Sunday, April 13, 2025
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अंतरिक्ष से दिखा महाकुम्भ का विहंगम नजारा

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से खींची गई तस्वीरों में महाकुम्भ मेले का दिखाई दिया अद्भुत नजारा

विश्व के सबसे बड़े धार्मिक और मानवीय आयोजन महाकुम्भ मेला को सिर्फ जमीन से ही नहीं बल्कि अंतरिक्ष से भी कैप्चर किया जा रहा है। इंटरनेशनल स्पेस सेंटर (आईएसएस) ने रविवार रात को अंतरिक्ष से महाकुम्भ की आश्चर्यचकित कर देने वाली तस्वीरें कैद की हैं। इन तस्वीरों में महाकुंभ मेले का अद्भुत नजारा देखने को मिला। इसमें गंगा नदी के तट पर दुनिया का सबसे बड़ा मानव समागम रौशनी से जगमगा रहा है। इन तस्वीरों को आईएसएस से एस्ट्रोनॉट डॉन पेटिट ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर शेयर किया है।

तस्वीरों में महाकुम्भ मेले की भव्य रौशनी और विशाल मानव भीड़ ने गंगा नदी के किनारे को अनोखे दृश्य में बदल दिया। अंतरिक्ष से ली गई यह तस्वीरें पृथ्वी पर इस धार्मिक आयोजन की विशालता को दर्शा रही हैं।

महाकुम्भ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जिसमें लाखों श्रद्धालु गंगा नदी में डुबकी लगाकर आध्यात्मिक शांति प्राप्त करते हैं। अब तक 13 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु संगम स्नान कर इस सुखद और धार्मिक अनुभूति को महसूस कर सकें हैं तो वहीं यहां से आ रही तस्वीरों को देखकर पूरी दुनिया विस्मित है। अंतरिक्ष से ली गईं ये तस्वीरें महाकुम्भ को लेकर पूरी दुनिया का ध्यान खींचने वाली हैं। डॉन पेटिट ने तस्वीरें साझा करते हुए लिखा है कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से खींची गई तस्वीरों में 2025 के महाकुंभ मेले का अद्भुत नजारा देखने को मिला। गंगा नदी के तट पर दुनिया का सबसे बड़ा मानव समागम रौशनी से जगमगा रहा था।

अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री और केमिकल इंजीनियर डोनाल्ड रॉय पेटिट, जो अपनी कक्षा में खगोल-फोटोग्राफी और इनोवेशन के लिए मशहूर हैं, ने इन तस्वीरों को खींचा। पेटिट अंतरिक्ष में बनाई गई पहली पेटेंटेड वस्तु “जीरो जी कप” के आविष्कारक भी हैं। पेटिट विगत 555 दिनों से आईएसएस में हैं और 69 वर्ष की आयु में नासा के सबसे वृद्ध सक्रिय एस्ट्रोनॉट हैं।

अधिकार से पहले अनुशासन की बात करें

हम भारत देश के वासी ही संविधान की ताक़त, हम ही इसकी प्रेरणा व उद्देश्य है। इस वर्ष गणतंत्र दिवस इसलिए हमारे लिए विशेष है क्योंकि 75 वाँ वर्ष हम मना रहे हैं पर वास्तविक रूप से गणतंत्र के सही मायने तभी समझेंगे जब अधिकार से पहले हम अनुशासन की बात करेंगे।
तीन अनुशासन किसी मज़बूत गणतंत्र के लिए बेहद ज़रूरी है
1. सामाजिक अनुशासन
अच्छा समाज चाहते हैं तो सत्य का पालन कीजिए… अफवाहें कभी मत फैलाइए। एक अच्छे समाज की पहली शर्त है कि उसका हर सदस्य, सत्य का पालन करे। अपने कर्तव्यों का पूरी सत्यता से पालन करे। आज के दौर में यह अनुशासन सामान्य जीवन के साथ ही वर्चुअल जीवन में भी जरूरी है। आप पड़ोसी से मधुर संबंध रखते हैं, मगर बिना जाने सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी दूसरों को भेजते हैं तो सामाजिक रिश्ते मधुर नहीं हो सकते।
2. नागरिक अनुशासन
मजबूत कानून-व्यवस्था चाहते हैं तो खुद हर कानून का पालन जरूर कीजिए। हर नागरिक का पहला कर्तव्य है कि वह देश के संविधान का पूर्णतः पालन करे। हर नियम-कानून को पूरी तरह माने, फिर चाहे वह जेब्रा क्रॉसिंग से सड़क पार करने और अपनी लेन में ही गाड़ी चलाने जैसे साधारण ट्रैफिक नियम ही क्यों न हों। कानूनों का पालन करने वाला ही सरकार के बनाए किसी कानून के खिलाफ आवाज उठाने का अधिकार रखता है।
3. राजनीतिक अनुशासन
अच्छी सरकार चाहते हैं तो पहले अच्छा नेता चुनिए… और उसे पहले वोट दीजिए। बतौर नागरिक आपका ही कर्तव्य है कि आप देश को एक अच्छा नेता दें जो जाति, धर्म, लाभ-हानि से ऊपर उठकर देश के हर व्यक्ति को सक्षम बनाए ना कि चुनावी रेवड़ियाँ बाँटकर जनता को घुमराह करे। अपनी चुनी हुई सरकार के हर कदम की जानकारी रखिए, समीक्षा भी कीजिए कि हमारे द्वारा चुना हुआ जनप्रतिनिधि वास्तव में जनता के साथ कैसा बर्ताव कर रहा व कहीं अपनी स्वार्थ पूर्ति में जनता का शोषण तो नहीं कर रहा, और इससे भी जरूरी है कि नेता के चुनाव की प्रक्रिया में अपनी भागीदारी यानी मताधिकार का प्रयोग अवश्य करें।

कवि द्विजेश का काव्यकुल घराना

बस्ती जिले का मिश्रौलिया गांव में पण्डित हरदयाल मिश्र का एक अच्छा खाता पीता रईस घराना रहता था। वह एक जमींदार थे। वे अपनी पालकी के साथ बस्ती राजा के यहाँ भी आया जाया करते थे। उन पर राजा साहब की कृपा दृष्टि बनी रहती थी। उनके पुत्र का नाम उदित नारायण मिश्र था। जो द्विजेश जी के पूज्य पिता थे। उदित नारायण मिश्र की पालकी बस्ती राजा के यहाँ आती जाती थी। उस समय महाराज पाटेश्वरी प्रताप नारायण सिंह बस्ती के राजा थे।

द्विजेश जी बचपन उनके दादा हरदयाल मिश्र के साथ ही बीता था। उदित नारायण मिश्र की मृत्यु के बाद उनके दो बेटों में से बड़े बलराम प्रसाद मिश्र,द्विजेश नाम से ब्रज भाषा में और जैश नाम से उर्दू में कविता करने के कारण प्रसिद्ध हुए । द्विजेश जी के बड़े पुत्र उमाशंकर मिश्र के एकमात्र पुत्र का नाम था गंगेश्वर मिश्र है। द्विजेश जी से कवि का उत्तराधिकार तो प्रेम शंकर मिश्र जी ने प्राप्त किया था किंतु द्विजेश जी की संगीत-साधना का दाय उनके भाई के पुत्र यानि भतीजे गंगेश्वर जी ने सँभाला था और वे बस्ती के अच्छे सितार-वादक थे जिससे कुछ ने शिक्षा भी प्राप्त की थी ।

द्विजेश जी के समय साहित्यकारों की एक चौकड़ी भी होती थी जिसमें वागीश शुक्ला के पूर्वज परिवार, प्रेमशंकर मिश्र, रामनारायण पांडेय पागल, और ठाकुर चौधरी आदि शामिल थे । किसी न किसी के घर-प्रायः यह चौकड़ी शाम को चार घंटे बैठकर काव्य चर्चा करती रहती थी।

1.राष्ट्रकवि बलराम मिश्र ‘द्विजेश’  का व्यक्तित्व और कृतित्व 

जीवन परिचय:-

पंडित बलराम प्रसाद मिश्र द्विजेश हिन्दी साहित्य के रीति काल के अंतिम प्रतिनिधि कवि थे। वह काव्य धारा की सारी शक्तियों को उत्कर्ष पर पहुंचाते हुए बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक साहित्य सृजन करते रहे। उनके शरीर छोड़ने तक हिन्दी साहित्य में तीसरा सप्तक आ चुका था। उन्होंने अपनी काव्य रचना में देव और पद्माकर का ही रंग बनाए रखा। अपनी हिन्दी की रचनाओं के अलावा द्विजेश ने उर्दू और फारसी में शेरो-शायरी और गजलें भी लिखीं। प्रतिष्ठित सरयूपारीण जमींदार परिवार में द्विजेश का जन्म माघ कृष्ण 11, संवत 1929 विक्रमी तदनुसार 25 जनवरी 1886 ई. को बस्ती उत्तर प्रदेश के निकट मिश्रौलिया नामक ग्राम में हुआ था। बस्ती राज परिवार से इनका निकट का नाता था। संस्कृत, संगीत और साहित्य की खुशबू मानो इनके रग-रग में बसी थी।औपचारिक स्कूली शिक्षा का चलन उन दिनों बहुत कम होने के बावजूद तत्कालीन प्रथा के अनुसार उन्होंने हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, फारसी तथा सामान्य गणित की शिक्षा ग्रहण की थी। द्विजेश जी जब अपंग और शय्यासीन हुए तो प्रेम शंकर मिश्र जी उनकी शुश्रूषा और तदनंतर काशी-वास कराते थे।

 बस्ती नगर पालिका बस्ती रोडवेज चौराहे से पुरानी बस्ती जाने वाले मार्ग को उनके नाम पर द्विजेश मार्ग का नामकरण भी किया है। पाण्डेय स्कूल के समाने द्विजेश भवन भी उनके शुभ चिन्तकों ने बनवा रखा है। यहां कभी- कभार साहित्यिक कार्यक्रम भी होते रहे हैं।

प्रमुख कृतियां:-
1. अप्रकाशित गजल संग्रह हस्ती:- 
शेरो-शायरी से जुड़ा संग्रह ‘हस्ती’ आज तक नहीं छप सका है।

2.द्विजेश दर्शन:- 
काव्य रचना संग्रह द्विजेश दर्शन उनका एक मात्र संग्रह रहा है। किशोरावस्था से ही द्विजेश ने काव्य रचना शुरू कर दी। ब्रजभाषा कविता की मुख्य धारा में थी। रचनाओं में वह एक सिद्धहस्त कवि के रूप में दिखाई देते हैं। वे रचनाएं लिखते गए लेकिन उनके संयोजन और प्रकाशन की ओर द्विजेश का ध्यान कभी नहीं रहा। वह प्रकाशन के प्रति बहुत लापरवाह रहे। उनके पुत्र प्रेमशंकर मिश्र ने प्रयास करके ब्रजभाषा में रचित कविताओं का संग्रह द्विजेश दर्शन का कुछ अंश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सौजन्य से प्रकाशित कराया है। जो कुछ द्विजेश दर्शन में छप सका वह रचनाओं का मात्र एक चौथाई हिस्सा ही है।

  द्विजेश दर्शन की भूमिका में श्री नारायण चतुर्वेदी ने लिखा है कि इनके लेखन की बात ही कुछ और है। अपने व्यक्तिगत काव्य प्रेम के कारण अपने आसपास के बहुसंख्य लोगों को साहित्य से जोड़ने का काम द्विजेश ने किया है। डा.रसाल ने द्विजेश के बारे में कहा था कि, शब्द उनके दास थे। जबकि डा. संपूर्णानंद ने लिखा कि, ब्रजभाषा के बुझते दीपक के इन पतंगों के प्रयत्न मेरे मन में आदर का भाव उत्पन्न करते हैं। मेरा ऐसा विश्वास है कि द्विजेश की काव्य रचनाओं में पाठक को तृप्ति का एहसास होता है। चेहरे मोहरे से किसी मुगल बादशाह की झलक देने वाले द्विजेश वेशभूषा और खानपान की शैली के नाते भी मशहूर थे। वह भारत की सभ्यता यात्रा में एक पड़ाव के प्रतिनिधि थे।

साहित्यकारों द्वारा प्रशंसाः- डा.संपूर्णानंद, डा.वागीश शुक्ल, डा. अरुणेश नीरन, श्रीनारायण चतुर्वेदी सहित तमाम लोगों ने अपने संस्मरणों में द्विजेश द्वारा रचित ब्रजभाषा काव्य को शब्द चमत्कार, ऊंची उड़ानों वाले अलंकार और अक्षर मैत्री का अद्भुत संयोजन करने वाला काव्य साहित्य बताया है। भक्ति भाव की प्रधानता वाले काव्य में उन्होंने अनूठी कल्पनाओं के साथ एक खास तरह के रंगारंग संयोजन को पिरोया है। द्विजेश दर्शन की भूमिका में श्रीनारायण चतुर्वेदी ने लिखा है कि इनके लेखन की बात ही कुछ और है। अपने व्यक्तिगत काव्य प्रेम के कारण अपने आसपास के बहुसंख्य लोगों को साहित्य से जोड़ने का काम द्विजेश ने किया है। डा.रसाल ने द्विजेश के बारे में कहा था कि शब्द उनके दास थे। जबकि डा.संपूर्णानंद ने लिखा कि, ब्रज भाषा के बुझते दीपक के इन पतंगों के प्रयत्न मेरे मन में आदर का भाव उत्पन्न करते हैं। विश्वास है कि द्विजेश की काव्य रचनाओं में पाठक को तृप्ति का एहसास होता है। चेहरे मोहरे से किसी मुगल बादशाह की झलक देने वाले द्विजेश वेशभूषा और खानपान की शैली के नाते भी मशहूर थे। वह भारत की सभ्यता यात्रा में एक पड़ाव के प्रतिनिधि थे।

प्रेमशंकर मिश्र काअभिमत संस्मरण:-
पं. बलराम प्रसाद मिश्र द्विजेश के लिए उन दिनों देश के जाने माने दिग्गज कवि कलावंत महीनों मेरे यहाँ ठहरते। सुबह- शाम अखंड काव्य और संगीत गोष्ठियाँ हुआ करती थीं। महाकवि जगन्नाथदास रत्नाकर पं. अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध, पं. रमा शंकर शुक्ल रसाल के अतिरिक्त रीवां के महाकवि ब्रजेश, पं. बालदत्त, यज्ञराज, विचित्र मित्र ऐसे आचार्य कवि, अजीम खाँ, झंडे खाँ ऐसे उस्ताद यनायत खाँ ऐसे सितारवादक, उनके पुत्र उस्ताद अजीम खाँ साहब ऐसे संगीतज्ञों की सन्निधि मुझे बचपन से प्राप्त हुई है। आज के आफताबे गजल उस्ताद मेहंदी हसन और सितार नवाज उस्ताद शाहिद परवेज ऐसे आज के विश्व विश्रुत कलाकारों का बचपना अपने पिताओं के साथ मेरे साथ गिल्ली गोली खेलते बीता है। इस तरह साहित्य और संगीत मेरी घुट्टी में रहा। विरासत में मुझे काव्य रचना और मेरे अग्रज और उनके पुत्र को सितार वादन मिला। सन 1959 में पिता का तिरोभाव हुआ।

डा. मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’ जी द्वारा मूल्यांकन:-
बस्ती जनपद के स्वनामधन्य  साहित्यकार डा. मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’ ने बस्ती के छन्दकारों का साहित्यिक योगदान भाग 1 में पृष्ठ 91 से 111 तक द्विजेश जी का परिचय काव्य तथा शैली का वैज्ञानिक विवरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने वन्दना, भक्ति दर्शन, गंगा गरिमा वर्णन, श्रृंगार खण्ड, नखशिख वर्णन, विविध प्रकरण तथा द्विजेशजी के रहन सहन को बड़े मार्मिक ढ़ंग से प्रस्तुत किया है। अपने विवरण के अन्त में डा. सरस जी ने लिखा है- ‘द्विजेशजी ब्रज भाषा श्रृंखला के अन्तिम सशक्त कवि थे। केशव व पद्माकर की परम्परा जिसे रंगपाल जी ने बस्ती के मंच पर स्थापित किया था द्विजेशजी ने अपने पाण्डित्य से गौरव दिया।….श्रृंगार के साथ साथ मानव जीवन के व्यवहारिक पक्ष पर लेखनी चलाकर द्विजेश जी ने यदि कविता की भाव भूमि को मानवीय चेतना दिया तो राष्ट्रीयता का मंत्र फूंक करके परतंत्र देश वासियों को स्वतंत्रता का संदेश भी दिया। द्विजेश जी की काव्यधारा वह मन्दाकिनी है जहां सन्त समागम का संगम और त्रिवेणी के पावनत्व का उद्गम है। 85 वर्षों तक द्विजेश जी ने बस्ती की धरती को निहारा और अन्ततः मनीषी साहित्य सूर्य अस्ताचल पहुंच साहित्य से विराम लिया।‘

द्विजेश दर्शन कविता संग्रह :-
भक्ति भाव की प्रधानता वाले काव्य में उन्होंने अनूठी कल्पनाओं के साथ एक खास तरह के रंगारंग संयोजन को पिरोया है। अपनी कविता में भगवान शिव को उलाहना देते हुए उन्होंने लिखा है कि यदि भोलनाथ ने उनका उद्धार नहीं किया तो वे पार्वती की अदालत में भक्ति को अपना वकील बनाकर मुकदमा लड़ेगें।

डिगरी इजराई में न तारिहौं दिगंबर तौं,
कोष करुना को कम कुरक करावैंगे।।

कुछ और छन्द नमूना स्वरूप प्रस्तुत है-

                                                                अवतरण

गेरी गिरापति की गिरी है जो गिरीस सीस,
हल सों हिमंचल के हिय मैं हली गई।।
ह्वाँते चलि मचलि मचावति जु घोर सोर,
तोरि फोरि ढोकनि को ढाँ‍कति ढली गई।।
पहुँची प्रयाग कै ‘द्विजेश’ कल-कौतुक यों,
विंध्‍य-कासिका के प्रेम पथ यों पली गई।।
फेटति फवनि सीम मेटति सरस्‍वति को,
भानुजा को भेंटति समेटति चली गई।।

                                                                 गुण-गान

जेतेआदिबसतअसाघ बसुधा मैं ब्‍याधि,
होते ते सुसाध देती जो पराग मूठी तैं।।
जाख से जलोदर कराल कमलोदर पै,
काठ से कठोदर पै कालिका सी रूठी तैं।।
अधम अधंगे मति भंगे जो अपंगे गंगे,
होत चट चंगेयामैं सत्‍य है न झूठी तैं।।
पातक पितज्‍वर विपत्तिविपमज्‍वर की,
काल से कफज्‍वर की औपधि अनूठी तैं।।

मुंडन पर उक्ति
जनमति संगी अंग जाको मम अंग ही तैं,
चल्‍यों गंग न्‍हान जातें संग यों विगारिगो।।
चलतहिं आदि ही तें अनमन होन लारयो,
जान्‍योना ‘द्विजेश’ कौनब्‍याधि कोपकरिगो।
कैकै किते जत्‍न सो प्रयाग लौं पहुँचि केहूँ,
अन्‍त मों पैं मुंडन को यो असौंच परिगो।।
मेरो मित्र पाप जो परम प्रिय मोको हाय,
पहुँच्‍यों न गंग पौर पंथ ही मैं मरिगो।।

यम के नाम
श्री जमराज जू। ‘द्विजेश’ को प्रनाम, हैं-
अराम, आठो जाम तौ कुशल नेक चहियो।
आज हौं अह्नाए गंग पाए विश्‍वनाथ पद,
होत फल याको जो सोजानि जिय लहियो।
जानते हो जैसो संभु, गंग की तरंग जैसी,
तूहूँ चित्रगुप्‍त बैठे चुपैचाप रहियो।।
देत हूँ चेताई भाई बनि न परैगी मोसों,
अब फेरि कोऊ मोहिं पातकी जु कहियो

यमदूत की विवशता
जम गन भाख्‍यो गति गंगजम सों ‘द्विजेश’,
कहि जम कोपि ”गंग सोंहै तोहिंका प्रसंग।
कह्यों,”स्‍वामि। गंग तें तो नितहम होते तंग,
सोई गंग कै रही तिहारी प्रभुता को भंग।
पूँछयोपुनिकौनगंग?कैसी गंग’कह्यो, नाथ-
जाके अंग मिली हैं तिहारी भगिनी हूँ-संग”
”गंगै कहा गुन-ढ़ंग”कह्यो,”पीनपापिन कों,
गंग गंग कहे गंगधर सों मिलानी गंग”।

यमराज का उलाहना
आय जम शिवहिं जवाब दीनी चाकरी सों,
”या अनीति हौं तो अब कब लौं सहा करैं।
पुन्‍य बारे स्‍वत ही सिधारैं सुरलोक सबै,
जोगकारे चाहैं जितै तितही रहा करैं।।
ज्ञान-बारे गुनहिं न पाप पुन्‍य एकौ कछू,
मग्‍न ह्वै ‘द्विजेश’ मुक्ति मार गचहा करैं।।
पतित कतारैं तिन्‍हें गंगैं देति तारे, हम-
झूठे जम-द्वारे बीच बैठि कै कहा करैं।।

ब्रह्मा का पश्‍चाताप
जम को उराहनो सुनत बोले यों बिरंचि,
‘तू तैं मोंहिं दूनो है ‘द्विजेश’ दुख दाहे को।।
हूँ जो दये गंग तो सगर सूनु के प्रसंग,
नहिं कछु सारे पीन पातकी पनाहे को।।
भूलि परे नाहक भगीरथ की भूमिका मैं,
आपनो न तौ प्रबंध चेते चित चाहे को।।
काह कहैं जो पै कहूँ ऐसो जानते तो भला,
जीतेजान जाह्नवी को जान देते काहे को”।

कामना
अति दुख सों मैं दौरि गंग मैया तेरे पौर,
आयों जानि हानि तातें मोंयों बिनै बानीतैं।।
ह्वै के दीन अनाधीन अति पातकी जु पीन,
जान्‍यों हौं ‘द्विजेश’ है प्रवीन दया दानी तैं।।
मानै जु तो मानै नहिं मानै तो सुनै मों यह,
विनय ‘द्विजेश’ हठ सठ ज्ञान हानी तैं।।
प्रिय तौ जु करुना कसम करुनैं की सोई,
करु ना जु मों पै अब करुनानिधानी तैं।।

लेखक परिचय:(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।  (मोबाइल नंबर +91 8630778321;

वॉर्ड्सऐप नम्बर+919412300183)

कीट-कीस के सौजन्य से मिनी मैराथन का आयोजन

सभी के लिए शिक्षा विषयक पट्टथॉन मेराथन में लगभग 6,000 महिलाएं साड़ी में दौड़ीं

भुवनेश्वर। कीट-कीस-कीम्स के संस्थापक प्रोफेसर अच्युत सामंत के दिशानिर्देश और ऐतिहासिक पहल पर गत 25 जनवरी को सुबह 7.00 बजे से 8.00 बजे तक ओड़िशा के अलग-अलग जिलों में मिनी मैराथन आयोजित हुआ। भुवनेश्वर में आयोजित सभी के लिए शिक्षा विषयक उस पट्टथॉन मेराथन में लगभग 6,000 महिलाएं साड़ी में दौड़ीं।गौरतलब है कि एडुकेशन फॉर ऑल विषयक मेराथन भारत और विदेशों के विभिन्न शहरों में भी सफलतापूर्व आयोजित किया गया। 2025 वर्ष में यह आयोजन ओडिशा के कुल 37 स्थानों और पूरे भारत के लगभग 65 से अधिक स्थानों पर आयोजित हुआ। भुवनेश्वर में इस कार्यक्रम का विशेष आकर्षण था जिसका नाम था “पट्टाथॉन मिनी मेराथन” जिसमें लगभग 6000 महिलाएं साड़ी में दौड़ीं।

प्रतिभागी महिलाएं स्थानीय शिखरचंडी मंदिर चौक से कीस एथलेटिक्स स्टेडियम तक दौड़ीं।इस मेराथन को बढ़ावा देने के लिए इसे प्रतियोगिता का स्वरुप भुवनेश्वर में  प्रदान किया गया जिसमें राउरकेला की किरण महतो ने 50,000 रुपये का पहला पुरस्कार हासिल किया जबकि कटक की तेजस्विनी  किस्सपोट्टा और सस्मिता बेहरा ने क्रमशः 40,000 रुपये और 30,000 रुपये का द्वितीय और तृतीय पुरस्कार जीता। सात उपविजेताओं को 10-10 हजार रुपये दिए गए साथ में एक-एक साड़ी भी पुरस्कार के रुप में भेंट की गई।गौरतलब है कि इस अनोखे  कार्यक्रम का आयोजन कीट-3 लेडीज क्लब ने किया था। मेराथन के समापन समारोह की मुख्य अतिथि के रुप में श्रीमती सुरमा पाढ़ी, ओडिशा विधान सभा की  स्पीकर; सम्मानित अतिथि के रुप में श्रीमती सुलोचना दास, भुवनेश्वर महानगर निगम की महापौर; प्रीतिनंद राउतराय, नगरपार्षद और ओलंपियन दुती चंद और अनुराधा बिस्वाल आदि मंचासीन थे। प्रोफेसर अच्युता सामंत, संस्थापक, कीट-कीस ने अपने संबोधन में आयोजन को महिला शक्तिकरण की दिशा में एवं विकसित भारत के बढ़ते कदम की ओर के लिए मील का पत्थर बताया। मौके पर कीट डीम्ड विश्वविद्यालय,भुवनेश्वर के कुलपति  सरनजीत सिंह और अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।

मामस,भुवनेश्वर ने लगाई दो दिवसीय प्रदर्शनी

भुवनेश्वर। मारवाड़ी महिला समिति भुवनेश्वर ने 27-28 जनवरी को स्थानीय यूनिट-3 स्थित नेत्रहीन सभागार में दो दिवसीय प्रदर्शनी लगाई है। प्रदर्शनी का औपचारिक रुप से उद्धाटन बतौर मुख्यअतिथि चंदना दास,एसडब्लूएआर ने की। गौरतलब है कि मारवाड़ी महिला समिति की अध्यक्षा जूही अग्रवाल के नेतृत्व में आयोजित इस दो दिवसीय प्रदर्शनी सह विक्री आयोजन में कटक-भुवनेश्वर के कुल 30 स्टॉल लगे हैं।

 मुख्य अतिथि चंदना दास ने अपने संदेश में यह बताया कि आज नारी सशक्तिकरण के लिए महिलाओं को स्वावलंबी होना बहुत जरुरी है और यह प्रदर्शनी सह विक्री आयोजन निश्चित रुप से स्वरोजगार से जुड़ी मारवाड़ी महिलाओं को प्रोत्साहित करेगी। वहीं अध्यक्षा जूही अग्रवाल ने बताया कि यह मामस केन्द्र के दिशानिर्देश के आधार पर महिलाओं को स्वरोज के प्रति जागरुक और प्रोत्साहित करने की दिशा में एक सफल प्रकल्प है। आयोजन में जूही अग्रवाल,अध्यक्षा,सचिव शिवांगी गोयनका,कोषाध्यक्षा रिंकू दरुका,प्रवीणा भण्डारी,स्नेहा गुप्ता और नीलम अग्रवाल आदि का पूर्ण सहयोग देखा गया। प्रदर्शित स्टॉल  हस्तनिर्मित वस्त्रों,आभूषणों,गृहसज्जा की सामग्रियों और अन्यान्य घरेलू काम में आनेवाली सामग्रियों से सजी नजर आईं।

मालदीव में ओशन व्यूज़ इंटीरियर्स की नई पेशकश

दुबई, संयुक्त अरब अमीरात

पुरस्कार-विजेता व दुबई-स्थित रियल एस्टेट कंपनी, SAMANA डेवलपर्स, ने ग्लोबल लक्ज़री लाइफ़स्टाइल ब्रांड ELIE SAAB के सहयोग से, ऑफ़िशियल तौर पर दुबई के मदिनत एरिना ELIE SAAB द्वारा SAMANA ओशन व्यूज़ इंटीरियर्स प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया। ये ऐतिहासिक विकास मालदीव में ELIE SAAB द्वारा पहली ब्रांडेड रियल एस्टेट प्रोजेक्ट और SAMANA डेवलपर्स द्वारा उद्घाटन ब्रांडेड उद्यम का प्रतीक है।

मालदीव द्वीपसमूह के बीच स्थित, ELIE SAAB द्वारा SAMANA ओशन व्यूज़ इंटीरियर्स एक प्रमुख लोकेशन पर स्थित है, जो हनीमाधू हवाई अड्डे से सिर्फ़ 20 मिनट की स्पीडबोट की सवारी या माले से 45 मिनट के सीप्लेन द्वारा सफ़र की दूरी पर है। 507,651 वर्ग फ़ुट में फ़ैला हुआ, ये ख़ास 190-कुंजी विकास एक बेहतरीन अनुभव प्रदान करता है, जिसमें शानदार समुद्र तट विला, पानी के ऊपर बंगले और परिष्कृत पूलसाइड अपार्टमेंट का चयन शामिल है। प्रत्येक आवास को सोच-समझकर डिज़ाइन किया गया है ताकि निवासी मालदीव की सुंदरता में पूरी तरह से डूब जाएँ, साथ ही इसमें ELIE SAAB द्वारा ऐसे इंटीरियर्स की पेशकश है जो लक्ज़री के लिए ब्रांड के दूरदर्शी दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। इन डिज़ाइन्स में आधुनिक परिष्कार के साथ शाश्वत रम्यता मिश्रित है, और हल्के न्यूट्रल टोन्स, प्रीमियम फ़ैब्रिक्स और रिफ़ाइंड फ़िनिश का इस्तेमाल करते हैं जो हैरतंगेज़ प्राकृतिक परिवेश के साथ सहजता से सामंजस्य बिठाते हैं।

SAMANA डेवलपर्स के CEO इमरान फ़ारूक ने कहा, “हमारी रणनीतिक दूरदर्शिता और दुबई के आर्थिक परिदृश्य की गहरी समझ ने Samana डेवलपर्स को शहर का सातवां सबसे बड़ा डेवलपर बनने के लिए प्रेरित किया है।. ये विशेषज्ञता अब ELIE SAAB द्वारा SAMANA ओशन व्यूज़ इंटीरियर्स में सन्निहित है, जो एक शानदार गंतव्य बनाने के लिए एक साझा दृष्टिकोण की परिणति है जहां लक्ज़री, डिज़ाइन व प्राकृतिक सुंदरता का संगम होता है। हमें ELIE SAAB के साथ इस पार्टनरशिप पर बेहद गर्व है।“

ELIE SAAB ग्रुप के CEO ELIE SAAB Jr. ने कहा, “हम इस शानदार प्रोजेक्ट  Samana डेवलपर्स के साथ सहयोग करके सम्मानित महसूस कर रहे हैंजो वैश्विक स्तर पर विशिष्ट गंतव्यों में हमारे ब्रांड के रणनीतिक विस्तार में एक अहम कदम है। ये विकास हमारे गहनअनूठे जीवनशैली अनुभवों को गढ़ने के हमारे दृष्टिकोण को दर्शाता है जो विलासिता और व्यक्तित्व के उच्चतम मानकों को कायम रखते हुए रम्यता और परिष्कार के हमारे दर्शन को मूर्त रूप देता है। मालदीव मारे बढ़ते वैश्विक पोर्टफ़ोलियो में एक महत्वपूर्ण योगदान का प्रतिनिधित्व करता हैक्योंकि हम दुनिया भर में रणनीतिक स्थानों में बेहतरीन प्रोजेक्ट्स प्रदान करना जारी रखते हैं। 

कॉर्पोरेट ब्रांड मैसन के CEO, मैसिमिलियानो फ़ेरारी, WW लाइसेंसधारी ELIE SAAB मैसन ने कहा, समान ओशियन व्यूज़ के इंटीरियर्स में बेहतरीन इतालवी शिल्प कौशल के साथ तैयार किए गए ELIE SAAB मैसन फ़र्नीचर और होम डेकोर कलेक्शन के फ़ीचर्स होंगे। प्रत्येक टुकड़े को मालदीव के पर्यावरण की गहरी समझ के साथ डिज़ाइन किया गया हैजिससे ये पक्का होता है कि इस कलेक्शन की सुंदरता और क्वालिटी इस लोकेशन की अनूठी सुंदरता के साथ पूरी तरह से मेल खाए। 

ELIE SAAB द्वारा SAMANA ओशन व्यूज़ इंटीरियर्स रिज़ॉर्ट-स्टाइल लिविंग के लिए डिज़ाइन की गई विश्व-स्तरीय सुविधाओं की एक बेहतरीन रेंज प्रदान करता है। स्पा और वेलनेस सेंटर में मेहमान आराम फ़रमा सकते हैं, ख़ास अरबी और जापानी रेस्तरां सहित बढ़िया खाने के प्रतिष्ठानों में विविध पाक व्यंजनों का ज़ायका ले सकते हैं, या ऑन-साइट डाइव सेंटर और वॉटरस्पोर्ट्स फ़ैसिलिटीज़ के ज़रिये मालदीव के पानी के नीचे के अजूबों को एक्सप्लोर कर सकते हैं। इस प्रॉपर्टी में कई पूल, एक अत्याधुनिक फ़िटनेस सेंटर, और परिवारों के लिए समर्पित मनोरंजन विकल्प भी हैं। इस प्रोजेक्ट में कोरल बहाली की पहलों को एकीकृत किए जाने के साथ, स्थिरता विकास में एक अहम भूमिका निभाती है।

AED 2.2 बिलियन का ये विकास, जिसे 2029 में पूरा करने के लिए निर्धारित किया गया है, दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित स्थलों में से एक में एक बेजोड़ लाइफ़स्टाइल का वादा करता है।

SAMANA डेवलपर्स का परिचय

SAMANA डेवलपर्स, बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय पोर्टफ़ोलियो के साथ एक पुरस्कार-विजेता व दुबई-स्थित रियल एस्टेट डेवलपर है।

सतत एवं खूबसूरत लिविंग स्पेसेस बनाने पर फ़ोकस के साथ, SAMANA डेवलपर्स ने 2024 में टॉप सात उच्चतम ऑफ़-प्लान विक्रेताओं तक पहुंचने के लिए रेसिडेंशियल और कमर्शियल प्रोजेक्ट्स की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान की है।

अपने नवोन्मेषी डिज़ाइन, प्रीमियम फ़ीचर्स और प्रमुख स्थानों के लिए जाने जाने वाले, SAMANA डेवलपर्स के प्रोजेक्ट्स ने संयुक्त अरब अमीरात के रियल एस्टेट मार्केट में नए मानक स्थापित किए हैं। उत्तमता के प्रति कंपनी के समर्पण ने उन्हें बेहतरीन मूल्य और निवेश के अवसर प्रदान करने के लिए प्रतिष्ठा अर्जित की है, 1,000 से भी ज़्यादा यूनिट्स सौंपे गए और 10,000 यूनिट्स का निर्माण चालू है।

SAMANA ने अग्रणी संकल्पनाओं, नए डिज़ाइनों और स्थिरता के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त किए हैं।

और ज़्यादा जानकारी के लिए, कृपया यहाँ विज़िट करें www.samanadevelopers.com.

Deepika Guleria 
Senior Executive – Media Relations

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फिल्म 2020 दिल्ली, दिल्ली दंगों की अनकही सच्चाई को सामने लाती है

भारत की पहली सिंगल-शॉट पूर्ण लंबाई की हिंदी फीचर फिल्म 2020 दिल्ली का ट्रेलर जारी हो चुका है। यह फिल्म 2020 के दिल्ली दंगों की पृष्ठभूमि पर आधारित है। साथ ही साम्प्रदायिक तनाव, राजनीतिक साजिशों और असाधारण परिस्थितियों में फंसे आम नागरिकों के संघर्षों को उजागर करती है।

फ़िल्म बतायेगी कि कैसे शाहीनबाग से शुरू हुआ CAA विरोध  “नमस्ते ट्रम्प” तक पहुँच गया।  ‘2020 दिल्ली’ 24 फरवरी 2020 के एक पूरे दिन की कहानी है , जब एक तरफ़ डोनाल्ड ट्रम्प दिल्ली में थे और दूसरी तरफ़ शहर दंगों की आग में जल रहा था। इन दंगों में 53 लोगों की जान गई ।

2020 दिल्ली के माध्यम से फिल्म निर्माता देवेंद्र मालवीय ने इन्हीं दिल्ली दंगों की कड़वी सच्चाई को सामने लाने की कोशिश की है, जो हाल के इतिहास की सबसे विभाजनकारी घटनाओं में से एक है। मालवीय ने कहा, “इतने भयावह दंगों और आगजनी को सिंगल शॉट आभास देना बहुत बड़ी चुनौती थी, यह फ़िल्म इस बात का प्रमाण है कि जब रचनात्मकता और दृढ़ संकल्प साथ आते हैं, तो एक फ़िल्ममेकर अपना लक्ष्य हासिल कर ही लेता है ।”

यह फिल्म पड़ोसी देशों में हिंदू अल्पसंख्यकों की दुर्दशा को भी उजागर करती है।खासतौर पर इन देशों में हिंदू बेटियों के रेप , हत्या , धर्मांतरण के साथ ही बंधुआ गुलामी जैसे अत्याचारों के से त्रस्त भारत आने की आस में मर रहे असंख्य हिंदुओं के दर्द को बयान करेगी 2020 दिल्ली । देवेंद्र मालवीय बताते हैं वन शॉट तकनीक में पटकथा, कोरियोग्राफी, एक्टिंग, लाइटिंग ,सेट्स, सबके बीच सही तालमेल से ही मनचाहा शॉट मिल पाता है । जहाँ गलती छुपाने गुंजाइश ही नहीं है ।इसिलिये वन शॉट फ़िल्म सिनेमा का एक अलाव अनुभव है। जिसमे दर्शक को फ़िल्म के अंदर होने का आभास होता है । जो एक अविस्मरणीय सिनेमाई अनुभव  हैं।

देवेंद्र मालवीय का फिल्मी सफर दृढ़ता और साहस का प्रतीक है। मुंबई में एक महत्वाकांक्षी अभिनेता के रूप में अपना करियर शुरू करने के बाद, उन्होंने कई चुनौतियों और अस्वीकृतियों का सामना किया। लेकिन हार मानने के बजाय, उन्होंने पारंपरिक फिल्म उद्योग के बाहर अपनी अलग राह बनाई।

2020 दिल्ली के साथ, मालवीय ने यह साबित कर दिया है कि प्रभावशाली सिनेमा बड़े स्टूडियो या स्थापित नेटवर्क के बिना भी सफल हो सकता है। उनका काम समर्पण और नवीन कहानी कहने की शक्ति को उजागर करता है, जो देशभर के स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं को प्रेरणा प्रदान करता है।

फिल्म में ब्रिजेंद्र काला, समर जय सिंह, सिद्धार्थ भारद्वाज, भूपेश सिंह, चेतन शर्मा और आकाश अरोरा जैसे कलाकारों की टीम है।


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कर्नाटक के सेडम में 9 दिवसीय भारतीय संस्कृति उत्सव 29 जनवरी से विराट और भव्य भारत का होगा दर्शन, सज्जनशक्तियों का अनोखा संगम

हैदराबाद, 24 जनवरी।

प्रयागराज में चल रहे आध्यात्मिक महाकुंभ के बीच दक्षिण का राज्य कर्नाटक का सेडम शहर एक वैश्विक सांस्कृतिक महाकुंभ के लिए तैयार हो रहा है। कलबुर्गी जिले के सेडम में 29 जनवरी से आरंभ हो रहे 9 दिवसीय आयोजन का नाम है- भारतीय संस्कृति उत्सव-7। आयोजन का थीम है- प्रकृति केन्द्रित विकास। भारत विकास संगम और विकास अकादमी ने संयुक्त रुप से इसे आयोजित किया है। निमंत्रण पत्रिका पर ऊपर में लिखा है- सज्जन शक्तियों का अनोखा संगम।

भारत विकास संगम का यह आयोजन हर तीसरे साल होता है। अबतक छह आयोजन हो चुके हैं। सातवां संस्कृति उत्सव श्री कोत्तल बसवेश्वर भारतीय शिक्षण समिति की स्थापना के पचास साल पूरे होने के उपलक्ष्य में किया जा रहा है। 28 जनवरी को आयोजन के निमित्त दो शोभायात्राएं निकलेंगी। पहली शोभायात्रा कलबुरगी में सुबह 09 बजे शुरू होगी ठीक उसी समय सेडम में एक दूसरी शोभायात्रा शिवशंकर शिवाचार्य स्वामीजी के सान्निध्य में निकाली जाएगी।

कैसा होगा भारतीय संस्कृति उत्सव-
भारतीय संस्कृति उत्सव की संचालन समिति के राष्ट्रीय संयोजक श्री माधव रेड्डी यड्मा के मुताबिक सेडम के प्रकृति नगर में 29 जनवरी से शुरू होकर 6 फरवरी तक चलने वाला मुख्य समारोह 240 एकड़ विस्तृत भूमि पर होगा। इसमें विविध प्रकार के स्वदेशी उत्पादों के 900 स्टॉल होंगे। 9 थीम एक्जीविशन लगेंगे। अलग-अलग क्षेत्रों के 90 विशेषज्ञों के वैचारिक सत्र होंगे। उम्मीद की जा रही है कि 25 लाख विजिटर्स इस दौरान यहां आएंगे। व्यवस्था संभालने के लिए नौ हजार स्वयंसेवकों की तैनाती रहेगी।
उत्सव का आयोजन जिस विशाल परिसर में हो रहा है, जिसका नाम महान संत श्री सिद्धेश्वर स्वामी जी की स्मृति में प्रकृति नगर रखा गया है। इसमें 24 एकड़ भूमि पर 70 हजार लोगों के बैठने के लिए सभागार बनाया जा रहा है जिसमें सभी 9 दिन मुख्य समारोह होंगे। सायं काल में प्रत्येक दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम भी इसी के मुख्य मंच से होगा। इसके अलावे दो- दो हजार लोगों के बैठने की क्षमता वाले यनिगुंडी माते मनिकेश्वरी मंडप और जम्बलदिन्नी सभा मंडप भी तैयार हो रहा है। कृर्षि पद्धति औऱ एकीकृत जैविक खेती के लिए 11 एकड़ में कृषि लोक है। विज्ञान प्रदर्शनी के लिए 6 एकड़ आवंटित है। कलालोक में विविध कार्यशालाएं और प्रदर्शनियों के लिए दो एकड़ भूमि आवंटित है।

किस दिन क्या होगा खास-
9 दिनों तक चलने वाले महोत्सव में अलग-अलग दिन अलग-अलग सम्मेलन होने हैं। पहला दिन मातृ शक्ति सम्मेलन होना है, जबकि दूसरे दिन शैक्षणिक सम्मेलन के नाम रहने वाला है। इसी तरह युवा सम्मेलन तीसरे दिन और ग्राम कृषि सम्मेलन चौथे दिन प्रस्तावित है। आहार आरोग्य सम्मेलन के लिए 2 फरवरी ( पांचवा दिन) की तिथि निर्धारित है और उद्योग स्वयं उद्योग के लिए छठा दिन। सातवें दिन पर्यावरण सम्मेलन, आठवें दिन सेवा शक्ति सम्मेलन और अंतिम यानि 9वें दिन देश-धर्म- संस्कृति सम्मेलन होगा। समापन के दिन सायं काल में अनिवासी भारतीयों का सम्मान समारोह भी होगा। 7 फरवरी को एक विशेष आयोजन हो रहा है, जहां देश के जाने-माने विचारक-चिंतक और भारत विकास संगम के संस्थापक श्री के.एन गोविंदाचार्य के अभिनंदन एवं सहत्र चंद्र दर्शन कार्यक्रम भी आयोजित है।

कौन- कौन होंगे विशेष आकर्षण-
भारतीय संस्कृति उत्सव के लिए विविध प्रकार के प्रचार सामग्रियां हिंदी, अंग्रेजी, कन्नड और तेलुगू भाषा में छपी हैं। मुख्य आमंत्रण पत्र 52 पेज का है, जिसमें हर दिन होने वाले कार्यक्रमों की समय सारणी अतिथियों के नाम सहित प्रकाशित है। अतिथियों में जो नाम प्रमुख हैं और चर्चित हैं, उनमें पूर्व राष्ट्रपति श्रीरामनाथ कोविंद, भारत रत्न क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, इंफोसिस वाली श्रीमती सुधा मूर्ति( सांसद), कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरामैया, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले, श्रीराम मंदिर ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष गोविंद गिरि जी महाराज, पूर्व जस्टिस शिवराज वी पाटिल, इसरो प्रमुख डॉ. एस सोमनाथ, एनएएफटी के चेयरमैन डॉ. अनिल सहस्त्रबुद्धे, यूजीसी के पूर्व चेयरमैन डॉ. जे एस राजपूत, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष विजयेन्द्र येदियरप्पा, अभिनेता रमेश अरविंद, लेखक चक्रवर्ती सुलीबेले, डॉ. नूमल मोमिन, पद्मश्री दीपा मलिक, पुणे के पद्मश्री मुरलीकांत पेटकर और ब्रह्माकुमारीज के सचिव डॉ. मृत्युंजय, केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान, मनसुख मंडविया, एच डी कुमारस्वामी, सुश्री शोभा करंदलाले, वी सोमन्ना, तेलंगाना के राज्यपाल जिष्णुदेव शर्मा, पद्मभूषण डॉ. इंदरजीत कौर, दीनदयाल शोध संस्थान के श्री अतुल जैन, जल पुरुष राजेन्द्र सिंह, योगऋषि बाबा रामदेव, मिलेटमैन डॉ. खादर वली, कैप्टन गोपीनाथ, पद्मश्री नीलिमा मिश्रा, पद्मश्री जमुना ( रांची), पद्मश्री महेश शर्मा( झाबुआ), विधा भारती के श्री के.एन. रघुनंदन, झारखंड के विधायक सरयू राय, जीवन विद्या के डॉ. गणेश बागड़िया, वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री रामबहादुर राय प्रमुख हैं।

आयोजन के मूल सूत्रधार कौन-कौन-
भारतीय संस्कृति उत्सव का सातवां संस्करण जिनके दिमाग की उपज है उनका नाम है श्री के.एन गोविंदाचार्य। बताने की जरुरत नहीं है कि वे कभी संघ के प्रचारक थे और बीजेपी के महासचिव (संगठन) भी। उन्होंने ही वर्ष 2004 में भारत विकास संगम की स्थापना की। उनके संकल्प को जमीन पर उतारने के काम में वर्षों से लगे हैं- सेडम निवासी पूर्व सांसद और जाने-माने समाजसेवी श्री बसवराज पाटिल। पूरे आयोजन को विजयपुर, कर्नाटक वाले श्री सिद्धेशवर स्वामीजी का संरक्षण प्राप्त है। हैदराबाद के श्री माधव रेड्डी आयोजन के राष्ट्रीय संयोजक हैं। अक्षर वनम नामक उनका शैक्षणिक प्रकल्प बहुत ही प्रसिद्ध है।

उत्सव को लेकर क्या कहते हैं गोविंदाचार्य-
उत्सव के प्रेरणास्त्रोत श्री के एन गोविंदाचार्य सभी को आयोजन में सहभागी बनने का अनुरोध करते हुए कहते हैं, देखें कि समाज में सज्जन शक्तियां कितनी सक्रिय हैं और विविध क्षेत्रों में कितना अच्छा काम कर रही हैं। मिलें उन तमाम लोगों से जो आपके जीवन में एक नया आयाम जोड़ सकते हैं। समझें कि भारत के विकास में समाज की कितनी मह्त्वपूर्ण भूमिका है। जरुरत है कि समाज आगे बढ़कर सरकार को रास्ता दिखाए। गोविंदाचार्य कहते हैं- यह उत्सव भारत की प्राचीन संगम परंपरा का ही नया रुप है। सज्जन शक्तियों के बीच संवाद, सहमति और सहकार का माहौल बने इसके लिए प्रयास है। वे आग्रह करते हैं कि सभी इस आयोजन का हिस्सा बनें और भारत के एक अदभूत स्वरुप का अपनी आंखो से स्वयं साक्षात्कार करें।

राष्ट्रकवि बलराम मिश्र ‘द्विजेश’ का व्यक्तित्व और कृतित्व

जन्म दिवस 25 जनवरी के अवसर पर

पंडित बलराम प्रसाद मिश्र द्विजेश हिन्दी साहित्य के रीति काल के अंतिम प्रतिनिधि कवि थे। वह काव्य धारा की सारी शक्तियों को उत्कर्ष पर पहुंचाते हुए बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक साहित्य सृजन करते रहे। उनके शरीर छोड़ने तक हिन्दी साहित्य में तीसरा सप्तक आ चुका था। उन्होंने अपनी काव्य रचना में देव और पद्माकर का ही रंग बनाए रखा। अपनी हिन्दी की रचनाओं के अलावा द्विजेश ने उर्दू और फारसी में शेरो-शायरी और गजलें भी लिखीं।

प्रतिष्ठितसरयूपारीण जमींदार परिवार में द्विजेश का जन्म माघ कृष्ण 11, संवत 1929 विक्रमी तदनुसार 25 जनवरी 1886 ई. को बस्ती उत्तर प्रदेश के निकट मिश्रौलिया नामक ग्राम में हुआ था। बस्ती राज परिवार से इनका निकट का नाता था। संस्कृत, संगीत और साहित्य की खुशबू मानो इनके रग-रग में बसी थी। औपचारिक स्कूली शिक्षा का चलन उन दिनों बहुत कम होने के बावजूद तत्कालीन प्रथा के अनुसार उन्होंने हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, फारसी तथा सामान्य गणित की शिक्षा ग्रहण की थी। नगर पालिका बस्ती रोडवेज चौराहे से पुरानी बस्ती जाने वाले मार्ग को उनके नाम पर द्विजेश मार्ग का नामकरण भी किया है। पाण्डेय स्कूल के समाने द्विजेश भवन भी उनके शुभ चिन्तकों ने बनवा रखा है। यहां कभी कभार साहित्यिक कार्यक्रम भी होते रहे हैं।

प्रमुख कृतियां:-

1. अप्रकाशित गजल संग्रह हस्ती:-

शेरो-शायरी से जुड़ा संग्रह ‘हस्ती’ आज तक नहीं छप सका है।

2.द्विजेश दर्शन:-

काव्य रचना संग्रह द्विजेश दर्शन उनका एक मात्र संग्रह रहा है। किशोरावस्था से ही द्विजेश ने काव्य रचना शुरू कर दी। ब्रजभाषा कविता की मुख्य धारा में थी। रचनाओं में वह एक सिद्धहस्त कवि के रूप में दिखाई देते हैं। वे रचनाएं लिखते गए लेकिन उनके संयोजन और प्रकाशन की ओर द्विजेश का ध्यान कभी नहीं रहा। वह प्रकाशन के प्रति बहुत लापरवाह रहे। उनके पुत्र प्रेमशंकर मिश्र ने प्रयास करके ब्रजभाषा में रचित कविताओं का संग्रह द्विजेश दर्शन का कुछ अंश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सौजन्य से प्रकाशित कराया है। जो कुछ द्विजेश दर्शन में छप सका वह रचनाओं का मात्र एक चौथाई हिस्सा ही है।

 द्विजेश दर्शन की भूमिका में श्री नारायण चतुर्वेदी ने लिखा है कि इनके लेखन की बात ही कुछ और है। अपने व्यक्तिगत काव्य प्रेम के कारण अपने आसपास के बहुसंख्य लोगों को साहित्य से जोड़ने का काम द्विजेश ने किया है। डा.रसाल ने द्विजेश के बारे में कहा था कि, शब्द उनके दास थे। जबकि डा. संपूर्णानंद ने लिखा कि, ब्रजभाषा के बुझते दीपक के इन पतंगों के प्रयत्न मेरे मन में आदर का भाव उत्पन्न करते हैं। मेरा ऐसा विश्वास है कि द्विजेश की काव्य रचनाओं में पाठक को तृप्ति का एहसास होता है। चेहरे मोहरे से किसी मुगल बादशाह की झलक देने वाले द्विजेश वेशभूषा और खानपान की शैली के नाते भी मशहूर थे। वह भारत की सभ्यता यात्रा में एक पड़ाव के प्रतिनिधि थे।

साहित्यकारों द्वारा प्रशंसाः- डा.संपूर्णानंद, डा.वागीश शुक्ल, डा. अरुणेश नीरन, श्रीनारायण चतुर्वेदी सहित तमाम लोगों ने अपने संस्मरणों में द्विजेश द्वारा रचित ब्रजभाषा काव्य को शब्द चमत्कार, ऊंची उड़ानों वाले अलंकार और अक्षर मैत्री का अद्भुत संयोजन करने वाला काव्य साहित्य बताया है। भक्ति भाव की प्रधानता वाले काव्य में उन्होंने अनूठी कल्पनाओं के साथ एक खास तरह के रंगारंग संयोजन को पिरोया है।

द्विजेश दर्शन की भूमिका में श्रीनारायण चतुर्वेदी ने लिखा है कि इनके लेखन की बात ही कुछ और है। अपने व्यक्तिगत काव्य प्रेम के कारण अपने आसपास के बहुसंख्य लोगों को साहित्य से जोड़ने का काम द्विजेश ने किया है। डा.रसाल ने द्विजेश के बारे में कहा था कि, शब्द उनके दास थे। जबकि डा.संपूर्णानंद ने लिखा कि, ब्रज भाषा के बुझते दीपक के इन पतंगों के प्रयत्न मेरे मन में आदर का भाव उत्पन्न करते हैं। विश्वास है कि द्विजेश की काव्य रचनाओं में पाठक को तृप्ति का एहसास होता है। चेहरे मोहरे से किसी मुगल बादशाह की झलक देने वाले द्विजेश वेशभूषा और खानपान की शैली के नाते भी मशहूर थे। वह भारत की सभ्यता यात्रा में एक पड़ाव के प्रतिनिधि थे।

प्रेमशंकर मिश्र काअभिमत संस्मरण:-

पं. बलराम प्रसाद मिश्र द्विजेश के लिए उन दिनों देश के जाने माने दिग्गज कवि कलावंत महीनों मेरे यहाँ ठहरते। सुबह- शाम अखंड काव्य और संगीत गोष्ठियाँ हुआ करती थीं। महाकवि जगन्नाथदास रत्नाकर पं. अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध, पं. रमा शंकर शुक्ल रसाल के अतिरिक्त रीवां के महाकवि ब्रजेश, पं. बालदत्त, यज्ञराज, विचित्र मित्र ऐसे आचार्य कवि, अजीम खाँ, झंडे खाँ ऐसे उस्ताद यनायत खाँ ऐसे सितारवादक, उनके पुत्र उस्ताद अजीम खाँ साहब ऐसे संगीतज्ञों की सन्निधि मुझे बचपन से प्राप्त हुई है। आज के आफताबे गजल उस्ताद मेहंदी हसन और सितार नवाज उस्ताद शाहिद परवेज ऐसे आज के विश्व विश्रुत कलाकारों का बचपना अपने पिताओं के साथ मेरे साथ गिल्ली गोली खेलते बीता है। इस तरह साहित्य और संगीत मेरी घुट्टी में रहा। विरासत में मुझे काव्य रचना और मेरे अग्रज और उनके पुत्र को सितार वादन मिला। सन 1959 में पिता का तिरोभाव हुआ।

डॉ. मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’ जी द्वारा मूल्यांकन:-

बस्ती जनपद के स्वनामधन्य  साहित्यकार डा. मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’ ने बस्ती के छन्दकारों का साहित्यिक योगदान भाग 1 में पृष्ठ 91 से 111 तक द्विजेश जी का परिचय काव्य तथा शैली का वैज्ञानिक विवरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने वन्दना, भक्ति दर्शन, गंगा गरिमा वर्णन, श्रृंगार खण्ड, नखशिख वर्णन, विविध प्रकरण तथा द्विजेशजी के रहन सहन को बड़े मार्मिक ढ़ंग से प्रस्तुत किया है। अपने विवरण के अन्त में डा. सरस जी ने लिखा है- ‘द्विजेशजी ब्रज भाषा श्रृंखला के अन्तिम सशक्त कवि थे। केशव व पद्माकर की परम्परा जिसे रंगपाल जी ने बस्ती के मंच पर स्थापित किया था द्विजेशजी ने अपने पाण्डित्य से गौरव दिया।….श्रृंगार के साथ साथ मानव जीवन के व्यवहारिक पक्ष पर लेखनी चलाकर द्विजेश जी ने यदि कविता की भाव भूमि को मानवीय चेतना दिया तो राष्ट्रीयता का मंत्र फूंक करके परतंत्र देश वासियों को स्वतंत्रता का संदेश भी दिया। द्विजेश जी की काव्यधारा वह मन्दाकिनी है जहां सन्त समागम का संगम और त्रिवेणी के पावनत्व का उद्गम है। 85 वर्षों तक द्विजेश जी ने बस्ती की धरती को निहारा और अन्ततः मनीषी साहित्य सूर्य अस्ताचल पहुंच साहित्य से विराम लिया।‘

द्विजेश दर्शन कविता संग्रह :-

भक्ति भाव की प्रधानता वाले काव्य में उन्होंने अनूठी कल्पनाओं के साथ एक खास तरह के रंगारंग संयोजन को पिरोया है। अपनी कविता में भगवान शिव को उलाहना देते हुए उन्होंने लिखा है कि यदि भोलनाथ ने उनका उद्धार नहीं किया तो वे पार्वती की अदालत में भक्ति को अपना वकील बनाकर मुकदमा लड़ेगें।

डिगरी इजराई में न तारिहौं दिगंबर तौं,

कोष करुना को कम कुरक करावैंगे।।

कुछ और छन्द नमूना स्वरूप प्रस्तुत है-

हाजिर हैं रावरे हजूर मजबूर ह्वै के,

मुक्ति- जुक्ति आपनी सु याही मन मौंजैंगे।।

चरन-सरोजैं जगदीस के धरेंगे सीस,

ऐसो ईस पाय आपदा मैं कहा ओजैंगे?

खातिर जमा हो खूब खातिर करेंगे हम,

रावरे जी खातिर अखातिरी न जोजैंगे।।

आप रोज रोजैं चहो और दीन खोजैं,

पै-‘द्विजेश’ दीनबंधु अब दूसरो न खोजैंगे।।

ए हो नाथ हौं तो कछु रोज तें सुनी है ऐसी,

दान असनान के कितेक फल पाए हैं।।

सोई जिस जानि मानि रावरे दया को ढ़ग,

दान-पात्र सो तेहिं ‘द्विजेश’ ठहराए हैं।।

कुस है कुकर्म, अघ अच्‍छत विपत्ति वारि,

दान द्रव्‍य दीरघ दिनाई दरसाए हैं।।

लागो प्रन पर्व को सुनी है कृपा सिंधु बीच,

कृपा सिंधु यातें हौं अन्‍हान आजु आए हैं।।

 

वंदना

धन्‍य तू प्रसिद्ध सब सिद्धिनि की सिद्धि, नबौ निद्धिनि की निद्वि तातें तौ सनिद्ध थामी मैं

परम पवित्र इष्‍ट मित्र तू त्रिदेवन की,

पेखि तेरो चित्र औ चरित्र चार धामी मैं।।

तोहिं जानि जाह्वी जननि जग-जीवन की,

पीवन मैं ज्‍यों पियूष पेखि अभिरामी मैं।।

भोसों के कुपथ गामी कीनी तैं सुपथगामी,

तातेंहे विपथ गामी। करत नमामी मैं।।

अवतरण

गेरी गिरापति की गिरी है जो गिरीस सीस,

हल सों हिमंचल के हिय मैं हली गई।।

ह्वाँते चलि मचलि मचावति जु घोर सोर,

तोरि फोरि ढोकनि को ढाँ‍कति ढली गई।।

पहुँची प्रयाग कै ‘द्विजेश’ कल-कौतुक यों,

 विंध्‍य-कासिका के प्रेम पथ यों पली गई।।

फेटति फवनि सीम मेटति सरस्‍वति को,

भानुजा को भेंटति समेटति चली गई।।

गुण-गान

जेतेआदिबसतअसाघ बसुधा मैं ब्‍याधि,

होते ते सुसाध देती जो पराग मूठी तैं।।

जाख से जलोदर कराल कमलोदर पै,

काठ से कठोदर पै कालिका सी रूठी तैं।।

अधम अधंगे मति भंगे जो अपंगे गंगे,

 होत चट चंगेयामैं सत्‍य है न झूठी तैं।।

पातक पितज्‍वर विपत्तिविपमज्‍वर की,

काल से कफज्‍वर की औपधि अनूठी तैं।।

2

भक्ति पै भगीरथ के आई भगी रथ संग,

धाम-नृप तीरथ के धाई धन्‍य धारती।।

विधि के कमंडल कीं हरि पौं प्रचंड ल की,

ईस-सीस मंडल की सुषमा सँवारती।।

जोम जम जारती उजारती पुरीजम की,

चित्रगुप्‍त पै ‘द्विजेश’ गजब गुजारती।।

आरति उतारती तु पापिनैं पखारती, न

अम्‍बा जिन्‍हैं तारती तु गंगा तिन्‍हें तारती।।

3

आई भूमि भुपति भगीरथ की ल्‍यायी हुती,

छाई हुती देखि तोहिं देबैं तरसत है।।

छीर-छबि देखि तौ छकित छीर सागर हू,

छार लखि आपनो पछार परसत है।।

रोज तौ ‘द्विजेश’ रोजगार रंगरेजी देखि,

 राव रंक तातें लै सरोज सरसत है ।।

कैसहू कुरंगे अति पापन सों रंगे सोऊ,

 गंगे रंगे रावरे सुरंगे दरसत है।।

4

कोऊ अंध अधीन ह्वै अधोमति के,

अध जल देत ही जु आधो सांस हुँचिगो।।

जम-गनजान्‍यो पै न जान्‍यो जाह्वी को उत,

चट-जम जातन की चाहना उमुचिगो।।

ज्‍यों ही चल्‍यो त्‍यों ही उत गेरत ही गंग गरे,

सिगरे सरीर सक्ति सक्ति मैं समुचिगो।।

जौलों जम-प्रेम पातकी लौं पहुँचन चाह्यो,

 तौलों वह पापी संभु पुर मैं पहुँचिगो।।

5

 

आचमन कीने आँच मन की समन होत,

साँच मन तौ ‘द्विजेश’ जाँचमन कीने तें।।

कीनें तें सँकल्‍प करै गंग तू तो काया कल्‍प,

जीवै अल्‍प जीवी सदा कलपन कीने तें।।

तेरे दरसन जम दरस न होत फेरि,

परसि न पावै पाप परसन कीने तें।।

अरपन कीने दरपन सों दिखात ब्रह्म,

नरपन जात तोमैं तरपन कीने तें।।

6

द्रुम मैं जु देखी कला कल्‍प कलपद्रुम की,

सब सबके जी अनुमान ऐसो भरिगो।।

कोऊ कहै वासन विरंचि तें गिरयो है बुन्‍द,

कोऊ यों कहै ‘द्विजेश’ जन्‍हु जंघा दरिगो।।

हरि-पद-पंकज को परिबो पराग कोऊ,

कोऊ कहै यों जटा गिरीस जू को गरिगो।।

मेरे जान गंग तेरे तारे काहू पातकी को,

भीनो चार पद को पसीनो कहूँ परिगो।।

7

होती जो न रंचिभरि तू विरंचि वासन मैं,

तो वे जग सासन को आसनै क्‍यों परते।।

तैसोई तहाँतें जो न गिरती गिरीस सीस,

वेऊ ईस मुक्ति वकसीस कैसे करते।।

लाल -काज द्रौपदी केकूल के दुकूल ही मैं,

श्रुति द्रुति सों ‘द्विजेश’ सूल कैसे हरते।।

काज यों कुविंद को गोविंद करिपाते कहा,

जो तौ बिंदु पग अरविंद मैं न धरते।।

8

आते ही जु प्रथमैं उदेसकेस मुंडन को,

जोयों मरयो मानो पाप अंगी जौन अंगा मैं।।

तापै पुनि न्‍हाइबे कों पूजा विधि पाइबे कों,

प्रोहितैं दिवाइबे को दान देन दंगा मैं।।

माह के महत्‍व ही तैं आपनो हू दै महत्‍व,

जो ‘द्विजेश’ चारहू पदारथ प्रसंगा मैं।।

मकर-अमा के मिस पाप ताप लूटिवे कों,

मानों इमि मकर भरयो है मातु गंगा मैं।।

9.

दीननि की संगी दीनता जो अरधंगी रूप,

तैसो पतितान पतिताहू संग धरती।।

जाते जब तेरे तीर न्‍हाते तौ ‘द्विजेश’ नीर,

तू तिन्‍हें सपतनीक प्रन सों पखारती।।

एकैं अति मोही एकैंअति निरमोही रूप,

मातु-सासु धर्म यों दुहूँ पै निरधारती।।

जातें धन्‍य धिक दोऊ किन मातु गंगे तोंहि,

 पुत्रैं जो दुलारती पतोहुनि को मारती।।

10.

जैसी तूजननि जग जान्‍हबी ह्वै जात्रिन की,

लाल आरोहावरोह जगजाकी यहीखेती है।

जाको जीव जातरूपजायारूपजीवनी त्‍यों,

सो तातें जनित धर्म कर्म सों सचेती है।।

पुत्र सों अधिक प्रिय होते जो पितामही के,

सोई दृश्‍य गंग मातु चार फल देती है।।

होते जबै गोते पातकीन के जु पोते रूप,

लैलै अंक ताको गंग चूमि चूमि लेती है।।

11

जाको आदि नाम गोसुपद हीतें धाम- ग्राम,

जो ‘द्विजेश’ अति अमिरामी ह्वै अनिंद के।।

जो गोलोकनाथ गोकुलेस तिमि गोपीनाथ,

त्‍यों गोपाल गोबरधनैं सों सुर-वृंद के।।

जद्यपि इतै गो वृंद ज्‍यों रविन्‍दैं अरविंद,

तौहूँ हरि प्‍यासे गंग तेरे बारि-विंद के।।

यानें केवलै गोविंद इमि करि पाते कहा,

होतो जो न तौ गो बिंदु पद मैं गोविंद के।।

12

जिन बसि तेरे तीस रेह कैसी लै सरीर,

वीर-वीर सेना से ‘द्विजेश’ जो सजक से।।

घाट वो कुघाट जो बिलोकते बटोही बाट,

जो विराट ठाट ठाटते ह्वै बेधरक से।।

देखते दुंखी जो दीन पेखते जु पापी पीन,

मलि मलि धोइ मन होते स्‍वच्‍छ बक से।।

धन्‍य ऐसे तेरे रज रजत समूह से जो,

तेरे राज तीरथ मैं राजते रजक से।।

13

ओममयी प्रकृति सुकृति सीमा सोममयी,

जोम मयी जम पै तू होम की अँगारा है।।

तेरो चित्र जो विचित्र सो ताको चरित्र ऐसो,

चित्र-चित्रगुप्‍त काटिबे को तौ किनारा है।।

चार पद देनी स्‍वर्ग वर्ग की निसेनी तुही,

देनी जो ‘द्विजेशी’ ऐसी तेरो आरपारा है।।

एक धारा अघ पै दुधारा दोप दारिद पै,

तैसो तिहूँ तापन पै त्रिविधि त्रिधाराहै।।

14

तू ही एक नद्द अनहद्द ऐसी आनंद की,

जो ह्वै के सनद्व प्रनवद्ध विरमैया तैं।।

मातु धर्म धारन तें अधम उधारन तें,

सब की सुधारन तें मरन समैया तैं।।

सो याको प्रतच्‍छ लच्‍छ सगर सपूतन लौं,

कीनी तिन्‍हैं पूतन सों पुनि जनमैया तैं।।

धन्‍य वे भगीरथ कि जाके रथ संग भागी,

भई धन्‍य-भाग भागी भागीरथी मैया तैं।।

15

जोग को जगावति भगावति विषय भोग,

विष वगरावति भुजंग विपधर की।।

जोवति न सोवति भिजोवति जरनि ज्‍वाल,

खोबति खराबी है ‘द्विजेश’ गर-गर की।।

काम को नआने देति क्रोधजी नजाने देति,

देतिना सतानेलोभ मोह के लहर की।।

हर हरि विघ्‍न सबै हर-हर बैन बोलि,

हर – हरजाम पाहरू है हरहर की।।

16

होती जो न विधि जल जंत्र मैं स्‍वतंत्र तो तू,

नृप-तप तंत्र पै गिरीस सीस जाती ना।।

होते जो जरे न सूनु सिगरे सगर के तौ,

सागर लौं जाय तिन्‍हैं बिगरै बनाती ना।।

जद्यपि भई यों जस भागी तू त्रिपथ भागी,

पै ‘द्विजेश’ भगीरथी तबहूँ कहाती ना।।

प्रेमनि पगी पगी सु माता सी सगी सगी,

भगीभगी भागीरथी के संग मैं जुआती ना।

17

दार नृप सांतनु की चारो फल देन दार,

 नद सरदार देवदारन सी ज्‍वै गई।।

सोनभद्र सरजू व सालिग्राम नामी नदी,

 गोई सब तोमैं तैं न काहू संग ग्‍वै गई।।

जैसो तब तरल तरंग त्‍यों सरल ढंग,

सत्रु सरनागती पै रंग निज ख्‍बै गई।।

काल की सहोदरी कलिंदी वह काली नदी,

तोमैं मिलि गंगे सोऊ गंगा आज ह्वै गई।।

18

सान्‍तुन के अंगज न थे क्‍या चित्रअंगदवे,

गंगज जो होते केहरी सों प्रान खोते ना।।

एक तेरे गर्भ मैं न होतो गुन-बर्व तो यों,

सर्व-गर्व-हारी द्वै प्रभू की धाक धोते ना।।

हरि प्रन तोरि त्‍यों परसुरामैं मुख मोरि,

मैन को मरोरिजोरि सेज-सर सोते ना।।

सांतनै-तनय होते होते कहा भीपम यों,

मैया गंग तू तैं जनमें जो आज होते ना।।

19

धन्‍य तेरी महिमा मही मैं आज मातु गंग,

 जानते हैं देव वो ‘द्विजेश’ जन जेते हैं।।

धन्‍य तव पण्‍डे जो प्रचण्‍डे जम दूत हूँ लौं,

 झण्‍डे गाड़ि पापिनैं जु पुन्‍य पथ देते हैं।

धन्‍यतो हजाम जिन जूमिजूमि आठो जाम,

 करिकै हजूम ऐसो इन्‍तजाम चेते हैं।।

कूढ़न को मूढ़न को जबा-बाल-बूढ़न को,

मूढ़न को मूढि़ पाप हूँ को मूढि़ लेते हैं।।

20

जेते नाम नीर के जु नद-सर के सरीर,

पैना गुनीते तिन्‍है जिन्‍हें यों आप ज्‍वै रही।।

आप नामैं आपदारि वारि सों उबारि दोष,

 पर्व जलसे को जस-जल से भिज्‍वै रही।।

पानीसोंसुपानी पोस,त्‍योंद्विजेश’ नीर हू यों,

ज्‍यों तुनीरतीर जासों जम ख्‍याति ख्‍वै रही।

जीवन तें जीवनैं पियूष पय पीवन सों,

अम्‍बु नामैं अम्‍बा जगदम्‍बा रूप ह्वै रही।।

21

जिन मुख तें ना सपने हूँ केहूँ राम-नाम,

पुन्‍य परिनाम हू न जाके नाम जद्दी को।।

केवलै जो अपकर्म ही को मानि पर्म धर्म,

खोये जीवनी को सोये नींद अनहद्दी को।।

पै जिन्‍हैं न तेरो आप जानतो न पापजातें-

जम चित्रगुप्‍त किया कैयों रूप रद्दी को।

नीर बिनु ज्‍यों सर सरोज रोज रद्दी, तिमि-

 तैसी जमगद्दी रोजनामचा मुसद्दी को।।

22

अद्भुत अंग सों अनूप है जो तेरो रूप,

तो ह्वै कृपा कूप विश्‍व भूपैं मनोहारी तैं।।

सारद सहेली मनमेली लक्ष लक्ष्‍मी की,

खेली गिरिजा के संग प्रेम लेनहारी तैं।।

षटऋतु वारो मास रैन दिन के समास,

जाचकैं से जाबिन को चैन देनवारी ते।।

पापहारी तापहारी जब को प्रतापहारी,

बलि बलिहारी जु यों विश्‍व की बिहारी नैं।।

23

जो पै तब तीनै तीन विधि सों प्रसंग गंग,

प्रथमैं त्रिदेवैं संग तीन गुन लेनी नैं।।

तीन जल तीन रंग तीनहूँ के तीन ढंग,

उज्‍जवल वो कज्‍जलऽरुनंजल कीश्रेनी तैं।

त्‍यों ‘द्विजेशी’ तीनोंलोक तीनपथ सों बिलोकि,

तीनों ताप तीनों पाप आप ही की देनी तैं।।

धन्‍य तेरो तीनै तीन विधि को तरंग गंग,

जातें ह्वैं रही यों तीन रंग की त्रिवेनी तैं।।

24

जिमि पद वाचक प्रसिद्ध तेरी चार नाम,

तिमि पद लक्षकैं दुलक्षणा विधानी सों।।

जातिनामजान्‍हवी,जद्दच्‍छा-गंगत्‍यों’द्विजेश’,

गुन सों त्रिवेनी क्रिया त्रिपथ प्रधानी सों।।

रूढ़ीकेवलैं सों त्‍योंप्रयोजनी जोशुद्धा गौनि,

उपादानि लक्षणी सारोप साध्‍यौऽसानी सों।

धोतेपाप गोते, गंग वासी सुख सोते, तिमि-

जम गन रोते जम होते बिना पानी सों।।

25

पीके आप भंग मति भंग किन होते आप,

जारते अनंगै कहा आपै क्‍यों न जरते।।

विपधर कंठ मैं एकंठ करि ब्‍याल माल,

कह त्रिपुरा को मारि आपै क्‍यों न मरतें।।

धन्‍य तेरो आप पाप-ताप हारी तौ प्रताप,

 सो जाको ‘द्विजेश’ कोऊ देव ना बिसरतै।

धीर किमि धरते उधरते अधम कहाँ,

मंगधर तोहिं जो न सीस गंग धरनै।।

मुंडन पर उक्ति

जनमति संगी अंग जाको मम अंग ही तैं,

चल्‍यों गंग न्‍हान जातें संग यों विगारिगो।।

चलतहिं आदि ही तें अनमन होन लारयो,

जान्‍योना ‘द्विजेश’ कौनब्‍याधि कोपकरिगो।

कैकै किते जत्‍न सो प्रयाग लौं पहुँचि केहूँ,

अन्‍त मों पैं मुंडन को यो असौंच परिगो।।

मेरो मित्र पाप जो परम प्रिय मोको हाय,

पहुँच्‍यों न गंग पौर पंथ ही मैं मरिगो।।

यम के नाम

श्री जमराज जू। ‘द्विजेश’ को प्रनाम, हैं-

अराम, आठो जाम तौ कुशल नेक चहियो।

आज हौं अह्नाए गंग पाए विश्‍वनाथ पद,

होत फल याको जो सोजानि जिय लहियो।

जानते हो जैसो संभु, गंग की तरंग जैसी,

तूहूँ चित्रगुप्‍त बैठे चुपैचाप रहियो।।

देत हूँ चेताई भाई बनि न परैगी मोसों,

अब फेरि कोऊ मोहिं पातकी जु कहियो

यमदूत की विवशता

जम गन भाख्‍यो गति गंगजम सों ‘द्विजेश’,

कहि जम कोपि ”गंग सोंहै तोहिंका प्रसंग।

कह्यों,”स्‍वामि। गंग तें तो नितहम होते तंग,

सोई गंग कै रही तिहारी प्रभुता को भंग।

पूँछयोपुनिकौनगंग?कैसी गंग’कह्यो, नाथ-

जाके अंग मिली हैं तिहारी भगिनी हूँ-संग”

”गंगै कहा गुन-ढ़ंग”कह्यो,”पीनपापिन कों,

गंग गंग कहे गंगधर सों मिलानी गंग”।

यमराज का उलाहना

1

आय जम शिवहिं जवाब दीनी चाकरी सों,

”या अनीति हौं तो अब कब लौं सहा करैं।

पुन्‍य बारे स्‍वत ही सिधारैं सुरलोक सबै,

जोगकारे चाहैं जितै तितही रहा करैं।।

ज्ञान-बारे गुनहिं न पाप पुन्‍य एकौ कछू,

मग्‍न ह्वै ‘द्विजेश’ मुक्ति मार गचहा करैं।।

पतित कतारैं तिन्‍हें गंगैं देति तारे, हम-

झूठे जम-द्वारे बीच बैठि कै कहा करैं।।

2

अज्ञापैजोआपी के प्रतिज्ञा सों प्रबंध न्‍याय,

कन्धि हम राखे पापी दंड के प्रसंगा मैं।।

जो न करि पातेअब हम जम ह्वै के तिन्‍हे,

जो अन्‍हाते पाते स्‍वर्ग गंग के तरंगा मैं।।

यातेंआप हैं बिधी तो कीजै द्वैविधी मैं एक,

भेजे सन्निधी सों गंग जोमों मान भंगा मैं।।

या तो पुनि गंग ही को गोपिए कमंडल मैं,

यामों न्‍याय मंडलै को गुप्‍त कीजै गंगा मैं।।

ब्रह्मा का पश्‍चाताप

जम को उराहनो सुनत बोले यों बिरंचि,

‘तू तैं मोंहिं दूनो है ‘द्विजेश’ दुख दाहे को।।

हूँ जो दये गंग तो सगर सूनु के प्रसंग,

नहिं कछु सारे पीन पातकी पनाहे को।।

भूलि परे नाहक भगीरथ की भूमिका मैं,

 आपनो न तौ प्रबंध चेते चित चाहे को।।

काह कहैं जो पै कहूँ ऐसो जानते तो भला,

जीतेजान जाह्नवी को जान देते काहे को”।

कामना

1

अति दुख सों मैं दौरि गंग मैया तेरे पौर,

आयों जानि हानि तातें मोंयों बिनै बानीतैं।।

ह्वै के दीन अनाधीन अति पातकी जु पीन,

जान्‍यों हौं ‘द्विजेश’ है प्रवीन दया दानी तैं।।

मानै जु तो मानै नहिं मानै तो सुनै मों यह,

विनय ‘द्विजेश’ हठ सठ ज्ञान हानी तैं।।

प्रिय तौ जु करुना कसम करुनैं की सोई,

करु ना जु मों पै अब करुनानिधानी तैं।।

2

आज अति वेदन सों मेरो है निवेदन यों,

मेरो तेरो मातु पूत नात कबौं टूटे ना।।

मेरे पास चार विषै धन रूप ऐसो जाहि,

जो अविद्या अपकर्म इन्‍हें आनि लूटै ना।।

छोन कैसो मेरो छोह मातु कैसो तेरो मोह, मेरो तेरो कोह केहूँ कबौं आनि कूटैं ना।।

यातें मातु मेरी बिनै बस अब एकै यही,

तेरो नीर – तीर छीर मोसों कबौं छूटै ना।।

3

मों हित न ऐबो तोहिं पुनि विधि वासन सों,

ना तो भगीरथ रथ संग की जवैया तैं।।

मों सँग न सगर सपूतनि सी मंडली हू,

जो जरे मरे को करै पुनि जनमैया तैं।।

मों सुभाग सोंजो आज कासी बीच तौ विराज,

तो मों एकै काज करि होवै सुख दैया तैं।।

बस एक ऐसो जरा अंग पंगु पद पेखि,

लै ले सरनागती मैं मोंको गंग मैया तैं।

 

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।

(मोबाइल नंबर +91 8630778321; वॉर्ड्सऐप नम्बर+919412300183)

जनवरी में दीपावली मनाता जनजातीय ग्राम मेंढापानी

भारतीय पशुधन प्रेम अद्भुत कथा है यह! सौ प्रतिशत जनजातीय एवं अनुसूचित जाति की जनसंख्या वाले मेंढापानी ग्राम (बैतूल) की यह कथा अविश्वसनीय भी है!! अविश्वनीय इसलिए, कि अपने देश के जनजातीय बंधु, अपने होली – दीपावली के पर्वों से किसी प्रकार का समझौता नहीं करते। वे अपने इन उत्सवों को डूबकर, रसमय होकर मनाते हैं और इन त्योहारों को जीते हैं। ये जनजातीय त्यौहारों को स्वयं में समाहित कर लेते हैं।

वैसे तो देश भर में जनजातीय समाज का दीपावली उत्सव बड़ा ही विशिष्ट व उल्लेखनीय होता है किंतु गोंडवाना के जनजातीय समाज की दीपावली का तो कहना ही क्या!! इनके जीवन में दीपावली व होली का त्यौहार केवल आता नहीं है, आकर ठहर जाता है! इनके चौक, चौपालों, खारी, ढानी, बाजारों, टोलों, टपरों, मठ, मुठिया, मेलों, ग्रामों में और, उससे भी बढ़कर इनके हृदय में दीपावली ठहर जाती है! हाँ, ये वनवासी बंधु, त्योहारों को हृदय में धारते हैं और उसे उतार लेते हैं अपने अन्तर्तम तक। होली, दीवाली को मनस्थ और तनस्थ कर लेने का ही प्रभाव होता है कि बैतूल जिले का जनजातीय समाज एक मास तक इन त्योहारों को सतत मनाता ही रहता है। इस मध्य वह कोई काम नहीं करना चाहता। इस मध्य उसे आप कितनी भी अधिक मजदूरी का, वेतन का लालच दे दो; वह नहीं आयेगा काम पर! इनकी होली, दीवाली केवल अपने ही परिवार में, मोहल्ले में या ग्राम में नहीं मनती है। ये जनजातीय बंधु, उस क्षेत्र में स्थित प्रत्येक ग्राम में एक दूसरे के गाँव में जाकर घर में रात्रि विश्राम करके ही दीवाली मनाते हैं। सभी एक दूसरे के गाँव में जाते हैं और भव्य आतिथ्य का आनंद लेते हैं।

तो आते हैं, बैतूल जिले के एक विशुद्ध जनजातीय व अनुसूचित जाति वाले गाँव, मेंढापानी की कहानी पर। मेंढापानी में लगभग तीन सौ पचास घर हैं, सभी घर या तो जनजातीय बंधुओं के हैं या अनुसूचित जाति बंधुओं के। दोनों की जीवन शैली लगभग वनवासी ही है।

लगभग तीन वर्ष पूर्व कोविड महामारी के दिनों के आसपास ही भारत के कुछ प्रदेशों में पशुधन को लंपी वायरस नामक एक बीमारी ने घेर लिया था। बैतूल में भी एक सौ चौबीस ग्रामों में यह बीमारी फेल गई थी। हजारों गाय, बैल, भैंसों को लंपी वायरस ने अपना शिकार बना लिया था। इन्हीं दिनों में मेंढापनी में भी सैकड़ों गाय, बेल, भैंस आदि पशु लंपी से ग्रसित होकर गोलोकवासी हो गए थे। वह दीपावली के एन पूर्व का सितंबर का माह था; वर्ष था, 2022! मेंढापानी के निवासी अपने प्रिय पशुधन के असमय व बड़ी संख्या में निधन से इतने दुखी हुए कि इन्होंने अपने सबसे बड़े, सबसे प्रिय, सबसे सुंदर त्यौहार दीपावली को ही त्याग दिया।

जब आसपास के ग्रामवासियों को यह बात पता चली तो पंचायत बैठी और पंचायत ने, शोकग्रस्त मेंढापानी वासियों से दीपावली मनाने का आग्रह किया। तब तक जनवरी, 2023 आ चुका था। इस प्रकार, अक्टूबर-नवंबर की दीपावली मेंढापानी में पहली बार जनवरी में मनाई गई। लंपी वायरस के विदा होने पर ही जनवरी, 2023 में मेंढापनी निवासियों ने दीपावली मनाई थी। अपने दिवंगत पशुधन के प्रति मेंढापानी के ग्रामीण बंधुओं का शोक यहाँ भी रुका नहीं, उन्होंने तीन वर्षों तक उनका प्रियतम दीपावली का पर्व जनवरी में मनाने का निर्णय लिया। अपने दिवंगत पशुधन के प्रति शोक प्रकट करने का उनका यह अपना तरीका था।

यह अंतिम वर्ष था जब मेंढापानी निवासियों ने दीपावली का पर्व कार्तिक मास में न मनाकर, जनवरी में मनाया था। इस वर्ष मेंढापानी के ग्रामवासियों के आग्रह पर उनकी इस जनवरी माह वाली दीपावली में सम्मिलित होने का अवसर मुझे भी मिला। आड़ा-टेढ़ा, जैसा भी सही पर इन वनवासी बंधुओं के साथ नृत्य करने में मुझे भी बड़ा आनंद आया। मेंढापानी के निवासियों संग चाय पर चर्चा भी हुई और उनके संग सहभोज का भागी भी बना! बड़ा ही अद्भुत, उमंग, उल्लास व उत्साह से भरा वातावरण था समूचे गाँव का। भले ही छोटे-छोटे घर-आँगन होंगे मेंढापानी के निवासियों के, किंतु उनके दिल के जैसे ही, घर में भी लोग समाते ही चले जा रहे थे। एक-एक घर में तीस-तीस चालीस-चालीस मेहमान थे। प्रत्येक घर के सामने आठ-दस बाइक्स तो अनिवार्य रूप से खड़ी ही थी।

किसी भी मोटरसाइकिल पर तीन से कम लोग तो आए ही नहीं थे। फटफटी पर चार लोगों को बैठा लेना तो इन ग्रामीणों के लिए बड़ी ही सामान्य सी बात है। पूरा गांव मेले के वातावरण में, गीत, संगीत, नृत्य, चाय-पानी, भोजन के क्रम में डूबा हुआ सा और सराबोर सा झूम रहा था। बस एक कमी खल रही थी कि यहाँ वहाँ ऊँचे स्वर में बजने वाले संगीत में उनके अपने जनजातीय गीत और नृत्य ग़ायब थे। फिल्मी गीतों और डीजे के शोर ने पारंपरिक गीतों व नृत्य के स्वरों को दबा दिया था। यह दुखद लगा। शेष सभी कुछ बड़ा ही आनंदित कर देने वाला था! युवक युवतियां तो अपनी झूम में थे ही, बड़े और वृद्ध भी अपने पूरे रंग में दिख रहे थे। सभी ने एक से एक रंग बिरंगे, चटकीले रंगों वाले कपड़े पहने हुए थे। युवक-युवतियों के माथे पर डिस्को इलेक्ट्रानिक बल्बों से जलने वाले बकल झिलमिला रहे थे। इन रंगीन लाइटिंग में उनके चेहरे के साज सिंगार को और अधिक चमक और उत्साह मिल रहा था। युवक-युवतियाँ संग-संग हाथों में हाथ थामे घूम रहे थे, नाच रहे थे। निश्चित ही मेंढापानी में इस मेले के दिन पच्चीस-पचास रिश्ते तो तय हुए ही होंगे।

मुझे अपने मध्य पाकर ग्रामवासी बड़े ही प्रसन्न हुए, उन्होंने बड़े ही हृदय से स्वागत किया। मैंने भी अवसर छोड़ा नहीं और बहुतेरी बातें की। उनसे आग्रह किया कि अगले वर्ष दीपावली कार्तिक मास में ही मनाएँ और फिल्मी गानों और डीजे के स्थान पर पारंपरिक गीत व नृत्य को ही थामें रहें। गौवंश के प्रतु, पशुधन के प्रति, इन भोले भाले ग्रामीणों का प्रेम और श्रद्धा यूँ ही बनी रहे, यही कामना.