक इस्तेमाल के साथ गहनता से अध्ययन ही शिक्षा को संपूर्ण बनाता है। कौशिक के अनुसार, ‘‘अमेरिका में शिक्षण के व्यावहारिक दृष्टिकोण की तारीफ करने वाले कई पूर्व विद्यार्थियों को सुनने के बाद मुझे अहसास हुआ कि उनकी प्रशंसा हकीकत के मुकाबले काफी कमतर थी।’’ वह कहती हैं, ‘‘खासतौर पर अगर कानून की पढ़ाई की बात की जाए तो अमेरिकी शैक्षिक प्रणाली व्यावहारिक शिक्षा, धरातल पर उसके इस्तेमाल और समस्या के समाधान के प्रोत्साहन देने पर केंद्रित होती है जो केवल रटने के बजाए अवधारणाओं और उनके कार्यान्वयन की गहरी समझ की मांग करते हैं।’’

कक्षा में उठाए गए विषयों पर चर्चा में भाग लेना भी महत्वपूर्ण है। कौशिक के अनुसार, ‘‘कक्षा में विद्यार्थी की भागीदारी पर जोर दिया जाता है जिससे विषयवस्तु को आत्मसात करने के साथ, संचार कौशल और बेहतर समझ बनाने में मदद मिलती  है। यह संवादी नज़रिया एक सहयोगात्मक वातावरण को बढ़ावा देता है जिससे विद्यार्थियों में आपसी जुड़़ाव और प्रेरणा को प्रोत्साहन मिलता है।’’

कभी-कभी अमेरिकी विश्वविद्यालय ओपन बुक असेसमेंट का विकल्प भी  देते हैं जिसमें इंटरनेट एक्सेस की सुविधा तक दे दी जाती है। उदाहरण के लिए, लॉ स्कूल परीक्षाएं आमतौर पर, वास्तविक दुनिया की स्थितियों में कानूनी ज्ञान लागू करने की विद्यार्थियों की क्षमताओं का परीक्षण करने के लिए जटिल तथ्यों और परिदृश्यों को प्रस्तुत करती हैं। वह बताती हैं, ‘‘किसी एक सही उत्तर की तलाश के बजाए ये परीक्षाएं दिए गए संदर्भ में सभी प्रासंगिक कानूनी मुद्दों की पहचान करने और काल्पनिक ग्राहकों को व्यावहारिक सलाह देने को प्राथमिकता देती हैं।’’ उनका आगे कहना है, ‘‘यह दृष्टिकोण वास्तविक दुनिया के कानूनी अभ्यास की चुनौतियों को प्रतिबिंबित करता है जो कानून के विद्यार्थियों को शुरू से ही अपने क्षेत्र की जटिलाताओं से प्रभावी तरीके से परिचित कराता है।’’

सिन्हा स्पष्ट करते हैं कि ग्रेडिंग प्रणाली में भागीदारी, उपस्थिति, लैब, असाइनमेंट आदि शामिल हैं न कि सिर्फ एक फाइनल प्रोजेक्ट या टेस्ट। वह बताते हैं, ‘‘पाठ्यक्रम इस तरह से तैयार होता है कि उसमें अलग-अलग तरीकों से सीखने और भिन्न-भिन्न तरीकों से ग्रेडिंग करने का काम होता है और यही चीज़ अमेरिकी शिक्षा प्रणाली को बेहतरीन बनाती है।’’ वह कहते हैं, ‘‘अमेरिकी कॉलेजों में फाइनल ग्रेडिंग सिस्टम इस तरह से होती है कि उसमें ध्यान रखा जाता है कि उसमें परीक्षा, असाइमेंट, उपस्थिति और लैब सभी पक्षों के बीच अच्छा संतुलन कायम रखा जा सके।’’

यह दृष्टिकोण विद्यार्थियों और प्रोफेसरों के बीच आपसी सम्मान के गहरे रिश्तों को प्रोत्साहित करता है जो कक्षा में एक सकारात्मक अनुभव की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। कौशिक के अनुसार, ‘‘विद्यार्थियों और प्रोफेसरों के बीच सकारात्मक संबंध अमेरिकी शैक्षिक अनुभव की बुनियाद है।’’

नतासा मिलास स्वतंत्र लेखिका हैं और न्यू यॉर्क सिटी में रहती हैं।

साभार  – https://spanmag.com/hi/ से

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‘….साली तेरी औकात क्या है कि हमको ना करदे…’ स्वाति मालीवाल की आपबीती

आप  की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल के साथ दिल्ली  में अरविंद केजरीवाल के आवास पर हुई मारपीट के मामले में एफाईआर  सामने आई है। इसमें स्वाति मालीवाल ने बताया है कि कैसे उनके साथ केजरीवाल के पूर्व निजी सचिव बिभव कुमार ने बर्बरता से मारपीट की। उन्होंने इस एफाईआर  में बताया है कि उन्हें बर्बरता से पीटा गया और जान से मार देने तक की धमकी दी गई।

एफाईआर  में स्वाति मालीवाल ने बताया कि वह 13 मई, 2024 की सुबह केजरीवाल से मिलने उनके घर पहुँची थीं। यहाँ केजरीवाल से मिलने के लिए उन्हें थोड़ी देर प्रतीक्षा करने को कहा गया था। स्वाति मालीवाल ने बताया कि वह  मुख्यमंत्री  केजरीवाल की प्रतीक्षा ड्राइंग रूम में कर रहीं थी तभी वहाँ बिभव कुमार आ गए।

स्वाति मालीवाल ने बताया कि बिभव कुमार ने आते ही उन पर चिल्लाना और गालियाँ देना शुरु कर दिया। स्वाति ने कहा कि उन्होंने बिभव से शांत होने की बात कही लेकिन वह नहीं माने। इसके बाद बिभव कुमार ने स्वाति मालीवाल से कहा, “तू कैसे हमारी बात नहीं मानेगी? कैसे नहीं मानेगी? साली तेरी औकात क्या है कि हमको ना करदे। समझती क्या है खुद को नीच औरत। तुझको हम सबक सिखाएँगे।” बिभव कुमार इसके बाद स्वाति मालीवाल पर हमलावर हो गए।

स्वाति मालीवाल ने बताया कि उन्हें बिभव कुमार ने उन्हें एक साथ 7-8 थप्पड़ मारे। जब स्वाति मालीवाल ने इसका विरोध किया और उन्हें पीछे धकेला तो बिभव कुमार उन पर टूट पड़े। बिभव ने मालीवाल को खींचा और उनकी शर्ट ऊपर कर दी। इसके बाद उनकी शर्ट के बटन खुल गए। मालीवाल ने बताया कि खींचे जाने के कारण उनका सर मेज से टकरा गया और वह स्वयं जमीन पर गिर गईं। बिभव कुमार ने इसके बाद उनकी छाती समेत पूरे शरीर पर लातें बरसाईं।

स्वाति मालीवाल ने आरोप लगाया कि जब उनके साथ मारपीट हुई तब उन्हें पीरियड्स आ रहे थे और इसको लेकर उन्होंने बिभव कुमार से छोड़ देने की अपील भी की। हालाँकि, बिभव नहीं माने और स्वाति को पीटते रहे। स्वाति ने बताया कि इस दौरान उनकी मदद के लिए कोई नहीं आया। स्वाति जब किसी तरह अपने आप को छुड़वाने में सक्षम हुईं तो उन्होंने पुलिस को फ़ोन किया। फोन को लेकर भी बिभव कुमार ने उन्हें गालियाँ दी।

बिभव कुमार ने उनसे कहा, “कर ले तुझे जो कुछ करना है। तू हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। तेरी हड्डी पसली तुडवा देंगे और ऐसी जगह गाड़ेंगे किसी को पता भी नहीं चलेगा।” इसके बाद बिभव कुमार ने मुख्यमंत्री आवास के सुरक्षाकर्मियों के जरिए उन्हें बाहर फिंकवा दिया। स्वाति मालीवाल ने बताया कि वह इसके बाद किसी तरह पुलिस थाने पहुँचीं लेकिन मामले को राजनीतिक रंग ना दिया जाए इसलिए उन्होंने उस दिन इस मामले में एफआईआर दर्ज नहीं करवाई।

स्वाति मालीवाल ने एफआईआर में बताया है कि इस मारपीट के कारण वह गंभीर रूप से चोटिल हो गई हैं और उनके शरीर के कई हिस्से दर्द कर रहे हैं। उनसे चला भी नहीं जा रहा है। उन्होंने इस मामले में दिल्ली पुलिस से जाँच करके कार्रवाई की माँग की है। मालीवाल के बयान के आधार पर पुलिस ने बिभव कुमार पर धारा 308, 341, 323, 354बी, 506 और 509 के तहत मामला दर्ज कर लिया है। इससे पहले इस मामले में दिल्ली पुलिस की एक टीम स्वाति मालीवाल के घर भी पहुँची थी।

स्वाति मालीवाल का इस घटना के बाद मेडिकल भी करवाया गया है। दिल्ली पुलिस वर्तमान में बिभव कुमार को तलाश रही है। बिभव को आखिरी बार 16 मई, 2024 को लखनऊ में अरविन्द केजरीवाल के साथ देखा गया था। मामले में  केजरीवाल की चुप्पी पर सवालों के घेरे में है।

स्वाति मालीवाल के साथ हुई बदसलूकी मामले में प्राथमिकी दर्ज होने के बाद अब दिल्ली पुलिस को मेडिकल रिपोर्ट का इंतजार है। इस बीच सूत्रों के हवाले से मीडिया में दी गई जानकारी में कहा जा रहा है कि राज्यसभा सांसद के चेहरे पर सूजन मिली है। बाकी की डिटेल मेडिकल रिपोर्ट मिलने के बाद आएगी। अब पुलिस विभव कुमार को ढूँढने के लिए अपनी कार्रवाई कर रही है। उन्होंने इस मामले में 10 टीमों को लगाया हुआ है।

बता दें कि स्वाति मालीवाल के साथ उस दिन क्या हुआ इसके सबूत जुटाने के लिए पुलिस मुख्यमंत्री आवास के फुटेज मँगाने वाली है, लेकिन मीडिया में इस केस में पहले दिन से क्या-क्या जानकारी आई है इसके बारे में सिलसिलेवार ढंग से जान लेते हैं।

13 मई 2024 को सुबह 9:10 मिनट पर स्वाति मालीवाल सीएम केजरीवाल के आवास पहुँचीं। मीडिया में कहा गया कि चूँकि केजरीवाल सरकार ने उनसे इस्तीफा माँगा था इसलिए वो वहाँ बात करने गई थीं।

इसी दिन 13 मई को करीबन 24 मिनट बाद 9:34 पर स्वाति मालीवाल के नाम से पीसीआर को कॉल गई। उन्होंने बताया कि उनसे साथ सीएम आवास में हिंसा हुई है।

13 मई 2024 को ही स्वाति मालीवाल सिविल लाइंस थाने पहुँची लेकिन एक कॉल आने के बाद बिन शिकायत किए वापस लौट आईं।

13 मई 2024 की शाम तक ये खबर मीडिया में आ गई कि सीएम के आवास पर किसी राज्यसभा सांसद के साथ बदसलूकी हुई है।

14 मई को साफ हो गया है कि वो सांसद स्वाति मालीवाल हैं।

शुरू में सोशल मीडिया पर AAP समर्थकों ने फैलाने की कोशिश की कि ये सारी बातें झूठ हैं।

14 मई को ही बात संभालने के लिए आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डाली।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में भरोसा दिया गया कि पार्टी स्वाति मालीवाल के साथ है।

14 मई को स्वाति के पूर्व पति की वीडियो सामने आई। इस वीडियो में उन्होंने मालीवाल की जान को खतरा बताया और पूरा हमला एक साजिश कहा।

15 मई 2024 को बीजेपी दिल्ली ने सीएम हाउस के बाहर प्रोटस्ट किया। एक्शन की माँग हुई।

16 मई 2024 को एक्शन तो दूर मुख्यमंत्री केजरीवाल अपने पीए विभव कुमार को लेकर लखनऊ पहुँच गए।

16 मई शाम में तस्वीर सामने आई कि इतना सब होने के बावजूद अरविंद केजरीवाल पीए के साथ घूम रहे हैं। पूरी AAP पार्टी की मंशा और सोच पर सवाल उठे।

16 मई 2024 रात में पता चला कि स्वाति मालीवाल ने इस संबंध में पुलिस को शिकायत दे दी है। पुलिस ने चार घंटे उनकी बात सुनने के बाद इस मामले में एफआईआर दर्ज की।

रात 11 बजे के करीब पुलिस स्वाति मालीवाल को लेकर एम्स पहुँची। उनका मेडिकल चेक अप हुआ।

16-17 मई की रात करीब 3 बजे स्वाति वापस घर आईं और अंदर घुसते समय जो उनकी वीडियो दिखी उसमें उनके पैर लड़खड़ाते देखे गए।

17 मई 2024 को मीडिया में पुलिस सूत्रों के हवाले से कई बातें सामने आईं। एफआईआर को लेकर कहा गया कि स्वाति मालीवाल ने बताया है कि उनके संवेदनशील अंगों पर विभव ने वार किया।

पुलिस की करीबन 10 टीमों को इस मामले की हकीकत जानने में लगाया गया।

17 मई 2024 की दोपहर स्वाति मालीवाल अपना बयान दर्ज कराने कोर्ट में पहुँची।

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स्कैम तीन में सहारा इंडिया के सुब्रत राय की कहानी

निर्देशक हंसल मेहता की चर्चित सीरीज ‘स्कैम’ के दो सुपर हिट सीजन के बाद अब तीसरे सीजन की घोषणा हो गई है। ‘स्कैम’ के तीसरे सीजन में सहारा परिवार के अगुआ रहे सुब्रत रॉय की कहानी दर्शकों को देखने को मिलेगी। इस वेब सीरीज का नाम ‘स्कैम 2010: द सुब्रत रॉय सागा’ होगा।

वैसे सीरीज का पहला प्रोमो सामने आ गया है। हंसल मेहता ने शो का पहला प्रोमो सोशल मीडिया पर शेयर किया है।

उल्लेखनीय है कि  हंसल मेहता की वेब सीरीज ‘स्कैम’ के दोनों सीजन ‘स्कैम 1992’ और ‘स्कैम 2003’ पहले ही आ चुके हैं।

निर्देशक हंसल मेहता ने ‘स्कैम 2010: द सुब्रत रॉय सागा’ की अनाउंसमेंट करते हुए पोस्ट शेयर कर लिखा, ‘Sc3m वापस आ गया है! स्कैम 2010: द सुब्रत रॉय सागा, जल्द ही @sonylivindia पर आ रहा है #Scam2010OnSonyLIV’

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प्रभात प्रकाशन को चाहिए महिला एंकर

देश के अग्रणी पब्लिशर्स में शुमार ‘प्रभात प्रकाशन’ (Prabhat Parkashan) को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए दिल्ली में महिला न्यूज एंकर की जरूरत है। इसके लिए योग्य व इच्छुक आवेदकों से आवेदन मांगे गए हैं।

इस बारे में सोशल मीडिया पर शेयर की गई जानकारी के अनुसार, आवेदकों के पास एंकरिंग का कम से कम एक साल का अनुभव होना चाहिए। कंटेंट राइटिंग की समझ होनी चाहिए।

इसके अलावा हिंदी और अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए। विभिन्न चीजों को अच्छे तरीके से पेश करने का अनुभव होना चाहिए।

इच्छुक आवेदक अपना  बॉयोडैटा और अपने द्वारा किए गए काम के नमूने (work samples) भेजने के लिए अथवा अन्य जानकारी के लिए वॉट्सऐप नंबर 8076142753 का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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डेंगू से बचाव कैसे हो

डेंगू की गंभीरता को देखते हुए इसके बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 16 मई को राष्ट्रीय डेंगू दिवस मनाया जाता है! एक छोटा सा मच्छर अगर काट लें तो इससे जान भी जा सकती है और ऐसा तब होता है जब वो मच्छर डेंगू का हो! साफ और रूके हुए पानी में पनपने वाले इस छोटे से मच्छर को एडीज मच्छर कहते है और हर साल मानसून के मौसम में इस मच्छर का प्रकोप फैलता हुआ नजर आता है!  डेंगू होने पर ब्लड में प्लेटलेट्स काफी तेजी से घटने लगती है, साथ ही तेज बुखार सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, त्वचा पर रैशेज होने जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं. लेकिन कई बार डेंगू गंभीर रूप भी ले सकता है. जिसकी वजह से मरीज की जान तक जा सकती है. इसलिए समय रहते इसका इलाज करवाना बेहद जरूरी है!
डेंगू का खतरा उन लोगों को ज्यादा है जो ऐसे इलाके में रहते है जहां काफी मात्रा में मच्छर होते है, जहां जलभराव होता है! बारिश के मौसम में डेंगू के मामले ज्यादा पाए जाते है! कई बार ये व्यक्ति के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है!
‘राष्ट्रीय डेंगू दिवस’ मनाने का कारण- डेंगू की गंभीर बीमारी के प्रति लोगों को जागरुक करने के मकसद से राष्ट्रीय डेंगू दिवस मनाया जाता है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से डेंगू दिवस मनाया जाता है। देश में हर साल डेंगू की समस्‍या से लाखों लोगों की जान चली जाती है। राष्ट्रीय डेंगू दिवस के दिन देश भर में कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जिसमें डेंगू के लक्षण, इसके प्रसार और बचाव के उपायों के बारे में बात की जाती है। इन कार्यक्रमों की बदौलत ही लोग अब इस बीमारी के प्रति काफी जागरूक हो गए हैं।
साल 2024 में राष्ट्रीय डेंगू दिवस की थीम है ‘डेंगू रोकथाम: सुरक्षित कल के लिए हमारी जिम्मेदारी’। क्योंकि डेंगू मच्छरों से फैलने वाली बीमारी है, तो इसकी रोकथाम के लिए सबसे पहले मच्छरों से बचाव जरूरी है।
मच्छरों से बचने के लिए लंबी बाजू वाले कपड़े पहनें। पैरों को भी ढककर रखें। लाइट कलर के कपड़े गर्मी से तो बचाते ही हैं साथ ही मच्छरों से भी। मच्छर डार्क कलर की ओर ज्यादा आकर्षित होते हैं। नियमित रूप से नालियों, गमलों और अन्य जगहों की जांच करते रहें। उनमें पानी न जमा होने दें। इसमें डेंगू के लार्वा पैदा हो सकते हैं। मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी, स्प्रे का प्रयोग करें। घरों में कुछ खास तरह के पौधे लगाने से भी मच्छर दूर रहते हैं।
वैसे तो मच्छरों से छुटकारा पाने के लिए मार्केट में कई तरह के प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं, लेकिन इनमें से कई सारे सेहत को नुकसान पहुंचाने का काम भी करते हैं और मच्छर पर भी कुछ खास असर नहीं होता। ऐसे में मच्छर भगाने के लिए नेचुरल चीजों का सहारा ले सकते हैं। कुछ खास तरह के पौधे मच्छरों को भगाने में हैं बेहद कारगर हैं, जैसे कि- तुलसी, लेमनग्रास, लैवेंडर इत्यादि!
लेमनग्रास की तेज गंध से मच्छर भाग जाते हैं। इसे घर की बालकनी या फिर खिड़की के पास रखें। यह कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है। पौधे के अलावा लेमनग्रास ऑयल भी मच्छरों को भगाने में प्रभावी है। इसमें लिमोनेन और सिट्रोनेला जैसे तत्व होते हैं, जिससे मच्छर दूर रहते हैं। लेमनग्रास पौधे को सीधे जमीन में लगा सकते हैं। धूप में यह अच्छी तरह से पनपता है। इसके लिए मिट्टी, खाद और रेत वाली मिट्टी का कम्पोजिशन ठीक रहता है। छोटे गमले में इसे नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इससे इसकी सही विकास नहीं होती।
गेंदे के फूल से न सिर्फ घर की बालकनी की सुंदरता बढ़ती है, बल्कि इससे मच्छर और दूसरे कीट-पतंगे भी दूर रहते हैं। इस पौधे से आने वाली गंध पाइरेथ्रम, सैपोनिन, स्कोपोलेटिन, कैडिनोल और अन्य तत्वों से मिलकर बनती है, जो मच्छरों को घर से दूर रखती है।
तुलसी का पौधा भी मच्छरों को  दूर भगाता है। इसकी महक से मच्छर आसपास नहीं फटकते। इसके अलावा पानी  में तुलसी की कुछ पत्तियों  को उबाल कर उसके अर्क को पानी से अलग कर एक स्प्रे बॉटल में डाल कर  शाम को बाहर निकलने से पहले इस पानी को हाथ, गर्दन और पैरों पर स्प्रे करने से भी मच्छर दूर भागते हैं!
रोजमैरी- एक खूबसूरत और खुशबूदार प्लांट है। इसकी पत्तियां पतली और शार्प होती हैं। गर्मियों में खिलने वाले इस पौधे के तने की खुशबू से मच्छर पास नहीं आते हैं। मच्छरों से घर को महफूज रखने के लिए रोजमैरी प्लांट को घर में लगाई जा सकती है!
लैवेंडर का पौधा मक्खियों, मच्छरों, मकड़ियों और चींटियों को दूर रखने का काम करता है। भीनी-भीनी खुशबू वाला लैवेंडर का पौधा दिखने में भी बेहद खूबसूरत लगता है। इस पौधों का इस्तेमाल अरोमाथेरेपी और हर्बल उपचार के लिए किया जाता है। इस पौधे की पत्तियों को स्किन पर सीधा रब भी कर सकते हैं। इसकी पत्तियों से निकलने वाला ऑयल  कीट पतंगों से बचाने का काम करता है।
डेंगू के बारे में जागरूकता बढ़ाने और निवारक उपायों को बढ़ावा देने के लिए  राष्ट्रीय डेंगू दिवस   मनाया जाता है! डेंगू बीमारी को नियंत्रित करने और खत्म करने के लिए किए जा रहे प्रयासों के प्रति लोगों को जागरूक करना है! कुछ आंकड़ों के अनुसार इस समय 100 से अधिक देशों में डेंगू का प्रकोप जारी है और विश्व भर की लगभग आधी आबादी डेंगू से प्रभावित है! यह बुखार एडीज मच्छरों के काटने के 5 से 6 दिन बाद लोगों के बीच देखने को मिलता है!
 — डॉ सुनीता त्रिपाठी ‘जागृति’ (अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ )नई दिल्ली
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भारत सहित एशियाई देश वर्ष 2024 में विश्व की अर्थव्यवस्था में देंगे 60 प्रतिशत का योगदान

वैश्विक स्तर पर आर्थिक क्षेत्र का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। अभी तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकसित देशों का दबदबा बना रहता आया है। परंतु, अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2024 में भारत सहित एशियाई देशों के वैश्विक अर्थव्यवस्था में 60 प्रतिशत का योगदान होने की प्रबल सम्भावना है। एशियाई देशों में चीन एवं भारत मुख्य भूमिकाएं निभाते नजर आ रहे हैं। प्राचीन काल में वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 32 प्रतिशत से भी अधिक रहता आया है।

वर्ष 1947 में जब भारत ने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की थी उस समय वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 3 प्रतिशत तक नीचे पहुंच गया था क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था को पहिले अरब से आए आक्राताओं एवं बाद में अंग्रेजों ने बहुत नुक्सान पहुंचाया था एवं भारत को जमकर लूटा था। वर्ष 1947 के बाद के लगभग 70 वर्षों में भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारतीय अर्थव्यवस्था के योगदान में कुछ बहुत अधिक परिवर्तन नहीं आ पाया था। परंतु, पिछले 10 वर्षों के दौरान देश में लगातार मजबूत होते लोकतंत्र के चलते एवं आर्थिक क्षेत्र में लिए गए कई पारदर्शी निर्णयों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को तो जैसे पंख लग गए हैं। आज भारत इस स्थिति में पहुंच गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में वर्ष 2024 में अपने योगदान को लगभग 18 प्रतिशत के आसपास एवं एशिया के अन्य देशों यथा चीन, जापान एवं अन्य देशों के साथ मिलकर वैश्विक अर्थव्यवस्था में एशियाई देशों के योगदान को 60 प्रतिशत तक ले जाने में सफल होता दिखाई दे रहा है।

भारत आज अमेरिका, चीन, जर्मनी एवं जापान के बाद विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। साथ ही, भारत आज पूरे विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में तो भारत की आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक रहने की प्रबल सम्भावना बन रही है क्योंकि वित्तीय वर्ष 2023-24 की पहली तीन तिमाहियों में भारत की आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक रही है, अक्टोबर-दिसम्बर 2023 को समाप्त तिमाही में तो आर्थिक विकास दर 8.4 प्रतिशत की रही है। इस विकास दर के साथ भारत के वर्ष 2025 तक जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने की प्रबल सम्भावना बनती दिखाई दे रही है। केवल 10 वर्ष पूर्व ही भारत विश्व की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था और वर्ष 2013 में मोर्गन स्टैनली द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार भारत विश्व के उन 5 बड़े देशों (दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, इंडोनेशिया, टर्की एवं भारत) में शामिल था जिनकी अर्थव्यवस्थाएं नाजुक हालत में मानी जाती थीं।

आज भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 3.7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। साथ ही, वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में लगातार तेज वृद्धि आंकी जा रही है, जिससे भारत के वित्तीय संसाधनों पर दबाव कम हो रहा है और भारत पूंजीगत खर्चों के साथ ही गरीब वर्ग के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के

 

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उज्जैन पर प्रकाशित होगा दो हजार पन्नों का ग्रंथ, शहर का नाम भी बदलेगा

उज्जैन के नाम पर दुर्लभ उज्जयिनी अभिनंदन ग्रंथ तैयार हो रहा है, जो शोध के लिए महत्वपूर्ण आधार बनेगा। यह दो हजार पन्नों का होगा, जिसमें देश के बड़े विद्वानों के लेख होंगे। सरकार उज्जैन का नाम बदलकर प्राचीन नाम उज्जयिनी करने की भी कवायद कर रही है। यह ग्रंथ इसी की कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। खास बात यह कि ग्रंथ जैन धर्म और वैदिक धर्म पर आधारित होगा।

जैन संत प्रज्ञासागर जी महाराज की पहल पर उज्जयिनी अभिनंदन ग्रंथ बनाने की तैयारी शुरू हो गई है, जिसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद भी रुचि ले रही है। मध्यप्रदेश सरकार भी इस ग्रंथ के सृजन में रुचि ले रही है। दरअसल, पुराने जमाने में उज्जैन का नाम उज्जयिनी था, लेकिन बाद में यह उज्जैन हो गया।

प्रदेश की डॉ. मोहन यादव सरकार के पास उज्जैन के कई विद्वानों के प्रस्ताव पहुंचे है, जिसमें नाम उज्जयिनी करने का सुझाव दिया गया है। देश के कुछ नगरों के नाम बदले जा चुके हैं, इसलिए प्रदेश सरकार उज्जैन का नाम भी बदलने पर विचार कर रही है। उज्जैन जिले के अंतर्गत महिदपुर स्थित अश्विनी शोध संस्थान ने उज्जैन का प्रतीक चिह्न जारी करने का प्रस्ताव भेजा है।

फिलहाल, उज्जयिनी अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित करने की तैयारी जोरशोर से चल रही है। इसके लिए संघ में सह सर कार्यवाह रहे अभा कार्यकारिणी सदस्य सुरेश सोनी और विहिप के प्रांतीय सलाहकार तथा तपोभूमि के ट्रस्टी अनिल कासलीवाल, विक्रम विवि के कुलगुरु प्रो. अखिलेश पांडे, पुरावेत्ता डॉ. रमण सोलंकी, महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी, पूर्व एडीएम डॉ. आरपी तिवारी आदि की उपस्थिति में देश के 15 विद्वानों की महत्वपूर्ण मीटिंग में अहम फैसले लिए जा चुके हैं।

उज्जयिनी वैदिक ग्रंथ करीब दो हजार पन्नों का होगा, जिसके दो खंड होंगे। एक जैन परम्परा का और दूसरा वैदिक परंपरा पर आधारित होगा। इसमें उज्जैन का प्राचीन इतिहास नए कलेवर और आकर्षण के साथ संग्रहित होगा। संपादक मंडल में इंदौर, वाराणसी, नागपुर, जयपुर, भोपाल के विद्वान शामिल किए गए हैं। गत 4 और 5 मई को इस
सिलसिले में महत्वपूर्ण बैठक भी हो चुकी है।

ग्रंथ के प्रधान संपादक इंदौर निवासी प्रो. अनुपम जैन ने बैठक में बताया, यह ग्रंथ उज्जैन का इतिहास, पुरावैभव और महत्ता बताएगा। इसका उपयोग दुनिया के शोधार्थी और अध्येता कर सकेंगे। डॉ. तिवारी के अनुसार वैदिक परंपरा के साथ पौराणिक परंपरा को भी जोड़ा जाए क्योंकि स्कंदपुराण के सातवें अवंतिखंड में उज्जयिनी का वर्णन है। ग्रंथ में उत्खनन से।प्राप्त सामग्रियों का दस्तावेजीकरण भी किया जाएगा।

जैन समाज की कथा है कि अपनी  बेटी  मैना सुंदरी  से पूछे बिना ही राजा पहुपाल ने  उसका विवाह श्रीपाल नाम के एक ऐसे व्यक्ति से तय की जिसे कोढ़ की बीमारी थी। मैना सुंदरी की माता निर्गुनमति व राज्य के कई लोगों के लाख मना करने के बाद भी बेटी ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए श्रीपाल से ब्याह रचाया। मैनासुंदरी ने अपने सुश्रावक पतिदेव महाराजा श्रीपाल के कोढ़ रोग निवारण हेतु उज्जैन नगरी में सिद्धचक्रजी की आराधना करके उस भयंकर रोग से मुक्ति दिलायी थी।

अश्विनी शोध संस्थान महिदपुर ने उज्जैन नगर का प्रतीक चिह्न जारी करने का प्रस्ताव मध्यप्रदेश सरकार को भेजा है। जिसमें बताया है कि चार रेखाओं से जुड़े चार वृत्त प्रतीक चिह्न बनाया जाए।उज्जयिनी शब्द को पढ़कर ही एक क्रॉस से जुड़े चार वृत्तों की कल्पना की जा सकती है। उज्जयिनी प्रतीक का यह नाम इसलिए रखा गया है क्योंकि यह उज्जयिनी से प्राप्त सिक्कों पर प्रचुर मात्रा में दिखाई देता है। उज्जयिनी चिह्न अयोध्या, कन्नौज, कोशांबी, मथुरा आदि के सिक्कों पर पाया जाता है जो इसकी सार्वभौमिकता बताता है।

उज्जैन और इतिहास
यह महान सम्राट विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी।
उज्जैन को कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है।
उज्जैन के प्राचीन नाम अवन्तिका, उज्जयिनी, कनकश्रन्गा आदि हैं।

जैन धर्म के आराध्य भगवान श्री 1008 महावीर स्वामीजी का समोशरण यहां आया था।
जैन समाज की सती महासुंदरी मैना देवी का भी उज्जैन से संबंध रहा है।
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हिंदी साहित्य के लिए एक विशाल खजाना छोड गई मालती जोशी

प्रसिध्द हिंदी कहानी लेखिका मालती जोशी का 90 वर्ष की आयु में दिल्ली में निधन हो गया। मालती जोशी पिछले कुछ समय से कैंसर से पीड़ित थीं। उनका निधन बुधवार को दिल्ली में उनके पुत्र सच्चिदानंद जोशी के आवास पर हुआ। सच्चिदानंद जोशी प्रसिद्ध साहित्यकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) के सदस्य सचिव हैं। उनके अंतिम समय में उनके दोनों पुत्र ऋषिकेश और सच्चिदानंद जोशी तथा पुत्र वधू अर्चना और मालविका उनके साथ ही थी। उनका जन्म औरंगाबाद में 4 जून, सन् 1934 ईस्वी की महाराष्ट्रीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनको पिता श्री कृष्ण राव और माता श्रीमती सरला से अच्छे संस्कार मिले ।

इंदौर में रहने वाले दिघे परिवार में जन्मी मालती जोशी यहां करीब ढाई दशक तक इन्दौर में रहीं। इंदौर से ही उनकी साहित्यिक यात्रा भी शुरू हुई। शहर के मालव कन्या विद्यालय में स्कूली शिक्षा हुई और फिर आर्ट्स विषय लेकर उन्होंने होलकर कालेज में प्रवेश लिया। होलकर कॉलेज से बीए और हिंदी में एमए करते वक्त ही उन्होंने लेखन कर्म आरंभ कर दिया था।
उन्होंने हिंदी में एम.ए. की परीक्षा पास की । उनके पति श्री सोमनाथ जोशी भोपाल में इंजीनियर थे।

लेखन के शुरुआती दौर में मालती जोशी कविताएं लिखा करती थीं। उनकी कविताओं से प्रभावित होकर उन्हें मालवा की मीरा नाम से भी संबोधित किया जाता था। उन्हें इंदौर से खास लगाव था। इतना कि वे अक्सर कहा करती थीं कि इंदौर जाकर मुझे सुकून मिलता है, क्योंकि वहां मेरा बचपन बीता, लेखन की शुरुआत वहीं से हुई और रिश्तेदारों के साथ ही उनके सहपाठी भी वहीं हैं। यह शहर उनकी रग-रग में बसा था। खुद अपनी आत्म कथा में मालती जोशी ने उन दिनों को याद करते हुए लिखा है, ‘मुझमें तब कविता के अंकुर फूटने लगे थे. कॉलेज के जमाने में इतने गीत लिखे कि लोगों ने मुझे ‘मालव की मीरा’ की उपाधि दे डाली।’

मालती जोशी अपने आप में एक उपमा थी। उन्हें अपनी लिखी सैकड़ों कहानियाँ मुँहजबानी याद थी। मुंबई की चौपाल में वे जब भी आती ओर बगैर पढ़े कहानियाँ सुनाती तो ऐसा लगता था जैसे कोई फिल्म चल रही है। उनकी कहानियों के किरदार हमारे घर परिवार के सदस्य जैसे ही लगते हैं। उनकी कहानी में आने वाले कोई नकारात्मक किरदार भी सकार्त्मक किरदारों से ज्यादा अनुशासनप्रिय, मूल्यों को जीने वाले और भारतीय संस्कृति को संपन्न करने वाले होते थे। वो नकारात्मक किरदारों को भी ऐसे प्रस्तुत करती थी जैसे घर परिवार में पीढ़िय़ों के अंतराल और सोच के बीच पारिवारिक संस्कृति और मूल्यों के लिए परिवार का कोई सदस्य संघर्ष कर रहा है।

उनके पात्रों में अड़ोस पड़ोस की फुरसती महिलाएँ भी होती थी तो घर का काम करने वाली बाई भी। उनका हर किरदार पाठकों से सीधा तादात्म्य बना लेता है। पाठक को लगता है कि जो कहानी वह पढ़ रहा है उसके सब किरदार तो उसके घर, ऑफिस और गाँव की चौपाल में उसे रोज ही दिखाई देते हैं। उनकी कहानियों में संस्कृति की मिठास, सामाजिक समरसता का और पारिवारिक जीवन मूल्यों को बचाए रखने का संदेश छुपा होता है। उनका हर पात्र पाठक को बांध लेता है, कोई भी पात्र या कहानी का कोई भी हिस्सा पाठक के मन में किसी तरह का तनाव पैदा नहीं करता है।

पचास से अधिक हिन्दी और मराठी कथा संग्रहों की लेखिका मालती जोशी शिवानी के बाद हिन्दी की सबसे लोकप्रिय कथाकार मानी जाती हैं। मालती जोशी की अनूठी कहानी कहने की शैली साहित्यिक दुनिया में एक विशेष स्थान रखती है। उनके काम पूरे भारत के कई विश्वविद्यालयों में शोध का विषय रहे। उनके साहित्यिक योगदान ने पाठकों और विद्वानों पर समान रूप से अमिट छाप छोड़ी है।

कविसम्मेलनों में गीतों से उनकी पहली पहचान बनी। १९६९ में बच्चों के लिये लिखना प्रारंभ किया और खूब लोकप्रियता प्राप्त की। १९७१ में ‘धर्मयुग’ में पहली कहानी प्रकाशित हुयी और मालती जोशी भारतीय परिवारों की चहेती लेखिका बन गयीं।

उनकी अब तक अनगिनत कहानियां, बाल कथायें व उपन्यास प्रकाशित कर चुकी हैं। इनमें से अनेक रचनाओं का विभिन्न भारतीय व विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी किया जा चुका है। कई कहानियों का रंगमंचन रेडियो व दूर दर्शन पर नाट्य रूपान्तर भी प्रस्तुत किया जा चुका है। कुछ पर जया बच्चन द्वारा दूरदर्शन धारावाहिक सात फेरे का निर्माण किया गया है तथा कुछ कहानियां गुलज़ार के दूरदर्शन धारावाहिक किरदार में तथा भावना धारावाहिक में शामिल की जा चुकी हैं। इन्हें हिन्दी व मराठी की विभिन्न व साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत किया जा चुका है। ममराठी, उर्दू, बांग्ला, तमिल, तेलुगू, पंजाबी, मलयालम, कन्नड भाषा के साथ अँग्रेजी, रूसी तथा जापानी भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। गुलजार ने उसकी कहानियों पर ‘किरदार’ नाम से तथा जया बच्चन ने ‘सात फेरे’ नाम से धारावाहिक बनाए हैं। उन्होंने अपनी कहानियाँ आकाशवाणी से भी प्रसारित की हैं। इसके अतिरिक्त मराठी में उनकी ग्यारह से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

२०१८ में उन्हें साहित्य तथा शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदानों के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।

उन्होंने देश की स्वतंत्रता के बाद की अग्रणी कहानीकार के रूप में पहचान बनाई। । मालती जोशी ने केवल कविताएं या कहानियां ही नहीं बल्कि उपन्यास और आत्म संस्मरण भी लिखे हैं। उपन्यासों में पटाक्षेप, सहचारिणी, शोभा यात्रा, राग विराग आदि प्रमुख हैं। वहीं उन्होंने एक गीत संग्रह भी लिखा, जिसका नाम है, मेरा छोटा सा अपनापन। उन्होंने ‘इस प्यार को क्या नाम दूं? नाम से एक संस्मरणात्मक आत्मकथ्य भी लिखा। उनकी एक और खूबी रही कि उन्होंने कभी भी अपनी कहानियों का पाठ कागज देखकर नहीं किया, क्योंकि उन्हें अपनी सारी कहानियां, कविताएं जबानी याद रहतीं थीं।

मालती जी सुप्रसिद्ध लेखिका होने के साथ-साथ एक सफल गृहिणी भी थी। इनके साहित्य में जवान होती बेटी की पिता महंगाई दहेज समस्या आदि का प्रायः उल्लेख दिखाई देता है। उन्होंने स्वयं लिखा है, ‘‘मैं किशोर वयस् से गीत लिखा करती थी पर बाद में लगा अपनी भावनाओं को सही अभिव्यक्ति देने के लिए कविता का कैनवास बहुत छोटा है। कविता की धारा सूख गई और कहानी का जन्म हुआ है। इनकी पहली कहानी सन् 1971 ईस्वी में ‘धर्म युग’ में प्रकाशित हुई।

उनका कहना था कि जीवन की छोटी-छोटी अनुभूतियों को, स्मरणीय क्षणों को मैं अपनी कहानियों में पिरोती रही हूं। ये अनुभूतियां कभी मेरी अपनी होती हैं कभी मेरे अपनों की। और इन मेरे अपनों की संख्या और परिधि बहुत विस्तृत है। वैसे भी लेखक के लिए आप पर भाव तो रहता ही नहीं है। अपने आसपास बिखरे जगत का सुख-दु:ख उसी का सुख-दु:ख हो जाता है। और शायद इसीलिये मेरी अधिकांश कहानियां “मैं” के साथ शुरू होती हैं।

‘प्रमुख कृतियाँ
कहानी संग्रह- पाषाण युग, मध्यांतर, समर्पण का सुख, मन न हुए दस बीस, मालती जोशी की कहानियाँ, एक घर हो सपनों का, विश्वास गाथा, आखीरी शर्त, मोरी रंग दी चुनरिया, अंतिम संक्षेप, एक सार्थक दिन, शापित शैशव, महकते रिश्ते, पिया पीर न जानी, बाबुल का घर, औरत एक रात है, मिलियन डालर नोट।
बालकथा संग्रह- दादी की घड़ी, जीने की राह, परीक्षा और पुरस्कार, स्नेह के स्वर, सच्चा सिंगार
उपन्यास- पटाक्षेप, सहचारिणी, शोभा यात्रा, राग विराग
व्यंग्य- हार्ले स्ट्रीट
गीत संग्रह- मेरा छोटा सा अपनापन
अन्य संकलन- मालती जोशी की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ, आनंदी, परख, ये तेरा घर ये मेरा घर, दर्द का रिश्ता, दस प्रतिनिधि कहानियाँ, अपने आँगन के छींटे, रहिमन धागा प्रेम का।

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अंजली पाटिल, शारिब हाशमी की फ़िल्म “मल्हार” हिंदी व मराठी में 31 मई को प्रदर्शित होगी

मुंबई।  पिछले कुछ वर्षों में एक ही सिनेमा में एंथॉलॉजी फिल्मों का चलन बढ़ा है। 31 मई को सिनेमाघरों में रिलीज़ होने जा रही फिल्म “मल्हार” श्रीनिवास पोकळे, शारिब हाशमी, अंजलि पाटिल जैसे मंझे हुए कलाकारों से सजी यह अपकमिंग फिल्म तीन कहानियों का खूबसूरत मिश्रण है जो आपस में जुड़ी हुई हैं और एक ही गांव की हैं। निर्माता प्रफुल पसाड की फ़िल्म मल्हार का पोस्टर लॉन्च मुम्बई के रेड बल्ब स्टूडियो में किया गया जहाँ प्रोड्यूसर डायरेक्टर और सभी ऐक्टर्स के साथ फ़िल्म से जुड़ी पूरी टीम उपस्थित थी। पोस्टर में अंजली पाटिल का लुक एकदम अलग दिख रहा है जो उनके अनोखे किरदार की झलक प्रस्तुत कर रहा है वहीं शारिब हाशमी भी घनी मूंछों में प्रभावित कर रहे हैं।

निर्माता प्रफुल्ल पसाड का कहना है कि मल्हार गांव कच्छ में घटित हो रही तीन स्टोरीज का अद्भुत संगम है। हमने फ़िल्म को रोचक अंदाज में पिरोया है ताकि दर्शकों के लिए पूरा मनोरंजन मिले। यह फिल्म दो सबसे अच्छे दोस्तों की कहानी कहती है। सुनने के यंत्र की मरम्मत के लिए उनके संघर्ष के इर्द-गिर्द यह स्टोरी घूमती है।

चक्रव्यूह और न्यूटन सहित कई हिंदी, मराठी और साउथ फिल्मों में अपनी अदाकारी के जौहर दिखा चुकी अभिनेत्री अंजली पाटिल भी मल्हार की इंगेजिंग कहानी को लेकर काफी उत्साहित हैं। वह कहती हैं कि फ़िल्म की तीन कहानियों में से एक कहानी केसर की है जिसकी शादी लक्ष्मण से हाल ही में हुई है जो उस गांव के सरपंच का बेटा है। शादी के कुछ दिनों बाद भी वह गर्भवती नहीं हो रही है इसलिए उसके ससुराल वाले उसे लगातार कोस रहे हैं और वह इससे कैसे बाहर निकलती है।

अभिनेता शारिब हाशमी मल्हार का हिस्सा बनकर खुश हैं। वह कहते हैं कि फ़िल्म की 3 स्टोरीज में से एक स्टोरी जावेद और उसकी बड़ी बहन जैस्मीन की है। जैस्मीन को हिंदू लड़के जतिन से प्यार हो जाता है। कहानी उनके मिलने और एक साथ रहने के संघर्ष को दिखाती है कैसे वे इस प्यार और इसके परिणाम का सामना करते हैं, कहानी इसी बारे में है।

फ़िल्म में श्रीनिवास पोकळे, शारिब हाशमी, अंजली पाटिल, ऋषि सक्सेना, मोहम्मद समद और अक्षता आचार्य ने अभिनय किया है फ़िल्म के निर्माता प्रफुल्ल पसाडऔर निर्देशक विशाल  कुंभार द्वारा निर्देशित है। फिल्म के संवाद सिद्धार्थ साळवी, स्वप्नील सीताराम और पटकथा विशाल कुंभार, अपूर्वा पाटील ने लिखे हैं। छायांकन गणेश कांबळे का, संकलन अक्षय कुमार , संगीत टी. सतीश और सारंग कुलकर्णी ने दिया है। फ़िल्म हिन्दी और मराठी भाषा में एक साथ ३१ मई को सिनेमागृहों में रिलीज़ होगी ।

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हमारी महान सांस्कृतिक विरासत पर हमें गर्व होना चाहिए

विश्व के इतिहास में भारत वह महत्वपूर्ण देश है जो सभ्यता और संस्कृतियों का प्रथम ज्ञात था! जिसने गणित के जीरो से लेकर हिंदी की वर्णमाला तक , ध्वनियों से लेकर अक्षरों तक ,सुर से लेकर ताल तक, ज्ञान की हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया था! आज वही भारत देश डिजिटल इंडिया बन रहा है या बनने में लगा हुआ है !यह कार्य जितनी तेज गति से हो रही है उतनी ही तेज गति से मनुष्य का प्रतिस्थापन भी हो रहा है! धीरे-धीरे मशीन हमारे सारे कार्यों को आसान करते जा रहे हैं और हम उसके ऊपर निर्भर होते जा रहे हैं! यहां तक की एक अकेला व्यक्ति मशीनीकरण के द्वारा संपूर्ण कार्य करने में सक्षम होने से अहंकार का भी शिकार होते जा रहा है! परिवार तथा समाज सबसे कटता जा रहा है कि हमको किसी की आवश्यकता ही नहीं है, हम किसी के आश्रित नहीं है! हम तो स्वयं सब कुछ कर सकते हैं  फिर किसी और की क्यों सुने? किसी के लिए अपना नुकसान क्यों करें? हम किसी के सहारे नहीं!
हमारी इस आत्मनिर्भरता में हमारा स्मार्टफोन(मोबाइल फोन) हमारा हथियार या सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी साधन सिद्ध हो रहा है ! मोबाइल या कंप्यूटर या लैपटॉप के द्वारा सोशल मीडिया( इंटरनेट ,यु-ट्यूब, फेसबुक ,इंस्टाग्राम ,व्हाट्सएप, ट्विटर, इंस्टाग्राम  इत्यादि प्लेटफार्म जो हमें सोशल मीडिया से तो जोड़ रहा है लेकिन अपने समीप रहने वाले मनुष्यों से सारे रिश्ते तोड़ते जा रहा है ! हमें सबसे ज्यादा सीखने में सोशल मीडिया मददगार हो रहा है! लेकिन बात यहीं तक खत्म नहीं होती बल्कि पूरी शिक्षण -व्यवस्था  उनके कंधों पर ही आ पड़ी है! आज सबसे बड़े गुरु गूगल बाबा है !सबसे बड़े पंडित यू-ट्यूब है और फेसबुक है !कला- कौशल, गीत- संगीत सब कुछ इन्हीं के द्वारा सिखाया और सीखा जाता है !परंतु दुख की बात यह है कि हम इनके द्वारा चाहे जितनी भी पढ़ाई कर ले, जितनी भी कलाएं सीख ले, ज्ञान अर्जित कर ले, परंतु संस्कार से वंचित रह जाते हैं! अपनी रीति -रिवाजों, परंपराओं को अपने संस्कारों में नहीं ला पाते हैं और संस्कृतियां हमसे इस तरह गायब होती जा रही है जैसे गधे के सर से सिंग!
हमें अपने दैनिक दिनचर्या के साथ वह संस्कार जो माता-पिता और गुरुओं के साथ बैठकर सीखने में प्राप्त होता था वह आज पूर्णतया दुर्लभ होता जा रहा है! हमारी कमियां जो हमारे परिवार रूपी पाठशाला में अपने बड़ों के साथ रहकर अपने आप दूर हो जाती थी आज वह तमाम बीमारियों का रूप लेती जा रही है!  प्राय लोग डिप्रेशन के शिकार होते जा रहे हैं जबकि पहले पाठशाला में गुरुओं के द्वारा  मिलने वाले शिक्षा में डिप्रेशन को कोई स्थान नहीं था! विद्यालयों में जो सीख मिलती थी उसमें हमारा आत्म सम्मान हमारे व्यवहार में  पूर्ण रूपेण दिखाई देता था ! हमारे मन और मस्तिष्क का यथोचित विकास दिखाई देता था!
हमारी आत्मा में विवेक तत्व विकसित होते थे ,जिससे सही – गलत, उचित और अनुचित का भेद हम व्यवहारतन करने में सक्षम होते थे ! आज इस विवेक से व्यक्ति वंचित होने लगा है! जिसके परिणाम स्वरुप बच्चे अपने बड़ों के साथ बदत्मीजी करते देखे जा रहे हैं! बड़ों के पास बैठना और बात करना पसंद नहीं करते वल्कि केवल फोन में डूबे रहते हैं! और विडंबना तो यह है कि सिर्फ बच्चे ही नहीं युवा पीढ़ी भी इसी राह का अनुकरण कर रही है! हम यह नहीं कह रहे हैं कि सोशल मीडिया पर केवल बुराई है, अच्छी बातें भी बहुत हैं पर बुरी बातें बहुत तेजी से फैलती  हैं!  यही वजह है कि सभ्यता के नाम पर नग्नता और अश्लीलता ही दिखाई देने लगी है! बेशर्मी और उद्दंडता सोशल मीडिया पर इस तरह बढ़ती जा रही हैं जिसका कोई आर-पार नहीं है!
अब भारतीय संस्कृति जो शिक्षकों की अटूट श्रृंखला के माध्यम से अमर रूप से संरक्षित है, जहाँ प्राचीन भारत का प्रत्येक साहित्यकार स्वयं एक जीवंत पुस्तकालय था ,अनगिनत गुरुओं और आचार्यों ने इस शैक्षिक विरासत को आज भी अक्षुण्ण बनाए रखने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ,जो सभ्यता और संस्कृति का प्रथम ज्ञाता कहा जाता है वही भारतवर्ष  अपने आने वाली नई पीढ़ियों को , नौनिहालों को सही शिक्षा नहीं दे पा रहा ,सभ्यता का पाठ नहीं पढ़ा पा रहा! आज भारतीयों को भी अपने धर्म, संस्कृति , वेद- पुराणों का ज्ञान गूगल पर ढूंढना पड़ रहा है! जबकि प्राचीन गुरु अपने अंदर निहित  संपूर्ण ज्ञान  शिष्यों को एक बालक की भांति प्रदान कर उनके सर्वांगीण विकास करने के लिए मार्गदर्शन करता था!
गुरु और शिष्य के बीच प्रेम को देखकर ही निर्विवाद रूप से यह स्वीकार किया गया  कि ” गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है और गुरु ही मोक्ष का मार्ग प्रदान करता है!” ईश्वर तक जाने का रास्ता  गुरु ही बताता है! अब प्रश्न यह है कि क्या गूगल बाबा, फेसबुक और यु-टुब इस जिम्मेदारी को पूर्ण कर सकेंगे? हमारे देश में हर शुभ कार्य को करने से पहले गुरु की वंदना और आराधना करके उनकी आज्ञा ली जाती है, उनका आशीर्वाद लेकर कार्य करने की यह संस्कृति हमारी धरोहर है जो आज विलुप्त हो रही है!
हमारी भारतीय संस्कृति में जिस तरह व्यक्ति का महत्व है, उसी प्रकार प्रथाओं, परंपराओं और  रीति- रिवाजों का भी  महत्व है ,तो क्या हमारे भारतीय नव-युवक संस्कृतियों का वह ज्ञान अपने संस्कार में पूर्णतया ला सकेंगे? मानवीय आकांक्षाओं की पूर्णता के द्योतक ये गुरू(सोशल मीडिया)भारतीय  प्राचीन शिक्षकों का स्थान ले  सकेंगे?
हमारे  धर्म ग्रंथो में बताया जाता है कि दुनिया भर में प्रसिद्ध”महाभारत”ग्रंथ  का लेखन स्वयं गणेश जी ने महर्षि वेदव्यास के बताने पर उनके समीप बैठकर किया था इसीलिए महर्षि वेदव्यास को संपूर्ण मानव जाति का “आदिगुरु” कहा जाता है यानि कि जिस भारत वर्ष में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर रखा गया है ,जीवन के किसी भी क्षेत्र में मार्ग बताने  वाले गुरु के लिए आदर प्रदान करने की प्रथा है,   जहाँ “विद्या ददाति विनयम्….!”का पाठ पढाया जाता है,माँ सरस्वती और गणेशजी के साथ गुरु की ही स्तुति की जाती है, गुरु सदैव विद्या और ज्ञान का संवाहक होता है , ऐसे भारत में हम  गुरु द्वारा बताए हुए मार्ग पर चलना ही अपना कर्तव्य और धर्म समझते हैं ऐसे दायित्वबोध कार्य को क्या यह सोशल मीडिया कर सकेगा?  यह एक ध्रुव प्रश्न बना हुआ है! वर्तमान समय में भारत विश्व गुरु बनने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है और भारत का बच्चा-बच्चा इस कार्य में अपना पूर्ण योगदान दे रहा है !तब क्या गूगल बाबा अथवा सोशल मीडिया के द्वारा इस  कार्य के दिशा को मंजिल प्राप्त हो सकेगी? चिंतनीय है……!
डॉ सुनीता त्रिपाठी ‘जागृति’
(अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ ,नई दिल्ली)
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