Wednesday, January 15, 2025
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मिर्जा गालिबः जिनकी शेरो -शायरी आज भी रोमांचित करती है

पूरा नाम: मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ां। उपनाम: ग़ालिब (जिसका अर्थ है “विजेता”) जन्म: 27 दिसंबर 1797, आगरा (मुग़ल साम्राज्य)

मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ां “ग़ालिब” उर्दू और फ़ारसी के सबसे महान शायरों में से एक माने जाते हैं। उनकी शायरी, उनकी सोच और उनका जीवन उनके समय से कहीं आगे का था। ग़ालिब का जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने अपनी शायरी के जरिए प्रेम, दर्द, और ज़िंदगी के दर्शन को अभिव्यक्त किया। उनकी ग़ज़लों में भावना, गहराई और दर्शन का अनूठा संगम देखने को मिलता है।

ग़ालिब का जन्म एक प्रतिष्ठित तुर्की परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम मिर्ज़ा अब्दुल्ला बेग था, जो एक सैनिक थे। बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया। उनके चाचा मिर्ज़ा नसरुल्लाह बेग ने उनकी परवरिश की। लेकिन जब ग़ालिब 9 साल के थे, तो उनके चाचा का भी निधन हो गया। इन मुश्किलों के बावजूद, ग़ालिब की शिक्षा-दीक्षा में कोई कमी नहीं हुई। उन्होंने फ़ारसी, उर्दू और अरबी की पढ़ाई की और छोटी उम्र में ही शायरी लिखना शुरू कर दिया। 13 साल की उम्र में ही ग़ालिब की शादी उमराव बेगम से हो गई।  शादी के बाद ग़ालिब आगरा से दिल्ली आ गए और अपनी ज़िंदगी यहीं बिताई। हालांकि, उनकी शादीशुदा ज़िंदगी बहुत सुखद नहीं रही।  ग़ालिब के कोई संतान नहीं थी। उनकी इस पीड़ा का असर उनकी शायरी में भी झलकता है। उन्होंने खुद लिखा:
“पूछते हैं वो कि ग़ालिब कौन है,
कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या।”
ग़ालिब की शायरी का मुख्य विषय प्रेम, दर्द, दर्शन, और इंसानी ज़िंदगी के गहरे अनुभव हैं। उन्होंने उर्दू ग़ज़लों को एक नया आयाम दिया। उनके दौर में ग़ज़लें आमतौर पर प्रेम पर आधारित होती थीं, लेकिन ग़ालिब ने इसमें इंसान के अंदर की गहराई, दुख और अस्तित्व के सवालों को भी शामिल किया।

ग़ालिब का जीवन आर्थिक और व्यक्तिगत संघर्षों से भरा रहा। उन्हें कभी वैसा सम्मान और प्रसिद्धि नहीं मिली, जिसके वे हकदार थे।   ग़ालिब का जीवन मुग़ल साम्राज्य के पतन और अंग्रेजों के उदय के समय में बीता। इस बदलाव का असर उनकी ज़िंदगी और शायरी पर पड़ा।

15 फरवरी 1869 को दिल्ली में ग़ालिब का निधन हुआ।

1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, ग़ालिब ने दिल्ली में हुए बदलावों को करीब से देखा। उन्होंने इस दौर को अपने पत्रों में दर्ज किया। उनका एक पत्र इस दर्द को व्यक्त करता है:
“दिल्ली जो एक शहर था आलम में इंतिख़ाब,
हम रहने वाले हैं उसी उजड़ी हुई बस्ती के।”

ग़ालिब ने उर्दू और फ़ारसी में लिखा। उनकी ग़ज़लें और पत्र आज भी बहुत पढ़े और सराहे जाते हैं।

मुख्य रचनाएँ: दीवान-ए-ग़ालिब: यह उनकी उर्दू शायरी का संकलन है। इसमें उनकी ग़ज़लें शामिल हैं। उर्दू मसनवी और क़सीदे

प्रस्तुत है,  गालिब के 20 बेहतरीन शेर…

1.

दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है।

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2.

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले।

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3.

इश्क पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।

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4.

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज-ए-गुफ्तगू क्या है।

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5.

कोई उम्मीद बर नहीं आती,
कोई सूरत नजर नहीं आती।

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6.

हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख्याल अच्छा है।

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7.

दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद,
अब कुछ भी नहीं मुझको मुहब्बत के सिवा याद।

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8.

कर्ज की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां,
रंग लाएगी हमारी फाकामस्ती एक दिन।

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9.

ये न थी हमारी किस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतजार होता।

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10.

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है।

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11.

मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले।

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12.

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले।

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13.

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।

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14.

बाजीचा-ए-अतफाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शबो-रोज़ तमाशा मेरे आगे।

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15.

पता नहीं क्या ख्याल है ‘ग़ालिब’,
कि मैं शराब पीकर भी होश में हूं।

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16.

कभी नेकी भी उसके जी में गर आ जाए है मुझसे,
जफाएं करके अपनी याद शरमा जाए है मुझसे।

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17.

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।

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18.

उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।

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19.

इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।

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20.

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ,
रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ।

हाड़ौती भारत में समृद्ध इतिहास का साक्षी है – कुलपति देवीप्रसाद

कोटा 8 जनवरी/ हाड़ौती  क्षेत्र भारत में समृद्ध इतिहास का साक्षी है। यदि कर्ता और कृति को जोड़ दिया जाएगा तो इतिहास जानने की गति बढ़ेगी। पुरातत्व अब इतिहास का विषय नहीं यह कई प्रकार की गतिविधियों से जुड़ गया है। यह विचार रविवार को जय मीनेश

विश्वविद्यालय कोटा के कुलपति प्रो. देवीप्रसाद तिवारी ने व्यक्त किए। वे बारां जिला मुख्यालय पर धर्मादा धर्मशाला में हिन्द की सांस्कृतिक विरासत समूह और पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग बारां के संयुक्त तत्वावधान में अयोजित एक दिवसीय सेमिनार में मुख्य अतिथि पद से संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि हाड़ौती में चंद्रेसल के पास शुतुरमुर्ग के अंडे मिले है। जिन पर पेंटिंग भी थी। 30 से 40 हजार साल पहले यहां शुतुरमुर्ग रहे होंगे। शैलाश्रयों में पेंटिंग मिलती है। प्राचीन मठ, मंदिर, प्रतिमाओं सहित यह क्षेत्र विविधता से समृद्ध है। इतिहास में वैज्ञानिक विश्लेषण भी आधार होना चाहिए। कार्बन डेटिंग से साक्ष्यों का सही काल पता लगाया जा सकता है। अभी शैलाश्रयों में दो समय की पेंटिंग मिलती है। पेंटिंग बनाने वाले समुदाय को लेकर साक्ष्य खोजने चाहिए। अच्छी बात है कि नई पीढ़ी इतिहास में रूचि रख रही है।
अटरू, शेरगढ़ के लिए योजना :
अध्यक्षता करते हुए तकनीकी पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग जयपुर अधीक्षक धर्मजीत कौर  कहा कि बारां जिले के अटरू, शेरगढ़ एवं धूमेन के लिए विशेष योजना बनाई जा रही है। अन्य क्षेत्रों का भी सर्वे कराया जाएगा इससे पुरा संपदा को सहजने, संवारने के साथ ही विरासत सुरक्षित रहेगी। उन्होंने जनजागरण के लिए आयोजित सेमिनार की सराहना की।
पुरासंपदा पर शोध पत्र :
सेमिनार में करीब 18 विद्वानों ने अपने विस्तृत शोध पत्र भी पीपीटी के माध्यम से प्रस्तुत किए। धर्मेंद्र कुमार ने बावडियों के निर्माण में महिलाओं का योगदान, हंसराज नागर ने हाड़ोती के शैलचित्र, कुलदीप भार्गव ने कृष्ण विलास का कला वैभव, डॉ. हेमलता वैष्णव ने भंडदेवरा मंदिर का शिल्प सौंदर्य, हंसराज नगर ने इतिहास की अनमोल धरोहर बारां जिले के शैल चित्र, डॉ. अनुपमा पंवार ने झालावाड़ संग्रहालय की नवदुर्गा चामुंडा प्रतिमा, डॉ. मुक्ति पाराशर ने हाड़ोती का अचर्चित ऊर्ना का शिव मंदिर, नरेंद्र मीणा ने बडोली की शेई मूर्ति का शिल्प सौंदर्य, डॉ. विजेंद्र कुमार ने बूंदी संग्रहालय में संरक्षित शिव मूर्ति शिल्प,  डॉ. प्रीति शर्मा ने कामां के 84 खंभा मंदिर सहित मालवा क्षेत्र की पुरासंपदा पर भी विद्वानों ने अपने शोध पत्रों का वाचन किया।
विरासत पर उपेक्षा चिंतनीय :
प्रसिद्ध मुद्रा संग्रहकर्ता आर. सी. ठाकुर ने भारत की समृद्ध विरासत पर स्थानीय विद्वानों की उपेक्षा पर चिंता जाहिर की। उनका प्राचीन मुद्राओं का परिचयात्मक प्रदर्शन आकर्षण का केंद्र रहा।  प्रारंभ में पुरातत्व संपदा से भरपूर अटरू  के राकेश शर्मा द्वारा  पावर पॉइंट प्रजेंटेशन के माध्यम से बारां जिले की विरासतों की चित्रात्मक प्रस्तुति दी गई।  इनके द्वारा बारां जिले की प्रागैतिहासिक, पुरातात्विक, ऐतिहासिक धरोहरों को प्रदर्शित किया।
      विशिष्ट अतिथि कोटा सेंट्रल कॉपरेटिव बैंक प्रबंध निदेशक बलविंद्र सिंह गिल ने इस प्रकार के आयोजन लगातार करने की आवश्यकता पर जोर दिया। झालावाड़ के इतिहासकार ललित शर्मा ने अतिथियों का परिचय प्रस्तुत कर कहा कि हाड़ोती के पुरातत्व पर यह प्रथम सेमिनार है। इसके दूरगामी परिणाम आने की आशा की जा सकती है। सेमिनार हाड़ोती के पुरास्थलों के समीक्षण के प्रति जागरूकता और सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करने के उद्देश्य से आयोजित की गई है। पुरातत्व, संग्रहालय विभाग कोटा वृत्त अधीक्षक हिमांशु सिंह, अश्विनी मुद्रा शोध संस्थान महितपुर मध्यप्रदेश डॉ.आरसी ठाकुर भी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
वर्षों से पुरासंपदा पर लेखन करने वाले  इतिहासकार गजेन्द्र सिंह यादव का भी सम्मान किया गया। अतिथियों का स्वागत डॉ. मुक्ति पाराशर, हंसराज नागर व डॉ. हेमलता वैष्णव ने किया। संचालन हंसराज नागर व डॉ. हेमलता वैष्णव ने किया।  गायत्री शर्मा ने सभी का आभार जताया।
इस अवसर पर उज्जैन से डॉ. अंजना सिंह गौर, डॉ. मंजू यादव, श्वेता पाठक, डॉ. राजेश मीणा, डॉ. एकता व्यास, भोपाल से वाकणकर संग्रहालय के शोध अधिकारी डॉ. धुवेन्द्र सिंह जोधा, केकड़ी से पुष्पा शर्मा, कोटा से डॉ. मुक्ति पाराशर, डॉ. विजेन्द्र कुमार, कनवास से धर्मेन्द्र कुमार, नरेन्द्र कुमार मीणा, झालावाड़ से डॉ. अनुपमा पंवार, कामां डीग से डॉ. प्रीति शर्मा, बारां से हंसराज नागर, डॉ. हेमलता वैष्णव, कुलदीप भार्गव, अटरू से राकेश शर्मा व बांसवाड़ा से डॉ. अदिती गौड़ ने अपने-अपने क्षेत्र की पुरातात्विक धरोहरों पर सचित्र परिचय एवं इतिहास प्रस्तुत किया। बड़ी संख्या में इतिहासविद व इतिहास शोधार्थी मौजूद रहे। झालावाड़ की सावित्री शर्मा  ने धन्यवाद दिया।
 इतिहासविद ललित शर्मा ने बताया कि एक विश्वनीय सूत्र के अनुसार आप सभी को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि बारां की सफल पुरातत्व सेमिनार की गूंज राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस जोधपुर और राजस्थान एपिग्राफी कांग्रेस बीकानेर तक पहुंच गई है जो सुखद आश्चर्य है । इसी के साथ ग्रुप की वार्षिक शोध पत्रिका संस्कृति वैभव के प्रकाशन की भी चर्चा हो रही है ।

महान् शिक्षाविद् प्रोफेसर अच्युता सामंत प्रथम पीआईओ उत्कृष्टता पुरस्कार से सम्मानित

भुवनेश्वर।  प्रवासी भारतीय दिवस आनेवाले कल से यहां शुरू हो रहा है, भारतीय मूल के लोगों के वैश्विक संगठन (जीओपीआईओ) ने कीट-कीस के संस्थापक महान् शिक्षाविद् प्रोफेसर अच्युता सामंत को उनके असाधारण शैक्षिक पहल एवं निःस्वार्थ जनसेवा व लोकसेवा के लिए प्रथम पीआईओ उत्कृष्टता पुरस्कार से सम्मानित किया है। सच कहा जाय तो यह गौरवशाली सम्मान प्रोफेसर सामंत को शिक्षा और जनजातीय सशक्तिकरण में असाधारण योगदान के लिए प्रदान किया है। यह पुरस्कार कीट डीम् विश्वविद्यालय,भुवनेश्वर द्वारा आयोजित ‘पीआईओ डायलॉग विथ इंडिया 2025’ सत्र के दौरान प्रदान किया गया। थीम “वैश्विक कनेक्शनों को सशक्त बनाना: उभरते भारत में पीआईओ की भूमिका”, कार्यक्रम ने दुनिया भर के गणमान्य व्यक्तियों और नेताओं को एक साथ लाया।

उल्लेखनीय है कि प्रो सामंता के साथ, मलेशिया के प्रधान मंत्री के ओएसडी शनमुगन मुक्कान और जेएनयू से प्रोफेसर अजय कुमार दुबे भी शामिल हुए। उनके योगदान के लिए भी सम्मानित किया गया। इस आयोजन का एक प्रमुख आकर्षण भारत में हर चार साल के अंतराल पर  भारतीय प्रवासियों के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव की मेजबानी करने का प्रस्ताव था। इस महोत्सव का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर भारतीय मूल के लोगों (पीआईओ) की समृद्ध विरासत और योगदान का जश्न मनाना और भारत के साथ उनके संबंधों को मजबूत करना है। इस सत्र में कीट डीम्ड विश्वविद्यालय में जीओपीआईओ इंटरनेशनल चेयर के शुभारंभ का भी जश्न मनाया गयाजो अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए समर्पित एक ऐतिहासिक पहल है। प्रवासी भारतीयों के संबंध में। यह चेयर अकादमिक अध्ययन की सुविधा प्रदान करेगी और दुनिया भर में पीआईओ के योगदान का दस्तावेजीकरण करेगी।

महान शिक्षाविद् प्रोफेसर अच्युत सामंत ने अपने अभिभाषण में आभार व्यक्त करते हुए कहा, “पीआईओ के एक सत्र की मेजबानी करना कीट-कीस के लिए सम्मान की बात है।कीटआज मात्र 12 छात्रों से बढ़कर 80,000 से अधिक हो गया हैऔर कीसदेश में एक क्रांति बन गया है। मुझे आशा है कि हमारे विशिष्ट अतिथि इस प्रगति को देखकर प्रसन्न होंगे।” जीओपीआईओ इंटरनेशनल के महासचिव रवेन्दिरन अर्जुनन ने कीट की उल्लेखनीय उपलब्धियों की प्रशंसा की: “कीट टाउनशिप तेजी से बढ़ा है।

प्रवासी भारतीय दिवस का जन्म पीआईओ द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी के अनुरोध से हुआ था, और आज, राष्ट्र निर्माण में पीआईओ के योगदान को संरक्षित और प्रलेखित किया जाना चाहिए। ओडिशा के ऐतिहासिक महत्व पर विचार करते हुए, अर्जुनन ने टिप्पणी की, “कलिंग था यह अपने व्यापारियों और व्यवसायियों के लिए जाना जाता है जिन्होंने दुनिया भर में यात्रा की। उनके योगदान को अक्सर भुला दिया जाता है, और अब समय आ गया है कि हम उनकी विरासत को संरक्षित करें।”डॉ. जीओपीआईओ इंटरनेशनल के अध्यक्ष पोन्नुसामी मुथैया ने प्रवासी भारतीय दिवस की उत्पत्ति का पता लगाया, और इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे सम्मेलन ने प्रवासी भारतीयों को भारत के करीब लाया है। जीओपीआईओ के उपाध्यक्ष विनय दुसोये ने अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक का प्रस्ताव रखते हुए भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षा के महत्व पर जोर दिया। वैश्विक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक कदम के रूप में महोत्सव। “प्रवासी भारतीयों को शामिल करने की प्रक्रिया हमारी युवा पीढ़ी पर निर्भर है।

हमें खुद को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में स्थापित करना चाहिए और सांस्कृतिक संरक्षण सुनिश्चित करना चाहिए।” -डीयू ने भारत के विकास में प्रवासी भारतीयों की भूमिका को रेखांकित किया। प्रो. देबाशीष बंदोपाध्याय, प्रो-वाइस चांसलर ने सांस्कृतिक कार्निवल के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया।

अध्यात्म, राष्ट्रीय एकता और मानवता का महासंगम – महाकुंभ

सनातन हिंदू संस्कृति का महापर्व है –महाकुम्भ, विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव। सनातन संस्कृति की आस्था का सबसे बड़ा और सर्वोत्तम पर्व महाकुम्भ न केवल भारत अपितु संपूर्ण विश्व में सुविख्यात है। यह एकमात्र ऐसा महापर्व है जिसमें सम्पूर्ण  विश्व से श्रद्धालु भक्त कुम्भस्थल पर आकर भारत की समन्वित संस्कृति, विश्व बंधुत्व की सद्भावना और जनसामान्य की अपार आस्था का अनुभव करते हैं। वैभव और वैराग्य के मध्य आस्था के इस महाकुम्भ में सनातन समाज नदी के पावन प्रवाह में अपने समस्त विभेदों, विवादों ओैर मतांतरो को विसर्जित कर देता है। इस मेले में मोक्ष व मुक्ति की कामना के साथ ही तन,मन तथा बुद्धि के सभी दोषों की निवृत्ति के लिए करोड़ों श्रद्धालु अमृत धारा में डुबकी लगाते हैं। महाकुम्भ में योग, ध्यान और मंत्रोच्चार से वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है। महाकुम्भ में समस्त अखाड़े प्रतिभाग करते हैं उनमें से प्रत्येक की महिमा, इतिहास व परम्पराएं अदभुत हैं।

महाकुम्भ का इतिहास प्राचीन पौराणिक कथाओं में रचा बसा है। इसकी कथा समुद्र मंथन और देव-दानव संघर्ष से जुड़ी है जिसमें अमृत कलश की प्राप्ति हुई थी। समुद मंथन की कथा के अनुसार राजा बलि के राज्य में शुक्राचार्य के आशीर्वाद एवं सहयोग से असुरों की शक्ति बहुत बढ़ गई थी और देवतागण उनसे भयभीत रहने लगे थे। भगवान विष्णु के सुझाव पर देवताओं ने असुरों से मित्रता कर ली और समुद्र मंथन किया। क्षीर सागर के मंथन के लिये मन्दराचल पर्वत को मथानी और वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया।समुद्र मंथन से सर्वप्रथम हलाहल विष निकला जिसका पान करके शिव जी ने समस्त सृष्टि की रक्षा की और नीलकंठ कहलाए । तत्पश्चात क्रमशः चन्द्र, कामधेनु गौ,कल्पवृक्ष,पारिजात, आम्रवृक्ष तथा संतान ये चार दिव्य वृक्ष, कौस्तुभ मणि, उच्चैश्रवा, अश्व और ऐरावत हाथी निकले। इसके पश्चात माता लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ जिन्होंने भगवान विष्णु का वरण किया। वारुणी और शंख निकले। अन्त में धन्वन्तरि वैद्य अमृत घट लेकर निकले।दैत्यों ने उस अमृत घट को  छीन लिया और पीने के लिये आपस में ही लड़ने लगे,तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारणकर दैत्यों को रूप सौन्दर्य से आसक्त कर लिया। दैत्यों ने अमृतघट विष्णु रूपी मोहिनी को बांटने के लिये दे दिया। मोहिनी रूपी विष्णु ने देवताओें को अमृत बांटना प्रारम्भ किया, एक असुर को मोहिनी की यह चालाकी समझ आ गयी और उसने देवताओं की पंक्ति में बैठकर अमृत प्राप्त कर लिया। जब देवताओं का ध्यान उसकी ओर गया तो उन्होंने भगवान विष्णु को बताया। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उस दैत्य की गर्दन धड़ से अलग कर दी, दैत्य के शरीर के यही दो भाग राहु और केतु हैं। देवों को अमृत पान कराकर भगवान विष्णु अन्तर्धान हो गये। इसके पश्चात देवासुर संग्राम छिड़ गया। देवराज इन्द्र की आज्ञा से उनके पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर पलायन कर गए, दैत्य उनका पीछा कर रहे थे इस भागने के क्रम में जिन स्थानों पर अमृत छलककर गिरा उन्हीं स्थानों पर कुम्भ का आयोजन होता है। वे स्थन हैं हरिद्वार, उज्जैन,नासिक और प्रयागराज। अमृत कलश लेकर भागने के दौरान सूर्य,चन्द्र, बृहस्पति तथा शनि ने असुरों से जयंत की रक्षा की थी, यही कारण है कि इन चारों ग्रहों की विशेष स्थिति होने पर ही कुम्भ का आयोजन होता है।देवासुर संग्राम 12 वर्ष चला था जब देवता बालि पर विजय प्राप्त कर सके थे,अतः प्रत्येक बारह वर्ष में कुम्भ का मेला लगता है।

महाकुंभ की महिमा का वर्णन स्कंद पुराण में स्पष्ट किया गया है। विष्णु पुराण में भी कुम्भ स्नान की प्रशंसा की गई है। कुंभ की अनेक व्याख्याएं की गई हैं। वेदों में भी कुम्भ की महिमा बताई गई है और ज्योतिष तथा योग में भी कुम्भ है। ऋग्वेद में कुम्भ शब्द पांच से अधिक बार, अथर्ववेद में दस बार और यजुर्वेद में अनेक बार आया है। ब्रह्माण्ड की रचना को भी कुम्भ के सदृश ही माना गया है।पृथ्वी भी ऐसी ही आकृति ग्रहण करती है। पृथ्वी का परिक्रमण पथ भी कुम्भकार ही है।कुम्भ का उपयोग घी, अमृत और सोमरस रखने के लिए भी किया जाता था। कुम्भ में ही औषधि संग्रह और निर्माण भी किया जाता था। वेदों में कलश को समुद्रस्थ कहा गया है वहीं अथर्ववेद में पितरों के लिए कुम्भ दान का उल्लेख है।

‘कुम्भ’ का शाब्दिक अर्थ है ‘घट, कलश, जलपात्र या करवा। भारतीय संस्कृति में ‘कुम्भ’ मंगल का प्रतीक है। यह शोभा ,सौन्दर्य एवं पूर्णत्व का वाचक भी है। सनातन संस्कृति में समस्त धार्मिक एवं मांगलिक कार्य स्वास्तिक चिन्ह से अंकित अक्षत, दुर्वा, आम्र पल्लव से युक्त जल पूर्ण कुम्भ के पूजन से प्रारम्भ होते हैं। कुंभ आदिकाल से हमारी आध्यात्मिक चेतना के रूप में प्रतिष्ठित है।भारतीय संस्कृति में जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी संस्कारों में कुम्भ का सर्वाधिक महत्व है।मनुष्य जीवन की अंतिम यात्रा में भी अस्थि कलश अर्थात् कुम्भ और गंगा का ही योग है।

ग्रह- नक्षत्रों की स्थिति तथा अन्य परम्पराओं के अनुसार कुम्भ के तीन प्रकार होते हैं, अर्ध कुम्भ, कुम्भ तथा महाकुम्भ, इस वर्ष प्रयागराज में हो रहा कुम्भ महाकुम्भ है, जिसमें 12 -12 वर्षों  की 12 आवृत्तियां पूर्ण हो रही हैं। यह अवसर प्रत्येक 144 वर्ष के उपरांत आता है इसीलिए इसे महाकुंभ कहा जाता है।

महाकुम्भ और प्रयागराज ये दुर्लभ संयोग है क्योंकि कुम्भ –महाकुम्भ है और प्रयागराज –तीर्थराज हैं। प्राचीन काल में प्रयागराज को बहुत यज्ञ स्थल के नाम से जाना जाता था। ऐसा इसलिये क्योंकि सृष्टि कार्य पूर्ण होने पर सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने प्रथम यज्ञ यहीं किया था तथा उसके बाद यहां पर अनेक पौराणिक यज्ञ हुए। प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती का त्रिवेणी संगम है। महाकुम्भ के अवसर पर यहां पर स्नान करना सहस्रों अश्वमेध यज्ञों, सैकड़ों वाजपेय यज्ञों तथा एक लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से भी अधिक पुण्य प्रदान करता है।

प्रयागराज महाकुम्भ -2025 में सम्पूर्ण भारत वर्ष में सनातन धर्म के समस्त मत मतान्तर, समस्त अखाड़े –आश्रम तथा समस्त महान संतों का आगमन हो रहा है, ऐसे ऐसे संत पधार रहे हैं जो सामान्य रूप से दर्शन नहीं देते इसके अतिरिक्त बड़ी संख्या में सनातन धर्म को मानने वाले विदेशी संतों-महंतों तथा उनके शिष्यों का आगमन भी हो रहा है। यह दृश्य अत्यंत अद्भुत होता  है जब आम भारतीय जनमानस को उनके भी दर्शन प्राप्त होते हैं।

प्रयागराज महाकुम्भ – 2025 में  अनुमानतः 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं का आगमन संभावित है। मेले की तैयारियां स्वयं प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में की गई हैं । मेले के पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व के अनुरूप ही श्रद्धालुओं का अनुभव रहे इस दृष्टि से महाकुम्भ आयोजन की तैयारियां दो वर्ष पूर्व से आरम्भ कर दी गई थीं। लगभग पचास करोड़ लोगों के आतिथ्य को संभल सकने योग्य अवस्थापना का निर्माण किया गया है। उड्डयन, रेल, सड़क परिवहन ने मिलकर यात्रा सुगम बनाने के लिए अपनी सेवाओं को विस्तार दिया है। प्रयागराज नगर को पौराणिक नगरी की तरह सजाया गया है। महाकुंभ में इस बार केवल सनातन संस्कृति के अलौकिक आध्यात्मिक पहलुओं का दर्शन ही नहीं होगा अपितु विकसित होते भारत का दर्शन भी होगा। महाकुंभ मेले के प्रबंधन में प्रत्येक स्थान आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। अन्य प्रान्तों से आ रहे श्रद्धालुओं को कोई कठिनाई न हो इसके लिए सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। डेढ़ लाख टेंटों वाली टेंट सिटी बनाई गयी है। स्वच्छता के विशेष प्रबंध किये जा रहे हैं। मेला परिसर में एक 100 शैय्या वाला चिकित्सालय भी स्थापित किया गया है।

महाकुम्भ -2025 में गुलामी की मानसिकता के प्रतीक शब्दों और चिह्नों को हटाने का महाअभियान प्रारम्भ हो रहा है जिसके अंतर्गत सर्वप्रथम शाही स्नान का नाम बदलकर अमृत स्नान कर दिया गया है। अखाड़ों के मेला प्रवेश को अब पेशवाई के स्थान पर अखाड़ा छावनी प्रवेश कहा जाएगा। एक घाट का नाम बदलकर महान क्रांतिकारी शहीद चंद्रशेखर आजाद घाट किया गया है। महाकुंभ -2025 में डिजिटल क्रांति भी देखने को मिलेगी।महाकुंभ  -2025 पर्यावरण संरक्षण व सामाजिक समरसता के व्यापक अभियान के लिए भी स्मरणीय बनाया  जायेगा।  महाकुंभ में ज्योतिष कुम्भ से लेकर स्वास्थ्य के विभिन्न क्षेत्रों के महाकुम्भ का भी आयोजन होने जा रहा है।

मेले की समाप्ति तक निर्धारित मेला क्षेत्र उत्तर प्रदेश के 76 वें जनपद के रूप में मान्य होगा, यह घोषणा  मेले के विस्तार और महत्व का प्रमाण है।
मृत्युंजय दीक्षित
प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित

फोन नं. – 919857154

मुंबई के बेघर नागरिकों द्वारा खींची गई तस्वीरों का कैलेंडर ‘माई मुंबई 2025’

मुंबई। कैलेंडर “माई मुंबई 2025” एक अनूठी अवधारणा है जो मुंबई को सड़कों पर रहने वाले बेघर नागरिकों के नजरिए से दर्शाती है। आइडेंटिटी इंस्टीट्यूट की इस पहल में 50 बेघर लोगों को फिजी कैमरे दिए गए और उन्हें अपनी आंखों से मुंबई की तस्वीरें कैद करने का मौका दिया गया। यह खास कैलेंडर कुल 1107 तस्वीरों में से चुनी गई 13 तस्वीरों के आधार पर तैयार किया गया है।

कैलेंडर का विमोचन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस ने सह्याद्री गेस्ट हाउस में किया। इस कार्यक्रम में आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली, पहचान संस्थान के अध्यक्ष ब्रिजेश आर्य और सुभाष रोकड़े भी उपस्थित थे। श्रमिक नेता अभिजीत राणे, सामाजिक कार्यकर्ता रामकुमार पाल, लंदन स्थित माई वर्ल्ड क्रिएटिव प्रोजेक्ट के पॉल रयान ने विशेष सहयोग प्रदान किया।

मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस ने बेघर लोगों को न्याय दिलाने के लिए बार-बार प्रयास किया है। इसका एक हिस्सा मुंबई में रैन बसेरों का तेजी से निर्माण है। बेघर नागरिकों की कला को एक मंच प्रदान करने के अलावा, इस पहल ने उनके जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में भी एक कदम आगे बढ़ाया है।

बेघर नागरिकों द्वारा खींची गई सभी तस्वीरों की जांच और चयन करने के लिए नियुक्त पैनल में राज्य नियंत्रण आश्रय समिति के अध्यक्ष उज्वल उके, आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली, वरिष्ठ फोटोग्राफर प्रशांत नाकवे, डॉ रातूला कुंडू, ब्रिजेश आर्य, सार्थक बनर्जीपुरी शामिल थे।

मराठी लेखक डॉ. ज्ञानेश्वर मुले को नीलिमारनी साहित्य सम्मान

 भुवनेश्वर।   कीट कंवेशन सेंटर पर कादम्बिनी साहित्य महोत्सव 2025 का शानदार आयोजन हुआ  जिसमें विख्यात मराठी लेखक और राजनयिक डॉ. ज्ञानेश्वर मुले को प्रतिष्ठित नीलिमारनी साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान में डॉ. मुले को 10 लाख रुपये नकद, एक रजत प्रतीक और एक प्रशस्ति-पत्र प्रदान किया गया। यह सम्मान डॉ. मुले के भारतीय साहित्य में अमूल्य योगदान और सांस्कृतिक समृद्धि के प्रति उनके आजीवन समर्पण सेवा हेतु प्रदान किया गया।पुरस्कार प्राप्त करते हुए, डॉ. मुले ने इस बात पर जोर दिया कि साहित्य का सार स्वतंत्रता, समानता और न्याय को बढ़ावा देने में निहित है। साहित्य भाषाओं, संस्कृतियों, क्षेत्रों और सबसे महत्वपूर्ण रूप से व्यक्तियों के बीच एक सेतु का काम करता है।
डॉ. मुले ने पिछले 25 वर्षों से कादम्बिनी की समर्पित सेवा के लिए उनका आभार व्यक्त किया।कार्यक्रम के आरंभ में कीट-कीस के संस्थापक तथा कादंबिनी –कुनी कथा के मुख्य संरक्षक महान् शिक्षाविद् प्रो. अच्युत सामंत ने स्वागत भाषण दिया जिसमें उन्होंने मंतस्थ सभी आमंत्रित विशिष्ट अतिथियों का संक्षिप्त परिचय प्रदान करते हुए उनका स्वागत कादंबिनी मीडिया परिवार की ओर से किया।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रख्यात लेखक प्रो. कैलाश पटनायक ने की जबकि आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी समारोह के मुख्य अतिथि थे।अवसर पर प्रसिद्ध अभिनेता और निर्देशक श्री चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने सिनेमा और साहित्य के अंतर्संबंध पर अपनी अंतर्दृष्टि साझा की।
सुश्री बनजा देवी,प्रमुख ओडिया लेखिका, डॉ. नीना वर्मा, प्रसिद्ध लेखिका और ब्लॉगर और ख्यातिप्राप्त टेलीविजन धारावाहिक रामायण के रावण की भूमिका निङानेवाले  अदाकार श्री अखिलेंद्र मिश्रा जैसी नामचीन हस्तियों ने इस आयोजन की बौद्धिक श्रीवृद्धि की।आयोजन का मुख्य आकर्ष रहा प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी कादम्बिनी पत्रिका हाट। गौरतलब है कि भारत का एकमात्र यह पत्रिका मेला है  जो प्रकाशकों, संपादकों और पाठकों को बातचीत करने और विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक जीवंत मंच प्रदान करता है।अपने भाषण में सम्मानित अतिथि डॉ. जोशी ने कहा कि भारतीय विश्वविद्यालयों के भविष्य के इतिहास में कीट डीम्ड विश्वविद्यालय,भुवनेश्वर शीर्ष पांच विश्वविद्यालयों में गिना जाएगा। उन्होंने इस उपलब्धि के लिए संस्थापक महान् शिक्षाविद् प्रो.अच्युत सामंत का आभार व्यक्त किया।
डॉ. जोशी ने यह भी कहा कि जहां ओड़िया के अलावा अन्य भाषाओं में पत्रिकाओं का प्रकाशन कम हो रहा है, वहीं कादम्बिनी ने 500 से अधिक पत्रिका प्रदर्शनियों का आयोजन करके एक इतिहास रच दिया है। इससे पत्रिकाएं प्रकाशित करने की प्रेरणा मिली है। सम्मानित अतिथि श्री द्विवेदी ने कहा कि साहित्य वहीं मिलता है, जहां दुख और पीड़ा है। जो लोग इस दुख और पीड़ा को शब्दों से जोड़ पाते हैं वे लेखक माने जाते हैं। कुछ लेखक अपने निजी दर्द को व्यक्त कर सकते हैं जो लोग पूरे विश्व के दर्द को व्यक्त करने में सक्षम होते हैं वे महान कवि माने जाते हैं।
रामायण टेलीविजन धारावाहिक में रावण की भूमिका निभानेवाले श्री अखिलेंद्र मिश्रा ने कहा कि साहित्य ऋग्वेद का एक मूलभूत पहलू है और इसे ब्रह्मांड की उत्पत्ति माना जाता है। उन्होंने पुस्तकों को पढ़ने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि पुस्तक को छूने से एक विशेष भावना पैदा होती है। उनका मानना था कि साहित्य जीवन के लिए आवश्यक है क्योंकि यह विचारों और अंतर्दृष्टि का खजाना प्रदान करता है। कविता पढ़ने से, विशेष रूप से, जीवन की लय को समझने में मदद मिलती है।उन्होंने जोर देकर यह संदेश दिया कि जो भी ओड़िशा प्रदेश के पुरी,कोणार्क परिभ्रमण के लिए आता है उसे प्रो अच्युत सामंत के स्मार्ट गांव कलराबंक अवश्य जाना चाहिए जहां पर भारत की आत्मा निवास करती है। उनके अनुसार कीट तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में जहां पूर्वी भारत गौरव है वहीं कीस वास्तविक शांतिनिकेतन है  जिसके लिए संस्थापक महान् शिक्षाविद् प्रो अच्युत सामंत वास्तविक बधाई के हकदार हैं।कादंबिनी की संपादिका डॉ. इतिरानी सामंत ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

गोपाल दास नीरज पर काव्य गोष्ठी का आयोजन

कोटा ।  समरस संस्थान साहित्य सृजन भारत के संस्थापक एवं संचालक डॉ. मुकेश कुमार व्यास ‘स्नेहिल’ जी के सानिध्य में एवं ड.विजय प्रताप सिंह जी की अध्यक्षता में ख्यातनाम साहित्यकार और कवि गोपाल दास नीरज जी के सम्मान मे “जन्म दिवस विशेष” एवं मासिक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। सविता धर धनबाद जी के सुरीले कंठ से मां सरस्वती की वंदना “जयति जय जय मां सरस्वती” के साथ काव्य गोष्ठी का आगाज हुआ।
   समरस संस्थान की भिन्न-भिन्न इकाइयों से साहित्यिक मनीषियों ने काव्य गोष्ठी में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। बृज सुंदर जी सोनी, भीलवाड़ा, नन्द किशोर बहुखंडी, प्रेम नारायण जी, बी पी मिश्र बेधड़क गोला खीरी ,सविता धर धनवाद, डॉ. विजय प्रताप सिंह जी अहमदाबाद,प्रेम प्रसून धौलपुर,दिनेश सेंगर ‘दिनेश’ मुरैना,डॉ शशि जैन कोटा,राजेंद्र कुमार जैन कोटा,रजनी शर्मा “मृदुल”धौलपुर,संतोष द्विवेदी बिगुल वीर भूमि महोबा,प्रिया शुक्ला धौलपुर, ईश्वर चन्द्र जी जायसवाल संत कबीरनगर,कांता तिवारी गढ़चिरौली,हरेंद्र ‘ हर्ष ‘  धौलपुर,गोविन्द गुरुजी  धौलपुर, अनुसुइया शर्मा धौलपुर, दशरथ सिंह दबंग बनेड़ा भीलवाड़ा, समरस संस्थान के महामंत्री आनंद कुमार जैन ‘अकेला’ कटनी मध्य प्रदेश, किरण मोर कटनी,  रुखसाना जेबा भोपाल आदि साहित्यकारों ने गोपाल दास नीरज की रचनाएं सुनाकर मंत्र मुग्ध कर दिया। काव्य गोष्ठी के अंत में समरस संस्थान की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ शशि जैन ने उपस्थित सभी साहित्यिक मनीषियों का  आभार व्यक्त किया।

अपने दर्द की पीड़ा से दूसरों के लिए राहत लेकर आई अमरीका में रह रही अस्मिता सूद

भारत में रहने वाले लोग जिन्हें भविष्य में चिकित्सकीय इलाज की ज़रूरत होगी, उन्हें आज जो कुछ भी काम अस्मिता सूद कर रही हैं, उससे फायदा हो सकता है।

अस्मिता सूद, कैलिफ़ोर्निया में स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी से बायोमेडिकल डेटा साइंस में मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई कर रही हैं। उन्हें प्रतिष्ठित क्वाड ़फेलोशिप मिली है जो ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका की सरकारों द्वारा समर्थित एक फेलोशिप प्रोग्राम है। इसे इन देशों में वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों की अगली पीढ़ी के बीच संबंधों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से डिजाइन किया गया है। हालांकि सूद ने अंडरग्रेजुएट डिग्री और इंटर्नशिप कंप्यूटर साइंस में की है, लेकिन बाद में उन्होंने हेल्थ केयर तकनीक के क्षेत्र पर फोकस करना शुरू कर दिया। इसके पीछे उनके बचपन से जुड़ी एक मुश्किल घटना है।

उस घटना को याद करते हुए वह कहती हैं, ‘‘शायद मैं तब 11 साल की थी, जब मुझे पेट में बहुत भयंकर दर्द हुआ और वह कई दिनों तक चलता रहा। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ है। मुझे पेट में संक्रमण की दवा दी गई, लेकिन उससे कोई फायदा नहीं हुआ। यह लंबे समय तक चलता रहा और कभी-कभी तो यह इतना भयावह होता था कि मैं अपनी परीक्षा देने के लिए भी अपने बिस्तर से नहीं उठ पाती थी।’’ वह बताती हैं, ‘‘मुझे याद है कि मेरी मां मेरी साइंस की किताब को जोर-जोर से पढ़ती थीं ताकि मैं उसे सुन कर उसे समझ सकू्ं। यह सब कुछ सालों तक जारी रहा, और उसके 8 साल बाद 2020 में हालात बहुत खराब हो गए और मुझे इमरजेंसी में भर्ती कराया गया। मुझे फिर से पेट में संक्रमण की दवा दी गई लेकिन किसी ने भी आगे जांच कराने की सलाह नहीं दी। वह मेरी मां ही थीं जिन्होंने कहा कि इसकी अल्ट्रासाउंड जांच की ज़रूरत है।’’

अल्ट्रासाउंड करने से पता चला कि सूद को पित्ताशय में 90 पथरियां थीं। वह बताती हैं, ‘‘यह असहनीय था। लंबे समय से संक्रमण के कारण यह मेरी आंतों तक फैल चुका था। डॉक्टरों ने उसे ठीक नहीं बताया। उन्हें शक था कि यह कैंसर हो सकता है।’’

उस समय, उनके गृहनगर में डॉक्टरों के पास उनकी आंतों की जांच करने के लिए केवल एक पीईटी (पॉजिट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी) स्कैन मशीन उपलब्ध थी, जो विस्तृत त्रिआयामी तस्वीर दिखाती है। हालांकि, कोविड-19 महामारी के कारण सूद जांच के लिए स्थानीय अस्पताल तक नहीं जा सकीं। वह याद करती हैं, ‘‘हमें स्कैन के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा। किस्मत से, स्कैन से पता चला कि उनकी स्थिति को गाल ब्लैडर निकालने की सर्जरी और दवाओं से काबू किया जा सकता है।’’

यह एक महत्वपूर्ण बिंदु था जहां सूद ने फैसला किया कि वह सॉ़फ्टवेयर विकास पर नहीं बल्कि विशेष रूप से चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल पर अधिक ध्यान केंद्रित करेंगी।

उनका कहना है, ‘‘मैं काफी कुछ और करना चाहती थी, कुछ ऐसा जहां मैं स्वास्थ्यकर्मियों के बेहतर जांच निर्णयों में कंप्यूटर साइंस की अपनी पृष्ठभूमि का इस्तेमाल कर सकूं।’’

सूद अभी मौजूदा समय में पैथोलॉजी इमेज पर काम कर रही हैं और एक सर्च एवं रिट्रीवल डेटाबेस को तैयार कर रही हैं। वह कहती हैं, ‘‘लक्ष्य यह है कि जब कोई नया मरीज़ आता है तो उसकी स्लाइड की तुलना पिछले मरीजों और उनकी स्लाइड के साथ करते हुए उनके निदान से की जा सके। यह पैटर्न का पता लगाने, रोग की ज्यादा सटीक पहचान और रोगियों के लिए बेहतर नतीजों में मदद कर सकता है।’’

उन्होंने मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) जैसी जांच तकनीकों में सुधार पर भी काम किया ताकि रेडियोग्राफर जांच रिपोर्ट का जल्द विश्लेषण सके। एक महत्वपूर्ण सफलता में एमआरआई इमेज का विश्लेषण करने के लिए कंप्यूटर को प्रशिक्षित करना शामिल था।

वह बताती हैं, ‘‘हमने ब्रेन ट्यूमर पर ध्यान केंद्रित कि या है ताकि एमआरआई को देख कर पता लगा सके कि ट्यूमर कहां स्थित और कौनसे उपक्षेत्र हैं।’’ वह इस बात पर जोर देती हैं कि कंप्यूटर मॉडल का उद्देश्य चिकित्सकों की मदद करना है न कि उनकी जगह लेना।

सूद, उन्नत स्वास्थ्य देखभाल को और अधिक सुलभ बनाने के लिए कंप्यूटर विज्ञान, जीव विज्ञान और गणित का संयोजन कर रही हैं। उन्होंने स्टैनफ़र्ड के वातावरण को बेहद प्रेरणादायक और सहयोगी पाया।

वह कहती हैं, ‘‘मुझे यह पसंद है कि हर कोई अपने शोध को लेकर जुनूनी है और आप किसी से भी मिल सकते हैं, उनसे बात कर सकते हैं कि वे क्या कर रहे हैं। यह बहुत दिलचस्प है।’’ वह कहती हैं, ‘‘यह अमेरिका में मेरा पहला मौका है और मैं यहां के माहौल का आनंद ले रही हूं। यहां हर कोई उन अद्भुत चीजों के बारे में बात करने के लिए कितना इच्छुक है, जिन पर वे काम कर रहे हैं। यह एक सहयोगात्मक माहौल है और यही मुझे वास्तव में पसंद है।’’

सूद को क्वाड ़फेलोशिप के बारे में अपने एक दोस्त से पता चला और उन्होंने आवेदन करने का निर्णय किया। वह कहती हैं, ‘‘यह देखना प्रेरक लगा कि ़फेलोशिप के जरिए किस तरह से शोध, नीति और औद्योगिक क्षेत्र के लोग एक साथ आ रहे हैं। सभी का साझा लक्ष्य हमारे ज्ञान का लोगों की भलाई को लिए इस्तेमाल है। यही तो मैं अपनी डिग्री के साथ करना चाहती हूं।’’

सूद की योजना पीएच.डी. करने की है जिसका मकसद अपने ज्ञान का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल में सुधार करना है, जहां वह पली-बढ़ी हैं। वह कहती हैं, ‘‘मैं भारत वापस जाना चाहती हूं। मेरा लक्ष्य स्टैनफर्ड में काम और शोध करने वाले इतने सारे लोगों के बीच सर्वश्रेष्ठ से सीखना है।’’ वह कहती हैं, ‘‘मैं उन अत्याधुनिक तकनीकों को उन जगहों तक ले जाना चाहती हूं जहां लोगों की उन तक पहुंच नहीं है। मैं व्यक्तिपरक चिकित्सा के क्षेत्र में भी काम करना चाहती हूं जहां निदान और उपचार उनकी खास ज़रूरतों के अनुरूप हो।’’

स्टीव फ़ॉक्स एक स्वतंत्र लेखक, पूर्व अखबार प्रकाशक और रिपोर्टर हैं। वह वेंचुरा, कैलिफ़ोर्निया में रहते हैं।

साभार-   https://spanmag.state.gov/hi/ से 

राष्ट्रीय बाल साहित्य समारोह का दो दिवसीय आयोजन

कोटा/  सार्थक बाल साहित्य विमर्श, 24 कृतियों का विमोचन, 82 साहित्यकारों , कलाकारों, चिकित्सकों के सम्मान के साथ नाथद्वारा में रविवार से प्रारंभ हुए भगवती प्रसाद देवपुरा स्मृति एवं राष्ट्रीय बाल साहित्य समारोह का दो दिवसीय आयोजन संपन्न हुआ। कोटा की तीन साहित्यकार महेश पंचोली,विजय शर्मा और विष्णु शर्मा हरिहर को भी सम्मानित किया गया। साहित्य मंडल द्वारा आयोजित समारोह का संचालन संस्था के पदाधिकारी श्याम प्रकाश देवपुरा ने किया और अंजीव ने सम्मानित साहित्यकारों का गद्य और पद्य में कृतित्व प्रस्तुत किया।
भगवती प्रसाद देवपुरा की स्मृति में उनके साहित्यिक योगदान और कार्यों पर डॉ. अमर सिंह बधान चंडीगढ़ द्वारा  देवपुरा : मैंने जैसे देखे समझे , डॉ. राहुल दिल्ली द्वारा  देवपुरा का सृजन एवं चिंतन, डॉ. ज्ञान प्रकाश पियूष सिरसा द्वारा  देवपुरा: अनुशासन के पूरक व्यक्तित्व , डॉ. रक्षा गोदावत उदयपुर द्वारा  देवपुरा  : कृष्ण भक्ति साहित्य के पोषक संरक्षक और उन्नयाक विषयों  के साथ – साथ उनके  पर  कोटा से रामेश्वर शर्मा रामू भैया , बंशीलाल लड्ढा कपासन, श्रीमती रेखा लोढ़ा भीलवाड़ा, डॉ अंजीव रावत और कोटा से जितेंद्र निर्मोही ने विचार व्यक्त किए।
 बाल साहित्य विमर्श में सत्यनारायण सत्य रायपुर राजस्थान द्वारा दादी नानी की कहानियों से दूर होते बालक, डॉ ज्ञान प्रकाश पियूष सिरसा हरियाणा द्वारा बाल साहित्य आज की आवश्यकता , डॉ नागेंद्र कुमार मेहता भाव श्रीनाथ द्वारा द्वारा वर्तमान समय में बालक बाल साहित्य और नैतिक मूल्य , श्री कृष्ण बिहारी पाठक हिंडौन सिटी राजस्थान द्वारा परी जादूगर रक्षा राजा रानी :बाल साहित्य में कितने आवश्यक, श्री नरेंद्र निर्मल भरतपुर द्वारा बाल साहित्य में पशु पक्षियों का संसार , श्रीमती रेखा लोढ़ा स्मित भीलवाड़ा द्वारा बाल कहानियों में राष्ट्रीय प्रेम एक महती आवश्यकता, श्रीमती विमला नागला केकड़ी द्वारा लोरियों के लोक में बालक एवं श्रीमती रिचा रावत राया उत्तर प्रदेश द्वारा बाल कविताओं में सूरज चंदा और तारे विषय पर  अपने शोध परक आलेखों का वचन किया।
समारोह में  विख्यात साहित्यकार सुश्री सफलता त्रिपाठी लखनऊ को श्रीमती कमला देवी अग्निहोत्री स्मृति सम्मान, डॉ. वाई. एन. वर्मा उदयपुर, डॉ. एस. एस. पुरोहित श्रीनाथ द्वारा, डॉ. एम.के. सिरोहियां श्रीनाथ द्वारा एवं डॉ. विशाल लाहोटी श्रीनाथ द्वारा को चिकित्सा सेवा रत्न मानद उपाधि से अलंकृत किया गया।
 प्रसिद्ध मांड गायक  हिदायत खान चूई नागौर को डॉ ताराचंद भंडारी स्मृति सम्मान एवं लोक कला मर्मज्ञ की मानक उपाधि से सम्मानित किया गया। प्रोफेसर प्रफुल्ल चंद्र ठाकुर रोसड़ा समस्तीपुर बिहार को भगवती प्रसाद देवपुरा स्मृति सम्मान, आनंद प्रजापति मिर्जापुर उत्तर प्रदेश को डॉ. आर.के. रमन स्मृति सम्मान , डॉ रागिनी भूषण जमशेदपुर झारखंड को श्रीमती राजपति देवी उपाध्याय स्मृति सम्मान, डॉ संगीता पाल कच्छ गुजरात को श्री अवध नारायण उपाध्याय स्मृति सम्मान, सुश्री एंजेल गांधी ऊंचाहार रायबरेली एवं कुमारी सृष्टि राज मिर्जापुर उत्तर प्रदेश को श्रीमती गीता देवी काबरा स्मृति बाल श्री सम्मान से पुरस्कृत किया किया गया।
 बाल साहित्य भूषण की मानद उपाधि के साथ डॉ.अजय जनमेजय बिजनौर उत्तर प्रदेश, डॉ. दयाराम मौर्य रत्न प्रतापगढ़  अरविंद कुमार साहू ऊंचाहार रायबरेली , गौतम चंद्र अरोड़ा सरस वाराणसी उत्तर प्रदेश को पुण्य श्लोक स्वामी भूमानंद तीर्थ जी महाराज स्मृति सम्मान, श्रीमती विमला रस्तोगी दिल्ली को श्रीमती केसर देवी जानी स्मृति सम्मान, अनिल कुमार जायसवाल दिल्ली भारत को श्री श्याम सुंदर बागला स्मृति सम्मान, डॉ. सतीश चंद्र भगत बनौली दरभंगा बिहार को बालकृष्ण अग्रवाल स्मृति सम्मान, डॉ. मीरा सिंह मीरा  डुमराव बक्सर बिहार को श्रीमती उर्मिला देवी अग्रवाल स्मृति सम्मान, श्रीमती शशि पुरवार नागपुर महाराष्ट्र को श्रीमती श्याम लता शर्मा स्मृति सम्मान , डॉ. शैलजा माहेश्वरी अमलनेर महाराष्ट्र को श्रीमती कमला देवी पुरोहित स्मृति सम्मान ,  बलदाऊ राम साहू दुर्ग छत्तीसगढ़ एवं श्री कन्हैया साहू अमित भाटापारा छत्तीसगढ़ को  रविंद्र गुर्जर अप्पू स्मृति सम्मान, डॉ. श्याम पलट पांडे अहमदाबाद गुजरात को श्रीमती तारा दीक्षित स्मृति सम्मान,  गोविंद भारद्वाज अजमेर को श्री शिवचंद ओझा स्मृति सम्मान और डॉ. फकीरचंद शुक्ला लुधियाना पंजाब एवं डॉ. बंशीधर तातेड़ बाड़मेर राजस्थान को श्रीमती पुष्पा देवी दुग्गल स्मृति सम्मान, विजय बेशर्म गाडरवारा नरसिंहपुर मध्य प्रदेश को श्री चमन लाल सिंघल स्मृति सम्मान, श्रीमती वंदना सोनी विनम्र जबलपुर मध्य प्रदेश को श्रीमती सुमन लता स्मृति सम्मान, कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड को श्री विट्ठल शुक्ल स्मृति सम्मान , विमल ईनाणी श्रीनाथद्वारा को श्री सज्जन सिंह साथी स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया।
 डॉ. शारदा प्रसाद दुबे मुंबई महाराष्ट्र एवं श्री हरि वाणी कानपुर को साहित्य कुसुमाकर की मानद उपाधि, डॉ. चांद कौर जोशी जोधपुर, डॉ रक्षा गोदावत उदयपुर , सुरेश कुमार श्रीचंदानी अजमेर को साहित्य सौरभ की मानद उपाधि, डॉ. सरोज गुप्ता जयपुर, श्री मुकेश कुमार ऋषि आगरा,  अमर सिंह यादव ग्वालियर, श्री पूर्णिमा मित्र बीकानेर,  शांतिलाल दाधीच शून्य भीलवाड़ा को काव्य कौस्तुभ की मानद उपाधि, जय बजाज इंदौर मध्य प्रदेश, श्रीमती शिखा अग्रवाल भीलवाड़ा एवं श्रीमती मंजू शर्मा जांगिड़ मनी जोधपुर को काव्य कुसुम की उपाधि एवं  उमाशंकर व्यास बीकानेर एवं श्री राजेश वर्मा उदयपुर को पत्रकार श्री की उपाधि से सम्मानित किया गया।
     समारोह में भारतवर्ष के विभिन्न प्रांतो से आए बाल साहित्य रचनाकारों को भी बाल साहित्य भूषण मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। इसमें डॉ. ज्ञान प्रकाश पीयूष सिरसा,  श्याम सुंदर श्रीवास्तव भिंड मध्य प्रदेश, श्रीमती बसंती पवार जोधपुर ,डॉ. जेवा रशीद जैबुन्निशा जोधपुर, श्रीमती मधु माहेश्वरी सलूंबर , डॉ.नीना छिब्बर जोधपुर, श्रीमती विमला नागला केकड़ी, श्रीमती हेमलता दाधीच उदयपुर, श्रीमती सीमा जोशी मूथा जोधपुर, डॉ तृप्ति गोस्वामी जोधपुर, डॉ.विमल महरिया मौज लक्ष्मणगढ़, श्रीमती मीनाक्षी पारीक जयपुर,  पारस चंद जैन देवली, विष्णु शर्मा हरिहर कोटा, श्री नरेंद्र निर्मल भरतपुर,  कृष्ण बिहारी पाठक हिंडौन सिटी,  भारत दोषी बांसवाड़ा, डॉ. विनोद कुमार शर्मा जयपुर,  विजय कुमार शर्मा कोटा,  पुनीत रंगा बीकानेर,  महेश पंचोली कोटा,  यशपाल शर्मा यशस्वी पहुना, श्रीदेवी प्रसाद गौड मथुरा, डॉ. अरविंद कुमार दुबे लखनऊ,  हरिलाल मिलन कानपुर, डॉ. उदय नारायण उदय कानपुर,  प्रदीप अवस्थी कानपुर,  राजकुमार सचिन कानपुर, कर्नल प्रवीण शंकर त्रिपाठी नोएडा, श्रीमती मीनू त्रिपाठी नोएडा ,  रजनीकांत शुक्ल गाजियाबाद, महेश कुमार मधुकर बरेली, श्री कमरेंद्र कुमार कालपी जालौन , श्याम मोहन मिश्रा गोला गोकर्णनाथ को बाल साहित्य भूषण की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।

बस्तर क्षेत्र में पर्यटन विकास को मिली गतिःकेशकाल घाटी और टाटामारी में बढ़ रही पर्यटकों की रौनक

रायपुर।  मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के सुशासन में बस्तर क्षेत्र में विकास की रफ्तार तेज हो गई है और इसका ताजा उदाहरण नेशनल हाईवे 30 पर स्थित केशकाल घाटी है। केशकाल घाटी को बस्तर की लाइफ लाइन के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इस घाटी से ही होकर बस्तर संभाग के अलग-अलग जिलों एवं ओड़िसा, आंध्रप्रदेश सहित तेलंगाना तक पहुँचा जाता है। नेशनल हाईवे पर स्थित केशकाल घाटी प्रमुख मार्ग होने के साथ साथ बस्तर क्षेत्र के व्यवसायिक विकास की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। आज से दो महीने पहले यह घाटी जर्जर स्थिति में थी इस कारण यहाँ से गुजरने वाले लोग धुल एवं लम्बी जाम से परेशान थे। इसे ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ शासन ने घाटी की कायाकल्प के लिए कार्य योजना तैयार किया, फलस्वरूप आज घाटी पूरी तरह से बन कर तैयार है और गाड़ियाँ घाटी से फर्राटे भर रही हैं। केशकाल घाट में मरम्मत कार्य पूरा होने के बाद बीते शुक्रवार को सुबह सभी प्रकार के वाहनों के आवाजाही बहाल हो गई है। घाटी के नवीनीकरण से यातयात में सुगमता आएगी, साथ ही इससे क्षेत्र के पर्यटन स्थलों को भी बढ़ावा मिलेगा।

केशकाल घाटी मरम्मत कार्य के साथ-साथ घाटी के दीवारों पर बस्तर की संस्कृति, कला, पर्यटन को चित्रित किया गया है, जिससे घाटी आकर्षण का केंद्र बन गया है। घाटी को अब लोग फूलों की घाटी के नाम के साथ-साथ अब खुबसूरत वॉल पेंटिंग के लिए भी जाना जाएगा। बस्तर में कई खुबसूरत पर्यटन स्थल है और कांकेर जिले के पर्यटन स्थलों को निहारने के बाद पर्यटक घाटी के रास्ते ही आगे की सफ़र तय करते हैं, ऐसे में जब घाटी में बने सुंदर पेंटिंग से उन्हें बस्तर की प्रमुख पर्यटन स्थलों की जानकारी के साथ जिले के शिल्पियों द्वारा बनाए कलाकृति बेलमेटल एवं आदिवासी कला व संस्कृति की महक से पर्यटक रुबरु हो पाएंगे।

घाटी के दाहिने ओर स्थित टाटामारी हिल स्टेशन अपने खूबसूरत प्राकृतिक सुंदरता के लिए देश दुनिया में प्रसिद्ध है। आप जब घुमावदार मोड़ों वाली घाटी से यात्रा के बाद टाटामारी पहुंचेंगे तब आपकी थोड़ी बढ़ी हुई धड़कने शांत और आँखों को राहत मिलेगी। यहाँ की खुबसूरत नज़ारे देख कर पर्यटकों के मन में काश ये वक्त यही ठहर जाए यह बात आ ही जाती है। और हर कोई यहाँ के नाजरों को अपने मोबाईल में कैद करने से रह नहीं पाते। यही वजह है की इस नूतन वर्ष में पर्यटक दूर-दूर से यहां की नैसर्गिक सुंदरता को निहारने के लिए पहुंच रहे हैं। यहाँ हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। वर्ष 2020 में 20 हजार 950 पर्यटकों की संख्या थी जो अब बढ़कर 01 लाख 76 हजार 682 हो गई है। यहाँ पर्यटकों के रुकने के लिए यहाँ पर उचित व्यवस्था की गई है ताकि पर्यटक टाटामारी के साथ-साथ आस पास के अन्य पर्यटन स्थलों तक भी पहुँच सकें। टाटामारी में स्थानीय युवाओं को रोजगार मिल भी रहा है। साथ ही स्व सहायता समूह की महिलाएं यहाँ पर्यटकों को गाँव के पारंपरिक पकवान और भोजन परोसते हैं।

कलेक्टर श्री कुणाल दुदावत ने बताया कि टाटामारी में एडवेंचर्स स्पोर्ट्स की काफी संभावनाएं हैं, जिसे ध्यान में रखते हुए यहां एडवेंचर्स गतिविधियों के आयोजन के लिए जिला प्रशासन द्वारा कार्य योजना बनाई जा रही है। साथ ही पर्यटकों के सुविधाओं की दृष्टि से व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए व्यूव पॉइंट, पाथ वे और वुडन कॉटेज के सुदृढ़ीकरण किया जाएगा और किड्स प्ले गार्डन में सुविधा बढ़ाई जाएगी। साथ ही नए कॉटेज का भी निर्माण किया जाएगा।