चित्रनगरी संवाद में मुंबई की सांस्कृतिक विरासत पर चर्चा
सीमा सिंह और सोनाली बेंद्रे द्वारा इंस्पायरिंग मदर्स का सम्मान
मुंबई : सामाजिक कार्यकर्ता और बिज़नेस वुमेन सीमा सिंह , मेघाश्रेय फाउंडेशन द्वारा मदर्स डे के अवसर पर इंस्पायरिंग मदर्स 2024 का आयोजन किया गया इस अवसर पर सीमा सिंह , डॉक्टर मेघा सिंह और श्रेय सिंह के द्वारा शिक्षा , स्वास्थ्य , सेवा , खेल और समाज कल्याण के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया गया । इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि सोनाली बेंद्रे भी उपस्थित रहे । इस कार्यक्रम में श्रेय सिंह और डॉ मेघा सिंह ने मदर्स डे विषय पर पैनल को संचालित भी किया ।
इंस्पायरिंग मदर्स 2024 समारोह में आयपीएस आरती सिंह ,, डॉ प्रिया कुलकर्णी , मिसेज़ ललिता बाबर , डॉ रेशमा पई , आयआरएस बीना संतोष , मधु बोहरा , मंजु लोढ़ा , डॉ मनुश्री पाटिल , डॉ शिवानी पाटिल , रोमा सिंघानियाँ , डॉ मिन्नी बोधनवाला को सम्मानित किया गया ।
सीमा सिंह , मेघाश्रेय फाउंडेशन की संस्थापक हैं, सीमा सिंह अपने बच्चों डॉ मेघना सिंह और श्रेय सिंह के साथ विभिन्न सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों का आयोजन करती रहती हैं। सीमा सिंह ने अपने बच्चों डॉ मेघना सिंह और श्रेय सिंह की ओर से मेघा श्रेया फाउंडेशन की शुरुआत की। मेघाश्रेया फाउंडेशन भारत भर में वंचित बच्चों की बेहतरी और भूखे लोगों को खाना खिलाने की दिशा में काम करता है। अब तक, विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से पूरे भारत में पाँच लाख से अधिक लोगों के जीवन को बदल दिया है।
इस अवसर पर सीमा सिंह ने कहा कि ‘इंस्पारिंग मदर्स 2024 के द्वारा हम विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित करना मेघाश्रेय फाउंडेशन के लिए बहुत महत्वपूर्ण अवसर हैं । मैं देश के कई हिस्सों में जरूरतमंद बच्चों के लिए विभिन्न कार्यक्रम का आयोजन करती हूँ और चाहती हूँ की समाज में बड़े स्तर पर वंचितों और जरूरतमंद बच्चों के लिए कल्याणकारी आयोजन किए जाये ।
पंच परिवर्तन बनेगा समाज परिवर्तन का सशक्त माध्यम
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज में सकारात्मक परिवर्तन के लिए पिछले लगभग 99 वर्षों से निरंतर कार्य कर रहा है। भारतीय समाज में सकारात्मक परिवर्तन को गति देने एवं समाज में अनुशासन व देशभक्ति के भाव को बढ़ाने के उद्देश्य से माननीय सर संघचालक श्री मोहन भागवत ने समाज में पंच परिवर्तन का आह्वान किया है ताकि अनुशासन एवं देशभक्ति से ओतप्रोत युवा वर्ग अनुशासित होकर अपने देश को आगे बढ़ाने की दिशा में कार्य करे। इस पंच परिवर्तन में पांच आयाम शामिल किए गए हैं – (1) स्व का बोध अर्थात स्वदेशी, (2) नागरिक कर्तव्य, (3) पर्यावरण, (4) सामाजिक समरसता एवं (5) कुटुम्ब प्रबोधन। इस पंच परिवर्तन कार्यक्रम को सुचारू रूप से लागू कर समाज में बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। स्व के बोध से नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति सजग होंगे। नागरिक कर्तव्य बोध अर्थात कानून की पालना से राष्ट्र समृद्ध व उन्नत होगा। सामाजिक समरसता व सद्भाव से ऊंच-नीच जाति भेद समाप्त होंगे। पर्यावरण से सृष्टि का संरक्षण होगा तथा कुटुम्ब प्रबोधन से परिवार बचेंगे और बच्चों में संस्कार बढ़ेंगे। समाज में बढ़ते एकल परिवार के चलन को रोक कर भारत की प्राचीन परिवार परंपरा को बढ़ावा देने की आज महती आवश्यकता है।
भारत में हाल ही के समय में देश की संस्कृति की रक्षा करना, एक सबसे महत्वपूर्ण विषय के रूप में उभरा है। सम्भावना से युक्त व्यक्ति हार में भी जीत देखता है तथा सदा संघर्षरत रहता है। अतः पंच परिवर्तन उभरते भारत की चुनौतियों का समाधान करने में समर्थ है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबोले जी कहते हैं कि बौद्धिक आख्यान को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से बदलना और सामाजिक परिवर्तन के लिए सज्जन शक्ति को संगठित करना संघ के मुख्य कार्यों में शामिल है। इस प्रकार पंच परिवर्तन आज समग्र समाज की आवश्यकता है। पंच परिवर्तन में समाज में समरसता (बंधुत्व के साथ समानता), पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली, पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए पारिवारिक जागृति, जीवन के सभी पहलुओं में भारतीय मूल्यों पर आधारित ‘स्व’ (स्वत्व) की भावना पैदा करने का आग्रह जैसे आयाम शामिल हैं। नागरिक कर्तव्यों के पालन हेतु सामाजिक जागृति; ये सभी मुद्दे बड़े पैमाने पर समाज से संबंधित हैं। दूसरे, इन विषयों को व्यक्तियों, परिवारों और संघ की शाखाओं के आसपास के क्षेत्रों को संबोधित करने की आज सबसे अधिक आवश्यकता है। इसे व्यापक समाज तक ले जाने की आवश्यकता है। यह केवल चिंतन और अकादमिक बहस का विषय नहीं है, बल्कि कार्रवाई और व्यवहार का विषय है।
व्यवहार में पंच परिवर्तन को समाज में किस प्रकार लागू करना है इस हेतु हम समस्त भारतीय नागरिकों को मिलकर प्रयास करने होंगे, क्योंकि पंच परिवर्तन केवल चिंतन, मनन अथवा बहस का विषय नहीं है बल्कि इस हमें अपने व्यवहार में उतरने की आवश्यकता है। उक्त पांचों आचरणात्मक बातों का समाज में होना सभी चाहते हैं, अतः छोटी-छोटी बातों से प्रारंभ कर उनके अभ्यास के द्वारा इस आचरण को अपने स्वभाव में लाने का सतत प्रयास अवश्य करना होगा। जैसे, समाज के आचरण में, उच्चारण में संपूर्ण समाज और देश के प्रति अपनत्व की भावना प्रकट हो, प्रत्येक घर में सप्ताह में कम से कम एक बार पूजा या धार्मिक आयोजन हो एवं अपने परिवार के बच्चों के साथ बैठकर महापुरुषों के सम्बंध में सप्ताह में कम से कम एक घंटे चर्चा हो, परिवार के सभी सदस्यों में नित्य मंगल संवाद, संस्कारित व्यवहार व संवेदनशीलता बनी रहे, बढ़ती रहे व उनके द्वारा समाज की सेवा होती रहे, आदि बातों का ध्यान रखकर कुटुंब प्रबोधन जैसे विषय को आगे बढ़ाया जा सकता है।
मंदिर, पानी, श्मशान के सम्बंध में कहीं भेदभाव बाकी है, तो वह शीघ्र ही समाप्त होना चाहिए। हम लोग अपने परिवार सहित त्यौहारों के समय अनुसूचित जाति के बंधुओं के घर जाएं और उनके साथ चाय पान करें। साथ ही, हम अनुसूचित जाति के बंधुओं को सपरिवार अपने परिवार में बुलाकर सम्मान प्रदान करें। कुल मिलाकर समस्त समाज एक दूसरे के त्यौहारों में शामिल हों ताकि आपस में भाई चारा बढ़े एवं देश में सामाजिक समरसता स्थापित हो सके।
सृष्टि के साथ संबंधों का आचरण अपने घर से पानी बचाकर, प्लास्टिक हटाकर व घर आंगन में तथा आसपास हरियाली बढ़ाकर हो सकता है। अपने घरों में जल का कोई अपव्यय नहीं हो रहा है एवं अपने परिवार में हरियाली की चिंता की जा रही है। अपने घर में, रिश्तेदारी में, मित्रों के यहां सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने का आग्रह किया जा रहा है आदि बातों पर ध्यान देकर देश में पर्यावरण को सुधारा जा सकता है।
स्वदेशी के आचरण से स्व-निर्भरता व स्वावलंबन बढ़ता है। फिजूलखर्ची बंद होनी चाहिए, देश का रोजगार बढ़े व देश का पैसा देश में ही काम आए, इस बात का ध्यान देश के समस्त नागरिकों को रखना चाहिए। इसीलिए कहा जा रहा है कि स्वदेशी का आचरण भी घर से ही प्रारंभ होना चाहिए। समस्त नागरिकों के घर में स्वदेशी उत्पाद ही उपयोग होने चाहिए।
देश में कानून व्यवस्था व नागरिकता के नियमों का भरपूर पालन होना चाहिए तथा समाज में परस्पर सद्भाव और सहयोग की प्रवृत्ति सर्वत्र व्याप्त होनी चाहिए। इन्हें हमारे नागरिक कर्तव्यों के रूप में देखा जाना चाहिए। समाज में व्याप्त कुरीतियों के उन्मूलन हेतु हम सबको मिलकर प्रयास करने होंगे। विशेष रूप से युवाओं में नशाबंदी समाप्त करने के लिए, मृत्यु भोज रोकने के लिए तथा विभिन्न समाजों में व्याप्त दहेज की कुप्रथा समाप्त करने के गम्भीर प्रयास हम समस्त नागरिकों को मिलकर ही करने होंगे।
संघ के स्वयंसेवक आनेवाले दिनों में समाज के अभावग्रस्त बंधुओं की सेवा करने के साथ-साथ, इन पांच प्रकार की सामाजिक पहलों का आचरण स्वयं करते हुए समाज को भी उसमें सहभागी व सहयोगी बनाने का प्रयास करेंगे । समाजहित में शासन, प्रशासन तथा समाज की सज्जनशक्ति जो कुछ कर रही है, अथवा करना चाहेगी, उसमें संघ के स्वयंसेवकों का योगदान नित्यानुसार चलता रहेगा। वर्ष 2025 से 2026 का वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे होने के बाद का वर्ष है। उक्त वर्णित समस्त आयामों में संघ के स्वयंसेवक अपने कदम बढ़ायेंगे, इसकी सिद्धता संघ द्वारा किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
समाज की एकता, सजगता व सभी दिशा में निस्वार्थ उद्यम, जनहितकारी शासन व जनोन्मुख प्रशासन स्व के अधिष्ठान पर खड़े होकर परस्पर सहयोगपूर्वक प्रयासरत रहते है, तभी राष्ट्रबल वैभव सम्पन्न बनता है। बल और वैभव से सम्पन्न राष्ट्र के पास जब हमारी सनातन संस्कृति जैसी सबको अपना कुटुंब माननेवाली, तमस से प्रकाश की ओर ले जानेवाली, असत् से सत् की ओर बढ़ानेवाली तथा मृत्यु जीवन से सार्थकता के अमृत जीवन की ओर ले जानेवाली संस्कृति होती है, तब वह राष्ट्र, विश्व का खोया हुआ संतुलन वापस लाते हुए विश्व को सुखशांतिमय नवजीवन का वरदान प्रदान करता है । सद्य काल में हमारे अमर राष्ट्र के नवोत्थान का यही प्रयोजन है ।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – [email protected]
पश्चिम रेलवे ने 2023-24 में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए अपने मेधावी टिकट चेकिंग स्टाफ को किया सम्मानित
पश्चिम रेलवे ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में गहन टिकट चेकिंग अभियान के दौरान जुर्माने के रूप में लगभग 174 करोड़ रुपये की रिकॉर्ड राशि एकत्र की
मुंबई।
पश्चिम रेलवे ने अपना अब तक का सबसे अच्छा टिकट चेकिंग राजस्व हासिल किया है और 173.89 करोड़ रुपये का कुल टिकट चेकिंग राजस्व इकट्ठा करके अपने सभी पिछले रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। उल्लेखनीय है कि पश्चिम रेलवे ने 140 करोड़ रुपये के लक्ष्य को पार किया तथा निर्धारित लक्ष्य से 23.90% की वृद्धि दर्ज की। इस गौरवशाली क्षण का सेलिब्रेट करने के लिए पश्चिम रेलवे ने सभी छह मंडलों के 23 मेधावी टिकट चेकिंग स्टाफ को उनके सराहनीय प्रदर्शन के लिए सम्मानित किया।
पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी श्री सुमित ठाकुर द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार 2,286 ऑन रोल टिकट चेकिंग स्टाफ में से 17 कर्मचारियों ने फ्री चेकिंग ड्यूटी/कोच मैनिंग ड्यूटी में काम करने के क्षेत्र में सर्वोच्च प्रदर्शन दर्ज किया। महिला विंग में छह महिला टिकट चेकिंग स्टाफ ने भी उच्चतम टिकट चेकिंग प्रदर्शन हासिल किया। उनके समर्पण और कड़ी मेहनत का सम्मान करने के लिए पश्चिम रेलवे के मुख्य वाणिज्यिक प्रबंधक (यात्री सेवा और खानपान) श्री तरूण जैन ने हाल ही में 6 मंडलों तथा चर्चगेट स्थित मुख्यालय कंट्रोल के तहत काम करने वाले फ्लाइंग स्क्वाड के इन 23 कर्मचारियों को मेरिट प्रमाण पत्र के साथ सम्मानित किया।
श्री ठाकुर ने आगे बताया कि टिकट चेकर के काम में न केवल वैध यात्रियों के बीच बिना टिकट यात्रा करने वाले यात्रियों का पता लगाने के लिए कौशल और चतुराई की आवश्यकता होती है, बल्कि बिना टिकट वाले यात्रियों से जुर्माना राशि वसूलने के लिए नियमों के अच्छे ज्ञान और ठोस कौशल की भी आवश्यकता होती है। पश्चिम रेलवे को ऐसे कुशल और समर्पित टिकट-चेकिंग स्टाफ पर गर्व है।
माँ के चरणों में मिलता है स्वर्ग
आज मातृ दिवस है, एक ऐसा दिन जिस दिन हमें संसार की समस्त माताओं का सम्मान और सलाम करना चाहिये। वैसे माँ किसी के सम्मान की मोहताज नहीं होती, माँ शब्द ही सम्मान के बराबर होता है, मातृ दिवस मनाने का उद्देश्य पुत्र के उत्थान में उनकी महान भूमिका को सलाम करना है। श्रीमद भागवत गीता में कहा गया है कि माँ की सेवा से मिला आशीर्वाद सात जन्म के पापों को नष्ट करता है। यही माँ शब्द की महिमा है।
असल में कहा जाए तो माँ ही बच्चे की पहली गुरु होती है एक माँ आधे संस्कार तो बच्चे को अपने गर्भ में ही दे देती है यही माँ शब्द की शक्ति को दर्शाता है, वह माँ ही होती है पीड़ा सहकर अपने शिशु को जन्म देती है। और जन्म देने के बाद भी मां के चेहरे पर एक संतोषजनक मुस्कान होती है इसलिए माँ को सनातन धर्म में भगवान से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है।
‘माँ’ शब्द एक ऐसा शब्द है जिसमे समस्त संसार का बोध होता है। जिसके उच्चारण मात्र से ही हर दुख दर्द का अंत हो जाता है। ‘माँ’ की ममता और उसके आँचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। रामायण में भगवान श्रीराम जी ने कहा है कि ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।’’ अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। कहा जाए तो जननी और जन्मभूमि के बिना स्वर्ग भी बेकार है क्योंकि माँ कि ममता कि छाया ही स्वर्ग का एहसास कराती है।
जिस घर में माँ का सम्मान नहीं किया जाता है वो घर नरक से भी बदतर होता है, भगवान श्रीराम माँ शब्द को स्वर्ग से बढ़कर मानते थे क्योंकि संसार में माँ नहीं होगी तो संतान भी नहीं होगी और संसार भी आगे नहीं बढ़ पाएगा। संसार में माँ के समान कोई छाया नहीं है। संसार में माँ के समान कोई सहारा नहीं है। संसार में माँ के समान कोई रक्षक नहीं है और माँ के समान कोई प्रिय चीज नहीं है।
एक माँ अपने पुत्र के लिए छाया, सहारा, रक्षक का काम करती है। माँ के रहते कोई भी बुरी शक्ति उसके जीवित रहते उसकी संतान को छू नहीं सकती। इसलिए एक माँ ही अपनी संतान की सबसे बडी रक्षक है। दुनिया में अगर कहीं स्वर्ग मिलता है तो वो माँ के चरणों में मिलता है। जिस घर में माँ का अनादर किया जाता है, वहाँ कभी देवता वास नहीं करते। एक माँ ही होती है जो बच्चे कि हर गलती को माफ कर गले से लगा लेती है।
यदि नारी नहीं होती तो सृष्टि की रचना नहीं हो सकती थी। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक सृष्टि की रचना करने में असमर्थ बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने नारी की रचना की तभी से सृष्टि की शुरूआत हुई। बच्चे की रक्षा के लिए बड़ी से बड़ी चुनौती का डटकर सामना करना और बड़े होने पर भी वही मासूमियत और कोमलता भरा व्यवहार ये सब ही तो हर ‘माँ’ की मूल पहचान है।
दुनिया की हर नारी में मातृत्व वास करता है। बेशक उसने संतान को जन्म दिया हो या न दिया हो। नारी इस संसार और प्रकृति की ‘जननी’ है। नारी के बिना तो संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस सृष्टि के हर जीव और जन्तु की मूल पहचान माँ होती है। अगर माँ न हो तो संतान भी नहीं होगी और न ही सृष्टि आगे बढ पाएगी। इस संसार में जितने भी पुत्रों की मां हैं, वह अत्यंत सरल रूप में हैं। कहने का मतलब कि मां एकदम से सहज रूप में होती है। वे अपनी संतानों पर शीघ्रता से प्रसन्न हो जाती है। वह अपनी समस्त खुशियां अपनी संतान के लिए त्याग देती है, क्योंकि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, पुत्री कुपुत्री हो सकती है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती।
एक संतान माँ को घर से निकाल सकती है लेकिन माँ हमेशा अपनी संतान को आश्रय देती है। एक माँ ही है जो अपनी संतान का पेट भरने के लिए खुद भूखी सो जाती है और उसका हर दुख दर्द खुद सहन करती है।
लेकिन आज के समय में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो अपने मात-पिता को बोझ समझते हैं। और उन्हें वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर करते हैं। ऐसे लोगों को आज के दिन अपनी गलतियों का पश्चाताप कर अपने माता-पिताओं को जो वृद्ध आश्रम में रह रहे हैं उनको घर लाने के लिए अपना कदम बढ़ाना चाहिए। क्योंकि माता-पिता से बढ़कर दुनिया में कोई नहीं होता। माता के बारे में कहा जाए तो जिस घर में माँ नहीं होती या माँ का सम्मान नहीं किया जाता वहाँ दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का वास नहीं होता।
हम नदियों और अपनी भाषा को माता का दर्जा दे सकते हैं तो अपनी माँ से वो हक क्यों छीन रहे हैं। और उन्हें वृद्धाश्रम भेजने को मजबूर कर रहे है। यह सोचने वाली बात है। माता के सम्मान का एक दिन नहीं होता। माता का सम्मान हमें 365 दिन करना चाहिए। लेकिन क्यों न हम इस मातृ दिवस से अपनी गलतियों का पश्चाताप कर उनसे माफी मांगें। और माता की आज्ञा का पालन करने और अपने दुराचरण से माता को कष्ट न देने का संकल्प लेकर मातृ दिवस को सार्थक बनाएं।
भारत करे कड़वे सत्य का सेवन- ‘शेष’ जो भी है, वह ‘अवशेष’ मात्र है
विभिन्न धर्मों में माँ का अस्तित्व
मातृ दिवस पर विशेष
दुनिया के सभी मज़हबों में माँ को बहुत अहमियत दी गई है, क्योंकि माँ के दम से ही तो हमारा वजूद है। ख़ुदा ने जब कायनात की तामीर कर इंसान को ज़मीं पर बसाने का तसव्वुर किया होगा, तो यक़ीनन उस वक़्त मां का अक्स भी उसके ज़ेहन में उभर आया होगा। जिस तरह सूरज से यह कायनात रौशन है। ठीक उसी तरह माँ से इंसान की ज़िन्दगी में उजाला बिखरा हुआ है। तपती-झुलसा देने वाली गर्मी में दरख़्त की शीतल छांव है माँ, तो बर्फ़ीली सर्दियों में गुनगुनी धूप का अहसास है मां। एक ऐसी दुआ है मां, जो अपने बच्चों को हर मुसीबत से बचाती है।
मां, जिसकी कोख से इंसानियत जनमी। जिसके आंचल में कायनात समा जाए। जिसकी छुअन से दुख-दर्द दूर हो जाएं। जिसके होठों पर दुआएं हों। जिसके दिल में ममता हो और आंखों में औलाद के लिए इंद्रधनुषी सपने सजे हों। ऐसी ही होती है माँ। बिल्कुल ईश्वर के प्रतिरूप जैसी। ख़ुदा के बाद माँ ही इंसान के सबसे ज़्यादा क़रीब होती है।
इसीलिए सभी नस्लों में माँ को बहुत अहमियत दी गई है। इस्लाम में माँ का दर्जा बहुत ऊंचा है। क़ुरआन करीम की सूरह अल अहक़ाफ़ में अल्लाह तआला फ़रमाता है कि हमने इंसान को अपने मां-बाप के साथ अच्छा बर्ताव करने की ताकीद की है। उसकी माँ ने उसे तकलीफ़ के साथ उठाए रखा और उसे तकलीफ़ के साथ जन्म भी दिया। उसके गर्भ में पलने और दूध छुड़ाने में तीस माह लग गए। अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि माँ के क़दमों के नीचे जन्नत है। आप सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने एक हदीस में इरशाद फ़रमाया है कि मैं वसीयत करता हूं कि इंसान को माँ के बारे में कि वह उसके साथ नेक बर्ताव करे।
एक अन्य हदीस के मुताबिक़ एक शख़्स अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और सवाल किया कि ऐ अल्लाह के नबी! मेरे अच्छे बर्ताव का सबसे ज़्यादा हक़दार कौन है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारी माँ.” उसने कहा कि फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारी माँ.” उसने कहा कि फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारी माँ.” उसने कहा कि फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारा वालिद. फिर तुम्हारे क़रीबी रिश्तेदार।”
यानी इस्लाम में माँ को पिता से तीन गुना ज़्यादा अहमियत दी गई है। इस्लाम में जन्म देने वाली माँ के साथ-साथ दूध पिलाने और परवरिश करने वाली माँ को भी ऊंचा दर्जा दिया गया है। इस्लाम में इबादत के साथ ही अपनी माँ के साथ नेक बर्ताव करने और उसकी ख़िदमत करने का भी हुक्म दिया गया है। कहा जाता है कि जब तक माँ अपने बच्चों को दूध नहीं बख़्शती, तब तक उनके गुनाह भी माफ़ नहीं होते।
यहूदियों में भी माँ को सम्मान की नज़र से देखा जाता है। उनकी दीनी मान्यता के मुताबिक़ कुल 55 पैग़म्बर हुए हैं, जिनमें सात महिलाएं थीं। ईसाइयों में भी माँ को उच्च स्थान हासिल है। इस मज़हब में यीशु की माँ मदर मैरी को बहुत बड़ा रुतबा हासिल है। गिरजाघरों में ईसा मसीह के अलावा मदर मैरी की प्रतिमाएं भी विराजमान रहती हैं। यूरोपीय देशों में मदरिंग संडे मनाया जाता है। दुनिया के अन्य देशों में भी मदर डे यानी मातृ दिवस मनाने की परम्परा है।
भारत में मई के दूसरे रविवार को मातृ दिवस मनाया जाता है। चीन में दार्शनिक मेंग जाई की माँ के जन्मदिन को मातृ दिवस के तौर पर मनाया जाता है, तो इज़राईल में हेनेरिता जोल के जन्मदिवस को मातृ दिवस के रूप में मनाकर माँ के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है। हेनेरिता ने जर्मन नाज़ियों से यहूदियों की रक्षा की थी। अमेरिका में मई के दूसरे रविवार को मदर डे मनाया जाता है। इस दिन मदर डे के लिए संघर्ष करने वाली अन्ना जार्विस को अपनी मुहिम में कामयाबी मिली थी। इंडोनेशिया में 22 दिसम्बर को मातृ दिवस मनाया जाता है। भारत में भी मदर डे पर उत्साह देखा जाता है। नेपाल में वैशाख के कृष्ण पक्ष में माता तीर्थ उत्सव मनाया जाता है।
भारत में माँ को शक्ति का रूप माना गया है। हिन्दू धर्म में देवियों को माँ कहकर पुकारा जाता है। धन की देवी लक्ष्मी, ज्ञान की देवी सरस्वती और शक्ति की देवी दुर्गा को माना जाता है। नवरात्रों में माँ के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना का विधान है। वेदों में माँ को पूजनीय कहा गया है। महर्षि मनु कहते हैं कि दस उपाध्यायों के बराबर एक आचार्या होता है, सौ आचार्यों के बराबर एक पिता होता है और एक हज़ार पिताओं से अधिक गौरवपूर्ण माँ होती है। तैतृयोपनिशद् में कहा गया है-मातृ देवो भव:।
इसी तरह जब यक्ष ने युधिष्ठर से सवाल किया कि भूमि से भारी कौन है तो उन्होंने जवाब दिया कि माता गुरुतरा भूमे: यानी मां इस भूमि से भी कहीं अधिक भारी होती है। रामायण में राम कहते हैं कि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी यानी जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। बौद्ध धर्म में महात्मा बुद्ध के स्त्री रूप में देवी तारा की महिमा का गुणगान किया जाता है।
माँ बच्चे को नौ माह अपनी कोख में रखती है। प्रसव पीड़ा सहकर उसे इस संसार में लाती है। सारी-सारी रात जागकर उसे सुख की नींद सुलाती है। हम अनेक जनम लेकर भी माँ की कृतज्ञता प्रकट नहीं कर सकते। माँ की ममता असीम है, अनंत है और अपरंपार है। माँ और उसके बच्चों का रिश्ता अटूट है। माँ बच्चे की पहली गुरु होती है। उसकी छांव तले पलकर ही बच्चा एक ताक़तवर इंसान बनता है। हर व्यक्ति अपनी माँ से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है। वो कितना ही बड़ा क्यों न हो जाए, लेकिन अपनी माँ के लिए वो हमेशा उसका छोटा-सा बच्चा ही रहता है। माँ अपना सर्वस्व अपने बच्चों पर न्यौछावर करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है। माँ बनकर ही हर महिला ख़ुद को पूर्ण मानती है।
कहते हैं कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम बहुत तेज़ घुड़सवारी किया करते थे। एक दिन अल्लाह ने उनसे फ़रमाया कि अब ध्यान से घुड़सवारी किया करो। जब उन्होंने इसकी वजह पूछी तो जवाब मिला कि अब तुम्हारे लिए दुआ मांगने वाली तुम्हारी माँ ज़िन्दा नहीं है। जब तक वो ज़िन्दा रहीं उनकी दुआएं तुम्हें बचाती रहीं, मगर उन दुआओं का साया तुम्हारे सर से उठ चुका है। सच, माँ इस दुनिया में बच्चों के लिए ईश्वर का ही प्रतिरूप है, जिसकी दुआएं उसे हर बला से महफ़ूज़ रखती हैं। माँ को लाखों सलाम। दुनिया की सभी माओं को समर्पित हमारा एक शेअर पेश है-
क़दमों को माँ के इश्क़ ने सर पे उठा लिया
साअत सईद दोश पे फ़िरदौस आ गई
(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में सम्पादक हैं)
ब्रह्म समाज: मतभेदों का इतिहास
बीके इलेवन ने मलबार हिल कप 2024 जीता
भारत 77वें कान फिल्म महोत्सव (14-25 मई) में भाग लेगा
77वें कान फिल्म महोत्सव में ‘भारत पर्व’ मनाया जाएगा
एनआईडी, अहमदाबाद द्वारा डिजाइन भारत मंडप को क्रिएट इन इंडिया की इस वर्ष की थीम को दर्शाने के लिए ‘द सूत्रधार’ नाम दिया गया है
पायल कपाड़िया की ‘ऑल वी इमेजिन एज़ लाइट’ एक भारतीय फिल्म है जिसे प्रतियोगिता अनुभाग में 30 वर्षों बाद शामिल किया गया है
इसमें नवंबर 2024 में होने वाले 55वें आईएफएफआई और प्रथम विश्व ऑडियो-विजुअल एवं मनोरंजन शिखर सम्मेलन (वेव्स) के ‘सेव द डेट’ के पोस्टर और ट्रेलर लॉन्च होंगे
कान फिल्म महोत्सव में यह भारत के लिए एक विशेष वर्ष है क्योंकि देश इस प्रतिष्ठित महोत्सव के 77वें संस्करण के लिए तैयार है। भारत सरकार, राज्य सरकारों, फिल्म उद्योग के प्रतिनिधियों वाला कॉर्पोरेट भारतीय प्रतिनिधिमंडल महत्वपूर्ण पहलों की एक श्रृंखला के माध्यम से दुनिया के अग्रणी फिल्म बाजार मार्चे डु फिल्म्स में भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन करेंगे।
ऐसा पहली बार होगा जब देश 77वें कान फिल्म महोत्सव में “भारत पर्व” की मेजबानी करेगा जिसमें इस महोत्सव में भाग लेने वाले दुनिया भर के प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्ति और प्रतिनिधि फिल्मी हस्तियों, फिल्म निर्माताओं, निर्देशकों, खरीदारों और बिक्री एजेंटों के साथ जुड़ सकेंगे। इसमें विभिन्न स्तरों पर रचनात्मक अवसरों के साथ ही रचनात्मक प्रतिभाओं का प्रदर्शन किया जाएगा। इस भारत पर्व में 20 से 28 नवंबर, 2024 तक गोवा में आयोजित होने वाले 55वें भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के आधिकारिक पोस्टर और ट्रेलर का अनावरण किया जाएगा। भारत पर्व में 55वें आईएफएफआई के साथ आयोजित होने वाले प्रथम विश्व ऑडियो-विजुअल एवं मनोरंजन शिखर सम्मेलन (वेव्स) के लिए “सेव द डेट” का विमोचन भी होगा।
108 विलेज इंटरनेशनल रिवेरा में 77वें कान फिल्म महोत्सव में भारत मंडप का उद्घाटन 15 मई 2024 को प्रख्यात फिल्मी हस्तियों की मौजूदगी में किया जाएगा। कान में भारत मंडप भारतीय फिल्म समुदाय के लिए विभिन्न गतिविधियों में शामिल होने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है, जिसमें उत्पादन कार्य में सहयोग को बढ़ावा देना, क्यूरेटेड ज्ञान सत्र, वितरण सौदे कराना, स्क्रिप्ट की सुविधा, बी2बी बैठकें और दुनिया भर के प्रमुख मनोरंजन व मीडिया कर्मियों के साथ नेटवर्किंग शामिल है। इस मंडप का आयोजन राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) उद्योग भागीदार के रूप में भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) के सहयोग से करेगा। भारतीय फिल्म उद्योग को अन्य फिल्मी हस्तियों से जुड़ने और सहयोग प्रदान करने के लिए भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के माध्यम से मार्चे डु कान में एक ‘भारत स्टॉल’ लगाया जाएगा।
राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान, अहमदाबाद द्वारा डिजाइन भारत मंडप को इस वर्ष की थीम “क्रिएट इन इंडिया” को दर्शाने के लिए इसे ‘द सूत्रधार’ नाम दिया गया है। इस वर्ष कान फिल्म महोत्सव में भारत की उपस्थिति खास है जो इसके समृद्ध इतिहास और रचनात्मकता के परिदृश्य को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक दिशा को दर्शाता है।
सुर्खियों में, पायल कपाड़िया की प्रसिद्ध कृति “ऑल वी इमेजिन एज़ लाइट” दर्शकों को लुभाने और प्रतिष्ठित पाल्मे डी’ओर के लिए प्रतिस्पर्धा करने को तैयार है। यह विशेष रूप से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि तीन दशकों के बाद एक भारतीय फिल्म कान फिल्म महोत्सव के आधिकारिक चयन के प्रतियोगिता खंड में शामिल हुई है। यह सिनेमाई परिदृश्य ब्रिटिश-भारतीय फिल्म निर्माता संध्या सूरी की “संतोष” में मार्मिक कथा, डायरेक्टर्स फोर्टनाइट में अन सर्टेन रिगार्ड के साथ-साथ करण कंधारी की विचारोत्तेजक “सिस्टर मिडनाइट” और एल’एसिड में मैसम अली की सम्मोहक “इन रिट्रीट” से समृद्ध हुआ है।
भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) के छात्र की फिल्म “सनफ्लॉवर्स वेयर फर्स्ट वन्स टू नो” को ला सिनेफ प्रतिस्पर्धा खंड में चुना गया है। कन्नड़ में बनी यह लघु फिल्म दुनिया भर से आई प्रविष्टियों के बीच चुनी गई और अब अंतिम चरण में पहुंची 17 अन्य अंतर्राष्ट्रीय लघु फिल्मों के साथ प्रतिस्पर्धा करेगी।
इसके अलावा, इस महोत्सव में श्याम बेनेगल की ‘मंथन’, जो अमूल डेयरी सहकारी आंदोलन पर केंद्रित फिल्म है, को शास्त्रीय अनुभाग में प्रस्तुत किया जाएगा जो इस महोत्सव के भारतीय लाइनअप में ऐतिहासिक महत्व का स्पर्श जोड़ेगी। इस फिल्म के रीलों को मंत्रालय की एक इकाई एनएफडीसी-नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया (एनएफएआई) के फिल्म वॉल्ट में कई दशकों तक संरक्षित किया गया था, और अब फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन (एफएचएम) द्वारा सुरक्षित किया गया है।
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता सिनेमैटोग्राफर संतोष सिवन को कान फिल्म महोत्सव में प्रतिष्ठित पियरे एंजनीक्स ट्रिब्यूट से सम्मानित किया जाएगा। वह कान प्रतिनिधियों के लिए एक मास्टरक्लास भी देंगे। इस गौरव से सम्मानित होने वाले सिनेमैटोग्राफर संतोष सिवन ऐसे पहले भारतीय बन जाएंगे।
भारत के विविध स्थानों और फिल्म प्रतिभा को प्रदर्शित करने में मदद के लिए गोवा, महाराष्ट्र, जम्मू एवं कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड और दिल्ली सहित कई भारतीय राज्यों के भाग लेने की संभावना है।
भारत के सहयोग से फिल्म निर्माण के अवसरों की खोज पर “प्रचुर प्रोत्साहन और निर्बाध सुविधाएं- आओ, भारत में बनाएं” शीर्षक से 15 मई को दोपहर 12 बजे मुख्य मंच (रिवेरा) में एक सत्र आयोजित किया जा रहा है। पैनल चर्चा में फिल्म निर्माण, सह-निर्माण के अवसरों और शीर्ष स्तर की पोस्ट-प्रोडक्शन सुविधाओं के लिए भारत के विशाल प्रोत्साहनों पर प्रकाश डाला जाएगा। पैनल यह बताएगा कि फिल्म निर्माता इन पहलों का कैसे स्वागत कर रहे हैं, भारत में फिल्मांकन के लिए जमीनी स्तर पर वास्तविक अनुभव क्या हैं और कौन सी रोमांचक कहानियां साझा की जा रही हैं।
पूरे महोत्सव के दौरान आयोजित भारत मंडप में संवादात्मक सत्र में भारत में फिल्म निर्माण के लिए प्रोत्साहन, फिल्म समारोहों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, फिल्मांकन स्थल के रूप में भारत, भारत और स्पेन, ब्रिटेन, और फ्रांस जैसे अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय फिल्म सह-निर्माण जैसे विषयों शामिल होंगे। इन सत्रों का उद्देश्य सशक्त भारतीय फिल्म उद्योग और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ जुड़ने के इच्छुक फिल्म निर्माताओं के लिए चर्चा, नेटवर्किंग और सहयोग के अवसरों को सुविधाजनक बनाना है।