Sunday, April 13, 2025
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भगवान श्रीराम सेवा का सबसे बड़ा उदाहरण : दीपक विस्पुते

भोपाल। सेवा भारती मध्य भारत प्रांत की ओर से भोपाल में आयोजित एक दिवसीय ‘युवा सेवा संगम’ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख दीपक विस्पुते ने कहा कि श्रीराम ने समाज को जागरूक और एकत्रित करने का कार्य सेवा के माध्यम से किया था। समाज में हजारों ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने अपनी सेवा से समाज को सशक्त बनाया और आगे बढ़ाया। आज उनका योगदान हमारे समाज की ताकत है। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट और एम्स भोपाल के अध्यक्ष डॉ. सुनील मलिक ने अध्यक्षता की और मुख्य अतिथि के रूप में सामाजिक कार्यकर्ता प्रेमशंकर उपस्थित रहे। वहीं, समापन सत्र की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध नेत्र विशेषज्ञ डॉ. पीएल बिंद्रा ने की। प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश सेठी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में 350 चयनित युवाओं ने सहभागिता की और समाज सेवा के क्षेत्र में अपने विचार और अनुभव साझा किए।
इस अवसर पर श्री विस्पुते ने युवाओं से आग्रह किया कि वे अपने सेवा के माध्यम से दीपक बनकर समाज को सशक्त बनाने के लिए निरंतर प्रयास करें और एकजुट होकर सेवा भाव से कार्य करें। उन्होंने कहा कि समाज में सेवा का कार्य कर रहे सभी युवा समाज के लिए प्रेरणा हैं। उनका योगदान समाज को नई दिशा और सीख देता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की विशेषता यह है कि यहां सेवा हमेशा कर्तव्य के रूप में रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता प्रेमशंकर ने कहा कि सेवा सहज नहीं होती। बिना करुणा के सेवा संभव नहीं है। हमें गर्व है कि आज युवा समाज में सेवा के कार्यों से जुड़ रहे हैं। आज भारत विश्व में आगे बढ़ रहा है। हम एक तरफ समृद्धि के शिखर की ओर बढ़ रहे हैं, वहीं कई ऐसे क्षेत्र हैं यहां कार्य करने की आवश्यकता है। इस कमी को हमारे युवा साथियों को पूरा करना है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की दृष्टि सेवाभावी है और हमें एकजुट होकर समाज के विभिन्न क्षेत्रों में काम करना चाहिए है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमारे यहां अर्थ जगत को प्रतिष्ठा नहीं है। हमारे यहां सेवा, समर्पण, त्याग और तपस्या की प्रतिष्ठा है। हमारी संस्कृति कहती है कि प्रत्येक मनुष्य में परमात्मा का अंश है। इसलिए समाज को प्रत्येक मनुष्य की चिंता करनी चाहिए।डॉ. सुनील मलिक ने कहा कि कई देशों को मुफ्त वैक्सीन उपलब्ध कराना हमारी सेवा दृष्टि का प्रतीक है। सेवा करने वाले हाथ पूजा करने वाले हाथों से अधिक पवित्र होते हैं। इस प्रकार के संगम से सेवा को नए आयाम मिलेंगे।

इस अवसर पर नेत्र विशेषज्ञ डॉ. पीएस बिंद्रा ने कहा कि स्वामी विवेकानंद समाज के पथ प्रदर्शक हैं। उन्होंने युवाओं को नई ऊर्जा और प्रेरणा देने का कार्य किया है। उन्होंने कहा कि समाज में विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करते हुए, सकारात्मक रहते हुए समाज को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाना युवाओं की नैतिक जिम्मेदारी बनती है। इस संदर्भ में, डॉ. बिंद्रा ने यह भी बताया कि बीमार समाज में युवा सेवा संगम जैसे कार्यक्रम एक नई ऊर्जा देने का कार्य करते हैं। इस प्रकार के कार्यक्रम युवाओं को निरंतर सेवा करने के लिए प्रेरित करते हैं।

कार्यक्रम में सेवा कार्यों पर आधारित एक फिल्म का प्रदर्शन भी किया गया, जिसने उपस्थित युवाओं को प्रेरित किया। जितेन्द्र राठौर ने कार्यक्रम की संकल्पना प्रस्तुत की और संचालन अभिताभ श्रीवास्तव ने किया।


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वेदों में जल के महत्व और उसकी उपयोगिता पर श्लोक और उनका अर्थ

वैदिक काल में जल को जीवन का आधार माना गया है और इसे देवतुल्य स्थान दिया गया है। जल के संरक्षण, प्रबंधन और महत्व को लेकर वेदों में अनेक श्लोक मिलते हैं। इनमें पर्यावरण और जल प्रबंधन की अवधारणा पर भी प्रकाश डाला गया है। वेदों में जल को न केवल जीवन का स्रोत माना गया है, बल्कि उसे पवित्र, शुद्ध और ऊर्जा का स्रोत भी कहा गया है। इन श्लोकों के माध्यम से हमें जल के महत्व को समझने और उसके संरक्षण की प्रेरणा मिलती है। वैदिक काल के लोगों ने जल प्रबंधन के लिए नदियों, तालाबों और जल स्रोतों को पवित्र स्थान माना और उनके संरक्षण का प्रयास किया।
 यहां कुछ प्रमुख श्लोक और उनका हिंदी अर्थ दिया गया है:

1. ऋग्वेद 10.9.1
आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न ऊर्जे दधातन।
महेरणाय चक्षसे॥

हे जल! आप आनंद प्रदान करने वाले हैं। आप हमारी ऊर्जा को बनाए रखें और हमें शक्ति प्रदान करें। हमें अपने अद्भुत स्वरूप से पोषण दें।
यह श्लोक जल की महिमा और उसकी शक्ति को दर्शाता है। यह जल के संरक्षण और इसके उचित उपयोग का संदेश देता है।

2. यजुर्वेद 36.12
यो अपां पुष्पं वेद पुष्पवान् प्रजावान् पशुमान् भवति।
चन्द्रमावा आपां पुष्पं पुष्पवान् प्रजावान् पशुमान् भवति॥
जो जल के फूलों (उसकी शुद्धता और सुंदरता) को समझता है, वह समृद्धि प्राप्त करता है। चंद्रमा जल का पुष्प है और जल के महत्व को समझने वाला व्यक्ति धन-धान्य से भरपूर होता है।
संदर्भ: यह श्लोक जल की शुद्धता और प्रकृति के साथ उसके संबंध को दर्शाता है। जल प्रबंधन का महत्व यहां प्रकट होता है।

3. अथर्ववेद 19.2.1
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
सशन्ति मरुतां सदमिन्द्रस्याणि द्वाराणि॥
हे जल! आप स्निग्ध (शांत) और सुखदायक बनें। मेरे घर में आपकी कृपा और शांति बनी रहे। आपकी शक्ति से हमारा घर आनंदमय हो।
संदर्भ: यह श्लोक जल के माध्यम से सुख, समृद्धि और शांति की कामना को व्यक्त करता है।

4. ऋग्वेद 7.49.2
इन्द्रमि वसु मे गृहेऽस्तु सत्यं च मा मिवपधं दधात।
आपः शुद्धाः पवित्रं नो हरन्तु यत्किं च दूषितं॥
हे जल! आप शुद्ध हैं। आप हमारे दूषित कर्मों और पापों को दूर करें। हमें सत्य और शुद्धता का मार्ग दिखाएं। हमारे घर में आपकी कृपा बनी रहे।
संदर्भः इस श्लोक में जल की शुद्धि और उसके शुद्धिकरण के गुणों का वर्णन किया गया है।

5. अथर्ववेद 12.1.3
अपो अद्यान्वचारिषं रसेन समगस्महि।
पयस्वानग्न आ गहि तं मां समन्यया कृधि॥
आज मैं जल के समीप जा रहा हूं। उसकी मिठास और रस से अपना पोषण कर रहा हूं। हे अग्नि! मुझे भी उसी प्रकार ऊर्जा प्रदान करें जैसे जल करता है।
संदर्भ: यह श्लोक जल और जीवन के अन्य तत्वों (जैसे अग्नि) के साथ सामंजस्य स्थापित करने की प्रेरणा देता है।

अंग्रेजों के जहाज डाँवाडोल हो जाते थे कोणार्क के सूर्य मंदिर से

कोणार्क सूर्य मंदिर की चुंबकीय शक्ति इतनी ताकतवर थी कि जब इस मंदिर के निकट से अंग्रेजों के समुद्री जहाज गुजरते हुए मंदिर के चुंबकीय परिधि में आ जाते थे, तो उनके ‘दिशा निरूपण यंत्र’ काम करना बंद कर देते थे। परिणामस्वरूप जहाज दिशा बदलकर मंदिर की ओर खिंचे चले आते थे। इस कारण इन सागरपोतों को भारी नुकसान होता था। अतएव अंग्रेज शासकों ने जब इस रहस्य को जान लिया तब उन्होंने मंदिर के शिखर को हटा दिया। चूंकि यह शिखर केंद्रीय चुंबकत्व का केंद्र था, इसलिए इसके हटते ही मंदिर की दीवारों से जो चुबंक-पट्टिकाएं आबद्ध थीं, उनका संतुलन बिगड़ गया और मंदिर के पत्थर खिसकने लगे। गोया, मंदिर का मूलस्वरूप तितर-बितर हो गया।

भारत ही नहीं वर्तमान दुनिया में केवल पांडुलिपियों और पुस्तकों को ज्ञानार्जन का आधार माना जाता है। इसीलिए भारत में जब आक्रांता आए तो उन्होंने मंदिर और पुस्तकालयों का एक साथ विनाश किया। नालंदा विश्वविद्यालय इसका प्रमुख उदाहरण है। यहां के पुस्तकालय में करीब दो लाख पांडुलिपियां सुरक्षित थीं। इनमें खगोल विज्ञान, गणित, ज्योतिष, वास्तुशास्त्र, आयुर्वेद, युद्धकला, पशु चिकित्सा और धर्म संबंधी पांडुलिपियां थीं, जिनमें ज्ञान का अकूत भंडार था।

इसी तरह जो भी भारत के प्राचीन मंदिर हैं, वे खगोल विज्ञान, भौतिकी, प्रकृति और ब्रह्मांड के रहस्यों की खुली किताब को मूर्तियों के माध्यम से प्रदर्शित करते हैं। मूर्ति और स्थापत्य कला के भी ये मंदिर अद्भुत नमूने हैं। भारत ज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी न रहने पाए, इसलिए आक्रांता जो भी रहे हों, उन्होंने इन दोनों ही प्राचीन धरोहरों को नष्ट करने का काम निर्ममतापूर्वक किया।

तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने 1199 में नालंदा पुस्तकालय में आग लगाई थी। ये दो लाख पुस्तकें और पांडुलिपियां करीब तीन माह तक सुलगती रही थीं। आग लगाने के जिस कारण को लेकर खिलजी को भारतीय वैद्याचार्य के प्रति कृतज्ञता जताने की जरूरत थी, उसके बदले में उसने पुस्तकालय को तो अग्नि को होम किया ही, अनेक वैद्यों और हिंदू व बौद्ध धर्म के लोगों की भी हत्या कर दी थी। इसी समय खिलजी ने बौद्धों द्वारा शासित राज्यों को अपने आधिपत्य में ले लिया था।

इतिहासकार बताते हैं कि खिलजी एक समय बहुत अधिक बीमार पड़ गया था। उसके साथ आए हकीम उसका उपचार करने में असफल रहे। तब उसने नालंदा विवि के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख राहुल श्रीभद्रजी से इलाज कराया। खिलजी ठीक भी हो गया। लेकिन जब उसे यह ज्ञात हुआ कि उपचार की ये पद्धतियां विवि के पुस्तकालय की पांडुलिपियों में सुरक्षित हैं, तब उसने इसे आग के हवाले कर दिया।

इन मुगल शासकों ने कलिंग राज्य को आधिपत्य में लेकर यहां के सूर्यमंदिर को भी नष्ट करने की कोशिश की थी। लेकिन इस कालखंड में यहां गंगवंश के सूर्यवंशी शासक थे। पूरी राज्य की मंदल-पंजी के अनुसार 1278 ईंसवीं के ताम्रपत्रों से पता चला कि यहां 1238 से लेकर 1282 तक यही लोग शासक रहे थे। ये शक्तिशाली सम्राट होने के साथ कुशल योद्धा भी थे।

भारत में नरसिंह देव के पिता अनंगदेवभीम ऐसे बिरले शासकों में से एक हुए हैं, जिन्होंने तुर्क-अफगानी हमलावरों को कलिंग (प्राचीन ओडीशा) में न केवल घुसने से रोका, बल्कि इस्लामी शासन के विस्तार पर भी अंकुश लगा दिया था। अनंगभीम देव ने तुर्क और अफगानों को कलिंग की धरती से खदेड़ने के लिए वही तरीके अपनाए, जो मुस्लिम हमलावर अपनाते थे। अर्थात उन्होंने छापामार युद्ध प्रणाली और चालाकी बरतते हुए भी इन आक्रांताओं पर हमले किए। इस परंपरा को नरसिंह देव ने भी अक्षुण बनाए रखा।

अनंगभीम देव ने मुस्लिमों को पराजित करने की प्रसन्नता में कोणार्क मंदिर की नींव रखी, जिसे उनके पुत्र नरसिंह देव ने आगे बढ़ाया और फिर अनंगभीम के पोते नरसिंह देव द्वितीय ने इस मंदिर को चुंबकीय तत्व मिश्रित पत्थरों और इस्पात की पटटियों से कुछ इस विलक्षण ढंग से निर्मित कराया कि भगवान सूर्यदेव की प्रतिमा अधर में स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली थी। यह प्रतिमा भौतिकी के सिद्धांत पर वायु में प्रतिष्ठित की गई थी। इस मंदिर का निर्माण 1250 में शुरू होकर 1262 में समाप्त हुआ।

कोणार्क का संधि-विच्क्षेद करने पर ‘अर्क‘ का अर्थ ‘सूर्य‘ और ‘कोण‘ के मायने ‘कोना‘ निकलता है। यह मंदिर पूरी के पश्चिमी भाग में चंद्रभागा नदी के तट पर बना है। यह नदी नीले पानी से लबालब रहती है। इस मंदिर की विशेषता मंदिर के गुंबद पर 52 टन का रखा चुंबकीय तत्वों से मिश्रित पत्थर का शिखर था। साथ ही मंदिर की चैड़ी दीवारों में लोहे की ऐसी पट्टिकाएं लगाई गईं थीं, जिनमें प्रभावशाली चुंबक था।

इन पट्टियों और शिखर को स्थापित करने में कुछ ऐसी अनूठी तकनीक अपनाई गई थी, जिस कारण भगवान सूर्यदेव की मुख्य प्रतिमा बिना किसी सहारे के हवा में तैरती रहती थी। उस कालखंड में सूर्यमंदिर इसलिए बनाए जाते थे, क्योंकि हिंदू मान्यता के अनुसार सूर्य एकमात्र ऐसे देवता हैं, जो प्रत्यक्ष रूप में आंखों से दिखाई देते हैं। सूर्य की अराधना से श्रृद्धालुओं को साकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।

इस मंदिर की कल्पना सूर्यरथ से की गई है। रथ में 12 जोड़े विशाल पहिये लगे हुए हैं, इनमें आठ तीलियां हैं। इस रथ को सात शक्तिशाली घोड़े तीव्र गति से खींच रहे हैं। इस रथ के प्रतीकों को समझने से पता चलता है कि 12 जोड़ी पहिये दिन और रात के 24 घंटे दर्शाते हैं। ये पहिये वर्ष मे 12 माह होने के भी द्योतक हैं। पहियों में लगी आठ तीलियां दिन और रात के आठों प्रहर की प्रतीक हैं। मंदिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं हैं। उदित सूर्य, यह मूर्ति सूर्य की बाल्यावस्था की प्रतीक है, जिसकी ऊंचाई आठ फीट है। युवावस्था के रूप में मध्यान्ह सूर्य की प्रतिमा है, जिसकी ऊंचाई 9.5 फीट है। तीसरी प्रतिमा प्रौढ़ावस्था यानी अस्त होते सूर्य की है, जिसकी ऊंचाई तीन फीट है। साफ है, यह मंदिर प्रकृति की दिनचर्या को मूर्त रूप में अभिव्यक्त करता है।

इस मंदिर की चुंबकीय शक्ति इतनी ताकतवर थी कि जब इस मंदिर के निकट से अंग्रेजों के समुद्री जहाज गुजरते हुए मंदिर के चुंबकीय परिधि में आ जाते थे, तो उनके ‘दिशा निरूपण यंत्र‘ काम करना बंद कर देते थे। परिणामस्वरूप जहाज दिशा बदलकर मंदिर की ओर खिंचे चले आते थे। इस कारण इन सागरपोतों को भारी नुकसान होता था। अतएव अंग्रेज शासकों ने जब इस रहस्य को जान लिया तब उन्होंने मंदिर के शिखर को हटा दिया। चूंकि यह शिखर केंद्रीय चुंबकत्व का केंद्र था, इसलिए इसके हटते ही मंदिर की दीवारों से जो चुबंक-पट्टिकाएं आबद्ध थीं, उनका संतुलन बिगड़ गया और मंदिर के पत्थर खिसकने लगे। गोया, मंदिर का मूलस्वरूप तितर-बितर हो गया।

कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास इसकी वास्तुकला की तरह ही आकर्षक है। पूर्वी गंगा राजवंश के राजा नरसिंहदेव ने इसे बनवाया था। ऐसा माना जाता है कि इस जटिल नक्काशीदार मंदिर को जीवंत बनाने के लिए लगभग 1200 कारीगरों ने लगभग 12 वर्षों तक काम किया। माना जाता है कि कोणार्क सूर्य मंदिर के अंदर स्थित मंदिर 16वीं शताब्दी के मध्य तक पूजा का एक लोकप्रिय स्थान था।

महान पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने कोणार्क सूर्य मंदिर को एक ऐसी जगह के रूप में वर्णित किया है जहाँ पत्थरों की भाषा इंसानों की भाषा से बढ़कर है। कलिंग शैली की वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक, ओडिशा में कोणार्क सूर्य मंदिर, बारह जोड़ी पहियों वाले सूर्य देव के रथ के रूप में बनाया गया है। इस रथ को सात विशाल पत्थर के घोड़े खींचते हैं। कोणार्क सूर्य मंदिर की भव्यता और जिस पैमाने पर इसे बनाया गया है, वह किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देने के लिए पर्याप्त है।

आमतौर से सूर्य को प्रकाश और गर्मी का अक्षुण्ण स्रोत माना जाता है। परंतु जब सूर्य दक्षिणायन रहते हैं, तब मौसम ठंडा रहता है और जब मकर संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तरायण होने लगते हैं, यानी उत्तर की ओर गमन करने लगते हैं, तो ठंड कम होने लगती है और दिन बड़े होने लगते हैं। इस स्थिति के निर्माण का कारक पुराणों में सूर्य के रथ का एक पहिए का होने का मिथक जुड़ा है। सूर्य की गतिशीलता से जुड़ा यह मिथक नितांत सार्थक और निरंतर प्रासंगिक बना रहने वाला है। यदि सूर्य रथ में दो पहिए होते तो उसमें ठहराव आ सकता था। सूर्य की गति में स्थिरता का अर्थ था, सृष्टि का सर्वनाश !

अब वैज्ञानिक भी मान रहे हैं कि यदि सूर्य की गति में ठहराव आ जाए तो पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी जीव-जंतु तीन दिन के भीतर मर जाएंगे। सूर्य के स्थिर होने के साथ ही वायुमंडल में उपलब्ध समूची जलवाष्प ठंडी होकर बर्फ में बदल जाएगी और समूचे ब्रह्मांड में शीतलता छा जाएगी। फलतः कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह पाएगा।

करीब पचास करोड़ वर्ष पहले अस्तित्व में आए इस प्रकाशित सूर्य की प्राणदायिनी ऊर्जा की रहस्मयी शक्ति को भरतीय ऋषियों ने छह हजार साल पहले ही समझ लिया था। अतएव वे ऋग्वेद में लिख गए थे, ‘आप्रा द्यावा पृथिवी अंतरिक्षः सूर्य आत्मा जगतस्थश्च।‘ अर्थात विश्व की चर तथा अचर वस्तुओं की आत्मा सूर्य ही है। इसीलिए वैदिक काल के पूर्व से ही सूर्योपासना ज्ञान और प्रकाश को अंतर में एकत्रीकरण के लिए मनुष्य करता आ रहा है। चंद्रमा की चमक भी सूर्य के आलोक में अंतर्निहित है।

एक चक्रीय सूर्य की कल्पना काल (संक्रांति) की गति के रूप में भी की गई है। अतएव सूर्य का महत्व खगोल और ज्योतिष के साथ अध्यात्म में भी है। खगोल विज्ञानियों का मानना है कि उत्तरी व दक्षिणी छोर के अंतिम बिंदु अर्थात कर्क व मकर रेखा तक सूर्य की रोशनी एकदम सीधी (लंबवत्) पड़ती है। पृथ्वी के उत्तरी गोलाद्र्ध में कर्क रेखा से सूर्य जब दक्षिण की ओर बढ़ता है तो दक्षिणायन और जब मकर रेखा से उत्तर हो जाता है तो उत्तरायण कहलाता है।

इन दोनों स्थितियों के निर्माण में छह मास का समय लगता है। महाभारत के योद्धा पितामाह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही प्राण छोड़े थे। वैदिक मान्यता है कि देवताओं का निवास उत्तरी ध्रुव और दैत्यों का आवास दक्षिणी ध्रुव है। इसलिए भी उत्तरायण सूर्य को जीव-जगत के लिए शुभ माना जाता है।

सूर्य के एक चक्रीय रथ में सात घोड़ों के जुते होने की कल्पना ऋषियों ने की हैं। इन अश्वों को नियंत्रित करने में जो वल्गाएं सौर-रश्मियां परिलक्षित होती हैं, वही सात प्रकार की किरणें हैं। अब विज्ञान ने इन सात किरणों के अस्तित्व को मान लिया है और इनके पृथक-पृथक महत्व को समझने में लगा है। अब तक के शोधों से ज्ञात हुआ है कि सूर्य किरणों के अदृश्य हिस्से में अवरक्त और पराबैंगनी किरणें होती हैं। भूमंडल को गर्म रखने और जैव-रासायनिक क्रियाओं को तेज बनाए रखने का काम अवरक्त किरणें और जीवधारियों के शरीर में रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाने का काम पैराबैंगनी किरणें करती हैं। हालांकि इनमें पैराबैंगनी-सी किरणें अत्यंत घातक होती हैं।

इस घातक विकिरण से बचने के लिए ही उगते सूर्य की ओर मुख करके तांबे के पात्र में भरे जल से मकर संक्रांति के दिन सूर्य को अघ्र्य देने का विशेष विधान है। ओजोन परत भी इन किरणों को अवरुद्ध करती हैं। सब-कुल मिलाकर सूर्य रथ का एक चक्रीय होना गतिशील बने रहने का द्योतक है। गतिशीलता ही मनुष्य की मूल प्रकृति है। ठहराव का अर्थ जीवन का शुष्क व निष्क्रिय हो जाना है। स्थिरता एक तरह का विकार है, जो जीवन और प्रकृति को जड़ता में बदल सकता है। जड़ता, ऐसी सडांध है, जो मृत्यु का पर्याय बन जाती है। अतएव गतिशीलता जीवन का अनिवार्य हिस्सा  बनी रहनी चाहिए।

1500 साल पहले चोल राजाओं के बनाए ये मंदिर आज भी शान से खड़े हैं

महान चोल मंदिरों का निर्माण चोल राजाओं द्वारा करवाया गया था, जिनका साम्राज्य पूरे दक्षिण भारत और पड़ोसी द्वीपों तक फैला हुआ था। इस स्थल में 11वीं और 12वीं शताब्दी में निर्मित तीन महान मंदिर हैं जिनमें तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर, गंगैकोंडचोलीश्वरम का बृहदेश्वर मंदिर, और दारासुरम का एरावतेश्वर मंदिर शामिल हैं। राजेंद्र प्रथम द्वारा बनवाए गए गंगैकोंडचोलीश्वरम मंदिर का निर्माण सन 1035 में पूर्ण हुआ। इसके 53 मीटर के विमान (गर्भगृह शिखर) के आले के समान कोण और भव्य ऊपरी गोलाइयों में गतिशीलता का दृश्य तंजौर के सीधे और ठोस स्तंभ के विपरीत है। दारासुरम का एरावतेश्वर मंदिर परिसर राजराज द्वितीय द्वारा निर्मित किया गया था, और इसमें 24 मीटर का विमान और भगवान शिव की एक पत्थर की मूर्ति विराजमान है। ये मंदिर वास्तुकला, मूर्तिकला, चित्रकला एवं कांस्य कला के क्षेत्र में चोलों की शानदार उपलब्धि का साक्ष्य प्रदान करते हैं।

महान चोल राजवंश ने 9वीं शताब्दी ईस्वी में तंजौर और इसके आस-पास के इलाके में एक शानदार साम्राज्य की स्थापना की। उन्होंने, सैन्य विजय, कुशल प्रशासन, सांस्कृतिक सम्मिलन और कला को बढ़ावा देने जैसे शाही उद्यमों के सारे क्षेत्रों में महान उपलब्धियाँ प्राप्त करते हुए, साढ़े चार शताब्दियों तक लंबा विख्यात शासन किया। तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर, गंगैकोंडचोलपुरम का बृहदेश्वर मंदिर, और दारासुरम का एरावतेश्वर मंदिर, इन तीनों मंदिरों में आज भी पूजा होती है। हज़ारों सालों से चली आ रही मंदिर की पूजा और अनुष्ठान संबंधी परम्पराएँ, जो उससे भी पहले के आगम ग्रंथों पर आधारित हैं, वे लोगों के जीवन के एक अभिन्न हिस्से के रूप में दैनिक, साप्ताहिक और वार्षिक तौर पर आज भी वैसी ही की जा रही हैं।

इस प्रकार, ये तीन मंदिर परिसर एक विशिष्ट समूह का गठन करते हैं, जो उच्च चोल वास्तुकला और कला के सबसे उच्च स्वरूप के प्रगामी विकास, और साथ ही चोल इतिहास और तमिल संस्कृति की एक बहुत ही विशिष्ट अवधि को प्रदर्शित करते हैं।

तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर चोल वास्तुकारों की सबसे महान उपलब्धि को चिन्हित करता है। अभिलेखों में दक्षिणा मेरू के रूप में प्रसिद्ध, इस मंदिर का शुभारंभ चोल राजा, राजराज प्रथम (सन 985-1012) द्वारा, संभवतः उनके शासनकाल के 19वें वर्ष (सन 1003 -1004) में किया गया था और उन्होंने अपने शासनकाल के 25वें वर्ष (सन 1009-1010) में खुद ही इसका लोकार्पण किया था। इसमें अष्टदिकपालों को समर्पित उप-मंदिरों सहित, एक विशाल स्तंभयुक्त प्रकार और गोपुरा (राजराजंतीरुवसल के नाम से प्रचलित) युक्त मुख्य प्रवेश द्वार है, जिनसे यह विशाल मंदिर घिरा हुआ है। आयताकार प्रांगण के पिछले आधे भाग के मध्य में गर्भगृह स्थित है। विमान ज़मीन से 59.82 मीटर ऊँचा है। इस भव्य ऊँची संरचना में एक उच्च उप-पीठ, और मोटी पट्टियों सहित एक अधिष्ठान बना हुआ है; ज़मीनी स्तर (प्रस्तर) दो स्तरों में विभाजित है, जिसमें भगवन शिव की मूर्तियाँ बनी हुईं हैं। इसके ऊपर 13 तल हैं और उनके ऊपर आठ कोनों वाला शिखर है। गर्भगृह के अंदर एक विशाल लिंग स्थापित है। गर्भगृह के चारों तरफ एक प्रदक्षिणा पथ है। मंदिर की दीवारों को विशाल और उत्कृष्ट भित्ति चित्रों से सजाया गया है। गर्भगृह के चारों ओर द्वितीय भूमि की दीवारों पर, एक सौ आठ करणों में से इक्यासी करण, भरतनाट्य की मुद्रा में तराशे गए हैं। अम्मान को समर्पित 13वीं शताब्दी का एक मंदिर भी है।

मंदिर परिसर के बाहर, एक खंदक से घिरी शिवगंगा छोटे क़िले की दीवारें और शिवगंगा जलाशय है जिसे चोल राजवंश के उत्तराधिकारी और 16वीं शताब्दी के तंजौर के नायकों ने बनवाया था। किले की दीवारों के भीतर ही यह मंदिर परिसर सुरक्षित रूप से स्थित है, और ये दीवारें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित क्षेत्र का हिस्सा हैं।

पेरम्बलूर जिले में गंगैकोंडचोलपुरम के भगवान शिव को समार्पित बृहदेश्वर मंदिर की स्थापना राजेंद्र प्रथम (सन 1012-1044) द्वारा की गई थी। इस मंदिर में अद्भुत गुणवत्ता वाली मूर्तियाँ मौजूद हैं। भोगशक्ति और सुब्रह्मण्य की कांस्य मूर्तियाँ चोल धातु मूर्तिकला की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं। आठ देवताओं वाली कमल वेदिका, सौरपीठ (सौर वेदिका) को शुभ माना जाता है।

तंजौर का एरावतेश्वर मंदिर चोल राजा राजराज द्वितीय (सन 1143-1173) द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर आकार में तंजौर और गंगैकोंडचोलपुरम के बृहदेश्वर मंदिरों की तुलना में बहुत छोटा है। इस मंदिर में इन दोनों मंदिरों के मुकाबले कहीं अधिक अलंकरण है। इस मंदिर में गर्भगृह के साथ कोई प्रदक्षिणा पथ और अक्षीय मंडप नहीं हैं। अग्रभाग वाला मंडप, जो अभिलेखों में राजगंभीरन तिरूमंडपम के नाम से उल्लेखित है, एक अनोखा मंडप है, जिसकी संकल्पना एक पहियों वाले रथ के रूप में की गई थी। इस मंडप के स्तंभ भरपूर रूप से अलंकृत हैं। मूर्तियों से सजी वास्तुकला सहित, इस मंदिर की सभी इकाइयों का उत्थान सुंदर है। इस मंदिर की कुछ मूर्तियाँ चोल कला की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं। 63 नयनमारों (शैव संतों) के साथ हुई घटनाओं को उजागर करने वाली अंकितक लघु चित्र वल्लरियाँ उल्लेखनीय हैं और इस क्षेत्र में शैव पंथ की गहरी जड़ों को प्रदर्शित करती हैं। मुख्य मंदिर के निर्माण के कुछ समय बाद, देवी के लिए एक अलग मंदिर का निर्माण, दक्षिण भारतीय मंदिर परिसर के एक आवश्यक अंग के रूप में अम्मान मंदिर के उद्भव को प्रकट करता है।
मानदंड (i): दक्षिण भारत के ये तीन चोल मंदिर, द्रविड़ शैली के मंदिरों के शुद्ध रूप की स्थापत्य अवधारणा में एक उत्कृष्ट रचनात्मक उपलब्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मानदंड (ii): तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर चोल मंदिरों का पहला महान उदाहरण बना, जिसके निर्माण के बाद अन्य दो स्थलों का भी विकास हुआ।
मानदंड (iii): ये तीन महान चोल मंदिर चोल साम्राज्य की वास्तुकला और दक्षिणी भारत में तामिल सभ्यता के विकास के असाधारण और सबसे उत्कृष्ट प्रमाण हैं।
मानदंड (iv): तंजौर, गंगैकोंडचोलपुरम, और दारासुरम के महान चोल मंदिर वास्तुकला और चोल विचारधारा के प्रतिनिधित्व के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

ये मंदिर, चोल काल से लेकर मराठा काल तक द्रविड़ वास्तुकला के विकास का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये तीनों स्मारक, इस स्थल के नामांकन के समय से लेकर अब तक संरक्षण की एक अच्छी स्थिति में हैं और कोई भी बड़ा खतरा इन विश्व धरोहर स्मारकों को प्रभावित नहीं कर रहा है। इन स्मारकों का रखरखाव और इनकी निगरानी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की जाती है। हज़ारों सालों पहले स्थापित इन मंदिरों में आराधना और अनुष्ठान की परंपराएँ, जो उससे भी पहले के आगम ग्रंथों पर आधारित हैं, लोगों की ज़िन्दगी के एक अभिन्न हिस्से के रूप में आज भी दैनिक, साप्ताहिक और वार्षिक तौर पर जारी हैं।

इन तीनो स्थलों की, उनकी संकल्पना, सामग्री और कार्यान्वयन के संबंध में, प्रामाणिकता स्थापित है। ये मंदिर अभी भी उपयोग में हैं, और उनके महान पुरातात्विक और ऐतिहासिक मूल्य हैं। ये मंदिर परिसर प्रमुख शाही शहरों का हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन आज मुख्य रूप से ग्रामीण संदर्भ में उत्कृष्ट विशेषताओं के रूप में स्थापित हैं। तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर परिसर के भागों को 1987 में विश्व धरोहर संपत्ति घोषित किया गया, जिसमें छह उप-मंदिर भी शामिल हैं जिन्हें समय के साथ मंदिर के प्रांगण में बाद में जोड़ा गया था। बाद में किए गए परिवर्धन और हस्तक्षेप, इसकी समरूपता और समग्र अखंडता को ध्यान में रखते हुए, मुख्य मंदिर परिसर में सन्निहित मूल अवधारणा को सुदृढ़ करते हैं। आराधना और अनुष्ठान के लिए मंदिर का पारंपरिक उपयोग इसकी प्रामाणिकता में योगदान देता है। हालांकि 2003 की आवधिक रिपोर्ट में संरचनाओं की रासायनिक सफाई और मंदिर के फ़र्श का पूर्ण रूप से प्रतिस्थापन जैसे कई संरक्षण हस्तक्षेपों की ओर ध्यान खींचा गया है जो संरचनाओं की प्रामाणिकता पर गहरा असर डाल सकते हैं। इससे संपत्ति के संरक्षण को निर्देशित करने के लिए एक संरक्षण प्रबंधन योजना की आवश्यकता सामने आई है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मंदिर परिसरों की प्रामाणिकता बनी रहे।

इसी प्रकार, गंगैकोंडचोलपुरम के बृहदेश्वर मंदिर परिसर में, चंदेसा और अम्मान उप-मंदिर मूल रूप से राजेंद्र प्रथम और साथ ही सिंहकेनी (सिंह-कुआँ) की योजना के अनुसार बनाए गए थे। समय के साथ थेंनकैलाश, गणेश और दुर्गा उप-मंदिरों को जोड़ा गया। इन परिवर्धनों की प्रामाणिकता, आगम ग्रंथों में मौजूदा मंदिरों के नवीनीकरण और पुन:निर्माण संबंधी निर्देशों द्वारा समर्थित है।
दारासुरम में, राजपत्र के बाद से पुरातात्विक साक्ष्य संपत्ति की प्रामाणिकता को और बढ़ा देते हैं। अकेला एरावतेश्वर मंदिर ही ऐसा मंदिर है, जिसे बिना किसी अतिरिक्त संरचनाओं के साथ एक ही समय पर बनाया गया है, और वह आज तक अपने मूल रूप में ही मौजूद है। एरावतेश्वर मंदिर के निर्माण के कुछ समय बाद निर्मित देवनायकी अम्मान मंदिर भी अपनी परिसीमा के भीतर अपने मूल रूप में स्थित है।

तीनों सांस्कृतिक स्थल, अर्थात तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर परिसर, गंगैकोंडचोलपुरम का बृहदेश्वर मंदिर परिसर, और दारासुरम का एरावतेश्वर मंदिर परिसर क्रमशः 1922, 1946 और 1954 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण में हैं। इसके अलावा, ये तीनों मंदिर, वर्ष 1959 में जारी होने के समय से, तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम के अधीन हैं। इसलिए, इन सांस्कृतिक संपत्तियों के प्रबंधन को दो अलग-अलग भागों में विभाजित किया जा सकता है: (1) भौतिक संरचना, वास्तुकला और स्थल की विशेषताओं, पर्यावरण और परिवेश, चित्रकारियों, मूर्तियों और अन्य अवशेषों सहित संपत्तियों का संरक्षण, मरम्मत और रखरखाव; तथा (2) कर्मचारी प्रारूप और पदानुक्रम, लेखा और बहीखाता, लेख पत्र और नियमों सहित मंदिर प्रशासन। भाग (1) के संबंध में प्रबंधन प्राधिकरण पूरी तरह से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास है, जबकि भाग (2) में शामिल पहलुओं की देखभाल पूरी तरह से तमिलनाडु सरकार के हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग द्वारा किया जाता है। इसलिए, यह स्पष्ट है कि संपत्ति का प्रबंधन, इन दो संस्थाओं, एक केंद्रीय और दूसरी राजकीय संस्था द्वारा, संयुक्त रूप से किया जाता है।

इन दो संस्थाओं की कार्यप्रणाली में उनकी प्रबंधन योजनाओं को स्वतंत्र रूप से तैयार करना और समय-समय पर उनकी समीक्षा करना शामिल है। जब आवश्यक होता है, तब संयुक्त विचार-विमर्श किया जाता है और किसी भी स्पष्ट विरोधाभास या संघर्ष के मुद्दों पर उचित विचार किया जाता है और उन्हें हल किया जाता है। तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर और दारासुरम के एरावतेश्वर मंदिर के मामलों में, ये संस्थाएं किसी भी ऐसे मुद्दे को अंतिम रूप देने से पहले राजभवन देवस्थानम के वंशानुगत ट्रस्टी से परामर्श करती हैं, जिसमें ट्रस्टी के विचार लेना आवश्यक होता हो।

हालाँकि, विस्तारित संपत्ति के नामांकन के बाद से, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, और तमिलनाडु सरकार के हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग, संपत्ति प्रबंधन योजना का एक ही मिला-जुला मसौदा तैयार करने पर सैद्धांतिक रूप से सहमत हुए हैं। इसमें न केवल दोनों पक्षों की विशिष्ट आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाएगा बल्कि तीनों सांस्कृतिक संपत्तियों की रक्षा और संवर्धन के सबंध में मूलभूत उद्देश्यों की पूर्ती भी की जाएगी, जिनमें (1) उनके उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य; (2) वैदिक और आगमिक परंपराओं और लोगों के जीवन में उनके महत्व; (3) कला (मूर्तिकला, चित्रकला, कांस्य कला, नृत्य, संगीत, और साहित्य) जैसे पारंपरिक अविभाज्य संस्कृति घटकों; तथा (4) वास्तु और शिल्प शास्त्रों के प्राचीन विज्ञान, मंदिरों और धार्मिक संरचनाओं के निर्माण और मूर्तिकला और चित्रकला हेतु मूलभूत दिशानिर्देशों, को बढ़ावा देना शामिल होगा।

संपत्ति को विश्व धरोहर संपत्ति घोषित करने के बाद से, स्मारकों को अच्छी दशा में संरक्षित रखा गया है और इनको किसी भी प्रकार से कोई हानि होने का खतरा नहीं है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इन स्मारकों का रखरखाव और समय-समय पर इनकी जाँच की जाती है, जिससे ये स्मारक, पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। हालाँकि, आगामी कार्यों के दिशानिर्देश हेतु एक पर्यटन प्रबंधन और विवेचन योजना और संरक्षण प्रबंधन योजना आवश्यक है, जो संरक्षण और विवेचन के प्रयास के लिए प्राथमिकताएँ निर्धारित कर सके। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए जगह-जगह पर पीने का पानी, शौचालय, आदि, जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान की गई हैं। दीर्घकालिक योजनाओं में भूनिर्माण और पर्यटकों की सुविधाओं में सुधार जैसी योजनाएँ भी शामिल हैं। ये मंदिर पिछले 800-1000 वर्षों से आस्था के केंद्र रहे हैं और आगे भी ऐसे ही बने रहेंगे। आगंतुकों की संख्या और इसके प्रभावों की निगरानी आवश्यक है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस संपत्ति के अद्भुत सार्वभौमिक मूल्य को कोई खतरा ना पैदा हो।

विदेशी भी दीवाने हुए कुंभ मेले के

प्रायगराज में चल रहे महाकुंंभ में दुनिया भर से आए विदेशियों को भी रोमांचित कर दिया है। यहाँ आकर हर कोई कुंभ और सनातन संस्कृति का दीवाना हो गया है।  दुनिया भर से श्रद्धालु मानवता के सबसे बड़े समागम, उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ मेले में भाग लेने के लिए भारत आ रहे हैं।
महाकुंभ-2025 यानी पूर्ण कुंभ 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। इसकी शुरुआत मंगलवार को हो गई। प्रमुख ‘स्नान’ तिथियों में 14 जनवरी (मकर संक्रांति – पहला शाही स्नान) हो चुका है और अब 29 जनवरी (मौनी अमावस्या – दूसरा शाही स्नान), 3 फरवरी (बसंत पंचमी – तीसरा शाही स्नान), 12 फरवरी (माघी पूर्णिमा), और 26 फरवरी ( महा शिवरात्रि ) को प्रमुख शाही स्नान होगा।

स्पेन की एक श्रद्धालु नतालिया उर्फ यमुना देवी ने महाकुंभ मेले के दौरान प्रयागराज में पवित्र स्नान करने के बारे में पत्रकारों से बात की और कहा, “जैसा कि आप जानते हैं कि यह एक शुभ अवसर है, आज बहुत सारे संत महाकुंभ में स्नान करेंगे और आज पौष पूर्णिमा भी है। इसलिए, हम भाग्यशाली हैं कि हमें गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम में पवित्र डुबकी लगाने का मौका मिला।”

रूस की प्रियमा दासी ने कहा कि हम यहां एक मुख्य उद्देश्य से आए हैं। हम अपने गुरुदेव के मार्गदर्शन में और सनातन धर्म का प्रचार करने के उद्देश्य से यहां आए हैं। हम लोगों के साथ इस ज्ञान को साझा करना चाहते हैं। हम लोगों को वास्तविक जीवन, धर्म के बारे में याद दिलाना चाहते हैं कि वे इस दुनिया में वास्तव में कैसे खुश रह सकते हैं।

इज़राइल से ही एडल ने कहा कि यह एक शानदार अनुभव रहा। “हमने हर पल का आनंद लिया, लोगों का, जगह का, खाने का। हमने डुबकी लगाई, थोड़ी ठंड का भी सामना किया।”

पहले ‘शाही स्नान’ के दिन मंगलवार को 35 मिलियन से अधिक श्रद्धालुओं ने संगम में पवित्र डुबकी लगाई।

एक अन्य श्रद्धालु ने  कहा कि महाकुंभ एक “अद्भुत” अनुभव रहा है। उन्होंने कहा, “मुझे यहां के लोग पसंद हैं, मुझे यहां की संस्कृति पसंद है, मुझे यहां का खाना पसंद है, मुझे भारत की हर चीज पसंद है। मैं दोबारा आऊंगी। यह मेरी पहली यात्रा नहीं है और न ही आखिरी।”

महाकुंभ मेले में भाग लेने इजरायल से आईं राखेले ने इस अनुभव को “रोमांचक और उत्साहवर्धक” बताया। उन्होंने गाजा में हमास द्वारा बंधक बनाए गए लोगों की रिहाई का भी आह्वान किया।”बहुत ही रोमांचक, बहुत ही उत्साहवर्धक…सच में इसका आनंद ले रहा हूँ। लोगों से प्यार करता हूँ, वे बहुत दयालु हैं लेकिन मुझे अपने समूह के साथ जाना है। मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि हम इज़राइल से हैं और हम बंधकों को रिहा कराना चाहते हैं। वे बहुत ही भयानक स्थिति में हैं,” राखेले ने कहा।

बुल्गारिया से आई इग्नेसिया ने बताया कि वह वाराणसी से आई थी और वहां बहुत ज़्यादा ट्रैफ़िक था। “मैं आज यहां पहुंची और लोग बहुत मिलनसार हैं।”

अर्जेंटीना से आए फिलिप ने बताया कि वे पिछले पांच महीनों से भारत में यात्रा कर रहे हैं। “पहली बार कुंभ मेले में आए हैं। बहुत उत्साहित हैं, हां हम नदी में पवित्र डुबकी लगाएंगे, कर्मों को शुद्ध करेंगे।”

मथियस, जो अर्जेंटीना से हैं, ने कहा कि वे महाकुंभ मेले में भाग लेने के लिए उत्सुक हैं। “यह अद्भुत है। बहुत भीड़, बहुत आध्यात्मिकता और बहुत भक्ति। इसमें भाग लेने के लिए उत्सुक हूँ। मैं बहुत उत्साहित हूँ। मैं अभी ट्रेन से आया हूँ।”

यह पूछे जाने पर कि उन्हें महाकुंभ के बारे में कैसे पता चला, मथियस ने कहा कि वह एक शिक्षक से मिले थे और उन्होंने कुंभ मेले के बारे में बात की थी। “मुझे बहुत, बहुत दिलचस्पी थी क्योंकि सभी साधु पहाड़ों से आते हैं, शिक्षा देते हैं, और आप इस पवित्र सभा में भाग ले सकते हैं।”

यूरोप में काम कर रहे एक रूसी श्रद्धालु ने कहा, “हम अपने जीवन में पहली बार कुंभ मेले में आए हैं, इसलिए हम बहुत उत्साहित हैं। आप असली भारत को देख रहे हैं, और भारत की असली ताकत उसके लोग हैं। मैं लोगों और पवित्र स्थान के उत्साह के कारण कांप रहा हूँ। मुझे भारत से प्यार है, मेरा भारत महान है!”

जेरेमी, एक अन्य भक्त, ने “गंगा माँ, यमुना माँ” के दर्शन के अपने अनुभव के बारे में बताया, उन्होंने आगे कहा कि वे सात वर्षों से सनातन धर्म का पालन कर रहे हैं। “तर्क समझ में आता है। इसमें आस्था है, लेकिन अंधविश्वास भी नहीं है। यह सुंदर है।”

पहली बार भारत आए जोनाथन ने कहा कि भारत में उनका अनुभव “उत्कृष्ट” रहा है।

“मुझे लगता है कि लोग बहुत प्यारे हैं, और खाना भी लाजवाब है। सभी तीर्थस्थलों, पवित्र स्थलों और मंदिरों को देखना अद्भुत रहा है। हम शाही स्नान और अन्य आयोजनों में से एक करने की उम्मीद कर रहे हैं। तो हाँ, यह रोमांचक है,” उन्होंने कहा।

दुनिया भर से श्रद्धालु प्रयागराज आ रहे हैं। इससे पहले, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और स्पेन के तीर्थयात्रियों ने एएनआई को बताया कि वे यहां आकर “धन्य” और “बहुत भाग्यशाली” हैं।

ब्राजील के श्रद्धालु फ्रांसिस्को ने एएनआई को बताया, “यहां का माहौल अद्भुत है; भारत दुनिया का आध्यात्मिक हृदय है… पानी ठंडा है, लेकिन हृदय गर्मजोशी से भरा है।”

इस वर्ष महाकुंभ का महत्व और भी बढ़ गया है, क्योंकि यह एक दुर्लभ खगोलीय संयोग के साथ घटित हो रहा है, जो 144 वर्षों में केवल एक बार घटित होता है।

यातायात पुलिस अधिकारियों ने महाकुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुचारू यातायात सुनिश्चित करने के लिए व्यापक प्रबंध किए हैं और विस्तृत योजना लागू की है।

महाकुंभ 12 वर्षों के बाद मनाया जा रहा है और इस आयोजन में 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है।

बाल कहानियों में राष्ट्रप्रेम एक महती आवश्यकताः रेखा लोढ़ा

( रेखा लोढ़ा ‘स्मित’,भीलवाड़ा से डॉ. प्रभात कुमार सिंघल का साक्षात्कार ) 

 ” जिस प्रकार गीली मिट्टी में जैसे बीज डालते हैं वैसी ही पौध उगती है , वैसे ही बच्चे के कोमल मन में जैसे संस्कार डालेंगे वैसा ही उनके व्यक्तित्व निर्माण होता है। राष्ट्र प्रेम, राष्ट्रीय चेतना का भाव भी बाल्यकाल में ही रोपित किया जा सकता है। बच्चा स्वभाव से जिज्ञासु व कल्पनाशील तो होता है पर वह बल पूर्वक थोपी गई बातों को स्वीकार नहीं करता। ऐसे में बाल साहित्य और विशेष तौर से बाल कहानियाँ ऐसा सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा रोचक व मनोरंजक तरीके से बच्चों में राष्ट्र प्रेम, संस्कृति व परम्पराओं से लगाव का विकास किया जा सकता है।” बाल साहित्य में राष्ट्र प्रेम की आवश्यकता पर मैंने भीलवाड़ा की बाल लेखिका रेखा लोढ़ा ‘स्मित’ से जनवरी 25 के प्रथम सप्ताह में नाथद्वारा में साहित्य मंडल के समारोह के दौरान चर्चा की तो उन्होंने उक्त विचार व्यक्त किए। 


बच्चों में राष्ट्र प्रेम की आवश्यकता के प्रश्न पर उन्होंने कहा , ” आज बहुतायत में सूचनापरक, जानकारी परक बाल कहानियाँ लिखी जा रही है। आज की गूगल पीढ़ी जो एक टच पर सूचनाओं का संसार रखती है। जहाँ दुनिया में सूचनाओं की एक बाढ़ सी आई हुई है। क्या हम ऐसी सूचनात्मक कहानियों से उनकी सूचनाओं कोई वृद्धि कर पाएंगे। शायद नहीं। यह ज्ञान बच्चों में  मानवीय संवेदना और राष्ट्र प्रेम नहीं जगा सकता, जिसकी आज महती आवश्यकता है। 
 


राष्ट्र प्रेम को आप किस प्रकार परिभाषित करती हैं के प्रश्न पर वे कहती हैं, ” हम भारत की धरती पर खड़े होकर राष्ट्र शब्द उच्चारित करते हैं तो राष्ट्र को लेकर शेष विश्व से अलग अवधारणा हमें दृष्टिगोचर होती है। हमारे यहाँ राष्ट्र सीमाओं में बंधा कोई भूभाग मात्र नहीं होता। इसका एक व्यापक अर्थ है। जिसमें संस्कार, संस्कृति, परम्परा, जीवन मूल्य, नैतिक मूल्य चरित्र, चेतना और सामंजस्य जैसे कईं घटक सम्मिलित हैं। हम राष्ट्र को अपनी माँ मानते हैं। माँ से संतान का प्रेम कितना अगाध कितना प्रगाढ़ होता है इसे परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है। पर यह प्रेम यह भाव विकसित हो यह बालपन से ही बालकों के पोषण और उनके समाजीकरण पर निर्भर करता है। यदि व्यक्ति में राष्ट्र प्रेम का भाव दृढ़ता से समाहित हो तो इस एक भाव से ही उसमें अन्य चारित्रिक विशेषताएं उपस्थित हो जाएगी। जिस व्यक्ति को अपने राष्ट्र से प्रेम होगा वह कभी भी ऐसा व्यवहार नहीं कर सकता जिससे राष्ट्र की अस्मिता उसकी गरिमा पर कोई आँच आए।  वह एक अच्छे नागरिक की भाँति ही व्यवहार करेगा। ताकि राष्ट्र का गौरव सदैव बना रहे। इस भाव को रोपित करने के लिए। “ 

 बच्चों को संस्कारित करने में बाल साहित्य के बारे में आप क्या सोचती हैं के उत्तर में उन्होंने बताया कि बच्चों को संस्कारित करने के लिए बाल साहित्य और उसमें भी बाल कहानी व कविता एक सशक्त माध्यम है जो बच्चों के मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ती है ।बालक अपने आसपास उपस्थित प्रत्येक वस्तु और घटना के विषय में जानने के लिए उत्सुक होते हैं। उनकी जिज्ञासा को तथा मानसिक शक्ति को सही दिशा देने के लिए भारतीय प्राचीन साहित्य में भी विधान था। पंचतंत्र हितोपदेश, कथा-सरित्सागर और सिंहासन बतीसी जैसी रचनाओं के लेखक के मन में निश्चित रूप से बालकों के व्यक्तित्व के विकास की रूपरेखा बनी होगी। प्रसिद्ध कवि तथा कथाकार गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर लिखते हैं – ठीक से देखने पर बच्चे जैसा पुराना और कुछ नहीं है। देश, काल, शिक्षा, प्रथा के अनुसार वयस्क मनुष्यों में कितने नए परिवर्तन हुए हैं, लेकिन बच्चा हजारों साल पहले जैसा था आज भी वैसा ही है। यही अपरिवर्तनीय, पुरातन, बारम्बार आदमी के घर में बच्चे का रूप धरकर जन्म लेता है, लेकिन वह सबसे पहले दिन जैसा नया था, सुकुमार, भोला, मीठा था, आज भी वैसा ही है। इसकी वजह है कि शिशु प्रकृति की सृष्टि है, जबकि वयस्क आदमी बहुत अंशों में आदमी के अपने हाथों की रचना होता है। रवीन्द्रनाथ टैगोर की मान्यता है कि बालकों के कोमल, निर्मल और साफ मस्तिष्क को वैसे ही सहज तथा स्वाभाविक बाल साहित्य की आवश्यकता होती है।  

 क्या बच्चा आज नैतिक मूल्यों से दूर होता जा रहा है के प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा, ” इन सब आवश्यक और अनावश्यक जानकारियों से और इनमें कोई फिल्टर नहीं होने से आज हमारी संस्कृति व परम्पराओं से दूर उनसे विलग एक नई संस्कृति का निर्माण हो रहा है। हमारे नैतिक मूल्यों व गौरवशाली अतीत से बालक दूर हो रहा है। आज का बालक राष्ट्र से अपने आप को उस तरह नहीं जोड़ पा रहा है जैसा हमारी भारतीय विचार धारा रही है। आज की कहानियों में इन्ही तत्वों की महती आवश्यकता है जो  बालकों को राष्ट्र से, जननी, जन्मभूमि वाले भाव के साथ जोड़ पाए। हमें बाल कहानी के माध्यम से बालकों को इन्ही घटकों से परिचित करवाने की आवश्यकता है। 

      
वाल्मीकि रामायण से उद्धत  प्रसिद्ध श्लोक की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया  “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” अर्थात माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी अधिक महत्वपूर्ण है, इससे यह तो तय ही है कि हमारे जीवन में बाकी सभी दुनियावी वस्तुओं से माँ और मातृभूमि बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। जन्मभूमि यानि उस राष्ट्र की भूमि, जिस राष्ट्र में हमने जन्म लिया हम पले-बढ़े, पोषित हुए। उस भूमि से प्रेम करना, उसे सर्वोपरि रखना तभी सम्भव होगा जब हमारे संस्कार में राष्ट्र प्रेम का भाव होगा। हमारी धमनियों में रक्त के साथ राष्ट्र प्रेम भी प्रवाहित होगा। यह राष्ट्रप्रेम तभी हमारे अंदर विकसित हो सकता है जब हमें  शिशु काल से घुट्टी के साथ राष्ट्रप्रेम के भाव का पान कराया गया हो। 

   बच्चों की बदलती मनोवृति के लिए वर्तमान में लिखा जा रहा बाल साहित्य कहां तक जिम्मेदार मानती हैं प्रश्न पर उन्होंने कहा कि  वर्तमान में युवा पीढ़ी जिस पाश्चात्य जीवन की अंधभक्त हो रही है उसे रोकने, उनको दिशा देने के लिए बाल कहानी ही वह सशक्त माध्यम है जो बालको को संस्कारित करने की क्षमता रखती है और संस्कारित राष्ट्रीय चेतना से ओतप्रोत पीढ़ी का निर्माण कर सकती है। 

 वर्तमान बच्चों की बदलती सोच के लिए एक हद तक  वर्तमान में लिखा जा रहा साहित्य जिम्मेदार है। आज का अधिकांश  साहित्यकार मान, नाम और यश के लिए लेखन करता है।  

आज लिखी जा रही बाल कहानियों में पिष्टपेषण अधिक होता है। पटल पर एक रचना लिखी गई सब उसी भाव-भूमि पर दौड़ने लगते हैं। किसी विषय की कोई रचना सम्मानित हुई, पुरस्कृत हुई सभी उसी विषय के पीछे भाग पड़ते हैं। जबकि आज की पीढ़ी में धूमिल होते राष्ट्र प्रेम, राष्ट्रीय चेतना के अभाव और हमारी संस्कृति व परम्पराओं के क्षरण के इस काल में ऐसी कहानियों के लेखन की महती आवश्यकता है जो बच्चों के सुसंस्कारित कर उनमें राष्ट्रप्रेम की नींव मजबूत कर सके, क्योंकि बच्चे राष्ट्र की आत्मा हैं। उन्हींमें भविष्य के अंकुरण की  संभावना है। उन्ही में वर्तमान खिलखिलाता है।  बालक ही संस्कृति के संवाहक एवं बीते हुए कल को सहेज कर रखने की महत्वपूर्ण कड़ी हैं। 

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प्रस्तुति : डॉ. प्रभात कुमार सिंघल 

लेखक एवं पत्रकार, कोटा

चिन्ताहरण पाण्डेय “फूल”: एक कालजयी कवि

बस्ती मण्डल के छन्दकारों मे कलजई कवि का परिचय डॉ मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ जी के शोध प्रबंध “बस्ती के छंदकार” से सुलभ हो सका है। सुकवि चिन्ताहरण पाण्डेय “फूल” जी का जन्म बस्ती जिले के ओडवारा के पास मिटवा नामक ग्राम में 2 अक्टूबर सन 1925 ई. को तदनुसार सं० 1982 वि० में हुआ था। इनके पिता का नाम पण्डित देवशरण पाण्डेय था। फूलजी की शिक्षा- दीक्षा मेधावी माता के साहचर्य में गौरखपुर में समाप्त हुई थी। सन 1944 से फूलजी गन्ना विभाग के विविध पद पर कार्य करते हुए निरीक्षक के पद से 1983 में सेवामुक्त हुए थे। सन् 1945 से फूलजी अपने मनोहारी व्यक्तित्व और कृतित्व से बस्ती जनपद के काव्य-मंच पर छा गये थे । कवि “सनेही”जी और “हितैषी” जी से स्नेह पाकर “फूल” जी ने छन्दों के माध्यम से अपनी काव्य-यात्रा प्रारंभ की थी । फूलजी कवि “नन्दन” जी के योग्य शिष्यों में से थे। इस संदर्भ में नन्दन जी की दो पंक्तियाँ द्रष्टव्य है-

कवि फूल सुवाम मालिंद सदा

बिहरे जिसमें वह “नन्दन” हूँ।।

“नन्दन” जी के शिष्य होने के साथ-साथ फूल जी काव्य के क्षेत्र में अब्वास अली “बास” के कवि-भाई भी हैं। जिसकी पुष्टि इन पक्तियों से होती है-

“नन्दन” का नाज “फूलजी” का हमराज “बास”, नेह नागरी से गंवई में रहने लगा।                        – (आइना, शुभकामना से )

     फूलजी की प्रारंभिक कविताएँ सुकवि, रसराज और अनुरंजिका आदि पत्रिकाओं में बड़े धड़ल्ले के साथ छपती रहीं। इनके मुस्कराते हुए अधरों से उछलते हुए गीतों के स्वर कवि सम्मेलों में हजारों श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे ।

रचनाएं:-

“फूल जी का प्रकाशित साहित्य इस प्रकार हैं –

1- जवानी के गीत

2- पंचामृत

3- स्वर के तौर

4- आइना

उनकी अकाशित साहित्य की सूची इस प्रकार है –

1- साहित्य की ओर

2- डूबते स्वर

3- खामोशी

विस्तार से रचनाओं की जानकारी:-

1.जवानी के गीत :-

फूलजी की यह प्रथम रचना आग और पराग गीतो के माध्यम से जैसे ही जनपदीय छन्दकारों के सम्मुख आई उसे बहुत से लोगो ने सराहा I “अग्नि करण” शीर्षक में क्रांतिकारी  गीत वर्तमान समाज पर तीखे व्यंग्य के परिप्रेक्ष्य में किया गया है-

फैलेगा अमर प्रकाश धरा में क्षण में,

फिर आंख क्रांति का सूर्य निकल जाने दो।

वह स्वर्ग धरा के चरण स्वयं चूमेगा,

चाँदी का चाँद निकल दर दर पर घूमेगा ।

यह व्यथित विश्व अलमस्त बना झूमैगा।

पर आंख जवानी के प्यालों में पहले

अभय प्रलय की मदिरा ढल जाने दो ।

निष्प्राण सभी यह जादू टोना होगा,

धरती का कण-कण सोना-सोना होगा।

जग का आलोकित कोना-कोना होगा,

उन अमर शहीदों की बेदी पर पल भर

कुछ तप्त रुधिर के दीपक जल जाने दो।

– (जवानी के गीत से।)

        गीत की इन पंक्तियों में भावो का गौरवमय रूप मुखरित हो उठा है। जवानी के प्याले में त्याग और बलिदान के भावना की मदिरा ढलने से ही राष्ट्रीयता की बलिवेदी पर क्रान्ति का तुमुल बज उठता है। इस संदर्भ मै कवि का विचार उत्तम है।

2.पंचामृत :-

दूसरा काव्य-संग्रह “पंचामृत धार्मिक पृष्ठभूमि पर पाँच मुख्य आराध्य देवो के 108 नामों के पर्याय छन्दों में प्रस्तुत किया गया है। इसमें आस्तिकता का स्वर है और कवि के भावों का मानवीय उद्घोष ।

3.”स्वर के तीर”:-

तीसरा संग्रह  “स्वर के तीर” राष्ट्रीयता से सम्वलित भावधारा में गीतों और छन्दों का पुट देकर लिखा गया है। इसके गीतों में कवि का जीवनदर्शन उभरता हुआ दिखाई पड़ता है।

4.आईंना :-

फूल जी की चौथी कृति “आईना” का प्रकाशन स्वतंत्र प्रकाशन,गौरखपुर से 1982 में हुआ है। इसमें कुल 87 पृष्ठ हैं। बाद में 9 पृष्ठ गजल के हैं। गीत, मुक्तक, गजल आदि के साथ फूलजी ने इसमें कुछ सवैया छन्दों का भी संग्रह  प्रस्तुत किया है। इन छन्दों में अनेक दार्शनिक विचार सर्वत्र उभरते हुए दिखाई देते हैं। जीवन सन्ध्या  पर लिखे हुए कुछ छन्द यहां प्रस्तुत हैं-

जीवन की उत्पत्ति जहा उस,

स्रोत की थाह लगाने चला हूँ।

स्वर्ग की मादक रागिनी से

अपने उर तार सजाने चला हूँ।

सैकड़ों कल्प से खोई हुई निधि

को अपने फिर पाने चला हूं।

साझ हुई उस जीवन की

उस लोक में दीप जलाने चला हूँ।।

     – (आईना, पृष्ठ 76)

पुनः एक और छन्द प्रस्तुत है –

जीवन का जलता जिसमें

वह यौवन आग का फैसला होगा ।

ले चला  है मजधार में जो

अपने उस भाग्य का फैसला होगा ।

जो उर सिन्धु जला चुका है

उस दीपक राग का फैसला होगा।

आज ही तो अपनाये गये

जग के अनुराग का फैसला होगा।।

जीवन की नश्वरता और अन्तिम क्षणों का चित्र कवि ने कितने मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है-

दीन सभी धन धाम अरे,

बस चादर श्वेत ओढ़ाई गई है।

स्वर्ग से वैभव छोड़ के केवल,

बॉस की ठाट सजाई गई है।

लाख करोड़ की बात ही क्या,

मग के लिए दी नही पाई गई है।

जानता था जिसको अपना,

उसके कर आग लगाई गई है।।

मृत्यु के साथ जीवन की जीवन्तता और इस असार संसार की निस्तरता का वर्णन कवि ने “मानस हंस” शीर्षक से प्रस्तुत किया है। यहाँ अन्योक्ति का बडा अच्छा प्रयोग है।

मानस हंस बने अनजान

कहाँ इस विश्व को छोड़ चलोगे।

झंकृत जीवन बीन के तार

उन्हें फिर आज मरोड़ चलोगे।

सैकड़ों वर्ष से साथ से संचित

क्यों घट नेह का फोड़ चलोगे।

सांझ से जोड़ी हुई यह जीवन

डोर अचानक तोड चलोगे।।

पुनः एक और छन्द प्रस्तुत है –

आते देख के काली निशॉ

उसलोक में क्या जो अंधेरा ना होगा।

यौवन मादकता से भरा

अरे सीमित जीवन घेरा ना होगा ।

भ्रांति लिये भ्रम भेद की भावना,

भूल प्रपंच का डेरा ना होगा।

जीवन के मिटते क्षणों मे क्या

काल कराल का फेरा न होगा।।

इसी  संदर्भ में पुनः एक छंद प्रस्तुत है –

बावला सा बन विश्व की आग से

बंधन नेह की जोड़ने वाले ।

जीवन सागर की लहरों में

अचेत सा हो सर फोड़ने वाले ।

भूत में भुले हुए अभिमान में

डूबे हुए दम तोड़ने वाले।

बाँधले जो कुछ बाँधना हो अरे!

वो इस विश्व को छोड़ने वाले ।।

कवि ने कबीर के जीवन दर्शन से प्राप्त विचारों को इस छंद के माध्यम से उन मनुष्यों की ओर  संकेत किया है जो संसार को सब कुछ समझ कर जीते है और अपने को भूल जाते हैं। “मानव” शीर्षक कविता के छन्द अपनी मौलिकता के लिए अधिक सटीक है-

मोह के पाश में बद्ध हो बुद्धि

विवेक विसात ही भूल गया तू ।

चांदनी देख के मोहिनी ही तम

तोम की रात को भूल गया तू ।

जीवन कानन में अपने अपने

उत्पात को भूल गया तू ।

वैभव देख के स्वप्न सने उस

काल की बात ही भूल गया तू ।।

यहा” “उस काल” मे श्लेष अलंकार का प्रयोग है। इसके माध्यम से कवि ने भावी मृत्यु के क्षणो को दिखलाया है। इस जीवन का अन्तिम क्षण चिन्ताग्नि की महालीला में विलीन हो जाना है। उसे कवि उपस्थित करते हुए कहता है –

भूलता है जिस काल को तू

उसको निज बाह में भेटना होगा।

जीवन पत्र के चित्रित चित्र

तुम्हें अपने कर मेटना होगा।

प्राण से जोड़ा हुआ यह साँस

भरा ब्यवहार समेटना होगा।

ले निज कर्म की खाता बही

बस अन्त चिता पर लेटना होगा।।

रोक ली सास कनी अपनी

अपने अरमान भी मार के देखा

पी लिया है विष प्याले अनेक

कहो कितने दिन प्यार के देखा।

दे न सका प्रतिदान कोई यह

जीवन प्रान भी वार के देखा।

कोई नहीं अपना जग मे,

सपना यह आंख पसार के देखा।।

“मेरे प्रकाश” शीर्षक कविता में कवि का जीवन दर्शन प्रस्तुत है-

कभी जीवन ज्योति न मन्द हुई,

पलटा कभी भाग्य ने फेरा  नही ।

सच मान ली भूल के आया कभी,

इस देश मे कोई लुटेरा नही। ।

इस जीवन चांद को आके कही,

तम तोम अभागे ने घेरा नहीं ।

अरे मेरे प्रकाश सुनो तो सही,

तुमने अभी देखा अंधेरा नहीं।।

पुन: इसी संदर्भ में सुख और दुख, प्रकाश और अन्धकार से सदर्भित दूसरा छन्द इस प्रकार है –

जिसने किया जा के रसातल वास न

न देखा कभी महाकाश न देखा ।

अपने में ही आप को देखा किया,

उसमें भगवान निवास न देखा ।

विषपान में जीवन बीता जहाँ,

जिसका उसने मधुमास न देखा ।

अपनाया अंधेरे को है जिसने,

उसने तुम्हें मेरे प्रकाश न देखा ।।

                 – (आइना पृष्ठ 82)

इसी संदर्भ में सुख-दुख “फूल” जी का विधवा के ऊपर लिखा हुआ गीत कितना कारुणिक है-

अपना चुकी हूँ किसी और को मै

कहा मानो मुझे अपनाओ नहीं।

सुधा छोड़ के आई हूं अरे

मुझको विष प्याला पिलाओ नहीं।

उस सुने प्रदेश में स्वप्न मे आके

सनेह की ज्वाला जगाओ नहीं ।

इन आंखों में आँखें  समा चुकी हैं

इन आंखों से आंखे मिलाओ नहीं ।।

काव्य सौष्ठव :-

फूल जी के इन छन्दो मे बडी आकुलता है। जीवन की उत्कंठा और उसकेअन्तराल में दार्शनिकता की गहराई है। उनके गीतो मे भावों को तल्लीनता साधना कीउदात्तता और कल्पनाओ का स्वर है। रगीन जीवन में दुख-दर्द की झोली लिए सदैव मुस्कराते हुए रहना कवि फूल का स्वयं का जीवन- दर्शन है। फूलजी “पूर्वांचला”और “उपहार” दोनों पत्रिकाओं में अपने भाव व्यक्त करते हैं। शैली की दृष्टि से फूलजी छायावादी गीतकार, विचारों से प्रगतिवादी कविऔर विषय की दृष्टि ने परम्परावादी ठहरते हैं। जो गीत, गजल, मुक्तक, सवैया, धनाक्षरी आदि अनेक छन्द में काव्याभिव्यक्ति की है। — (पूर्वाधना, पृष्ठ 136,)

 “फूल” जी सफल गीतकार और प्रगति शील कवि है। इनकी भाषा परिमार्जित और कोमल भावनाओं से ओत-प्रोत है। आप प्राचीन तथा नवीन दोनो शैलियों में कविताएँ लिखते है।

     संक्षेप मे फूल जी आधुनिक चरण के उत्कृष्ट गीतकार एवं सफल छन्दकार के रूप में सम्मादृत हैं। संस्कृत के पुट में भावना प्रधान ललित भाषा का प्रवाह उर्दू मिश्रित हो करके और ही सरस बन गया है। उर्दू और हिन्दी के द्वार पर मुस्कराते हुए छन्दकार फूल का जनपदीय छन्दकारों के मंच से स्वागत होता रहा है।

बाल पद्य कथा संग्रहः बच्चों में मानवीय और नैतिक मूल्यों की स्थापना करती रोचक पुस्तक

आओ सोचें  – बरसों पहले, एक साथ खड़े रहने वाले / कैसे बन गए भिन्न – भिन्न, वाणी में कहने वाले / इन तोतों की यही कहानी, हमको यह बतलाती है / जैसा संग करोगे वैसा, रंग चढ़ेगा – दिखलाती है / अतः आप भी अच्छे मित्रों का, ही संग किया करो / बुरा संग है जहर विषैला , सत्संगी अमृत पिया करो
ये पंक्तियां उस पद्य कथा ” सदा अच्छा संग करो ” की हैं जिसे बाल कवि रामेश्वर शर्मा ‘ रामू भैया ‘ ने सु कंठी  और सुपंखी दो तोतों को केंद्र में रख कर लिखी है। पद्य कथा में बच्चों को यही संदेश देने का प्रयास किया है कि हमेशा अच्छी संगत में रहना चाहिए, बुरी संगत का फल हमेशा बुरा ही होता है।
” भलाई करोगे तो भलाई मिलेगी ” पद्य कथा की ये पंक्तियां देखिए……….
और निकाला जिस किसान ने, उसका घुसा हुआ वह शूल / इतने बरसों बाद भी जिसको, शेर नहीं सका था भूल / उस किसान को देख शेर को, सारा मंजर याद आया / इसीलिए तो आज शेर ने, उस हलदार को ना खाया।
   यह पद्य कथा कहती है कभी किसान ने घायल शेर के पैर से कांटा निकला था। एक बार राजा ने उसी किसान को जीवन मृत्यु का दंड दे कर उस शेर के सामने डाल दिया। शेर को किसान की भलाई याद रही इसीलिए शेर ने किसान को खाया नहीं और छोड़ दिया। बच्चों जीवन में भलाई करोगे तो उसका फल मीठा ही होगा।
   ” सफलता की कुंजी ” पद्य कथा मेहनत का फल समझती है। बालक वरदराज पत्थर पर पड़े रस्सियों के निशान को देख कर ,अपनी हीन भावना त्याग कर परिश्रम करने लगता है और अपनी प्रतिभा के बल पर महान ग्रन्थ की रचना करता है।
    ” अहंकार है बुरी बात” में पानी और अग्नि में बहस होती है । दोनों कहते हैं वह बड़े और शक्तिशाली हैं। पानी के छूते अग्नि शांत हो जाती है। कहानी की शिक्षा है कि व्यर्थ में अहंकार नहीं करना चाहिए।
प्यारे बच्चों अहंकार में, जो करते हैं व्यर्थ प्रलाप।
वे करते हैं हानि स्वयं की, मर जाते हैं अपने आप।।
 रामू भैया ने ऐसी शिक्षाप्रद 14 पद्य कथाओं का संग्रह ” बाल पद्य कथा संग्रह ” नाम से 2021 में प्रकाशित की।  पद्य में कथा का यह एक अनूठा प्रयोग किया उन्होंने। हर कथा चार चार पंक्तियों के दोहों में आगे बढ़ती है। एक मयान में दो तलवार का उत्कृष्ट नमूना, कविता और कहानी का मज़ा साथ – साथ।
    एक दिन अचानक किसी कार्य वश उनके घर पर जाना हुआ। उनके सामने यह पुस्तक रखी थी। जिज्ञासा वश पुस्तक को उठा कर पन्ने पलटे तो मन को भा गई और अनुमति लेकर पढ़ने के लिए अपने साथ ले आया। यह  पुस्तक बच्चों से लेखा किशोर वय के बच्चों के लिए लिखी है। किताब की तीन पद्य कथाएं ” राजा रंतिदेव का प्रजा प्रेम “, ” मातृ शक्ति ” और ” पर हित ही मानव धर्म ” उत्तर प्रदेश में कक्षा पांच, छ और आठ के पाठ्यक्रम में तीन वर्षों तक शामिल की गई, जो पद्य कथाओं के महत्व को प्रतिपादित करती हैं।
 अंधविश्वास का फल, मूल्य से बड़ी उपयोगिता, मेहनत का धनमूल, चोरी करना पाप, जैसी संगत वैसा फल, कर्मनिष्ठा और सत्य से ही बड़ा बनता इंसान और सदा अच्छा संग करो
सभी पद्य कथाएं मानवीय और सांस्कृतिक जीवन मूल्यों की स्थापना कर कोई न कोई संदेश देती हैं। सहज,सरल और सुगम भाषा में हृदय ग्राही और मनोरंजनपूर्ण हैं। वर्तमान समय में जब की बच्चों में नैतिक और मानवीय मूल्यों की स्थापना करने की फुर्सत माता – पिता को भी नहीं है, यह पुस्तक मार्गदर्शक का कार्य करेगी ऐसा मैं समझता हूं।
   पुस्तक की भूमिका राजस्थान बाल साहित्य अकादमी के सदस्य भगवती प्रसाद गौतम ने लिखी है। पूर्व महापौर महेश विजय का संदेश भी दिया गया है।
पुस्तक : बाल पद्य कथा संग्रह
लेखक : रामेश्वर शर्मा ‘ रामू भैया ‘
प्रकाशक : माधव राधव प्रकाशन, कोटा
संस्करण : 2022 ( प्रथम )
मूल्य : 50₹
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समीक्षक
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

बहुकोणीय दिल्ली विधानसभा चुनावों में रेवड़ियों पर दाँव

वर्ष 2025 का पहला विधानसभा चुनाव देश की राजधानी दिल्ली में होने जा रहा है। दिल्ली में विगत दस वर्षों से आम आदमी पार्टी की सरकार चल रही है। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व्यक्तिगत और आप पार्टी के संयोजक के रूप में शराब घोटाले के मुख्य आरोपी हैं तथा सुप्रीम कोर्ट की दया पर जमानत पर घूम रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की कड़ी शर्तों के बाद भी वह जनता के बीच लोकलुभावन घोषणाएं कर जनता को  गुमराह कर रहे हैं कि मानो कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया हो। पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया सहित कई अन्य मंत्री व विधायक जेल यात्रा कर चुके हैं तथा कई पर गंभीर आरोपों के चलते जमानत पर हैं।आप सरकार के दो विधायकों पर बांग्लादेशी और रोहिंग्या को बसाने के मामले में गहन जांच चल रही है। अरविंद केजरीवाल पर शीशमहल जैसे कई अन्य घोटालों के भी दाग भी लगे हुए हैं। दिल्ली सरकार का शायद ही कोई भी विभाग ऐसा बचा है जहां हजारों करोड़ का घेटाला न हुआ हो और यह सच्चाई कैग रिपोर्ट से भी प्रकट हो रही है और यही कारण है कि आप सरकार ने कैग रिपोर्ट विधानसभा सत्र में प्रस्तुत नहीं करी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली में आप सरकार को निशाने पर लेते हुए इसे आप-दा बाताया और जनता से इसे उखाड़ फेंकने का आह्वान किया। इस बार कांग्रेस पार्टी भी दिल्ली चुनावों में कमर कस रही है तथा बसपा और एआईएआईएम जैसे कट्टर मजहबी भी चुनावी जंग में उतर चुके हैं। समाजवादी पार्टी ने आप-दा के साथ ही रहने का मन बनाया है। 17 जनवरी को नामांकन पत्र प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि के साथ ही चुनाव की तस्वीर  एक सीमा तक स्पष्ट हो गई है। प्राथमिक और मोटे तौर पर दिल्ली चुनाव में सभी दल रेवड़ियों पर ही दाँव खेलते दिखाई दे रहे हैं शेष सभी मुद्दे गौण हैं।

भाजपा ने जारी किया संकल्प पत्र – दिल्ली विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी इस बार केजरीवाल को  उसी की भाषा में उत्तर दे रही है। पार्टी ने आप के घोटालों, दिल्ली में बढ़ रहे प्रदूषणयमुना नदी की दयनीय स्थिति व मुफ्त नल की असलियत को मुददा बनाते हुए अपना संकल्प पत्र जारी किया है। ऐसा पहली बार हुआ है कि भाजपा ने अपना पूरा संकल्प पत्र नहीं जारी किया है अपितु उसका एक अंश ही जारी किया है और आगामी दिनों में वह  कुछ योजनाएं व संकल्प लगातार जारी करती रहेगी। भाजपा इस बार झुग्गीवासियों का बहुत ध्यान रख रही है और उनके लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास देने का वादा किया है। मध्य प्रदेशराजस्थान व हरियाणा की की ही तरह गरीबों के लिए 5 रुपये में भोजन देने की घोषणा करते हुए पार्टी ने कहा कि इसके लिए अटल कैंटीन योजना का आरम्भ किया जाएगा। मध्य प्रदेश,हरियाणा तथा राजस्थान में यह योजना सफलतापूर्वक चल रही है तथा अत्यंत लोकप्रिय हो रही है।भाजपा रणनीतिकारों का मानना है कि गरीबों के लिए 5 रुपये में भोजन की योजना दिल्ली में भी गेमचेंजर साबित होगी।

भाजपा का संकल्प पत्र जारी करते हुए भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनैतिक संस्कृति को काफी बदल दिया है आज से पहले राजनैतिक दल चुनावी घोषणाओें को भूल जाया करते थे लेकिन अब घोषणापत्र संकल्प पत्र में बदल चुका है। भाजपा ने 2014 में 500 संकल्प किये थे जिनमें से 499 पूरे हो चुके हैं। भाजपा ने संकल्प पत्र जारी करते समय कहा कि जनता के हित में आप सरकार की सभी योजनाएं जारी रहेंगी अपितु उसमें से भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जायेगा। भारतीय जनता पार्टी की ओर से यह बात कई बार कही जा चुकी  है कि क्योंकि आप की ओर से लगातार यह प्रचार किया जा रहा है कि जब बीजेपी सत्ता में आयेगी तब  गरीबों की झुग्गियों में वह बुलडोजर चलवा देगी तथा सभी योजनाओं को बंद करवा देगी जबकि भाजपा का कहना है कि वह सभी झुग्गी वालों को मुख्यधारा में लेकर आएंगे।

भाजपा ने अपने द्वारा शासित अन्य राज्यों की तरह दिल्ली में भी महिलाओं को हर माह 2500 रुपये सहायता राशि देने का संकल्प लिया है। गर्भवती महिलाओ को 21000 रुपये देने व एक न्यूट्रीशनल किट भी देने का संकल्प किया है। भाजपा ने होली -दीपावली के अवसर पर  मुफ्त सिलिंडर तथा 500 रुपए की एलपीजी सब्सिडी देने का वादा किया है। भाजपा ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए 3000 रुपए तक की पेंशन देने, आयुष्मान भारत योजना को दिल्ली में भी लागू करने का ऐलान किया हैं।आयुष्मान योजना का संकल्प लेते हुए भाजपा अध्यक्ष जेपी नडडा ने दिल्ली में चल रहे मोहल्ला क्लीनिक में 300 करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया  तथा जब बीजेपी सरकार आने पर मोहल्ला क्लीनिक के घोटालो की जांच कराने का संकल्प दोहराया। भाजपा ने दिल्ली में सौर योजना लागू करने सहित 300 यूनिट बिजली फ्री देने सहित धार्मिक स्थलों को 500 यूनिट तक फ्री बिजली देने का संकल्प लिया है।

दिल्ली विधानसभा चुनावों में कांग्रेस भी अपने वादों के साथ चुनावी मैदान में दम भर रही है जिसके कारण चुनाव काफी रोचक होता जा रहा है। दिल्ली में कांग्रेस अपनी जमीन वापस पाने तथा बीजेपी सत्ता में वापसी के लिए मैदान में हैं और दोनों ने अपने सभी स्टार प्रचारकों  को मैदान में उतरने को कह दिया है। भाजपा की रणनीति में सभी मुख्यमंत्री चुनाव प्रचार करने जा रहे हैं।  खबर है कि दिल्ली में भी उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैलियों  की बहुत डिमांड है तथा “बटेंगे तो कटेंग“ के पोस्टर दिल्ली की दीवारों पर लग रहे हैं।

सभी दलों ने अपनी पोटली से वादो और संकल्पों का पिटारा खोलकर रख दिया है। सभी ने रेवड़ियों पर दाँव खेला है जिससे आप- दा की सरकार कुछ दबाव में है। यदि कांग्रेस व ओवैसी के कारण मुस्लिम मतों का विभाजन  होता है अथवा बसपा के कारण दलित वोट बैंक कुछ खिसकता है तो फिर आप -दा के लिए दिल्ली की राह कठिन हो जायेगी।

प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित
फोन नं. – 9198571540

जीईएमएस एजुकेशन द्वारा स्कूल शिक्षा में नए प्रयोग

दुबई, संयुक्त अरब अमीरात

  • GEMS स्कूल ऑफ रिसर्च एंड इनोवेशन अगस्त 2025 में दुबई स्पोर्ट्स सिटी में खुलेगा, GEMS की 65 वर्षों की शैक्षिक उत्कृष्टता परिवारों को उपलब्ध कराएगा
  • विशेषज्ञ शिक्षकों, नवीनतम AI तकनीक व उत्कृष्ट सुविधाओं की विस्तृत श्रृंखला इसे दुनिया के शीर्ष निजी स्कूलों में शामिल करेगी
  • प्रमुख शैक्षिक हस्तियों ने अंग्रेजी पाठ्यक्रम स्कूल में शिक्षण को फिर से परिभाषित करने की GEMS की योजनाओं की प्रशंसा की

GEMS Education ने अपने अब तक के सबसे इनोवेटिव स्कूल के लॉन्च की घोषणा की है। GEMS School of Research and Innovation, दुनिया के बेहतरीन स्कूलों में अपनी जगह बनाने के लिए अगस्त 2025 में अपने दरवाजे खोलने के लिए तैयार है। अपने उद्देश्य को पूरा से निर्मित अंग्रेजी पाठ्यक्रम स्कूल विश्व स्तरीय शिक्षण, अत्याधुनिक सुविधाओं और उद्देश्यपूर्ण नवाचार का सहज मिश्रण है जो छात्रों के लिए एक अभूतपूर्व सीखने का अनुभव पैदा करेगा।

शैक्षिक अनुसंधान के लिए वैश्विक केंद्र के रूप में डिज़ाइन किया गया स्कूल चुने हुए विशेषज्ञ शिक्षकों, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की परिवर्तनकारी शक्ति, उन्नत प्रौद्योगिकी और मूल्यों पर आधारित शिक्षा के माध्यम से शिक्षा को अनुकूलित करता है। सेहत एवं प्रसन्नता को केंद्र में रखते हुए, स्कूल वास्तव में समग्र शिक्षा अनुभव प्रदान करने के लिए पारंपरिक सीमाओं को तोड़ कर काम करता है।

नए स्कूल को पहले ही ब्रिटिश शिक्षा जगत के कई उच्च सम्मानित व्यक्तियों द्वारा समर्थन दिया जा चुका है। इसमें Amanda Spielman शामिल हैं, जिन्होंने 2017-2023 तक शिक्षा, बच्चों की सेवाओं और कौशल (OFSTED) में मानकों के लिए His Majesty’s Inspector के रूप में कार्य किया।

इसके अतिरिक्त, Julie Young, एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी की एक बेहद प्रसिद्ध शिक्षिका, प्रर्वतक और दूरदर्शी नेता, जो आभासी, मिश्रित और प्रौद्योगिकी-संवर्धित शिक्षा सहित विविध शैक्षिक मॉडलों के लिए स्कूल डिजाइन में अपनी विशेषज्ञता के लिए जानी जाती हैं, ने भी नए स्कूल को अपना पूर्ण समर्थन भी दिया है।

Sunny Varkey, GEMS Education and The Varkey Foundation के अध्यक्ष और संस्थापक, ने कहा, “हम एक बेहतर दुनिया को आकार देने के लिए अगली पीढ़ी को सशक्त बनाने में विश्वास करते हैं। GEMS स्कूल ऑफ रिसर्च एंड इनोवेशन हमारे 65 वर्षों के अनुभव के आधार पर असाधारण शिक्षा प्रदान करने की हमारी अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है।

यूके और दुनिया भर से चुने गए सबसे अच्छे शिक्षकों को अत्याधुनिक तकनीक और बेजोड़ सुविधाओं के साथ जोड़कर, हम एक अनूठा स्कूल बना रहे हैं जहां प्रत्येक छात्र को अपनी सहज जिज्ञासा का लाभ उठाते हुए आगे बढ़ने और नवाचार करने का अवसर मिलता है। ”

स्कूल की सबसे प्रमुख फिलॉसफी नैतिक मूल्य है, जो छात्रों को अग्रणी, सहानुभूतिपूर्ण के उद्देश्य के साथ वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करने के लिए प्रेरित करता है। स्कूल का परिवार प्रथम आंदोलन मजबूत पारिवारिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए माता-पिता के साथ घनिष्ठ सहयोग को बढ़ावा देकर, इस दृष्टिकोण को मजबूत करता है।

स्कूल के प्रत्येक तत्व को एक उन्नत संवेदी अनुभव प्रदान करने के लिए सावधानीपूर्वक तैयार किया गया है। समर्पित पढ़ाई और खेल के स्थानों से लेकर अत्याधुनिक STEM और व्यवधान प्रयोगशालाओं तक, पर्यावरण को रचनात्मकता को प्रेरित करने और महत्वपूर्ण सोच को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

प्रौद्योगिकी, डिज़ाइन, खेल और कला के लिए विशेषज्ञ प्राथमिक स्थान, सहयोगी तकनीकी केंद्रों और एक व्यापक अनुसंधान केंद्र के साथ, युवा शिक्षार्थियों को अन्वेषण और उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए बेजोड़ अवसर प्रदान करते हैं।

Lisa Crausby OBE, GEMS Education की मुख्य शिक्षा अधिकारी, ने कहा, “यह एक स्कूल से कहीं अधिक है – यह एक परिवर्तनकारी स्थान है जहां शिक्षा नवाचार से मिलती है। जीईएमएस स्कूल ऑफ रिसर्च एंड इनोवेशन में, छात्रों को असाधारण शिक्षकों द्वारा संचालित और विश्व स्तरीय सुविधाओं द्वारा बढ़ाए गए व्यक्तिगत प्रशिक्षण के अनुभवों से लाभ होगा। हम अपने छात्रों को न केवल आज की चुनौतियों के लिए, बल्कि भविष्य के अवसरों के लिए भी तैयार कर रहे हैं।‘”

उन्नत ब्रिटिश पाठ्यक्रम को अकादमिक उत्कृष्टता को भविष्य-केंद्रित विषयों के साथ मिश्रित करने के लिए सावधानीपूर्वक डिज़ाइन किया गया है। छात्र कम उम्र से ही विशेषज्ञ भाषाओं, कला, खेल, इंजीनियरिंग और व्यवसाय की खोज करते हुए कंप्यूटर विज्ञान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, ईस्पोर्ट्स और गेम डिज़ाइन से जुड़ेंगे।

स्कूल का विस्तारित दिवस कार्यक्रम सुपर सह-पाठ्यक्रम में निवेश करता है जो जिमनास्टिक और तैराकी से लेकर संगीत थिएटर, शास्त्रीय नृत्य और सड़क प्रदर्शन तक हर चीज में छात्रों की प्रतिभा का पोषण करता है।

GEMS Centre of Excellence for Research and Technology के तौर पर, GEMS for Life कार्यक्रम के माध्यम से छात्र दुनिया भर के स्कूलों से जुड़ेंगे, यूनेस्को सम्मेलनों में भाग लेंगे, वैश्विक राजदूत बनेंगे और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों और शीर्ष स्तरीय नियोक्ताओं तक पहुंच प्राप्त करेंगे।

माइक्रोसॉफ्ट, एचपी, ऐप्पल और प्लग एंड प्ले टेक सेंटर जैसे उद्योग जगत के नेताओं के साथ साझेदारी वास्तविक दुनिया में सीखने के अवसर प्रदान करती है जो उद्यमशीलता मानसिकता को बढ़ावा देती है और छात्रों के विचारों को प्रभावशाली समाधान में बदलने के लिए प्रोत्साहित करती है।

स्कूल का डिसरप्शन लेब और अनुसंधान केंद्र उद्यमशीलता कौशल विकसित करने और नवीन सोच विकसित करने, छात्रों को वास्तविक दुनिया की चुनौतियों का समाधान करने वाले समाधान बनाने के लिए व उन्हें सशक्त बनाने के लिए समर्पित है।

विश्व स्तरीय सुविधाएं सीखने के अनुभव को जीवन में लाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिसमें शामिल हैं:

  • विशेषज्ञ रोबोटिक्स और विज्ञान प्रयोगशालाएं
  • 600 सीटों वाला सभागार
  • ओलंपिक स्तरीय का स्विमिंग पूल
  • एआर और वीआर सक्षम शिक्षण केंद्र।

Amanda Spielman ने टिप्पणी करते हुए बताया कि, “यह एक स्कूल है जो न केवल उत्कृष्ट शैक्षणिक परिणाम देने के लिए बल्कि भविष्य के लिए तैयार युवा लोगों को विकसित करने के लिए भी बनाया गया है। मेरा मानना है कि असाधारण शिक्षकों को आकर्षित करने और उन्हें विश्व स्तरीय उपकरण और सुविधाएं प्रदान करने पर जोर दूसरों के लिए अनुसरण करने के लिए एक मॉडल है। GEMS स्कूल ऑफ रिसर्च एंड इनोवेशन शिक्षा के लिए एक नया वैश्विक मानक स्थापित कर सकता है।

Julie Young ने अधिक जानकारी देते हुए बताया कि, “GEMS स्कूल ऑफ रिसर्च एंड इनोवेशन शिक्षा के सुनहरे भविष्य का प्रतिनिधित्व करता है, जो दुनिया भर के अन्य अग्रणी स्कूलों के लिए नए मानक स्थापित करेगा। अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और असाधारण डिजाइन को गहन मूल्यों से प्रेरित दृष्टिकोण के साथ एकीकृत करके, यह स्कूल छात्रों को तेजी से विकसित हो रही दुनिया में शैक्षणिक, भावनात्मक और सामाजिक रूप से आगे बढ़ने के लिए सशक्त बनाएगा।

GEMS स्कूल ऑफ रिसर्च एंड इनोवेशन GEMS एजुकेशन पर आधारित है जो वैश्विक शिक्षा उत्कृष्टता प्रदान करने की 65 वर्ष की विरासत है। कल के नेताओं और नव-प्रवर्तकों को आकार देने के लिए प्रत्येक बच्चे में प्रतिभा का पोषण करना इसका मुख्य उद्देश्य है।

इस परिवर्तनकारी यात्रा का हिस्सा बनने के इच्छुक परिवारों और शिक्षकों को आने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

अधिक जानकारी के लिए. gems-sri.com  पर विज़िट करें।

Deepika Guleria 
Senior Executive – Media Relations