महिलाएँ ही कर रही है महिला कानूनों का दुरुपयोग
व्यंग्य की फुहारों से भीगे चित्रनगरी के श्रोता
रक्षा बन्धन का महत्व् एवं मुहुर्त
रक्षाबंधन का पर्व 19 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा. इस दिन सावन का आखिरी सोमवार भी पड़ रहा है. रक्षाबंधन के दिन सावन सोमवार के साथ इस बार कई शुभ योग बन रहे हैं. हालांकि इस बार सावन माह की पूर्णिमा पर भद्रा का साया है. ऐसे में रक्षाबंधन के त्योहार पर भद्रा भी रहेगी. इसलिए भद्राकाल का समय और शुभ मुहूर्त जानना जरूरी है.
धार्मिक शास्त्रों में भद्रा के समय में शुभ कार्य नहीं करना चाहिए. 18 अगस्त 2024 की रात 2 बजकर 21 मिनट पर भद्रा की शुरुआत होगी और इसका समापन 19 अगस्त 2024 को दोपहर में 1 बजकर 24 मिनट पर होगा. इस समय तक राखी बांधने के लिए शुभ समय नहीं है. इसके बाद ही अपने भाई की कलाई पर राखी बांध सकते है.
सावन पूर्णिमा तिथि 19 अगस्त को सुबह 03 बजकर 44 मिनट पर शुरू होगी और 19 अगस्त को देर रात 11 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगी. पंचांग के अनुसार 19 अगस्त 2024 दिन सोमवार को रक्षाबंधन मनाई जाएगी. हालांकि इस दिन भद्रा का साया रहेगा. भद्रा योग के समय में राखी नहीं बांधी जाती है. इस साल राखी बांधने का शुभ मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 26 मिनट से शाम 6 बजकर 25 मिनट तक रहेगा.
सावन मास की पूर्णिमा तिथि यानि रक्षाबंधन 19 अगस्त 2024 की सुबह से लेकर रात 8 बजकर 40 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग बना रहेगा. इसके साथ ही रक्षाबंधन पर शोभन योग का निर्माण होगा. शोभन योग 20 अगस्त को 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगा. वहीं, धनिष्ठा नक्षत्र का संयोग बन रहा है. इस योग का संयोग 20 अगस्त को 05 बजकर 45 मिनट तक है. इस योग में शुभ कार्य करने पर हर मनोकामना पूरी होती है.
सावन पूर्णिमा पर राखी बांधने का सही समय दोपहर 01 बजकर 32 मिनट से लेकर 04 बजकर 20 मिनट तक है, इसके बाद प्रदोष काल में शाम 06 बजकर 56 मिनट से लेकर 09 बजकर 08 मिनट तक है, इन दोनों समय में अपनी सुविधा अनुसार, बहनें अपने भाइयों को राखी बांध सकती हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्रौपदी ने श्री कृष्ण को सबसे पहले राखी बांधी थी. कहा जाता है कि भगवान कृष्ण की उंगली सुदर्शन चक्र से कट गई थी, जिसे देख द्रौपदी ने खून रोकने के लिए अपनी साड़ी से कपड़े का एक टुकड़ा फाड़कर चोट पर बांधा था. उस समय भगवान कृष्ण ने हमेशा द्रौपदी की रक्षा करने का वादा किया था. वहीं, जब द्रौपदी को सार्वजनिक अपमानित किया जा रहा था, तब श्री कृष्ण ने अपना ये वादा पूरा किया था.
रक्षा बन्धन – जिसे लोकभाषाओं में सलूनो, राखी और श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने के कारण श्रावणी भी कहा जाता है – हिन्दुओं का एक लोकप्रिय त्यौहार है | इस दिन बहनें अपने भाई के दाहिने हाथ पर रक्षा सूत्र बाँधकर उसकी दीर्घायु की कामना करती हैं | जिसके बदले में भाई उनकी रक्षा का वचन देता है | सगे भाई बहन के अतिरिक्त अन्य भी अनेक सम्बन्ध इस भावनात्मक सूत्र के साथ बंधे होते हैं जो धर्म, जाति और देश की सीमाओं से भी ऊपर होते हैं |
इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपाकर्म होता है | उत्सर्जन, स्नान विधि, ऋषि तर्पण आदि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है | प्राचीन काल में इसी दिन से वेदों का अध्ययन आरम्भ करने की प्रथा थी | विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भागवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिए फिर से प्राप्त किया था | हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है | ऋग्वेदीय उपाकर्म श्रावण पूर्णिमा से एक दिन पहले सम्पन्न किया जाता है | जबकि सामवेदीय उपाकर्म श्रावण अमावस्या के दूसरे दिन प्रतिपदा तिथि में किया जाता है | उपाकर्म का शाब्दिक अर्थ है “नवीन आरम्भ” | इस दिन ब्राहमण लोग पवित्र नदी में स्नान करके नवीन आरम्भ अथवा नई शुरुआत के प्रतीक के रूप में नवीन यज्ञोपवीत धारण करते हैं | इसी दिन अमरनाथ यात्रा भी सम्पन्न होती है | कहते हैं इसी दिन यहाँ का हिमानी शिवलिंग पूरा होता है |
अलग अलग राज्यों में इस पर्व को अलग अलग नामों से जाना जाता है – जैसे उड़ीसा में यह पर्व घाम पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है, तो उत्तराँचल में जन्यो पुन्यु (जनेऊ पुण्य) के नाम से, तो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड तथा बिहार में कजरी पूर्णिमा के नाम से इस पर्व को मनाते हैं | वहाँ तो श्रावण अमावस्या के बाद से ही यह पर्व आरम्भ हो जाता है और नौवें दिन कजरी नवमी को पुत्रवती महिलाओं द्वारा कटोरे में जौ व धान बोया जाता है तथा सात दिन तक पानी देते हुए माँ भगवती की वन्दना की जाती है तथा अनेक प्रकार से पूजा अर्चना की जाती है जो कजरी पूर्णिमा तक चलती है |
महाराष्ट्र में इसे नारियल पूर्णिमा और श्रावणी दोनों कहा जाता है तथा समुद्र के तट पर जाकर स्नानादि के पश्चात् वरुण देव की पूजा करके नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है | राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बाँधा जाता है | रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है | इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुंदना लगा होता है और या राखी केवल भगवान को बांधी जाती है | चूड़ा राखी भाभियों की चूड़ियों में बाँधी जाती है |
श्री भागवत परिवार द्वारा प्रकाशित राममय भारत का लोकार्पणम्
इस अवसर पर विशेष रूप से उपस्थित जाने माने अध्यात्मिक गुरु श्री भूपेन्द्र भाई पण्ड्या, ने वाल्मिकी रामायण और तुलसी की रामचरित मानस का सुंदर विवेचन प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि ये राम के चरित्र की महत्ता है कि देश में 230 रामायण हैं। हर प्रांत हर भाषा के लोगों ने राम को अपनी दृष्टि से देखा और उनकी महिमा का वर्णन किया। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि वाल्मिकी और तुलसी ने सनातन हिंदू संस्कृति और सामाजिक प्रतिबध्दता के साथ जो रामचरित गाया है वह मनुष्य की अपने ही प्रति श्रध्दा की प्रस्तुति है।
उन्होंने कहा कि अगर तुलसी ने राम चरित मानस न लिखा होता तो हम आज गुलामी के शिकार तो होते ही ह्म अपने धर्म को भी नहीं बचा पाते। तुलसी दास ने ये संदेश दिया कि हमें अपनों से नहीं लड़ना है बल्कि अपनी बुराईयों से लड़ना है।
वाल्मिकी रामायण का उल्लेख करते हूए भूपेन्द्र भाई ने कहा कि वाल्मिकी के राम हमें सिखाते हैं कि हमें अपने लक्ष्य को पूरा किए बगैर उससे पीछे नहीं हटना है। उन्होंने कहा कि हम अपना शौर्य भूल चुके हैं। दुनिया ने हमारी अहिंसा को हमारी कमजोरी मान लिया है जबकि हम अहिंसक हैं नपुंसक नहीं। उन्होंने एक रोचक किस्से के साथ समझाया कि आज हिंदू समाज की स्थिति कैसी है। उन्होंने कहा कि एक गाय को कुछ लोमड़ियों ने घेर लिया जब गाय ने अपने सींग से लोमड़ियों को भगाने का उपक्रम किया तो लोमड़ियों ने गाय पर आरोप लगाया कि वह हिंसा कर रही है, वह नफरत फैला रही है। इस दुष्प्रचार से गाय शांत हो गई। लेकिन कुछ ही देर में लोमड़ियों के झुंड ने गाय को नोचना शुरु कर दिया और उसकी जान ले ली। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज आज उसी गाय की तरह नफरती और हिंसक लोमड़ियों से गिरा हुआ है। हिंदू समाज को अपनी शक्ति पहचाननी होगी। हिंदू समाज को राम के व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर अपनी संस्कृति और मूल्यों को बचाना होगा।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री पीयूष गोयल ने कहा कि हमारी ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत को पुनर्स्मरण करने में ये ग्रंथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि राम सबके लिए प्रेरक हैं। नरेंद्र मोदी पूरी सरकार को रामराज्य की तरह चला रहे हैं। नरेन्द् मोदीजी के नेतृत्व में देश के धार्मिक स्थानों का पुनरोध्दार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विकास और विरासत दोनों एक साथ हों तभी विकास सार्थक होता है। प्रधान मंत्री श्री मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में तीन गुना तेजी से देश के विकास को गति देंगे।
श्री पराग संघानी ने कहा कि राम मय भारत एक अद्भुत ग्रंथ है और इस ग्रंथ की विषय वस्तु को लेकर पूरे देश के स्कूल और कॉलेजों मे ंसेमिनार आयोजित किए जाने चाहिए ताकि नई पीढ़ी को हमारी संस्कृति, हमारी विरासत और राम जैसे चरित्र की विशेषताओँ की जानकारी मिले। उन्होंने कहा कि हमें राममय भारत के साथ ही राममय विश्व की भी कल्पना करना होगी।
कार्यक्रम में पीपी सबानी विश्वविद्यालय, सूरत के प्रोवोट कुलपति श्री पराग संघानी, ठाकुर कॉलेज के ट्रस्टी श्री वीके सिंह, जितेंद्र सिंह, प्रभात प्रकाशन के श्री प्रभात कुमार व महाराष्ट्र राज्य हिंदी अकादेमी के अध्यक्ष श्री शीतला प्रसाद दुबे विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय ने तुलसीदास के जीवन के कई जाने अनजाने व रोचक पहलुओं के बारे में जानकारी दी।
इस अवसर पर राममय भारत ग्रंथ के संपादन से जुड़े डॉ. रतन शारदा, श्रीमती पूनम बुधिया, डॉ. निर्मला पेड़ीवाल का सम्मान श्री पीयूष गोयल ने किया।
कार्यक्रम में वाणी याज्ञिक और नेहा शर्मा ने श्री रामचंद्र क़पालु भजमन पर सुंदर नाट्य प्रस्तुति दी।
श्री भागवत परिवार के सभी ट्रस्टियों,शुभचिंतकों,सदस्यों,
“मैला आँचल” के सत्तर साल
फणीश्वरनाथ रेणु जी की यह अमर कृति “मैला आँचल” आज से 70 साल पहले, 9 अगस्त 1954 ही के दिन पहली बार प्रकाशित हुई थी।
यह उपन्यास मुझे इतना प्रिय है कि लगभग हमेशा ही सिरहाने या फिर एक हाथ की दूरी पर ही रहता है। जिससे जब चाहूँ, उठाकर कहीं से भी पढ़ना शुरू कर दूँ। और हर बार उतना ही आनन्द आता है। इसे धीरे-धीरे पढता हूँ, बचपन में मिलने वाली किसी मिठाई की तरह। धीरे-धीरे चुभलाते हुए। इस डर के साथ कि कहीं जल्दी से ख़त्म न हो जाए।
जब-जब पढ़ो तो हर बार यही लगता है कि अगर इसकी ऑब्जेक्टिविटी को छोड़ दिया जाए तो आज सत्तर सालों बाद भी कुछ नहीं बदला।
वही कोलाज, कैनवस व पृष्ठभूमि।
इसका मेरीगंज गाँव, वहाँ की राजनीति, कमला मैया, गाँव के ताल-तलैया, नदी-नाले, पोखर सब कुछ अपने से लगते हैं।
मठ के सेवादास, रामदास, लक्ष्मी ब्राह्मणटोली के जोतखी काका, सहदेव मिसर, नामलरैन मिसर, राजपूत टोली या सिपाहियाटोली’के ठाकुर रामकृपाल सिंघ, शिवशक्कर सिंघ, हरगौरी कायस्थ टोली या कैथ टोली’ के मुखिया तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद मल्लिक और उनकी बेटी कमली यादव टोली के खेलावन सिंह यादव, कालीचरण इसके अलावा चन्ननपट्टी से अपनी मौसी के यहाँ आया बालदेव डॉक्टर प्रशांत कुमार, ममता, प्यारू, लबड़ा सुमरितदास, बावनदास, बिरंचीदास, खलासी जी…..इत्यादि सब
एक-एक किरदार सब अपने से लगते हैं। जैसे लगता है अभी किवाड़ खोलकर कोई किरदार इनमें से सामने आ खड़ा होगा। नजर दौड़ाएंगे तो अपने आसपास इन्हीं में से किसी ने किसी को किसी ने किसी रूप में पाएंगे। पगले मार्टिन और उसकी परी सी मेम, गन्ही महातमा से लेकर जमहिर लाल, जयपरगास बाबू से लेकर फटाक से बम फोड़ देना वाला मस्ताना भगत सिंह तक…सब अंदर तक रच बस गए हैं। भाषा, नाद, बिंब, शिल्प, ध्वनि सब कुछ ऐसा है कि जैसे लोक जीवन का कोई चलचित्र चल रहा हो और उसके मुख्य पात्र हम ही हैं।
कहीं टेस्ट ट्यूब बेबी की और लैब में प्रयोग में आने वाले गिनी पिग की भी।
“इसमें फूल भी हैं शूल भी, धूल भी है, गुलाब भी है, कीचड़ भी है, चन्दन भी, सुन्दरता भी है, कुरूपता भी- मैं किसी से दामन बचाकर निकल नहीं पाया।”
हम भी इसके दामन से बढ़ नहीं पाए और आज इसके प्रकाशन के 70 सालों बाद भी हम जैसे पाठकगण “मैला आँचल” के उसी दमन में लिपटे हुए खुद को खेलते-कूदते, पलते-बढ़ते हुए पाते हैं।आईआईटी कानपुर के छात्रों द्वारा निर्मित हिंदी साहित्य सभा (https://hindisahityasabha.in/
“भारत माता ग्रामवासिनी।
खेतों में फैला है श्यामल
धूल भरा मैला सा आँचल…”फणीश्वरनाथ रेणु की मैला आँचल भारत माता के उसी धूल भरे आँचल की कहानी है। मैला आँचल को ‘गोदान’ के बाद हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास भी माना जाता है। सन् १९५४ में प्रकाशित इस उपन्यास ने आँचलिकता की नयी विधा को जन्म दिया। रेणु एक गांव की कहानी के माध्यम से स्वातंत्र्योत्तर भारत के गांवों में जन्मे राजनैतिक चेतना व अंतर्विरोध को दर्शाते हैं। भारत की स्वतंत्रता इस उपन्यास को दो खंडो में बांट देती है और गांधीजी की हत्या के साथ ही उपन्यास अपने अंत की ओर पहुंचता है, और साथ ही पतन होता है उस आदर्श राजनीति का जिसका उन्होंने कभी स्वप्न देखा था। सामान्य लोगों में राजनीति पहुंचती तो है पर उसमें निष्ठा, आचरण, गंभीरता सब समाप्त हो जाती है।
कहानी उत्तर पूर्वी बिहार के कोसी नदी के शोक से ग्रसित पूर्णिया जिले के एक छोटे से गांव मेरीगंज में अस्पताल खुलने और उसके पश्चात यहाँ के लोगों और उनके साथ होती घटनाओं पर आधारित है। गांव के लोग अंधविश्वासी हैं, उनमें जातिगत भेदभाव अत्यधिक है,उनकी शिक्षा, मानसिकता और बुनियादी सुविधाओं पर पिछड़ेपन की छाप है।
“गाँव के लोग बड़े सीधे दीखते हैं; सीधे का अर्थ यदि अनपढ़, अज्ञानी और अंधविश्वासी हो तो वास्तव में सीधे हैं वे।”
प्रारम्भ में तीन किरदार प्रमुख रूप से सामने आते हैं। बालदेव, डॉक्टर प्रशान्त, दासी लक्ष्मी। बालदेव जी कांग्रेस के कार्यकर्ता है, जो जेल भी जा चुके है। गांव में उनका बहुत मान सम्मान है और ऐसा माना जाता है कि वो हर बात सोच समझ के करते है। लक्ष्मी महंत सेवादास की दासी है। कम उम्र में अनाथ होने के बाद से ही मठ पर उसका शोषण होता रहा। किन्तु इन सब के बावजूद वो एक बेहद समझदार और व्यवहार कुशल महिला है। बालदेव जी लक्ष्मी की मदद करते है, जो मन ही मन लक्ष्मी के लिए आकृष्ट होते है और दोनों का प्रेम बेहद पवित्र होता है।
डॉक्टर प्रशांत कुमार भी एक अनाथ बच्चा था लेकिन उसे एक आश्रम में संरक्षण मिला । वह डॉक्टरी पूरी कर विदेश में संभावनाएं तलाशने के स्थान पर अपने देश मे रहकर पिछड़े गांववालों की मलेरिया, काला अज़ार और हैज़ा जैसी बीमारियों का इलाज ढूंढने का निर्णय लेता है। पर गांव वालों की असल बीमारी तो गरीबी और जहालत है। निर्धन और विवश किसानों की स्थिति जानवरों से भिन्न नहीं है।
“बैलों के मुँह मे जाली का ‘जाब’ लगा दिया जाता है। गरीब और बेजमीन लोगों की हालत भी खम्हार के बैलों जैसी है- मूँह में जाली का ‘जाब’… लेकिन खम्हार का मोह! यह नहीं टूट सकता।”
परन्तु समय के साथ किसानों में जागरण होना प्रारंभ होता है और स्थिति में परिवर्तन की आशाएं जाग जाती हैं। भिन्न-भिन्न विचारधाराओं का आगमन होता है। बालदेव विरोध के लिए गांधीजी के चरखा कर्घा के माध्यम से आत्मनिर्भरता लाने के प्रयास करता है तो कालीचरण सोशलिस्ट क्रान्ति की राह अपनाता है। इसी प्रकार अन्य दल भी प्रवेश करते हैं।
“गाँव में तो रोज़ नया-नया सेंटर खुल रहा है- मलेरिया सेंटर, काली टोपी सेंटर, लाल झंडा सेंटर, और अब एक चरखा सेंटर!”
परन्तु स्वतंत्रता के पश्चात यह सब उलझ कर रह जाता है। वामनदास की कहानी इसी उलझन को दर्शाती है। वह व्यथित है, गांधीजी से अपने प्रश्नों के उत्तर चाहता है। उसने अपना पूरा जीवन जिस कांग्रेस के लिए कार्य करते हुए जिनका विरोध किया, अंततः वह पार्टी उन्हीं सब कुरीतियों और षड्यंत्रों का शिकार बन कर रह जाती है।
बाकी राजनैतिक दल भी मात्र सत्ता के लोभी बनकर रह जाते हैं, और जातिगत जोड़ घटाव शेष रह जाता है।
बावनदास सोचता है, अब लोगों को चाहिए की अपनी अपनी टोपी पे लिखवा लें – भूमिहार, राजपूत, कायस्थ, यादव, हरिजन!… कौन काजकर्ता किस पार्टी का है, समझ में नहीं आता। इन सब द्वंद में उलझे प्रत्येक किरदार की अपनी समस्याएँ हैं अपनी उलझने हैं अपनी कहानी है जो सब कभी एक दूसरे से विपरीत हैं तो कभी साथ साथ चलती हैं। सभी मिलकर अंततः आँचल को उपन्यास का मुख्य नायक बना देती हैं।
रेणु की भाषा लेखन के बिल्कुल नये रूप को जन्म देती है। उसमें चित्र है, लोक गीत हैं, कविताएँ है, ढोलक और अन्य वाद्य यंत्रों की झंकार है, चिड़ियों की चहचहाहट है और गाँवों की मिठास है। रेणु ने संथाल और मैथिल परगना के जिस लोक का निर्माण किया है वहाँ शब्दों को जैसे बोला जाता है वैसे ही कथानक में उतारा है।
इस उपन्यास के द्वारा ‘रेणु’ जी ने पूरे भारत के ग्रामीण जीवन का चित्रण करने की कोशिश की है। इस उपन्यास की सबसे बड़ी खासियत इसका सहज, सरल और उसी परिवेश का होना है | उन लोकगीतों ने इस उपन्यास को अमर कर दिया है, जो आज के परिवेश में कहीं खो गए है। भारत को जानने के लिये यह उपन्यास बहुत अहम स्थान रखता है।
कवि! तुम्हारे विद्यापति के गान हमारी टूटी झोपड़िया में मधुरस बरसा रहे हैं…
यह उपन्यास को पढ़के आप इसके पात्रों के साथ डूबने उतरने लगते है और स्वयं को उसी ग्रामीण परिवेश में महसूस करने लगते है, जो हम में से बहुत कम लोगों ने जिया है और यही कारण है जो इस उपन्यास को एक असीम कृति बना देता है।
साहित्यकार बी.एल.आच्छा: आलोचना, लघुकथा और व्यंग्य में पहचान के सशक्त हस्ताक्षर
रामचरितमानस लोगों को जीवन मंत्र देता है : प्रो. संजय द्विवेदी
चंबल साहित्य संगम संस्था द्वारा डॉ. सिंघल सहित 6 साहित्यकारों का सम्मान
भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुकूल हो भारतीय शिक्षा : डी राम कृष्ण राव
अयोध्या। मूल्य आधारित शिक्षा से ही श्रेष्ठ समाज का निर्माण संभव है। जीवन निर्माण करने वाली शिक्षा ही आने वाली पीढ़ियों को भारतीय इतिहास ,ज्ञान और भारत बोध कराने के सहायक होगी। शिक्षा एक महा मंत्र है जिसके द्वारा समाज के विकास की गति और प्रगति सुनिश्चित की जाती है ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 पूरे शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तन के लिए अग्रसर है ।
उक्त बातें विधा भारती द्वारा साकेत निलयम – अयोध्या में आयोजित तीन दिवसीय अखिल भारतीय मंत्री समूह की कार्यशाला का उदघाटन करते हुये विद्या भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डी राम कृष्ण राव ने कही उन्होने कहा की अभी तक भारत में शिक्षा कैसी हो इसपर रणनीति बनती थी लेकिन अब शिक्षा में भारत कैसा हो इसपर कार्य हो रहा है। वर्तमान समय में शिक्षा केवल सूचनाओं का संकलन मात्र नहीं है। बच्चे सूचनाओं के माध्यम से अपने अनुभव के आधार पर नवीन ज्ञान का सृजन करते है । भारत का ज्ञान वैश्विक स्तर पर भारत को ज्ञान गुरु बनाने की ओर अग्रसर है।
उक्त कार्यशाला में देश भर से अनेक शिक्षाविद, चिंतक, विचारक और विधा भारती के क्षेत्र और प्रांत स्तर के सभी मंत्री प्रतिभाग कर रहे है । विशेष रूप से कार्यशाला मे उपस्थित गोविन्द चन्द्र महंत, यतीन्द्र शर्मा , अवनीश भटनागर , श्रीराम अरावकार , हेमचन्द्र सहित अन्य उपस्थित थे।
भवदीय
डॉ. सौरभ मालवीय
मंत्री, पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र
मो – 8750820740