Wednesday, April 16, 2025
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पद्म पुरस्कार-2026 के लिए 31 जुलाई, 2025 तक किए जा सकेंगे नामांकन

गणतंत्र दिवस, 2026 के अवसर पर घोषित किए जाने वाले पद्म पुरस्‍कार-2026 के लिए ऑनलाइन नामांकन/सिफारिशें 15 मार्च 2025 से शुरू हो गई हैं। पद्म पुरस्‍कारों के नामांकन की अंतिम तारीख 31 जुलाई 2025 है। पद्म पुरस्‍कारों के लिए नामांकन/सिफारिशें राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार पोर्टल https://awards.gov.in पर ऑनलाइन प्राप्‍त की जाएंगी।

पद्म पुरस्‍कार, अर्थात पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री देश के सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मानों में शामिल हैं। वर्ष 1954 में स्‍थापित, इन पुरस्‍कारों की घोषणा प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर की जाती है। इन पुरस्‍कारों के अंतर्गत ‘उत्‍कृष्‍ट कार्य’ के लिए सम्‍मानित किया जाता है। पद्म पुरस्‍कार कला, साहित्य एवं शिक्षा, खेल, चिकित्सा, समाज सेवा, विज्ञान एवं इंजीनियरी, लोक कार्य, सिविल सेवा, व्यापार एवं उद्योग आदि जैसे सभी क्षेत्रों/विषयों में विशिष्‍ट और असाधारण उपलब्धियों/सेवा के लिए प्रदान किए जाते हैं। जाति, व्यवसाय, पद या लिंग के भेदभाव के बिना सभी व्यक्ति इन पुरस्कारों के लिए पात्र हैं। चिकित्‍सकों और वैज्ञानिकों को छोड़कर अन्‍य सरकारी सेवक, जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में काम करने वाले सरकारी सेवक भी शामिल है, पद्म पुरस्‍कारों के पात्र नहीं हैं।

सरकार पद्म पुरस्‍कारों को “पीपल्स पद्म” बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। अत:, सभी नागरिकों से अनुरोध है कि वे नामांकन/सिफारिशें करें। नागरिक स्‍वयं को भी नामित कर सकते हैं। महिलाओं, समाज के कमजोर वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों, दिव्यांग व्यक्तियों और समाज के लिए निस्वार्थ सेवा कर रहे लोगों में से ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तियों की पहचान करने के ठोस प्रयास किए जा सकते हैं जिनकी उत्कृष्टता और उपलब्धियां वास्तव में पहचाने जाने योग्य हैं।

नामांकन/सिफारिशों में पोर्टल पर उपलब्ध प्रारूप में निर्दिष्ट सभी प्रासंगिक विवरण शामिल होने चाहिए, जिसमें वर्णनात्मक रूप में एक उद्धरण (citation) (अधिकतम 800 शब्द) शामिल होना चाहिए, जिसमें अनुशंसित व्यक्ति की संबंधित क्षेत्र/अनुशासन में विशिष्ट और असाधारण उपलब्धियों/सेवा का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया हो।

इस संबंध में विस्‍तृत विवरण गृह मंत्रालय की वेबसाइट (https://mha.gov.in) पर ‘पुरस्‍कार और पदक’ शीर्षक के अंतर्गत और पद्म पुरस्‍कार पोर्टल (https://padmaawards.gov.in) पर उपलब्‍ध हैं। इन पुरस्‍कारों से संबंधित संविधि (statutes) और नियम वेबसाइट पर https://padmaawards.gov.in/AboutAwards.aspx लिंक पर उपलब्‍ध हैं।

भारतीय रेशम का जादू: रेशम उत्पादन से उत्कृष्ट कृति तक

रेशम भारत के इतिहास, परंपरा और कला को जोड़ता है, जो कांचीपुरम और बनारसी जैसी प्रतिष्ठित रेशम साड़ियों में स्पष्ट है।
रेशम रेशम के कीड़ों से बनता है जो शहतूत के पत्ते खाते हैं। रेशम के कीड़े कोकून बनाते हैं, जिसे बाद में रेशम के धागे में बदल दिया जाता है और कपड़े में बुना जाता है।
भारत विश्व में रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है।

रेशम एक ऐसा धागा है जो देश के इतिहास, परंपरा और कला को जोड़ता है। कांचीपुरम साड़ियों के समृद्ध, चमकीले रंगों से लेकर भागलपुर टसर की सहज सुंदरता तक, हर रेशमी साड़ी एक कहानी कहती है। वे शुद्ध शहतूत रेशम से बने होते हैं, जिन्हें कारीगरों द्वारा विशिष्ट कौशल के साथ बुना जाता है। यह शिल्पकला पीढ़ियों से चला आ रहा है। जैसे ही करघा उनके हाथों की लय के साथ गुनगुनाता है, रेशम की साड़ी जीवंत हो जाती है – न केवल कपड़े के रूप में, बल्कि रेशम की कला द्वारा एक साथ सिली गई देश की विविधतापूर्ण और जीवंत आत्मा के प्रतीक के रूप में।

रेशम उत्पादन रेशम के कीड़ों को पालने की प्रक्रिया है, जिससे रेशम बनता है। रेशम के कीड़ों को शहतूत, ओक, अरंडी और अर्जुन के पत्तों पर पाला जाता है। लगभग एक महीने के बाद, वे कोकून बनाते हैं। इन कोकूनों को इकट्ठा करके उबाला जाता है, ताकि रेशम नरम हो जाए। फिर रेशम के धागों को बाहर निकाला जाता है, उन्हें मोड़कर सूत बनाया जाता है और कपड़े में बुना जाता है। इस प्रक्रिया से छोटे रेशम के कीड़े चमकदार रेशम में बदल जाते हैं।

भारत रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और दुनिया में रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है। देश में, शहतूत रेशम का उत्पादन मुख्य रूप से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू और कश्मीर और पश्चिम बंगाल राज्यों में होता है, जबकि गैर-शहतूत रेशम का उत्पादन झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और उत्तर-पूर्वी राज्यों में होता है।

शहतूत रेशम रेशम के कीड़ों से आता है जो केवल शहतूत के पत्ते खाते हैं। यह मुलायम, चिकना और चमकदार होता है, जो इसे विशिष्ट साड़ियों और कपड़ों के लिए एकदम सही बनाता है। देश के कुल कच्चे रेशम उत्पादन का 92 प्रतिशत शहतूत से आता है।  गैर-शहतूत रेशम (जिसे वान्या रेशम भी कहा जाता है) जंगली रेशम के कीड़ों से आता है जो ओक, अरंडी और अर्जुन जैसे पेड़ों की पत्तियों पर भोजन करते हैं। इस रेशम में कम चमक के साथ एक प्राकृतिक, सहज एहसास होता है लेकिन यह मजबूत, स्थाई और पर्यावरण के अनुकूल होता है।

रेशम एक उच्च मूल्य लेकिन कम मात्रा वाला उत्पाद है जो दुनिया के कुल कपड़ा उत्पादन का केवल 0.2 प्रतिशत हिस्सा है। रेशम उत्पादन को आर्थिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण माना जाता है। विकासशील देश रोजगार सृजन के लिए इस पर निर्भर हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्र में और विदेशी मुद्रा कमाने के साधन के रूप में भी।

भारत के कच्चे रेशम उत्पादन में लगातार वृद्धि देखी गई है, जो वर्ष 2017-18 में 31,906 मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 38,913 मीट्रिक टन हो गया है।
इस वृद्धि को शहतूत के बागानों के विस्तार से सहयोग मिला है, जो वर्ष 2017-18 में 223,926 हेक्टेयर से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 263,352 हेक्टेयर हो गया है, जिससे शहतूत रेशम उत्पादन वर्ष 2017-18 में 22,066 मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 29,892 मीट्रिक टन हो गया है।
कुल कच्चे रेशम का उत्पादन वर्ष 2017-18 में 31,906 मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 38,913 मीट्रिक टन हो गया।
रेशम और रेशम वस्तुओं का निर्यात वर्ष 2017-18 में 1,649.48 करोड़ रुपये से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 2,027.56 करोड़ रुपये हो गया।
वाणिज्यिक खुफिया और सांख्यिकी महानिदेशालय (डीजीसीआईएस) की रिपोर्ट के अनुसार, देश ने वर्ष 2023-24 में 3348 मीट्रिक टन रेशम अपशिष्ट का निर्यात किया।

रेशम अपशिष्ट में उत्पादन प्रक्रिया से बचा हुआ या अपूर्ण रेशम शामिल होता है, जैसे कि टूटे हुए रेशे या कोकून के टुकड़े। हालांकि इसे अपशिष्ट माना जाता है, फिर भी इसे रेशम के धागे या कपड़े जैसे निम्न-गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाने के लिए पुन: उपयोग किया जा सकता है, या यहां तक कि नए रेशम के सामान में भी पुनर्चक्रित किया जा सकता है।

भारत में रेशम उद्योग के विकास में सरकारी योजनाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये पहल रेशम उत्पादन से संबंधित विभिन्न गतिविधियों के लिए वित्तीय सहायता और संसाधन प्रदान करती हैं:

रेशम समग्र योजना देश भर में रेशम उत्पादन उद्योग को बेहतर बनाने के लिए सरकार द्वारा की गई एक महत्वपूर्ण पहल है। इसका उद्देश्य गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार करके उत्पादन को बढ़ाना और देश में रेशम उत्पादन की विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से दलित, गरीब और पिछड़े परिवारों को सशक्त बनाना है।

विश्व की राजनीति में भारत के लिए आपदा में अवसर है

अमेरिका ने अन्य देशों से अमेरिका में होने वाली आयातित उत्पादों पर भारी भरकम टैरिफ लगाकर विश्व के लगभग समस्त देशों के विरुद्द एक तरह से व्यापार युद्ध छेड़ दिया है। इससे यह आभास हो रहा है आगे आने वाले समय में विभिन्न देशों के बीच सापेक्ष युद्ध न होकर व्यापार युद्ध होने लगेगा। चीन से अमेरिका को होने वाले विभिन्न उत्पादों के निर्यात पर तो अमेरिका ने 145 प्रतिशत का टैरिफ लगा दिया है। एक तरह से अमेरिका की ओर से चीन को यह खुली चुनौती है कि अब अपने उत्पादों को अमेरिका में निर्यात कर के बताए। 145 प्रतिशत के आयात कर पर कौन सा देश अमेरिका को अपने उत्पादों का निर्यात कर पाएगा, यह लगभग असम्भव है।

इससे चीन की अर्थव्यस्था छिन्न भिन्न हो सकती है, यदि चीन, अमेरिका के स्थान पर विश्व के अन्य देशों को अपने उत्पादों का निर्यात नहीं बढ़ा पाया। बगैर प्रत्यक्ष युद्ध किए, अमेरिका ने चीन पर एक तरह से विजय ही प्राप्त कर ली है और चीन की अर्थव्यवस्था को भारी नुक्सान करने के रास्ते खोल दिए हैं, हालांकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी विपरीत रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी। परंतु, ट्रम्प प्रशासन ने विश्व के 75 देशों पर लागू किए गए टैरिफ को 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया है। इससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर अन्यथा होने वाले विपरीत प्रभाव को बहुत बड़ी हद्द तक कम कर लिए गया है। अमेरिका संभवत चाहता है कि आर्थिक मोर्चे पर चीन पर इतना दबाव बढ़ाया जाए कि चीन की जनता चीन के वर्तमान सत्ताधरियों के विरुद्ध उठ खड़ी हो और चीन एक तरह से टूट जाए। अमेरिका ने लगभग इसी प्रकार का दबाव बनाकर सोवियत रूस को भी तोड़ दिया था।

कुल मिलाकर पूरे विश्व में विभिन्न देशों के बीच अब नए समीकरण बनते हुए दिखाई दे रहे हैं। यूरोपीयन यूनियन के समस्त सदस्य देश आपस में मिलकर अब अपनी सुरक्षा स्वयं करना चाहते हैं। अभी तक ये देश अमेरिका के सखा देश होने के चलते अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भर रहते थे। परंतु, वैश्विक स्तर पर बदली हुई परिस्थितियों के बीच इन देशों का अमेरिका पर विश्वास कम हुआ है एवं यह देश आपस में मिलकर अपनी स्वयं की सुरक्षा व्यवस्था खड़ी करना चाहते हैं। आगे आने वाले समय में यूरोपीयन यूनियन के समस्त देश अपने सुरक्षा बजट में भारी भरकम वृद्धि कर सकते हैं। यहां, भारत के लिए अवसर निर्मित हो सकते हैं क्योंकि भारत में हाल ही के समय में सुरक्षा के क्षेत्र में उत्पादों की नई एवं भारी मात्रा में उत्पादन क्षमता निर्मित हुई है। भारत आज सुरक्षा के क्षेत्र में तेजी से न केवल आत्म निर्भर हो रहा है बल्कि भारी मात्रा में उत्पादों का निर्यात भी करने लगा है। आज सिंगापुर जैसे विकसित देश भी भारत से सुरक्षा उत्पाद खरीदने हेतु करार करने की ओर आगे बढ़ रहे हैं। यदि यूरोपीयन देशों के साथ भारत की पटरी ठीक बैठ जाती है तो सुरक्षा के क्षेत्र में भारत के लिए अपार सम्भावनाएं मौजूद है। भारत, यूरोपीयन देशों के साथ सामूहिक तौर पर द्विपक्षीय व्यापार समझौता करने के प्रयास भी कर रहा है।

इसी प्रकार, आगे आने वाले समय में यदि चीन के निर्यात अमेरिका को कम होते हैं तो चीन से विनिर्माण इकाईयों का पलायन तेजी से प्रारम्भ होगा। संभवत इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र, टेक्स्टायल क्षेत्र, फार्मा क्षेत्र, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र, प्रेशस मेटल के क्षेत्र में भारत के लिए अपार सम्भावनाएं बनती हुई दिखाई दे रही है,  क्योंकि, उक्त समस्त क्षेत्रों से चीन, अमेरिका को भारी मात्रा में निर्यात करता है। अब 145 प्रतिशत के टैरिफ की दर पर चीन में निर्मित उत्पाद अमेरिका में नहीं बिक पाएंगे। अतः भारत के लिए इन समस्त क्षेत्रों में अपार सम्भावनाएं बनती हुई दिखाई दे रही हैं। टेक्स्टायल के क्षेत्र में तो वर्तमान में भारत के पास बहुत भारी मात्रा में उत्पादन क्षमता भी उपलब्ध है। टेक्स्टायल के क्षेत्र में भारत के पड़ौसी देश ही अधिक प्रतिस्पर्धी बने हुए हैं, जैसे बंगलादेश, पाकिस्तान, चीन, वियतनाम आदि। इस समस्त देशों पर अमेरिका द्वारा लगाई गई टैरिफ की दर, भारत की तुलना में कहीं अधिक है। अतः टेक्स्टायल के क्षेत्र में भारत में निर्मित विभिन्न उत्पाद तुलनात्मक रूप से अधिक प्रतिस्पर्धी बन गए हैं। इसका सीधा सीधा लाभ भारतीय टेक्स्टायल उद्योग द्वारा उठाया जा सकता है।

 इसी प्रकार, मोबाइल फोन का उत्पादन करने वाली विश्व की सबसे बड़ी कम्पनियों में से सैमसंग एवं ऐपल नामक कम्पनियां भारत में अपनी उत्पादन क्षमता में भारी भरकम वृद्धि करने के बारे में विचार कर रही हैं। वर्ष 2024 में भारत से 2040 करोड़ अमेरिकी डॉलर के मोबाइल फोन का निर्यात विभिन्न देशों को हुआ हैं, यह वर्ष 2023 में हुए निर्यात की राशि से 44 प्रतिशत अधिक है। और, मोबाइल फोन के निर्यात में हुई इस भारी भरकम वृद्धि में ऐपल एवं सैमसंग कम्पनियों का योगदान सबसे अधिक रहा है। केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई उत्पादन प्रोत्साहन योजना का लाभ भी भारत में मोबाइल निर्माता कम्पनियों ने भारी मात्रा में उठाया है। भारत आज स्मार्ट मोबाइल के उत्पादन के क्षेत्र में पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। यदि वैश्विक स्तर पर परिस्थितियां इसी प्रकार बनी रहती हैं तो शीघ्र ही भारत मोबाइल उत्पादन के क्षेत्र में पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर आ जाएगा।

अन्य क्षेत्रों में उत्पादन करने वाली बहुराष्ट्रीय बड़ी बड़ी कम्पनियां भी अपनी विनिर्माण इकाईयों को चीन से स्थानांतरित कर भारत में स्थापित कर सकती हैं। कोविड महामारी के खंडकाल के समय भी यह उम्मीद की जा रही थी और चीन+1 नीति का अनुपालन करने के सम्बंध में कई कम्पनियों ने घोषणा की थी परंतु उस समय पर कई कम्पनियां अपनी विनिर्माण इकाईयों को ताईवान, वियतनाम, एवं थाईलैंड, आदि जैसे छोटे छोटे देशों में ले गईं थी और इसका लाभ भारत को बहुत कम मिला था। परंतु, आज परिस्थितियां बहुत बदली हुई हैं। छोटे छोटे देशों में बहुत भारी मात्रा में उत्पादन करने वाली विनिर्माण इकाईयां स्थापित करने की बहुत सीमाएं हैं। इन देशों में श्रमबल की उपलब्धता सीमित मात्रा में है। जबकि भारत में इस दौरान आधारिक संरचना एवं मूलभूत सुविधाओं में अतुलनीय सुधार हुआ है और भारत में श्रमबल भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।

आज जापान, इजराईल, ताईवान, रूस, जर्मनी, फ्रान्स, आस्ट्रेलिया आदि विकसित देश श्रमबल की कमी से जूझ रहे हैं। कई विकसित देशों में जनसंख्या वृद्धि दर लगभग शून्य के स्तर पर आ गई है। बल्कि, कुछ देशों में तो जनसंख्या में कमी होती हुई दिखाई दे रही है। दूसरे, इन देशों में प्रौढ़ नागरिकों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही है और इन प्रौढ़ नागरिकों की देखभाल के लिए भी युवा नागरिकों की आवश्यकता है। अब कुछ देशों जैसे जापान, इजराईल, ताईवान आदि ने भारत सरकार से भारतीय नागरिकों के इन देशों में बसाने के बारे में विचार करने को कहा है। इजराईल सरकार ने लगभग 1 लाख भारतीयों की मांग भारत सरकार से की है, जापान सरकार ने भी लगभग 2 लाख भारतीयों की मांग की है एवं ताईवान सरकार ने भी लगभग 1 लाख भारतीयों की मांग की है।

भारत आज विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे युवा देश है। अतः भारत आज इस स्थिति में है कि अपने नागरिकों को इन देशों में बसाने के लिए भेज सके। वैसे भी विश्व के कई देशों में आज लगभग 4 करोड़ भारतीय मूल के नागरिक निवास कर रहे हैं एवं इन देशों की अर्थव्यवथा में शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मजबूत भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। भारतीय नागरिक वैसे भी हिंदू सनातन संस्कृति का अनुपालन करते हैं एवं इन देशों में शांतिपूर्ण तरीके से जीवन यापन करते हैं। इतिहास गवाह है कि भारत ने कभी भी किसी भी देश पर अपनी ओर से आक्रमण नहीं किया है। भारतीय नागरिक “वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना में विश्वास रखते हैं अतः किसी भी देश में वहां के स्थानीय नागरिकों के साथ तुरंत घुलमिल जाते हैं। अतः भारत के लिए विभिन्न देशों को श्रमबल उपलब्ध कराने के क्षेत्र में भी अपार सम्भावनाएं बनती हुई दिखाई दे रही है।

कुल मिलाकर भारत सरकार ने भी विभिन्न देशों के साथ अपने द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को शीघ्रता के साथ अंतिम रूप देना प्रारम्भ कर दिया है क्योंकि आगे आने वाले समय में विश्व व्यापार संगठन की उपयोगिता लगभग समाप्त हो जाएगी और आगे आने वाले समय में विदेशी व्यापार के क्षेत्र में दो देशों के बीच आपस में किए गए द्विपक्षीय व्यापार समझौते ही अपनी विशेष भूमिका निभाते हुए नजर आएंगे। अतः भारत सरकार को इन देशों से होने वाले द्विपक्षीय समझौतों में भारत के हितों की रक्षा करने पर विशेष ध्यान देना होगा। बहुत सम्भव है कि भारत का अमेरिका के साथ भी द्विपक्षीय व्यापार समझौता आगामी 6 माह के अंदर सम्पन्न हो जाए और फिर भारत से अमेरिका को होने वाले विभिन्न उत्पादों के निर्यात के लिए एक नया रास्ता खुल जाए।

प्रहलाद सबनानी
सेवानिवृत्त उपमहाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940

ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

फिल्म कुर्बानी की वो खनकदार आवाज नाजिया हसनः जब ईश्वर ने अपनी बनाई हुई खूबसूरत पेंटिंग फाड़ दी

1979-80 का एक वाक़िया। मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री ज़ीनत अमान लन्दन में एक सोशल एक्टिविस्ट मुनीज़ा बसीर के घर पर थीं। वहाँ उन्होंने एक गिटार देख कर पूछा कि इसे कौन बजाता है? मुनीज़ा ने अपनी 14 साल की बेटी की तरफ इशारा किया। ज़ीनत ने उस बच्ची से कुछ सुनाने को कहा। बच्ची की आवाज़ में एक नया पैना पन था। एक नई कशिश। ज़ीनत पर उसका जादू सा असर हुआ। उन्हीं दिनों अभिनेता और निर्देशक फ़िरोज़ ख़ान जी ज़ीनत को लेकर एक फ़िल्म बना रहे थे जिसके साउंडट्रैक के लिए उन्हें बिलकुल एक नई तरह की आवाज़ की ज़रूरत थी। इसलिए अगले ही दिन ज़ीनत ने मुनीज़ा को कॉल की और कहा कि मुझे आपकी बेटी की आवाज़ बहुत पसंद आई है और मैं उससे अपनी आने वाली फ़िल्म के साउंडट्रैक के लिए फ़ाइनल करना चाहती हूँ।
थोड़ी बहुत जद्दोजहद के बाद बात तय हो गई, लेकिन उस बच्ची की स्कूल टाइमिंग के कारण रिकॉर्डिंग नहीं हो पा रही थी। लिहाज़ा यह तय हुआ कि स्कूल इंटरवल के बाद कभी हाफ़-डे लेकर रिकॉर्डिंग रख ली जाए। इसलिए एक दिन वह बच्ची स्कूल की यूनिफॉर्म में ही रिकॉर्डिंग स्टूडियो गई। वहाँ पर उसने क़ुर्बानी फ़िल्म के लिए एक गाना रिकॉर्ड किया, जिसके लिरिक्स थे, “आप जैसा कोई मेरी ज़िंदगी में आए, तो बात बन जाए”
उसके बाद जो हुआ वह इतिहास है।
आप समझ गए होंगे कि यहाँ पर बात हो रही है 15 साल की बच्ची “नाज़िया हसन” की। जिसके इस गाने ने आगे चलकर धूम मचा दिया। इस गाने के लिए उसने मात्र 15 साल की उम्र में ही फ़िल्मफ़ेयर जीता जो कि आज तक एक रिकॉर्ड है।
फ़िल्म ‘क़ुर्बानी’ के इस गीत के म्युज़िक कम्पोज़र थे बिड्डू अपैय्या। उन्होंने इस गीत का आइडिया अमेरिकी गायक लू रॉल्स के लोकप्रिय गीत ‘You’ll Never Find Another Love Like Mine’ से लिया था।
इसके बाद तो जैसे नाज़िया के लिए पूरा आस्मां कम पड़ गया। अपने भाई ज़ोहैब के साथ नाज़िया फ़िल्मों और अल्बम के लिए गाने रिकॉर्ड करने लगी। 1981 में रिलीज़ हुआ उनका अल्बम “डिस्को दीवाने” दुनिया के 14 देशों में टॉप में स्थान बनाया और उसे ‘बेस्ट-सेलिंग एशियन पॉप रिकॉर्ड’ का दर्ज़ा भी मिला। इस अल्बम के रिलीज़ होने के पहले ही दिन अकेले बॉम्बे में ही इसकी एक लाख कॉपियां बिकी थीं। यह पाकिस्तान, भारत, ब्राज़ील, रूस, दक्षिण अफ़्रीका, फिलीपींस, मलेशिया, इंडोनेशिया, लैटिन अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, वेस्टइंडीज और अमेरिका सहित 14 देशों में टॉप टेन चार्ट में पहले नंबर पर रहा। दुनिया भर में इसकी एक करोड़ 40 लाख कॉपियां बिकी थीं, जो उस समय एक रिकॉर्ड था।
कुल मिलाकर नाज़िया और ज़ोहैब की जोड़ी ने साउथ एशिया में आधुनिक संगीत में क्रांति ला दी। इन दोनों को इस क्षेत्र में पॉप संगीत के संस्थापकों में से एक माना जाता है। नाज़िया-ज़ोहैब ने साउथ एशिया में 50 सालों से प्रचलित संगीत परंपरा को बदल डाला। साल 1931 में पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ से लेकर साल 1980 तक जितने भी प्रयोग हुए थे, नाज़िया हसन की आवाज़ और उसके साथ वाद्य यंत्र बजाने का अनुभव एक ख़ूबसूरत और अनोखा संगीत साबित हुआ।
लेकिन….लेकिन !
दुनिया की तमाम खुबसूरत दास्ताँ के आगे ‘लेकिन’ का पूर्णविराम लग जाता है।
नाज़िया के जादुई गले में साँस भरने वाले फेफड़ों ने बग़ावत कर दिया। सिर्फ़ 35 साल की उमर में नाज़िया फेफड़ों के कैंसर से लड़ती हुई इस दुनिया को अलविदा कह गईं।
“रौशनी ख़त्म हुई उस निगाह के साथ,
मोहब्बत रुख़सत हुई इक आह के साथ”
मशहूर पेंटर वैन गॉग के बारे में सुना था कि जब उन्हें अपनी कोई पेंटिंग बहुत ज़्यादा अच्छी लगने लगती तो वो उसे फाड़ दिया करते थे।
13 अगस्त 2000 को भी यही हुआ। पेंटिंग बनाने वाले को अपनी पेंटिंग शायद ज़्यादा ही भा गई।

वक्फ कानून की आड़ में देश को दंगों की आग में झौंकने के बाज आए सेक्युलर-जिहादी गठजोड़: विहिप

नई दिल्ली।  बंगाल का मुर्शिदाबाद लगातार चौथे दिन दंगों की आग में झुलस रहा है। वक्फ कानून के विरोध में अब संपूर्ण देश को दंगों की आग में जलाने की तैयारी चल रही है। यह आशंका व्यक्त करते हुए विहिप के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ सुरेंद्र जैन ने स्मरण कराया कि यह कानून वही है जिसको बनाने से पहले लगभग एक करोड़ भारतीयों ने अपनी राय दी थी तथा संसद के दोनों सदनों में 25 घंटे से अधिक की ऐतिहासिक चर्चा हुई थी। इसके बावजूद देश का सेक्यूलर जिहादी गठजोड़ देश को दंगों की आग में झौंकने का कुत्सित प्रयास कर रहा है जिससे उसे बाज आना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कानून बनने के बाद इसके विरोध में 18 से अधिक याचिकाएं माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की जा चुकी है। संविधान की दुहाई देने वालों को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। ऐसा लगता है देश के संविधान की दुहाई देने वालों को न देश के संविधान की चिंता है ना न्यायपालिका के सम्मान की।
वक्फबोर्ड के नाम पर चल रहे लैंड माफिया और मुस्लिम वोटों पर अपना एकाधिकार मानने वाले सेक्युलर माफिया को चिंता केवल अपने स्वार्थ की है। लैंड माफिया को चिंता है उनके द्वारा हड़पी गई जमीन छिन जाने की, तो सेकुलर माफिया को चिंता है मुस्लिम वोटों पर उनके कथित एकाधिकार के समाप्त होने की।
डॉ जैन ने कहा कि इन दोनों के अपवित्र गठबंधन का वीभत्स स्वरूप 2013 में गुरुग्राम में सामने आया था जब वहाँ के पालम विहार के पार्क की जमीन को वक्फ की संपत्ति घोषित किया था और नमाज के नाम पर जमावड़ा इकट्ठा किया जा रहा था। तत्कालीन कांग्रेस की राज्य सरकार ने उनकी हां में हां मिलाई थी जबकि किसी के पास कोई सबूत नहीं था। दिल्ली में अरबों खरबों रुपये मूल्य की 123 सरकारी संपत्तियों पर भी इन्होंने दावा ठोका था जिन्हें तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने बिना सबूत के 2014 में आम चुनाव घोषित होने के दिन ही उन्हे थाली में परोस कर फ्री में दे दिया था।
जागरुक हिंदू समाज, सजग न्यायपालिका और हिंदू संगठनों के अथक प्रयास के कारण ये दोनों षडयंत्र विफल हुए। लेकिन वक्फ कानून में 2013 के संशोधनों के आधार पर संपूर्ण देश में वक्फ के दावों की झड़ी सी लग गई और ऐसा लग रहा था मानो ये पूरे देश को ही वक्फ की संपत्ति घोषित करके कुछ मौलवियों की निजी मलकीयत बना दी जाएगी।
उन्होंने याह भी कहा कि कानून पास होने के बाद उन्हें विरोध करने का तो अधिकार है किन्तु, इसके नाम पर दंगे करने का नहीं। इस अपवित्र गठबंधन ने इसी तरह  देश को बंधक बनाकर भारत का विभाजन करवाया था और शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध कानून बनवा लिया था। किन्तु, स्मरण रहे कि अब देश को बंधक बनाना संभव नहीं है। मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग ओवैसी जैसे नेताओं की असलियत को समझता है और देश की जनता राहुल व अखिलेश जैसे सेकुलर माफियाओं को बखूबी जान चुका है। इन लोगों को मालूम है कि कानून की असलियत क्या है और इन लोगों की क्या है। यह पूरे देश को मालूम चल गया है। अब इस गठजोड़ को विरोध के नाम पर दंगों व दंगाइयों से दूर रह कर अपनी इन हरकतों से बाज आना चाहिए।
विनोद बंसल
राष्ट्रीय प्रवक्ता
विश्व हिन्दू परिषद

वैश्विक समरस संस्थान भीलवाड़ा अधिवेशन में कोटा के 8 साहित्य सेवी सम्मानित होंगे

कोटा/  वैश्विक समरस संस्थान साहित्य सृजन भारत गांधीनगर, गुजरात के 12 अप्रैल को होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन एवं दशाब्दी समारोह में कोटा के आठ साहित्यकारों को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए सम्मानित किया जाएगा।
संस्थान संस्थापक एवं संचालक डॉ. मुकेश कुमार व्यास ‘स्नेहिल’ ने बताया कि कोटा के डॉ. शशि जैन, डॉ. वैदेही गौतम, डॉ. अपर्णा पाण्डेय, राजेंद्र कुमार जैन, विजय जोशी, महेश पंचोली एवं डॉ. प्रभात कुमार सिंघल को सम्मानित किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि अन्य सम्मानित होने वाले साहित्यकारों में सन्ध्या रानी चतरा झारखंड,  सुरेन्द्र शर्मा  ‘बशर’ अहमदाबाद,  संतोष शर्मा जी अहमदाबाद ,डॉ.श्यामसिंह जी राजपुरोहित जयपुर , गोविन्द गुरु जी पटवारी धौलपुर, मीना शर्मा जी धौलपुर, सविता धर जी धनबाद झारखण्ड,दसरथ सिंह दबंग भीलवाड़ा , राकेश आनन्दकर अजमेर डॉ.विजयप्रताप सिंह अहमदाबाद , राजेश मित्तल भीलवाड़ा , गौरव भारद्वाज धौलपुर,  ओम उज्ज्वल भीलवाड़ा ,बाल कवि रुद्र प्रताप धौलपुर ,.डॉ.उमासिंह किसलय अहमदाबाद , आनंद जैन अकेला कटनी मध्यप्रदेश, अरुण ठाकर जिंदगी जयपुर , मनोहर लाल कुमावत भीलवाड़ा  डॉ. विभा प्रकाश जी लखनऊ , बृजसुन्दर सोनी भीलवाड़ा ,श्रीमती प्रेम सोनी भीलवाड़ा ,श्याम सुन्दर तिवारी मधुप भीलवाड़ा, कवयित्री मधुसिंह महक भीलवाड़ा, श्रीमती शशि ओझा भीलवाड़ा ,श्रीमती कृष्णा माहेश्वरी भीलवाड़ा ,नरेंद्र कुमार वर्मा ‘नरेन’ भीलवाड़ा ,श्रीमती रजनी शर्मा मृदुल धौलपुर .प्रिया शुक्ला धौलपुर , नन्दिनी शर्मा केशरी धौलपुर,  राजेन्द्र पुरोहित जोधपुर , गायत्री सरगम भीलवाड़ा एवं सुनील व्यास पुर, भीलवाड़ा  को सम्मानित किया जाएगा।
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डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
संस्थान मीडिया प्रभारी, कोटा

तीर्थंकर बनने की प्रक्रिया और 24 तीर्थंकर

जैन धर्म में 24 तीर्थंकर माने गए हैं, जिन्हें विशेष आत्मज्ञान (केवलज्ञान) प्राप्त हुआ और जिन्होंने मोक्ष का मार्ग बताया। तीर्थंकर का अर्थ है “तीर्थ बनाने वाला”, यानी वह आत्मा जिसने संसार सागर से पार होने का मार्ग बनाया और दूसरों को भी मार्ग दिखाया।

तीर्थंकर कैसे बनते हैं?

जैन दर्शन के अनुसार, तीर्थंकर बनने के लिए आत्मा को:

  • अत्यंत पुण्य,
  • महान तपस्या,
  • सात्विक जीवन,
  • और तीर्थंकर नामकर्म का बंध होना आवश्यक होता है।

ये आत्माएँ करोड़ों जन्मों तक तप, संयम, और धर्म का पालन कर तीर्थंकर बनने योग्य बनती हैं।

किसी को तीर्थंकर कैसे घोषित किया जाता है

 जैन धर्म में तीर्थंकर कोई साधारण गुरु या संत नहीं होते — ये ऐसे महापुरुष होते हैं जिन्होंने केवलज्ञान (संपूर्ण ज्ञान) प्राप्त किया होता है और जो “तीर्थ” अर्थात मोक्षमार्ग की स्थापना करते हैं। तीर्थंकर बनने की प्रक्रिया बहुत विशिष्ट और आध्यात्मिक रूप से गहन होती है।


कोई तीर्थंकर कैसे घोषित होता है?

जैन दर्शन के अनुसार, तीर्थंकर की पहचान और घोषणा का कोई मानवीय या संस्थागत निर्णय नहीं होता, बल्कि यह कर्म सिद्धांत और आत्मिक योग्यता पर आधारित होती है। इसमें मुख्य बातें होती हैं:


1. तीर्थंकर नामकर्म बंध

  • किसी जीव (आत्मा) के पिछले जन्मों के उत्तम पुण्य और तप से उसका तीर्थंकर नामकर्म बंधता है।
  • यह बंध जीवन के अत्यंत पुण्यशील और त्यागमय अवस्था में होता है।
  • यह कर्म तय करता है कि वह आत्मा आगे चलकर तीर्थंकर बनेगी।

2. देवों की पूर्व-घोषणा (पूर्वचिन्ह)

  • जब वह आत्मा मनुष्य योनि में तीर्थंकर बनने के लिए जन्म लेती है, तो इंद्रदेव (सुरेन्द्र) और अन्य देवता उसे पहचानते हैं।
  • जन्म से पहले कल्पवृक्ष, सिंहासन, चक्र, देवदुन्दुभि, और सपनों के रूप में माता को संकेत मिलते हैं (उदाहरण: त्रिशला माता को 16 स्वप्न)।

3. जन्म के समय शुभ लक्षण

  • तीर्थंकरों के जन्म के समय दिव्य घटनाएँ होती हैं:
    • पृथ्वी पर शांति छा जाती है
    • इंद्रदेव जन्माभिषेक कराते हैं
    • आकाशवाणी होती है
    • माता-पिता को दिव्य आनंद की अनुभूति होती है

4. केवलज्ञान की प्राप्ति

  • तीर्थंकर कठिन तपस्या और ध्यान के बाद केवलज्ञान प्राप्त करते हैं — यानी उन्होंने संसार के समस्त पदार्थों और आत्मा को पूरी तरह जान लिया होता है।
  • इसके बाद वे धर्मचक्र प्रवर्तन करते हैं, यानी चार तीर्थ (साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका) की स्थापना करते हैं।

5. तीर्थंकर की भूमिका

  • वे केवल उपदेशक नहीं, मोक्षमार्ग के मार्गदर्शक होते हैं।
  • उनके उपदेशों को श्रुतज्ञान के रूप में अगली पीढ़ियों तक पहुँचाया जाता है।
क्रम तीर्थंकर का नाम प्रतीक चिन्ह
1 ऋषभनाथ (आदिनाथ) बैल (बृषभ)
2 अजितनाथ हाथी
3 संभवनाथ घोड़ा
4 अभिनन्दननाथ वानर (बंदर)
5 सुमतिनाथ क्रौंच (पक्षी)
6 पद्मप्रभ कमल
7 सुपार्श्वनाथ स्वस्तिक
8 चन्द्रप्रभ चन्द्रमा
9 पुष्पदन्त (सुविधिनाथ) मगरमच्छ
10 शीतलनाथ कल्पवृक्ष
11 श्रेयांसनाथ गैंडा
12 वासुपूज्य भैंसा
13 विमलनाथ शूक
14 अनंतनाथ बाज (गरुड़)
15 धर्मनाथ वज्र (गदा)
16 शांतिनाथ हिरण
17 कुंथुनाथ बकरी
18 अरहनाथ मछली
19 मल्लिनाथ कलश
20 मुनिसुव्रतनाथ कछुआ
21 नमिनाथ नीला कमल
22 नेमिनाथ शंख
23 पार्श्वनाथ सर्प
24 महावीर स्वामी सिंह (शेर)

गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्रभाई पटेल ने ‘विश्व नवकार महामंत्र दिवस’ पर जारी किया विशेष डाक आवरण

भारतीय डाक विभाग द्वारा जैन इंटरनेशनल ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (जीतो) की ओर से 9 अप्रैल,  2025 को अहमदाबाद के जीएमडीसी मैदान पर आयोजित ‘’विश्व नवकार महामंत्र दिवस” पर एक विशेष आवरण और विरूपण गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्रभाई पटेल द्वारा जारी किया गया। उत्तर गुजरात परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने मुख्यमंत्री को विशेष आवरण की प्रथम प्रति भेंट किया। इस विशेष आवरण पर ‘भगवान पार्श्वनाथ का 2800 वां निर्वाण कल्याणक’ पर जारी डाक टिकट लगाकर इसका विशिष्ट विरूपण किया गया। यह आयोजन जैन समुदाय की ओर से विश्व शांति और अहिंसा के संदेश को फैलाने के उद्देश्य से किया गया। इस दौरान सुबह 8:01 बजे से लेकर 9:36 बजे तक एक साथ 25 हजार से अधिक लोगों ने नवकार मंत्र का सामूहिक जाप किया।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम से पूरे भारत को वर्चुअली संबोधित किया। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने नवकार मंत्र के गहन आध्यात्मिक अनुभव साझा करते हुए मन में शांति एवं स्थिरता लाने की इसकी क्षमता पर चर्चा की। उन्होंने कहा, “नवकार महामंत्र सिर्फ मंत्र नहीं है। ये हमारी आस्था का केंद्र है। हमारे जीवन का मूल स्वर, और इसका महत्व सिर्फ आध्यात्मिक नहीं है। ये स्वयं से लेकर समाज तक सबको राह दिखाता है, जन से जग तक की यात्रा है। इस मंत्र का प्रत्येक पद ही नहीं, बल्कि प्रत्येक अक्षर अपने आप में मंत्र है।” प्रधानमंत्री ने सामूहिक नवकार मंत्र के जाप के बाद सभी से नौ संकल्प लेने का भी आग्रह किया। गुजरात के गृह मंत्री श्री हर्ष संघवी भी अहमदाबाद में आयोजित कार्यक्रम से  वर्चुअली जुड़े।

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि ‘’विश्व नवकार महामंत्र दिवस’ पर विशेष आवरण को एक विशिष्ट प्रतीक के रूप में तैयार किया गया है। इसमें नवकार मंत्र “नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिँ, पढमं हवइ मंगलं” को प्रदर्शित किया गया है। ऐसे में एक प्रतिष्ठित सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में जारी इस विशेष आवरण के माध्यम से युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति और विरासत से अवगत हो सकेगी। ये विशेष आवरण फिलेटली का एक अद्भुत हिस्सा बनकर और डाक टिकट लगकर देश-विदेश में भी जायेंगे, जहाँ नवकार महामंत्र की गाथा को लोगों तक फैलाएँगे और इसका देश-विदेश में व्यापक प्रचार-प्रसार हो सकेगा।

गौरतलब है कि नवकार महामंत्र दिवस आध्यात्मिक सद्भाव और नैतिक चेतना का एक महत्वपूर्ण उत्सव है और यह जैन धर्म में सबसे अधिक पूजनीय और सार्वभौमिक मंत्र नवकार महामंत्र के सामूहिक जाप के माध्यम से लोगों को एकजुट करने का प्रयास करता है। अहिंसा, विनम्रता और आध्यात्मिक उत्थान के सिद्धांतों पर आधारित यह मंत्र प्रबुद्ध व्यक्तियों के गुणों को श्रद्धांजलि देता है और आंतरिक परिवर्तन को प्रेरित करता है। यह दिवस सभी व्यक्तियों को आत्म-शुद्धि, सहिष्णुता और सामूहिक कल्याण के मूल्यों पर चिंतन करने के लिए प्रोत्साहित करता है। शांति और एकजुटता के लिए इस वैश्विक मंत्रोच्चार में देश-विदेश से तमाम लोग शामिल हुए। उन्होंने पवित्र जैन मंत्र के माध्यम से शांति, आध्यात्मिक जागृति और सार्वभौमिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए भाग लिया।

इस अवसर पर टोरेंट ग्रुप के चेयरमैन श्री सुधीर मेहता, जीतो की अहमदाबाद इकाई अध्यक्ष श्री ऋषभ पटेल, जीतो के चीफ सेक्रेटरी श्री मनीष शाह, कन्वीनर श्री आसित शाह, वाइस चेयरमैन श्री वैभव शाह, श्री प्रकाश भाई संघवी, श्री गणपतराज चौधरी, अहमदाबाद जीपीओ डिप्टी चीफ पोस्टमास्टर श्री अल्पेश शाह और जैन समुदाय के विभिन्न पंथों जैसे श्वेतांबर, दिगंबर, तेरापंथी, स्थानकवासी आदि के साधु-साध्वी, आचार्य, गच्छाधिपति आयोजन में शामिल हुए।

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति ने जगाई आशा और उम्मीदें

दिनांक 9 अप्रेल 2025 को भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की द्विमासिक बैठक में एकमत से निर्णय लेते हुए रेपो दर में 25 आधार बिंदुओं की कमी करते हुए इसे 6.25 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया है एवं इस मौद्रिक नीति में स्टैन्स को स्थिर (स्टेबल) से उदार (अकोमोडेटिव) कर दिया है। इसका आश्य यह है कि आगे आने वाले समय में भारतीय रिजर्व बैंक रेपो दर में वृद्धि नहीं करते हुए इसे या तो स्थिर रखेगा अथवा इसमें कमी की घोषणा करेगा। भारत में मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रित करने में मिली सफलता के चलते भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा यह निर्णय लिया जा सका है।

हाल ही के समय में अमेरिका द्वारा अन्य देशों से आयातित वस्तुओं पर भारी भरकम टैरिफ लगाने की घोषणा की गई है जिससे पूरे विश्व भर के लगभग समस्त देशों के शेयर बाजार में हाहाकार मच गया है एवं शेयर बाजार लगातार नीचे की ओर जा रहे हैं। ऐसे माहौल में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में कमी करने की घोषणा एक उचित कदम ही कहा जाना चाहिए। वैसे भारत में मुद्रा स्फीति अब नियंत्रण में भी आ चुकी है एवं आगे आने वाले मानसून के दौरान भारत में सामान्य (103 प्रतिशत) बारिश होने का अनुमान लगाया गया है। इस वर्ष रबी के मौसम में गेहूं की बम्पर पैदावार होने का अनुमान लगाया गया है, सब्जियों एवं फलों की कीमत भारतीय बाजारों में कम हुई है, अतः कुल मिलाकर खुदरा महंगाई की दर 4 प्रतिशत से भी नीचे आ गई है।
 भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भी वर्ष 2025-26 में भारत में मुद्रा स्फीति की दर के 4 प्रतिशत के नीचे रहने का अनुमान लगाया गया है। साथ ही, वैश्विक स्तर पर लगातार बदल रहे घटनाक्रम के चलते कच्चे तेल के दाम भी तेजी से घटे हैं और यह 75 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से घटकर 60 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर आ गए हैं। भारत के लिए यह बहुत अच्छी खबर है, क्योंकि, इससे विनिर्माण इकाईयों की लाभप्रदता में वृद्धि होगी तथा देश में ईंधन की कीमतें कम होंगी और अंततः मुद्रा स्फीति की दर में और अधिक कमी होगी। भारतीय रिजर्व बैंक के लिए इससे आगामी मौद्रिक नीति के माध्यम से रेपो दर में और अधिक कटौती करना सम्भव एवं आसान होगा।

वैश्विक स्तर पर अमेरिका द्वारा छेड़े गए व्यापार युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक विपरीत प्रभाव पड़ने की सम्भावना नहीं है और भारतीय रिजर्व बैंक के आंकलन के अनुसार वित्तीय वर्ष 2025-26 में भारत की आर्थिक विकास दर 6.5 प्रतिशत रह सकती है और पूर्व में इसके 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था, अर्थात, अमेरिका द्वारा अपने देश में होने वाले आयात पर लगाए गए टैरिफ से भारतीय अर्थव्यवस्था पर केवल 0.2 प्रतिशत का असर होने की सम्भावना व्यक्त की गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था दरअसल निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर भी नहीं है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल लगभग 16-17 प्रतिशत भाग ही अन्य देशों को निर्यात किया जाता है। इसमें से भी अमेरिका को तो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल लगभग 2 प्रतिशत भाग ही निर्यात होता है। अतः ट्रम्प प्रशासन द्वारा विभिन्न देशों पर अलग अलग दर से लगाए गए टैरिफ का भारतीय अर्थव्यवस्था पर नगण्य सा प्रभाव पड़ने की सम्भावना है।

वैश्विक स्तर पर उक्त वर्णित समस्याओं के बीच भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई एम एफ) ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2028 तक भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं वर्ष 2025 एवं 2026 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर बनी रहेगी। पिछले 10 वर्षों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में 100 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। इस वर्ष के अंत तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद का स्तर 4.27 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा, जो भारतीय रुपए में लगभग 360 लाख करोड़ रुपए बनता है। वर्ष 2015 से लेकर वर्ष 2024 तक के पिछले 10 वर्षों के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार दुगना हो गया है। वर्ष 2015 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 2.10 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर (रुपए 180 लाख करोड़) का था और भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में 10वें क्रम पर था। वर्ष 2025 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार दुगना होकर 4.27 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर रहने का अनुमान लगाया गया है।

पिछले 10 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्र में कई सुधार कार्यक्रम लागू किए हैं जिससे विशेष रूप से कृषि के क्षेत्र में सुधार दृष्टिगोचर हुआ है। साथ ही, भारत में आधारभूत संरचना खड़ी करने के लिए केंद्र सरकार के पूंजीगत खर्च में भारी भरकम वृद्धि दर्ज हुई है। देश में विदेशी निवेश का लगातार विस्तार हो रहा है और रोजगार के अवसरों में भी अतुलनीय वृद्धि दर्ज हुई है। भारत में विनिर्माण के क्षेत्र में नई इकाईयों की स्थापना को प्रोत्साहन देने के लिए उत्पादन प्रोत्साहन योजना (पी एल आई) लागू की गई है। मुद्रा योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार की गारंटी पर भारतीय बैकों (निजी एवं सरकारी क्षेत्र के बैकों सहित) ने 33 लाख करोड़ रुपए के ऋणों का वितरण किया है।

भारत में अनियमित जलवायु परिस्थितियों के बीच भी  पिछले 10 वर्षों के दौरान कृषि के क्षेत्र में विस्तार हुआ है जिससे किसानों की आय को स्थिर रखने में सफलता मिली है। साथ ही, गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों की केंद्र सरकार ने विशेष सरकारी योजनाओं एवं सब्सिडी के माध्यम से बहुत अच्छे स्तर पर सहायता की है। इससे इस श्रेणी के कई परिवार अब मध्यम श्रेणी में आ गए हैं एवं भारत में विभिन्न उत्पादों की मांग की वृद्धि में सहायक बन रहे हैं। देश में लागू किए गए डिजीटलाईजेशन से भी भारत में किए जाने वाले लेनदेन के व्यवहारों में पारदर्शिता आई है और इससे भारत में वस्तु एवं सेवा कर एक उपलब्धि सिद्ध हुआ है। आज भारत में वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से लगभग 2 लाख करोड़ रुपए का अप्रत्यक्ष कर संग्रहित हो रहा है तथा इससे देश में बुनियादी ढांचे को विकसित करने में भरपूर सहायता मिली है।

भारत आज अमेरिका, चीन, जर्मनी एवं जापान के पश्चात विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। पिछले 10 वर्षों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था ने लम्बी छलांग लगाते हुए, विश्व में 10वें से आज 5वें स्थान पर आ गई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकलन के अनुसार पिछले 10 वर्षों में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 100 प्रतिशत बढ़ा है तो अमेरिका का 65.8 प्रतिशत, चीन का 75.8 प्रतिशत, जर्मनी का 43.7 प्रतिशत और जापान का केवल 1.3 प्रतिशत बढ़ा है।  अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2025 एवं 2026 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की बनी रहेगी, इस प्रकार भारत वर्ष 2026 में जापान को पीछे छोड़ते हुए विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं वर्ष 2028 में जर्मनी को पीछे छोड़कर भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। जर्मनी, जापान एवं भारत के सकल घरेलू उत्पाद में बहुत ही थोड़ा अंतर है। जापान का सकल घरेलू उत्पाद 4.4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर है, जर्मनी का सकल घरेलू उत्पाद 4.9 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर है, वहीं भारत का सकल घरेलू उत्पाद 4.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर है।

यदि भारत में आगे आने वाले वर्षों में मुद्रा स्फीति पर अंकुश कायम रहता है एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा  आगे आने वाले समय में ब्याज दरों में लगातार कमी की जाती है तो भारत अपनी आर्थिक विकास दर को 6.5 प्रतिशत से भी आगे ले जा सकने में सफल हो सकता है। अतः भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रा नीति में स्टैन्स को स्थिर से उदार करने के निहितार्थ हैं।
प्रहलाद सबनानी
सेवानिवृत्त उपमहाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

औरंगजेब के अत्याचारों के आगे नहीं झुके कानाहा रावत

औरंगजेब ने 9 अप्रेल 1669 को फरमान जारी किया- “काफ़िरों के मदरसे और मन्दिर गिरा दिए जाएं”. फलत: ब्रज क्षेत्र के कई अति प्राचीन मंदिरों और मठों का विनाश कर दिया गया. कुषाण और गुप्त कालीन निधि, इतिहास की अमूल्य धरोहर, तोड़-फोड़, मुंड विहीन, अंग विहीन कर हजारों की संख्या में सर्वत्र छितरा दी गयी. सम्पूर्ण ब्रजमंडल में मुगलिया घुड़सवार और गिद्ध चील उड़ते दिखाई देते थे . और दिखाई देते थे धुंए के बादल और लपलपाती ज्वालायें- उनमें से निकलते हुए साही घुडसवार.

वीर गौकुल सिंह ने अथक साहस का परिचय देकर पंचों व मुखियों को रावत पाल के बडे गांव बहीन में एक विशाल पंचायत बुलाई. इस में औरंगजेब से निपटने की योजना तैयार की गई. इस पंचायत में बलबीर सिंह ने गोकला को आश्वासन दिया कि वे अपनी आन बान और शान के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर देंगे, लेकिन विदेशी आक्रांताओं के समक्ष कभी नहीं झुकेंगे. युद्ध करने की समय सीमा तय हो गई.

खबर औरंगजेब तक पंहुच गई. उसने अपना सेनापति शेरखान को बहीन भेजा. माघ माह शीत लहर में गांव के चुनिंदा लोग वर्णित पंचायत में लिए गए फैसले की तैयारी कर रहे थे, कि अचानक गांव के चौकीदार चंदू बारिया ने औरंगजेब के सेनापति दूत शेरखान के आने की सूचना दी. बंगले पर विराजमान वृद्धों ने भारतीय संस्कृति की रीतिरिवाज के अनुसार शेरखान को आदर सहित बंगले पर बुलवाया तथा उससे आने का कारण पूछा. शेरखान शाह मिजाज से वृद्धों का अपमान करता हुआ बोला – हम बादशाह औरंगजेब का फरमान लेकर आए है. यहां के लोग सीधे-सीधे ढंग से इस्लाम धर्म स्वीकार करते हैं, तो तुम्हारे मुखिया को नवाब की उपाधि से सम्मानित करेंगे. खास चेतावनी यह है कि यदि तुम लोगों ने गोकला जाट का साथ दिया तो अंजाम बुरा होगा।

इतनी बात सुनकर कान्हा रावत वहां से उठे और अपनी निजी बैठक में गया और भाला लेकर वापिस शेरखान पर टूट पडा. गांव के वृद्धों ने उसे रोकने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे. इधर शेरखान ने भी अपने साथियों को आदेश दिया कि वे इस छोकरे को शीघ्र काबू करके बंदी बनाएं. कान्हा रावत का उत्साह देखकर उसके युवा साथी भी लाठी, बल्लम आदि शस्त्र लेकर टूट पडे. युवाओं ने उन सैनिको को वहां से भगा कर ही दम लिया.

रावतों के पांच गावों (बहीन, नागल जाट, अल्घोप, पहाड़ी, और मानपुर) की एक महापंचायत हुई थी जिसमे कान्हा रावत के अध्यक्षता में निर्णय लिए गए थे

हम अपना सनातन धर्म नहीं बदलेंगे.

मुसलमानों के साथ खाना नहीं खायेंगे.

कृषि कर अदा नहीं करेंगे.

रावत पंचायत के निर्णयों की खबर जब औरंगजेब को लगी तो वह क्रोध से आग बबूला हो उठा. उसने अब्दुल नवी सेनापति के अधीन एक बहुत बड़ी सेना बहीन पर आक्रमण के लिए भेजी. सन 1684 में बहिन गाँव को चारों तरफ से घेर लिया. रावतों और मुग़ल सेना में युद्ध छिड़ गया. लेकिन मुगलों की बहुसंख्यक, हथियारों से सुसज्जित सेना के आगे शास्त्र-विहीन आखिर कब तक मुकाबला करते. अनुमानतः 2000 से अधिक वीरगति को प्राप्त हुए थे. कान्हा रावत को गिरफ्तार कर लिया गया.

सात फ़ुट लम्बे तगड़े बलशाली युवा कान्हा रावत को गिरफ्तार करके मोटी जंजीरों से जकड़ दिया गया. उसके पैरों में बेडी, हाथों में हथकड़ी तथा गले में चक्की के पाट डालकर कैद करके दिल्ली लाया गया. वहां उसको अजमेरी गेट की जेल में बंद कर दिया गया. उसी जेल के आगे गढा खोदा गया. कान्हा को प्रतिदिन उस गढे में गाडा जाता था तथा अमानवीय यातनाएं दी जाती थी लेकिन वह इन अत्याचारों से भी टस से मस नहीं हुआ.

एक दिन बड़ी मुश्किल से मिलने की इजाज़त लेकर कान्हा का छोटा भाई दलशाह उसे मिलने के लिए आया. उस समय कान्हा के पैर जांघों तक जमीन में दबाये हुए थे तथा हाथ जंजीरों से जकडे हुए थे. कोड़ों की मार से उसका शरीर सूखकर कांटा हो गया था.

दलशाह से यह दृश्य देखा नहीं गया तो उसने कान्हा से कहा भाई अब यह छोड़ दे. तब कान्हा तिलमिला उठा और बोला:

“अरे दलशाह यह तू कह रहा है. क्या तू मेरा भाई है. मैंने तो सोचा था कि मेरा भाई अब्दुन नबी की मौत की सूचना देने आया है. ताकि मैं शांति से मर सकूं. मैंने तो सोचा था कि मेरे भाई ने मेरा प्रतोशोध ले लिया है.

कान्हा का छोटा भाई दलशाह कान्हा को प्रणाम कर माफ़ी मांग कर वापिस गया. कान्हा रावत के छोटे भाई दलशाह ने रावतों के अतिरिक्त उस क्षेत्र के अनेक गावों को इकठ्ठा कर अब्दुल नवी पर हमला बोल दिया. यह खबर कान्हा को उसकी मृत्यु से एक दिन पहले मिली. इस खबर से कान्हा को बड़ी आत्मिक शांति मिली. इस घटना के बाद औरंगजेब ने कान्हा रावत पर जुल्म बढा दिए. अंत में चैत्र अमावस विक्रम संवत 1738 (1684 इस्वी} को वीरवर कान्हा रावत को जिन्दा ही जमीन में गाड दिया. वह देशभक्त धर्म की खातिर बलिदान हो गया.

जिस स्थान पर कान्हा रावत को जिन्दा गाडा गया था वह स्थान अजमेरी गेट के आगे मौहल्ला जाटान की गली में आज भी एक टीले के रूप में विद्यमान है.